उत्तर प्रदेश का बांदा एक ऐसा जिला है, जिस की पहचान केवल सूखाग्रस्त जिले की ही नहीं है, बल्कि इस सूखे से उपजे हालात से जिले को अपराध, बेरोजगारी और पलायन के लिए भी जाना जाता है.बांदा को इन हालात से उबारने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों ने स्पैशल पैकेज दे कर हालात सुधारने के काफी प्रयास किए हैं, लेकिन उस का असर जमीन पर दिखाई नहीं दिया.
लेकिन सरकारी प्रयासों से अलग हट कर जनपद बांदा के एक आदमी उमाशंकर पांडेय के प्रयासों से न केवल बांदा में जल संरक्षण की मिसाल कायम हुई है, बल्कि यहां की बंजर जमीन हरीभरी फसलों से लहलहा रही है.
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ऐसे पड़ी नींव
सूखे से जू? रहे बांदा में बरबाद हो चुकी खेती और उस से उपजे हालात से पलायन, बेरोजगारी और अपराध की वजह पानी की कमी और सूखे को माना गया.उमाशंकर पांडेय ने पानी से जुड़ी जनपद की इस बड़ी समस्या पर सोचाविचारी की. इस के चलते उन्होंने जनपद में पानी की समस्या कम करने और जल संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में जनजागरूकता की एक बड़ी मुहिम छेड़ने का प्रयास शुरू किया. लेकिन उन्हें कोई ठोस उपाय नहीं मिल रहा था, जिस से वे लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक कर पाते.
इसी बीच नई दिल्ली में पानी पर होने वाले एक सम्मेलन में उमाशंकर पांडेय की मुलाकात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र से हुई और उन से हुई मुलाकात में उन्होंने बांदा में पानी बचाने के उपायों पर चर्चा की. इस दौरान उन से किए गए विचारविमर्श के बाद जब उमाशंकर पांडेय वापस आए, तो उन के चेहरे पर एक नई सुबह की आस थी.
ऐसे बदली सूरत
15 साल पहले दिल्ली जल सम्मेलन से वापसी के बाद सर्वोदय विचारधारा वाले उमाशंकर पांडेय ने सब से पहले जल संरक्षण मुहिम की शुरुआत अपने गांव से करने की ठानी. इस के लिए उन को अपने जैसे विचारधारा वाले कुछ लोगों की जरूरत थी. फिर उन्होंने कुछ लोगों को साथ ले कर सर्वोदय आदर्श जल ग्राम स्वराज अभियान समिति का गठन किया और इस के बाद उन्होंने लोगों के साथ मिल कर वर्षा जल संरक्षण की दिशा में प्रयास शुरू किया, जिस के तहत उन्होंने खेत में मेंड़ बना कर पानी रोकने की पारंपरिक विधि को अपनाए जाने पर जोर दिया.
इस प्रकार एक नई मुहिम खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ की शुरुआत हुई. इस के तहत खेतों में बनने वाली मेंड़ों पर पौधारोपण का काम भी शुरू किया गया.इस मुहिम की शुरुआत का ही परिणाम था कि एक साल के भीतर ही 2,552 बीघा वाले इस गांव के 33 कुओं, 25 हैंडपंपों व 6 तालाब पानी से लबालब भर गए. पानी बचाए जाने का ही परिणाम है कि जो कुएं सूख गए थे और जहां पानी का भूमिगत लैवल सैकड़ों फुट नीचे चला गया था, उन कुओं में पानी का लैवल 20 फुट तक आ गया है.
जखनी से जखनी जलग्राम
खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ के अभियान का परिणाम यह रहा कि गरमियों में जब पूरा बांदा जनपद सूखे से कराह रहा होता है, तब भी जखनी गांव के तालाब, कुएं और नल पानी से लबालब भरे रहते हैं.
जखनी में आई इस जलक्रांति ने जखनी गांव की तसवीर ही बदल दी और जखनी की पहचान जखनी जलग्राम के नाम से होने लगी.इस का परिणाम यह रहा कि इंटरनैट पर भी जलग्राम मौडल की धूम मच गई. जल संरक्षण के इस मौडल को सम?ाने के लिए देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोनेकोने से लोग यहां आने लगे और इस मौडल को देश के दूसरे सूखाग्रस्त इलाकों में लागू करने की पहल शुरू होने लगी.
 बूंदबूंद पानी का उपयोग  
उमाशंकर पांडेय की इस जल संरक्षण मुहिम का परिणाम ही है कि आज जखनी समेत सैकड़ों गांवों के तालाब, कुएं गरमियों के दिनों में भी पानी से लबालब भरे दिखाई पड़ते हैं, जिन का उपयोग सब्जियों की खेती सहित प्याज, धान, गेहूं की फसल की सिंचाई के लिए किया जाता है.इस का परिणाम है कि हर समय सूखे रहने वाले खेतों में लहलहाती फसल और हर तरफ हरियाली दिखाई पड़ती है.
वापस आने लगे लोग
उमाशंकर पांडेय द्वारा अपने साथियों के साथ मिल कर शुरू की गई जखनी जलग्राम योजना में धीरेधीरे आसपास के गांवों के लोग भी साथी बनते गए और दूसरे गांवों में भी लोगों ने अपने खेतों में मेंड़बंदी कर उस पर पेड़ लगा कर वर्षा जल को बचाने की मुहिम शुरू की. इस से बंजर हो चुकी जमीन में लोगों ने फिर से खेती करने की शुरुआत कर दी, जिस से लोगों की आय बढ़ने लगी और धीरेधीरे पलायन कर चुके लोग फिर से गांवों में लौट कर खेती करने लगे. इसी के साथ तालाब खोद कर उन में मछलीपालन की शुरुआत भी की गई. जखनी जलग्राम मौडल का ही कमाल है कि बांदा में न केवल पलायन पर रोक लगी है, बल्कि पलायन कर चुके लोग वापस आ कर खेती से अपनी तरक्की की कहानियां लिख रहे हैं.
मुहिम को बढ़ाया आगे
पानी बचाने से हुए जखनी सहित दूसरे गांवों के कायाकल्प की कहानी धीरेधीरे जब स्थानीय मीडिया से राष्ट्रीय लैवल के मीडिया घरानों ने पानी रिपोर्टों के जरीए छापनी और दिखानी शुरू की, तो इस की भनक  स्थानीय जिला प्रशासन तक भी पहुंची. इस के बाद उस समय के जिलाधिकारी हीरालाल ने भ्रमण किया, तो वे अचंभित हुए बिना नहीं रह सके, क्योंकि जनपद में सूखे की इस बड़ी समस्या का निदान खेत पर मेंड़ और मेंड़  पर पेड़ के जरीए उमाशंकर पांडेय की  अगुआई में यहां के स्थानीय लोगों ने कर दिखाया था.
जिलाधिकारी हीरालाल ने तय किया कि वे जखनी जलग्राम मौडल को बांदा के समस्त गांवों में लागू करेंगे, जिस से वर्षा जल संरक्षण के साथ ही पौधारोपण को बढ़ावा मिलेगा और जनपद के सूखे की समस्या का काफी हद तक निदान हो जाएगा. इस के बाद उन्होंने जखनी जलग्राम मौडल को पूरे जनपद में लागू कर दिया. इस के बाद जनपद से सूखे का कहर कम हो गया.
उमाशंकर द्वारा शुरू किए गए इस अभियान की सफलता का परिणाम यह रहा कि इस की हनक राज्य और केंद्र सरकार तक भी पहुंच गई और इस गांव में पानी बचाने के मौडल को सम?ाने के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह व नीति आयोग के जल भूमि विकास सलाहकार अविनाश मिश्रा, उपनिदेशक नियोजन विभाग उत्तर प्रदेश सरकार एसएन त्रिपाठी सहित मंडलायुक्त बांदा एल. वेंकटेश्वरलू, कृषि विश्वविद्यालय, बांदा के कुलपति डा. यूएस गौतम सहित कई अधिकारियों ने यहां का दौरा कर के इस मौडल को देश के दूसरे सूखाग्रस्त हिस्सों में लागू किए जाने की पहल शुरू की.
सब ने सराहा
जखनी जलग्राम के दौरे से वापस लौटे भारत सरकार के अधिकारियों और जिला लैवल से मिली रिपोर्ट के आधार पर उमाशंकर पांडेय के खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ मौडल के आधार पर भारत नीति आयोग ने साल 2019 के वाटर मैनेजमैंट इंडैक्स में ऐक्सीलैंट परंपरागत मौडल विलेज मानते हुए इसे जखनी जलग्राम की संज्ञा दी है. इस रिपोर्ट को आधार मान कर भारत सरकार द्वारा देश के सूखे से जू?ा रहे विभिन्न प्रदेशों में भी 1,050 जलग्राम स्थापित किए जाने का लक्ष्य रखा है.
देशव्यापी बन गई मुहिम
जहां एक ओर मेंड़बंदी के परंपरागत जल संरक्षण के मौडल को बांदा के तब के जिलाधिकारी हीरालाल ने जखनी जल संरक्षण मौडल के नाम से जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया, वहीं दूसरी ओर नीति आयोग, भारत सरकार ने जखनी जलग्राम के मौडल को परंपरागत जल संरक्षण मौडल, जिस में न तो किसी मशीन का इस्तेमाल किया गया, न ही किसी नवीन विधि का, देश के लिए ऐक्सीलैंट मौडल माना.
जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने ग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ को संपूर्ण देश के लिए उपयोगी माना है.
ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत देश के सूखा प्रभावित राज्यों में सब से अधिक प्राथमिकता के आधार पर मेंड़बंदी के माध्यम से रोजगार देने की बात कही है. वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में सर्वप्रथम मेंड़बंदी के माध्यम से जल रोकने की बात कही है. जखनी जल संरक्षण  की परंपरागत विधि बगैर प्रचारप्रसार के देश के 1 लाख, 50 हजार से अधिक गांवों में पहुंच चुकी है.
बासमती की हुई खेती
कुछ साल पहले जिस बांदा जिले की खेती सूखे की वजह से पूरी तरह बरबाद हो चुकी थी, उस बांदा जनपद में जखनी गांव से निकली पानी बचाने की मुहिम का ही कमाल है कि बांदा जनपद के इतिहास में पहली बार हजारों हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती लहलहा रही है. वहां धान की सब से सुगंधित व महंगे रेट पर बिकने वाली प्रजाति बासमती की खेती हो रही है. आप सोच सकते हैं कि खाद्यान्न फसलों में सब से ज्यादा पानी की जरूरत धान की फसल को ही होती है. इस जिले में धान की खेती अपनी सुगंध बिखेरने लगी है.
पिछले साल 10 लाख क्विंटल से अधिक बासमती धान केवल बांदा में पैदा किया गया था, जबकि दूसरे जिलों में भी धान की बंपर पैदावार हुई है. बुंदेलखंड में बासमती लाने का श्रेय भी जखनी गांव के किसानों को जाता है. वहां के किसान अकेले 20,000 क्विंटल से अधिक बासमती धान पैदा करते हैं. जखनी जलग्राम के बाशिंदे मामून रशीद ने बताया कि वे बेरोजगारी के चलते 10 साल पहले तक नोएडा में रहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि जखनी में पानी बचा कर  खेती शुरू की गई है, तो वे भी गांव वापस आए और उन्होंने अपने ढालू खेतों में मेंड़बंदी कर उस पर पेड़ लगाए. वर्षा जल कासंरक्षण शुरू किया और उस से बासमती की खेती शुरू की. साथ ही, खेती से बचने वाले पानी को तालाब खोद कर उस में इकट्ठा किया, जिस में वे मछलीपालन करते हैं.
आज के दौर में वे बासमती धान  की 80 बीघा खेती करते हैं जिस से 500 क्विंटल धान का उत्पादन करते हैं. इस से वे हर साल 10 लाख रुपए तक की आमदनी हासिल करते हैं. इस के अलावा वे गेहूं और चने से भी कई लाख रुपए की आमदनी प्राप्त करते हैं. इसी गांव के बाशिंदे अली मुहम्मद भी गांव से पलायन कर चुके थे, लेकिन वे गांव में वापस आ कर जल संरक्षण मुहिम का हिस्सा बने और आज के दौर में धान और दूसरी फसलों से कई लाख रुपए की कमाई करते हैं.
इसी तरह बासमती की खेती करने वाले अशोक अवस्थी सहित हजारों किसान हैं, जो लाखों रुपए के धान की पैदावार करते हैं. मछलीपालन, पशुपालन सहित दूसरी खाद्यान्न फसलों की खेती में भी अव्वल बांदा के इलाकों में पानी बचाए जाने से केवल धान ही नहीं, बल्कि मछलीपालन, पशुपालन सहित गेहूं, प्याज, चना, अरहर, दलहन फसलों के साथ ही एग्रोफोरैस्ट्री को भी बढ़ावा मिल रहा है. इस के अलावा यहां परवल, भिंडी, बैगन, तुरई, प्याज, टमाटर, मिर्च आदि के खेती के रकबे में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है.
 बनाया गया एफपीओ  
जखनी सहित कई गांवों के किसानों ने अपने कृषि उत्पादों से अधिक लाभ कमाने के लिए फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाई है, जिस से वे बासमती सहित दूसरी फसलों की प्रोसैसिंग, ब्रांडिंग, मार्केटिंग का काम खुद करने की तैयारी में हैं. इस से जुड़े किसानों का मानना है कि इस से किसानों की सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिलेगी, क्योंकि इस में बिचौलियों का काम नहीं होगा और किसान सीधे उपभोक्ताओं तक अपनी उपज बेच कर ज्यादा मुनाफा कमा पाएंगे.
मेंड़बंदी से खुली तरक्की की राह
बगैर प्रचारप्रसार के जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय ने 25 साल के अपने जल संरक्षण अभियान में सरकार से किसी प्रकार का कोई अनुदान नहीं लिया और न ही किसी पुरस्कार के लिए आवेदन किया. उन्होंने समुदाय के आधार पर बगैर सरकारी सहायता के देश को 1050 जलग्राम देने का काम किया. वे अनजान नायक की तरह पुरुषार्थ से परमार्थ कर रहे हैं. देश के सूखे बुंदेलखंड के जिलों में जहां पानी का संकट था, वहीं आज महोबा, चित्रकूट, दतिया, छतरपुर, बांदा में सरकारी धान खरीद सैंटर बनाए गए हैं.
जखनी मौडल पर शोध  
उमाशंकर पांडेय के खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ मौडल के साथ ही जखनी जलग्राम मौडल पर कई शोध भी हो रहे हैं. अभी तक इस मौडल को देखने और शोध के इरादे से इजरायल, नेपाल सहित देश के तेलंगाना, महाराष्ट्र और बाकी कई हिस्सों के लोग आ चुके हैं. बांदा में स्थित कृषि विश्वविद्यालय  के छात्र इस सफल मौडल पर शोध कर रहे हैं, जिस से दूसरे लोगों को भी इस का लाभ  मिल सकेगा.उत्तर प्रदेश के माइनर इरीगेशन डिपार्टमैंट की रिपोर्ट के अनुसार, इतिहास में पहली  बार बांदा जनपद का भूजल स्तर 1 मीटर,  34 सैंटीमीटर ऊपर आया है. कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, किसानों के बोने का रकबा एरिया पिछले  5 सालों में बुंदेलखंड के जिलों में 3 लाख हेक्टेयर से अधिक बढ़ा है. मेंड़बंदी के कारण रुके जल से सरकारी रिपोर्ट के अनुसार किसानों का उत्पादन कोरोना काल में भी बढ़ा है. जखनी से निकली जल संरक्षण की परंपरागत विधि खेत के ऊपर मेंड़ और मेंड़ के ऊपर पेड़ संपूर्ण भारत में स्वीकार की जाने लगी है. राज, समाज और सरकार तीनों ने इस विधि का स्वागत किया है. प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन परिणाम राष्ट्रव्यापी है. यह सफलता किसानों के जरीए मिली है, जिस ने बांदा, बुंदेलखंड और दूसरे हिस्सों के खेत और गांव को पानीदार बनाने का रास्ता खोल दिया है.उमाशंकर पांडेय के चलते देश की बड़ी समस्या के समाधान के लिए उन्हें जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलयोद्धा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

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