38 साल की मानुषी एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है. घर में पति, सासससुर और 2 बच्चे हैं. नवरात्रि से एक दिन पहले उस की तबीयत ठीक नहीं थी. सो वह सुबह ऑफिस नहीं गई. पैर में भी चोट लग गई थी. शाम में उस ने पति को जल्दी घर बुला लिया क्योंकि नवरात्रि की पूजा के लिए सामान लाने जाना भी जरूरी था. पति के स्कूटर पर बैठ कर वह किसी तरह बाजार पहुंची. बहुत सारा सामान खरीदना था. पूजा की सारी सामग्री, नए कपड़े और फिर व्रत का सारा सामान. सब कुछ लेतेलेते रात के 9 बज गए.
घर में घुसते ही खाने की तैयारी में लगना पड़ा. अगले दिन सुबह विशेष पूजा भी करनी थी. इसलिए वह सुबह 4 बजे का अलार्म लगा कर सोई. सुबह से फिर काम में जुट गई. घर में वह, पति और सास व्रत करते थे. सो तीन लोगों के लिए व्रत का खाना बनाना था. जब कि ससुर और दोनों बच्चों के लिए सामान्य खाना
बना.
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पूजापाठ करतेकरते 11 बज गए. ऑफिस में मीटिंग थी इसलिए ऑफिस जाना भी जरुरी था. किसी तरह तक भूखीप्यासी 12 बजे तक धूप में ऑफिस पहुंची. दोपहर के लिए साबूदाने की खीर और फल रख लिए थे. शाम को घर लौटी तब तक उस की तबीयत काफी खराब हो गई थी. उसे उल्टियां होने लगी और हल्का फीवर आ गया. यह एक उदाहरण है महिलाओं के लिए नवरात्रि के दिनों में होने वाली जद्दोजहद का.
नवरात्रि हर साल दो बार मनाया जाता है. इस त्योहार पर नौ दिनों तक दुर्गा की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नवमी को कन्या पूजन करने की प्रथा है. कन्या पूजन की तैयारी भी आसान नहीं होती. उस दिन सुबह से महिलाएं किचन में लगी रहती हैं. फिर घर की धुलाई और साफसफाई के बाद पूजापाठ निपटा कर नौ कन्याओं की पूजा कर, उन्हें खिलापिला कर, गिफ्ट दे कर विदा किया जाता है. यह सब देखनेसुनने में भले ही आसान लगे मगर जिन महिलाओं को भूखे प्यासे सब करना पड़ता है उन की हालत देखने लायक होती है. खासकर यदि महिला कामकाजी है तो उस की दौड़भाग दोगुनी हो जाती है.
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महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ
नवरात्रि के दौरान महिलाओं पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ जाता है जिस की वह शिकायत भी नहीं कर सकती क्योंकि शिकायत करते ही वह नास्तिक और घोर अधर्मी की श्रेणी में जो आ जायेगी. घरवाले उसे संस्कारहीन कह कर पुकारेंगे. इसलिए अपने कर्तव्यों का पुलिंदा उठाए, बिना उफ़ करे वह काम में लगी रहती है. वैसे भी ज्यादातर महिलाएं नवरात्रि की पूजा में खुद ही जरा सी भी कमी स्वीकार नहीं करतीं.
धर्म की मानें तो कोई भी पूजापाठ बिना व्रत पूरा नहीं होता. ऐसा लगता है जैसे कोई आ कर कह गया हो कि भूखे रहे बिना ऊपरवाला सुनेगा नहीं. नवरात्र के 9 दिन की पूजा भी अच्छी तरह व्रत करते हुए ही पूरी की जाती है. अच्छी तरह का अर्थ है व्रत के लिए नाना प्रकार के फलाहार तैयार कर भोग लगाना.
आजकल घर की स्त्रियों के साथसाथ पुरुष भी व्रत करने लगे हैं. जाहिर है वे व्रत करेंगे तो रोज नईनई चीजें बनाने की फरमाइश भी करेंगे. इधर घर के कुछ बुजुर्ग व्रत नहीं कर पाते. उन्हें रोजाना वाला खाना चाहिए होता है. बच्चे व्रत नहीं करते मगर व्रत के लिए बने मखाने की खीर, कुट्टू की पकौड़ी, तले हुए आलू आदि बहुत पसंद करते हैं.
इस तरह महिलाओं को एक तरफ पूजा करनी होती है तो दूसरी तरफ दो तरह का खाना बनाना होता है. इस के साथ पति और बच्चों के ऑफिस और स्कूल जाने की तैयारी. खुद भी ऑफिस जाना है तब तो और भी अधिक मारामारी हो जाती है. नवरात्रि की पूजा खास विधि और अलग तरह की पूजा सामग्री के साथ संपन्न करने का विधान भी पंडितों ने बना रखा है. साथ ही अपनी जेब गर्म करने के लिए तरहतरह के कायदे कानून भी बनाए हैं.
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पूजा सामग्री के तौर पर बहुत सी चीज़ें इकट्ठी करनी होती है. लाल रंग का आसन और लाल चुनरी, कुमकुम, जौ, साफ की हुई मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, लाल सूत्र, मौली, इलाइची, लौंग, कपूर, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते , नारियल, फूल माला , दीया जैसी बहुत सी चीजों की जरुरत पड़ती है. नवरात्रि में रोज हवन होता है सो इस के लिए हवन सामग्री भी खरीद कर लाना होता है, जिस में हवन कुंड, लौंग का जोड़ा , कपूर, सुपारी, गूगल, घी, पांच मेवा और अक्षत आदि का इंतजाम करना होता है.
नवरात्रि में घर की सफाई अच्छे से करनी होती है. सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना , कलश स्थापना की तैयारी, प्रसाद तैयार करना जिसे भोग लगाकर बांटने की तैयारी यह सब करने में महिलाएं पूरे दिन व्यस्त रहती हैं.
खाने पर पाबंदी
नवरात्रि के उपवास में आटा और अनाज खाने की अनुमति नहीं है. चावल और चावल का आटा, गेहूं का आटा, मैदा, सूजी, बेसन, मसाले , प्याज लहसुन दाल फलियां आदि खाना भी मना होता है. इन दिनों शराब और मांसाहारी भोजन भी सख्ती से मना होता है. इन की बजाए फल, सब्जियां साबूदाना, कूटू का आटा, सामक के चावल, दूध, दही, पनीर, चाय , कॉफी और आलू आदि खाए जा सकते हैं.
खाने में ही नहीं बल्कि नौ दिनों के लिए नौ रंग के पोशाक भी तय किए हुए हैं. पहले दिन लाल रंग, दुसरे दिन रॉयल ब्लू , तीसरे दिन पीला, चौथे दिन हरा, पांचवे दिन ग्रे, छठे दिन नारंगी, सातवें दिन सफ़ेद, आठवें दिन गुलाबी और नवें दिन स्काई ब्लू पहनने का नियम है.
ये नवरात्रि गर्मियों में आती है इसलिए बहुत सी महिलाओं को डिहाइड्रेशन, एसिडिटी, थकान, ब्लड प्रेशर कम हो जाना जैसी गर्मियों में होने वाली सेहत संबंधी समस्याएं होने लगती है.
बहुत सी महिलाएं व्रत के दौरान सारा दिन भूखी रहती है और फिर एक ही बार में ज्यादा खा लेती हैं जिस से खाना जल्दी डाइजेस्ट नहीं हो पाता. एसिडिटी, कब्ज, सिर में भारीपन, घबराहट जैसी समस्या होने लगती है.
सामाजिक सोच में ये कैसी विसंगति
सोचने वाली बात है कि यह वही देश है जहां 9 दिन कन्याओं की पूजा करने का दिखावा करने वाले लोग बाकी दिन महिलाओं को न तो घर में सम्मान देते हैं और न ही बाहर सुरक्षा. अगर एक लड़की या बच्ची रात में सड़क पर अकेली निकल गई तो उसे लुटनेखसोटने के लिए तथाकथित मर्द पहुँच जाते हैं, घर से
छोटीछोटी बच्चियों को हैवानों द्वारा उठा लिया जाता है. घर की महिलाओं को छोटी छोटी बातों पर मारापीटा जाता है.
देश की महिलाओ के खिलाफ दिन-प्रतिदिन बढ़ते जघन्य अपराधों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सामाजिक असुरक्षा का भाव हो या महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखने की साज़िश, दोनों ही स्थितियों में कोई खास बदलाव पिछले 75 वर्षो में नजर नहीं आता..
देशभर में बेटियां आज भी अनेक धार्मिक रीतिरिवाज़ों, कुरीतियों, यौन अपराधों, घरेलू हिंसा, अशिक्षा, दहेज़ उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, उपेक्षा और तिरस्कार की जंजीरों में जकड़ी हुई हैं.
अगर हम एक आम दिन पर महिला को सम्मान , सुरक्षा और समान अधिकार नहीं दे सकते , उस के रहने के लिए एक ऐसे समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं, जहां वह किसी भी समय, किसी भी हालात में बिना घबराए बाहर जा सके तो फिर ये दिखावा क्यों? केवल नौ दिनों का यह पाखंड क्यों?