लेखक-शांतिस्वरूप त्रिपाठी और भारत भूषण श्रीवास्तव

अब धर्म और सैक्स का कारोबार फलफूल रहा है. युवाओं का ब्रेनवाश करने के लिए धर्म को सैक्स की चाशनी में डुबो कर बेचा जा रहा है. जीवन व देश के मुद्दों की बातें गायब हैं. वही हो रहा है जो सरकार व धर्म के ठेकेदार चाहते हैं. कभीकभार थोड़ा सच कोई परोस भी देता है तो धर्म के धंधेबाज व अंधभक्त इतना हल्ला मचाते हैं कि देश, धर्म तथा संस्कृति सब खतरे में पड़ते नजर आने लगते हैं. पेश है इस गोरखधंधे पर खास रिपोर्ट. धर्म व सैक्स हर इंसान की कमजोरी है. सैक्स के प्रति युवाओं में तो हमेशा जिज्ञासा रहती है. इसी कमजोरी को भुनाते सिनेमा व दृश्यश्राव्य यानी औडियोविजुअल माध्यम से जुड़े धंधेबाज लगातार अपनी जेबें व झोलियां भरने में लगे रहते हैं.

लेकिन फिल्मकारों के आका उन्हें धर्म को बेचने को भी मजबूर करते हैं कि बिकना असल में धर्म है, सैक्स नहीं. सिनेमा के इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं तो यह बात सामने आती है कि फिल्मकारों ने भी हमेशा हिंदू धर्म को और वह भी कट्टरपंथी और पौराणिकवादी को ही ज्यादा परोसा या बेचा है. इस में छोटे से बड़े स्टार कलाकारों, फिल्मकारों, निर्माताओं, लेखकों, गायकों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. ‘राजा हरिश्चंद्र’, ‘रामराज्य’, ‘अलख निरंजन’, ‘हरिदर्शन’, ‘बजरंग बली’, ‘हरिश्चंद्र तारामती’, ‘पीके’, ‘ओ माई गौड’, ‘जय संतोषी मां’, ‘मां संतोषी मां’, ‘शिरडी के साईं बाबा’, ‘लक्ष्मी’, ‘कृष्णा और कंस’, ‘पांडवाज द वौरियर्स’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘लवकुश’, ‘सती अनुसूया’, ‘सत्य साईं बाबा’, ‘यशोदा कृष्ण’, ‘वीर भीमसेन’, ‘पूजा के फूल’, ‘दादी मां’, ‘आदि पुरुष’ सहित हजारों हिंदू धर्म को बेचने वाली फिल्में बन चुकी हैं जिन में निर्माताओं ने धर्म को खुलेआम बेचा. 70 व 80 के दशकों में तो कुछ लेखकों ने अपनी फिल्मों में खुदा को भी बेचा. जब वीडियो कैसेट संस्कृति की शुरुआत हुई थी, तब लगा था कि कुछ रचनात्मक व स्वस्थ मनोरंजन मिलेगा. मगर बाद में वीडियो कैसेट निर्माता भी धर्म व सैक्स को ही बेचने लगे.

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उस के बाद दूरदर्शन पर जब टीवी सीरियलों की शुरुआत हुई तो ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’ जैसे पारिवारिक धारावाहिक प्रसारित हुए लेकिन जल्द ही दूरदर्शन ने भी ‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘श्रीकृष्ण’ सहित कई धार्मिक धारावाहिकों का प्रसारण करते हुए धर्म को बेचना जारी कर दिया. पारिवारिक धारावाहिकों में भी जम कर अंधविश्वासों में विश्वास दिलाया गया है और विज्ञान व तर्क को हलका दिखाया गया – बारबार, अनेक बार. सैटेलाइट चैनलों ने अपनी शुरुआत के साथ ही ‘किचन पौलिटिक्स’ परोसते हुए नारी को नागिन के ही रूप में पेश किया. यह भी धार्मिक था क्योंकि धर्म ही औरतों को पापयोनि की जन्मी मानता है. फिर धीरेधीरे सैटेलाइट चैनल भी यह हिंदू पारंपरिक धर्म बेचने लगे.

आज भी टीवी पर धार्मिक धारावाहिक ही सब से ज्यादा परोसे यानी बेचे जा रहे हैं और वे बिक भी रहे हैं यानी दर्शकों का एक बड़ा वर्ग उन्हें देख रहा है. ऐसे धारावाहिकों का प्रचारप्रसार हर मंदिर व प्रवचन के माध्यम से भी होता है. धर्म के इन कारोबारियों ने प्रसार माध्यमों के जरिए बच्चों को भी नहीं बख्शा है. गणेश और कृष्ण को उन की सम झ के हिसाब से वीडियो तैयार कर उन तक पहुंचाए जा रहे हैं. दरअसल, इस पूरे कारोबार में नया कुछ है तो इतना कि धर्म और सैक्स बेचने का प्लेटफौर्म सिर्फ पाठ और प्रवचन नहीं बल्कि वक्त के हिसाब से टीवी व मोबाइल स्क्रीन में बदल गया है. यह एक और प्रसार माध्यम आ गया है लेकिन परोसा तो वही पुराना जा रहा है जिस से लोगों की कमजोरी को नकदी में भुनाया जा सके और उन्हें धर्म का गुलाम बनाया जा सके. हिंदी फिल्मों का हमेशा से ही यह ट्रैंड रहा है कि कहानी कुछ भी हो और उस की मांग हो न हो, उस में कैसे भी भगवान जरूर ठूंसा जाए.

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75 फीसदी फिल्मों के टाइटल ही किसी श्लोक और देवीदेवता की स्तुति से शुरू होते हैं. पूजा करती बूढ़ी दादी या मां अपवादस्वरूप ही किसी फिल्म में नहीं दिखाई देती. शायद ही ढूंढ़े से कोई फिल्म मिलेगी जिस में मंदिर का दृश्य न हो. यह सब बेवजह नहीं होता. इस का मकसद दर्शक की धार्मिक भावनाओं को भुनाना भी होता है और उसे धर्म का ग्राहक बनाए रखना भी. एक सटीक मिसाल अमिताभ बच्चन अभिनीत हिट फिल्म ‘दीवार’ है जिस में नायक को पूरी फिल्म में नास्तिक दिखाया गया है लेकिन अंतिम दृश्य में उसे ईश्वर की शरण में जाते उस की महत्ता स्वीकार करनी पड़ती बताया गया है. आज का ओटीटी प्लेटफौर्म इस मानसिकता का अपवाद नहीं है क्योंकि उस का मकसद भी वही है जो फिल्म के निर्मातानिर्देशक का रहता है- धर्म के लिए पैसे बनाना. क्योंकि उन्हें भी विश्वास है कि उन का बेड़ा पार तो कोई देवीदेवता ही करेगा. तकनीक की प्रगति के चलते 2008 में रिलायंस इंटरटेनमैंट ने पहला ओटीटी प्लेटफौर्म ‘बिगफ्लैक्स’ लौंच किया जिस की तरफ लोगों का ध्यान न के बराबर ही गया.

उस के बाद 2010 में डिगिविवि ने ‘नैक्स्ट जीटीवी’ लौंच किया था. जब ‘डिट्टो टीवी’ और ‘सोनी लाइव’ जैसे ओटीटी प्लेटफौर्म्स की शुरुआत हुई तो लोगों का ध्यान ओटीटी प्लेटफौर्म्स की तरफ गया. 2015 में ‘नैटफ्लिक्स’ का आगमन हुआ और फिर धीरेधीरे ओटीटी प्लेटफौर्म्स की बाढ़ आ गई. सैंसर के भय से मुक्त ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर बोल्ड व सत्यपरक कंटैंट परोसने के नाम पर देखते ही देखते हिंसा व सैक्स भी बेचे जाने लगे. निर्माता धर्म की घुट्टी भी पिला देते और सैक्स की डोज भी दे देते हैं. 2016 में केंद्र सरकार द्वारा सौ फीसदी एफडीआई का कानून बना दिए जाने के बाद विदेशी पैसे के बल पर ओटीटी प्लेटफौर्म्स परवान चढ़ने लगे.

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सभी ओटीटी प्लेटफौर्म्स मान बैठे कि अब उन्हें हर तरह की आजादी मिल गई है जिस में धर्म को भी बेचने की आजादी निहित है. धीरेधीरे बड़ेबड़े फिल्मकार व कलाकार वैब सीरीज करने लगे. 2018 में अनुराग कश्यप व विक्रमादित्य मोटवाणे ने विक्रम चंद्रा के 2006 में छपे उपन्यास ‘सैक्रेड गेम्स’ पर अपराध, रहस्य व रोमांच प्रधान वैब सीरीज ‘सैक्रेड गेम्स’ बनाई जिस का प्रसारण ‘नैटफ्लिक्स’ पर 6 जुलाई, 2018 से शुरू हुआ. इस में सैक्स, हिंसा व गंदी गालियों का सैलाब नजर आया. इसे उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली. उस के बाद इस का दूसरा सीजन 2019 में आया जिस में कहानी को विस्तार देते हुए पूर्णरूपेण धर्म को बेचा गया. इस में पंकज त्रिपाठी ने धर्मगुरु ‘खन्ना गुरुजी’ का किरदार निभाया. इस बार ‘सैक्रेड गेम्स’ को अपेक्षित सफलता तो नहीं मिल पाई मगर ओटीटी प्लेटफौर्म की सम झ में आ गया कि धर्म को बेच कर तिजोरियां भरी जा सकती हैं.

यह धर्म के ठेकेदारों की सोचीसमझी साजिश है. वे हमेशा धर्म और सैक्स को साथ रखते आए हैं. देवदासियां मंदिरों में हों या मंदिर के बाहर, लगभग हर तीर्थस्थल में बड़ा वेश्या बाजार अवश्य होता है. इलाहाबाद और उज्जैन भी इस के उदाहरण हैं और दक्षिण के कई तीर्थस्थल भी. एक सर्वे के अनुसार, इंटरनैट के आने के बाद से लगातार अश्लीलता के बाजार पर कब्जा जमाने के लिए एक होड़ सी मची है. मगर अश्लीलता के खिलाफ उठती आवाज के बीच सभी ओटीटी प्लेटफौर्म्स धर्म, खासकर हिंदू धर्म, को ले कर विवाद पैदा कर सकने वाले दृश्य रचने शुरू कर अपने दर्शक बढ़ाने के एकसूत्रीय कार्यक्रम में लग गए. हर किसी को धर्म की बहाली या धर्म को दरकिनार कर या धर्म के खिलाफ बयानबाजी करना असान भी लगता है. ओटीटी प्लेटफौर्म्स इस के लिए बेहतरीन माध्यम बन कर सामने आया है.

बिना किसी रोकटोक व नियंत्रण के यहां कुछ भी परोसने की अनुमति के कारण इस बाजार को लीड करने वाले लोगों को एक खुला मंच मिल गया. यह धर्म की पोल खोलने के लिए नहीं किया जा रहा, बल्कि धर्मरक्षा के नाम पर युवाओं को तैयार करने का बहाना बनाया जा रहा है. यह आजादी, दरअसल, ओटीटी को अपने शिकंजे में कसने की सरकारी साजिश है जिस से इस प्लेटफौर्म पर सरकार व धर्मविरोधी दृश्य और कृत्य एक सीमा से ज्यादा न दिखाए जाएं. मौजूदा भगवा सरकार केवल मीडिया ही नहीं मैनेज कर रही है बल्कि ओटीटी को भी अपने तरीके से हांकने की कोशिश कर रही है.

धार्मिक विवादों से उसे इस हद तक ही परहेज है कि उस में सनातन धर्म विरोधी सामग्री प्रभाव छोड़ने लायक न हो. हां, जो खुलेआम हो रहा है उस के फिल्मांकन पर उसे एतराज नहीं. इस की बेहतर मिसाल ‘आश्रम’ वैब सीरीज है जो पंडेपुजारियों की नहीं, बल्कि उन गैरसनातनी बाबाओं की पोल खोलती है जो सनातन धर्म की आड़ में अपना साम्राज्य खड़ा किए हुए हैं, मसलन आसाराम बापू और रामरहीम जैसे दर्जनों बाजारू बाबा. ‘आश्रम’ के निर्माताओं को अनुमति मिल गई क्योंकि ये गैरसनातनी बाबाओं के खिलाफ एक माहौल पैदा कर रहे हैं और उन्हें चुनौती दे रहे हैं. जो सनातनी धर्मस्थल हैं उन की पोलपट्टी खोलने की हिम्मत किसी में नहीं है. अपनी कमाई के लिए पूर्व में तय की गई मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के तहत वैब सीरीज के नाम पर निर्माता ऐसा ही कंटैंट तैयार करने लगे जिस में वे धर्म को बेच सकें.

इन लोगों ने धर्म की मुखालफत के बहाने अपनी वैब सीरीज में धर्म का प्रचार ही किया, फिर चाहे वह प्रकाश झा की बौबी देओल अभिनीत वैब सीरीज ‘आश्रम’ ही क्यों न हो. इस मामले में कुछ शातिर लोगों ने भी इन के साथ एक गठजोड़ सा तैयार कर लिया और देश में एक खास तरह का नैरेटिव पेश करने के लिए वैब सीरीज व फिल्में बनवाई जा रही हैं. यह लगातार देखने में आ रहा है कि इन वैब सीरीज में जानबू झ कर धर्म से जुड़े ऐसे दृश्य रखे जाते हैं जिन से विवाद पैदा हों, लोगों की जिज्ञासा इस विवाद को जानने की हो और उन की वैब सीरीज हिट हो जाए. अधिकांश लोग इस में सफल हो रहे हैं और यह बड़े ठेकेदारों के एजेंडे के अनुसार है. वैब सीरीज खुल कर धर्म पर टीकाटिप्पणी के विवादों से आबाद होती जा रही हैं. महज दोढाई साल के अंदर ‘सैक्रेड गेम्स’ के बाद ‘ए सुटेबल बौय’, ‘क्वीन’, ‘घोउल’, ‘लीला’, ‘गौडमैन, ‘पाताललोक’, ‘आश्रम’, ‘मसीहा’, ‘मिर्जापुर’ व ‘तांडव’ सर्वाधिक विवादों में रहे. इन में से ‘तांडव’, ‘आश्रम’, ‘पाताललोक’, ‘ए सूटेबल बौय’, ‘सैक्रेड गेम्स’ वैब सीरीज पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगे. वहीं ‘मिर्जापुर’, ‘पाताल लोक’, ‘सैक्रेड गेम्स’ में गालियों के साथ हिंसा का महिमामंडन करने के भी आरोप लगे. मगर ‘तांडव’ को छोड़ बाकी 13 वैब सीरीज से विवादित दृश्य या संवाद नहीं हटे. इन 13 वैब सीरीज में निर्माताओं के माफीनामे के बाद लोग उस बारे में भूल भी गए.

लेकिन इन विवादों के बावजूद धर्म को बेचने वाली ये वैब सीरीज सर्वाधिक पसंद की गईं. धर्म समर्थकों को एकजुट करने के लिए इन वैब सीरीजों ने खास काम किया. ‘आश्रम’ बनाने के पीछे की मंशा बारीकी से देखी जाए तो जातिगत भेदभाव को उकेरने की ज्यादा लगती है. दलितों को समझाया गया है कि उन के धार्मिक गुरु तो फ्रौड हैं, उन की बातों में न आओ. आम गुरु के चरणों में जाओ जो छूने भी न दे. सनातन धर्म की व्यवस्था का सच दिखाने की जुर्रत कोई निर्माता नहीं कर पाता. उलटे, यह जताने की कोशिश की जाती है कि यह लूटखसोट, राजनीतिक व्यभिचार और मारकाट वे बाबा लोग ज्यादा फैलाते हैं जो मूलतया गैरसनातनी हैं. जातिगत भेदभाव तो नदी किनारे के मंदिरमठों में खुलेआम होता है.

उसे चूंकि ओटीटी हाथ भी नहीं लगाता, इसलिए उसे दी गई कथित आजादी सरकार को कठघरे में खड़ा करती है. कोरोना महामारी के वक्त जब लोग घरों में बंद थे, उस काल में हर ओटीटी प्लेटफौर्म ने जम कर धर्म को बेचा. उस वक्त इन ओटीटी प्लेटफौर्म्स के कर्ताधर्ताओं ने यह खुशफहमी पाल ली थी कि उन के पास किसी भी धर्म की बहाली या धर्म को हाशिए पर डालने का पूरा हक है. इस हक के तहत वे विवाद पैदा कर अपने ओटीटी प्लेटफौर्म की वैब सीरीज व फिल्म के साथ ही अपने ओटीटी प्लेटफौर्म को भी सफलता के नए मुकाम पर पहुंचा सकते हैं. मजेदार बात यह है कि धर्म के प्रति लोगों की कमजोर नस को दबाते हुए लगभग सभी विदेशी ओटीटी प्लेटफौर्म्स अपनी स्थिति मजबूत कर चुके हैं.

‘सैक्रेड गेम्स’ के बाद ‘आश्रम’, ‘पाताललोक’, फिल्म ‘लक्ष्मी बम’ (पहले इस फिल्म का नाम ‘लक्ष्मी’ था जिसे बदलवाया गया) को ले कर कई विवाद हुए. विक्रम सेठ के उपन्यास पर मीरा नायर वैब सीरीज ‘ए सूटेबल बौय’ ले कर आईं. इस वैब सीरीज की पटकथा के अनुसार एक मुसलिम युवक से हिंदू युवती प्रेम करती है और उन के बीच के चुंबन दृश्य मध्य प्रदेश के महेश्वर मंदिर के प्रांगण में फिल्माए गए हैं. सीरीज के अंदर इस चुंबन दृश्य के दौरान मंदिर परिसर में लोग पूजापाठ के लिए आते दिख रहे हैं. सो, कुछ हिंदू संगठन व करणी सेना ने घोर आपत्ति जताई. हर विवाद कट्टर हिंदू समर्थक पैदा करता है. उन्हें अंतरजातीय रिश्तों के साथ ही मंदिर के अंदर के चुंबन दृश्यों पर आपत्ति थी. अफसोस की बात यह है कि इस में ही बाकायदा धर्म का प्रचार करते हुए एक व्यापारी मसजिद के सामने भगवान शंकर का भव्य मंदिर बनवा कर उस का उद्घाटन समारोह आयोजित करता है तो उस दृश्य पर किसी ने भी उंगली न उठाई.

यही वह दोहरी मानसिकता है जिस पर कट्टर हिंदुओं को कोई एतराज नहीं, बल्कि इसे शह दी जाती है. अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म ‘लक्ष्मी बम’ में तो धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने की सारी सीमाएं पार कर डालीं, पर सरकार के कानों पर जूं तक न रेंगी क्योंकि वे भगवा रंग में रंगे जो हैं. ‘तांडव’ विवाद ने सरकार को पकड़ाया नया हथियार वैब सीरीज ‘तांडव’ में हिंदू धर्म, खासकर भगवान शंकर, को ले कर की गई टिप्पणी ने सरकार के अंदर हलचल पैदा कर दी. वास्तव में वैब सीरीज ‘तांडव’ में जाति व धर्म के आधार पर लोगों को बांटने, दलितों का अपमान करने के साथ ही फूहड़ता, नग्नता, सैक्स, अवैध संबंध, शराब, गांजा, हत्याओं की भरमार है. भाजपा समर्थकों, हिंदू संगठनों को इन पर कोई आपत्ति न हुई. इन सभी को आपत्ति हुई तो इस वैब सीरीज के एक दृश्य पर जिस में शिवा का किरदार निभाने वाले अभिनेता जीशान अय्यूब कालेज के एक नाटक में भगवान शिव का रूप धर कर कुछ गलत बातें करते हैं.

और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर ‘बैन तांडव’ ट्रैंड करने लगा. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में इस के निर्माता, निर्देशकों समेत 5 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. मध्य प्रदेश के जबलपुर और ग्वालियर में भी केस दर्ज कराए गए. मगर केस दर्ज कराने वाले कट्टर लोग इसी वैब सीरीज में दलित के अपमान किए जाने व पुलिस अधिकारी द्वारा यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को आतंकवादी कहे जाने पर चुप रहे, क्योंकि ऐसा होना वे चाहते हैं और ऐसा मानते भी हैं. सरकार की सोच वैब सीरीज पर धर्म के साथ खिलवाड़ करने के आरोपों ने सरकार को चेताया कि आधुनिक युग के सर्वाधिक सशक्त व ताकतवर डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने के नाम पर इन के सहारे धर्म का प्रचार ज्यादा जोरदार तरीके से किया जा सकता है. परिणामतया इन विवादों का सहारा ले कर केंद्र सरकार ओटीटी प्लेटफौर्म्स व सोशल मीडिया को ले कर गाइडलाइंस ले कर आई और इन पर सरकारी अंकुश लगाने का प्रयास किया.

मगर सरकार ने किसी को भी सजा देने का प्रावधान न दे कर सिर्फ दबाव बनाने का काम किया है. सरकार का यह तरीका कारगर सिद्ध हुआ. अब ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर जिस तरह की हलचल है उस से एक बात साफ नजर आती है कि उन्हें धर्म को बेचने का लाइसैंस मिल गया है. सरकार के दबाव के ही चलते ओटीटी प्लेटफौर्म ‘एमेजौन’ ने फिल्म ‘रामसेतु’ का निर्माण शुरू कर दिया. जो काम पहले मनोज कुमार जैसे निर्माता, निर्देशक व अभिनेता ‘उपकार’ और ‘पूरब पश्चिम’ जैसी फिल्मों के जरिए किया करते थे वह अब अक्षय कुमार सरीखे नायकों से करवाया जा रहा है. फिल्म ‘रामसेतु’ का प्रकरण अक्षय कुमार ने 2020 में दीवाली के अवसर पर फिल्म ‘रामसेतु’ का निर्माण शुरू करने की घोषणा की थी जिस में जैकलीन फर्नांडिस के साथ अक्षय कुमार स्वयं अभिनय करने वाले थे.

इस फिल्म के रचनात्मक निर्माता के रूप में डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी का नाम है जोकि अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘पृथ्वीराज चौहान’ के निर्देशक हैं. मगर फिल्म ‘रामसेतु’ की शूटिंग शुरू नहीं हो पाई. इसी बीच वैब सीरीज ‘तांडव’ को ले कर काफी विवाद हो गया. उत्तर प्रदेश में कई जगह ‘तांडव’ के निर्माता, कलाकारों व ‘एमेजौन प्राइम’ के खिलाफ एफआईआर कराई गई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमेजौन प्राइम की इंडिया हैड अपर्णा पुरोहित की जमानत याचिका यह कह कर खारिज कर दी कि उन्हें जितना नुकसान पहुंचाना था वह पहुंचा चुकीं, अब तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.’’ उस के बाद परदे के पीछे कुछ बैठकें हुईं जिन से कोई ठोस हल न निकला. बहरहाल सुप्रीम कोर्ट से अपर्णा पुरोहित को जमानत मिल गई. इस के 3 दिनों बाद ‘एमेजौन’ प्राइम ने घोषित किया कि वह भारत में पहली हिंदी फिल्म ‘रामसेतु’ का निर्माण कर रहा है. ‘रामसेतु’ के अन्य निर्माता अक्षय कुमार, रचनात्मक निर्माता डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं. अक्षय कुमार व जैकलीन फर्नांडिस इस के कलाकार हैं. फिर आननफानन सभी लोग अयोध्या पहुंच गए. फिल्म का मुहूर्त संपन्न हुआ और अक्षय कुमार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी संग बंद कमरे में बैठक भी की.

उत्तर प्रदेश में एमेजौन पर जो एफआईआर हुई थी, उस पर क्या कार्रवाई हुई, पता नहीं. सोशल मीडिया की ओर झुकाव इंटरनैट के आम होने के बाद देश के युवाओं का सब से अधिक झुकाव सोशल मीडिया की तरफ हो गया है. ऐसे में एंटरटेनमैंट के एक आसान माध्यम के तौर पर ओटीटी प्लेटफौर्म बड़ी तेजी से उभरा है. एक ही जगह मनोरंजन की सारी सुविधा इस में मौजूद है. युवा तबका इस तरफ काफी आकर्षित भी है और यह बात सरकार में बैठे धर्मभीरु लोग भी अच्छे से जानते हैं. इसलिए वे यह भलीभांति सम झते हैं कि इस नई उभर रही चीज पर उन की राजनीति के अनुसार नियंत्रण रखे जाने की सख्त जरूरत है. 42वें संशोधन ने भारत के संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा जिस से भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश बन गया. वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 हमें समानता का अधिकार भी देता है.

इस के अनुसार, किसी भी नागरिक के साथ उस के धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. यह धर्मनिरपेक्षता के विश्वासियों और गैरविश्वासियों दोनों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है. इसलिए यह लोगों को स्वतंत्रता का अधिकार देता है. यह धर्म की मान्यताओं और पारंपरिक मूल्यों की भी रक्षा करता है. इस में हिंदू बनाम मुसलिम का कोई मसला नहीं है. भारत देश के संविधान के अनुसार, इसलामिक फोबिया या हिंदू फोबिया के लिए कोई जगह नहीं है. अब तक तो ओटीटी प्लेटफौर्म्स धर्म को बेचते हुए धर्म को हाशिए पर डालने या धर्म के खिलाफ बातें कर रहे थे लेकिन अब जिस तरह से वर्तमान सरकार और उसे चलाने वाले धार्मिक संगठनों ने अपरोक्ष दबाव डाला है और ओटीटी प्लेटफौर्म्स अब हिंदू धर्म की बहाली व हिंदू धर्म का महिमामंडन करने वाली वैब सीरीज व फिल्में बनाने के लिए तत्पर हुए हैं वह पूरी तरह से गलत और समाज व देश को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाने वाला है.

धर्म और भारतीय वैब सीरीज का रिश्ता अत्यंत अटूट नजर आता है जो एकदूसरे का दामन छोड़ने को तैयार नहीं, चाहे धर्म की बहाली करना हो या उसे दरकिनार करना. लेकिन अब तो सरकार स्वयं ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर दबाव डाल कर वैब सीरीज के माध्यम से धर्म का प्रचार करवाने पर आमादा नजर आ रही है. वही विवाद का कारण बनी है. लेकिन हां, विवाद पनपने से वैब सीरीज के दर्शक बढ़े और ओटीटी प्लेटफौर्म्स अपनी तिजोरियां भरने में कामयाब हो रहे हैं. धर्म के नाम पर मंदिरों में भी अकूत संपत्ति जमा है और धर्म के भक्त व्यापारियों के पास भी. आम किसान, मजदूर, दलित आदिवासी तो ओटीटी को देख भी नहीं सकता क्योंकि यह महंगा है पर वह उस नैरेटिव का शिकार हो चुका है जो ओटीटी खड़ा कर रहे हैं.

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