सावधानी हटी और दुर्घटना घटी. असावधानी उस भारीभरकम शरीर वाले आदमी से हुई थी जो ढीलेढाले काले कपड़े पहने था और बेपरवाही से सड़क पार कर रहा था. उस के हाथ की पकड़ ढीली होते ही वह नन्हा सूअर छूट कर भागा ही था कि पीछे से आ रही तेज गति की मोटरसाइकिल से टकरा गया और तेज चीख के साथ गिर कर छटपटाने लगा. देखते ही देखते उस के शरीर की फड़कन शांत हो गई. अचानक ब्रेक लगाने से मोटरसाइकिल सवार खुद गिरतेगिरते बचा था. वह रुका और मोटरसाइकिल सड़क के किनारे खड़ी कर दी.
काले कपड़े वाले की तो जैसे गरदन थी ही नहीं. उस का भारीभरकम काला चेहरा उस के कंधों पर धरा सा था. उस ने पूरा शरीर घुमाया और तरेर कर देखा तो मोटरसाइकिल सवार उस के कू्रर चेहरे व जलती आंखों को देख कर सकपका गया. कोई गलती न होते हुए भी उस से आंखें नहीं मिला सका. निगाह नीची की तो नजरें उस के हाथ की थाली पर ठहर गईं, जिस में अगरबत्ती, फूल, रोली, हलदी, चावल के कुछ दाने व चमकता धारदार बड़ा सा छुरा था. एक देसी शराब का पाउच भी थाली में था.
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चूंकि घटना गांव के मुहाने पर ही हुई थी इसलिए लोगों को आने में देर नहीं लगी और भीड़ की शक्ल में लोग इकट्ठे होने लगे. एक अधेड़ अकड़ कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चला सकते मोटरसाइकिल?’’
‘‘मेरी कोई गलती नहीं है. वह तो अचानक…’’
‘‘क्या अचानक?’’ दूसरे ने उस के विनम्र निवेदन को बड़ी कर्कश आवाज से काट दिया, ‘‘आप को पता है आप ने यह क्या कर दिया? आप ने एक बड़ी पूजा खंडित कर दी है. जिस का नुकसान अब आप को भुगतना पड़ेगा?’’
काले कपड़े वाला चुप था, लेकिन निचला होंठ दांतों से काटते हुए गुस्से में तमतमा रहा था. जैसे, किसी तरह खुद को काबू में किए है. वरना न जाने क्या कर डालता. नुकसान की बात आई तो मोटरसाइकिल वाले ने सोचा, इन से उलझने के बजाय मामला रफादफा कर लेना ही बेहतर है. उस ने बड़े विनम्र हो कर कहा, ‘‘जो भी नुकसान हुआ है, मैं भरपाई करने को तैयार हूं. हालांकि मेरी कोई गलती नहीं है.’’
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मरे सूअर के बच्चे को देखते हुए उस ने अनुमान लगाया कि इस की कीमत होगी 4 या 5 सौ रुपए, बस.
‘‘तो रख दो पूरे 11,000 रुपए.’’
काले कपड़े वाला खरखरे स्वर में लगभग गुर्राया, ‘‘सूअर के एक छोटे बच्चे की कीमत 11,000 रुपए?’’
मोटरसाइकिल सवार ने आश्चर्य से कहा ही था कि एक व्यक्ति तो उस पर जैसे टूट ही पड़ा, ‘‘यह तो अनमोल था, अनमोल. इस की कीमत आप नहीं आंक सकते. देख नहीं रहे इस के माथे पर टीका लगा है.’’
उस ने देखा, सूअर के बच्चे का मुंह सुतली से बंधा था और माथे पर रोली का टीका था, जिस पर ताजे खून के छींटे पड़ गए थे. सड़क पर खून भी फैला था. उस के दिल में मृत नन्हे के प्रति दया उमड़ पड़ी. वह कहना चाहता था, टीका लग जाने से क्या सूअर के बच्चे की कीमत इतनी बढ़ जाती है, पर कह न सका.
भीड़ में से आवाज आई, ‘‘आप को पता है, यह पुजापे का सूअर था, वह भी ग्रामप्रधान की मनौती का, जो अभी राजू के हाथों पथरी देवी को चढ़ाया जाना था.’’
एक अन्य ने काले कपड़े वाले को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘क्यों राजू? अगर प्रधानजी को पता चला तो तुम्हारी तो आफत ही आ जाएगी और इस बेचारे मुसाफिर से तो प्रधानजी पता नहीं, कैसे निबटेंगे.’’
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किसी ने सलाह दी, ‘‘प्रधानजी के आने के पहले मामले को सुलझा लो. प्रधानजी का गुस्सा तो नाक पर ही धरा रहता है और बंदूक हमेशा हाथ में रहती है.’’
भयभीत कर देने वाला माहौल खड़ा किया जाने लगा तो मोटरसाइकिल वाले के सामने वे घटनाएं कौंध गईं जिन में धर्म के नाम पर लोगों की हत्याएं तक कर दी गई थीं. यहां भी अंधी आस्था का मामला है. वह आशंका से अंदर ही अंदर कुछ घबराया. उस ने दयनीयता से भीड़ को देखा, किसी की आंखों में उस के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई दे रही थी बल्कि सब एक अपराधी की तरह उसे देखे जा रहे थे. जिस तरह के धूर्त लोग आसपास इकट्ठे हो रहे थे, उस से उसे डर था कि कहीं लोग उतावले हो कर हाथापाई पर न उतर आएं और मोटरसाइकिल को तोड़फोड़ न डालें. उस ने छुटकारा पाने के लिए समर्पण भाव से कहा, ‘‘ठीक है, मैं ने जानबूझ कर तो टक्कर नहीं मारी, फिर भी मैं हरजाना भरने को तैयार हूं.’’
‘‘कहा न, धर दो 11,000 रुपए,’’ राजू ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा.
‘‘मगर, एक सूअर के बच्चे की कीमत 11,000 रुपए नहीं हो सकती,’’ उस ने संकोच से असहमति प्रकट करनी चाही.
‘‘इसे सूअर का बच्चा मत कहो. यह प्रसाद था, प्रसाद जिसे तुम ने नष्ट कर दिया है. इस की कीमत तुम क्या जानो? जिस देवी के स्थान पर इसे चढ़ना
था उस देवी द्वारा दी
जाने वाली सजा को तुम नहीं समझ सकते. कहो, अभी खड़ेखड़े तुम्हारी मोटरसाइकिल में आग ही लग जाए,’’ भीड़ से एक अक्खड़ आवाज आई. मोटरसाइकिल वाले को लगा कि ये लोग देवी के अभिशाप के नाम पर मोटरसाइकिल में आग भी लगा सकते हैं. वह अपने को उद्दंडों के बीच फंसा हुआ पा रहा था. उस ने अति विनम्र हो कर कहा, ‘‘मैं ने कहा न, कि मैं हरजाना भरने को तैयार हूं, लेकिन 11,000 रुपए की बात उचित नहीं है.’’
राजू के हाथ का वजन उस के कंधे पर भारी पड़ रहा था. उसे लगा वह किसी ऐसे बलवान के चंगुल में जा फंसा है जिस के शरीर के सापेक्ष में वह बौना है. कौए की आवाज को कोयल जैसी बनाने की कोशिश करते हुए राजू ने पतली आवाज में समझाया, ‘‘देखो भाई, तुम इस गांव की परंपराओं को नहीं जानते. गांव का प्रधान है न, वह है हम से ऊंची जात का और मांसमच्छी नहीं खाता. सूअर को तो वह छू ही नहीं सकता. वह इस साल जब प्रधानी का चुनाव लड़ रहा था तो हमारी बिरादरी के लोगों को खुश करने के लिए उस ने हमारी पथरी देवी के स्थान पर जा कर सब के सामने मनौती मानी थी कि अगर चुनाव जीत गया तो वह देवी को सूअर का बच्चा चढ़वाएगा. उस ने मुझ से कहा था कि एक दुधमुंहा सूअर का बच्चा लाओ, इसी समय. मेरी सूअरिया बियाई थी. तो मैं इसी बच्चे को ले कर तुरंत पहुंच गया. उस ने इस बच्चे पर न्योछावर कर के 2,000 रुपए मुझे पकड़ा दिए और कहा था कि जब यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो देवी पर चढ़ा देना. पथरी देवी हमारी कुलदेवी है. वह सब की मंशा पूरी करती है. प्रधानजी की भी इच्छा पूरी हुई. उसी पूजा के लिए मैं इसे ले कर जा रहा था.’’
‘‘तो मैं 2,000 रुपए देने को तैयार हूं.’’
‘‘ठहरो, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है,’’ राजू ने उस के कंधे से हाथ हटाते हुए कहा, ‘‘हमारा सूअरपालन का धंधा है और हम जानते हैं कि जानवर कैसे पाला जाता है. मैं ने इस बच्चे को पालने के लिए न जाने कितने कष्ट उठाए और न जाने कौनकौन जतन किए कि यह
जिंदा बना रहे. बीमार पड़ गया तो पशुचिकित्सक से इलाज कराया. इस की दवादारू में खर्चा किया. मैं ने इसे बड़े हिकमत से पाला था. बाजार से भिंडी, आलू, शकरकंद और न जाने क्याक्या ला कर इसे कुंतलों में खिलाता कि मांस ज्यादा निकले, पुजापे के सूअर का प्रसाद बिरादरी में जो बांटना होता है.’’
मोटरसाइकिल वाला राजू की बनावटी बातों से समझ गया कि इन गांव वालों ने उसे बुरी तरह फांस लिया है जिस से छुटकारा मिलना आसान नहीं है. उस ने दबी आवाज में कहा, ‘‘राजू भाई, आप की सब बातें ठीक हैं. फिर भी 11,000 रुपए की मांग ज्यादा है.’’
‘‘आप शहर के हो और पढ़ेलिखे लगते हो. पर बात को नहीं समझ रहे. आप के शहर से कितने पढ़ेलिखे लोग मेरे पास आते हैं और पूजा करवाने के लिए मुझे हजारों रुपए पकड़ा कर चले जाते हैं. मैं ईमानदारी से उन की तरफ से देवी को बच्चा चढ़ाता हूं. किसी से भी मेरे बारे में पूछ लेना. सब मुझे जानते हैं.’’
‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी पर भरोसा है.’’
‘‘तो फिर सोचना क्या? देर किस बात की? प्रेम से 11,000 रुपए धर दो और चुपचाप घर जाओ. प्रधानजी को पता चलेगा तो बात बिगड़ जाएगी. वे वैसे भी बहुत गुस्सैल आदमी हैं,’’ राजू के स्वर में एकाएक कड़ापन आने लगा.
मोटरसाइकिल वाले को आश्चर्य हुआ कि खूंखार दिखने वाला यह आदमी कितनी जल्दीजल्दी स्वर बदल रहा है. खट्टीमीठी दोनों बातें एकसाथ कर लेता है.
सड़क पर भीड़ बढ़ने लगी थी. भीड़ आक्रोशित तो नहीं लग रही थी लेकिन उत्सुकता सब के चेहरे पर थी. वह अच्छी तरह समझ रहा था कि इस भीड़ से बच कर भागा नहीं जा सकता है और किसी न्याय की आशा भी करना बेकार है. कोई भी उस के पक्ष में खड़ा दिखाई नहीं दे रहा था.
राजू ने उस का निर्णय जानना चाहा, ‘‘क्या सोच रहे हो? जो भी फैसला करना हो, जल्दी करो. प्रधानजी को पता न चले, तो अच्छा ही है.’’
वह कुछ बोले, इस के पहले भीड़ से निकल कर एक आदमी उन के पास आया और बोला, ‘‘क्या तय हुआ?’’
‘‘तय तो इन को करना है कि मामले को बढ़ाना है या यहीं खत्म कर देना है,’’ राजू ने लापरवाही से कहा.
यह आदमी मोटरसाइकिल वाले को कुछ सभ्य लगा. उस ने अनुनय करनी चाही, ‘‘भाईसाहब, आप ही बताइए, क्या इन की मांग उचित है? इतनी रकम तो मेरे पास है भी नहीं.’’
‘‘कितनी है?’’
मोटरसाइकिल वाला चुप रह गया. सोचने लगा कि अगर बताता हूं कि मेरी जेब में 5,000 रुपए हैं तो ये तुरंत छीन सकते हैं. असमंजस में यहांवहां देखने लगा. भीड़ के लोग उसे ही ताक रहे थे. बचने का एक ही उपाय उसे सूझा कि किसी तरह मुआवजे की राशि कम कराई जाए. इन से बच कर निकल लेना ही उचित है. इन चतुरचालाकों से लड़ा नहीं जा सकता है. ये भोलेभाले ग्रामीण नहीं हैं. प्रधानजी का हौआ तो ये खड़ा कर ही चुके हैं, लूटखसोट, मारपीट कुछ भी कर सकते हैं. असहाय सा वह बोला, ‘‘आप बीच में आए हैं तो आप ही फैसला कीजिए.’’
‘‘मेरा फैसला मानना पड़ेगा,’’ उस व्यक्ति के चेहरे पर न्यायकर्ता का दंभ चमक उठा.
गिरफ्त में फंसे मोटरसाइकिल वाले ने ‘हूं’ कहा तो उस ने राजू की सहमति चाही, ‘‘राजू, तुम्हें भी मेरी बात माननी पड़ेगी.’’
‘‘मानूंगा,’’ राजू ने बिना देर लगाए सहमति प्रकट कर दी.
उस व्यक्ति ने राजू को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है, राजू, तुम आधी रकम पर मान जाओ और इस बेचारे को जाने दो.’’ राजू तो चुप रह गया लेकिन मोटरसाइकिल वाला अचकचा गया, ‘‘यह तो ज्यादती है.’’
‘‘मैं ने तो पहले ही आप दोनों से कुबूल करवा लिया था कि मेरा फैसला मानना पड़ेगा. अगर नहीं मानना तो आप लोग खुद अपना फैसला करो और निबटो,’’ उस ने धमकी सी दी और नाराज हो कर जाने का उपक्रम किया.
मोटरसाइकिल वाले को लगा कि वह तो दलदल में फंसा रह जाएगा और बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. उस ने विनती सी की, ‘‘रुकिए, भाईसाहब.’’
वह रुका तो मोटरसाइकिल वाला उस के करीब पहुंचा और धीमे स्वर में बोला, ‘‘देखिए भाईसाहब, मेरे पास इस समय सिर्फ 5,000 रुपए हैं, इतने पर ही समझौता करवा दीजिए और मुझे जाने दीजिए.’’
‘‘तो ठीक है, अगर आप खुश हैं तो मैं इन सब को समझा लूंगा.’’
मोटरसाइकिल वाला खुश नहीं था, लेकिन उस की बात से इनकार नहीं कर सका.