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Winter Special : घर पर इस तरह से बनाएं कुकीज

सर्दियों में ज्यादातर लोग मीठा खाना पसंद करते हैं. ऐसे में अगर आपको भी कुछ मीठा खाने का मन हो रहा है तो ऐसे में आपको कुछ हेल्दी कुकीज बताने जा रहे हैं जिसे खाने के बाद स्वाद के साथ- साथ आपके सेहत के लिए नुकसान दायक नहीं होगा.

तो आइए जानते हैं कुकीज बनाने के लिए घर पर क्या- क्या चीजे होनी चाहिए.

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समाग्री

मक्खन

पीसी शक्कर

बेकिंग पाउडर

पीसी हुई अलसी

जई फ्लेक्स

अखरोट

क्रेनबरी

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विधि

सबसे पहले आप अपने ओवन को 350 f पर हिट करें. इसके बाद आप आटा और बेकिंग पाउडर को मिक्स करके छान लें.

अब एक कटोरी में मक्खन लें फिर उसमें शक्कर डालकर अच्छए से मिक्स कर लें. लेकिन ये ध्यान रखें कि मक्खन पिघला हुआ नहीं होना चाहिए.

अब इसमें आप दरदरी पीसी हुई अलसी को डालकर अच्छे से मिलाए. अब इसमें कटा हुआ अखरोट डालकर अच्छे से मिलाएं. साथ ही इसमें जई डालें और किशमिश डालकर मिलाएं अगर ये सब अच्छे से नहीं हो रहा है तो इसमें एक चम्मच पानी मिक्स कर दें.

अब इन सभी मिक्सचर को 10 मिनट तक फ्रिज में रखें.10 मिनक के बाद इसकी छोटी- छोटी लोई बना लें. इन सभी कुकीज को अच्छे से बनाकर एक ट्रे में रखें लेकिन ध्यान रखे कि सभी कुकीज में कुछ दूरी होनी चाहिए.

अब इसे ओवन में रखकर 20 मिनट के लिए कुक करें. 20 मिनट के बाद इसे बाहर निकालने के कुछ देर बाद खा सकते हैं.

दोषी कौन था?-भाग 4 : बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं

‘‘मेरे सोचने से क्या होगा? मनुष्य हालात के हाथों का खिलौना ही तो है. वर्तमान में जीने के लिए आप को भी अतीत से हाथ झटकना ही पड़ेगा.’’ ‘‘आने वाले दिनों में क्या होगा, उस की चिंता में आज का अनादर मत करो, गीता. कुछ भी उलटासीधा मत सोचो,’’ अपनी भुजाओं में कस कर मैं ने उस के गाल पर एक मुहर तो लगा दी, मगर उसे अवसाद से अलग नहीं कर पाया. धीरेधीरे वक्त आगे सरका. एक दिन मां की बीमारी का तार मिला तो हम दोनों घर गए. छोटा भाई दिनरात मां की सेवा कर रहा था. गीता ने जाते ही उसे इस जिम्मेदारी से मुक्त किया और कितने ही दिन मां की सेवा में लगी रही. मैं हर हफ्ते घर जाता रहा. इसी तरह लगभग 1 महीना व्यतीत हो गया. मां चुप थीं और पिताजी सवालिया नजरों से मुझे देखते, जैसे पूछ रहे हों, ‘क्या यह वही गीता है जिसे लोग पागल कहते थे?’

मैं कई बार सोचता, ‘जरूर बूआ और फूफाजी घर आते होंगे. क्या वे बेटी से मिलते होंगे? क्या अब भी मेरी पत्नी को अपनी पुत्री नहीं समझते होंगे?’

एक दिन पिताजी ने धीरे से कहा, ‘‘अपना तबादला यहीं करा ले बेटे, अकेले हमें अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘और गीता? उसे कहां फेंक दूं? आप का घर पागलखाना तो नहीं है न?’’‘‘बस करो गौतम. वह तो हमारी सब से बड़ी भूल थी.’’ पिताजी ने अपनी भूल मान ली थी. लेकिन अपना तबादला मेरे हाथ में नहीं था, फिर भी मैं ने आश्वासन दे दिया. एक दिन आंगन में फूफाजी को खड़े देख एक मिलीजुली भावना से मेरा पूरा शरीर कांप गया. वे मां का हालचाल पूछने आए थे. मैं ने देखा, गीता अपने कमरे में चली गई है. उस के पिता ने भी शायद उसे देखना नहीं चाहा था. मेरा मन रो रहा था. जी चाह रहा था कि किसी तरह गीता को पिता से मिलवा दूं. फूफाजी के चेहरे पर आतेजाते भाव मैं पढ़ना चाह रहा था, मगर वे सामान्य रूप से आम बातें कर रहे थे, राजनीति और महंगाई की बातें… ‘‘महंगी तो हर चीज हो गई है, फूफाजी. अगर मैं संतान के लिए पिता का प्यार खरीद सकता तो गीता के लिए उस के पिता का थोड़ा सा स्नेह खरीद लेता. मगर कैसे खरीदूं, उस की कीमत पता नहीं है न…’’ मैं ने तीर छोड़ा और वह संभावना के विपरीत ठीक निशाने पर जा बैठा. मैं ने हौले से कहा, ‘‘गीता की बीमारी का तार मिला था न आप को, क्या उस की मौत का इंतजार था आप को? क्या मांगा था उस गरीब ने आप से? क्या बिगाड़ा है उस ने आप का? सिर्फ यही कि आप के घर में जन्म ले लिया?

‘‘अच्छीभली लड़की को लोगों ने पागल बना दिया और आप सुनते रहे. कभी नहीं सोचा कि वह पागल क्यों समझ ली गई.’’ मैं कहता रहा और वे सुनते रहे. मां और पिताजी भी वहीं थे. तभी मेरा छोटा भाई गीता का हाथ पकड़े लगभग खींचता हुआ उसे बाहर ले आया, ‘‘भाभी रो रही हैं, भैया.’’ सब की नजरें उसी तरफ उठ गईं. पिता का सामना करते ही वह शिला जैसी हो गई. फूफाजी देर तक उसे निहारते रहे. उस के उभरे पेट पर भी उन की नजर चंद पलों के लिए ठिठकी. मैं ने फूफाजी की ओर देखा, ‘‘सिर्फ एक बार बेटी के सिर पर हाथ रख दीजिए. फूफाजी, लड़के तो दहेज में बहुत कुछ मांगते हैं, मगर मेरी तो सिर्फ इतनी सी ही मांग है.

‘‘मैं गीता को सबकुछ दे सकता हूं, सारी खुशियां दे सकता हूं मगर उस का पिता तो नहीं न बन सकता.’’ मेरे छोटे भाई ने फिर से गीता का हाथ पकड़ा और उसे फूफाजी के पास ला बिठाया. वह झरझर आंसू बहाती बैठी रही. फूफाजी जैसे शिला बने बैठे थे, अनायास उन में हलचल हुई. कुरते की जेब से कुछ निकाल कर उन्होंने गीता की गोद में रख दिया.

‘‘यह क्या, फूफाजी?’’ मेरी नजरों के सामने सोने के भारी कंगन चमक उठे. ‘‘ये इस की मां के हैं, बेटे. इस का सबकुछ बंट गया, मगर मैं ने इन्हें नहीं बंटने दिया,’’ अपने हाथों से बेटी के हाथों में कंगन पहना कर उन्होंने उस का माथा चूम लिया. गीता किसी नन्ही बच्ची की तरह जोरजोर से रो पड़ी. फूफाजी उस का चेहरा ही हाथों में भर कर देर तक निहारते रहे. फिर बोले, ‘‘आज भी सब से चोरी से आया हूं, गीता. वे नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. ‘‘क्या करूं, गृहकलह से बचने के लिए कई बार इंसान को मन भी मारना पड़ता है. तुम्हारी बीमारी का तार मुझे नहीं मिला बिटिया, वरना मैं जरूर आता. शायद तुम्हारी मां ने छिपा लिया होगा. ‘‘मैं तुम्हारे प्रति अपनी कोई भी जिम्मेदारी नहीं निभा पाया. अपने हाथों से तुम्हें पालपोस नहीं सका, मगर यह सच नहीं कि मैं तुम से स्नेह नहीं करता. मैं हमेशा तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. विश्वास मानो, जब गौतम ने तुम्हारा हाथ मांगा, वह पल मेरे जीवन का सब से अमूल्य पल था. सदा सुखी रहो, बेटी.’’अपने पिता के सीने में समा कर गीता कितनी ही देर तक बिलखती रही. फूफाजी भी रोते रहे. पिछले 20 सालों की पीड़ा वे दोनों आंखों के रास्ते बहा रहे थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर किसे दोष दूं-प्रकृति को, जिस ने गीता से उस की मां छीन ली थी? या अपनी बूआ को, जिन्होंने अपने पति को किसी के भी साथ बांटना नहीं चाहा था? या फिर फूफाजी को जो कठोर कदम उठा कर पुत्री को अपने साथ नहीं रख पाए और घर की सुखशांति के लिए सदा चुप रहे?

आखिर, मेरी गीता के साथ हुए अन्याय के लिए दोषी कौन था?

 

 

दौड़ : जिंदगी की किस दौड़ में भाग रही थी निशा

आफिस जाने से पहले बेमन से निशा ने मोबाइल से अपनी ससुराल का नंबर मिलाया. फोन उस की सास ने उठाया.

‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

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‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

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आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’

‘‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

मेरा मेनोपौज शुरू हो गया है,क्या मेरे लिए आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण करने की कोई संभावना है ?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. मेरा मेनोपौज शुरू हो गया है. क्या मेरे लिए आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण करने की कोई संभावना है?

जवाब
मेनोपौज के लिए 38 साल बहुत कम उम्र है. इस तरह के मामलों में हम यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि क्या वाकई मेनोपौज है या किसी और कारण से मासिकधर्म बंद हो गया है. अल्ट्रासाउंड से मेनोपौज की पुष्टि हो जाती है. मेनोपौज में अंडे का निर्माण बंद हो जाता है, इसलिए स्वाभाविक तरीके से गर्भधारण करना असंभव है. ऐसी स्थिति में आईवीएफ तकनीक गर्भधारण करने में सहायता करती है.

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45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

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दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

मेनोपौज एक नयी शुरुआत

ये एक अवधारणा सालों से चली आ रही है कि मेनोपौज के बाद जीवन अंतिम दौर में पहुंच जाता है. ये शायद प्राचीन काल में था, जब महिलाओं का जीवन मेनोपौज के द्वारा ही आंकी जाती थी, अब महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद भी अधिक दिनों तक स्वस्थ जीवित रहती है और जीवन का एक तिहाई भाग वे अपने परिवार के साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिताती है,जो 51 के बाद से ही शुरू होता है. इसमें वे अपने जीवन के सभी लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखती है, क्योंकि केवल माहवारी बंद हुई है और कुछ भी बदला नहीं है. उन्हें अपने हिसाब से जीने का पूरा अधिकार मिलता है.

अधिकतर महिलाओं को इस फेज से गुजरने पर एंग्जायटी होती है

ये पूरी तरह से सही नहीं है, महिलाओं को भी पुरुषों की तरह ही डिप्रेशन और अप्रसन्नता का सामना करना पड़ता है, मूड स्विंग अधिकतर हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है, जो केवल मेनोपौज की वजह से नहीं होता, दूसरी समस्याएं भी हो सकती है, जिसकी जांच करवा लेना सही होता है,

सभी महिलाएं मेनोपौज के दौरान कुछ अलग लक्षण अनुभव करती है

ये सही है कि रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं में कुछ लक्षण मसलन अचानक गर्मी लगना, बेड टाइम पसीना, मूड में अस्थिरता आदि होते है, पर ये हर महिला के लिए अलग होता है. कुछ को ये अनुभव बहुत कम भी हो सकता है.

मेनोपौज के बाद वजन अपने आप बढ़ता है

बहुत सारी महिलाओं का वजन 35 से 45 उम्र के दौरान बढती है. इसका मेनोपौज से कुछ लेना देना नहीं होता और ये जांच के बाद ही पता चल पाता है. कुछ शोध कर्ताओं का कहना है कि ये अभी पता नहीं चल पाया है कि मोटापे की वजह मेनोपौज ही है, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं की एक्टिवनेस कम हो जाती है, जिससे मोटापा अपने आप ही आ जाती है. ये सही है कि  मेनोपौज में शरीर में फैट की प्रतिशत बढ़ जाती है,ऐसे में अगर खान-पान पर ध्यान दिया जाय तो वजन नहीं बढ़ पाता.

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मेनोपौज के बाद सेक्स में रूचि कम हो जाती है

ये पूरी तरह से गलत है,क्योंकि मेनोपौज के बाद सेक्स करने से गर्भधारण की चिंता नहीं रहती. अगर आपने 12 महीने बिना माहवारी के गुजार दिया है, तो आप बिना चिंता के अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते है और ये सही भी है कि इस समय सेक्सुअल एक्टिवनेस की वजह से आपका मानसिक सामंजस्य भी बना रहता है.

मेनोपौज के बाद भी महिला प्रेग्नेंट हो सकती है

जब महिला इस दौर से गुजरती है और माहवारी का समय बार-बार बदल रहा है, तो इस समय महिला प्री मेनोपौज की स्थिति में है, ऐसे में पार्टनर के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स किया है, तो गर्भधारण हो सकता है और आपको डौक्टर की सलाह से गर्भनिरोधक दवाइयां लेने की जरुरत है. 12 महीने बिना मासिक धर्म के गुजर जाने पर ही प्रेगनेंसी की समस्या नहीं रहती.

डौ.अनघा का आगे कहना है कि ये सारे मिथ की वजह से महिलाएं मेनोपौज के बाद अपने आपको कमजोर और लाचार महसूस करती है, जिसकी कतई जरुरत नहीं है. असल में इस समय महिलाओं की स्वस्थ रहकर अधिक से अधिक एक्टिव होने की जरुरत होती है, ताकि उनके उद्देश्य जिसे उसने अभी तक पूरा नहीं कर पायी हो, उसे कर लें, अपने प्यारे दोस्त और परिवार जनों के साथ ट्रेवल करें. इतना ही नहीं,जो महिलाएं रजोनिवृत्ति के बाद अपने स्वास्थ्य और माइंड की सही देखभाल करती है, वे अधिक अच्छी और सम्पूर्ण जीवन मेनोपौज के बाद ही बिता पाती है, उन्हें कोई रोक नहीं पाता.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

हुंडई i20 की हैंडलिंग है खास

हुंडई i20 की सवारी हमेशा से शानदार रही है. और नए हुंडई i20 भी ऐसी ही है. कार कम और ज्यादा स्पीड में होने के बावजूद भी शायद कभी ऐसा हुआ हो जो पीछे वाले कम्पार्टमेंट में कुछ महसूस होता हो.

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नई जेनेरेशन मॉडल की हुंडई i20 में हाई स्ट्रेंथ और एडवांस हाई स्ट्रेंथ लेबल का स्टील लगा हुआ है. जो कार को स्ट्रांग बनाता है और कार की हैंडलिंग बेहतर होती है. हुंडई i20 का फ्रंड एंड हमेशा स्टेबल रहता हैं और सड़क के अनुसार चलता है प्लेटेड बनया गया है। ठीक उसी तरह जैसे की नई i20 #BringsTheRevolution इसकी सवारी गुणवत्ता और हैंडलिंग के साथ।

बिग बॉस 14: कश्मीरा शाह ने घर से जाते हुए दी अर्शी खान को ये सलाह

बिग बॉस के घर में चैलेंजर्स और कुछ वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट की एंट्री हुई थी, जिसके बाद से आए दिन कुछ न कुछ बवाल जरूर हो रहा है. कुछ दिन पहले अर्शी खान और विकास गुप्ता की लड़ाई ने खूब लाइम लाइट बटोरी थी. वहीं बाती रात जस्मिन भसीन और रुबीना दिलाइक की लड़ाई ने खूब लाइम लाइट बटोरी थी.

वीकेंड के वार पर हमेशा की तरह इस बार भी सलमान खान कंटेस्टेंट का क्लास लगाते नजर आएं . साथ ही

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उन्होंने इस बात का खुलासा कर दिया कि इस बार घर से बेघर होंगी कश्मीरा शाह. जिसके बाद फैंस चौक गए . वहीं कश्मीरा शाह ने खुशी- खुशी इस शो को अलविदा कहा. कश्मीरा शाह ने जाते –जाते इस शो में सभी को सही से खेलने की सलाह दी.

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वहीं कश्मीरा शाह और अर्शी खान की दोस्ती शुरुआती दिनों से अच्छी थी. घर को छोड़कर जाते हुए कश्मीरा शाह अपनी खास दोस्त अर्शी खान से कहा कि वह सलमान खान के घर बात पर गौर करें और इस गेम में आगे बढ़ें. वहीं अर्शी खआन ने भी अपनी दोस्त कश्मीरा शाह से कहा कि वह कभी किसी को निराश नहीं करेंगी.

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दरअसल, वीकेंड के वार में सलमान खान ने अर्शी खान को जमकर लताड़ा था. क्योंकि पिछले हफ्ते से लगातार अर्शी खान विकास गुप्ता को टारगेट करती नजर आ रही थी. हर वक्त उनके पीछे पड़ी रहती थी. इसलिए अर्शी खान को सलमान खान ने खूब सुनाया .

करणवीर बोहरा के घर आई नन्ही परी, तीसरी बेटी होने पर जताई खुशी

करणवीर बोहरा के फैंस के लिए खुशखबरी है. एक बार फिर से करणवीर बोहरा पापा बन गए हैं. जिसके बाद से वह बेहद ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. एक रिपोर्टे में बात करते हुए करणवीर बोहरा ने अपने खुशी का इजहार किया है.

करणवीर बोहरा ने बताया है कि मैं नन्ही परी के आने से बहुत खुश हूं पहले से मैं दो बेटियों का बाप हूं अब तीसरी बार बाप बनकर मुझे काफी अच्छा महसूस हो रहा है. आगे उन्होंने कहा मैंने पहले ही कह दिया था कि चाहे लड़का हो या लड़की मैं उसका स्वागत खुशी से करुंगा.

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मुझे इस पल का ब्रेसबी से इंतजार था. पहले हमारे घर में लक्ष्मी,सरस्वती थी अब दुर्गा भी आ गई हैं. इनके आगमन से हमारे घर की खुशियां दोगुनी हो गई है.

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बता दें कि करणवीर बोहरा और टीजे सिद्धू ने अपनी तीसरी बेटी का जन्म कनाडा में दिया है. वह अभी अपनी फैमली के साथ हैं.

करण वीर बोहरा और टीजे सिद्धू ने साल 2006 में बेहद सादगी अंदाज में शादी रचाई थी. शादी के करीब 10 साल बाद ये दोनों दो बेटियों के बाप बनें. जुड़वा बेटी होने के बाद इन दोनों ने अपनी बेटियों का नाम बेला और वियाना रखा जो बेहद ही क्यूट हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर इन दोनों के वीडियो देखऩे को मिलते रहते हैं.

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टीजे सिद्धू पहले मॉडलिंग करती थी लेकिन वह अब अपना पूरा समय परिवार को देती हैं. वहीं करणवीर बोहरा की बात कि जाएं तो वह कई मशहूर सीरियल्स में काम कर चुके हैं और बिग बॉस में भी आ चुके हैं.

मगध संवाद सह विज्ञान काँग्रेस का आयोजन

आगामी 20 और 21 दिसम्बर को गौतम बुद्ध नगर भवन हसपुरा में दो दिवसीय विज्ञान काँग्रेस सह मगध संवाद कार्यक्रम का आयोजन कई स्वयंसेवियों संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में औरंगाबाद,गया,अरवल,नवादा,जहानाबाद के प्रतिनिधि भाग लेंगे .उदघाटन सत्र को ए एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के निदेशक प्रो डी एम दिवाकर एवं प्रो नवीनचन्द्रा करेंगे.अध्यक्षता मो ग़ालिब साहब करेंगे. विषय होगा विकास का समाजशास्त्र.

इसके उपरांत मगध क्षेत्र में कृषि एवं सिंचाई तथा इसका अर्थशास्त्र विषय पर किसान महासभा के महासचिव एवं पूर्व विधायक राजाराम सिंह और अरुण मिश्रा सम्बोधित करेंगे.संचालन राजेश विचारक और पुष्पा कुमारी करेंगे.इस अवसर पर दिल्ली प्रेस की पत्रिका फार्म फूड की तरफ से तीन किलोमीटर तक तीस वर्षों में नहर की खुदाई करके नहर बनाने वाले लौंगी माँझी सहित 10 किसानों को सम्मानित किया जाएगा.

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इस कार्यक्रम का आयोजन हसपुरा सोशल फोरम, जनवादी लेखक संघ,पीस,भारतीय युवा मंच,ए आई पी एस एम और आर टी ई फोरम बिहार और दिल्ली प्रेस की पत्रिका फार्म एन फूड के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा.कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष पूर्व प्रमुख आरिफ रिजवी होंगे.

फार्म फूड पत्रिका द्वारा सम्मानित किये जाने वाले किसान
1.लौंगी माँझी -जिसने तीस वर्षों में अकेले तीन किलोमीटर नहर की खुदाई कर एकड़ जमीन को सिंचित करने का काम किया.
2.धर्मवीर भारती -जिसने लौंगी माँझी पर टेली फ़िल्म बनायी
3.अविनाश कुमार-40 एकड़ में अमरूद की खेती की है. एक अमरूद
आधा किलोग्राम तक होता है. इस अमरूद की माँग बड़े पैमाने पर है.
4 देवेंद्र कुमार- 50 एकड़ में सहजन की खेती
5 देवेंद्र मेहता 1 एकड़ में स्ट्राबेरी की खेती
6ब्रजकिशोर मेहता 2 एकड़ में टमाटर और स्ट्राबेरी की खेती
7 अवधेश मेहता 2 एकड़ स्ट्राबेरी की खेती
8दीनानाथ मेहता 2 एकड़ में पपीता की खेती
9 मदन किशोर सिंह औषधीय पौधे की खेती
10 रमाशंकर वैद 28 बीघा में फलदार बृक्ष
11विभा कुमारी मशरूम की खेती
12 पुष्पा कुमारी मशरूम का अँचार बनाने एवं उत्पादन का कार्य
13संजय कुमार बटन मशरूम का उत्पादन

स्थान
गौतम बुद्ध नगर भवन हसपुरा औरंगाबाद बिहार
दिनांक 20 और 21 दिसम्बर

कुहरा छंट गया-भाग 1 : रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

‘‘बेटे का जन्मदिन मुबारक हो…’’ रोहित ने मीनाक्षी की तरफ गुलाब के फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा तो उसे यों प्रतीत हुआ मानो अचानक आसमान उस के कदमों तले आ गया हो. 2 वर्ष तक उस ने रोहित के द्वेष और क्रोध को झेला था. अब तो अपने सारे प्रयत्न उसे व्यर्थ लगने लगे थे. रोहित कभी भी नन्हे को नहीं अपनाएगा, उस ने यह सोच लिया था.

‘‘रोहित, तुम?’’ मीनाक्षी को मानो शब्द नहीं मिल रहे थे. उस ने आश्चर्य से रोहित को देखा, जो नन्हे को पालने से गोद में उठाने का प्रयास कर रहा था.

‘‘मैं ने तुम्हें बहुत कष्ट दिया है, मीनाक्षी. तुम ने जो भी किया, वह मेरे कारण, मेरे पौरुष की खातिर… और मैं इतना कृतघ्न निकला.’’

‘‘रोहित…’’

‘‘मीनाक्षी, मैं तुम्हारा ही नहीं, इस नन्हे का भी दोषी हूं,’’ कहते हुए रोहित की आंखों से आंसू बहने लगे. मीनाक्षी घबरा उठी. रोहित की आंखों में आंसू ही तो वह नहीं देख सकती थी. इन्हीं आंसुओं की खातिर तो वह गर्भ धारण करने को तैयार हुई थी. वह रोहित को बहुत प्यार करती थी और व्यक्ति जिसे प्यार करता है उसे रोता नहीं देख सकता. बच्चा रोहित की गोद में आ कर हैरानी से उसे देखने लगा. एक वर्ष में उसे इस का ज्ञान तो हो ही गया था कि कौन उसे प्यार करता है, कौन नहीं. नन्हे की तरफ देखते हुए मीनाक्षी उन बीते दिनों में खो गई, जब परिस्थितियों से मजबूर हो कर उसे मां बनना पड़ा था. अस्पताल का वह कक्ष अब भी उसे याद था, जहां उसे सुनाई पड़ा था, ‘मुबारक हो, बेटा हुआ है.’ नर्स के बताते ही लक्ष्मी, उन के पति दयाशंकर एवं छोटी ननद नेहा, सभी खुशी से पागल हुए जा रहे थे.

‘क्या हम अंदर आ सकते हैं?’ 14 वर्षीया नेहा ने चहकते हुए पूछा.

‘नहीं बेटे, अभी थोड़ी देर बाद तुम्हारी भाभी बाहर आ जाएंगी. थोड़ा धैर्य रखो,’ नर्स ने मुसकरा कर कहा.शीघ्र ही नर्स एक नवजात शिशु को ले कर बाहर आई तो लक्ष्मी उधर लपकी. उस ने बच्चे को अपने सीने से लगा लिया.प्रसव प्राकृतिक हुआ था, इस कारण थोड़ी देर बाद मीनाक्षी को भी स्ट्रेचर पर लिटा कर कमरे में पहुंचा दिया गया. लगभग 8 वर्ष बाद लक्ष्मी की बहू मीनाक्षी को पुत्र हुआ था. क्याक्या नहीं किया था लक्ष्मी ने, कितने डाक्टरों को दिखलाया था पर उन के लाख कहने पर भी नीमहकीमों और संतों के पास जाने को बहू कभी तैयार नहीं हुई थी. मीनाक्षी ने नजरें उठा कर सासससुर और नेहा को देखा पर उस की आंखें रोहित को तलाश रही थीं. वह उस से सुनना चाहती थी कि उस ने उसे बेटा दे कर सबकुछ दे दिया है. जब वह नहीं दिखा तो उस ने धीमे से नेहा से पूछा, ‘तुम्हारे भैया नहीं दिखाई दे रहे?’

‘बाहर ही तो थे, शायद संकोचवश कहीं चले गए होंगे,’ नेहा ने झूठ बोला ताकि भाभी का मन दुखी न हो. फिर नेहा हंस कर मुन्ने के छोटेछोटे हाथों की बंद मुट्ठियों को छूने लगी. उधर रोहित का व्यवहार पत्नी के प्रति अजीब तरह का हो गया था. कभी जरूरत से ज्यादा प्यार जताता तो कभी बिलकुल तटस्थ हो जाता.

8 वर्ष तक बच्चा न होने की यंत्रणा दोनों ने झेली थी. घर वालों, पासपड़ोस और रिश्तेदारों के सवाल सुनसुन कर दोनों ऊब चुके थे. लक्ष्मी जाने कहांकहां से गंडाताबीज लाती. उन का मन रखने के लिए मीनाक्षी पहन भी लेती लेकिन उस की समझ में नहीं आता था कि उन से बच्चा कैसे होगा. लक्ष्मी बहू को अकसर इधरउधर की घटनाएं बताया करती कि फलां की बहू या फलां की बेटी को 12 साल तक बच्चा नहीं हुआ. डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया. जलालपुर के एक पहुंचे हुए महात्मा आए थे. उन्हीं के पास देविका अपनी बेटी को ले गई थी. फिर ठीक नौवें महीने बेटा हुआ, एकदम गोराचिट्टा. ‘लेकिन उस की मां तो काली थी. और पिता भी…’

‘महात्मा के तेज से ही ऐसा हुआ… और नहीं तो क्या,’ नेहा की बात काट कर लक्ष्मी ने अपनी दलील दी थी. मीनाक्षी एक कान से सुनती, दूसरे से निकाल देती. उसे इन सब बातों में कोई रुचि नहीं थी. वह जानती थी कि यह सब कपोलकल्पित बातें हैं. महात्मा और संत औरतों के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं, तभी बच्चे पैदा होते हैं. मर्द इस कारण चुप रहते हैं कि उन की मर्दानगी पर धब्बा न लगे और कुछ औरतें नासमझी में उसे महात्मा का ‘प्रसाद’ मान लेती हैं, तो कुछ बांझ कहलाए जाने के भय से यह दुराचार सहनेकरने पर मजबूर हो जाती हैं. इसी कारण लक्ष्मी जब भी उसे किसी साधुमहात्मा के पास चलने को कहती, वह टाल जाती. रोहित तटस्थ रहता. उस ने जांच करवा ली थी, कमी उसी में थी. अब तो आएदिन घर में इसी विषय पर बातचीत चलती रहती. घर का प्रत्येक सदस्य चाहता था कि उन के घर एक नन्हा मेहमान आए. मीनाक्षी ने इन सब बातों से ध्यान हटा कर एक स्कूल में नौकरी कर ली ताकि ध्यान बंटा रहे. खाली समय में नेहा की पढ़ाई में मदद कर देती. घर का काम भी करने के लिए मुंह से कुछ न कहती. उधर लक्ष्मी, दयाशंकर और नेहा बच्चे को खिलाने लगे. लक्ष्मी बोली, ‘देखिए, बिलकुल रोहित पर गया है.’

‘और आंखें तो भाभी की ली हैं इस ने,’ नेहा चहक कर बोली. उन की बातें सुन कर मीनाक्षी की आंखें अनायास नम हो आईं.

आंखों के आंसू में अतीत फिर आकार लेने लगा…

एक वर्ष पूर्व रोहित ने उस के सामने एक प्रस्ताव रखा था. उस दिन रोहित दफ्तर से जल्दी ही घर आ गया था. उस के हाथ में एक पत्रिका थी. पत्रिका उस के सामने रखते हुए उस ने कहा था, ‘आज मैं तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने आया हूं.’ ‘क्या?’ शृंगारमेज के सामने बैठी मीनाक्षी ने घूम कर पति को देखा. रोहित ने उसे बांहों में भर लिया और पत्रिका का एक समस्या कालम खोल कर उस के सामने रख दिया.

‘यह क्या है?’ पत्रिका पर उचटती नजर डालते हुए मीनाक्षी ने पूछा.

‘यह पढ़ो,’ एक प्रश्न पर रोहित ने अपनी उंगली रख दी. मीनाक्षी की नजर शब्दों पर फिसलने लगी. लिखा था, ‘मेरे पति के वीर्य में बच्चा पैदा करने के शुक्राणु नहीं हैं. हमारी शादी को 5 वर्ष हो चुके हैं. हम ने कृत्रिम गर्भाधान के विषय में पढ़ा है. क्या आप हमें विस्तार से बताएंगे कि हमें क्या कुछ करना होगा. हां, मेरे अंदर कोई कमी नहीं है.’ मीनाक्षी ने प्रश्नसूचक नजर ऊपर उठाई तो रोहित ने इशारा किया कि वह इस का जवाब भी पढ़ ले. जवाब में लिखा था कि इस तरह की समस्या आने पर औरत के गर्भ में किसी दूसरे पुरुष का वीर्य डाल दिया जाता है. बंबई के एक अस्पताल का पता भी दे रहे हैं, जहां वीर्य बैंक है. इस तरह की बात बहुत ही गुप्त रखी जाती है. वीर्य उन्हीं पुरुषों का लिया जाता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं. वैसे अब और भी कई शहरों में इस तरह कृत्रिम गर्भाधान करने का साधन सुलभ है.

कुहरा छंट गया-भाग 4: रोहित के मन में कैसे अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया

एक दिन तो हद हो गई. उस समय मीनाक्षी गुसलखाने में थी. नन्हा बिस्तर पर खेल रहा था. रोहित सो रहा था. उस का बिस्तर अलग लगा था. उस ने बहाना यह बनाया हुआ था कि बच्चे के रात में रोने व ज्यादा जगह लेने के कारण वह अलग सोता है. तभी बच्चे ने दूध उलट दिया. उसे खांसी भी आई और रोतेरोते वह बेहाल हो गया. मीनाक्षी किसी तरह उलटेसीधे कपड़े पहन कर बाहर निकली तो देखा रोहित कमरे में नहीं था. जी चाहा कि वह उस का हाथ पकड़ कर पूछे कि तुम तो इस से ऐसे कतरा रहे हो मानो मैं ने यह बच्चा नाजायज पैदा किया है. आखिर क्यों चाहा था तुम ने यह बच्चा? क्या सिर्फ अपने अहं की संतुष्टि के लिए? लेकिन वह ऐसा कुछ भी न कर सकी क्योंकि रोहित इसे स्वीकार न कर के कोई बहाना ही गढ़ लेता. बच्चा अपनी गोलमटोल आंखों से देखते हुए किलकारी भरता तो परायों का मन भी वात्सल्य से भर उठता. पर रोहित  जाने किस मिट्टी का बना था, जो मीनाक्षी की कोख से पैदा हुए बच्चे को भी अपना नहीं रहा था. वह चाह कर भी बच्चे को प्यार न कर पाता. बच्चे को देखते ही उसे उस अनजान व्यक्ति का ध्यान हो जाता जिस का बीज मीनाक्षी की कोख में पड़ा था. जब भी वह बाहर निकलता तो बच्चे के चेहरे से मिलतेजुलते व्यक्ति को तलाशता. यह जानते हुए भी कि गर्भधारण तो बंबई में हुआ था और ज्यादा संभावना इसी बात की थी कि वह व्यक्ति भी बंबई का ही होगा.

लेकिन आदमी के हृदय का क्या भरोसा? अपने पौरुष पर आंच न आए, इसी कारण रोहित ने अपनी पत्नी को पराए पुरुष का वीर्य गर्भ में धारण करने को मजबूर किया था. लेकिन अब उसी पत्नी एवं बच्चे से उस की बढ़ती दूरी एक प्रश्न खड़ा कर रही थी कि व्यक्ति इतना स्वार्थी होता है? जिंदगी की रफ्तार कभीकभी बड़ी धीमी लगती है. मीनाक्षी का एकएक पल पहाड़ सा लगता. जब जीवन में कोई उत्साह ही न हो तो जीने का मकसद ही क्या है? जीवन नीरस तो लगेगा ही. अब न रोहित का वह पहले वाला प्यार था न मनुहार, ऊपर से बच्चे की खातिर  रातरात भर जागने के कारण मीनाक्षी का स्वास्थ्य गिरने लगा. वह चिड़चिड़ी हो गई. लक्ष्मी भरसक प्रयास करती कि बहू खुश रहे, स्वस्थ रहे लेकिन जब मानसिक पीड़ा हो तो कहां से वह स्वस्थ दिखती. एक दिन बच्चे को कमरे में छोड़ कर मीनाक्षी रोहित के लिए नाश्ता तैयार करने नीचे गई. बच्चा नेहा के साथ खेल रहा था. तब तक नेहा के किसी मित्र का फोन आ गया और वह पुकारने पर नीचे चली गई. बच्चा फर्श पर खेल रहा था. रोहित उस समय तैयार हो रहा था. टाई की गांठ बांधते हुए उस ने बच्चे की तरफ देखा तो वह भी रोहित को टकटकी बांध कर देखने लगा. उस समय अनायास ही रोहित को बच्चा बहुत प्यारा लगा. उस ने झुक कर बच्चे की आंखों में झांका तो वह हंस दिया.

तभी आहट हुई तो रोहित झट से उठ कर खड़ा हो गया. ठंड के दिन थे, इसलिए कमरे में हीटर लगा था. बच्चा रोहित की दिशा में पलटा और खिसक कर थोड़ा आगे आ गया. तभी मीनाक्षी ने भी कमरे में प्रवेश किया. उसी क्षण बच्चा लाल ‘राड’ देख कर हुलस कर उसे छूने को लपका. मीनाक्षी यह दृश्य देखते ही भय से चीख उठी. नाश्ते की ट्रे उस के हाथ से छूट गई. उस ने लपक कर बच्चे को अपनी तरफ खींचा तो वह डर कर रोने लगा. रोहित हत्प्रभ खड़ा रह गया. मीनाक्षी उस की तरफ देख कर चिल्ला उठी, ‘‘कैसे बाप हो तुम?’’ लेकिन वाक्य पूरा होने के पूर्व ही वह चुप हो गई. फिर वितृष्णा से बोली, ‘‘नहीं, तुम इस के बाप नहीं हो, क्योंकि तुम ने स्वयं को कभी इस का बाप समझा ही नहीं. अरे, गला घोंट दो इस का क्योंकि यह नाजायज औलाद है. मैं ही मूर्ख थी जो तुम्हारे आंसुओं से पिघल गई.’’ रोते हुए मीनाक्षी बच्चे को उठा कर बाहर चली गई और रोहित ठगा सा खड़ा रह गया. उस दिन दफ्तर में रोहित काफी उलझा रहा. रहरह कर नन्हे का चेहरा, उस की मुसकराहट और फिर घबरा कर रोना, सब कुछ उसे याद आ जाता. वह उस का बेटा है, इस सत्य को वह आखिर क्यों स्वीकार नहीं कर पाता? मीनाक्षी उस की पत्नी है और यह उस की कोख से पैदा हुआ है. मीनाक्षी उसे प्यार करती है, किसी अन्य को नहीं…वह जितना ही सोचता उतना ही उलझता जाता.

उस दिन कार्यालय अधिकारी नहीं आए थे. सभी कर्मचारी थोड़ी देर बाद ही उठ गए. रोहित ने पूछा तो मालूम हुआ कि अधिकारी के पुत्र का निधन हो गया है. बच्चा 8 वर्ष का था. तैरने गया था और डूब गया. रोहित का मन भी दुखी हो गया. वह भी सब के साथ चल पड़ा. अधिकारी अभी युवा ही थे. उन की 2 वर्ष की एक बेटी भी थी. उस की मृत्यु पर उन की हालत काफी खराब हो गई थी. सभी उन्हें तसल्ली दे रहे थे. रोहित ने देखा तो उलझ सा गया, यह होती है पिता की पीड़ा. ये उस के पिता हैं तभी तो इतने दुखी हैं. थोड़ी देर बाद शव उठने लगा तो मां रोती हुई बच्चे से लिपट गई. तभी जैसे एक विस्फोट हुआ. उस के कार्यालय के कर्मचारी ने ही बताया था, ‘‘यह इन की पत्नी का बेटा था. इन का नहीं, इन की तो बेटी है.’’

‘‘मतलब?’’ रोहित ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘इन की यह पत्नी अपनी शादी के सालभर बाद ही विधवा हो गई थी. 2 वर्ष बाद ही इन्होंने इस से शादी कर ली. कुल 22 वर्ष की थी. इन के परिवार वालों ने काफी हंगामा मचाया था, लेकिन इन्होंने किसी की परवा नहीं की. इस से शादी की और बच्चे को अपने खून से भी बढ़ कर चाहा. बाद में लड़की हुई. यह तो बच्चा पैदा करने को ही तैयार नहीं थे कि कहीं बेटे के प्यार में कमी न आ जाए. पता नहीं अब बेटे का वियोग ये कैसे सह पाएंगे.’’ वह व्यक्ति बताता जा रहा था, लेकिन रोहित को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. उस के सामने अपने नन्हे का चेहरा घूम रहा था. वह कितना निष्ठुर बाप है, कितना स्वार्थी. उस ने अभी तक नन्हे को अपना पुत्र नहीं माना है. हर घड़ी उस से दूर ही जाता रहा है. उस के साहब ने तो अपनी पत्नी के पहले पति के बच्चे को अपनाया है, जिस व्यक्ति से उस की पत्नी के शारीरिक संबंध रहे होंगे. लेकिन मीनाक्षी तो उस व्यक्ति को जानती भी नहीं, उसे देखा नहीं, छुआ नहीं. सिर्फ पति के कहने पर बच्चे को जन्म दिया है. वह घर लौटा तो फूलों का एक गुलदस्ता भी ले लिया. कमरे में घुसा तो देखा मीनाक्षी पलंग पर सिर टिकाए लेटी है. उस ने ध्यान से देखा, मीनाक्षी का रंग पहले से दब गया था. वह दुबली हो गई थी. रोहित का मन पश्चात्ताप से भर उठा. सारा द्वेष, रोष बह चला तो ध्यान बच्चे की तरफ गया. प्यार से उस ने उसे उठा लिया.

मीनाक्षी चौंकी, तभी नेहा ऊपर आई और बोली, ‘‘मां कह रही हैं, नन्हे के जन्मदिन में 4 दिन शेष हैं. सामान की और मेहमानों की सूची देख लीजिए.’’

‘‘ठीक है…तुम चलो, मैं अभी आया.’’ नेहा चली गई. मीनाक्षी को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था. वह स्वप्न देख रही है या हकीकत? क्या रोहित बदल गया है?

‘‘रोहित…’’ उस के होंठों से निकला. ‘‘मीनाक्षी, अब कुछ न बोलो. इतने दिनों तक मैं जिस मानसिक संताप से गुजरा हूं उस की आंच मैं ने तुम तक भी पहुंचाई है. मुझे क्षमा कर दो. तुम ने मेरे पौरुष की लाज रखी है, उस को गरिमा प्रदान की है. पर मैं अपने अहं में डूबा रहा. तुम मेरे लिए पहले से भी ज्यादा प्रिय हो…’’ उस का स्वर भर्रा गया. वह आगे बोला, ‘‘आज मेरे अंदर पिता के अधिकार और कर्तव्य ने जन्म लिया है. उसे जिंदा रहना है. मेरे बेटे का जन्मदिन नजदीक ही है, लेकिन मेरे लिए तो उस का जन्म आज ही हुआ है. वह सिर्फ तुम्हारा नहीं, मेरा बेटा भी है…हमारा पुत्र है.’’

‘‘रोहित,’’ मीनाक्षी हैरान थी.

‘‘आओ नीचे चलें. हम अपने बच्चे का जन्मदिन इतनी धूमधाम से मनाएंगे, इतनी धूमधाम से कि…’’

‘‘बसबस,’’ मीनाक्षी ने उस के होंठों पर कांपता हाथ रख दिया.

‘‘मैं जो देख रही हूं, वह सच है तो अब बस…ज्यादा खुशी मैं सह नहीं पाऊंगी.’’

‘‘मीनाक्षी…’’ कहते हुए रोहित ने नन्हे के साथ मीनाक्षी को भी अपने सीने से लिपटा लिया.

 

 

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