लेखक-शांतिस्वरूप त्रिपाठी और भारत भूषण श्रीवास्तव

अब धर्म और सैक्स का कारोबार फलफूल रहा है. युवाओं का ब्रेनवाश करने के लिए धर्म को सैक्स की चाशनी में डुबो कर बेचा जा रहा है. जीवन व देश के मुद्दों की बातें गायब हैं. वही हो रहा है जो सरकार व धर्म के ठेकेदार चाहते हैं. कभीकभार थोड़ा सच कोई परोस भी देता है तो धर्म के धंधेबाज व अंधभक्त इतना हल्ला मचाते हैं कि देश, धर्म तथा संस्कृति सब खतरे में पड़ते नजर आने लगते हैं. पेश है इस गोरखधंधे पर खास रिपोर्ट. धर्म व सैक्स हर इंसान की कमजोरी है. सैक्स के प्रति युवाओं में तो हमेशा जिज्ञासा रहती है. इसी कमजोरी को भुनाते सिनेमा व दृश्यश्राव्य यानी औडियोविजुअल माध्यम से जुड़े धंधेबाज लगातार अपनी जेबें व झोलियां भरने में लगे रहते हैं.

लेकिन फिल्मकारों के आका उन्हें धर्म को बेचने को भी मजबूर करते हैं कि बिकना असल में धर्म है, सैक्स नहीं. सिनेमा के इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं तो यह बात सामने आती है कि फिल्मकारों ने भी हमेशा हिंदू धर्म को और वह भी कट्टरपंथी और पौराणिकवादी को ही ज्यादा परोसा या बेचा है. इस में छोटे से बड़े स्टार कलाकारों, फिल्मकारों, निर्माताओं, लेखकों, गायकों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. ‘राजा हरिश्चंद्र’, ‘रामराज्य’, ‘अलख निरंजन’, ‘हरिदर्शन’, ‘बजरंग बली’, ‘हरिश्चंद्र तारामती’, ‘पीके’, ‘ओ माई गौड’, ‘जय संतोषी मां’, ‘मां संतोषी मां’, ‘शिरडी के साईं बाबा’, ‘लक्ष्मी’, ‘कृष्णा और कंस’, ‘पांडवाज द वौरियर्स’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘लवकुश’, ‘सती अनुसूया’, ‘सत्य साईं बाबा’, ‘यशोदा कृष्ण’, ‘वीर भीमसेन’, ‘पूजा के फूल’, ‘दादी मां’, ‘आदि पुरुष’ सहित हजारों हिंदू धर्म को बेचने वाली फिल्में बन चुकी हैं जिन में निर्माताओं ने धर्म को खुलेआम बेचा. 70 व 80 के दशकों में तो कुछ लेखकों ने अपनी फिल्मों में खुदा को भी बेचा. जब वीडियो कैसेट संस्कृति की शुरुआत हुई थी, तब लगा था कि कुछ रचनात्मक व स्वस्थ मनोरंजन मिलेगा. मगर बाद में वीडियो कैसेट निर्माता भी धर्म व सैक्स को ही बेचने लगे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...