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Entertainment : 17 फ्लौप फिल्मों के बाद अक्षय की पीआर टीम ने ‘स्काई फोर्स’ को जबरदस्ती कराई हिट

Entertainment : 60 करोड़ रुपए की टिकट खरीद कर फिल्म ‘स्काई फोर्स’ के निर्माता व कलाकारों ने मुफ्त में बांटी?

24 जनवरी, 2025 से शुरू हुआ जनवरी माह का चौथा सप्ताह बौलीवुड में काफी धमाकेदार रहा. बौलीवुड के इतिहास में अब तक जो कुछ नहीं हुआ था, वह सब हो गया.

गणतंत्र दिवस के अवसर पर रिलीज हुई फिल्म ‘स्काई फोर्स’ के निर्माताओं ने सारी हदें पार करते हुए 1965 के भारत पाक युद्ध के समय शहीद हुए एअरफोर्स स्क्वार्डन लीडर ए बी देवैय्या के परिवार वालों का भी अपमान करने से बाज नही आए. जी हां! 24 जनवरी को प्रदर्शित हुई फिल्म ‘स्काई फोर्स’ 1965 के भारत पाक युद्ध के समय अपने साथियों को बचाते हुए शहीद हुए एअरफोर्स स्क्वार्डन लीडर ए बी देवैय्या के जीवन व वीरता पर आधारित है. मगर निर्माताओं ने फिल्म में स्कवार्डन लीडर ए बी देवैय्या के किरदार का नाम बदल कर टी ए विजय कर दिया. यह अलग बात है कि फिल्म खत्म होने पर स्क्वार्डन लीडर ए बी देवैय्या की तस्वीर लगा कर सच बयां कर दिया गया.

निर्माताओं की तरफ से पिछले 2-3 माह से प्रचारित किया जा रहा था कि वह गणतंत्र दिवस पर शहीद को सम्मान देने के लिए फिल्म ‘स्काई फोर्स’ ले कर आ रहे हैं. मगर सच यह है कि किसी के भी अंदर शहीद देवैय्या के सम्मान की कोई चिंता नजर नहीं आई, बल्कि इस फिल्म के साथ अक्षय कुमार व वीर पहाड़िया को अपनीअपनी इज्जत बचाने की चिंता सवार रही. लगातार 17 असफल फिल्में दे चुके अक्षय कुमार ने इस फिल्म को हिट साबित कराने के लिए जो कुछ किया, उसे शर्मनाक ही कहा जाएगा. तो वहीं इस फिल्म से उद्योगपति पिता व फिल्म निर्माता मां के के बेटे वीर पहारिया ने अभिनय जगत में कदम रखा है.

वीर पहाड़िया ने इस फिल्म में शहीद ए बी देवैय्या का ही किरदार निभाया है, यह एक अलग बात है कि फिल्म में शहीद ए बी देवैय्या का नाम टी के विजया रखा गया है. वीर पहाड़िया और मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी बचपन के दोस्त हैं और आज भी लोग इन की दोस्ती की मिसाल देते हैं.

हम यहां याद दिला दें कि फिल्म ‘स्काई फोर्स’ का निर्माण मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ और दिनेश विजन की कंपनी ‘मैडौक फिल्म्स’ ने मिल कर किया है.

वीर पहाड़िया के पिता संजय पहाड़िया की मंशा जबरियन अपने बेटे को ‘न्यू बोर्न सुपर स्टार’ के रूप में स्थापित करने की रही. इसी वजह से फिल्म के रिलीज से एक दिन पहले निर्माताओं की तरफ से विज्ञापन दे दिया गया कि सभी दर्शकों को सिनेमाघर की टिकट खरीदने पर 250 रूपए से 400 रुपए की छूट दी जाएगी. परिणामतः 400 रुपए तक की दर वाली टिकटें तो हर दर्शक को मुफ्त में मिली. फिर भी सिर्फ 20 प्रतिशत दर्शक ही सिनेमाघर पहुंचे. इस के बाद निर्माताओं व फिल्म के कलाकारों ने खुद टिकटें खरीद कर घर घर बंटवाई.

तो वहीं सोशल मीडिया हैंडल इंस्टाग्राम पर वीर पहाड़िया की हजारों रील्स व वीडियो वायरल की गई, जिन में वीर पहारिया को ‘न्यू बोर्न सुपर स्टार’ सहित कई तमगे दिए गए.

वीर पहाड़िया की पीआर टीम ने तो सारी सीमाएं लांघते हुए एक वीडियो जारी किया, जिस में एक वृद्ध महिला फिल्म देख कर बाहर निकलते हुए रो रही है और वीर पहाड़िया उस के आंसू पोछे रहे हैं.

इस वीडियो को शहीद ए बी देवैय्या के परिवार के लोगों ने शहीद देवैय्या और उन के परिवार के हर सदस्य को अपमानित करने वाला कृत्य बताया पर इस तरह के कई वीडियो इंस्टाग्राम पर मौजूद हैं. उधर अक्षय कुमार की पीआर टीम लिखवा रही है कि ‘स्काई फोर्स’ से हुई अक्षय कुमार की जबरदस्त वापसी और तो और अक्षय कुमार ने 27 जनवरी को मुंबई के बोरीवली इलाके की अपनी एक प्रोपर्टी सवा 4 करोड़ रुपए में बेच डाली, तब मीडिया में छपा कि टिकटें खरीद कर बांटने के लिए अक्षय कुमार ने अपनी प्रोपर्टी बेची.

इसी बीच ट्रेड एनालिस्ट और फिल्म इनफौर्मेशन पत्रिका के संपादक कोमल नाहटा ने पीवीआर सिनेमा के कुछ मैनेजरों व अन्य सिनेमाघरों के मालिकों के हवाले से बताया कि फिल्म निर्माता व कलाकारों ने मिल कर ‘स्काई फोर्स’ की 60 करोड़ रुपए की टिकटें खरीद कर मुफ्त में बांटी. इन टिकटों को पाने वाले लोग भी सिनेमाघर नहीं गए.

बहरहाल, निर्माताओं द्वारा खुद की जेब से खरीदे गए 60 करोड़ रुपए की टिकटों को मिला कर पूरे 7 दिन में ‘स्काई फोर्स’ केवल 86 करोड़ रुपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र कर सकी. इस में से हम 60 करोड़ निकाल दें तो बचेंगे 26 करोड़ रुपए. जबकि विक्कीपीडिया के अनुसार फिल्म का बजट 160 करोड़ रुपए हैं.

अन्य सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म का बजट 380 करोड़ रुपए है, जिस में से अक्षय कुमार की फीस 90 करोड़ रुपए है.
इस पूरे सप्ताह वीर पहाड़िया, अक्षय कुमार और निर्माताओं की तरफ से तमाम पत्रकारों, फिल्म आलोचकों व यूट्यूबरों को धमकाने की भी खबरें गर्म रहीं जिन्हें धमकी मिली, उन में से कईयों ने बाकायदा इस की जानकारी वीडियो बना कर आम जनता तक पहुंचाई.

जनवरी के पहले, दूसरे व तीसरे सप्ताह रिलीज हुई फिल्में भी रो ही रही हैं. 10 जनवरी को रिलीज हुई फिल्म ‘गेम चेंजर’ 21 दिन में सिर्फ 130 करोड़ ही एकत्र किए, जबकि फिल्म का बजट 500 करोड़ है. 500 करोड़ रुपए की लागत वसूल करने के लिए ‘गेम चेंजर’ को चाहिए था कि वह बौक्स औफिस से कम से कम 1500 करोड़ रुपए एकत्र करती. पर ऐसा नहीं हुआ. यह फिल्म बुरी तरह से घाटे में रही.

10 जनवरी को ही सोनू सूद की 80 करोड़ रुपए की लागत वाली फिल्म ‘फतेह’ 21 दिन में केवल साढे 13 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी.

17 जनवरी को रिलीज हुई अजय देवगन, अमन देवगन और राशा थडाणी की 50 करोड़ की लागत वाली फिल्म 15 दिन में महज 8 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी. वहीं 17 जनवरी को ही रिलीज हुई कंगना रनौत की 80 करोड़ रुपए में बनी फिल्म ‘इमरजेंसी’ 15 दिन में केवल 17 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी.

31 जनवरी को रिलीज हुई शाहिद कपूर की फिल्म ‘देवा’ तो पहले ही दिन टें बोल चुकी है.
इस तरह देखा जाए तो एक जनवरी से 21 जनवरी यानी कि पूरे जनवरी माह में एक भी फिल्म ऐसी नहीं है जिस ने अपनी लागत की 10 प्रतिशत रकम भी भी बौक्स औफिस पर ईमानदारी से एकत्र किया हो.

Bollywood : धर्म पर बनी 5 बौलीवुड फिल्में

Bollywood : फिल्ममेकर्स कुछ नया और बड़ा करने के लिए धार्मिक फिल्मों का सहारा लेते हैं, ये दर्शकों के बीच सब से ज्यादा पसंद भी की जाती हैं. बौलीवुड में ऐसी ही कुछ फिल्में हैं जो काफी विवादों में रहने के बावजूद भी छप्परफाड़ कमाई कर चुकी हैं.

हिंदी फिल्में असल में मनोरंजन का एक पैकेज हुआ करती हैं, जिस में गाने, डांस, मारधाड़ आदि दृश्य होते हैं. फिल्मों को समाज का आईना भी कहा जाता है, इस वजह से हिंदी फिल्में भी उस बात को ध्यान में रखते हुए ही बनाई जाती हैं, जिस में सब से अधिक धार्मिक फिल्में सब को अधिक पसंद आती है, क्योंकि धर्म हर व्यक्ति की भावनाओं से जुड़ा होता है और इस पर बनी फिल्में दर्शकों को अधिक आकर्षित करती हैं. बौलीवुड की ऐसी 5 सफल धार्मिक फिल्में हैं, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. ऐसी फिल्मों पर कई बार सवाल भी उठाए जाते हैं, लेकिन फिल्ममेकर इसे बनाने से नहीं चूकते.

पीके

अभिनेता आमिर खान और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘पीके’ भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे को ले कर बनाई गई फिल्म है, जिस में धर्म को ले कर आडंबर और लूटपाट की घटनाओं के बीच एक दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है, जिस के भाषा का कोई आचरण नहीं और न ही उस के शरीर पर वस्त्रों का कोई आवरण है. सच्चे दिल का एक इंसान है, लेकिन उस के बातचीत और सवालों से धरतीवासी चकित हो जाते हैं और मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है यानि पीके घूम रहा है.

धर्म के नाम पर चल रही राजनीति, सारे भेदभाव और आस्थाओं में बटे इस समाज में भटकते हुए पीके के जरिए सारी कुरीतियों के सामने व्यक्ति खड़ा मिलता है, जो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी के हिस्से बन चुके हैं और हम सभी उस के आदि बन चुके है. इसलिए मन में कोई सवाल नहीं उठते. मुसीबतों के साथसाथ हमारे विचार भी संकीर्ण होते जा रहे हैं. निर्देशक राजकुमार हिरानी और पटकथा लेखक अभिजीत जोशी की ये कल्पना का यह एलियन चरित्र हमारे ढोंग को बेनकाब करता है, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.

ओ माय गौड

बौलीवुड की एक लोकप्रिय धार्मिक फिल्म “ओएमजी: ओह माय गौड!” (2012) है, जिस का निर्देशन उमेश शुक्ला ने किया है. यह फिल्म एक भारतीय व्यंग्यपूर्ण कौमेडीड्रामा फिल्म है, जो नास्तिकता और ईश्वर में विश्वास की अवधारणा पर आधारित है. फिल्म में अभिनेता अक्षय कुमार मुख्य भूमिका में है और यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो भूकंप में अपनी दुकान नष्ट होने के बाद भगवान पर मुकदमा करता है. यह फिल्म “कांजी विरुद्ध कांजी” नामक एक गुजराती नाटक का रूपांतरण है और दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय रही. इस फिल्म को समीक्षकों ने सराहा और व्यावसायिक रूप से सफल रही.

धर्म संकट में

फिल्म ‘धर्म संकट में’ ब्रिटिश की कौमेडी फिल्म द इन्फिडेल से प्रेरित कहानी है. इस में धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण हास्यास्पद तरीके से किया गया है. ऐसी फिल्मों में अधिकतर अभिनेता परेश रावल ही होते हैं, क्योंकि वे ऐसी भूमिका को अच्छी तरीके से निभा पाते हैं. उन्होंने धर्मपाल के चरित्र को बखूबी निभाया है. निर्देशक फुवाद खान ने भारतीय संदर्भ में यहूदी और मुसलमान चरित्रों की मूल कहानी को हिंदी और मुसलमान में बदल दिया और मुसलमानों के बारें में प्रचालित धारणाओं और मिथकों पर संवेदनशील कटाक्ष किया है. फिल्मों के इतिहास में ऐसी कई फिल्में बनी हैं, जिस में बताया गया है कि इंसान पैदाइशी अच्छा या बुरा नहीं होता, उस के हालात और परवरिश उस के वर्तमान के कारण होते हैं.

ब्रह्मास्त्र

ब्रह्मास्त्र एक बौलीवुड ड्रामा फिल्म है, जिस का निर्देशन अयान मुखर्जी ने किया है. फिल्म में रणबीर कपूर, अलिया भट्ट, अमिताभ बच्चन, मौनी रौय और एक्टर नागार्जुन, मुख्य भूमिका में हैं. कहानी शुरू होती है सदियों पहले जहां कुछ महान ऋषिमुनि ज्ञानी हिमालय की शरण में घोर तपस्या कर रहे होते हैं. इस बेहद कड़ी तपस्या से उन्हें मिलता है, एक अनोखा वरदान, जो एक ब्रह्म शक्ति है. इस ब्रह्म शक्ति से अनेक प्रभावशाली अविश्वसनीय अस्त्रों का जन्म होता है.

यह ऐसे अस्त्र हैं जो प्रकृति की विभिन्न शक्तियों से बने और भरे हुए हैं, जैसे वानरास्त्र, नंदी अस्त्र, प्रभा अस्त्र, अग्नि अस्त्र और सब से आखिर में जन्म होता है, उस सब से महान और अत्यंत सर्वशक्तिशाली अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, जिस से और सभी अस्त्रों की शक्ति जुड़ी हुई हैं. इस अस्त्र को, ऋषिमुनियों ने ‘ब्रह्मास्त्र’ नाम दिया. ये आयन मुखर्जी की कल्पना मात्र है, जिसे दर्शकों ने पसंद किया.

कल्कि 2898 एडी

कल्कि 2898 एडी एक डिस्टोपियन (कोई काल्पनिक दुनिया या समाज जहां लोग भयानक जीवन जीते हैं) साइंस फिक्शन, एक्शन फिल्म है, जो हिंदू भगवान विष्णु के आधुनिक अवतार के इर्दगिर्द घूमती है. यह फिल्म महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध के छह हजार साल बाद की कहानी है. इस फिल्म में भगवान विष्णु के आधुनिक अवतार की कहानी है, जो दुनिया को बुरी ताकतों से बचाने के लिए धरती पर अवतरित हुए थे. फिल्म में अभिनेता प्रभास मुख्य भूमिका में हैं और अमिताभ बच्चन, कमल हासन, दीपिका पादुकोण, दिशा पाटनी और ब्रह्मानंदम मुख्य भूमिकाओं में शामिल हैं. सिनेमाघरों में राज करने के बाद फिल्म ओटीटी पर भी दर्शकों को पसंद आई है.

कहानी साल 2898 की काशी की है और दुनिया में बस यही एक शहर बचा है. काशी की रचना ही नगरों के विकास के क्रम में सबसे पहले हुई. काशी का कोतवाल, भैरव (प्रभास) को माना जाता है. दक्षिण में नामों के उच्चारण के समय अंतिम शब्द को दीर्घ स्वरूप में बोलने के चलते यहां वह भैरवा है. ये उन दिनों की काशी है, जब गंगा में पानी नहीं है. हवा में औक्सीजन नहीं है और बरसों से किसी ने पानी बरसते देखा नहीं है.

भैरव और बुज्जी की ट्यूनिंग समझाती है कि कहानी में कुल तीन तरह की दुनिया है. एक काम्प्लैक्स जिस का संचालन सुप्रीम यास्किन (कमल हासन) के पास है. वह गर्भवती स्त्रियों के भ्रूण से मज्जा निकाल कर खुद को जीवित रखे हुए है. काशी में भैरव की ऐयाशी चल रही है. इस के अलावा मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की ब्लैक पैंथर वाली कहानी की वकांडा जैसी एक दुनिया भी यहां है, जो तकनीकी रूप से विकसित और बाकी दुनिया की नजरों से छिपी हुई है. जहां ‘अवतार’ की मां का दुश्मन ही अब मां का रक्षक बन जाता है.

ऐसी फिक्शन वाली धार्मिक फिल्में आज की नई जेनरेशन को प्रभावित करने की खास वजह इन की कहानियों से उन का सरोकार न होना है. ऐसे में फिल्ममेकर ऐसी फिल्मों को वीएफएक्स के जरिए ऐसे दर्शकों को हौल तक लाने में समर्थ होते हैं, जिस का फायदा उन्हें मिलता है और फिल्म बौक्स औफिस पर सफल होती हैं.

Best Short Story : एक रिश्ता एहसास का

Best Short Story : ‘सुधा बारात आने वाली है देखो निधि तैयार हुई की नहीं ……’,हर्ष ने सुधा को आवाज़ लगाते हुए कहा.
सुधा का दिल ये सोच कर बहुत ही ज़ोरों से धडकने लगा की अब मेरी निधि मुझसे दूर हो जाएगी.
सुधा निधि को लेने उसके कमरे की तरफ बढ़ी .निधि को दुल्हन के रूप में देख कर वो एक पल को वहीँ दरवाज़े की ओट में खड़ी हो गयी.

सुधा अपने अतीत की यादों में खो गयी . उसकी यादों का कारवां बरसों पहले जा पहुंचा था. नंदिनी और सुधा बहुत की पक्की दोस्त थी और हो भी क्यूँ न बचपन की दोस्ती जो थी.

जिस शाम सुधा की इंगेजमेंट थी उसी शाम जब नंदिनी सुधा के घर अपने पति हर्ष के साथ आ रही थी तभी उनकी गाडी का बहुत ही भयानक एक्सीडेंट हो गया जिसमे नंदिनी चल बसी.और पीछे छोड़ गयी अपनी हंसती खेलती दुनिया.नंदिनी के दो बच्चे थे विशाल और निधि.दोनों बहुत ही छोटे थे.नंदिनी की मौत के बाद परिवार वालों ने हर्ष से दूसरी शादी का दवाब डाला.
जब सुधा को इस बात का पता चला तो उसने बिना आनाकानी किए हर्ष से शादी के लिए हामी भर दी थी, क्योंकि नंदिनी की असमय मौत के बाद उसे सबसे अधिक चिंता उनके दोनों बच्चों- निधि और विशाल के भविष्य की थी.
नई-नई दुल्हन बनकर आई थी सुधा . अचानक ही उसकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था. जिस शख़्स को अब तक अपनी दोस्त के के पति के रूप में देखती आई थी, वो अब उसी की पत्नी बन चुकी थी. चूंकि बच्चे बहुत ही छोटे थे और पहले से ही सुधा से घुले-मिले थे, तो उन्होंने भी उसे अपनी मां के रूप में आसानी से स्वीकार कर पाएंगे.

दूसरी तरफ़ हर्ष का भी वो बहुत सम्मान करती थी. समय बीतता रहा, बच्चों के साथ सुधा ख़ुद भी बच्ची ही बन जाती और खेल-खेल में उन्हें कई बातें सिखाने में कामयाब हो जाती. लेकिन इतना कुछ करने पर भी बात-बात पर उसे ‘सौतेली मां’ का तमगा पहना दिया जाता. अगर बच्चे को चोट लग जाए, तो पड़ोसी कहते, “बेचारे बिन मां के बच्चे हैं, सौतेली मां कहां इतना ख़्याल रखती होगी…” इस तरह के ताने सुनने की आदी हो चुकी थी सुधा, लेकिन सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तब होती, जब अपना ही कोई इस दर्द को और बढ़ा देता. चाहे बच्चों का जन्मदिन हो या कोई अचीवमेंट, हर बार घर के क़रीबी रिश्तेदार यह कहने से पीछे नहीं हटते थे कि आज इनकी अपनी मां ज़िंदा होती, तो कितनी ख़ुश होती.
अचानक सुधा ने अपने अतीत से बहार आकर महसूस किया की निधि ने आकर पीछे से उसकी आँखों को अपने हाथ से ढक लिया .
सुधा ने बिना उसके कहे पहचान लिया की वो निधि है.उसने कहा तैयार हो गयी मेरी राजकुमारी!

“माँ , तुम्हें कैसे पता चला कि ये मैं हूं?” निधि ने हैरान होकर पूछा.
“बेटा , तुम्हारी ख़ुशबू मैं अच्छी तरह से पहचानती हूं. तुम्हारा एहसास, तुम्हारा स्पर्श सब कुछ मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है? आख़िर मां हूँ मै तुम्हारी .” सुधा ने निधि का हाथ थामकर कहा.
“क्या हुआ माँ तुम कुछ परेशान लग रही हो ,कोई बात है क्या?किसी ने कुछ कहा.” निधि ने सुधा के गले लगकर पूछा.
सुधा ने आँखों में आंसू भरकर कहा,”निधि मै सही हूँ न ?क्या मेरी परवरिश में तुम्हे कोई कमी तो नहीं लगी.अगर मेरे प्यार में कोई कमी रह गयी हो तो मुझे माफ़ कर देना…”
मां… तुमसे ही मैं ममता की गहराई जान पाई हूं. तुम ऐसा मत सोचो ” निधि ने माँ को गले लगाते हुए कहा.

सुधा ने निधि के सर पर हाँथ फेरते हुए कहा,”चलो अब नीचे चले ,बारात आ गयी है और उनको इंतज़ार करवाना ठीक नहीं.” वो हँसते हुए बोली
पर निधि के मन तो तूफ़ान उमड़ रहा था.सुधा के आंसुओं ने उसे अन्दर तक झकझोर कर रख दिया था.वो जान चुकी थी की उसकी माँ के मन में क्या उधेड़बुन चल रही है.
पर उसने अपने आप को शांत किया और सुधा के साथ नीचे आ गयी.
शादी की सारी रश्में पूरी हो चुकी थी .अब विदाई का समय आ चुका था.
निधि अपने परिवार वालों के गले लग कर बहुत रोई .फिर जब वो अपनी माँ के गले लगी तभी पीछे से किसी ने कहा,”आज अगर निधि की सगी माँ जिंदा होती तो वो बहुत खुश होती.”
बस फिर क्या था.निधि तो जैसे इसी मौके के इंतज़ार में थी.
उसने कहा
”ये क्या सगी माँ –सगी माँ लगा रखा है.हमने जबसे होश संभाला, इन्ही को ही देखा, इन्ही को ही पाया. हर क़दम पर साये की तरह इन्होने ने ही ज़िंदगी की धूप से हमें बचाया. अपनी नींदें कुर्बान करके हमें रातभर थपकी देकर सुलाया. फिर भी हर ख़ुशी के मौ़के पर यहां आंसू बहाए जाते हैं कि आज हमारी सगी मां होती, तो ऐसा होता, वैसा होता…
आज इतने बरसों बाद जब मैं पीछे पलटकर देखती हूं, तो एक ही लफ़्ज़ बार-बार मेरे कानों में गूंजता है… सौतेली मां! ताउम्र इस एक शब्द से जंग लड़ती आ रहीं है मेरी माँ … अब तो जैसे ये इनकी पहचान ही बन गया हो. हर बार अग्निपरीक्षा, हर बात पर अपनी ममता साबित करना… जैसे कोई अपराधी हो ये . हर बार तरसती निगाह से सबकी ओर देखती हैं की कहीं से कोई प्रशंसाभरे शब्द कह दे . लेकिन ऐसा होता ही नहीं .
पूरे समाज ने इन्हें कटघरे में खड़ा करके रख दिया है…..पर क्यूँ दें ये सफ़ाई? क्यों करे ख़ुद को साबित…? मां स़िर्फ मां होती है, उसकी ममता सगी या सौतेली नहीं होती… लेकिन कौन समझता है इन भावनाओं को. दो कौड़ी की भी क़ीमत नहीं है इनकी भावनाओं की…

क्या आप सभी जानते है की वो तो अक्सर ख़ुद से इस तरह के सवाल करती रहती है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं होता.
इसके बाद निधि रोते हुए सुधा के गले लग गयी और बोली,”माँ मुझे माफ़ कर दो .माँ तुमने जो किया, वो मेरे लिए गर्व की बात है .तुम तो मेरी प्रेरणा हो माँ .शायद मैंने तुम्हारा साथ देने में बहुत देर कर दी .i love you माँ .”
आज सुधा को अपने आप से कोई शिकायत नहीं थी.उसके चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था जिसे बयां नहीं किया जा सकता……

Emotional Story : खामोशियां – क्यों पति को इग्नोर कर रही थी रोमा?

Emotional Story : देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

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रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

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रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस. थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

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सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

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रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने. कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था.

Online Hindi Story : रक्ष – भार्गव और राघव में क्या अंतर था

Online Hindi Story : बाबूजी का असली नाम नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव था. वे इलाहाबाद बैंक के बैंक प्रबंधक पद से रिटायर हुए थे. रिटायर होने से पहले वे गीता प्रैस रोड, गांधी नगर, गोरखपुर में बैंक के मुख्यालय में थे. उन्हें ‘बाबूजी’ का उपनाम तब मिला जब वे अल्फांसो रोड पर बैंक में शुरूशुरू में टेलर (क्लर्क) थे. हालांकि उन के पास बीकौम प्रथम श्रेणी की डिग्री थी लेकिन उन्हें एक उपयुक्त नौकरी नहीं मिली और उन्हें टेलर की नौकरी के लिए समझौता करना पड़ा. वे अपने ग्राहकों, सहकर्मियों और अपने वरिष्ठों व मालिकों के साथ सम्मान व मुसकराहट के साथ व्यवहार करते थे. नौकरी से वे खुश थे.

ग्राहक उन के अच्छे स्वभाव व हास्य के कारण उन्हें बाबूजी कहने लगे. बाबूजी को उन का प्यार पसंद आया और उन्हें इस उपनाम से कोई आपत्ति न थी और इस का आनंद लेना शुरू कर दिया क्योंकि इस में प्यार, स्नेह और आशीर्वाद सभी एकसाथ विलीन थे. तो, नरेंद्र ‘बाबूजी’ बन गए. नरेंद्र चूंकि बहुत महत्त्वाकांक्षी और उज्ज्वल व्यक्ति थे, अपने कैरियर में चमकना चाहते थे, इसलिए जब वे काम कर रहे थे, रात्रि कक्षाएं लीं और प्रथम श्रेणी के साथ एमकौम पास किया.

जल्द ही उन का परिवार बढ़ गया, और उन्हें जुड़वां बेटों का आशीर्वाद मिला, जिन के नाम भार्गव और राघव थे. भार्गव राघव से लगभग 2 मिनट बड़ा था और दोनों के बीच जो बंधन था, वह असाधारण था- राघव हमेशा अपने भाई का सम्मान करता था और अपने भाई को बड़े भाई के रूप में संदर्भित करता था. आखिरकार, वे बड़े हुए. अच्छी तरह से शिक्षित हुए. शादी हुई और उन के परिवार में दोदो बच्चे थे, एकएक लड़का और एकएक लड़की. परंतु, घर के दूसरे परिवारों से उन्हें दूर जाना पड़ा.

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भार्गव मुंबई के चेंबूर में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में अकाउंटैंट था और राघव केरल में एक रिजोर्ट प्रबंधक. राघव ने होटल मैनजमैंट की डिग्री हासिल की थी. जब बाबूजी साठ वर्ष के हुए, तो उन्हें सरकारी नियमों और विनियमों के अनुसार सेवानिवृत्त होना पड़ा. उन्होंने अपने पैतृक घर में सेवानिवृत्त होने का फैसला किया क्योंकि उन की जन्मजात इच्छा उस शहर में रहने की थी जहां उन का जन्म, पालनपोषण हुआ और जहां उन के मातापिता जीवनभर रहे. उन का निवास गोरखपुर के एक मध्यर्गीय क्षेत्र में था और यह बाबूजी की शैली में फिट बैठता था. उन्होंने 2 नौकरों, एक रसोइया और एक ड्राइवर व पुराने पड़ोसियों और परिचित दोस्तों की प्रेमभरी धूमधाम में बड़ी शांति और आराम पाया. ऐसा लगा कि वे संसार के साथ हैं और संन्यास में भी हैं.

पूरे जीवनभर बाबूजी परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों व जानवरों सहित सभी के प्रति बहुत दयालु थे. एक दिन बाबूजी पोर्च में अपनी सीट पर बैठे थे और एक छोटा सा कुत्ता उन के पास आया. बाबूजी ने उसे प्यार से थपथपाया और उन दोनों में तत्काल एक बंधन बन गया. बाबूजी ने उसे रोटी खिलाई और कुत्ते ने उसे बिजली की गति से खत्म कर दिया क्योंकि वह भूखा लग रहा था. भले ही वह आवारा कुत्ता था, वह वहीं रहता था. वह दिन में ज्यादातर समय बाबूजी के बरामदे में ही रहता था, चाहे बाबूजी अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहें या जब वे बरामदे में भी रहें. वह सफेद धब्बे और छोटे बालों वाला एक सुंदर, भूरा कुत्ता था जो ऐसा लगता था जैसे वह पेशेवर मुंडा था.

कुत्ता हर दिन दिखाई देता था. जब बाबूजी पोर्च पर होते थे तो दोनों को एकदूसरे का साथ भाता था. कुत्ते ने कभी बाबूजी को परेशान नहीं किया, बल्कि उन के लिए सुरक्षात्मक था. वह हर उस व्यक्ति पर भूंकता था जो बाबूजी के पास जाता था जब तक कि बाबूजी यह न इशारा देते कि आगंतुक मित्र है, शत्रु नहीं. वह कुत्ता रोज ही सुबह पोर्च पर दिखाई देता और बाबूजी के साथ बैठता. फिर अंधेरा होने पर चुपचाप घर के साथ वाली गली में, यातायात से दूर, सो जाता.

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नौकरों और पड़ोसियों को उस के होने की आदत हो गई और वे लोग उसे बाबूजी का कुत्ता समझने लगे. चूंकि बाबूजी और नौकर उसे सुबह व शाम को खाना खिलाते थे, वह खुश लग रहा था और आखिरकार एक सुंदर कुत्ते के रूप में बड़ा हुआ, जिस ने कभी किसी को परेशान न किया और बाबूजी को अच्छी संगति प्रदान की. वह बाबूजी के बाहर जाने पर उन के साथ जाता. वह बिना पट्टे के ही उन के साथ चलता था और अपने आसपास के सभी लोगों के साथ दोस्ताना व्यवहार करता था. जो लोग उसे पहचानते थे, वे हमेशा उस कुत्ते की प्रशंसा करते थे.

बाबूजी ने अपने कुत्ते का नाम ‘रक्ष’ (रक्षक से बना) रखा, क्योंकि एक बार उस ने बाबूजी के जीवन को गुंडों के एक झुंड से बचाया था, जो उन के पैसे चोरी करने की कोशिश कर रहे थे. बाबूजी एक एटीएम बूथ से बहुत रुपयों की राशि के साथ बाहर निकल रहे थे कि अचानक 3 गुंडों ने उन्हें पकड़ लिया और उन से पैसे छीनने लगे. एटीएम बूथ में घुसने से पहले ही वे बाबूजी की घात में थे और धीरेधीरे उन का पीछा कर रहे थे. जैसे ही वे बाहर आए, उन्होंने उन पर हमला कर दिया और उन्हें पीटा व उन के पैसे ले कर भागे.

बाबूजी की नाक, कुहनी, घुटने लहूलुहान हो गए. बूथ में मौजूद गार्ड खर्राटें ले रहा था, शोर सुन कर उस की नींद खुल गई. वैसे भी, बूथ को जल्दी से बंद करने व ग्राहकों की सुरक्षा करने के लिए उसे प्रशिक्षित ही नहीं किया गया था. बाबूजी दयनीय पीड़ा में थे, उन को हौस्पिटल ले ज़ाया गया. उन्हें 19 टांके लगवाने पड़े. वे पूरे एक सप्ताह तक निष्क्रिय रहे.

उधर, रक्ष ने तीनों बदमाशों का पीछा कर उन्हें धर दबोचा और वे पैसे छोड़ कर अपनी जान बचाने की कोशिश करते रहे. कुत्ते ने उन पर तब तक हमला किया जब तक कि पुलिस ने तीनों गुंडों को कुत्ते से नहीं बचाया. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. कुत्ते के काटने के कारण उन्हें 14-14 इंजैक्शनों के साथ इलाज करवाना पड़ा.

बाबूजी के पड़ोसियों सहित अन्य लोगों को बचाने के लिए रक्ष के बारे में और भी कहानियां हैं. इस घटना के बाद कुत्ता ‘रक्ष’ बन गया और बाबूजी जब उसे रक्ष कह कर संबोधित करते तो वह उन के पास आ जाता. उस को पता लग गया था की अब उस का नाम रक्ष है.

अब जब भी बाबूजी खरीदारी करने जाते तो वे निश्चिंत रहते क्योंकि रक्ष उन के साथ होता. रक्ष दुकान के बाहर बैठ कर बाबूजी के आने तक प्रतीक्षा करता था और उन के साथ घर जाता था जब तक कि बाबाजी सुरक्षित घर न पहुंच जाते.

एक बार, पोर्च सीट से उठने के बाद बाबूजी ने देखा कि उन का रूमाल गायब था. उन्होंने इधरउधार खोजा, परंतु नहीं मिला. उन्होंने सोचा कि कहीं छोड़ दिया होगा और उस के बाद ज्यादा ध्यान नहीं दिया. दूसरी बार उन्होंने अपने जूते से एक मोजा खो दिया. फिर उसे भी तुच्छ समझ कर वे इस के बारे में भूल गए. उन्हें थोड़ी चिंता हुई कि शायद वे चीजों को भूलने लगे हैं- सोचा कि शायद वे बूढ़े हो रहे हैं. आखिर वे 65 साल की उम्र के आगे बढ़ चुके थे.

जीवन सामान्यतया और शांति से चल रहा था. बाबूजी को अपनी पत्नी की बड़ी याद आती थी. लेकिन वे खुद को सांत्वना देते कि प्रकृति से कोई नहीं लड़ सकता. कोई कितनी भी कोशिश करे, होनी को नहीं टाल सकता और जीवन तो जीना ही है.

बाबूजी के बच्चे कभीकभार उन से मिलने आते थे और हो सका तो वे अपने पोतेपोतियों की संगति का आनंद लेते थे. उन के दोनों पुत्रों ने उन्हें उन के साथ रहने की पेशकश की. उन दोनों के बीच समय बांटे. उन्होंने इस प्रस्ताव पर लंबे समय तक गंभीर और गहन विचार कर फैसला किया कि वे अपने पुश्तैनी घर में अपने नौकरों के साथ ही रहेंगे. बच्चों की अपनी ज़िंदगी है. उन की पत्नियां भी नौकरीपेशे वाली थीं और उन के जीवन में वे हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे. उन्होंने सोचा कि वे खुश हैं. उन के लिए यह ही काफी सुकून देने वाला था कि उन के बेटों का प्रस्ताव गंभीर था और मन की शांति थी कि उन के पास विकल्प था कि वे उन के साथ रह सकते हैं अगर अपने दम पर जीने में असमर्थ हों तो.

उन के पास मित्र, सुविधाएं, स्वतंत्रता, वांछनीय संगति और गतिविधियां थीं और सब से अच्छी बात यह थी कि कोई दायित्व न था. उन्होंने ने खुद को अपने जीवनसाथी की कंपनी के बिना रहने में सक्षम बनाया था, भले ही वह हर समय उन के विचारों में थी. उन्होंने सोचा कि कभीकभी यादों को संजोने के लिए अंतराल भर देता है. बाबूजी ने यह भी महसूस किया कि रक्ष की संगति और वह मौन और समर्पित प्रेम, जो उस ने उन्हें कम अपेक्षा के साथ दिया था, उन के स्वार्थहीन जीवन के लिए पर्याप्त था. विरले ही, लेकिन निश्चितरूप से बाबूजी राजनीति और धर्म व अन्य मामलों के बारे में अपनी कुंठाओं को बाहर निकालते. और रक्ष सौ प्रतिशत सहमत होता. जैसेजैसे प्रकृति ने अपनी भूमिका निभाना जारी रखा, बाबूजी बूढ़े हो गए और प्राकृतिक प्रक्रियाएं अपना काम करने लगीं. वे सही खाना खाते, व्यायाम करते और सकारात्मक सोचते, लेकिन प्रकृति को कोई नहीं हरा सकता. उन की वार्षिक चिकित्सा परीक्षा के बाद डाक्टर ने उन से कहा कि वे चौथे चरण के लिवर कैंसर से ग्रसित हैं. यह एक भयंकर, घातक व तेजी से बढ़ता कैंसर है. वे इस के कारण होने वाले दर्द को कम करने के लिए पूरी कोशिश करें और शरीर को ज़्यादा विश्राम दें. यह कैंसर लाइलाज है और रोगी के पाचनतंत्र के साथसाथ मानसिक स्थिरता पर भी भारी पड़ता है.

बाबूजी आश्चर्यचकित थे क्योंकि वे कभी भी जोखिमभरे कार्यों में लिप्त नहीं हुए. वे जीवनभर शाकाहारी रहे थे. उन्होंने कभी शराब नहीं पी, धूम्रपान नहीं किया. उन्होंने नियमितरूप से व्यायाम किया और जीवनभर एक सुरक्षित कार्यालय की नौकरी की. उसी दोपहर, बाबूजी रक्ष के साथ पोर्च पर बैठे थे, सुबह का आनंद ले रहे थे, लेकिन चिंतित थे. उसी समय धोबी नियमित तरीके से गंदे कपड़े मांगने के लिए दरवाजे पर आया कि वह धो सके और उन्हें वापस कर सके. बाबूजी कपड़े बाहर छोड़ कर धोबी को भुगतान करने के लिए पैसे लेने चले गए. धोबी भी समय बचाने के लिए अगले घर से कपड़े लाने के लिए निकल गया. जब वह वापस आया तो बाबूजी ने उसे भुगतान दिया और उस से कपड़े गिनने के लिए कहा.

बाबूजी ने धोबी को देने के लिए 20 कपड़े इकट्ठे किए थे. और, हमेशा की तरह, धोबी ने केवल 19 कपड़ों की गिनती की. बाबूजी ने उस से बारबार गिनने के लिए कहा और अपने सामने देखा पर केवल 19 कपड़े थे. बाबूजी यह सुनिश्चित करने के लिए अंदर गए कि कुछ भी गलती से गिरा तो नहीं था. लेकिन कुछ भी न मिला. उन को कपड़े के गायब होने की नहीं, बल्कि अपनी मानसिक क्षमता के बारे में चिंता हुई. लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया. धोबी को जाने दिया.

जैसे ही वे वापस सीट पर बैठे, रक्ष दौड़ता हुआ आया और उन की बगल में बैठ गया. वह जीभ से हांफ रहा था, फुफकार रहा था. बाबूजी को आराम करने के बाद, उन्हें मानसिक उथलपुथल हुई और इस बारे में बहुत मानसिक स्ट्रैस हुआ कि क्या उन्हें अपनी बीमारी के बारे में अपने बेटों को सूचित करना चाहिए या उन्हें अभी थोड़े समय के बाद करना चाहिए या एक पत्र या ईमेल या कौल द्वारा ऐसा करना चाहिए. उन्होंने फैसला किया कि उन्हें बुलाना सब से अच्छा है.

राघव और भार्गव दोनों आए. वे बुरी खबर सुन कर चौंक गए. उन्हें इस तरह के आघात का कभी अनुभव नहीं था. वे रोना बंद नहीं कर पा रहे थे. उन दोनों ने डाक्टर और बाबूजी के मानसिक तनाव व मानसिक दर्द को कम करने के बारे में सलाह मांगी. डाक्टर ने बहुत मदद की और उन्हें सलाह दी कि वे उन्हें अपनी पसंद के अनुसार काम करने दें और उन के लिए कम से कम तनाव का माहौल बनाएं और उन के सामने बीमारी के बारे में ज्यादा बात न करें.

कुछ हफ़्ते बाद वे अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए अपनेअपने घर चले गए और उन्हें हर दिन फोन करने का वादा किया और उन से उन के साथ खुल कर बात करने व जितनी जल्दी हो सके उन्हें बुलाने का वादा किया अगर उन्हें उन की जरूरत है.

सितंबर माह की एक सुहानी सुबह बाबूजी को सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई और वे उठ नहीं पाए. उन्होंने अपने नौकर को बुलाया, जिस ने तुरंत एम्बुलैंस को फोन किया और उन्हें अस्पताल पहुंचाया. लेकिन बाबूजी को एम्बुलैंस के कर्मचारियों द्वारा उन्हें पुनर्जीवित करने के प्रयासों के बावजूद उन्होंने एम्बुलैंस में ही दम तोड़ दिया. उन्हें बड़ा घातक दिल का दौरा पड़ा था और वे डिफिब्रिलेशन द्वारा भी उन्हें पुनर्जीवित न कर सके.

सभी उचित संस्कारों के बाद बेटे वापस आए और बाबूजी के दाह संस्कार की तैयारी की. बाबूजी ने अपनी पत्नी की तरह ही पालदारों द्वारा श्मशान घाट ले जाने की इच्छा व्यक्त की थी. श्मशान घाट उन के घर से करीब 3 मील की दूरी पर था. जब पाल वाले चल रहे थे, भार्गव ने देखा कि रक्ष भी अपनी जीभ बाहर लटकाए हुए, हांफते हुए उन का पीछा कर रहा था. भार्गव ने उसे बुलाया और वापस जाने का इशारा किया, लेकिन रक्ष ने उस की बात अनसुनी कर दी.

उन्होंने अर्थी चलना जारी रखा और जब वे सभी श्मशान घाट पहुंचे व संस्कार के लिए तैयार हुए, तो वह बैठे हुए – बहुत करीब लेकिन पर्याप्त जगह छोड़ कर, उदास चेहरे और फटी आंखों के साथ बाबूजी के अवशेषों के दहन को घूर रहा था. पूरे संस्कार के दौरान, भार्गव ने देखा कि भीड़ में बाकी सभी लोगों की तरह रक्ष की आंखों से आंसू की धारा बह रही थी.

दहन की रस्म के बाद सभी लोग कारों से घर लौट आए, रक्ष 3 मील दौड़ कर बाबूजी के घर पहुंचा. सभी थके हुए और उदास थे और अपने साधारण भोजन के बाद सभी रात को विश्राम के लिए चले गए. रक्ष भी दौड़भाग कर थक गया था और निश्चय ही दुख में था. सब बहुत जल्दी सो गए. भार्गव सो न सका और कुछ ताजी हवा लेने के लिए बाहर आया. तब उस ने देखा कि रक्ष अभी भी पोर्च पर था, शांति से सो रहा था.

यह एक असामान्य घटना, क्योंकि रक्ष आमतौर पर सोने के लिए गली में चला जाता था, राघव को अजूबी लगी कि सोते समय रक्ष पर एक सफेद कपड़ा था. जब उस ने गौर से देखा तो ऐसा लग रहा था कि यह बाबूजी की सफेद गंजी है. रक्ष उसे कस कर दबोचे सो रहा था. इसे देख भार्गव की आंखों में आंसू आ गए और एक क्षणभंगुर विचार उस के दिमाग में कौंध गया- क्या रक्ष बाबूजी की गंजी पकड़ कर सो रहा है या बाबूजी का असीमित स्नेह रक्ष को पकड़े है?- उस दिन, बाद में, भार्गव और राघव घर के साथ वाली में गए और एक कोने में, उन्हें एक घोंघा छेद मिला, जहां रक्ष ने बाबूजी के रूमाल, उन के जुर्राब और अन्य सामान को साथ रखा था, जिसे रक्ष हमेशा बाबूजी की सुगंध लिए संजोता रहा था. उन्हें जलन हुई कि रक्ष के पास कुछ ऐसा है जो उन के पास नहीं हो सकता, लेकिन वे इस बात से संतुष्ट थे कि उन के पास उस की सुखद यादें हमेशा संजोने के लिए हैं.

Hindi Kahani : वृत्त – चतुर्वेदी जी अनिल को क्या समझाना चाह रहे थें

Hindi Kahani : “अरे सुमन जी, आज तो आप ने पूरे घर को ही खुशबू की चाशनी में डूबो दिया है. हम से तो रहा न गया, इसलिए चले आए आप की जादुई दुनिया में. वैसे, अब बता भी दीजिए कि हम्म… तो अपने लाल की ख्वाहिश पूरी की जा रही है, समोसे बनाए जा रहे हैं. वही तो हम कहें कि इतनी सुगंध किस पकवान की है जिस ने हमारी नाक को अपने जाल में फंसा लिया है.”

“अच्छाअच्छा, ठीक है, बहुत मस्का लगा लिया. मैं जानती हूं यह सब आप मुझे खुश करने के लिए कह रहे हैं. वैसे भी, इन बूढ़े हाथों में अब वह बात नहीं जो सालों पहले हुआ करती थी, वरना जिस खुशबू ने दूसरे कमरे में जा कर आप की नाक को बंदी बना लिया है वह मेरे करीब तक न आई. अब तो इन हाथों में बस इतनी ही जान बची है कि वे मैदा को बेल कर, उस में आलू डाल कर तेल में तल सकें, स्वाद मिलाने का काम तो बहुत पहले ही बंद हो गया.”

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मेरी पत्नी ने मेरी बातों का जवाब देते हुए उपरोक्त बात कही. उन की बातों में ऐसी मासूमियत थी कि मैं उन जवाब दिए बिना रह न पाया, “देखिए मिसेज सुमन चतुर्वेदी, आप को मेरी पत्नी की बुराई करने का कोई हक नहीं है. बेहतर यह होगा कि आप मेरे और मेरी पत्नी के बीच में न आएं. मैं ने अपनी पत्नी की बुराई करने का हक जब खुद को नहीं दिया तो आप को कैसे दे दूं.”

मेरी बात सुन वे फूलों की तरह खिलखिला उठीं और मुसकराते हुए कहा, “वैसे मिस्टर चतुर्वेदी, आप की जानकारी के लिए बता दूं कि मिसेज चतुर्वेदी आप की पत्नी है और मैं ही मिसेज चतुर्वेदी हूं.” यह कह कर वे और जोरजोर से हंसने लगीं.

आज बहुत दिनों बाद मैं ने अपनी पत्नी को इतना खुश देखा था. और तभी मैं ने कहा, “वैसे, आप को एक बात बता दूं, आप के हाथ भले ही समय के साथ बूढ़े हो गए हों पर आप के हाथों का स्वाद और भी जवान हो गया है.” मेरा इतना कहते ही वे शरमा गईं और दूसरी ओर मुंह फेर लिया. तभी मुझे खुराफात सूझी और मैं ने व्यंग्य करते हुए कहा, “वैसे, झुर्रियों वाले चेहरे को मैं ने पहली बार शरमाते हुए देखा है.”

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मेरे यह कहते ही वे गुस्से में मेरी और मुड़ीं, “यह सही नहीं है चतुर्वेदी जी, पहले अंतरिक्ष की सैर करा दो, फिर जमीन पर धम्म से गिरा दो.”

“और जो आप अपने मुंह से अपनी झूठी बुराई कर के मेरे मुंह से अपनी तारीफ करवाती हो, वह सही है?” मैं ने उन्हें शक की निगाहों से देखते हुए कहा. वे मंदमंद मुसकाने लगीं. तभी मैं ने उन से शिकायत करते हुए कहा, “भई, यह बढ़िया है, बेटे को बना दो राजा, दिनरात उस की सेवा करो. और तो और, साहबजादे के लिए समोसे भी बनाए जा रहे हैं. हम पर तो कोई ध्यान ही नहीं देता. हम इतने दिनों से महरी बनाने को कह रहे हैं पर वह नहीं बनाई गई. बेटे ने जो एक बार समोसे बनाने को कह दिया, तो वह तो उसी दिन बनाए जाएंगे.”

“अरे, नहींनहीं, उस ने बनाने को नहीं बोला. वह तो मेरा मन हुआ, तो उस के लिए बना दिए,” पत्नी जी ने ने कहा.

“तो यह तो और भी शिकायत करने की बात है. यहां हम बोलबोल कर थक गए और उसे बिना बोले ही समोसे मिल गए. वाह… वैसे, यह बताने की कृपा करेंगी कि उस की इतनी देखभाल क्यों की जा रही है.” मेरे ये शब्द उन के दिल में तीर की भांति चुभ गए और उन्होंने आंसूभरी आंखों से मुझे देखा. उन की आंख में दर्द साफ झलक रहा था. मैं सब समझ गया और मैं ने नजरें झुका लीं.

उन्होंने कहा, “वे अनिल को खाने के लिए बुलाने जा रही और वहां से जाने लगीं, तभी मैं ने उन्हें रोका और कहा, “मैं अनिल को खाने के लिए बुलाने जा रहा हूं.”

मैं जैसे ही जीने चढ़ने के लिए मुड़ा, उन्होंने अपनी साड़ी से आंसू पोंछ लिए. मैं आहिस्ताआहिस्ता अपने कमजोर पैरों से जीने चढ़ने लगा. मुझे डर लग रहा था पर इस बात का नहीं कि मेरे पैर मेरा वजन न सह पाएंगे और मैं गिर पडूंगा बल्कि इस बात से जरूर डरा हुआ था कि मैं अपने बेटे के उदास चेहरे का सामना कैसे करूंगा. अपने हंसतेखेलते अनिल को यों गुमसुम पड़ा कैसे देखूंगा. यह सब सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा था. फिर भी मैं साहस जुटा कर जीने चढ़ने लगा. जैसे ही मैं ऊपर पहुंचा, मैं ने अपने आंसू पोंछ लिए और उस के कमरे की ओर बढ़ने लगा. उस के कमरे के नजदीक पहुंचा, तो मेरा दिल एक बार फिर उदास हो गया.

कमरे से रोशनी की एक किरण तक नहीं आ रही थी. उन चारदीवारों में कुछ भी देखना बहुत मुश्किल प्रतीत हो रहा था. इसलिए जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, मैं ने कमरे की लाइट जला दी. मुझे देख वह चौंक गया. वह जल्दी से उठा और अपनी आंखों पर ताले लगाने लगा ताकि उस का एक भी आंसू मेरे सामने न निकल पड़े. मैं एक बार फिर से टूट गया.

मेरे बूढ़े हाथों में अब इतनी ताकत नहीं कि हर बार टूट कर खुद को फिर से समझ सकूं. वह भले ही अपने आंसू छिपा ले पर उस का पिता हूं मैं, उस की नसनस से वाकिफ हूं. इस से तो पहले ही अच्छा था मेरा बेटा, कम से कम अपने पिता से गले लग कर रो तो लिया करता था.

अब बड़ा हो गया है न वह. मैं एक पल के लिए सोच में डूब गया, यह कैसी परिस्थिति है जहां एक पिता और पुत्र अपनेअपने आंसू रोके हुए एकदूसरे के सामने खड़े हैं पर एकदूसरे को गले लगा कर रो नहीं सकते. मैं यह सब सोच ही रहा था कि तभी अनिल ने कहा, “पापा, आप यहां? कुछ चाहिए था आप को ?” मैं एकदम चौक गया, “हूं, हममम्… खाना बन गया है, आ कर खा लो.” मैं ने लड़खड़ाती जबान से कहा और वहां से चला आया. अगर थोड़ी देर और रुकता तो रो पड़ता.

आखिर कौन सा पिता अपने बेटे को अवसाद के दलदल में फंसा हुआ देख सकता है. मैं तो केवल उस तक रस्सी पहुंचा कर उसे इस दलदल से बाहर निकालने का प्रयत्न कर सकता हूं, पर बाहर निकलना उसे है. उसे उस रस्सी को पकड़ना होगा. पर शायद अब वह खुद से हार चुका है. वह उस रस्सी को पकड़ना ही नहीं चाहता. यह सोचतेसोचते मैं कब नीचे आ गया, पता ही न लगा.

मेरे कदमों की आवाज से सुमन रसोई से बाहर आ गईं. उन की उम्मीदभरी निगाहें मुझे और ज्यादा परेशान कर रही थीं. इसलिए, मैं चुपचाप अपनी झुकी हुई निगाहें ले कर खाने की मेज पर बैठ गया. एक मां अपना उदास चेहरा ले वापस रसोई में सब के पेट भरने का इंतजाम करने लगी. पर अभी भी उन की उम्मीद उन के साथ थी. वे इस उम्मीद में थीं कि कम से कम आज तो उन का बेटा अपने मनपसंद समोसों को मेज़ पर सजा देख पेट भर कर खाना खा लेगा.

पर जिस अनिल को मैं ऊपर देख कर आया था उस का खाना खाने का कोई इरादा नहीं लग रहा था. मेरे सामने एक मां थी जो अपने बेटे के लिए मेज़ पर समोसों को सजा रही थी पर उन थालियों में केवल समोसे नहीं थे, थे उस के जज्बात, उस के बूढ़े हाथों की मेहनत, उस का प्यार और शायद उस की आखिरी उम्मीद. पर मैं तो यह भी यकीन के साथ नहीं कह सकता था कि आज उस का बेटा खाना खाने आएगा भी या नहीं.

मेरी सारी उम्मीदें तो पहले ही टूट चुकी थीं पर मैं नहीं चाहता था कि एक मां की उम्मीदें टूटें क्योंकि मैं जानता हूं कि कितना दुख होता है उम्मीद टूटने पर. पर इन सब की जड़ एक शब्द है मेरे बेटे का अवसाद में जाना, मेरी पत्नी की आंखों में दुख का समाना, मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाना आदि सब एक शब्द की वजह से हैं- ‘नौकरी’.

मेरा बेटा करीब 32 साल का होने को आया है पर उस की आज तक सरकारी नौकरी नहीं लगी. पर मेरे बेटे को दुख न होता और न ही मुझे होता, अगर वह पढ़ाई न करता, अच्छे से तैयारी न करता. उस ने तो जीजान लगा दी थी. उस का कमरा ही पुस्तकालय बन चुका था और केवल नाम का ही नहीं, उस में हर एक किताब मिल जाती थी जो भी चाहिए. वह रात को 2-2, 3-3 बजे तक न सोता था. बस, पढ़ता रहता था. उस की लगन व मेहनत आज उस के किसी काम नहीं आ रही है.

यह सब उस दिन शुरू हुआ था जब उस का पीएससी का परिणाम आने वाला था. उस दिन हम सब अपने हंसतेखेलते अनिल के साथ इसी मेज पर बैठ कर उस की परीक्षा के परिणाम के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. पूरे घर में शांति थी. अनिल ने हम से बड़े आत्मविश्वास से कहा था, ‘देखना मम्मी, देखना पापा, इस बार तो मेरा चयन हो कर ही रहेगा.’ उस समय उस की वाणी में जो जोश व उत्साह था उस ने हमें भी यकीन दिला दिया कि हां, लगातार 3 बार असफलता का मुंह देखने के बाद इस बार मेरा बेटा जरूर सफल होगा. हम ने बहुत उम्मीदें जोड़ ली थीं उस परिणाम से. परंतु जैसे ही उस के परिणाम सामने आए, मेरा बेटा बहुत उदास हो गया.

उस दिन पहली बार उस ने अवसाद के दलदल में अपना पहला कदम रखा था. वह उस रात कुछ भी न बोला. उस दिन मुझे भी बहुत बड़ा झटका लगा था. उस दिन घर में 3 लोग थे. पर मेरा घर किसी खंडर की भांति लग रहा था. सब निराश थे. पर हम में से कोई भी इस बात का जिम्मेदार अनिल को नहीं मान रहा था. पर उस दिन जातेजाते उस ने मुझ से एक बात बोली थी, ‘मुझे माफ कर दो, पापा. मैं आप के लिए कुछ भी न कर सका.’ उस के बाद हम ने अपने पहले वाले अनिल को खो दिया.

उसे लगता है कि उस ने हमारी उम्मीद तोड़ी है, वह हमारे लिए कुछ नहीं कर सका. पर मैं उसे कैसे बताऊं कि… एक बार फिर जब मैं ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों को तलाशा तो मैं ने अपना शब्दकोश खाली पाया. मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता. इतना कहूंगा कि मेरा दर्द वही माली समझ सकता है जिस ने बड़े प्यार से अपने बाग को फूलों से सजाया पर उस ने अपनी आंखों से अपने फूलों को मुरझाते हुए देखा हो. पर मुझे अपनेआप पर पूरा भरोसा है कि मैं ने अपने बेटे को इतना काबिल बनाया है कि उसे जीवनयापन करने के लिए दूसरों का सहारा न लेना पड़े. मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी अनिल नीचे आ गया.

उसे देख हम दोनों बहुत खुश हुए और उस के लिए थाली में गरमागरम समोसे रख दिए. पर समोसों को जितना मेरा पुराना अनिल प्यार करता था उतना शायद नया नहीं. इसलिए उस के चेहरे के भाव समोसे देख कर भी न बदले. अचानक मुझे वह दिन याद आ गया जब सुमन ने उस के लिए समोसे बनाए थे और वह सारे खा गया था. सुमन को, बस, एक ही समोसा मिल पाया था, हाहाहा… वह दिन याद कर के आज भी मेरी हंसी छूट जाती है. उस दिन समोसे देख कर अनिल के मुंह पर जो इंद्रधनुष के सात रंग विराजे थे वे न जाने कहां गुम हो गए. तभी सुमन ने मुझे विचारों की नींद से जगाते हुए कहा, “अरे आप भी खाइए न.”

“हूं..हूं..हां,” मैं ने हड़बड़ाहट में कहा. पर जैसे ही मैं ने समोसे का पहला कौर खाया, मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया. “समोसे तो लाजवाब बने हैं,” मुझ से तारीफ किए बिना रहा न गया और मैं बोल पड़ा.

मेरी बात सुन सुमन मुसकरा पड़ीं और कहा, “पर लगता है हमारे अनिल को अच्छे नहीं लगे.” यह बात सुन अनिल ने कहा, “अरे…” वह कुछ कहता कि उस से पहले ही उस के फोन की घंटी बज गई. उस ने फोन उठाया और कहा, “अरे अतुल, कैसे हो?” फोन अतुल का था जो अनिल का पक्का दोस्त था.

अतुल अकसर हमारे घर आताजाता रहता था, इसलिए हम दोनों भी उस से अच्छे से घुलमिल गए थे. बड़ा ही नेकदिल लड़का है वह. अपने बेटे के मुंह से अतुल का नाम सुन हम दोनों बहुत खुश हुए, सोच रहे थे कि चलो, अतुल से बात कर के हमारे बेटे का मन तो बहलेगा. तभी अनिल बोला, “अच्छा, यह तो खुशी की बात है. हां, मैं जरूर आऊंगा.” वह यह सब कह तो रहा था पर उस के चेहरे के भाव कुछ और ही कह रहे थे. अनिल ने फोन रख दिया.

उस के फोन रखते ही मैं ने पूछा, “बेटा, अतुल क्या कह रहा था?” मेरी बात सुन उस ने भारी आवाज में कहा, “आज अतुल पापा बन गया. भाभी ने एक नन्ही परी को जन्म दिया है.” यह कह कर वह दोबारा जीने चढ़ने लगा. पर हम में से किसी की भी हिम्मत न हुई कि उसे रोक ले.

अचानक मुझे वह दिन याद आ गया जब अनिल के लिए हम लड़की देखने गए थे. पूरे रास्ते में वह हम से लड़की के बारे में ही पूछता रहा. बढ़िया तैयार हो कर गया था वह. उस दिन बहुत खुश था क्योंकि जिस लड़की की तसवीर हमारे पास थी वह बेहद खूबसूरत थी, रसोई के सारे काम आते थे उस को. और तो और, वह सरकारी नौकरी भी करती थी. वह बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरे बेटे को चाहिए थी. वह ड्राइवर से बारबार कह रहा था, ‘जरा जल्दी चलाओ न.’ पर जब हम वहां पहुंचे तो वह घबरा गया.

वह बारबार फोन में देख रहा था. कहीं बाल तो नहीं बिगड़े, कहीं सूट गंदा तो नहीं है, सब जांच रहा था. अंदर जाते वक्त उस ने अपनी मम्मी का हाथ पकड़ लिया. जैसे ही उस ने लड़की के पिता यानी अपने ससुर को देखा तो सीना तान के चलने लगा. उस की हरकतें देख हंसी नहीं रुक रही थी पर जैसे ही लड़की बाहर आई तो शर्म के मारे लाल पड़ गया था. उस की कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी.

आखिरकार लड़की को ही पूछना पड़ा था, ‘क्या हम अकेले में बात कर सकते हैं?’ हम सब की हंसी छूट पड़ी थी. पर शायद यह कुछ पलों की ही मेहमान थी क्योंकि कुछ देर बाद वह लड़की गुस्से से तिलमिलाते हुए बाहर आई और हमारा बेटा उस के पीछे भागतेभागते. वह आते ही बोली, ‘पापा, मैं ने आप को कहा था न कि मेरे सामने उसी लड़के को लाइएगा जो सरकारी नौकरी करता हो, तो फिर इस बेरोजगार को मेरे सामने ला कर खड़ा क्यों कर दिया? क्या आप मेरे जीवन की डोर उस के हाथ में सौंपना चाहते हैं जो अभी तक खुद के पैरों पर खड़ा तक नहीं हुआ है?

उस की बातों से हम सब समझ गए थे कि क्या हुआ था. उस की बातों से ही पता लग गया था कि वह कितनी मूर्ख और बदतमीज लड़की थी. हम वहां से फौरन उठे और अपने बेटे को साथ ले कर चले आए. गाड़ी में वह बहुत गुमसुम था, तो उसे समझाने के लिए मैं ने उस से कहा, ‘जो हुआ, अच्छा हुआ. कम से कम हम अपने घर की जिम्मेदारी एक मूर्ख को तो देने से बचे.’ तभी सुमन ने भी मेरी हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘और नहीं तो क्या. हमारे बेटे के लिए तो इस से भी अच्छीअच्छी लड़कियां इंतजार कर रही होंगी.’ तब जा कर अनिल ने हम से कहा था, ‘उस ने गलत क्या किया. वह भी तो अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी.’ यह कह कर वह अपनी मां के कंधे पर सिर रख कर सो गया. पर उस की बात सही भी तो थी.

उस दिन जो गाड़ी में सोया वह हमारा पुराना अनिल था और शाम को जो जागा वह नया अनिल. कि तभी अचानक मेरी नज़र सुमन की ओर गई. वे रोते हुए उन समोसों को निहार रही थीं. शायद जो दृश्य मेरी आंखों के सामने न चाहते हुए भी आ गए थे, वे सुमन की आंखों में भी समा गए. अब बस. अब मुझ से अपने घर की इतनी बुरी दशा नहीं देखी जा रही. मैं अभी के अभी जाऊंगा और अनिल को समझाऊंगा. मैं ने अपनी बचीकुची हिम्मत उठाई और एक बार फिर से जीने चढ़ने लगा.

मेरी पत्नी सुमन अभी भी उस के खयालों में गुम थी, इसलिए मुझे देख न पाई. जल्दी ही मैं ऊपर था. मैं अनिल के कमरे में गया और उसे आदेश देते हुए कहा, “अनिल, मेरे साथ छत पर चलो.” मुझे वहां पा कर वह पहले तो सकपका गया, फिर मेरी बात का उत्तर देते हुए बाहर न जाने के बहाने बनाने लगा, “पापा, देखो न, कितना अंधेरा है बाहर.”

“वह तो तेरे कमरे में भी है,” मैं ने उस के बहाने को खारिज करते हुए कहा.

“बाहर मच्छर काटेंगे न,” उस ने फिर से बहाना बनाया.

“कल ही महल्ले में मच्छर मारने की दवाई छिड़की गई थी. आधे तो उस से मर गए और आज धूप से,” मैं ने इस बार भी उस का बहाना खारिज कर दिया.

“तो बाहर कितनी गरमी है,” उस ने एक और बहाना तैयार कर लिया.

“बाहर ताजी हवा भी तो चल रही है,” मैं ने उस की गरमी भगाते हुए कहा.

“मुझे तो नहीं लगता,” उस ने एक और बहाना मुझे थमा दिया.

“जब बाहर चलोगे तब पता चलेगा न,” अब उस के बहानों का पिटारा खाली हो गया और न चाहते हुए भी मेरे साथ छत पर आना पड़ा. यह मेरी हिम्मत बढ़ाने को काफी था. हम एकसाथ छत पर टहलने लगे. कुछ देर तक हम यों ही चुपचाप टहलते रहे. मैं उसे समझाना चाहता था पर कैसे, यह समझ में नहीं आ रहा था. मैं कुछ भी कहने का प्रयास करता तो शब्द खुदबखुद गायब हो जाते. ऐसे में मैं अपने अंश को कैसे समझाऊं, मुझे समझ में नहीं आ रहा था. मैं अपने विचारों में इतना खो गया कि कब अनिल आसमान को निहारने में व्यस्त हो गया, पता ही न लगा. मैं ने सोचा, चलो कुछ तो ऐसा है जिस ने अनिल का ध्यान आकर्षित किया. मैं उस के पास जा कर खड़ा हो गया और पूछा, “क्या देख रहे हो बेटा?” मेरी बात सुन उस ने उदासीभरे स्वर में कहा, “शायद मेरी भविष्य में चांद लिखा ही नहीं है.”

“पर ये तारे भी तो कितने खूबसूरत हैं,” मेरे मन में एक विचार आया, मैं ने सोच लिया कि इस से अच्छा मौका शायद मुझे फिर न मिले. मेरा वाक्य सुन वह बोला, “क्यों, आप को चांद पसंद नहीं है?” मैं ने उसे प्यार से समझाया, “बेटा, पूरा चांद तो महीने में एक बार आता है और ईद का चांद, वह तो पूरे साल में एक बार आता है. पर तारे चादर बन कर पूरे आसमान को ढक लेते हैं. ऐसा ही हमारी जिंदगी में होता है. ये बड़ीबड़ी खुशियां ईद की चांद की तरह होती हैं और छोटी इन तारों की तरह. बड़ी खुशियां चांद की तरह हमारी जिंदगी में एकदो बार ही आती हैं पर छोटीछोटी खुशियां चादर की भांति हमारी पूरी जिंदगी ढक लेती हैं. चांद तो महीने में बस एक बार दिखाई देता है पर तारे हर रोज निकलते हैं. यही जीवन का ‘व्रत’ है. मेरी बात सुन वह बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर जाने लगा. मुझे लगा मैं ने अपना आखिरी मौका भी खो दिया. पर फिर भी, मैं ने अपना बचाकुचा साहस समेटा और पूछा, “कहां जा रहे हो, बेटा?” वह मुड़ा और उस ने कहा, “समोसे ठंडे हो रहे हैं.”

लेखिका- काव्या कटारे

Hindi Story : सजा – अंकिता ने सुमित को ऐसा क्या बताया जिससे वो परेशान हो गया?

Hindi Story : वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’

‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’

‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’

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उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’

अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

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‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’

‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’

‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई. आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’

‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’

‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’

‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’

‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’

‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती

करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर  मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’

अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’

अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’

‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’

‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमा होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’

‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’

‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’

‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’

उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया.

‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’

‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’

उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से.

‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए?

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’

अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी.

आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां पहुंचा था.

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’

उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’

‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’

‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं.

‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

Best Hindi Story : यह सलीब – इच्छाओं और महत्त्वाकांक्षाओं के बोझ तले दबे व्यक्ति की कहानी

Best Hindi Story : मैं  और बूआ अभी चर्चा कर ही रही थीं कि आज किसी के पास इतना समय कहां है जो एकदूसरे से सुखदुख की बात कर सके. तभी कहीं से यह आवाज कानों में पड़ी-

मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,

यहां सब के सर पे सलीब है

कोई दोस्त है न रकीब है

तेरा शहर कितना अजीब है.

यहां किस का चेहरा पढ़ा करूं

यहां कौन इतने करीब है…

‘‘सच ही तो कह रहा है गाने वाला. आज किस के पास इतना समय है, जो किसी का चेहरा पढ़ा जा सके. अपने आप को ही पूरी तरह आज कोई नहीं जानता, अपना ही अंतर्मन क्या है क्या नहीं? हर इनसान हर पल मानो एक सूली पर लटका नजर आता है.’’

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मैं ने कहा तो बूआ मेरी तरफ देख कर तनिक मुसकरा दीं.

‘‘सलीब सिर पर उठाने को कहा किस ने? उतार कर एक तरफ रख क्यों नहीं देते और रहा सवाल चेहरा पढ़ने का तो वह भी ज्यादा मुश्किल नहीं है. बस, व्यक्ति में एक ईमानदारी होनी चाहिए.’’

‘‘ईमानदार कौन होना चाहिए? सुनाने वाला या सुनने वाला?’’

‘‘सुनने वाला, सुनाने वाले की पीड़ा को तमाशा न बना दे, उस का दर्द समझे, उस का समाधान करे.’’

अकसर बूआ की बातों से मैं निरुत्तर हो जाती हूं. बड़ी संतुष्ट प्रवृत्ति की हैं मेरी बूआ. जो उन के पास है उस का उन्हें जरा भी अभिमान नहीं और जो नहीं उस का अफसोस भी नहीं है.

‘‘किसी दूसरे की थाली में छप्पन भोग देख कर अपनी थाली की सूखी दालरोटी पर अफसोस मत करो. अगर तुम्हारी थाली में यह भी न होता तो तुम क्या कर लेतीं? अपनी झोंपड़ी का सुख ही परम सुख होता है. पराया महल मात्र मृगतृष्णा है. सुख कहीं बाहर नहीं है…सुख यहीं है तुम्हारे ही भीतर.’’

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मुझे कभीकभी यह सब असंभव सा लगता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि अपनी किसी सखी या रिश्तेदार महिला के गले में हीरे का हार देख कर उसे अपने गले में देखने की इच्छा न जागे.

एक दिन मेरी भाभी ने ऐसे ही कह दिया कि हीरा आजकल का लेटैस्ट फैशन है तो झट से अपने कुछ टूटेफूटे गहने बेच मैं हीरे के टौप्स खरीद लाई थी और जब तक पहन कर भाभी को दिखा नहीं दिए, हीनभावना से उबर ही नहीं पाई थी. बूआ को सारा किस्सा सुनाया तो पुन: मैं अनुत्तरित रह गई थी.

‘‘आज टूटेफूटे कुछ गहने थे इसलिए बेच कर टौप्स ले लिए…कल अगर कोई हीरों का सैट दिखा कर तुम्हारे स्वाभिमान को चोट पहुंचाएगा तो क्या बेचोगी, शुभा?’’

अवाक् रह गई थी मैं. टौप्स बूआ के हाथ में थे. स्नेहमयी मुसकान थी उन के होंठों पर.

‘‘ऐसा नहीं कह रही मैं कि तुम ने ये टौप्स क्यों लिए? यही तो उम्र है पहननेओढ़ने की. अपनी खुशी के लिए गहने बनाना अच्छी बात है. तुम ने तो टौप्स इसलिए बनाए कि तुम्हारी भाभी ने ऐसा कहा…अपने स्वाभिमान को किसी के पैरों की जूती मत बनाओ, शुभा. हम पर हमारी ही मरजी चलनी चाहिए न कि किसी भी ऐरेगैरे की.

‘‘तुम्हारा अहं इतना हलका क्यों हो गया? हीरे से ही औरत संपूर्ण होती है… यह तुम्हारी भाभी ने यदि कह दिया तो कह दिया. उस ने तुम से यह तो नहीं कहा था कि तुम्हारे पास हीरे नहीं हैं. क्या उस ने तुम्हारी तरफ उंगली कर के कहा था… जरा सोचो?’’

तनिक मुसकरा पड़ी थीं बूआ. मेरा माथा चूम लिया था और मेरे गाल थपक हाथ के टौप्स मेरे कानों में पहना दिए थे.

‘‘बहुत सुंदर लग रहे हैं ये टौप्स तुम्हारे कानों में. मगर भविष्य में ध्यान रहे कि किसी के कहे शब्दों पर पागल होने की जरूरत नहीं है. औरत की संपूर्णता तो उस के चरित्र से, उस के ममतामयी आचरण से होती है.’’

उसी पल मेरे मन से उन हीरों का मोह जाता रहा था. वह भाव कहीं नहीं रहा था कि मेरे पास भी हीरे हैं. अकसर वे नेमतें जिन पर एक आम इनसान इतरा उठता है, बूआ को खुशी का विषय नहीं लगतीं. अकसर बूआ कह देती हैं, ‘‘खुशी कहीं बाहर नहीं होती, खुशी तो यहीं होती है… अपने ही भीतर.

‘‘यही तो सलीब है…और सलीब किसे कहते हैं…अपने दुखों का कारण कभीकभी हम खुद ही होते हैं.’’

सलीब के बारे में खुल कर बूआ से पूछा तो वे समझाने लगीं, ‘‘क्यों अपनी सोच पर हर पल हम सारा संसार लादे रहते हैं…जरा सोचो. अपनी खुशी की खातिर तो हम कुछ भी संजो लें, खरीद लें क्योंकि वे हमारी जरूरतें हैं लेकिन किसी दूसरे को प्रभावित करने के लिए हम अपना सारा बजट ही गड़बड़ कर लें, यह कहां की समझदारी है. एक बहुत बड़ी खुशी पाने के लिए छोटीछोटी सारी खुशियां सूली पर चढ़ा देना क्या उचित लगता है तुम्हें?

‘‘हमें अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारने हैं तो फिर क्यों हमारी खुशी औरों के शब्दों की मुहताज बने.’’

बूआ का चेहरा हर पल दमकता क्यों रहता है? मैं अब समझ पाई थी. बात करने को तो हमारा परिवार कभीकभी बूआ की आलोचना भी करता है. उन का सादगी भरा जीवन आलोचना का विषय होता है. क्यों बूआ ज्यादा तामझाम नहीं करतीं? क्यों फूफाजी और बूआ छोटे से घर में रहते हैं. क्यों गाड़ी नहीं खरीद लेते?

सब से बड़ी बात जो अभीअभी मेरी समझ में आई है, वह यह कि बूआ किसी की मदद करने में या किसी को उपहार देने में कभी कंजूसी नहीं करतीं. पर अपने लिए किसी से सहायता तो नहीं मांगतीं, गाड़ी की जरूरत पड़े तो किराए की गाड़ी उन के दरवाजे पर खड़ी मिलती है, जरूरत पर उन के पास कोई कमी नहीं होती. तो फिर क्यों वे औरों को खुश करने के लिए अपनी सोच बदलें. बूआ के दोनों बच्चे बाहर रहते हैं. साल में कुछ दिनों के लिए वे बूआ के पास आते हैं और कुछ दिन बूआ और फूफाजी उन के पास चले जाते हैं. अपने जीवन को बड़े हलकेफुलके तरीके से जीती हैं बूआ.

एक बार ऐसा हुआ कि बच्चों की छुट्टियां थीं जिस वजह से मैं व्यस्त रही थी. लगभग 10 दिन के बाद फोन किया तो बूआ कुछ उदास सी लगी थीं. उसी शाम मैं उन के घर गई तो पता चला था कि फूफाजी पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. पड़ोसी से नर्सिंगहोम का पता लिया और उसी पड़ोसी से पता चला कि उस को भी कुछ दिनों के बाद ही इस घटना का पता चला था.

‘‘बहुत बहादुर हैं न बूआजी. हमें भी नहीं बुलाया. कम से कम मैं ही आ जाती.’’

रोना आ गया था मुझे. क्या मैं इतनी पराई थी. बचपन से जिस बूआ की गोद में खेली हूं, क्या मुसीबत में मैं उन के काम नहीं आती. क्या मुझ पर इतना सा भी अधिकार नहीं समझतीं बूआ. नाराजगी व्यक्त की थी मैं ने.

‘‘तुम क्या करतीं यहां…गाड़ी बुला ली थी. बाकी सब काम डाक्टर लोगों का था. दवा यहीं पर मिल जाती है. बाहर छोटी सी कैंटीन है, वहां से चाय, कौफी मिल जाती थी. अधिकार समझती हूं तभी तो चाहती हूं तुम अपने बच्चों पर पूरापूरा ध्यान दो. अभी उन के इम्तिहान भी आ गए हैं न.’’

बूआ के इस उत्तर से मेरा रोना बढ़ गया था, ‘‘अपने किस काम के जो वक्त पर काम भी न आएं.’’

फूफाजी मेरी दलीलों पर हंसने लगे थे.

‘‘अरी पगली, काम ही तो नहीं पड़ा न…जिस दिन काम पड़ा तुम ही तो काम आओगी न. तुम्हारा ही तो सहारा है हमें, शुभा. हमारे दोनों बच्चे तो बहुत दूर हैं न बिटिया…हम जानते थे पता चलते ही अपना सारा घर ताक पर रख भागी चली आओगी, इसीलिए तुम्हें नहीं बताया. हलका सा दिल का दौरा ही तो पड़ा था.’’

बूआफूफाजी यों मुसकरा रहे थे मानो कुछ भी नहीं हुआ. मेरा माथा जरा सा तप जाए तो जो बूआ मेरी पीड़ा पर पगला सी जाती हैं वे अपनी पीड़ा पर इतनी चुप हो गईं कि मुझे पता ही न चला. सदा दे कर जिस बूआ को खुशी होती है वही बूआ लेने में पूरापूरा परहेज कर गई थीं. किसी से ज्यादा उम्मीद करना भी दुखी होने का सब से बड़ा कारण है, यह भी बूआ का ही कहना है. किसी आस में जिया जाए, यह भी तो एक सलीब है न जिस पर हम खुद को टांग लेते हैं.

मेरी भाभी भी इसी शहर में हैं, लेकिन उन की आदत में बूआ से मिलना शुमार नहीं होता. उन की अपनी ही दुनिया है जिस में मैं और बूआ कम ही ढल पाते हैं.

‘‘भैया की और हमारी आय लगभग बराबर ही है, उसी आय में भाभी इतनी शानोशौकत कैसे कर लेती हैं जबकि मेरे घर में वह सब नहीं हो पाता. इतना बड़ा घर बना लिया भैया ने और हमारे पास मात्र जमीन का एक टुकड़ा है जिस पर शायद रिटायरमैंट के बाद ही घर बन पाएगा. लगता है हमें ही घर चलाना नहीं आता.’’

एक दिन बूआ से मन की बात कही तो बड़ी गहरी नजर से उन्होंने मुझे देखा था.

‘‘कितना कर्ज है तुम्हारे पति के सिर पर?’’

‘‘एक पैसा भी नहीं. ये कहते हैं कि मुझे सिर पर कर्ज रख कर जीना नहीं आता. रात सोते हैं तो सोने से पहले भी यही सोचते हैं कि किसी का पैसा देना तो नहीं. किसी का 1 रुपया भी देना हो तो इन्हें नींद नहीं आती.’’

‘‘और अपने भाई का हाल भी देख लो. सिर पर 50 लाख का कर्ज है. पत्नी की पूरी सैलरी कर्ज चुकाने में चली जाती है और भाई की दालरोटी और इतने बड़े घर की साजसंभाल में. बच्चों की फीस तक निकालना आजकल उन्हें भारी पड़ रहा है. घर में 3-3 ए.सी. हैं. इन गरमियों में बिजली का बिल 15 हजार रुपए आया था. रात भर तुम्हारा भाई सो नहीं पाता इसी सोच में कि अगर कोई आपातस्थिति आ जाए तो 2 हजार रुपए भी नहीं हाथ में…क्या इसी को तुम शानोशौकत कहती हो जिस में पति की हरेक सांस पर इतना बोझ रहता है और पत्नी समझती ही नहीं.

हीरों के गहने पहने बिना जिस की नाक नहीं बचती, क्या उस औरत को यह समझ में आता है कि उस का पति निरंतर अवसाद में जी रहा है. कल क्या हो जाए, इस का जरा सा भी अंदाजा है तुम्हारी भाभी को?’’

मैं मानो आसमान से नीचे आ गिरी. यह क्या सुना दिया बूआ ने. भैया भी मेरी तरह बूआ के लाड़ले हैं और अवश्य अपना मन कभीकभी खोलते होंगे बूआ के साथ, बूआ ने कभी भैया के घर की बात मुझे नहीं सुनाई थी.

‘‘शुभा, तुम आजाद हवा में सांस लेती हो. किसी का कर्ज नहीं देना तुम्हें. समझ लो तुम संसार की सब से अमीर औरत हो. तुम्हारी जरूरतें इतनी जानलेवा नहीं हैं कि तुम्हारे पति की जान पर बन जाए. ऐसे हीरे औरत के किस काम के कि पति की एकएक सांस शूल बन जाए. तुम्हीं बताओ, क्या तुम भी ऐसा ही जीवन चाहती हो?’’

‘न…’ अस्फुट शब्द कहीं गले में ही खो गए. मैं तो ऐसा जीवन कभी सोच भी नहीं सकती. शायद इसीलिए तब बूआ ने टौप्स लेने पर नाराजगी का इजहार किया था. वे नहीं चाहती थीं कि मैं भी भाभी के पदचिह्नों पर चलूं.

हम हर पल सलीब को सिर पर उठाएउठाए ही क्यों चलते हैं? सलीब उठाते ही क्यों हैं? इसे उतार कर फेंक क्यों नहीं देते?

हमारी अनुचित इच्छाएं, बढ़ती जरूरतें क्या एक सलीब नहीं हैं जिन पर अनजाने ही हमारी जान सूली पर चढ़ जाती है. आखिर क्यों ढोते हैं हम अपने सिर पर ‘यह सलीब

Relationship : पति की कमाई पर पत्नी का कितना हक

Relationship : पतिपत्नी में कमाई और खर्चों को ले कर कलह जब हद से गुजरने लगती है तो नतीजे किसी के हक में अच्छे नहीं निकलते. बात तब ज्यादा बिगड़ती है जब पति अपने घर वालों पर खर्च करने लगता है लेकिन क्या ऐसा करने से पत्नी को उसे रोकना चाहिए?

सोशल मीडिया पर अकसर वायरल होते इस जोक को पढ़ कर कोई भी खुद को मुसकराने से रोक नहीं पाता.
“एक पत्नी ने अपने पति से कहा, सुनो जी मुझे 3000 रुपए उधार दे दो, तुम्हारी सैलरी आते ही चुका दूंगी.”
एक खास बात है इस जोक में जो पतिपत्नी के बीच की आर्थिक आत्मीयता को दर्शाती है जो कि सफल और सुखद दांपत्य के लिए बेहद जरुरी है. लेकिन क्या यह सभी कपल्स को हासिल है तो इस सवाल का जवाब न में ही निकलता है और बताता है कि आज भी अधिकतर पत्नियां पैसों के लिए पति की मोहताज रहती हैं. आज भी मतलब एक ऐसे दौर से हैं जहां लड़कियां तेजी से शिक्षित और जागरूक हुई हैं. बड़ी तादाद में वे नौकरीपेशा भी हैं. मुमकिन है कमाउ पत्नियों को बातबात पर पैसों के लिए पति का मुंह न ताकना पड़ता हो लेकिन कड़वा सच यह भी है कि बड़े खर्चों और इन्वेस्टमेंट के लिए उन्हें भी पति की सहमति या अनुमति की दरकार रहती है.

इस पर विवाद अपेक्षाकृत कम होते हैं पर फसाद उन घरों में ज्यादा खड़े होते हैं जहां सिर्फ पति कमा रहा होता है. कमाउ पति को खर्चों और निवेश के लिए पत्नी की राय कितनी अहमियत रखती है यह उन के आपसी तालमेल और ट्यूनिंग पर निर्भर करता है. अगर ये दोनों न हों तो विवाद अकसर छोटेबड़े हादसों की शक्ल में सामने आते हैं जैसा कि बीती 30 जनवरी को भोपाल से आया.

इसलिए की पत्नी की हत्या

35 वर्षीय रविकांत वर्मा सीआरपीएफ भोपाल में तैनात हो कर सिविल कालोनी में रहते थे. घर उन की पत्नी रेणु वर्मा और 2 बच्चे थे. इस कपल के पास कहने को तो वह सब कुछ था जिस की जरूरत आजकल होती है लेकिन हकीकत में वह प्यार और आपसी समझ नहीं थी जो घर को घर बनाती है. दोनों में आएदिन कलह होती रहती थी. शादी के 8 साल हो चले थे जिस में से ज्यादातर वक्त इन्होंने कलह में ही गुजारा था. कलह भी कोई मामूली नहीं होती थी. आसपास के सारे लोग इस के गवाह या तमाशबीन कुछ भी कह लें होते थे.
बीती 30 जनवरी को भी इन दोनों में जम कर तूतूमैंमैं हुई. इस बार मुद्दा था रविकांत का अपनी भतीजी की शादी में कुछ पैसा खर्च कर देना जो रेणु को बरदाश्त नहीं हो रहा था. लेकिन यह उन की जिंदगी की आखिरी कलह साबित हुई क्योंकि अब दोनों ही दुनिया में नहीं हैं.

हादसे के दिन कोई एक बजे शराब के नशे में चूर रविकांत ने रेणु के जिस्म पर 2 गोलियां अपने सर्विस रिवाल्वर से दागी और फिर एक शरीफ शहरी की तरह फोन कर पुलिस को इन्फौर्म भी कर दिया कि मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. पुलिस आई लेकिन तब तक रविकांत ने खुद को भी गोली मार ली थी. दोनों बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे. इस के बाद शुरू हुआ इन्वेस्टिगेशन और चर्चाओं का दौर कि यह भी भला कोई आत्महत्या और हत्या कर देने वाली बात थी. ऐसे झगड़े तो आएदिन पतिपत्नियों में होते रहते थे.

जड़ में है पैसा

यह सही है कि पतिपत्नी के विवाद, झगड़ों, अलगाव और तलाक की बड़ी वजह पैसा होता है. दोनों पैसे को अपने तरीके से इस्तेमाल करना चाहते हैं और एकदूसरे को गलत ठहराते रहते हैं. यही रवि और रेणु के बेवकूफी भरे दुखद मामले में हुआ था. यह कोई नई या अनूठी बात नहीं थी जिस में पत्नी चाहती है कि पति अपने घर वालों पर पैसा खर्च न करे लेकिन ऐसा होता नहीं है. इसे दुनियादारी के नजरिए से देखें तो पेरैंट्स और घर के मोह से कोई लड़का या पति पूरी तरह उबर नहीं पाता.

उस की जिंदगी की शुरुआत जिस घर से होती है उस के प्रति उस में एक अलग की तरह की कशिश होती है. शादी के बाद पत्नी अगर चाहे कि पति वह सब कुछ भूल जाए तो यह किसी भी पति के लिए मुमकिन नहीं होता. बात ज्यादा तब बिगड़ती है जब पैसा बीच में आने लगता है. पत्नी नहीं चाहती कि पति घर वालों पर खर्च करे जबकि पति के मन में यह भावना रहती है कि जिन लोगों ने मुझे पैदा किया, बेहतर परवरिश दी, पढ़ायालिखाया और भी न जाने क्याक्या किया उन के किए कुछ हिस्सा अगर पैसों से चुका सकूं तो यह मेरा फर्ज है. कृतज्ञता का यह भाव गलत कहीं से नहीं है जिस पर पत्नी के स्वार्थ का ग्रहण लगता है तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है.

पत्नी जब इसे इशू बना लेती है तो पति 2 पाटों के बीच फंस जाता है. एक तरफ उस का गुजरा कल होता है और दूसरी तरफ भविष्य होता है. इन में तालमेल बैठाने में अकसर वह लड़खड़ा जाता है. उस से न वह छोड़ा जाता और न ही यह छोड़ा जाता. लेकिन एक बड़ा फर्क यह आ रहा है कि पहले के पति, पत्नी के मुकाबले घर वालों पर ज्यादा तबज्जुह देते थे और आजकल के पतिपत्नी और बच्चों को प्राथमिकता में रखते हैं. फर्क तो यह भी है कि उसे यह जिम्मेदारी निभाने के लिए पेरैंट्स या घर वाले रोकतेटोकते नहीं हैं उलटे प्रोत्साहित ही करते हैं.

नए दौर के पतियों को कोई जोरू का गुलाम कहते ताना नहीं मारता जो 3 दशक पहले तक बेहद आम हुआ करता था. यह संयुक्त परिवारों के दौर की बात है जो आजकल न के बराबर देखने में आते हैं अब तो लड़का कालेज में दाखिला लेते ही पराया मान लिया जाता है क्योंकि नौकरी करने के लिए उसे बाहर ही रहना होता है.

हाउसवाइव्स रहती हैं परेशान

बेटा बाहर यानी बहू भी उस के साथ ही बाहर जो 90 फीसदी मामलों में नौकरीपेशा होती है. झंझट रविकांत और रेणु जैसे कपल्स के मामलों में ज्यादा होती है जिन में पत्नी हाउसवाइफ रहती है और खुद की तुलना जौब वाली पत्नियों से करने लगती हैं. जाहिर है उन की जिंदगी उसे बहुत सुहानी और आजाद लगती है कि क्या ठाट हैं इन के. दोनों खूब कमाते हैं और खर्च करते हैं. जाहिर यह भी है कि ऐसी महिलाओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे नौकरीपेशा कपल्स की कठिनाईयों को समझेंगी.

इन पत्नियों को लगता है कि अब पति की जिंदगी और कमाई पर सिर्फ उन का ही हक है. पति ये दोनों देने में नहीं हिचकिचाता पर सौ फीसदी देना उस के लिए संभव नहीं होता इसलिए वह चाहता है कि कुछ पैसा घर पर भी खर्च किया जाए.

वह अपनों के उपकार और प्यार को नहीं भुला पाता और उस की कीमत कुछ पैसे खर्च कर चुकाना चाहता है तो गलत कहीं से नहीं होता और किसी पत्नी को यह हक नहीं जाता कि वह पति को इस बाबत रोकेटोके और कोसे और अगर ऐसा वह करती है तो खुद ही अपने वैवाहिक जीवन में आग लगा रही होती है जिस की आंच में काफी कुछ झुलसता है.

बात अगर वक्त रहते न संभले तो लगातार बिगड़ती ही जाती है क्योंकि पति का सोचना यह रहता है कि सब कुछ तो इन्हीं लोगों यानी अपनी पत्नी व बच्चों के लिए कर रहा हूं. अब अगर तीजत्यौहार शादीब्याह वगैरह में घर वालों की थोड़ी मदद कर दी, कुछ पैसा खर्च कर दिया तो कौन सा गुनाह कर दिया. आगे कभी जरूरत पड़ी तो भी काम मांबाप भाईबहन ही आएंगे और क्या मेरी कमाई पर खुद मेरा भी इतना हक नहीं कि अपनी मर्जी से खर्च कर सकूं. यह ख्याल दिल में आते ही उसे पत्नी दुश्मन नजर आने लगती है जबकि उस से बेहतर दोस्त कोई और हो ही नहीं सकता.

इलाज क्या

लेकिन ऐसी पत्नी दोस्त साबित नहीं हो पाती जो पति की इन फीलिंग्स को न समझे. उसे लगता है कि पति अपनी कमाई घर वालों पर उड़ा रहा है तो वह कुंठित और असुरक्षित हो उठती है. कई बार तो वह पति के प्रति इतनी पजेसिव हो जाती है कि बातबात में शक करने लगती है कि ये मुझ से छिप कर घर वालों को पैसा दे रहे हैं. पति से पूछती है तो उस का झल्लाना स्वभाविक बात है.
इस की दूसरी स्टेज होती है पत्नी का यह चाहने लगना कि पति घर वालों से ज्यादा बात न करे. इस के लिए वह अकसर पति को फोन भी चेक करने लगती है कि कहीं वह घर वालों के ज्यादा संपर्क में तो नहीं. ऐसे में वह पति से शिकायत करती है या सफाई मांगती है फिर पति भी भड़क उठता है.

वह दौर कभी का गुजर चुका है जिस में बेटा पूरी कमाई मांबाप के हाथ में रख देता था और पत्नी ताकती रह जाती थी. अब पत्नी की परिवार आर्थिक भागीदारी या भूमिका बढ़ी है लेकिन इतनी नहीं कि वह पुराने जमाने की सास की तरह घर की वित्त मंत्री हो जाए.

परिवार एकल हो या संयुक्त पत्नी को खर्च और जरूरत के लिए मुनासिब पैसे मिलते हैं, सास की गैरमौजूदगी में घर वही चलाती है. ऐसे में वह अगर चाहे कि पति अपनी मर्जी से खर्च ही न करे तो कलह तो होगी जिस से बचने कुछ टिप्स यहां दिए जा रहे हैं-

पति के लिए

-पति यह समझे कि उस की कमाई पर हक जमा कर पत्नी कोई गुनाह नहीं कर रही. यह बेहद स्वभाविक मनोवृति है आप की कमाई पर आप के बाद पहला हक उसी का बनता है.
– हर खर्च में पत्नी की सलाह लेना एक अच्छा रास्ता है जिस से पत्नी को अपने वजूद और बराबरी का एहसास होता है.
– घर वालों पर जो भी खर्च करें वह पत्नी की जानकारी में होना चाहिए. अगर वह एतराज जताए तो उसे समझाएं कि ऐसा क्यों किया जा रहा है.
– घर वालों के लिए पत्नी की उपेक्षा न करें, इस से उस की जलनकुढ़न बढ़ती है.
– पत्नी को खर्च करने का अधिकार दें, इस से वह किफायत से चलेगी.
– जब कभी ससुराल में खर्च करने की नौबत आए तो नानुकुर न करें. याद रखें मायके में पत्नी की शान इस से बढ़ती है और उस का आत्मविश्वास व आप के प्रति प्यार सम्मान भी बढ़ता है.

पत्नी के लिए

पति अगर घर वालों पर खर्च करे तो उसे ज्यादा रोकेटोके नहीं. यह याद रखें कि आप से इतर भी उस के कुछ फर्ज और जिम्मेदारियां हैं जिन में हाथ बटाने से उसे खुशी और संतुष्टि ही मिलेगी.
– अगर आप को लगता है कि पति घर वालों पर जरूरत से ज्यादा खर्च कर रहा है या पैसों के बाबत उसे घर वाले इमोशनली ब्लैकमेल कर रहे हैं तो समझ और सब्र से काम लें. उसे उन की नीयत और अपने घर की जरूरतों और जिम्मेदारियों का एहसास कराएं.
– वक्त रहते कोई बड़ा इन्वेस्टमेंट करने के लिए पति को राजी करें, मसलन होम लोन या कार लोन ले लेना इस से नियमित किश्त जाएगी तो उसे सीमित पैसे में खर्च करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.
– कलह कर या परेशान कर पति को उस के घर वालों पर खर्च करने से रोकने की कोशिश अकसर बेकार जाती है. अगर वह मान भी जाएगा तो आप के प्रति पहले सा नहीं रह पाएगा.
– बचत नगद करने के बजाय सोना आदि खरीदें. नगदी पास में देख कर घर वाले तो क्या हर कोई बालूशाही की मक्खियों की तरह मंडराने लगता है.
– अगर घर वालों से पति की नजदीकियां जरूरत से ज्यादा बढ़ रही हैं तो उस का ध्यान कहीं और बटाएं सीधे ऐसा करने से न रोकें.
– बातबात में पति के घर वालों की आलोचना न करें, इसे वह अन्यथा ले सकता है.

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