एक समय था जब हास्य कलाकार जम कर सरकार या किसी पार्टी के सुप्रीम नेता पर कटाक्ष किया करते थे और सहसा उस समय के नेता उस कटाक्ष को हंसते चेहरे से स्वीकार कर लिया करते थे. मशहूर कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लई और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का किस्सा इतिहास में दर्ज भी है. कार्टूनिस्ट शंकर ने जब प्रधानमंत्री नेहरू को अपने कौलम के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया तब नेहरू ने कहा था कि, ‘आप के उद्घाटन पर तो मैं जरूर आऊंगा पर एक शर्त है, आप हमें भी न बख्शें.’

शंकर ने नेहरू को निराश नहीं किया. माना जाता है कि उस दौरान शंकर ने सैकड़ों कार्टून नेहरू की आलोचना करते हुए बनाए, दिलचस्प यह कि नेहरू इस से व्यथित नहीं हुए, बल्कि शंकर की प्रशंसा की.

हंसीमजाक और व्यंग्य कसना भारत देश के लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा रहा है. ये चीजें खुशहाल लोकतंत्र की मजबूती की तरफ इशारा करती हैं. कई साहित्यकारों ने अपने व्यंग्यों के माध्यम से देश की राजनीति और समाज की कुरीतियों पर सहज ढंग से अपनी बात रखी है. हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल ऐसे कई नाम हैं.

राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सरल और हंसमुख नेता अपने व्यंग्यों के लिए मशहूर थे. वे सदन में नेहरू के सामने खड़े हो कर बड़े शान से कटाक्ष किया करते थे.

आज भी जब प्रधानमंत्री मोदी सदन में विपक्ष पर चुटीले व्यंग्य कसते हैं तब

वहां मौजूद धुरविरोधी विपक्ष के चेहरे पर भी मुसकान छा जाती है. इस से नेताओं के समर्थकों को भी संदेश जाता है कि जमीन पर विचारधारा का विस्तार लाठीडंडों और गालीगलौजों के इतर हलके अंदाज में भी प्रस्तुत किया जा सकता है. किंतु समस्या अब यह अधिक पैदा होती दिखाई दे

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