लेखक- शाहनवाज

जरूरतमंद लोगों का कोई देश नहीं होता, कोई मजहब नहीं होता, कोई जात नहीं होती और न ही कोई उम्र होती है. लेकिन भारत में सत्ता में बैठे लोग और उन के कट्टरपंथी समर्थक जरूरतमंद का मजहब और जात देखने में देर नहीं लगाते. ‘अन्न का कोई धर्म नहीं होता. खाना दिलों को जोड़ने का काम करता है, न कि तोड़ने का.’ ये व इन से मिलते वाक्य आप ने भी अपने जीवन में कभी न कभी सुने होंगे. लेकिन हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में कुछ ऐसा हुआ जिसे यदि आप सुनेंगे तो एक पल यह सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे कि शायद ऊपर लिखे हुए वाक्य अभी भी कुछ लोगों के दिलोदिमाग से कोसों दूर हैं. वे अपने दिलों में असीम नफरत और भेदभाव भरे हुए हैं.

इस के साथ ही, वे अपनी दिमागी बेवकूफी का परिचय भी देते हैं. अचानक थोपे गए लौकडाउन की वजह से देश में सब से ज्यादा चोट खाए इंडस्ट्री में से एक हौस्पिटैलिटी इंडस्ट्री (आतिथ्य उद्योग) है. रैस्टोरैंट से जुड़ा व्यापार इसी उद्योग में शामिल होता है. अब जाहिर सी बात है, सबकुछ जब अचानक से बंद कर दिया जाएगा तो भला कोई भी धंधा कैसे काम कर सकता है. हम सभी ने अचानक से थोपे हुए लौकडाउन को झेला है और हम सभी जानते हैं कि देश की गरीब व पिछड़ी आबादी ने दुनिया के सब से कड़े लौकडाउन को कैसे झेला है. इतने नुकसान के बावजूद, दिल्ली के कुछ रैस्टोरैंट मानवता का हाथ बढ़ाने के लिए रोहिंग्या शरणार्थियों के बीच खाना बांटने के लिए पहुंचे.

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