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Winter 2022: न मर्ज रहेगा न ही मरीज

Writer- डा. पंकज चतुर्वेदी

इंगलैंड में 30 साल के एक युवक की अचानक मौत हो गई. डाक्टरों ने पाया कि इस असामयिक मौत का कारण सीजेडी अर्थात क्रूजफेल्ड जैकब डिजीज था. गहन जांच से पता चला कि युवक जब 15 साल का था, तभी उसे लंबाई बढ़ाने के लिए मानव वृद्धि हार्मोंस दिए जा रहे थे. हार्मोंस एक मुर्दे से निकाले गए थे और दाता टिश्यू के साथसाथ संक्रमण एजेंट भी आ गए थे. अनुमान है कि आज ऐसे हजारों लोग असामयिक काल के गाल में समा रहे हैं.

‘बच्चों के लिए पौष्टिक आहार, लंबाई बढ़ाएं तंदुरुस्ती बनाएं’, ‘वजन घटाना अब बहुत आसान, बस एक गोली रोज’, ‘बगैर कमजोरी के मोटापा कम करें’, ‘खुराक का बेहतरीन विकल्प, केवल एक कैप्सूल प्रतिदिन’, ‘मुंह में पंप करें, महीने में 7 किलो वजन घटाएं’, ‘स्लिम बनें, रंगरूप निखारें’ जैसे विज्ञापनों की प्रचार माध्यमों में भरमार है. इन के साथ यह भी प्रचारित किया जाता है कि नुस्खे अमेरिका में सफलता से आजमाए जा रहे हैं.

दूसरी ओर अमेरिका की सरकार ने मोटापा घटाने वाली नई लोकप्रिय दवाओं पर पाबंदी लगा दी थी, जिस का सेवन दुनियाभर में 50 लाख से अधिक लोग अपनी काया सुडौल बनाने के लिए करते थे. इस दवा के कारगर होने की प्रक्रिया शरीर के ‘मूल आचार व्यवहार में परिवर्तन’ के माध्यम से संचालित होती है जिस तरह मस्तिष्क कोशिकाओं से ‘न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटौनिक’ का स्राव होता है.

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असल में मोटापा घटाने वाली दवाओं के सेवन में मस्तिष्क कोशिकाओं का क्षय होने लगता है. हालांकि दवा निर्माता कंपनियों ने इस बात से असहमति जताई है लेकिन न्यूरोकैमिकल परीक्षणों से प्राप्त नतीजे इस बात को सिद्ध करते हैं कि मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं इस के कारण प्रभावित हो सकती हैं. खासतौर से पतली और लंबी शाखाओं वाली कोशिकाओं की न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटौनिक के प्रति अनुकूल होने की क्षमता घट जाती है.

इस रिपोर्ट के कुछ दिनों पहले अमेरिका में एक अन्य मैडिकल खोज की चर्चा थी. उस में बताया गया था कि मोटापा घटाने की एक और प्रचलित दवा लेने से जानलेवा हृदय रोग हो सकते हैं. इन दवाओं के कुप्रभावों पर जब हल्ला मचा तो इन्हें बाजार से हटा लिया गया.

अमेरिका की एक रिपोर्ट में लिखा गया था कि इन दवाओं को एफडीए (फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन) की मंजूरी केवल ‘अतिस्थूल मरीजों’ के इलाज के लिए थी, जबकि डाक्टरों और सुडौल बनाने की दुकान चलाने वालों ने इस का इस्तेमाल थोड़ी सी चरबी बढ़ने पर करना शुरू कर दिया था.

यही नहीं, इस मैजिक मैडिसिन की अंधाधुंध खुराकें भी दी गईं जिस के चलते फायदे के बजाय नुकसान अधिक हुआ. सनद रहे, पांडीमीन के दुष्प्रभाव की जानकारी उस की खोज के 24 साल बाद हो पाई थी.

मोटापा घटाने की लोकप्रिय दवा जब मंजूरी के लिए एक भारतीय कंपनी अमेरिका में एफडीए के पास गई तो पता चला कि इस दवा ने परीक्षण के दौरान जानवरों के दिमाग पर उलटा असर डाला था पर पैसा कमाने की हवस में कंपनी ने इस तथ्य को छिपाए रखा.

अमेरिका में ऐसे सैकड़ों मामले प्रकाश में आए, जिन में इस दवा का सेवन करने वालों के हृदय वौल्व क्षतिग्रस्त हो गए. साथ ही, दवा खाने वाले 30 फीसदी लोगों में बगैर किसी पूर्व लक्षण के दिल का वौल्व खराब होने की संभावना देखी गई.

इस बीमारी का मुख्य कारण वैकल्पिक आहार के रूप में दवा का इस्तेमाल बताया गया. इस तथ्य की जानकारी एफडीए को एक ऐसी कंपनी के उत्पादों से लगी जिस ने अपने वैकल्पिक खाद्य बनाने वाले कारखाने में अत्याधुनिक आनुवंशिकी इंजीनियरिंग बैक्टीरिया का इस्तेमाल शुरू किया था. इस बीमारी के शिकार लगभग 50 लोगों की मौत हो गई, जबकि कोई डेढ़ हजार के आसपास लोग स्थाई रूप से विकलांग हो गए थे.

आनुवंशिकी इंजीनियरिंग के तहत डीएनए तकनीक से इंटरफेरोन इंसुलिन हार्मोंस आदि चिकित्सकीय प्रोटीनों का उत्पाद होता है. इंटरफेरोन का निर्माण मानव शरीर के ऊतकों और रक्त कोशिकाओं से किया जाता है. इस का प्रयोग शक्तिशाली प्रतिविषाणु कारक एजेंट के रूप में होता है. चूंकि इसे मानव शरीर से प्राप्त करने की प्रक्रिया खासी जटिल और महंगी है, इसलिए इस के उत्पादन के लिए बैक्टीरिया प्रणाली अपनाने के प्रयोग आज भी हो रहे हैं.

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यहां जानना जरूरी है कि जिस मानव शरीर से इंटरफेरोन का संश्लेषण किया जाता है, उस के आनुवंशिकी जटिल रोगों का उस से निर्मित दवा खाने वाले पर गंभीर असर होता है. इसी प्रकार इंसुलिन का निष्कर्षण गाय और सूअर के अग्नाशय से किया जाता है. कई मामलों में पशु इंसुलिन से एलर्जी हो जाने की शिकायतें भी सामने आई हैं.

भारत में बिक रहीं संदिग्ध दवाएं

अमेरिका और यूरोप के देशों में जब ऐसी घातक दवाओं के इस्तेमाल पर पाबंदी लगी तो पेटेंटधारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत जैसे विकासशील देशों को अपना बाजार बना लिया. आज भारत के बाजार में सैकड़ों ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बिक रही हैं, जिन की रोग निरोधक क्षमता संदिग्ध है. कई दवाओं पर भारत सरकार ने पाबंदी लगा रखी है और कइयों के घातक असर को देखते हुए उन पर रोक लगाना जरूरी है. कुछ ऐसी दवाएं भी बाजार में बिक रही हैं, जिन के माकूल होने की जांच आज तक किसी अधिकृत संस्था से नहीं हुई है.

बाजार में इन दिनों भूख बढ़ाने वाली दवाओं का बोलबाला है. ऐसी कई दवाएं प्रचलित हैं, जो नवजात शिशुओं या समय से पहले पैदा हुए बच्चों के लिए जानलेवा हो सकती हैं. इन दवाओं के इस्तेमाल से मतिभ्रम, ऐंठन और मौत तक संभव है. इस से मानसिक सक्रियता में कमी आने के भी अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं.

जहां एक ओर भारत को अपने बेकार व नुकसानदायक उत्पादों की मंडी बनाने के लिए जन स्वास्थ्य से मखौल करते विकसित देश हैं, वहीं दूसरी ओर लापरवाह भारत सरकार है, जो आने वाली पीढि़यों को पंगु बनाने वाली तथाकथित दवाओं की बिक्री के प्रति आंखें मूंदे हुए है. साथ ही, वह नव धनाढ्य वर्ग भी है, जो अत्याधुनिक भौतिक लिप्सा की फिराक में अपने हाथपैर हिलाने से भी परहेज कर रहा है. फलस्वरूप, बेडौल हो रहे शरीर को स्लिमट्रिम रखने के लिए ऐसी दवाओं का सहारा ले रहा है, जो घोषित जहर हैं.

हो सकता है कि इस पीढ़ी की कोताही का खमियाजा आने वाली पीढ़ी को भोगना पड़े क्योंकि आज शारीरिक आनुवंशिकी में बदलाव करने वाली जो दवाएं दी जा रही हैं, उन का असर आने वाली नस्लों पर तो होना है.

कोविड-19 के बाद वैक्सीन का इन दवाओं पर क्या असर होगा, यह भी अभी पता नहीं है क्योंकि वैक्सीन निर्माताओं का सारा ध्यान स्वस्थ लोगों पर है, उन पर नहीं जो अनापशनाप दवाएं, काढ़े, दवाइयां खाते रहते हैं. हमारे यहां घरघर दवा बनाने के कारखाने खुले हैं और वे वैक्सीन व वजन घटानेबढ़ाने की दवाओं के साथ क्या खिलवाड़ कर सकते हैं, अभी मालूम नहीं है.

एक कमरे में बंद दो एटम बम: नीना और लीना की कहानी 

Writer- Dipanvita Roy Banerjee

वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

” मै कुछ भी वीडियो फारवर्ड करूं ,किसी से कुछ भी कहूं ,तुम्हे क्या – तुमने मेरे मामले में दुबारा टांग अड़ाने की कोशिश भी की तो अंजाम देखने के लिए तैयार रहना! तुम औरत हो,देश और दुनिया के बारे में ज्यादा नाक न गलाओ! समझी?”

“अरे! इतनी क्यों कट्टर सोच है  तुम्हारी ! तुम सारे ग्रुप्स में फेक वीडियो डाल रहे हो ,भड़काऊ संदेश भेज रहे हो, कोरोना वाले लौक डाउन में जहां लोगों को शांत रहकर एक जुट होने का संदेश देना चाहिए, ताकि बिना वैमनस्य के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें, तुम असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हो, और मुझसे सहा नहीं जा रहा तो मै इसलिए चुप रहूं क्योंकि मै औरत हूं!”

“हां ,इसलिए ही तुम  मुझसे मुंह मत लगो! तुम लेडिस लोग समझती कुछ नहीं बस मुंह फाड़कर चिल्लाने लगती हो!”

“लडकियां भी समझ रही हैं, कि औरतों के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना पूराना और कमतर है!”

“जानना ही चाहिए! उन्हें अपनी तरह नाच मत नचाओ!

औरत का जन्म है तो जिंदगी भर औरत ही रहेगी,मर्द बनकर  तो नहीं रह सकती!”

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उफ़ इसका क्या इलाज! बात बढ़ने से बच्चियां परेशान होंगी, श्रीजा मन मसोस कर रह गई.

कोरोना की वजह से लौक डाउन था.औफिस बंद था,यानी अब अपनी मर्जी का था,दवाब नहीं था. सैर सपाटा,दोस्ती यारी ,शराब कबाब बन्द था , बिन बताए घर से घंटों गायब रहना बन्द था, इस बन्द में सब कुछ तो बन्द था – फिर श्रीजा का खुलकर सांस लेना तो बन्द होना ही था ! मन लगाने को भड़काऊ संदेश फारवर्ड और पत्नी और बेटियों पर कट्टर पंथी सोचों का वार! लौक डाउन ने वाकई श्रीजा की जिंदगी तोड़ मरोड़ कर रख दी थी.

वह बेटियों के पास जाकर बैठ गई.छोटी बेटी ने पूछा – मां क्या पापा के दूसरे धर्मों के दोस्त नहीं है? मेरे तो बहुत सारे दोस्त हैं पक्के पक्के, जिनकी धर्म जाति  मुझसे अलग है.उनके घर जाती हूं तो पता तो नहीं चलता कि वे अलग धर्म के है, हम तो उनके घर खूब मज़े करते हैं!”

“बेटा खुराफात लोगों का यह अच्छा टाइम पास है! यहां इस लौक डाउन में  कितने ही लोगों को कितनी मुश्किलें हो रहीं हैं ,हम चाहे तो उन्हें मदद करें, ये क्या कि आपस में रंजिश बढ़ाएं! हर जाति धर्म में बुरे लोग होते हैं, जो अपराध करते हैं, उनका धर्म अपराध होता है, और कुछ नहीं! लेकिन कट्टर सोच वालों को कैसे समझाया जाय!”

“क्या हमारे पापा भी कट्टर ही हैं?”

“ये तुम खुद ही समझना , मै नहीं बता सकती!”

डिनर जैसे तैसे खत्म कर अब सोने की तैयारी थी.

निबाहना भी भारी काम है .श्रीजा को निभाना पड़ता ही है, बात सिर्फ बच्चों के भविष्य की ही नहीं, इस मरदुए से वो भी तो जाने अनजाने लगाव की डोर से बंधी है! दिमाग में कितनी ही भिन्नता हो, दिल में कितनी ही खिन्नता हो, निभाना सिर्फ निभाना नहीं, दिल का कहा मानना भी है!

काश ! पति अगर शांति प्रिय होता, उदार और समझदार होता, तो घर में ताला बन्दी कितनी रूमानी होती! हसरतें अनुराग से भरी भरी -बल्लियों उछलती पतिदेव के गले में झुल सी जाती!

पर यहां तो कूप मंडूक को देखते ही तन बदन में आग लहक जाती है!

कमरा साफ सुंदर, नीली रोशनी जैसे मादक नील परी सी अपनी चुनरी फैलाए थी!

करीने से बिस्तर लगाकर श्रीजा एक किनारे सिमट गई .

“श्रीजा ! इधर आओ ”

“मन नहीं है!”

“तुम्हारे मन से क्या होता है?”

“लौक डाउन!”

“वो बाहर है!”

“दिल में भी!”

“अरे! छोड़ो मै दिल की बात नहीं कर रहा!”

” मेरे घर का दरवाजा दिल से होकर गुजरता है! मेरा दिल चकनाचूर है! तुम देश वासियों में नफरत क्यों बांट रहे हो? उदार बनो,कट्टर नहीं! ”

“भाड़ में जाओ! इतना लेक्चर चौराहे पर जाकर दो!”

यार एक तो घर में कैद होकर रह गया ,ऊपर से तुम एटम बम फोड़े जा रही हो! घर है कि ब्लास्ट फर्नेस!”

“तुम ही बताओ! तुम भी कोरोना बम से कम हो क्या!

इतनी नफरत और उंच नीच का भेद भाव!”

अचानक  एक तकिया श्रीजा की पीठ पर आकर लगा. वो समीर की तरफ पीठ दिखाकर लड़ती जा रही थी, कि अचानक यह झटका !

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धमाके सा समीर मेन गेट खोलकर बाहर निकल चुका था.

दिमाग भन्ना गया था समीर का. आखिर एक औरत को इतनी हिम्मत पड़ी कैसे कि वह अपने पति से जवाब तलब करे ! कहीं उसने श्रीजा को ज्यादा ढील तो न दे दी? समीर अपने विचारों में इतना ही खो चुका था कि कब वह अपनी कालोनी से निकलकर मेन रोड में चलता जा रहा था उसे पता ही न चला!

होश तो तब हुआ जब पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने उसे आकर रोका!

“अरे !सर जी कुछ नहीं, बीबी घर में बड़ा चिक चिक कर रही थी!

मजाक है ?बिना मास्क बाहर घूम रहे हैं, वो भी रात के बारह बजे इस 144 में!”

लाख मिन्नतें कर किसी  तरह समीर पुलिस से जान छुड़ाने में कामयाब हुआ लेकिन पुलिस की गाड़ी उसे घर तक छोड़ने आई.

क्या हुआ मैडम! हम तो इन्हे थाने ले जा रहे थे.बड़ा गिड़गिड़ाया इन्होंने. क्या अनबन हो गई?”

“अहंकार के फुले हुए कुप्पे का यूं पिचक जाना श्रीजा के लिए बड़ा संतोष कारी था.उसने समीर की ओर भेद भरी नजरों से देख इतना ही पूछा- “क्या हुआ था

बताऊं?”

“अरे सर जी! गलती मेरी भी थी! अब घर के अंदर ही रहूंगा और बीबी की बात मानुंगा.”

श्रीजा के अंदर हंसी का गुबार भर भर निकलने को हुआ,लेकिन वो समीर के घिघियाए चेहरे को हंसी में टालना नहीं चाहती थी.

फिर से दोनो बिस्तर पर थे.समीर इस बार अपना खार खाया हाइड्रोजन बम दिल में ही दबाकर चुप सो गया!

करम फूटे जो ऐसी एटम बम को छुए!

जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 2: क्या हुआ था विहान और मिशी के जीवन में

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

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मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

‘‘जानती हो, जब हम साथ पढ़ाई करते थे तब भी मैं टौपिक समझ न आने के बहाने से देर तक बैठा रहता. तुम मुझे बारबार समझतीं. पर, मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में. जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान…’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो मुझे और मेरे दिल की आवाज को. याद है मिशी, जब हम 12वीं में थे, तुम मुझ से कहतीं, ‘क्यों विहान, गर्लफ्रैंड नहीं बनाई, मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं?’ मैं पूछता कि तुम्हारा भी है तो तुम हंस देतीं, ‘हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है एमबीए की, फिर मस्त जौब. पर विहान,  तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए’ इतना  कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें  झकझर कर कहूं कि तुम हो तो, पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर  जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता, वह देने वाला मैं ही था. बचपन में जब तुम को तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पैंसिल बौक्स में मिली, तुम बेहद खुश हुई थीं. अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘विहान, पता नहीं कौन है, मौम, डैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा यह सरप्राइज गिफ्ट  मिले.’ तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,’’ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं यह करता गया. पहले पैंसिल बौक्स था, फिर बैग, फिर तुम्हारा पर्स और अब कूरियर.’’

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सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई. वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर कभी यह नहीं सोचा कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी. चांद स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छिपे प्रेम की परतें खोल  रहा था.

Satyakatha: इश्क में सिर कलम

कीर्ति और अविनाश एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे, तभी तो उन्होंने घर वालों को बताए बिना शादी कर ली. 19साल की कीर्ति हमेशा की तरह घर से बाजार जाने को कह कर निकली थी. मां को बताया था कि वह पहले कांता के पास जाएगी. उसे भी साथ में जाना है. उस को अपने लिए कुछ जरूरी सामान खरीदना है. रास्ते में ही उस का भाई कुणाल मिल गया. वह ट्यूशन पढ़ कर साइकिल से घर लौट रहा था. उस ने टोका था, ‘‘कहां जा रही है अकेली?’’

कुणाल कीर्ति से केवल एक साल छोटा था. भाई को भी उस ने सहमते हुए वही कहा, जो मां से बता कर निकली थी. इस पर उस ने सवाल भी किए थे, ‘‘लेकिन, कांता का घर तो पीछे रह गया?’’ कुणाल ने उस से कहा.

इस पर सफाई देते हुए वह बोली, ‘‘कांता खेत पर गई हुई है, रास्ते में मिल जाएगी.’’

उस के बाद कीर्ति तेजी से आगे बढ़ गई और कुणाल तेजी से साइकिल के पैडल मारते हुए वहां से चला गया.

उस के जाते ही कीर्ति अपने आप से बोलने लगी, ‘हुंह… बड़ा आया सवाल- जवाब करने वाला. खुद तो ट्यूशन के बहाने दोस्तों के साथ घूमता फिरता है और हमें रोकताटोकता रहता है.’

इस के बाद कीर्ति अपने प्रेमी अविनाश के पास एक निश्चित जगह पर पहुंच गई, जो उस का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही अविनाश खुश हो गया. वह अपने मोबाइल में टाइम दिखा कर चहकती हुई बोली, ‘‘देखो, आज मैं ने तुम्हारी शिकायत पूरी कर दी है. एकदम समय पर पहुंच गई हूं.’’

‘‘मुझे तुम्हारा भाई घर जाते हुए दिखा था, तब लगा तुम शायद आज नहीं आ पाओगी, लेकिन तुम ने तो वाकई कमाल कर दिया.’’ खुशी और आश्चर्य से अविनाश ने उस के हाथ पकड़ लिए.

‘‘चलो, उधर पीछे की ओर बैठते हैं. मैं तुम्हारे लिए कुछ लाई हूं.’’ कीर्ति स्कूल की पुरानी बिल्डिंग की ओर इशारा करती हुई बोली.

‘‘हां चलो, मैं ने वहां पर एक अच्छी जगह देखी है, जहां अब कोई आताजाता नहीं है. और वहां बैठने लायक थोड़ी साफसफाई भी है.’’ अविनाश बोला.

उस के बाद दोनों सरकारी स्कूल की पुरानी बिल्डिंग के पिछवाड़े खाली जगह पर चले गए. वहां छोटेबड़े पेड़पौधे लगे थे. हरियाली थी. मनमोहक जगह थी. लोगों की नजरों से बच कर कुछ समय वहां बिताया जा सकता था.

दोनों वहीं एक पेड़ की ओट में बैठ गए. कीर्ति अपने साथ पीठ पर लादे छोटा सा बैग उतार कर खोलने लगी. उस में से गांठ लगी पौलीथिन निकाली.

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‘‘क्या है इस में?’’ अविनाश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘अभी बताती हूं. इस में तुम्हारी पसंद का नाश्ता है. मैं ने खासकर तुम्हारे लिए कांदापोहा बनाया है. लेकिन मिर्ची तेज लगेगी. तुम्हें पसंद है न, इसीलिए हरी मिर्च ज्यादा डाली हैं.’’ कीर्ति पौलीथिन पैक की गांठ खोलती हुई बोली.

‘‘अरे वाह! मेरी पसंद का तुम कितना खयाल रखती हो. मैं भी तुम्हारे लिए कुछ ले कर आया हूं.’’ अविनाश सामने बैठते हुए बोला.

‘‘क्या लाए हो दिखाओ,’’ कीर्ति बोली.

‘‘पहले पोहा खा लेता हूं, फिर दिखाता हूं, खूशबू अच्छी आ रही है.’’ अविनाश बोला.

‘‘देखो कैसा कलर है पोहा का. नमक कम लगे तो बताना अलग से पुडि़या में है.’’ कीर्ति तब तक पोहा एक छोटी सी थर्मो प्लेट में निकाल चुकी थी.

अविनाश ने भी अपने बैग से एक छोटा सा पैकेट निकाल लिया था. उसे देखते ही कीर्ति चहक पड़ी, ‘‘अरे हेडफोन! यह महंगा वाला लगता है…’’

‘‘हां, थोड़ा महंगा है, लेकिन कार्डलैस है. तुम को औनलाइन पढ़ाई में दिक्कत आ रही थी, इसलिए तुम्हारे लिए खरीदा है.’’ अविनाश बोला. उस ने पैकेट खोल कर गले में पहनने वाले हेडफोन को उस के गले में डाल दिया.

‘‘पोहा भी खाओ ना,’’ कीर्ति खुशी से बोली.

‘‘कीर्ति हम लोग कब तक छिप कर मिलते रहेंगे. तुम्हारा भाई हमेशा हमें शक की निगाह से देखता है. वो है तो उम्र में छोटा लेकिन पता नहीं क्यों उस की नजरें हमेशा हमें तरेरती रहती हैं.’’

‘‘क्या करूं अविनाश, मैं भी उस से परेशान रहती हूं. पता नहीं इस हेडफोन को ले कर कितने सवालजवाब करे.’’

‘‘बोल देना मैं ने ट्यूशन पढ़ा कर कमाए पैसों से खरीदा है.’’

इस तरह कीर्ति और अविनाश का आपसी प्रेम परवान चढ़ने लगा था. वे एकदूसरे के दिलों की भावना को गहराई से समझने लगे थे, उन के बीच प्रेम में कोई छलावा या दिखावा नहीं था. केवल एक ही बात मन को कचोटती थी कि उन्हें मिलने के लिए घर वालों से कई तरह के झूठ बोलने पड़ते थे. ऐसा करते हुए कीर्ति कई बार परेशान हो जाती थी. मन दुखी हो जाता था.

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में वैजापुर तहसील के लाड़गांव शिवार की रहने वाली कीर्ति को गांव के ही अविनाश संजय थोरे से प्यार हो गया था. दोनों अकसर ही छिपछिप कर मिलते और घंटों प्यारभरी बातों में डूबे रहते थे. इस बीच उन्होंने हर तरह के सपने बुने थे.

उन के बीच पढ़ाईलिखाई से ले कर सिनेमा, संगीत, फैशन, मौडल, एंटरटेनमेंट, हाटबाजार, शहरी मौल मल्टीप्लेक्स और कोरोना तक की बातें होती थीं.

कई बार वे आलिया भट्ट से ले कर अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण से ले कर रणवीर, अक्षय और विराट कोहली को ले कर चर्चा और बहस करने लगते थे.

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जब मोदी, राहुल, प्रियंका की बातें होतीं तब दोनों चिढ़ जाते थे. अविनाश कहता कि हमें राजनीति से कोई मतलब नहीं है. कीर्ति भी तुनकती हुई कहती, मुझे कौन सी राजनीति से मतलब है. अरे, लौकडाउन लगने से वे बातों में आ जाते हैं. मैं क्या करूं.

प्यार परवान चढ़ा तो दोनों ने जीवन भर साथ रहने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उन्होंने अपनीअपनी किताबें हाथ में ले कर कसम खाई कि वे शादी करेंगे एकदूसरे के साथ ही.

उन्होंने अपनी किताबों पर एकदूसरे का नाम लिख कर अदलाबदली भी कर ली थी. हालांकि दोनों को ही मालूम था कि परिवार और बिरादरी वाले उन की शादी में रोड़ा अटकाएंगे. वजह थी दोनों ही जातियों के बीच बरसों से चला आ रहा मनमुटाव.

लाड़गांव शिवार में 2 उपनाम के परिवारों में विवाह संबंध नहीं होते हैं. यह कोई एक गोत्र वाला मामला नहीं है, बल्कि दोनों के बीच वर्चस्व और मानमर्यादा की लड़ाई का है. एक पक्ष का मानना है कि उन के नाम वाले लोग ही गांव के मुखिया रहे हैं, इसलिए यहां उन की ही चलेगी.

जबकि दूसरे पक्ष का तर्क होता है कि वह भी उसी जाति से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने भी राज किया है, इसलिए उन का वर्चस्व और मानसम्मान ज्यादा होना चाहिए. इस भाव के कारण दोनों बिरादरी के लोग एकदूसरे को नीचा दिखाने की जुगत में लगे रहते हैं.

ऐसे गांव में जब कीर्ति और अविनाश के दिलों में एकदूसरे के लिए प्यार की कोपलें फूटीं तो वे शादी की इच्छा घर वालों से बताने में डर गए. उन्हें पता था कि दोनों के घर वाले इस के लिए कभी भी राजी नहीं होंगे. अलबत्ता बात का बतंगड़ बन जाएगा और नौबत मरनेमारने तक आ जाएगी. तब दोनों प्रेमियों ने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया. जून 2021 में दोनों ने किसी को बताए बिना घर से भाग कर पुणे के आलंदी में विवाह कर लिया.

इस शादी की सूचना जब कीर्ति के पिता संजय मोटे को मिली, तो उस ने घर में तांडव शुरू कर दिया. वह आगबबूला हो गया. उसे लगा कि बेटी के इस कदम से उस की प्रतिष्ठा धूमिल हो गई है. गांव भर के आगे उस की नाक कट गई है. इस तनाव के चलते उस ने अपनी पत्नी शोभा पर ही बेटी को नहीं संभाल पाने का आरोप मढ़ दिया.

वह आए दिन अपनी पत्नी को कोसने लगा. उस के साथ गालीगलौज और मारपीट तक शुरू कर दी. हर गलती के लिए वह अपनी पत्नी को ही दोषी ठहरा देता. यही नहीं, कीर्ति के छोटे भाई कुणाल पर भी जबतब बाप का गुस्सा फूटने लगा.

संजय मोटे के उग्र तेवरों के कारण पूरा परिवार बुरी तरह तनाव में आ गया था. सब के दिमाग में यह बात बैठ गई कि कीर्ति ने प्रेम विवाह कर गांव भर में उन की इज्जत मिट्टी में मिला दी है.

कुछ दिनों बाद कीर्ति और अविनाश लाड़गांव आ कर रहने लगे. कीर्ति के अपनी ससुराल में पति के साथ रहने की खबर कीर्ति के घर वालों को मिली.

उन्हें यह भी मालूम हुआ कि कीर्ति को अविनाश के घर वालों ने अपना लिया है. कीर्ति अपनी ससुराल में रचबस गई थी. खुशी की बात यह थी कि वह गर्भवती थी. उस के पेट में 2 माह का गर्भ था.

कीर्ति की मां शोभा को जब दोनों के गांव लौटने का समाचार मिला तो एक दिन वह जा कर बेटीदामाद से उन के घर पर मिल आई. बेटी और दामाद से बड़ी आत्मीयता से मिली. कीर्ति ने महसूस किया कि उस की मां को अब उस की अविनाश से शादी को ले कर कोई शिकायत नहीं है.

मां ने मीठीमीठी बातें कर पिता को भी मना लेने का वादा किया. जबकि सच्चाई तो यह थी उस की मां भीतर ही भीतर सुलग रही थी. उस के दिलोदिमाग में खुराफाती योजना बन चुकी थी. यह बात उस ने केवल अपने बेटे संकेत को बताई.

योजना के मुताबिक ही 5 दिसंबर, 2021  को शोभा फिर अपने बेटे कुणाल के साथ कीर्ति की ससुराल गई. उस वक्त कीर्ति खेत में अपने सासससुर के साथ काम कर रही थी. मां और भाई को आया देख वह खेत का काम छोड़ कर खुशीखुशी घर दौड़ी आई.

उस ने बड़े प्यार से मां और भाई को पानी का गिलास दिया और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. उस समय उस का पति अविनाश भी घर पर ही था, लेकिन तबियत ठीक नहीं होने के कारण वह दूसरे कमरे में लेटा हुआ था.

अचानक अविनाश को रसोई में बरतनों के गिरने की आवाज सुनाई दी. वह बिस्तर से उठ कर रसोई में आया. वहां का नजारा देख कर तो उस के होश ही उड़ गए. वह रसोई के दरवाजे पर ठिठक गया. हाथपैर जैसे सुन्न पड़ गए.

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रसोई में शोभा यानी उस की सास ने अपनी बेटी कीर्ति के दोनों पैर कस कर पकड़ रखे थे और उस का छोटा भाई कुणाल एक धारदार हथियार कोयता से बहन की गरदन पर वार पर वार किए जा रहा था.

मां और भाई के हमले से कीर्ति बुरी तरह छटपटा रही थी. मगर उस की छटपटाहट क्षण भर में ठहर गई और भाई ने अंतिम वार कर उस की गरदन को धड़ से अलग कर दिया.

बहन का सिर बालों से पकड़ कर लहराते हुए दूसरे हाथ में खून सना कोयता लिए दरवाजे पर खड़े अविनाश को मारने के लिए झपटा. बीमार अविनाश कमजोरी महसूस कर रहा था. वह किसी तरह वहां से बच कर निकल भागा.

कीर्ति का भाई बहन का सिर हाथ में ले कर बाहर बरामदे में आया. बाहर खड़ी भीड़ को उस ने बहन का खून टपकता सिर दिखाया. मोबाइल निकाल कर सेल्फी खींची और फिर मां को मोटरसाइकिल पर बैठा कर पुलिस थाने जा पहुंचा. थाने में उस ने हत्या का जुर्म स्वीकारते हुए सरेंडर कर दिया.

वैजापुर के डीएसपी कैलाश प्रजापति ने इस बारे में मीडिया को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि औनर किलिंग का यह रोंगटे खड़े कर देने वाला कांड है. छोटे भाई ने जिस बेरहमी से अपनी बड़ी बहन की हत्या की, उसे देख कर पुलिस भी थर्रा गई.

उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि कीर्ति 2 महीने की गर्भवती थी. एक मां द्वारा एक होने वाली मां की ऐसी जघन्य हत्या समाज की संकीर्ण मानसिकता बताती है.

अपनी झूठी इज्जत के लिए अपने खून का भी खून करने में लोग नहीं हिचकते हैं और यहां तो एक महिला ने ऐसा कांड कर डाला. इन दोनों से पूछताछ में पता चला कि ये लोग कीर्ति की हत्या की योजना पहले से ही बना कर बैठे थे. बस मौके की तलाश थी, जो उस रोज मिल गया था.

इस मामले में मां और बेटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का आरोपी बनाया गया है. आधार कार्ड और स्कूल प्रमाण पत्र के अनुसार कुणाल नाबालिग था, इसलिए न्यायालय ने उसे नाबालिग मानते हुए औरंगाबाद के बाल न्यायालय के समक्ष हाजिर करने के आदेश दिए. जहां से उसे जुवेनाइल होम भेज दिया गया. जबकि मां शोभा को हत्या के आरोप में जेल भेजा गया है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुणाल परिवर्तित नाम है.

लॉकडाउन में मेरे घर का माहौल खराब हो गया है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे घर में मेरे पति, सास और 2 बच्चे रहते हैं. जब से हम सभी लौकडाउन के चलते घर में एकसाथ हैं  तभी से हमारे घर की दिनचर्या अस्तव्यस्त हो गई है. हम सभी का सोने और उठने का समय एकदम बदल चुका है, खासकर मेरे बच्चों का. बेटे की उम्र 23 वर्ष है और बेटी की 16 वर्ष. दोनों सुबह 5 बजे के बाद सोते हैं और दोपहर 2 बजे के बाद उठते हैं. मैं उन्हें समझा कर थक गई लेकिन वे मेरी बात नहीं सुनते. मुझे फिक्र है कि कहीं वे बीमार न हो जाएं पर उन्हें कहूं क्या यह समझ नहीं आता. पूरा दिन वे दोनों अपने फोन तो कभी लैपटौप पर लगे रहते हैं, मैं क्या करूं कुछ बताएं.

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जवाब

लौकडाउन के दौरान ऐसा होना स्वाभाविक है परंतु सही नहीं है. आप अपने बच्चों को नाराज न करने के चक्कर में उन्हें उन की सेहत के साथ खिलवाड़ करने दे रही हैं जोकि सही नहीं है. वे गुस्सा करते हैं तो करने दीजिए, वे नाराज होते हैं तो उन्हें नाराज होने दीजिए लेकिन उन्हें टोकने से रुकिए नहीं. आप उन्हें एकदो दिन टोकेंगी तो चाहे उन्हें बुरा ही क्यों न लगे लेकिन उन्हें आप की बात तो माननी ही होगी.

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आप घर की गृहिणी हैं तो अपने तरीके से बात मनवाइए. उन से कह दीजिए यदि वे समय से नहीं उठेंगे तो उन्हें नाश्ता नहीं मिलेगा या घर का काम उन्हें ही करना पड़ेगा. ऐसे वे कब तक आप की बात को नकारेंगे.

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क्षितिज ने पुकारा- भाग 1: क्या पति की जिद के आगे नंदिनी झुक गई

शुभंकर सर के ड्रामा स्कूल के गेट से निकल कर नंदिनी औटोस्टैंड की ओर बढ़ी ही थी कि पीछे से प्रीतम प्यारे ने आवाज दी, ‘‘कहां चली नंदिनी? रात हो रही है… शायद ही औटो मिले. चलो, मैं छोड़ देता हूं.’’

नंदिनी रुक गई. एक शालीन मनाही की खातिर. बोली, ‘‘नहीं प्रीतम, अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. 9 ही तो बजे हैं.’’

‘‘तुम्हारी तरफ वाले औटो अब ज्यादा कहां?’’

नंदिनी ने अपनी चलने की गति बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मिल जाएंगे.’’

प्रीतम पास ही बाइक की स्पीड धीमी कर के चल रहा था.

नंदिनी चिंतित सी बोली, ‘‘प्रीतम, तुम चले जाओ… रूपेश ने देख लिया तो मैं…’’

‘‘ठीक है… चलो तुम्हें औटो में बैठा कर मैं निकल जाऊंगा. अकेले छोड़ दिया और फिर औटो नहीं मिला तो बड़ी मुश्किल होगी,’’ प्रीतम बोला. कोलकाता शहर का टौलीगंज इलाका नृत्य, संगीत, सिनेमा, थिएटर के नशे में पूरी तरह विभोर. रोजगार देने वाला शहर होने की वजह से जनसंख्या अत्यधिक थी.

नंदिनी का घर सोनारपुर में पड़ता था. अपेक्षाकृत कुछ अविकसित इलाका. रात होते ही औटो की आवाजाही उधर कम हो जाती.

नंदिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘आज तुम अभी घर जा कर फिर एक बार शुभंकर दा के घर जाने वाले हो न स्क्रिप्ट फाइनल करने?’’

‘‘हां जाना ही पड़ेगा. शुक्रवार को शो है. फिर मालदा और रानाघाट भी शो फाइनल करने जाना पड़ेगा… सारी बातें उन के साथ करनी ही पड़ेंगी. चौकीदार के रोल के लिए कोई राजी नहीं हो रहा जबकि छोटा होने के बावजूद वह अहम रोल है.’’

‘‘हां शुभंकर दा भले ही डाइरैक्टर हैं, लेकिन तुम्हारे बिना तो सारा कुछ असंभव सा है… वैसे टीम मैंबर सब अच्छे ही हैं.’’

‘‘नई त्रिशला अभी अकुशल है. उस के लिए शुभंकर दा की मेहनत थोड़ी ज्यादा हो गई है.’’

‘‘कोलकाता के 2 हौलों के टिकट की व्यवस्था कब तक हो जाएगी?’’

‘‘देखो शुभो दा क्या कहते हैं.’’

‘‘आधा घंटा होने को आया पर अभी तक कोई औटो नहीं आया. चलो बैठो नंदिनी अब जिद से कोई लाभ नहीं,’’ प्रीतम प्यारे बोला.

नंदिनी लाचार हो गई थी, पर प्रीतम का उस के लिए ठहरना उसे गवारा नहीं था… उस के साथ जाने या मतलब रूपेश के हाथों मौत को निमंत्रण देना था.

जैसे ही नंदिनी प्रीतम की बाइक पर पीछे बैठी रूपेश की आंखें, उस के गाल, उस के कान, उस के बाल, उस की मूंछें, उस की भौंहें सब कुछ धीरेधीरे किसी दैत्य सा उस की आंखों के सामने घूमने लगा. वह समझ नहीं पाती कि पता नहीं वे लोग उस पर थोड़ी भी दया क्यों नहीं दिखाते.

नंदिनी के पिता की किराने की छोटी सी दुकान थी. दोनों बेटियों की शादी उन्होंने इसी दुकान के सहारे बड़ी धूमधाम से की थी. लेकिन आसपास बड़ेबड़े मौल्स, शौपिंग सैंटर्स आदि खुल जाने पर उन का महल्ला भी शहर की चकाचौंध में ऐसा गुम हुआ कि उन की दुकान बस मक्खियों का अड्डा बन कर रह गई.

पिता की दुकान से जब घर में फाके की नौबत आ गई तो फाइन आर्ट्स में ग्रैजुएशन करने की नंदिनी ने सोची. वह शौकिया थिएटर करती रहती थी. एक दिन प्रयोजन ने शुभंकर दत्ता के थिएटर स्कूल से उसे जोड़ दिया. शुभंकर दत्ता थिएटर से जुड़े समर्पित व्यक्तित्व थे. प्रीतम उन का दाहिना हाथ था, जो प्राइवेट फर्म में नौकरी के साथसाथ थिएटर और रंगमंच के प्रति भी पूरी तरह समर्पित था.

इस के अलावा यहां स्त्रीपुरुष मिला कर करीब 20 लोगों की टीम थी, जो थिएटर मंचन के लिए बाहर भी जाती और कोलकाता के अंदर भी हौल बुक कर टिकट बेच अपना शो चलाती.

ये सब भले ही पैसों की जरूरत के मारे थे, लेकिन जनून इतना था कि न इन्हें अपना न स्वास्थ्य दिखता न पैसा… न समय दिखता, न परिवार यानी थिएटर ही इन का सब कुछ बन गया था. लेकिन जितना ये इस थिएटर से कमाते, उस से कहीं ज्यादा इन्हें इस में लगाना पड़ जाता. खासकर शुभंकर और प्रीतम तो जैसे इस यूनिट को चलाए रखने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार रहते. वहां टीम के बाकी लोग भी कभी अपना समर्पण कम न करते.

रचनात्मकता के स्रोत जैसे इन के बीच लगातार फूटते रहते. ‘‘रुकोरुको प्रीतम… मैं यहीं उतर जाऊंगी,’’ कहते नंदिनी गाड़ी के धीरे होने से पहले ही उतरने की कोशिश करने लगी.story in hindi

‘‘इतनी दूर अंदर तक अकेले जाओगी?’’

‘‘तुम चले जाओ प्रीतम…मैं रूपेश को फोन करती हूं.’’

कई बार फोन मिलाने के बावजूद कोई उत्तर नहीं. प्रीतम को न चाहते हुए भी अनदेखा कर वह घर की ओर चल पड़ी. प्रीतम प्यारे बड़ा खुशमिजाज, सच्चा और मददगार इनसान है. वह समझ गया था कि नंदिनी पति की ओर से काफी परेशानी है.

कई बार शादीशुदा व्यक्ति भी संवेदनशील न होने पर स्त्री की दशा बिना समझे उस पर ज्यादती करता है और कई बार प्रीतम प्यारे जैसे लोग शादीशुदा न हो कर भी संवेदनशील होने के कारण अपने आसपास की स्त्रियों की दशा भलीभांति समझ पाते हैं.

प्रीतम पाल की इसी नर्मदिली की वजह से टीम की सारी महिलाएं उसे प्रीतम प्यारे कहतीं.

नंदिनी को घर में प्रवेश करते ही रूपेश बैठक में सोफे पर बैठा मिला. अखबार के पीछे छिपे रूपेश के चेहरे को यद्यपि वह पढ़ नहीं पा रही थी, लेकिन उस की मनोदशा से वह अनजान भी नहीं थी.

नंदिनी ने डरते हुए पूछा, ‘‘खाना लगा दूं?’’

शाम 5 बजे नंदिनी थिएटर रिहर्सल के लिए निकलती है तो खाना बना कर ही जाती है.

रूपेश की ओर से कोई जवाब न पा कर उस ने फिर पूछा, ‘‘खाना दे दूं.’’

रूपेश ने बहुत शांत स्वर में कहा, ‘‘खाना हम ले लेंगे. बूआ तो हैं ही नौकरानी… वे ही सब काम कर लेंगी अब से… बेटी भी खुद ही पढ़ लेगी. तुम महारानी बाहर गुलछर्रे उड़ाओ और हमारी थाली में छेद करो.’’

नंदिनी के लिए वह कठिन वक्त होता जब उस के वापस आने से पहले ही रूपेश घर आ चुका होता. वह इलैक्ट्रिक विभाग में इंजीनियर है. पैसा, रूतबा, घर, गाड़ी सब कुछ है. दिल की कोमल नंदिनी झगड़ों से बहुत घबराती है, लेकिन अब उस की जिंदगी में झगड़ा, तानेउल्लाहने अहम हिस्सा हैं.

‘‘मुझे माफ कर दो, आज औटो नहीं मिल रहा था.’’

‘‘कैसे आई फिर?’’

‘बिना दोष के कलंकिनी साबित हो जाएगी वह, झूठ का ही सहारा लेना पड़ेगा… मगर शातिर रूपेश ने पकड़ लिया तो,’ पसीने से तरबतर नंदिनी ने सोचा. फिर बोली, ‘‘औटो काफी देर बाद मिला.’’

जानकारी: फर्टिलिटी टूरिज्म का बाजार

Writer- डा. दीपक प्रकाश

फर्टिलिटी टूरिज्म या रिप्रोडक्टिव टूरिज्म आजकल आस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंगलैंड, इटली, फ्रांस, जरमनी के साथ दूसरे विकसित यूरोपीय देशों के निसंतान टूरिस्टों को अट्रैक्ट करने का नया मंत्र साबित हो रहा है. फलस्वरूप, भारत में यह टैक्नोलौजी एक उद्योग का रूप धारण करती जा रही है.

एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी के अंतर्गत आने वाले इस नए उद्योग की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिमांड तेजी से बढ़ रही है. बहुत थोड़े समय में अकेले भारत में ही 2018 तक इस का कारोबार 3 अरब 6 सौ करोड़ रुपए पार कर चुका जो जानकारों के अनुसार 2026 तक लगभग 9 अरब रुपए तक पहुंच जाएगा. इस समय इसे कराने वालों में से 70 फीसदी विदेशी होते हैं और 30 फीसदी भारतीय मूल के भारतीय.

एक अर्थशास्त्री के अनुसार, ‘‘फिलहाल भारत में इस का मार्केट लगभग आधा बिलियन डौलर का है,’’ जानकार यह भी बताते हैं कि यदि इसी गति से विकास की रफ्तार बढ़ती रही तो आने वाले समय में ये आंकड़े कई गुणा बढ़ सकते हैं. सरकार इस पर रोक नैतिक दृष्टि से लगाने की कोशिश कर रही है जो इसे केवल काला बाजार व्यापार में धकेल देगा और लाभ कुछ न होगा.

कमर्शियल सैरोगेसी दुनिया के कई देशों में काननून अवैध है. कई देशों में इस के नियम काफी सख्त हैं. आस्ट्रेलिया में यह गैरकानूनी है. यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली आदि देशों में कमर्शियल टूरिज्म की इजाजत नहीं है.

अमेरिका के अलगअलग राज्यों में अलगअलग कानून हैं. इस के अतिरिक्त कई ऐसे भी देश हैं जहां सर्वथा आधुनिक इस टैक्नोलौजी को ले कर अभी तक कोई स्पष्ट नियम या कानून नहीं बना है. इस में भारत में एक कानून विचाराधीन है. इसीलिए ऐसे देश जहां इस को अवैध माना जाता है या फिर जहां इस को ले कर काफी सख्त नियम हैं, वहां के निसंतान टूरिस्ट भारत का रुख करते हैं.

भारत में इस बाजार के तेजी से फैलने तथा टूरिस्टों को आकर्षित करने के कई कारण हैं जिन में अत्यधिक कम कीमत पर आसानी से सैरोगेट मदर तथा इंटरनैशनल क्वालिटी की मैडिकल फैसिलिटीज की उपलब्धता मुख्य हैं.

इस के अतिरिक्त कई दूसरे कारणों से भी विदेशी निसंतान दंपती भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिस कारण इस का बाजार भारत में बूमिंग बिजनैस की तरह उभर रहा है और फास्ट ग्रोइंड इंडस्ट्री का रूप धारण कर रहा है.

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भारत में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की लागत औसतन ढाई लाख से 4 लाख रुपए है जबकि विदेशों में औसतन 5 लाख से 10 लाख रुपए है. भारत में ऐसी औरतों की कमी नहीं है जो फ्रोजन एग को आरोपित कराने और गर्भधारण करने में एक आया से जरा सी ज्यादा कीमत पर तैयार हो जाएं. भारतीय औरतें वैसे भी 10-12 बच्चे पैदा करने की आदी रही हैं. आईवीएफ तकनीक से सैरोगेसी कोविड के दिनों में कम आवश्यक हो गई है और जैसेजैसे बौर्डर खुलेंगे विदेशी ग्राहक लौटेंगे.

सब से पहले बात एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी की. यह ऐसी आधुनिक विधि है जिस की सहायता से आंशिक या पूरी तरह प्रजनन के लिए असक्षम निसंतान दंपती की इच्छा आर्टिफिशियल टैक्नोलौजी की सहायता से पूरी की जाती है. निसंतान दंपती में आई खराबी को दूर करने के लिए जिस विधि की सहायता ली जाती है, उसे सहायक रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी कहा जाता है, जिस में कृत्रिम गर्भाधान, स्पर्म डोनेशन, एग डोनेशन, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन आदि शामिल हैं.

पुरुषों के शुक्राणुओं में मामूली गड़बड़ी, जैसे उन की संख्या में कमी, शुक्राणुओं में रचनात्मक विकृति या फिर सक्रियता में कमी होने की स्थिति में या तो दवाइयों के सहारे संख्या बढ़ाई जाती है या फिर स्पर्म वाश कर कृत्रिम विधि से गर्भाशय में प्रत्यारोपित करा कर निषेचन कराया जाता है और गर्भधारण की क्रिया पूरी की जाती है.

इसी तरह महिलाओं में भी किसी तरह की गड़बड़ी होने की स्थिति में एग डोनेशन या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा लैबोरेटरी में एंब्रियो तैयार कर उसे कृत्रिम विधि से गर्भाशय में प्रतिस्थापित कराया जाता है ताकि गर्भधारण की क्रिया पूरी हो सके. लेकिन कई बार इतनी सारी प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद किसी महिला का गर्भाशय भ्रूण को स्वीकार नहीं कर पाता. ऐसा गर्भाशय की कई बीमारियों या कैंसर की वजह से होता है.

आंकड़े बताते हैं कि लगभग

20 फीसदी महिलाओं में इस की सहीसही जानकारी चिकित्सक को भी नहीं मिल पाती. ऐसी स्थिति में सैरोगेट मदर की हैल्प लेनी पड़ती है और इसी से सैरोगेसी और सैरोगेट मदर का बाजार भारत में तेजी से फलफूल रहा है और पूरी दुनिया में इस की धूम मची हुई है. भारतीय 3-4 करोड़ युगल आज निसंतान हैं पर न बच्चा गोद ले सकते हैं न सैरोगेसी कर सकते हैं. वे तो डाक्टर के पास जा कर इलाज भी नहीं करा पाते.

सैरोगेट एक लैटिन शब्द है जिस का अर्थ होता है अल्टरनैटिव, सब्सटिट्यूट या वैकल्पिक. अर्थात एक के स्थान पर दूसरे की नियुक्ति. सैरोगेट मदर उस महिला को कहते हैं जो किसी दूसरी महिला के लिए बच्चा पैदा करती है. इस स्थिति में वह किसी महिला के अंडे या एंब्रियो को अपने गर्भ में धारण करती है और प्रसव के बाद नवजात शिशु को उस औरत को हस्तांतरित कर देती है जिस के साथ उस का करार रहता है. न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार सैरोगेट मदरहुड उस प्रैक्टिस को कहा जाता है जिस के अंतर्गत प्रजनन के लिए अनुपयुक्त दंपती के बच्चे को कोई महिला अपने गर्भ में पालती है और प्रसवोपरांत उसे उस दंपती को सौंप देती है.

सैरोगेसी कई तरह की होती है. जब एक महिला के ओवरी से प्राप्त अंडे को कृत्रिम विधि से लैबोरैटरी में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा निषेचन करा कर एंब्रियो या फर्टिलाइज्ड एग को विकसित होने के लिए किसी दूसरी महिला के गर्भ में ट्रांसप्लांट किया जाता है तो उसे गस्टेशनल सैरोगेसी कहा जाता है. एंब्रियो को सैरोगेट मदर के गर्भ में अल्ट्रासाउंड और लैप्रोस्कोप की मदद से ट्रांसफर किया जाता है ताकि इस भ्रूण का विकास गर्भाशय के अंदर सामान्य रूप से हो सके.

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एंब्रियो प्रदान करने वाली महिला जैनेटिक मदर, स्पर्म प्रदान करने वाला पुरुष जैनेटिक फादर और गर्भधारण करने वाली महिला सैरोगेट मदर कहलाती है.

ट्रैडिशनल सैरोगेसी उस स्थिति को कहते हैं जब कोई औरत किसी दूसरे पुरुष के शुक्राणु की सहायता से आर्टिफीशियल इंसिमिनेशन द्वारा गर्भधारण करती है और प्रसव के बाद पुरुष के शुक्राणु की सहायता से आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन द्वारा गर्भधारण करती है और प्रसव के बाद बच्चे को उसे हस्तांतरित कर देती है.

इस सैरोगेसी में बच्चे का जेनेटिक संबंध केवल पिता से होता है. आर्थिक नजरिए से भी इसे 2 तरह से देखा जाता है. दूसरे के बच्चे के लिए गर्भधारण यदि आर्थिक लाभ के लिए किया जाता है तो उसे कमर्शियल सैरोगेसी की श्रेणी में रखा जाता है, वहीं जब इस के लिए कोई कीमत नहीं वसूली जाती है तो उसे अल्ट्रियसस्टिक सैरोगेसी कहा जाता है.

कमर्शियल सैरोगेसी के अंतर्गत सैरोगेट मदर को गर्भधारण करने से ले कर बच्चा पैदा करने तक की कीमत दी जाती है. इसलिए इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘किराए की कोख’ भी कहा जाता है. किराए की कोख की कीमत वैसे दंपती अदा करते हैं जो किसी न किसी कारण से बच्चा पैदा करने के लायक नहीं होते या तो वीर्य में कोई खराबी होती है या महिला की कोख किसी न किसी कारण से गर्भधारण करने लायक नहीं रहती.

यदि किसी महिला में अंडे का निर्माण होता है, किंतु उस की कोख गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होती तो वैसी स्थिति में भी किराए की कोख की सहायता ली जाती है. वहीं यदि किसी कारणवश अंडे के निर्माण की भी समस्या होती है और गर्भाशय भी गर्भधारण करने लायक नहीं होता है, किंतु पति के वीर्य में कोई खराबी नहीं होती है तो सैरोगेट मदर के अंडे को पति के वीर्य से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कराने के बाद किराए की कोख में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है.

कई महिलाएं या कपल गर्भधारण करने से डरते हैं. वे इस ?ां?ाट में पड़ना नहीं चाहते. कई महिलाएं कैरियर के कारण 9 माह तक गर्भधारण करने और बच्चे पैदा करने को ?ां?ाटभरा काम सम?ाती है. लेकिन वे चाहती हैं कि अपनी संतान जरूर हो. यानी वे संतान तो चाहती हैं, पर प्रसवपीड़ा को ?ोलना नहीं चाहतीं. इस तरह के दंपती अमीर और उच्चवर्ग के होते हैं. इन के पास पैसे की कमी नहीं होती. ये लोग सैरोगेट मदर की सहायता से बच्चा पैदा करने में ज्यादा रुचि लेते हैं.

इस के अतिरिक्त कई अविवाहित महिलाएं, गे या लैस्बियंस भी आजकल असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी की मदद से बच्चे पैदा करने की ओर अग्रसर दिख रहे हैं. वे इस के लिए आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन या फिर डोनर स्पर्म की मदद ले रहे हैं. ऐसी स्थिति में कई बार सैरोगेट मदर की सहायता भी लेने की घटनाएं देखने को मिलती हैं. इस में नैतिकता के सवाल कम ही हैं क्योंकि अच्छे घरों के 90 फीसदी बच्चे पैदा होने के बाद भी आयाओं के पास ही पलते हैं. मां तो सिर्फ नाम की रह जाती है. ऐसे में फर्टिलाइज्ड एग पतिपत्नी का है और कोख किसी की तो यह अनैतिक नहीं हुई.

रिप्रोडक्टिव टूरिज्म के माने

रिप्रोडक्टिव टूरिज्म क्या है? इसे कमर्शियल रिप्रोडिक्टव टूरिज्म या कमर्शियल सैरोगेसी भी कहा जाता है. संतान के लिए एक जगह से दूसरी जगह की जाने वाली यात्रा को रिप्रोडक्टिव टूरिज्म कहा जाता है. चूंकि इस के लिए सैरोगेट मदर को कीमत चुकाई जाती है, इसलिए इसे व्यवसाय के रूप में देखा और जाना जाता है और कमर्शियल सैरोगेसी या कमर्शियल रिप्रोडिक्टव टूरिज्म की श्रेणी में रखा जाता है. भारत में इस का प्रचलित नाम ‘किराए की कोख’ भी है. विदेशों में वौम्ब्स फौर रैंट, आउटसोर्स्ड प्रैग्नैंसी, बेबी फौर्म आदि नामों से पुकारा जाता है.

अब बात करते हैं इनफर्टिलिटी की. इस दशक में तेजी से इस का प्रतिशत बढ़ा जो कोविड के कारण रुक गया है. जनसंख्या के साथसाथ इस की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है. इसीलिए अब यह एक ग्लोबल प्रौब्लम मानी जाती है, जिस से विकासशील देशों के साथसाथ विकसित देश भी जू?ाते जा रहे हैं.

आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में रिप्रोडक्टिव उम्र की जनसंख्या में

10 फीसदी आबादी संतान पैदा करने लायक नहीं है यानी प्रत्येक 10 कपल्स में एक प्राइमरी या सैकंडरी इनफर्टिलिटी की समस्या से जू?ा रहा है. हालांकि, विकासशील देशों में इस की संख्या ज्यादा है. विकसित देशों में 30 से 40 वर्ष की अवस्था वाले कपल्स में इस की दर

5 फीसदी से ज्यादा है. यहां यह भी बता दें कि पूरी दुनिया में सब से ज्यादा बां?ापन के शिकार मरीज साउथ अफ्रीका में हैं.

प्रजनन के लिए विदेश यात्रा की जरूरत क्यों? दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां सैरोगेसी की अनुमति नहीं है. कई देशों में इस के नियम कड़े हैं. दूसरी ओर कई ऐसे भी देश हैं जहां सैरोगेसी को ले कर बनाए गए कानून उतने सख्त नहीं हैं.

कई देशों में इसे कानूनी मान्यता भी मिली हुई है. संयुक्त राज्य अमेरिका में इसे पूरी तरह अवैध नहीं माना जाता. इस के कई राज्यों में इस की अनुमति है तो कई राज्यों में नहीं है. यूनाइटेड किंगडम में सैरोगेट मदर को बच्चे की मां कहलाने की कानूनी मान्यता प्राप्त है. पर कई देशों में यह कानून लागू नहीं होता. सैरोगेट मदर उस जन्मे बच्चे की मां नहीं कहला सकती.

जिन देशों में सैरोगेसी पर पाबंदी नहीं है या इस टैक्नोलौजी को कानूनी मान्यता मिली हुई है, वहां दूसरी तरह की सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का सामना संतान के इच्छुक दंपती को करना पड़ता है जिस से निबट पाना सब के बस की बात नहीं होती. इस में 2 मत नहीं कि दुनिया के अधिकतर विकसित देशों में सैरोगेट मदर की काफी कमी है.

काफी कोशिश के बाद मुश्किल से सैरोगेट मदर मिल पाती है. मिलती भी है तो ऊंची कीमत पर जिसे चुकाना सब के बूते की बात नहीं. कई देशों में पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक समस्याएं आड़े आ जाती हैं. कई ऐसे भी विकसित तथा विकासशील देश हैं जहां इस के लिए विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं.

दूसरी ओर कई ऐसे देश हैं जहां एकतिहाई या चौथाई खर्च पर आसानी से सैरोगेट मदर उपलब्ध हो जाती हैं, जहां प्रसव के लिए हाईग्रेड अस्पताल, विश्वस्तरीय तथा अनुभवी चिकित्सक की समुचित तथा उत्तम व्यवस्था है. इस में भारत का नाम सर्वोपरि है. भारत में साधारण क्लीनिक भी यही काम कर लेते हैं क्योंकि इस काम में अब बहुत अधिक हुनर की आवश्यकता नहीं रह गई है.

भारत ही क्यों

अब प्रश्न उठता है कि भारत ही क्यों? दुनिया के तमाम देशों के बीच भारत क्यों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है? आखिर कैसे इतने कम समय में इस का इतना विस्तार हो गया कि अब यह उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है?

इस के कई कारण हैं :

कानूनन वैधता, विश्वस्तरीय चिकित्सीय व्यवस्था, कम कीमत पर उच्चस्तरीय चिकित्सीय व्यवस्था और सैरोगेट मदर की आसानी से उपलब्धता. इस के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त दर्जनों अस्पताल उपलब्ध हैं, जहां न तो ज्यादा खर्च आता है और न ही लंबी वेटिंग लिस्ट ही होती है. यही कारण है कि यहां के अस्पतालों में दुनिया के विकासशील ही नहीं, विकसित देशों के भी संतान के इच्छुक दंपती यहां का रुख करते हैं. यहां के अस्पतालों के सामने आर्थिक संकट हर समय रहते हैं और अतिरिक्त उपाय के लिए वे यह काम लेने लगे हैं.

कोरोना का खौफ

मैं पिछले 2 साल से दिल्ली में अपनी चाची के यहां रह कर पढ़ाई कर रही हूं. चाची का घर इसलिए कहा क्योंकि घर में चाचू की नहीं बल्कि चाची की चलती है.

मेरे अलावा घर में 7 साल का गोलू, 14 साल का मोनू और 47 साल के चाचू हैं. गोलू और मोनू चाचू के बेटे यानी मेरे चचेरे भाई हैं.

मार्च 2020 की शुरुआत में जब कोरोना का खौफ समाचारों की हेडलाइन बनने लगा तो हमारी चाचीजी के भी कान खड़े हो गए. वे ध्यान से समाचार पड़तीं और सुनतीं थीं. कोरोना नाम का वायरस जल्दी ही उन का जानी दुश्मन बन गया जो कभी भी चुपके से उन के हंसतेखेलते घर की चहारदीवारी पार कर हमला बोल सकता था. इस अदृश्य मगर खौफनाक दुश्मन से जंग के लिए चाची धीरेधीरे तैयार होने लगी थीं.

“दुश्मन को कभी भी कमजोर मत समझो. पूरी तैयारी से उस का सामना करो.” अखबार पढ़ती चाची ने अपना ज्ञान बघाड़ना शुरू किया तो चाचू ने टोका, “कौन दुश्मन? कैसा दुश्मन?”

“अजी अदृश्य दुश्मन जो पूरी फौज ले कर भारत में प्रवेश कर चुका है. हमले की तैयारी में है. चौकन्ने हो जाओ. हमें डट कर सामना करना है. उसे एक भी मौका नहीं देना है. कुछ समझे.”

नहीं श्रीमतीजी. मैं कुछ नहीं समझा. स्पष्ट शब्दों में समझाओगी.”

“चाचू कोरोना. कोरोना हमारा दुश्मन है. चाची उसी के साथ युद्ध की बात कर रही हैं.” मुस्कुराते हुए मैं ने कहा तो चाची ने हामी भरी, “देखो जी सब से पहला काम, रसद की आपूर्ति करनी जरूरी है. मैं लिस्ट बना:कर दे रही हूं. सारी चीजें ले आओ.”

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“तुम्हारे कहने का मतलब राशन है?”

“हां राशन भी है और उस के अलावा भी कुछ जरूरी चीजें ताकि हम खुद को लंबे समय तक मजबूत और सुरक्षित रख सकें.”

इस के कुछ दिन बाद ही अचानक लौकडाउन हो गया. अब तक कोरोना वायरस का खौफ चाची से दिमाग तक चढ़ चुका था. अखबार, पत्रिकाएं, न्यूज़ चैनल और दूसरे स्रोतों से जानकारियां इकट्ठी कर चाची एक बड़े युद्ध की तैयारी में लग गई थीं.

वे दुश्मन को घुसपैठ का एक भी मौका देना नहीं चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने बहुत से रास्ते अपनाए थे. आइए आप को भी बताते हैं कि कितनी तैयारी के साथ वे किसी सदस्य को घर से बाहर भेजती और कितनी आफतों के बाद किसी सदस्य को या बाहरी सामान को घर में प्रवेश करने की इजाजत देती थीं.

सुबहसुबह चाचू को टहलने की आदत थी जिस पर चाची ने बहुत पहले ही कर्फ्यू लगा दिया था. मगर चाचू को सुबह में मदर डेयरी से गोलू के लिए गाय का खुला दूध लेने जरूर जाना पड़ता है.

चाचू दूध दूध लाने के लिए सुबह में निकलते तो चाची उन्हें कुछ ऐसे तैयार होने की ताकीद करती,” पजामे के ऊपर एक और पाजामा पहनो. टीशर्ट के ऊपर कुरता डालो. पैरों में मौजा और चेहरे पर चश्मा लगाना मत भूलना. नाक पर मास्क और बालों को सफेद दुपट्टे से ढको. इस दुपट्टे के दूसरे छोर को मास्क के ऊपर कवर करते हुए ले जाओ.”

चाची को डर था कि कहीं मास्क के बाद भी चेहरे का जो हिस्सा खुला रह गया है वहां से कोरोना नाम का दुश्मन न घुस जाए. इसलिए डाकू की तरह पूरा चेहरा ढक कर उन्हें बाहर भेजती.

जब चाचू लौटते तो उन्हें सीधा घर में घुसने की अनुमति कतई नहीं थी. पहले चाचू का चीरहरण चाची के हाथों होता. ऊपर पहनाए गए कुरते पजामे और दुपट्टे को उतार कर बरामदे की धरती पर एक कोने में फेंक दिया जाता. अब मोजे को भी उतरवा कर कोने में रखवाए जाते. फिर सर्फ का झाग वाला पानी ले कर उन के पैरों को 20 सेकंड तक धोया जाता. फिर चप्पल उतरवा कर अंदर बुलाया जाता.

इस बीच अगर उन्होंने गलती से परदा टच भी कर दिया तो चाची तुरंत परदा उतार कर उसी कोने में पटक देतीं. अब चाचू के हाथ धुलाए जाते. पहले 20 सेकंड साबुन से रगड़रगड़ कर. फिर 20 सेकंड डिटॉल हैंडवॉश से ताकि कहीं किसी भी कोने में वायरस के छिपे रह जाने की गुंजाइश भी न रह जाए. इस के बाद उन्हें सीधे गुसलखाने में नहाने के लिए भेज दिया जाता.

अगर चाचू बिना पूछे कुछ ला कर कमरे या फ्रिज में रख देते तो वह हल्ला करकर के पूरा घर सिर पर उठा लेतीं.

चाचू जब दुकान से दूध और दही के पैकेट खरीद कर लाते तो चाची उन्हें भी कम से कम दोदो बार 20 -20 सेकंड तक साबुन से रगड़रगड़ कर धोतीं.

एक बात और बता दूं, घर के सभी सदस्यों के लिए बाहर जाने के चप्पल अलग और घर के अंदर घूमने के लिए अलग चप्पल रखवा दी गई थी. मजाल है कि कोई इस बात को नजरअंदाज कर दे.

सब्जी वाले भैया हमारी गली के छोर पर आ कर सब्जियां दे जाते थे. सब्जी खरीदने का काम चाची ने खुद संभाला था. इस के लिए पूरी तैयारी कर के वह खुद को दुपट्टे से ढक कर निकलतीं.

कुछ समय पहले ही उन्होंने प्लास्टिक के थैलों के 2-3 पैकेट खरीद लिए थे. एक पैकेट में 40- 50 तक प्लास्टिक के थैले होते थे. आजकल यही थैले चाची सब्जियां लाने के काम में ला रही थी.

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सब्जी खरीदने जाते वक्त वह प्लास्टिक का एक बड़ा थैला लेती और एक छोटा थैला रखतीं. छोटे थैले में रुपएपैसे होते थे जिन्हें वह टच भी नहीं करती थीं. सब्जी वाले के आगे थैला बढ़ा कर कहतीं कि रुपए निकाल लो और चेंज रख दो.

अब बात करते हैं बड़े थैले की. दरअसल चाची सब्जियों को खुद टच नहीं करती थीं. पहले जहां वह एकएक टमाटर देख कर खरीदा करती थीं अब कोरोना के डर से सब्जी वाले को ही चुन कर देने को कहती और खुद दूर खड़ी रहतीं. सब्जीवाला अपनी प्लास्टिक की पन्नी में भर कर सब्जी पकड़ाता तो वह उस के आगे अपना अपना बड़ा थैला कर देती थीं जिस में सब्जी वाले को बिना छुए सब्जी डालनी होती थी.

सब्जी घर ला कर चाची उसे बरामदे में एक कोने में अछूतों की तरह पटक देतीं. 12 घंटे बाद उसे अंदर लातीं और वाशबेसिन में एक चलनी में डाल कर बारबार धोतीं. यहां तक कि सर्फ का झाग वाला पानी 20 सेकंड से ज्यादा समय तक उन पर उड़ेलतीं रहतीं. काफी मशक्कत के बाद जब उन्हें लगता कि अब कोरोना इन में सटा हुआ नहीं रह गया और ये सब्जियां फ्रिज में रखी जा सकती हैं तो धोना बंद करतीं. सब्जी बनाने से पहले भी हल्के गर्म पानी में नमक डाल कर उन्हें भिगोतीं.

दिन में कम से कम 50 बार वह अपना हाथ धोतीं. अखबार छुआ तो हाथ धोतीं सब्जी छू ली तो हाथ धोतीं. दरवाजे का कुंडा या फ्रिज का हैंडल छुआ तो भी हाथ धोतीं. हाथ धोने के बाद भी कोई वायरस रह न जाए इस के लिए सैनिटाइजर भी लगातीं.

नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन के हाथों की त्वचा ड्राई और सफेद जैसी हो गई. उन्हें चर्म रोग हो गया था. इधर पूरे दिन कपड़ों और बर्तनों की बरात धोतेधोते उन्हें सर्दी लग गई. नाक बहने लगी छींकें भी आ गईं.

अब तो चाची ने घर सर पर उठा लिया. कोरोना के खौफ से वह एक कमरे में बंद हो गईं और खुद को ही क्वॉरेंटाइन कर लिया. डर इतना बढ़ गया कि बैठीबैठी रोने लगतीं. 2 दिन वह इसी तरह कमरे में बंद रहीं.

तब मैं ने समझाया कि हर सर्दी-जुकाम कोरोना नहीं होता. मैं ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं और चौथे दिन वह बिल्कुल स्वस्थ हो गईं. मगर कोरोना के खौफ की बीमारी से अभी भी वह आजाद नहीं हो पाईं हैं.

Winter 2022: झटपट बनाएं पनीर इडली

आप स्नैक्स में पनीर इडली बना सकती हैं. यह खाने में भी हेल्दी और टेस्टी है. और बनाने में भी बेहद आसान है और इसे झटपट आप बना भी सकती हैं. चलिए बताते हैं पनीर इडली की रेसिपी.

सामग्री

पनीर- 125 ग्राम

गाजर ½ कप (बारीक कटी हुई)

शिमला मिर्च ½ कप (बारीक कटी हुई)

हरा धनिया 2 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)

हरी मिर्च 2 (बारीक कटी हुई)

नमक  ¾ छोटी चम्मच या स्वादानुसार

तेल 2 टेबल स्पून

काली सरसों के दाने  ¼ छोटी चम्मच

करी पत्ते 10 से 12

ईनो फ्रूट सौल्ट 1 छोटी चम्मच

दही 1 कप (फैंटा हुआ)

सूजी ½ कप (100 ग्राम)

बेसन- ½ कप (50 ग्राम)

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बनाने की विधि

एक बड़े प्याले में सूजी, बेसन और दही डाल दीजिए और इन्हें अच्छे से मिक्स कर लीजिए ताकि बैटर में किसी भी प्रकार की गुठलियां ना रहे.

बैटर में पहले बहुत थोड़ा पानी डालकर मिक्स कर लीजिए. फिर, घोल में गाजर, शिमला मिर्च, हरा धनिया, हरी मिर्च और नमक डाल दीजिए.

सारी चीजों को अच्छे से मिलने तक मिक्स कर लीजिए.

बैटर को 15 मिनिट के लिए रख दीजिए. इससे सूजी और बेसन फूलकर तैयार हो जाएंगे. इसी बीच पनीर कद्दूकस कर लीजिए.

बैटर के फूलने पर इसमें कद्दूकस किया हुआ पनीर डालकर मिक्स कर दीजिए. बैटर गाढ़ा दिख रहा हो, तो थोड़ा सा पानी मिला लीजिए.

इडली के सारे सांचों में थोड़ा सा तेल लगा लीजिए. साथ ही इडली बनाने के लिए कुकर में 1.5 से 2 कप पानी डालकर गरम होने रख दीजिए.

बैटर में सबसे बाद में ईनो फ्रूट सॉल्ट डालिए और इसके ऊपर 1 छोटी चम्मच पानी डाल दीजिए. इसे सिर्फ ईनो के मिलने तक मिक्स कर लीजिए. बैटर को बहुत तेज और बहुत ज्यादा देर तक मत फैंटिए.

इस बैटर को बनाने में ½ कप से कम पानी का उपयोग किया है.

सांचों में थोड़ा-थोड़ा बैटर डाल दीजिए और सांचों को स्टेन्ड में लगाकर स्क्रू फिट करके कुकर में उबल रहे पानी में रख दीजिए.

कुकर को बंद कर दीजिए लेकिन इसके ढक्कन पर सीटी मत लगाइए. इडली को मध्यम आग पर 10 से 12 मिनिट पकने दीजिए.

पकने के बाद कुकर से इडली स्टेन्ड बाहर निकाल लीजिए और स्क्रू खोलकर सांचों को अलग-अलग कर लीजिए ताकि इडली जल्दी से ठंडी हो जाए.

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इडली के थोड़ा सा ठंडा होने के बाद, इन्हें चाकू की मदद से सांचों से निकालकर प्लेट में रख दीजिए. बहुत ही ज़ायकेदार पनीर इडली तैयार है.

इन्हें और ज्यादा स्वादिष्ट बनाने के लिए इनके ऊपर तड़का डालिए.

तड़का पैन गैस पर गरम कीजिए और इसमें 1 टेबल स्पून तेल डाल दीजिए.

तेल में सरसों के दाने डालकर भून ले फिर सरसों भुनने के बाद, गैस बंद कर दीजिए और इसमें करी पत्ते डाल दीजिए.

इडली के ऊपर थोड़ा-थोड़ा तड़का डाल दीजिए.

बहुत ही स्पंजी और टेस्टी पनीर इडली खाने के लिए तैयार हैं.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: भागकर शादी करेंगे अक्षरा-अभिमन्यू, आएगा ये ट्विस्ट

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में  लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में इन दिनों अक्षरा और अभिमन्यु के लव एंगल दिखाया जा रहा है. फैंस को दोनों की प्रेम कहानी को काफी पसंद कर रहे हैं. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताता हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आपने देखा था कि अक्षरा का एक्सीडेंट हो गया था. अभिमन्यु ने ही उसकी जान बचाई थी और खुद  उसका ऑपरेशन किया था. एक रिपोर्ट के अनुसार, शो के आने वाले एपिसोड्स में आप देखेंगे कि अक्षरा धीरे-धीरे ठीक होती नजर आएगी. तो दूसरी तरफ बिड़ला परिवार आरोही के लिए हल्दी भेजेगा क्योंकि वो उनके घर की बहू बनने वाली है. और यह हल्दी गलती से पहले अक्षरा पर गिरेगी.

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शो के आने वाले एपिसोड में फिल्मी ट्रैक देखने को मिलेगा. जी हां, अक्षरा अभिमन्यु के साथ भागने का फैसला करेगी. इसके बाद दोनों एक-दूसरे से प्यार का इजहार करेंगे और शादी कर लेंगे. तो दूसरी तरफ आरोही को जब अक्षरा और अभिमन्यु के बारे में पता चलेगा तो वह पूरी तरह टूट जाएगी.

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शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि सर्जरी के दौरान पता चलता है कि दुर्घटना में अक्षरा की वोकल कॉर्ड पर गंभीर चोट आई है इसलिए महिमा अभिमन्यु को सावधान रहने के लिए कहती है. तो दूसरी ओर आरोही परिवार को सूचित करती है, ऐसे में गोयनका और बिर्ल्स अस्पताल पहुंचते हैं.

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