मैं कालेज से आ कर कपड़े भी नहीं उतार पाया था कि पत्नी ने सूचना दी, ‘‘सोमेश्वरजी को दिल का दौरा पड़ा है. घंटाभर पहले उन की पत्नी का मैसेज आया था.’’ सोमेश्वरजी मेरे घनिष्ठ मित्र हैं. मेरी और उन की अवस्था में 30 वर्ष का अंतर है. पर इस से हम लोगों की मैत्री में कभी बाधा नहीं पड़ी. व्यवसाय भी हम दोनों का भिन्न है. मैं अध्यापक हूं और वे आरएमपी डाक्टर. मैं इस नगर में आया, उस के 2 मास पश्चात ही मेरा उन से परिचय हो गया था. इस नगर का पानी मेरे अनुकूल नहीं था. मुझे भयानक पेचिश हुई. चिकित्सक उसे ठीक करने में विफल रहे. सभी ने एक ही सलाह दी, ‘चाय पियो या प्याज खाओ. तभी यहां का पानी अनुकूल आएगा.’ मैं दोनों में से एक भी काम नहीं कर सकता, इसलिए मैं ने यहां से जाने का निर्णय कर लिया.

तभी किसी ने मुझे सोमेश्वरजी के पास जाने की सलाह दी. सोमेश्वरजी की पहली ही गोली से मुझे फायदा होने लगा. यदि यह कहूं कि मैं इस नगर में सोमेश्वरजी की कृपा से ही हूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. यदि वे न होते तो मैं यहां से अवश्य चला गया होता. सोमेश्वरजी से मेरा परिचय घनिष्ठता में बदला और शीघ्र ही घनिष्ठता ने मित्रता का रूप ले लिया. इस बात से लगभग सारा नगर परिचित है कि जब मैं यहां होता हूं तो 4 बजे से 5 बजे तक सोमेश्वरजी के क्लीनिक पर अवश्य बैठता हूं. उस समय मेरा घर में मिलना असंभव होता है, इसलिए वहां से निराश हो कर लोग मुझे सोमेश्वरजी की दुकान पर ही खोजते हैं. इतनी घनिष्ठता होने के कारण सोमेश्वरजी के अस्वस्थ होने की बात से मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था. वैसे सोमेश्वरजी का अस्वस्थ होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. वे 70 साल की अवस्था में इतना अधिक परिश्रम करते थे कि उन्हें दिल का दौरा न पड़ना ही विचित्र बात जान पड़ती थी.

मैं ने उलटासीधा खाना खाया और सोमेश्वरजी के अस्पताल की ओर चल पड़ा. सोमेश्वरजी कमरे में लेटे हुए थे. कमरे के बाहर बहुत से लोग बैठे थे. डाक्टर ने उन के पास लोगों को जाने से मना कर दिया था. दरवाजे के बाहर उन की पत्नी के साथ दोनों पुत्रवधुएं चुपचाप आंसू बहा रही थीं. वातावरण अत्यंत शांत एवं करुण बना हुआ था. मेरे पहुंचते ही सोमेश्वरजी के बड़े लड़के ने मुझे प्रणाम किया और धीरे से किवाड़ खोल कर मुझे कमरे में ले गया. मैं एक कुरसी पर बैठ गया. मैं सोमेश्वरजी को देख रहा था और सोमेश्वरजी मुझे. डाक्टर ने उन्हें पूरा विश्राम करने की सलाह दी थी. उन्हें बोलने और उठनेबैठने की मनाही थी.

सोमेश्वरजी कुछ कहना चाह रहे थे, पर मैं ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. सहसा उन की दोनों आंखों से आंसुओं की बूंदें निकल पड़ीं, जो उन के मानसिक ताप की साक्षी थीं. मैं ने सोमेश्वरजी के समीप बैठ कर उन्हें समझाया, ‘‘आप निराश क्यों होते हैं? आप अवश्य ठीक हो जाएंगे. वैसे भी आप को घबराना नहीं चाहिए. आप अपने सभी उत्तरदायित्व पूरे कर चुके हैं.’’ मेरी बात का सोमेश्वरजी पर विशेष प्रभाव नहीं हुआ. तभी सूचना मिली कि डाक्टर साहब उन्हें देखने आए हैं. मैं कमरे से बाहर आ गया. डाक्टर साहब मेरे परिचित थे. उन्होंने कमरे में घुसने से पहले मुझे नमस्ते की. मैं कुछ पूछता, इस से पहले ही वे सोमेश्वरजी के कमरे में प्रवेश कर गए. डाक्टर साहब कुछ देर बाद बाहर निकले. उन के चेहरे पर असंतोष के भाव थे. मैं उन्हें भीड़ से एक ओर ले गया. सोमेश्वरजी का बड़ा लड़का भी मेरे साथ था. मैं ने डाक्टर साहब से पूछा, ‘‘कहिए डाक्टर साहब, मेरे मित्र के स्वास्थ्य में कुछ सुधार है?’’

डाक्टर साहब ने विवशता दिखाते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं ने बढि़या से बढि़या दवा दी है. दवा अपना काम कर रही है पर उतना नहीं जितना करना चाहिए.’’

‘‘दवा पूरा प्रभाव क्यों नहीं कर रही, उन्हें आप की इच्छा के अनुसार लाभ क्यों नहीं हो रहा?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

डाक्टर साहब कुछ देर तक सोचते रहे. उन के चेहरे पर अनिश्चितता के भाव छाए रहे. सहसा कुछ निश्चय सा कर के वे कहने लगे, ‘‘इन के मन में जीवन के प्रति आशा और उमंग बिलकुल नहीं है. ये समझ बैठे हैं कि इन की मृत्यु निश्चित है. इन के मन में निराशा समाई हुई है. जब तक ये मन से जीवन की अभिलाषा नहीं करेंगे तब तक दवा पूरा लाभ नहीं कर सकती. इन्हें जीवन के प्रति आशावान बनना पड़ेगा अन्यथा ये चल बसेंगे. अगर इन्होंने 4 दिन काट लिए तो इन के बचने की संभावना बढ़ जाएगी.’’

‘‘आप ने इन्हें जीवन के प्रति आशावान बनाने का प्रयत्न नहीं किया?’’ मैं ने डाक्टर साहब से अगला प्रश्न किया.

‘‘मैं केवल समझा सकता हूं, इन्हें तसल्ली दे सकता हूं. मैं ने इन्हें कई बार बताया है कि आप मरेंगे नहीं, आप अवश्य ठीक हो जाएंगे. पर इन के ऊपर कोई असर नहीं होता,’’ डाक्टर साहब ने उदासीनतापूर्वक उत्तर दिया. मेरे मुख पर हलकी सी मुसकराहट दौड़ गई. मैं ने डाक्टर साहब को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘आप इन्हें दवा दीजिए. इन के मन में जीवित रहने वाली भावना जगाने का प्रबंध मैं कर दूंगा.’’ पर उन के चेहरे से ऐसा लगा जैसे वे न तो मेरी बात समझे हैं और न ही मेरी बात पर उन्हें विश्वास हो रहा है. उन्हें शायद दूसरा मरीज देखने जाना था, इसलिए बात अधिक न बढ़ा कर चले गए. मैं सोमेश्वरजी की कमजोरी जानता था. वे अंधविश्वास में ज्यादा भरोसा करते थे. वे ज्योतिषियों पर बहुत विश्वास करते थे. मुझे शंका हुई कि अवश्य किसी ज्योतिषी ने उन की मृत्यु की भविष्यवाणी कर दी है, इसीलिए वह अपने जीवन की समाप्ति का विश्वास कर के मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

सोमेश्वरजी के क्लीनिक पर एक लड़का नौकर था, जो दवाएं उठाउठा कर देता था. सोमेश्वरजी कुरसी पर बैठे रहते थे. वे जिस दवा का नाम लेते थे, लड़का उसी की शीशी अलमारी से निकाल कर सोमेश्वरजी के सामने रख देता था. काम हो जाने पर शीशी को अलमारी में रखना भी उसी का काम था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या, कुछ दिन पहले डाक्टर साहब के पास कोई ज्योतिषी आया था?’’

‘‘आया था. डाक्टर साहब ने अपनी जन्मपत्री भी उसे दिखाई थी,’’ लड़के ने उत्तर दिया.

मैं ने लड़के से अगला प्रश्न किया, ‘‘तुम्हें ध्यान है कि उस ने डाक्टर साहब को क्या बातें बताई थीं?’’

लड़का याद करता हुआ बोला, ‘‘बातें तो उस ने बहुत सी बताई थीं, पर मुझे तो एक ही बात याद है. उस ने कहा था कि आप की मृत्यु शीघ्र ही होने वाली है.’’ मैं ने जो अनुमान किया था वह सत्य निकला. डाक्टर साहब का बड़ा लड़का घबरा कर मुझ से पूछने लगा, ‘‘अब क्या होगा, शास्त्रीजी? लगता है, पिताजी अब नहीं रहेंगे. उस ज्योतिषी की बात इन के मन में बैठ गई है.’’ मैं ने सोमेश्वरजी के बड़े लड़के को आश्वासन दिया और सोचने लगा, विष को विष ही काटता है. कांटे से ही कांटा निकाला जा सकता है. यदि कोई ज्योतिषी विश्वास दिलाए तो सोमेश्वरजी जीवन के प्रति आशावान बन सकते हैं. पहले तो मैं ने सोचा कि उसी ज्योतिषी को बुला कर लाया जाए और उस से कहलवा दिया जाए कि उस ने जो कुछ बताया था, वह झूठ था. तभी मुझे ध्यान आया कि अब डाक्टर साहब उस की बात पर विश्वास नहीं करेंगे. वे समझ जाएंगे कि इस ने पहले तो ठीक बात बताई थी, अब वह किसी के कहने पर झूठ बोल रहा है. मैं ने किसी अन्य ज्योतिषी को बुला कर सोमेश्वरजी को जीवन की आशा दिलाने की बात सोची. पर कुछ देर में यह विचार भी मुझे लचर जान पड़ा. यह आवश्यक नहीं है कि वे एक ज्योतिषी के कहने से दूसरे की बात झूठ मान लें.

इसी समय मेरा ध्यान हस्तरेखा देख कर भविष्य बताने वालों की ओर चला गया. समीप ही ग्वालियर है. वहां अकसर हस्तरेखा विशेषज्ञ आते रहते हैं. उन के विज्ञापन समाचारपत्रों में निकलते हैं. मैं ने ग्वालियर से निकलने वाला एक दैनिक पत्र उठा कर देखा. उस में एक इसी प्रकार का विज्ञापन निकला था. मैं ने तुरंत मोबाइल से ग्वालियर फोन किया और उन्हें सारी स्थिति समझाई.

वे कहने लगे, ‘‘यह तो असत्य भाषण है. मुझ से यह नहीं हो सकेगा.’’

मैं ने उन्हें लालच देते हुए बताया, ‘‘मैं आप को 5 हजार रुपए दे सकता हूं. आप को आनेजाने में विशेष समय नहीं लगेगा. वहां तो केवल 10 मिनट का काम है. आप को केवल 2 बातें कहनी हैं. एक तो हस्तरेखा विज्ञान को ज्योतिष से श्रेष्ठ सिद्ध करना है, दूसरे, सोमेश्वरजी के कई वर्ष जीवित रहने की बात कहनी है.

‘‘रही झूठ बोलने की बात. यदि आप ने कभी भी झूठ नहीं बोला हो तो आज भी मत बोलिए. यह भी तो संभव है कि सोमेश्वरजी के हाथ की रेखाएं अभी उन के जीवित रहने का संकेत कर रही हों. वैसे भी किसी इंसान से जीवनरक्षा के लिए मन रखने वाली बात कह दी जाए तो मैं कुछ बुरा नहीं समझता.’’ लगता था हस्तरेखा विशेषज्ञ महोदय 2-5 हजार रुपए का लालच नहीं छोड़ सके. वे मेरे साथ चले आए. मैं उन्हें सोमेश्वरजी के कमरे में ले गया तो मेरे सिखाए अनुसार उन के बड़े लड़के ने हस्तरेखा विशेषज्ञ की ओर संकेत कर के पूछा, ‘‘शास्त्रीजी, ये सज्जन कौन हैं? मैं ने इन्हें पहले कभी नहीं देखा.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम इन्हें देखते कहां से, ये यहां के रहने वाले नहीं हैं. ये प्रसिद्ध हस्तरेखा विशेषज्ञ हैं जो ग्वालियर के गूजरी महल में ठहरे हैं. यहां तहसीलदार साहब के घर आए थे. वहां से मैं इन्हें ले आया हूं सोमेश्वरजी का हाथ दिखाने.’’ हस्तरेखा विशेषज्ञ को अपने सामने बैठा जान कर सोमेश्वरजी अपना भविष्य जानने की अभिलाषा न रोक सके. उन्होंने अपना दायां हाथ धीरे से आगे बढ़ा दिया. मैं ने सोमेश्वरजी के विषय में जो कुछ बताया था, उसी के आधार पर हस्तरेखा विशेषज्ञ ने उन का भूतकाल इस प्रकार ठीकठीक बता दिया, जैसे खुली हुई किताब पढ़ रहे हों. उन बातों से सोमेश्वरजी पर उन का पूरा विश्वास जम गया.

मैं ने हस्तरेखा विशेषज्ञ से सोमेश्वरजी की आयु के विषय में पूछा तो उन्होंने सीधे हाथ की चारों उंगलियों को एकएक कर के हथेली पर मोड़ा और आत्मविश्वास के साथ कहने लगे, ‘‘इन की आयु 80 वर्ष है. इस से पहले इन की मृत्यु नहीं हो सकती.’’ सोमेश्वरजी चुप नहीं रह सके और धीरे से बोले, ‘‘मगर कुछ दिन पहले एक ज्योतिषी ने मेरी जन्मपत्री देख कर बताया था कि मैं 1 महीने से अधिक नहीं जी सकता. मुझे मारकेश लग चुका है.’’

हस्तरेखा विशेषज्ञ यह बात सुन कर जोश से भर गए और आत्मविश्वास के साथ कहने लगे, ‘‘जन्मपत्री और हस्तरेखाओं का अंतर आप समझ लेंगे तो मेरी बात ही आप को ठीक लगेगी. जन्मपत्री जन्मकाल के आधार पर बनाई जाती है. गांव के लोग बच्चे के जन्म का समय ठीक नहीं बता पाते, क्योंकि वहां सभी परिवारों में घडि़यां नहीं होतीं. यदि घड़ी हो तब भी समय में थोड़ाबहुत अंतर पड़ जाता है, क्योंकि अधिकांश घडि़यां थोड़ीबहुत आगेपीछे रहती हैं. ज्योतिष के 2 अंग हैं, गणित और फलित. गणित के आधार पर ज्योतिषी फलित के रूप में भविष्यवाणियां करते हैं. जन्मकाल ठीक ज्ञात न होने से गणित में अंतर पड़ जाता है और जन्मपत्री की घटनाएं सही नहीं बैठ पातीं. हस्तरेखाओं के विषय में ऐसी कोई बात नहीं है, उन्हें कभी भी देखा जा सकता है.’’ हस्तरेखा विशेषज्ञ की लंबीचौड़ी बातें सुन कर सोमेश्वरजी ज्योतिष की अपेक्षा हस्तरेखा विज्ञान को श्रेष्ठ समझने लगे हैं, ऐसा उन के चेहरे से लग रहा था. शीघ्र ही सोमेश्वरजी के मुख पर फिर शंका की भावना जगी और वे धीरे से बोले, ‘‘आप की बात ठीक होगी पर मुझे तो ऐसा लगता है कि मेरा अंतिम समय आ गया है.’’

सोमेश्वरजी की बात सुनते ही हस्तरेखा विशेषज्ञ की घनी भौंहें तन गईं. वह आत्मविश्वासपूर्वक बोले, ‘‘अधिक बात तो मैं नहीं कहता, पर आप के जीवन के प्रति मैं शर्त लगा सकता हूं. अभी तो आप को चारों धामों की तीर्थयात्रा करनी है. अगर 80 वर्ष से पहले आप की मृत्यु हो जाए तो मैं हस्तरेखा देखने का काम छोड़ दूंगा.’’ सोमेश्वरजी को हस्तरेखा विशेषज्ञ पर पक्का विश्वास हो गया. उन के चेहरे की उदासी मिट गई और वहां आशा का प्रकाश झलकने लगा. हस्तरेखा विशेषज्ञ बाहर निकले तो मैं ने सफल अभिनय के लिए उन की प्रशंसा की तथा 5100 रुपए दिए. 100 रुपए अभिनय का इनाम था. धीरेधीरे सोमेश्वरजी की दशा सुधरने लगी. अगले दिन डाक्टर साहब उन्हें देख कर बाहर निकले तो कहने लगे, ‘‘इन की हालत में जमीनआसमान का अंतर है. आप ने कमाल कर दिया है?’’

मैं ने डाक्टर साहब को सब बातें बताईं तो वे चकित रह गए. जब सोमेश्वरजी पूरी तरह से ठीक हो गए तो मैं ने उन्हें सारी बातें बता दीं. उस के बाद से सोमेश्वरजी ने ज्योतिष वगैरह में न सिर्फ विश्वास करना छोड़ दिया बल्कि दूसरे लोगों को भी इस तरह की फुजूल बातों पर विश्वास न करने की हिदायत देने लगे. इस बात को 8 वर्ष हो गए हैं. सोमेश्वरजी अपना काम पहले के समान ही परिश्रम और लगन के साथ कर रहे हैं.

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