बुधवार तक भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 11500 पार कर गई, वही 392 से अधिक लोग इस महामारी से मारे जा चुके है. क्या आपको पत्ता है भारत में वर्तमान समय कुल 736 जिले हैं, उनमें से सरकार ने कुल 170 जिले हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया हैं. वहीं नॉन हॉटस्पॉट में 207 जिले है.

साथ ही क्या आप जानते है कि देश में 350 से अधिक जिलों ऐसे है , जो कोरोना संक्रणम के पहुंच से दूर है तो आईये जानते है , सरकार कितने जिलों कितने जोन में बांटा है और इसका में कौन-कौन जिला आता है. किस आधार पर यह वर्गीकरण हुआ है…

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने बुधवार को नियमित प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित 170 जिलों को हॉटस्पॉट घोषित किया गया है. 207 की पहचान गैर-हॉटस्पॉट के रूप में की गई है. आगे उन्होंने बताया कि कैबिनेट सचिव ने देशभर के जिला अधिकारियों, पुलिस कप्तानों, मेडिकल ऑफिसर समेत नगर निगमों के कमिश्ररों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग कर इस बारे में जानकारी दे दी गई है. उन्होंने राज्यों से कहा है कि केंद्र द्वारा चिह्नित हॉट स्पॉट के अलावा भी अगर उन्हें लगता है कि कहीं संक्रमण बढ़ रहा है अथवा नए मरीजों का मिलना अनवरत है तो वे अतिरिक्ति जिलों को हॉट स्पॉट के रूप में घोषित कर जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं.  साथ ही उन्होंने कहा की देश के  हर हिस्से में लॉकडाउन का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाये और नए दिशा निर्देशों का पालन सभी राज्य करे.

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* हॉटस्पॉट जोन वाले जिले  (रेड जोन ) :-

वैसे जिले जहाँ लगातार ज्यादा संक्रमण का मामले सामने आ रहे हैं. और जांच के बाद पॉजिटिव केस की संख्या  में भी तेजी से इजाफा हो रहा है. वह जिले हॉटस्पॉट जोन या रेड जोन  वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों में स्वास्थ्य मंत्रालय के निगरानी में राज्यों के प्रमुख अधिकारियों के निदेश पर इलाके का पूरी तरह सर्वे करके उसका जाँच रिपोर्ट तैयार करना होगा .क्षेत्रों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया जा रहा है.नमूने एकत्र कर जांच किया  जायेगा. साथ ही आवश्यक सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों को छोड़ कर नियंत्रित क्षेत्रों में आवाजाही की अनुमति नहीं दी जाएगी.   देश के 170 जिले  रेड जोन में आते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार बिहार का सीवान, दिल्ली के दक्षिणी, दक्षिणी पूर्वी, शाहदरा, पश्चिमी उत्तरी और मध्य दिल्ली, उत्तरप्रदेश के आगरा, नोएडा, मेरठ, लखनऊ गाजियाबाद, शामली, फिरोजाबाद, मोरादाबाद और सहारनपुर रेड जोन में कोरोना आउटब्रेक वाले जिलों में शामिल है. जबकि बिहार का मुंगेर, बेगुसराय और गया, दिल्ली का उत्तरी-पश्चिमी, उत्तराखंड के नैनीताल और उधम सिंह नगर और उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर, सीतापुर, बस्ती और बागपत रेड जोन के कलस्टर वाले जिलों में है.

* नॉन हॉटस्पॉट जोन वाले जिले ( आरेंज जोन) :-

वैसे जिले जहाँ संक्रमण का फैलाव कम स्तर पर हुआ है , लेकिन कोरोना पॉजिटिव केस की संख्या कम हैं.  वह जिले नॉन हॉटस्पॉट जोन या आरेंज जोन वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों को भी ठीक उसी तरह ट्रीट किया जाएगा, जैसे हॉटस्पॉट कैटेगरी वाले जिलों में काम हो रहा है. वहां भी क्लस्टर कंटेनमेंट के हिसाब से काम किया जाएगा. ताकि चेन ऑफ ट्रांसमिशन ब्रेक हो पाए. इसका मतलब यहां भी सख्ती बरती जाएगी और किसी भी तरह की कोई छूट नहीं मिलेगी.  देश के 207 जिले आरेंज जोन में आते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार  बिहार के गोपालगंज, नवादा, भागलपुर,सारन, लखीसराय, नालंदा और पटना, दिल्ली का उत्तरी-पूर्वी और उत्तरप्रदेश के कानपुर नगर, वाराणसी, अमरोहा, हापुड़, महाराजगंज, प्रतापगढ़ और रामपुर जैसे जिले ऑरेंज जोन में शामिल हैं, जहां न तो कोरोना का कलस्टर और न ही आउटब्रेक हुआ है. यहां कुछ केस पाए गए थे.

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* ग्रीन जोन वाले जिले :-

वैसे जिले जहाँ कही भी संक्रमण नहीं है , कोरोना पॉजिटिव  के केस नहीं आए हैं. वह जिले ग्रीन जोन वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों का खास खयाल रखा जाएगा. कोशिश रहेगी कि ये जिले नॉन इफेक्टेड ही रहें. वहां कम्युनिटी से संपर्क करते हुए सावधानियां बरती जाएं. रेड और आरेंज जोन के अलावा सरकार ने ग्रीन जोन में भी कोरोना पर नजर रखने का फैसला किया है. साथ ही इस जोन में इनफ्लुएंजा या सांस से संबंधित बीमारी से गंभीर रूप से ग्रसित मरीजों का कोरोना टेस्ट किया जाएगा. ऐसे मरीजों की पहचान कर उन्हें कोरोना अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को दी गई है.  देश के 359 जिले ग्रीन जोन में आते हैं.

* जोन में कंटेनमेंट का प्लान अलगअलग :-

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार  विभिन्न जोन में वायरस से कंटेनमेंट का प्लान अलग-अलग होता है.  रेड जोन और उसके चारो और बफर जोन तय करने का अधिकार भी स्थानीय प्रशासन के ऊपर छोड़ा गया है. वही ग्रामीण इलाके में सामान्य तौर पर कोरोना के केस आने वाली जगह के चारो ओर तीन किलोमीटर के इलाके में कंटेनमेंट प्लान लागू किया जाता है. उसके चारो ओर के सात किलोमीटर के दायरे को बफर जोन के रूप में रखा जाता है. घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में इसे तय करने का मापदंड अलग होता है और स्थानीय अधिकारी जमीनी हकीकत के आधार पर इसे निर्धारित करते हैं.

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