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टूटा गरूर-भाग 3 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

जले मन पर मानो नमक छिड़क दिया पारुल ने. तिलमिला कर कहने जा रही थी कि बहुत काम रहता है प्रशांत को… इतना बड़ा बिजनैस हैंडल करना आसान नहीं है. पीयूष की तरह फुरसतिया नहीं हैं कि चौबीसों घंटे मोबाइल पर बीवी से बातें या मैसेज करते रहें. लेकिन हड़बड़ा कर झूठ ही बोल गई, ‘‘सुबह ही तो तेरे आने से पहले बहुत देर तक बातें हुई थीं. फिर रात में भी बहुत देर तक बातें करते रहे. आखिर मैं ने ही कहा कि अब सो जाओ तब बड़ी मुश्किल से फोन काटा,’’ कहते हुए पल्लवी पारुल से आंखें नहीं मिला पाई. नाश्ता परोसने के बहाने आंखें यहांवहां घुमाती रही.

मोबाइल को हाथ में पकड़े पल्लवी घूर रही थी. सुबह के 10 बज गए हैं. क्या अब तक प्रशांत सो कर नहीं उठे होंगे? क्या उन्होंने मेरी मिस कौल नहीं देखी होंगी? क्या एक बार भी वे फोन नहीं लगा सकते? पता नहीं क्यों अचानक पल्लवी का मन तेजी से यह इच्छा करने लगा कि काश प्रशांत का फोन आ जाए. हमेशा से इस अकेलेपन को आजादी मानने वाली पल्लवी आज पारुल के सामने बैठ कर अचानक ही क्यों इस अकेलेपन से ऊब उठी है? क्यों किसी से कोने में जा कर बात करने को उस का मन लालायित हो उठा.

अपनेआप के साथ रह कर, जो अकेलापन कभी अकेलापन नहीं लगा वही पारुल के साथ होने पर भी क्यों आज इतने बरसों बाद काट खाने को दौड़ रहा है? शायद इसलिए कि पारुल उस के साथ, उस के सामने होते हुए भी लगातार पीयूष से जुड़ी हुई है, उस के साथ और जुड़ाव का एहसास ही पल्लवी के अकेलेपन को लगातार बढ़ाता जा रहा था.

पल्लवी ने फिर प्रशांत को फोन लगाया. लेकिन अब की बार उस का फोन स्विच औफ मिला. झुंझला कर पल्लवी ने प्रशांत के औफिस में फोन लगाया. उस की पी.ए. को तो कम से कम पता ही होगा कि प्रशांत कहां हैं, किस होटल में ठहरे हैं. औफिस में जिस ने भी फोन उठाया झिझकते हुए बताया कि सर की पी.ए. तो सर के साथ ही मुंबई गई है.

पल्लवी सन्न रह गई. तो इसलिए प्रशांत फोन नहीं उठा रहे थे. रात में और सुबह से ही फोन का स्विच औफ होने का कारण भी यही है. मुंबई के बाद बैंगलुरु फिर हैदराबाद. एक से एक आलीशान होटल और… पल्लवी हर बार कहती कि घर में बच्चे तो हैं नहीं, मैं भी साथ चलती हूं तो प्रशांत बहाना बना देते कि मैं तो दिन भर काम में रहूंगा. रात में भी देर तक मीटिंग चलती रहेगी. तुम कहां तक मेरे पीछे दौड़ोगी? बेकार होटल के कमरे में बैठेबैठे बोर हो जाओगी.

सच ही तो है बीवी की जरूरत ही नहीं है. पी.ए. को साथ ले जाने में ही ज्यादा सुविधा है. दिन भर काम में मदद और रात में बिस्तर में सहूलत. अचानक पल्लवी की आंखों के सामने आपस में हंसीचुहल करते हुए खाना बनाते और  काम करते पीयूष और पारुल के चित्र घूम गए. पहले जिस बात को सुन कर पल्लवी तुच्छता से हंस दी थी आज उसी चित्र की कल्पना कर के उसे ईर्ष्या हो रही थी.

ईर्ष्या, क्षोभ, प्रशांत द्वारा दिया जा रहा धोखा और अपमान सब पल्लवी की आंखों से बहने लगे. क्यों बुलाया पारुल को उस ने? आराम से इस ऐश्वर्य और पैसे से खरीदे गए सुखसाधनों से, अपनेआप को संपन्न, सुखी मान कर सुख से बैठी थी कि पारुल ने आ कर उस के सुख को चूरचूर कर दिया. जीवन में पहली बार पारुल का सुख और चेहरे की चमक देख कर पल्लवी को लगा कि पैसा ही सुख का पर्याय नहीं है.

पारुल के चेहरे को घूरघूर कर पल्लवी दुख की लकीर ढूंढ़ना चाह रही थी. आज उसी चेहरे की चमक देख कर उस के अपने चेहरे पर मायूसी के बादल छा रहे हैं. अब वह पारुल के चेहरे पर नजर डालने की ही इच्छा नहीं कर पा रही है, डर रही है. उस के चेहरे की रोशनी से खुद के मन का अंधेरा और घना न हो जाए.

दोपहर के खाने के बाद दोनों बातें करने बैठीं.

‘‘तुम ने अपनी क्या हालत बना रखी है दीदी? बच्चे होस्टल में, जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… पहाड़ सा दिन अकेले कैसे काटती हो?’’ पारुल के चेहरे पर पल्लवी के लिए सचमुच की हमदर्दी थी.

शाम को दोनों फिर घूमने निकल गईं. पल्लवी पारुल को शहर के सब से महंगे बुटीक में ले गई.

‘‘अपने लिए कोई सूट पसंद कर ले,’’ पल्लवी ने कहा.

‘‘बाप रे, यहां तो सारे सूट बहुत महंगे और चमकदमक वाले हैं. मैं ऐसे सूट पहन कर कहां जाऊंगी दीदी. इतनी चमकदमक मेरे प्रोफैशन को सूट नहीं करती,’’ पारुल के स्वर में चमकदमक के लिए तिरस्कार और अपने प्रोफैशन के प्रति स्वाभाविक गर्व का आभास था.

चोट मानो पल्लवी पर ही हुई थी. तब भी पल्लवी ने बहुत कहा पर पारुल मुख्यतया पैसों पर ही अड़ी रही. कहती रही कि यह फुजूलखर्ची है.

‘‘अरी, शादी के बाद पहली बार आई है. पैसों की चिंता मत कर. मैं उपहार दे रही हूं,’’ पल्लवी बोली.

‘‘बात पैसों की नहीं है दीदी. तुम दो या मैं दूं. बात वस्तु के उपयोग की है. बेकार अलमारी में बंद पड़ा रहेगा. अब मैं तुम्हारी तरह हाईफाई बिजनैस पार्टियों में तो जाती नहीं हूं,’’ कह कर पारुल बुटीक से बाहर आ गई.

रात खाना दोनों बाहर ही खा कर आईं. घर लौटते ही पीयूष का फोन आया. सेमिनार खत्म हो चुका है. वह सुबह की फ्लाइट पकड़ कर आ रहा है. उस ने पारुल से भी कहा कि कल ही फ्लाइट से वापस आ जाओ.

‘‘पर तेरा तो परसों रात का रिजर्वेशन है न?’’ पल्लवी ने पूछा.

‘‘उसे मैं कल सुबह कैंसल करवा आऊंगी. 11 बजे की फ्लाइट है. टिकट तो मिल ही जाएगा. एअरपोर्ट पहुंच कर ही ले लूंगी. 2 बजे तक पहुंच जाऊंगी,’’ पारुल के चेहरे की चमक और खुशी दोनों जैसे कई गुना बढ़ गई थीं.

‘‘इतने सालों बाद आई है. ठीक से बात भी नहीं कर पाई और 2 ही दिन में वापस जा रही है. ऐसा भी क्या है कि पीयूष 2 दिन भी नहीं छोड़ सकता तुझे,’’ पल्लवी नाराजगी वाले स्वर में बोली.

‘‘फिर कभी आ जाऊंगी दीदी. बल्कि तुम ही क्यों नहीं आ जाया करतीं. बच्चे दोनों घर पर नहीं हैं और जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… उफ, कैसे रहती हो तुम,’’ पारुल के स्वर में सहजता थी. लेकिन पल्लवी को लगा पारुल कटाक्ष कर रही है.

सच ही तो है. ऐसी दीवानगी है एकदूसरे के लिए जैसी पल्लवी ने अपने लिए 4 दिन भी नहीं देखी. दीवानगी नहीं देखी यह बात नहीं है, लेकिन अपने लिए नहीं देखी, देखी है पैसे के लिए. पैसे से खरीदी जा सकने वाली हर चीज के लिए. एक पल्लवी में भी तो दीवानगी बस पैसे के लिए ही रही है. और किसी के लिए भी जीवन में दीवाना हुआ जा सकता है, यह तो पारुल को देख कर पता चला. जो पारुल महज पैसों की खातिर महंगा सूट नहीं खरीद रही थी वह और पीयूष से 2 दिन जल्दी मिमने की खातिर प्लेन से वापस जाने को तैयार हो गई. जो पल्लवी से मिलने व साधारण स्लीपर क्लास में आई थी. यानी पैसा है, लेकिन मनुष्य के लिए पैसा है, पैसे के लिए मनुष्य नहीं है.

जिस शानदार पलंग पर पल्लवी पैर पसार कर निश्चिंत सोती थी, आज उसी पलंग पर मानों वह अंगारों की जलन महसूस कर रही थी. वह यहां अकेली है और वहां प्रशांत के साथ… पैसे से हर सुख नहीं खरीदा जा सकता, कम से कम औरतों के बारे में तो यह बात लागू होती ही है.

उठ कर पल्लवी पता नहीं किस अनजाने आकर्षण में बंध कर पारुल के कमरे की तरफ गई. देखा पलंग के सिरहाने की तरफ रोशनी झिलमिला रही है. अपने पलंग पर औंधी पड़ कर पल्लवी सुबकने लगी. उस का गरूर टूट कर आंखों के रास्ते बहने लगा.

टूटा गरूर-भाग 2 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

‘‘अरे हां, जीजाजी क्या औफिस चले गए?’’ पारुल ने उत्साह से पूछा.

‘‘नहीं, वे तो काम से मुंबई गए हैं. वही से फिर बैंगलुरु और फिर हैदराबाद जाएंगे. व्यवसाय बढ़ गया है. महीने में 20 दिन तो वे बाहर ही रहते हैं,’’ पल्लवी ने अपने स्वर में भरसक गर्व का पुट भरते हुए कहा.

‘‘और तुम ने भी दोनों बच्चों को क्यों होस्टल में डाल दिया? बच्चे घर में होते हैं, तो रौनक रहती है,’’ पारुल ने एक कौर मुंह में डालते हुए कहा.

‘‘अरे, इन का स्कूल माना हुआ है, इन की इच्छा तो फौरेन भेजने की थी पर मैं ने कहा अभी बहुत छोटे हैं. हायर ऐजुकेशन के लिए भेज देना विदेश, अभी तो देहरादून ही ठीक है. यों भी जब पैसे की कोई कमी नहीं है तो बच्चों को क्यों न बैस्ट ऐजुकेशन दिलाई जाए. हां, जिन के पास पैसा न हो उन की मजबूरी है…’’ कहते हुए पल्लवी ने एक चुभती हुए गर्वीली दृष्टि पारुल पर डाली. लेकिन तब तक पारुल के मोबाइल पर बीप की आवाज आई और वह मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गई.

लिहाजा पल्लवी को चुप रह जाना पड़ा. फिर तो जब तक दोनों नाश्ता करती रहीं, पारुल मैसेज पढ़ती रही और जवाबी मैसेज भेजती रही. उस ने एक बार भी मुंह ऊपर नहीं उठाया. उलटे हाथ से लैटर टाइप करते हुए सीधे हाथ से एक कौर उठाती और मुंह में डाल लेती. क्या खा रही है, कैसा स्वाद है, मैसेज में मगन पारुल को कुछ पता नहीं चल रहा था.

पल्लवी मन ही मन खीज रही थी कि उस के इतने कीमती और ढेर सारे नाश्ते पर पारुल का ध्यान ही नहीं है.

पारुल के लगातार बेवजह हंसते रहने को पल्लवी उस की आंतरिक खुशी नहीं उस की दुख छिपाने की चेष्टा ही समझी. पल्लवी जैसी बुद्धिहीन और समझ ही क्या सकती थी. तभी तो यह सुन कर कि पारुल के यहां खाना बनाने को बाई या रसोइया नहीं, पल्लवी अवाक उसे देखती रही.

‘‘इस में इतना अचरज करने की क्या बात है दीदी? 2 ही तो लोग हैं. पीयूष को भी खाना बनाने का शौक है. हम दोनों मिल कर खाना बना लेते हैं और जरूरी बातचीत भी हो जाती है,’’ पारुल ने सहज रूप से उत्तर दिया.

अब तो पल्लवी के आश्चर्य की सीमा नहीं रही. पुरुष और किचन में? यह तो जैसे दूसरी दुनिया की बात है. उस ने न तो अपने पिताजी को कभी किचन में जाते देखा न कभी प्रशांत ने ही कभी वहां पैर रखा. पुरुष तो छोडि़ए, पल्लवी ने तो अपने घर की औरतों यानी मां या दादी को भी सिवा रसोइए को क्या बनेगा के निर्देश देने के और किसी काम से किचन में पैर रखते नहीं देखा.

‘‘पर तूने खाना बनाना कहां से सीखा?’’ पल्लवी ने प्रश्न किया.

‘‘पीयूष से ही सीखा दीदी. वे बहुत अच्छा खाना बनाते हैं,’’ पारुल ने उत्तर दिया.

रसोईघर की गरमी में पारुल खाना बनाती है, रोटियां बेलती है सोच कर ही पल्लवी को पहली बार बहन से सचमुच सहानुभूति हो आई.

‘‘असिस्टैंट प्रोफैसर की तनख्वाह इतनी भी कम नहीं होती कि एक रसोइया न रखा जा सके. इतना कंजूस भी क्यों है पीयूष?’’ पल्लवी विषाद भरे स्वर में बोली.

‘‘वे कंजूस नहीं हैं दीदी, उन्होंने तो बहुत कहा था कि रसोइया रख लो, लेकिन जिद कर के मैं ने ही मना किया. हाथपैर चलते रहते हैं तो शरीर पर बेकार चरबी नहीं चढ़ती. वरना बैठेबैठे खाते रहो तो मोटे हो कर सौ परेशानियों को निमंत्रण दो.’’

पारुल तो सहज बात बोल गई लेकिन पल्लवी को लगा पारुल उस पर व्यंग्य कर रही है. सचमुच कम उम्र में एक के बाद एक 2 बच्चे और उस पर तर माल खा कर बस सारा दिन आराम करना. घूमने के नाम पर गाडि़यों में घूमना, पार्टियों में जाना और मौल में शौपिंग करना. और करती ही क्या है पल्लवी. तभी तो जगहजगह थुलपुल मांस की परतें झांकने लगी हैं. शरीर बड़ी मुश्किल से कपड़ों में समाता है.

पहली बार पारुल के छरहरे कसे शरीर को देख कर ईर्ष्या का अनुभव किया पल्लवी ने. वह पारुल से मात्र 6 वर्ष बड़ी है,  लेकिन मांस चढ़ जाने के कारण 20 वर्ष बड़ी लग रही है. जबकि पारुल के चेहरे और शरीर पर आज भी 20-22 की उम्र वाली कमनीयता बरकरार है.

पल्लवी भी कपड़े बदल कर पलंग पर लेट गई. एक ही दिन हुआ है पारुल को आए. लेकिन सुबह से पीयूष के न जाने कितने फोन और मैसेज आ गए होंगे. अब भी शायद दोनों एकदूसरे को मैसेज ही कर रहे होंगे. 4 साल हो गए शादी को, लेकिन लग रहा है मानो महीना भर पहले ही ब्याह हुआ है. कितनी दीवानगी है एकदूसरे के लिए.

पहली बार पल्लवी के मन में एक गहरी टीस उठी. शादी के इतने बरसों में कभी याद नहीं किया काम के सिवा प्रशांत ने. उन के टूअर पर जाने पर यदि कभी अकेलेपन से ऊब कर पल्लवी ही बातचीत के उद्देश्य से फोन मिलाती तो प्रशांत झल्ला जाता कि मेरे पास गप्पें मारने के लिए फालतू समय नहीं है.

दिन में न सही, लेकिन रात में भी प्रशांत का कोई न कोई बहाना रहता कि पार्टी के साथ मीटिंग में हूं या डिनर पर काम की बातें हो रही हैं या फिर सो रहा हूं.

हार कर पल्लवी ने फोन करना बंद कर दिया. लेकिन आज पारुल और पीयूष को एकदूसरे के कौंटैक्ट में रहते देख कर पल्लवी के अंदर एक टीस सी उठी. इस बार तो 4 दिन हो गए प्रशांत को गए हुए. पहुंचने के फोन के बाद से कोई खबर नहीं है. देर तक छटपटाती रही पल्लवी. सुबह से पारुल के फोन को चैन नहीं है और पल्लवी… उस का फोन इतना खामोश है कि पता ही नहीं चलता कि फोन पास है या नहीं.

हाथ में पकड़े मोबाइल को देर तक घूरती रही पल्लवी और फिर प्रशांत को फोन लगाया. 1 2 3 … 10 बार लगातार फोन किया पल्लवी ने, लेकिन प्रशांत ने फोन नहीं उठाया. लगता है फोन साइलैंट मोड पर कर के सो गए हैं.

पारुल सो रही है या… सहज कुतूहल और ईर्ष्या के वशीभूत हो कर पल्लवी उठ कर पारुल के कमरे तक गई. दरवाजा बंद नहीं था. केवल परदे लगे थे. पल्लवी ने बहुत थोड़ा सा परदा सरका कर देखा. पलंग के सिरहाने वाले कोने पर एक मद्धिम रोशनी झिलमिला रही थी. उस रोशनी को देख कर पल्लवी के मन का अंधेरा घना हो गया.

आ कर चुपचाप पलंग पर लेट कर देर रात तक अपनेआप को तसल्ली देती रही. पल्लवी कि कल सुबह उठते ही उस की इतनी मिस कौल देख कर प्रशांत खुद ही फोन लगा लेंगे.

दूसरे दिन नाश्ता करते हुए पारुल ने टोक ही दिया, ‘‘कल से देख रही हूं, दीदी जीजाजी का एक बार भी फोन नहीं आया.’’

अब भुगतो केजरीवाल का मजाक उड़ाने की सजा

भक्तों ने पिछले साल केजरीवाल की खांसीजुकाम का खूब मखौल बनाया था. अब केजरीवाल के पास कलश तो है नहीं कि मार ?ाड़ा, मंतर फूंक श्राप दे दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है तो लगता है कि एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों के चिपक गई है.

ज ब राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे थे तब से मेरी टोनेटोटकों में आस्था बढ़ रही है. इस के पीछे एक व्यक्तिगत अनुभव या संक्षिप्त कहानी यह है कि अपनी जवानी के दिनों में मेरा दिल माया नाम की सहपाठिन पर आ गया था. लेकिन, वह राम को चाहती थी. राम और माया में फूट डालने के लिए मैं ने और मेरे चंद लंपट दोस्तों ने साम, दाम, दंड, भेद सब का सहारा लिया. फिर भी दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. माया के चालचलन को ले कर मेरे गुट ने खूब दुष्प्रचार किया और एकाध बार अकेले में ले जा कर राम की खूब कुटाई भी की पर वे अपने लैलामजनूं छाप प्यार के रास्ते से हटने को तैयार नहीं हुए.
फिर ‘तीन पत्ती’ के एक विशेषज्ञ दोस्त की सलाह पर मैं तत्कालीन नामी तांत्रिक से मिला जो चुटकियों में लड़कियां वश में करवा देने के लिए मशहूर था. उस तांत्रिक ने 51 रुपए लिए और पानी की एक शीशी अभिमंत्रित कर दी कि इसे जैसे भी हो, माया को पिला दो, वह मीरा की तरह तुम्हारे भजन गाने लगेगी. पर माया को पानी पिलाऊं कैसे? यह वैसी ही समस्या थी जैसी 11 दिनों से महाराष्ट्र में देखने में आ रही है कि सरकार बने कैसे. उन दिनों में स्कूल में लंचबौक्स और पानी की बोतल ले जाने का रिवाज नहीं था. लड़केलड़कियां टोंटी वाले नल से मुंह लगा कर पानी गुटकते थे. अब मैं वह बोतल अगर टंकी में उड़ेल देता तो पूरी लड़कियों के मेरे वश में हो जाने का अंदेशा था जिस से अफरातफरी मचती और मेरा स्कूल का दरवाजा पार करना भी मुहाल हो जाता.

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कई दिनों तक वह शीशी बस्ते में डाले मैं माया के आगेपीछे डोलता रहा. लेकिन बात नहीं बनी तो एक दिन हिम्मत करते मैं ने उसे शीशी दे कर कहा. ‘तुम अगर मु?ा को न चाहो तो कोई बात नहीं, लेकिन यह पानी पी लो.’ मैं उस वक्त हैरान रह गया जब उस ने बिना किसी विरोध के शीशी का पानी अपने हलक में उड़ेल लिया और फिर मुसकरा कर बोली, ‘इसे ले जा कर उस तांत्रिक बाबा को वापस कर देना. तुम से पहले और 6 लड़के मु?ो यह पानी पिला चुके हैं. पर, मु?ो कुछ नहीं हुआ. मेरी तो रगरग में राम है. प्यार खुद अपनेआप में इतना बड़ा टोटका है कि इस के आगे ये फुटपाथिए जतन कर कहीं नहीं ठहरते.

उस दिन मैं बिना किसी त्यागतपस्या के और बिना भूखेप्यासे रहे स्कूल के नीम के ठूंठ के नीचे ही बुद्धत्व को प्राप्त हो गया और तंत्रमंत्र वगैरह से मेरा भरोसा, जो दरअसल में था ही नहीं, हमेशा के लिए उठ गया. लेकिन राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे, तो मेरी टोनेटोटकों में अनास्था करोड़ों भारतीयों की तरह डगमगाने लगी, जिसे जैसेतैसे मैं ने स्वरचित तर्कों और बचेखुचे आत्मविश्वास के दम पर संभाल लिया और पूर्ववत परिवार का पेट पालने के अपने कर्तव्य में लग गया जो नोटबंदी के बाद से और दुष्कर काम हो चला है.

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पिछले दिनों दिल्ली के प्रदूषण पर जो बवंडर मचा वह मेरी भी चिंता का विषय नहीं था. लेकिन उत्तर प्रदेश के एक मंत्रीजी का यह बयान पढ़ कर कि, यह यज्ञ से दूर हो सकता है, मेरे दिमाग में भी अंधविश्वास का कीड़ा फिर कुलबुलाने लगा. इस के बाद तो 2 केंद्रीय मंत्रियों ने अचूक नुस्खे सु?ाए. स्वास्थ मंत्री बोले कि गाजर खाओ तो दूसरे ने अपना संसदीय ज्ञान बघारा कि सुबह संगीत सुनो तो स्वस्थ रहोगे. यानी, दिल्ली की जहरीली हवा ब्रह्मा द्वारा निर्मित फेफड़ों पर बेअसर रहेगी.

इस पर भक्त लोग खामोश रहे. उन्होंने इन तीनों में से किसी का मजाक नहीं उड़ाया क्योंकि ये राम दल के सैनिक हैं. लेकिन जाने क्यों मु?ो लग रहा है कि इन्हीं भक्तों ने पिछले साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सर्दीजुकामखांसी और मफलर तक का खूब मजाक उड़ाया था. केजरीवाल कोई दुर्वासा नहीं हैं, जो बातबात पर श्राप दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है, तो लगता है एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों को लग गई है. द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उसे अंधे का बेटा कहते उड़ाया था, इस के बाद उस की जो दुर्दशा और महाभारत हुई, उसे सब जानते हैं.

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जमाना और दौर दुआओंबद्दुआओं का ही है, बाकी तो करने को किसी के पास कुछ बचा नहीं है. स्टोरी का मौरल यह है कि कभी किसी भले आदमी का मजाक महज इसलिए नहीं उड़ाना चाहिए कि वह पौराणिकवादी नहीं है. लेकिन, टोनेटोटके जरूर करते रहने चाहिए और इस के लिए अब कानून बनना चाहिए कि प्रदूषित शहरों के लोग कमाएंगेखाएंगे बाद में, पहले यज्ञहवन करेंगे और सुबह उठते ही गाजर खाते संगीत सुनेंगे और इस में भी सुंदर कांड को प्राथमिकता देंगे. वहीं, अगर दिल्ली के लोग वाकई प्रदूषण से छुटकारा बिना इन टोटकों के चाहते हैं तो उन्हें अरविंद केजरीवाल से माफी मांगनी चाहिए.

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यह बड़ा आध्यात्मिक टोटका है जिसे आजमा कर घंटों में दिल्ली प्रदूषण मुक्त हो सकती है. अगर इस व्यंग्य को आप 21 लोगों को फौरवर्ड करेंगे तो 2 दिनों में ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में धूप चमकने लगेगी और यदि फौरवर्ड नहीं करेंगे तो फिर से खांसने और छींकने को मजबूर हो जाएंगे.

Winter Special : सर्दियों में बनाएं चॉकलेट केक

चॉकलेट केकका नाम सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ जाता है. चाहे बच्चे हो या फिर बुढ़ें सभी को चॉकलेट खाना पसंद आता है. आइए जानते हैं घर पर कैसे बनाएं चॉकलेट केक घर पर . इन दिनों ज्यादातर लोग घर पर ही केक बनाना पसंद करते हैं. ऐसे में आपको भी अगर मन हो रहा है घर पर चॉकलेट केक बनाने का तो आइए बनाते हैं चॉकलेट केक.

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समाग्री

शक्कर

बिना मिल्क का दूध

मक्खन

कोको पाउडर

बेकिंग पाउडर

वेनिला एसेस

विधि

मैदा, कोको पाउडर और बेकिंग पाउडर को अच्छे से छान लें, इसके बाद आप इसमें एक कटोरा शक्कर और मक्खन मिला लें. अब इसे हैंड ब्लेंड में डालकर अच्छे से मिलाएं.अब इसे 15 से 20 मिनट इसे एक ही डायरेक्शन में फेटे.

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अब इसमें वेनिला एसेंस को डालें और कुछ देर के लिए फेटे, मक्खन और शक्कर को धीरा- धीरे करके डालें साथ ही इसे फेंटते रहें, अगर आपको पानी कम लग रहा है तो इसे अच्छे से मिलाएं.

प्रेशर कुकर में पानी डालें फिर उसमें केक टीन को रख दें और उसमें सारें पेस्ट को डाल दें अब इसे ढ़ककर 15 से 20 मिनट तक पकने दें.

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अबएक बार फिर से देख लीजिए अगर आपका केक पक गया है तो उसे निकालकर सर्व कर दें.

टूटा गरूर-भाग 1 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

पल्लवी ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा. सुबह के 9 बजे थे. ट्रेन आने में अभी 1 घंटा था. अगर वह 10 बजे भी स्टेशन के लिए निकली तब भी टे्रन के वक्त पर पहुंच जाएगी. स्टेशन 5-7 मिनट की दूरी पर ही तो था.

पल्लवी एक बार किचन गई. महाराज नाश्ते की लगभग सभी चीजें बना चुके थे. 10 बजे तक नाश्ता टेबल पर तैयार रखने का आदेश दे कर वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई और सरसरी तौर पर सजावट की मुआयना करने लगी. ड्राइंगरूम की 1-1 चीज उस की धनाढ्यता का परिचय दे रही थी.

पारुल तो दंग रह जाएगी यह सब देख कर. पल्लवी की संपन्नता देख कर शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो. पश्चात्ताप हो.

पारुल पल्लवी की छोटी बहन थी. आज वह पल्लवी के यहां 4-5 दिनों के लिए आ रही है. ऐसा नहीं है कि पारुल ने पल्लवी का घर नहीं देखा है. लेकिन वह यहां 5 वर्ष पहले आई थी. पिछले 5 वर्षों में तो पल्लवी के पति प्रशांत ने व्यवसाय में कई गुना प्रगति कर ली है और उन की गिनती शहर के सब से धनी लोगों में होने लगी है. 5 साल पहले जब पारुल यहां आई थी तो पल्लवी 5 हजार वर्गफुट की जगह में बने बंगले में रहती थी. लेकिन आज वह शहर के सब से पौश इलाके में अति धनाढ्य लोगों की कालोनी में 25 हजार वर्गफुट में बने एक हाईफाई बंगले में रहती है. अपनी संपन्नता के बारे में सोच कर पल्लवी की गरदन गर्व से तन गई.

पल्लवी का मायका भी बहुत संपन्न है. पल्लवी से 6 साल छोटी है पारुल. पढ़ने में पल्लवी का कभी मन नहीं लगा. वह सारा दिन बस अपने उच्चवर्गीय शौक पूरे करने में बिता देती थी. इसीलिए 20 वर्ष की होने से पहले ही उस के पिता ने प्रशांत के साथ उस का विवाह कर दिया.

प्रशांत से विवाह कर के पल्लवी बहुत खुश थी. रुपयापैसा, ऐशोआराम, बस और क्या चाहिए जीवन में. हर काम के लिए नौकर. पल्लवी जैसी सुखसुविधाएं चाहती थी वैसी उसे मिली थीं.

पिताजी पारुल का भी विवाह जल्द ही कर देना चाहते थे, लेकिन वह तो सब से अलग सांचे में ढली हुई थी. जब देखो तब किताबों में घुसी रहती. पढ़ाई के अलावा भी न जाने और कौनकौन सी किताबें पढ़ती रहती. उसे एक अलग ही तरह के लोग और परिवेश पसंद था. स्कूलकालेज में भी वह बस पढ़ाई में तेज और बुद्धिमान लड़कियों से ही दोस्ती करती थी. उसे रुपए की चकाचौंध में जरा भी रुचि नहीं थी. तभी एक से एक धनी व्यवसायी घरानों के रिश्ते ठुकराते हुए 4 साल पहले उस ने अचानक कालेज के एक असिस्टैंट प्रोफैसर से विवाह कर के सब को सकते में डाल दिया.

घर वालों को यह सहन न हुआ. तभी से मातापिता ने पारुल से रिश्ता तोड़ लिया था. लेकिन एक ही शहर में होने के बाद मातापिता आखिर कब तक बेटी से नाराज रहते. इधर 6 महीने से उन लोगों ने पारुल और पति पीयूष को घर बुलाना और उन के यहां आनाजाना शुरू कर दिया. तब पल्लवी ने भी पारुल से फोन पर बात करना और उसे अपने घर आने का आग्रह करना शुरू कर दिया.

ऐसा नहीं है कि पल्लवी को पारुल से बहुत लगाव है और वह बस स्नेहवश उस से मिलने को आतुर है, बल्कि पल्लवी तो अपनी संपन्नता के प्रदर्शन से पारुल को चकाचौंध कर के उसे यह एहसास दिलाना चाह रही थी कि देखो तुम ने मामूली आदमी से ब्याह कर के क्या कुछ खो दिया है जिंदगी में.

पल्लवी और उस के परिवार ने जीवन में हमेशा पैसे को महत्त्व दिया था. चाहे उस के पिता हों या पति, दोनों ही पैसे से ही आदमी को छोटाबड़ा समझते थे.

पौने 10 बज गए तो पल्लवी ने अपने विचारों को समेटा और ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा. चमचमाती कार में बैठ कर वह स्टेशन पहुंची. समय पर ट्रेन आ गई.

स्लीपर क्लास से उतरती पारुल पर नजर पड़ते ही पल्लवी का जी कसैला हो उठा कि अगर संपन्न घर में शादी करती तो इस समय प्लेन से उतरती.

‘‘ओ दीदी कैसी हो? कितने साल हो गए तुम्हें देखे हुए,’’ पारुल ने लपक कर पल्लवी को गले लगा लिया और जोर से बांहों में भींच लिया.

क्षण भर को पल्लवी के मन में भी बहन से मिलने की ललक पैदा हुई पर तभी अपनी प्योर सिल्क की साड़ी पर उस का ध्यान चला गया कि उफ, गंदे कपड़ों में ही छू लिया पारुल ने. पता नहीं ट्रेन में कैसेकैसे लोग होंगे. अब तो घर जा कर तुरंत इसे बदल कर ड्राईक्लीन के लिए देना होगा.

घर पहुंच कर पल्लवी ने पारुल को बैठने भी नहीं दिया, सीधे पहले नहाने भेज दिया. ट्रेन के सफर के कारण पारुल के शरीर से गंध सी आ रही थी. पल्लवी स्वयं भी कपड़े बदलने चली गई.

डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगवा कर पल्लवी ने पारुल को आवाज लगाई. मोबाइल पर बात करते हुए पारुल आ कर कुरसी पर बैठ गई. बात खत्म कर के उस ने मुसकरा कर पल्लवी को देखा.

‘‘बाप रे दीदी… यह इतना सारा क्याक्या बनवा दिया है तुम ने,’’ पारुल आश्चर्य से नाश्ते की ढेर सारी चीजों को देख कर बोली.

‘‘कुछ भी तो नहीं. जब तक यहां है अच्छी तरह खापी ले… वहां तो पता नहीं…’’ पल्लवी ने अपनेआप को एकदम से रोक लिया वरना वह कहना चाह रही थी कि एक मामूली सी तनख्वाह में वह दालरोटी से अधिक क्या खा पाती होगी भला. पर यह कहने से अपनेआप को रोक नहीं पाई कि यहां तो रोज ही यह बनता है… तेरे जीजाजी तो ड्राईफ्रूट हलवे के सिवा और कोई नाश्ता ही नहीं करते.

‘रात अकेली है’के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी को मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार!

14 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सफलता की जो दिशा पकड़ी थी,वह निरंतर आगे ही बढ़ी जा रही है.नवाजुद्दीन सिद्दिकी निरंतर या यूं कहें फिल्म दर फिल्म अभिनय के नए आयाम को छूते जा रहे हैं.उनके उत्कृष्ट अभिनय के चलते नवाजुद्दी सिद्दिकी को अब तक लगभग दो दर्जन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

2020 में जब कोरोना महामारी के चलते सभी परेशान रहे और फिल्म उद्योग भी लगभग सात माह तक पूर्णरूपेण बंद रहा,तब भी नवाजुद्दीन सिद्दिकी चर्चा में बेन रहे.ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘सीरियस मैन’,‘रात अकेली है’ने धमाल मचाया.इतना ही नहीं वर्ष की समाप्ति से पहले नवाजुद्दीन सिद्दकी को फिल्म ‘रात अकेली है’ की शानदार भूमिका और उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेता‘ के खिताब से सम्मानित किया गया.

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जी हाॅ!अपने कैरियर में एक नया अचीवमेंट जोड़ते हुए नवाजुद्दीन ने फिल्म‘रात अकेली है’के अपने किरदार जटिल यादव की अपनी भूमिका के लिए प्रतिष्ठित ‘फिल्मफेअर ’अवार्ड जीता.फिल्मफेअर ने इसी वर्ष से इस अवार्ड की षुरूआत की है.यह फिल्म इस वर्ष 31 जुलाई को ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’पर प्रदर्शित हुई.‘रात अकेली है’ में उनका किरदार निश्चित रूप से इस वर्ष में सबसे प्रमुख था.इस फिल्म में नवाजुद्दीन की भूमिका ने दर्शकों और आलोचकों से बहुत प्यार प्राप्त किया, जो स्पष्ट रूप से उनके त्रुटिहीन प्रदर्शन को उजागर करता है.

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एक कलाकार के रूप में उन्होंने वेब सीरीज के साथ-साथ फिल्मों में अविश्वसनीय प्रदर्शनों के साथ ओटीटी प्लेटफार्म पर मजबूती से अपनी जगह बनाई है.उन्होंने कई प्रशंसाएं जीती हैं और यह विशेष जीत महत्वपूर्ण है,क्योंकि 2020 समाप्ति के कगार पर है.इससे पहले उन्हें ‘सेक्रेड गेम्स’और ‘सीरियस मेन’ में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए बहुत प्रशंसा मिली थी.वह हमेशा एक ऐसे अभिनेता रहे हैं,जो एक चरित्र को बड़ी सहजता आत्मसात कर लेते हैं.यही गुण उन्हें एक बहुमुखी कलाकार बनने और हर फिल्म के साथ अपने शिल्प को बढ़ाने में मदद करता है.

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फिलहाल नवाजुद्दीन सिद्दीकी को ‘बोले चूड़ियां’,‘संगीन’और ‘जोगीरा सारा रा रा’के प्रदर्षन का बेसब्री से इंतजार है.

इस साल बर्थ डे नहीं मनाएंगे सलमान खान, जानें वजह

सलमान खान हर साल 27 दिसंबर को अपना जन्मदिन मनाते हैं. लेकिन हर साल की तरह इस साल सलमान खान अपना जन्मदिन धूमधाम से नहीं मनाएंगे. आइए जानते हैं इस साल सलमान खान अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाएंगे हर साल की तरह.

दरअसल एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सलमान खान इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म अंतिम: द फाइनल ट्रुथ’  की शूटिंग में व्यस्त हैं जिस वजह से वह सेट पर ही छोटा सा सेलिब्रेशन करेंगे.

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सलमान खान हर साल की तरह अपने जन्मदिन और नए साल के सेलिब्रेशन के लिए अपने फार्म हाउस पनवेल नहीं जाएंगे. जिसे जानकर सलमान खान के फैंस बहुत ज्यादा निराश नजर आ रहे हैं. सलमान खान  आने वाली फिल्म के डायरेक्टर हैं महेश मांजरेकर इनसे सलमान खान की बहुत अच्छी दोस्ती है.

 

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महेश की बेटी सई मांजरेकर फिल्म ‘दबंग 3’ में नजर आ चुकी हैं. कयास लगाए जा रहे थें कि सई सलमान खान के साथ इस फिल्म में भी नजर आने वाली थी लेकिन फिल्म के डायरेक्टर और सई के पापा ने इस खबर से इंकार कर दिया है.

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इस साल बॉलीवुड के एक्टरों ने अपने जन्मदिन को खास अंदाज में हर साल की तरह नहीं सेलिब्रेट किया क्योंकि इस साल कई दिग्गज कलाकारों ने गंभीर बीमारी की वजह से इस इंडस्ट्री को अलविदा कहा है. जिस वजह से अभी भी बॉलीवुड का माहौल गमगीन है.ऋषि कपूर और इरफान खान जैसे कलाकार इस दुनिया को अलविदा कह दिया है तो वहीं दिलीप कुमार ने भी इस साल अपने 2 भाइयों को खोया है.

 

लौकी की खेती – बीजों की जानकारी व कीटरोगों से बचाव

ताजगी से भरपूर लौकी कद्दूवर्गीय खास सब्जी है. इसे बहुत तरह के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर वगैरह बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खांसी या बलगम दूर करने में बहुत फायदेमंद है. इस के मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से ले कर दक्षिण भारत के राज्यों तक की जाती है. निर्यात के लिहाज से सब्जियों में लौकी खास है.

आबोहवा

लौकी की अच्छी पैदावार के लिए गरम व आर्द्रता वाले रकबे मुनासिब होते हैं. इस की फसल जायद व खरीफ दोनों मौसमों में आसानी से उगाई जाती है. इस के बीज जमने के लिए 30-35 डिगरी सेंटीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32 से 38 डिगरी सेंटटीग्रेड तापमान मुनासिब होता है.

मिट्टी और खेत की तैयारी

बलुई, दोमट व जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिस में पानी सोखने की कूवत अधिक हो और जिस का पीएच मान 6.0-7.90 हो, लौकी की खेती के लिए मुनासिब होती है. पथरीली या ऐसी भूमि जहां पानी भरता हो और निकासी का अच्छा इतंजाम न हो, इस की खेती के  लिए अच्छी नहीं होती है. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी  पलटने वाले हल से और बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं. हर जुताई के बाद खेत में पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी व इकसार कर लेना चाहिए ताकि खेत में सिंचाई करते समय पानी बहुत कम या ज्यादा न लगे.

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खाद व उर्वरक

अच्छी उपज के लिए 50 किलोग्राम नाइटोजन, 35 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देनी चाहिए. बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा 4-5 पत्ती की अवस्था में और बची आधी मात्रा पौधों में फूल बनने से पहले देनी चाहिए.

बीज की मात्रा

सीधी बीज बोआई के लिए 2.5-3 किलोग्राम बीज 1 हेक्टेयर के लिए काफी होता है. पौलीथीन के थैलों या नियंत्रित वातावरण युक्त गृहों में नर्सरी उत्पादन करने के लिए प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम बीज ही काफी होता है.

बोआई का समय

आमतौर पर लौकी की बोआई गरमी यानी जायद में 15-25 फरवरी तक और बरसात यानी खरीफ में 15 जून से 15 जुलाई तक कर सकते हैं. पहाड़ी इलाकों में बोआई मार्चअप्रैल के महीनों में की जाती है.

बोआई की विधि

लौकी की बोआई के लिए गरमी के मौसम में 2.5-3.5 मीटर व बारिश के मौसम में 4-4.5 मीटर की दूरी पर 50 सेंटीमीटर चौड़ी  व 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी नालियां बना लेते हैं. इन नालियों के दोनों किनारे पर गरमी में 60 से 75 सेंटीमीटर व बारिश में 80 से 85 सेटीमीटर फासले पर बीजों की बोआई करते हैं. 1 जगह पर 2 से 3 बीज 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोने चाहिए.

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सिंचाई

खरीफ मौसम में खेत की सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती, पर बारिश न होने पर 10 से 15 दिनों के बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है. अधिक बारिश की हालत में पानी निकालने के लिए नालियों का गहरा व चौड़ा होना जरूरी है. गरमी में ज्यादा तापमान होने के कारण 4 से 5 दिनों के फासले पर सिंचाई करनी चाहिए.

निराईगुड़ाई

आमतौर पर खरीफ मौसम में या सिंचाई के बाद खेत में काफी खरपतवार उग आते हैं, लिहाजा उन को खुरपी की मदद से 25 से 30 दिनों में निराई कर के निकाल देना चाहिए. पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 2 से 3 बार निराईगुड़ाई कर के जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में व्यूटाक्लोरा रसायन की 2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के तुरंत बाद छिड़कनी चाहिए.

लौकी के कीड़ों की रोकथाम

कद्दू का लाल कीट रेड पंपकिन बिटिल : इस कीट का प्रौढ़ चमकीले नारंगी रंग का होता है. सूंड़ी जमीन के अंदर पाई जाती है. इस की सूंड़ी व प्रौढ़ दोनों जमीन के अंदर पाए जाते हैं. सूंड़ी व वयस्क दोनों ही नुकसान करते हैं. ये प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. सूंड़ी पौधों की जड़ काट कर नुकसान पहुंचाती है. प्रौढ़ कीट खासतौर पर मुलायम पत्तियां अधिक पसंद करते हैं. इस कीट के अधिक आक्रमण से पौधे पत्ती रहित हो जाते हैं.

रोकथाम

* सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से प्रौढ़ कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं, जिस से नुकसान कम होता है.

* जैविक विधि से रोकथाम के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिलीलीटर या अजादीरैक्टिन 5 फीसदी 0.5 मिलीलीटर की दर से 2 या 3 बार छिड़कने से फायदा होता है.

* इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी 1 मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एमएल 0.5 मिलीलीटर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कें.

फल मक्खी : इस कीट की सूंड़ी नुकसान करती है. प्रौढ़ मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है. इस के सिर पर काले व सफेद धब्बे पाए जाते हैं. प्रौढ़ मादा छोटे मुलायम फलों के अंदर अंडे देना पसंद करती है. अंडों से ग्रब्स सूंड़ी निकल कर फलों के अंदर का भाग खा कर खत्म कर देते हैं. कीट फल के जिस भाग पर अंडे देते हैं, वह भाग वहां से टेढ़ा हो कर सड़ जाता है और नीचे गिर जाता है.

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रोकथाम

* गरमी की गहरी जुताई या पौधे के आसपास खुदाई करें ताकि मिट्टी की निचली परत खुल जाए जिस से फलमक्खी का प्यूपा धूप द्वारा नष्ट हो जाए.

* फल मक्खी द्वारा खराब किए गए फलों को इकट्ठा कर के खत्म कर देना चाहिए.

* नर फल मक्खी को नष्ट करने के लिए प्लास्टिक की बोतलों को इथेनाल कीटनाशक डाइक्लोरोवास या कार्बारिल या मैलाथियान क्यूल्यूर को 6:1:2 के अनुपात के घोल में लकड़ी के टुकड़े को डुबा कर 25 से 30 फंदे खेत में स्थापित कर देने चाहिए. कार्बारिल 50 डब्यूपी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी को ले कर 10 फीसदी शीरा या गुड़ में मिला कर जहरीले चारे को 1 हेक्टेयर खेत में 250 जगहों पर इस्तेमाल करना चाहिए.

* प्रतिकर्षी 4 फीसदी नीम की खली का इस्तेमाल करें, जिस से जहरीले चारे की ट्रैपिंग की कूवत बढ़ जाए. जरूरतानुसार कीटनाशी जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 025 मिलीलीटर या डाईक्लारोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते हैं.

खास रोग व रोकथाम

चूर्णिल आसिता : रोग की शुरुआत में पत्तियों और तनों पर सफेद या धूसर रंग पाउडर जैसा दिखाई देता है. कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चूर्ण भरे हो जाते हैं. सफेद चूर्णी पदार्थ आखिर में समूचे पौधे की सतह को ढक लेता है. अधिक प्रकोप के कारण पौधे जल्दी बेकार हो जाते हैं. फलों का आकार छोटा रह जाता है.रोकथाम

* इस की रोकथाम के लिए खेत में फफूंदनाशक दवा जैसे 0.05 फीसदी ट्राइडीमोर्फ 1 लीटर पानी में घोल कर 7 दिनों के फासले पर छिड़काव करें. इस दवा के न होने पर फ्लूसिलाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्साकोनाजोल 1.5 मिलिलीटर पानी की दर से छिड़काव करें. मृदुरोमिल फफूंदी : ?यह रोग बारिश वाली व गरमी वाली फसलों में बराबर लगता है. उत्तरी भारत में इस रोग का हमला ज्यादा होता?है. इस रोग की खास पहचान पत्तियों पर कोणीय धब्बे पड़ना है. ये कवक पत्ती के ऊपरी भाग पर पीले रंग के होते हैं और नीचे की तरफ रोएंदार बढ़वार करते हैं.

रोकथाम

* बचाव के लिए बीजों को मेटलएक्सिल नामक कवकनाशी की 3 ग्राम दवा से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए और मैंकोजेब 0.25 फीसदी का छिड़काव रोग की पहचान होने के एकदम बाद फसल पर करना चाहिए.

* यदि संक्रमण भयानक हालत में हो तो मैटालैक्सिल व मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से या डाइमेयामर्फ का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी व मैटीरैम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 7 से 10 दिनों के फासले पर 3 से 4 बार छिड़काव करें.

फलों की तोड़ाई व उपज

लौकी के फलों की तोड़ाई मुलायम हालत में करनी चाहिए. फलों का वजन किस्मों पर निर्भर करता है. फलों की तोड़ाई डंठल लगी अवस्था में किसी तेज चाकू से करनी चाहिए. तोड़ाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए ताकि पौधों पर ज्यादा फल लगें. औसतन लौकी की उजप 350 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

डा. ऋषिपाल व डा. राजेंद्र सिंह

दोषी कौन था?-भाग 1 : आखिर क्यों चुप थीं बूआ?

मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हमेशा चहचहाने वाली बूआ कहीं खो सी गई हैं. बातबेबात ठहाका मार कर हंसने वाली बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं. सौतेली बेटी के ब्याह के बाद तो उन्हें खुश होना चाहिए था, कहा करती थीं कि इस की शादी कर के तर जाऊंगी. सौतेली बेटी बूआ को सदा बोझ ही लगा करती थी. उन के जीवन में अगर कुछ कड़वाहट थी तो वह यही थी कि वे एक दुहाजू की पत्नी हैं. मगर जहां चाह वहां राह, ससुराल आते ही बूआ ने पति को उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया और समझाबुझा कर सौतेली बेटी को उस के ननिहाल भेज दिया. सौत की निशानी वह बच्ची ही तो थी. जब वह चली गई तो बूआ ने चैन की सांस ली. फूफा पहलेपहल तो अपनी बेटी के लिए उदास रहे, मगर धीरेधीरे नई पत्नी के मोहपाश में सब भूल गए. बूआ कभी तीजत्योहार पर भी उसे अपने घर नहीं लाती थीं. प्रकृति ने उन की झोली में 2 बेटे डाल दिए थे. अब वे यही चाहती थीं कि पति उन्हीं में उलझे रहें, भूल से भी उन्हें सौतेली बेटी को याद नहीं करने देती थीं. सुनने में आता था कि फूफा की बेटी मेधावी छात्रा है. ननिहाल में सारा काम संभालती है. परंतु नाना की मृत्यु के बाद मामा एक दिन उसे पिता के घर छोड़ गए. 19 बरस की युवा बहन, भाइयों के गले से भी नीचे नहीं उतरी थी. पिता ने भी पितातुल्य स्वागत नहीं किया था. मुझे याद है, उस शाम मैं भी बूआ के घर पर ही था. जैसे बूआ की हंसी पर किसी ने ताला ही लगा दिया था. मैं सोचने लगा, ‘घर की बेटी का ऐसा स्वागत?’ अनमने भाव से बूआ ने उसे अंदर वाले कमरे में बिठाया और आग्नेय दृष्टि से पति को देखा, जो अखबार में मुंह छिपाए यों अनजान बन रहे थे, मानो उन्हें इस बात से कुछ भी लेनादेना न हो. पहली बार मुझे इस सत्य पर विश्वास हुआ था कि सचमुच मां के मरते ही पिता का साया भी सिर से उठ जाता है.

‘सुनो, वे लोग इसे यहां क्यों छोड़ गए, आप ने कुछ कहा था क्या?’ बूआ ने गुस्से से पति से पूछा तो किसी अपराधी की तरह हिम्मत कर के फूफाजी ने सफाई दी, ‘इस के मामा के भी तो बेटियां हैं न… अब नाना की कमाई भी तो नहीं रही. यहीं रहेगी तो क्या बुरा है? तुम्हें काम में इस की मदद मिल जाएगी.’

‘अरे, ब्याहने को लाख, 2 लाख कहां से लाओगे? अपना तो पूरा नहीं पड़ता…’ बूआ मुझ से जब भी मिलतीं, यही कहतीं, ‘अरे गौतम, तू ही बता न कोई अच्छा सा लड़का. दानदहेज नहीं देना मुझे. किसी तरह यह ससुराल चली जाए तो मैं तर जाऊं.’ संयोग से मेरे एक मित्र का चचेरा भाई बिना दहेज के शादी करना चाहता था, आननफानन रिश्ता तय हो गया और जल्दी ही शादी भी हो गई. शादी के लगभग 2 महीने बाद मैं बूआ के घर गया तो पूछा, ‘‘क्या बात है, अब क्या पर

Winter Special : घर पर इस तरह से बनाएं कुकीज

सर्दियों में ज्यादातर लोग मीठा खाना पसंद करते हैं. ऐसे में अगर आपको भी कुछ मीठा खाने का मन हो रहा है तो ऐसे में आपको कुछ हेल्दी कुकीज बताने जा रहे हैं जिसे खाने के बाद स्वाद के साथ- साथ आपके सेहत के लिए नुकसान दायक नहीं होगा.

तो आइए जानते हैं कुकीज बनाने के लिए घर पर क्या- क्या चीजे होनी चाहिए.

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समाग्री

मक्खन

पीसी शक्कर

बेकिंग पाउडर

पीसी हुई अलसी

जई फ्लेक्स

अखरोट

क्रेनबरी

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विधि

सबसे पहले आप अपने ओवन को 350 f पर हिट करें. इसके बाद आप आटा और बेकिंग पाउडर को मिक्स करके छान लें.

अब एक कटोरी में मक्खन लें फिर उसमें शक्कर डालकर अच्छए से मिक्स कर लें. लेकिन ये ध्यान रखें कि मक्खन पिघला हुआ नहीं होना चाहिए.

अब इसमें आप दरदरी पीसी हुई अलसी को डालकर अच्छे से मिलाए. अब इसमें कटा हुआ अखरोट डालकर अच्छे से मिलाएं. साथ ही इसमें जई डालें और किशमिश डालकर मिलाएं अगर ये सब अच्छे से नहीं हो रहा है तो इसमें एक चम्मच पानी मिक्स कर दें.

अब इन सभी मिक्सचर को 10 मिनट तक फ्रिज में रखें.10 मिनक के बाद इसकी छोटी- छोटी लोई बना लें. इन सभी कुकीज को अच्छे से बनाकर एक ट्रे में रखें लेकिन ध्यान रखे कि सभी कुकीज में कुछ दूरी होनी चाहिए.

अब इसे ओवन में रखकर 20 मिनट के लिए कुक करें. 20 मिनट के बाद इसे बाहर निकालने के कुछ देर बाद खा सकते हैं.

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