एक पौराणिक पात्र है अष्टावक्र जिस के बारे में लोग आमतौर पर इतना ही जानते हैं कि वह अपने अहंकारी वेदपाठी पिता कहो के श्राप के चलते 8 भुजाओं वाला हो कर कुरूप दिखने लगा था जिस का हर कोई उस का मजाक बनाता था लेकिन अष्टावक्र ‘हाथी अपने रास्ते चलता है तो कुत्ते भूंका करते हैं’ वाली कहावत पर अमल करता था. ब्राह्मण होते हुए भी उस का आचरण नास्तिकों जैसा था और ज्ञानियों व श्रेष्ठियों की बातों का तार्किक खंडन करता रहता था. जो लोग अष्टावक्र के बारे में और थोड़ाबहुत जानते हैं वह यह है कि उस ने अपने सहज तर्कों से राजा जनक की सभा में बंदी उर्फ वन्दिनी नाम के तत्कालीन प्रकांड पंडित की बोलती बंद कर दी थी.
दरअसल, अष्टावक्र पहला आदमी था जिस ने सत्य को जैसा महसूस किया वैसा ही कहा. ऋषिमुनियों द्वारा परोसे सच को उस ने कभी स्वीकारा नहीं. उस का कहना था कि सत्य शास्त्रों में नहीं लिखा है, शास्त्रों में तो शब्दों के संग्रह सहित नियम और सिद्धांत हैं. सत्य और ज्ञान तो आदमी के अंदर होता है. वह मूलतया धर्म के विरुद्ध भी नहीं था बल्कि उस ने सत्य और धर्म के मर्म को अपने तरीके से जाना और उसे व्यक्त भी किया. अष्टावक्र ने कोई गुनाह नहीं किया था बल्कि अपने विचार व्यक्त किए थे जो कट्टरवादियों और परंपरावादियों को आज भी हजम नहीं होते.
अष्टावक्र के प्रसंग से दूसरी कई बातों के साथ एक बात यह भी साबित होती है कि त्रेता और द्वापर युग में हरेक विद्वान का ब्राह्मण होना एक अनिवार्यता थी लेकिन हरेक ब्राह्मण के विद्वान होने की कोई बाध्यता नहीं थी. इस तरह ब्राह्मण और ब्राह्मणत्व 2 अलगअलग शब्द व परिभाषाएं सिद्ध होती हैं ठीक वैसे ही जैसे इन दिनों एक जोरदार बहस हिंदू और हिंदुत्ववादी शब्दों को ले कर छिड़ी हुई है. यह बहस बहुत रोमांचक और दिलचस्प है क्योंकि अधिकतर हिंदू इस गफलत में पड़ गए हैं कि वे हिंदू हैं या फिर हिंदुत्ववादी हैं.
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यह बहस 12 दिसंबर को कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने जयपुर की एक रैली से छेड़ी जिस का कोई ठोस तो क्या हलकाफुलका जवाब भी भगवा गैंग नहीं दे पा रहा. तीसरे और चौथे दरजे के नेताओं व धर्मगुरुओं ने जरूर राहुल गांधी का मजाक बना कर उन के खानदान पर धर्म और चमड़ी की रंगत पर कीचड़ उछाल कर तसल्ली कर ली. हालांकि, संतुष्ट वे भी नहीं हैं क्योंकि किसी का और खासतौर से राहुल गांधी का मजाक बनाना उन के लिए आसान व मनपसंद काम है पर उन के उठाए सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. क्या मौजूदा दौर के ऋषिमुनियों और श्रेष्ठियों की हालत वाकई बंदी और जनक जैसी हो गई है, इसे सम?ाने से पहले राहुल गांधी की बात जान लेना जरूरी है. 18 दिसंबर को अमेठी में उन्होंने इसी बात को शब्दों के थोड़े से हेरफेर के साथ दोहराया भी था .
राहुल गांधी ने कहा-
देश की राजनीति में आज 2 शब्दों की टक्कर है, 2 अलग शब्दों की. इन के मतलब अलग हैं. एक शब्द हिंदू, दूसरा शब्द हिंदुत्ववादी. यह एक चीज नहीं है. ये 2 अलग शब्द हैं. इन का मतलब बिलकुल अलग है. मैं हिंदू हूं मगर हिंदुत्ववादी नहीं हूं.
महात्मा गांधी हिंदू और नाथूराम गोडसे हिंदुत्ववादी. फर्क मैं आप को बताता हूं, चाहे कुछ भी हो जाए हिंदू सत्य को ढूंढ़ता है चाहे मर जाए, कट जाए, पिस जाए. उस का रास्ता सत्याग्रह है. पूरी जिंदगी वह सच को ढूंढ़ने में निकाल देता है.
महात्मा गांधी ने पूरी जिंदगी सच ढूंढ़ने में बिता दी और अंत में एक हिंदुत्ववादी ने उन की छाती में
3 गोलियां मारीं. हिंदुत्ववादी अपनी पूरी जिंदगी सत्ता खोजने में लगा देता है. उसे सिर्फ सत्ता चाहिए और उस के लिए वह कुछ भी कर देगा. उस का रास्ता सत्याग्रह नहीं, सत्ताग्रह है.
यह हिंदुओं का देश है, हिंदुत्ववादियों का नहीं. आज अगर देश में महंगाई है, दर्द है तो यह काम हिंदुत्ववादियों ने किया है. 2014 से इन लोगों का राज है, हिंदुत्ववादियों का राज है, हिंदुओं का नहीं. हमें हिंदुत्ववादियों को बाहर निकालना है और एक बार फिर से हिंदुओं का राज लाना है.
नरेंद्र मोदी और उन के तीनचार उद्योगपति हिंदुत्ववादियों ने देश को
7 साल में बरबाद कर दिया, खत्म कर दिया. मोदीजी ने किसानों की जो आत्मा है, उन का जो दिल है, उसी छाती में चाकू मार दिया. आगे से
नहीं बल्कि पीछे से, क्यों, क्योंकि हिंदुत्ववादी हैं तो पीछे से मारेंगे और जब हिंदू किसान के साथ खड़ा हुआ तो हिंदुत्ववादी ने कहा, ‘मैं माफी मांगता हूं.’
नई बोतल पुरानी शराब
निश्चित रूप से राहुल गांधी ने कोई नई बात नहीं कही है क्योंकि हिंदू कौन, यह बहस बहुत पुरानी है जिस के जिक्र के कोई माने नहीं लेकिन आमतौर पर हर उस आदमी को हिंदू मान लिया जाता है जो किसी गैरधर्म का नहीं है. आजादी के पहले से ही विनाशक सरकार द्वारा गढ़े शब्द हिंदुत्व की राजनीति के कौपीराइट रामराज्य परिषद, हिंदू महासभा और जनसंघ सरीखे हिंदूवादी दलों के हुआ करते थे पर अब हर कोई खुद को हिंदू दिखाने व साबित करने के ट्रैक पर दौड़ रहा है. ममता बनर्जी का चंडीपाठ, अरविंद केजरीवाल की राम और हनुमान भक्ति के अलावा खुद राहुल गांधी का जनेऊ पहन कर कैलाश मानसरोवर व वैष्णो देवी की यात्रा करना भाजपा से उस का प्रिय मुद्दा और पहचान छीनने जैसी हरकतें हैं.
राहुल गांधी क्यों इस संदर्भप्रसंग में गांधी और गोडसे को खींच लाए, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि गांधी दलितों और मुसलमानों के प्रति सौफ्ट कौर्नर रखते थे, इसीलिए आज भी उन के पुतले पर गोलियां दागी जाती हैं. कट्टरवादी जिन्हें राहुल गांधी हिंदुत्ववादी कह रहे हैं इस देश को सिर्फ हिंदुओं का देश मानते हैं लेकिन वे महात्मा गांधी को मुसलमान या ईसाई नहीं कह पाते क्योंकि गांधी घोषित तौर पर वैष्णव हिंदू थे. उलट इस के, राहुल गांधी को ईसाई मां और आधे मुसलमान पिता की वर्णसंकर संतान होने के प्रचार भर से भाजपा 2014 और 2019 का चुनाव जीत ले गई थी, कम से कम उस की यह गलतफहमी तो अभी तक कायम है. छिछोरे किस्म के इस तरह के प्रचार से जरूर ऐसा लगता है कि हिंदुत्ववादी सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.
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लाख टके का यह सवाल अकसर मुंहबाए खड़ा रहा है कि हिंदू कोई धर्म है भी या नहीं. जवाब इस सवाल का भी बेहद साफ है कि हिंदू कोई धर्म नहीं है बल्कि एक तरह की पूज्य प्रणाली मानते लोगों की जीवनशैली है जिस में पूजापाठ, दानदक्षिणा, व्रत, उपवास, मंदिर, तीर्थ आदि का माना जाना है और यह बात आरएसएस व भाजपा दोनों स्वीकारते भी हैं. फिर ?ागड़ा किस बात का, इस पर भले ही राहुल गांधी खामोश रहें लेकिन यह बात साफतौर पर सम?ा आती है कि वे ब्राह्मण और वर्णव्यवस्था वाले हिंदुओं को इशारों में हिंदुत्ववादी करार दे रहे हैं जोकि गलत भी नहीं है.
भाजपा खुलेतौर पर उस हिंदुत्व की राजनीति करती रही है जिस में धर्म राष्ट्र से ऊपर होता है और जिस में धर्म की स्थापना के लिए हिंसा की वकालत की जाती है अब तक भाजपा का काम हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान, वंदे मातरम और भारत माता की जय के अलावा नदियों, मठमंदिरों और मूर्तियों के पाखंड से चल जाता था पर जब राहुल गांधी ने खुद को ब्राह्मण हिंदू साबित कर दिया और ममता बनर्जी भी खुद को ब्राह्मण हिंदू कहते यह भी कहती हैं कि उन्हें किसी भाजपा से कास्ट सर्टिफिकेट नहीं चाहिए तो भगवा गैंग में चिंता पसरना स्वाभाविक बात है कि हर कोई अपना धर्मपरायण होने का प्रमाणपत्र खुद बनाने लगेगा तो हमारा और हमारी अब तक की मेहनत का क्या होगा.
गफलत में यह भी
इतिहास क्या कहता है, इस से ज्यादा अहम इन दिनों देश की नई पीढ़ी का हिंदू और हिंदुत्व की राजनीति से ऊबना है. भोपाल के एक रेफ्रिजरेशन कारोबारी युवा निरंजन सिंह कहते हैं कि यह बहस एकदम निरर्थक नहीं है, लेकिन इस की सार्थकता तभी साबित होगी जब महंगाई और बेरोजगारी काबू में हों जो सीधेतौर पर प्रधानमंत्री की हैसियत से नरेंद्र मोदी की जिम्मेदारी है. निरंजन को न सावरकर ब्रेन हिंदुत्व से मतलब है और न ही गांधी छाप हिंदुत्व से कोई सरोकार है. वे खुद को हिंदू मानते हैं पर धार्मिक पाखंडों, कर्मकांडों, अंधविश्वास और दानदक्षिणा जैसे रिवाजों से दूर रहते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इसी आधार पर युवा वोटर राहुल गांधी पर भरोसा कर सकता है जिसे यह मतलब नहीं कि वे किसकिस धर्म के लोगों के मेल से उपजे हैं. यह काम तो हिंदुत्ववादी करते ही रहते हैं जिन के खुद के देवीदेवता और अवतार खीर और घड़ों से पैदा हुए हैं.
यह एक पीढ़ी का अंतर और विरोधाभास दोनों है क्योंकि निरंजन के रिटायर्ड औडिटर पिताजी एस सूर्यवंशी कहते हैं, ‘‘राहुल गांधी कोई गलत बात नहीं कह रहे हैं. हर हिंदू कट्टर नहीं होता, हां, इतना जरूर है कि भाजपा राज में कट्टरवाद फैला है और जानबू?ा कर फैलाया गया है जो देश के लिए नुकसानदेह है. हमारे कालेज के दिनों में भी हिंदुत्व पर खूब चर्चाएं और बहसें होती थीं और हम लोग सावरकर व गांधी दोनों के हिंदुत्व से सहमत नहीं होते थे लेकिन एक सीमा तक अंबेडकर के हिंदूवाद से आज भी सहमत हैं जिसे राहुल गांधी अलग तरीके से उठाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि अब फिर भाजपा सवर्ण हिंदुओं में सिमटती जा रही है. उस का एक बड़ा डर शूद्र कहे जाने वाले दलित और पिछड़े भी हैं जिन्हें उन के चौथे दरजे का हिंदू होने और हिंदुत्व का एहसास कराया जाने लगा है. लेकिन अफसोस इस बात का है कि इस बाबत उन्हें भी मुसलमानों का डर दिखाया जा रहा है.
हिंदू, हिंदुत्व और अब हिंदुत्ववादी. इस बहस का कोई आदिअंत नहीं है. लेकिन यह तय है कि राहुल गांधी ने एक नई बहस छेड़ दी है जिस का तोड़ भगवा खेमा हालफिलहाल नहीं ढूंढ़ पा रहा है. उस के सब से बड़े मुखिया आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी चकराए हुए हैं क्योंकि कोई सफाई देना उन की शान के खिलाफ है और न देना भी तौहीन से कम नहीं.
भाषण में छिपा कन्फैशन
राहुल के पहेली बू?ाने के तुरंत बाद चित्रकूट में उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर आयोजित हिंदू एकता कुंभ में मोहन भागवत इस सवाल से कन्नी काटते दिखे और हिंदुओं की घरवापसी पर जोर देते रहे. उन्होंने स्वयंसेवकों को संकल्प दिलाया कि सब पवित्र हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति की हिफाजत करेंगे और किसी भी हिंदू भाई को हिंदू धर्म से विमुख नहीं होने देंगे. जो धर्म छोड़ कर चले गए हैं उन की घरवापसी के लिए काम करेंगे और हिंदू बहनों की अस्मिता, सम्मान व शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण कर देंगे.
जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिंदू समाज को समरस, सशक्त, अभेध बनाने के लिए कार्य करेंगे. यह भी और बात है कि इस आयोजन में ब्राह्मणों ने सम्मान का न मिलने का रोना रोया और मठमंदिरों पर से सरकारी नियंत्रण हटाने की मांग भी की. जबकि जमावड़े में 95 फीसदी ब्राह्मण ही थे.
बारीकी से देखा जाए तो मोहन भागवत के इस भाषण से राहुल गांधी की इस बात की पुष्टि होती है कि देश में 2 तरह के हिंदू हैं. पहले वे जो खुद को सामान्य हिंदू मानतेसम?ाते हैं और दूसरे वे जिन की सदियों से एक ही कोशिश है कि हिंदू हिंदू ही रहें. ये ही हिंदुत्ववादी हैं जो सामान्य हिंदू को धर्मांतरण करने से भी रोक नहीं पाते और उस की घरवापसी भी इन के लिए मुद्दा, मुहिम और अनुष्ठान होती है. लेकिन जाने क्यों अपनी धार्मिक कमजोरियों व खामियों को ये दूर नहीं करते.
आज ही नहीं बल्कि हमेशा से जाति, वर्ग और पंथ व भाषा के भेद यानी भेदभाव से ऊपर उठने के प्रवचन घुट्टी की तरह पिलाए जाते रहे हैं लेकिन ये हैं ही क्यों, इस पर कोई कुछ नहीं बोल पाता क्योंकि बोलना हिंदुत्ववादियों के एजेंडे में नहीं. इसीलिए पीने वाले इन प्रवचनों को शराब की तरह पीते हैं और फिर नशे में ?ामते नजर आते हैं.
आज देश के नव हिंदुत्ववादी कहते हैं कि मुसलमान एक बड़ा खतरा हैं लेकिन आम, सामान्य, उदार, सम?ादार इन चारों में से कुछ भी कह लें, हिंदू इस से सहमत नहीं होता कि हिंदू होने का एक मतलब मुसलमानों से नफरत करना भी है या होना चाहिए. शायद इसीलिए राहुल गांधी भी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहने लगे हैं जो कल तक उन के लिए जोखिमभरी बात होती थी.
महिलाओं का रोल अहम
मुमकिन है राहुल गांधी और कांग्रेस अपना अलग नया हिंदुत्व गढ़ रहे हों जिस में पहले की तरह मुसलमान, दलित, पिछड़े, आदिवासी और औरतें भी होंगी पर उस में हिंदुत्ववादियों को कोई जगह नहीं दिख रही. अब देखना दिलचस्प होगा कि देश में कितने हिंदू हैं और कितने हिंदुत्ववादी हैं. सियासी तौर पर तो यह फैसला 2024 के आम चुनाव के नतीजे बताएंगे, इस में भी महिलाओं की भूमिका अहम रहेगी जिन के शील, सम्मान और अस्मिता की गुहार चित्रकूट से लगाई गई है.
महिलाओं के शील, सम्मान और अस्मिता की बात भी बहुत हास्यास्पद लगती है क्योंकि उन का सब से ज्यादा शोषण तो खुद हिंदू धर्म के मूलभूत सिद्धांत करते हैं जिन के तहत औरत दासी, जायदाद, गुलाम, पांव की जूती और शूद्र तुल्य होती है जिसे संपत्ति रखने का भी अधिकार नहीं और जो शादी के पहले पिता व शादी के बाद पति के नाम से पहचानी जाती है और अगर पति न रहे तो उसे पुत्र के संरक्षण में रहने के स्पष्ट निर्देश हिंदुओं के संविधान मनुस्मृति में दिए गए हैं.
चंद महानगरीय महिलाओं को छोड़ दें तो कोई 90 फीसदी औरतें अभी भी दोयम दरजे की जिंदगी जी रही हैं. धार्मिक रूप से उन की भूमिका और उपयोगिता धार्मिक समारोहों की कलश यात्राओं में नुमाइश के अलावा अपने घर के पुरुषों की सलामती के लिए व्रतउपवास करने में समेट कर रख दी गई है. इस पर भी पुरुष उन्हें तरहतरह से प्रताडि़त करते रहते हैं. यह सोचना बेमानी है कि शिक्षा और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने से उन्हें कोई खास फायदा हुआ है बल्कि उन के प्रति अपराध और बढ़ रहे हैं.
हिंदुत्ववादियों को सम?ाना चाहिए कि हिंदू सशक्त तभी होगा जब युवा के हाथों में रोजगार होगा और महिलाओं को वाकई और वास्तविक सम्मान मिलने लगेगा. लेकिन ऐसा होने दिया जाएगा, इस में शक है क्योंकि फिर तो धर्म की दुकान ही बंद हो जाएगी और निकम्मों को मेहनत की खाने को मजबूर होना पड़ेगा. जरूरत तो इस बात की है कि हर कोई थोपे गए सिद्धांतों और विचारों को नकारते हुए अष्टावक्र बने, असत्य को नकारे और बेखौफ हो कर तर्क करे.
इतना अवैज्ञानिक है हिंदुत्व
राहुल गांधी एक बहस छेड़ने में तो कामयाब रहे लेकिन हिंदुत्व के उन पहलुओं पर चर्चा करने से वे भी यथासंभव कतराते हैं जो हिंदुत्ववाद से कहीं ज्यादा खतरनाक और नुकसानदेह है. हिंदू समाज को पिछड़ा रखने और गुमराह करने में धर्मग्रंथों का योगदान इस बहस में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. रामायण, श्रीमद्भागवतगीता, 4 वेद, 18 पुराण, 24 उपपुराण, 108 उपनिषद और 4 संहिताओं सहित 18 स्मृतियों में ऐसे प्रसंगों की भी भरमार है जिन्हें आधुनिक और सभ्य समाज में सिरे से नकारा जाना चाहिए, मसलन स्वर्गनरक, पापपुण्य, मोक्षपुनर्जन्म वगैरह. लेकिन हो उलटा रहा है. नव हिंदुत्ववादी जिन की तादाद महज 4-5 करोड़ है इन्हीं बेहूदगियों पर गर्व करने की गलती कर रहे हैं जिस का खमियाजा भी उन्हीं को भुगतना पड़ेगा.
धर्मग्रंथों में क्या लिखा है, इसे हिंदुत्ववादियों की ताजा अवैज्ञानिक हरकतों से भी सहज सम?ा जा सकता है. 13 मार्च, 2020 को हिंदू महासभा के राट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने एक पार्टी आयोजित की थी जिस का नाम था गौमूत्र पार्टी, जिस में 200 हिंदुत्ववादियों ने समारोहपूर्वक कुल्हड़ों में गौमूत्र पिया था. दावा यह किया था कि गौमूत्र से कोरोना वायरस भाग जाएगा. इस मूर्खता और चालाकी की तुलना किसी अन्य घटना से नहीं की जा सकती. यह वह वक्त था जब देश में कोरोना का प्रकोप तांडव मचा रहा था. किसी को कुछ नहीं सू?ा रहा था. लेकिन हिंदुत्ववादियों ने इस मजबूरी पर भी दुकान चलाई. वह तो भला हो वैज्ञानिकों का जिन्होंने वक्त पर वैक्सीन ईजाद कर करोड़ों की जिंदगी बचा ली नहीं तो वरना भाई लोग तो गौमूत्र पिला कर ही मार डालने को आमादा हो आए थे जिस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं.
इस के बाद भी कहा जाता है कि हिंदू धर्म एक उन्नत विज्ञान है. इस उन्नत विज्ञान का बखान भगवा गैंग के मैंबर हर कभी किया करते हैं. साल 2014 में हैरानी उस वक्त भी हुई थी जब नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि एक हिंदू देवता गणेश का सिर कुछ प्लास्टिक सर्जनों द्वारा प्रत्यारोपित किया गया था. अब भला न किसी ने पूछा न उन्होंने बताया कि ये प्लास्टिक सर्जन किस यूनिवर्सिटी से डिग्री ले कर आए थे और उन के नाम क्या थे. पशु और मानव के सम्मिश्रण की कल्पना तो लगभग हर समाज में रही है और मिस्र में प्रसिद्ध पिरामिडों के पास स्ंिफक्स की औरत और शेर की सम्मिलित मूर्ति आज भी मौजूद है. इसी बुद्धिमान गैंग के एक और मैंबर रमेश पोखरियाल ने दावा किया था कि एक ऋषि कणाद ने लाखों साल पहले परमाणु परीक्षण कर डाला था. इन महानुभाव के मुताबिक, अणु और परमाणुओं की खोज चरक नाम का ऋषि लाखों साल पहले कर चुका था.
जानलेवा बीमारी कैंसर के इलाज की खोज में दिनरात जुटे वैज्ञानिकों को तुरंत अपने शोध रद्दी में डालते भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह के इस बयान पर गौर फरमाना चाहिए कि उन का स्तन कैंसर पंचगव्य से ठीक हो गया. दुनियाभर के डाक्टरों को मालेगांव विस्फोट की आरोपी इस नेत्री के सफेद ?ाठ पर हैरत हुई थी. लेकिन यह तरस में उस वक्त बदल गई थी जब प्रज्ञा ने मध्य प्रदेश में भाजपा नेताओं की मौत का जिम्मेदार कांग्रेस की तांत्रिक क्रियाओं को ठहराया था. तभी आम हिंदुओं को भी सम?ा आ गया था कि इस नेत्री को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है लेकिन इसे राजनीति में बनाए रखना जरूरी है क्योंकि इतना साफसुथरा ?ाठ बोलने वाले कम बचे हैं.
इन हिंदुत्ववादियों के ऐसे दावों का संकलन किया जाए तो एक 19वां पुराण तैयार हो जाएगा. इस कड़ी में एक दिलचस्प और हास्यास्पद बयान भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का भी उल्लेखनीय है जिन के मुताबिक गाय का गोबर कोहिनूर से भी ज्यादा कीमती है. इन धूर्तों की धूर्तता का एक बेहतर उदाहरण एक केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल का 20 जुलाई, 2020 को यह कहना था कि भाभीजी छाप पापड़ खाने से कोरोना नहीं होता. अब यह और बात है कि यह बयान देने के कुछ दिनों बाद उन्हें ही कोरोना हो गया था.
राहुल गांधी के हिंदू और हिंदुत्ववादी बयान पर उन्हें बावला कहने वाले खरबपति योगगुरु रामदेव शायद ही यह बता पाएं कि असल बावला और बावले कौन से किस्म के लोग हैं. रामदेव इसलिए खामोश रहेंगे कि उन्होंने भी कोरोना के नाम पर कोरोनिल नाम की दवा बेच कर करोड़ों रुपए ?ाटके हैं और चूंकि यह धंधा उन्हें आगे भी करते रहना है, इसलिए हिंदुत्ववादियों की चापलूसी और खुशामद करते रहना उन की व्यावसायिक मजबूरी है. जो आदमी योग नाम की कसरत से ही खरबपति बन सकता है उस से बड़ा बावला दुनिया में कौन होगा. उस की नजर में तो पूरी दुनिया ही वेवकूफ होगी.
अफसोस इस बात का नहीं है कि हिंदुत्ववादी आएदिन ऐसे बेतुके बयान देते रहते हैं बल्कि अफसोस इस बात का ज्यादा है कि पढ़ेलिखे बुद्धिजीवी हिंदू भी अक्ल को ताक पर रखते और वास्तविकता जानतेसम?ाते हुए भी इन की हां में हां मिलाते रहते हैं. वे ऐसा सिर्फ इसलिए करते हैं कि दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों और औरतों को दबाए रखने की हिंदुत्ववादियों की मुहिम कामयाब हो और वे भी इन समुदायों के आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण में शामिल होते धरती पर ही स्वर्ग सा सुख भोगें. बात सही भी है क्योंकि मरने के बाद क्या होता है, यह किस ने देखा है.