शरबती जब करमू के साथ ब्याह कर आई तो देखने वालों के मुंह से निकल पड़ा था, ‘अरे, यह तो कोयले को कंचन मिल गया.’

वैसे, शरबती कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी, थोड़ी ठीकठाक सी कदकाठी और खिलता सा रंग. बस, इतनी सी थी उस की खूबसूरती की जमापूंजी, मगर करमू जैसे मरियल से अधेड़ के सामने तो वह सचमुच अप्सरा ही दिखती थी.

आगे चल कर सब ने शरबती की सीरत भी देखी और उस की सीरत सूरत से भी चार कदम आगे निकली. अपनी मेहनतमजदूरी से उस ने गृहस्थी ऐसी चमकाई कि इलाके के लोग अपनीअपनी बीवियों के सामने उस की मिसाल पेश करने लगे.

करमू की बिरादरी के कई नौजवान इस कोशिश में थे कि करमू जैसे लंगूर के पहलू से निकल कर शरबती उन के पहलू में आ जाए. दूसरी बिरादरियों में भी ऐसे दीवानों की कमी न थी. वे शरबती से शादी तो नहीं कर सकते थे, अलबत्ता उसे रखैल बनाने के लिए हजारों रुपए लुटाने को तैयार थे.

धीरेधीरे समय गुजरता रहा और शरबती एक बच्चे की मां बन गई. लेकिन उस की देह की बनावट और कसावट पर बच्चा जनने का रत्तीभर भी फर्क नहीं दिखा. गांव के मनचलों में अभी भी उसे हासिल करने की पहले जैसे ही चाहत थी.

तभी जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट पड़ा. करमू एक दिन काम की तलाश में शहर गया और सड़क पार करते हुए एक बस की चपेट में आ गया. बस के भारीभरकम पहियों ने उस की कमजोर काया को चपाती की तरह बेल कर रख दिया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...