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ऑनलाइन कारोबार खा गया लाखों को

औनलाइन रिटेल सैक्टर से देश में कुछ अमीर पूंजीपतियों की मोनोपोली हो रही है. इन्हें डिलीवरी करने वाले युवाओं की फौज की भारी जरूरत महसूस होगी, जिन का काम सिर्फ सामान पहुंचाने का होगा. छोटे धंधों को चलाने वालों की अगली पीढ़ी बस यही काम करेगी

विशाल गोयल दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में बड़े रिटेलर के तौर पर जाने जाते हैं. उन के पिताजी पी सी गोयल ने साल 1984 में छोटी सी किराना दुकान ‘भारत स्टोर’ (विशाल गोयल के बड़े भाई के नाम पर) नाम से शुरू कर इस धंधे में कदम रखा था. काफी पुरानी दुकान होने और इलाके में अच्छी पैठ होने के बाद धीरेधीरे छोटे दुकानदार उन से माल खरीदने लगे, इसलिए इन्हें यहां छोटे थोक विक्रेता के रूप में भी जाना जाने लगा. इसी दुकान से पूरे गोयल परिवार ने सफलता की इबारत लिखी.

एक समय छोटे से मकान में रहने वाला गोयल परिवार आज इसी इलाके में 3 मकान और एक बड़े गोदाम जितनी अचल संपत्ति इकट्ठा कर चुका है. महीने में लाखों का ट्रांजैक्शन होता है. विशाल गोयल अपने भाई के साथ इस पेशे में पिछले 15 सालों से हैं पर आज इतने सालों में यह पहला ऐसा मौका आया है जब उन्हें अपने व्यापार में रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है. इस का बड़ा कारण वे देश में बढ़ रहे औनलाइन कारोबार को मानते हैं.

दरअसल, बीते 2 सालों में लोगों ने बहुतकुछ देखा व सहा है. महामारी के दौर से जू?ाते हुए लाइफस्टाइल में काफी बदलाव हुए. समय की मांग और जरूरतों ने लोगों को नए जीवन में प्रवेश करने पर मजबूर किया. इसी बदलाव में औनलाइन कारोबार बड़े पैमाने में दबेपांव सरपट घरघर पहुंचा और अपनी स्वीकार्यता को दर्शाया भी. पहले इस ने गारमैंट्स, इलैक्ट्रोनिक्स सामानों की औनलाइन बिक्री से शुरुआत की, अब रिटेल और ग्रौसरी आइटम में सेंधमारी से पूरे मार्केट के हावभाव ही बिगाड़ कर रख दिए हैं, जिस के लपेटे में फिलहाल रिटेल सैक्टर है.

स्टेटिस्टा 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत में इस समय लगभग 1 करोड़ 28 लाख रिटेल की दुकानें हैं. आंकड़ों के अनुसार देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत हिस्सा रिटेल सैक्टर से आता है वहीं भारत में यह सैक्टर 8 प्रतिशत लोगों को रोजगार प्रदान करता है. इन में से एक विशाल गोयल भी इस समय रिटेल सैक्टर में हो रही उथलपुथल से जू?ा रहे हैं. वे कहते हैं, ‘‘औनलाइन शौपिंग आज हर दुकान हर घर में पहुंच रही है. दुकानदार सस्ते सामान लेने के लिए औनलाइन शौपिंग एप्लीकेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं. हम रिटेलरों को पता है कि यह हमारे लिए गहरी खाई है फिर भी हम तक इस में गोता लगा रहे हैं, क्योंकि जिन डिस्ट्रिब्यूटरों या बड़े होलसेलरों से हम सामान उठाते हैं कभीकभार उन से सस्ता हमें यहां एप्लीकेशन पड़ रहा है. ग्राहक अब घट गए हैं, आप मान के चलिए इस समय हमारी 30 परसैंट सेल कम हो गई है.’’

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गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी ने कंज्यूमर पैकेज्ड गुड्स जैसी कैटेगरीज में ईकौमर्स की पैठ को ग्लोबली दोगुना कर दिया है. जो ग्रोथ सामान्य हालात में

3 साल में दर्ज होती, वह महज 3 महीने में दर्ज कर ली गई. रिपोर्ट में कहा गया कि भारत का ईकौमर्स बिजनैस 2024 तक 99 अरब डौलर का हो जाएगा. यह 27 फीसदी सीएजीआर से ग्रोथ दर्ज करेगा. इस में ग्रौसरी और फैशन इस ग्रोथ के प्रमुख कारक हो सकते हैं. अकेले रिटेल की औनलाइन पैठ 2024 तक 10.7 फीसदी हो जाने का अनुमान है, जो 2019 में 4.7 फीसदी थी.

दिल्ली के प्रेम नगर इलाके में किराना स्टोर चलाने वाले 35 वर्षीय प्रदीप कुमार के हाल भी कुछ ऐसे ही चल रहे हैं. प्रदीप ने 6 वर्ष पहले 5 लाख रुपए लगा कर अपनी किराना दुकान डाली थी कि इस काम से बरकत होगी. लेकिन अब फायदा नहीं मिल रहा है. शुरुआत में दुकान चलने भी लगी थी लेकिन अब समय काटनेभर का बहाना हो गया है. दुकान में लौकडाउन से पहले 3 हैल्पर रखे थे, अब एक ही बचा है. अधिकतर काम वे खुद संभालते हैं. वे बताते हैं कि उन का इस काम में आधा ही धंधा रह गया है. काम दिनोंदिन घट रहा है. वे खुद टेनसेंट कंपनी फंडेड ‘उड़ान’ एप्लीकेशन इस समय सामान खरीदने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

दरअसल ग्रौसरी की औनलाइन बिक्री में अब बड़े जायंट बिसनैसमैनों ने कदम रखा है. गोल्डमैन सैक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बिगबास्केट और ग्रौफर्स की औनलाइन ग्रौसरी मार्केट में 2019 में हिस्सेदारी 80 फीसदी से अधिक थी. औनलाइन ग्रौसरी बाजार पिछले कुछ सालों से सालदरसाल 50 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. लेकिन अनुमानतया आने वाले समय में आरआईएल की एंट्री से औनलाइन ग्रौसरी मार्केट की ग्रोथ बढ़ कर 81 फीसदी हो जाएगी. वहीं रिलायंस की फेसबुक के साथ पार्टनरशिप से रिलायंस 2024 तक 50 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी के साथ औनलाइन ग्रौसरी में मार्केट लीडर बन जाएगा.

इस बात को बताते हुए वे इस बात का अंदेशा भी जताते हैं कि आज जो लुभा रहा है कल वह उसे भी अपने जाल में फंसा देगा. वे कहते हैं, ‘‘आप एक बात सम?िए, आज औनलाइन में भले ही अच्छे डिस्काउंट पर सामान मिल रहा है पर हमारे पास हाल के उदाहरण सामने हैं. ये पहले आदत डलवाते हैं, पारंपरिक बाजार को बरबाद कर के तोड़फोड़ करते हैं, फिर अपने रंग में आते हैं. आप जोमैटो-स्विगी को ले लीजिए, आप ओला-उबर को ले लीजिए, आप जिओ सिम का उदाहरण ही ले लीजिए, इन के दाम शुरू में सस्ते थे, भारी डिस्काउंट देते थे, ओलाओबेर तो शुरुआती राइड फ्री तक दे रहे थे पर जैसे ही इन्होंने बाजार पर कब्जा जमा लिया, लोगों के स्वरोजगार को खत्म कर दिया. फिर रेट बढ़ाने शुरू कर दिए.

‘‘इन का तरीका है, अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए पहले पुराने व्यापार की रीढ़ तोड़ो, फिर लोगों से पैसा खींचना शुरू करो. औनलाइन शौपिंग में भी यही होगा. आज ये फ्री शिपिंग की बात कर रहे हैं, अच्छी सर्विस और सुविधा की बात कर रहे हैं लेकिन कल को सर्विस चार्ज के नाम पर पैसा वसूलने लगेंगे. आज ये सस्ते सामान की बात कर रहे हैं लेकिन कल को इन के कंपीटिशन में जब कोई नहीं होगा तो पैसा भी ऐंठने लगेंगे.’’

दरअसल औनलाइन कारोबार के बढ़ने का बड़ा कारण सुविधा, सर्विस और फिलहाल डिस्काउंट व आकर्षक औफर्स हैं. प्रदीप उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि 70 ग्राम मैगी का एक पैकेट ग्राहकों को जो 12 रुपए का मिलता है, वह उन्हें पहले डिस्ट्रिब्यूटर से 11 रुपए में पड़ता था. इस में डिस्ट्रिब्यूटर का मार्जिन शामिल होता था. अब वह कभीकभी सीधे औनलाइन ऐप से 9 रुपए 95 पैसे में मिल जाता है.

औनलाइन कारोबार से पहला सीधा असर डिस्ट्रिब्यूटरों और सेल्समैन पर पड़ा है. डिस्ट्रिब्यूटर रिटेल चैन के मध्य आते हैं. यह प्रोडक्ट निर्माता कंपनी और होलसेलर या सीधे रिटेलर को आपस में जोड़ता है. इस समय इन्हीं डिस्ट्रिब्यूटरों पर फर्क पड़ रहा है. औनलाइन बाजार के बढ़ने के साथसाथ इन बीच वाली कड़ी की जरूरत गौण होती जा रही है. होलसेलर भी मौका देखते औनलाइन ऐप की मदद से बल्क में सामान खरीद रहा है. इस कारण डिस्ट्रिब्यूटरों, सेल्समैन या एजेंटों की जरूरत धूमिल होती जा रही है.

वर्करों पर असर आंकड़े के मुताबिक पूरे भारत में इस समय तकरीबन साढे़ 4 लाख डिस्ट्रिब्यूटर्स हैं जो सामान दुकानों, थोक विक्रेताओं या होलसेलर तक पहुंचाते है. इन के नीचे कामगारों की एक पूरी फौज तैयार है जो लोकल इलाकों में सामान पहुंचाती हैं. डिस्ट्रिब्यूटर प्रोडक्ट का लगभग 3-5 प्रतिशत मार्जिन अपने पास रखते हैं. औनलाइन कारोबार के बढ़ने से इन में काम करने वाले वर्कर्स पर भारी असर पड़ा है. जियो मार्ट, उड़ान, ग्रौफर्स, बिगबासकेट, स्विगी सुपर इत्यादि कई एप्लीकेशंस अब सीधा कंपनी टू कंपनी डील कर रही हैं.

ऐसे ही हाथ में डायमंड चिप्स की लंबीलंबी लडि़यां लिए पारंपरिक सेल्समैन धनंजय कुमार मिश्रा दुकान की देहरी पर खड़े हो दुकानदार से कुछ हिसाब कर रहे थे. 40 साल के धनंजय पिछले 9 सालों से लगातार दिल्ली के पटेल नगर, फरीदपुरी, पांडव नगर, रंजीत नगर, बलजीत नगर, प्रेम नगर, नेहरू नगर और नारायणा इलाके में येलो डायमंड कंपनी के पैक्ड प्रोडक्ट रिटेल और होलसेलर शौप्स को सप्लाई करते हैं. माल सप्लाई करने के लिए कंपनी ने उन्हें एक 3 टायरों वाला रिकशा दिया है जिस में उन के साथ एक युवा ड्राइवर भी है. रिटेल मार्केट लाइन में इस पेशे को डिस्ट्रिब्यूटर कहा जाता है. वह वहां 14 हजार 300 रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर रहे हैं. अभी उन्हें पक्का नहीं किया गया है.

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येलो डायमंड कंपनी का अधिकतर माल इंदौर से बन कर आता है. इस जोन में नारायणा में राजीव गांधी कैंप के पास डिस्ट्रिब्यूटर सैंटर है, जहां से धनंजय माल उठाते है. धनंजय का 9 साल का बेटा है जो अपनी मां के साथ बिहार के समस्तीपुर जिले के नयानगर इलाके में रहता है. इतने साल इतनी कम तनख्वाह में धनंजय ने काम किया, पर आज धनंजय को अपने बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी है. उन की इस समस्या में इजाफा औनलाइन बाजार ने कर दिया है.

वे कहते हैं, ‘‘औनलाइन जब से आया है तब से पार्टी (रिटेलर और होलसेलर) हम से माल कम खरीद रहे हैं. मैं डिस्ट्रिब्यूटर के साथसाथ सेल्समैन का भी काम करता हूं, नईनई पार्टियां ढूंढ़नी पड़ती हैं. माल की डील करने जाओ तो वे हमारे माल से औनलाइन मिल रहे माल के रेट की तुलना करते हैं. कई बार

10-10 साल पुरानी बनीबनाई पार्टियां हम से माल लिखवा कर अंत समय में कैंसिल करवा देती हैं, क्योंकि उन्हें वही चीज औनलाइन कुछ सस्ती मिल रही होती है.’’

धनंजय बताते हैं कि इन 2 सालों में उन के यहां कई कर्मचारियों की छंटनी हुई है. औफिस की इंटरनल मीटिंगें होनी बंद हो गई हैं. इस का बड़ा जिम्मेदार वे कोरोना के चलते हुए लौकडाउन को तो मानते ही हैं पर साथ ही पिछले 3-4 सालों से रिटेल सैक्टर में औनलाइन व्यापार के बढ़ते कदमों को बड़ी वजह मानते हैं. उन का कहना है, ‘‘इन 2 सालों में जो भी परिस्थितियां बनीं उन में सब से ज्यादा औनलाइन बेचने वाले व्यापारियों ने चारों तरफ से बाजारों पर कब्जा किया. इसे समय की मांग भले कह लें, पर नुकसान आगे आने वाले कई कर्मचारियों पर पड़ने वाला है.’’

छोटे दुकानदारों पर आफत

औफलाइन बाजार की सुस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी साल कोरोना की दूसरी लहर के बाद अगस्त महीने में अपनी ढाई लाख रुपए जमापूंजी इन्वैस्ट कर किराना की दुकान खोलने वाले रमीकांत को महज 4 महीने के भीतर ही अपनी दुकान बंद करनी पड़ गई है. एम्बिट कैपिटल के अनुमान के अनुसार भारत में अधिकांश किराना रिटेल का विस्तार छोटेछोटे और मध्य स्तरीय दुकानों में होता है. इस का बाजार में तकरीबन 70-75 फीसदी हिस्सा है.

ये दुकानें आमतौर पर निम्नवर्गीय क्राउडेड इलाकों में खुली होती हैं. इन दुकानों के अपने बंधेबंधाए कस्टमर है, जो अधिकतर इन के आसपड़ोस के

15-20 घर वाले होते हैं. ये शौप्स पान की दुकान बराबर होती हैं जहां दुकानदार गेट को एक लकड़ी की मेज से ब्लौक करता है और ग्राहक खचाखच भरी दुकान से बाहर से सामान मंगवाता है. इन दुकानों के भीतर कदम रखने भर की जगह होती है, सिर्फ दुकानदार ही हिलडुल कर सामान पैक कर पाता है. रमिकांत के अनुसार औनलाइन शौपिंग और बड़े मल्टी प्रोडक्ट्स स्टोर्स के खुलने से छोटे दुकानदारों के ग्राहक सीमित होते जा रहे हैं.

रमिकांत ने अपनी दुकान बलजीत नगर इलाके में ?ांडेवाला चौक के प्राइम एरिया में खोली थी, जिस के लिए उन्हें महीना 10 हजार रुपए किराया देना पड़ रहा था. उन्होंने जिस तरह की उम्मीद की थी वह दुकान से पूरी नहीं हो पाई, जिस कारण उन्हें इसे बंद करना पड़ा. अब वे वापस अपने पिताजी की पुरानी किराना दुकान में काम करने लगे हैं.

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वे बताते हैं, ‘‘अब वह समय चला गया जब छोटा आदमी दुकान खोल कर भी अपनी जिंदगी हंसीखुशी काट लेता था. आज के समय में अगर आप के पास इन्वैस्ट करने के लिए मोटा अमाउंट नहीं है तो आप व्यापार में जिंदा नहीं रह सकते.’’

‘सरिता’ पत्रिका ने इस मसले पर होलसेलरों से भी उन की राय जाननी चाही. प्रेम नगर इलाके में ‘जैन स्टोर’ के नाम से मशहूर 43 वर्षीय अजय जैन इलाके में बड़े होलसेलर हैं. इलाके में बहुत छोटेछोटे स्तर की दुकानें हैं तो वे उन दुकानों को सामान पहुंचा कर होलसेलर के नाम से जाने जाते हैं. वे

20 साल से किराना कारोबार में हैं.

उन के यहां इस समय तकरीबन 350 आउटलेट्स के लिए सामान जाता है, यानी 350 छोटीबड़ी किराना दुकानें उन के यहां से सामान ले कर जाती हैं और कई बड़े से ले कर छोटी कंपनियों के डिस्ट्रिब्यूटर उन से जुड़े हुए हैं. इलाके में उन के 2 बड़े गोदाम हैं और एक अच्छीखासी बड़ी किराना दुकान है, जहां से वे अपना व्यापार चलाते हैं.

औनलाइन शौपिंग से खुदरा व्यापार में आई दिक्कतों के बारे में जब उन से पूछा तो वे बताते हैं कि वे इस समय खुद भी औनलाइन सामान थोक में खरीदते हैं. उन के मोबाइल पर ग्रौफर्स, उड़ान, जियो मार्ट पार्टनर ऐप इन्सटौल थे. ज्यादातर वे ‘उड़ान’ एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं. वे सभी एप्लीकेशंस पर रेट की तुलना करते हैं, इस के साथ डिस्ट्रिब्यूटर के रेट की भी तुलना करते हैं. जहां से सामान सही पटता है वहां से खरीद लेते हैं.

औनलाइन कारोबार को ले कर अजय कहते हैं, ‘‘यह ऐसा ट्रैप है जिस में आप फंसेंगे ही. हमें पता है कि यही ईकौमर्स आगे जा कर उन्हें निगलने वाला है लेकिन फिर भी उस का इस्तेमाल वे कर रहे हैं. बड़े पूंजीपति किसान से ले कर दुकान हर जगह कब्जा करना चाहते हैं. वे छोटे व्यापारियों का भट्ठा बैठा रहे हैं. यह एक गहरी साजिश है.’’

औनलाइन शौपिंग को बड़े इन्वैस्टर भविष्य की दुकानदारी बता रहे हैं. आज बड़े से बड़ा पूंजीपति आलूटमाटर से ले कर दालचावल औनलाइन बेच रहा है. जाहिर है जब बड़े प्लेयर उतरेंगे तो छोटेछोटे व्यापारी और दुकानदारों का इस आंधी में टिकना मुश्किल है. इस में बशर्ते वे या तो खुद को इन में विलय करा दें, या पूरी तरह से इस धंधे को भी टाटाबायबाय कह दें.

2018 में देश के सब से अमीर शख्स मुकेश अंबानी ने खुदरा व्यापार में उतरने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि वे 3 करोड़ छोटे व्यापारियों के साथ औनलाइन कारोबार के माध्यम से खुदरा बाजार से जुड़ना चाहेंगे. पहले ही देश में वालमार्ट, एमेजौन, ग्रौफर्स इत्यादि ने अपने पैर इस सैक्टर में पसार लिए थे, ऐसे में रिलायंस की घोषणा के बाद यह तय माना गया कि खुदरा बाजार अब पूरी तरह से मोबाइल के बटनों तक कैद हो जाएगा. जाहिर है इस समय देश में ईग्रौसरी बाजार अभी 6201 करोड़ रुपए का है जो अनुमानतया 2023 में 1.03 लाख करोड़ रुपए होने जा रहा है.

बड़ी कंपनियों की बल्लेबल्ले

लोकल सर्किल के सर्वेक्षण के अनुसार, 52 प्रतिशत किराना दुकानदारों ने लौकडाउन के दौरान ईकौमर्स किराना ऐप को उपयोगी माना था. इसी सर्वे में कहा गया कि लगभग 32 फीसदी औनलाइन किराना दुकानदारों ने तालाबंदी के दौरान हफ्ते में एक से अधिक बार और्डर दिए. होमग्राउन कंसल्ंिटग फर्म ‘रेडशीर’ द्वारा प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल के भीतर ईग्रौसरी व्यापार में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

ऐसे में जियो मार्ट पार्टनर ऐप को सब से बड़े प्लेयर के तौर पर भविष्य में आंका जा रहा है. जियो मार्ट अपनी पहुंच बनाने के लिए जमीनी स्तर पर भी तेजी से काम कर रहा है. माना जा रहा है कि अगले

5 सालों तक जियो मार्ट खुदरा व्यापार के ईकौमर्स में 50 फीसदी से अधिक हिस्से के साथ इस क्षेत्र का नेतृत्व करेगा.

अमेरिकी कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने एक रिपोर्ट जारी की है जिस में यह अनुमान जाहिर किया है कि मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज आने वाले कुछ समय में भारत के औनलाइन किराना कारोबार के आधे हिस्से पर कब्जा जमा लेगी. बता दें कि देश का ईकौमर्स कारोबार 27 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि फेसबुक से गठजोड़ करने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज का औनलाइन रिटेल कारोबार में दबदबा निश्चित रूप से बढ़ेगा.

यह संभव भी है क्योंकि रिलायंस इस क्षेत्र पर भारी निवेश पर जोर दे रहा है. वह अपनी पैठ निचले स्तर की दुकानों तक बनाने के लिए तेजी से काम कर रहा है. लोकल इलाकों की दुकानों को जियो मार्ट से जोड़ने के लिए उस ने निम्न स्तर पर युवा लड़कों की फौज खड़ी कर दी है जो लगातार टार्गेट बेस पर काम करते हैं और दुकानदरदुकान घूम कर जियो मार्ट पार्टनर ऐप को दुकानदारों से इंस्टौल करवाते हैं.

इस संबंध में हमारी बात जियोमार्ट के लिए काम कर रहे 20 वर्षीय फील्डबौय (पहचान न बताने की शर्त पर) से हुई. वह बताता है कि इस समय जियोमार्ट पूरी तरह से रिटेल में घुस रही है. अकेले दिल्ली में सैकड़ों युवा लड़केलड़कियां हैं जिन का काम दुकानों पर सिर्फ जियोमार्ट पार्टनर की एप्लीकेशन इंस्टौल करवाने का है. उस के अनुसार, जियो शौपटूशौप डायरैक्ट इंटरैक्ट कर रहा है.

फील्डबौय को शुरुआती तनख्वाह के तौर पर जियोमार्ट 15 से 18 हजार रुपए दे रहा है. इस के साथ कस्टमर बनाने पर इन्सेंटिव भी दिया जा रहा है, लेकिन यह इन्सेन्टिव तभी मिलेगा जब एप्लीकेशन इंस्टौल करने वाला ग्राहक (दुकानदार) महीने में कम से कम 2 बार उस एप्लीकेशन का इस्तेमाल करे. उस का काम सिर्फ एप्लीकेशन इंस्टौल कराने भर का नहीं है, इस के साथ उसे दुकानदारों को गाइड भी करना होता है, तकनीकी जानकारी भी देनी होती है और फायदे भी बताने होते हैं.

फील्डबौय ने बताया, ‘‘दिल्ली को जियोमार्ट ने अलगअलग जोनों में बांटा हुआ है. हर जोन का एक टीम लीडर है. उस के नीचे मेरे जैसे कई सारे युवा लड़केलड़कियां, जिन की उम्र 18-35 साल तक होती है, काम करते हैं. हमारा जियोमार्ट कंपनी से सीधा संबंध नहीं है. जो भी सैलरी या इंसैंटिव मिलता है वह टीम लीडर के माध्यम से मिलता है.’’

युवाओं पर असर

इस समय औनलाइन कारोबार तेजी से अपने पांव पसार रहा है. दिल्ली समेत कई महानगरों में घर से ले कर स्टोर तक औनलाइन खरीदारी की जा रही है. अधिकतर दुकानदारों से बात करते हुए पाया कि इस की सब से बड़ी खासीयत यह है कि अभी यह दुकानदारों को सहूलियात का एहसास करा रहा है. आप यदि आज सामान और्डर करते हैं तो महज 24 घंटों के भीतर सामान आप के पास दरवाजे पर होता है. लेकिन एक तरह जहां सहूलियत की बात आ रही है वहीं इस से जुड़ी बहुत सी असुरक्षाएं हैं. रिटेल सैक्टर से जुड़े कई व्यापारियों, लाखों दुकानदारों और इस से कई गुना लोगों की रोजीरोटी पर खतरा मंडरा रहा है. वे आशंकित हैं कि कहीं यही ऐप उन्हें निगलने, उन का मालिकाना हक, उन की सामाजिकता को तोड़ने का जरिया न बन जाए.

गौरतलब है कि औनलाइन कारोबार के बढ़ने से पारंपरिक व्यापार पर बड़ी चोट पड़ेगी. ऐसे में इस से जुड़े लोगों के कामधंधों पर भारी असर पड़ेगा. दुकानों पर दुकान मालिक के साथ काम कर रहे कामगारों की लगातार घटती संख्या बता भी रही है कि इस का असर पड़ना शुरू हो गया है. कइयों की दुकानें महज खानापूर्ति तक सीमित रह गई है. कई महज समय काटने और बाजार में कोई दूसरा काम न होने के चलते छोटीमोटी किराना दुकानें या तो खींच रहे हैं या जैसेतैसे काम चला रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि इस का असर भावी भविष्य की युवा पीढ़ी पर भी पड़ने वाला है. यह सिर्फ रिटेल सैक्टर के तहत आने वाले लोगों पर ही नहीं बल्कि देश में पढ़ेलिखे युवाओं पर भी सीधा असर डालेगा. जब देश में चंद अमीर पूंजीपतियों की मोनोपोली इस सैक्टर में हो जाएगी तो जाहिर है इन्हें डिलीवरी करने वाले युवाओं की फौज (जो तैयार हो चुकी है) की भारी जरूरत महसूस होगी.

ये वे युवा होंगे जिन्हें गूगल मैप चलाना आता होगा, जिन्हें टूव्हीलर और फोरव्हीलर चलाना आता होगा, जिन्हें हिसाब करना आता होगा, जिन्हें इंग्लिश की बेसिक सम?ा होगी और जो बात करने में माहिर होंगे. ये वे पढ़ेलिखे युवा होंगे जो इन के लिए दिनरात डिलीवरी कुली बन कर काम करेंगे. पढ़ेलिखे युवा पीठ पर बड़ेबड़े बैग तो आज भी उठाए गलियोंगलियों सामान ढो ही रहे हैं, आगे जा कर आटादाल पहुंचाने के भी काम करेंगे (जो संभवतया शुरू भी हो गया है).

खुदरा व्यापारियों का विरोध

इसे ले कर विरोध की सुगबुगाहट उठनी शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश से ले कर महाराष्ट्र तक खुदरा व्यपारियों के मंडल (संगठन) बैनरपोस्टर ले कर अपना विरोध जताना शुरू कर चुके हैं. औनलाइन कारोबारियों के पुतले फूंके गए हैं. कई जगह तो डिलीवरी करने वालों को रोका गया, बाजार में घुसने नहीं दिया गया. वहीं, न्याय की गुहार लगाते हुए व्यापारी मंडल कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं. जाहिर है अभी यह विरोध सांकेतिक रूप से चल रहे हैं, लेकिन इन विरोधों की बारंबारता को देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में यह विरोध बड़े स्तर पर होंगे. संभव है कि अगला बड़ा संघर्ष रिटेल सैक्टर को बचाने का हो.

हालिया उदाहरण आज देश के सामने है जब 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया, जिस के बाद किसानों की जीत पर आंशिक मोहर लग गई. संसद में जिस तरह बिना चर्चा, बातविचार के कानून लाए गए उसी रास्ते निबटा दिए गए. विचारा जा सकता है कि इन कानूनों के माध्यम से भाजपा सरकार कृषि सैक्टर को चंद अमीर पूंजीपतियों की बपौती बनाने का काम कर रही थी. इस के विरोध में देशभर के किसान सड़कों पर जम गए जिस के चलते सरकार को कानून वापस लेने पड़े.

यह आंदोलन 1 साल 15 दिन लंबा चला. इतिहास में ऐसा कोई आंदोलन नहीं जो इतने लंबे समय तक निरंतर चलता रहा हो. सरकार को किसानों के जज्बे के आगे आखिरकार ?ाकना पड़ा. इस आंदोलन की व्यापकता और कानूनों के लूप होल्स के बारे में ‘सरिता’ पत्रिका आंदोलन की शुरुआत से मुखर हो कर लिखती रही है. जाहिर है, देश के किसानों ने कृषि उत्पादों पर सेठ कंपनियों के एकाधिकार को टालने का बड़ा काम किया है. किसान आंदोलन से घरघर में अडानीअंबानी सरीखे पूंजीपतियों की बेरोकटोक घुसपैठ पर किसी हद तक लगाम लगी. निश्चित रूप से यह एकाधिकार देश के किसान समेत आम जनता को निचोड़ने का काम करने वाले थे. भूख पर सौदेबाजी करने वाले थे. ऐसे ही अगली लड़ाई किराना दुकानों को बचाने की होनी जरूरी है.

‘व्यापारी केवल कारोबार ही नहीं, समाज को जोड़ने का काम भी करता है’

-संदीप बंसल, अध्यक्ष, अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल

औनलाइन कारोबार खुदरा कारोबार को तोड़ने के साथ ही डिलीवरीमैन लड़कों को एक तरह से कुली बनाने का काम कर रहा है. औनलाइन कारोबार पूरी तरह से पैसों का कारोबार है. इस का सामाजिकता से कोई लेनादेना नहीं है. औनलाइन कारोबार किस तरह से कारोबार और समाज को नुकसान पहुंचा रहा है, इस बारे में अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संदीप बंसल के साथ बातचीत हुई. पेश हैं प्रमुख अंश :

औनलाइन बिजनैस खुदरा कारोबार को किस तरह से नुकसान पहुंचा रहा है?

खुदरा कारोबार पूरे देश में रोजगार देने का सब से बड़ा साधन है. बहुत बड़ेबड़े कारोबारियों को देखें तो यह पता चलता है कि बहुतों की शुरुआत छोटेछोटे कारोबार से होती थी. खुदरा कारोबार को शुरू करने में कम पूंजी लगती है. इस कारण बहुत सारे लोग इस को शुरू कर लेते हैं. इस के बाद वे धीरेधीरे कारोबार के मुनाफे को बचा कर अपने कारोबार को बड़ा करते थे. औनलाइन कारोबार से खुदरा कारोबार पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. छोटाछोटा कारोबार भी बड़े बिजनैसमैनों के हाथ में चला जाएगा. देश के युवा कारोबार करने की जगह पर केवल डिलीवरी मैन बन कर रह जाएंगे.

औनलाइन कारोबार से जनता को क्या दिक्कतें होंगी?

दरअसल बड़े बिजनैसमैन शुरुआत में तमाम तरह के प्रलोभन देते हैं. छूट के चक्कर में लोग उन के ?ांसे में आ जाते हैं. जब वे अपना पूरा नैटवर्क फैला लेते हैं तो फिर मनमाने तरह से दाम बढ़ाने लगते हैं. अगर ओला और उबर को देखें तो सम?ा आएगा कि पहले यह सस्ता लगता था. जब इन लोगों ने पूरी ट्रैवल व्यवस्था को तोड़ दिया तो अब दाम बढ़ा दिए. आप टैक्सी ले कर चलते थे तो बीच रास्ते में रोक भी सकते थे. कोई अतिरिक्त पैसा नहीं देना होता था. ओलाउबर जैसी गाडि़यों को रोकेंगे तो उस का पैसा अलग से देना होगा. भीड़ और जाम लगा है तो उस का पैसा अलग से देंगे. अगर ओलाउबर की गाड़ी आ गई और आप ने इंतजार कराया तो अलग पैसा देना पड़ता है. जो लोग अपनी गाड़ी टैक्सी में चलाते थे वे पहले मालिक होते थे. अब वे ओला के ड्राइवर बन कर रह गए हैं. इसी तरह से औनलाइन खाने के कारोबार ने बड़ेबड़े रैस्तरां को बंदी की कगार पर पहुंचा दिया है.

औनलाइन कारोबार देशहित में क्यों नहीं है?

इस कारोबार से हमारा पैसा विदेशों में जा रहा है. सब से बड़ा नुकसान यह है. दूसरे, यह हमारे सामाजिक ढांचे को तोड़ने को काम कर रहा है. जब आप खुदरा कारोबारी के पास सामान लेने जाते हैं तो उस से आप का सामाजिक जुड़ाव होता है. आप उस से उधार ले सकते हो. आप दुखदर्द और हंसीखुशी आपस में सा?ा कर सकते हैं. वक्तबेवक्त एकदूसरे की मदद कर सकते हैं. अभी कोरोना के समय औनलाइन कारोबार कुछ दिनों के लिए बंद हो गया था. पासपड़ोस के दुकानदारों ने अपने पासपड़ोस के लोगों की मदद की. औनलाइन कारोबार से पैसे के साथ ही सामाजिकता भी खत्म हो रही है.

रोजगार तो औनलाइन कारोबार में भी मिलता है?

औनलाइन कारोबार में रोजगार मिल तो रहा है लेकिन वह कुछ समय के लिए होता है. जैसे ही आप की युवावस्था खत्म होती है वैसे ही आप डिलीवरीमैन के रूप में काम करने की हालत में नहीं रह जाएंगे. यह रोजगार डिलीवरीमैन का नहीं बल्कि युवाओं को डिलीवरी कुली बना रहा है जो उन की सेहत के लिए भी बेहद घातक है.

कारोबारी इस का विरोध क्यों नहीं करते?

हमारे संगठन ने लगातार इस का विरोध किया है. यही वजह थी कि कुछ वर्षों पहले रिलायंस फ्रैश नाम से खुली दुकानों को बंद कराया गया था. हम इस का विरोध सांकेतिक रूप से करते रहे हैं. अब हम कारोबारियों को एकजुट कर के इस का विरोध करेंगे. यह केवल कारोबारियों के लिए ही नहीं बल्कि जनता और समाज के लिए भी घातक है. यह हमारे आर्थिक ढांचे के साथ ही सामाजिक ढांचे को भी तोड़ने का काम कर रहा है.

राकेश टिकैत: अचानक उगा किसान नेता

Writer- रोहित और शाहनवाज

एक साल से ज्यादा चले किसान आंदोलन ने कई उतारचढ़ाव देखे, बहुतकुछ सहा पर आखिरकार जीत हासिल की. जीत का बड़ा श्रेय किसान नेताओं को जाता है जिन्होंने अपनी सू?ाबू?ा से फैसले लिए. इस में उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव सिसौली से संबंध रखने वाले राकेश टिकैत किसानों के एक बड़े नेता के तौर पर उभरे और जमीनी फैसलों से सरकार के दांवपेंच फेल कर दिए. पेश है किसान आंदोलन पर यह ग्राउंड रिपोर्ट.

दिल्ली के बौर्डरों पर किसानों को बैठे पूरे 2 महीने बीत चुके थे, पर 28 जनवरी, 2021 वाली वह रात भयानक और कई आशंकाओं से घिरती चली जा रही थी. नहीं, उस दिन

3 डिग्री तापमान में कंकपाती सर्दी की फिक्र किसानों को नहीं थी, क्योंकि उन्हें तो सर्द ठिठुरते दिनों में पौ फटने से पहले ही फसल कटाई के लिए जाना पड़ता है. उन्हें फिक्र थी उस अंतहीन रात की जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी और बाकी दिनों के मुकाबले ज्यादा अंधेरी व लंबी लग रही थी.

दरअसल, 26 जनवरी की घटना के बाद सरकार को यह पहला मौका हाथ लगा था जब वह किसानों पर धरना खत्म करने का दबाव बना सकती थी, उन्हें भीतर तक डरा सकती थी और उन से बौर्डर खाली कराने का माहौल तैयार कर सकती थी. किसान भी हताश थे और पहले के मुकाबले आत्मविश्वास की कमी ?ालकने लगी थी. इस मौके को लपकने के लिए तीनों मजबूत बौर्डरों में से सब से पहले सौफ्ट टारगेट के तौर पर ‘गाजीपुर बौर्डर’ को निशाना बनाया गया.

उत्तर प्रदेश प्रशासन ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि फौरन गाजीपुर का धरना खत्म करवाएं. सूचना मिलते ही गाजीपुर बौर्डर पर पुलिस बलों की तैनाती में इजाफा होने लगा. शाम तक गाजीपुर बौर्डर पर देखते ही देखते सैकड़ों की तादाद में पुलिस, रैपिड ऐक्शन और पैरामिलिट्री की फोर्स अपने साजोसामान के साथ प्रदर्शन स्थल खाली करवाने के लिए जमा होने लगी, मानो किसी बड़े जंग की तैयारी चल रही हो.

पुलिस फोर्स के साथसाथ गाजीपुर बौर्डर पर मीडियाकर्मियों की भीड़ ने किसानों का उपहास और उलाहना करने के लिए जमावड़ा लगा लिया था, मानो किसानों की इस स्थिति में चैनलों की जीत छिपी हो. साथ ही, गाजियाबाद का स्थानीय विधायक अपने समर्थकों व लाठीडंडों के साथ नारे लगाता रहा कि ‘दिल्ली पुलिस लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.’ यह पूरा वाकेआ सुनियोजित था. बढ़ती रात के साथसाथ माहौल में बेचैनी होने लगी थी. क्या किसानों से धरना खत्म करवा दिया जाएगा? क्या किसान जमे रहेंगे? क्या यह गाजीपुर आंदोलन की अंतिम रात है? ये सवाल सभी के मन में खलबली मचाने लगे थे.

इतने में गाजीपुर बौर्डर के आंदोलन को संभाल रहे किसान नेता राकेश टिकैत भावुक हो पड़े. वे भावुक हो कर कहने लगे, ‘‘राकेश टिकैत न गांव जाएगा, न धरना खाली करेगा, न धरना स्थल खाली होगा. मैं देश के किसानों को बरबाद नहीं होने दूंगा. ये कानून भी वापस होंगे और अगर ये कानून वापस नहीं हुए तो राकेश टिकैत आत्महत्या करेगा.’’

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राकेश टिकैत के ये शब्द मानो पत्थर की लकीर बन गए. इन शब्दों ने आंदोलन में दोबारा जान फूंक दी. वीडियो घरघर पहुंचा तो किसान अपने नेता के लिए धरनास्थल पर बड़ी तादाद में वापस जुटने लगे. मानो वे अब मरमिटने को तैयार हों. उत्तर प्रदेश ही नहीं, हरियाणा और उत्तराखंड के किसान भी रातोंरात गाजीपुर बौर्डर के लिए निकल पड़े. देखते ही देखते धरनास्थल किसानों से भर गया. कुछ समय पहले तक जहां पुलिसकर्मी ज्यादा दिखाई दे रहे थे, अब वे किसानों के बीच से गायब होते दिखे. किसान अपने नेता को भावुक होते देख आक्रोश में थे. कल तक जिस आंदोलन की साख धूमिल होती दिखाई दे रही थी, जिस के पतन की इबारतें लिखी जा रहीं थीं, जिस का आत्मविश्वास डगमगा चुका था, उस में एकाएक जोश फूटने लगा.

यह कमाल था राकेश टिकैत का और उन के व्यावहारिक स्वभाव का, जिस से देश के किसानों ने खुद को जुड़ा हुआ महसूस किया. इस विकट स्थिति में भी आंदोलन को न छोड़ने व अपनी मांगों पर अड़े रहने की जिद से राकेश टिकैत को इस पूरे आंदोलन में एकछत्र राष्ट्रीय किसान नेता के तौर पर पहचान मिली. इस रात के बाद किसान आंदोलन को नया आयाम मिल चुका था. राकेश टिकैत की अपनी स्वतंत्र पहचान बन चुकी थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, टिकैत ‘टिका’ रहेगा. किसानों ने इस रात के बाद फिर वापस मुड़ कर नहीं देखा और नई सुबह के साथ आंदोलन को नए सिरे से बुनना शुरू किया.

इस घटना के बाद आंदोलन की पूरी रूपरेखा में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला. जो आंदोलन 2 फ्रंट (सिंघु और टीकरी) में अधिक मजबूत दिखाई दे रहा था, अब उन में गाजीपुर बौर्डर सब से मजबूत धड़े के तौर पर उभरने लगा. इसे राकेश टिकैत का कुशल व्यक्तित्व सम?ाना गलत नहीं होगा कि किसानों को उन्होंने अपनी तरफ पूरी तरह आकर्षित कर लिया था.

इसी के साथ दिल्ली के बौर्डरों की कमान के अलावा आंदोलन की रणनीति राज्यों के भीतर महापंचायतों को करने पर जोर पकड़ने लगी. इस पूरे आंदोलन में यह रणनीति किसानों के लिए कारगर साबित होने लगी, जिस में पहली विशाल महापंचायत टिकैत परिवार के नेतृत्व में ही उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई, जहां हजारों की संख्या में किसान एकत्रित हुए, जिस ने भाजपा सरकार के अतिआत्मविश्वास और घमंड को बड़ी फटकार लगाने का काम किया.

पर अहम सवाल यह कि आखिर राकेश टिकैत इस पूरे आंदोलन के एकछत्र नेता के तौर पर कैसे उभरे, आंदोलन के दौरान उन की रणनीति कारगर कैसे साबित हुई और आखिर उन के व्यक्तित्व में ऐसा क्या करिश्मा था कि उन्होंने ऐसे वक्त में पूरे आंदोलन की कमान तकरीबन अपने कंधे पर उठाई.

दरअसल, इस की असल वजह तलाशने के लिए राकेश टिकैत के उन पहलुओं को खंगालने की सख्त जरूरत है जो सीधा उन के जीवन से जुड़ा हुआ है. इसी कोशिश में सरिता पत्रिका की टीम राकेश टिकैत के जीवन को करीब से परखने के लिए उन के पैतृक गांव सिसौली में उन के घर पहुंची. विरासत की उपजउत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में ‘किसानों की राजधानी’ कहे जाने वाला यह गांव दिल्ली से तकरीबन 120 किलोमीटर की दूरी पर है. इसी गांव में 4 जून, 1969 को बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे के रूप में राकेश टिकैत का जन्म हुआ. यह क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पड़ता है. गांव तक जाने के लिए शामली से होते जाना पड़ता है, जिस में बस से तकरीबन एक घंटे का समय लगता है. सिसौली गांव की आबादी लगभग 15 हजार है. अधिकतर लोग यहां अभी भी संयुक्त परिवार में रहते हैं. सिसौली में रहने वाले चांद वीर सिंह बताते हैं, ‘‘इस में सब से बड़ी भूमिका खेतों की है. परिवार का अकेला आदमी खेतों का काम नहीं संभाल सकता, उसे जौइंट में रहना पड़ेगा. वहीं, गांव में भारतीय किसान यूनियन के चलते एकल भावना अभी भी मजबूत है. यही कारण भी है कि टिकैत परिवार खुद भी बड़े जौइंट परिवार के रूप में यहां रहता है.’’

शामली शहर से 8 फुटा रोड होते हुए इस जाटबहुल गांव में मुसलिम आबादी भी ठीकठाक संख्या में रहती है. सिसौली गांव की बनावट भारत के किसी भी अन्य गांव की ही तरह है. गांव के गलीमहल्लों के किनारे नाली निकासी, बीचोंबीच फैला मवेशियों का गोबर और ?ांटा गाड़ी (भैंसा गाड़ी) पर सवार किसान यह एहसास कराने के लिए काफी थे कि यह एक आम साधारण गांव है.

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यहां हमारी पहली मुलाकात 98 वर्षीय बुजुर्ग दरियाऊ सिंह से हुई. दरियाऊ सिंह चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं और मौजूदा समय में वे इकलौते पुराने सदस्य हैं और इस समय भारतीय किसान यूनियन के कोषाध्यक्ष हैं. वे उस दौरान 62 वर्ष के थे जब बाबा टिकैत 52 वर्ष की उम्र

में भारतीय किसान यूनियन की स्थापना कर रहे थे. उन दोनों की दोस्ती बहुत करीबी थी. दरियाऊ सिंह ने वह समय भी देखा जब बाबा महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन की स्थापना में जुटे हुए थे और वह समय भी देखा जब इस यूनियन ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाई.

दरियाऊ सिंह पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के साथ उन्होंने सब से पहले

27 जनवरी, 1987 को किसानों की बिजली की मांग उठाई थी. उस दौरान राज्य में कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. सरकार ने बिजली के दाम 22 रुपए प्रति हौर्स पावर से 30 रुपए प्रति हौर्स पावर कर दिए थे. बाबा टिकैत पहले सीधा कर्मुखेड़ी बिजलीघर पर 26 लोगों के साथ पहुंचे, वहां 4 दिनों तक आंदोलन चला, फिर 1 मार्च को किसानों की यूनियन बनाने के बाद बाबा टिकैत हजारों लोगों को अपने साथ ले कर निकल पड़े, जहां आंदोलन का दमन करने के लिए पुलिस ने ओपन फायरिंग की जिस में जयपाल और अकबर नाम के 2 किसानों की मृत्यु हुई.

वे आगे बताते हैं, ‘‘यह चीज बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा टिकैत के फैसले आमतौर पर व्यावहारिक होते थे. वे कोई ज्यादा पढ़ेलिखे व्यक्ति नहीं थे पर चीजों की सम?ा पढ़ेलिखों से भी ज्यादा रखते थे. उन्हें जो चीज परिस्थिति के अनुसार ठीक लगती थी, वे वही करते थे. उन की जिद के आगे सरकार को ?ाकना पड़ता था क्योंकि वे किसानों के हितों के फैसले लिया करते थे. इसी के चलते उन्होंने अपने जीवन में कई बड़े ऐतिहासिक आंदोलन किए और उन में जीत हासिल की, फिर चाहे वह दिल्ली के बोट क्लब का आंदोलन हो या फिर नईमा कांड हो जिसे भोपा आंदोलन के नाम से जाना जाता है. बाबा टिकैत जो ठान लेते थे वह करते ही थे.’’

दरियाऊ सिंह राकेश टिकैत को बाबा टिकैत के नक्शेकदम पर चलने वाला मानते हैं. वे बताते हैं कि राकेश टिकैत ने बहुत सी चीजें अपने पिता के साथ आंदोलन में सीखीं. बाबा टिकैत उन्हें 13 देशों की विदेश यात्राओं पर भी ले कर गए थे, जहां उन्होंने विदेश के किसानों के आंदोलन को करीब से देखा. वे ज्यादातर समय किसानों के काम से यहांवहां (राज्यों) दौरे पर ही रहते थे. वे कहते हैं, ‘‘महेंद्र सिंह टिकैत की परछाईं राकेश टिकैत पर है. राकेश टिकैत ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया है. उस में (राकेश टिकैत) भी एक जिद है. जो उसे परिस्थितिवश ठीक लगता है वह वही करता है.’’

सरल, साधारण टिकैत परिवार

20 दिसंबर दोपहर 3 बजे हम सिसौली में राकेश टिकैत के पैतृक घर पहुंचे. यह वह घर है जहां राकेश टिकैत का संयुक्त परिवार रहता है. राकेश टिकैत ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इसी घर में बिताया. अपनी शुरुआती पढ़ाई से ले कर आंदोलन के गुण भी इसी घर में अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत से सीखे. घर में प्रवेश करते ही एक बड़ा खुला आंगन दिखा जिस में बाईं तरफ एक हरे रंग का पुराना ट्रैक्टर खड़ा था और ठीक बीचोंबीच सामने की ओर एक लाल रंग का पुराना ट्रैक्टर था. ट्रैक्टर के बारे में नरेश टिकैत के छोटे बेटे अमित टिकैत बताते हैं कि ये दोनों ट्रैक्टर किसान आंदोलन में इस्तेमाल किए गए थे.

घर की बाईं तरफ की दीवारों पर सफेद रंग का पेंट वक्त के साथ काला पड़ता जा रहा था, मानो कई सालों से दीवारों पर रंगाईपुताई न कराई गई हो. इसी के पास 3 टौयलेट बनाए गए थे. उसी दीवार की एक तरफ भैंसों और गायों को खूंटे से बांधा हुआ था. दूसरी तरफ भूसा काटने की मशीन लगाई गई थी. अंदर जाते समय राकेश टिकैत के छोटे भाई नरेंद्र टिकैत से फोन पर बात की तो पता चला, वे खेतों में गन्नाकटाई के लिए गए हुए हैं, जो कुछ देर बाद हम से मिले.

आंगन के दाईं ओर बड़ा सा हौल था जोकि बाहर से आने वाले विजिटरों के आराम करने के लिए बनाया गया था. यह एक मीटिंग हौल के तौर पर भी इस्तेमाल में किया जाता है. विजिटरों की सुविधा के लिए यह परंपरा बाबा टिकैत से चली आ रही थी ताकि घर आए अतिथियों को घर में रुकने की व्यवस्था हो सके. यही कारण था कि हौल के चारों तरफ खाट लगाई गई थीं. दिलचस्प यह कि इसी हौल में बीकेयू अध्यक्ष नरेश टिकैत अमूमन रात को सोते हैं जिस के चलते हमारी उन से देररात तक बातें होती रहीं. इस हौल की दीवारों पर बाबा टिकैत के आंदोलनों और उन से जुड़ी स्मृतियों के कलैक्शन की प्रदर्शनी की गई थी.

इस के बाद हौल के दाईं तरफ बाबा टिकैत का एक छोटा कमरा था, जिस में अमर ज्योत जलाई गई थी. घर के इस कमरे में घुमाते समय नरेंद्र टिकैत ने बताया कि इस ज्योत को जलाने के लिए कई गांवों से घी भिजवाया जाता है. यहीं मटके में रखे पानी को 13 देशों की यात्रा कर लाया गया था और इसी कमरे में वे बाबा टिकैत के लिए रोज परंपरागत तौर पर लौ जलाया करते हैं जिस का खास ध्यान राकेश टिकैत भी करते हैं जब वे घर में मौजूद होते हैं.

इस कमरे के बाहर कुछ कुरसियां लगी हुई थीं, जिन में दूसरे गांवों से कुछ विजिटर चौधरी नरेश टिकैत के आने का इंतजार कर रहे थे. इन में से ही एक 50 वर्षीय शाहिद बालियान से हमारी मुलाकात हुई. वे सिसौली गांव से 9 किलोमीटर दूर हरसौली गांव से हैं. शाहिद मुसलिम जाट हैं और उन लोगों में से हैं जो राकेश टिकैत के साथ एक साल 15 दिन लंबे चले आंदोलन में दिल्ली के बौर्डर पर जमे रहे. साथ ही, वे बीकेयू के विश्वासपात्र सदस्यों में से भी हैं. वे बताते हैं कि टिकैत परिवार को बालियान खाप में चौधरी की उपाधि दी गई है. यह खाप उत्तर प्रदेश की सब से बड़ी जाट खाप है और 84 गांवों में फैली हुई है. खाप का मुखिया परिवारदरपरिवार आने वाला चौधरी चुनता है, जिस के बाद चुना हुआ मुखिया खाप के चौधरी के रूप में पदभार संभालता है. महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु के बाद, उन के सब से बड़े बेटे नरेश टिकैत बालियान खाप के चौधरी बने और बाबा कहलाए गए हैं.

शाहिद बालियान टिकैत परिवार में पूरा विश्वास रखते हैं. वे बताते हैं कि टिकैत परिवार में सब की भूमिकाएं बंटी हुई हैं. राकेश टिकैत संगठन में पूरी तरह से किसानों का बाहरी काम संभालते हैं, जैसे फ्रंट में रह कर वे मांगों को उठाते हैं, वहीं चौधरी नरेश टिकैत आंतरिक तौर पर अपनी चौधरी वाली भूमिका निभाते हैं. ऐसे ही राकेश टिकैत के छोटे भाई नरेंद्र टिकैत हैं जो अधिकतर खेतों से जुड़े कामों की देखरेख करते हैं और ग्रामीण स्तर पर कार्य करते हैं.

नरेंद्र टिकैत ने हमें सिसौली गांव घुमाते समय अपने उपनाम ‘टिकैत’ के बारे में एक किस्सा सा?ा किया. उन्होंने बताया, ‘‘हमारे पूर्वज, बालियान खाप के तत्कालीन चौधरी, ने 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन को एक युद्ध में मदद की थी. बालियान खाप की वीरता से राजा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने खून से चौधरी के माथे पर टीका लगाया. इसी टीके से टिकैत नाम पड़ा. तभी से हमारे परिवार को टिकैत के नाम से जाना जाता है.’’

शाम ढलने लगी तो नरेंद्र टिकैत हमें अपने घर से 50 मीटर दूरी पर किसान भवन की ओर ले कर गए. इसे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने बनाया था. इस

2- मंजिला इमारत में उस समय रेनोवेशन का काम चल रहा था. इस के ग्राउंड के सामने बाबा टिकैत की समाधि बनाई गई है, जिस के बाईं ओर अपने समय के प्रभावशाली किसान नेताओं की 4 मूर्तियां हैं जिन में मुख्य आकर्षण कर्नाटक के किसान नेता महंता देवारु नंजुंडास्वामी की मूर्ति थी, जो बाबा  टिकैत के दोस्त थे.

इस भवन की दिल्ली में चले किसान आंदोलन में अहम भूमिका रही है. हर महीने की 17 तारीख को यहां मासिक किसानों की पंचायतें नियमित होती रहीं जो अभी भी चलती रहती हैं. यहीं से बड़ीबड़ी घोषणाएं की गईं जिन्होंने 28 दिसंबर के गाजीपुर बौर्डर और मुजफ्फरनगर की महापंचायत में अहम भूमिका निभाई. कपिल बालियान बताते हैं कि राकेश टिकैत जब भी अपने क्षेत्र में होते हैं तब इस मासिक मीटिंग को अटैंड करते हैं. वे अनुशासन के साथ मीटिंग में उपस्थित रहते हैं और लोगों की बातों पर ध्यान करते हैं.

जमीन से जुड़े राकेश टिकैत

सिसौली गांव से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर खेतों के बीच जनता इंटर कालेज पड़ता है. यह हिंदीभाषी सरकारी स्कूल है जिस की मरम्मत लगता है कई सालों से नहीं की गई. इसी स्कूल में राकेश टिकैत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी में हासिल की. राकेश टिकैत के बचपन के सहपाठी 52 वर्षीय रतन सिंह बताते हैं कि टिकैत बचपन में भी चीजों को ले कर गंभीर रहते थे

पर हंसीमजाक करना बखूबी जानते थे. वे कबड्डी और हौकी खेलने के शौकीन थे. रतन सिंह ने अपने जीवन के 30 सालों तक ट्रक चलाने का काम किया और अब खेती का काम कर रहे हैं. उन्होंने 10वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया था. इस समय उन का एक बेटा और एक बेटी उत्तर प्रदेश पुलिस में सेवारत हैं.

स्कूल से निकलने के बाद राकेश टिकैत ने आगे की पढ़ाई मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से की. वहां से उन्होंने बीए व एमए की पढ़ाई की. शाम को गांव में आयोजित होने वाली सालाना ‘?ांटा दौड़’ (भैंसा दौड़) में ले जाते हुए उन के भाई नरेंद्र टिकैत हमें बताते हैं कि राकेश टिकैत कमांडो बनना चाहते थे. हालांकि, जब वे आर्मी में शामिल नहीं हो पाए तो दिल्ली पुलिस में शामिल हो गए.

राकेश टिकैत ने वर्ष 1992 में दिल्ली पुलिस की नौकरी जौइन की थी. उस दौरान उन की उम्र 23-24 साल की थी. लेकिन उस नौकरी में वे ज्यादा समय तक रह नहीं पाए, शायद उन के लिए इस से बड़ी जिम्मेदारी तय होनी बाकी थी. साल 1993 के किसान आंदोलन के दौरान जब भारत सरकार ने राकेश टिकैत पर उन के पिता बाबा टिकैत के धरने को खत्म कराने का दबाव बनाया तो उन्होंने किसानों के समर्थन में दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी. उस के बाद वे पूर्णकालिक रूप से भारतीय किसान यूनियन से जुड़ गए. राकेश टिकैत शुरू से ही सीधी और खरी बात करने में माहिर थे. वर्ष 1997 में उन की काबीलियत और दक्षता देख कर राकेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता चुना गया.

राकेश टिकैत के व्यवहार के बारे में पूछने पर अधिकतर लोग उन्हें आदतों में सख्त और दैनिक जीवन में अनुशासित बताते हैं. नरेंद्र टिकैत ने हम से बात करते हुए बताया, ‘‘भाई राकेश टिकैत सचाई, ईमानदारी पर चलते हैं. यह सीख बाबा टिकैत ने हम सभी को दी है. राकेश की कुशलता का रहस्य यह है कि वे निर्णय लेने में तेज हैं और समय बरबाद नहीं करते.’’

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नरेद्र टिकैत से जब राकेश टिकैत की गंवई भाषा में बातव्यवहार करने की वजह के बारे में पूछा तो वे कहते हैं, ‘‘आदमी जिस माहौल में रहेगा उसी की भाषा कहेगा. हम अपनी बोली से जुड़े लोग हैं, जिसे हम छोड़ नहीं सकते.’’ यह सुनते ही वहां मौजूद लोग जोर से हंसते हैं और ‘बक्कल तार देंगे’ कहने लगते हैं. वहीं घेर (खाली पड़ी जगह) में बैठे एक अन्य व्यक्ति बताते हैं कि राकेश टिकैत जब भी गांव आते हैं उन का हर किसी के साथ बातव्यवहार सामान्य रहता है. बच्चों से उन की पढ़ाई के बारे में पूछते हैं, बूढ़ों का हालचाल पूछते हैं और युवाओं से उन के काम के बारे में पूछते हैं.

सिसौली से तकरीबन 44 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के महावीर चौक से सिविल लाइंस रोड पर लाल कोठी वाली गली में राकेश टिकैत का 300 गज में बना 2 मंजिला मकान है. यहां का मकान गांव के मकान के अनुरूप अधिक शहरीनुमा है, देशी खाट की जगह शहरी बैड हैं, हुक्का नजर में नहीं था, शायद इसलिए भी कि राकेश टिकैत हुक्का नहीं गुड़गुड़ाते. घर के सामने भी एक घेररूपी जगह बनाई गई है, जहां गाय बंधी थी पर वह घर से अलग हिस्से में थी. हालांकि घर के कमरों में बिखरे कपड़े और सामान बता रहे थे कि यह एक सामान्य घर की तरह है. राकेश टिकैत के कमरे में भी किसी प्रकार का विशेष ताम?ाम देखने को नहीं मिला, बल्कि दीवारों की उतरती पपडि़यां और टाइल पर पोती अनायरा की बनाई चित्रकारी बता रही थी कि घर में राकेश टिकैत का रहनसहन सामान्य है. राकेश टिकैत परिवार समेत 20 साल पहले शिफ्ट हो गए थे. राकेश टिकैत की पत्नी सुनीता देवी बताती हैं कि जब राकेश पुलिस में भरती हुए थे तब उन्होंने यह जगह ली थी.

वे कहती हैं, ‘‘राकेश टिकैत केवल घर का बना खाना खाते हैं, कभी होटल में भोजन नहीं करते. वे एक वक्त में एक या दो तरह की सब्जी लेते हैं. हां, मसूर की दाल वे पसंद नहीं करते. लेकिन कहीं बाहर होते हैं और यह दाल उन के लिए बन गई तो अचार से रोटी खा लेंगे पर सामने वाले को भनक नहीं लगने देंगे ताकि उस का अनादर न हो.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘राकेश टिकैत मसालेदार और तैलीय भोजन से दूर रहते हैं और कोल्ड ड्रिंक्स से परहेज करते हैं. उन्हें फिल्में देखने का शौक नहीं है पर टीवी पर न्यूज चैनल में खबरें देख लेते हैं. वे मु?ो टीवी सीरियल नहीं देखने देते, कहते हैं, ये सीरियल घर बिगाड़ते हैं.’’

कसेरवा गांव से नूरा बालियान मुसलिम जाट हैं. दिल्ली में चल रहे धरने पर निरंतर आतेजाते रहे. वे यूनियन के काम से सिसौली में भी आतेजाते रहते हैं. वे राकेश टिकैत को अपना नेता मानते

हैं और  कहते हैं, ‘‘टिकैत साहब का चीजों को सम?ाने का सैंस औफ हयूमर बहुत अच्छा है. उन्होंने लोगों को जोड़े रखने का काम किया है और समयसमय पर सही निर्णय लिए.’’

राकेश टिकैत की आंदोलन में भूमिका

मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत के घर पर हमारी मुलाकात उन के बेटे चरण सिंह टिकैत से हुई. चरण सिंह टिकैत अपने पिता राकेश टिकैत के साथ भारतीय किसान यूनियन में सक्रिय हैं. वे बताते हैं कि राकेश टिकैत किसानों के लिए आंदोलन करने के दौरान अपने पूरे जीवनकाल में करीब

42 बार जेल जा चुके हैं. वे बताते हैं, ‘‘मध्य प्रदेश में एक समय किसान के भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ उन्हें 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. दिल्ली में संसद भवन के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने की वजह से सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. राजस्थान में बाजरा की कीमत को बढ़ाने की मांग को ले कर किसानों की लड़ाई लड़ते हुए सरकार के खिलाफ धरना दिया था, जिस के बाद उन्हें जयपुर जेल में जाना पड़ा था.’’

किसान आंदोलन को देश और मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश में फैलाने के लिए राकेश टिकैट ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया और वे कई मंचों से सरकार को ललकारते नजर आए. इस तरह राकेश टिकैत किसानों के आंदोलन का सब से बड़ा चेहरा बन गए. दिल्ली में चले किसान आंदोलन में राकेश टिकैत की भूमिका उस समय से ही प्रमुख थी जब कृषि कानूनों को सरकार ने सिर्फ महज विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था. राकेश टिकैत ने उसी समय से सरकार द्वारा पेश किए गए कृषि विधेयकों का विरोध किया. जब दिल्ली के बौर्डरों पर पंजाब व हरियाणा के किसान आंदोलन करने के लिए पहुंच गए थे उस समय राकेश टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन उत्तर प्रदेश में किसानों को लामबंद करने में जुटी थी.

राकेश टिकैत ने कृषि कानूनों को ले कर अपना रवैया आंदोलन के पहले दिन से ही साफ कर दिया था. दिल्ली के गाजीपुर बौर्डर पर तैनाती के साथ ही आंदोलन में उन की हिस्सेदारी संयुक्त किसान मोरचा में भी उतनी ही सक्रिय थी. कृषि कानूनों को ले कर सरकार से हुई कई राउंड की बातचीत में राकेश टिकैत कानूनों को वापस कराने की मांग पर कभी भी टस से मस नहीं हुए. कई बार सरकार ने गाजीपुर बौर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों को प्रताडि़त करने का काम किया, कभी बिजली काटी तो कभी पानी की सप्लाई रोक दी लेकिन राकेश टिकैत कानूनों की वापसी तक टिके रहे.

सालभर चले आंदोलन के बाद सरकार ने लागू किए कृषि कानूनों को वापस करने का फैसला लिया तो आंदोलनकारी किसानों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. सरकार के कानूनों को वापस लेने के पीछे कई कारण थे. उन में से एक मुख्य कारण उत्तर प्रदेश में विधानसभा का होने वाला चुनाव रहा. बहरहाल, किसान आंदोलन ने केंद्र की अडि़यल सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. इस पूरे प्रकरण में राकेश टिकैत की भूमिका बेहद अहम रही.

राजनीतिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश की जमीन किसी भी सरकार के लिए बेहद कीमती होती है. राकेश टिकैत का उत्तर प्रदेश के किसानों को ले कर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करना सरकार की नींद उड़ा रहा था. यही नहीं, राकेश टिकैत का सरकार के खिलाफ देशभर में जगहजगह महापंचायतें करना और आंदोलन को जमीन पर पहुंचाना सरकार को डराने लगा.

लखीमपुर खीरी की घटना में राकेश टिकैत की सू?ाबू?ा का परिचय मिला. भाजपा किसानों को अनियंत्रित करने और देश का दूसरा चौराचौरी कांड बनाने का षड्यंत्र रच रही थी, वहां राकेश टिकैत ने पूरे मामले को सम?ादारी के साथ हैंडल करते हुए आंदोलन को उग्र होने से बचाया. ठीक इसी प्रकार पंजाब के किसानों पर लगने वाले उस टैग को सिरे से ध्वस्त कर दिया जो उन्हें खालिस्तानी और देशद्रोही बता रहा था. यहीं नहीं, भारतीय किसान यूनियन पर हमेशा से जाट संगठन होने का आरोप लगता रहा जिसे राकेश टिकैत ने एक हद तक खत्म करने का काम किया.

हालांकि, जानकार बताते हैं कि बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के 2011 में गुजरने के बाद टिकैत परिवार ने अपनी ख्याति खो दी थी. बाबा टिकैत चाहते थे कि उन का संगठन अराजनीतिक रहे. लेकिन राकेश टिकैत का चुनावी राजनीति में आना और 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगों के भड़कने से टिकैत परिवार के प्रति लोगों के मन में एक अविश्वास की स्थिति पैदा हुई, यही कारण भी है कि राकेश टिकैत अपने पिता की विरासत को फिर से रीगेन करने की कोशिश में रहे, जिस में वे एक हद तक कामयाब भी होते दिख रहे हैं.

राकेश टिकैत जिस जमीन से आते हैं, वहां की विरासत में आंदोलन का उभार हमेशा से रहा है. उन का अतीत जमीनी दिखाई देता है. एक साल चले आंदोलन में यह एक जरूरी हिस्सा भी था कि किसान नेताओं ने अपनी बोली और भाषा से जमीन के किसानों को जोड़ा. राकेश टिकैत समेत संयुक्त किसान मोरचा में अधिकतर नेता लोकल बोली में या हिंदी बोली में अपनी बात कहते दिखे. खासकर, राकेश टिकैत अपने बोलने के तरीके से चर्चित रहे. सिसौली जाते समय लोनी का बौर्डर पार करते ही हम ने पूरे रास्ते इस बोली को आम लोगों के मुंह से सुना, जाहिर है लोग आसानी से राकेश टिकैत से जुड़ पाए. राकेश टिकैत के स्कूल और गांव के माहौल व परवरिश का नतीजा था कि वे खुद अडि़यल सरकार के सामने अडि़यल बनने की सीख सम?ा पाए.

आज राकेश टिकैत उत्तर भारत में एक बड़े किसान नेता के तौर पर उभरे हैं. उन की बात को सुना जा रहा है ठीक उसी वजन से जैसे प्रधानमंत्री मोदी को हिंदी बैल्ट में सुना जाता है. वे अपने पिता की तरह ऐसे नेता के तौर पर उभरते दिखाई दे रहे हैं जो जननेता हैं, बगैर चुनाव में जीते या खड़े हुए.

सरकार लोकतंत्र और विरोध की ताकत को खत्म कर देना चाहती है : राकेश टिकैत    

23 दिसंबर, 2021 को किसान दिवस के अवसर पर राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में थे. ओसीआर यानी पुराना विधायक निवास में रात के करीब 11 बजे उन के साथ हमारी बातचीत का वक्त तय हुआ. पूरा ओसीआर घने कोहरे में ढका था. उस समय भी उन के साथ किसान यूनियन के करीबी लोग अगले दिन की रणनीति बनाने में व्यस्त थे. टिकैत एक सामान्य नेता की तरह फोन और बातचीत में व्यस्त थे. बीचबीच में हमारे सवालों के जवाब देते जा रहे थे. लंदन स्थित स्क्वायर वाटरमेलन कंपनी ने राकेश टिकैत का नाम ‘21वीं सैंचुरी आइकन अवार्ड’ के लिए चुना. पेश है हमारे साथ हुई उन की बातचीत के प्रमुख अंश :

किसान आंदोलन की सफलता के बाद एक नेता के रूप में आने वाले समय में आप की क्या भूमिका होगी?

किसान आंदोलन स्थगित हुआ है. किसानों की समस्याओं का कोई सार्थक समाधान नहीं हुआ है. केंद्र सरकार ने एक भरोसा दिया है. सरकार वाले अपने भरोसे पर कितना खरा उतरेंगे, कहा नहीं जा सकता. कृषि कानूनों के अलावा भी किसानों के सामने तमाम परेशानियां हैं. एमएसपी की मांग भी है. सरकार ने कमेटी बना दी है जो इस के समाधान का रास्ता बनाएगी. किसानों की परेशानी जब तक खत्म नहीं होती, हमारा संघर्ष चलता रहेगा. हम किसानों को जागरूक करने के अपने काम में लगे हैं.

क्या आप चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. कहा जाता है कि राजनीति के जरिए बदलाव होता है?

नहीं, चुनावी राजनीति से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं आप के जरिए साफ कर देना चाहता हूं कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा. मेरा मानना है और यह साबित भी हो चुका है कि सरकार को भी ?ाकाया जा सकता है. किसान संसद में नहीं थे. किसान नेता संसद में नहीं थे. इस के बाद भी पूरे 13 माह किसानों का मुद्दा ही वहां प्रमुखता से छाया रहा. किसानों की बात करने और उन को हक दिलाने के लिए राजनीति में जाने की जरूरत नहीं है. किसानों को एकजुट रह कर अपनी ताकत का एहसास कराते रहने की जरूरत है.

विधानसभा चुनावों के बाद क्या केंद्र सरकार कृषि कानूनों पर पलटी मार सकती है?

कुछ कहा नहीं जा सकता. यह पलटी मार भी सकती है. यह सरकार लोकतंत्र और विरोध की राजनीति को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहती है. इस के लिए यह सामदामदंडभेद कुछ भी अपनाने को तैयार रहती है. किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए हर स्तर पर काम किया गया. किसान अनुशासित सिपाही की तरह सड़कों पर बैठे रहे. किसानों के खिलाफ एक भी ऐसा काम नहीं मिला जिस से सरकार उन को दबा सकती. किसानों को बदनाम किया गया. रुपएपैसों को ले कर आरोप लगाए गए. आखिर में जब सरकार का ?ाठ उजागर हो गया तब वह ?ाकने लगी.

किसान आंदोलन के दौरान आप की मुलाकात लोकल, नैशनल और इंटरनैशनल मीडिया से हुई. क्या फर्क देखने को मिला?

लोकल मीडिया के लोग हमारी बात को सम?ा रहे थे. हमारे साथ भी थे पर उन की सुनी कम जा रही थी. नैशनल मीडिया में बहुत कम लोग हमारे साथ थे. इस के ज्यादातर लोग सरकार के साथ थे. हमें दोषी सम?ा रहे थे. वे आंदोलन करने वाले किसानों के बजाय सरकार के पक्ष में थे. यही कारण है कि जनता अब मीडिया का भरोसा नहीं कर रही. मीडिया अब नएनए तरह के काम करने लगी है जिस से जनता उस से जुड़ सके. इंटरनैशनल मीडिया की बात करें तो वह ज्यादा आजादी और निष्पक्ष से काम कर रही थी.

कृषि कानूनों के पीछे क्या वजहें सरकार की रही होंगी?

अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए ये कानून बने थे. इसी कारण एमएसपी को ले कर सरकार कानून नहीं बना रही है. सरकारी मंडियों को खत्म करने की साजिश की जा रही है. किसानों को उन की उपज का सही दाम मिल गया तो किसान मजबूत हो जाएगा. सरकार मजबूत नहीं, मजबूर किसान चाहती है जो उस के इशारे पर नाचता रहे. सरकार किसानों की जमीन बड़ी कंपनियों को देने की तैयारी में थी. कंपनी का राज आने से किसान ही नहीं, दूसरे लोग भी परेशान होते.

जनता की रोटी बड़े लोगों की तिजोरी में कैद हो जाती. शहरी लोग भी सम?ा गए. पूरे देश में किसान आंदोलन को समर्थन मिलने लगा. अब लोग सरकार की नीतियों को सम?ा गए हैं. सरकार लोगों को लड़ाने और तोड़ने का काम करती है. आंदोलन में शामिल हुए सिख समाज के लोगों को खालिस्तानी बता दिया गया और मुसलमानों को पाकिस्तानी. उत्तर प्रदेश के किसानों को केवल जाट बता दिया गया. इन्होंने उत्तर प्रदेश के भीतर हिंदूमुसलिम दंगे कराए. ये लोग हरियाणा के अंदर गए तो वहां जाट और गैरजाट की राजनीति की. गुजरात के भीतर पटेल और गैरपटेल की राजनीति की.

2022 के चुनाव में सत्ता बदलेगी?

सत्ता बदलेगी जरूर. लखीमपुर कांड का सच बाहर आ रहा है. दागी मंत्री को साथ रखने का प्रभाव पड़ेगा. किसान लखीमपुर कांड को भूल नहीं सकते. लोग यह भी सम?ा रहे हैं कि यह सरकार विरोध और लोकतंत्र का खत्म करने का काम कर रही है. संस्थाओं को निष्पक्ष तरह से काम नहीं करने दे रही. इस के लिए बदलाव तो होगा.

आप का व्यक्तिगत जीवन कैसा रहता है?

हम किसानों के बीच, मजदूरों के बीच उन की परेशानियों को सम?ाने और उन को जागरूक करने में समय बिताते हैं. हमें घर पर समय बिताने का वक्त नहीं मिलता. हमारा लगातार जनसंपर्क चलता रहता है. दूरदूर के किसान और उन के परिवार के लोग फोन करते हैं. अब तो सीधे वीडियो कौल करने लगे हैं. जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत है. आजकल जल्दी सो नहीं पा रहा हूं.

सड़क से धरना खत्म होने के बाद घर जाना कैसा लग रहा था?

हमें तो घर जाने को नहीं मिला. हम तो वापस किसानों को उन के हक के लिए जगाने की मुहिम में लग गए. धरने में शामिल दूसरे किसान बड़े बेमन से घर जा रहे थे. उन को लग रहा था कि वे अपने लोगों से बिछुड़ रहे हैं. घरों में हमारे परिवार के लोग घरेलू काम करते थे. धरने पर हम लोग ही आपस में काम बांट लेते थे. सब काम करते थे. अपने कपड़े हम ही धोते थे. किसानों के हौसले अब बढ़ चुके हैं. वे अब सरकार से डरने वाले नहीं हैं. सरकार कोई गलत कदम उठाएगी, हम वापस उस का गला पकड़ लेंगे. अब किसान तैयार है.

आप पर बहुत सारे कटाक्ष हुए. आरोप लगे. गुस्सा आता रहा होगा सुन कर. कैसे खुद को संभालते थे?

गलत बात सुन कर बुरा लगता है. पहले भी, अब भी. गुस्सा भी आता है. दुख भी होता है. इस के बाद खुद ही खुद को संभालता था. सब को नौर्मल करते हुए अपने फैसले साथियों की सलाह से करते थे. गुस्से या दुख को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया. 26 जनवरी की घटना और लखीमपुर कांड के बाद खुद को संभालने में थोड़ा वक्त लगा पर सब ठीक किया. आज लगता है कि हमारा फैसला किसानों के हित में था.

 -शैलेंद्र सिंह

सरकार हठी और जिद्दी है : चौधरी नरेश टिकैत

चौधरी नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा अध्यक्ष हैं. उन्हें 84 गांवों में चौधरी की उपाधि मिली है. गांव में लोग उन्हें ‘बाबा’ कह कर बुलाते हैं. वे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के सब से बड़े बेटे और राकेश टिकैत के बड़े भाई हैं. नरेश टिकैत से हमारी मुलाकात तब हुई जब वे भूसा काटने वाली मशीन चला रहे थे. गांव के लोगों का उन के बारे में कहना था कि उन का व्यवहार बेहद सरल है. वे आम लोगों की तरह रहते हैं, सादा खाना खाते हैं, खेत में काम करने से ले कर गोबर उठाने और ट्रैक्टर चलाने तक वह सामान्य किसान की तरह काम करते हैं. चौधरी नरेश टिकैत ने ‘सरिता’ पत्रिका को इंटरव्यू दिया. पेश हैं कुछ अंश :

मुजफ्फरनगर की महापंचायत में आप ने ऐसा क्या किया कि इतनी संख्या में किसान इकट्ठा हो गए?

ऐसा नहीं है कि आंदोलन में रह कर ही आंदोलन चलता है. बाहर से भी तो आंदोलन को सपोर्ट चाहिए होता है. क्षेत्र के लोगों की आवाज क्या है, वे आंदोलन

चाह रहे हैं या नहीं तो हम ने यहां से इस चीज को देखा है. आंदोलन सफल रहा,

लोगों ने सहयोग किया. किसानों की तौहीन की गई, वही आंदोलन के लंबे चलने का कारण रहा.

न्याय की लड़ाई लड़ने में अब लंबा समय लग रहा है, जिस से किसानों का पैसा और समय दोनों बरबाद हो रहा है, इसे आप कैसे देखते हैं?

किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, पहले किसानों की इतनी अनदेखी नहीं होती थी. बातचीत 10-15 दिनों या महीनेभर में निबट जाती थी. आश्वासन दे दिए जाते थे या बात मान ली जाती थी. यह सरकार हठी और जिद्दी है. लेकिन ऐसा नहीं चलेगा, लोकतंत्र में इस की जगह नहीं है. इस ने कोई संगठन नहीं छोड़ा जब लोग मजबूरी में आंदोलन करने के लिए आगे न आए हों. इतने बड़े आंदोलन के आगे सरकार ?ाकने को तैयार नहीं थी तो यह देखा जा सकता है कि मौजूदा सरकार किस हद तक दमन का रास्ता अपना रही थी.

सरकार की नीतियों पर आप का क्या कहना है?

इन की अलग नीतियां हैं. हम तो यही चाहेंगे इन के पास कोई अच्छा सलाहकार हो. मौजूदा सरकार के लोग इस देश को गिरवी रख रहे हैं. सब चीजें बेच रहे हैं. आज हवाई अड्डे बेच दिए, रेल बेच दी, बिजली बेच दी, छोड़ा क्या? सबकुछ प्राइवेट में जा रहा है. कांग्रेस में इतना नहीं था. हम तो यही कहेंगे कि इस देश ने जिम्मेदारी सौंपी है तो वे लोग उसे ईमानदारी से निभाएं.

एमएसपी का गारंटी कानून का मुद्दा हल होता है तो किन किसानों को फायदा पहुंचेगा?

किसान तो सभी हैं. हमारे पास गेहूं कम है, हम छोटे किसान हैं. हम 50 क्ंिवटल गेहूं ही बेच सकें तो 50 क्विंटल गेहूं का हमें अगर एमएसपी गारंटी रेट मिले तो हमारा फायदा होगा.

कृषि कानून नहीं होते तो भारतीय किसान यूनियन किन मुद्दों पर अपने क्षेत्र में ऐक्टिव थी?

हमारे लोकल मुद्दे हैं. अभी तो किसानों के अस्तित्व की लड़ाई है, बाकी बिजली के मुददे, अच्छी सड़कों का मद्दा, बकाया गन्ने का दाम जो सरकार अटका कर रखती है, अभी हमारा 5 महीने का पेमैंट बकाया है. अब बताओ अच्छी सड़क का मुद्दा किसानों से अलग थोड़ी है. हमारे ट्रैक्टर ऊबड़खाबड़ सड़कों में चलेंगे तो जल्दी खराब हो जाएंगे, रिपेयरिंग मांगेंगे, किसानों का पैसा लगेगा.

हरहर महादेव और अल्ला हू अकबर के नारे की क्या अहमियत है?

मुसलमान हरहर महादेव कह रहे हैं हिंदू अल्ला हू अकबर कह रहे हैं तो यह धार्मिक मतभेदों को मिटाने का नारा है. यह नारा तो बीच की दूरियों को मिटाने का काम कर रहा है. हम तो लोगों को जोड़ रहे हैं, वे लोगों को तोड़ रहे हैं. जातिमजहब सिर्फ विवाहशादी तक सीमित रखो, उस से अलावा सब एक हैं.

नो गिल्ट ट्रिप प्लीज: कपिल क्यों आत्महत्या करना चाहता था

नेहा औफिस से निकली तो कपिल बाइक पर उस का इंतज़ार कर रहा था. वह इठलाती हुई उस की कमर में हाथ डाल कर उस के पीछे बैठ गई फिर मुंह पर स्कार्फ बांध लिया. कपिल ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की. सड़क के ट्रैफिक से दूर बाइक पर जब कुछ खाली रोड पर निकली तो नेहा ने कपिल की गरदन पर किस कर दिया. कपिल ने सुनसान जगह देख कर बाइक एक किनारे लगा दी. नेहा हंसती हुई बाइक से उतरी और  कपिल ने जैसे ही हैलमेट उतार कर रखा, नेहा ने कपिल के गले में बांहें डाल दीं. कपिल ने भी उस की कमर में हाथ डाल उसे अपने से और सटा लिया. दोनों काफी देर तक एकदूसरे में खोए रहे.

उतरतीचढ़ती सांसों को काबू में करते हुए नेहा बोली,” सुनो, अभी मेरे घर चलना चाहोगे?”

”क्या?” कपिल हैरान हो गया.

”हां, घर पर कोई नहीं है, चलो न.”

”तुम्हारे मम्मीपापा कहां गए?”

”किसी की डैथ पर अफसोस करने गए हैं, रात तक आएंगे.”

”तो चलो, फिर हम देर क्यों कर रहे हैं? मैं तो अभी से सोच कर मरा जा रहा हूं कि क्या हम सचमुच अभी वही करने जा रहे हैं जो हम 15 दिनों से नहीं कर पाए. यार, रूड़की में जगह ही नहीं मिलती. पिछली बार मेरे घर पर कोई नहीं था, तब मौका मिला था.”

”चलो अब, बातें नहीं कुछ और करने का मूड है अभी.”

कपिल ने बड़े उत्साह से बाइक नेहा के घर की तरफ दौड़ा दी. रास्ते भर मुंह पर स्कार्फ बांधे नेहा कपिल की कमर में बाहें डाल उस से लिपटी रही. दोनों युवा प्रेमी अपनीअपनी धुन में खोए हुए थे.

दोनों का अफेयर 2 साल से चल रहा था. दोनों का औफिस एक ही बिल्डिंग में था. इसी बिल्डिंग में कभी कैफेटैरिया में, तो कभी लिफ्ट में मिलते रहने से दोनों की जानपहचान हुई थी. दोनों ने एकदूसरे को देखते ही पसंद कर लिया था.

नेहा की बोल्डनैस पर कपिल फिदा था तो कपिल के शांत व सौम्य स्वभाव पर नेहा मुग्ध हो गई थी. इन 2 सालों में दोनों पता नहीं कितनी बार शारीरिक रूप से भी पास आ गए थे. नेहा लाइफ को खुल कर जीना चाहती थी. कई बार तो कपिल उस के जीने के ढंग को देख कर हैरान रह जाता.

नेहा के घर में उसके पेरैंट्स थे. दोनों कामकाजी थे. छोटा भाई कालेज में पढ़ रहा था. कपिल अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान था. उस की मम्मी हाउसवाइफ थी. कपिल के पिता रवि एक बिल्डर थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी.

कपिल ने अपने घर में नेहा के बारे में बता दिया था. नेहा को बहू बनाने में कपिल के पेरैंट्स को कोई आपत्ति  नहीं थी. नेहा कपिल के घर भी आतीजाती रहती पर नेहा के घर में कपिल के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था.

हमेशा की तरह कपिल ने नेहा की बिल्डिंग से कुछ दूर एक शौपिंग कौंप्लैक्स की पार्किंग में बाइक खड़ी की. पहले नेहा अपने घर गई. थोड़ी देर बाद कपिल उस के घर पहुंचा. पहले भी घर पर किसी के न होने का  दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था.

घर में अंदर जाते ही कपिल ने अपना बैग एक तरफ रख नेहा को बांहों में भर लिया. उस पर अपने प्यार की बरसात कर दी. नेहा ने उस बरसात में अपनेआप को पूरी तरह भीग जाने दिया. प्यार की यह बरसात नेहा के बैड पर कुछ देर बाद ही रुकी.

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कपिल ने कहा,”यार, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता, चलो न, शादी कर लेते हैं. देर क्यों कर रही हो?”

नेहा ने अपने बोल्ड अंदाज में कहा,”शादी के लिए क्यों परेशान हो?, जो बाद में करना है अभी कर ही रहे हैं न.”

‘अरे ,ऐसे नहीं, अब चोरीचोरी नहीं, खुल कर अपने घर में तुम्हारे साथ रहना है.”

”पर मेरा मूड शादी का नहीं है, कपिल.”

”कब तक इंतजार करवाओगी?”

”पर मैं ने तो यह कभी नहीं कहा कि मैं तुम से शादी जल्दी ही करूंगी.”

”पर मैं तो तुम से ही करूंगा, मैं तुम्हारे बिना जी ही नहीं सकता, नेहा. मैं ने सिर्फ तुम से ही प्यार किया है.”

”ओह, कपिल,” कहते हुए नेहा ने फिर कपिल के गले में बांहें डाल दीं, कहा, ”चलो, अब तुम्हे फिर कौफी पिलाती हूं.”

दोनों ने कौफी भी काफी रोमांस करते हुए पी. कपिल थोड़ी देर बाद चला गया. हर समय टच में रहने के लिए व्हाट्सऐप था ही.

यह दोनों का रोज का नियम था कि कपिल ही नेहा को उस के घर छोड़ कर जाता. कपिल ने घर जा कर साफसाफ बताया कि वह नेहा के साथ था.

उस की मम्मी सुधा ने कहा,” बेटा, तुम दोनों शादी क्यों नहीं कर रहे हो? अब दोनों ही अच्छी नौकरी भी कर रहे हो, तो देर किस बात की है?”

”मम्मी, अभी नेहा शादी नहीं करना चाहती.”

”फिर कब तक करेगी ?उस के पेरैंट्स क्या कहते हैं?”

”कुछ नहीं,मम्मी. अभी तो उस ने अपने घर में हमारे बारे में बताया ही नहीं.”

”यह क्या बात हुई ?”

”छोड़ो मम्मी, जैसा नेहा को ठीक लगे. वह शायद और टाइम लेना चाहती है.”

”बेटा, एक बात और मेरे मन में है. क्या तुम उस से निभा लोगे? वह काफी बोल्ड लड़की है, तुम ठहरे सीधेसादे.”

”मम्मी, वह आज की लड़की है. आज की लड़कियां आप के टाइम से थोड़ी अलग होती हैं. नेहा बोल्ड है मगर गलत नहीं. आप चिंता न करो वह शायद कुछ और रुकना चाहती है.”

“पर मुझे लगता है अब तुम सीरियसली शादी के बारे में सोचो.”

”अच्छा ठीक है मम्मी, उस से बात करता हूं.”

2 दिन बाद ही नेहा ने कपिल से कहा,”यार, लौटरी लग गई, मेरा भाई दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है और मेरे चाचा की तबीयत खराब हो गई है. मेरे मम्मीपापा उन्हें देखने दिल्ली जा रहे हैं. चलो, अब तुम भी अपने घर बोल दो कि तुम भी टूर पर जा रहे हो. दोनों औफिस से छुट्टी ले कर जम कर घर पर ऐश करेंगे.”

”सच?”

”लाइफ ऐंजौय करेंगे, यार. आ जाओ, खाना बाहर से और्डर करेंगे. बस सिर्फ ऐश ही ऐश.”

कपिल नेहा को दिलोजान से चाहता था. जैसा उस ने कहा था कपिल ने वैसा ही किया. वह अपने घर पर टूर पर जाने की बात बता कर नेहा के घर रात गुजारने के लिए अपने कपङे वगैरह ले कर आ गया. दोनों ने जीभर कर रोमांस किया. जब मन हुआ पास आए, एकदूसरे में खोए रहे.

कपिल ने कहा,”यार, तुम्हारे साथ ये पल ही मेरा जीवन हैं. अब तुम हमेशा के लिए मेरी लाइफ में जल्दी आ जाओ. अब मैं नहीं रुक सकता बोलो, कब मिला रही हो अपने पेरैंट्स से?”

नेहा ने प्यार से झिड़का,”तुम क्या यह शादीशादी करते रहते हो? शादी की क्या आफत आई है? और मैं तुम्हें कितनी बार बता चुकी हूं कि मेरा मूड शादी करने का नहीं है.”

अब कपिल गंभीर हुआ,”नेहा, यह क्या कहती रहती हो? मेरी मम्मी बारबार मुझे शादी करने के लिए कह रही हैं और हम रूक क्यों रहे हैं ?”

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नेहा ने अब शांत पर गंभीर स्वर में कहा ,”देखो, मैं अभी काफी साल शादी के बंधन में नहीं बंधने वाली. अभी मैं सिर्फ 26 साल की हूं और लाइफ ऐंजौय कर रही हूं.”

”पर मैं 30 का हो रहा हूं. आज नहीं तो कल हमें शादी करनी ही है. एकदूसरे के इतने करीब हैं तो चोरीचोरी कब तक क्यों मिलें?”

”यह मैं ने कब कहा कि आज नहीं तो कल हम शादी कर ही रहे हैं?”

”मतलब ?”

”देखो, कपिल अब तक मैं ने तुम्हें अपने पेरैंट्स से इसलिए नहीं मिलवाया क्योंकि अरैंज्ड मैरिज तो हमारी होगी नहीं क्योंकि हम अलगअलग जाति के हैं. मेरे पेरैंट्स ठहरे पक्के पंडित और तुम हम से नीची जाति के. अभी इस उम्र में जाति को ले कर मुझे टैंशन चाहिए ही नहीं. हम प्यार, रोमांस सैक्स सब कुछ तो ऐंजौय कर रहे हैं, तुम शादी के पीछे क्यों पड़े हो? शादी तो अभी दूरदूर तक मैं नहीं करने वाली.”

”क्या तुम मुझे प्यार नहीं करतीं?”

”करती तो हूं.”

”फिर तुम्हारा मन नहीं करता कि हम दोनों एकसाथ रहने के लिए शादी कर लें?”

‘नहीं, यह मन तो नहीं करता मेरा.”

”अच्छा बताओ, कितने दिन रुकना चाहती हो, मैं तुम्हारा इंतजिर करूंगा.”

”मुझे नहीं पता.”

कपिल कुछ गंभीर सा बैठ गया तो नेहा ने शरारती अंदाज में मस्ती शुरू कर दी. कहा,”मैं तुम्हें फिर कहती हूं कि शादी की रट छोड़ो, लाइफ को ऐंजौय करो.”

”मतलब तुम मुझ से शादी नहीं करोगी?”

”नहीं.”

”मैं समझ ही नहीं पा रहा, नेहा यह सब क्या है? तुम 2 साल से मेरे साथ रिलैशनशिप में हो, पता नहीं कितनी बार हम ने सैक्स किया होगा और तुम कह रही हो कि मुझ से शादी नहीं करोगी?”

“सैक्स कर लिया तो कौन सा गुनाह कर लिया? हम एकदूसरे को पसंद करते थे और करीब आ गए. अच्छा लगा. इस में शादी कहां से आ गई?”

”तो शादी कब और किस से करने वाली हो ?”

”अभी तो कुछ भी नहीं पता. मैं यह सोच कर तुम से सैक्स थोड़े ही कर रही थी कि तुम से ही शादी करूंगी. कपिल, अब वह जमाना गया जब कोई लड़की किसी लङके को इसलिए अपने पास आने देती थी कि उसी से शादी करेगी. ऐसा कुछ नहीं है अब. कम से कम मैं ऐसा नहीं सोचती. अभी मैं लाइफ ऐंजौय करने के मूड में हूं. अभी गृहस्थी संभालने का मेरा कोई मूड नहीं. तुम भी अब यह शादी शादी की रट छोड़ दो और ऐंजौय करो.”

”नहीं… नेहा मैं इस रिश्ते को कोई नाम देना चाहता हूं.”

नेहा अब झुंझला गई,” तो कोई ऐसी लड़की ढूंढ़ लो जो तुम से अभी शादी कर ले.”

कपिल ने भावुक हो कर उस का हाथ पकड़ लिया,”ऐसा कभी न कहना नेहा. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.”

”अरे, सब कहने की बातें हैं. रोज हजारों दिल जुड़ते हैं और हजारों टूटते हैं. सब चलता रहता है.”

कपिल की आंखों में सचमुच नमी आ गई. यह नमी गालों पर भी बह गई  तो नेहा हंस पड़ी,” यह क्या कपिल, इतना इमोशनल क्यों हो यार… रिलैक्स.”

”कभी मुझ से दूर मत होना, नेहा. आई रियली लव यू , कहतेकहते कपिल ने उसे बांहों में भर कर किस कर दिया. नेहा भी उस के पास सिमट आई. थोड़ी देर रोमांस चलता रहा.

काफी समय दोनों ने साथ बिता लिया था. अगले दिन कपिल घर जाने लगा तो नेहा ने कहा,”कपिल, बी प्रैक्टिकल.”

कपिल ने उसे घूरा तो वह हंस पड़ी और कहा ,”प्रैक्टिकल होने में ही समझदारी है. इमोशनल हो कर मुझे गिल्ट ट्रिप पर भेजने की कोशिश मत करो.”

कुछ दिन तो सामान्य से कटे , फिर कपिल ने महसूस किया कि नेहा उस से कटने लगी है. कभी फोन पर कह देती,”तुम जाओ, मेरी कुछ जरूरी मीटिंग्स हैं, देर लगेगी. कभी मिलती तो जल्दी में होती. बाइक पर कभी साथ भी होती तो चुप ही रहती. पहले की तरह बाइक पर शरारतों भरा रोमांस खत्म होने लगा. दूरदूर अजनबी सी बैठी रहती. कपिल के पूछने पर औफिस का स्ट्रैस कह देती.कपिल को साफ समझ आ रहा था कि वह उस से दूर हो रही है. फोन भी अकसर नहीं उठाती और कुछ भी बहाना कर देती.

एक दिन कपिल ने बाइक रास्ते में एक सुनसान जगह पर रोक दी और पूछा,”नेहा, मुझे साफसाफ बताओ कि तुम मुझ से दूर क्यों भाग रही हो ? मुझे तुम्हारा यह अजनबी जैसा व्यवहार बरदाश्त नहीं हो रहा है.”

नेहा ने भी अपने मन की बात उस दिन साफसाफ बता दी,” कपिल, तुम बहुत इमोशनल हो. हमारे अभी तक के संबंधों को शादी के रूप में देखने लगे हो. मेरा अभी दूरदूर तक शादी का इरादा नहीं है. अभी तो मुझे अपने कैरियर पर ध्यान देना है. मैं शादी के झमेले में अभी नहीं फंसना चाहती. तुम्हारी शादी की चाहत से मैं बोर होने लगी हूं और शायद तुम जैसे इमोशनल इंसान के साथ मेरी ज्यादा निभे भी न, तो समझो कि मैं तुम से ब्रैकअप कर रही हूं.”

कपिल का स्वर भर्रा गया,”ऐसा मत कहो, नेहा. मैं तुम्हारे बिना जीने की सोच भी नहीं सकता.”

”अरे ,यह सब डायलाग फिल्मों के लिए रहने दो. कोई किसी के बिना नहीं मरता. चलो, आज लास्ट टाइम घर छोड़ दो अब ऐंड औल द बैस्ट फौर योर फ्यूचर. एक अच्छी लड़की ढूंढ़ कर शादी कर लो. और हां, मुझे भी बुला लेना, मैं भी आउंगी. मुझे कोई गिल्ट नहीं है और मैं उन में से भी नहीं जो अपने प्रेमी को किसी और का होते न देख सकूं, ”कह कर नेहा जोर से हंसी.

कपिल ने उसे किसी रोबोट की तरह उस के घर तक छोड़ दिया.

“बाय, कपिल कह कर इठ लाती हुई नेहा अपने घर की तरफ चली गई. नेहा ने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा. कपिल नेहा को तब तक देखता रहा जब तक वह उस की आंखों से ओझल न हो गई.

कपिल वापसी में रोता हुआ बाइक चलाता रहा. वह सचमुच नेहा से प्यार करता था. उस के बिना जीने की वह कल्पना ही नहीं कर पा रहा था.

लुटापिटा, हारा सा घर पहुंचा. उस की शक्ल देख कर उस की मम्मीपापा घबरा गए. वह खराब तबीयत का बहाना बता कर अपने कमरे में 2 दिन पड़ा रहा तो सब को चिंता हुई. न कुछ खापी रहा था और न ही कुछ बोल रहा था.

उस की मम्मी सुधा ने उस के एक दोस्त सुदीप को बुलाया. सुदीप उस के और नेहा के संबंधों के बारे में जानता था. सुदीप ने काफी समय कपिल के पास बैठ कर बिताया. कपिल कुछ बोल ही नहीं रहा था, पत्थर सा हो गया था. दीवानों सी हालत थी. बहुत देर बाद सुदीप के कुछ सवालों का जवाब उस ने रोते हुए दे कर बता दिया कि नेहा ने उसे छोड़ दिया है. सुदीप देर तक उसे समझाता रहा.

अगले दिन की सुबह घर में मातम ले कर आई. कपिल ने रात में हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली थी. एक पेपर पर लिख गया था ,”सौरी मम्मी, मुझे माफ कर देना. नेहा ने मुझे छोड़ दिया है. मैं उस के बिना नहीं जी पाउंगा. पापा, मुझे माफ कर देना.”

मातापिता बिलखते रहे. सुदीप पता चलने पर बदहवास सा भागा आया. जोरजोर से रोने लगा. बड़ी मुश्किल घङी थी. सुधा बारबार गश खाती और कहती कि क्या एक लड़की के प्यार में हमें भी भूल गया? हमारा अब कौन है? पडोसी, रिश्तेदार सब इकठ्ठा होते रहे. सब ने रमेश और सुधा को बहुत मुश्किल से संभाला. दोनों को कहां चैन आने वाला था. सुदीप को नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

एक शाम वह नेहा के औफिस की बिल्डिंग के नीचे खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. वह निकली तो उस ने अपना परिचय देते हुए उसे कपिल की आत्महत्या के बारे में बताया तो नेहा ने एक ठंडी सांस ले कर कहा ,”दुख जरूर हुआ मुझे पर गिल्ट फील करवाने की जरूरत नहीं है. वह कमजोर था , मेरी सचाई के साथ कही बात को सहन नहीं कर पाया तो मेरी गलती नहीं है. उस की आत्महत्या के लिए मैं खुद को दोषी बिलकुल नहीं समझूंगी. मुझे गिल्ट ट्रिप मत भेजो, ओके…” कहते हुए वह सधे कदमों से आगे बढ़ गई. सुदीप हैरानी से उसे देखता रह गया.

Satyakatha: मां-बेटी का साझा प्रेमी

सौजन्य- सत्यकथा

जब कोई औरत अनैतिकता की राह पर दौड़ लगाने लगती है तब उस की आंखों में न तो परिवार और समाज की मानमर्यादा की शर्म रहती है और न ही जेहन में कायदेकानून का डर. पान मसाला सप्लाई का काम करने वाला नवीन शर्मा 23 जुलाई, 2021 की सुबह 7 बजे ही काम पर निकला था. लेकिन वह अगले रोज 10 बजे तक घर नहीं लौटा था. पिता प्रदीप शर्मा बीती रात से उसे फोन मिलामिला कर परेशान थे. वह बारबार उसे काल कर रहे थे, लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था.

वह बेहद चिंतित हो गए थे कि उन का 30 वर्षीय बेटा नवीन आखिर अभी तक लौटा क्यों नहीं. उन्होंने पत्नी गीता शर्मा के साथ पूरी रात बेटे की एक सूचना के इंतजार में चहलकदमी करते हुए गुजारी. नवीन अकसर अपने कहे अनुसार समय से वापस घर लौट आ जाता था.

भारी मन से प्रदीप शर्मा अपने एक पड़ोसी की सलाह पर कानपुर के कोहना थाने पहुंचे. बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई. थानाप्रभारी वी.के. सिंह को उन्होंने बताया कि वह कानपुर के भैरव घाट मोहल्ले के निवासी हैं. उन का जवान बेटा नवीन शर्मा कल दिन से ही नहीं आया है. उन्होंने किसी अनहोनी की आशंका भी जताई और उसे तलाश की मांग की.

थानाप्रभारी सिंह ने प्रदीप शर्मा की बात गौर से सुनी, फिर गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली और उन्हें जल्द ढूंढ निकालने का आश्वासन दिया. इस के बाद प्रदीप शर्मा वापस घर लौट आए, लेकिन चुप नहीं बैठे. अपने बड़े बेटे अर्पित, अंकुर और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर नवीन की खोज में निकल पड़े.

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उन्होंने इलाके का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन नवीन का कुछ पता नहीं चला. बेटे की चिंता में मां गीता का भी रोरो कर बुरा हाल हो गया था. उन्होंने खानापीना छोड़ दिया था.

इसी बीच 25 जुलाई, 2021 की सुबह 8 बजे थाना कोहना पुलिस को धोबी घाट के पास एक गड्ढे में किसी युवक की लाश होने की सूचना मिली. इस की जानकारी दूसरे अधिकारियों को दे कर थानाप्रभारी पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

युवक का शव 4 फीट गहरे में गड्ढे में पड़ा था. गड्ढे को सीमेंट की शीट से ढंक कर शव को छिपाने की कोशिश की गई थी. थानाप्रभारी ने शव को गड्ढे से बाहर निकलवा कर उस का बारीकी से निरीक्षण किया.

युवक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस के माथे पर चोट के निशान थे. गले में रगड़ के भी निशान थे. देखने से लग रहा था कि किसी भारी हथियार से उस के माथे पर चोट की गई होगी.

फिर रस्सी या तार से उस का गला घोंट दिया होगा.

इस जांच के दौरान वी.के. सिंह को शक हुआ कि यह लाश प्रदीप शर्मा के बेटे नवीन शर्मा की हो सकती है, क्योंकि उन की शिकायत के अनुसार शव का हुलिया मेल खा रहा था. उन्होंने तुरंत प्रदीप को बुलवाया.

प्रदीप शर्मा भागेभागे घटनास्थल पर आए. साथ में पत्नी और बेटे भी थे. उन्होंने लाश देखते ही पहचान ली. वह नवीन शर्मा की ही निकली. नवीन की लाश देख कर घरवाले दहाड़ मार कर रोने लगे.

पुलिसकर्मियों ने किसी तरह परिवार को संभाला और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. घटनास्थल पर एसपी (पश्चिम) संजीव त्यागी, एएसपी अभिषेक कुमार अग्रवाल और डीएसपी त्रिपुरारी पांडेय भी आ गए. उन्होंने प्रदीप शर्मा और उन के बेटों से विस्तृत पूछताछ की.

प्रदीप शर्मा ने पुलिस को बताया कि उन के बेटे नवीन का एक सप्ताह पहले टेफ्को टेनरी के किनारे रहने वाले भोला जैसवार की पत्नी गुडि़या और उस की बेटी कांती के साथ झगड़ा हुआ था. तब से वह नवीन से दुश्मनी कर बैठी थी. भोला और उस के बेटे भगत ने भी नवीन को सबक सिखाने की धमकी दी थी. प्रदीप शर्मा ने नवीन की हत्या का आरोप सीधेसीधे जैसवार परिवार पर लगा दिया.

‘‘नवीन का झगड़ा किस बात को ले कर हुआ था?’’ डीएसपी पांडेय ने पूछा.

‘‘साहब, भगत और नवीन गहरे दोस्त थे. कुछ दिन पहले नवीन ने भगत की बहन कांती को उस के प्रेमी रंजीत उर्फ पाले के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था. इस की शिकायत उस ने भगत से कर दी थी. इस पर भगत और  उस के पिता भोला ने गुडि़या और कांति की पिटाई कर दी थी. यह बात जब गुडि़या और उस की बेटी कांती को मालूम हुई कि शिकायत नवीन ने की है, तो उन्होंने नवीन से झगड़ा किया.’’

इस मामले में नवीन के भाई अर्पित ने पुलिस को बताया कि रंजीत के भगत की मां गुडि़या से भी नाजायज संबंध हैं. उस ने पहले गुडि़या को जाल में फंसाया फिर उस की बेटी से भी नाजायज रिश्ता बना लिया.

उस के भाई नवीन को मांबेटी की इस हरकत के बारे में जानकारी थी. इसी की शिकायत उस ने अपने दोस्त भगत से की थी.

नवीन के पिता और भाई के बयानों से पुलिस समझ चुकी थी कि उस की हत्या अवैध रिश्तों के चलते हुई है. एसपी संजीव त्यागी ने हत्या के खुलासे के लिए एएसपी अभिषेक कुमार अग्रवाल की निगरानी में एक टीम गठित कर दी.

टीम ने सब से पहले मृतक के घर वालों के बयान दर्ज किए, फिर गुडि़या के मोहल्ले वालों को विश्वास में ले कर उस के बारे में जानकारी जुटाई. पुलिस को उन से मिली जानकारी के आधार पर गुडि़या और रंजीत के अवैध संबंध के बारे में पता चला.

यह भी मालूम हो गया कि गुडि़या की बेटी कांती से भी रंजीत का गहरा नाता रहा है. यानी मांबेटी का आशिक रंजीत ही था. रंजीत दोनों में से एक की अनुपस्थिति में दूसरे से मिलता है.

लोगों ने दबी जुबान में यह भी बताया कि मांबेटी को इस बारे में पता था कि दोनों की आशिकी एक ही युवक से है.

गुडि़या जानती थी कि उस की बेटी कांती के रंजीत के साथ अवैध संबंध हैं. इसी तरह से कांती को रंजीत और उस की मां गुडि़या के नाजायज रिश्ते के बारे में पता था. दोनों ने एकदूसरे का विरोध करने के बजाय इसे ही ढाल बना लिया था.

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अब इस हत्याकांड में रंजीत भी संदेह के दायरे में आ गया था. हालांकि नवीन की हत्या में इन तीनों के अलावा पति भोला और बेटे भगत के भी शामिल होने का अनुमान लगाया गया. इस का पता लगाने के लिए जांच दल ने गुडि़या और कांति को हिरासत में ले लिया.

उन से सख्ती से पूछताछ की. दोनों ने यह तो स्वीकार कर लिया कि उन के नाजायज संबंध रंजीत से हैं, लेकिन हत्या में शामिल होने से इनकार कर दिया.

हत्या की तह तक जाने के लिए जांच टीम ने जाल फैलाया. मुखबिरों की मदद ली. जल्द ही इस में सफलता मिल गई. मुखबिर की सूचना पर 27 जुलाई, 2021 की रात 8 बजे पुलिस ने रंजीत को कंपनी बाग चौराहे से हिरासत में ले लिया. उसे पूछताछ के लिए थाना कोहना लाया गया. पहले तो रंजीत ने पुलिस को गुमराह किया, लेकिन सख्ती बरतने पर वह टूट गया.

उस ने नवीन की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं उस ने केबल का वह टुकड़ा भी बरामद करवा दिया, जिस से नवीन का गला कस कर हत्या की थी. नवीन का मोबाइल फोन भी उस से बरामद हो गया.

रंजीत ने बताया कि उस ने नवीन की हत्या गुडि़या और कांती के कहने पर की. दोनों ही हत्या के साजिश में शामिल थीं. कुछ दिन पहले नवीन ने उसे कांती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. इस की शिकायत उस ने भोला और उस के बेटे से कर दी थी. उसी खुन्नस में तीनों ने नवीन की हत्या का प्लान बना लिया था.

नवीन की हत्या की योजना में गुडि़या और उस की बेटी कांती भी शामिल थी, अत: पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने जब रंजीत को पुलिस हिरासत में देखा, तब दोनों समझ गईं कि उन का भेद खुल चुका है. फिर उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.

जांच दल ने नवीन की हत्या का परदाफाश हो जाने और हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी (पश्चिम) संजीव त्यागी को दे दी. साथ ही थानाप्रभारी ने मृतक के पिता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत रंजीत उर्फ पाले, गुडि़या और  कांती के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में हवस की ऐसी काली कहानी प्रकाश में आई, जो किसी समाज के लिए कालिख ही कही जाएगी.

उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर  के मोहल्ला भैरवघाट में प्रदीप शर्मा सपरिवार रहते हैं. परिवार में पत्नी गीता के अलावा 3 बेटे अर्पित, अंकित और नवीन थे. प्रदीप शर्मा इलैक्ट्रीशियन हैं. 3 भाइयों में नवीन सब से छोटा था. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. वह शहर की फुटकर दुकानों में पान मसाला सप्लाई करने का काम करता था.

नवीन का एक दोस्त भगत था. भगत के पिता भोला जैसवार ईरिक्शा चलाते थे. वह परिवार सहित टेफ्को टेनरी के किनारे रहते थे.

नवीन और भगत में गहरी दोस्ती थी. दोनों जब फुरसत में होते तो आपस में खूब बातें करते थे. एकदूसरे की मदद भी करते थे. कभीकभी दोनों के बीच खानेपीने की पार्टी भी हो जाती थी.

भगत के घर के पास रंजीत रहता था. वह उस की ही जाति का था. वह भगत के  परिवार की आर्थिक मदद भी करता था, जिस से उस ने घर में पैठ बना ली थी. उस की भगत की मां गुडि़या से खूब पटती थी. भगत उसे शक की नजरों से देखता था, लेकिन मां के कारण वह उस को घर आने से मना नहीं कर पाता था.

40 वर्षीया गुडि़या के बच्चे जवान थे, इस के बावजूद वह यौवन से भरपूर दिखती थी. गुडि़या अपने पति से खुश नहीं थी. इस का फायदा रंजीत ने उठाया था. उस ने  गुडि़या को अपने जाल में फंसा लिया था. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते देर नहीं लगी.

इस की जानकारी भगत और कांती को हो गई थी, लेकिन मां के खिलाफ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं थी. भगत के पिता की घर में कोई कद्र नहीं थी.

कुछ समय बाद रंजीत ने जवान हो रही कांती पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए. इस में वह जल्द ही सफल भी हो गया. गुडि़या को इस का पता चला, लेकिन वह विरोध नहीं कर पाई. क्योंकि उस के और रंजीत के रिश्ते के बारे में कांती भी जानती थी. इस तरह उन के बीच का यह खेल चलता रहा. यानी रंजीत मां और बेटी का साझा प्रेमी हो गया.

14 जुलाई, 2021 को नवीन ने कांती और रंजीत को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. वह दोस्त से मिलने उस के घर गया था. उस ने यह बात भगत को बताई, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. भगत ने मांबहन की करतूत बाप को बताई.

भोला भी आगबबूला हो उठा. उस के बाद देर रात भोला और भगत ने गुडि़या और कांती की जम कर पिटाई कर दी. 2 दिन बाद कांती और गुडि़या ने नवीन की शिकायत और फिर पिटाई की जानकारी प्रेमी रंजीत से कर दी. उस ने नवीन को सबक सिखाने की सौगंध खा ली.

योजना के तहत 23 जुलाई, 2021 की शाम 4 बजे रंजीत ने कांती के जरिए नवीन को घर बुलवाया. नवीन कांती के घर पहुंचा तो पता चला कि मांबेटी झोपड़ी पाटने के लिए लकड़ी लेने टेफ्को टेनरी की ओर गई हैं.

कुछ देर में नवीन भी वहां पहुंच गया. नवीन ने मांबेटी की मदद की और लकड़ी घर ले आया. नवीन की घर में मौजूदगी की खबर गुडि़या ने मोबाइल फोन से रंजीत को दे दी.

रंजीत पहले शराब के ठेके पर गया और शराब पी. फिर वह कांती के घर पहुंचा. घर पर नवीन मौजूद था. वह उसे फुसला कर दोबारा लकड़ी लाने के बहाने धोबीघाट ले गया. तब तक शाम का धुंधलका छाने लगा था. बातचीत करते हुए दोनों धोबीघाट से कुछ दूरी पर पहुंचे, तभी रंजीत की नजर एक पत्थर पर पड़ी. उस ने पत्थर उठाया और नवीन के माथे पर तेजी से मारा.

नवीन बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद रंजीत ने केबल के टुकड़े से नवीन का गला घोंट दिया. हत्या के बाद रंजीत ने नवीन की जेब से मोबाइल फोन व रुपए निकाल लिए. फिर शव को घसीट कर गड्ढे में डाल दिया. गड्ढे को सीमेंट की चादर से ढंक दिया.

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नवीन के शव को छिपाने के बाद रंजीत गुडि़या के घर आया. उस ने मांबेटी को नवीन की हत्या की जानकारी दी. रंजीत ने कांती को नवीन का मोबाइल फोन और उस की जेब से निकाले रुपए दिए. कांती ने रुपए ले लिए, लेकिन मोबाइल फोन नहीं लिया. तब रंजीत ने मोबाइल फोन तोड़ कर धोबीघाट के पास झाडि़यों में फेंक दिया.

28 जुलाई, 2021 को पुलिस ने गुडि़या, कांती और रंजीत उर्फ पाले को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में पेश किया. जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंधविश्वास की बेड़ियां: क्या सास को हुआ बहू के दर्द का एहसास?

Writer- Shalini Jolly 

‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था. उन्होंने तो शादी के दूसरे साल से ही ऐसे तानों से मेरी नाक में दम कर दिया था. सावन उन के इकलौते बेटे और मेरे पति थे. मेरे ससुर बहुत पहले गुजर गए थे. घर में पति और सास के अलावा कोई न था. मेरी सास को पोते की बहुत ख्वाहिश थी. वे चाहती थीं कि जैसे भी हो मैं उन्हें एक पोता दे दूं.

मैं 2 बार लेडी डाक्टर से अपना चैकअप करवा चुकी थी. मैं हर तरह से सेहतमंद थी. समझाबुझा कर मैं सावन को भी डाक्टर के पास ले गई थी. उन की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी.

डाक्टर ने हम दोनों को समझाया भी था, ‘‘आजकल ऐसे केस आम हैं. आप लोग बिलकुल न घबराएं. कुदरत जल्द ही आप पर मेहरबान होगी.’’

डाक्टर की ये बातें हम दोनों तो समझ चुके थे, लेकिन मेरी सास को कौन समझाता. आए दिन उन की गाज मुझ पर ही गिरती थी. उन की नजरों में मैं ही मुजरिम थी और अब तो वे यह खुलेआम कहने लगी थीं कि वे जल्द ही सावन से मेरा तलाक करवा कर उस के लिए दूसरी बीवी लाएंगी, ताकि उन के खानदान का वंश बढ़े.

उन की इन बातों से मेरा कलेजा छलनी हो जाता. ऐसे में सावन मुझे तसल्ली देते, ‘‘क्यों बेकार में परेशान होती हो? मां की तो बड़बड़ाने की आदत है.’’

‘‘आप को क्या पता, आप तो सारा दिन अपने काम पर होते हैं. वे कैसेकैसे ताने देती हैं… अब तो उन्होंने सब से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हमारा तलाक करवा कर आप के लिए दूसरी बीवी लाएंगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. मैं न तो तुम्हें तलाक दूंगा और न ही दूसरी शादी करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम में कोई कमी नहीं है. बस कुदरत हम पर मेहरबान नहीं है.’’

एक दिन हमारे गांव में एक बाबा आया. उस के बारे में मशहूर था कि वह बेऔलाद औरतों को एक भभूत देता, जिसे दूध में मिला कर पीने पर उन्हें औलाद हो जाती है.

मुझे ऐसी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं था, लेकिन मेरी सास ऐसी बातों पर आंखकान बंद कर के यकीन करती थीं. उन की जिद पर मुझे उन के साथ उस बाबा (जो मेरी निगाह में ढोंगी था) के आश्रम जाना पड़ा.

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बाबा 30-35 साल का हट्टाकट्टा आदमी था. मेरी सास ने उस के पांव छुए और मुझे भी उस के पांव छूने को कहा. उस ने मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. आशीर्वाद के बहाने उस ने मेरे सिर पर जिस तरह से हाथ फेरा, मुझे समझते देर न लगी कि ढोंगी होने के साथसाथ वह हवस का पुजारी भी है.

उस ने मेरी सास से आने का कारण पूछा. सास ने अपनी समस्या का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया कि ढोंगी बाबा मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा. उस ने मेरी आंखें देखीं, फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू पर एक चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से इसे औलाद नहीं हो रही है. अगर वह चुड़ैल इस का पीछा छोड़ दे, तो कुछ ही दिनों में यह गर्भधारण कर लेगी. लेकिन इस के लिए आप को काली मां को खुश करना पड़ेगा.’’

‘‘काली मां कैसे खुश होंगी?’’ मेरी सास ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें काली मां की एक पूजा करनी होगी. इस पूजा के बाद हम तुम्हारी बहू को एक भभूत देंगे. इसे भभूत अमावास्या की रात में 12 बजे के बाद हमारे आश्रम में अकेले आ कर, अपने साथ लाए दूध में मिला कर हमारे सामने पीनी होगी, उस के बाद इस पर से चुड़ैल का साया हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाएगा.’’

‘‘बाबाजी, इस पूजा में कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं 7-8 हजार रुपए.’’

मेरी सास ने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो पूछ रही हों कि मैं इतनी रकम का इंतजाम कर सकती हूं? मैं ने नजरें फेर लीं और ढोंगी बाबा से पूछा, ‘‘बाबा, इस बात की क्या गारंटी है कि आप की भभूत से मुझे औलाद हो ही जाएगी?’’

ढोंगी बाबा के चेहरे पर फौरन नाखुशी के भाव आए. वह नाराजगी से बोला, ‘‘बच्ची, हम कोई दुकानदार नहीं हैं, जो अपने माल की गारंटी देता है. हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं. तुम्हें अगर औलाद चाहिए, तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा करो वरना तुम यहां से जा सकती हो.’’

ढोंगी बाबा के रौद्र रूप धारण करने पर मेरी सास सहम गईं. फिर मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए चापलूसी के लहजे में बाबा से बोलीं, ‘‘बाबाजी, यह नादान है. इसे आप की महिमा के बारे में कुछ पता नहीं है. आप यह बताइए कि पूजा कब करनी होगी?’’

‘‘जिस रोज अमावास्या होगी, उस रोज शाम के 7 बजे हम काली मां की पूजा करेंगे. लेकिन तुम्हें एक बात का वादा करना होगा.’’

‘‘वह क्या बाबाजी?’’

‘‘तुम्हें इस बात की खबर किसी को भी नहीं होने देनी है. यहां तक कि अपने बेटे को भी. अगर किसी को भी इस बात की भनक लग गई तो समझो…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मेरी सास ने ढोंगी बाबा को फौरन यकीन दिलाया कि वे किसी को इस बात का पता नहीं चलने देंगी. उस के बाद हम घर आ गईं.

3 दिन बाद अमावास्या थी. मेरी सास ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और फिर पूजा के इंतजाम में लग गईं. इस पूजा में मुझे शामिल नहीं किया गया. मुझे बस रात को उस ढोंगी बाबा के पास एक लोटे में दूध ले कर जाना था.

मैं ढोंगी बाबा की मंसा अच्छी तरह जान चुकी थी, इसलिए आधी रात होने पर मैं ने अपने कपड़ों में एक चाकू छिपाया और ढोंगी के आश्रम में पहुंच गई.

ढोंगी बाबा मुझे नशे में झूमता दिखाई दिया. उस के मुंह से शराब की बू आ रही थी. तभी उस ने मुझे वहीं बनी एक कुटिया में जाने को कहा.

मैं ने कुटिया में जाने से फौरन मना कर दिया. इस पर उस की भवें तन गईं. वह धमकी देने वाले अंदाज में बोला, ‘‘तुझे औलाद चाहिए या नहीं?’’

‘‘अपनी इज्जत का सौदा कर के मिलने वाली औलाद से मैं बेऔलाद रहना ज्यादा पसंद करूंगी,’’ मैं दृढ़ स्वर में बोली.

‘‘तू तो बहुत पहुंची हुई है. लेकिन मैं भी किसी से कम नहीं हूं. घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता तब मैं उंगली टेढ़ी करना भी जानता हूं,’’ कहते ही वह मुझ पर झपट पड़ा. मैं जानती थी कि वह ऐसी नीच हरकत करेगा. अत: तुरंत चाकू निकाला और उस की गरदन पर लगा कर दहाड़ी, ‘‘मैं तुम जैसे ढोंगी बाबाओं की सचाई अच्छी तरह जानती हूं. तुम भोलीभाली जनता को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से न केवल लूटते हो, बल्कि औरतों की इज्जत से भी खेलते हो. मैं यहां अपनी सास के कहने पर आई थी. मुझे कोई भभूत भुभूत नहीं चाहिए. मुझ पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. मैं ने तेरी भभूत दूध में मिला कर पी ली थी, तुझे यही बात मेरी सास से कहनी है बस. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरी जान ले लूंगी.’’

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उस ने घबरा कर हां में सिर हिला दिया. तब मैं लोटे का दूध वहीं फेंक कर घर आ गई.

कुछ महीनों बाद जब मुझे उलटियां होनी शुरू हुईं, तो मेरी सास की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वे उलटियां आने का कारण जानती थीं.

यह खबर जब मैं ने सावन को सुनाई तो वे भी बहुत खुश हुए. उस रात सावन को खुश देख कर मुझे अनोखी संतुष्टि हुई. मगर सास की अक्ल पर तरस आया, जो यह मान बैठी थीं कि मैं गर्भवती ढोंगी बाबा की भभूत की वजह से हुई हूं.

अब मेरी सास मुझे अपने साथ सुलाने लगीं. रात को जब भी मेरा पांव टेढ़ा हो जाता तो वे उसे फौरन सीधा करते हुए कहतीं कि मेरे पांव टेढ़ा करने पर जो औलाद होगी उस के अंग विकृत होंगे.

मुझे अपनी सास की अक्ल पर तरस आता, लेकिन मैं यह सोच कर चुप रहती कि उन्हें अंधविश्वास की बेडि़यों ने जकड़ा हुआ है.

एक दिन उन्होंने मुझे एक नारियल ला कर दिया और कहा कि अगर मैं इसे भगवान गणेश के सामने एक झटके से तोड़ दूंगी तो मेरे होने वाले बच्चे के गालों में गड्ढे पड़ेंगे, जिस से वह सुंदर दिखा करेगा. मैं जानती थी कि ये सब बेकार की बातें हैं, फिर भी मैं ने उन की बात मानी और नारियल एक झटके से तोड़ दिया, लेकिन इसी के साथ मेरा हाथ भी जख्मी हो गया और खून बहने लगा. लेकिन मेरी सास ने इस की जरा भी परवाह नहीं की और गणेश की पूजा में लीन हो गईं.

शाम को काम से लौटने के बाद जब सावन ने मेरे हाथ पर बंधी पट्टी देखी तो इस का कारण पूछा. तब मैं ने सारी बात बता दी.

तब वे बोले, ‘‘राधिका, तुम तो मेरी मां को अच्छी तरह से जानती हो.

वे जो ठान लेती हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेती हैं. मैं जानता हूं कि आजकल उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई है, जिस की वजह से वे ऐसे काम भी रही हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए. तुम मन मार कर उन की सारी बातें मानती रहो वरना कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो वे तुम्हारा जीना हराम कर देंगी.’’

सावन अपनी जगह सही थे, जैसेजैसे मेरा पेट बढ़ता गया वैसेवैसे मेरी सास के अंधविश्वासों में भी इजाफा होता गया. वे कभी कहतीं कि चौराहे पर मुझे पांव नहीं रखना है.  इसीलिए किसी चौराहे पर मेरा पांव न पड़े, इस के लिए मुझे लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. इस से मैं काफी थकावट महसूस करती थी. लेकिन अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ी मेरी सास को मेरी थकावट से कोई लेनादेना न था.

8वां महीना लगने पर तो मेरी सास ने मेरा घर से निकलना ही बंद कर दिया और सख्त हिदायत दी कि मुझे न तो अपने मायके जाना है और न ही जलती होली देखनी है. उन्हीं दिनों मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. वे बेहोशी की हालत में मुझ से मिलने की गुहार लगाए जा रहे थे. लेकिन अंधविश्वास में जकड़ी मेरी सास ने मुझे मायके नहीं जाने दिया. इस से पिता के मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई कि उन की बेटी उन के बीमार होने पर देखने नहीं आई.

उन्हीं दिनों होली का त्योहार था. हर साल मैं होलिका दहन करती थी, लेकिन मेरी सास ने मुझे होलिका जलाना तो दूर उसे देखने के लिए भी मना कर दिया.

मेरे बच्चा पैदा होने से कुछ दिन पहले मेरी सास मेरे लिए उसी ढोंगी बाबा की भभूत ले कर आईं और उसे मुझे दूध में मिला कर पीने के लिए कहा. मैं ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा करूंगी तो मुझे बेटा पैदा होगा.

अपनी सास की अक्ल पर मुझे एक बार फिर तरस आया. मैं ने उन का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मैं ने आप की सारी बातें मानी हैं, लेकिन आप की यह बात नहीं मानूंगी.’’

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‘‘क्यों?’’ सास की भवें तन गईं.

‘‘क्योंकि अगर भभूत किसी ऐसीवैसी चीज की बनी हुई होगी, तो उस का मेरे होने वाले बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.’’

‘‘अरी, भूल गई तू कि इसी भभूत की वजह से तू गर्भवती हुई थी?’’

उन के लाख कहने पर भी मैं ने जब भभूत का सेवन करने से मना कर दिया तो न जाने क्या सोच कर वे चुप हो गईं.

कुछ दिनों बाद जब मेरी डिलीवरी होने वाली थी, तब मेरी सास मेरे पास आईं और बड़े प्यार से बोलीं, ‘‘बहू, देखना तुम लड़के को ही जन्म दोगी.’’

मैं ने वजह पूछी तो वे राज खोलती हुई बोलीं, ‘‘बहू, तुम ने तो बाबाजी की भभूत लेने से मना कर दिया था. लेकिन उन पहुंचे बाबाजी का कहा मैं भला कैसे टाल सकती थी, इसलिए मैं ने तुझे वह भभूत खाने में मिला कर देनी शुरू कर दी थी.’’

यह सुनते ही मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई. मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही मुझे अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता दिखाई देने लगा. फिर मुझे किसी चीज की सुध नहीं रही और मैं बेहोश हो गई.

होश में आने पर मुझे पता चला कि मैं ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया था. ढोंगी बाबा ने मुझ से बदला लेने के लिए उस भभूत में संखिया जहर मिला दिया था. संखिया जहर के बारे में मैं ने सुना था कि यह जहर धीरेधीरे असर करता है. 1-2 बार बड़ों को देने पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. लेकिन छोटे बच्चों पर यह तुरंत अपना असर दिखाता है. इसी वजह से मैं ने मरा बच्चा पैदा किया था.

तभी ढोंगी बाबा के बारे में मुझे पता चला कि वह अपना डेरा उठा कर कहीं भाग गया है.

मैं ने सावन को हकीकत से वाकिफ कराया तो उस ने अपनी मां को आड़े हाथों लिया.

तब मेरी सास पश्चात्ताप में भर कर हम दोनों से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. पोते की चाह में मैं ने खुद को अंधविश्वास की बेडि़यों के हवाले कर दिया था. इन बेडि़यों की वजह से मैं ने जानेअनजाने में जो गुनाह किया है, उस की सजा तुम मुझे दे सकती हो… मैं उफ तक नहीं करूंगी.’’

मैं अपनी सास को क्या सजा देती. मैं ने उन्हें अंधविश्वास को तिलांजलि देने को कहा तो वे फौरन मान गईं. इस के बाद उन्होंने अपने मन से अंधविश्वास की जहरीली बेल को कभी फूलनेफलने नहीं दिया.

1 साल बाद मैं ने फिर गर्भधारण किया और 2 स्वस्थ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. मेरी सास मारे खुशी के पागल हो गईं. उन्होंने सारे गांव में सब से कहा कि वे अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि अंधविश्वास बिना मूठ की तलवार है, जो चलाने वाले को ही घायल करती है.

शापित- भाग 1: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

Writer-आशीष दलाल

‘मैं तो अभी छोटा ही हूं न अंकल,’ कहते हुए नमन मुसकरा दिया.

‘और भी छोटा.’

‘वो कैसे?’ रोहित की बात सुन कर नमन उलझ गया.

‘वो मैं सिखा दूंगा, पर पहले प्रामिस करो कि इस खेल के बारे में किसी से कुछ भी नहीं कहोगे,’ रोहित ने खड़े होते हुए फिर से नमन को गोद में ले लिया.

‘ओके. प्रामिस सीक्रेट,’ नमन ने अपने दाएं हाथ की उंगली रोहित के बाएं हाथ की उंगली से जोड़ते हुए जवाब दिया.

‘और अगर भूल से भी किसी को बताया, तो भगवान नाराज हो कर तुम्हें श्राप दे देंगे और तुम्हारे यह अंकल मर जाएंगे. फिर उस का पाप तुम्हें ही लगेगा,’ रोहित ने पास ही बेड की तरफ नमन को ले जाते हुए कहा.

‘नहीं कहूंगा अंकल. गौड प्रामिस. चलो न खेलते हैं,’ नमन नए खेल के बारे में जानने को उत्सुक था.

‘तो ठीक है. एक बार छोटे बच्चे की एक्टिंग कर के बताओ. इस बिस्तर पर लेट कर बताओ कि वह कैसे सोता है,’ रोहित ने अपनी गोद से उतार कर नमन को बिस्तर पर बैठा दिया.

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‘ये तो बड़ा ही आसान है,’ नमन चहकते हुए बिस्तर पर लेट गया. रोहित भी उस की बगल में लेट गया.

‘गुड बौय. अब छोटा सा बच्चा चड्डी में पेशाब कर देता है तो अंकल उस की चड्डी चेंज करेंगे,’ सहसा रोहित के हाथ नमन की चड्डी तक पहुंच गए और एक झटके में कमर से उतर कर उस की चड्डी घुटनों के नीचे तक पहुंच गई.

‘नहीं अंकल. मम्मी कहती हैं कि अब मैं बड़ा हो गया हूं. तो मुझे सब के सामने चड्डी नहीं उतारनी चाहिए,’ नमन ने प्रतिकार किया.

‘इतनी जल्दी भूल गया? इस खेल में तू छोटा बच्चा बना है और छोटे बच्चे के शूशू करने पर चड्डी उतारनी ही पड़ती है,’ रोहित ने नमन को अपनी बातों में लपेटते हुए उस पर अपनी पकड़ बनाते हुए कहा.

‘पर अंकल, मैं तो शूशू की ही नहीं…’

‘झूठमूठ में की है. ठीक है,’ रोहित ने नमन को समझाते हुए कहा.

‘पर, मुझे शर्म आ रही है,’ नमन ने रोहित की पकड़ से छूटने की कोशिश कर अपनी चड्डी ऊपर चढ़ाने की कोशिश की.

‘ये बात है तो चल मैं भी अपनी पेंट उतार देता हूं,’ कहते हुए रोहित ने अपनी पेंट ढीला कर घुटने तक उतार दिया. रोहित को इस अवस्था में देख नमन आश्चर्य से उसे घूरने लगा.

‘इस खेल का नियम है यह. अच्छा, अब तू चुपचाप रहेगा तो ही खेल का मजा आएगा,’ कहते हुए रोहित के हाथ नमन के कमर के नीचे भाग को सहलाने लगे. गुदगुदी होने का एहसास पा कर नमन चुपचाप रोहित की हरकतों का हिस्सा बनने लगा.

‘नहीं… अंकल. दुख रहा है,’ कुछ देर बाद नमन के मुंह से एक चीख निकल पड़ी.

पूरे वाकिए को याद करते हुए अपने हाथ में थाम रखे कांच के गिलास पर नमन की पकड़ मजबूत हो गई. चंद ही पलों में हथेली पर उभर आई पसीनें की बूंदों की वजह से गिलास नमन के हाथ से फिसल कर दूर जा गिरा और सारा दूध फर्श पर फैल गया.

‘आज फिर से गिलास तोड़ दिया? आखिर हो क्या गया है तुझे?’ गिलास के टूटने की आवाज सुन कर सुनंदा रसोई से नमन के कमरे में दौड़ी चली आई.

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नमन ने जैसे सुनंदा की मौजूदगी महसूस ही न की. उस की आंखें अब खिड़की से बाहर दूर कुछ खोज रही थीं.

‘नमन बेटा, क्या हो गया है रे तुझे?’ सुनंदा पिछले एक हफ्ते से नमन के बदले हुए व्यवहार को महसूस कर रही थी. उस ने नमन के कंधे पर हाथ रखते हुए स्नेह जताते हुए पूछा.

सुनंदा की बात सुन कर नमन सहम सा गया. वह सुनंदा के पास आ कर उस से लिपट गया.

‘क्या हुआ बेटा? किसी से झगड़ा हुआ है क्या?’ सुनंदा नमन के अचानक से बदले हुए व्यवहार को समझ नहीं पा रही थी. वह उस के बालों को सहलाने लगी.

‘मम्मी… रोहित अंकल…’ कहते हुए नमन चुप हो गया.

‘इत्ती सी बात. तेरे रोहित अंकल पूना चले गए, इसलिए दुखी है. बेटा, उन की पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी लग गई है तो उन्हें जाना तो था ही न. वे जब छुट्टी मिलने पर घर वापस आएं तो तब तू फिर खूब खेलना उन के संग,’ सुनंदा ने नमन को समझाते हुए कहा, तो नमन सिर हिला कर रोते हुए कहने लगा, ‘मैं नहीं खेलूंगा अंकल के साथ. मुझे यहां बहुत दुखता है, जब वो मेरे साथ खेलते हैं तो…’

सुनंदा ने गौर किया, नमन रोते हुए बारबार अपनी कमर के नीचे पीछे जांंघ वाले भाग को बारबार सहला रहा था. उसे नमन की यह हरकत और उस का रोना कुछ आशंकित कर गई.

‘क्या हुआ नमन…? ठीक से बता कि कौन सा खेल खेलता था रोहित तेरे संग?’ सुनंदा अपने बेटे के संग कुछ गलत होने की आशंका से घबरा उठी.

‘नहीं, मम्मी. बता दिया तो अंकल मर जाएंगे तो मुझे पाप लगेगा और फिर सब मुझे डांटेंगे,’ सुनंदा ने महसूस किया कि नमन की आंखें में एक डर समाया हुआ था.

“मैं जिंदा लौट रहा हूं” प्रधानमंत्री मोदी की क्रोधाग्नि

आज के भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्व का यही कमाल बार बार देखने को मिल रहा है. जब “देश” से हटकर “मैं” पर बात आ जाती है. और “मैं” से हटाकर “देश” पर लाकर खड़ी कर दी जाती है.
अगर हम दो टूक शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि-” मैं जिंदा लौट रहा हुं” बहुअर्थी है. इन शब्दों में उनका गुस्सा और आज की भारतीय राजनीति की त्रासदी समाई हुई है.

आज राजनीति उस दौर में पहुंच गई है जब प्रधानमंत्री सिर्फ भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री हो जाता है.और मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी का. एक समय था जब कोई विभूति जब इन पदों पर पहुंच जाती थी तो वह पार्टी बंदी की राजनीति से ऊपर उठकर के देश प्रदेश की मानी जाती थी और वह वैसा ही काम भी करते थे, वैसा ही उनके आचरण में दिखाई भी देता था. मगर प्रधानमंत्री का पंजाब में रैली में नहीं पहुंच पाने के बाद जो कुछ कहा गया वह यह बताता है कि जहां पंजाब में किसानों ने रास्ता रोक करके प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को रोक दिया तो कल्पना कीजिए कि अगर ऐसे में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अथवा लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री होते तो क्या करते?

इस मसले को सकारात्मक भाव से लेने की अपेक्षा इसमें राजनीति को लाना और नकारात्मक भाव से लाना देश की भावी राजनीति के लिए अच्छा नहीं होगा यह तय है. ऐसे में इस गंभीर मसले पर पटाक्षेप बड़ी आसानी से हो सकता था जब प्रधानमंत्री 20 मिनट काफिले में रहने की अपेक्षा किसानों के बीच पहुंच जाते और उनसे संवाद करते , निसंदेह इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पंजाब पहुंचना सार्थक हो जाता फिर चाहे रैली को आप संबोधित कर पाते अथवा नहीं, यह दिगर मसला है.

सुरक्षा में सेंध नहीं कही जा सकती

प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री का काफिला करीब बीस मिनट तक घेरे रखा. मीडियो में जो खबरें आ रही है उसके अनुसार- “सुरक्षा में सेंध और बारिश के चलते प्रधानमंत्री की फिरोजपुर रैली रद्द कर दी गई और वह वापस लौट गए.”

और फिर प्रधानमंत्री कार्यक्रम भी मीडिया के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से देश की जनता ने देखा सुना, बठिंडा हवाई अड्डे पर पंजाब के अधिकारियों से कहा, ‘आप अपने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करें क्योंकि मैं जिंदा वापस लौट रहा हूं।’

दरअसल, हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक से कुछ दै किलोमीटर दूर जब प्रधानमंत्री काफिला फ्लाईओवर पर पहुंचा, तो वहां कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया. प्रधानमंत्री काफिले समेत करीब 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसे रहे. अब इसे सुरक्षा में चुक कहा जा रहा है, इस मसले को अगर गंभीरता से देखा और विवेचना की जाए तो कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री जी की इतनी लंबी सड़क यात्रा और खराब मौसम को देखते हुए किसी भी हालत में सड़क के दोनों और फोर्स की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी.

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री को सीधा हवाई मार्ग से ही रैली स्थल पर पहुंचना था. मौसम भी साथ नहीं दे रहा था. ऐसी परिस्थितियों में सड़क मार्ग पर अगर किसानों ने रास्ता रोक रखा था तो क्या प्रधानमंत्री उनसे बातचीत करते तो कितना अच्छा होता. यह समझ से दूर है कि बात करने में क्या दिक्कत थी और सच तो यह है कि इससे एक यह संदेश चला जाता कि प्रधानमंत्री आम लोगों के साथ मिलते हैं उठते बैठते हैं. आखिर प्रधानमंत्री इस देश की आवाम की सदारत ही तो कर रहे हैं.

जब आप मन की बात करते हैं अक्सर टीवी पर आकर के लोगों से मिलते हैं, बात करते हैं अपना संदेश देते हैं तो सड़क पर आकर संवाद करने में गुरेज क्यों, क्या यह एक ऐसी बड़ी चुक नहीं है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की छवि और भी निखर कर दुनिया के सामने आ जाती. और पंजाब सरकार द्वारा अगर कोई षड्यंत्र भी किया गया है तो वह छिन्न-भिन्न हो जाता.

Bigg Boss 15: चैनल के खिलाफ बोली Tejasswi Prakash तो सलमान खान ने लगाई क्लास

बिग बॉस (Bigg Boss 15)  के इस वीकेंड का वार का फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है. इसमें सलमान खान (Salman Khan) तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) की क्लास लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं.

अपना आपा खोते हुए दिखाई देंगे. सलमान खान चैनल के खिलाफ किए गए कमेंट्स पर तेजस्वी प्रकाश की क्लास लेते नजर आएंगे. इतना ही नहीं सलमान खान ने उन्हें ‘बेईमान’ भी कहा.

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शो के लेटेस्ट प्रोमो के अनुसार, सलमान खान तेजस्वी प्रकाश से कहते हैं कि वह इस चैनल को कोस रही हैं, जिससे पता चलता है कि वह अनफैथफुल हैं.उन्होंने कहा, ‘जिस थाली में खाया जा रहा है, उसमें कोई छेद करता है?

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दरअसल तेजस्वी ने शमिता शेट्टी को लेकर चैनल पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था. उन्होंने सहानुभूति कार्ड खेलना बंद करने के लिए कहा था.  तेजस्वी ने कहा कि उन्हें किसी से सहानुभूति नहीं चाहिए. इसके बाद सलमान खान ने कहा, चुप रहो तेजस्वी. सलमान ने आगे ये भी कहा कि तेजस्वी अपने बॉयफ्रेंड करण कुंद्रा का भी सम्मान नहीं करती हैं.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि घर के अंदर एक इमरजेंसी स्क्रीनिंग टेस्ट चलाया जाएगा. वीकेंड का वार में गौहर खान भी घर के अंदर स्पेशल गेस्ट के तौर पर नजर आएंगी. वह एक टास्क करेगी जिसमें तेजस्वी कहती हैं कि उनकी अपनी कोई पहचान नहीं है और उन्हें चुप रहना चाहिए.

Imlie: इमली ने किया आर्यन पर हमला, अनु की चाल का हुआ पर्दाफाश

टीवी सीरियल इमली (Imlie) में बड़ा-बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि पार्टी के दौरान अनु फर्श पर कपड़े की एक शीट पर आग लगा देती है जिसे देखकर अर्पिता कांपने लगती है. और वह आर्यन का नाम लेकर चिल्लाने लगती है. तभी इमली कुछ ऐसा करती है, जिसे अर्पिता का डर खत्म हो जाता है. आइए बताते हैं शो के लेटेस्ट एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि आग देखकर अर्पिता डर जाती है, उसकी हालत देखकर इमली सोचती है कि अर्पिता के दिमाग से डर को कैसे भगाया जाए. तो दूसरी तरफ आर्यन अर्पिता की मदद करने जाता है तो इमली उसे रोक देती है. वह खुद अर्पिता का डर भगाने के लिए आर्यन पर हमला करती है.

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दरअसल इमली भाले से आर्यन  के सीने पर वार करती है जिससे उसका खून निकलने लगता है. ये देखकर अर्पिता से रहा नहीं जाता और वह दौड़कर इमली को धक्का मार देती है और आर्यन (Aryan) को बचा लेती है. और उसके गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगती है.

 

तभी इमली कहती है कि मैंने ये सब  आपके भाई के साथ किया ताकि आप अपने डर को हरा सके. वहां मौजूद सभी लोग इमली की तारीफ करने लगते हैं.

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तो दूसरी तरफ मालिनी को इमली से जलन होती है. वह  अनु से कहती है कि इमली बहुत लकी है और फिर वह सबकी हीरो बन गई है.तो वहीं अनु फिर एक नई चाल चलती है. वह मालिनी के नंबर कॉल करके अपने फोन को एक कमरे में छिपा देती है.

 

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तो वहीं इमली मां मीठी का कॉल आएगा. मीठी बताती है कि आदित्य सो रहा है और ठीक है. मीठी ये भी कहती है कि वह अभी भी तुम्हारा नाम ले रहा है उसके दिल में सिर्फ तुम हो. इस बीच इमली को वो मोबाइल मिल जाता है जिसे अनु ने उसकी बातें सुनने के लिए रखा था. शो में ये देखना होगा कि अब इमली अनु को कैसे सबक सीखाती है.

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Valentine’s Special: डिवोर्सी- भाग 2: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही तलाक क्यों ले लिया

‘‘आप से एक बात पूछूं मुक्ति?’’ एक दोपहर लंच के समय मैं ने कहा. ‘‘मेरे डिवोर्स के बारे में?’’ उन्होंने सहज भाव से कहा.

फिर हंसते हुए बोलीं, ‘‘एक पुरुष को स्त्री के बारे में जानने की उत्सुकता रहती ही है, पूछिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं. सिर से ले कर पैरों तक आप में कोई कमी नहीं. व्यावहारिक भी हैं. पढी़लिखी भी हैं. फिर आप के पति ने आप को तलाक कैसे दे दिया?’’

उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘सुंदरता का डिवोर्स से कोई तालमेल नहीं होता. और दूसरी बात यह कि तलाक मेरे पति ने नहीं, मैं ने दिया है उन्हें.’’

अब मैं विस्मय में था, ‘‘आप ने? क्या आप के पति शराबी, जुआरी टाइप व्यक्ति हैं?’’ ‘‘हैं नहीं थे. अब वे मेरे पति नहीं हैं. नहीं, वे शराबी, कबाबी, जुआरी टाइप नहीं थे.’’

‘‘तो किसी दूसरी औरत से …’’ मेरी बात बीच ही में काटते हुए उन्होंने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘तो दहेज की मांग?’’ ‘‘नहीं,’’ मुक्ति ने कहा.

‘‘तो आप की पसंद से शादी नहीं हुई थी?’’ ‘‘नहीं, हमारी लव मैरिज थी,’’ मुक्ति ने बिलकुल सहज भाव से कहा. कहते हुए उन के चेहरे पर हलका सा भी तनाव नहीं था. अब मेरे पास पूछने को कुछ नहीं था. सिवा इस के कि फिर डिवोर्स की वजह? लेकिन मैं ने दूसरी बात पूछी, ‘‘आप के मातापिता को चिंता रहती होगी.’’

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‘‘रहती तो होगी,’’ मुक्ति ने लापरवाही से कहा, ‘‘हर मांबाप को रहती है. लेकिन उतनी नहीं, बल्कि उन का यह कहना है कि अपनी पसंद की शादी की थी. अब भुगतो. फिर उन्हें शायद अच्छा लगा हो कि बेटी ने बगावत की. विद्रोह असफल हुआ. बेटी हार कर घर वापस आ गई. जैसा कि सहज मानवीय प्रकृति होती है. बेटी घर पर है तो घर भी देखती है और अपना कमा भी लेती है. एक भाई है जो अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता है.’’ अब मुझे पूछना था क्योंकि मुख्य प्रश्न यही था, ‘‘फिर डिवोर्स की वजह?’’ उस ने उलटा मुझ से प्रश्न किया, ‘‘पुरुष क्यों डिवोर्स देते हैं अपनी पत्नी को?’’

मैं कुछ देर चुप रहा. फिर कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद उन्हें किसी दूसरी स्त्री से प्रेम हो जाता होगा इसलिए.’’ ‘‘बस यही एक वजह है.’’

‘‘दूसरी कोई वजह हो तो मुझे नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा. फिर मेरे मन में अनायास ही खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुक्ति को किसी और से प्यार हो गया हो शादी के बाद. हो सकता है कि बड़े घर में शादी हुई हो. सोचा होगा तलाक में लंबी रकम हासिल कर के आराम से अपने प्रेमी से विवाह… लेकिन नहीं, इतने समय में तो कोई नहीं दिखा ऐसा और न ही कभी मुक्ति ने बताया… न कोई उस से मिलने आया.

मुक्ति ने मुझे विचारों में खोया देख कर कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है कार्तिक जैसा आप सोच रहे हैं.’’ ‘‘मैं क्या सोच रहा हूं?’’ मुझे लगा कि मेरे मन की बात पकड़ ली मुक्ति ने. मैं हड़बड़ा गया.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी दूसरे पुरुष से प्रेम नहीं हुआ. जैसा कि आजकल महिलाएं करती हैं. तलाक लो… तगड़ा मुआवजा मांगो. मेरा भूतपूर्व पति सरकारी अस्पताल में लोअर डिवीजन क्लर्क था. था से मतलब वह जिंदा है, लेकिन मेरा पति नहीं है.’’ मैं समझ नहीं पा रहा था कि फिर तलाक की क्या वजह हो सकती थी?

‘‘समाज डिवोर्सी स्त्री के बारे में क्या सोचता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कौन सा समाज? मुझे क्या लेनादेना समाज से? समाज का काम है बातें बनाना. समाज अपना काम बखूबी कर रहा है और मैं अपना जीवन अपने तरीके से जी रही हूं,’’ उन्होंने समाज को ठेंगा दिखाने वाले अंदाज में कहा.

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‘‘लेकिन कोई तो वजह होगी तलाक की… इतना बड़ा फैसला… शादी 7 जन्मों का बंधन होता है,’’ मैं ने कहा. ‘‘शादी 7 जन्मों का बंधन… आप पुरुष लोग कब तक 7 जन्मों की आड़ ले कर हम औरतों को बांध कर रखेंगे? ये औरतों को बेवकूफ बनाने की बात है,’’ मुक्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा.

‘‘आप तो नारीवादी विचारधारा की हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं बिलकुल भी पुरुषविरोधी विचारधारा की नहीं हूं.’’

लंच समाप्त हो चुका था. मैं ने उठते हुए पूछा, ‘‘मुक्ति, शादीशुदा रही हैं आप… अपनी शारीरिक इच्छाएं कैसे…’’ मुझे लगा कि प्रश्न मर्यादा लांघ रहा है. अत: मैं बीच ही में चुप हो गया.

लेकिन उन्होंने मेरी बात का उत्तर अपने हाथ की मध्यमा और तर्जनी उंगली उठा कर दिया और फिर नारी सुलभ हया से अपना चेहरा झुका लिया.

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