आज के भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्व का यही कमाल बार बार देखने को मिल रहा है. जब “देश” से हटकर “मैं” पर बात आ जाती है. और “मैं” से हटाकर “देश” पर लाकर खड़ी कर दी जाती है.
अगर हम दो टूक शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि-” मैं जिंदा लौट रहा हुं” बहुअर्थी है. इन शब्दों में उनका गुस्सा और आज की भारतीय राजनीति की त्रासदी समाई हुई है.
आज राजनीति उस दौर में पहुंच गई है जब प्रधानमंत्री सिर्फ भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री हो जाता है.और मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी का. एक समय था जब कोई विभूति जब इन पदों पर पहुंच जाती थी तो वह पार्टी बंदी की राजनीति से ऊपर उठकर के देश प्रदेश की मानी जाती थी और वह वैसा ही काम भी करते थे, वैसा ही उनके आचरण में दिखाई भी देता था. मगर प्रधानमंत्री का पंजाब में रैली में नहीं पहुंच पाने के बाद जो कुछ कहा गया वह यह बताता है कि जहां पंजाब में किसानों ने रास्ता रोक करके प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को रोक दिया तो कल्पना कीजिए कि अगर ऐसे में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अथवा लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री होते तो क्या करते?
इस मसले को सकारात्मक भाव से लेने की अपेक्षा इसमें राजनीति को लाना और नकारात्मक भाव से लाना देश की भावी राजनीति के लिए अच्छा नहीं होगा यह तय है. ऐसे में इस गंभीर मसले पर पटाक्षेप बड़ी आसानी से हो सकता था जब प्रधानमंत्री 20 मिनट काफिले में रहने की अपेक्षा किसानों के बीच पहुंच जाते और उनसे संवाद करते , निसंदेह इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पंजाब पहुंचना सार्थक हो जाता फिर चाहे रैली को आप संबोधित कर पाते अथवा नहीं, यह दिगर मसला है.
सुरक्षा में सेंध नहीं कही जा सकती
प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री का काफिला करीब बीस मिनट तक घेरे रखा. मीडियो में जो खबरें आ रही है उसके अनुसार- “सुरक्षा में सेंध और बारिश के चलते प्रधानमंत्री की फिरोजपुर रैली रद्द कर दी गई और वह वापस लौट गए.”
और फिर प्रधानमंत्री कार्यक्रम भी मीडिया के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से देश की जनता ने देखा सुना, बठिंडा हवाई अड्डे पर पंजाब के अधिकारियों से कहा, ‘आप अपने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करें क्योंकि मैं जिंदा वापस लौट रहा हूं।’
दरअसल, हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक से कुछ दै किलोमीटर दूर जब प्रधानमंत्री काफिला फ्लाईओवर पर पहुंचा, तो वहां कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया. प्रधानमंत्री काफिले समेत करीब 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसे रहे. अब इसे सुरक्षा में चुक कहा जा रहा है, इस मसले को अगर गंभीरता से देखा और विवेचना की जाए तो कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री जी की इतनी लंबी सड़क यात्रा और खराब मौसम को देखते हुए किसी भी हालत में सड़क के दोनों और फोर्स की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी.
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री को सीधा हवाई मार्ग से ही रैली स्थल पर पहुंचना था. मौसम भी साथ नहीं दे रहा था. ऐसी परिस्थितियों में सड़क मार्ग पर अगर किसानों ने रास्ता रोक रखा था तो क्या प्रधानमंत्री उनसे बातचीत करते तो कितना अच्छा होता. यह समझ से दूर है कि बात करने में क्या दिक्कत थी और सच तो यह है कि इससे एक यह संदेश चला जाता कि प्रधानमंत्री आम लोगों के साथ मिलते हैं उठते बैठते हैं. आखिर प्रधानमंत्री इस देश की आवाम की सदारत ही तो कर रहे हैं.
जब आप मन की बात करते हैं अक्सर टीवी पर आकर के लोगों से मिलते हैं, बात करते हैं अपना संदेश देते हैं तो सड़क पर आकर संवाद करने में गुरेज क्यों, क्या यह एक ऐसी बड़ी चुक नहीं है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की छवि और भी निखर कर दुनिया के सामने आ जाती. और पंजाब सरकार द्वारा अगर कोई षड्यंत्र भी किया गया है तो वह छिन्न-भिन्न हो जाता.