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शरणागत- भाग 1: डा. अमन की जिंदगी क्यों तबाह हो गई?

आईसीयू में लेटे अमन को जब होश आया तो उसे तेज दर्द का एहसास हुआ. कमजोरी की वजह से कांपती आवाज में बोला, ‘‘मैं कहां हूं?’’

पास खड़ी नर्स ने कहा, ‘‘डा. अमन, आप अस्पताल में हैं. अब आप ठीक हैं. आप का ऐक्सिडैंट हो गया था,’’ कह कर नर्स तुरंत सीनियर डाक्टर को बुलाने चली गई.

खबर पाते ही सीनियर डाक्टर आए और डा. अमन की जांच करने लगे. जांच के बाद बोले, ‘‘डा. अमन गनीमत है जो इतने बड़े ऐक्सिडैंट के बाद भी ठीक हैं. हां, एक टांग में फ्रैक्चर हो गया है. कुछ जख्म हैं. आप जल्दी ठीक हो जाएंगे. घबराने की कोई बात नहीं.’’

डाक्टर के चले जाने के बाद नर्स ने डा. अमन को बताया कि उन के परिवार वालों को सूचित कर दिया गया है. वे आते ही होंगे. फिर नर्स पास ही रखे स्टूल पर बैठ गई. अमन गहरी सोच में पड़ गया कि अपनी जान बच जाने की खुशी मनाए या अपने जीवन की बरबादी का शोक मनाए?

कमजोरी के कारण उस ने अपनी आंखें मूंद लीं. एक डाक्टर होने के नाते वह यह अच्छी तरह समझता था कि इस हालत में दिमाग और दिल के लिए कोई चिंता या सोच उस की सेहत पर गलत असर डाल सकती है पर वह क्या करे. वह भी तो एक इंसान है. उस के सीने में भी एक बेटे, एक भाई और पति का दिल धड़कता है. इन यादों और बातों से कहां और कैसे दूर जाए?

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आज उसे मालूम चला कि एक डाक्टर हो कर मरीज को हिदायत देना कितना आसान होता है पर एक सामान्य मरीज बन कर उस का पालन करना कितना कठिन.

डा. अमन के दिलोदिमाग पर अतीत के बादल गरजने लगे…

डा. अमन को याद आया अपना वह पुराना जर्जर मकान जहां वह अपने मातापिता और 2 बहनों के साथ रहता था. उस के पिता सरकारी क्लर्क थे. वे रोज सवेरे 9 बजे अपनी पुरानी साइकिल पर दफ्तर जाते और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते.

उस की मां बहुत ही सीधीसादी महिला थीं. उस ने उन्हें हमेशा घर के कामों में ही व्यस्त देखा, कभी आराम नहीं करती थीं. वे तीनों भाईबहन पढ़नेलिखने में होशियार थे. जैसे ही बहनों की पढ़ाई खत्म हुई उन की शादी कर दी गई. पिताजी का आधे से ज्यादा फंड बहनों की शादी में खर्च हो गया. उस के पिता की इच्छा

थी कि वे अपने बेटे को डाक्टर बनाएं. इस इच्छा के कारण उन्होंने अपने सारे सुख और आराम त्याग दिए.

वे न तो जर्जर मकान को ही ठीक करवा पाए और न ही स्कूटर या कार ले पाए. बरसात में जब जगहजगह से छत से पानी टपकने लगता तो मां जगहजगह बरतन रखने लगतीं. ये सब देख कर उस का मन बहुत दुखता था. वह सोचता कि क्या करना ऐसी पढ़ाई को जो मांबाप का सुखचैन ही छीन ले पर जब वह डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा था तब पिता के चेहरे पर एक अलग खुशी दिखाई देती. उसे देख उसे बड़ा दिलासा मिलता था.

तभी दरवाजा खुलने की आवाज उसे वर्तमान में लौटा लाई.

उस के मातापिता और बहनें आई थीं. पिता छड़ी टेकते हुए आ रहे थे. मां को बहनें पकड़े थीं. उस का मन घबराने लगा. सोचने लगा कि मैं कपूत उन के किसी काम न आया. मगर वे आज भी उस के बुरे समय में उस के साथ खड़े थे. जिसे सब से पहले यहां पहुंचना चाहिए था उस का कोसों दूर तक पता न था.

काश वह एक पक्षी होता, चुपके से उड़ जाता या कहीं छिप जाता. अपने मातापिता का सामना करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने आंखें बंद कर लीं. मां का रोना, बहनों का दिलासा देना, पिता का कुदरत से गुहार लगाना सब उस के कानों में पिघले सीसे की तरह पड़ रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सब को मरीज की खराब हालत का हवाला देते हुए बाहर जाने को कहा. मातापिता ने अमन के सिर पर हाथ फेरा तो उसे ऐसे लगा मानो ठंडी वादियों की हवा उसे सहला रही हो. धीरेधीरे सब बाहर चले गए.

अमन फिर अतीत के टूटे तार जोड़ने लगा…

जैसे ही अमन को डाक्टर की डिग्री मिली घर में खुशी की लहर दौड़ गई. मातापिता खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. बहनें भी खुशी से बावली हुई जा रही थीं. 2 दिन बाद ही इन खुशियों को दोगुना करते हुए एक और खबर मिली. शहर के नामी अस्पताल ने उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया था. 2 सप्ताह बाद अमन की उस में नौकरी लग गई. उस के पिता की बहुत इच्छा थी

कि वह अपना क्लीनिक भी खोले. उस ने पिता की इच्छा पर अपनी हामी की मुहर लगा दी. वह अस्पताल में बड़े जोश से काम करने लगा.

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अभी अमन की नौकरी लगे 1 साल भी नहीं हुआ था कि अचानक उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस ने उस के जीवन की दिशा ही बदल दी.

दोपहर के लंच के बाद अमन डा. जावेद के साथ बातचीत कर रहा था. डा. जावेद सीनियर, अनुभवी और शालीन स्वभाव के थे. वे अमन की मेहनत और लगन से प्रभावित हो कर उसे छोटे भाई की तरह मानने लगे थे.डा. अमन को याद आया अपना वह पुराना जर्जर मकान जहां वह अपने मातापिता और 2 बहनों के साथ रहता था. उस के पिता सरकारी क्लर्क थे.

अन्यपूर्वा: क्यों राजा दशरथ देव ने विवाह न करने की शपथ ली?

Writer- विश्वनाथ यादव

विशाली मयूरपंखी बजरा पद्मा नदी की लहरों को काटता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. बजरे के पीछे कुछ बड़ी नौकाएं थीं, जिन में शस्त्रधारी सैनिकों के अलावा दासदासियां भी सवार थे. 2 बड़ी नावों पर खाद्य सामग्री लदी हुई थी.

पिछले 12 सालों से वह हर साल दलबल के साथ घूमने निकल पड़ता. राज्य नर्तकियां नृत्य कर उसे लुभाने की, हंसाने की बहुत कोशिश करतीं, किंतु उस का चेहरा गमगीन ही बना रहता. ऐश्वर्य के हर साधन मौजूद होने पर भी वह उन का उपभोग नहीं कर पाता था. वह बंगाल के सोनार गांव का राजा था.

हर साल घूमने के लिए राजा सोनार गांव के किले से निकलता था. अपने राज्य के अधीन गांवों के घाटों पर अपना बजरा रुकवा कर प्रजा का हालचाल पूछता तथा कोई शिकायत होने पर उसे दूर करने की व्यवस्था कर देता.

यद्यपि राजा अपने को व्यस्त रखने की भरपूर कोशिश करता. फिर भी कुछ लम्हे ऐसे आ ही जाते थे जब वह बिलकुल अकेला होता. ऐसे समय पिछली यादें जब भी आतीं तो वह बेचैन हो उठता था.

20 साल हो गए, उस ने उस की सूरत नहीं देखी. अब तो वह उस का चेहरा भी ठीक से याद नहीं कर पाया था. 20 सालों में उस में न जाने कितने परिवर्तन हुए होंगे. उस में भी तो परिवर्तन हुए हैं.

उस राजा की मौसी के गांव का नाम मंदिरपुर था. जब उस का बजरा मंदिरपुर के गांव के सामने से गुजरता तो वह अपने मन को दृढ़ कर लेता. इन 12 वर्षों के राजकीय जीवन में वह हजारों गांवों में गया, किंतु मंदिरपुर नहीं जा सका.

सुबह की मलय समीर बह रही थी. मल्लाह मुस्तैदी से मयूरपंखी बजरे को चला रहे थे. राजा बजरे पर खड़ा था और उस की आंखें हर साल की तरह कुछ ढूंढ़ रही थीं. राजा ने मन में सोचा कि इस गांव के बाद ही तो मंदिरपुर गांव है. कुछ ही देर में दूर से ही गांव का राधाकृष्ण मंदिर का चूड़ा दिखाई देने लगेगा. इस मंदिर के बगल में ही एक जमींदार की हवेली है. उसी में वह रहती होगी और यह सोच वह व्याकुल हो उठा.

20 साल पहले की स्मृतियां उसे बेचैन करने लगीं. मंदिर का चूड़ा अब दिखाई पड़ने लगा था. अनायास ही उस की आंखों से आंसू बहने लगे. उस ने धीमे स्वर में मल्लाहों को मंदिरपुर घाट पर बजरे को रोकने का आदेश दिया. राजकीय पोशाक उतार कर राजा ने साधारण कपड़े पहने और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को कुछ निर्देश दे वह घाट से मंदिरपुर गांव की ओर अकेला ही चल दिया. राधाकृष्ण मंदिर के पास स्थित जमींदार की हवेली पहुंच कर वह उत्साह से बोला, ‘‘सुरभि…’’

एक वृद्ध दासी बाहर निकल कर बोली, ‘‘मां तो मंदिर गई हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं प्रतीक्षा करता हूं.’’

‘‘मां अभी आ जाएंगी, पूजा को गए काफी समय हो गया है,’’ फिर दासी मंदिर की ओर से किसी को आते देख कर बोली, ‘‘लीजिए, मां आ रही हैं.’’

राजा ने सिर घुमा कर देखा. सादे कपड़े में लिपटी एक औरत हाथ में पूजा का थाल लिए धीमे कदमों से चली आ रही थी. औरत नजदीक आते ही राजा को पहचान खुशी से बोली, ‘‘अरे, दशरथ दादा (भाई), तुम?’’

‘‘हां.’’

‘‘चलो, घर के अंदर चलो.’’

राजा किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह सुरभि के पीछेपीछे चल पड़ा. वह दशरथ को ले कर एक कमरे में पहुंची. दशरथ एक सजे पलंग पर बैठ गया. सुरभि ने उसे प्रेम से देख कर कहा, ‘‘20 सालों के बाद तुम्हें देख रही हूं.’’

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‘‘हां, मैं भी.’’

‘‘तुम्हारे लिए भोजन की व्यवस्था करूं, तुम भूखे होगे?’’

‘‘नहीं, तुम बैठो.’’

सुरभि सकुचा कर पलंग के एक तरफ बैठ गई. फिर कुछ याद आने पर पूछा, ‘‘तुम ने विवाह किया?’’

‘‘अभी तक नहीं.’’

‘‘क्या कहते हो, दशरथ दा? राजा महाराजा तो दर्जनों विवाह करते हैं… और तुम?’’

‘‘तुम ने भी तो विवाह नहीं किया?’’

‘‘मेरी बात अलग है. मैं विवाह नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम एक जमींदार की बेटी हो.

धनसपंत्ति का तुम्हें अभाव

नहीं है, फिर भी विवाह…’’

दशरथ की बात बीच में काटते हुए सुरभि बोली, ‘‘मेरे पिता अपनी सारी जायदाद देवता को अर्पण कर गए. मैं तो भगवान की दासी हूं.’’

‘‘तुम विवाह करतीं तो क्या कोई तुम्हें रोक देता?’’

‘‘हिंदू विधवा का विवाह होता है?’’

‘‘जहां तक मु?ो खबर है कि तुम्हारा विवाह ही नहीं हुआ. फिर तुम अपने को विधवा कैसे कहती हो?’’

‘‘विवाह न होने पर भी मैं विधवा हूं. जिस व्यक्ति के साथ मेरे पिता ने मेरा विवाह तय किया था वह विवाह करने ही तो आ रहा था. पद्मा नदी पार करते समय नौका डूब जाने से उन की मौत हो गई. हिंदू संस्कार के अनुसार उन की मौत के साथ ही मैं विधवा हो गई.’’

‘‘उस व्यक्ति के साथ तुम ने 7 फेरे नहीं लगाए तो विधवा कैसे हो सकती हो?’’

‘‘ब्राह्मण मु?ा जैसी अभागिनों को विधवा न कह कुछ और कहते हैं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अन्यपूर्वा.’’

दशरथ ने ‘अन्यपूर्वा’ सुन कर प्रश्न भरी नजरों से सुरभि को देखा.

सुरभि उस का आशय सम?ा कर बोली, ‘‘दादा, मेरे पिता को एक पंडित ने बताया था कि जिस लड़की का विवाह तय हो जाता है और विवाह के पहले उस के भावी पति की मृत्यु हो जाती है वह अन्यपूर्वा कहलाती है. उस का बाद में विवाह नहीं होता है. उसे अपने पिता या भाई के घर जीवनभर आश्रित बन कर रहना पड़ता है.’’

‘‘विधवाओं की तरह?’’

‘‘हां, विधवाओं की तरह.’’

‘‘तुम बताओ. तुम ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘आप भूल गईं. 20 वर्ष पहले हम ने शपथ ली कि यदि हम दोनों का विवाह संभव नहीं हुआ तो आजन्म कुंआरे रहेंगे.’’

‘‘मेरी बात अलग है. धर्म और समाज मेरे विरुद्ध है. फिर राधाकृष्ण मंदिर की देखभाल करने की मुझ पर पैतृक जिम्मेदारी है.’’

‘‘मेरी तरफ देखो,’’ दशरथ बोला, ‘‘मैं सोनार गांव का राजा हूं. संपत्ति व शक्ति का अधिकारी. धर्म और समाज मेरे किसी कार्य में बाधक नहीं बनेंगे.’’

‘‘वह 13 वर्ष की अबोध बालिका का पागलपन था. मैं तुम्हारी मौसेरी बहन हूं. हिंदू समाज में मौसेरी बहन से विवाह करने का प्रचलन नहीं.’’

दशरथ खामोश हो गया. उसे 20 वर्ष पूर्व अपनी मां को दिया वचन याद आ गया कि वह अपनी इस मौसेरी बहन से किसी भी दशा में विवाह नहीं करेगा. उस ने एक विश्वास ले कर सुरभि की ओर देखा और बोला, ‘‘सुरभि, मु?ो जोरों से भूख लगी है.’’

वह तुरंत उठ कर भोजन की व्यवस्था करने चली गई.

दशरथ देव अपने पिता दामोदर देव की मौत के बाद 1243 ईसवी में सोनार गांव का राजा बना था. उस ने ‘अरिराज दनुध माधव’ की उपाधि धारण की. किंतु जनसाधारण में वह रायदनुज के नाम से प्रसिद्ध हुआ, पर सुरभि के लिए वह दशरथ दा ही था.

सुरभि के पिता सूर्यमोहन मंदिरपुर के जमींदार थे. उन्होंने अपनी एकमात्र संतान सुरभि का विवाह ?ान?ानी के जमींदार माधवलाल के एकलौते बेटे से तय किया था. दिल से सुरभि इस विवाह के लिए तैयार नहीं थी. सुरभि की मां इस सचाई को जानती थीं कि सुरभि और दशरथ एकदूसरे को चाहते हैं, फिर भी उन्होंने इस बात को अपने पति से छिपा कर रखा.

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नौका डूब जाने के कारण भावी दामाद की मौत हो जाने से जमींदार सूर्यमोहन को काफी सदमा पहुंचा और उन की मौत हो गई. सुरभि की मां पति की मौत के कुछ दिनों बाद ही गुजर गईं.

भोजन करते हुए दशरथ देव सोच रहा था, ‘सुरभि मौसेरी बहन होने के कारण मु?ा से विवाह बंधन में नहीं बंध सकती, किंतु वह किसी अन्य से तो विवाह कर सकती है.’

उसी तरह सुरभि भी सोच रही थी, ‘मैं अब अन्यपूर्वा हूं किंतु दशरथ दा तो किसी सुयोग्य कन्या से विवाह कर सकते हैं.’

भोजन के बाद विश्राम कर जब दशरथ नींद से जागे तो उस समय संध्या हो रही थी. सुरभि अल्पाहार ले कर उन के कमरे में पहुंची. उस के साथ एक नवयुवती थी. दशरथ साथ आई उस नवयुवती को एकटक देख रहे थे.

दशरथ के सामने अल्पाहार रख सुरभि ने उस युवती से कहा, ‘‘दशरथ दा, बहुत बड़े राजा हैं, इन्हें प्रणाम करो.’’

नवयुवती ने लाज भरी आंखों से अपने राजा को देखा, फिर नजरें नीचे ?ाका दोनों हाथ को जोड़ प्रमाण किया.

उस नवयुवती में ऐसा कुछ था जो दशरथ को आकर्षित कर रहा था. वह क्या था? रूप और यौवन? राजा के मन ने खुद से प्रश्न किया और खुद ही उत्तर दिया. शायद नहीं, क्योंकि दशरथ ने उस नवयुवती से भी सुंदर सैकड़ों युवतियों को देखा था, जो उसे आकर्षित नहीं कर सकी थीं. तब? निश्चय ही उस नवयुवती के चेहरे की आभिजात्य तथा बुद्धिमत्ता की छाप दूसरी युवतियों से अलग दिखी थी.

‘‘क्या नाम है इस का?’’ दशरथ ने सुरभि से पूछा.

‘‘पद्मा,’’ सुरभि ने प्रेम से नवयुवती की तरफ देख कर कहा.

‘‘यहीं रहती है?’’ राजा ने पूछा.

‘‘रहती है? यह तो मेरी बेटी है.’’

‘‘तुम्हारा विवाह नहीं हुआ. तुम अपने को अन्यपूर्वा मानती हो. फिर तुम्हारी संतान कब हो गई?’’

‘‘क्या मैं किसी को गोद नहीं ले सकती?’’

‘‘तो यह तुम्हारी पोष्यपुत्री है.’’

‘‘हां, बड़े संयोग से वह मु?ो प्राप्त हुई थी.’’

‘‘कैसा संयोग?’’

‘‘पिता की मौत के 2 साल पहले की घटना है. पिता के साथ नौका पर नारायणगंज जा रही थी. बीच रास्ते में हमारी नौका के सामने एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जल में तैरते हुए आ रहा था. नजदीक आने पर उस मिट्टी के घड़े से किसी शिशु के रोने की आवाज आई तो पिताजी ने मल्लाहों को घड़ा नौका पर उठा लाने का आदेश दिया.’’

घड़े के अंदर एक शिशु था. पिता ने घड़े से शिशु को निकाल कर मेरी गोद में देते हुए कहा, ‘बेटी, आज से यह तुम्हारी बेटी हुई. पद्मा नदी में यह मिली है, अत: इस का नाम पद्मा रख रहा हूं.’’’

दशरथ कुछ सोचने लगा. इस पर सुरभि ने पूछा, ‘‘क्या सोचने लगे, दादा?’’

‘‘सोच रहा हूं, नियति ने तुम्हारे साथ कैसा क्रूर उपहास किया है. 7 फेरे नहीं लगाए और अन्यपूर्वा बन गई. सुहाग सुख नहीं मिला और मां बन गई.’’

‘‘सब राधाकृष्ण की कृपा है.’’

‘‘हां, राधा भी तो कृष्णा को प्राप्त नहीं कर सकी थी.’’

राधाकृष्ण मंदिर भव्य और विशाल था. उस के प्रबंध के लिए एक पुरोहित और कुछ नौकर नियुक्त थे. उन्हें वेतन मिलता था. सुरभि सुबहशाम खुद पूजाआरती कर जाती थी.

मंदिर से जब वे लौटे तो रात हो रही थी. सुरभि जब पद्मा के साथ भोजन ले कर आई तो दशरथ ने एक बार फिर गौर से पद्मा को देखा. दशरथ को अपनी तरफ देखते देख पद्मा के कपोलों पर लालिमा दौड़ गई.

भोजन समाप्त कर दशरथ अपने स्थान से उठे, हाथमुंह धोया. भोजन के जूठे बरतन ले कर पद्मा चली गई तो सुरभि ने पूछा, ‘‘दादा, तुम ने क्या निर्णय लिया?’’

‘‘कैसा निर्णय?’’ दशरथ कुछ आश्चर्यचकित हो कर बोले.

‘‘तुम सोनार गांव के राजा हो. तुम्हारा प्रजा के प्रति कुछ कर्तव्य बनता है?’’

‘‘वह तो मैं पूरा कर ही रहा हूं.’’

‘‘कहां? तुम ने सोनार गांव की प्रजा को उस के उत्तराधिकारी से वंचित कर रखा है?’’ दशरथ दा के पास इस का कोई उत्तर नहीं था.

‘‘तुम्हारे सामने योग्य कन्या है. तुम उस से विवाह कर सुखी रहोगे.’’

‘‘कौन है वह?’’ दशरथ प्रश्न कर सकुचा गए.

‘‘पद्मा.’’

‘‘तुम्हारी बेटी?’’

‘‘वह मेरी कोख से जन्मी बेटी नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम उसे अपनी कन्या तो मानती हो?’’

‘‘उस से मेरा रक्त संबंध नहीं है. यह विवाह शास्त्र और समाज की सहमति से ही होगा.’’

दशरथ को सोचते देख सुरभि ने सजल नेत्रों को पोंछते हुए कहा, ‘‘दशरथ दा, पद्मा को स्वीकार लो, उसे मैं ने घर में शिक्षा दी है. वह सब तरह से तुम्हारे योग्य है. मु?ो उबार लो, दशरथ दा.’’

‘‘रोओ मत. तुम जैसा चाहोगी, वैसा ही होगा.’’

‘‘सच,’’ सुरभि ने आंखें फाड़

कर दशरथ की तरफ देखा और पद्मापद्मा पुकारती हुई खुशी से कमरे से बाहर दौड़ी.

पद्मा का सोनार गांव के राजा राय दनुज के साथ दूसरे दिन ही विवाह हो गया. कुछ दिन मंदिरपुर में गुजार कर राजा रायदनुज अपनी नवविवाहिता के साथ राजधानी जाने की तैयारी करने लगे.

जाने के दिन मंदिरपुर घाट पर काफी भीड़ थी. तब तक लोग दशरथ दा का वास्तविक परिचय जान गए थे.

अपने राजा को विदाई देने मंदिरपुर गांव ही नहीं, आसपास के दूसरे गांवों से भी प्रजाजन आए हुए थे.

मयूरपंखी बजरा घाट छोड़ आगे बढ़ने लगा. बजरे पर खड़े हो राजा राय दनुज एकटक सुरभि को देख रहे थे. जिस औरत को उन्होंने प्रेम किया वह मौसेरी बहन होने के कारण उन से विवाह नहीं कर सकी. आज वही औरत उन के सुख के लिए अपनी पालिता कन्या का उन से विवाह करा कर मां का दरजा प्राप्त कर गई. प्रेम की इस उपलब्धि से राजा रायदनुज आप्लावित हो उठे.

मयूरपंखी बजरा घाट छोड़ आगे बढ़ता जा रहा था. राय दनुज की आंखों से आंसू बह रहे थे.

उस के दोनों हाथ सुरभि के लिए अपनेआप श्रद्धा से जुड़ गए. उन की नजरें तब तक सुरभि पर ही जमी रहीं जब तक एक पूर्ण आकृति धीरेधीरे बिंदु बन विलुप्त न हो गई.

व्यंग्य: नाक बचाओ वाया तीर्थयात्रा

Writer- अशोक गौतम

जिन टमाटरों को रोटी के बदले खाखा कर कभी मैं लाल रहा करता था, आजकल वही टमाटर मु?ो औनलाइन दर्शन दे लाल किए जा रहे हैं. गूगल पर टमाटरों को सर्च करतेकरते मेरे ऐसे पसीने छूटने लगते हैं मानो मैं ने टमाटर नहीं, सांप देख लिया हो, वह भी फुंफकारता हुआ.

जिस सरसों के तेल को बौडी में खूब रचारचा कर कभी मैं अपने को वैवाहिक जीवन का बो?ा उठाने के लिए तैयार किया करता, दंड बैठकें निकाल तेल का तेल निकाल दिया करता था, आजकल उसी तेल के कनस्तर को बाजार में दूर से देख कर ही मेरे पसीने छूटने लगते हैं. मु?ो देखते ही वह इस कदर दंडबैठकें निकालने लगता है मानो जवानी के दिनों का हिसाब बराबर करना चाहता हो.

मत पूछो, घर का मुखिया होने के चलते मेरे कितने बुरे हाल हैं. इन दिनों मैं घर का मुखिया कम, घर में दुखिया सब से अधिक चल रहा हूं. किसी भी लैवल के मुखिया की वैसे तो नाक आज तक कभी बची नहीं, पर फिर भी सम?ा में नहीं आ रहा, महंगाई के इस दौर में किस तरह अपनी नाक बचाऊं?

पार्टी के चुनाव में हार जाने पर हार पर होने वाले मंथन के स्टाइल में जब मैं थकहार कर अपनी नाक बचाने पर मंथन कर ही रहा था कि अचानक मु?ो एक आइडिया आया कि क्यों न महंगाई के इस दौर में नाकबचाई के लिए परिवार को विभाग से एलटीसी ले कर तीर्थयात्रा पर धकेला जाए.

एक पंथ कई काज! इस बहाने उन का धार्मिक पर्यटन हो जाएगा और सरकार की तरह अपनी गिरती साख को, मुगालते में ही सही, आठ चांद भी लग जाएंगे. इस बहाने तीर्थयात्रा में शुद्ध वैष्णव खाने के बहाने टमाटरतेल के भाव का भी कुछ दिनों के लिए डर दिमाग से जाता रहेगा. हो सकता है तब तक टमाटर और तेल औंधेमुंह रसोई में गिर जाएं, या कि मेरी ही टमाटरतेल खाने की आदत ही छूट जाए. ऊपर से मोक्ष का सब से बड़ा फल अलग.

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वैसे भी, मोक्ष के फल बेचने वाले छाती पीटपीट कर दावे करते रहते हैं कि फलों में सब से श्रेष्ठ फल कोई जो है तो बस, मोक्ष का फल है. फलों का राजा आम नहीं, मोक्ष का फल है. मोक्ष के फल को खा कर शरीर में केवल खून नहीं बढ़ता, कोलैस्ट्रौल ही कम नहीं होता, बौडी स्लिम एंड ट्रिम ही नहीं होती, बल्कि मरने के तुरंत बाद शर्तिया स्वर्ग मिलता है.

स्वर्ग मिल जाने के बाद तब वहां न टमाटर की जरूरत होती है, न तेल की, न पैट्रोल की जरूरत पड़ती है, न डीजल की, न लाइन में घंटों सरकारी राशन की दुकान के आगे एकदूसरे को धक्के देते, एकदूसरे से धक्के खाते खड़े होना पड़ता है और न ही आसान किस्तों पर लोन लेना पड़ता है जिसे बाद में कठिन किस्तों पर लौटाना दम निकाल देता है, तब हर महीने किस्त देते हुए ऐसे लगता है जैसे हम लोन की मासिक किस्त न दे कर अपने प्राण दे रहे हों.

सो, मैं ने घर का मुखिया होने के नाते एक तीर से कई निशाने साधने की राजनीतिक साध मन में लिए, आव देखा न ताव, सपरिवार एलटीसी पर तीर्थयात्रा पर जाने के लिए अप्लाई कर दिया.

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जैसे ही मैं ने यह खबर हाथ जोड़ घर में प्रैस कौन्फैंस कर अपने घरवालों को बताई कि वे भी सरकार की तर्ज पर चाहते हैं कि उन के परिवार के मैंबर मुफ्त में तीर्थयात्रा पर जा समय से पहले पुण्य बटोर सकते हैं तो वे पागल हो गए. मुफ्त में खानेखिलाने की यह बीमारी महामारी से भी खतरनाक बीमारी होती है, भाईसाहब.

वैसे, अमूमन आदमी बुढ़ापे में तीर्थयात्रा करता है जब उस की टांगें जवाब दे चुकी होती हैं. जब तक उस की टांगें चलने लायक रहती हैं तब तक वह इधरउधर दौड़ता रहता है. बुढ़ापे में आदमी कुछ और करने को लालायित हो या न, पर वह अपनी सारी जिंदगी के पापों का प्रायश्चित्त करने को पगलाया रहता है. अगर गलती से तो आदमी कभी बूढ़ा न हुआ करता तो क्या मजाल जो वह तीर्थयात्रा पर जाया करता. सरकार की सारी मुफ्त में तीर्थों का लाभ दिलवाने वाली सारी ट्रेनें खाली ही चला करती हैं. स्वर्ग उजाड़ का उजाड़ रहता है.

और कल, मैं अपने परिवार के साथ धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देता टमाटरों को ठेंगा दिखाता, तेल को गंदी नाली में बहाता तीर्थयात्रा वाली ट्रेन में सवार हुआ तो मु?ो उसी वक्त मोक्ष के टैस्ट की फीलिंग होनी शुरू हो गई. घरवालों को हुई होगी कि नहीं, वही जानें.

Satyakatha: दिखावटी रईस- निकला बड़ा ठग

सौजन्य: सत्यकथा

कहते हैं कि इंसान बड़ा तिकड़मी होता है. कोई अपने तिकड़म अच्छे कामों के लिए लगाता है तो कोई अपने तिकड़म से दुनिया को झुकाने की फितरत रखता है. केरल के एक आदमी ने आसानी से पैसा कमाने के लिए जोरदार तिकड़म लगाया. 10 करोड़ की ठगी के मामले में 25 सितंबर, 2021 की रात को केरल की क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद जब उस के कारनामों का खुलासा हुआ तो लोग उस की चर्चा करते नहीं थक रहे हैं. क्योंकि अपने तिकड़म से उस ने देश के जानेमाने ठग नटवरलाल को भी पीछे छोड़ने की कोशिश की है.

51 साल के उस आदमी का नाम है मोनसन मावुंकल. वह केरल के जिला अलप्पुझा के चेरथला का रहने वाला है. इस ठग ने स्वयंप्रसिद्धि द्वारा अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई थी.

अपनी वेबसाइट पर उस ने जरा भी कंजूसी किए बगैर बड़ी ही उदारता के साथ अपनी पहचान इस तरह दी थी— डा. मोनसन मावुंकल, प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का अंतरराष्ट्रीय सौदागर. विश्व शांति के प्रणेता और वर्ल्ड पीस काउंसिल का मेंबर. प्रवासी मलयाली फैडरेशन पेट्रन, पुरातत्त्वविज्ञान के मास्टर, डाक्टरेट इन कौस्मेटोलौजी और उस में पोस्टडाक्टरल, शिक्षाशास्त्री, प्राचीन ज्वैलरी के निर्यातक, मोटिवेशनल स्पीकर और प्रख्यात यूट्यूबर.

यह आदमी काम क्या करता था? कोच्चि में एक आलीशान कोठी किराए पर ले कर उस में उस ने प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का म्यूजियम बना रखा था. इस के अलावा कोठी के एक फ्लोर पर वह सौंदर्य चिकित्सा करता था. वहां एक स्पा भी था.

कोठी के विशाल कंपाउंड में उस की लगभग 30 कारें खड़ी थीं. उस की कारों के इस काफिले में पोर्शे बाक्सटर, रोल्स रायस, रेंजरोवर, लैंडक्रूजर, डौज, मर्सिडीज एस क्लास और लेक्सस जैसी महंगीं कारें थीं.

उस के म्यूजियम में जो दुर्लभ चीजें थीं, वह सोनेचांदी की प्राचीन ज्वैलरी के अलावा देशी और विदेशी प्रवासियों को अमूल्य और दुर्लभ नमूने भी बेचता था. उस की सूची में ईसा मसीह जो कपड़े पहनते थे, उस का एक टुकड़ा, जीसस को धोखा देने के लिए घूल जुडासन ने जो 30 चांदी के सिक्के दिए थे, वे सिक्के. मोहम्मद पैगंबर जिस कटोरे में खाते थे, वह कटोरा.

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टीपू सुलतान का सिंहासन, लियोनार्डो दा विंची और राजा रवि वर्मा के बनाए असली चित्र, छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा अपने साथ जो भगवद्गीता रखते थे, वह भगवद् गीता, मोजिस का अधिकार दंड, नारायण गुरु की लाठी, त्रावणकोर के महाराजा का सिंहासन, विश्वप्रसिद्ध पैलेस का ओरिजिनल टाइटल डीड.

दुनिया की पहली ग्रामोफोन मशीन, बाइबल की सर्वप्रथम छपी पहली कौपी, सद्दाम हुसैन अपने साथ जो कुरान शरीफ रखता था, वह पवित्र कुरान शरीफ, केरल का प्रसिद्ध शबरीमाला मंदिर जब बना था, तब की उस की धार्मिक विधियों के लिए दस्तावेज के रूप में जो ताम्रपत्र बनाया गया था, वह दुर्लभ ताम्रपत्र, इस तरह की अनेक दुर्लभ प्राचीन चीजें मोनसन मावुंकल के खजाने में थीं.

छोटे ग्राहकों के लिए हाथीदांत की कलाकृतियां और व्हेल मछली की हड्डियों से बने खिलौने भी उस के म्यूजियम में थे. फिल्मी हीरो जैसे लगने वाले और अपनी बोलने की कला से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करने की उस में गजब की शक्ति थी.

इस के अलावा उस के इस म्यूजियम और वैभवशाली 30 कारों के काफिले के कारण किसी को भी प्रभावित करने में उसे जरा भी दिक्कत नहीं होती थी. 2-3 सशस्त्र बौडीगार्ड हमेशा उस के साथ रहते थे. प्रसिद्धि का भूखा मोनसन डौन की स्टाइल में अपने फोटो वेबसाइट और सोशल मीडिया पर अकसर डालता रहता था.

सामान्य आदमी तो ठीक, केरल के फिल्मी कलाकार, राजनेता और बड़ेबड़े पुलिस अधिकारी भी उस का म्यूजियम देखने आते थे.

उस से मिलने वालों में राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा, असिस्टेंट आईजीपी मनोज अब्राहम, सुपरस्टार मोहनलाल, कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन, वर्तमान सरकार के मंत्री रोशी आंगस्टाइन, अहमद देवरकोविल, आईजी लक्ष्मण गुगुलोथ, पूर्व डीआईजी सुरेंद्रन, आईपीएस श्रीलेखा, सांसद हीबी एडन, पूर्व मंत्री मोना जोसेफ जैसे अनेक महारथियों के फोटोग्राफ्स उस के म्यूजियम में थे.

इस तरह के वीआईपी मेहमानों के भव्य स्वागत में मोनसन मावुंकल कोई कसर नहीं छोड़ता था. इन लोगों के साथ के फोटो वह तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल कर देता था. वह पुलिस अधिकारियों को छोटामोटा सामान उपहार में दे कर खुश रखता था.

पुलिस विभाग में चलने वाली चर्चाओं के अनुसार, मोनसन ने एक बड़े पुलिस अधिकारी को 55 लाख की कोरल एडमिरल कलाई घड़ी उपहार में दी थी. पुलिस विभाग से मधुर संबंध होने की वजह से उस की कोठी और अलप्पुझा जिले में स्थित उस के घर, दोनों जगहों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था हो गई थी.

आखिर यह ठग पकड़ा कैसे गया? जून, 2017 से नवंबर, 2020 के बीच मोनसन मावुंकल ने अलग अलग 6 लोगों से कुल 24 करोड़ रुपए उधार लिए थे. अंतरराष्ट्रीय हीरा व्यापारी और एंटीक बिजनैस डीलर के रूप में उस ने इन लोगों से अपना परिचय कराया था.

बाद में जब इन लोगों ने अपना पैसा वापस मांगना शुरू किया तो मोनसन मावुंकल इन से कहने लगा कि फारेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के अधिकारियों ने उस का पैसा रोक रखा है. उसे पाने के लिए केंद्र सरकार से उस की कानूनी लड़ाई चल रही है.

उन लोगों को मोनसन की बात पर विश्वास नहीं था, इसलिए वे लोग उस के घर आए. आलीशान कोठी, लग्जरी कारों का काफिला, उस की आलीशान जीवनशैली और माननीय लोगों के साथ उस की फोटो देख कर उन्हें मोनसन की बात पर विश्वास हो गया.

इस के अलावा विश्वास जमाने के लिए मोनसन मावुंकल ने उन लोगों को एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट भी दिखाया.

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मोनसन मावुंकल का पार्टनर कोई वी.आई. पटेल (यह वी.आई. पटेल कौन हैं, इस के बारे में केरल पुलिस आज तक पता नहीं कर सकी है) के साथ के उस के एकाउंट में छोटीमोटी नहीं, 2.62 लाख करोड़ की रकम जमा थी. मोनसन मावुंकल ने उन से यह भी कहा था कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर उस ने अपना पैसा पाने की बात भी की है.

प्रवासी मलयाली फेडरेशन की वैश्विक महिला कोआर्डिनेटर रह चुकी अनीता पुल्लाइल इस समय इटली में रहती हैं. मोनसन मावुंकल के किसी लेनदार ने जब उन से व्यक्तिगत रूप से इस बारे में बात की तो उन्होंने सलाह दी कि उस चीटर के खिलाफ तुरंत पुलिस में शिकायत कर दीजिए. अगर आप को जरूरत महसूस हो तो मेरे नाम का भी उपयोग कर सकते हो.

अनीता ने यह भी कहा था कि पता चला है कि उस नालायक ने उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की 17 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म भी किया है. यह पता चलते ही उन्होंने उस शैतान से सारे संबंध तोड़ लिए हैं.

इस के बाद उन लेनदारों ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ शिकायत करने के साथसाथ उस शिकायत पर काररवाई के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन के यहां शिकायत की. उन्हीं की शिकायत के आधार पर लोकल पुलिस को अंधेरे में रख कर राज्य की क्राइम ब्रांच ने इस मामले को अपने हाथ में लिया.

25 सितंबर, 2021 को मोनसन मावुंकल की बेटी की सगाई की आलीशान पार्टी थी. उसी रात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस समय उसे गिरफ्तार किया गया, उस की जेब में 3 महंगे आईफोन, दाहिने हाथ में एप्पल की घड़ी, बाएं हाथ में सोने का वजनदार लकी ब्रेसलेट और गले में मोटी सी सोने की चेन थी.

अपनी स्वयंप्रसिद्धि के कारण मोनसन मावुंकल ने केरल में ‘हू इज हू’ की सूची में स्थान प्राप्त कर लिया था. गिरफ्तारी के बाद मोनसन मावुंकल मीडिया में छा गया.

अखबारों और टीवी चैनलों में उस के नेताओं के साथ के संबंध और पुलिस अधिकारियों से सांठगांठ की चर्चा लगातार चलने लगी. उस के बाद बहुत बड़ा घोटाला सामने आया. इस के अलावा भी अनेक रहस्य बाहर आएंगे, ऐसा सभी को लग रहा है.

फोटोग्राफ्स में जो महानुभाव थे, वे सब ढीले पड़ गए और अपनीअपनी सफाई देने लगे कि यह आदमी इतना बड़ा ठग है, उन्हें पता नहीं था. राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा ने तो मोनसन मावुंकल के म्यूजियम में महाराजा के स्टाइल में हाथ में तलवार के साथ पोज दिया था.

लोकनाथ इसी साल रिटायर हुए हैं. उन के रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें तुरंत कोच्चि मेट्रो का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था. मोनसन मावुंकल के गिरफ्तार होते ही वह पत्नी की बीमारी का कारण बता कर अपने घर ओडिशा चले गए हैं.

जैसेजैसे सच्चाई बाहर आने लगी, झूठ और मात्र झूठ के आधार पर खड़ा किया गया मोनसन मावुंकल का साम्राज्य भरभरा कर गिरने लगा.

हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोनसन मावुंकल ने किसी कालेज का मुंह नहीं देखा था. फिर भी उस के नाम के साथ डाक्टरेट की डिग्री लगी है. उस के म्यूजियम के खजाने में जो पौराणिक वस्तुएं थीं, वे ज्यादातर नकली थीं.

हाथीदांत और व्हेल की हड्डियों से बनी जो चीजें थीं, वे तिरुवनंतपुरम के एक कारीगर से ऊंट की हड्डियों से बनवाई गई थीं. उस कारीगर का भी इस पर पैसा बाकी है, इसलिए उस ने भी मुकदमा कर रखा है.

उस की 30 कारों में से एक भी कार के पूरे कागज नहीं मिले. महंगी पोर्शे कार 2007 में करीना कपूर के नाम रजिस्टर्ड हुई थी. उस में पिता का नाम रणधीर कपूर और पता भी उन्हीं के घर का है.

मोनसन मावुंकल की पत्नी शिक्षिका थी. 1981-82 में वे दोनों इडुक्की जिले के एक गांव में रहते थे. उस समय के उस के पड़ोसियों का कहना है कि मोनसन मावुंकल तो उन के गांव में इलैक्ट्रिशियन वायरमैन का काम करता था. 1998 में उस ने कोच्चि में पुरानी कारों के खरीदनेबेचने का धंधा शुरू किया. तभी चोरी की कार बेचने के आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया था.

छोटीमोटी धोखाधड़ी करते हुए उस ने एक पूरा आभासी साम्राज्य खड़ा कर लिया. अपने लेनदारों को मोनसन मावुंकल बड़े शान से 2.62 लाख करोड़ की जमा रकम वाला एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट दिखाता था. पुलिस जांच में सामने आया है कि इस आदमी का तो बैंक में कोई एकाउंट ही नहीं है.

कोफिन में अंतिम कील जैसी घटना उस की गिरफ्तारी के बाद बाहर आई. उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की बेटी 17 साल की थी, तब मोनसन मावुंकल ने उस के साथ उच्च शिक्षा के लिए दाखिला दिलाने के नाम पर दुष्कर्म किया था. पुलिस से मोनसन मावुंकल के संबंधों के कारण वह गरीब पुलिस से शिकायत करने से डरती रही.

मोनसन मावुंकल पकड़ा गया तो उस ने एर्नाकुलम थाने में शिकायत की है कि अब तक उस के साथ दुष्कर्म का सिलसिला चलता रहा था. गिरफ्तारी के 2 दिन पहले भी उस नराधम ने उस लड़की के साथ दुष्कर्म किया था.

क्राइम ब्रांच ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 450, 506, 420, 421 के तहत कुल 14 एफआईआर दर्ज की हैं. इस में 19 अक्तूबर, 2021 को पोक्सो एक्ट के अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया था.

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डौन की तरह बौडीगार्ड के साथ मोनसन मावुंकल के फोटो खूब वायरल हुए थे. पुलिस जांच में पता चला कि सभी अंगरक्षकों के हाथों में जो हथियार दिख रहे थे, वे चाइनीज खिलौना राइफलें थीं. इस घटना का राजकीय प्रत्याघात भी जोरदार सामने आया है.

6 अक्तूबर, 2021 को केरल की विधानसभा में प्रश्नोत्तर के दौरान मोनसन मावुंकल एक बार फिर चर्चा में आया. राज्य के डीजीपी और अन्य उच्च अधिकारी मोनसन के म्यूजियम में क्या करने जाते थे, इस का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है. मुख्यमंत्री विजयन ने कहा. उन्होंने विश्वास दिलाया कि उस के दोनों घरों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था किस ने कराई है, इस की जांच होगी.

विपक्षी नेता वी.डी. सतीश ने आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि 2019 में पुलिस की इंटेलिजेंस विंग ने मोनसन मावुंकल को चीटर घोषित करते हुए जनवरी, 2020 में पूरी रिपोर्ट दी थी, फिर भी पुलिस ने उस के खिलाफ कुछ नहीं किया था. उसे राज्य के पुलिस अधिकारियों और सरकार की मदद मिलती रही थी. यह कह कर विपक्ष ने वाकआउट कर दिया था.

लोगों को ठग कर इकट्ठा किया गया पैसा आखिर गया कहां? पुलिस अब इस दिशा में जांच कर रही है. पिछले 5 सालों में कोच्चि के पौश इलाके की प्रौपर्टी में जो बेनामी इनवैस्ट हुआ है, उस में सभी डीलरों का कहना है कि किसी ‘डाक्टर’ नाम के आदमी ने खासा बेनामी इनवैस्ट किया है.

पुलिस का मानना है कि वह डाक्टर कोई और नहीं, मोनसन मावुंकल ही होगा. इटली में रह रही अनीता पुल्लाइल भी पुलिस के शक के दायरे में है. वह बारबार केरल आ कर मोनसन मावुंकल से मिलती रहती थी. इस से पुलिस को आशंका है कि उस के माध्यम से मोनसन ने पैसा विदेश पहुंचाया है. पुलिस इस की भी जांच कर रही है.

पुलिस का मानना है कि उन लेनदारों से अनीता ने जो शिकायत करने के लिए कहा था, उस समय मोनसन की पुलिस अधिकारियों से अच्छी सांठगांठ थी. इसलिए उन लोगों की शिकायत पर कुछ होगा नहीं, यह सोच कर उस ने यह सलाह दी थी.

दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए, यह उक्ति मोनसन मावुंकल पर सच्ची ठहरती है. सारा नकली कारोबार कर के लोगों को ठगने और उन पर धाक जमाने के लिए नेताओं, अभिनेताओं और पुलिस अधिकारियों की तसवीरों का उपयोग किया, परंतु अंत में अपराध का घड़ा फूटा और अब वह नमूना जेल की सलाखें गिन रहा है.

हरनाज कौर संधू

हरनाज कौर संधू ने मिस यूनिवर्स के ताज पर कब्जा कर के विश्व में अपनी खूबसूरती और सूझबूझ के झंडे गाड़ दिए हैं. यह हमारे लिए खुशी की बात है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस चुनाव के पीछे आयोजकों का भारत सहित समूचे एशियाई देशों पर व्यापारिक और कूटनीतिक नजरिया भी रहता है.

भारत ने सौंदर्य के पैमाने पर देश- दुनिया को चौंका दिया है. तभी तो रीता फारिया से ले कर सुष्मिता, ऐश्वर्या, प्रियंका, युक्ता, लारा और हरनाज तक देश में 6 मिस वर्ल्ड और 3 मिस यूनिवर्स चुनी जा चुकी हैं. सौंदर्य प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में कौन कितना और किस स्तर पर सुंदर है? इसे ले कर बनाए गए पैमाने में भारतीय सुंदरता एक बार फिर अगली पंक्ति में आ चुकी है.

हरनाज कौर संधू मिस यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली तीसरी भारतीय हैं. इन से पहले ठीक 21 साल पहले जब 2000 में लारा दत्ता सुष्मिता सेन के बाद मिस यूनिवर्स चुनी गई थीं, तब उसी साल हरनाज कौर सिंधू का जन्म हुआ था.

बचपन से ले कर किशोरावस्था तक आतेआते उन्हें अपनी सुंदरता का एहसास होने लगा था. स्कूल से कालेज के दिनों तक वह सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, लारा दत्ता, युक्ता मुखी से ले कर मानुषी तक की सुंदरियों की कायल बन चुकी थीं. उन के ग्लैमर और सेलीब्रेटीपन से काफी हद तक प्रभावित हो गई थीं

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यही विशेष कारण रहा कि वह मौडलिंग और सिनेमा के परदे तक खिंचती चली गईं.

मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड की ख्यातिप्राप्त सुंदरियों ने उन्हें काफी प्रभावित किया था. वह न केवल सुंदरता, बल्कि अपनी बात को दमदार तरह से वैश्विक मंच के लोगों तक पहुंचाने को उत्सुक हो गई थीं.

लेकिन संधू का दुबलापन उन्हें इस से दूर रखे हुए था. एक दिन वही छरहरी काया उन की मजबूती बन गई. उसी का असर है कि अब तक दुनिया की 2 सब से बड़ी सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारत कुल 9 सुंदरियों में उन का नाम भी शामिल हो गया.

इस साल 70वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता 2021 का आयोजन 12 दिसंबर को इजरायल के दक्षिणी शहर इलात में आयोजित हुआ था. इसे ले कर सब से खास बात यह थी कि इस मुकाबले में पूरी दुनिया से चुन कर आईं खूबसूरत लड़कियों को टक्कर देने के लिए भारत की हरनाज संधू शामिल हुई थीं.

हाल ही में संधू ने ‘लिवा मिस दिवा यूनिवर्स 2021’ का खिताब अपने नाम किया था. अब वह इस महत्त्वाकांक्षा के साथ मंच पर खड़ी थीं कि उन्हें दुनियाभर में अपनी खूबसूरती का लोहा मनवाना है, जिस की तैयारी उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ की थी.

भारतीय समय के अनुसार 13 दिसंबर, 2021 की सुबह का वक्त था. भारत की मिस इंडिया हरनाज कौर संधू भी एक मजबूत दावेदारी वाली प्रतियोगी के तौर पर शामिल थीं. इस से पहले के कई राउंड पार कर वह यहां तक पहुंची थीं. 3 घंटे तक चली इस लाइव प्रतियोगिता में विशेष राउंड भी होना था, जो प्रतियोगिता के नियम के मुताबिक आखिरी और फाइनल होता है.

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इधर भारत में मीडियाकर्मियों समेत समस्त देशवासियों को उस के नतीजे का बेसब्री से इंतजार था. चंडीगढ़ में सुबह साढ़े 5 बजे से ही संधू परिवार टेलीविजन से चिपका हुआ था.

हरनाज की मां रविंदर कौर दुआ मांगने गुरुद्वारे भी चली गई थीं. हालांकि बेटी का हौसला बढ़ाने के लिए वह इसराइल जाना चाहती थीं.

प्रतियोगिता को लाइव नहीं देख पाने के बारे में रविंदर से जब लोगों ने पूछा कि वह वहां क्यों नहीं गईं, तब हंसते हुए कहा कि हम यहां से भी उस को अपना सपोर्ट और आशीर्वाद दे सकते हैं. आज तक मैं किसी पीजेंट में नहीं गई तो मुझे इस का डर भी था. थोड़ा मजाकिया लहजे में बोली कि मैं ने अभी तक जिसे भी वोटिंग की है वो हारे ही हैं.

पंजाब की रहने वाली 21 वर्षीय हरनाज संधू ने पराग्वे की नादिया फरेरा और दक्षिण अफ्रीका की ललेला मसवाने को पछाड़ कर इस खिताब पर कब्जा जमाया. खिताब जीतने के बाद हरनाज संधू ने कहा, ‘मैं, मेरे परिजन और मिस इंडिया संगठन की आभारी हूं, जिन्होंने इस पूरे सफर में मेरा मार्गदर्शन किया और मेरा समर्थन किया.’

इसी के साथ उन की भावना से भरी प्रतिक्रिया थी, ‘उन सब के लिए बहुत सारा प्यार, जिन्होंने मुझे ताज दिलाने के लिए प्रार्थनाएं कीं. 21 सालों के बाद भारत के लिए यह गौरवशाली ताज ले जाना सब से बड़े गर्व का क्षण है.’

उल्लेखनीय है कि सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हरनाज 17 साल की उम्र से ही भाग लेती रही हैं. इस से पहले 2021 में उन्हें मिस दीवा 2021 का खिताब भी मिल चुका है. उन्होंने 2019 में फेमिना मिस इंडिया पंजाब का खिताब जीता था, फिर उसी साल फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता के शीर्ष-12 में उन्होंने जगह बना ली थी.

अंतत: प्रतियोगिता के उस राउंड की भी बारी आ गई, जब हरनाज से ज्यूरी द्वारा 2 सवाल पूछे गए थे. उन के जवाब दे कर संधू ने न केवल पूरी दुनिया को चौंका दिया, बल्कि उस के बाद ही उन्हें मिस यूनिवर्स के ताज से नवाजा गया. उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. उन के इसी नए व्यक्तित्व पर आज देश को नाज है.

टौप थ्री यानी अंतिम राउंड के दौरान सभी प्रतिभागियों से पूछा गया था कि आज के समय में दबाव का सामना कर रही उन युवा महिलाओं को वो क्या सलाह देना चाहेंगी, जिस से वो उस का सामना कर सकें?

इस सवाल पर हरनाज संधू ने कहा, ‘आज के युवा पर सब से बड़ा दबाव उन का खुद पर भरोसा करना है. यह जानना कि आप अनोखे हो, यह आप को ख़ूबसूरत बनाता है. अपने आप की दूसरों से तुलना करना बंद करिए और पूरी दुनिया में जो हो रहा है उस पर बात करना बेहद जरूरी है. बाहर निकलिए, खुद के लिए बोलिए क्योंकि आप ही अपने जीवन के नेता हैं. आप खुद की आवाज हैं. मैं खुद में विश्वास करती हूं और इसीलिए मैं आज यहां पर खड़ी हूं.’इस सवाल के जवाब ने हरनाज को टौप थ्री में शीर्ष पर बना दिया और वो विजयी घोषित की गईं.

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कालेज की फ्रैशर पार्टी के बाद बढ़ी दिलचस्पी

इस से पहले टौप-5 के राउंड में उन से जलवायु परिवर्तन से जुड़ा सवाल पूछा गया था. पूछा गया सवाल था कि अधिकतर लोग सोचते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक छलावा है, आप उन्हें समझाने के लिए क्या करेंगी?

इस का जवाब हरनाज ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ दिया था, ‘मेरा दिल टूट जाता है जब मैं प्रकृति को देखती हूं कि वो कितनी दिक्कतों से गुजर रही है. और यह सब हमारे गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के कारण है. मैं पूरी तरह मानती हूं कि यह समय कम बात करने का और अधिक काम करने का है, क्योंकि हमारा हर एक काम प्रकृति को या तो बचा सकता है या नष्ट कर सकता है. रोकथाम और सुरक्षा करना, पछताने और मरम्मत करने से बेहतर है. और दोस्तो, मैं आज इसी के लिए आप को राजी करने की कोशिश कर रही हूं.’

हरनाज संधू की मां रविंदर कौर डाक्टर हैं. उन का पैतृक गांव कोहाली गुरदासपुर जिले में है. उन्हें आज यह याद करते हुए आश्चर्य होता था कि एक समय में उन की बेटी को कभी मोटी तो कभी दुबलीपतली कह कर चिढ़ाया जाता था, आज वह मिस यूनिवर्स है.

हालांकि वह यह भी कहती हैं कि बौडी शेमिंग को पीछे छोड़ कर उस ने यहां तक पहुंचने में काफी मेहनत की और आत्मविश्वास को जरा भी डगमगाने नहीं दिया.

रविंदर कौर हरनाज की पहली बार 2017 में इस क्षेत्र मे कदम रखने के बारे में बताती हैं कि कैसे उसे पिता प्रीतम सिंह संधू ने इस की इजाजत दी थी. यहां तक कि उस के बाद बच्चों ने घर में जम कर भांगड़ा किया था.

सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए हरनाज ने सब से पहले अपने भाई को बताया था, फिर मां से गुहार लगाई थी. जाट परिवार होने के कारण उसे डर था कि कहीं इस के लिए पिता मना न कर दें. इसलिए उस ने अपने पिता को बाद में बताया.

इस पर पिता प्रीतम सिंह ने बताया, ‘तब मुझे भी लगा कि बच्चों पर भरोसा कर के आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए. मेरी हां पर उन्होंने घर में दिन भर भांगड़ा किया था.’

उन्होंने बताया, ‘सौंदर्य प्रतियोगिताओं में जाने की शुरुआत 2017 में तब हुई थी, जब हरनाज सेक्टर 42 के सरकारी कालेज पहुंची थीं. वहां उन की फै्रशर पार्टी थी और उस में वह सैकेंड रनरअप चुन ली गई थीं. उस के बाद हरनाज ने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और फिर आगे बढ़ती चली गईं.’

हालांकि हरनाज अभी भी चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कालेज में एमए की स्टूडेंट हैं. वह पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रही हैं.  हरनाज के मातापिता ने मीडिया से उन के बचपन के बारे में भी कई बातें साझा की हैं.

उन की मां के अनुसार, हरनाज छोटी उम्र से ही अच्छे व्यवहार वाली और मृदुभाषी थी. उन्हें इस के लिए स्कूल से सर्टिफिकेट भी मिले थे. हरनाज ने भले ही कई सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीती हैं, लेकिन उन्हें भी अपने शरीर के कारण बौडी शेमिंग का सामना करना पड़ा था. इस बाता को हरनाज अपने कुछ इंटरव्यू में भी बता चुकी हैं कि कैसे बहुत पतले होने के कारण उन्हें लोग टोकते रहते थे और टिप्पणी भी करते रहते थे. ऐसा होने पर परिवार ने हमेशा उन की हिम्मत बढ़ाई.

बचपन में बहुत मोटी थीं हरनाज

रविंदर के अनुसार हरनाज बचपन में मोटी थी. हम उसे कद्दू कह कर बुलाते थे, लेकिन बाद में वह पतली हो गई. लोग उसे बोलते थे लेकिन मैं ने उसे कहा कि इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए और किसी की फिक्र मत करो. ये तुम्हारा शरीर है और तुम्हें खुद से प्यार करना चाहिए.

बौडी शेमिंग हुई तो थी, वो कभी परेशान भी हो जाती थी. लेकिन मैं उसे प्रोत्साहित करती थी. उन्होंने यह भी बताया कि उन के हरनाज के साथ का रिश्ता मांबेटी से ज्यादा दोस्ती का रहा है. वह खुद अपनी सीक्रेट्स उसे बताती रहती हैं.

हरनाज को अपने मातापिता के साथ परिवार के दूसरे लोगों से भी सहयोग मिला. उन की मां का कहना है कि हरनाज के ताया और ताई ने भी बहुत सपोर्ट किया है.

हरनाज की ताई लकविंदर कौर ने इस पर अपनी खुशी जताते हुए मीडिया को बताया कि हरनाज उन के पास आ कर हमेशा किसी काम के लिए कहती थीं कि ताई, मैं आप की मदद करूंगी. बताओ कैसे करनी है.

कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया उन के ताऊ ने भी दी है, ‘हरनाज अपने पूरे परिवार में अकेली बेटी हैं, जिन से मिली कुछ खुशियां ऐसी होती हैं, जिन्हें बयां नहीं किया जा सकता. सुबह जब उस के ताज के बारे में सुना, तब हमारी आंखों में खुशी के आंसू थे. हमारी बेटी ने वो कर दिखाया जो हम ने कभी सोचा भी नहीं था… हरनाज आज जहां है, वहां अपनी मेहनत से पहुंची है.’

संधू को घुड़सवारी, तैराकी और घूमने का बहुत शौक है. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि अपने खाली वक्त में वह इन्हीं शौक को पूरा करती हैं.

चंडीगढ़ की मौडल हरनाज संधू ने अपने करियर में अब तक कई खिताब जीते हैं. इन में साल 2017 में टाइम्स फ्रैश फेस मिस चंडीगढ़, साल 2018 में मिस मैक्स इमर्जिंग स्टार, साल 2019 में फेमिना मिस इंडिया पंजाब और साल 2021 में मिस यूनिवर्स इंडिया का खिताब शामिल है. साल 2018 में हरनाज ने मिस इंडिया पंजाब का खिताब हासिल करने के बाद द लैंडर्स म्यूजिक वीडियो तेराताली में भी काम किया. इस के बाद इसी साल उन्होंने सितंबर में मिस दिवा यूनिवर्स इंडिया 2021 का खिताब मिला था. तब उन्हें यह ताज खुद बौलीवुड हीरोइन कृति सेनन ने पहनाया था.

मिस यूनिवर्स 2021 का हिस्सा बनने से पहले ही हरनाज फिल्मों में अपनी जगह हासिल कर कर चुकी हैं. अगले साल उन की 2 फिल्में रिलीज होने वाली है. दोनों पंजाबी फिल्में ‘बाईजी कुट्टांग’ और ‘यारा दियां पू बारां’ हैं.

सिंधू सोशल साइट पर भी काफी सक्रिय रहती हैं. उन्हें अपनी फिटनैस से बेहद प्यार है. साथ ही प्रकृति से भी बेहद लगाव रखती हैं. ग्लोबल वार्मिंग और प्रकृति संरक्षण को ले कर अपने विचार और वक्तव्य से वह मिस दिवा पेजेंट में भी जज पैनल को प्रभावित कर चुकी हैं. उन का मानना है कि पृथ्वी को बचाने के लिए हमारे पास अभी भी समय है, इसलिए जितना हो सके प्रकृति का संरक्षण किया जाए.

मिस यूनिवर्स 2021 के दौरान हरनाज ने स्विमसूट से ले कर नैशनल कौस्ट्यूम सेशन तक में अपनी खूबसूरती से लोगों को प्रभावित किया. उन्होंने नैशनल कौस्ट्यूम सेशन में पिंक कलर का लहंगा पहना था, इस के साथ ही वह हाथों में मैचिंग छतरी के साथ नजर आई थीं. उन के इस लुक में लोगों ने पारंपरिक भारतीय महारानी के शाही अंदाज का अनुभव किया था. मिस यूनिवर्स 2021 की इस प्रतियोगिता के पहले दौर में 75 से अधिक प्रतियोगियों ने हिस्सा लिया था. साथ ही इस रेस में मिस स्वीडन, मिस थाईलैंड, मिस यूक्रेन, मिस यूएसए, मिस वेनेजुएला, मिस कैमरून, मिस ब्राजील, मिस ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड समेत कई ब्यूटी क्वीन शामिल हुईं.

इस के जजेज का पैनल भी कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं था, जिस में बौलीवुड अभिनेत्री उर्वशी रौतेला भी शामिल थीं. इस प्रतियोगिता को व्यापारिक नजरिए से भी देखा जा रहा है. भारत समेत समूचे एशियाई देशों पर प्रतियोगिता के आयोजकों की नजरें टिकी रहती हैं. उन में मार्केटिंग और कूटनीतिक नजरिया भी शामिल है.

सभी को मालूम है कि मिस यूनिवर्स के मंच से कही गई हर बात को पूरी दुनिया अहमियत देगी. इस के लिए भारत को आगे कर के ही संभावित निर्णय को प्रमुखता प्रदान की जा सकती है.

अब तक चुनी गईं देश से 9 सुंदरियां

हरनाज कौर संधू के अलावा भारत में कुल 9 सुंदरियों का नाम इतिहास में दर्ज हो गया है. उन में 3 के नाम मिस यूनिवर्स का खिताब है, तो 6 सुंदरियां बीते 55 साल के दरम्यान मिस वर्ल्ड का ताज पहन चुकी हैं. एक नजर उन सुंदरियों पर डालते हैं—

रीता फारिया (1966): भारत की पहली मिस वर्ल्ड का खिताब रीता फारिया के नाम है, जिन्होंने अंतरराष्टीय सौंदर्य प्रतियोगिता में भारत की सफलता का पहला परचम 1966 में लहराया था.

जब रीता फारिया मिस वर्ल्ड बनीं, तब वह इस खिताब को जीतने वाली न केवल भारत, बल्कि एशिया की भी पहली प्रतियोगी थीं. उन दिनों प्रतियोगिता का फाइनल समारोह लंदन में हुआ था. हालांकि उन्होंने सौंदर्य और ग्लैमर को अपना करियर नहीं बनाया.

कुछ समय पहले पहली भारतीय मिस वर्ल्ड रीता फारिया को यूनाइटेड किंगडम में गोवन कम्युनिटी द्वारा सम्मानित किया गया था. साल 1971 में रीता फारिया ने एंडोक्राइनोलौजिस्ट डेविड पावेल से शादी कर ली और साल 1973 में दोनों डबलिन चले गए थे. उन के 2 बेटे और 5 पोतेपोतियां हैं.

सुष्मिता सेन (1994): भारत की पहली मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन को सन 1994 में यह खिताब तब मिला था, जब वह मात्र 18 साल की थीं. उन की बदौलत ही भारत ने मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में पहली बार कामयाबी का झंडा गाड़ा था. उन दिनों यह प्रतियोगिता फिलीपींस की राजधानी मनीला में हुई थी.

ऐश्वर्या राय (1994): एक ही साल में भारत की 2 सुंदरियों को उन की सुंदरता के लिए ताज पहनाया गया था, उन में एक ऐश्वर्या राय भी थीं. वह 1994 में ही भारत की दूसरी मिस वर्ल्ड बनीं थीं. भारत के लिए यह दोहरी सफलता थी. मिस यूनिवर्स के बाद ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनीं थीं.

यह प्रतियोगिता दक्षिण अफ्रीका के शहर सन सिटी में हुई थी. ऐश्वर्या राय ने फिल्म और मौडलिंग को करियर बनाया.

डायना हेडेन (1997): भारत की तीसरी मिस वर्ल्ड डायना हेडेन के सिर पर यह ताज 1997 में सेशेल्स के विक्टोरिया शहर में पहनाया गया था. डायना का जन्म हैदराबाद में हुआ था. हैदराबाद पब्लिक स्कूल से ही डायना ने ऐक्टिंग और ड्रामा की पढ़ाई की थी. इस के आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चली गई थीं.

युक्ता मुखी (1999): भारत की चौथी मिस वर्ल्ड को यह खिताब लंदन में हुई मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में मिला था. युक्ता का जन्म 1979 में बेंगलुरु के एक सिंधी परिवार में हुआ था, लेकिन उन की परवरिश दुबई में हुई थी. फैशन की दुनिया में अपना सिक्का जमाने के बाद युक्ता मुखी ने फिल्म इंडस्ट्री का रुख कर लिया था.

प्रियंका चोपड़ा (2000): भारत की 5वीं मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा को यह खिताब  लंदन में हुई मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में मिला था. प्रियंका ने बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक में अपने अभिनय का डंका बजाया है. उन की एक विशेष पहचान देसी गर्ल की बनी हुई है, जो छोटे शहर से आ कर इस मुकाम को हासिल कर पाई हैं.

प्रियंका चोपड़ा का जन्म 18 जुलाई, 1982 को जमशेदपुर, बिहार (वर्तमान में झारखंड) में अशोक चोपड़ा और मधु चोपड़ा के घर में हुआ था. उस के मातापिता आर्मी में डाक्टर के पद पर कार्य कर चुके हैं. उन की कजिन बहनें परणीति चोपड़ा, मीरा चोपड़ा और मन्नारा चोपड़ा भी बौलीवुड में सक्रिय हैं.

भारत में सब से ज्यादा भुगतान पाने वाली और सब से लोकप्रिय हस्तियों में से एक प्रियंका चोपड़ा को कई पुरस्कार मिले हैं, जिस में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 5 फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं.

2016 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, चौथे उच्चतम नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया है और टाइम पत्रिका भी प्रियंका चोपड़ा को दुनिया में 100 सब से प्रभावशाली लोगों में शामिल कर चुकी है.

लारा दत्ता (2001) : भारत को फिर एक बार मिस यूनिवर्स लारा दत्ता के रूप में मिल गई. वह देश की दूसरी मिस यूनिवर्स थीं. लारा दत्ता साइप्रस में हुई प्रतियोगिता में मिस यूनिवर्स बनी थीं. ये 21वीं सदी की पहली मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता थी.

लारा दत्ता की गिनती बौलीवुड की सफल अभिनेत्रियों में होती है. हालांकि वह फिल्म जगत से गायब रह कर भी चर्चा में बनी रहती हैं. उन की चर्चा सुंदरता के साथसाथ लव अफेयर को ले कर भी हुई.

कभी केली दोरजी के साथ उन के अफेयर की चर्चाओं को हवा मिली तो कभी डिनो मारिया के साथ. साल 2009 में टेनिस स्टार महेश भूपति के प्यार के किस्से सामने आने के बाद साल 2011 के फरवरी महीने में उन्होंने महेश के साथ शादी रचा ली.

लारा को स्टाइलिश और फिटनैस लेडी के रूप में जाना जाता है. कारण वह एरोबिक्स, योगा, स्विमिंग और मेडिटेशन से वह खुद को फिट रखती हैं.

मानुषी छिल्लर (2017): भारत की छठी मिस वर्ल्ड मानुषी दिल्ली एनसीआर की रहने वाली हैं. उन्हें इस का ताज चीन के हेनान प्रांत के सान्या शहर में हुई मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में पहनाया गया था. उन की पहचान या करियर फिल्में या मौडलिंग में नहीं बन पाई है, लेकिन  उन्होंने हैदराबाद में आयोजित 2017 ग्लोबल उद्यमिता शिखर सम्मेलन में बतौर वक्ता अपना संभाषण दे कर सब को चौंका दिया था.

मानुषी को एनीमिया फ्री हरियाणा कैंपेन का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया. बताते हैं उस के बाद ही हरियाणा सरकार द्वारा उन के ‘ब्यूटी विद ए परपज’ परियोजना ‘शक्ति’ को 18 करोड़ रुपए का सरकारी अनुदान भी प्राप्त हुआ.

अब मैं नहीं आऊंगी पापा: पापा ने मेरे साथ क्या किया

मैं अपने जीवन में जुड़े नए अध्याय की समीक्षा कर रही थी, जिसे प्रत्यक्ष रूप देने के लिए मैं दिल्ली से मुंबई की यात्रा कर रही थी और इस नए अध्याय के बारे में सोच कर अत्यधिक रोमांचित हो रही थी. दूसरी ओर जीवन की दुखद यादें मेरे दिमाग में तांडव करने लगी थीं.

उफ, मुझे अपने पिता का अहंकारी रौद्र रूप याद आने लगा, स्त्री के किसी भी रूप के लिए उन के मन में सम्मान नहीं था. मुझे पढ़ायालिखाया, लेकिन अपने दिमाग का इस्तेमाल कभी नहीं करने दिया. पढ़ाई के अलावा किसी भी ऐक्टिविटी में मुझे हिस्सा लेने की सख्त मनाही थी. घड़ी की सुई की तरह कालेज से घर और घर से कालेज जाने की ही इजाजत थी.

नीरस जीवन के चलते मेरा मन कई बार कहता कि क्या पैदा करने से बच्चे अपने मातापिता की संपत्ति बन जाते हैं कि जैसे चाहा वैसा उन के साथ व्यवहार करने का उन्हें अधिकार मिल जाता है? लेकिन उन के सामने बोलने की कभी हिम्मत नहीं हुई.

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मां भी पति की परंपरा का पालन करते हुए सहमत न होते हुए भी उन की हां में हां मिलाती थीं. ग्रेजुएशन करते ही उन्होंने मेरे विवाह के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. लेकिन पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद ही मेरा विवाह विवेक से हो पाया. मेरी इच्छा या अनिच्छा का तो सवाल ही नहीं उठता था. गाय की तरह एक खूंटे से खोल कर मुझे दूसरे खूंटे से बांध दिया गया.

मेरे सासससुर आधुनिक विचारधारा के तथा समझदार थे. विवेक उन का इकलौता बेटा था. वह अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी तो था ही, पढ़ालिखा, कमाता भी अच्छा था और मिलनसार स्वभाव

का था. इकलौती बहू होने के चलते सासससुर ने मुझे भरपूर प्यार दिया. बहुत जल्दी मैं सब से घुलमिल गई. मेरे मायके में पापा की तानाशाही के कारण दमघोंटू माहौल के उलट यहां हरेक के हक का आदर किया जाता था, जिस से पहली बार मुझे पहचान मिली, तो मुझे अपनेआप पर गर्व होने लगा था.

विवाह के बाद कई बार पापा का, पगफेरे की रस्म के लिए, मेरे ससुर के पास मुझे बुलाने के लिए फोन आया. लेकिन मेरे अंदर मायके जाने की कोई उत्सुकता न देख कर उन्होंने कोई न कोई बहाना बना कर उन को टाल दिया. उन के इस तरह के व्यवहार से पापा के अहं को बहुत ठेस पहुंची. सहसा एक दिन वे खुद ही मुझे लेने पहुंच गए और मेरे ससुर से नाराजगी जताते हुए बोले, ‘मैं ने बेटी का विवाह किया है, उस को बेचा नहीं है, क्या मुझे अपनी बेटी को बुलाने का हक नहीं है?’

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‘अरे, नहीं समधी साहब, अभी शादी हुई है, दोनों बच्चे आपस में एकदूसरे को समझ लें, यह भी तो जरूरी है. अब हमारा जमाना तो है नहीं…’

‘परंपराओं के मामले में मैं अभी भी पुराने खयालों का हूं,’ पापा ने उन की बात बीच में ही काट कर बोला तो सभी के चेहरे उतर गए.

मुझे पापा के कारण की तह तक गए बिना इस तरह बोलना बिलकुल अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं मूकदर्शक बनी रहने के लिए मजबूर थी. उन के साथ मायके आने के बाद भी उन से मैं कुछ नहीं कह पाई, लेकिन जितने दिन मैं वहां रही, उन के साथ नाराजगी के कारण मेरा उन से अनबोला ही रहा.

परंपरानुसार विवेक मुझे दिल्ली लेने आए, तो पापा ने उन से उन की कमाई और उन के परिवार के बारे में कई सवालजवाब किए. विवेक को अपने परिवार के मामले में पापा का दखल देना बिलकुल नहीं सुहाया. इस से उन के अहं को बहुत चोट पहुंची. पापा से तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन मुझे सबकुछ बता दिया. मुझे पापा पर बहुत गुस्सा आया कि वे बात करते समय यह भी नहीं सोचते कि कब, किस से, क्या कहना है.

मैं ने जब पापा से इस बारे में चर्चा की तो वे मुझ पर ही बरस पड़े कि ऐसा उन्होंने कुछ नहीं कहा, जिस से विवेक को बुरा लगे. बात बहुत छोटी सी थी, लेकिन इस घटना के बाद दोनों परिवारों के अहं टकराने लगे. उस के बाद, पापा एक बार मुझे मेरी ससुराल से लेने आए, तो विवेक ने उन से बात नहीं की. पापा को बहुत अपमान महसूस हुआ. जब ससुराल लौटने का वक्त आया तो विवेक ने फोन पर मुझ से कहा कि या तो मैं अकेली आ जाऊं वरना पापा ही छोड़ने आएं.

पापा ने साफ मना कर दिया कि वे छोड़ने नहीं जाएंगे. मैं ने हालत की नजाकत को देखते हुए, बात को तूल न देने के लिए पापा से बहुत कहा कि समय बहुत बदल गया है, मैं पढ़ीलिखी हूं, मुझे छोड़ने या लेने आने की किसी को जरूरत ही क्या है? मुझे अकेले जाने दें. मां ने भी उन्हें समझाया कि उन का इस तरह अपनी बात पर अड़ना रिश्ते के लिए नुकसानदेह होगा. लेकिन वे टस से मस नहीं हुए. मेरे ज्यादा जिद करने पर वे अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए बोले, ‘तुम्हें मेरे मानसम्मान की बिलकुल चिंता नहीं है.’

मैं अपने पति को भी जानती थी कि जो वे सोच लेते हैं, कर के छोड़ते हैं. न विवेक लेने आए, न मैं गई. कई बार फोन से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात नहीं की.

पापा के अहंकार के कारण मेरा जीवन त्रिशंकु बन कर रह गया. इन हालात को न सह सकने के कारण मां अवसाद में चली गईं और अचानक एक दिन उन की हृदयाघात से मृत्यु हो गई. इस दुखद घटना के बारे में भी पापा ने मेरी ससुराल वालों को सूचित नहीं किया तो मेरा मन उन के लिए वितृष्णा से भर उठा. इन सारी परिस्थितियों के जिम्मेदार मेरे पापा ही तो थे.

मां की मृत्यु की खबर सुन कर आए हुए सभी मेहमानों के वापस जाते ही मैं ने गुस्से के साथ पापा से कहा, ‘क्यों हो गई तसल्ली, अभी मन नहीं भरा हो तो मेरा भी गला घोंट दीजिए. आप तो बहुत आदर्श की बातें करते हैं न, तो आप को पता होना चाहिए कि हमारी परंपरानुसार दामाद को और उस के परिजनों को बहुत आदर दिया जाता है और बेटी का कन्यादान करने के बाद उस के मातापिता से ज्यादा उस के पति और ससुराल वालों का हक रहता है. जिस घर में बेटी की डोली जाती है, उसी घर से अर्थी भी उठती है. आप ने अपने ईगो के कारण बेटी का ससुराल से रिश्ता तुड़वा कर कौन सा आदर्श निभाया है. मेरी सोच से तो परे की बात है, लेकिन मैं अब इन बंधनों से मुक्त हो कर दिखाऊंगी. मेरा विवाह हो चुका है, इसलिए मेरी ससुराल ही अब मेरा घर है. मैं जा रही हूं अपने पति के पास. अब आप रहिए अपने अहंकार के साथ इस घर में अकेले. अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगी, पापा.’

इतना कह कर, पापा की प्रतिक्रिया देखे बिना ही, मैं घर से निकल आई और मेरे कदम बढ़ चले उस ओर जहां मेरा ठौर था और वही थी मेरी आखिरी मंजिल.

चुनौतियां 2021 की, आशा 2022 की!

2 वर्ष सामाजिक अवसाद और तनाव में गुजारने के बाद नए साल को ले कर लोगों के मन में अब आशंकाओं से ज्यादा संभावनाएं हैं, क्योंकि कोरोना वैक्सीन ने जिंदगी के प्रति आश्वस्त कर दिया है. कोरोनाकाल की उपलब्धियों से लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा है लेकिन चुनौतियां अभी भी कम नहीं, जिन से निबटने के लिए व्यक्तिगत से ले कर वैश्विक स्तर तक एकजुटता और परस्पर सहयोग जरूरी है.

साल 2009 में प्रदर्शित रोलैंड एमेरिच द्वारा निर्देशित हौलीवुड की फिल्म ‘एवरीथिंग रौंग विद 2012’ में भी दुनिया के खत्म होने की कल्पना की गई थी. सदियों से यह कल्पना रोमांच, उत्सुकता और जिज्ञासा का विषय रही है. अब तक हजारों बार दुनिया के खत्म हो जाने के दावे कर के तबीयत में दहशत फैलाई जा चुकी है. हर बार ऐसा किसी शरारत या साजिश के तहत हुआ, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि लोग जिस में रहते हैं उस संसार के अस्तित्व को ले कर जरूर डरे और सहमे हुए रहते हैं.

शुद्ध फिलौसफी के नजरिए से देखें तो आदमी अपनी औसत सक्रिय

उम्र 55 साल में से अधिकतर वक्त कमानेखाने में गुजार देता है. व्यस्तता इतनी कि उस के पास दम मारने की भी फुरसत नहीं होती और कभीकभी इतनी फुरसत होती है कि वह सोचतेसोचते घबराने लगता है कि अब क्या होगा. यह फुरसत हर किसी को कोरोना के कहर के वक्त इफरात से मिली थी. उस वक्त लोग खुद के अस्तित्व और दुनिया को ले कर तमाम आशंकाओं से घिरने लगे थे और खुद को सलीके से जिंदा रखने के नएनए बहाने ढूंढ़ रहे थे. मौजूदा पीढि़यों में से किसी ने भी ऐसा भयावह मंजर और नजारा पहले कभी नहीं देखा था.

लगभग 2 साल लोगों ने हरेक पहलू पर जीभर कर सोचा लेकिन किसी आखिरी नतीजे पर नहीं पहुंचे. इतना जरूर सम?ा आ गया कि उन्होंने अपने आसपास फालतू और गैरजरूरी चीजों का भंगार सा लगा रखा था. जरूरी और उपयोगी चीजों की अहमियत सम?ाने के साथसाथ लोगों के सोचने का तरीका भी बदला और लगातार बदल रहा है, क्योंकि कोरोना नाम की जानलेवा महामारी से अभी भी पूरी तरह छुटकारा नहीं मिला है. नया वैरियंट ओमिक्रोन उस की नई वजह है, जिस के बारे में अभी दावे से कोई कुछ नहीं कह पा रहा. लोगों को यह भरोसा भी कोई नहीं दिला पा रहा कि उन की 2019 से पहले की जिंदगी कभी बहाल होगी. इसलिए नए तौरतरीकों से जीने की आदत वे डाल रहे हैं जो हर लिहाज से एक सुखद संकेत है.

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एक उपलब्धि है वैक्सीन

बिलाशक कोरोना वैक्सीन के वक्त पर ईजाद हो जाने से मौत का खौफ कम हुआ है, पर इस की तगड़ी कीमत हर किसी ने अदा की है. नौकरी और रोजगार जाने के बाद सब से बड़ा ?ाटका लोगों को अपने किसी प्रियजन की बेवक्त की मौत का लगा जिस की भरपाई किसी भी कीमत पर मुमकिन नहीं. सुकून देने वाली इकलौती बात लोगों की खुद की जिंदगी के प्रति बेफिक्री है क्योंकि वैक्सीन है न. यह वैक्सीन कोई ऊपर से टपकी दैवीय उपहार नहीं है बल्कि वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और शोध का नतीजा है.

कोरोना जब पहचाना गया था तब इस के बारे में खास जानकारियां किसी के पास नहीं थीं. ऐसे में कैसे महज डेढ़ साल में इस की वैक्सीन बन गई, यह कम हैरत वाली बात नहीं, जो बताती सिर्फ यह है कि वैज्ञानिकों ने खुद को ?ांक दिया था. महामारियों का अपना इतिहास है और यह स्वाभाविक बात है कि हरेक महामारी की तुलना पिछली महामारी से ही की जाती है. कोरोना की तुलना 1918 में फैली महामारी स्पेनिश फ्लू से की गई, जिस ने 2 वर्षों में करोड़ों की जान ले ली थी. उस वक्त तो वैज्ञानिक यह भी नहीं जानते थे कि वायरस होता क्या है. इसलिए शुरुआती दौर में सावधानियों पर जोर दिया गया जिस से कोरोना इतना न फैले कि वह कई जिंदगियां निगल जाए.

लेकिन 790 करोड़ की आबादी वाली दुनिया में इम्यूनिटी, सोशल डिस्टैंसिंग, क्वारंटीन, मास्क और साफसफाई वगैरह जैसी सावधानियां लंबे वक्त तक अमल में लाना और कारगर होना व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं था. इसलिए, दुनियाभर के वैज्ञानिक अपना घरपरिवार, सुखदुख, भूखप्यास, दिनरात भूल कर वैक्सीन की खोज में जुट गए. यह एक मुश्किल और बहुत चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि वैक्सीन बनाने के बाद 3 चरणों में किया जाने वाला उस का परीक्षण और भी ज्यादा कठिन होता है. 100 साल में हुई विज्ञान की तरक्की रंग लाई और कोरोना वैक्सीन बाजार में आ गई. गौरतलब है कि स्पेनिश फ्लू की तो कोई दवाई ही नहीं थी.

इस से भी ज्यादा अहम बात दुनियाभर के वैज्ञानिकों द्वारा आपस में कोरोना और उस की वैक्सीन से जुड़ी जानकारियों, डाटा और रिसर्च को बगैर किसी पूर्वाग्रह के आपस में शेयर करना रही. जरमनी के वैज्ञानिकों केटलिन कारिको और डू वीजमेन, जिन्हें सब से पहले कोरोना वैक्सीन बनाने का श्रेय जाता है, को दुनिया के कई दूसरे वैज्ञानिकों, खासतौर से दुश्मन देश कहे जाने वाले तुर्की के वैज्ञानिक दंपती उगुर साहिन और ओजलेम टुरेसी, से कई अहम जानकारियां मिलीं और उन्होंने भी अपने शोध को दुनियाभर के वैज्ञानिकों से सा?ा किया. तब कहीं जा कर उम्मीद से कम वक्त में कोरोना वैक्सीन बन पाई जिस से करोड़ों लोगों को जिंदगी बच सकी.

इस के बाद तो हरेक देश में शोध हुए और अभी तक हो रहे हैं जिस के चलते कोरोना वैक्सीन अपग्रेड होती गई. इस के आगे का काम दवा कंपनियों ने संभाल लिया और यह वैक्सीन कई नामों से मिलने लगी, मसलन को-वैक्सीन, कोविशील्ड, जौनसन एंड जौनसन, मौडर्ना, स्पूतनिक जायडस और फाइजर वगैरह. तमाम देशों की सरकारों ने वैक्सीन खरीद कर अपने नागरिकों को लगाना शुरू कर दिया और जो गरीब देश इसे नहीं खरीद पाए उन्हें धनाढ्य देशों ने वैक्सीन मुहैया कराई. हालांकि, दक्षिण अफ्रीका के साथ भेदभाव हुआ जिस की सजा दुनिया ओमिक्रोन की दहशत की शक्ल में भुगत भी रही है.

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इन 2 वर्षों में कोरोना वैक्सीन बनने की उपलब्धि के साथसाथ अहम यह भी रहा कि दुनियाभर की सरकारों ने परस्पर सहयोग किया जिस ने एहसास कराया कि आखिकार हर किसी के लिए मानवता अर्थ और स्वार्थ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. अगर हम कोरोना से लड़ पाए, अभी तक लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ना है, तो एकजुट तो होना पड़ेगा, नहीं तो दुनिया बहुत सिमट जाएगी या वाकई कुछ इस तरह खत्म भी हो सकती है कि अब तक की तरक्की मिट्टी में मिल जाएगी.

यहां कोरोना के राजनीतिक इफैक्ट को भी सम?ाना जरूरी है कि उस के पहले कट्टरवाद दुनियाभर की समस्या थी, पर कोरोना ने अच्छेअच्छे जिद्दी और अर्ध तानाशाहों को या तो चलता करवा दिया या फिर उन्हें ?ाकने को मजबूर कर दिया. वजह आईने की तरह साफ है कि कोई भी अकेला देश अपने दम पर कोरोना से नहीं जीत सकता था. इसलिए वैश्विक सहयोग एक सामूहिक दबाव की शक्ल में सामने आया. लौकडाउन इन में से एक था, जो किसी सरकार का न हो कर जनता का फैसला था. ऐसा पहली बार हुआ कि दुनियाभर के लोगों ने एक साथ अनुशासन में रहने को प्राथमिकता दी.

परस्पर सहयोग का यह जज्बा हर जगह और हर क्षेत्र में दिखा. सामाजिक जीवन में भी लोगों ने धर्म, जाति, रंग और क्षेत्र वगैरह के आधार पर भेदभाव से दूरी बनाई क्योंकि मुश्किलें सब की बढ़ रही थीं और जरा सी अफरातफरी व नादानी उस जहाज को डुबो सकती थी जिस में सब सवार हैं. यह जहाज ही दुनिया है. सरकारों के साथसाथ लोगों को भी सम?ा आ गया कि आपदा वैश्विक है और इस से सामूहिक प्रयासों व एकजुटता से ही लड़ा जा सकता है.

ऐसा भी नहीं कि कोरोना केवल जीने का बेहतर तरीका और सलीका सिखाने को अवतरित हुआ था, पर यह पाठ तो वह पढ़ा गया कि लोग खुद अपने स्तर पर अपनी प्राथमिकताएं तय करें, अपने दिमाग से सोचना और फैसले लेना सीखें, सहयोग की अहमियत को सम?ों और मानवता शब्द के सही माने भी सम?ों. इन 2 सालों में जिंदगी के और कई सबक भी लोगों ने सम?ो.

कम से भी चलता है काम

‘कोरोना के कहर और लौकडाउन के दौरान लोगों ने कम से कम साधनों और सामान में गुजर करने का तरीका सीखा जो कि एक नया अनुभव था. दुकानें और बाजार बंद थे और बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना जोखिमभरा था, इसलिए हर किसी ने किफायत से काम लिया. कइयों ने तो पहली बार महसूस किया कि 2-3 जोड़े कपड़ों में भी बिना मैलाकुचैला दिखे रहा जा सकता है.

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि बाहर जाने की जरूरत खत्म हो गई थी बल्कि इसलिए भी कि लोगों को सम?ा आया था कि वे सिर्फ दिखावे के लिए और चूंकि जेब में पैसा है, इसलिए कुछ शौपिंग कर ली जाए की मानसिकता के तहत कपड़े या दूसरे गैरजरूरी आइटम खरीदना पैसों की बरबादी ही है. 2 साल महिलाओं ने ज्वैलरी, मेकअप का सामान और नईनई साडि़यां व सलवार सूट वगैरह नहीं खरीदे और खरीदे भी तो जरूरत के मुताबिक ही खरीदे. लेकिन इस से वे असुंदर नहीं हो गईं. इन्हीं महिलाओं ने राशन और किराने के सामान का किफायत से इस्तेमाल किया क्योंकि उन दिनों इन के मिलने की कोई गारंटी नहीं थी.

भोपाल की एक गृहिणी सरिता परिहार की मानें तो बच्चों को भी यह बात सम?ा आ गई थी कि कम से कम में काम चलाना है, इसलिए उन्होंने पहले की तरह गिलास में दूध नहीं छोड़ा. यह आदत जिंदगीभर उन के काम आएगी.

जिंदगी की इन छोटीमोटी और रोजमर्राई जरूरतों के अलावा बड़ी जरूरतों पर भी लोगों ने गंभीरता से सोचा. अब सबकुछ लगभग सामान्य हो जाने के बाद जब बाजार गुलजार हैं तब भी लोग बहुत सोचसम?ा कर पैसा खर्च कर रहे हैं. उदाहरण रियल एस्टेट का लें, तो लोग अपने बजट के मुताबिक छोटे मकानों को प्राथमिकता दे रहे हैं. साल 2021 रियल एस्टेट के लिए भी बेहद चुनौतीभरा था. बिल्डर्स और डैवलपर्स की लागत अभी तक नहीं निकल पा रही, फिर मुनाफा तो बाद की बात है. आमतौर पर लोग फ्लैट खरीदना पसंद कर रहे हैं.

जब कम जगह में गुजर हो सकती है तो बड़े मकान पर पैसा खर्चना बुद्धिमानी का काम किसी को नहीं लग रहा, खासतौर से युवाओं को जो मकानों के बड़े ग्राहक हैं. बेंगलुरु में रह कर एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में 30 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर नौकरी कर रहे पटना के हर्षरंजन कोरोना के पहले बड़ा स्वतंत्र मकान खरीदने का इरादा रखते थे. उन्होंने पिछले दिनों ही 3 कमरों वाला फ्लैट ले लिया है. 32 वर्षीय हर्ष ने मकान के अपने बजट में 40 लाख रुपए की कटौती की जो उन की नजर में एक तरह की बचत है. बकौल हर्ष, बात सिर्फ मकान की ही नहीं है बल्कि परफ्यूम वगैरह की भी है जो पहले वे हर कभी खरीद लाते थे लेकिन अब एक शीशी खत्म होने के बाद ही दूसरी खरीदते हैं.

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नौकरीपेशा युवाओं में बचत की यह आदत एक अच्छा संकेत है कि वे कम से कम का मंत्र जप रहे हैं और जहां जरूरी हो वहां इस बाबत कोई सम?ाता भी नहीं कर रहे. बकौल हर्ष, प्यास बु?ाने के लिए जरूरी पानी की मात्रा आप कप में लें या पूरा मटका होठों से लगा लें, कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मटका महंगा तो पड़ता है. ज्यादा पानी पी लेने का एहसास एक बेकार की बात और सुपीरियर कौम्प्लैक्स भर है जिस के कोई माने नहीं.

डब्लूएफएच का नया कल्चर

2 साल के खट्टेमीठे अनुभवों में से एक खास है वर्क फ्रौम होम, जिस ने इस धारणा को ध्वस्त किया कि काम या नौकरी करने के लिए औफिस एक जरूरी जगह है. यह एक निहायत ही अनसोची बात थी कि घर रहते भी जौब मुमकिन है. कोरोना ने कइयों की नौकरियां छीनीं पर उन से भी ज्यादा को एक बड़ी सहूलियत दी. एक अंदाजे के मुताबिक मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में हिंदीभाषी राज्यों के कोई

2 करोड़ युवा नौकरी कर रहे थे. कोरोना के कहर ने इन्हें घर जाने को मजबूर कर दिया लेकिन खाली हाथ नहीं, इन के हाथों में नए जमाने का औजार लैपटौप था.

‘‘यह सब एक तरह से अजीब था,’’ सम?ाते हुए सीहोर की 26 वर्षीय गुंजन बताती हैं कि वे कोरोना के कहर से पहले 4 साल से मुंबई की एक आईटी कंपनी में नौकरी कर रही थीं. अपने मम्मीपापा की इकलौती और लाड़ली संतान गुंजन बीटैक करने इंदौर चली गई थीं, फिर पढ़ाई पूरी करते ही जौब लग गई. इस तरह हाईस्कूल तक ही वे पेरैंट्स के साथ रह पाई थीं. उन की बड़ी इच्छा थी कि कुछ अरसा सीहोर के घर में गुजारें. यह इच्छा लौकडाउन में पूरी हुई जब कंपनी ने सभी कर्मचारियों को घर जा कर काम करने के निर्देश दिए.

गुंजन के लिए यह मुंहमांगी मुराद थी. वे अपनी छोटी सी गृहस्थी समेट कर सीहोर आ गईं और अभी भी वहीं रहते घर से काम कर रही हैं. इस दौरान उन्होंने ज्यादा सैलरी के लिए 2 बार जौब स्विच किया. कैरियर पर घर में रहने का कोई फर्क नहीं पड़ा.

गुंजन कहती हैं, ‘‘मैं ने घर से ही काम करते ज्यादा सैलरी वाली नौकरी हासिल की और कई फ्रैंड्स ने भी ऐसा ही किया. लेकिन सैलरी से ज्यादा खुशी मम्मीपापा के साथ रहने की है. 2 साल हम लोगों ने खूब एंजौय किया, नएनए अनुभव लिए, खूब वैराइटी वाली रैसिपीज ट्राइ कीं, मोबाइल पर लूडो और तंबोला खेला तो घर के बाहर सड़क पर बैडमिंटन का भी लुत्फ लिया.’’

गुंजन आगे बताती हैं, ‘‘क्योंकि मुंबई में तो शेयरिंग वाले फ्लैट का किराया ही 12 हजार रुपए देना पड़ता था और खानेपीने व ट्रांसपोर्ट पर भी इतना ही, साथ ही फ्रैंड्स के साथ वीकैंड पर जाने में भी तगड़ा खर्च होता था. 20 महीनों में ही खासा अमाउंट जमा हो गया है जिसे मैं कहीं न कहीं इन्वैस्ट करूंगी.’’

अब गुंजन मुंबई जाने के नाम से परेशानी में पड़ जाती हैं. हालांकि घर में रहते काम करने से ज्यादा घंटे देने पड़ते हैं लेकिन वे अखरते नहीं. हालफिलहाल तो वे 2022 की पार्टी की तैयारियों में जुटी हैं जिस में उन के स्कूल के जमाने के साथी, पापा के दोस्त और नजदीकी रिश्तेदार आमंत्रित किए हैं. इस में भी खास बात यह कि उन्होंने घर पर काम करने वाली बाई को भी बुलाया है क्योंकि खुशियों पर सब का बराबरी का हक है. सभी को समान नजरिए से देखे जाने का जज्बा भी कोरोना के दौरान की एक उपलब्धि है जिसे गुंजन जैसे करोड़ों युवा जिंदगीभर संभाल कर रखना चाहेंगे.

वर्क फ्रौम होम एंप्लाई और एंप्लायर दोनों के लिए ही फायदे का सौदा साबित हुआ है क्योंकिकंपनियों के खर्च कम हुए हैं और इस से कमर्चारियों की गुणवत्ता व क्षमता पर भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. यह कल्चर अब चल निकला है और बड़े पैमाने पर इसे अमल में भी लाया जा रहा है. औनलाइन मीटिंगों में टारगेट व काम ठीक वैसे ही बंट जाता है जैसे औफिस की मीटिंग्स में बंटता था. घरघर में छोटेछोटे औफिस बन गए हैं. उम्मीद है, इस चलन से उत्पादन बढ़ेगा क्योंकि इस में दिव्यांग और नवजात मांएं भी बिना दिक्कत के काम कर पा रही हैं. नौकरीपेशा युवतियां मां बनने का सपना घर से काम करते हुए सहूलियत से पूरा कर पा रही हैं.

केरल आईटी पार्क्स के सीईओ जौन एम थौमस कहते हैं, ‘‘आईटी कंपनियां इस को जारी रखेंगी और कर्मचारियों की छंटनी भी नहीं करेंगी क्योंकि इस से कई तरह के फायदे मिल रहे हैं. यह हर किसी को दिख रहा है कि दुनियाभर की कंपनियां अपना ज्यादा से ज्यादा कामकाज डिजिटल प्लेटफौर्म पर करेंगी. जिन कंपनियों ने वर्क फ्रौम होम को अस्थायी तौर पर अपनाया था वे इसे स्थायी करने के लिए आईटी कंपनियों की सेवाएं ले रही हैं. निश्चित रूप से यह साल 2022 की बड़ी उपलब्धियों में से एक होगा.

देश की सब से बड़ी कंपनी टाटा कंसल्टैंसी सर्विसेज ने तो लौकडाउन के दौरान ही ऐलान कर दिया था कि उस

की योजना 2025 तक 75 फीसदी कर्मचारियों से घर से ही काम करवाने की है. प्रसंगवश यह बात एक दुखद दौर गुजर जाने के बाद अब ज्यादा हैरान करती है कि जब पूरी दुनिया में लौकडाउन और कर्फ्यू जैसी स्थिति थी तब भी लोगों को राशनपानी मिल रहा था, दवाइयां मिल रही थीं, यहां तक कि अखबार और मैगजीन भी मिल रही थीं और बच्चे औनलाइन पढ़ाई भी कर रहे थे. ये सिलसिले अभी पूरी तरह टूटे नहीं हैं. कुछ समस्याएं और अड़चनें भी पेश आईं लेकिन मिलने वाली सहूलियतें उन पर भारी पड़ीं.

लाइफस्टाइल में सुखद बदलाव

पिछले 2 वर्षों की एक और अहम उपलब्धि परिवार के साथ क्वालिटी टाइम गुजारने के अलावा सुख और दुख दोनों को उन के वास्तविक रूप में पहचानने की रही. 2020 की शुरुआत तक अधिकतर लोग परिवार के साथ रहते हुए भी परिवार के नहीं थे लेकिन जैसे ही साथ रहने का मौका मिला तो हरेक को नई और सुखद अनुभूति हुई. मां, बाप, पत्नी, बच्चों, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ बढ़ती नजदीकियों ने रिश्तों में एक नएपन की ताजगी व खुशबू का एहसास कराया. जो सीहोर की गुंजन ने बताया वह सुख हर किसी ने भोगा. बस, तरीके अलग थे.

सुबह उठते ही दिनभर की जोश से लबरेज तैयारियां कि आज नाश्ते और खाने में क्याक्या बनेगा और सभी लोग मिल कर बनाएंगे का जज्बा अनमोल था. आज मम्मीपापा के जमाने की फिल्म ‘उधार का सिंदूर’ और फिर नई फिल्म ‘स्त्री’ या वैब सीरीज ‘ये मेरी फैमिली’ सब लोग साथ बैठ कर देखेंगे और इस दौरान ड्राइंगरूम में थिएटर जैसा अंधेरा रखा जाएगा. कोरोना प्रोटोकौल से ताल्लुक रखती ढेर सी नसीहतों के बीच ढेर सी आत्मीयताभरी बातें भी पहले दुर्लभ थीं. मुद्दत बाद बचपन और स्कूलकालेज के जमाने के दोस्तों के मोबाइल नंबर ढूंढ़ढूंढ़ कर उन से फिर तूतड़ाक की शैली में बतियाना एक अनमोल सुख था जो अब कम भले ही हो रहा हो लेकिन आदतों में शुमार हो गया है.

दुनियाभर के लोगों ने अपने तो अपने, गैरों के दुखदर्द को भी शिद्दत से महसूस किया और यथासंभव जरूरतमंदों की सहायता भी की. यह कोरोना की बहुत सी चुनौतियों के बीच एक सामूहिक मानवीय उपलब्धि थी जिस ने सभी को जीवन के वास्तविक अर्थों से परिचित कराया. वैश्विक से ले कर महल्ला स्तर तक लोगों ने जिंदगी की एक बड़ी हकीकत मौत को रूबरू देखा.

बिलाशक, हर कोई उस दौर को भूल जाना चाहेगा लेकिन इस हादसे से मिला यह सबक अब जिंदगीभर याद रहेगा कि सिर्फ दूसरे ही हमारे लिए उपयोगी नहीं हैं बल्कि हम भी किसी के लिए उपयोगी हैं. परस्पर सहयोग ही हमारे अस्तित्व को बचा सकता है. जिस चीज को हम होश संभालते ही तलाश रहे थे वह बहुत सा पैसा, जमीनजायदाद, कार और सोना चांदी नहीं है बल्कि उस से इतर कुछ है जिसे संवेदना कहा जाता है.

यानी सिर्फ खानपान और रहने का तरीका ही नहीं बदला बल्कि मानसिकता और सोचनेसम?ाने का तरीका भी बदला जिसे 2022 और उस के बाद भी जिंदा रखना बेहद जरूरी है, नहीं तो समूची मानवजाति फिर से वहीं जा कर खड़ी हो जाएगी जहां से दुश्वारियां और फसाद शुरू होते हैं. जिस परेशानी से दूसरे हो कर गुजरे वह हमें भी कभी गिरफ्त में ले सकती है. इसलिए जरूरी यह है कि हम खुद भी बचें और दूसरों को भी बचाने में मदद करें.

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बचने और बचाने के लिए सोशल मीडिया का सदुपयोग जरूरी है. कोरोनाकाल में उन लोगों ने भी सोशल मीडिया की धरती पर कदम रखे जो इस से परहेज करते थे. उस दौर में लोग एकदूसरे को आगाह कर रहे थे, कोरोना प्रोटोकौल पर अमल करने की हिदायतें दे रहे थे, हो रही मौतों और अफरातफरी के दूर होने की एकदूसरे को हिम्मत बंधा रहे थे. अगर यह उपयोग कायम रह पाए तो दूसरे खतरों पर आधी जीत तो लड़ने से पहले ही हासिल हो जाएगी.

मंदा पड़ा धर्म का धंधा

इन्हीं 2 वर्षों में लोगों को एक और बात बहुत नजदीक से सम?ा आई थी कि कोरोना के मामले में न तो ऊपर कहीं बैठा भगवान कुछ कर सकता और न ही नीचे दुकानें लगा कर बैठे उस के दलाल, क्योंकि तमाम धर्मस्थल बंद थे और खुद पंडेपुजारी फाके करते कोरोना को कोस रहे थे जिस ने उन के पेट पर भी लात मारी थी. दक्षिणा, पूजापाठ और चढ़ावे का कारोबार दैनिक जिंदगी से पूरी तरह गायब हो चुका था. शुरूशुरू में लोगों ने बड़ी उम्मीदों से भगवान की तरफ ताका था, यज्ञहवन वगैरह भी किए थे पर जब हालात बिगड़े तो उन्हें सम?ा आया कि जिंदगी डाक्टर और वैज्ञानिक ही दे सकते हैं, लिहाजा, लोगों का भरोसा टूटा था जो अभी भी जुड़ा नहीं है.

यह पंडेपुजारियों के लिए भी चुनौतीभरा साल होगा कि कैसे भक्तों का खोया हुआ विश्वास दोबारा भगवान में पैदा कर धंधा पहले की तरह चमकाया जाए. जो लोग इसलिए पूजापाठ कर रहे हैं और दानदक्षिणा भी सिर्फ इसलिए दे रहे हैं कि उन की सालों की आदत नहीं छूट रही, उन से उन्हें रूखीसूखी दालरोटी ही जैसेतैसे नसीब हो रही है, पहले की तरह दूधमलाई और खीरपूरी नहीं मिल रही तो दूसरों का भविष्य बताने वाले तथाकथित देवदूतों का भविष्य भी खतरे में है जो कोरोना के दौरान राज्य सरकारों से इमदाद मांग रहे थे, मानो उन्हें पालनापोसना सरकार की जिम्मेदारी हो.

कोरोना को ऊपर वाले का कहर बता कर बरगलाने वाले इन मुफ्तखोरों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि भगवान खुद क्यों कोरोना के डर से दुबक गया था और अपने मुनीमों यानी पंडेपुजारियों की भी जान नहीं बचा पाया था?

जाहिर है 2022 में धर्म की बड़े पैमाने पर ब्रैंडिंग होगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तो भाजपा का मुद्दा ही राममंदिर है लेकिन यह ट्रंपकार्ड भी उसे आश्वस्त नहीं कर रहा, इसलिए अब मथुरा, काशी भी उस ने अपने एजेंडे में शामिल कर लिए हैं. अब यह लोगों पर निर्भर है कि वे लूटपाट के इस सनातनी कारोबार को प्रोत्साहन देंगे या हिंदुत्व के मायाजाल, जोकि एक तरह का चक्रव्यूह ही है, में फंस कर मेहनत की गाढ़ी कमाई से मुफ्तखोरों पर लुटाने से बचेंगे.

डर पर भारी उम्मीद

2021 का अंत पहले के मुकाबले हालांकि सुकूनभरा था क्योंकि कोरोना से मौतें होना बंद सी हो गई थीं लेकिन औमिक्रोन की दस्तक ने लोगों को फिर डराया. यह डर जल्द ही आत्मविश्वास के चलते भाग भी गया क्योंकि हर कोई एक बड़ी दहशत से उबर कर आया था, लिहाजा लोगों ने हिम्मत और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और सोचा यह कि जब कोरोना को देख लिया तो यह ओमिक्रोन क्या बला है, निबट लेंगे इस से भी. यह सामूहिक आत्मविश्वास अगर कायम रह पाए तो 2022 एक खुशहाल और फिर से पैसे बरसाने वाला साल साबित हो सकता है.

2 साल में दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई थीं. एक वक्त में तो यह डर भी विश्वव्यापी हो गया था कि कहीं भीषण मंदी, भूख और बेरोजगारी कोरोना अराजकता न फैला दे. दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों ने बड़ीबड़ी व्याख्याएं दीं पर आम लोगों को उन की भाषा से परे बहुत पहले ही सम?ा आ गया था कि उत्पादन ठप हो चला है, मांग के मुकाबले आपूर्ति घट रही है, हम अपना पैसा खर्च नहीं कर पा रहे, यह बहुत बड़ी गड़बड़ है. बाजार बंद हैं, कंपनियों और फैक्टरियों के दरवाजों पर ताले ?ाल रहे हैं. चूंकि इस में सीधे कोई कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर जरूरतमंदों की मदद की.

रोज कमानेखाने वालों को लोगों ने अपने कुएं से पानी दिया, दिहाड़ी वालों को मालिकों ने आधी या उस से कम ही सही सैलरी दी और कंपनियों ने भी एकाएक ही छंटनी नहीं की और उन कर्मचारियों को भी नौकरी पर रखा जिन की तुरंत जरूरत नहीं थी. इस के बाद भी छंटनी हुई तो करोड़ों लोग नौकरी और रोजगार से हाथ धो बैठे. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर वैक्सीन वक्त पर न बनती तो हालात कितने विस्फोटक होते और जिंदगीभर की कमाई और बचत से भी लोग एक वक्त का खाना न खरीद पाते. अंदाजा है कि कोरोनाकाल के दौरान कोई ढाई करोड़ लोगों के हाथ से काम छिना.

कोरोना कोई आम संकट नहीं था जिस में सरकारें भी उस वक्त तक मदद देती रहती हैं या पैसा बांटती रहती हैं जब तक सबकुछ सामान्य न हो जाए. एक मशहूर अर्थशास्त्री जेम्स मीडवे ने ठीक ही कहा कि, ‘दुनिया को एक एंटी वारटाइम इकोनौमी की जरूरत है.’ हमें भविष्य की महामारियों के सामने टिके रहने की ताकत चाहिए तो एक ऐसा सिस्टम बनाना होगा जो उत्पादन को कुछ इस तरह से कम करे कि लोगों की जीविकाओं पर बुरा असर न पड़े.

तमाम देशों ने आपसी मदद पर जोर दिया जिस में जिंदगी की सुरक्षा प्राथमिकता में रही. लौकडाउन पर आम लोगों ने एतराज नहीं जताया क्योंकि उन्हें भी सम?ा आ गया था कि जिंदगी रही तो कैसे भी कमा खाएंगे लेकिन जब जिंदगी ही खत्म हो जाएगी तो क्या बचेगा, इस खयाल ने ही लोगों के सोचने का तरीका बदला कि इस्तेमाल ही न कर पाए तो बहुत सा पैसा किस काम का. जाहिर है डर और उम्मीद दोनों साथसाथ 2 साल चले, लेकिन जीती उम्मीद, जिस के चलते हर कोई नए साल का जश्न मना पा रहा है.

चुनौतियां अभी बाकी हैं

2 सालों की इन उपलब्धियों पर कुछ चुनौतियां भी 2022 में मुंहबाए खड़ी होने की आशंका से कोई इनकार नहीं कर पा रहा. इन में सब से बड़ी चंद पूंजीपतियों द्वारा दुनिया पर कब्जा कर लेने की मंशा की है. यह बहुत सावधानी से हो रहा है कि तमाम देशों के शासक आम लोगों से ज्यादा पूंजीपतियों के इतने नजदीक हैं कि उन की सहूलियत के लिए रेललाइन बिछवा देते हैं, पुल बना देते हैं. और तो और, सड़कों की दिशा तक बदल देते हैं.

असल में पूंजीवाद अब कट्टरवाद और आतंकवाद के कंधों पर खड़ा होने लगा है. लेकिन अच्छी बात यह है कि इस के खिलाफ खुद आम लोगों ने सड़कों पर आते सत्ता पलट भी दी है. दुनिया के सब से पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका की जनता ने डोनाल्ड ट्रंप को इसी वजह से चलता कर दिया था कि वे श्वेत कट्टरवादी थे और फिर से कट्टरवाद राह पर पूंजीवाद थोपने की कोशिश कर रहे थे.

कोरोनाकाल में दुनियाभर के पूंजीपतियों ने तबीयत से चांदी काटी. यह सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है. लगभग हरेक देश में पैसा और कारोबार चंद मुट्ठियों में कैद होते जाना कोरोना से कमतर खतरा नहीं आंका जा सकता. अर्थव्यवस्थाएं पटरी पर लौट रहीं हैं, यह दुष्प्रचार भी दुनियाभर में किया जा रहा है और इस में अधिकतर देशों में सरकारें पूंजीपतियों के साथ खड़ी हैं. हुआ इतना भर है कि लोगों को काम मिलने लगा है लेकिन इस की कीमत कोरोनाकाल से बहुत कम है.

महंगाई, ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद और बेरोजगारी से दुनियाभर के लोग समानरूप से त्रस्त हैं. 2022 में ऐसी विश्वव्यापी समस्याओं से सभी देश कोरोना की तरह साथ मिल कर लड़ेंगे, इस में शक है क्योंकि सरकारें अब पूंजीपतियों के दिमाग से चल रही हैं और कोई पूंजीपति नहीं चाहता कि दोनों हाथों से पैसा बटोरने के उन के कारोबार में किसी भी तरह की अड़चन पेश आए. जब सरकारों का एक बड़ा काम या जिम्मेदारी इन पूंजीपतियों के रास्ते में ?ाड़ू लगाना रह जाए तो किसी को भी बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए.

तभी कहें हैप्पी न्यू ईयर

यह सिनैरियो और कोरोनाकाल की खट्टीमीठी यादें बरबस ही हमें फिल्म ‘एवरी थिंग इज रौंग विद 2012’ के जहाज पर ले जाती हैं, जहां एक कुदरती कहर से भिड़ने व अपनी जान बचाने के लिए सभी लोग एक हो गए थे. गोरों ने कालों को देख कर वितृष्णाभरा मुंह नहीं बनाया था, ईसाईयों ने दूसरे धर्म के लोगों को देख कर नफरत नहीं जताई थी, अमीरों की पैसों की बिनाह पर श्रेष्ठ होने की भावना भी छू हो गई थी और औरतों को दोयम दर्जे का मान कर धक्का नहीं दिया गया था. यह एक आदर्श और समान दृष्टि वाली दुनिया की सुंदर परिकल्पना थी.

साल 2022 में सब से ज्यादा जरूरत एकजुट होने की है. तभी हम पूरी ईमानदारी से एकदूसरे से यह कहने के हकदार होंगे कि हैप्पी न्यू ईयर.

2022 में पूंजीवाद का कसेगा शिकंजा

दुनिया से इतर भारत में देखें तो तेजी से पसरता पूंजीवाद का शिकंजा 2022 के लिए इकलौता बड़ा खतरा साबित होगा, यह बात कई तरह से दिसंबर के महीने से ही साबित भी होने लगी थी. 7 दिसंबर को दुनियाभर के जानेमाने 100 अर्थशास्त्रियों ने विश्व असमानता रिपोर्ट जारी की थी. भारत के बारे में इन विशेषज्ञों ने बताया है कि भारत ऐसा गरीब व असमानता वाला देश है जहां अधिक संख्या में धनवान लोग हैं. देश में एक तरफ गरीब बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ अभिजात्य वर्ग और ज्यादा समृद्ध हो रहा है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 50 फीसदी यानी आधे लोग महज 53,610 रुपए सालाना कमाते हैं यानी महीने में सिर्फ 4,468 रुपए. इस लिहाज से दैनिक (एक दिन की) आमदनी हुई 149 रुपए. क्या इतने कम पैसों में कोई गरीब मकान का किराया दे सकता है? पूरा तन ढकने के लिए कपड़े खरीद सकता है? पक्के तो दूर, क्या कच्चे मकान में भी रह सकता है और 2 वक्त का भरपेट खाना खा सकता है? बच्चों को क्या स्कूल में पढ़ाने को भेज सकता है?

इन सवालों का जवाब साफ न में है, तो सोचा जाना लाजिमी है कि पैसा आखिर जा कहां रहा है? यह पैसा जा रहा है देश के चुनिंदा और सरकार के चहेते पूंजीपतियों के पास. कोरोना के पहले चरण में भारत के 9 अमीरों के पास उतनी दौलत थी जितनी कि देश के 50 फीसदी लोगों की कुल जायदाद जोड़ कर धर्मकांटे में रख दी जाए तो भी गरीबों के टोटल का पलड़ा उपर ?ालता नजर आएगा.

औक्सफेम द्वारा जारी इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अमीरों की संपत्ति में 39 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. उलट इस के, 50 फीसदी गरीबों की संपत्ति में महज

3 फीसदी का इजाफा हुआ. समाजवाद को कुचलते पूंजीवाद का क्रूर चेहरा एक और आंकड़ें से उजागर हुआ था कि 2018 में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 13.6 करोड़ लोग साल 2004 से ही कर्जदार बने हुए हैं. इस के बाद इन कर्जदारों की तादाद में कितना इजाफा हुआ होगा, यह बात आंकड़ों से ज्यादा सहज अनुमान से ही सम?ा आ जाती है. यह जरूर इसी दीवाली के दिनों में उजागर हो गया था कि इन दोनों लक्ष्मीपतियों अंबानी और अडानी की आमदनी प्रतिदिन क्रमश 163 करोड़ और 1,002 करोड़ रुपए हो गई है.

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के एक फीसदी अमीरों के पास 60 फीसदी संपत्ति है. एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका के मुताबिक, पिछले साल देश की 21.4 फीसदी कमाई इन्हीं धन्ना सेठों की तिजोरियों में समा गई. ?ाठ बोलने में माहिर एक सेठ गौतम अडानी ने हिंदी बेल्ट के अखबारों में एक विज्ञापन छपवाया था कि वे न तो किसानों से सीधे अनाज खरीदते हैं और न ही जमाखोरी करते हैं, उन के खिलाफ ?ाठ फैलाया जा रहा है क्योंकि वे तो भारतीय खाद्य निगम से तालमेल कर के निजी और सरकारी मौडल पर भंडारण व्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं.

आइए इस सच की हकीकत देखें. दरअसल, सरकार उन्हें भंडारण की व्यवस्था के लिए सभी तरह की सब्सिडी दे रही है और उन के लिए रेललाइनें भी बिछा रही है. पिछले दिनों किसान आंदोलन के सामने सरकार ने घुटने टेके तो यह कोई दरियादिली नहीं बल्कि किसानों का दृढ़ निश्चय था, जिस के बारे में सरिता के दिसंबर (द्वितीय) अंक में आप विस्तार से पढ़ सकते हैं, कि पुरातनी कंधों पर सवार पूंजीवाद को मेहनतकश किसानों ने किस तरह जमीन पर पटक कर उसे धूल चटाई.

इस आंदोलन से साबित यह भी हुआ कि अगर सरकार की मनमानी के आगे लोग अड़ जाएं तो सरकार को ?ाकाया जा सकता है और उस की आड़ ले कर गुरिल्ला छाप लड़ाई लड़ रहे पूंजीपतियों को भी पटखनी दी जा सकती है. इस के लिए शर्त यही है कि एकजुट हो कर लड़ो और अपना हक मांगने में किसी से डरो मत.

कटरीना कैफ-विकी कौशल: शादी भी सौदा भी

यह शादी सिर्फ इसलिए सुर्खियों में नहीं रही कि यह 2 कामयाब फिल्म स्टार्स की शादी थी, जिस पर कोई 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए बल्कि लोगों ने बढ़चढ़ कर इसलिए भी इस में दिलचस्पी ली कि कटरीना कैफ और विक्की कौशल दोनों कभी मामूली खातेपीते घरों के हुआ करते थे, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर वह उंचाई और मुकाम हासिल किए हैं कि आम और खास दोनों तरह के लोग सिर उठा कर उन की शादी को देखें.

यह किस तरह आम से खास बने, नीचे से ऊपर आए 2 युवाओं के वैवाहिक जीवन में बंध जाने की साल 2021 की सब से अहम घटना थी. इस के लिए पहले यह देखना और समझना जरूरी है कि दोनों ने इस मंजिल तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष किया, अभावों को झेला और अपने सपने पूरे किए.

कटरीना कैफ के मुकाबले विक्की कौशल फिल्म इंडस्ट्री का कोई जानामाना नाम नहीं हैं, लेकिन कोई तो खास बात उन में है कि आकर्षक विदेशी लुक वाली कटरीना फिदा हो कर उन्हें दिल दे बैठी. नहीं तो यह वही कटरीना हैं, जिन के दीवानों में कभी सलमान खान जैसे दिग्गज स्टार का भी नाम सब से ऊपर शुमार हुआ करता था और कुछ इस तरह हुआ करता था कि एक वक्त में दोनों की शादी की खबर आए दिन उड़ती रहती थी.

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कटरीना विदेशी मूल की दिखती ही नहीं हैं बल्कि हैं भी, उन का जन्म हांगकांग में हुआ था. उन के पिता मोहम्मद कैफ एक ठेठ कश्मीरी मुसलमान थे, जिन्होंने ब्रिटिश मूल की सुजैन टरक्योट से लवमैरिज की थी. इन दोनों की चौथी संतान थीं कटरीना.

7 भाईबहनों के भरे पूरे परिवार की इस सुंदर युवती कटरीना ने पिता के प्यार को कभी महसूसा ही नहीं क्योंकि तब वह बिलकुल अबोध थी, जब सुजैन से खटपट के चलते मोहम्मद कैफ घर छोड़ कर चले गए और पत्नी से तलाक भी ले लिया.

पेशे से वकील और समाजसेवी सुजैन ने बच्चों की परवरिश में पिता का रोल भी बखूबी निभाया. यह आसान काम नहीं था, क्योंकि सुजैन को अपने काम के सिलसिले में अकसर विदेश में रहना पड़ता था.

1984 में कटरीना के जन्म के बाद भी यह परिवार बंजारों की तरह चीन, जापान और कई यूरोपियन देशों सहित फ्रांस घूमता रहा. साल 2000 के आसपास सुजैन वापस इंग्लैंड आ कर वहीं स्थाई रूप से रहने लगीं.

यूं कामयाब हुईं कटरीना

2003 में कटरीना काम की तलाश में भारत आ गईं. मकसद फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाना था. इस के पहले महज 14 साल की उम्र में ही वह एक सौंदर्य प्रतियोगिता में अपनी खूबसूरती के जलवे बिखेर कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच चुकी थीं.

इस के बाद उन्होंने कई नामी कंपनियों के लिए मौडलिंग की थी, जिस में उन्हें पसंद भी किया गया था. एक फैशन शो में निर्माता कैजाद गुस्ताद की नजर उन पर पड़ी तो उन्होंने कटरीना को अपनी फिल्म ‘बूम’ के लिए ले लिया.

2003 में ही प्रदर्शित यह फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह लुढ़की तो कटरीना के करियर पर भी ग्रहण लगता दिखाई दिया.

दरअसल, कटरीना का विदेशी लुक और सलीके से हिंदी न बोल पाना उन की बड़ी कमियां थीं. लेकिन उन का लुक और अभिनय दोनों देख अपने दौर की नामी ऐक्ट्रेस प्रिया राजवंश की इमेज फिल्मी पंडितों के जेहन में आई थी, जिन्होंने हिंदी फिल्मों में खूब नाम और पैसा कमाया था.

भरेपूरे मांसल बदन की कटरीना ने मौके की नजाकत भांपते हुए जल्द ही अपना उच्चारण सुधार लिया. अभिनय प्रतिभा तो वह एक तमिल फिल्म से साबित कर ही चुकी थीं.

हिंदी फिल्मों में उन्हें पहचान मिली फिल्म ‘मैं ने प्यार क्यों किया’ से, जिस में उन के अपोजिट सलमान खान थे. फिर तो कटरीना ने मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक हिट फिल्में दीं, जिन में ‘नमस्ते लंदन’, ‘पार्टनर’, ‘वेलकम’, ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’, ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’, ‘राजनीति’, ‘एक था टाइगर’ और ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ के नाम शुमार हैं.

15 साल में कटरीना लगभग सभी बड़ी हस्तियों के साथ काम कर चुकी थीं और उन की फीस भी बढ़ कर प्रति फिल्म 11 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी. मौडलिंग और स्टेज शो से भी उन्होंने खासा पैसा कमाया.

कटरीना के मुकाबले पंजाबी समुदाय के विक्की कौशल का परिवार भले ही छोटा हो, लेकिन उन का सफर कहीं ज्यादा कंटीला रहा. उन के पिता श्याम कौशल हालांकि फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने स्टंट डायरेक्टर रहे हैं, लेकिन उन के नाम और काम का कोई फायदा विक्की को नहीं मिला.

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विक्की ने किया ज्यादा संघर्ष

गरीब परिवार के श्याम कौशल अपनी पत्नी वीणा कौशल को साथ ले कर काम और कमाई की तलाश में 1978 में पंजाब के टांडा जिले के एक छोटे से गांव मिर्जापुर से मुंबई पहुंचे थे. तब वे खानेपीने को भी मोहताज रहते थे. मुंबई के मलाड इलाके की एक तंग छोटी चाल में रहते हुए साल 1988 में विक्की का जन्म हुआ.

इस चाल में शौचालय और बाथरूम भी कौमन थे. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट से बीटेक करने के बाद मामूली शक्लसूरत वाले विक्की ने फिल्मों का रुख किया और सैकड़ों दफा आडीशन से हो कर गुजरे. अकसर उन्हें रिजेक्ट ही किया गया, पर विक्की ने हिम्मत नहीं हारी.

बचपन से ही ऐक्टिंग के शौकीन विक्की की पहली फिल्म 2012 में प्रदर्शित हुई थी, जिस का नाम था ‘लव शव ते चिकन खुराना’, जो अपने नाम के मुताबिक ही अटपटी भी थी और बौक्स औफिस पर फ्लौप रही थी. हां, इतना जरूर हुआ था कि लोग उन्हें जानने लगे थे.

इस के बाद 2015 में उन्हें अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म ‘बौंबे वेल्वेट’ में मौका दिया. इस फिल्म से माना गया कि वह अच्छी ऐक्टिंग भी कर सकते हैं. इसी साल आई उन की ‘मसान’ फिल्म थोड़ी चली और उन्हें पहचान भी मिली. फिर मशहूर गीतकार निर्देशक गुलजार की बेटी मेघना गुलजार ने 2018 में अपनी समानांतर फिल्म ‘राजी’ में आलिया भट्ट के साथ लिया तो वह चल निकले.

इस के अगले साल ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ से उन्हें एक नायक के रूप में मान्यता मिल गई और उन की फीस भी 3 करोड़ तक पहुंच गई. फिल्में हिट रही हों या फ्लौप रही हों, सभी में उन की ऐक्टिंग आला दरजे की मानी गई थी.

इस दौरान विक्की ने अंधेरी इलाके में फ्लैट ले लिया और वह लग्जरी जिंदगी जीने लगे, जिस के ख्वाब उन्होंने बचपन से ले कर कालेज तक के अभावों और संघर्षों भरे दिनों में देखे थे.

…और प्यार हो गया

महंगी कार की खरीदारी इन में से एक थी. एक रियल्टी शो से भी विक्की को खासी दौलत और शोहरत मिली. 2019 आतेआते उन का नाम कटरीना से जुड़ने लगा तो हर किसी को हैरानी हुई. क्योंकि किसी भी स्तर पर दोनों का कोई मेल नहीं था. कटरीना सुपरस्टार थीं और विक्की की गिनती अभी बी ग्रेड के अभिनेताओं में भी मुश्किल से होती थी.

विक्की कौशल जैसे गुमनाम से कलाकार के साथ कटरीना के अफेयर की खबरें सुन हर कोई हैरान था. खासतौर से कटरीना के प्रशंसक, जिन का नाम शुरुआत में ही सलमान खान जैसे दिग्गज ऐक्टर के साथ जुड़ चुका था.

लेकिन गलत नहीं कहा जाता कि प्यार अंधा होता है, कुछ नहीं देखता. सो इन दोनों ने भी किसी की परवाह नहीं की और बीते 9 दिसंबर को शाही तरीके से वैवाहिक बंधन में बंध गए. इस शादी की चर्चा देशविदेश में हुई, जिस की अपनी वजहें भी थीं.

कटरीना विक्की से उम्र में 5 साल बड़ी हैं. हालांकि अपने से बड़ी या कम उम्र का पति कम से कम फिल्म इंडस्ट्री में तो कतई हैरानी की बात नहीं रह गई है.

लेकिन समाज तब तक ऐसे जोड़ों को सहजता से नहीं स्वीकारता, जब तक वह खुद बड़े पैमाने पर इसे या किसी भी ऐसी परंपरा को खुद नहीं अपना लेता या अपने आसपास बड़े पैमाने पर ऐसा होता न देख ले.

शादी से जुड़े मिथकों और रीतिरिवाजों को तोड़ने में फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा हाथ रहा है. अंतरजातीय शादियों को जो मान्यता मिली हुई है, उस के पीछे बौलीवुड का योगदान भी कमतर नहीं है.

राजस्थान के ऐतिहासिक शहर सवाई माधोपुर से 25 किलोमीटर दूर स्थित है सिक्स सेंस रिजोर्ट फोर्ट बरबाडा, जिस का नाम तक आम लोग नहीं जानते थे. लेकिन 7 दिसंबर से 11 दिसंबर तक मीडिया में इस रिजोर्ट के नाम की धूम रही. क्योंकि यहीं पर विक्की कौशल और कटरीना कैफ ने शादी की थी.

700 साल पुराने इस किले में बनाए गए इस होटल के मालिक हैं पृथ्वीराज सिंह, जो राजा मानसिंह के वंशज हैं. होटल कितना भव्य है इस का अंदाजा लगाने का एक और तरीका उन सुइट का किराया है जिन में दुलहन और दूल्हा ठहरे हुए थे.

राजकुमारी सुइट जिस में कटरीना ठहरी थीं, उस का किराया 4 लाख रुपए और राजा मानसिंह सुइट जिस में विक्की ठहरे, उस का किराया 6 लाख रुपए प्रतिदिन है.

इस रिजोर्ट के सभी 48 सुइट इन दोनों ने 4 दिन के लिए बुक करा रखे थे. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 100 करोड़ की इस शाही शादी में अकेले इसी होटल का खर्च तकरीबन 50 करोड़ रुपए बैठा, जबकि चर्चा यह भी रही कि होटल प्रबंधन ने इसे मुफ्त यानी उपहार में मुहैया कराया था, जिस का मकसद प्रचारप्रसार था जोकि मिला भी.

मसलन इस रिजोर्ट में उपयोग किया जाने वाला अनाज और सब्जियां यहीं उगाई जाती हैं और इस राजसी होटल में 3 तरह के रेस्टोरेंट हैं. पहले में पारंपरिक खाना मिलता है, दूसरे में भारतीय और तीसरे में विदेशी खाना मिलता है. इस का स्पा और फिटनैस सैंटर ही लगभग एक एकड़ रकबे में बना हुआ है.

7 दिसंबर से ही मीडियाकर्मियों ने सिक्स सेंस के चक्कर काटने शुरू कर दिए थे और तरहतरह की सच्चीझूठी खबरें उड़ने लगी थीं जो इस शादी में लोगों की जिज्ञासा और उत्सुकता दोनों बढ़ा रहीं थीं. पलपल की खबर अपडेट हो रही थी, मानो शादी की रिपोर्टिंग न चूके मोक्ष का मौका चूक गए.

कब कटरीना और विक्की के घर वाले कौन सी कार में सवार हो कर सवाई माधोपुर पहुंच रहे हैं, कौनकौन वीआइपी शादी में शिरकत कर रहे हैं, कितने तरह का खाना व व्यंजन कितने और कहां के कैटरर बना रहे हैं, दूल्हादुलहन किस की डिजायन की हुई कौन सी ड्रेस पहनेंगे या पहनी है, कौन सी रस्म कब होगी और कैसे इन दोनों में प्यार हो कर परवान चढ़ा था, जैसी बातों को इतने रोमांचित तरीके से परोसा गया मानों देश में और कुछ है ही नहीं.

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मीडियाकर्मी इस चर्चित शादी की एक झलक पाने को तरस गए थे और फोर्ट के बाहर ठंड से ठिठुरते आधीपौनी रिपोर्टिंग करते रहे थे.

दरअसल, कटरीना और विक्की ने भी खालिस पेशेवर रवैया शुरू से ही अख्तियार कर रखा था. सुरक्षा इंतजामों और गोपनीयता को ले कर भी खूब हल्ला मचा कि सिक्स सेंस में परिंदा भी पर नहीं मार सकता और बाहर का कोई आदमी एक फोटो भी नहीं खींच सकता बगैरह. ब्रांडिंग का यह तरीका कारगर रहा, जिस का फायदा इन दोनों को भी मिलना तय माना जा रहा था.

शादी भी सौदा भी

लेकिन कैसे? यह आम लोगों को 12 दिसंबर को समझ आया, जब यह खबर आई कि कटरीना और विक्की ने अपनी शादी के फुटेज ओटीटी की दिग्गज कंपनी (अमेजन प्राइम) को 80 करोड़ में बेचे. लेकिन यह खबर झूठी साबित हुई.

शादी में दूल्हादुलहन सहित उन के रिश्तेदारों और मेहमानों ने जम कर नाचतेगाते लुत्फ उठाया. संगीत सेरेमनी में सब थिरके. माहौल देख कर हर किसी को ‘हम आप के हैं कौन’ फिल्म की याद हो आई, जिस में तमाम रस्मोरिवाजों को बहुत खूबी से फिल्माया गया था. फिर यह तो हकीकत थी.

कटरीना के पूर्व प्रेमी सलमान खान के आने न आने को ले कर भी खासा सस्पेंस रहा, जो आखिरकर नहीं आए. लेकिन उन्होंने अपने खासमखास बौडीगार्ड शेरा को भेज कर जो साबित किया, उस के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं. कमोबेश यही सस्पेंस देश के सब से धनाढ्य पूंजीपति मुकेश अंबानी के आगमन को ले कर भी रहा.

कौन आया कौन गया, इस का कोई खास फर्क विक्की और कटरीना पर नहीं पड़ा. दोनों 3 दिन चली इस शादी में एकदूसरे में डूबे रहे. दोनों के प्यार और चाहत से परे इस भारीभरकम ड्रामे के पीछे मंशा ज्यादा रोमांच, मसाला और एक तरह से किसी फिल्म की शूटिंग जैसी ही थी. जिस में लग यह रहा था कि सिक्स सेंस तो एक सेट भर है और वहां फिल्म के शादी सीन्स की शूटिंग चल रही है. फर्क बस यह होगा कि शादी के बाद असली सुहागरात भी मनेगी.

12 दिसंबर को स्पष्ट हो गया कि इस रियल शादी की लोकेशन ही पहले तय नहीं हुई थी, बल्कि स्क्रिप्ट भी पहले लिखी जा चुकी थी. फिल्म के फ्रेम बनाए जा चुके थे और अंत भी शुरू में तय किया जा चुका था. और यह कोई हर्ज या ऐतराज की बात नहीं.

हौलीवुड में यह आम रिवाज बन चुका है कि सेलिब्रिटीज महंगी शादी का खर्च निकालने के लिए अपनी शादी के फुटेज और फोटोज चैनल्स को बेच देते हैं, जिन्हें बाद में वह भुनाता रहता है. स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म ने भारत में भी यह ट्रेंड शुरू कर दिया है.

गौरतलब है कि प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने भी अपनी शादी के फोटो अमेरिका की मशहूर मैगजीन प्यूपिल को बेचे थे. कटरीना और विक्की ने सोशल मीडिया पर शादी के तुरंत बाद कुछ तसवीरें शेयर की थीं, जिन्हें फिल्म का ट्रेलर कहना बेहतर होगा.

शादी के वक्त कटरीना का अपने ससुर के साथ ठुमके लगाना भी वेवजह नहीं था और ससुराल पहुंचने पर देवर द्वारा उन्हें फिल्मी अंदाज में परजाई कहना भी इसी सौदे का हिस्सा था. किस्तों में ऐसी कई खबरें इफरात से आईं, जिन में एक यह भी शामिल है कि शादी के बाद विक्की ने कटरीना के प्रति प्यार जताते हुए एक भावुक स्पीच दी.

आम से खास होने का सुख

दरअसल, यह शादी उन 2 आम युवाओं के खास हो जाने की भी मिसाल है जिन का कोई गौडफादर नहीं है. दोनों ही अपने बलबूते पर शोहरत के आसमान तक पहुंचे और दौलत भी उम्मीद से ज्यादा कमाई. ऐसे स्टार्स फिल्म इंडस्ट्री में जानबूझ कर उपेक्षित भी किए जाते हैं. शायद यही वजह थी कि कटरीना विक्की की शादी में कोई नामी स्टार नहीं गया. जो गए, उन में से 1-2 को छोड़ कर सभी बी और सी कैटगरी के ही थे.

इस के बाद भी दोनों ने शादी को यादगार बना डाला. 3 दिन मीडिया को व्यस्त रखा और लोगों में दीवानगी पैदा कर दी तो यह भी उन की एक और कामयाबी ही है.

हनीमून के बाद अब दोनों अपनी फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त हो गए हैं. जिन का भी काफी प्रचार हो गया है. बहुत से पैसे और नाम के सपने देखने वाले युवाओं को इन दोनों से सबक लेना चाहिए कि अगर ठान लिया जाए तो मुश्किल कुछ नहीं.

मिले बेशकीमती उपहार

कटरीना कैफ और विक्की कौशल शादी के बाद अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुके हैं. दोनों ने 9 दिसंबर को राजस्थान में रजवाड़ा स्टाइल में धूमधाम से शादी

रचाई, जिस की चर्चा बौलीवुड के गलियारों में अब तक हो रही है. कटरीना और विक्की की शादी कड़ी सुरक्षा के बीच हुई, जिस वजह से दोनों की तसवीरें भी सामने नहीं आ पाई थीं. इतना ही नहीं, शादी में शामिल होने वाले मेहमानों तक ने कोई तसवीर शेयर नहीं की.

कटरीना और विक्की कौशल ने अपनी शादी में बौलीवुड जगत से महज कुछ ही लोगों को बुलाया था, लेकिन जो स्टार्स दोनों की शादी में नहीं आए थे, उन्होंने भी कटरीना और विक्की को महंगे गिफ्ट्स भेजे.

दावा किया जा रहा है कि शाहरुख खान ने कटरीना और विक्की को एक शानदार पेंटिंग भेजी, जिस की कीमत डेढ़ लाख बताई जा रही है. वहीं ऋतिक रोशन ने दोनों को बीएमडब्लू जी310 आर बाइक गिफ्ट में दी है, जिस की कीमत 3 लाख बताई जा रही है.

विक्की कौशल और तापसी पन्नू फिल्म ‘मनमर्जियां’ में नजर आए थे. ऐसे में अभिनेत्री ने भी विक्की और कटरीना को खास तोहफा दिया. तापसी ने विक्की को प्लेटिनम ब्रेसलेट गिफ्ट किया था, जिस की कीमत डेढ़ लाख रुपए है.

अनुष्का शर्मा ने अपनी फिल्म ‘जीरो’ की कोस्टार कटरीना के लिए 6.4 लाख रुपए के डायमंड इयररिंग्स गिफ्ट किए थे. कटरीना कैफ और विक्की कौशल को गिफ्ट देने वाले सेलेब्स की लिस्ट में रणबीर कपूर और सलमान खान का नाम भी शामिल है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सलमान खान ने दोनों को रेंजरोवर कार गिफ्ट की है, जिस की कीमत 3 करोड़ रुपए है और रणबीर कपूर ने कटरीना को ढाई करोड़ से ज्यादा कीमत का डायमंड नेकलेस गिफ्ट में दिया है. द्व

प्रीवेडिंग सेरेमनी कुछ ऐसी

कटरीना कैफ और विक्की कौशल ने राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित होटल सिक्स सेंस फोर्ट में हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार सात फेरे लिए, जिस की

तसवीरें इंटरनेट पर धूम मचा रही हैं. प्रेमी जोड़े जहां अपनी लव लाइफ और वेडिंग प्लानिंग को ले कर बहुत चुप रहे हैं, वहीं उन की शादी अभी की मीडिया में अच्छीखासी चर्चा रही.

कैट और विक्की की शादी का जश्न 3 दिनों तक चला. 7 दिसंबर को संगीत समारोह, उस के बाद 8 दिसंबर को मेहंदी और 9 दिसंबर को भव्य शादी हुई. 5 दिसंबर, 2021 को कटरीना कैफ को प्रीवेडिंग फंक्शन के लिए विक्की कौशल के घर उन के परिवार के साथ सफेद रफल्ड शिफौन साड़ी पहने देखा गया.

उन्होंने अपने लुक को कुंदन वर्क वाला गोल्डन कड़ा पहन कर कंपलीट किया था. कटरीना के एक फैन पेज के अनुसार, कटरीना ने जो गहने पहने थे, इस की कीमत लगभग 4 लाख 20 हजार रुपए थी और जो इयररिंग उन्होंने पहन रखी थी, उन की कीमत लगभग 2 लाख 81 हजार रुपए थी.

कटरीना ने अपनी हल्दी की रस्म के लिए इंडियन फेमस फैशन डिजाइनर सब्यसाची का डिजाइन किया हुआ आइवरी लहंगा पहना था, जोकि एक तरह का थ्री पीस सेट था. कटरीना ने अपनी हल्दी पर जो लहंगा पहना था, उस की ए लाइन स्कर्ट को मल्टीपल पैनल्स में डिजाइन किया था. आउटफिट में खूबसूरत कढ़ाई की गई थी, जिसे गोल्डन थ्रेडवर्क के अलावा जरीजरदोजी से सजाया गया था. द्व

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या अक्षरा की आवाज बचा पाएगा अभिमन्यु, शो में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट

स्टार प्लस के लोकप्रिय सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है अपने दर्शकों के बीच अच्छी ख़ासी जगह बना चुका है, निर्माता राजन शाही के लोकप्रिय सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में धमाकेदार ट्विस्ट आने वाला है. बीते एपिसोड में आपने देखा कि अभिमन्यु (Harshad Chopra) और आरोही (Karishma Sawant) की शादी का जश्न शुरू हो गया है. लेकिन हर्षवर्धन इस शादी से खुश नहीं है, और वह जल्द से जल्द इस शादी को ख़त्म करना चाहता है. वहीं दूसरी ओर अक्षरा (Pranali Rathod) का एक्सीडेंट हो जाता है.

अक्षरा को तुरंत बिड़ला अस्पताल ले जाया जाता है अक्षरा की हालत देखकर अभिमन्यु  चौंक जाता है. जूनियर डॉक्टर्स महिमा को इस हादसे की जानकारी देते हैं. महिमा आरोही के परिवार को इस हादसे के बारे में बताने के लिए कहती है. ऑपरेशन थियेटर में  महिमा अभिमन्यु को तुरंत अक्षरा का ऑपरेशन करने के लिए कहती है. अभिमन्यु ऑपरेशन करने के लिए तैयार हो जाता है. हालांकि अभिमन्यु को पता है कि सर्जरी काफ़ी रिस्की है, अक्षरा की आवाज़ भी जा सकती है. महिमा अभिमन्यु को सावधान रहने के लिए कहती है.

वहीं दूसरी ओर आरोही परिवार को इस एक्सीडेंट के बारे में सूचित करती है, ऐसे में गोयनका और बिड़ला फैमिली अस्पताल पहुंचते हैं. अभिमन्यु अक्षरा की वोकल कॉर्ड का ऑपरेशन करता है.

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु अक्षरा की सर्जरी करने में कामयाब रहता है. हालांकि सवाल अभी भी यह बना हुआ है कि क्या अभिमन्यु अक्षरा की वोकल कॉर्ड को बचाने में कामयाब रहेगा या नहीं?

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