लेखक- डा. आरएस खरे

कार से उतर कर जैसे ही घर में कदम रखा तो ‘टिकटौक, टिकटौक टिकटौक’ की आवाजें सुनाई दीं. अपना औफिस बैग सोफे पर रखते हुए मैं ने कमरे में झांक कर देखा तो तिमोथी घोड़ा बनी हुई थी और उस की पीठ पर रुद्राक्ष घुड़सवार.

रुद्राक्ष मेरा बेटा. है तो अभी 5 साल का, पर बेहद शरारती. तिमोथी को न तो कोई काम करने देता है और  न ही अपने पास से हटने देता है.

किंडर गार्डन से दोपहर 2 बजे आ कर शाम 5 बजे जब तक मैं औफिस से नहीं आ जाती, तिमोथी के साथ मस्ती करते रहना उस का रोज का शगल बन गया है. कभी उसे घोड़ा बनाता है, तो कभी हाथी और कभी ऊंट बना कर उस पर सवारी करता है.

आज तो हद ही कर दी उस ने. तिमोथी, जो मेरे घर पर पहुंचते ही मेरे लिए कौफी बनाने किचन में भाग कर जाती थी, उसे वह उठने ही नहीं दे रहा था, “नो, शी इज माय हौर्स, आई विल नौट एलाऊ टू मूव हर.”

बड़ी मुश्किल से माना वह, जब तिमोथी ने प्यार से समझाया कि वह मम्मा के लिए कौफी बनाने यों गई और यों वापस आई, 2 मिनट में.

“नो, नौट टू मिनट, वन मिनट ओनली,” रुद्राक्ष चीखते हुए बोला.

“ओके बाबा,” कहती हुई  तिमोथी तेजी से किचन की ओर भागी, कौफी बनाने.

3 महीने पहले दिलीप और मैं जब कंपनी की ओर से डेपुटेशन पर सिंगापुर आए थे, तब उस समय हमारी सब से बड़ी चिंता यही थी कि रुद्राक्ष सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक तो किंडर गार्डन में रहेगा, पर उस के बाद हम लोगों के औफिस से शाम को घर आने तक कोई विश्वास योग्य ‘आया’ मिल पाएगी या नहीं? एक और कठिनाई यह भी थी कि रुद्राक्ष या तो अंगरेजी बोलता था या हम लोगों की मातृभाषा ‘तमिल’. इसलिए ऐसी  आया चाहिए थी, जो उस की बोली समझ सके.

सिंगापुर पहुंचते ही हम लोगों ने ऐसी एजेंसियां खोजनी शुरू कीं, जो घरेलू नौकरानियां और आया जरूरत के अनुरूप चयन कर उपलब्ध कराती थीं.

दिलीप के साथ जब मैं ने ऐसी ही एक एजेंसी से संपर्क किया, तो उन्होंने एक कंसल्टेंट को हम लोगों के पास भिजवाया. कंसल्टेंट ने आ कर हमारे अपार्टमेंट का मुआयना किया और फिर हमारी जरूरतों संबंधी अनेक प्रश्न पूछे. संतुष्ट हो जाने पर उस ने 2-3 दिन का समय मांगा और इंतजार करने का अनुरोध किया.

2 दिन बाद ही वह एक ‘आया’ को अपने साथ ले कर आया. फिर परिचय कराते हुए वह बोला, “यह तिमोथी है. फिलिस्तीनी कैथोलिक ईसाई. पिछले माह तक ये आप के जैसे ही दक्षिण भारतीय सरनन सर के यहां घरेलू काम और बच्चे की देखभाल करती थी. उन के चेन्नई चले जाने से इस को नया काम चाहिए  था. ये दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाने में भी निपुण  है. मेरे खयाल से आप को जिस तरह की ‘आया’ की जरूरत है, तिमोथी उस के लिए पूरी तरह उपयुक्त होगी.”

तकरीबन 55 से 60 साल की उम्र के मध्य की सौम्य सी दिखने वाली इस महिला में मुझे प्रथम दृष्टि में ही आकर्षण के साथसाथ ममत्व की झलक दिखी. उस ने कुछ समय में ही रुद्राक्ष को गोद में ले कर अंगरेजी में बात की, तो रुद्राक्ष थोड़ी ही देर में उस से इतना घुलमिल गया,  जैसे उसे पहले से जानता हो.

दिलीप से मैं ने तमिल में खुसरफुसर कर उन की राय ली तो वे संतुष्ट लगे. हम लोगों की सहमति होने पर कंसल्टेंट ने एक कौंट्रेक्ट फार्म भरा और तिमोथी को दिए जाने वाले वेतन और अवकाश संबंधी नियमों को हमें समझाया.

अगले ही दिन तिमोथी ने हमारे आवास के साथ बने सर्वेंट क्वार्टर में शिफ्ट कर लिया और घर के सारे काम संभाल लिए.

मैं जल्दी ही समझ गई कि उसे ज्यादा कुछ समझाने की जरूरत नहीं है. उसे दक्षिण भारतीय परिवार की सभी परंपराओं व रुचियों का ज्ञान है. संभवतः सरनन सर के यहां काम करतेकरते वह तमिल परिवारों की सभी विशेषताएं जान चुकी थी. शंका दूर करने के लिए  एक दिन मैं ने पूछ ही लिया,  तो उस ने बताया कि उस के देश फिलीपींस में मेड सर्वेंट और आया के काम के प्रशिक्षण के लिए अनेक ट्रेनिंग सेंटर खुले हुए हैं. ऐसे ही एक प्रशिक्षण केंद्र में उस ने भी प्रशिक्षण लिया था. फिर सरनन मैडम ने उसे धीरेधीरे सबकुछ सिखा दिया. अब उसे भारतीय त्योहार और रीतिरिवाज बहुत अच्छे लगते हैं.

तिमोथी की वाणी में तो मधुरता थी ही, उस के हाथों में भी हुनर था. वह इतना स्वादिष्ठ भोजन बनाती थी कि हम लोगों की डाइट में वृद्धि हो चली थी.

दिलीप तो तिमाथी के बनाए सांभर के दीवाने थे. वे अकसर कहते कि जैसा मां सांभर बनाती थी, वैसा ही तिमोथी भी बनाती है.

तिमोथी को खाली बैठना अच्छा नहीं लगता. वह कोई काम न भी हो तो भी काम निकाल कर करने बैठ जाती. उसे काम करते देख मुझे अपनी मां की याद आ जाती. वे भी ऐसे ही दिनरात काम में जुटी रहती हैं. मैं ने मां को आज तक आराम करते देखा ही नहीं.

तिमोथी वे सब काम भी करती जो ‘कौंट्रेक्ट’ में नहीं थे. ऐसा लगता जैसे व्यस्त रह कर वह कोई अपना ‘गम’ भुलाने की कोशिश करती रहती है. अधिकांश समय उस का चेहरा भावशून्य रहता. रुद्राक्ष के साथ खेलते हुए जरूर उस के चेहरे पर मुसकान रहती,  अन्यथा बाकी समय तो उस का चेहरा सपाट दिखता जैसे शून्‍य में कुछ खोज रही हो.

कई बार मैं ने जानने की कोशिश की, पर हर बार वह टाल जाती. तिमोथी से हम लोगों की बातचीत अंगरेजी में होती. वह अंगरेजी समझ तो अच्छी तरह से लेती थी,  पर बोलने में कहींकहीं अटकती थी.

प्रत्येक रविवार सुबह वह बिना नागा चर्च जाती और जब लौटती तो कुछ घंटों के लिए अपनेआप को कमरे में बंद कर लेती. जब वह बाहर निकलती तो उस की आंखों में हलकी सी लाली के साथ सूजन दिखती.

ऐसे ही एक रविवार को उस के चर्च से वापस आ जाने पर मैं ने उस की खिड़की से छुप कर देखा तो मैं अवाक रह गई.

तिमोथी फ्रेम में मढ़ी हुई एक तसवीर को सीने से लगाए सुबकसुबक कर रो रही थी. काफी देर तक तो मैं सोचती रही, पर जब मुझ से नहीं रहा गया तो मैं दरवाजे को धकेलते हुए  अंदर चली गई. मैं ने जैसे ही उसे चुप कराने के लिए गले लगाया, तो वह बिलखबिलख कर रो पड़ी.

काफी देर तक रो लेने के बाद मैं ने उसे पानी का गिलास देते हुए कहा, “तिमोथी, तुम मेरी मां जैसी हो. क्या कोई मां अपनी पीड़ा अपनी बेटी से साझा नहीं करेगी? दुख व्यक्त कर देने से दिल हलका हो जाता है.

फिर तिमोथी ने जो बताया,   वह बड़ा ही हृदयविदारक था-

‘तिमोथी का भरापूरा खुशहाल परिवार था. पति वर्गिस लून शहर के सिविल अस्पताल में डाक्टर थे. बेटा मार्कोस ने इंजीनियरिंग की डिगरी के बाद एमबीए ज्वाइन किया था. बहू सिल्विया, जिस का विवाह एक वर्ष पूर्व ही हुआ था,  पोते कार्लोस को हाल ही में जन्म दिया था.

‘फिलीपींस में भूकंप तो अकसर आते ही रहते थे, पर 15 अक्टूबर, 2013 को जो भूकंप आया, उस ने अनेक शहर उजाड़ दिए. सब से ज्यादा उस के लून शहर में विनाश हुआ. पूरा शहर ही ध्वस्त हो गया और हजारों लोग मारे गए. अस्पताल भवन के धराशाई होने से सैकड़ों मरीजों के साथसाथ उस के पति डाक्टर वर्गिस भी मलबे में दब गए थे, जिन्हें जीवित नहीं निकाला जा सका. तिमोथी का मकान भी ढह गया था, पर वे लोग जीवित बच गए थे.

‘मार्कोस ने जब अपने पिता की क्षतविक्षत लाश देखी, तभी से विक्षिप्‍त सा हो गया है. उस के उपचार पर पिछले 4-5 सालों में तिमोथी ने अपना सबकुछ लगा दिया.

‘डाक्‍टर अभी भी कहते हैं कि मार्कोस ठीक हो जाएगा, थोड़ा समय और लगेगा.

‘सिल्विया को यद्यपि चर्च में नौकरी मिल गई है, पर बेटे के महंगे उपचार के लिए  यह पर्याप्त नहीं होने से तिमोथी को आया की नौकरी करनी पड़ रही है.

‘लून की बहुत सी भूकंप प्रभावित महिलाएं सिंगापुर में घरेलू नौकरानी का काम कर रही हैं. यहां सिंगापुर में वेतन अच्छा मिलता है और साथ में एक माह का सवैतनिक अवकाश भी.

‘तिमोथी साल में एक बार एक माह के लिए लून जाती है. पोता कार्लोस दादी को छोड़ता ही नहीं. जब रोते हुए पोते को छोड़ कर वापस सिंगापुर तिमोथी आती है, तो कई दिनों तक वह बेचैन रहती है.

‘एक बार मार्कोस स्वस्थ हो जाए, तब वह रूखासूखा खा कर गुजारा कर लेगी,  पर पोते को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी, कभी नहीं.’

तिमोथी की दुखभरी व्यथा सुन कर पवित्रा को जोर से रोना आया और वह तिमोथी से लिपट कर देर तक सिसकती रही.

तिमोथी ने बेटी की तरह उसे भींच कर सीने से लगा लिया. वहां अब सिर्फ दो प्रेम भरी आत्माएं थीं- मां और बेटी के रूप में. न कोई मालकिन, न कोई आया. न कोई भारतीय, न फिलीपिनी, न ही कोई हिंदू, न कोई ईसाई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...