बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपनी विरासत और दलित उद्धार की जो जिम्मेदारी मायावती को सौंपी थी, बहनजी न तो उस विरासत को बचा पाईं और न ही दलित समाज का कोई उद्धार कर पाईं. उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं मगर बहनजी और उन के हाथी का अतापता नहीं है.

उत्तर प्रदेश में फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश में तमाम राजनीतिक दलों ने जनता को अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत ?ांक दी है. भाजपा जहां प्रदेशभर में विजय संकल्प यात्रा और जन विकास यात्रा निकाल रही है, वहीं कांग्रेस का जन जागरण अभियान चल रहा है. समाजवादी पार्टी की भी विजय रथ यात्रा प्रदेश भर में जारी है.

यहां तक कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तक हैदराबाद छोड़ उत्तर प्रदेश में डेरा जमाए हुए हैं और सौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुके हैं. वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी उत्तर प्रदेश में 30 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके हैं. मगर इन सब के बीच 4 बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं बसपा प्रमुख और दलित नेत्री मायावती की चुनावी तैयारी बहुत फीकीफीकी सी है.

चुनाव सिर पर हैं मगर बहनजी के पुराने तेवर कहीं दिख नहीं रहे हैं. न कोई दावा न वादा, न यात्रा, न संकल्प, न समारोह. नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, ओमप्रकाश राजभर, प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी, ओवैसी सब सड़कों पर हैं, बड़ीबड़ी रैलियां कर रहे हैं, भाषणबाजी में लगे हैं मगर बहनजी और उन के हाथी का कहीं अतापता नहीं है.

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