हमारा शरीर मशीन की तरह है. बढ़ती उम्र के साथ इस की कार्यक्षमता घटती है. कई तरह की बीमारियां इस को लगने लगती है. शरीर की एक कार्यक्षमता होती है. यही वजह है कि तय उम्र के बाद इस को रिटायर मान लिया जाता है. सरकारी नौकरी में 60 साल को रिटायरमैंट की उम्र माना जाता है. सरकारी नौकरियों में सामाजिक सुरक्षा के लिए पैंशन इसलिए दी जाती थी कि जिस से बढ़ती उम्र में खुद को आर्थिक रूप से मजबूत रखा जा सके. भारत में सरकारी नौकरियों का ढांचा ब्रिटिश हुकूमत के समय तैयार हुआ था, जिस में नौकरों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा का ध्यान रखा गया था. आजादी के कुछ दिनों के बाद ही सरकार ने इस में कटौती शुरू कर दी और पैंशन बंद करने की योजना लागू कर दी.

पैंशन एक निधि या कोष को कहते हैं, जिस में किसी कर्मचारी के नौकरी के सालों के दौरान पैसा जोड़ा जाता है, ताकि कर्मचारी को नौकरी से रिटायर होने के बाद भी एक तय रकम हर माह पैंशन के रूप में मिलती रहे. यह बढ़ती उम्र में आर्थिक सुरक्षा देने का सब से बड़ा जरिया होती है.

ब्रिटिश हुकूमत आजाद भारत की हुकूमत से अधिक उदार थी. वह आज से अधिक कर्मचारियों का ध्यान रखती थी. आजाद भारत में पैंशन योजना को खत्म करने की तमाम योजनाएं चल रही हैं. भारत में बड़ी आबादी प्राइवेट नौकरी करती है. इस के भी 2 हिस्से हैं. संगठित सैक्टर और असंगठित सैक्टर. संगठित सैक्टर में तय वेतन, बोनस, भत्ते, हैल्थ स्कीम और बीमा जैसी सुविधाएं होती हैं. असंगठित सैक्टर में काम और दाम की नीति से काम किया जाता है.

पैंशन का नहीं रहा भरोसा

बढ़ती उम्र में आर्थिक सुरक्षा के हिसाब से देखें तो सरकारी सेवाएं आज भी बेहतर होती हैं. भले ही वहां पैंशन खत्म हो रही हो पर उन के वेतन अधिक होने से बोनस,ग्रैच्युटी और दूसरे पैसों को अगर बचा कर रखा जाए तो बढ़ती उम्र में आर्थिक रूप से सुरक्षित रहा जा सकता है. वहीं, संगठित सैक्टर में नौकरी करने वाले भी अब सुरक्षित नहीं रह गए हैं.

इस की सबसे बड़ी वजह यह है

कि जैसेजैसे वेतन बढ़ता है, कंपनी को कर्मचारी बो?ा लगने लगता है. उसे लगता है कि बढ़ती उम्र में कार्यक्षमता घट रही है. बढ़ती बेरोजगारी के दौर में नएनए लोगों को कम वेतन में रखा जा सकता है. ऐसे में रिटायरमैट के पहले ही कर्मचारियों को हटा दिया जा रहा है. उन को बोनस, ग्रैच्युटी या भत्तों के रूप में इतना नहीं मिलता कि जिस से वे बढ़ती उम्र में खुद को मजबूत रख सकें.

प्राइवेट सैक्टर में मिलने वाला वेतन इतना कम होता है कि कर्मचारी बहुत प्रयास के बाद भी लंबीचौड़ी बचत नहीं कर पाता है. महंगाई बढ़ने के कारण बचत करना बेहद मुश्किल हो जाता है. ऐसे में प्राइवेट कर्मचारियों के लिए रिटायरमैंट के बाद जीवनयापन करना बेहद मुश्किल हो जाता है. देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिस को रिटायरमैंट के बाद सरकार या किसी संस्था से मदद नहीं मिलती. ऐसे में व्यक्ति के लिए सब से अहम यह हो जाता है कि वह खुद को मजबूत रखने की हरसंभव कोशिश करे. कम वेतन वालों के लिए महंगाई के दौर में यह करना बेहद मुश्किल काम है. लेकिन फिर भी बचत ही एकमात्र रास्ता होता है.

खुद का फंड बनाएं

प्राइवेट सैक्टर में काम करने वालों को अपनी योग्यता के अनुसार कम उम्र में ही जौब प्रोफाइल बदलते रहना चाहिए, जिस से कि आप की कीमत बनी रहे और आप को वेतन भी अधिक मिल सके. कंपनी अगर आप की कद्र नहीं कर रही तो कंपनी के प्रति ईमानदार बने रहने के चक्कर में न रहें. अपने वेतन से हर माह एक ऐसी बचत करें जिस का उपयोग किसी भी हालत में आप बुढ़ापे में ही करें.

इस के लिए बैंक, जीवन बीमा और डाकघरों की पैंशन योजनाओं में निवेश कर सकते हैं. निवेश प्राइवेट सैक्टर में कभी भी न करें. वहां पैसा डूब जाने का खतरा रहता है. प्रौपर्टी में भी इस पैसे का निवेश न करें. कई बार प्रौपर्टी में किया गया निवेश भी समय पर नहीं मिलता. अपने रिटायरमैंट के बाद की योजना नौकरी करने के पहले माह से ही शुरू कर दें. इस फंड का उपयोग रिटायरमैंट के बाद ही करें.

बच्चों की पढ़ाई, शादी और दूसरी जरूरतों में अपनी आर्थिक हालत के अनुसार ही खर्च करें. बहुत अधिक कर्ज ले कर ये काम न करें. जीवन से ले कर मरने तक बहुत सारा काम दिखावे के लिए करना पड़ता है. यह न करें. अगर अपनी कमाई आप इस पर खर्च कर देंगे तो अपनी जरूरत के समय आप को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जबकि दूसरे पर निर्भर रहना ठीक नहीं होता.

आज के समय में अगर आप को अकेले किसी ओल्डएज होम में रहना पड़े तो हर माह 15 हजार से 25 हजार रुपए का खर्च आता है. छोटी से छोटी बीमारी में भी बढ़े खर्च करने पड़ते हैं. जरूरत इस बात की है कि अपना मकान अपने पास रखें जिस से आप को कोई घर से निकाल न सके. इतना पैसा पास रखें कि जिस से बीमार होने पर अपना इलाज करा सकें.

खुद को ऐक्टिव रखें

आर्थिक रूप से मजबूत रखने के लिए रिटायरमैंट शब्द को भूल जाएं. कोशिश करें कि अपने अंदर इस तरह की क्षमता बढ़ाएं जिस से आप की आर्थिक इनकम होती रहे. बहुत सारे ऐसे काम होते हैं, जैसे आप अखबार और पत्रिकाएं बेचने का काम कर सकते हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं होती और कमाई भी हो जाती है. अगर आप को बागबानी का शौक है तो कई घरों में आप इस काम को कर सकते हैं. अगर आप बच्चों को पढ़ा सकते हैं तो वह काम कर सकते हैं. दुकानों में आप कुछ घंटों के लिए पार्टटाइम जौब कर सकते हैं. इस से 2 लाभ होंगे, एक तो आप खुद को ऐक्टिव रख सकेंगे, दूसरे, आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे.

शहरों में रह रहे बहुत सारे लोग गांव से आते हैं. जब वे गांव छोड़ते हैं तो अपने खेत और जमीन बेच देते हैं. ऐसा न करें. रिटायरमैंट के बाद यही खेत, जमीन आप के काम आ सकती है. यहां पर बागवानी और खेती कर सकते हैं. गांव में आज भी कम पैसे में जीवन गुजरबसर किया जा सकता है. आप रिटायरमैंट के बाद अपने घर में रहेंगे तो बच्चे भी आप की कद्र करेंगे और प्यार देंगे. वे आप के पास छुट्टियां गुजारने आएंगे. अगर आप उन के ही पास रहेंगे तो उन की आजादी में खलल होगा और उन का आप के प्रति मोह घटने लगेगा. ऐसे में आप के लिए ठीक नहीं होगा. आर्थिक रूप से जितना कम से कम आप दूसरे पर निर्भर रहेंगे उतना ही अच्छा रहेगा. इस का सब से बड़ा रास्ता यह है कि जीवन में अंत समय तक ऐक्टिव रहें.

हैल्दी रहें, बीमारियों से बचें

ऐक्टिव रहने के लिए जरूरी है कि आप बीमारियों से बचे रहें. अगर आप बीमार रहेंगे तो अधिकतर पैसा दवा और डाक्टर पर खर्च होगा. हैल्दी रहने पर यह पैसा बचेगा. और यह आप को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा. कई बार बीमारियों में ज्यादा खर्च होता है. इस के लिए ‘मेडिडक्लेम पौलिसी’ जरूर लें. बड़ी बीमारियों में यह काम आती है. 40 साल के बाद ही शरीर की क्षमता घटने लगती है. इस उम्र से ही अपनी हैल्थ का ध्यान रखें. ऐक्सरसाइज और डाइट का सब से अधिक ध्यान रखना जरूरी होता है. अगर आप नियमित ऐक्सरसाइज करेंगे और हैल्दी डाइट लेंगे तो बीमारियों से बचे रहेंगे. इस से इलाज का खर्च बचेगा.

हैल्थ को भी एक तरह से वैल्थ ही माना जाता है. इस की वजह यह है कि अगर आप अस्पताल और इलाज से दूर रहते हैं तो वह पैसा बचता है. हैल्दी रहने से आप ऐक्टिव रह कर अधिक से अधिक समय तक खुद की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं. यह आप की आर्थिक मदद करती है. इस तरह खुद को स्वस्थ रख कर भी बढ़ती उम्र में आप आर्थिक रूप से मजबूत रह सकते हैं. इस कारण अपनी हैल्थ का ध्यान रखें. कोई बीमारी शुरू हो, उस के पहले ही इलाज और केयर करें. बढ़ती उम्र में मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहें. तनाव वाले काम न करें. शरीर पर अतिरिक्त बो?ा न डालें. समाज में लोगों से सहयोगी स्वभाव में रहें, जिस से जरूरत होने पर लोग आप की मदद कर सके.

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