Writer- डा. दीपक प्रकाश
फर्टिलिटी टूरिज्म या रिप्रोडक्टिव टूरिज्म आजकल आस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंगलैंड, इटली, फ्रांस, जरमनी के साथ दूसरे विकसित यूरोपीय देशों के निसंतान टूरिस्टों को अट्रैक्ट करने का नया मंत्र साबित हो रहा है. फलस्वरूप, भारत में यह टैक्नोलौजी एक उद्योग का रूप धारण करती जा रही है.
एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी के अंतर्गत आने वाले इस नए उद्योग की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिमांड तेजी से बढ़ रही है. बहुत थोड़े समय में अकेले भारत में ही 2018 तक इस का कारोबार 3 अरब 6 सौ करोड़ रुपए पार कर चुका जो जानकारों के अनुसार 2026 तक लगभग 9 अरब रुपए तक पहुंच जाएगा. इस समय इसे कराने वालों में से 70 फीसदी विदेशी होते हैं और 30 फीसदी भारतीय मूल के भारतीय.
एक अर्थशास्त्री के अनुसार, ‘‘फिलहाल भारत में इस का मार्केट लगभग आधा बिलियन डौलर का है,’’ जानकार यह भी बताते हैं कि यदि इसी गति से विकास की रफ्तार बढ़ती रही तो आने वाले समय में ये आंकड़े कई गुणा बढ़ सकते हैं. सरकार इस पर रोक नैतिक दृष्टि से लगाने की कोशिश कर रही है जो इसे केवल काला बाजार व्यापार में धकेल देगा और लाभ कुछ न होगा.
कमर्शियल सैरोगेसी दुनिया के कई देशों में काननून अवैध है. कई देशों में इस के नियम काफी सख्त हैं. आस्ट्रेलिया में यह गैरकानूनी है. यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली आदि देशों में कमर्शियल टूरिज्म की इजाजत नहीं है.
अमेरिका के अलगअलग राज्यों में अलगअलग कानून हैं. इस के अतिरिक्त कई ऐसे भी देश हैं जहां सर्वथा आधुनिक इस टैक्नोलौजी को ले कर अभी तक कोई स्पष्ट नियम या कानून नहीं बना है. इस में भारत में एक कानून विचाराधीन है. इसीलिए ऐसे देश जहां इस को अवैध माना जाता है या फिर जहां इस को ले कर काफी सख्त नियम हैं, वहां के निसंतान टूरिस्ट भारत का रुख करते हैं.
भारत में इस बाजार के तेजी से फैलने तथा टूरिस्टों को आकर्षित करने के कई कारण हैं जिन में अत्यधिक कम कीमत पर आसानी से सैरोगेट मदर तथा इंटरनैशनल क्वालिटी की मैडिकल फैसिलिटीज की उपलब्धता मुख्य हैं.
इस के अतिरिक्त कई दूसरे कारणों से भी विदेशी निसंतान दंपती भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिस कारण इस का बाजार भारत में बूमिंग बिजनैस की तरह उभर रहा है और फास्ट ग्रोइंड इंडस्ट्री का रूप धारण कर रहा है.
भारत में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की लागत औसतन ढाई लाख से 4 लाख रुपए है जबकि विदेशों में औसतन 5 लाख से 10 लाख रुपए है. भारत में ऐसी औरतों की कमी नहीं है जो फ्रोजन एग को आरोपित कराने और गर्भधारण करने में एक आया से जरा सी ज्यादा कीमत पर तैयार हो जाएं. भारतीय औरतें वैसे भी 10-12 बच्चे पैदा करने की आदी रही हैं. आईवीएफ तकनीक से सैरोगेसी कोविड के दिनों में कम आवश्यक हो गई है और जैसेजैसे बौर्डर खुलेंगे विदेशी ग्राहक लौटेंगे.
सब से पहले बात एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी की. यह ऐसी आधुनिक विधि है जिस की सहायता से आंशिक या पूरी तरह प्रजनन के लिए असक्षम निसंतान दंपती की इच्छा आर्टिफिशियल टैक्नोलौजी की सहायता से पूरी की जाती है. निसंतान दंपती में आई खराबी को दूर करने के लिए जिस विधि की सहायता ली जाती है, उसे सहायक रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी कहा जाता है, जिस में कृत्रिम गर्भाधान, स्पर्म डोनेशन, एग डोनेशन, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन आदि शामिल हैं.
पुरुषों के शुक्राणुओं में मामूली गड़बड़ी, जैसे उन की संख्या में कमी, शुक्राणुओं में रचनात्मक विकृति या फिर सक्रियता में कमी होने की स्थिति में या तो दवाइयों के सहारे संख्या बढ़ाई जाती है या फिर स्पर्म वाश कर कृत्रिम विधि से गर्भाशय में प्रत्यारोपित करा कर निषेचन कराया जाता है और गर्भधारण की क्रिया पूरी की जाती है.
इसी तरह महिलाओं में भी किसी तरह की गड़बड़ी होने की स्थिति में एग डोनेशन या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा लैबोरेटरी में एंब्रियो तैयार कर उसे कृत्रिम विधि से गर्भाशय में प्रतिस्थापित कराया जाता है ताकि गर्भधारण की क्रिया पूरी हो सके. लेकिन कई बार इतनी सारी प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद किसी महिला का गर्भाशय भ्रूण को स्वीकार नहीं कर पाता. ऐसा गर्भाशय की कई बीमारियों या कैंसर की वजह से होता है.
आंकड़े बताते हैं कि लगभग
20 फीसदी महिलाओं में इस की सहीसही जानकारी चिकित्सक को भी नहीं मिल पाती. ऐसी स्थिति में सैरोगेट मदर की हैल्प लेनी पड़ती है और इसी से सैरोगेसी और सैरोगेट मदर का बाजार भारत में तेजी से फलफूल रहा है और पूरी दुनिया में इस की धूम मची हुई है. भारतीय 3-4 करोड़ युगल आज निसंतान हैं पर न बच्चा गोद ले सकते हैं न सैरोगेसी कर सकते हैं. वे तो डाक्टर के पास जा कर इलाज भी नहीं करा पाते.
सैरोगेट एक लैटिन शब्द है जिस का अर्थ होता है अल्टरनैटिव, सब्सटिट्यूट या वैकल्पिक. अर्थात एक के स्थान पर दूसरे की नियुक्ति. सैरोगेट मदर उस महिला को कहते हैं जो किसी दूसरी महिला के लिए बच्चा पैदा करती है. इस स्थिति में वह किसी महिला के अंडे या एंब्रियो को अपने गर्भ में धारण करती है और प्रसव के बाद नवजात शिशु को उस औरत को हस्तांतरित कर देती है जिस के साथ उस का करार रहता है. न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार सैरोगेट मदरहुड उस प्रैक्टिस को कहा जाता है जिस के अंतर्गत प्रजनन के लिए अनुपयुक्त दंपती के बच्चे को कोई महिला अपने गर्भ में पालती है और प्रसवोपरांत उसे उस दंपती को सौंप देती है.
सैरोगेसी कई तरह की होती है. जब एक महिला के ओवरी से प्राप्त अंडे को कृत्रिम विधि से लैबोरैटरी में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा निषेचन करा कर एंब्रियो या फर्टिलाइज्ड एग को विकसित होने के लिए किसी दूसरी महिला के गर्भ में ट्रांसप्लांट किया जाता है तो उसे गस्टेशनल सैरोगेसी कहा जाता है. एंब्रियो को सैरोगेट मदर के गर्भ में अल्ट्रासाउंड और लैप्रोस्कोप की मदद से ट्रांसफर किया जाता है ताकि इस भ्रूण का विकास गर्भाशय के अंदर सामान्य रूप से हो सके.
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एंब्रियो प्रदान करने वाली महिला जैनेटिक मदर, स्पर्म प्रदान करने वाला पुरुष जैनेटिक फादर और गर्भधारण करने वाली महिला सैरोगेट मदर कहलाती है.
ट्रैडिशनल सैरोगेसी उस स्थिति को कहते हैं जब कोई औरत किसी दूसरे पुरुष के शुक्राणु की सहायता से आर्टिफीशियल इंसिमिनेशन द्वारा गर्भधारण करती है और प्रसव के बाद पुरुष के शुक्राणु की सहायता से आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन द्वारा गर्भधारण करती है और प्रसव के बाद बच्चे को उसे हस्तांतरित कर देती है.
इस सैरोगेसी में बच्चे का जेनेटिक संबंध केवल पिता से होता है. आर्थिक नजरिए से भी इसे 2 तरह से देखा जाता है. दूसरे के बच्चे के लिए गर्भधारण यदि आर्थिक लाभ के लिए किया जाता है तो उसे कमर्शियल सैरोगेसी की श्रेणी में रखा जाता है, वहीं जब इस के लिए कोई कीमत नहीं वसूली जाती है तो उसे अल्ट्रियसस्टिक सैरोगेसी कहा जाता है.
कमर्शियल सैरोगेसी के अंतर्गत सैरोगेट मदर को गर्भधारण करने से ले कर बच्चा पैदा करने तक की कीमत दी जाती है. इसलिए इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘किराए की कोख’ भी कहा जाता है. किराए की कोख की कीमत वैसे दंपती अदा करते हैं जो किसी न किसी कारण से बच्चा पैदा करने के लायक नहीं होते या तो वीर्य में कोई खराबी होती है या महिला की कोख किसी न किसी कारण से गर्भधारण करने लायक नहीं रहती.
यदि किसी महिला में अंडे का निर्माण होता है, किंतु उस की कोख गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होती तो वैसी स्थिति में भी किराए की कोख की सहायता ली जाती है. वहीं यदि किसी कारणवश अंडे के निर्माण की भी समस्या होती है और गर्भाशय भी गर्भधारण करने लायक नहीं होता है, किंतु पति के वीर्य में कोई खराबी नहीं होती है तो सैरोगेट मदर के अंडे को पति के वीर्य से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कराने के बाद किराए की कोख में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है.
कई महिलाएं या कपल गर्भधारण करने से डरते हैं. वे इस ?ां?ाट में पड़ना नहीं चाहते. कई महिलाएं कैरियर के कारण 9 माह तक गर्भधारण करने और बच्चे पैदा करने को ?ां?ाटभरा काम सम?ाती है. लेकिन वे चाहती हैं कि अपनी संतान जरूर हो. यानी वे संतान तो चाहती हैं, पर प्रसवपीड़ा को ?ोलना नहीं चाहतीं. इस तरह के दंपती अमीर और उच्चवर्ग के होते हैं. इन के पास पैसे की कमी नहीं होती. ये लोग सैरोगेट मदर की सहायता से बच्चा पैदा करने में ज्यादा रुचि लेते हैं.
इस के अतिरिक्त कई अविवाहित महिलाएं, गे या लैस्बियंस भी आजकल असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी की मदद से बच्चे पैदा करने की ओर अग्रसर दिख रहे हैं. वे इस के लिए आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन या फिर डोनर स्पर्म की मदद ले रहे हैं. ऐसी स्थिति में कई बार सैरोगेट मदर की सहायता भी लेने की घटनाएं देखने को मिलती हैं. इस में नैतिकता के सवाल कम ही हैं क्योंकि अच्छे घरों के 90 फीसदी बच्चे पैदा होने के बाद भी आयाओं के पास ही पलते हैं. मां तो सिर्फ नाम की रह जाती है. ऐसे में फर्टिलाइज्ड एग पतिपत्नी का है और कोख किसी की तो यह अनैतिक नहीं हुई.
रिप्रोडक्टिव टूरिज्म के माने
रिप्रोडक्टिव टूरिज्म क्या है? इसे कमर्शियल रिप्रोडिक्टव टूरिज्म या कमर्शियल सैरोगेसी भी कहा जाता है. संतान के लिए एक जगह से दूसरी जगह की जाने वाली यात्रा को रिप्रोडक्टिव टूरिज्म कहा जाता है. चूंकि इस के लिए सैरोगेट मदर को कीमत चुकाई जाती है, इसलिए इसे व्यवसाय के रूप में देखा और जाना जाता है और कमर्शियल सैरोगेसी या कमर्शियल रिप्रोडिक्टव टूरिज्म की श्रेणी में रखा जाता है. भारत में इस का प्रचलित नाम ‘किराए की कोख’ भी है. विदेशों में वौम्ब्स फौर रैंट, आउटसोर्स्ड प्रैग्नैंसी, बेबी फौर्म आदि नामों से पुकारा जाता है.
अब बात करते हैं इनफर्टिलिटी की. इस दशक में तेजी से इस का प्रतिशत बढ़ा जो कोविड के कारण रुक गया है. जनसंख्या के साथसाथ इस की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है. इसीलिए अब यह एक ग्लोबल प्रौब्लम मानी जाती है, जिस से विकासशील देशों के साथसाथ विकसित देश भी जू?ाते जा रहे हैं.
आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में रिप्रोडक्टिव उम्र की जनसंख्या में
10 फीसदी आबादी संतान पैदा करने लायक नहीं है यानी प्रत्येक 10 कपल्स में एक प्राइमरी या सैकंडरी इनफर्टिलिटी की समस्या से जू?ा रहा है. हालांकि, विकासशील देशों में इस की संख्या ज्यादा है. विकसित देशों में 30 से 40 वर्ष की अवस्था वाले कपल्स में इस की दर
5 फीसदी से ज्यादा है. यहां यह भी बता दें कि पूरी दुनिया में सब से ज्यादा बां?ापन के शिकार मरीज साउथ अफ्रीका में हैं.
प्रजनन के लिए विदेश यात्रा की जरूरत क्यों? दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां सैरोगेसी की अनुमति नहीं है. कई देशों में इस के नियम कड़े हैं. दूसरी ओर कई ऐसे भी देश हैं जहां सैरोगेसी को ले कर बनाए गए कानून उतने सख्त नहीं हैं.
कई देशों में इसे कानूनी मान्यता भी मिली हुई है. संयुक्त राज्य अमेरिका में इसे पूरी तरह अवैध नहीं माना जाता. इस के कई राज्यों में इस की अनुमति है तो कई राज्यों में नहीं है. यूनाइटेड किंगडम में सैरोगेट मदर को बच्चे की मां कहलाने की कानूनी मान्यता प्राप्त है. पर कई देशों में यह कानून लागू नहीं होता. सैरोगेट मदर उस जन्मे बच्चे की मां नहीं कहला सकती.
जिन देशों में सैरोगेसी पर पाबंदी नहीं है या इस टैक्नोलौजी को कानूनी मान्यता मिली हुई है, वहां दूसरी तरह की सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का सामना संतान के इच्छुक दंपती को करना पड़ता है जिस से निबट पाना सब के बस की बात नहीं होती. इस में 2 मत नहीं कि दुनिया के अधिकतर विकसित देशों में सैरोगेट मदर की काफी कमी है.
काफी कोशिश के बाद मुश्किल से सैरोगेट मदर मिल पाती है. मिलती भी है तो ऊंची कीमत पर जिसे चुकाना सब के बूते की बात नहीं. कई देशों में पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक समस्याएं आड़े आ जाती हैं. कई ऐसे भी विकसित तथा विकासशील देश हैं जहां इस के लिए विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं.
दूसरी ओर कई ऐसे देश हैं जहां एकतिहाई या चौथाई खर्च पर आसानी से सैरोगेट मदर उपलब्ध हो जाती हैं, जहां प्रसव के लिए हाईग्रेड अस्पताल, विश्वस्तरीय तथा अनुभवी चिकित्सक की समुचित तथा उत्तम व्यवस्था है. इस में भारत का नाम सर्वोपरि है. भारत में साधारण क्लीनिक भी यही काम कर लेते हैं क्योंकि इस काम में अब बहुत अधिक हुनर की आवश्यकता नहीं रह गई है.
भारत ही क्यों
अब प्रश्न उठता है कि भारत ही क्यों? दुनिया के तमाम देशों के बीच भारत क्यों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है? आखिर कैसे इतने कम समय में इस का इतना विस्तार हो गया कि अब यह उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है?
इस के कई कारण हैं :
कानूनन वैधता, विश्वस्तरीय चिकित्सीय व्यवस्था, कम कीमत पर उच्चस्तरीय चिकित्सीय व्यवस्था और सैरोगेट मदर की आसानी से उपलब्धता. इस के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त दर्जनों अस्पताल उपलब्ध हैं, जहां न तो ज्यादा खर्च आता है और न ही लंबी वेटिंग लिस्ट ही होती है. यही कारण है कि यहां के अस्पतालों में दुनिया के विकासशील ही नहीं, विकसित देशों के भी संतान के इच्छुक दंपती यहां का रुख करते हैं. यहां के अस्पतालों के सामने आर्थिक संकट हर समय रहते हैं और अतिरिक्त उपाय के लिए वे यह काम लेने लगे हैं.