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तब तक भाभी आ गई थीं. वे बिना कुछ कहे सहारा दे कर भैया को कमरे में ले गईं. उस रात मैं सो न सकी. सारी रात करवटें बदलते बीती. यही सोचती रही कि मां से कह दूं या नहीं? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुबह थोड़ी झपकी आई ही थी कि

बड़ी भाभी ने आ कर जगा दिया. बोलीं, ‘‘बीनू, कृपया रात की बात किसी से न कहना.’’

तब तक मैं ने भी निर्णय कर लिया था कि बात छिपाने से अहित भैया का ही है. मैं ने उन की तरफ सीधे देखते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है भाभी, किंतु जब मैं ने रात को दरवाजा खोला तो विचित्र बू का आभास हुआ. कहीं भैया…’’

भाभी बीच में ही मुंह बना कर बोलीं, ‘‘हमें तो कोई गंध नहीं आई.’’

मैं खुद अपने प्रश्न पर लज्जित हो गई. अपने पर क्रोध भी आया कि जब भाभी को भैया की फिक्र नहीं है तो मैं ही क्यों चिंता में पड़ूं. इसी तरह 2 हफ्ते और बीत गए. मैं भी घर में कलह नहीं कराना चाहती थी, इसीलिए मुंह सी लिया.

किंतु कब तक कोई बात छिपती है. छोटी भाभी को इस बात की भनक लग गई. उन्होंने बड़ी भाभी, बड़े भैया के बारे में अपनी शंका व्यक्त की. वे उन्हें समझाना चाहती थीं किंतु बड़े भैया ने भाभी पर न जाने क्या जादू कर दिया था कि वे वैसे तो अच्छीभली रहतीं किंतु जहां भैया की बात होती, वे झगड़ने को तैयार हो जातीं. उन से छोटी भाभी की बात सहन न हो सकी. दनदनाती हुई मेरे कमरे में आईं और गुस्से में बोलीं, ‘‘बीनू, तुझ से नहीं रहा गया न. कैसा बित्तेभर का पेट है. पचा नहीं सकी, उगल ही दिया?’’

मां वहीं बैठी थीं. वे आश्चर्य से कभी मुझे तो कभी भाभी को देखने लगीं.

‘‘क्या बात है, बेटे, आखिर हुआ क्या?’’ मां ने पूछा.

मैं ने भी पूछा, ‘‘पर भाभी, हुआ क्या? मैं ने तो किसी को कुछ नहीं कहा.’’ पर वे कहां सुनने वाली थीं. सच ही कहा गया है, क्रोध में इंसान का दिमाग पर कोई बस नहीं होता. तब तक छोटे भैया व भाभी भी आ गए. गनीमत यह थी कि पिताजी शहर से बाहर गए हुए थे और बड़े भैया सो रहे थे.

छोटे भैया ने मां को धीरे से सब बता दिया. फिर भाभी से बोले, ‘‘आप समझती क्यों नहीं हैं, रात देर से घर आना कोई अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘अच्छाबुरा वे खूब समझते हैं. साहब बनने के लिए बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना तो पड़ेगा ही, वरना कौन तरक्की देगा.’’

मां से सहन नहीं हुआ. उन्होंने जोर से कहा, ‘‘ऐ बहू, रात देर से आने से लोगों की तरक्की होती है, यह एक नई बात सुन रही हूं.’’

‘‘नई नहीं, यह सच है. आप पुराने विचारों की हैं. आप को क्या पता, जब तक बड़े लोगों के साथ पिओपिलाओ नहीं, अफसरी नहीं मिलती,’’ तैश में भाभी के मुंह से खुद ही सारी बात निकल गई.

‘‘ओह, तो आप को पता है कि वे पी कर आते हैं?’’ छोटे भैया ने पूछा.

‘‘थोड़ीबहुत साथ देने के लिए चख ली तो क्या बुराई है. बंबई में तो हर नौजवान बीयर पीता है और मेरे भाई खुद पीते हैं.’’

भाभी से बात करना अपना माथा फोड़ना था. तब तक शोर सुन कर बड़े भैया भी आ गए. उन्हें देख छोटे भैया ने कहा, ‘‘कल आप के दोस्त अजय मिले थे. उन्होंने बताया कि आजकल आप के पास बहुत पैसा रहता है. क्या कोई दूसरी नौकरी मिल गई है? सुनो भाभी, वे बोल रहे थे कि आप के पिताजी हजार रुपए महीना जेबखर्च भेजते हैं,’’ उन्होंने बड़े भैया की उपस्थिति में भाभी से स्पष्टीकरण मांगा.

छोटे भैया की बात सुन बड़ी भाभी ने पहले तो नजरभर बड़े भैया को देखा, फिर जोर से हंस कर ‘हां’ में सिर हिला दिया. बात तो स्पष्ट थी, किंतु बड़े भैया ने ऐसा जाल उन पर फेंका था, जिस से बड़ी भाभी जैसी नारी का बच निकलना मुश्किल था. वे यह सोच कर खुश थीं कि उन का पति कितना अच्छा है जो बिना कुछ पाए ही उन के पिता की प्रशंसा का ढिंढोरा पीट रहा है. यही कारण था कि इतने गंभीर प्रश्न को भी उन्होंने हंसी में उड़ा दिया.

उन्होंने मस्तिष्क पर तनिक भी जोर न डाला कि आखिर पैसों की बारिश हो कहां से रही है. देवर का मुंह ‘हां’ कह कर बंद कर दिया था. भाभी पति की तरफ अपार कृतज्ञता से देख रही थीं.

मां यह सब सुन कर सन्न रह गईं. उन्होंने अपना माथा पीट लिया. ‘‘क्यों बड़े, क्या यही दिन देखना रह गया था? क्या कमी थी जो इस नीच हरकत पर उतर आया है? अगर यही करना है तो जा, बन जा घरजमाई. यहां यह सब नहीं होगा, समझे,’’ कह कर रोती हुई वे कमरे से बाहर निकल गईं. छोटे भैया और भाभी भी धीरे से खिसक लिए.

मां की बात सुन बड़े भैया कुछ अनमने से हो गए थे, किंतु भाभी ने उन्हें संभाला, ‘क्यों चिंता करते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’

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