Writer- रोहित और शाहनवाज

एक साल से ज्यादा चले किसान आंदोलन ने कई उतारचढ़ाव देखे, बहुतकुछ सहा पर आखिरकार जीत हासिल की. जीत का बड़ा श्रेय किसान नेताओं को जाता है जिन्होंने अपनी सू?ाबू?ा से फैसले लिए. इस में उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव सिसौली से संबंध रखने वाले राकेश टिकैत किसानों के एक बड़े नेता के तौर पर उभरे और जमीनी फैसलों से सरकार के दांवपेंच फेल कर दिए. पेश है किसान आंदोलन पर यह ग्राउंड रिपोर्ट.

दिल्ली के बौर्डरों पर किसानों को बैठे पूरे 2 महीने बीत चुके थे, पर 28 जनवरी, 2021 वाली वह रात भयानक और कई आशंकाओं से घिरती चली जा रही थी. नहीं, उस दिन

3 डिग्री तापमान में कंकपाती सर्दी की फिक्र किसानों को नहीं थी, क्योंकि उन्हें तो सर्द ठिठुरते दिनों में पौ फटने से पहले ही फसल कटाई के लिए जाना पड़ता है. उन्हें फिक्र थी उस अंतहीन रात की जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी और बाकी दिनों के मुकाबले ज्यादा अंधेरी व लंबी लग रही थी.

दरअसल, 26 जनवरी की घटना के बाद सरकार को यह पहला मौका हाथ लगा था जब वह किसानों पर धरना खत्म करने का दबाव बना सकती थी, उन्हें भीतर तक डरा सकती थी और उन से बौर्डर खाली कराने का माहौल तैयार कर सकती थी. किसान भी हताश थे और पहले के मुकाबले आत्मविश्वास की कमी ?ालकने लगी थी. इस मौके को लपकने के लिए तीनों मजबूत बौर्डरों में से सब से पहले सौफ्ट टारगेट के तौर पर ‘गाजीपुर बौर्डर’ को निशाना बनाया गया.

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