Writer- विश्वनाथ यादव

विशाली मयूरपंखी बजरा पद्मा नदी की लहरों को काटता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. बजरे के पीछे कुछ बड़ी नौकाएं थीं, जिन में शस्त्रधारी सैनिकों के अलावा दासदासियां भी सवार थे. 2 बड़ी नावों पर खाद्य सामग्री लदी हुई थी.

पिछले 12 सालों से वह हर साल दलबल के साथ घूमने निकल पड़ता. राज्य नर्तकियां नृत्य कर उसे लुभाने की, हंसाने की बहुत कोशिश करतीं, किंतु उस का चेहरा गमगीन ही बना रहता. ऐश्वर्य के हर साधन मौजूद होने पर भी वह उन का उपभोग नहीं कर पाता था. वह बंगाल के सोनार गांव का राजा था.

हर साल घूमने के लिए राजा सोनार गांव के किले से निकलता था. अपने राज्य के अधीन गांवों के घाटों पर अपना बजरा रुकवा कर प्रजा का हालचाल पूछता तथा कोई शिकायत होने पर उसे दूर करने की व्यवस्था कर देता.

यद्यपि राजा अपने को व्यस्त रखने की भरपूर कोशिश करता. फिर भी कुछ लम्हे ऐसे आ ही जाते थे जब वह बिलकुल अकेला होता. ऐसे समय पिछली यादें जब भी आतीं तो वह बेचैन हो उठता था.

20 साल हो गए, उस ने उस की सूरत नहीं देखी. अब तो वह उस का चेहरा भी ठीक से याद नहीं कर पाया था. 20 सालों में उस में न जाने कितने परिवर्तन हुए होंगे. उस में भी तो परिवर्तन हुए हैं.

उस राजा की मौसी के गांव का नाम मंदिरपुर था. जब उस का बजरा मंदिरपुर के गांव के सामने से गुजरता तो वह अपने मन को दृढ़ कर लेता. इन 12 वर्षों के राजकीय जीवन में वह हजारों गांवों में गया, किंतु मंदिरपुर नहीं जा सका.

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