Download App

Winter 2022: बथुआ से बनाएं ये 2 टेस्टी रेसिपी

सर्दियों के मौसम में बथुआ आसानी से मिल जाती है, अगर आप केवल बथुआ का साग खाकर बोर हो गये हैं तो हम आपको बताएंगे बथुआ से बनने वाले कई तरह की रेसिपी के बारे में.

  1. बथुआ आलू परांठा 

सामग्री

– 2 कप आटा

– 2 बड़े चम्मच दही

-आटा गूंथने के लिए पानी

– नमक (स्वादानुसार)

भरावन की सामग्री

– धुला व बारीक कटा बथुआ (4 कप)

–  आलू (1मीडियम आकार का)

– अदरक व हरी मिर्च (1 बड़ा चम्मच)

– धनिया जीरा (बारीक कटी 1 बड़ा चम्मच)

– दरदरा कुटा (1/4 छोटा चम्मच)

– हींग पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– गरममसाला  (1 छोटा चम्मच)

– चाटमसाला (1 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

– परांठा सेंकने के लिए (रिफाइंड औयल)

बनाने की विधि

– आटा गूंथ कर रख लें.

– एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम करें.

– हींग का तड़का लगा कर बथुआ व आलू छोटेछोटे काट डाल दें.

– ढक कर मीडियम आंच पर पकाएं.

– जब आलू गल जाएं और बथुए का पानी सूखने लगे तब उस में नमक डाल दें.

– पानी सूख जाए तब मैशर से आलू मैश कर दें.

– सभी बचे सूखे मसाले डाल कर मिश्रण उलटे-पलटें.

– ठंडा कर मिश्रण की मीडियम आकार की लोई लें.

–  थोड़ा बेलें बीच में मिश्रण भर कर बंद करें और फिर बेलें.

– इसे गरम तवे पर तेल लगा कर सेंक लें.

– चटनी या दही के साथ सर्व करें.

2. बथुआ स्टिक्स रेसिपी

सामग्री:

–  1 कप मैदा

– 3 बड़े चम्मच बथुए का पेस्ट

– थोड़ा सा लहसुन और मिर्च का पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच मक्खन

–  नमक स्वादानुसार

– तलने के लिए तेल

बनाने की विधि

– मैदा, बथुए का पेस्ट, लहसुन-मिर्च का पेस्ट, नमक और मक्खन थोड़े से पानी में     एकसाथ मिलाएं.

– अब इसकी टाइट लोई (डो) बनाएं.

–  लोई की पतली-पतली स्ट्रिप्स काटें

–  फिर इसे गरम तेल में तलें और सर्व करें.

Imlie: आदित्य को बचाने के लिए जेल से भागी इमली, अब क्या करेगी मालिनी

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ (Imlie) की कहानी में दिलचस्प मोड़ दिखाया जा रहा है. जिससे फैंस को शो में फुल ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में आपने देखा कि आदित्य किडनैप हो जाता है. तो दूसरी तरफ जब इमली को पता चलता है तो उसके होश उड़ जाते हैं. आदित्य की किडनैपिंग की खबर सुनकर मालिनी भी घबरा जाती है.

दरअसल आर्यन के पास एक वीडियो आता है. इस वीडियो से पता चलता है कि आदित्य किडनैप हो गया है. आदित्य के साथ 2 और लोग भी आतंकवादियों के चंगुल में फंस चुके हैं. इसी बीच शो में बड़ा ट्विस्ट आएगा, जब  आतंकवादी आदित्य को बताएंगे कि उसके कान में एक बम लगा है.

ये भी पढ़ें- अनुपमा ने फोटोग्राफर्स से छुपाया चेहरा, देखें Video

 

View this post on Instagram

 

A post shared by sweet_dreams.94 (@imlie_admirer.94)

 

इस फुटेज को देखकर इमली अपना होश खो देगी. वह आर्यन पर बुरी तरह भड़क जाएगी. तो वहीं आर्यन, आदित्य को बचाने के लिए पुलिस की मदद लेगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by sweet_dreams.94 (@imlie_admirer.94)

 

तो दूसरी तरफ मालिनी आदित्य को बचाने का फैसला करेगी. वह अपनी मां अनु को फोन करेगी और मदद मांगेगी. त्रिपाठी परिवार के लोग मालिनी का साथ नहीं देंगे. मालिनी परिवार के लोगों पर भड़क जाएगी. वह कहेगी कि आदित्य को बचाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.

ये भी पढ़ें- Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: अभिमन्यु करेगा आरोही को एक्सपोज, आएगा ये ट्विस्ट 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by sweet_dreams.94 (@imlie_admirer.94)

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि इमली मौका पाते ही जेल से भाग जाएगी. आदित्य को बचाने के लिए वह पगडंडिया पहुंच जाएगी और ये बात जानकर मालिनी परेशान हो जाएगी. वह नहीं चाहती कि इमली किसी भी तरह आदित्य के सामने जाए. शो में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इमली कैसे आदित्य की जान बचाती है तो वहीं अब मालिनी क्या कदम उठाएगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by sweet_dreams.94 (@imlie_admirer.94)

 

अनुपमा ने फोटोग्राफर्स से छुपाया चेहरा, देखें Video

अनुपमा फेम रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) अपनी किरदार और एक्टिंग से दर्शकों के दिल पर राज कर रही है. सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस की फैन फॉलोविंग भी आए दिन बढ़ती जा रही है. दर्शकों को अनुपमा का फोटोज और वीडियो का बेसब्री से इंतजार रहता है. अब अनुपमा का एक ऐसा वीडियो सामने आया है जिसमें वह फोटोग्राफर से चेहरा छुपाती हुई नजर आ रही है. आइए बताते है क्या है पूरा मामला.

अनुपमा का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वह मीडिया से अपना चेहरा छुपाती नजर आ रही हैं. फोटोग्राफर्स उन्हें फोटो क्लिक कराने के कह रहे हैं और वो कैमरे से दूर भागती दिखाई दे रही हैं. हाल ही में रूपाली गांगुली को मुंबई में एक सैलून के बाहर देखा गया था. फोटोग्राफर्स उनसे तस्वीरें क्लिक करवाने के लिए कहते हैं लेकिन वह मना कर देती हैं. वह कहती है, मेरे बालों में तेल लगा हुआ है.

ये भी पढ़ें- Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: अभिमन्यु करेगा आरोही को एक्सपोज, आएगा ये ट्विस्ट 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

 

अनुपमा के इस वीडियो को फोटोग्राफर विरल भयानी ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है जिसमें देखा जा सकता है कि रूपाली सैलून के बाहर फोटोग्राफर्स को देख चौंक जाती हैं और अपना चेहरा छिपाने लगती हैं. वह रिक्वेस्ट करती है कि उनकी फोटो क्लिक न करें.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15: चैनल के खिलाफ बोली Tejasswi Prakash तो सलमान खान ने लगाई क्लास

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gaurav Khanna (@gauravkhannaofficial)

 

अनुपमा ने अपने बालों में तेल लगाया था इसलिए वह फोटो क्लिक करने से मना कर रही थी. एक्ट्रेस ने कहा कि आप मेरे फोटोज मत लो, मैंने तेल लगाया हुआ है. इस वीडियो पर यूजर्स लगातार कमेंट्स कर रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

 

कई यूजर्स ने कमेंट किया है कि ऑयल लगाना कोई गुनाह नहीं है ऐसा है तो तेल लगाते क्यों हैं तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है कि इन लोगों को देख-देखकर हमारे युवा भी ऐसे भी रिएक्ट करते हैं. लेकिन अनुपमा के फैन्स ने सपोर्ट किया और लिखा कि रूपाली बहुत रियलिस्टिक हैं. तो वहीं दूसरे फैंस ने लिखा कि फिर भी वह बहुत खूबसूरत लग रही हैं.

कांशीराम की विरासत, बचा न पाईं मायावती!

बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपनी विरासत और दलित उद्धार की जो जिम्मेदारी मायावती को सौंपी थी, बहनजी न तो उस विरासत को बचा पाईं और न ही दलित समाज का कोई उद्धार कर पाईं. उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं मगर बहनजी और उन के हाथी का अतापता नहीं है.

उत्तर प्रदेश में फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश में तमाम राजनीतिक दलों ने जनता को अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत ?ांक दी है. भाजपा जहां प्रदेशभर में विजय संकल्प यात्रा और जन विकास यात्रा निकाल रही है, वहीं कांग्रेस का जन जागरण अभियान चल रहा है. समाजवादी पार्टी की भी विजय रथ यात्रा प्रदेश भर में जारी है.

यहां तक कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तक हैदराबाद छोड़ उत्तर प्रदेश में डेरा जमाए हुए हैं और सौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुके हैं. वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी उत्तर प्रदेश में 30 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके हैं. मगर इन सब के बीच 4 बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं बसपा प्रमुख और दलित नेत्री मायावती की चुनावी तैयारी बहुत फीकीफीकी सी है.

चुनाव सिर पर हैं मगर बहनजी के पुराने तेवर कहीं दिख नहीं रहे हैं. न कोई दावा न वादा, न यात्रा, न संकल्प, न समारोह. नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, ओमप्रकाश राजभर, प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी, ओवैसी सब सड़कों पर हैं, बड़ीबड़ी रैलियां कर रहे हैं, भाषणबाजी में लगे हैं मगर बहनजी और उन के हाथी का कहीं अतापता नहीं है.

ये भी पढ़ें- राकेश टिकैत: अचानक उगा किसान नेता

हाथी की यह सुस्ती बेवजह नहीं है. दरअसल उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले सब से ज्यादा टूट का सामना बसपा कर रही है. रिकौर्ड उठा कर देखें तो पता चलता है कि पिछले 7 सालों में 150 से ज्यादा नेता बसपा का साथ या तो छोड़ चुके हैं, या निकाले जा चुके हैं. इन में कई वे चेहरे भी थे जो कभी पार्टी की पहचान हुआ करते थे. आज बसपा के पास विधानसभा में मात्र 5 विधायक बचे हैं, जिन में से एक मुख्तार अंसारी जेल में बंद हैं.

बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपनी विरासत और दलित समाज के उद्धार की जो जिम्मेदारी मायावती को सौंपी थी, बहनजी न तो उस विरासत को बचा पाईं और न दलित समाज का कोई उद्धार कर पाईं. वे, उन की पार्टी और उन की पार्टी के नेता बीते 3 दशकों में सिर्फ धनउगाही, भ्रष्टाचार और घोटालों में रमे रहे. बहनजी अपने कुछ खास करीबियों की मदद से अपना बटुआ भरती रहीं और अपनी शोहरत बुलंद रखने के लिए अपनी मूर्तियां गड़वाती रहीं. दलित समाज के लिए उन्होंने क्या किया, यह तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र लगा कर ढूंढ़ने से भी मालूम नहीं चलेगा.

आज प्रदेश का दलित समाज नेतृत्वविहीन है. शहरी दलित भाजपा के भरमाने में फंस कर खुद को हिंदू और हिंदुत्व से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में निचली जातियों में फिर वही डर पनपने लगा है कि भाजपा राज मजबूत हुआ तो वे सवर्णों के तलुवे चाटने वाले अछूत और तुच्छ तो कहलाएंगे ही, शोषण और प्रताड़ना का दंश भी ?ोलेंगे. यह डर उन पिछड़ों और दलितों को अब विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बांट रहा है जो कभी मायावती की एक ललकार पर हाथी छाप ?ांडे के नीचे जमा हो जाते थे. आज उन्हें सम?ा में नहीं आ रहा है कि उन का नेता कौन है, उन्हें किस के पीछे चलना है, किस को वोट देना है, कौन उन का उद्धारक होगा.

बसपा संस्थापक कांशीराम ने जीवनपर्यंत दलितों को मजबूत बनाया, साथ ही साथ दूसरे राज्यों में भी वोट शेयर में इजाफा किया. दलित राजनीति के सक्रिय होने का श्रेय बिना किसी संदेह के उन्हीं को जाता है. कांशीराम का मानना था कि अपने हक के लिए दलितों को लड़ना होगा, उस के लिए गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी.

कांशीराम का दौर दलितों के राजनीतिक रूप से चेतनशील होने का दौर था. बहुत कम समय में उन की पार्टी बसपा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान स्थापित की. उत्तर भारत की राजनीति में गैरब्राह्मणवाद की शब्दावली बसपा ही प्रचलन में लाई थी.

1992 में राममंदिर आंदोलन के समय भाजपा जहां हिंदुत्व कार्ड खेल रही थी, कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी बहुत खुरदुरे तरीके से दलितों को सम?ा रही थी कि उस की अपनी बिरादरी से भी कोई मुख्यमंत्री बन सकता है, ऐसा मुख्यमंत्री जो किसी बड़े पावर ग्रुप का नाममात्र चेहरा न हो बल्कि अपनी ताकत और तेवर दिखाने वाला दलित नेता हो.

वर्ष 1995 में कांशीराम इस में कामयाब हो गए जब उन की शिष्या मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. मायावती को एक नेता के तौर पर कांशीराम ने ही ग्रूम किया था. वे मायावती के मार्गदर्शक थे. अपनी बीमारी व मौत से कई साल पहले ही उन्होंने मायावती को अपना राजनीतिक प्रतिनिधि चुन लिया था. मगर कांशीराम के तेवरों को सही से आगे न ले जाने के चलते मायावती जिस तेजी से उत्तर प्रदेश में उभरी थीं, उसी तेजी से वे उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक जाति की नेता बन कर रह गईं.

कांशीराम का दलित आंदोलन देखते ही देखते मायावती की सोशल इंजीनियरिंग बन कर खत्म हो गया. कांशीराम जहां व्यक्तिगत रूप से बेहद सादा जीवन जीते थे, वहीं मायावती ने धनवैभव के प्रदर्शन को दलित शक्तिप्रदर्शन का प्रतीक बना दिया.

मंडल युग में कांशीराम के संघर्ष के चलते पिछड़ा और दलित वर्ग अपने अधिकारों को ले कर पहली बार सचेत हुआ था. संविधान रचयिता भीमराव अंबेडकर के बाद कांशीराम ही थे जिन्होंने भारतीय राजनीति और समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाले की भूमिका निभाई थी. बेशक अंबेडकर ने एक शानदार संविधान के जरिए इस परिवर्तन का ब्लूप्रिंट पेश किया, लेकिन वे कांशीराम ही थे जिन्होंने इसे राजनीति के धरातल पर उतारा. कांशीराम भले ही अंबेडकर की तरह महान चिंतक और बुद्धिजीवी न रहे हों, मगर उन्होंने जिस जमात की लड़ाई लड़ी वह संविधान में हक मिलने के बावजूद अशिक्षा, गरीबी, शोषण, प्रताड़ना, बेकारी और बंधुआ मजदूरी का शिकार थी. कांशीराम ने इस जमात के लिए सवर्णों द्वारा तय किए फर्मे तोड़े और उन में कुछ करने व कुछ पाने का आत्मविश्वास पैदा किया.

कांशीराम का जन्म पंजाब के एक दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने बीएससी की पढ़ाई करने के बाद क्लास वन अधिकारी की सरकारी नौकरी की. आजादी के बाद से ही आरक्षण होने के कारण सरकारी सेवा में दलित कर्मचारियों की एक संस्था होती थी. कांशीराम ने पहली बार इस संस्था में दलितों से जुड़े सवाल और अंबेडकर जयंती के दिन अवकाश घोषित करने की मांग उठाई.

ये भी पढ़ें- विवाद हिंदू व हिंदुत्ववादी का

बाद में उन्होंने सरकारी नौकरी त्याग कर देशभर में घूम कर दलितों को एकजुट किया. कांशीराम ने सब से पहले अपने घरवालों को 24 पन्ने का एक पत्र लिखा, जिस की मुख्य बातें थीं-

  1. अब कभी घर नहीं आऊंगा.
  2. कभी अपना घर नहीं खरीदूंगा.
  3. गरीबों दलितों का घर ही मेरा घर होगा.
  1. सभी रिश्तेदारों से मुक्त रहूंगा.
  2. किसी के शादी, जन्मदिन, अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होऊंगा.
  3. कोई नौकरी नहीं करूंगा.
  4. जब तक बाबासाहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा.

कांशीराम ने ताउम्र अपनी इन प्रतिज्ञाओं का पालन किया. यहां तक कि वे अपने पिता के अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं हुए.

वर्ष 1981 में कांशीराम ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति या डीएस 4 की स्थापना की. वर्ष 1982 में उन्होंने ‘द चमचा ऐज’ लिखा जिस में उन्होंने उन दलित नेताओं की आलोचना की जो कांग्रेस जैसी परंपरागत मुख्यधारा की पार्टी के लिए काम करते थे. वर्ष 1983 में डीएस 4 ने एक साइकिल रैली का आयोजन कर अपनी ताकत दिखाई. उक्त रैली में करीब 3 लाख लोगों ने हिस्सा लिया. उन्होंने मौजूदा पार्टियों में दलितों की जगह की पड़ताल की और अपनी अलग पार्टी बनाने की जरूरत महसूस की.

वर्ष 1984 में बसपा का गठन हुआ और तब तक कांशीराम पूरी तरह से एक पूर्णकालिक राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके थे. उन्होंने तब कहा था कि अंबेडकर किताबें इकट्ठा करते थे लेकिन मैं लोगों को इकट्ठा करता हूं. कांशीराम एक चिंतक भी थे और जमीनी कार्यकर्ता भी. राजनीति में आने के बाद उन्होंने महसूस किया कि कलफ का कुरता पहन कर गांधीवादी बातें कर के अपनी बिरादरी का भला होने से रहा. लिहाजा वे सैकंडहैंड कपड़ों के बाजार से अपने लिए पैंटकमीज खरीदने लगे. कभी नेताओं वाली यूनिफौर्म नहीं पहनी. हां, बाद के दिनों में सफारी सूट पहनने लगे थे.

कांशीराम ने कहा- पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा चुनाव हरवाने के लिए और फिर तीसरे चुनाव से जीत मिलनी शुरू हो जाती है और यही हुआ. पहले चुनाव में इंदिरा लहर के दौरान बसपा का खाता नहीं खुला, मगर हिम्मत खुल गई. दलितों की अपनी पार्टी उत्तर भारत में जड़ें जमाती, मनुवाद और ब्राह्मणवाद को खुलेआम गरियाती, गांधी को और कांग्रेस को सिरे से खारिज करती एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी.

कांशीराम ने ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई, ?ालकारी बाई और ऊदा देवी जैसे प्रतीकों को दलित चेतना का प्रतीक बनाया. उन्हें वह मान दिलाया कि किसी भी डिसकोर्स में प्रमुखता से याद किया जाए. हालांकि, इसे कांशीराम की गलती कहें या दुर्भाग्य कि उन की चुनी हुई वारिस मायावती ने इन प्रतीकों को मूर्ति बना कर अपनी सियासत चमकाने का फार्मूला मान लिया. कांशीराम ने अपने लोगों को जगाने के लिए सधे हुए शब्द नहीं तलाशे बल्कि खूंखार और खुरदुरे ढंग से अपनी बातें कहीं. उसी दौर में नारे आए थे- ‘ठाकुर ब्राह्मण बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएस 4’ या फिर ‘तिलक तराजू और तलवार, इन को मारो जूते चार’. मायावती ने अब आधिकारिक तौर पर इन नारों को बसपा से अलग कर दिया है. सत्ता के लिए बसपा का मूवमैंट सत्ता में आने के 10 सालों के अंदर ही ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा’ और ‘हाथी नहीं गणेश है’ जैसे नारों की भेंट चढ़ गया.

कांशीराम के समय में जो बसपा उत्तर प्रदेश पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे समूची हिंदी पट्टी में तेजी से फैली, उस पार्टी की गति कांशीराम की मृत्यु के उपरांत 2 दशकों के अंदर ही सिमटती चली गई. कांशीराम की शिष्या ने कोर वोट के आगे बढ़ने के लिए बहुजन को सर्वजन में बदल दिया. उन की पार्टी में ब्राह्मण, ठाकुर, मुसलमान पहली पंक्ति में जमा हो गए.

ये भी पढ़ें- चुनौतियां 2021 की, आशा 2022 की!

मायावती को जिस ठाटबाट से रहने की आदत लगी और जिस तेजी से वे भ्रष्टाचार में लिप्त हुईं, उस ने पूरी पार्टी और कांशीराम की सारी मेहनत मिट्टी कर दी. आज वे सारे नेता जो अग्रिम पंक्ति में खड़े हो कर मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की कमान संभाल रहे थे उन की तिजोरी भरने के साथ अपने खजाने बढ़ा रहे थे, वे सब उन्हें अकेला छोड़ कर अन्य दलों में समाहित हो चुके हैं.

आज अगर मायावती के गुरु कांशीराम जीवित होते तो शायद उन को यही सम?ा रहे होते कि जन आंदोलन – सामाजिक आंदोलन त्याग और जिद से चलते हैं, इंजीनियरिंग के फार्मूलों से नहीं. जिस तरह देशभर के किसानों को एकजुट कर मोदी सरकार को ?ाका लेने की जिद और ढीठपना किसान नेता राकेश टिकैत ने दिखाया है, दलितों को भी अब ऐसे किसी ढीठ दलित नेता का इंतजार है.

हरित क्रान्ति बनाम गुलाबी क्रांति

Writer- अखिलेश आर्येंदु

यदि हम आजादी के बाद कृषि इतिहास की ओर नजर घुमाएं तो इस हकीकत को मानना पड़ेगा कि नेहरू युग के अंतिम साल में खाद्यान्न को ले कर देश में संकट इसलिए बढ़ा, क्योंकि केंद्र की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था. इस वजह से राज्यों में दंगे शुरू हो गए थे. अमेरिकी नीति ‘फूड ऐंड पीस’ के हिस्से के तौर पर उस समय भारत में पीएल 480 अनाज का सहारा लिया गया था.

देश को खाद्यान्न संकट से उबारने के लिए जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दे कर किसानों के साथ जवानों को भी हरित क्रांति के लिए तैयार किया.

60 के दशक का यह दौर उत्पादकता को बढ़ाने के मद्देनजर गेहूं  (बाद में धान पर भी) उत्पादन पर खास जोर दिया गया और 80 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गया, बल्कि निर्यात भी करने लगा.

इन में वैज्ञानिक डा. एमएस स्वामीनाथन के प्रयासों का भी हाथ था. इसे देश की पहली हरित क्रांति के रूप में जाना जाता है. यह (हरित क्रांति) 60 के दशक से ले कर 80 के दशक के मध्य तक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर भारत के दक्षिणी राज्यों तक फैल गई. लेकिन वक्त के साथ हरित क्रांति के व्यावसायीकरण करने की बात भी सामने आई. कृषि से जुड़े परंपरागत मूल्य एवं संस्कृति विलुप्त हुए. धरती से जल दोहन और रासायनिक जहरीले उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से धरती और खाद्यान्न दोनों जहरीले हुए.

यदि उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों के कारण भारत की पिछले 30 सालों में आर्थिक विकास की गति तेजी से बढ़ी है, तो साथ में इस हकीकत को भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि तथाकथित आर्थिक विकास का फायदा भारत के उस अभिजात्य वर्ग को मिला, जो पहले से ही बेहतर जिंदगी जी रहा था.

ये भी पढ़ें- जनवरी माह के खास काम

गौरतलब है जो आर्थिक विकास उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को लागू करने के बाद हुआ, उस में ऐसी भी नीतियां हैं, जो कई तरह के सवाल खड़ा करती हैं. उन में कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जो सीधे आम

आदमी, पर्यावरण, पशुधन के खात्मे से ताल्लुक रखते हैं.

कृषि से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति और हरित क्रांति को ले कर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. इस के पीछे केंद्र और राज्य सरकारों की गलत नीतियां रही हैं.

भापजा की सरकार ने साल 2014 में सत्ता संभालते ही नई हरित क्रांति की बात कही, वहीं पर मांस निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी रकम बूचड़खानों को भी दी. यह भाजपा की उस नीति से मेल नहीं खाती, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाली है.

यदि आंकड़ों पर जाएं तो साल 2014 में जब राजग सरकार सत्ता में आई उस ने मांस निर्यात और बूचड़खानों के लिए अपने पहले ही बजट में 15 करोड़ की सब्सिडी दी और टैक्स में छूट का विधिवत प्रावधान किया. इस से सम?ा जा सकता है कि भाजपा की नीतियां मांस निर्यात के मामले में जैसी कांग्रेस की थीं, वैसी ही हैं.

आंकड़ों की तह में जाएं, तो पता चलता है कि साल 2003-04 में भारत से 3.4 लाख टन गायभैंस के मांस का निर्यात हुआ, जो साल 2012-13 में बढ़ कर 18.9 लाख टन हो गया. यह बढ़ोतरी साल 2014-15 में 24 लाख टन पहुंच गई यानी 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं साल 2019-20 में 1,030.41 मीट्रिक टन मांस का निर्यात किया गया, जिस की कीमत तकरीबन 16.32 करोड़ रुपए थी.

आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में जितना मांस का निर्यात होता है, उस में भारत अकेले ही तकरीबन 58.7 फीसदी निर्यात करता है. गौरतलब है की भारत 65 देशों को मांस का निर्यात करता है. इन में सऊदी अरब, कुवैत, मिस्र, मलयेशिया, फिलीपींस, म्यांमार, नेपाल, लाइबेरिया और वियतनाम प्रमुख हैं. विदेशों में बढ़ते मांस निर्यात की वजह से भारत में जो मांस कभी 30 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता था, वह आज 300 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है.

मांस निर्यात से सब से ज्यादा असर दूध उत्पादन से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति पर पड़ा है. जब 13 जनवरी, 1970 को श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, तब इसे आम आदमी के रोजगार, आर्थिक स्थिति में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य से जोड़ कर देखा गया.

पिछले 40 सालों में जिस तरह से मांस निर्यात के जरीए विदेशी पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है, उस ने श्वेत और हरित क्रांति को रोकने या खत्म करने का काम किया है.

गौरतलब है विदेशों में बढ़ते मांस के निर्यात का सीधा असर दूध उत्पादन और घटते पशुधन पर पड़ रहा है.

गौरतलब है कि पशुधन भारतीय कृषि का आधार रहा है. गैरकानूनी बूचड़खानों की वजह से पशुधन पर सीधे असर पड़ा है जिस से पशुपालन बहुत ही खर्चीला काम हो गया है.

ये भी पढ़ें- एक्वेरियम में ऐसे रखें रंगीन मछली

घटते दुधारू जानवरों की वजह से पिछले 20 सालों में दूध का दाम तेजी से बढ़ा है. आम आदमी जो कोई दुधारू जानवर नहीं पाल सकता, वह महंगे दूध खरीदने की हालत में नहीं होता है.

गौर करने वाली बात यह है कि बिना किसी सरकारी मदद के देश में दूध का 70 फीसदी कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है. देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हुई हैं. 14 राज्यों में अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं. लेकिन मांस निर्यात की वजह से पशुधन के खात्मे का असर घटते दूध उत्पादन पर साफ दिखाई पड़ रहा है. इस असंगठित क्षेत्र (दूध उत्पादन) में 7 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जिस में अशिक्षित कारोबारी ज्यादा हैं.

यदि मांस निर्यात पर सरकारी रोक न लगी या गैरकानूनी बूचड़खानों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो संभव है कि कुछ सालों में ही इस असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को किसी और क्षेत्र में कारोबार के लिए मजबूर हो कर आना पड़े.

मांस निर्यात के आईसीएआर के आंकड़े बताते हैं कि हर साल तकरीबन 9.12 लाख जो भैंसें बूचड़खानों में कत्ल कर दी जाती हैं, यदि वे भैंसें कत्लखाने में जाने से बच जाएं, तो 2,95,50,000 टन गोबर की खाद बनाई जा सकती है. इस से 39.40 हेक्टेयर कृषि भूमि को खाद मुहैया कराई जा सकती है. इस से जहां जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं महंगी रासायनिक खादों से भी छुटकारा मिल जाएगा.

दूसरी तरफ  यदि देखा जाए तो इनसान और जानवर एकदूसरे के पूरक हैं. इनसान यदि एक जानवर को पालता है, तो वह जानवर उस के पूरे परिवार को पालता है. इतना ही नहीं, बंदर, रीछ, घोड़े, बैल, सांड़, भैंसा और गाय इनसान की जिंदगी के अहम हिस्से हैं.

आज भी लाखों लोगों की आजीविका इन जानवरों पर आधारित है. राजस्थान में एक कहावत है, कहने को तो भेड़ें पालते हैं, दरअसल भेड़ें ही इन को पालती हैं. इन के दूध, घी और ऊन आदि से हजारों परिवारों की जीविका चलती है. भेड़ों के दूध को वैज्ञानिकों ने फेफड़े के रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद बताया है.

‘बांबे ह्यूमैनेटेरियन लीग’ के अनुसार, जानवरों से हर साल दूध, खाद, ऊर्जा और भार ढोने वाली सेवा द्वारा देश को अधिक आय होती है. इस के अलावा मरने के बाद इन की हड्डियों और चमड़े से जो आय होती है, वह भी करोड़ों रुपए में. यांत्रिक कत्लखानों को बंद कर दिया जाए, तो लाखों जानवरों का वध ही नहीं रुकेगा, बल्कि उस में इस्तेमाल होने वाला 70 करोड़ लिटर से अधिक पानी की बचत होगी, जो कत्लखानों की धुलाई में इस्तेमाल होता है.

ऐसे एकदो नहीं, बल्कि तमाम उदाहरण हैं, जिन से मांस निर्यात से होने वाले नुकसान का पता चलता है. आज जरूरत इस बात की है कि दुधारू जानवरों और भार ढोने वाले जानवरों को उन की उपयोगिता के मुताबिक उन का उपयोग किया जाए और उन्हें कत्लखाने भेजने की अपेक्षा उन को परंपरागत कामों में इस्तेमाल किया जाए. इस से जहां दुधारू जानवरों की संख्या बढ़ेगी, वहीं दूध और कंपोस्ट खाद की समस्या से भारत को नजात मिलेगी.

यदि महज भेड़ों को ही बूचड़खानों में भेजने की जगह उन का परंपरागत इस्तेमाल (जब तक वे जीवित रहें) किया जाए, तो 600 करोड़़ रुपए का दूध मिलेगा, 450 करोड़ रुपए की खाद, 50 करोड़ रुपए की ऊन प्राप्त होगी. इसी तरह गाय के वध को रोक देने से सालभर में जो लाभ होगा, वह हैरानी में डालने वाला है.

आंकड़ों के अनुसार, एक गाय के गोबर से सालभर में तकरीबन 17,000 रुपयों की खाद प्राप्त होगी. रोजाना यांत्रिक कत्लखानों में 60,000 गाय कटती हैं जिन के गोबर मात्र से प्रतिवर्ष लगभग एक अरब रुपए की आमदनी हो सकती है. दूध, घी, मक्खन और मूत्र से होने वाले फायदे को जोड़ दिया जाए, तो अरबों रुपए की आय केवल गाय के वध को रोक देने से देश को हो सकती है.

ये भी पढ़ें- अजोला: पौष्टिकता से भरपूर जलीय चारा

ये आंकड़े और तथ्य यह बताते हैं कि देश की खुशहाली आम आदमी की बेहतरी के साथसाथ पर्यावरण की रक्षा के लिए गुलाबी क्रांति की नहीं, बल्कि निरापद श्वेत और हरित क्रांति की जरूरत है. इस से परंपरागत व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और मांस निर्यात जैसे अहिंसा प्रधान देश में हिंसा वाले व्यवसाय से छुटकारा भी मिल सकेगा.

अंधेरे से उजाले की ओर: होश में आने के बाद जयंत ने क्या किया

Writer- Lalita S

कमरे में प्रवेश करते ही डा. कृपा अपना कोट उतार कर कुरसी पर धड़ाम से बैठ गईं. आज उन्होंने एक बहुत ही मुश्किल आपरेशन निबटाया था.

शाम को जब वे अस्पताल में अपने कक्ष में गईं, तो सिर्फ 2 मरीजों को इंतजार करते हुए पाया. आज उन्होंने कोई अपौइंटमैंट भी नहीं दिया था. इन 2 मरीजों से निबटने के बाद वे जल्द से जल्द घर लौटना चाहती थीं. उन्हें आराम किए हुए एक अरसा हो गया था. वे अपना बैग उठा कर निकलने ही वाली थीं कि अपने नाम की घोषणा सुनी, ‘‘डा. कृपा, कृपया आपरेशन थिएटर की ओर प्रस्थान करें.’’

माइक पर अपने नाम की घोषणा सुन कर उन्हें पता चल गया कि जरूर कोई इमरजैंसी केस आ गया होगा.

मरीज को अंदर पहुंचाया जा चुका था. बाहर मरीज की मां और पत्नी बैठी थीं.

मरीज के इतिहास को जानने के बाद डा. कृपा ने जैसे ही मरीज का नाम पढ़ा तो चौंक गईं. ‘जयंत शुक्ला,’ नाम तो यही लिखा था. फिर उन्होंने अपने मन को समझाया कि नहीं, यह वह जयंत नहीं हो सकता.

लेकिन मरीज को करीब से देखने पर उन्हें विश्वास हो गया कि यह वही जयंत है, उन का सहपाठी. उन्होंने नहीं चाहा था कि जिंदगी में कभी इस व्यक्ति से मुलाकात हो. पर इस वक्त वे एक डाक्टर थीं और सामने वाला एक मरीज. अस्पताल में जब मरीज को लाया गया था तो ड्यूटी पर मौजूद डाक्टरों ने मरीज की प्रारंभिक जांच कर ली थी. जब उन्हें पता चला कि मरीज को दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा है तो उन्होंने दौरे का कारण जानने के लिए एंजियोग्राफी की थी, जिस से पता चला कि मरीज की मुख्य रक्तनलिका में बहुत ज्यादा अवरोध है. मरीज का आपरेशन तुरंत होना बहुत जरूरी था. जब मरीज की पत्नी व मां को इस बात की सूचना दी गई तो पहले तो वे बेहद घबरा गईं, फिर मरीज के सहकर्मियों की सलाह पर वे मान गईं. सभी चाहते थे कि उस का आपरेशन डा. कृपा ही करें. इत्तफाक से डा. कृपा अपने कक्ष में ही मौजूद थीं.

ये भी पढ़ें- पर्सनल स्पेस: क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

मरीज की बीवी से जरूरी कागजों पर हस्ताक्षर लिए गए. करीब 5 घंटे लगे आपरेशन में. आपरेशन सफल रहा. हाथ धो कर जब डा. कृपा आपरेशन थिएटर से बाहर निकलीं तो सभी उन के पास भागेभागे आए.

डा. कृपा ने सब को आश्वासन दिया कि आपरेशन सफल रहा और मरीज अब खतरे से बाहर है. अपने कमरे में पहुंच कर डा. कृपा ने कोट उतार कर एक ओर फेंक दिया और धड़ाम से कुरसी पर बैठ गईं.

आंखें बंद कर आरामकुरसी पर बैठते ही उन्हें अपनी आंखों के सामने अपना बीता कल नजर आने लगा. जिंदगी के पन्ने पलटते चले गए.

कृपा शक्लसूरत में अपने पिता पर गई थी

उन्हें अपना बचपन याद आने लगा… जयपुर में एक मध्यवर्गीय परिवार में वे पलीबढ़ी थीं. उन का एक बड़ा भाई था, जो मांबाप की आंखों का तारा था. कृपा की एक जुड़वां बहन थी, जिस का नाम रूपा था. नाम के अनुरूप रूपा गोरी और सुंदर थी, अपनी मां की तरह. कृपा शक्लसूरत में अपने पिता पर गई थी. कृपा का रंग अपने पिता की तरह काला था. दोनों बहनों की शक्लसूरत में मीनआसमान का फर्क था. बचपन में जब उन की मां दोनों का हाथ थामे कहीं भी जातीं, तो कृपा की तरफ उंगली दिखा कर सब यही पूछते कि यह कौन है?

उन की मां के मुंह से यह सुन कर कि दोनों उन की जुड़वां बेटियां हैं, लोग आश्चर्य में पड़ जाते. लोग जब हंसते हुए रूपा को गोद में उठा कर प्यार करते तो उस का बालमन बहुत दुखी होता. तब कृपा सब का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोती, मचलती.

तब उसे पता नहीं था कि मानवमन तो सुंदरता का पुजारी होता है. तब वह समझ नहीं पाती थी कि लोग क्यों उस के बजाय उस की बहन को ही प्यार करते हैं. एक बार तो उसे इस तरह मचलते देख कर किसी ने उस की मां से कह भी दिया था कि लीला, तुम्हारी इस बेटी में न तो रूप है न गुण.

धीरेधीरे कृपा को समझ में आने लगा अपने और रूपा के बीच का यह फर्क.

मां कृपा को समझातीं कि बेटी, समझदारी का मानदंड रंगरूप नहीं होता. माइकल जैकसन काले थे, पर पूरी दुनिया के चहेते थे. हमारी बेटी तो बहुत होशियार है. पढ़लिख कर उसे मांबाप का नाम रोशन करना है. बस, मां की इसी बात को कृपा ने गांठ बांध लिया. मन लगा कर पढ़ाई करती और कक्षा में हमेशा अव्वल आती.

कृपा जब थोड़ी और बड़ी हुई तो उस ने लड़कों और लड़कियों को एकदूसरे के प्रति आकर्षित होते देखा. उस ने बस, अपने मन में डाक्टर बनने का सपना संजो लिया था. वह जानती थी कि कोई उस की ओर आकर्षित नहीं होगा. यदि मनुष्य अपनी कमजोर रग को पहचान ले और उसे अनदेखा कर के उस क्षेत्र में आगे बढ़े जहां उसे महारत हासिल हो, तो उस की कमजोर रग कभी उस की दुखती रग नहीं बन सकती. इसीलिए जब जयंत ने उस की ओर हाथ बढ़ाया तो उस ने उसे ठुकरा दिया.

कृपा का ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य की ओर था. एक दिन उस ने जयंत को अपने दोस्तों से यह कहते हुए सुना कि मैं कृपा से इसलिए दोस्ती करना चाहता हूं, क्योंकि वह बहुत ईमानदार लड़की है, कितने गुण हैं उस में, हमेशा हर कक्षा में अव्वल आती है, फिर भी जमीन से जुड़ी है.

उस दिन के बाद कृपा का बरताव जयंत के प्रति नरम होता गया. 12वीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे नंबर आना बेहद जरूरी था, क्योंकि उन्हीं के आधार पर मैडिकल में दाखिला मिल सकता था. सभी को कृपा से बहुत उम्मीदें थीं.

जयंत बेझिझक कृपा से पढ़ाई में मदद लेने लगा. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता था. खाली समय में ट्यूशन पढ़ाता था ताकि मैडिकल में दाखिला मिलने पर उसे पैसों की दिक्कत न हो.

ये भी पढ़ें- नई चादर: कोयले को जब मिला कंचन

कृपा लाइब्रेरी में बैठ कर किसी एक विषय पर अलगअलग लेखकों द्वारा लिखित किताबें लेती और नोट्स तैयार करती थी.

पहली बार जब उस ने अपने नोट्स की एक प्रति जयंत को दी तो वह कृतार्थ हो गया. कहने लगा कि तुम ने मेरी जो मदद की है, उसे जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगा.

अब जब भी कृपा नोट्स तैयार करती तो उस की एक प्रति जयंत को जरूर देती.

एक दिन जयंत ने कृपा के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि हमारा साथ जीवन भर का हो जाए तो कैसा हो?

कृपा ने मीठी झिड़की दी कि अभी तुम पढ़ाई पर ध्यान दो, मजनू. ये सब तो बहुत बाद की बातें हैं.

कृपा ने झिड़क तो दिया पर मन ही मन वह सपने बुनने लगी थी. जयंत स्कूल से सीधे ट्यूशन पढ़ाने जाता था, इसलिए कृपा रोज जयंत से मिल कर थोड़ी देर बातें करती, फिर जयंत से चाबी ले कर नोट्स उस के कमरे में छोड़ आती. चाबी वहीं छोड़ आती, क्योंकि जयंत का रूममेट तब तक आ जाता था.

एक दिन लाइब्रेरी से बाहर आते समय कृपा ने हमेशा की तरह रुक कर जयंत से बातें कीं. जयंत अपने दोस्तों के साथ खड़ा था, पर जातेजाते वह जयंत से चाबी लेना भूल गई. थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक जब उसे याद आया तो वापस आने लगी. वह जयंत के पास पहुंचने ही वाली थी कि अपना नाम सुन कर अचानक रुक गई.

जयंत का दोस्त उस से कह रहा था कि तुम ने उस कुरूपा (कृपा) को अच्छा पटाया. तुम्हारा काम तो आसान हो गया, यार. इस साथी को जीवनसाथी बनाने का इरादा है क्या?

जयंत ने कहा कि दिमाग खराब नहीं हुआ है मेरा. उसे इसी गलतफहमी में रहने दो. बनेबनाए नोट्स मिलते रहें तो मुझे रोजरोज पढ़ाई करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. परीक्षा से कुछ दिन पहले दिनरात एक कर देता हूं. इस बार देखना, उसी के नोट्स पढ़ कर उस से भी अच्छे नंबर लाऊंगा.

जयंत के मुंह से ये सब बातें सुन कर कृपा कांप गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इतना बड़ा धोखा? वह उलटे पांव लौट गई. भाग कर घर पहुंची तो इतनी देर से दबी रुलाई फूट पड़ी. मां ने उसे चुप कराया. सिसकियों के बीच कृपा ने मां को किसी तरह पूरी बात बताई.

कुछ देर के लिए तो मां भी हैरान रह गईं, पर वे अनुभवी थीं. अत: उन्होंने कृपा को समझाया कि बेटे, अगर कोई यह सोचता है कि किसी सीधेसादे इनसान को धोखा दे कर अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है, तो वह अपनेआप को धोखा देता है. नुकसान तुम्हारा नहीं, उस का हुआ है. व्यवहार बैलेंस शीट की तरह होता है, जिस में जमाघटा बराबर होगा ही. जयंत को अपने किए की सजा जरूर मिलेगी. तुम्हारी मेहनत तुम्हारे साथ है, इसलिए आज तुम चाबी लेना भूल गईं. पढ़ाई में तुम्हारी बराबरी इन में से कोई नहीं कर सकता. प्रकृति ने जिसे जो बनाया उसे मान कर उस पर खुश हो कर फिर से सब कुछ भूल कर पढ़ाई में जुट जाओ.

मां की बातों से कृपा को काफी राहत मिली, पर यह सब भुला पाना इतना आसान नहीं था.

हिम्मत जुटा कर दूसरे दिन हमेशा की तरह कृपा ने जयंत से चाबी ली, पर नोट्स रखने के लिए नहीं, बल्कि आज तक उस ने जो नोट्स दिए थे उन्हें निकालने के लिए. अपने सारे नोट्स ले कर चाबी यथास्थान रख कर कृपा घर की ओर चल पड़ी. 2-4 दिनों में छुट्टियां शुरू होने वाली थीं, उस के बाद इम्तिहान थे. चाबी लेते समय उस ने जयंत से कह दिया था कि अब छुट्टियां शुरू होने के बाद ही उस से मिलेगी, क्योंकि उसे 2-4 दिनों तक कुछ काम है. घर जाने पर उस ने मां से कह दिया कि वह छुट्टियों में मौसी के घर रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.

जिस दिन छुट्टियां शुरू हुईं, उस दिन सुबह ही कृपा मौसी के घर की ओर प्रस्थान कर गई. जाने से पहले उस ने एक पत्र जयंत के नाम लिख कर मां को दे दिया.

छुट्टियां शुरू होने के बाद एक दिन जब जयंत ने नोट्स निकालने के लिए दराज खोली तो पाया कि वहां से नोट्स नदारद हैं. उस ने पूरे कमरे को छान मारा, पर नोट्स होते तो मिलते. तुरंत भागाभागा वह कृपा के घर पहुंचा. वहां मां ने उसे कृपा की लिखी चिट्ठी पकड़ा दी.

कृपा ने लिखा था, ‘जयंत, उस दिन मैं ने तुम्हारे दोस्त के साथ हुई तुम्हारी बातचीत को सुन लिया था. मेरे बारे में तुम्हारी राय जानने के बाद मुझे लगा कि मेरे नोट्स का तुम्हारी दराज में होना कोई माने नहीं रखता, इसलिए मैं ने नोट्स वापस ले लिए. मेरे परिवार वालों से मेरा पता मत पूछना, क्योंकि वे तुम्हें बताएंगे नहीं. मेरी तुम से इतनी विनती है कि जो कुछ भी तुम ने मेरे साथ किया है, उस का जिक्र किसी से न करना और न ही किसी के साथ ऐसी धोखाधड़ी करना वरना लोगों का दोस्ती पर से विश्वास उठ जाएगा. शुभ कामनाओं सहित, कृपा.’

पत्र पढ़ कर जयंत ने माथा पीट लिया. वह अपनेआप को कोसने लगा कि यह कैसी मूर्खता कर बैठा. इस तरह खुल्लमखुल्ला डींगें हांक कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली थी. उस के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, न ही इतना वक्त था कि नोट्स तैयार करता.

इम्तिहान से एक दिन पहले कृपा वापस अपने घर आई. दोस्तों से पता चला कि इस बार जयंत परीक्षा में नहीं बैठ रहा है.

उस के बाद कृपा की जिंदगी में जो कुछ भी घटा, सब कुछ सुखद था. पूरे राज्य में अव्वल श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी कृपा. दूरदर्शन, अखबार वालों का तांता लग गया था उस के घर में. सभी बड़े कालेजों ने उसे खुद न्योता दे कर बुलाया था.

मुंबई के एक बड़े कालेज में उस ने दाखिला ले लिया था. एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षाएं दीं. यहां भी वह अव्वल आई. उस ने हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का फैसला लिया. एम.डी. की पढ़ाई करने के बाद उस ने 3 बड़े अस्पतालों में विजिटिंग डाक्टर के रूप में काम करना शुरू किया. समय के साथ उसे काफी प्रसिद्धि मिली.

इधर उस की जुड़वां बहन की पढ़ाई में खास दिलचस्पी नहीं थी. मातापिता ने उस की शादी कर दी. उस का भाई अपनी पत्नी के साथ दिल्ली में रहता था. भाई कभी मातापिता का हालचाल तक नहीं पूछता था. बहू ने दूरी बनाए रखी थी. जब अपना ही सिक्का खोटा था तो दूसरों से क्या उम्मीद की जा सकती थी.

बेटे के इस रवैए ने मांबाप को बहुत पीड़ा पहुंचाई थी. कृपा ने निश्चय कर लिया था कि मातापिता और लोगों की सेवा में अपना जीवन बिता देगी. कृपा ने मुंबई में अपना घर खरीद लिया और मातापिता को भी अपने पास ले गई.

ये भी पढ़ें-  तृष्णा: क्या थी दीपक और दीप्ति की सच्चाई

चर्मरोग विशेषज्ञ डा. मनीष से कृपा की अच्छी निभती थी. दोनों डाक्टरी के अलावा दूसरे विषयों पर भी बातें किया करते थे, पर कृपा ने उन से दूरी बनाए रखी. एक दिन डा. मनीष ने डा. कृपा से शादी करने की इच्छा जाहिर की, पर दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है.

डा. कृपा ने दृढ़ता के साथ मना कर दिया. उस के बाद डा. मनीष की हिम्मत नहीं हुई दोबारा पूछने की. मां को जब पता चला तो मां ने कहा, ‘‘बेटे, सभी एक जैसे तो नहीं होते. क्यों न हम डा. मनीष को एक मौका दें.’’

डा. मनीष अपने किसी मरीज के बारे में डा. कृपा से सलाह करना चाहते थे. डा. कृपा का सेलफोन लगातार व्यस्त आ रहा था, तो उन्होंने डा. कृपा के घर फोन किया.

डा. कृपा घर पर भी नहीं थी. उस की मां ने डा. मनीष से बात की और उन्हें दूसरे दिन घर पर खाने पर बुला लिया. मां ने डा. मनीष से खुल कर बातें कीं. 4-5 साल पहले उन की शादी एक सुंदर लड़की से तय हुई थी, पर 2-3 बार मिलने के बाद ही उन्हें पता चल गया कि वे उस के साथ किसी भी तरह सामंजस्य नहीं बैठा सकते. तब उन्होंने इस शादी से इनकार कर दिया था.

मां की अनुभवी आंखों ने परख लिया था कि डा. मनीष ही डा. कृपा के लिए उपयुक्त वर हैं. अब तक डा. कृपा भी घर लौट चुकी थी. सब ने एकसाथ मिल कर खाना खाया. बाद में मां के बारबार आग्रह करने पर डा. मनीष से बातचीत के लिए तैयार हो गई डा. कृपा. उस ने डा. मनीष से साफसाफ कह दिया कि उस की कुछ शर्तें हैं, जैसे मातापिता की देखभाल की जिम्मेदारी उस की है, इसलिए वह उन के घर के पास ही घर ले कर रहेंगे. वह डा. मनीष के घर वालों की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार थी, लेकिन इमरजैंसी के दौरान वक्तबेवक्त घर से जाना पड़ सकता है, तब उस के परिवार वालों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, वगैरह.

डा. मनीष ने उस की सारी शर्तें मान लीं और उन का विवाह हो गया. डा. मनीष जैसे सुलझे हुए व्यक्ति को पा कर कृपा को जिंदगी से कोई शिकायत नहीं रह गई थी. कुछ साल पहले डा. कृपा अपनेआप को कितनी कोसती थी. लेकिन अब उसे लगने लगा कि उस की जिंदगी में अब कोई अंधेरा नहीं है, बल्कि चारों तरफ उजाला ही उजाला है.

डा. कृपा धीरेधीरे वर्तमान में लौट आई. इस के बाद उस का सामना कई बार जयंत से हुआ. पहली बार होश आने पर जब जयंत ने डा. कृपा को देखा तो चौंकने की बारी उस की थी. कई बार उस ने डा. कृपा से बात करने की कोशिश की, पर डा. कृपा ने एक डाक्टर और मरीज की सीमारेखा से बाहर कोई भी बात करने से मना कर दिया.

डा. कृपा सोचने लगी, आज वह डा. मनीष के साथ कितनी खुश है. जिंदगी में कटु अनुभवों के आधार पर लोगों के बारे में आम राय बना लेना कितनी गलत बात है. कुदरत ने सुख और दुख सब के हिस्से में बराबर मात्रा में दिए हैं. जरूरत है तो दुख में संयम बरतने की और सही समय का इंतजार करने की. किसी की भी जिंदगी में अंधेरा अधिक देर तक नहीं रहता है, उजाला आता ही है.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: अभिमन्यु करेगा आरोही को एक्सपोज, आएगा ये ट्विस्ट 

स्टार प्लस का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में इन दिनों लव ट्रैक दिखाया जा रहा है. शो के प्रोमो के अनुसार, आरोही और अभिमन्यु (Abhimanyu) भागकर शादी करने वाले है. तो वहीं शो के अपकमिंग एपिसोड में एक और बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि दोनों बहनें अक्षरा और अरोही एक ही लड़के अभिमन्यु से प्यार करती हैं. अभिमन्यु की शादी आरोही से होने वाली है. लेकिन अभिमन्यु, अक्षरा से प्यार करता है. शो के नए प्रोमो के अनुसार, अक्षरा और अभिमन्यु भागकर शादी करने वाले हैं.

ये भी पढ़ें- Anupamaa में आएगा लीप, काव्या बनेगी मां तो समर करेगा दूसरी लड़की से शादी?

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Tellywood✨ (@tellywoodmagics)

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि शादी के दौरान आरोही को अभिमन्यु एक्सपोज करेगा. आरोही के आग वाले एक्सीडेंट का झूठ अभिमन्यु के सामने आएगा और वह शादी के दिन सबके सामने उसका सच बता देगा.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15: चैनल के खिलाफ बोली Tejasswi Prakash तो सलमान खान ने लगाई क्लास

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Abhira (@abhira_forever_yrkkh_)

 

दरअसल अभिमन्यु को आग वाले एक्सीडेंट की सच्चाई का पता चलेगा कि उसकी जान अक्षरा ने बचाई थी. उसे आरोही के झूठ से नफरत हो जाएगी. वह पूरे परिवार के सामने आरोही के झूठ का पर्दाफाश करेगा.

ये भी पढ़ें- Imlie: इमली ने किया आर्यन पर हमला, अनु की चाल का हुआ पर्दाफाश

 

View this post on Instagram

 

A post shared by star_plus (@star_plus_official)

 

Anupamaa में आएगा लीप, काव्या बनेगी मां तो समर करेगा दूसरी लड़की से शादी?

टीवी सीरियल अनुपमा की कहानी में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि काव्या कुछ दिन से शाह हाउस से गायब हो गई है लेकिन रिपोर्ट के अनुसार शो के आने वाले एपिसोड में काव्या धमाकेदार ट्विस्ट के साथ लौटेगी. जी हां, अब काव्या, वनराज को एक अच्छा सबक सिखाने वाली है. आइए बताते हैं शो के नए ट्रैक के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि नंदिनी काव्या को लेकर वनराज से खूब बहस करेगी. वनराज भी नंदिनी पर चिल्लाएगा.  तो दूसरी तरफ वनराज की नजदीकियां मालविका से बढ़ रही हैं. वनराज, मालविका के साथ बिजनेस के लिए माइंड गेम खेल रहा है.

ये भी पढ़ें- Imlie: इमली ने किया आर्यन पर हमला, अनु की चाल का हुआ पर्दाफाश

 

तो दूसरी तरफ अनुपमा अपने बेटे समर की हालत देखकर टूट गई है. लेकिन वह समर को संभालती नजर आ रही है. अनुपमा नंदिनी के लिए भी चिंतित है. शो में आप देखेंगे कि समर अपने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला करेगा. रिपोर्ट के अनुसार शो के अपकमिंग ट्रैक में समर को एक अमीर लड़की से शादी करेगा.

ये भी पढ़ें- GHKKPM: सई देगी विराट को तलाक तो श्रुति करेगी ये काम

 

बताया जा रहा है कि अनुपमा में जल्द ही लीप दिखाया जाएगा. शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या कहेगी कि वह वनराज के बच्चे की मां बनने वाली है तो वहीं पाखी अपने बॉयफ्रेंड संग भागने की तैयारी करेगी.

 

शो के पिछले एपिसोड़ में आपने देखा कि  पाखी अनुपमा से कहती है कि वह आगे की पढ़ाई के लिए यूएसए जाना चाहती है और वह चाहती है कि अनुपमा इस बारे में वनराज और बाबूजी से बात करे. लेकिन अनुपमा पाखी को समझाती है, वह कहती है कि वह विदेश जाने और पढ़ने के लिए बहुत छोटी है. वह कहती है कि जब वह आगे की पढ़ाई के लिए जाना चाहेगी, तो वे उसे यूएसए भेज देंगे.

ये भी पढ़ें- कटरीना कैफ-विकी कौशल: शादी भी सौदा भी

कांग्रेस का नारा: लडक़ी हूं, लड़ सकती हूं…

उत्तर प्रदेश के चुनाव अब सही पटरी पर आते देख रहे हैं जो पिछले और दलित नेता पिछले 7 सालों में पाखंड और छूआछूत की वैदिक ताकतों में भरोसा करने वाले सपा की राजनीतिक ब्रांच भारतीय जनता पार्टी में थोक में अपने सताए हुए गरीब, बेचारे, फटेहाल, आधे भूखों को पाखंड के खेल में झोंक रहे थे, वे अब समाजवादी पार्टी में लौट रहे हैं.

यह कहना गलत होगा कि यह पलायन आदित्यनाथ बिष्ठ उर्फ योगी की काम करने की पौलिसी के खिलाफ है. यह फेरबदल इस अहसास का नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी तो सिर्फ और सिर्फ मंदिर और पाखंडों के इर्दगिर्द घूमने वाली है जो दानदक्षिणा, पूजापाठ, स्नानों, तीर्थयात्राओं में भरोसा करती है, आप मजदूर, किसान, कारीगर छोटे दुकानदारों के लिए नहीं.

ऊपर से कांग्रेस को नारा कि लडक़ी हूं, लड़ सकती हूं, काफी जोर का है क्योंकि पाखंड के ठेकेदारों के हिसाब से लडक़ी सिर्फ भोग की चीज है जिसे पिता, पति या बेटे के ईशारों पर चलाना चाहिए और जिस का काम बच्चे पैदा करना, पालना, घर चलाना, पंडों की तनधन से सेवा करना और फिर भी यातना सहना है. लड़ सकती हूं का नारा कांग्रेस को सीटें चाहे न दिलाए वह भारतीय जनता पार्टी के अंधभक्तों की औरतों को सिर उठाने की ताकत दे सकता है. भारतीय जनता पार्टी अब बलात्कार का राजनीतिक फायदा नहीं उठा सकती.

राम मंदिर और का…… कौरीडोर पिछड़ों को सम्मान न दिए जाने और औरतों को पैर की जूती के समझने की आदत में बेमतलब के हो गए हैं. उत्तर प्रदेश जो देश की राजनीति जान है. अगर वहीं हाथ से फिसल गया तो 100 साल से पौराणिक राज के सपने देख रहे लोगों को बड़ा धक्का लगेगा.

ये भी पढ़ें- विद्यार्थियों पर चाबुक

वैसे चंद नेताओं के इधर से उधर हो जाने पर कुछ ज्यादा नहीं होता. पश्चिमी बंगाल चुनावों में अमित शाह ने शोक में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल करा लिया था और नरेंद्र मोदी खुले मंचों पर ‘दीदी ओ दीदी…’ ‘‘2 मई दीदी गई’’  का नारा लगाते रहे पर चुनाव परिणाम कुछ और थे. उत्तर प्रदेश में नेता अपने मतलबों से भाजपा से नहीं छिटक रहे हैं. उन्हें जमीनी हकीकत  का अहसास है. उत्तर प्रदेश हो या देश का कोर्ई भी हिस्सा देश का विकास सिर्फ मंदिरों तक है. और इन मंदिरों में भी जातिगत भेदभाव है. जहां पिछड़ों को उन के अपने छोटे देवता या गणेश और हनुमान…. गए हैं, दलितों को कौरव जैसे एक विष्णु, राम और महाभारत वाले कृष्ण ऊंची जातियों के लिए रिजर्व कर दिए गए हैं. ये मंदिर ही हैं जो आएगा की जमाअत को मजबूत करते हैं, उसे आरक्षण की जिसे खत्म करने के लिए सरकारें जीजान से लगी है. उन्होंने सरकार में सारा काम ठेके पर कराना शुरू दिया है और सरकारी कारखाने निजी कंपनियों को बेच डाले जहां आरक्षण का कानून नहीं चलता.

भारतीय जनता पार्टी छोडऩे वाले नेताओं ने अपनी जान और राजनीतिक दल पर बड़ा दांव खेला हे. वे जानते है कि उन के खिलाफ जांचें शुरू हो सकती हैं और उन्हें लालू यादव की तरह जेल में ठूंसा जा सकता है. पर जैसे लालू यादव ने अपनी जनता के हित के लिए समझौता नहीं किया, उम्मीद करें कि जो आज पाखंड की राजनीति छोड़ रहे हैं, जिस भी पार्टी में जाएं, कुछ बनाने की राजनीति करेंं. देश को तरक्की की सह पर तो जाने मैं बड़ी मेहनत करनी है. सबको बराबरी का स्तर देना आस्था नहीं है. एक पीढ़ी में तो कुछ न होगा क्योंकि 800 साल तक का बौद्ध धर्म का, जो पौराणिक धर्म से ज्यादा खुला था, आज नामोनिशान नहीं है.

ये भी पढ़ें- अदालतों का निकम्मापन

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें