लो जी, फिर मुझ दुखियारी के फोन पर बेटे की काल आ गई. सच कहूं, जबजब मेरे बेटे का गांव से फोन आता है, तबतब मेरा तो यह फटा कलेजा सुनने से पहले ही मुंह को आ जाता है. मेरा बेटा दिल्ली छोड़ कर जब से गांव गोद लेने गया है न, अपनी तो भूखप्यास सब खत्म हो गई है. दिनभर में चारचार बार फोन रीचार्ज कराना पड़ रहा है. वाह रे बेटा, जवानी में ऐसे दिन भी तुझे देखने थे. अभी तो चुनाव होने में 5 साल हैं. पता नहीं, तब तक और क्याक्या दिन देखने पड़ेंगे. बुरा हो इस सरकार का, जो मन में आए किए जा रही है. हम विपक्ष वालों तक के हाथों में कभी झाड़ू पकड़वा देती है, तो कभी फावड़ा. कल को न जाने क्या हाथ में पकड़वा दे.

अब देखो न, मेरे फूल से बेटे को गांव गोद लेना पड़ा. मैं ने उसे यह करते हुए बहुत समझाया कि बेटा, उन्हें लेने दे 4-4 गांव गोद. तेरे दिन तो अभी मां की गोद में बैठने के हैं. मैं तेरी जगह एक के बदले 2 गांव गोद ले लेती हूं, पर बेटा नहीं माना तो नहीं माना. लाड़ला है, सो जिद्दी है. बड़ा भी हो गया है. पर मां के लिए तो बेटा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, जब तक उस की शादी नहीं हो जाती, तब तक वह बच्चा ही रहता है. अब सरकार को कोई कैसे समझाए कि उस के भी तो अभी गोद में बैठनेखेलने के दिन हैं. आज तक वह किसी न किसी की गोद में ही लोटता रहा. उसे आज तक हम ने गोद से उतारा ही कब? उस ने उतरना भी चाहा, तो हम ने उतरने न दिया. उसे क्या पता कि किसी को गोद में कैसे बैठाते हैं? वह तो पड़ोसियों तक के बच्चों को गोद में लेने से मना करता है.

डरता है कि कहीं उस पर किसी बच्चे ने शूशू कर दिया तो… बेचारा, पता नहीं गोद में गांव ले कर कैसे रह रहा होगा? हाय रे यह जनसेवा, उसे तो ठीक से अभी गोद में बैठना भी नहीं आता और बेचारा वह. अब जा कर कोई उन से पूछे कि कल तक जो मेरी गोद में रहा, उसे क्या आता है किसी को अपनी गोद में लेना? पर नहीं. वे सुनने वाले कहां. उन के तो आजकल कहने के दिन हैं और सुनने के अपने. ‘अरे, क्या हाल है बेटा? गांव में सब ठीक तो है?’ ‘मांमां, फिर दिक्कत आ गई है.’ ‘अब क्या दिक्कत आ गई मेरे फूल से लाल को?’ ‘मां, गांव में बिजली नहीं है. यहां तो सरकारी मुलाजिम तो दिखते ही नहीं, पर सूरज भी अपनी मरजी का है. बिजली वालों ने बस बिजली की तारें ही पेड़ों से बांध रखी हैं और उन पर गांव वाले अपने कपड़े सूखने के लिए डालते हैं. ‘गांव में पानी के लिए पाइप तो है, पर उन में पानी नहीं आता.

गांव वाले उन में गागरों से पानी डाल कर फिर नल से भरते हैं.’ ‘यह गागर कैसी होती है बेटा?’ ‘मां, मेरे पास उसे समझाने के लिए शब्द नहीं हैं. मैं मोबाइल पर फोटो भेज दूंगा, तो किसी से पूछ लेना. पर इस अंधेरे का क्या करूं मां? ‘यहां तो रात को तो अंधेरा रहता ही है, पर दिन में भी अंधेरा ही रहता है. आप के बिना बहुत डर लग रहा है. मन कर रहा है कि गांव किसी और की गोद में बैठा कर दिल्ली आ जाऊं.

‘बस, मुझे नहीं बनना अब कुछ… ऐसा नहीं हो सकता मां कि हम मोदी अंकल की दिल्ली वाली गली ही गोद ले लें? यहां तो कोई मेरी गोद में आ कर शूशू कर देता है, तो कोई…’ ‘चिंता मत कर मेरे लाल. कुरिअर से अभी हगीज भिजवा रही हूं. हर पैकेट के साथ 10 रुपए का मोबाइल रीचार्ज फ्री.’ ‘पर मां, क्या करना फ्री रीचार्ज का. यहां तो मोबाइल सिगनल पेड़ की चोटी पर चढ़ कर ही आता है. वहीं से चढ़ कर आप को फोन किया है मां. अब हम से यह गांव और नहीं. सहा जाता. हम बस अभी बैलगाड़ी से…’

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