शराब की कहानी ठेके के बाहर लाइन में लग कर खरीदने वाले लोगों की नहीं है, ये तो मोहरे हैं, असल कहानी उन की है जो इस पूरे खेल के मास्टरमाइंड हैं, जिन का फायदा लोगों को नशे में डुबोए रखने से होता है.

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब देवता और दानवों के बीच समुद्र मंथन होने वाला था तो यह तय हुआ कि जो भी चीजें निकलेंगी उन्हें दोनों बारीबारी से बांट लेंगे. देवताओं ने बड़ी होशियारी से अच्छीअच्छी चीजें अपने पास रख लीं और नुकसान पहुंचाने वाली चीजें दानवों को दे दीं. सुरा यानी शराब ले कर जब देवी वारुणी प्रगट हुईं तो देवताओं ने उन को दानवों के हवाले कर दिया, जिस से दानव नशे में रहें और देवता मनमानी तरीके से समुद्र मंथन में निकली चीजों का बंटवारा कर सकें.

यह पंरपरा आगे भी चलती रही. ऊंची जातियों के लोग शराब का कारोबार करने लगे. कमजोर और गरीब लोगों को शराब पीने को देते रहे ताकि उन का शोषण किया जाता रहे. यही नहीं, कई मंदिरों में शराब को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इस के पीछे की वजह यह है कि लोग यह मान लें कि शराब कोई खराब चीज नहीं है. यह देवताओं पर भी चढ़ती है.

तमाम फैक्ट्री, खदान, भट्ठों पर काम करने वाले लोगों को मालिक शराब इसी कारण पिलाता है जिस से वह गरीब और कमजोर बना रहे. वह अपने अधिकार और श्रम पर बात न कर सके. सरकारें भी यही चाहती हैं कि गरीब पहले शराब पिए तो पैसा दे और जब शराब पी कर बीमार हो जाए तो फिर पैसा दे.

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