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Marriage : शादी से पहले अगर लड़के या लड़की की हो जाए अचानक मृत्यु

Marriage : शादी से पहले यदि किसी लड़की या लड़के की अचानक मृत्यु हो जाए तो परिवार वाले से अधिक ट्रामा उस के पार्टनर को झेलना पड़ता है, उसे गहरा आघात लगता है. ऐसे में कैसे डील करें.

इकलौती बेटी पूनम की शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. 15 दिन बाद उस की शादी दा. आलोक से होने वाली थी. वह खुश थी और खूब सारी शौपिंग भी कर चुकी थी. उसे अधिक खुशी इस बात से भी थी कि वह अपने मनपसंद साथी आलोक के साथ शादी कर रही थी, जिसे वह पिछले 10 सालों से जानती थी.

आलोक से हर दिन उस की बातचीत औफिस जाते हुए हो जाया करती थी, जिस में वह पूरे दिन की प्लानिंग का जिक्र करती थी, लेकिन जब आलोक का फोन एक सोमवार की सुबह नहीं आया, तो पूनम चिंता में पड़ गई. उस ने कई बार आलोक को फोन किया, उस का फोन बज रहा था, लेकिन कोई उठा नहीं रहा था, फिर उस ने आलोक के पेरैंट्स और बहन को फोन किया, कोई फोन उठा नहीं रहा था. पूनम को लगने लगा कि कुछ गड़बड़ है, उस ने अपनी मां को फोन किया, तो पता चला कि आलोक को ले कर सभी अस्पताल गए हैं, वह भी उन के पिता के साथ वहीँ जा रही है.
पूनम औफिस से छुट्टी ले कर घर पहुंचती है, तो पता चलता है कि उस के होने वाले पति आलोक को सांप ने डस लिया है. जब रात में उस की उल्टी शुरू हुई, असहज महसूस हुआ और बेहोश हो गया, तो सभी डर गए और उन्हें ले कर अस्पताल पहुंचे. डाक्टर ने इसे करैत बाइट बताया, जिस का इलाज किया गया और 7 दिन के बाद आलोक ठीक हो गया और उस की शादी पूनम से हो गई.

परिवार की एलर्टनेस ने बचाई जान

दरअसल आलोक को परिवार वालों की एलर्टनेस की वजह से समय पर इलाज मिला, जिस से वह ठीक हो गया. इस बारे में स्नेक बाइट एक्सपर्ट डाक्टर सदानंद राऊत कहते हैं कि यहां आलोक को इसलिए बचाया जा सका, क्योंकि उस के परिवार वाले समय से अस्पताल पहुंचे हैं जिस से उन्हे एंटी वेनम और वेनटिलेटर पर रख कर बचाया जा सका. थोड़ी सी देर होने पर उस की जान जा सकती थी, क्योंकि उसे काटने वाला सांप सब से अधिक विषाक्त होता है, जिस में समय पर इलाज न मिलने पर रोगी की मृत्यु हो जाती है.

डाक्टर आगे कहते हैं कि असल में सांप अधिकतर यंग बच्चों और टीनेजर्स को ही काटते हैं. आलोक की जिंदगी परिवार के लिए कीमती रही साथ ही उस की होने वाली पत्नी पूनम भी सदमें से बच गई.

ऐसा देखा गया है कि करैत अधिकतर रात के अंधेरे में चूहों का शिकार करने के लिए निकलते हैं, ऐसे में नीचे लेटे हुए किसी भी व्यक्ति के ऊपर से गुजरता है, व्यक्ति के थोड़ा सा हिलने पर वह उसे डस लेता है.

करैत अधिकतर रात के 12 बजे के बाद से सुबह 5 बजे तक में ही काटता है, इस के काटने में अधिक लक्षण नहीं दिखाई, न ही अधिक सूजन होती है और न ही खून निकलता है, ऐसे में इंसान इसे चींटी या चूहे की बाइट समझते हैं और झाड़फूंक या आयुर्वेदिक दवाइयां लेते हैं, जिस से रोगी को बचाना मुश्किल होता है. इस में रोगी को पहले उलटी, कन्वल्शन, बेहोशी, कोमा और फिर मृत्यु होती है.

मातम का माहौल

यहां पर पूनम को उस का पति मिल गया, लेकिन नीलिमा के साथ ऐसा नहीं हुआ. उस के होने वाले पति गिरीश की शादी से 2 दिन पहले अचानक हार्ट अटैक में मृत्यु हो गई. मृत्यु के पिछले रात को सारा परिवार शादी की खुशियां मना रहा था. गिरीश भी सब के साथ डांस करना और गाने गा रहा था, लेकिन उस की ये खुशी उस पर ही भारी पड़ी. रात को सोया गिरीश सुबह न उठा. अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने उसे हार्ट एटैक का केस बताया और मृत घोषित किया.

कुछ घंटे बाद जहां परिवार को रंगबिरंगे कपड़े पहन कर जश्न मनाना था, वहीं सादे श्वेत वस्त्रों में इकट्ठा हुआ. सभी के चेहरे दुख और पीड़ा से भरे हुए थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था सांत्वना किसे, कैसे दिया जाए. मातापिता का इकलौता संतान अब इस दुनिया में नहीं रहा. जिस होटल में शादी की खुशियां मनाई जाने वाली थी, वहीं मातम मनाया गया.

लगता है भारी सदमा

उत्तर प्रदेश के हाथरस के गांव भोजपुर निवासी शिवम से मोहिनी की पिछले साल तय हुई थी. कृष्णाबाग कालोनी स्थित मैरिज होम में बरात आनी थी. हाथरस में भात की रस्म के दौरान नाचतेनाचते शिवम गिर गया और उस की हार्ट एटैक हो गई. शिवम की मौत की खबर दुल्हन के घरवालों को मिली तो मानो उन पर वज्रपात हो गया.

मनपसंद की शादी तय होने पर मोहिनी ने बड़े सपने संजोए थे कि एकदूसरे का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे. शिवम की मौत की खबर सुनते ही मोहिनी की तबीयत बिगड़ गई. उस ने खाना छोड़ दिया. सदमा इतना गहरा था कि वह किसी से बात नहीं करती थी. अपने हाथों में लगी मेहंदी को देख कर चीख उठती कि मैं भी शिवम के पास जाऊंगी.

मोहिनी के पिता बनी सिंह जूता फैक्टरी में मजदूरी कर महज 12 हजार रुपये कमाते हैं. मोहिनी की शादी के लिए ओवरटाइम काम कर के रुपये इकट्ठे किए थे. जमीन भी गिरवी रख कर इंतजाम किया. इस हादसे से दोनों परिवार में मातम छा गया.

शादी से पहले ऐसी अचानक हुई दुर्घटना हर किसी के लिए सदमे जैसा होता है, लेकिन इस से निकलना जितना मुश्किल पेरैंट्स को होता है, उस से कहीं अधिक उस लड़की या लड़के के लिए होता है, जो उस विवाह बंधन में बंधने जा रहे थे. उन के जीवन की नई शुरुआत होने वाली थी, जो बीच में हादसे का शिकार हो गए.

जानें एक्सपर्ट राय

इस बारे में मनोवैज्ञानिक राशीदा कपाडिया कहती हैं कि शादी से चंद दिन पहले लड़के या लड़की में किसी एक की अचानक मृत्यु हो जाने पर बहुत बड़ा ट्रोमा में बचे हुए लड़का या लड़की और पूरा परिवार चला जाता है, क्योंकि अगर किसी लड़के की डेथ शादी से ठीक पहले हुई है, तो पूरा परिवार लड़की को अपशकुन समझने लगते हैं और उस की शादी बाद में होना मुश्किल हो सकता है और लड़की के दुख को लोग कम समझ पाते हैं.

जबकि शादी से पहले किसी लड़की की अचानक मृत्यु को परिवार वाले भले ही उतनी गंभीरता से न लें, लेकिन अगर उस लड़के ने उस लड़की से प्यार किया हो और उस की मृत्यु हो गई हो, तो उसे गहरा आघात लगता है और कई बार लड़का बाद में किसी लड़की से शादी करने से भी इनकार करता है, क्योंकि विवाह उन के संबंधों की एक नई शुरुआत होती है. ऐसे में कुछ बातों का उन्हें ध्यान देने की जरूरत है, ताकि फिर से वे नई जिंदगी की शुरुआत कर सकें, सुझाव निम्न है,

* कई बार लड़कियां या लड़के डिप्रेशन में जा सकते हैं. कुछ बुरी आदतों का शिकार हो सकते हैं, ऐसे में जरूरी है कि वह अपने परिवार वालों या दोस्तों के बीच रहें, ताकि उन्हें उन का सहारा मिलता रहे.

* अकेले कभी न रहें, अकेलापन व्यक्ति के जीवन का सब से खराब दौर होता है, जो व्यक्ति उन्हें अबतक सहयोग देता आया है और साथ रह सकता है. उन से बातचीत करते रहना चाहिए और अधिक से अधिक समय बिताते रहना चाहिए. सदमे के लिए 30 दिन से अधिक समय खुद को न दें और उस से निकल कर दैनिक काम काज में लग जाना चाहिए, मसलन घर के काम, वर्कआउट, जौब या बिजनैस आदि जो भी हो उसे करें और पुरानी रूटीन को फौलो करते रहना चाहिए. उन्हें पीछे हटना नहीं चाहिए.

* स्वास्थ्य पर ध्यान दें, संतुलित आहार लें, जंक फूड को अवौइड करें, क्योंकि ये किसी भी लड़के और लड़की के जीवन का सब से कठिन दौर होता है, जो समय के साथसाथ ठीक होता चला जाता है, लेकिन इस में सब से अधिक मानसिक संतुलन बिगड़ता है, जिस से शारीरिक समस्या उत्पन्न होती है.

* इस समय अधिकतर युवा को अपने कजिन्स या अच्छे दोस्त का सहयोग लेना चाहिए, क्योंकि कई बार ऐसी दुर्बल मानसिक अस्थिरता में आसपास के गलत लोग उन्हें सहानुभूति दिखाने लगते हैं, जो पहले तो अच्छा लगता है, लेकिन बाद में कई बार घातक हो सकता है. फिर से दिल टूटने के चांसेज रहते हैं.

अपने अनुभव के बारे में राशिदा कहती हैं कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि शादी वाले लड़के की मृत्यु के बाद उस की शादी दोनों परिवार राजीखुशी से कुछ दिनों बाद उस के बड़े या छोटे भाई के साथ करवा देते हैं, क्योंकि शादी की तैयारी लोग कई महीनों या सालों पहले से करने लगते हैं. पेरैंट्स एक बड़ी धनराशि इस पर खर्च किए होते हैं. ऐसे में लड़की को थोड़ी समस्या उस लड़के से सामंजस्य बिठाना होता है, जो कुछ दिनों बाद ही ठीक हो पाता है.

वैसे ही अगर किसी लड़की की मृत्यु शादी से तुरंत पहले हुई हो तो लड़के की शादी उस की बड़ी या छोटी बहन से करवाते हैं, लेकिन ऐसा तभी संभव होता है, जब परिवार में कोई बिनब्याही लड़की या लड़का हो. आज के परिवार में ये करना संभव नहीं होता, क्योंकि अधिकतर लड़के या लड़की अपने पेरैंट्स के अकेले संतान होते हैं. साथ ही लड़की या लड़के की रजामंदी भी आज बहुत बड़ी बात होती है.

इस प्रकार शादी से तुरंत पहले लड़के या लड़की की मृत्यु एक बड़ा हादसा है, जिसे पूरे परिवार के साथसाथ लड़की और लड़का दोनों को ही मानसिक समस्या से गुजरना पड़ता है. ऐसे में जरूरत होती है, धैर्य और मानसिक शांति को बना कर आगे बढ़ने की, जिस में परिवार का साथ देना बहुत आवश्यक है, ताकि लड़का या लड़की उस हादसे से खुद को बाहर निकाल सकें.

Guest : ऐसे मेहमान न बनें

Guest : घर में मेहमान आते हैं तो चहलपहल बनी रहती है. लेकिन मेहमान अगर मेहमाननवाजी कराने में आए तो मेजबान के पसीने छूट जाते हैं और चिड़चिड़ापन होने लगती है. जरुरी है कि मेहमान कुछ एथिक्स का ध्यान रखें.

रेखा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, जब से उस ने सुना था कि उस के देवर के बेटे आशीष का एडमिशन पुणे के इंजीनिरिंग कालेज में हुआ है और देवर मोहित अपनी पत्नी रूपा और बेटी अंशिका के साथ उस के घर आ रहे हैं, वह उत्साहित थी. रेखा की एक ही बेटी थी रूही,जो इस समय कनाडा में जौब करती थी. रेखा के पति मनोज औफिस के टूर पर काफी व्यस्त रहते थे तो वह अब यह सोच कर काफी खुश थी कि देवरानी भी दिल्ली से पहली बार उन के घर पुणे आ रही है, कुछ दिन सब साथ रहेंगें, बातें करेंगें, महफिल जमेगी, खूब अच्छा टाइम पास होगा. मायका ससुराल सब दिल्ली में था, किसी का जल्दी पुणे आना नहीं होता था.

पूरा परिवार आया, रेखा ने अच्छे होस्ट की तरह सब की खूब मेहमाननवाजी की. सब की पसंद की खूब चीजें बना कर तैयारी कर रखी थीं. आशीष हौस्टल चला गया, मोहित का परिवार एक हफ्ता रुकने वाला था. मनोज टूर पर थे. रेखा का टूबैडरूम फ्लैट था, अब रूही भी बाहर थी तो उस का रूम पूरी तरह से खाली था. उस के देवर ने कहा, “भाभी, हम रूही के रूम में ही रह लेंगें.”
“हां, अंशिका मेरे रूम में सो जाएगी.”
“नहीं, ताई जी! मैं तो मम्मीपापा के साथ ही सोऊंगी.”
“अरे, अंशिका! तीनों को एक ही बेड पर सोने में दिक्कत होगी. तुम्हारे ताऊजी भी बाहर हैं, आराम से तुम मेरे साथ सो जाओ!”
रूपा ने कहा, “रहने दो, भाभी! कोई गद्दा हो तो रूही के रूम में नीचे बिछा देंगें, अंशिका नीचे सो जाएगी. असल में हम चाहते हैं कि एक ही रूम में रहें. गद्दा है न?”
“हां, है! निकाल देती हूं.”
रूही के रूम में गद्दा नीचे बिछा दिया गया, तीनों एक ही रूम में अपना सामान सेट कर के आराम करने लगे. अब अगले कुछ दिन रेखा के हैरान होने की बारी थी. वे तीनों उसी रूम में दिनरात रहते, खानेपीने या नहानेधोने निकलते.
रूपा ने कहा, “भाभी, हमारा आप का खानेपीने का टाइम अलग है, हम आराम से बाद में खाते हैं, आप खा लिया करो.”
तीन मेहमानों के घर में होते हुए रेखा घर में हमेशा की तरह अकेले बैठ कर खा रही होती. यही होता रहा, वे लोग जरूरी काम से ही रूम से बाहर आते, अपने रूम में ही या तो फोन ले कर बैठे रहते या आपस में बातें करते रहते.

रूम का दरवाजा भी आधे से ज्यादा बंद ही रहता, अंदर से हंसनेखिलखिलाने की आवाजें आती रहतीं. रेखा इंतजार करती रहती कि कब सब साथ बैठेंगें, बातें करेंगें, धीरेधीरे उसे समझ आ ही गया कि उन के घर को बस किसी होटल की तरह ही यूज़ किया जा रहा है. मेहमानों को रहने खाने का ठिकाना ही चाहिए था. कोई अपनापन नहीं, कोई साथ बैठना नहीं, कुछ भी ऐसा नहीं हो रहा था कि किसी बात पर खुश हुआ जाए कि घर में कोई अपना आया है. निराश मन से अपने सारे फर्ज पूरे कर रेखा ने मेहमानों को विदा तो कर दिया पर उसे यह बात कई दिनों तक सालती रही.
यह एक वास्तविक जीवन का उदाहरण है, कहीं आप भी तो यह गलती नहीं करते?

वहीँ दूसरी तरफ लखनऊ की रहने वाली रेनू अपने घर एक मेहमान परिवार के आने का अपना सुखद अनुभव बताते हुए कहती हैं, “मेरे पति अमित के एक दोस्त सुहास, अपनी पत्नी मीरा और दो बच्चे कुहू और पराग के साथ हमारे घर एक हफ्ते रुके. वे पराग के एडमिशन के लिए आए थे. वह एक हफ्ता इतना अच्छा समय था कि याद रहेगा. वे हम सब के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे. हम सब ने खूब बातें की, घर परिवार की, पुराने दिनों की, फोन को एक तरफ रख दिया गया था. खूब हंसे, गपें मारीं. उन्होंने अपना एक भी सामान इधरउधर नहीं फैलाया. हम अपने रोज के काम अपने रूटीन से करते रहे, उन की तरफ से कोई परेशानी नहीं हुई. वे जब भी कहीं गए तो कुछ न कुछ खाने का सामान ले कर आए. जाते हुए हमारी मेड को अच्छी टिप भी दी, बीचबीच में भी उसे कुछ दे रहे थे. कहीं भी गए, टाइम से आए, देर हुई तो हमें इन्फौर्म कर दिया. उन के बच्चे बिलकुल फोन में नहीं लगे रहे, मेरा खूब हाथ बटाते रहे, खाना खा कर सब लोग टेबल से सामान उठा कर किचन में रखते, मुझे किसी मेहमान के आने पर इतना आराम कभी नहीं मिला था.

आजकल हर इंसान अपने जीवन में बहुत व्यस्त है, कोई किसी के घर जाता है तो मेजबान को भी कुछ तो असुविधा होती ही है, बड़े शहरों के फ्लैट्स की सीमित जगह में मेहमानों के लिए सब व्यवस्था करनी होती है, ऐसे में मेहमानों का भी फर्ज होता है कि कई बातों का ध्यान रखें, जैसे कि –

– छोटेछोटे कामों में हाथ जरूर बटांएं.

– अपने छोटेछोटे काम खुद ही करें.

– हो सके तो घर के खाने बनने के समय ही सब के साथ ही खाना खाने की कोशिश करें जिस से घर की महिला पूरा दिन सब के अलगअलग टाइम पर खाना खाने के कारण ज्यादा व्यस्त न रहे. मेजबान के घर के हिसाब से अपनी दिनचर्या व्यवस्थित करें.

– कहीं बाहर जाएं और खाना बाहर ही खा कर आने का प्रोग्राम हो तो स्पष्ट कर दें कि आप खाना घर में नहीं खाएंगे, कई बार मेजबान महिला को यह बात स्पष्ट नहीं होती तो उस की मेहनत बेकार चली जाती है. उन्हें अपने आनेजाने की जानकारी दें.

– मेहमान बनने का मतलब यह नहीं है कि हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें. घरेलू कामों में सहयोग दें.

– जाने से पहले बिखरे कमरे को समेट दें, अपने पीछे गंदगी भरी निशानियां न छोड़ जाएं.

– हो सके तो रेनू के मेहमानों जैसे मेहमान बनें, फिर मेजबान आप को अपने घर बुलाने से कभी नहीं हिचकेगा.

Ujjain : अब सुर्ख़ियों में महाकाल दर्शन घोटाला, जानिए आप के दान का पैसा कैसे और कहां जाता है

Ujjain : उज्जैन के महाकाल मन्दिर दर्शन घोटाले की ऍफ़आईआर अभी दर्ज ही हो रही थी कि नई सनसनी वृन्दावन के इस्कान मन्दिर से आई कि यहाँ भी एक सेवादार करोड़ों का चूना लगाकर भाग गया. ऐसी खबरें हर उस मन्दिर से आए दिन आती रहती हैं जहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है जाहिर है यह भीड़ भगवान को पैसा चढ़ाने ही आती है जिसे मन्दिर के ही सेवादार झटक लें तो हैरानी किस बात की.

उज्जैन के महाकाल मन्दिर में 15 दिसम्बर 2024 तक 165.82 करोड़ रु से भी ज्यादा का चढ़ावा आया था लेकिन यह 2023 के मुकाबले कोई 18.16 करोड़ रु कम था. इसका यह मतलब नहीं कि भक्तों और श्रद्धालुओं ने कोई कंजूसी (असल में समझदारी) अपनी तरफ से दिखाई थी बल्कि हकीकत यह है कि यहाँ के सेवादारों और जिम्मेदार लोगों ने ही भगवान के हिस्से के करोड़ों रु को अपना समझते घालमेल कर दिया था. साल भर के इस चढ़ावे की गिनती के 10 दिन बाद ही खबर आई थी कि दूसरे छोटे बड़े मन्दिरों की तरह महाकाल मन्दिर भी घोटालों से अछूता नहीं है.
क्या है यह अदभुद महाकाल घोटाला, कौन हैं ये घोटालेबाज और कैसे उन्होंने एन भगवान की नाक के नीचे से उन्हें ही करोड़ों का चूना लगा दिया , इस गोरखधंधे (असल में धंधे) को समझने से पहले यह समझना जरुरी है कि जब से इस मंदिर में महाकाल लोक बना है तब से चढ़ावे में भी रिकार्ड बढ़ोतरी हो रही है जो कि इस मन्दिर को चमकाने का असल मकसद सनातनियों का था . भाजपा सरकार ने करोड़ों अरबो रु लगाकर इस मन्दिर को भव्य रूप दिया और उसका प्रचार भी जमकर किया तो देश के कोने से लोग उज्जैन आने लगे.

अब कोई मन्दिर आए और दान दक्षिणा और चढ़ावे के नाम पर अपनी जेब ढीली न करे ऐसा होना तो मुमकिन नहीं . लिहाजा भक्तों ने आँख बंद कर महाकाल मन्दिर में अपने खून पसीने की कमाई का कुछ हिस्सा अर्पण किया और चलते बने . साथ ले गये उज्जैन की मशहूर दाल बाटी और उससे भी ज्यादा लजीज कचोरी के जायके के साथ मन्नत पूरा होने की झूठी आस और आश्वासन (असल में भ्रम) कि भगवान महाकाल कुछ पैसों के एवज में उनके दुःख दूर करेंगे , बेटे बेटी की नौकरी लगवाएंगे, जिनके ब्याह नहीं हो रहे उनके आंगन में शहनाईया बजवायेंगे , सुगर , केंसर , ब्लडप्रेशर और हार्टअटक जसी बीमारियों से दूर रखेंगे, बेओलादों के आंगन में किलकारियां गुन्जायेंगे, कर्ज उतारेंगे, कारोबार में बरकत दिलवाएंगे बगैरह बगैरह.

अपने हिस्से के दुःख और परेशानियाँ महाकाल के सर डालकर भक्त तो निकल लिए लेकिन घोटालेबाजों को घोटाला करने का मौका दे गए जिसे चूकने में घोटालेबाजों ने कोई कोताही नहीं बरती लेकिन उनके पाप के घड़े का साइज़ थोडा छोटा था सो जल्द ही धर लिए गये. 23 दिसंबर के अख़बारों में मोटे मोटे अक्षरों में खबर छपी कि महाकाल मन्दिर में दर्शन के नाम पर हो रही थी करोड़ों की हेराफेरी , सामने आया चौकाने बाला बड़ा घोटाला. घोटाला उजागर होने बाले दिन दो कर्मचारियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. पहला था सफाई प्रभारी विनोद चौकसे और दूसरा था नंदी हाल का प्रभारी राकेश श्रीवास्तव. शुरुआती जांच में ही यह उजागर हो गया कि घड़े के मुकाबले घोटाले का साइज़ बड़ा है मामला चूँकि करोड़ों का था जिसे महज 2 अदने से मुलाजिम अंजाम नही दे सकते थे . इसलिए इस बिना पर जांच आगे बढ़ी तो छह और नाम सामने आए.

ये छह सूरमा थे आईटी सेल के इंचार्ज राजकुमार सिंह , सभा मंडप प्रभारी राजेंद्र सिसोदिया , प्रोटोकाल इंचार्ज अभिषेक भार्गव , भस्म आरती प्रभारी रितेश शर्मा और क्रिस्टल कम्पनी के जितेन्द्र पंवार और ओम प्रकाश माली. इन को भी गिरफ्तार कर लिया गया. ये पंक्तियाँ लिखे जाने तक जांच रेंग रही थी आगे मुमकिन है और भी आरोपी पकडाए जिन्होंने गुनाह तो भगवान के प्रति किया है लेकिन सजा इन्हें नीचे की अदालत देगी. इन सभी पर चार सौ बीसी और धारा 406 के तहत अमानत में खयानत का मामला दर्ज किया गया.

यह गिरोह कैसे दान के पैसे उड़ा रहा था यह भी कम दिलचस्प बात नहीं. महाकाल मन्दिर में अल सुबह भस्म आरती होती है जिसमे श्मशान से लाई गई ताजी राख का इस्तेमाल होता है. इस भस्म आरती का स्वभाविक तौर पर शिव के श्मशान साधक होने के चलते अपना अलग महत्व और आकर्षण है. इसलिए भक्त मुंह अँधेरे मन्दिर पहुँच जाया करते हैं.

मोटे तौर पर भक्तों को भस्म आरती के जरिये जीवन की क्षणभंगुरता का सन्देश देते दान के लिए उकसाया जाता है मसलन यह कि इस दुनिया में तुम्हारा क्या है , तुम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे इसलिए दान कर पुण्य अर्जित कर लो , परलोक सुधार लो, शरीर नष्ट हो जाता है आत्मा अमर है आदि आदि. भस्म आरती के जल्द दर्शन लाभ के लिए श्रद्धालुओं को 200 रु की रसीद कटाना पडती है यह पैसा मन्दिर समीति के जरिये मन्दिर के खाते में पहुँचता है.

इधर घोटालेबाजों ने नश्वरता और क्षणभंगुरता के फलसफे से इत्तफाक नहीं रखा. उन्हें यह देख हैरानी होती थी कि भक्त इस दुर्लभ आरती को देखने 200 तो क्या 2000 और उससे भी ज्यादा पैसा देने तैयार रहते हैं लेकिन खत्म हो जाने के कारण उन्हें टिकिट नहीं मिलती तो उन्होंने भक्तों को बिना टिकिट 2 – 3 हजार में आरती देखने की व्यवस्था करने का गुनाह कर डाला. भगवान या आरती के दर्शन करा देना अपराध नहीं है बल्कि उसके पैसे खुद डकार जाना जुर्म है धर्म की भाषा में दान के पैसे को निर्माल्य कहा जाता है जिसे हडप कर जाना घोर पाप है सो पकड़े जाने के बाद यह गिरोह जेल में है अब आगे क्या होगा यह शंकर जाने या वह जज जो इनकी चारसौबीसी की सजा इन्हें देखा.

यह फर्जीबाड़ा या घोटाला आसानी से पकड़ में नहीं जाता अगर कलेक्टर उज्जैन नीरज सिंह जो मन्दिर प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष भी होते हैं को भस्म आरती से कम होती आमदनी पर शक नहीं होता. दूसरे गुजरात तरफ के कुछ श्रद्धालुओं ने शिकायत भी की थी कि उन्हें दान की रसीद नहीं मिली. इसलिए जाल फैलाया गया जिसमे ये घोटालेबाज फस गये . तो इस साल जो कम आमदनी महाकाल मन्दिर को हुई उसकी इकलौती वजह यह घोटाला था जिसमे समानांतर दर्शनों का सशुल्क इंतजाम सेवादारों ने कर रखा था. इन आठों ने इस कमाई को अपने खातों में तो जमा किया ही लेकिन एहतियात बरतते अपने परिवार बालों के बेंक खातों में भी यह पैसा डाला जिसकी जांच जारी है और प्रशासन इनकी जायदाद बेचकर मन्दिर का घाटा पूरा करने का प्लान बना रहा है .जांच का बड़ा मुद्दा आय से अधिक संपत्ति है. इनकी आय का पैमाना इनकी पगार है जो इन आठों को ओहदे के मुताबिक 20 से 40 हजार रु तक मिल रही थी.

उज्जैन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का गृह नगर है इसलिए भी इस दर्शन घोटाले की चर्चा ज्यादा हो रही है जिसमे एक बड़ा तबका यह दलील दे रहा है कि इसमें हर्ज क्या है अगर पैसे देकर ही भगवान के दर्शन करना है तो लोग अपनी हैसियत के मुताबिक देंगे ही दूसरी चर्चा यह रही कि इस घोटाले के तार उपर तक जुड़े हैं वहां मुनासिब हिस्सा नहीं पहुंचा होगा इसलिए प्यादों को सबक सिखा दिया गया.

इस खुलासे से भक्तों को यह एहसास हुआ या नहीं यह तो वे ही जाने कि वे जो पैसा चढ़ाते हैं वह भगवान तक नही पहुँचता क्योंकि भगवान को पैसों की क्या जरूरत हाँ उसके नीचे बालों जायज और नाजायज दोनों किस्म के दलालों को जरुर इस पैसे की जरूरत रहती है क्योंकि वे सांसारिक हैं घर गृहस्थी बाले हैं जो रोज रोज यह भी महसूसते हैं कि अरबों के इस चढ़ावे से उपर बाले को कोई सरोकार नहीं है तो क्यों न इस बहती गंगा में हम ही थोड़े बहुत ही सही हाथ धो लें.

आप मन्दिर या दूसरे धर्म स्थल जाकर पैसा क्यों चढ़ाते हैं यह सवाल बेहद अचकचा देने बाला हर किसी के लिए है जिसके कई जबाब हैं. लेकिन हकीकत यह है कि उपर बाले का डर दान दक्षिणा के लिए मजबूर करता है. हैरानी की बात तो यह है कि इस उपर बाले का कोई वजूद कभी साबित नहीं हुआ है. यह डर धर्म ग्रंथो के जरिये धर्म के दुकानदारों ने फैला रखा है जिससे उनकी रोजी रोटी चलती रहे. यह मुफ्त का चन्दन हर धर्म का रोग है जिससे करोड़ों निकम्मे फल फूल रहे हैं वर्ना तो मामूली अक्ल रखने बाला भी बेहतर जानता है कि मूर्तियों और पत्थर से बने धर्म स्थलों को पैसे से कोई लेना देना नहीं.

अक्सर लोगों के लिए इस हकीकत को स्वीकारना भी कठिन होता है कि धर्म दुनिया का सबसे बड़ा कारोबार है जो निर्बाध 24 X 7 चलता है. लेकिन इसकी रीढ़ वही दान दक्षिणा और चढ़ावा है जिसमें से उज्जैन के घोटालेबाजों ने अपना हिस्सा शायद यह सोचकर ले लिया था कि भक्तों को दर्शन कराना और आरती में शामिल करवाना कम से कम उपर बाले की निगाह में तो अपराध नही हो सकता जो धन का नहीं भाव का भूखा होता है .

इस लिहाज से तो ये गलत कुछ नहीं कर रहे थे उलटे पुण्य का ही काम कर रहे थे लेकिन मन्दिरों में भी उपर बाले के न्याय की नहीं बल्कि संविधान के बनाये कानूनों की धाराएँ चलती हैं. इसलिए आठों इंडियन पीनल कोड की धाराओ के तहत सजा भुगतेंगे. लेकिन नाजायज तरीके से दान ( असल में घूस ) देकर भगवान के दर्शन करने बालों से कोई यह भी नहीं पूछता कि आपने नाजायज पैसे क्यों दिए और ऐसा कर आप क्या साबित करना चाहते थे जब हर मन्दिर में दान पेटियां रखी हैं तो पैसे उसमे ही क्यों नहीं डालते जबकि मन्दिर में जगह जगह लिखा होता है कि पैसा दान पेटी में ही डालें किसी को न दें. साफ़ दिख रहा है कि मन्दिरों में भी भ्रष्टाचार है या यह कि पैसे को कलयुग का भगवान गलत नही कहा जाता जिससे आप सेवादारों का भी इमान डगमगा सकते हैं. असल में इन लोगों में भी आस्था नहीं होती जो एक मूर्ति को देखने गवारों की तरह धक्का मुक्की करते हैं गाली गलोच करते हैं सेवादारों सिक्योरटी बालों सहित पंडे पुजारियों की भी झिडकियां और बदतमीजियां प्रसाद की तरह गप कर जाते हैं.

यह सोचना भी बेमानी और नादानी है कि ऐसे घपले घोटाले कुछ ही मन्दिरों में होते हैं . हकीकत में हर मन्दिर में ऐसा होता है. छोटे मन्दिर चूँकि घोषित अघोषित तौर पर पुजारी की मिल्कियत होते हैं इसलिए उनमे विवाद कम ही होते हैं दान दक्षिणा का सारा पैसा पुजारी की आमदनी होता है फसाद और घोटाले उन बड़े ब्रांडेड मन्दिरों में जहाँ ज्यादा गुड होगा वहां मक्खियाँ भी ज्यादा भिनभिनायेंग की तर्ज पर ज्यादा होते हैं जिनका सालाना टर्न ओवर करोड़ों अअरबों खरबों का होता है . कैसे मन्दिरों से जुड़े लोग ही घोटालों को बिना भगवान से डरे अंजाम देते हैं इसे समझने समझाने कुछ ताजे उदाहरण यों हैं –

– अभी उज्जैन के महाकाल दर्शन घोटाले की जांच चल ही रही थी कि 4 जनबरी को वृन्दावन इस्कान मन्दिर से भी दान की रकम में करोड़ों का घपला उजागर हुआ. इस भव्य और महंगे मन्दिर के सदस्यता विभाग का कर्मचारी मुरलीधर दान के कई करोड़ रु हडप कर फरार हो गया. जांच में उजागर हुआ कि मन्दिर के एकाउंट्स डिपार्टमेंट ने मुरलीधर को 32 रसीदे बुक दी थीं जिनके जरिये उसने भक्तों से करोड़ों रु वसूले लेकिन मन्दिर के खाते में जमा नहीं किये. इस पर मन्दिर प्रबंधन के विश्व्नाम दास ने पुलिस में शिकायत की . इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस आरोपी के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी .

– दान घोटालों की सीरिज में करोड़ों का ही एक बड़ा घपला अप्रेल 2023 में उजागर हुआ था टीडीपी यानी तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम का एक कर्मचारी सीवी रवि कुमार श्रीवारी हुंडी से नगद ले जाते हुए रँगे हाथों पकडाया था. यह मामला हाई प्रोफाइल किस्म का है. टीडीपी के एक सदस्य भानुप्रकाश रेड्डी ने सनसनीखेज आरोप यह लगाया था कि सीवी रविकुमार ने सर्जरी के जरिये अपने शरीर में संदूक इम्प्लांट करवाया है जिससे वह बिना किसी डिटेक्शन के करेंसी की तस्करी कर रहा था. आरोप हालाँकि अव्यवहारिक है लेकिन यह सच है कि उक्त कर्मचारी को दान में आई विदेशी मुद्रा गिनने का काम मिला था जिसमे कोई सौ करोड़ का घपला उजागर हो चुका है . बीती 25 दिसबर तक इस मामले में खास कुछ नहीं हुआ था लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कुछ हुआ ही नही हुआ था . अब जांच में क्या क्या सामने आता है यह देखना दिलचस्प होगा.

प्रसाद में मिलावट के लिए सुर्ख़ियों में रह चुके दक्षिण भारत के इस मन्दिर में तरह तरह के विवाद और फसाद आए दिन की बात है जिनका कोई असर भक्तों की चढ़ावे बाली मानसिकता पर नहीं होता. उन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं रहता कि कितने रविकुमार मुरलीधर और उज्जैन के आठ आरोपी उनका पैसा कैसे उड़ा ले जाते हैं. वे तो अपनी तरफ से इसे भगवान को दान कर चुके होते हैं. इस दान राशि के बारे में इतना जान लेना ही पर्याप्त है कि 2024 के आखिर में जब तिरुपति मन्दिर की हुंडियां खोली गईं तो कुल दान राशि 1365 करोड़ रु से भी ज्यादा आंकी गई थी . यह नगदी के अलावा सोने चाँदी और विदेशी मुद्रा की शक्ल में भी थी जिस पर रविकुमार का दिल यह सोचते आ गया था कि देसी भगवान बेचारे कहाँ विदेशों में इसे खर्च करने जायेंगे.

– कासी विश्वनाथ मन्दिर आए दिन चर्चाओं में रहता है क्योंकि वाराणसी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र है. वे अक्सर विश्वनाथ मन्दिर दर्शन करने जाया करते हैं. दूसरे चमत्कारी मन्दिरों की तरह इस मन्दिर की भी महिमा अपरम्पार है. हालाँकि इस मन्दिर का घपला करोड़ों का नहीं है लेकिन है तो जिसका खुलासा कोई 2 साल पहले हुआ था. जो भक्त मन्दिर तक नही आ पाते वे मनीआर्डर के जरिये दान राशि भेजते हैं. शशिभूषण नाम के कम्प्यूटर आपरेटर ने मनीआर्डर के जरिये आया लाखों का दान खुद हडप लिया तो मन्दिर के अपर कार्यपालक निखिलेश मिश्रा ने नजदीकी चौक थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस मामले में मन्दिर के दूसरे कुछ सेवादार भी शक के दायरे में हैं.

– राजस्थान के नाथद्वारा जिले के शिशोदा गाँव स्थित भेरूजी क्षेत्रपाल मन्दिर में डेढ़ साल पहले 123 करोड़ रु का गबन हुआ था. इस मामले में तत्कालीन अशोक गहलौत सरकार ने एक कमेटी गठित कर उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे. इस गबन का मुख्य आरोपी पुजारी विजय सिंह के अलावा तीन और कर्मचारी थे.

ऐसे उदाहरानो की भरमार है जिनमे दान के पैसों में जमकर घपले घोटाले हुए और तय है जब तक दान की मानसिकता है तब तक होते रहेंगे. इस मर्ज का कोई इलाज आम अपराधों की तरह नहीं है. लेकिन इनका भगवान के दरबार में होना कई सच उजागर करता है. जिनमे से पहला तो यह है कि वह भगवान कहीं है ही नही जिसके नाम पर खरबों का दान किया जाता है यह पैसा कहाँ जाता है यह भी आम लोग नहीं जानते. कहने को तो दान राशि का उपयोग भक्तों की सहूलियत बाले कामों में किया जाता है लेकिन यह पूरी तरह सच होता तो मन्दिरों में अफरातफरी न होती, गंदगी के ढेर न होते और न ही धक्का मुक्की होती.

किसी भी मन्दिर को देखलें वहां अव्यवस्थाओं की भरमार मिलेगी. लम्बी लम्बी लाइनों में घंटों खड़े भक्त मिलेंगे, उनकी जेब में चढ़ावे का पैसा मिलेगा जो उन्हें इस खुशफहमी में रखता है कि पैसे से भगवान खुश होते हैं. भगवान तो होने से रहा लेकिन उसके नाम पर पल रहे पंडे पुजारी जरुर उमड़ती भीड़ देख यह सोचते खुश होते रहते हैं कि धंधा अच्छा चल रहा है और आज भी चाँदी रहेगी . इसीलिए दान की महिमा दिन रात तरह तरह से गाई जाती है. अगर यह नियम बना दिया जाये कि भक्त मन्दिर में केश लेस होकर जायेंगे तो यकीन माने तमाम पंडे पुजारी कहीं दिहाड़ी करते नजर आयेंगे.

 

Best Hindi Story : मलिका – अपनी बदसूरती को खूबसूरती में बदलती लड़की की कथा

Best Hindi Story : यह-कहानी शुरू होती है एक साधारण सी लड़की से, जिसे शायद कुदरत रंगरूप देना भूल गई थी, या फिर यों कहिए कि कुदरत ने उस साधारण लड़की में कुछ असाधारण गुण जड़ दिए थे जो वक्त के साथ उभरते और निखरते रहे. 3 बहनों में दूसरे नंबर की सांवली का नाम शायद उस के मातापिता ने उस के रंग के कारण ही रखा था. एक तो सांवली ऊपर से दांत भी बाहर निकले हुए, एक नजर में कुरूपता की निशानी. बड़ी और छोटी बहनें गजब की खूबसूरत थीं. दोनों बहनों में जैसे एक बदनुमा दाग की तरह दिखने वाली, मातपिता की सहानुभूति, रिश्तेदारों, परिचितों से मिली उपेक्षा ने सांवली में एक अद्भुत स्वरूप को उकेरना शुरू कर दिया था.

वह था स्वयं से प्यार. बचपन से ही अंतर्मुखी सांवली का दिमाग उम्र से ज्यादा तेज था. छोटीमोटी उलझनों को चुटकी में सुलझा देना उस के नैसर्गिक गुणों से शुमार था. जहां एक ओर उस की दोनों बहनें घरघर खेलतीं, सजतींसंवरतीं, वहीं सांवली गणित के सवालों को हल करती दिखती. वक्त के साथ तीनों जवान हो गईं. सांवली पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही. बहनों की खूबसूरती और निखर गई, सांवली अपना संसार बुनती रही, जहां उस के अपने सपने थे. अपने दम पर खुद को सिर्फ खुद के लिए साबित करना, उस की प्रतियोगिता किसी और से नहीं, स्वयं से थी. जूडो और बौक्सिंग उस के पसंदीदा खेल थे. स्कूल और कालेज स्तरीय कई प्रतियोगिताओं के मैडल उस ने अपने नाम कर लिए थे. मातापिता को चिंता खाए जा रही थी कि तीनों का विवाह करना है और खासकर सांवली को ले कर चिंतित रहते थे कि कैसे होगा इस का विवाह, कौन इसे पसंद करेगा, ज्यादा दहेज देने की हैसियत नहीं है, क्या होगा? लेकिन सांवली इन सब बातों से बेफिक्र थी, उस की डिक्शनरी में अभी विवाह नाम का कोई शब्द नहीं था.

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उस ने तो ठान लिया था कि मरुस्थल में फूल खिलाना है. ‘‘पता नहीं, रिद्धिमा के पापा ने लड़के वालों से बात की होगी या नहीं?’’ सांवली की मां मालती ने अपनी सासुमां गिरिजा देवी से कहा. ‘‘अब तो आता ही होगा, आ कर बताएगा कि क्या बात हुई, फिक्र क्यों करती हो,’’ गिरिजा देवी ने कहा. ‘‘अम्मां, 3 जवान लड़कियां छाती पर बैठी हों तो फिक्र तो होती ही है,’’ मालती बोली. ‘‘अरे रिद्धिमा तो खूबसूरत है, निबट ही जाएगी, फिक्र तो सांवली की रहती है, इस का क्या होगा,’’ गिरिजा देवी माथे पर हाथ रखती हुई बोलीं. ‘‘हमारी फिक्र न करो दादी, हमारा लक्ष्य सिर्फ शादी नहीं है, हम तो वे करेंगे जो कोई दूसरा नहीं करता,’’ सांवली ने तपाक से कहा. ‘‘क्या मतलब, क्या तू लड़की नहीं है,

लड़की की जात को चूल्हाचौका ही सुहाता है, समझी,’’ दादी ने आंखें तरेर कर कहा. ‘‘हां दादी, मैं तो समझी, पर आप नहीं समझीं,’’ कह सांवली हंस पड़ी. तभी सांवली के पिता बलरामजी के खखारने की आवाज सुनाई दी. ‘‘अरी जा, देख पापा आ गए,’’ मालती ने सांवली से कहा और खुद भी दरवाजे की ओर दौड़ी. मां पानी का गिलास ले आईं, बोलीं, ‘‘बताओ, लड़के वालों से क्या बात हुई आप की?’’ ‘‘हां, परसों आ रहे हैं, समीक्षा को देखने,’’ बदलेव सिंह सोफे पर बैठते हुए बोले. ‘‘कौनकौन आएगा?’’ मां ने प्रश्न किया. ‘‘अब यह तो नहीं पूछा, 3-4 लोग तो होंगे ही,’’ बलदेव सिंह बोले. ‘‘अच्छा, कितने बजे तक आएंगे, यह तो पूछा होगा?’’ मां ने अगला प्रश्न किया. ‘‘दोपहर 1 बजे. रविवार है… सभी के लिए सुविधाजनक है,’’ बलदेव सिंह ने बताया. ‘‘सांवली ओ सांवली,’’ मां ने पुकारा. ‘‘हां, मां क्या बात है कहो,’’ सांवली ने बैठक में आते हुए पूछा. ‘‘सुन, परसों तेरी समीक्षा जीजी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं, तो तू अभी तैयारी शुरू कर दे, क्या बनाएगी? उस के लिए क्या कुछ सामान बाजार से लाना है.

एक लिस्ट बना ले, तेरे पापा शाम को ले आएंगे और सुन तू भी जरा बेसन का लेप लगा लेना, रंग थोड़ा खुला दिखेगा,’’ मां ने सांवली को देखते हुए कहा. ‘‘मां… अब इस में मुझे बेसन का लेप लगाने की क्या जरूरत आन पड़ी? वे लोग तो जीजी को देखने आ रहे हैं,’’ सांवली ने कंधे उचकाते हुए कहा. ‘‘अरे, ऐसे ही एक के बाद एक रस्ते खुलते हैं, हो सकता है उन की नजर में तेरे लायक भी कोई रिश्ता हो, चल अब जा, परसों की तैयारियां कर,’’ मां ने कहा. तैयारियां शुरू हो गईं, समीक्षा फेशियल, साडि़यों के चयन आदि में व्यस्त रही और सांवली किचन की तैयारियों में, जो सूखा नाश्ता जैसे मठरी, गुझिया, चिवड़ा आदि उस ने एक दिन पहले ही बना कर तैयार कर लिए थे. रविवार सुबह से समोसे, मूंग का हलवा और बादाम की खीर की खूशबू से सारा घर महक रहा था. समीक्षा साडि़यों पर साडि़यां बदले जा रही थी, छोटी बहन सुनीति उस की मदद कर रही थी. ‘‘समीक्षा, तू कुछ भी पहन ले, सुंदर ही दिखेगी, तुझे तो एक नजर में पसंद कर लेंगे वे, चिंता मत कर, कुछ भी पहन ले,’’ मां ने पूर्ण विश्वास से कहा.

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‘‘सांवली ओ सांवली,’’ मां ने सांवली को पुकारा. ‘‘क्या है मां,’’ किचन से निकलते हुए सांवली बोली. ‘‘सुन, तू भी अब मुंह धो ले, और अच्छी तरह पाउडर लगा कर, हलकेपीले रंग का जो सूट है न उसे पहन ले, उस में तेरा रंग खिला हुआ लगता है,’’ मां ने सांवली को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा. ‘‘मां… तुम भी न… आज तो समीक्षा जीजी को तैयार होने दो, क्यों जीजी…’’ सांवली ने समीक्षा से चुटकी ली. ‘‘जा, तू भी तैयार हो जा…’’ समीक्षा ने मुसकराते हुए सांवली से कहा. ‘‘ठीक है जीजी,’’ सांवली हंसते हुए बोली. ‘‘डेढ़ बजे के करीब लड़के वाले तशरीफ ले आए, मातापिता, लड़का और उस की छोटी बहन, कुल 4 लोग आए थे.’’ ‘‘आइए भाई साहब, नमस्ते बहनजी, आओ बेटा आओ…’’ बलदेव सिंह सब का स्वागत करते हुए बोले. ‘‘बहनजी, आप का घर तो खाने की खुशबूओं से महक रहा है, कितने पकवान बनवा लिए आप ने?’’ लड़के की मां ने घर में घुसते ही कहा. ‘‘अरे बहनजी, बच्चियों से जो कुछ बन सका, बस यों ही थोड़ाबहुत…’’ मां ने मुसकान बिखेरते हुए कहा. सभी को बैठक में बैठाया गया,

जो सांवली की कलाकृतियों से बहुत ही करीने से सजासंवरा, छोटा सा कमरा था. सांवली पानी की ट्रे लिए बैठक में दाखिल हुईर्. लड़के की मां उसे कुछ ज्यादा ही ध्यान से देखने लगी. ‘‘बहनजी, यह मझली बेटी सांवली है, समीक्षा, जिसे आप देखने आई हैं, वह अभी अंदर है,’’ मां ने लड़के की मां की नजरों को ताड़ते हुए कहा. ‘‘ओह, अच्छा…’’ लड़के की मां सोफे से पीठ टिकाती हुई बोली. सांवली ने सभी को नमस्ते कर ट्रे में पानी के गिलास रख दिए. ‘‘जा वांवली, जीजी को ले आ,’’ मां ने कहा. ‘‘ये वौल पीस, हैंगिंग और पेंटिंग्स तो बहुत जोरदार हैं, बिटिया ने बनाई हैं क्या?’’ लड़के की मां ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए पूछा. ‘‘हं… हां… हां…’’ मां ने कहा, पर यह बात गोल कर दी कि किस बिटिया ने बनाई है, क्योंकि अभी तो समीक्षा को निबटाना था. तभी सांवली अपनी समीक्षा जीजी के साथ बैठक में दाखिल हुई. लड़के की मां का चेहरा खिल उठा. ‘‘आओ… आओ, बिटिया… वाह… बहुत ही सुंदर, क्यों बेटा है न?’’ लड़के की मां ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा. लड़के ने आंखें उठा कर देखा तो उस की नजर सांवली की नजर से टकराई, जो उस का रिएक्शन देखने के लिए उसे ही देख रही थी. लड़के ने झेंप कर नजर झुका ली. ‘‘भई मुझे तो बिटिया बहुत पसंद है, अब फैसला तो श्याम के हाथ में है, मेरे खयाल से हमें इन दोनों को भी एकदूसरे से खुल कर बातचीत करने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए, क्यों जी, सही न,’’ लड़के की मां ने लड़के के पिता से कहा. ‘‘हां बिलकुल ठीक है,’’ लड़के के पिता ने कहा. ‘‘सांवली, जाओ बेटा जीजी और श्याम बाबू को बगीचे की सैर करवा दो,’’ मां ने झट से कहा. ‘‘

जी ठीक है मां, आइए जीजी…’’ सांवली ने समीक्षा और श्याम से चलने को कहा. बगीचे में पहुंच कर सांवली ने कहा, ‘‘जीजी, आप लोग बात कीजिए, तब तक मैं नाश्ते का प्रबंध करती हूं,’’ और वह भीतर चली आई. समीक्षा और श्याम करीब 15 मिनट बातचीत करते रहे, फिर वे भी भीतर बैठक में आ गए. ‘‘वाह भई, ऐसा स्वादिष्ठ नाश्ता कर के मजा आ गया, भई अब तो जी चाहता है सारा जीवन ऐसा ही नाश्ता मिलता रहे,’’ लड़के की मां ने कनखियों से समीक्षा को देखते हुए कहा. समीक्षा मुसकरा रही थी. श्याम और समीक्षा की रजामंदी से विवाह पक्का हो गया. इधर सांवली अपनी परीक्षा की तैयारियों में जुटी थी, उधर समीक्षा का विवाह भी हो गया. सांवली ने एमबीए के कोर्स में प्रवेश ले लिया, मैनेजमैंट और अकाउंटैंसी दोनों में ही सांवली का कोई जोड़ नहीं था. एमबीए पूरा होतेहोते छोटी बहन भी ब्याह कर ससुराल चली गई. अब मातापिता को सांवली की चिंता थी, हालांकि वे यह भी जानते थे कि सारे घर का दारोमदार अब सांवली के कंधों पर ही है, पिता रिटायर हो चुके थे, उन की पैंशन और सांवली की कमाई से ही घर का खर्च चलता था, पिता के पैंशन का मैटर भी विभागीय मसले में उलझ गया था,

जिसे सांवली ने ही अपनी सूझबूझ से निबटाया और पैंशन पक्की हो पाई. पिता तो सांवली के ऐसे कायल हो गए कि हर समस्या के समाधान के लिए उन की जबान पर एक ही नाम होता था सांवली. ‘‘अरे बेटा रो मत, सांवली घर आ जाए, मैं उस से बात करता हूं, दामादजी को वह इस मुश्किल से चुटकी में निकाल देगी, तू फिक्र मत कर,’’ पिता ने समीक्षा से फोन पर कहा. ‘‘ठीक है पापा, मैं कल श्याम के साथ घर आती हूं, सांवली को सारा मसला समझा देंगे,’’ समीक्षा ने कहा और फोन रख दिया. अगले दिन सुबह ही समीक्षा अपने पति के साथ घर आ गई. सांवली को श्याम ने अपने व्यापार में हुए घोटाले और घाटे से सड़क पर आ जाने का पूरा विवरण बताया. सांवली बहुत ही गंभीर मुद्रा में हर बात सुनती रही, फिर उस ने श्याम से कुछ प्रश्न किए जिन के उत्तरों से उसे समझ में आ गया कि आखिर चूक कहां हुई है. उस ने कुछ सुझाव दिए और कहा कि तुम इन पर अमल करो, बाकी मैं संभाल लूंगी. सांवली ने अपने तेज दिमाग से अपने जीजाजी का न केवल घाटा पूरा करवाया, बल्कि उस के बाद उन का बिजनैस जोर पकड़ता गया. अब तो श्याम जैसे सांवली का दीवाना हो गया, कभीकभी मजाक में कह भी देता था कि इस से तो मैं तुम से शादी करता तो ज्यादा अच्छा रहता. खैर, आधी घरवाली तो तुम हो ही.’’ इस पर सांवली कहती,

‘‘इस मुगालते में मत रहना जीजाजी, सांवली सिर्फ सांवली है, किसी की घरवाली नहीं, न आधी न पूरी.’’ जीजाजी जैसे मन मसोस कर रह जाते. कई बार कोशिश करने पर भी सांवली ने उन की दाल गलने न दी. सांवली जानती थी कि, उस का दिमाग और फिट फिगर पुरुषों को बेहद आकर्षित करता है, हर कोई चाहता है कि उस की बीवी खूबसूरत होने के साथ स्मार्ट माइंड भी रखती हो. वह अब यह भी जानती थी कि आज इस समय उस से कोई भी शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा, लेकिन अब वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना सीख चुकी थी, अब तो पुरुषों को अपनी उंगली पर नचाने में उसे मजा आता था. मन में एक भड़ास थी कि कभी उसे रूप के कारण कमतर आंका गया है, बहुत परिश्रम करना पड़ा है उसे यह मुकाम हासिल करने में. ‘‘हैलो, क्या मैं सांवलीजी से बात कर सकता हूं?’’ फोन पर किसी ने सांवली से कहा. ‘‘जी, कहिए, मैं सांवली बोल रही हूं,’’ सांवली ने जवाब दिया. ‘‘मैडम, आप से अपौइंटमैंट लेना था, एक प्रौपर्टी केस के सिलसिले में आप से कंसल्ट करना चाहता हूं, प्लीज बताइए, मैं आप से किस समय मिल सकता हूं?’’ अजनबी ने कहा.

‘‘आप सारे डौक्युमैंट्स ले कर परसों मेरे औफिस आ जाइए, बाइ दा वे, आप का शुभनाम?’’ सांवली ने पूछा. ‘‘ओह, आई एम सौरी, माई नेम इज बृज, मैं परसों मिलता हूं आप से, थैंक यू सो मच,’’ और फोन काट दिया गया. नियत समय पर बृज सांवली के औफिस पहुंचा. ‘‘गुड मौर्निंग… सांवली,’’ बृज ने अभिवादन किया. ‘‘वैरी गुड मौर्निंग बृज, टेक योर सीट,’’ सांवली ने मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘पेपर्स दिखाइए और केस की डिटेल्स बताइए.’’ ‘‘ओके, ये लीजिए पेपर्स. दरअसल, मेरी पार्टनर मेरी वाइफ ही थी, उस ने अपनी खूबसूरती के जाल में उलझा कर मुझ से कहांकहां साइन करवा लिए, मुझे पता नहीं चला, मेरा सारा बिजनैस खुद के नाम कर के मुझे डिवोर्स पेपर्स भेज दिए, मैं चाहता हूं कि उसे इस की सजा मिले, मुझे किसी ने आप का नाम सजेस्ट किया, बताया कि ऐसे उलझे मामलों को आप ने बड़ी होशियारी से सुलझाया है. मैं चाहता तो किसी वकील के पास भी जा सकता था, लेकिन इस केस को कैसे डील करना है, वह अब आप ही देखिए, वकील तो जो आप कहेंगी उसे कर लेंगे,’’ बृज एक सांस में बोल गया.

‘‘ओके, डौंट वरी, आई विल मैनेज एवरीथिंग, मैं प्लान प्रोग्राम कर आप से कौंटैक्ट करती हूं,’’ सांवली ने फिर एक गहरी मुसकान बिखेरते हुए कहा. ‘‘ओके, थैंक्स,’’ कह कर बृज ने हाथ आगे बढ़ाया, सांवली ने अपना हाथ बढ़ा कर शेक हैंड किया. महीनेभर की मशक्कत के बाद आखिर सांवली केस को सुलझाने में सफल हो गई. बृज की बीवी को स्वीकार करना पड़ा कि उस ने जालसाजी से ये सब किया था, क्योंकि बृज को उस पर अंधाविश्वास था, इसलिए उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाने में वह कामयाब रही, लेकिन जिन पौइंट्स पर वाह चूक गई थी, सांवली ने उन्हें पकड़ कर उस की जालसाजी पकड़ ली, बृज को अपनी प्रौपर्टी वापस मिल गई और महीनेभर की मुलाकातों ने उसे सांवली के व्यक्तित्व ने इतना प्रभावित किया कि उस ने फैसला कर लिया कि वह सांवली को अपना जीवनसाथी बनाएगा, यही सोच कर वह फूलों का बड़ा गुलदस्ता ले कर सांवली के औफिस पहुंचा. ‘‘हैलो मिस सांवली,’’ बृज ने सांवली से कहा. ‘‘हैलो बृज, बधाई हो आप को, अब तो आप खुश हैं न?’’ सांवली ने मुसकान बिखेरते हुए कहा. ‘‘हां, लेकिन यह खुशी दोगुना हो सकती है, अगर आप मेरी हमसफर बनने के लिए राजी हो जाएं?’’

बृज ने बिना किसी भूमिका के दिल की बात कह दी. ‘‘क्यों, एक धोखा खा कर तसल्ली नहीं हुई आप को, जो फिर ओखली में सिर डालने चले हो?’’ अभी तो मैं निकाल लाई आप को, मुझ से कौन बचाएगा आप को? सांवली ने खिलखिलाते हुए कहा. ‘‘अब तुम ने निकलना ही नहीं है. बिजनैस तुम ही संभालोगी, मुझे तो बस एक प्यार करने वाली बीवी चाहिए, जिस की मुसकराहट मेरी जिंदगी संवार दे और जो एक बेहतरीन दिल के साथ, शानदार दिमाग की भी मालिक हो, और वह हो तुम, तो कहो मेरी मलिका बनने को तैयार हो?’’ बृज ने दिल पर हाथ रख कर कुछ झुकते हुए कहा. ‘‘यस जहांपनाह, बाअदब, बामुलाहिजा, होशियार… मलिका ए दिमाग, आप के दिल में दाखिल होने जा रहा है.’’ ‘‘दिमाग चाहे तो वह हर मुकाम हासिल कर सकता है, जो रूप के बूते मिलता है, लेकिन रूप चाह कर भी वह मुकाम हासिल नहीं कर सकता, जो दिमाग हासिल कर सकता है,’’ सांवली बृज की बांहों में झूल रही थी. द्य ‘‘बृज की बीवी को स्वीकार करना पड़ा कि उस ने जालसाजी से ये सब किया था, क्योंकि ब्रिज को उस पर अंधाविश्वास था, इसलिए उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाने में वह कामयाब रही…’’

Emotional Story : वही खुशबू – इंसानियत का भाव रखते व्यक्ति की कथा

Emotional Story : बहुत दिनों से सुनती आई थी कि भैरों सिंह अस्पताल के चक्कर बहुत लगाते हैं. किसी को भी कोई तकलीफ हो, किसी स्वयंसेवक की तरह उसे अस्पताल दिखाने ले जाते. एक्सरे करवाना हो या सोनोग्राफी, तारीख लेने से ले कर पूरा काम करवा कर देना जैसे उन की जिम्मेदारी बन जाती. मैं उन्हें बहुत सेवाभावी समझती थी. उन के लिए मन में श्रद्धा का भाव उपजता, क्योंकि हमें तो अकसर किसी की मिजाजपुरसी के लिए औपचारिक रूप से अस्पताल जाना भी भारी पड़ता है.

लोग यह भी कहते कि भैरों सिंह को पीने का शौक है. उन की बैठक डाक्टरों और कंपाउंडरों के साथ ही जमती है. इसीलिए अपना प्रोग्राम फिट करने के लिए अस्पताल के इर्दगिर्द भटकते रहते हैं. अस्पताल के जिक्र के साथ भैरों सिंह का नाम न आए, हमारे दफ्तर में यह नामुमकिन था.

पिछले वर्ष मेरे पति बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा. तब मैं ने भैरों सिंह को उन की भरपूर सेवा करते देखा तो उन की इंसानियत से बहुत प्रभावित हो गई. ऐसा लगा लोग यों ही अच्छेखासे इंसान के लिए कुछ भी कह देते हैं. कोई भी बीमार हो, वह परिचित हो या नहीं, घंटों उस के पास बैठे रहना, दवाइयों व खून आदि की व्यवस्था करना उन का रोज का काम था. मानो उन्होंने मरीजों की सेवा का प्रण लिया हो.

उन्हीं दिनों बातोंबातों में पता चला कि उन की पत्नी भी बहुत बीमार रहती थी. उसे आर्थ्राइटिस था. उस का चलनाफिरना भी दूभर था. जब वह मेरे पति की सेवा में 4-5 घंटे का समय दे देते तो मैं उन्हें यह कहने पर मजबूर हो जाती, ‘आप घर जाइए, भाभीजी को आप की जरूरत होगी.’

पर वे कहते, ‘पहले आप घर हो आइए, चाहें तो थोड़ा आराम कर आएं, मैं यहां बैठा हूं.’

यों मेरा उन से इतनी आत्मीयता का संबंध कभी नहीं रहा. बाद में बहुत समय तक मन में यह कुतूहल बना रहा कि भैरों सिंह के इस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का कारण क्या रहा होगा? धीरेधीरे मैं ने उन में दिलचस्पी लेनी शुरू की. वे भी किसी न किसी बहाने गपशप करने आ जाते.

एक दिन बातचीत के दौरान वे काफी संकोच से बोले, ‘‘चूंकिआप लिखती हैं, सो मेरी कहानी भी लिखें.’’मैं उन की इस मासूम गुजारिश पर हैरान थी. कहानी ऐसे हीलिख दी जाती है क्या? कहानी लायक कोई बात भी तो हो. परंतु यह सब मैं उन से न कह सकी. मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप अपनी कहानी सुनाइए, फिर लिख दूंगी.’’

बहुत सकुचाते और लजाई सी मुसकान पर गंभीरता का अंकुश लगाते हुए उन्होंने बताया, ‘‘सलोनी नाम था उस का, हमारी दोस्ती अस्पताल में हुई थी.’’

मुझे मन ही मन हंसी आई कि प्यार भी किया तो अस्पताल में. भैरों सिंह ने गंभीरता से अपनी बात जारी रखी, ‘‘एक बार मेरा एक्सिडैंट हो गया था. दोस्तों ने मुझे अस्पताल में भरती करा दिया. मेरा जबड़ा, पैर और कूल्हे की हड्डियां सेट करनी थीं. लगभग 2 महीने मुझे अस्पताल में रहना पड़ा. सलोनी उसी वार्ड में नर्स थी, उस ने मेरी बहुत सेवा की. अपनी ड्यूटी के अलावा भी वह मेरा ध्यान रखती थी.

‘‘बस, उन्हीं दिनों हम में दोस्ती का बीज पनपा, जो धीरेधीरे प्यार में तबदील हो गया. मेरे सिरहाने रखे स्टील के कपबोर्ड में दवाइयां आदि रख कर ऊपर वह हमेशा फूल ला कर रख देती थी. सफेद फूल, सफेद परिधान में सलोनी की उजली मुसकान ने मुझ पर बहुत प्रभाव डाला. मैं ने महसूस किया कि सेवा और स्नेह भी मरीज के लिए बहुत जरूरी हैं. सलोनी मानो स्नेह का झरना थी. मैं उस का मुरीद बन गया.

‘‘अस्पताल से जब मुझे छुट्टी मिल गई, तब भी मैं ने उस की ड्यूटी के समय वहां जाना जारी रखा. लोगों को मेरे आने में एतराज न हो, इसीलिए मैं कुछ काम भी करता रहता. वह भी मेरे कमरे में आ जाती. मुझे खेलने का शौक था. मैं औफिस से आ कर शौर्ट्स, टीशर्ट या ब्लेजर पहन कर खेलने चला जाता और वह ड्यूटी के बाद सीधे मेरे कमरे में आ जाती. मेरी अनुपस्थिति में मेरा कमरा व्यवस्थित कर के कौफी पीने के लिए मेरा इंतजार करते हुए मिलती.

‘‘जब उस की नाइट ड्यूटी होती तो वह कुछ जल्दी आ जाती. हम एकसाथ कौफी पीते. मैं उसे अस्पताल छोड़ने जाता और वहां कईकई घंटे मरीजों की देखरेख में उस की मदद करता. सब के सो जाने पर हम धीरेधीरे बातें करते रहते. किसी मरीज को तकलीफ होती तो उस की तीमारदारी में जुट जाते.

‘‘कभी जब मैं उस से ड्यूटी छोड़ कर बाहर जाने की जिद करता तो वह मना कर देती. सलोनी अपनी ड्यूटी की बहुत पाबंद थी. उस की इस आदत पर मैं नाराज भी होता, कभी लड़ भी बैठता, तब भी वह मरीजों की अनदेखी नहीं करती थी. उस समय ये मरीज मुझे दुश्मन लगते और अस्पताल रकीब. पर यह मेरी मजबूरी थी क्योंकि मुझे सलोनी से प्यार था.’’

‘‘उस से शादी नहीं हुई? पूरी कहानी जानने की गरज से मैं ने पूछा.’’

भैरों सिंह का दमकता मुख कुछ फीका पड़ गया. वे बोले, ‘‘हम दोनों तो चाहते थे, उस के घर वाले भी राजी थे.’’

‘‘फिर बाधा क्या थी?’’ मैं ने पूछा तो भैरों सिंह ने बताया, ‘‘मैं अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी 4 बहनें हैं. हम राजपूत हैं, जबकि सलोनी ईसाई थी. मैं ने अपनी मां से जिद की तो उन्होंने कहा कि तुम जो चाहे कर सकते हो, परंतु फिर तुम्हारी बहनों की शादी नहीं होगी. बिरादरी में कोई हमारे साथ रिश्ता करने को तैयार नहीं होगा.

‘‘मेरे कर्तव्य और प्यार में कशमकश शुरू हो गई. मैं किसी की भी अनदेखी करने की स्थिति में नहीं था. इस में भी सलोनी ने ही मेरी मदद की. उस ने मुझे मां, बहनों और परिवार के प्रति अपना फर्ज पूरा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया.

‘‘मां ने मेरी शादी अपनी ही जाति में तय कर दी. बड़ी धूमधाम से शादी हुई. सलोनी भी आई थी. वह मेरी दुलहन को उपहार दे कर चली गई. उस के बाद मैं ने उसे कभी नहीं देखा. विवाह की औपचारिकताओं से निबट कर जब मैं अस्पताल गया तो सुना, वह नौकरी छोड़ कर कहीं और चली गई है. बाद में पता चला कि  वह दूसरे शहर के किसी अस्पताल में नौकरी करती है और वहीं उस ने शादी भी कर ली है.’’

‘‘आप ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ भैरों सिंह ने जवाब दिया, ‘‘पहले तो मैं पगला सा गया. मुझे ऐसा लगता था, न मैं घर के प्रति वफादार रह पाऊंगा और न ही इस समाज के प्रति, जिस ने जातपांत की ये दीवारें खड़ी कर रखी हैं. परंतु शांत हो कर सोचने पर मैं ने इस में भी सलोनी की समझदारी और ईमानदारी की झलक पाई. ऐसे में कौन सा मुंह ले कर उस से मिलने जाता. फिर अगर वह अपनी जिंदगी में खुश है और चाहती है कि मैं भी अपने वैवाहिक जीवन के प्रति एकनिष्ठ रहूं तो मैं उस के त्याग और वफा को धूमिल क्यों करूं? अब यदि वह अपनी जिंदगी और गृहस्थी में सुखी है तो मैं उस की जिंदगी में जहर क्यों घोलूं?’’

‘‘अब अस्पताल में इतना क्यों रहते हैं? और यह कहानी क्यों लिखवा रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकता दिखाई.

भैरों सिंह ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने आप को बताया था न कि मैं उस का अधिक से अधिक साथ पाने के लिए उस की ड्यूटी के दौरान उस की मदद करता था, पर दिल में उस की कर्मनिष्ठा और सेवाभाव से चिढ़ता था. अब मुझे वह सब याद आता है तो उस की निष्ठा पर श्रद्धा होती है, खुद के प्रति अपराधबोध होता है. अब मैं मरीजों की सेवा, प्यार की खुशबू मान कर करता हूं और मुझे अपने अपराधबोध से भी नजात मिलती है.’’

भैरों सिंह की आवाज और धीमी हो गई. वह फुसफुसाते हुए से बोले, ‘‘अब मैं सिर्फ एक बात आप को बता रहा हूं या कहिए कि राज की बात बता रहा हूं. इस अस्पताल के समूचे वातावरण में मुझे अब भी वही खुशबू महसूस होती है, सलोनी के प्यार की खुशबू. रही बात कहानी लिखने की, तो मेरे पास उस तक अपनी बात पहुंचाने का कोई जरिया भी तो नहीं है. अगर वह इसे पढ़ेगी तो समझ जाएगी कि मैं उसे कितना याद करता हूं. उस की भावनाओं की कितनी इज्जत करता हूं. यही प्यार अब मेरी जिंदगी है.’’

Emotional Story : वापसी – खुद टूटने के बावजूद घर को जोड़ती वीरा की कहानी

Emotional Story : दिल्ली पहुंचने की घोषणा के साथ विमान परिचारिका ने बाहर का तापमान बता कर अपनी ड्यूटी खत्म की, लेकिन वीरा की ड्यूटी तो अब शुरू होने वाली थी. अंडमान निकोबार से आया जहाज जैसे ही एअरपोर्ट पर रुका, वीरा के दिल की धड़कनें यह सोच कर तेज होने लगीं कि उसे लेने क्या विजेंद्र आया होगा?

अपने ही सवालों में उलझी वीरा जैसे ही बाहर आई कि सामने से दौड़ कर आती विपाशा ‘मांमां’ कहती उस से आ कर लिपट गई.

वीरा ने भी बेटी को प्यार से गले लगा लिया.

‘5 साल में तू कितनी बड़ी हो गई,’ यह कहते समय वीरा की आंखें चारों ओर विजेंद्र को ढूंढ़ रही थीं. शायद आज भी विजेंद्र को कुछ जरूरी काम होगा. विपाशा मां को सामान के साथ एक जगह खड़ा कर गाड़ी लेने चली गई. वह सामान के पास खड़ी- खड़ी सोचने लगी.

5 साल पहले उस ने अचानक अंडमान निकोबार जाने का फैसला किया, तो  महज इसलिए कि वह विजेंद्र के बेरुखी भरे व्यवहार से तिलतिल कर मर रही थी.

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विजेंद्र ने भरपूर कोशिश की कि अपनी पत्नी वीरा से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा ले. उस ने तो कलंक के इतने लेप उस पर चढ़ाए कि कितना ही पानी से धो लो पर लेप फिर भी दिखाई दे.

यही नहीं विजेंद्र ने वीरा के सामने परेशानियों के इतने पहाड़ खड़े कर दिए थे कि उन से घबरा कर वह स्वयं विजेंद्र के जीवन से चली जाए. लेकिन वीरा हर पहाड़ को धीरेधीरे चढ़ कर पार करने की कोशिश में लगी रही.

अचानक ही अंडमान में नौकरी का प्रस्ताव आने पर वह एक बदलाव और नए जीवन की तैयारी करते हुए वहां जाने को तैयार हो गई.

अंडमान पहुंच कर वीरा ने अपनी नई नौकरी की शुरुआत की. उसे वहां चारों ओर बांहों के हार स्वागत करते हुए मिले. कुछ दिन तो जानपहचान में निकल गए लेकिन धीरेधीरे अकेलेपन ने पांव पसारने शुरू कर दिए. इधर साथ काम करने वाले मनचलों में ज्यादातर के परिवार तो साथ थे नहीं, सो दिन भर नौकरी करते, रात आते ही बोतल पी कर सोने का सहारा ढूंढ़ लेते.

छुट्टी होने पर घर और घरवाली की याद आती तो फोन घुमा कर झूठासच्चा प्यार दिखा कर कुछ धर्मपत्नी को बेवकूफ बनाते और कुछ अपने को भी. ऐसी नाजुक स्थिति में वे हर जगह हर किसी महिला की ओर बढ़ने की कोशिश करते, पट गई तो ठीक वरना भाभीजी जिंदाबाद. अंडमान में वीरा अपने कमरे की खिड़की पर बैठ कर अकसर यह नजारे देखती. कई बार बाहर आने के लिए उसे भी न्योते मिलते पर उस का पहला जख्म ही इतना गहरा था कि दर्द से वह छटपटाती रहती.

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कंपनी से वीरा को रहने के लिए जो फ्लैट मिला था, उस फ्लैट के ठीक सामने पुरुष कर्मचारियों के फ्लैट थे. बूढ़ा शिवराम शर्मा भी अकसर शराब पी कर नीचे की सीढि़यों पर पड़ा दिख जाता. कैंपस के होटलों में शिवराम खाना कम खाता रिश्ते ज्यादा बनाने की कोशिश करता. उस के दोस्ती करने के तरीके भी अलगअलग होते थे. कभी धर्म के नाते तो कभी एक ही गांव या शहर का कह कर वह महिलाओं की तलाश में रहता था. शिवराम टेलीफोन डायरेक्टरी से अपनी जाति के लोगों के नाम से घरों में भी फोन लगाता. हर रोज दफ्तर में उस के नएनए किस्से सुनने को मिलते. कभीकभी उस की इन हरकतों पर वीरा को गुस्सा भी आता कि आखिर औरत को वह क्या समझता है?

कभीकभी उस का साथी बासु दा मजाक में कह देता, ‘बाबू शिवराम, घर जाने की तैयारी करो वरना कहीं भाभीजी भी किसी और के साथ चल दीं तो घर में ताला लग जाएगा,’ और यह सुनते ही शिवराम उसे मारने को दौड़ता.

3 महीने पहले आए राधू के कारनामे देख कर तो लगता था कि वह सब का बाप है. आते ही उस ने एक पुरानी सी गाड़ी खरीदी, उसे ठीकठाक कर के 3-4 महिलाओं को सुबहशाम दफ्तर लाने और वापस ले जाने लगा था. शाम को भी वह बेमतलब गाड़ी मैं बैठ कर यहांवहां घूमता फिरता.

एक दिन अचानक एक जगह पर लोगों की भीड़ देख कर यह तो लगा कि कोई घटना घटी है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था. भीड़ छंटने पर पता चला कि राधू ने किसी लड़की को पटा कर अपनी कार में लिफ्ट दी और फिर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी तो लड़की ने शोर मचा दिया. जब भीड़ जमा हो गई तो उस ने राधू को ढेरों जूते मारे.

वीरा अकसर सोचती कि आखिर यह मर्दों की दुनिया क्या है? क्यों औरत को  बेवकूफ समझा जाता है. दफ्तर में भी वीरा अकसर सब के चेहरे पढ़ने की कोशिश करती. सिर्फ एकदो को छोड़ कर बाकी के सभी एक पल का सुख पाने के लिए भटकते नजर आते.

वीरा की रातें अकसर आकाश को देखतेदेखते कट जातीं. जीने की तलाश में अंडमान आई वीरा को अब धरती का यह हिस्सा भी बेगाना सा लग रहा था. बहुत उदास होने पर वह अपनी बेटी विपाशा से बात कर लेती. फोन पर अकसर विपाशा मां को समझाती रहती, उस को सांत्वना देती.

5 साल बाद विजेंद्र ने बेटी विपाशा के माध्यम से वीरा को वापस आने का न्योता भेजा, तो वह अकसर यही सोचती, ‘आखिर क्या करे? जाए या न जाए. पुरुषों की दुनिया तो हर जगह एक सी ही है.’ आखिरकार बेटी की ममता के आगे वीरा, विजेंद्र की उस भूल को भी भूल गई, जिस के लिए उस ने अलग रहने का फैसला किया था.

वीरा को याद आया कि घर छोड़ने से पहले उस ने विजेंद्र से कहा था कि मैं ने सिर्फ तुम्हें चाहा है, कभी अगर मेरे कदम डगमगाने लगें या मुझे जीवन में कभी किसी मर्द की जरूरत पड़ी तो वापस तुम्हारे पास लौट आऊंगी. आखिर हर जगह के आदमी तो एक जैसे ही हैं. इस राह पर सब एक पल के लिए भटकते हैं और वह भटका हुआ एक पल क्या से क्या कर देता है.

कभी वीरा सोचती कि बेटी के कहने का मान ही रख लूं. आज वह ममता की भूखी, मानसम्मान से बुला रही है, कहीं ऐसा न हो, कल को उसे भी मेरी जरूरत न रहे.

अचानक वीरा के कानों में विपाशा के स्वर उभरे, ‘‘मां, तुम कहां खोई हो जो तुम्हें गाड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई पड़ रहा है.’’

वीरा हड़बड़ाती हुई गाड़ी की ओर बढ़ी. घर पहुंच कर विपाशा परी की तरह उछलने लगी. कमला से चाय बनवा कर ढेर सारी चीजों से मेज सजा दी.

सामने से आते हुए विजेंद्र ने एक पल को उसे देखा, उस की आंखों में उसे बेगानापन नजर आया. घर का भी एक अजीब सा माहौल लगा. हालांकि गीतांजलि अब  विजेंद्र के जीवन से जा चुकी थी, फिर भी वीरा को जाने क्यों अपने लिए शून्यता नजर आ रही थी. हां, विपाशा की हंसी जरूर उस के दिल को कुछ तसल्ली दे देती.

वह कई बार अपनेआप से ही बातें करती कि ऊपरी तौर पर वह लोगों के लिए प्रतिभासंपन्न है लेकिन हकीकत में वह तिनकातिनका टूट चुकी थी. जीने के लिए विपाशा ही उस की एकमात्र आशा थी.

विजेंद्र की कुछ मीठी यादों के सहारे वीरा अपना दुख भूलने की कोशिश करती, वह तो बेटी के प्रति मां की ममता थी जिस की खुशी के लिए उस ने अपनी वापसी स्वीकार कर ली थी. वह सोेचती, जब जीना ही है तो क्यों न अपने इस घर के आंगन में ही जियूं, जहां दुलहन बन के आई थी.

वीरा की वापसी से विपाशा की खुशी में जो इजाफा हुआ उसे देख कर काम वाली दादी अकसर कहती, ‘‘बेटा, निराश मत हो. विजेंद्र एक बार फिर से वही विजेंद्र बन जाएगा, जो शादी के कुछ सालों तक था. मैं जानती हूं कि तुम्हें विजेंद्र की जरूरत है और विपाशा को तुम्हारी. क्या तुम विपाशा की खुशी के लिए विजेंद्र की वापसी का इंतजार नहीं कर सकतीं?

‘‘आखिर तुम विपाशा की मां हो और समाज ने जो अधिकार मां को दिए हैं वह बाप को नहीं दिए. तुम्हारी वापसी इस घर के बिखरे तिनकों को फिर से जोड़ कर घोंसले का आकार देगी. खुद पर भरोसा रखो, बेटी.’’

Best Hindi Story : केतकी – घर के बंटवारे में क्या होती है बहू की भूमिका?

Best Hindi Story : ‘‘दुलहन आ गई. नई बहू आ  गई,’’ कार के दरवाजे पर  रुकते ही शोर सा मच गया.

‘‘अजय की मां, जल्दी आओ,’’ किसी ने आवाज लगाई, ‘‘बहू का स्वागत करो, अरे भई, गीत गाओ.’’

अजय की मां राधा देवी ने बेटेबहू की अगवानी की. अजय जैसे ही आगे बढ़ने लगा कि घर का दरवाजा उस की बहन रेखा ने रोक लिया, ‘‘अरे भैया, आज भी क्या ऐसे ही अंदर चले जाओगे. पहले मेरा नेग दो.’’

‘‘एक चवन्नी से काम चल जाएगा,’’ अजय ने छेड़ा.

भाईबहन की नोकझोंक शुरू हो गई. सब औरतें भी रेखा की तरफदारी करती जा रही थीं.

केतकी ने धीरे से नजर उठा कर ससुराल के मकान का जायजा लिया. पुराने तरीके का मकान था. केतकी ने देखा, ऊपर की मंजिल पर कोने में खड़ी एक औरत और उस के साथ खड़े 2 बच्चे हसरत भरी निगाह से उस को ही देख रहे थे. आंख मिलते ही बड़ा लड़का मुसकरा दिया. वह औरत भी जैसे कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन जबरन अपनेआप को रोक रखा था. तभी छोटी बच्ची ने कुछ कहा कि वह अपने दोनों बच्चों को ले कर अंदर चली गई.

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तभी रेखा ने कहा, ‘‘अरे भाभी, अंदर चलो, भैया को जितनी जल्दी लग रही है, आप उतनी ही देर लगा रही हैं.’’ केतकी अजय के पीछेपीछे घर में प्रवेश कर गई.

करीब 15 दिन बीत गए. केतकी ने आतेजाते कई बार उस औरत को देखा जो देखते ही मुसकरा देती, पर बात नहीं करती थी. कभी केतकी बात करने की कोशिश करती तो वह जल्दीजल्दी ‘हां’, ‘ना’ में जवाब दे कर या हंस कर टाल जाती. केतकी की समझ में न आता कि माजरा क्या है.

लेकिन धीरेधीरे टुकड़ोंटुकड़ों में उसे जानकारी मिली कि वह औरत उस के पति अजय की चाची हैं, लेकिन जायदाद के झगड़े को ले कर उन में अब कोई संबंध नहीं है. जायदाद का बंटवारा देख कर केतकी को लगा कि उस के ससुर के हिस्से में एक कमरा ज्यादा ही है. फिर क्या चाचीजी इस कारण शादी में शामिल नहीं हुईं या उस के सासससुर ने ही उन को शादी में निमंत्रण नहीं दिया, ‘पता नहीं कौन कितना गलत है,’ उस ने सोचा.

एक दिन केतकी जब अपनी सास राधा के पास फुरसत में बैठी थी  तो उन्होंने पुरानी बातें बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है, मैं इसी तरह चाव से एक दिन कमला को अपनी देवरानी नहीं, बहू बना कर लाई थी. मेरी सास तो बिस्तर से ही नहीं उठ सकती थीं. वे तो जैसे अपने छोटे बेटे की शादी देखने के लिए ही जिंदा थीं. शादी के बाद सिर्फ 1 माह ही तो निकाल पाईं. मैं ने सास की तरह ही इस की देखभाल की और देखा जाए तो देवर प्रकाश को मैं ने अपने बेटे की तरह ही पाला है. तुम्हारे पति अजय और प्रकाश में सिर्फ 7 साल का अंतर है. उस की पढ़ाईलिखाई, कामधंधा, शादीब्याह आदि सबकुछ मेरे प्रयासों से ही तो हुआ…फिर बेटे जैसा ही तो हुआ,’’ राधा ने केतकी की ओर समर्थन की आशा में देखते हुए कहा.

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‘‘हां, बिलकुल,’’ केतकी ने आगे उत्सुकता दिखाई.

‘‘वैसे शुरू में तो कमला ने भी मुझे सास के बराबर आदरसम्मान दिया और प्रकाश ने तो कभी मुझे किसी बात का पलट कर जवाब नहीं दिया…’’ वे जैसे अतीत को अपनी आंखों के सामने देखने लगीं, ‘‘लेकिन बुरा हो इन महल्लेवालियों का, किसी का बनता घर किसी से नहीं देखा जाता न…और यह नादान कमला भी उन की बातों में आ कर बंटवारे की मांग कर बैठी,’’ राधा ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘क्या बात हुई थी?’’ केतकी उत्सुकता दबा न पाई.

‘‘इस की शादी के बाद 3 साल तक तो ठीकठाक चलता रहा, लेकिन पता नहीं लोगों ने इस के मन में क्याक्या भर दिया कि धीरेधीरे इस ने घर के कामकाज से हाथ खींचना शुरू कर दिया. हर बात में हमारी उपेक्षा करने लगी. फिर एक दिन प्रकाश ने तुम्हारे ससुर से कहा, ‘भैया, मैं सोचता हूं कि अब मां और पिताजी तो रहे नहीं, हमें मकान का बंटवारा कर लेना चाहिए जिस से हम अपनी जरूरत के मुताबिक जो रद्दोबदल करवाना चाहें, करवा कर अपनेअपने तरीके से रह सकें.’

‘‘‘यह आज तुझे क्या सूझी? तुझे कोई कमी है क्या?’ प्रकाश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए तुम्हारे ससुर ने कहा.

‘‘‘नहीं, यह बात नहीं, लेकिन बंटवारा आज नहीं तो कल होगा ही, होता आया है. अभी कर लेंगे तो आप भी निश्ंिचत हो कर अजय, विजय के लिए कमरे तैयार करवा पाएंगे. मैं अपना गोदाम और दफ्तर भी यहीं बनवाना चाहता हूं. इसलिए यदि ढंग से हिस्सा हो जाए तो…’

‘‘‘अच्छा, शायद तू अजय, विजय को अपने से अलग मानता है? लेकिन मैं तो नहीं मानता, मैं तो तुम तीनों का बराबर बंटवारा करूंगा और वह भी अभी नहीं…’

‘‘‘यह आप अन्याय कर रहे हैं, भैया,’ प्रकाश की आंखें भर आईं और वह चला गया.

‘‘बाद में काफी देर तक उन के कमरे से जोरजोर से बहस की आवाजें आती रहीं.

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‘‘खैर, कुछ दिन बीते और फिर वही बात. अब बातबात में कमला भी कुछ कह देती. कामकाज में भी बराबरी करती. घर में तनाव रहने लगा. बात मरदों की बैठक से निकल कर औरतों में आ गई. घर में चैन से खानापीना मुश्किल होने लगा तो महल्ले और रिश्ते के 5 बुजुर्गों को बैठा कर फैसला करवाने की सोची. प्रकाश कहता कि मुझे आधा हिस्सा दो. हम कहते थे कि हम ने तुम्हें बेटे की तरह पाला है, तुम्हारी पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह सभी किया, हम 3 हिस्से करेंगे.’’

‘‘लेकिन जब बंटवारा हो गया तो अब इस तरह संबंध न रखने की क्या तुक है?’’ केतकी ने पूछ ही लिया.

‘‘रोजरोज की किटकिट से मन खट्टा हो गया हमारा, इसलिए जब बंटवारा हो गया तो हम ने तय कर लिया कि उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखेंगे,’’ राधा ने बात साफ करते हुए कहा.

‘‘लेकिन शादीब्याह, जन्म, मृत्यु में आनाजाना भी…?’’

‘‘अब यह उन की मरजी. अच्छा बताओ, तुम्हारी शादी में कामकाज के बाबत पूछना, शामिल होना क्या उन का कर्र्तव्य नहीं था, लेकिन प्रकाश तो शादी के 3 दिन पहले अपने धंधे के सिलसिले में बाहर चला गया था…जैसे उस के बिना काम ही नहीं चलेगा,’’ राधा ने अपने मन की भड़ास निकाली.

‘‘आप ने उन से आने को कहा तो होगा न?’’

‘‘अच्छा,’’ राधा ने मुंह बिचकाया, ‘‘जिसे मैं घर में लाई, उसे न्योता देने जाऊंगी? कल विजय की शादी में तुम को न्योता दूंगी, तब तुम आओगी?’’

केतकी को लगा, अब पुरानी बातों पर आया गुस्सा कहीं उस पर न निकले. वह धीरे से बोली, ‘‘मैं चाय का इंतजाम करती हूं.’’

केतकी सोचने लगी कि कभी चाची से बात कर के ही वास्तविक बात पता चलेगी. उस ने चाची व उन के बच्चों से संपर्क बढ़ाना शुरू किया. जब भी उन को देखती, 1-2 मिनट बात कर लेती. एक दिन तो कमला ने कहा भी, ‘‘तुम हम से बात करती हो, भैयाभाभी कहीं नाराज हो गए तो?’’

‘‘आप भी कैसी बात करती हैं, वे भला क्यों नाराज होंगे?’’ केतकी ने हंसते हुए कहा.

अब केतकी ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि एकदूसरे के मन पर जमा मैल हटाना है. इसलिए एक दिन सास से बोली, ‘‘चाचीजी कह रही थीं कि आप कढ़ी बहुत बढि़या बनाती हैं. कभी मुझे भी खिलाइए न.’’

इसी तरह केतकी कमला से बात करती तो कहती, ‘‘मांजी कह रही थीं कि आप भरवां बैगन बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

कहने की जरूरत नहीं कि ये बातें वह किसी और के मुंह से सुनती, पर सास को कहती तो चाची का नाम बताती और चाची से कहती तो सास का नाम बताती. वह जानती थी कि अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. फिर अगर वह अपने दुश्मन के मुंह से हो तो दुश्मनी भी कम हो जाती है.

इस तरह बातों के जरिए केतकी एकदूसरे के मन में बैठी गलतफहमी और वैमनस्य को दूर करने लगी. एक दिन तो उस को लगा कि उस ने गढ़ जीत लिया. हुआ क्या कि केतकी के नाम की चिट्ठी पिंकी ले कर आई और गैलरी से उस ने आवाज लगाई, ‘‘भाभीजी.’’

केतकी उस समय रसोई में थी. वहीं से बोली, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप की चिट्ठी.’’

केतकी जैसे ही बाहर आने लगी, पिंकी गैलरी से चिट्ठी फेंक कर भाग गई. जब उस की सास ने यह देखा तो बरबस पुकार बैठी, ‘‘पिंकी…अंदर तो आ…’’

तब केतकी को आशा की किरण ही नजर नहीं आई, उसे विश्वास हो गया कि अब दिल्ली दूर नहीं है.  तभी राधा को बेटी की बातचीत के सिलसिले में पति और बेटी के साथ एक हफ्ते के लिए बनारस जाना था. केतकी को दिन चढ़े हुए थे. इसलिए उन्हें चिंता थी कि क्या करें. पहला बच्चा है, घर में कोई बुजुर्ग औरत होनी ही चाहिए. आखिरकार केतकी को सब तरह की हिदायतें दे कर वह रवाना हो गईं.

3-4 दिन आराम से निकले. एक दिन दोपहर के समय घर में अजय और विजय भी नहीं थे. ऐसे में केतकी परेशान सी कमला के पास आई. उस की हैरानपरेशान हालत देख कर कमला को कुछ खटका हुआ, ‘‘क्या बात है, ठीक तो हो…?’’

‘‘पता नहीं, बड़ी बेचैनी हो रही है. सिर घूम रहा है,’’ बड़ी मुश्किल से केतकी बोली.

‘‘लेट जाओ तुरंत, बिलकुल आराम से,’’ कहती हुई कमला नीचे पति को बुलाने चली गई.

कमला और प्रकाश उसे अस्पताल ले गए और भरती करा दिया. फिर अजय के दफ्तर फोन किया.

अजय ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ वह बदहवास सा हो रहा था.

‘‘शायद चिंता से रक्तचाप बहुत बढ़ गया है,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘मैं इस के पीहर से किसी को बुला लेता हूं. आप को बहुत तकलीफ होगी,’’ अजय ने कहा.

‘‘ऐसा है बेटे, तकलीफ के दिन हैं तो तकलीफ होगी ही…घबराने की कोई बात नहीं…सब ठीक हो जाएगा,’’ प्रकाश ने अजय के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बाकी जैसा तुम उचित समझो.’’

‘‘वैसे डाक्टर ने क्या कहा है?’’ अजय ने चाचा से पूछा.

‘‘रक्तचाप सामान्य हो रहा है. कोई विशेष बात नहीं है.’’

केतकी को 2 दिन अस्पताल में रहना पड़ा. फिर छुट्टी मिल गई, पर डाक्टर ने आराम करने की सख्त हिदायत दे दी.

घर आने पर सारा काम कमला ने संभाल लिया. केतकी इस बीच कमला का व्यवहार देख कर सोच रही थी कि गलती कहां है? कमला कभी भी उस के सासससुर के लिए कोई टिप्पणी नहीं करती थी.  लेकिन एक दिन केतकी ने बातोंबातों में कमला को उकसा ही दिया. उन्होंने बताया, ‘‘मैं ने बंटवारा कराया, यह सब कहते हैं, लेकिन क्या गलत कराया? माना उम्र में वे मेरे सासससुर के बराबर हैं. इन को पढ़ायालिखाया भी, लेकिन सासससुर तो नहीं हैं न? यदि ऐसा ही होता तो क्या तुम्हारी शादी में हम इतने बेगाने समझे जाते. फिर यदि मैं लड़ाकी ही होती तो क्या बंटवारे के समय लड़ती नहीं?

‘‘सब यही कहते हैं कि मैं ने तनाव पैदा किया, पर मैं ने यह तो नहीं कहा कि संबंध ही तोड़ दो. एकदूसरे के दुश्मन ही बन जाओ. अपनेअपने परिवार में हम आराम से रहें, एकदूसरे के काम आएं, लेकिन भैयाभाभी तो उस दिन के बाद से आज तक हम से क्या, इन बच्चों से भी नहीं बोले. यदि वे किसी बात पर अजय से नाराज हो जाएं तो क्या विजय की शादी में तुम्हें बुलाएंगे नहीं? ऐसे बेगानों जैसा व्यवहार करेंगे क्या? बस, यही फर्क होता है और होता आया है…उस के लिए मैं किसी को दोष नहीं देती. खैर, छोड़ो इस बात को…जो होना था, हो गया. बस, मैं तो यह चाहती हूं कि दोनों परिवारों में सदा मधुर संबंध बने रहें.’’

‘‘मांजी भी यही कहती हैं,’’ केतकी ने अपनेपन से कहा.

‘‘सच?’’ कमला ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां.’’

‘‘फिर वे हम से बेगानों जैसा व्यवहार क्यों करती हैं?’’

‘‘वे बड़ी हैं न, अपना बड़प्पन बनाए रखना चाहती हैं. आप जानती ही हैं, वे उस दौर की हैं कि टूट जाएंगी, पर झुक नहीं सकतीं.’’

केतकी की बात सुन कर कमला कुछ सोचने लगी.  शाम तक राधा, रेखा और दुर्गाचरण आ गए. आ कर जब देखा कि केतकी बिस्तर पर पड़ी है तो राधा के हाथपांव फूल गए.

राधा ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘कुछ नहीं, अब तो बिलकुल ठीक हूं, पर चाचीजी मुझे उठने ही नहीं देतीं,’’ केतकी ने कहा.

‘‘ठीक है…ठीक है…तुम आराम करो. अब सब मैं कर लूंगी,’’ राधा ने केतकी की बात अनसुनी करते हुए अपने सफर की बातें बतानी शुरू कर दीं.

तभी कमला ने कहा, ‘‘आप थक कर आए हैं. शाम का खाना मैं ही बना दूंगी.’’

‘‘रोज खाना कौन बनाती थी?’’ राधा ने जानना चाहा.

‘‘चाचीजी ने ही सब संभाल रखा था अभी तक तो…’’ अजय ने बताया.

‘‘अस्पताल में भी ये ही रहीं. एक मिनट भी भाभीजी को अकेला नहीं छोड़ा,’’ विजय ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘तो फिर अब क्या पूछ रही हो?’’ दुर्गाचरण ने राधा की ओर सहमति की मुद्रा में देखते हुए कहा.

‘‘हां, और क्या, हम क्या पराए हैं जो अब हम को खाना नहीं खिलाओगी?’’ राधा ने कमला की ओर देख कर कहा.

‘‘जी…अच्छा,’’ कमला जाने लगी.

दुर्गाचरण और राधा ने एकदूसरे की   ओर देखा, फिर दुर्गाचरण ने    कहा, ‘‘अपना आखिर अपना ही होता है.’’

‘‘हम यह बात भूल गए थे.’’

तभी कमला कुछ पूछने आई तो राधा ने कहा, ‘‘हमें माफ करना बहू…’’

‘‘छि: भाभीजी…आप बड़ी हैं. कैसी बात करती हैं…’’

‘‘यह सही कह रही है, बहू, बड़े भी कभीकभी गलती करते हैं,’’ दुर्गाचरण बोले तो केतकी के होंठों पर मुसकान खिल उठी

लेखिका- प्रभा जैन

Budget 2025 : अपना खजाना भरने का बजट

Budget 2025 : 1 फरवरी को पेश किए गए मोदी सरकार के बजट में आयकर की जो छूट दी गई है वह असल में बढ़ती महंगाई के दंश को कम करने वाली ज्यादा है, जनता के हाथों में ज्यादा पैसा छोड़ने की नीयत कम है. 1 लाख रुपए मासिक तक की आय देश में कम ही लोगों की है और उन को आयकर में छूट देना या न देना जनता को राहत देने का कोई बड़ा काम नहीं है.
सरकार जनता के हितों के काम कर रही है, यह देखना ज्यादा जरूरी है. फिलहाल तो यह लगता है कि केवल बहुत गरीबों को वोटों की खातिर राहत देने के अलावा सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन और नौकरियों के मामलों में कुछ खास नहीं कर रही है और 2024-25 के लेखाजोखों और 2025-26 के वायदों में ऐसा कुछ नहीं है कि जनता संसद के सामने अपने धन्यवाद जुलूस निकालने को बेचैन हो.

सरकार का बजट अब एक नौन इवैंट, निरर्थक सा हो चला है क्योंकि सरकार पूरे साल कर कम करती या बढ़ाती रहती है और आयकरों के साथ जीएसटी की मार लगातार जनता पर पड़ती ही रहती है. जो छूट मिली है वह सरकार का काम कम करेगी क्योंकि इतनी ज्यादा रिटर्न्स निल अमाउंट की होगी.सरकारों के कानून पेचीदा होते हैं और कहां क्या बदलाव किया है और 2-4 महीनों के बाद उस का कैसा असर पड़ेगा यह अनुमान लगाना अब संभव नहीं रहा है.

मोटेतौर पर यही कहा जा सकता है कि बजट अगर सरकार का 2025 का आर्थिक संकल्प है तो इस पर ज्यादा टिप्पणी करने लायक कुछ नहीं है चाहे अखबारों और टीवी चैनलों ने इस पर खूब शब्द लिखे हैं. बजट से सरकार की जनता के प्रति सहानुभूति या कर्तव्यनिष्ठा कहीं नहीं टपकती. बजट से यह भी महसूस नहीं होता कि छोटा हो या बड़ा व्यापारी या उद्योगपति इस बजट संकल्प के बाद कुछ राहत महसूस करेगा, कुछ नए काम करेगा.

सरकारों के हर फैसलों में कुछ खास को मोटा लाभ होता है और वह इस बार भी होगा यह पक्का है. सरकार ने कुछ चीजों पर आयात कर कम किया है क्योंकि कुछ उद्योग इस की लगातार मांग कर रहे थे ताकि उन का मुनाफा बढ़ सके. बजट से एक दिन पहले जारी आर्थिक सर्वेक्षण में यह चिंता व्यक्त की गई थी कि कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है पर न उन के उत्पादों का दाम कम हो रहा है और न उन के कर्मचारियों के वेतन बढ़ रहे हैं.

सरकार का बजट हमेशा की तरह संपन्न लोगों को और संपन्न कराने और अपना खजाना भरने के उद्देश्य से बनाया गया है. अब यह इतने सारे पृष्ठों और इतने आंकड़ों में होता है कि जनता को इस की गहराई समझाना असंभव है और इसी आड़ में सरकार अपनों को अरबों के ग्रांट दे कर खुश कर देती हैं. हिंदू धर्म से जुड़ी कितनी ही संस्थाओं को अतिरिक्त लाभ इस बजट से होगा यह जानकारी इस तरह आंकड़ों में छिपी है कि किसी को मालूम नहीं होता. आम जनता पैसेपैसे को पहले ही तरह तरसती रहेगी यह पक्का है.

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