औनलाइन रिटेल सैक्टर से देश में कुछ अमीर पूंजीपतियों की मोनोपोली हो रही है. इन्हें डिलीवरी करने वाले युवाओं की फौज की भारी जरूरत महसूस होगी, जिन का काम सिर्फ सामान पहुंचाने का होगा. छोटे धंधों को चलाने वालों की अगली पीढ़ी बस यही काम करेगी
विशाल गोयल दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में बड़े रिटेलर के तौर पर जाने जाते हैं. उन के पिताजी पी सी गोयल ने साल 1984 में छोटी सी किराना दुकान ‘भारत स्टोर’ (विशाल गोयल के बड़े भाई के नाम पर) नाम से शुरू कर इस धंधे में कदम रखा था. काफी पुरानी दुकान होने और इलाके में अच्छी पैठ होने के बाद धीरेधीरे छोटे दुकानदार उन से माल खरीदने लगे, इसलिए इन्हें यहां छोटे थोक विक्रेता के रूप में भी जाना जाने लगा. इसी दुकान से पूरे गोयल परिवार ने सफलता की इबारत लिखी.
एक समय छोटे से मकान में रहने वाला गोयल परिवार आज इसी इलाके में 3 मकान और एक बड़े गोदाम जितनी अचल संपत्ति इकट्ठा कर चुका है. महीने में लाखों का ट्रांजैक्शन होता है. विशाल गोयल अपने भाई के साथ इस पेशे में पिछले 15 सालों से हैं पर आज इतने सालों में यह पहला ऐसा मौका आया है जब उन्हें अपने व्यापार में रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है. इस का बड़ा कारण वे देश में बढ़ रहे औनलाइन कारोबार को मानते हैं.
दरअसल, बीते 2 सालों में लोगों ने बहुतकुछ देखा व सहा है. महामारी के दौर से जू?ाते हुए लाइफस्टाइल में काफी बदलाव हुए. समय की मांग और जरूरतों ने लोगों को नए जीवन में प्रवेश करने पर मजबूर किया. इसी बदलाव में औनलाइन कारोबार बड़े पैमाने में दबेपांव सरपट घरघर पहुंचा और अपनी स्वीकार्यता को दर्शाया भी. पहले इस ने गारमैंट्स, इलैक्ट्रोनिक्स सामानों की औनलाइन बिक्री से शुरुआत की, अब रिटेल और ग्रौसरी आइटम में सेंधमारी से पूरे मार्केट के हावभाव ही बिगाड़ कर रख दिए हैं, जिस के लपेटे में फिलहाल रिटेल सैक्टर है.
स्टेटिस्टा 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत में इस समय लगभग 1 करोड़ 28 लाख रिटेल की दुकानें हैं. आंकड़ों के अनुसार देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत हिस्सा रिटेल सैक्टर से आता है वहीं भारत में यह सैक्टर 8 प्रतिशत लोगों को रोजगार प्रदान करता है. इन में से एक विशाल गोयल भी इस समय रिटेल सैक्टर में हो रही उथलपुथल से जू?ा रहे हैं. वे कहते हैं, ‘‘औनलाइन शौपिंग आज हर दुकान हर घर में पहुंच रही है. दुकानदार सस्ते सामान लेने के लिए औनलाइन शौपिंग एप्लीकेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं. हम रिटेलरों को पता है कि यह हमारे लिए गहरी खाई है फिर भी हम तक इस में गोता लगा रहे हैं, क्योंकि जिन डिस्ट्रिब्यूटरों या बड़े होलसेलरों से हम सामान उठाते हैं कभीकभार उन से सस्ता हमें यहां एप्लीकेशन पड़ रहा है. ग्राहक अब घट गए हैं, आप मान के चलिए इस समय हमारी 30 परसैंट सेल कम हो गई है.’’
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गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी ने कंज्यूमर पैकेज्ड गुड्स जैसी कैटेगरीज में ईकौमर्स की पैठ को ग्लोबली दोगुना कर दिया है. जो ग्रोथ सामान्य हालात में
3 साल में दर्ज होती, वह महज 3 महीने में दर्ज कर ली गई. रिपोर्ट में कहा गया कि भारत का ईकौमर्स बिजनैस 2024 तक 99 अरब डौलर का हो जाएगा. यह 27 फीसदी सीएजीआर से ग्रोथ दर्ज करेगा. इस में ग्रौसरी और फैशन इस ग्रोथ के प्रमुख कारक हो सकते हैं. अकेले रिटेल की औनलाइन पैठ 2024 तक 10.7 फीसदी हो जाने का अनुमान है, जो 2019 में 4.7 फीसदी थी.
दिल्ली के प्रेम नगर इलाके में किराना स्टोर चलाने वाले 35 वर्षीय प्रदीप कुमार के हाल भी कुछ ऐसे ही चल रहे हैं. प्रदीप ने 6 वर्ष पहले 5 लाख रुपए लगा कर अपनी किराना दुकान डाली थी कि इस काम से बरकत होगी. लेकिन अब फायदा नहीं मिल रहा है. शुरुआत में दुकान चलने भी लगी थी लेकिन अब समय काटनेभर का बहाना हो गया है. दुकान में लौकडाउन से पहले 3 हैल्पर रखे थे, अब एक ही बचा है. अधिकतर काम वे खुद संभालते हैं. वे बताते हैं कि उन का इस काम में आधा ही धंधा रह गया है. काम दिनोंदिन घट रहा है. वे खुद टेनसेंट कंपनी फंडेड ‘उड़ान’ एप्लीकेशन इस समय सामान खरीदने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
दरअसल ग्रौसरी की औनलाइन बिक्री में अब बड़े जायंट बिसनैसमैनों ने कदम रखा है. गोल्डमैन सैक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बिगबास्केट और ग्रौफर्स की औनलाइन ग्रौसरी मार्केट में 2019 में हिस्सेदारी 80 फीसदी से अधिक थी. औनलाइन ग्रौसरी बाजार पिछले कुछ सालों से सालदरसाल 50 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. लेकिन अनुमानतया आने वाले समय में आरआईएल की एंट्री से औनलाइन ग्रौसरी मार्केट की ग्रोथ बढ़ कर 81 फीसदी हो जाएगी. वहीं रिलायंस की फेसबुक के साथ पार्टनरशिप से रिलायंस 2024 तक 50 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी के साथ औनलाइन ग्रौसरी में मार्केट लीडर बन जाएगा.
इस बात को बताते हुए वे इस बात का अंदेशा भी जताते हैं कि आज जो लुभा रहा है कल वह उसे भी अपने जाल में फंसा देगा. वे कहते हैं, ‘‘आप एक बात सम?िए, आज औनलाइन में भले ही अच्छे डिस्काउंट पर सामान मिल रहा है पर हमारे पास हाल के उदाहरण सामने हैं. ये पहले आदत डलवाते हैं, पारंपरिक बाजार को बरबाद कर के तोड़फोड़ करते हैं, फिर अपने रंग में आते हैं. आप जोमैटो-स्विगी को ले लीजिए, आप ओला-उबर को ले लीजिए, आप जिओ सिम का उदाहरण ही ले लीजिए, इन के दाम शुरू में सस्ते थे, भारी डिस्काउंट देते थे, ओलाओबेर तो शुरुआती राइड फ्री तक दे रहे थे पर जैसे ही इन्होंने बाजार पर कब्जा जमा लिया, लोगों के स्वरोजगार को खत्म कर दिया. फिर रेट बढ़ाने शुरू कर दिए.
‘‘इन का तरीका है, अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए पहले पुराने व्यापार की रीढ़ तोड़ो, फिर लोगों से पैसा खींचना शुरू करो. औनलाइन शौपिंग में भी यही होगा. आज ये फ्री शिपिंग की बात कर रहे हैं, अच्छी सर्विस और सुविधा की बात कर रहे हैं लेकिन कल को सर्विस चार्ज के नाम पर पैसा वसूलने लगेंगे. आज ये सस्ते सामान की बात कर रहे हैं लेकिन कल को इन के कंपीटिशन में जब कोई नहीं होगा तो पैसा भी ऐंठने लगेंगे.’’
दरअसल औनलाइन कारोबार के बढ़ने का बड़ा कारण सुविधा, सर्विस और फिलहाल डिस्काउंट व आकर्षक औफर्स हैं. प्रदीप उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि 70 ग्राम मैगी का एक पैकेट ग्राहकों को जो 12 रुपए का मिलता है, वह उन्हें पहले डिस्ट्रिब्यूटर से 11 रुपए में पड़ता था. इस में डिस्ट्रिब्यूटर का मार्जिन शामिल होता था. अब वह कभीकभी सीधे औनलाइन ऐप से 9 रुपए 95 पैसे में मिल जाता है.
औनलाइन कारोबार से पहला सीधा असर डिस्ट्रिब्यूटरों और सेल्समैन पर पड़ा है. डिस्ट्रिब्यूटर रिटेल चैन के मध्य आते हैं. यह प्रोडक्ट निर्माता कंपनी और होलसेलर या सीधे रिटेलर को आपस में जोड़ता है. इस समय इन्हीं डिस्ट्रिब्यूटरों पर फर्क पड़ रहा है. औनलाइन बाजार के बढ़ने के साथसाथ इन बीच वाली कड़ी की जरूरत गौण होती जा रही है. होलसेलर भी मौका देखते औनलाइन ऐप की मदद से बल्क में सामान खरीद रहा है. इस कारण डिस्ट्रिब्यूटरों, सेल्समैन या एजेंटों की जरूरत धूमिल होती जा रही है.
वर्करों पर असर आंकड़े के मुताबिक पूरे भारत में इस समय तकरीबन साढे़ 4 लाख डिस्ट्रिब्यूटर्स हैं जो सामान दुकानों, थोक विक्रेताओं या होलसेलर तक पहुंचाते है. इन के नीचे कामगारों की एक पूरी फौज तैयार है जो लोकल इलाकों में सामान पहुंचाती हैं. डिस्ट्रिब्यूटर प्रोडक्ट का लगभग 3-5 प्रतिशत मार्जिन अपने पास रखते हैं. औनलाइन कारोबार के बढ़ने से इन में काम करने वाले वर्कर्स पर भारी असर पड़ा है. जियो मार्ट, उड़ान, ग्रौफर्स, बिगबासकेट, स्विगी सुपर इत्यादि कई एप्लीकेशंस अब सीधा कंपनी टू कंपनी डील कर रही हैं.
ऐसे ही हाथ में डायमंड चिप्स की लंबीलंबी लडि़यां लिए पारंपरिक सेल्समैन धनंजय कुमार मिश्रा दुकान की देहरी पर खड़े हो दुकानदार से कुछ हिसाब कर रहे थे. 40 साल के धनंजय पिछले 9 सालों से लगातार दिल्ली के पटेल नगर, फरीदपुरी, पांडव नगर, रंजीत नगर, बलजीत नगर, प्रेम नगर, नेहरू नगर और नारायणा इलाके में येलो डायमंड कंपनी के पैक्ड प्रोडक्ट रिटेल और होलसेलर शौप्स को सप्लाई करते हैं. माल सप्लाई करने के लिए कंपनी ने उन्हें एक 3 टायरों वाला रिकशा दिया है जिस में उन के साथ एक युवा ड्राइवर भी है. रिटेल मार्केट लाइन में इस पेशे को डिस्ट्रिब्यूटर कहा जाता है. वह वहां 14 हजार 300 रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर रहे हैं. अभी उन्हें पक्का नहीं किया गया है.
येलो डायमंड कंपनी का अधिकतर माल इंदौर से बन कर आता है. इस जोन में नारायणा में राजीव गांधी कैंप के पास डिस्ट्रिब्यूटर सैंटर है, जहां से धनंजय माल उठाते है. धनंजय का 9 साल का बेटा है जो अपनी मां के साथ बिहार के समस्तीपुर जिले के नयानगर इलाके में रहता है. इतने साल इतनी कम तनख्वाह में धनंजय ने काम किया, पर आज धनंजय को अपने बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी है. उन की इस समस्या में इजाफा औनलाइन बाजार ने कर दिया है.
वे कहते हैं, ‘‘औनलाइन जब से आया है तब से पार्टी (रिटेलर और होलसेलर) हम से माल कम खरीद रहे हैं. मैं डिस्ट्रिब्यूटर के साथसाथ सेल्समैन का भी काम करता हूं, नईनई पार्टियां ढूंढ़नी पड़ती हैं. माल की डील करने जाओ तो वे हमारे माल से औनलाइन मिल रहे माल के रेट की तुलना करते हैं. कई बार
10-10 साल पुरानी बनीबनाई पार्टियां हम से माल लिखवा कर अंत समय में कैंसिल करवा देती हैं, क्योंकि उन्हें वही चीज औनलाइन कुछ सस्ती मिल रही होती है.’’
धनंजय बताते हैं कि इन 2 सालों में उन के यहां कई कर्मचारियों की छंटनी हुई है. औफिस की इंटरनल मीटिंगें होनी बंद हो गई हैं. इस का बड़ा जिम्मेदार वे कोरोना के चलते हुए लौकडाउन को तो मानते ही हैं पर साथ ही पिछले 3-4 सालों से रिटेल सैक्टर में औनलाइन व्यापार के बढ़ते कदमों को बड़ी वजह मानते हैं. उन का कहना है, ‘‘इन 2 सालों में जो भी परिस्थितियां बनीं उन में सब से ज्यादा औनलाइन बेचने वाले व्यापारियों ने चारों तरफ से बाजारों पर कब्जा किया. इसे समय की मांग भले कह लें, पर नुकसान आगे आने वाले कई कर्मचारियों पर पड़ने वाला है.’’
छोटे दुकानदारों पर आफत
औफलाइन बाजार की सुस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी साल कोरोना की दूसरी लहर के बाद अगस्त महीने में अपनी ढाई लाख रुपए जमापूंजी इन्वैस्ट कर किराना की दुकान खोलने वाले रमीकांत को महज 4 महीने के भीतर ही अपनी दुकान बंद करनी पड़ गई है. एम्बिट कैपिटल के अनुमान के अनुसार भारत में अधिकांश किराना रिटेल का विस्तार छोटेछोटे और मध्य स्तरीय दुकानों में होता है. इस का बाजार में तकरीबन 70-75 फीसदी हिस्सा है.
ये दुकानें आमतौर पर निम्नवर्गीय क्राउडेड इलाकों में खुली होती हैं. इन दुकानों के अपने बंधेबंधाए कस्टमर है, जो अधिकतर इन के आसपड़ोस के
15-20 घर वाले होते हैं. ये शौप्स पान की दुकान बराबर होती हैं जहां दुकानदार गेट को एक लकड़ी की मेज से ब्लौक करता है और ग्राहक खचाखच भरी दुकान से बाहर से सामान मंगवाता है. इन दुकानों के भीतर कदम रखने भर की जगह होती है, सिर्फ दुकानदार ही हिलडुल कर सामान पैक कर पाता है. रमिकांत के अनुसार औनलाइन शौपिंग और बड़े मल्टी प्रोडक्ट्स स्टोर्स के खुलने से छोटे दुकानदारों के ग्राहक सीमित होते जा रहे हैं.
रमिकांत ने अपनी दुकान बलजीत नगर इलाके में ?ांडेवाला चौक के प्राइम एरिया में खोली थी, जिस के लिए उन्हें महीना 10 हजार रुपए किराया देना पड़ रहा था. उन्होंने जिस तरह की उम्मीद की थी वह दुकान से पूरी नहीं हो पाई, जिस कारण उन्हें इसे बंद करना पड़ा. अब वे वापस अपने पिताजी की पुरानी किराना दुकान में काम करने लगे हैं.
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वे बताते हैं, ‘‘अब वह समय चला गया जब छोटा आदमी दुकान खोल कर भी अपनी जिंदगी हंसीखुशी काट लेता था. आज के समय में अगर आप के पास इन्वैस्ट करने के लिए मोटा अमाउंट नहीं है तो आप व्यापार में जिंदा नहीं रह सकते.’’
‘सरिता’ पत्रिका ने इस मसले पर होलसेलरों से भी उन की राय जाननी चाही. प्रेम नगर इलाके में ‘जैन स्टोर’ के नाम से मशहूर 43 वर्षीय अजय जैन इलाके में बड़े होलसेलर हैं. इलाके में बहुत छोटेछोटे स्तर की दुकानें हैं तो वे उन दुकानों को सामान पहुंचा कर होलसेलर के नाम से जाने जाते हैं. वे
20 साल से किराना कारोबार में हैं.
उन के यहां इस समय तकरीबन 350 आउटलेट्स के लिए सामान जाता है, यानी 350 छोटीबड़ी किराना दुकानें उन के यहां से सामान ले कर जाती हैं और कई बड़े से ले कर छोटी कंपनियों के डिस्ट्रिब्यूटर उन से जुड़े हुए हैं. इलाके में उन के 2 बड़े गोदाम हैं और एक अच्छीखासी बड़ी किराना दुकान है, जहां से वे अपना व्यापार चलाते हैं.
औनलाइन शौपिंग से खुदरा व्यापार में आई दिक्कतों के बारे में जब उन से पूछा तो वे बताते हैं कि वे इस समय खुद भी औनलाइन सामान थोक में खरीदते हैं. उन के मोबाइल पर ग्रौफर्स, उड़ान, जियो मार्ट पार्टनर ऐप इन्सटौल थे. ज्यादातर वे ‘उड़ान’ एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं. वे सभी एप्लीकेशंस पर रेट की तुलना करते हैं, इस के साथ डिस्ट्रिब्यूटर के रेट की भी तुलना करते हैं. जहां से सामान सही पटता है वहां से खरीद लेते हैं.
औनलाइन कारोबार को ले कर अजय कहते हैं, ‘‘यह ऐसा ट्रैप है जिस में आप फंसेंगे ही. हमें पता है कि यही ईकौमर्स आगे जा कर उन्हें निगलने वाला है लेकिन फिर भी उस का इस्तेमाल वे कर रहे हैं. बड़े पूंजीपति किसान से ले कर दुकान हर जगह कब्जा करना चाहते हैं. वे छोटे व्यापारियों का भट्ठा बैठा रहे हैं. यह एक गहरी साजिश है.’’
औनलाइन शौपिंग को बड़े इन्वैस्टर भविष्य की दुकानदारी बता रहे हैं. आज बड़े से बड़ा पूंजीपति आलूटमाटर से ले कर दालचावल औनलाइन बेच रहा है. जाहिर है जब बड़े प्लेयर उतरेंगे तो छोटेछोटे व्यापारी और दुकानदारों का इस आंधी में टिकना मुश्किल है. इस में बशर्ते वे या तो खुद को इन में विलय करा दें, या पूरी तरह से इस धंधे को भी टाटाबायबाय कह दें.
2018 में देश के सब से अमीर शख्स मुकेश अंबानी ने खुदरा व्यापार में उतरने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि वे 3 करोड़ छोटे व्यापारियों के साथ औनलाइन कारोबार के माध्यम से खुदरा बाजार से जुड़ना चाहेंगे. पहले ही देश में वालमार्ट, एमेजौन, ग्रौफर्स इत्यादि ने अपने पैर इस सैक्टर में पसार लिए थे, ऐसे में रिलायंस की घोषणा के बाद यह तय माना गया कि खुदरा बाजार अब पूरी तरह से मोबाइल के बटनों तक कैद हो जाएगा. जाहिर है इस समय देश में ईग्रौसरी बाजार अभी 6201 करोड़ रुपए का है जो अनुमानतया 2023 में 1.03 लाख करोड़ रुपए होने जा रहा है.
बड़ी कंपनियों की बल्लेबल्ले
लोकल सर्किल के सर्वेक्षण के अनुसार, 52 प्रतिशत किराना दुकानदारों ने लौकडाउन के दौरान ईकौमर्स किराना ऐप को उपयोगी माना था. इसी सर्वे में कहा गया कि लगभग 32 फीसदी औनलाइन किराना दुकानदारों ने तालाबंदी के दौरान हफ्ते में एक से अधिक बार और्डर दिए. होमग्राउन कंसल्ंिटग फर्म ‘रेडशीर’ द्वारा प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल के भीतर ईग्रौसरी व्यापार में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
ऐसे में जियो मार्ट पार्टनर ऐप को सब से बड़े प्लेयर के तौर पर भविष्य में आंका जा रहा है. जियो मार्ट अपनी पहुंच बनाने के लिए जमीनी स्तर पर भी तेजी से काम कर रहा है. माना जा रहा है कि अगले
5 सालों तक जियो मार्ट खुदरा व्यापार के ईकौमर्स में 50 फीसदी से अधिक हिस्से के साथ इस क्षेत्र का नेतृत्व करेगा.
अमेरिकी कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने एक रिपोर्ट जारी की है जिस में यह अनुमान जाहिर किया है कि मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज आने वाले कुछ समय में भारत के औनलाइन किराना कारोबार के आधे हिस्से पर कब्जा जमा लेगी. बता दें कि देश का ईकौमर्स कारोबार 27 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि फेसबुक से गठजोड़ करने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज का औनलाइन रिटेल कारोबार में दबदबा निश्चित रूप से बढ़ेगा.
यह संभव भी है क्योंकि रिलायंस इस क्षेत्र पर भारी निवेश पर जोर दे रहा है. वह अपनी पैठ निचले स्तर की दुकानों तक बनाने के लिए तेजी से काम कर रहा है. लोकल इलाकों की दुकानों को जियो मार्ट से जोड़ने के लिए उस ने निम्न स्तर पर युवा लड़कों की फौज खड़ी कर दी है जो लगातार टार्गेट बेस पर काम करते हैं और दुकानदरदुकान घूम कर जियो मार्ट पार्टनर ऐप को दुकानदारों से इंस्टौल करवाते हैं.
इस संबंध में हमारी बात जियोमार्ट के लिए काम कर रहे 20 वर्षीय फील्डबौय (पहचान न बताने की शर्त पर) से हुई. वह बताता है कि इस समय जियोमार्ट पूरी तरह से रिटेल में घुस रही है. अकेले दिल्ली में सैकड़ों युवा लड़केलड़कियां हैं जिन का काम दुकानों पर सिर्फ जियोमार्ट पार्टनर की एप्लीकेशन इंस्टौल करवाने का है. उस के अनुसार, जियो शौपटूशौप डायरैक्ट इंटरैक्ट कर रहा है.
फील्डबौय को शुरुआती तनख्वाह के तौर पर जियोमार्ट 15 से 18 हजार रुपए दे रहा है. इस के साथ कस्टमर बनाने पर इन्सेंटिव भी दिया जा रहा है, लेकिन यह इन्सेन्टिव तभी मिलेगा जब एप्लीकेशन इंस्टौल करने वाला ग्राहक (दुकानदार) महीने में कम से कम 2 बार उस एप्लीकेशन का इस्तेमाल करे. उस का काम सिर्फ एप्लीकेशन इंस्टौल कराने भर का नहीं है, इस के साथ उसे दुकानदारों को गाइड भी करना होता है, तकनीकी जानकारी भी देनी होती है और फायदे भी बताने होते हैं.
फील्डबौय ने बताया, ‘‘दिल्ली को जियोमार्ट ने अलगअलग जोनों में बांटा हुआ है. हर जोन का एक टीम लीडर है. उस के नीचे मेरे जैसे कई सारे युवा लड़केलड़कियां, जिन की उम्र 18-35 साल तक होती है, काम करते हैं. हमारा जियोमार्ट कंपनी से सीधा संबंध नहीं है. जो भी सैलरी या इंसैंटिव मिलता है वह टीम लीडर के माध्यम से मिलता है.’’
युवाओं पर असर
इस समय औनलाइन कारोबार तेजी से अपने पांव पसार रहा है. दिल्ली समेत कई महानगरों में घर से ले कर स्टोर तक औनलाइन खरीदारी की जा रही है. अधिकतर दुकानदारों से बात करते हुए पाया कि इस की सब से बड़ी खासीयत यह है कि अभी यह दुकानदारों को सहूलियात का एहसास करा रहा है. आप यदि आज सामान और्डर करते हैं तो महज 24 घंटों के भीतर सामान आप के पास दरवाजे पर होता है. लेकिन एक तरह जहां सहूलियत की बात आ रही है वहीं इस से जुड़ी बहुत सी असुरक्षाएं हैं. रिटेल सैक्टर से जुड़े कई व्यापारियों, लाखों दुकानदारों और इस से कई गुना लोगों की रोजीरोटी पर खतरा मंडरा रहा है. वे आशंकित हैं कि कहीं यही ऐप उन्हें निगलने, उन का मालिकाना हक, उन की सामाजिकता को तोड़ने का जरिया न बन जाए.
गौरतलब है कि औनलाइन कारोबार के बढ़ने से पारंपरिक व्यापार पर बड़ी चोट पड़ेगी. ऐसे में इस से जुड़े लोगों के कामधंधों पर भारी असर पड़ेगा. दुकानों पर दुकान मालिक के साथ काम कर रहे कामगारों की लगातार घटती संख्या बता भी रही है कि इस का असर पड़ना शुरू हो गया है. कइयों की दुकानें महज खानापूर्ति तक सीमित रह गई है. कई महज समय काटने और बाजार में कोई दूसरा काम न होने के चलते छोटीमोटी किराना दुकानें या तो खींच रहे हैं या जैसेतैसे काम चला रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि इस का असर भावी भविष्य की युवा पीढ़ी पर भी पड़ने वाला है. यह सिर्फ रिटेल सैक्टर के तहत आने वाले लोगों पर ही नहीं बल्कि देश में पढ़ेलिखे युवाओं पर भी सीधा असर डालेगा. जब देश में चंद अमीर पूंजीपतियों की मोनोपोली इस सैक्टर में हो जाएगी तो जाहिर है इन्हें डिलीवरी करने वाले युवाओं की फौज (जो तैयार हो चुकी है) की भारी जरूरत महसूस होगी.
ये वे युवा होंगे जिन्हें गूगल मैप चलाना आता होगा, जिन्हें टूव्हीलर और फोरव्हीलर चलाना आता होगा, जिन्हें हिसाब करना आता होगा, जिन्हें इंग्लिश की बेसिक सम?ा होगी और जो बात करने में माहिर होंगे. ये वे पढ़ेलिखे युवा होंगे जो इन के लिए दिनरात डिलीवरी कुली बन कर काम करेंगे. पढ़ेलिखे युवा पीठ पर बड़ेबड़े बैग तो आज भी उठाए गलियोंगलियों सामान ढो ही रहे हैं, आगे जा कर आटादाल पहुंचाने के भी काम करेंगे (जो संभवतया शुरू भी हो गया है).
खुदरा व्यापारियों का विरोध
इसे ले कर विरोध की सुगबुगाहट उठनी शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश से ले कर महाराष्ट्र तक खुदरा व्यपारियों के मंडल (संगठन) बैनरपोस्टर ले कर अपना विरोध जताना शुरू कर चुके हैं. औनलाइन कारोबारियों के पुतले फूंके गए हैं. कई जगह तो डिलीवरी करने वालों को रोका गया, बाजार में घुसने नहीं दिया गया. वहीं, न्याय की गुहार लगाते हुए व्यापारी मंडल कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं. जाहिर है अभी यह विरोध सांकेतिक रूप से चल रहे हैं, लेकिन इन विरोधों की बारंबारता को देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में यह विरोध बड़े स्तर पर होंगे. संभव है कि अगला बड़ा संघर्ष रिटेल सैक्टर को बचाने का हो.
हालिया उदाहरण आज देश के सामने है जब 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया, जिस के बाद किसानों की जीत पर आंशिक मोहर लग गई. संसद में जिस तरह बिना चर्चा, बातविचार के कानून लाए गए उसी रास्ते निबटा दिए गए. विचारा जा सकता है कि इन कानूनों के माध्यम से भाजपा सरकार कृषि सैक्टर को चंद अमीर पूंजीपतियों की बपौती बनाने का काम कर रही थी. इस के विरोध में देशभर के किसान सड़कों पर जम गए जिस के चलते सरकार को कानून वापस लेने पड़े.
यह आंदोलन 1 साल 15 दिन लंबा चला. इतिहास में ऐसा कोई आंदोलन नहीं जो इतने लंबे समय तक निरंतर चलता रहा हो. सरकार को किसानों के जज्बे के आगे आखिरकार ?ाकना पड़ा. इस आंदोलन की व्यापकता और कानूनों के लूप होल्स के बारे में ‘सरिता’ पत्रिका आंदोलन की शुरुआत से मुखर हो कर लिखती रही है. जाहिर है, देश के किसानों ने कृषि उत्पादों पर सेठ कंपनियों के एकाधिकार को टालने का बड़ा काम किया है. किसान आंदोलन से घरघर में अडानीअंबानी सरीखे पूंजीपतियों की बेरोकटोक घुसपैठ पर किसी हद तक लगाम लगी. निश्चित रूप से यह एकाधिकार देश के किसान समेत आम जनता को निचोड़ने का काम करने वाले थे. भूख पर सौदेबाजी करने वाले थे. ऐसे ही अगली लड़ाई किराना दुकानों को बचाने की होनी जरूरी है.
‘व्यापारी केवल कारोबार ही नहीं, समाज को जोड़ने का काम भी करता है’
-संदीप बंसल, अध्यक्ष, अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल
औनलाइन कारोबार खुदरा कारोबार को तोड़ने के साथ ही डिलीवरीमैन लड़कों को एक तरह से कुली बनाने का काम कर रहा है. औनलाइन कारोबार पूरी तरह से पैसों का कारोबार है. इस का सामाजिकता से कोई लेनादेना नहीं है. औनलाइन कारोबार किस तरह से कारोबार और समाज को नुकसान पहुंचा रहा है, इस बारे में अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष संदीप बंसल के साथ बातचीत हुई. पेश हैं प्रमुख अंश :
औनलाइन बिजनैस खुदरा कारोबार को किस तरह से नुकसान पहुंचा रहा है?
खुदरा कारोबार पूरे देश में रोजगार देने का सब से बड़ा साधन है. बहुत बड़ेबड़े कारोबारियों को देखें तो यह पता चलता है कि बहुतों की शुरुआत छोटेछोटे कारोबार से होती थी. खुदरा कारोबार को शुरू करने में कम पूंजी लगती है. इस कारण बहुत सारे लोग इस को शुरू कर लेते हैं. इस के बाद वे धीरेधीरे कारोबार के मुनाफे को बचा कर अपने कारोबार को बड़ा करते थे. औनलाइन कारोबार से खुदरा कारोबार पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. छोटाछोटा कारोबार भी बड़े बिजनैसमैनों के हाथ में चला जाएगा. देश के युवा कारोबार करने की जगह पर केवल डिलीवरी मैन बन कर रह जाएंगे.
औनलाइन कारोबार से जनता को क्या दिक्कतें होंगी?
दरअसल बड़े बिजनैसमैन शुरुआत में तमाम तरह के प्रलोभन देते हैं. छूट के चक्कर में लोग उन के ?ांसे में आ जाते हैं. जब वे अपना पूरा नैटवर्क फैला लेते हैं तो फिर मनमाने तरह से दाम बढ़ाने लगते हैं. अगर ओला और उबर को देखें तो सम?ा आएगा कि पहले यह सस्ता लगता था. जब इन लोगों ने पूरी ट्रैवल व्यवस्था को तोड़ दिया तो अब दाम बढ़ा दिए. आप टैक्सी ले कर चलते थे तो बीच रास्ते में रोक भी सकते थे. कोई अतिरिक्त पैसा नहीं देना होता था. ओलाउबर जैसी गाडि़यों को रोकेंगे तो उस का पैसा अलग से देना होगा. भीड़ और जाम लगा है तो उस का पैसा अलग से देंगे. अगर ओलाउबर की गाड़ी आ गई और आप ने इंतजार कराया तो अलग पैसा देना पड़ता है. जो लोग अपनी गाड़ी टैक्सी में चलाते थे वे पहले मालिक होते थे. अब वे ओला के ड्राइवर बन कर रह गए हैं. इसी तरह से औनलाइन खाने के कारोबार ने बड़ेबड़े रैस्तरां को बंदी की कगार पर पहुंचा दिया है.
औनलाइन कारोबार देशहित में क्यों नहीं है?
इस कारोबार से हमारा पैसा विदेशों में जा रहा है. सब से बड़ा नुकसान यह है. दूसरे, यह हमारे सामाजिक ढांचे को तोड़ने को काम कर रहा है. जब आप खुदरा कारोबारी के पास सामान लेने जाते हैं तो उस से आप का सामाजिक जुड़ाव होता है. आप उस से उधार ले सकते हो. आप दुखदर्द और हंसीखुशी आपस में सा?ा कर सकते हैं. वक्तबेवक्त एकदूसरे की मदद कर सकते हैं. अभी कोरोना के समय औनलाइन कारोबार कुछ दिनों के लिए बंद हो गया था. पासपड़ोस के दुकानदारों ने अपने पासपड़ोस के लोगों की मदद की. औनलाइन कारोबार से पैसे के साथ ही सामाजिकता भी खत्म हो रही है.
रोजगार तो औनलाइन कारोबार में भी मिलता है?
औनलाइन कारोबार में रोजगार मिल तो रहा है लेकिन वह कुछ समय के लिए होता है. जैसे ही आप की युवावस्था खत्म होती है वैसे ही आप डिलीवरीमैन के रूप में काम करने की हालत में नहीं रह जाएंगे. यह रोजगार डिलीवरीमैन का नहीं बल्कि युवाओं को डिलीवरी कुली बना रहा है जो उन की सेहत के लिए भी बेहद घातक है.
कारोबारी इस का विरोध क्यों नहीं करते?
हमारे संगठन ने लगातार इस का विरोध किया है. यही वजह थी कि कुछ वर्षों पहले रिलायंस फ्रैश नाम से खुली दुकानों को बंद कराया गया था. हम इस का विरोध सांकेतिक रूप से करते रहे हैं. अब हम कारोबारियों को एकजुट कर के इस का विरोध करेंगे. यह केवल कारोबारियों के लिए ही नहीं बल्कि जनता और समाज के लिए भी घातक है. यह हमारे आर्थिक ढांचे के साथ ही सामाजिक ढांचे को भी तोड़ने का काम कर रहा है.