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Hindi Story : नचनिया – क्या उस रात अपनी प्यास बुझा पाया वह रईसजादा

Hindi Story : ‘‘कितना ही कीमती हो… कितना भी खूबसूरत हो… बाजार के सामान से घर सजाया जाता है, घर नहीं बसाया जाता. मौजमस्ती करो… बड़े बाप की औलाद हो… पैसा खर्च करो, मनोरंजन करो और घर आ जाओ.

‘‘मैं ने भी जवानी देखी है, इसलिए नहीं पूछता कि इतनी रात गए घर क्यों आते हो? लेकिन बाजार को घर में लाने की भूल मत करना. धर्म, समाज, जाति, अपने खानदान की इज्जत का ध्यान रखना,’’ ये शब्द एक अरबपति पिता के थे… अपने जवान बेटे के लिए. नसीहत थी. चेतावनी थी.

लेकिन पिछले एक हफ्ते से वह लगातार बाजार की उस नचनिया का नाच देखतेदेखते उस का दीवाना हो चुका था.

वह जानता था कि उस के नाच पर लोग सीटियां बजाते थे, गंदे इशारे करते थे. वह अपनी अदाओं से महफिल की रौनक बढ़ा देती थी. लोग दिल खोल कर पैसे लुटाते थे उस के नाच पर. उस के हावभाव में वह कसक थी, वह लचक थी कि लोग ‘हायहाय’ करते उस के आसपास मंडराते, नाचतेगाते और पैसे फेंकते थे.

वह अच्छी तरह से जानता था कि जवानी से भरपूर उस नचनिया का नाचनागाना पेशा था. लोग मौजमस्ती करते और लौट जाते. लौटा वह भी, लेकिन उस के दिलोदिमाग पर उस नचनिया का जादू चढ़ चुका था. वह लौटा, लेकिन अपने मन में उसे साथ ले कर.

उफ, बला की खूबसूरती उस की गजब की अदाएं. लहराती जुल्फें, मस्ती भरी आंखें. गुलाब जैसे होंठ. वह बलखाती कमर, वह बाली उमर. वह दूधिया गोरापन, वह मचलती कमर. हंसती तो लगता चांद निकल आया  हो. वह नशीला, कातिलाना संगमरमर सा तराशा जिस्म. वह चाल, वह ढाल, वह बनावट. खरा सोना भी लगे फीका. मोतियों से दांत, हीरे सी नाक. कमल से कान, वे उभार और गहराइयां. जैसे अंगूठी में नगीने जड़े हों.

अगले दिन उस ने पूछा, ‘‘कीमत क्या है तुम्हारी?’’

नचनिया ने कहा, ‘‘कीमत मेरे नाच की है. जिस्म की है. तुम महंगे खरीदार लगते हो. खरीद सकते हो मेरी रातें, मेरी जवानी. लेकिन प्यार करने लायक तुम्हारे पास दिल नहीं. और मेरे प्यार के लायक तुम नहीं. जिस्म की कीमत है, मेरे मन की नहीं. कहो, कितने समय के लिए? कितनी रातों के लिए? जब तक मन न भर जाए, रुपए फेंकते रहो और खरीदते रहो.’’

उस ने कहा, ‘‘अकेले तन का मैं क्या करूंगा? मन बेच सकती हो? चंद रातों के लिए नहीं, हमेशा के लिए?’’

नचनिया जोर से हंसते हुए बोली, ‘‘दीवाने लगते हो. घर जाओ. नशा उतर जाए, तो कल फिर आ जाना महफिल सजने पर. ज्यादा पागलपन ठीक नहीं. समाज को, धर्म के ठेकेदारों को मत उकसाओ कि हमारी रोजीरोटी बंद हो जाए. यह महफिल उजाड़ दी जाए. जाओ यहां से मजनू, मैं लैला नहीं नचनिया हूं.’’

पिता को बेटे के पागलपन का पता लगा, तो उन्होंने फिर कहा, ‘‘बेटे, मेले में सैकड़ों दुकानें हैं. वहां एक से बढ़ कर एक खूबसूरत परियां हैं. तुम तो एक ही दुकान में उलझ गए. आगे बढ़ो. और भी रंगीनियां हैं. बहारें ही बहारें हैं. बाजार जाओ. जो पसंद आए खरीदो. लेकिन बाजार में लुटना बेवकूफों का काम है.

‘‘अभी तो तुम ने दुनिया देखनी शुरू की है मेरे बेटे. एक दिल होता है हर आदमी के पास. इसे संभाल कर रखो किसी ऊंचे घराने की लड़की के लिए.’’

लेकिन बेटा क्या करे. नाम ही प्रेम था. प्रेम कर बैठा. वह नचनिया की कातिल निगाहों का शिकार हो चुका था. उस की आंखों की गहराई में प्रेम का दिल डूब चुका था. अगर दिल एक है, तो जान भी तो एक ही है और उस की जान नचनिया के दिल में कैद हो चुकी थी. पिता ने अपने दीवान से कहा, ‘‘जाओ, उस नचनिया की कुछ रातें खरीद कर उसे मेरे बेटे को सौंप दो. जिस्म की गरमी उतरते ही खिंचाव खत्म हो जाएगा. दीवानगी का काला साया उतर जाएगा.’’

नचनिया सेठ के फार्महाउस पर थी और प्रेम के सामने थी. तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. प्रेम ने उसे सिर से पैर तक देखा.

नचनिया उस के सीने से लग कर बोली, ‘‘रईसजादे, बुझा लो अपनी प्यास. जब तक मन न भर जाए इस खिलौने से, खेलते रहो.’’

प्रेम के जिस्म की गरमी उफान न मार सकी. नचनिया को देख कर उस की रगों का खून ठंडा पड़ चुका था.

उस ने कहा, ‘‘हे नाचने वाली, तुम ने तन को बेपरदा कर दिया है, अब रूह का भी परदा हटा दो. यह जिस्म तो रूह ने ओढ़ा हुआ है… इस जिस्म को हटा दो, ताकि उस रूह को देख सकूं.’’

नचनिया बोली, ‘‘यह पागलपन… यह दीवानगी है. तन का सौदा था, लेकिन तुम्हारा प्यार देख कर मन ही मन, मन से मन को सौसौ सलाम.

‘‘पर खता माफ सरकार, दासी अपनी औकात जानती है. आप भी हद में रहें, तो अच्छा है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘एक रात के लिए जिस्म पाने का नहीं है जुनून. तुम सदासदा के लिए हो सको मेरी ऐसा कोई मोल हो तो कहो?’’

नचनिया ने कहा, ‘‘मेरे शहजादे, यह इश्क मौत है. आग का दरिया पार भी कर जाते, जल कर मर जाते या बच भी जाते. पर मेरे मातापिता, जाति के लोग, सब का खाना खराब होगा. तुम्हारी दीवानगी से जीना हराम होगा.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘क्या बाधा है प्रेम में, तुम को पाने में? तुम में खो जाने में? मैं सबकुछ छोड़ने को राजी हूं. अपनी जाति, अपना धर्म, अपना खानदान और दौलत. तुम हां तो कहो. दुनिया बहुत बड़ी है. कहीं भी बसर कर लेंगे.’’

नचनिया ने अपने कपड़े पहनते हुए कहा, ‘‘ये दौलत वाले कहीं भी तलाश कर लेंगे. मैं तन से, मन से तुम्हारी हूं, लेकिन कोई रिश्ता, कोई संबंध हम पर भारी है. मैं लैला तुम मजनू, लेकिन शादी ही क्यों? क्या लाचारी है? यह बगावत होगी. इस की शिकायत होगी. और सजा बेरहम हमारी होगी. क्यों चैनसुकून खोते हो अपना. हकीकत नहीं होता हर सपना. यह कैसी तुम्हारी खुमारी है. भूल जाओ तुम्हें कसम हमारी है.’’

अरबपति पिता को पता चला, तो उन्होंने एकांत में नचनिया को बुलवा कर कहा, ‘‘वह नादान है. नासमझ है. पर तुम तो बाजारू हो. उसे धिक्कारो. समझाओ. न माने तो बेवफाई बेहयाई दिखाओ. कीमत बोलो और अपना बाजार किसी अनजान शहर में लगाओ. अभी दाम दे रहा हूं. मान जाओ.

‘‘दौलत और ताकत से उलझने की कोशिश करोगी, तो न तुम्हारा बाजार सजेगा, न तुम्हारा घर बचेगा… क्या तुम्हें अपने मातापिता, भाईबहन और अपने समुदाय के लोगों की जिंदगी प्यारी नहीं? क्या तुम्हें उस की जान प्यारी नहीं? कोई कानून की जंजीरों में जकड़ा होगा. कैद में रहेगा जिंदगीभर. कोई पुलिस की मुठभेड़ में मारा जाएगा. कोई गुंडेबदमाशों के कहर का शिकार होगा. क्यों बरबादी की ओर कदम बढ़ा रही हो? तुम्हारा प्रेम सत्ता और दौलत की ताकत से बड़ा तो नहीं है.

‘‘मेरा एक ही बेटा है. उस की एक खता उस की जिंदगी पर कलंक लगा देगी. अगर तुम्हें सच में उस से प्रेम है, तो उस की जिंदगी की कसम… तुम ही कोई उपाय करो. उसे अपनेआप से दूर हटाओ. मैं जिंदगीभर तुम्हारा कर्जदार रहूंगा.’’

नचनिया ने उदास लहजे में कहा, ‘‘एकांत में यौवन से भरे जिस्म को जिस के कदमों में डाला, उस ने न पीया शबाब का प्याला. उसे तन नहीं मन चाहिए. उसे बाजार नहीं घर चाहिए.

उसे हसीन जिस्म के अंदर छिपा मन  का मंदिर चाहिए. उपाय आप करें. मैं खुद रोगी हूं. मैं आप के साथ हूं प्रेम को संवारने के लिए,’’ यह कह कर नचनिया वहां से चली गई.

दौलतमंद पिता ने अपने दीवान से कहा, ‘‘बताओ कुछ ऐसा उपाय, जिस का कोई तोड़ न हो. उफनती नदी पर बांध बनाना है. एक ही झटके में दिल की डोर टूट जाए. कोई और रास्ता न बचे उस नचनिया तक पहुंचने का. उसे बेवफा, दौलत की दीवानी समझ कर वह भूल जाए प्रेमराग और नफरत के बीज उग आए प्रेम की जमीन पर.’’

दीवान ने कहा, ‘‘नौकर हूं आप का. बाकी सारे उपाय नाकाम हो सकते हैं, प्रेम की धार बहुत कंटीली होती है. सब से बड़ा पाप कर रहा हूं बता कर. नमक का हक अदा कर रहा हूं. आप उसे अपनी दासी बना लें. आप की दौलत से आप की रखैल बन कर ही प्रेम उस से मुंह मोड़ सकता है.

‘‘फिर अमीरों का रखैल रखना तो शौक रहा है. कहां किस को पता चलना है. जो चल भी जाए पता, तो आप की अमीरी में चार चांद ही लगेंगे.’’

नचनिया को बुला कर बताया गया. प्रस्ताव सुन कर उसे दौलत भरे दिमाग की नीचता पर गुस्सा भी आया. लेकिन यदि प्रेम को बचाने की यही एक शर्त है, तो उसे सब के हित के लिए स्वीकारना था. उस ने रोरो कर खुद को बारबार चुप कराया. तो वह बन गई अपने दीवाने की नाजायज मां.

प्रेम तक यह खबर पहुंची कि बाजारू थी बिक गई दौलत के लालच में. जिसे तुम्हारी प्रेमिका से पत्नी बनना था, वह रुपए की हवस में तुम्हारे पिता की रखैल बन गई.

प्रेम ने सुना, तो पहली चोट से रो पड़ा वह. पिंजरे में बंद पंछी की तरह फड़फड़ाया, लड़खड़ाया, लड़खड़ा कर गिरा और ऐसा गिरा कि संभल न सका. वह किस से क्या कहता? क्या पिता से कहता कि मेरी प्रेमिका तुम्हारी हो गई? क्या जमाने से कहता कि पिता ने मेरे प्रेम को अपना प्रेम बना लिया? क्या समझाता खुद को कि अब वह मेरी प्रेमिका नहीं मेरी नाजायज सौतेली मां है.

वह बोल न सका, तो बोलना बंद कर दिया उस ने. हमेशाहमेशा के लिए खुद को गूंगा बना लिया उस ने.

पिता यह सोच कर हैरान था कि जिंदगीभर पैसा कमाया औलाद की खुशी के लिए. उसी औलाद की जान छीन ली दौलत की धमक से. क्या पता दीवानगी. क्या जाने दिल की दुनिया. प्यार की अहमियत. वह दौलत को ही सबकुछ समझता रहा. अब दौलत की कैद में वह अरबपति पिता भटक रहा है अपने पापों का प्रायश्चित्त करते हुए हर रोज.

Romantic Story : उपहार – कौन थी क्षमा जिस ने रविकांत के जीवन में बहार ला दी   

Romantic Story : अपने पहले एकतरफा प्रेम का प्रतिकार रविकांत केवल ‘न’ मेें ही पा सका. उस की कांती तो मां-बाप के ढूंढ़े हुए लड़के आशुतोष के साथ विवाह कर जरमनी चली गई. वह बिखर गया. विवाह न करने की ठान ली. मांबाप अपने बेटे को कहते समझाते 4 साल के अंदर दिवंगत हो गए.

कांती के साथ कौलेज में बिताए हुए दिनों की यादें भुलाए नहीं भूलती थीं. यह जानते हुए भी कि वह निर्मोही किसी और की हो कर दूर चली गई है वह अपने मन को उस से दूर नहीं कर पा रहा था. कालिज की 4 सालों की दोस्ती मेें वह उसे अपना दिल दे बैठा था. कई बार कोशिश करने के बाद रविकांत ने बड़ी कठिनाई से सकुचाते झिझकते एक दिन कांती से कहा था, ‘मैं तुम से प्रेम करने लगा हूं और तुम्हें अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पा कर अपने को धन्य समझूंगा.’

जवाब में कांती ने कहा था, ‘रवि, मैं तुम्हें एक अच्छा दोस्त मानती हूं और इसी नाते से मैं तुम से मिलती जुलती रही. मैं तुम से उस तरह का प्रेम नहीं करती हूं कि मैं तुम्हारी जीवनसंगिनी बनूं. रही विवाह की बात, तो मैं तुम्हें यह भी बता देती हूं कि मैं शादी तो अपने मां-बाप की मर्जी और उन के ढूंढ़े हुए लड़के से ही करूंगी. अब चूंकि तुम्हारे विचार मेरे प्रति दोस्ती से बढ़ कर दूसरा रुख ले रहे हैं, इसलिए मेरा अनुरोध है कि तुम भविष्य में मुझ से मिलना-जुलना छोड़ दो और हम दोनों की दोस्ती को यहीं खत्म समझो.’

उस के बाद कांती फिर कभी रविकांत से नहीं मिली. रविकांत भी यह साहस नहीं कर सका कि उस के मातापिता से मिल कर कांती का हाथ उन से मांगता क्योेंकि उस आखिरी मुलाकात  के दिन उसे कांती की आंखों में प्यार तो दूर सहानुभूति तक नजर नहीं आई थी.

रविकांत ने खुद को प्रेम में असफल समझ कर जिंदगी को बेमानी, बेकार और बेरौनक मान लिया. ऐसे में अधिकतर लोग कठिनाइयों और असफलताओं से घबरा कर खुद को कमजोर समझ अपना आत्मविश्वास और उत्साह खो बैठते हैं.

रविकांत अब 50 पार कर चुके हैं. उन के कनपटी के बाल सफेद हो चुके हैं. आंखों पर चश्मा लग गया  है. इतने सालों तक एक ही कंपनी की सेवा में पूरी निष्ठा से लगे रहे तो अब वह जनरल मैनेजर बन गए हैं.

कंपनी से मिले हुए उन के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में कुछ दिन पहले ही शोभना नाम की एक महिला अपनी 24 साल की बेटी क्षमा के साथ किराए पर रहने के लिए आई.

क्षमा अपनी मां की ही तरह अत्यंत सुंदर और हंसमुख लड़की थी. वह जब भी रविकांत के सामने पड़ती ‘अंकल नमस्ते’ कहना और उन्हें एक मुसकराहट देना कभी नहीं भूलती. रविकांत भी ‘हैलो, कैसी हो बेटी’ कहते और उस के उत्तर में वह ‘थैंक यू’ कहती. क्षमा एम.एससी. कर के 2 वर्ष का कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. इधर कई दिनों से रविकांत को न देख कर उस ने उन के नौकर से पूछा तो पता चला कि वह तो कई दिनों से बीमार हैं और नर्सिंग होम में भरती हैं. नौकर से नर्सिंग होम का पता पूछ कर क्षमा उसी शाम उन से मिलने नर्सिंग होम पहुंची.

क्षमा को देख कर रविकांत बेहद खुश हुए पर क्षमा ने पहले तो इस बात का गुस्सा दिखाया कि इतने दिनों से बीमार होने पर भी उन्होंने उसे खबर क्यों नहीं दी. वह तो हमेशा की तरह यही सोचती रही कि आप कहीं ‘टूर’ पर गए होंगे. क्षमा की झिड़की वह चुपचाप सुनते रहे. मन में उन्हें अच्छा लगा. क्षमा काफी देर तक उन के पास बैठी उन का हालचाल पूछती रही.

रविकांत ने जब बताया कि अब वह ठीक हैं और कुछ ही दिनों में उन्हें नर्सिंग होम से छुट्टी मिल जाएगी तभी उस की प्रश्नावली रुकी. घर वापस लौटते समय वह उन्हें जल्दी से अच्छे होने की शुभकामना देना नहीं भूली.

क्षमा अब रोज शाम को रविकांत को देखने नर्सिंग होम जाती. रविकांत का भी मन बहल जाता था. वह बड़ी बेसब्री से उस के आने की प्रतीक्षा करते. उस के आने पर वे दोनों विभिन्न विषयों पर बहस करते और हंसते हुए बातचीत करते रहते. 2 घंटे कितनी जल्दी गुजर जाते पता ही नहीं लगता.

जिस दिन रविकांत को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली, क्षमा उन्हें अपने साथ ले कर उन के फ्लैट पर आई. अगले दिन रविकांत अपनी ड्यूटी पर जाने लगे तो क्षमा ने यह कह कर जाने नहीं दिया कि आप आज आराम करें और फिर कल तरोताजा हो कर काम पर जाएं.

अगले दिन शाम को जब रविकांत देर से वापस लौटे तो उन के आने की आहट सुन उस ने दरवाजा खोला. नमस्ते की. साथ ही देर करने का उलाहना भी दिया.

सप्ताह में 1-2 बार क्षमा उन के बुलाने पर या खुद ही उन के फ्लैट में जा कर घंटे डेढ़ घंटे गप लड़ाती, नौकर थोड़ी देर में चाय दे जाता. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह अपनी बातें चालू रखते जो अकसर अन्य विषयों से सिमट कर अब कालिज, आफिस, घरेलू और निजी बातों पर आ जाती थीं.

क्षमा ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, आप अकेले क्यों हैं? आप ने शादी क्यों नहीं की? आप को साथी की कमी महसूस नहीं होती क्या? आप को अकेले घर काटने को नहीं दौड़ता? नौकर के हाथ का खाना खातेखाते आप का जी नहीं ऊबता?’’

रविकांत ने अपने पिछले प्रेम का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘क्षमा, हम सब नियति के हाथों की कठपुतली हैं जिसे वह जैसा चाहती है नचाती है. अकेलापन तो मुझे भी बहुत काटता है पर मैं अपने आप को आफिस के काम में व्यस्त रख उसे भगाए रहता हूं. मुझे खुशी है कि अब मेरा कुछ समय तुम्हारे साथ हंसते-बोलते कट जाता है. तुम्हारे साथ बिताए ये क्षण मुझे अब भाने लगे हैं.’’

रविकांत की बीमारी को धीरे-धीरे 1 वर्ष हो गया. इस बीच क्षमा ने अपनी मां से पूछ रविकांत को करीब-करीब हर माह 1-2 बार खाने पर बुलाया. रविकांत शोभनाजी से मिलने पर क्षमा की बड़ी प्रशंसा करते. उन की थोड़ीबहुत औपचारिक बातें भी होतीं. जिस दिन रविकांत खाने पर आने को होते उस दिन क्षमा बड़े उत्साह से घर ठीक करने और खाना बनाने में मां के साथ लग जाती. वह अकसर मां से रविकांत के गुणों और विशेषताओं पर चर्चा करती रहती. वे हांहूं कर उस की बातें सुनती रहतीं.

बेटी और पड़ोसी रविकांत की बढ़ती दोस्ती और मिलनाजुलना कुछ महीनों से शोभना के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था. क्षमा से इस बारे में कुछ न कह उन्होंने उस के विवाह के लिए प्रयत्न जोरों से शुरू कर दिए. उन की सहेली रमा का बेटा रौनक इन दिनों आस्ट्रेलिया से कुछ दिनों के लिए भारत आया हुआ था. क्षमा भी उस से बपचन से परिचित थी. शोभना ने रमा को क्षमा और रौनक के विवाह का सुझाव दिया तो वह अगले दिन शाम को अपने पति देवनाथ और बेटे रौनक के साथ मिलने आ गईं. शोभना और रमा के बीच कोई औपचारिकता तो थी नहीं सो उस ने उन्हें खाने के लिए रोक लिया.

भोजन के समय रमा ने सब के सामने क्षमा से सीधा प्रश्न कर दिया, ‘‘क्षमा बेटी, मेरा बेटा रौनक तुम्हें बचपन से पसंद करता है. यदि तुम्हें भी रौनक पसंद है तो तुम दोनों के विवाह से तुम्हारी मां और हमें बहुत खुशी होगी.’’

क्षमा पहले तो चुप रही पर रमा के बारबार आग्रह पर उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप लोग हमारे बड़े हैं. मां जैसा कहेंगी मुझे मान्य होगा.’’

शोभना ने कहा, ‘‘क्षमा, रौनक सब प्रकार से तुम्हारे लिए उपयुक्त वर है. हमारे परिवारों के बीच संबंध भी मधुर हैं, इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम और रौनक दोनों खाना खत्म करने के बाद बाहर लान में एकसाथ बैठ कर आपस में सलाह कर लो.’’

आपस में बातें कर के जब वे लौटे तो दोनों को खुश देख कर शोभना ने क्षमा को अंदर कमरे में ले जा कर उस से कहा, ‘‘तो फिर मैं बात पक्की कर दूं?’’

क्षमा के सकुचाते हुए स्वीकृति में सिर हिलाते ही उन्होंने उस के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया. वे दोनों मांबेटी तब डाइंगरूम में आ गईं. शगुन के रूप में शोभना ने 1 हजार रुपए रौनक के हाथ में रख दोनों को आशीर्वाद दिया और रमा से लिपट उसे और उस के पति को बधाई दी. रौनक के आस्ट्रेलिया लौटने से पहले ही विवाह संपन्न करने की बात भी अभिभावकों के बीच हो गई.

क्षमा, शोभना और उस के पति का पासपोर्ट जापान, हांगकांग और आस्ट्रेलिया घूमने जाने के लिए पहले से ही बना हुआ था पर 3 वर्ष पहले क्षमा के पिता की अचानक मृत्यु हो जाने से वह प्रोग्राम कैंसिल हो गया था. यदि इस बीच क्षमा का वीसा बन गया तो वह भी रौनक के साथ आस्ट्रेलिया चली जाएगी नहीं तो रौनक 6 महीने बाद आ कर उसे ले जाएगा.

अगली शाम रविकांत से मिलने पर क्षमा ने उन्हें अपनी शादी के बारे में जब बताया तो उन्हें चुप और गंभीर देख वह बोली, ‘‘ऐसा लगता है अंकल कि आप को मेरे विवाह की बात सुन कर खुशी नहीं हुई.’’

रविकांत बोले, ‘‘तुम चली जाओगी तो मैं फिर अकेला हो जाऊंगा. मैं तो इन कुछ महीनों में ही तुम्हें अपने बहुत नजदीक समझने लगा था. पर यह तो मेरा स्वार्थ ही होगा, यदि मैं तुम्हारे विवाह से खुश न होऊं. मैं तो वर्षों से अकेले रहने का आदी हो गया हूं. मेरी बधाई स्वीकार करो.’’

क्षमा इठलाते हुए बोली, ‘‘ऐसे नहीं, मैं तो आप से बहुत बड़ा उपहार भी लूंगी, तभी आप की बधाई स्वीकार करूंगी.’’ रविकांत ने कहा, ‘‘तुम जो भी चाहोगी, मैं तुम्हें दूंगा. तुम कहो तो, तुम क्या लेना चाहोगी. अपनी इतनी अच्छी प्रिय दोस्त के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘पहले वादा कीजिए कि आप मना नहीं करेंगे.’’

‘‘अरे, मना क्योें करूंगा. लो, वादा भी करता हूं.’’

क्षमा बोली, ‘‘अंकल, मेरे सामने एक बड़ी समस्या है मेरी मां, जिन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया है, मैं उन्हें अकेली छोड़ विदेश चली जाऊं, ऐसा मेरा मन नहीं मानता. मैं चाहती हूं कि आप और मेरी मां, जो खुद भी एकाकी जीवन जी रही हैं, विवाह कर लें. आप दोनों को साथी मिल जाएगा. मैं मां को मना लूंगी. बस, आप हां कर दें.’’

रविकांत चुप रहे. कुछ देर के बाद क्षमा ने फिर कहा, ‘‘ठीक है, यदि आप तैयार नहीं हैं तो मैं अपने विवाह के लिए मना कर देती हूं. देखिए, मेरा विवाह अभी तय हुआ है, हुआ तो नहीं. मैं ने गलत सोचा था कि आप मेरे बहुत निकट हैं और मेरी भलाई के लिए मेरी भावनाओं को समझते हुए आप अपना दिया हुआ वादा निभाएंगे,’’ कहतेकहते क्षमा का गला रुंध गया.

रविकांत अपनी जगह से उठे. उन्होंने क्षमा के सिर पर हाथ रखा और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी बेटी की खुशी के लिए सबकुछ करूंगा. मैं तुम्हारे सुझाव से सहमत हूं.’’

क्षमा खुशी से उछल पड़ी और उन के गले से लिपट गई. क्षमा ने अपनी शादी से पहले उन दोनों के विवाह कर लेने की जिद पकड़ ली ताकि वे दोनों संयुक्त रूप से उस का कन्यादान कर सकें.

अगले सप्ताह ही रविकांत और शोभना का विवाह बड़े सादे ढंग से संपन्न हुआ और उस के 5 दिन बाद रौनक और क्षमा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई.

Religion : यह कैसा धर्म सम्मान कहीं फ्री तो कहीं बंद

Religion : यह कैसा धर्म संकट है जिसे समझ पाना सोच से परे है. एक तरफ सरकार मुसलमानों को ईद पर सौगात दे रही है तो दूसरी तरफ नवरात्रि पर मीट की दुकानों पर ताला लगाने की बात करती है. ईद पर बीजेपी 32 लाख मुसलमानों के घर मोदी की सौगात ले कर जा रही है. उन्हें यह दिखाना चाहती है की हमसब एक हैं लेकिन दूसरी तरफ उन की तौहीन करने पर जुटी हुई है. अगर बीजेपी के नेता दिनरात मुसलमानों के खिलाफ बयान देना बंद नहीं करते हैं तो फिर ऐसी सौगात का क्या मतलब.

एक तरफ ईद के मौके पर मीट की दुकानों पर ताला लगाया जा रहा है उन की रोजीरोटी को बंद किया जा रहा है तो कहीं सौगात बाटी जा रही है. बड़ी असमंजस की बात है कि आखिर मोदी सरकार कर क्या रही है. यह तो साफ है कि अपने देश के मुसलमानों को तो खुश करने का विचार इस में प्रतीत नहीं होता है लेकिन लगता है अरब देशों को वो दिखाना चाहते हैं कि भारत में कितना भाईचारा है. बड़ा ही दुविधाभरा विचार लग रहा है बीजेपी सरकार का मानो उन्हें खुद ही नहीं पता कि गले लगाएं या उन्हें समाज से अलग बनाएं.

उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने हापुड़ क्षेत्र में नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानों को बंद रखने के आदेश दिए हैं, उन का कहना है कि नवरात्रि के 9 दिनों में मीट की दुकानों को खोलना गलत है और इस से हिंदुओं की आस्था का अपमान होता है, वहीं उत्तर प्रदेश में रमजान के पूरे महीने में शराब की दुकानें खुली रहीं और साथ ही इन्हीं दिनों में ही शराब के ठेकों पर एक के साथ एक शराब फ्री बाटी जा रही है. क्या इस से इसलाम का अपमान नहीं हो रहा, जहां इसलाम में मदिरापन को सख्त वर्जित बताया गया है लेकिन मुसलमानों ने तो शराब की दुकानों को बंद करने की मांग नहीं की. क्या ये नवरात्रों में शराब का फ्री बांटना सनातन धर्म का अपमान नहीं? और क्या बीजेपी बड़ेबड़े होटलों में भी इन 9 दिनों में मीट का बनना बंद कर सकेगी या यह सिर्फ रेहड़ी या छोटे ढाबों वालों के पेट पर लात मारने का एक तरीका अपना रही है? क्यों शिवरात्रि या नवरात्रि पर ही इस तरह के फरमान जारी करने पर जोर दिया जाता है?

Bihar Assembly Elections : वक्फ संशोधन से नीतीश पर आंच, बिहार चुनाव में इस का क्या असर पड़ेगा?

Bihar Assembly Elections : वक्फ विधेयक बिहार की राजनीति में एक नए और महत्वपूर्ण टकराव का बिंदु बन गया है. इस कानून को ले कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच तीखी बयानबाजी और आरोपप्रत्यारोप का दौर जारी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस टकराव का बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है.

भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी के प्रमुख नीतीश कुमार के साथसाथ राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी जयंत सिंह की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, पार्टी में विरोध मुखर होता चला जा रहा है. इस आंधीतूफान में कितने नेता धराशाई हो जाएंगे यह तो समय बताएगा मगर बिहार की राजनीति में इन दिनों वक्फ (संशोधन) विधेयक, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया है, एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है.

इस कानून को ले कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच तीखी बयानबाजी और आरोपप्रत्यारोप का दौर जारी है. राजद के प्रमुख नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जिस दृढ़ता के साथ इस विधेयक को निरस्त कराने का संकल्प लिया है, उस ने राज्य के राजनीतिक तापमान को एकाएक बढ़ा दिया है. उन की पार्टी ने न केवल बिहार में सत्ता में आने पर इस कानून को पलटने की घोषणा की है, बल्कि इसे चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है.

यह घटनाक्रम बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए और संभावित रूप से बड़े टकराव का संकेत देता है. तेजस्वी यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) पर जम कर निशाना साधा.

उन्होंने आरोप लगाया, जद(यू) यह साबित करने की नाकाम कोशिश कर रही है कि यह विधेयक मुसलमानों के हितों की रक्षा करता है. राजद नेता ने जद(यू) द्वारा हाल ही में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन का उल्लेख करते हुए कटाक्ष किया, जिस में पार्टी के कई मुसलिम नेताओं को शामिल किया गया था.

तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया कि यदि जद(यू) वास्तव में इस विधेयक को मुसलमानों के लिए फायदेमंद मानती है, तो पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने स्वयं मीडिया को संबोधित क्यों नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा, “प्रेसवार्ता समाप्त होने के तुरंत बाद सभी नेता पत्रकारों के सवालों से बचते हुए चले गए, जो दर्शाता है कि पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर गहरी असहजता और संभवतः मतभेद मौजूद हैं.”

राजद का मुख्य तर्क यह है वक्फ (संशोधन) विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है.

तेजस्वी यादव ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन की पार्टी के सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था, क्योंकि उन का मानना है कि यह कानून धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर अतिक्रमण करता है.

सर्वोच्च न्यायालय में इस विधेयक को चुनौती देने का राजद का निर्णय इस मुद्दे को केवल राजनीतिक दायरे से बाहर निकाल कर कानूनी लड़ाई के मैदान में ले जाता है. अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि देश की शीर्ष अदालत इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह विधेयक संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप पाया जाता है.

यह घटनाक्रम जद(यू) के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रहा है. एक तरफ, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के रुख का समर्थन करना पड़ रहा है, जिस ने इस विधेयक को पारित कराया है. वहीं, दूसरी तरफ उन्हें बिहार में अपने अल्पसंख्यक समुदाय के वोट बैंक को भी साध कर रखना है, जो इस कानून को ले कर आशंकाएं व्यक्त कर रहा है. जद(यू) के मुस्लिम नेताओं की असहजता और वरिष्ठ नेताओं का मीडिया से दूरी बनाए रखना इस दुविधा को स्पष्ट रूप से दर्शाता है.

तेजस्वी यादव ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में यह तक कह दिया, “ऐसा प्रतीत होता है कि जद(यू) के कार्यालयों में जल्द ही नीतीश कुमार की तस्वीरों की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लग जाएंगी.” उन का यह बयान जद(यू) पर भाजपा के बढ़ते प्रभाव और राज्य की राजनीति में संभावित ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है.

तेजस्वी यादव ने यह भविष्यवाणी भी की है कि चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह एक बच्चा भी जानता है. यह बयान न केवल जद(यू) पर दबाव बनाने की रणनीति है, बल्कि यह बिहार की बदलती राजनीतिक समीकरणों और राजद की बढ़ती हुई आत्मविश्वास को भी दर्शाता है. पिछले कुछ समय से राजद ने लगातार विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की है और वक्फ विधेयक का मुद्दा उन्हें एक और महत्वपूर्ण हथियार मिल गया है.

वक्फ विधेयक वास्तव में है क्या? मोटे तौर पर, यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन से संबंधित नियमों में कुछ बदलाव करता है. सरकार का तर्क है, इन संशोधनों से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा और उन में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम किया जा सकेगा. हालांकि, विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को वक्फ बोर्डों के कामकाज में अनुचित हस्तक्षेप करने की शक्ति प्रदान करता है और यह अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण है.

बिहार की राजनीति में वक्फ बोर्ड हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और उन का उपयोग अकसर विवादों में घिरा रहता है. ऐसे में, इस नए कानून को ले कर राजनीतिक दलों का अलगअलग रुख स्वाभाविक है. राजद इस मुद्दे को उठा कर न केवल अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, बल्कि वह जद(यू) को भी एक मुश्किल स्थिति में धकेलना चाहता है.

आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जद(यू) इस चुनौती का किस प्रकार सामना करती है. क्या पार्टी अपने अल्पसंख्यक नेताओं को विश्वास में ले कर कोई प्रभावी रणनीति बना पाती है? या फिर राजद इस मुद्दे को और जोरशोर से उठा कर राजनीतिक माहौल को अपने पक्ष में करने में सफल होता है? सर्वोच्च न्यायालय का इस मामले पर क्या फैसला आता है, यह भी बिहार की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है.

कुल जमा वक्फ विधेयक बिहार की राजनीति में एक नए और महत्वपूर्ण टकराव का बिंदु बन गया है, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद का इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोलना और इसे कानूनी चुनौती देना राज्य के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है.

यह देखना दिलचस्प होगा कि इस टकराव का बिहार की राजनीति पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और क्या वास्तव में यह मुद्दा आगामी चुनावों में एक निर्णायक भूमिका निभाता है. यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिन काफी गहमागहमी भरे रहने वाले हैं.

Bihar Elections : बिहार में क्या गुल खिलाएगी कांग्रेस

Bihar Elections : बिहार के चुनाव पर देशभर की नजर लगी है. कांग्रेस लालू प्रसाद के साथ तालमेल करेगी या फिर उन के साथ केजरीवाल जैसा व्यवहार करेगी?

बिहार विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं. लोकसभा चुनाव 2029 के दृष्टिकोण से ये चुनाव देश की राजनीति को बदलने वाले साबित हो सकते हैं. सेहत और राजनीति दोनों हिसाब से नीतीश कुमार अपने सब से कमजोर दौर में हैं. कांग्रेस दिल्ली जैसा फैसला बिहार में लेने की दिशा में आगे बढ़ रही है. पार्टी को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने कर्नाटक के कृष्णा अल्लावुरु को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया है. दो दशक से बिहार कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के अनुसार चली है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कृष्णा अल्लावुरु लालू प्रसाद यादव के साथ तालमेल बैठा पाएंगे?

बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव 2020 में हुए थे. उस में जदयू और भाजपा व अन्य दलों का गठबंधन था. वह गठबंधन 243 सीटों पर चुनाव लड़ा. उन में से जदयू 115 सीटों पर लड़ा और

43 सीटें जीतीं, भाजपा 110 पर लड़ी जिन में 74 जीतीं, वीआईपी और हम ने मिला कर 18 सीटों पर चुनाव लड़े और वे 8 सीटें जीते.

कुल 243 में से 128 सीटें जीत कर एनडीए ने सरकार बनाई. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. उसी चुनाव में कांग्रेस और राजद ने कुल 110 सीटें जीतीं. राजद 144 पर लड़ा और 75 सीटें जीता, कांग्रेस 70 पर लड़ी मगर 19 सीटें ही जीत सकी. राजद खेमे का कहना है कि अगर कांग्रेस बेहतर लड़ी होती तो नतीजे अलग होते. इस नजर से राजद और कांग्रेस के फैसले पर 2025 का विधानसभा चुनाव टिका है.

बिहार से पलटती है राजनीति

देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश के बाद सब से प्रमुख चुनाव बिहार के होते हैं. उस से देश की राजनीति का अंदाजा लगाना स्वाभाविक हो जाता है. एक दौर में राजनीतिक और सामाजिक क्रांति बिहार से ही शुरू होती थी. कांग्रेस की सब से मजबूत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किला ध्वस्त करने का काम जेपी आंदोलन से ही हुआ था, जो बिहार से शुरू हुआ था. 1990 में बिहार ने एससी और ओबीसी की ताकत को एकजुट कर के सामंतशाही को उखाड़ फेंका था. इस के बाद ऊंची जातियों ने ओबीसी और एससी को अलगथलग कर के वापस अपनी सत्ता बना ली.

20 साल से बिहार पर नीतीश कुमार का राज है. शराबबंदी के अलावा उन की कोई उपलब्धि नहीं है. नीतीश के जरिए सत्ता भाजपा के हाथ है. कांग्रेस और राजद वहां एकसाथ हैं. राहुल गांधी की मजबूरी है कि उन के पास ओबीसी के लोग तो हैं पर ओबीसी के बड़े नेता उन के साथ नहीं हैं. जब तक कांग्रेस ओबीसी नेताओं को आगे नहीं लाएगी तब तक वह बिहार में केवल राजद को ही नुकसान करेगी. 2020 के चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन की ज्यादा सीटें दी गई थीं जिस के कारण राजद बहुमत के आंकड़ों तक नहीं पहुंच पाई थी.

कांग्रेस में ऊंची जाति के नेता चाहते हैं कि कांग्रेस बिहार में भी दिल्ली की तर्ज पर अपने बल पर चुनाव लड़े, जिस का प्रभाव लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद पर पड़ेगा, वह सत्ता से दूर रह जाएगी. बड़ी संख्या में पिछड़े नेता भाजपा के साथ खड़े हैं. पिछड़ों को देख एससी नेता चिराग पासवान को लगता है कि जब ओबीसी भाजपा से नहीं लड़ पा रहे तो एससी कैसे लड़ेंगे? एससी में जो जागरूकता रामविलास पासवान ने जगाई थी, वह अब खत्म हो गई है.

सामंतशाही के खिलाफ जो लड़ाई लालू प्रसाद यादव ने लड़ी वह नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिल कर खत्म कर दी है. कांग्रेस को बहुत समझदारी से अपना फैसला करना होगा, जहां पूरे देश के राज्य आगे बढ़ रहे हैं वहां बिहार अपनी पहचान खोता जा रहा है. पहले बिहार की जो बौद्धिक छवि बनी थी, पिछले 20 सालों में अब वह बदल चुकी है. आज बिहारी के नाम पर लोग उस से बचना चाहते हैं. बिहारी शब्द गरीबी और गुरबत की पहचान बन कर रह गया है. जो सामाजिक बदलाव 1990 से शुरू हुआ वह नीतीश कुमार की पौराणिक नीतियों का शिकार हो कर खत्म हो गया.

बिहार की राजनीति में अगड़ों की ताकत

बिहार की राजनीति में पिछड़ी जातियों की भूमिका को देखने के लिए इस के 2 हिस्से करने होंगे. पहला हिस्सा 1947 से ले कर 1989 तक और दूसरा हिस्सा 1990 से आज तक का है. बिहार में पहले हिस्से की राजनीति में ऊंची जातियों का दबदबा रहा है. बिहार विधानसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ था. श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने. उस समय बिहार में राजनीति की रणनीति ऊंची जातियों द्वारा तय की जाती थी. उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिन्हा दो प्रबल दावेदार थे. तब कायस्थ लौबी ने श्रीकृष्ण सिंह का साथ दिया जिस से वे मुख्यमंत्री बन गए.

1957 में द्वितीय विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अनुग्रह नारायण सिन्हा ने अपनी दावेदारी पेश की. वोटिंग द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव हुआ और श्रीकृष्ण सिंह दोबारा मुख्यमंत्री चुन लिए गए. श्रीकृष्ण सिंह भूमिहार जाति से आते थे. इस के बाद राजपूत जाति से दीप नारायण सिंह, ब्राह्मण जाति के विनोदानंद ?ा, कायस्थ जाति के कृष्ण वल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा, कुशवाहा जाति के सतीश प्रसाद सिंह, यादव जाति के विंदेश्वरी प्रसाद मंडल, एससी से भोला पासवान शास्त्री, राजपूत जाति के सरदार हरिहर सिंह, यादव जाति के दरोगा प्रसाद राय, नाई जाति के कर्पूरी ठाकुर, ब्राह्मण जाति के केदार पांडेय, मुसलिम समुदाय से अब्दुल गफूर, ब्राह्मण जग्गनाथ मिश्रा, एससी रामसुंदर दास, राजपूत जाति के चंद्रशेखर सिंह, ब्राह्मण जाति के विंदेश्वरी दूबे, भागवत झा आजाद और राजपूत सत्येंद्र नारायण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने.

1952 से 1989 तक 14 बार उच्च जाति, 5 बार ओबीसी और 4 बार एससी और 1 बार मुसलिम जाति के नेता बिहार के मुख्यमंत्री बने. ऊंची जातियों के कई नेता 2 से

3 बार मुख्यमंत्री रहे हैं. भले ही 10 बार ओबीसी, एससी और मुसलिम मुख्यमंत्री रहे हों पर बिहार की राजनीति में ऊंची जातियों का वर्चस्व कायम रहा है. ऊंची जातियों के नेता ही बिहार की राजनीति की बागडोर अपने हाथों में रखे रहे.

इस दौर में एससी और ओबीसी जातियों के नेता भी मुख्यमंत्री बने लेकिन न तो वे अपने जाति के लोगों को संगठित कर सके, न ही जातिगत वर्चस्व स्थापित कर सके और न ही बिहार स्तर पर अपनी छवि को उभार सके. वे ऊंची जातियों के नेताओं की कठपुतली बन कर ही रह गए. इस का मुख्य कारण था कि उस समय ओबीसी व एससी जातियों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालत बेहद पिछड़ी थी.

पिछड़े वर्ग की प्रमुख जातियों में यादव, कोइरी और कुर्मी थे, जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर थे. जिस के कारण पिछड़ी जातियां चाह कर भी उभर नहीं पाईं. बिहार में पहली बार पिछड़ी कुशवाहा जाति के सतीश प्रसाद सिंह कार्यकारी मुख्यमंत्री बने थे. उस के बाद 1968 में पिछड़ी जाति के विंदेश्वरी प्रसाद मंडल मुख्यमंत्री बने. वे भी कम समय के लिए ही बने. उस के बाद 1970 में यादव जाति के दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने. वे 16 फरवरी, 1970 से 22 दिसंबर, 1970 तक मुख्यमंत्री रहे.

कर्पूरी ठाकुर ने जगाई ओबीसी राजनीति

1970 में नाई जाति के कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. वे 22 दिसंबर, 1970 से 2 जून, 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल, 1979 तक 2 बार मुख्यमंत्री रहे. बिहार में एससी जाति से सब से पहले मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री बने. वे 23 मार्च, 1968 से 29 जून, 1968 तक, 22 जून, 1969 से 4 जुलाई, 1969 तक तथा 2 जून, 1971 से 9 जनवरी, 1972 तक 3 बार मुख्यमंत्री और कार्यकारी मुख्यमंत्री रहे. उस के बाद एससी जाति से रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने. वे अप्रैल 1979 से 17 फरवरी, 1980 तक मुख्यमंत्री रहे.

बिहार की राजनीति उथलपुथल से भरी रही. श्रीकृष्ण सिंह के बाद 1989 तक कोई भी मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. उस कालखंड में बिहार की राजनीति को देखें तो एससी और ओबीसी मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल बेहद कम रहा है. उन को कभी अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं करने दिया गया. इस के उलट, ऊंची जातियों के मुख्यमंत्रियों श्रीकृष्ण सिंह, दीप नारायण सिंह, विनोदानंद झा, कृष्ण वल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिंह, सरदार हरिहर सिंह, केदार पांडेय, जग्गनाथ मिश्र, चंद्रशेखर सिंह, विंदेश्वरी दूबे, भागवत झा आजाद, सत्येंद्र नारायण सिंह में से कई नेताओं को जितना समय मिला था, उसे पूरा किया था.

बिहार में वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी के विधायक दल के नेता कर्पूरी ठाकुर चुने गए. वे बिहार के मुख्यमंत्री बने.

1978 में केंद्र सरकार ने पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए बिहार के ही बीपी मंडल की अध्यक्षता में मंडल कमीशन की नियुक्ति की. इस समय तक बिहार में जयप्रकाश नारायण ने जाति छोड़ो अभियान शुरू कर दिया था. अब ऊंची जातियों को खतरा महसूस होने लगा था. 1980 में मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट दी तब तक केंद्र में सरकार बदल चुकी थी. 1980 में कांग्रेस केंद्र में सरकार बना चुकी थी. मंडल कमीशन की रिपोर्ट को 1990 तक ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. 1989 में जनता दल की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया.

लालू प्रसाद यादव ने तोड़ा सामंती ढांचा

कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ी जातियों को आगे बढ़ाने का काम किया था. 1990 के दशक से बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ. नीतीश कुमार ने लालू के साथ ही अपनी राजनीति शुरू की थी. लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों ही जेपी आंदोलन की उपज हैं. दोनों छात्र राजनीति से चुनावी राजनीति में आए. 1990 से ले कर आज तक बिहार की राजनीति इन्हीं दोनों के ही इर्दगिर्द घूम रही है. 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. इस में भी अगड़ेपिछड़ों का संघर्ष देखने को मिला.

बिहार में कांग्रेस की राजनीति को चुनौती जेपी आंदोलन से ही मिली थी और इसी आंदोलन ने लालू प्रसाद यादव को बड़ा नेता भी बनाया. लालू यादव 1977 में लोकसभा सांसद का चुनाव जीत गए थे. 1989 में बिहार के भागलुपर में दंगों के बाद बिहार से कांग्रेस की सत्ता का अंत हुआ.

1990 में लालू यादव जनता दल से बिहार के मुख्यमंत्री बने. वे कोई डमी मुख्यमंत्री नहीं थे. लालू राज से ही बिहार में ऊंची जातियों का वर्चस्व खत्म होने लगा. लालू यादव केवल बिहार ही नहीं, देश की राजनीति में भी अपना प्रभाव बढ़ा चुके थे. इंदर कुमार गुजराल और देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने में सब से बड़ा योगदान लालू प्रसाद का था.

यह बात कांग्रेस को हजम नहीं हो रही थी. इस के बाद लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला और दूसरे कई आरोपों में घेर दिया गया. उन के पीछे सीबीआई लगा दी गई. लालू को जेल जाना पड़ा. तब लालू प्रसाद यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अच्छे साथी थे.

नीतीश कुमार लालू यादव की तरक्की में ही अपनी तरक्की सम?ाते थे. पुराने समाजवादी नेता लालू और नीतीश को जगह देने के लिए तैयार नहीं थे. नीतीश कुमार जिस कुर्मी जाति के हैं उस की तादाद बिहार में कम है जबकि यादव 18 फीसदी हैं. नीतीश कुमार को लगता था कि उन्होंने लालू को सीएम बनाने में जिस तरह की मदद की, उस के बाद लालू उन की हर बात सुनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोनों की राह अलग हो गई. नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा का चुनाव 1985 में जीते. लालू नीतीश से बड़े नेता बन चुके थे.

नीतीश कुमार अपनी अलग राह देखने लगे थे. दूसरी तरफ ऊंची जातियां लालू और नीतीश को अलग करना चाहती थीं. 1994 में नीतीश कुमार ने जौर्ज फर्नांडिस के साथ मिल कर समता पार्टी बनाई और 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार अलग हो गए. इस चुनाव में नीतीश कुमार कुछ खास नहीं कर पाए. समता पार्टी केवल 7 सीटों तक ही सीमित रही. लालू यादव एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने.

अगड़ों के पैरोकार बने नीतीश कुमार

1995 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार को लगा कि वे बिहार में लालू यादव से अकेले नहीं लड़ सकते जिस के कारण 1996 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया. वे उसी पार्टी के साथ आ गए जिसे कभी वे मंदिर आंदोलन के दौरान आड़े हाथों लेते थे और सांप्रदायिक पार्टी बताते थे.

2000 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी को 121 सीटों पर कामयाबी मिली. नीतीश कुमार बिना बहुमत के मुख्यमंत्री बने. अक्तूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 55 और जनता दल यूनाइटेड को 88 सीटों पर जीत मिली और पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन की सरकार बनी. इस के बाद से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं.

2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. इस बीच नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ा. फिर वे लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री बने. इस के बाद राजद का साथ छोड़ कर वापस भाजपा के साथ आए. अब 2025 में नीतीश कुमार क्या पलटी मारेंगे, यह पता नहीं है.

1990 के बाद बिहार में राजनीति की बागडोर पिछड़ी जाति के नेताओं के हाथों में रही है. नीतीश कुमार ने भाजपा से हाथ मिला कर बिहार में ऊंची जातियों के वर्चस्व को वापस ला दिया. नीतीश कुमार ने सब से लंबे समय तक बिहार में मुख्यमंत्री बनने का रिकौर्ड बनाया. इस के बाद भी बिहार के लिए वे कुछ खास कर नहीं पाए. 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री होने के बाद भी वे बिहार को कुछ नहीं दे पाए. नीतीश कुमार के चलते ही बिहार में सामंती राजनीति ने अपना प्रभाव वापस स्थापित कर लिया है.

बिहार में क्या करेगी कांग्रेस

सत्ता हासिल करने के लिए क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को मिलजुल कर चलना होगा, जैसे कांग्रेस से लड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने 13 दलों को मिला कर एनडीए तैयार किया था. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के आमनेसामने चुनाव लड़ने से भाजपा को 27 साल के बाद सरकार बनाने का मौका मिला. कांग्रेस में एक गुट यह कहता है कि पार्टी को अपने बलबूते प्रदेशों में चुनाव लड़ना चाहिए. क्षेत्रीय दलों की बैसाखी छोड़ देनी चाहिए. दूसरे गुट का कहना है कि भाजपा को रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों को साथ लेना जरूरी है नहीं तो भाजपा ताकतवर हो जाएगी.

गुजरात में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि आधी गुजरात कांग्रेस वैचारिक रूप से भाजपाई मानसिकता की हो गई है. असल में यह बात पूरे देश पर लागू होती है. यह केवल आज की बात नहीं है. कांग्रेस अपने जन्म के समय से ही 2 तरह के विचारों से घिरी रही है. राहुल की कांग्रेस भी इस का अपवाद नहीं है. कांग्रेस के ‘थिंक टैंक’ के लोग कभी राहुल गांधी को मंदिरमंदिर भटकने के लिए तैयार करते हैं तो कभी उन को कुंभ स्नान करने और राममंदिर जाने से रोकते हैं. परेशानी इस बात की है कि राहुल गांधी अपनी खुद की स्पष्ट सोच नहीं बना पा रहे.

अब राहुल गांधी को तय करना है कि वे क्षेत्रीय दलों के साथ चलेंगे या अलग. राहुल गांधी के फैसले चुनाव के समय आते हैं. उस से पार्टी को लाभ नहीं होता है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में साथ थे. विधानसभा उपचुनाव में अलगअलग हो गए. बिहार में कांग्रेस ने अपना नया ढांचा तैयार करना शुरू किया है. इस से कांग्रेस के सहयोगी राजद को दिक्कत है. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस और राजद के बीच अभी कोई रणनीति तैयार नहीं की गई.

राहुल गांधी ने कृष्णा अल्लावुरु को बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया है. अभी तक कांग्रेस का जो भी बड़ा पदाधिकारी बिहार में बनता था वह राजद नेता लालू यादव से मिलने जाता था. कृष्णा अल्लावुरु के मामले में ऐसा नहीं हुआ. कर्नाटक के रहने वाले कृष्णा अल्लावुरु बिहार को कितना समझते हैं, यह समय आने पर पता चलेगा.

कृष्णा अल्लावुरु के लालू यादव से कैसे संबंध रहते हैं, इस बात पर कांग्रेस और राजद का चुनावी गठबंधन निर्भर करेगा. अभी बिहार विधानसभा के चुनाव होने में 6 माह का समय बाकी है. ऐसे में दोनों दलों के बीच की रणनीति साफ होनी चाहिए. कृष्णा अल्लावुरु के सामने कांग्रेस को एकजुट करने की बड़ी चुनौती है. कांग्रेस के कई नेता राजद, लालू और तेजस्वी के समर्थक माने जाते हैं. पिछले 20 सालों से आलाकमान ने बिहार कांग्रेस की कमान लगभग राजद के हाथों में ही छोड़ रखी है.

दिल्ली चुनाव के बाद राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे नई रणनीति पर काम कर रहे हैं. नए नेताओं को पार्टी की कमान सौंपी जा रही है. कृष्णा अल्लावुरु, अलका लांबा और कन्हैया कुमार जैसे नेता बिहार विधानसभा चुनाव को ले कर पार्टी की संभावनाओं को देख रहे हैं. वे पार्टी कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. अल्लावुरु नेताओं को यह समझना चाहते हैं कि सभी नेता पार्टीलाइन पर चलें और एकजुट हो कर काम करें.

पिछले दो दशकों में बिहार कांग्रेस में महासचिव और प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए लालू प्रसाद यादव की सहमति जरूरी होती थी. यहां तक कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव के टिकट भी राजद के इशारे पर ही बंटते थे. पप्पू यादव और कन्हैया कुमार इस का बड़ा उदाहरण हैं. लालू के विरोध को दरकिनार कर कांग्रेस चाह कर भी पप्पू यादव को पूर्णिया और कन्हैया कुमार को बेगूसराय से चुनाव नहीं लड़ा पाई थी.

दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस नई रणनीति पर चल रही है. जैसेजैसे विधानसभा चुनाव करीब आएंगे, टिकट के बंटवारे होंगे, वैसेवैसे साफ होगा कि कांग्रेस क्या करती है. कृष्णा अल्लावुरु राहुल गांधी के करीबी हैं और युवा कांग्रेस के प्रभारी भी हैं. वे बिहार कांग्रेस के इंचार्ज भी हैं. कृष्णा अल्लावुरु अपने तरीके से काम करते हैं. उन की नियुक्ति को कांग्रेस का बड़ा दावं माना जा रहा है. इस से पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश गया है कि कांग्रेस युवाओं को आगे बढ़ाना चाहती है. कांग्रेस को उम्मीद है कि कृष्णा अल्लावुरु बिहार में पार्टी को मजबूत करेंगे. बिहार में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. ऐसे में कृष्णा अल्लावुरु के सामने बड़ी चुनौती है. वे इस चुनौती से कैसे निबटते हैं, यह बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे.

Online Hindi Story : ब्रेकअप पार्टी – प्रतीक और अनन्या का क्यों ब्रेकअप हुआ ?

Online Hindi Story : ‘‘चुप हो जा भाई, कितना रोएगा,’’ मैं और सुशील काफी देर से प्रतीक को चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, पर वह रोए जा रहा था. मिलिंद अपना आपा खोता जा रहा था और दीवार पर हाथ मारते हुए कुछ बोल रहा था, ‘इसे जल्दी चुप कराओ वरना मैं इस की पिटाई कर दूंगा.’

कितना बदल गया था प्रतीक. जब मैं ने उसे पहली बार देखा था तब मेरी तरह वह भी अपने पापा के साथ इस होस्टल में पीजी के तौर पर रहने आया था. उस की रिजल्ट हिस्ट्री जानने के बाद पापा ने मुझे उस के साथ रहने और उसी के साथ दोस्ती रखने की हिदायत दे डाली थी. जहां मैं नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था, वह आईआईटियन था. पढ़ने में होशियार प्रतीक जब देखो किताबोें में ही घुसा रहता, पर मुझे शाम होते ही ऐसा लगता जैसे मेरे छोटे से कमरे की दीवारों ने भयावह आकृति अख्तियार कर ली है और मैं डर कर कमरे से बाहर भागता.

मेरे कमरे के पास ही सुशील का भी कमरा था पर वह सिर्फ नाम का सुशील था. पढ़ाईलिखाई से उस का कम ही वास्ता था. वह कमरे में कम बालकनी में ज्यादा रहता था और रहता भी क्यों नहीं, उस ने अपने शहर में कहां इतनी हरियाली देखी थी जो यहां थी. हमारे होस्टल वाली गली में सिर्फ हमारा ही बौयज होस्टल था. बाकी सारे गर्ल्स होस्टल थे. चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया वाला हाल था.

मेरे कमरे के सामने वाला कमरा प्रतीक का था और उस के पास वाले कमरे में नया लड़का मिलिंद आया था, जो जल्दी ही हम सब का बौस बन गया था. उसे सुशील की हरकतें बिलकुल पसंद नहीं थीं. मुझे वह अपना छोटा भाई समझता था और ऐसे भाषण पिलाता था जिस के आगे मम्मी के भाषण भी फीके पड़ जाते थे.

मैं, मिलिंद और प्रतीक अकसर साथ ही पढ़ाई करते थे, पर शाम होते ही हमें किताबों को देख कर उबकाई सी आने लगती, इसलिए हम उसी वक्त पढ़ाई बंद कर के नहाधो कर, परफ्यूम लगा कर हीरो बन जाते और कोटा की भीड़भरी सड़कों पर घूमने निकल जाते.

प्रतीक और मिलिंद लड़कियों को देख कर खुश होते, लेकिन लड़कियां मुझ पर लाइन मारती हुई निकल जातीं तो मैं शरमा कर रह जाता. सुशील को तो गर्लफ्रैंड भी मिल गई थी और उस लड़की ने उसे अपनी और अपनी सहेलियों की हर ख्वाहिश पूरी करने वाला जिन्न बना लिया था. हमें उस की ऐसी हालत पर तरस भी आता और हंसी भी आती, पर कई बार हमारे समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हम ने उसे उस के ही हाल पर छोड़ दिया.

इधर, हमेशा से पढ़ाकू रहे प्रतीक का भी मन उचटने लगा था, वजह थी सामने वाले होस्टल में रहने वाली अनन्या. अब वह भी अपने कमरे में कम, बालकनी में ज्यादा नजर आता था. हमेशा खयालों में खोया रहता. जब हम से उस का हाल देखा नहीं गया तो हम ने उन दोनों की मीटिंग की जुगत भिड़ाई और उन की प्रेमकहानी शुरू हो गई.

परेशानी यह थी कि परीक्षा के दिन नजदीक आ रहे थे और मैं व मिलिंद घूमनाफिरना छोड़ कर अब पढ़ाई में जुटे हुए थे, पर प्रतीक का मन अब पढ़ाई में नहीं लग रहा था. हर वीकली टैस्ट में उस की कटऔफ नीचे जा रही थी, पर उसे इस की परवा ही नहीं थी. फिर वही हुआ जिस का हमें डर था. उस का रिजल्ट इतना डाउन हुआ कि उस ने ही आईआईटी के छोड़ने का निश्चिय कर लिया. परीक्षा खत्म होने के बाद ज्यादातर स्टूडैंट्स अपनेअपने घर चले गए थे, पर हम लोग वहीं थे, क्योंकि अनन्या के चक्कर में प्रतीक नहीं गया और न ही उस ने हमें जाने दिया.

उस रोज मैं और मिलिंद अपने कमरे में बैठ कर बातें कर रहे थे कि मिलिंद का मोबाइल बजा. वहां से प्रतीक घबराई हुई आवाज में कह रहा था, ‘‘मिलिंद, तू सौम्य को ले कर जल्दी चंबल गार्डन पहुंच.’’

‘‘क्या हुआ भाई, तू इतना घबराया हुआ क्यों है?’’ मिलिंद की बात पूरी सुने बिना ही फोन कट चुका था. हम दोनों जैसे थे उसी स्थिति में औटो ले कर चंबल गार्डन पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर हक्केबक्के रह गए. अनन्या एक लड़के से चिपकी हुई खड़ी थी और 2 लड़के प्रतीक को पीट रहे थे. यह देख कर मेरा और मिलिंद का पारा हाई हो गया. हम ने उन दोनों लड़कों को मार भगाया और अनन्या अपने एक बौयफ्रैंड के साथ चली गई.

प्रतीक को काफी चोटें आई थीं, पर शरीर से ज्यादा उस का दिल घायल हुआ था. जब उसे पता चला कि उस के अलावा अनन्या के 2 और बौयफ्रैंड्स हैं, उस ने गुस्से में आ कर अनन्या से कहा कि वह सब के सामने उस की पोल खोल देगा. तो उस ने व उस के बौयफ्रैंड ने अपने दोस्तों को बुला कर प्रतीक को पिटवा दिया. बेचारे प्रतीक का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. इस तरह तो वह शायद बचपन में अपना कोई प्यारा खिलौना टूटने पर भी नहीं रोया होगा.

मिलिंद बारबार दीवार पीट रहा था और गुस्से में उबल रहा था, ‘‘मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं और ये अनन्या कितनी चालू लड़की निकली यार, एकसाथ 3 लड़कों के साथ फ्लर्ट कर रही है.’’

‘‘बहुत स्मार्टगर्ल है, उस के तो ऐश हैं. हम लड़के न जाने क्यों इन लड़कियों के चक्कर में पड़ जाते हैं,’’ मैं ने कहा तो प्रतीक ने मुझे घूर कर देखा और घुटनों में मुंह छिपा कर फिर से रोने लगा. उस के रोने से जहां मुझे दया आ रही थी वहीं मिलिंद को बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘ऐसे रो रहा है जैसे पता नहीं क्या हो गया है. अरे, अभी तो हमारी लाइफ शुरू हुई है. अभी तो न जाने कितने लोग हमारी लाइफ में आएंगे और चले जाएंगे, तो क्या उसे याद कर हम यों ही रोते रहेंगे.

‘‘उस लड़की के चक्कर में अपनी पढ़ाई खराब की सो अलग. सच में इन लड़कियों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए. ये सिर्फ हमारी जेब ही ढीली करवाती हैं. इन्हें कोई मालदार मिल गया तो एक ही झटके में इन्हें ढेरों बुराइयां दिखाई देने लगती हैं और एक ही झटके में ऐसे दिल तोड़ती हैं जैसे दिल न हुआ कोई कच्ची माटी का घड़ा हो गया.’’

मिलिंद बड़बड़ाए जा रहा था और प्रतीक का रोना बंद नहीं हो रहा था. तभी मुझे एक उपाय सूझा. मैं सुशील को साथ ले कर मार्केट गया और कुछ स्नैक्स व कोल्डड्रिंक ले आया. सुशील के पास एक प्लयूटूथ स्पीकर था. हम ने अच्छा सा पार्टी सौंग लगाया और प्रतीक को समझाया तब उस ने अनन्या की सारी फोटोग्राफ्स डिलीट कीं, फिर उसे सोशल साइट्स पर ब्लौक कर दिया.

यह सब करने के बाद उस के चेहरे पर सुकून की झलक दिखाई दी. उस का मूड बदलता देख हम सब मूड में आ गए और फिर हम चारों ने सारी रात खूब डांस किया. भाई का ब्रेकअप हुआ था भई, पार्टी तो बनती है.

Best Hindi Story : थोड़े से सुख की तलाश में – रिश्तों के बोझ की कहानी

Best Hindi Story : ‘‘खूबसूरत शब्दों का जामा पहना देने से अश्लील शील नहीं हो जाता. बुरा, अच्छा नहीं हो जाता है. अधर्म, धर्म नहीं हो जाता. द्रौपदी के 5 विवाह किसी भी कारण से हुए हों, किसी का वचन, देवताओं का श्राप और पांडवों के प्रति द्रौपदी की ईमानदारी, लेकिन अधर्म वह फिर भी था. उस काल में भी, इस काल में भी.

‘‘तुम स्त्री मुक्ति, अपमान का बदला या पति से बनी शारीरिक, मानसिक दूरी के अभाव में किसी परपुरुष के साथ बने संबंधों को उचित नहीं ठहरा सकतीं. फिर वापस पत्नी का कवच धारण कर के, उस गिरावट को कमजोर पल, भावुकता, भूल का नाम नहीं दे सकतीं. यदि तुम्हारा परपुरुष के साथ बिताया वह समय उचित था तो तुम उसी की क्यों न हो गईं. छोड़ देना था मुझे और अपना लेना था उसे, जिस की बांहों में तुम्हें मुझे भूलने की, मुझ से मिली कटुता से हृदय में उपजे विषाद को भुलाने की क्षमता मिली थी. अपनी चंचलता, चित्त की निम्न प्रवृत्ति को तुम जो भी नाम देना चाहो, स्वयं को अपराधमुक्त करने के लिए दे सकती हो किंतु उसे तुम उचित नहीं ठहरा सकतीं.

‘‘मैं तुम्हें कुलटा, पापिन, चरित्रहीन नहीं कह रहा हूं किंतु मैं तुम्हें अब उस दृष्टि से भी नहीं देख रहा हूं. मैं तुम्हारी गलती को अपनी किसी कमी के कारण तुम्हारा किसी और से जुड़ना तुम्हारी जरूरत मान कर स्वीकार कर लेता हूं क्योंकि कमी मुझ में है, लेकिन फिर भी तुम्हारी जरूरत जायज नहीं हो सकती. तुम्हारे इस सुख ने, सुकून ने, स्त्री की पूर्णता ने मेरे मन का सुखचैन सब छीन लिया.

‘‘मैं तो यही मानता हूं कि स्त्री वह धन है जिसे वह प्राप्त कर लेता है जिस में क्षमता होती है और मैं दीनहीन पति तुम्हारे निकृष्ट कर्म को न चाहते हुए भी लाचारी, मजबूरी में स्वीकार करता हूं. इस के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है मेरे पास. परिवार की समृद्धि के लिए मैं थकाहारा जल्दी सो गया, काम के सिलसिले में बाहर भटकता रहा. कभी तनाव में, गुस्से में कुछ भलाबुरा कह दिया तो तुम्हारे दिल में चुभ गया. तुम ने यह नहीं सोचा कि मैं आखिर इतनी मेहनत, इतनी परेशानियां, इतनी भागदौड़ करता किस के लिए हूं? अपने परिवार के लिए. लेकिन तुम ने ये सब नहीं सोचा और परपुरुष के आकर्षण में स्वयं को डुबो दिया और मेरी सारी मेहनत, कमाई, परिवार के प्रति समर्पण को गलत सिद्ध कर दिया.

‘‘मैं ने तुम्हें तुम नहीं, अपना समझा. अपना परिवार, अपने बच्चे, अपनी पत्नी…लेकिन तुम केवल एक स्त्री बन कर रह गईं. उन कमजोर पलों में तुम न पत्नी थीं, न मां थीं. थीं तो बस केवल एक स्त्री. अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए मर्यादा लांघती एक औरत.

‘‘तुम यह कहोगी कि मुझे ये सुखसुविधाएं, ऐशोआराम नहीं चाहिए था. मुझे बस तुम्हारा प्यार चाहिए था.

‘‘केवल प्यार से घर नहीं चलता. बहुत मिटना पड़ता है. बहुत घुटना और टूटना पड़ता है कमाने के लिए. आदमी को कमाने की मशीन बनना पड़ता है और मशीन बने आदमी के पास भी हृदय होता है. बस, वह बातबात पर आई लव यू जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर पाता. यदि अर्थव्यवस्था के बिना घरपरिवार चल सकता तो मैं क्यों मशीन बनता. मजनू बन कर तुम्हारे आगेपीछे न घूमता.

‘‘खैर, तुम्हें अपने अंदर का क्रोध निकालना था तो तुम ने परपुरुष में सुख ढूंढ़ कर खुद को हलका कर लिया. यदि गरीबी होती तो तुम किसी धनी व्यक्ति से इसलिए जुड़ जातीं क्योंकि तब तुम्हारे पास गरीबी का बहाना होता. तुम ने अपने मन की सुनी. मन की ही की. मेरी नजर में यह मनमानी है, दहलीज को लांघना है. लेकिन तुम्हारी दृष्टि में क्या था वह सब, स्त्री का पूर्णत्व. तनमन की शांति.

‘‘जीवन के इस मोड़ पर जबकि बच्चे बड़े हो रहे हैं, इस घर की तुम जरूरत बन चुकी हो. भले ही इस घर की बुनियाद तुम ने हिला कर रख दी है. मैं तुम्हें न छोड़ सकता हूं, न तलाक दे सकता हूं. बिना नींव के यह घर खड़ा रहे, यही बेहतर है इस मकान के लिए. बच्चों के लिए तो घर बना रहे. तुम मुझ से यह भी कह सकती हो कि तुम ने मुझ से कभी मेरी रातों का हिसाब नहीं मांगा. मैं कुछ रातों की बात से तुम्हें क्यों अपनी दृष्टि में गिरा रहा हूं.

‘‘जीवन के इस मोड़ पर वासना का नहीं, जिम्मेदारियों का महत्त्व होता है. प्यार तो होता ही है. कर्तव्य महत्त्वपूर्ण होते हैं. मैं पुरुष से पति, पिता बन गया लेकिन तुम स्त्री ही बनी रहीं. घर स्त्री से बनता है. पुरुष की गलती स्त्री भी दोहराए तो फिर घर, घर नहीं रहता. तुम इसे पुरुष की दोगली मानसिकता कह सकती हो.

‘‘पुरुष होने का यह नुकसान तो है कि वह स्वयं राम न हो लेकिन पत्नी में सीता तलाशता है. फर्क इतना है कि मुझे तुम्हारी उन बेवफा रातों का पता चल गया. तुम्हें नहीं चला. पता चलता तो शायद तुम्हारा मन भी टूटता, दरकता. तुम रोतीं, लड़तीझगड़तीं. अलग हो जातीं, तलाक ले लेतीं. मन का धागा बहुत नाजुक होता है. जोड़ने पर गांठ तो पड़ ही जाती है.

‘‘मैं तुम्हें इस परिवार के लिए माफ करता हूं क्योंकि इस परिवार के लिए तुम ने भी दिनरात एक किया है. इस घर को सजायासंवारा. सब का खयाल रखा. मुझे पिता बनने का सुख दिया. मुझे पारिवारिक, सामाजिक व्यक्ति बनाया. मुझे रिश्तों में बांधा. लेकिन मैं तुम्हें कोई ऊंचा दरजा नहीं दे सकता. तुम एक आम स्त्री हो. शादी के बाद पति न चाहते हुए भी अपनी पत्नी को उस हैसियत पर बिठा देता है जहां से वह अपनी पत्नी पर व्यंग्य भी नहीं सुन सकता. अपनी पत्नी के लिए वह अपने मातापिता से भी अलग हो जाता है.

‘‘मैं जब काम पर बाहर जाता और शरीर के साथ मन व मस्तिष्क से जीतोड़ काम लेता तब तुम लक्ष्मण रेखा लांघने को तैयार हो गईं बिना यह सोचे कि इस का परिणाम पूरे परिवार को तहसनहस कर सकता है.

‘‘तुम स्त्री ही रहीं और मैं पुरुष न बन सका. तो वे कसमें, वे रस्में? वे वादे, वे इरादे निभातेनिभाते मैं मिटा दूंगा खुद को और तुम सच्चे, गहरे प्यार की तलाश में फिर से जुट जाओगी और पा कर तृप्ति का अनुभव करोगी. ऐसी तृप्ति जो तुम्हें मुझ से न मिल सकी कभी. तो वह क्या था जो रातें हम ने गुजारी थीं साथसाथ? तुम्हारी इस नादान बेवफाई को क्या कहूं? क्या तुम मेरी पत्नी नहीं हो? क्या तुम हमारे बच्चों की मां नहीं हो? किस बात की कमी थी? फिर ऐसा क्यों किया तुम ने?’’

पत्नी जो इतना सबकुछ सुन कर चुपचाप खड़ी थी, बोली, ‘‘कुछ बातें धर्म और अधर्म, तर्क और वितर्क, ज्ञान और विज्ञान, नैतिक और अनैतिक, बुराई और अच्छाई से परे होती हैं. कुछ बातें कर्तव्य और जिम्मेदारी, समाज और उस के नियमों से परे होती हैं. इतनी देर से आप ही आरोप लगा रहे हैं, दोषी ठहरा रहे हैं, सजा सुना रहे हैं, आप ही प्रश्न कर रहे हैं, आप ही उत्तर दे रहे हैं. मैं स्त्री हूं, इसलिए मां हूं. मैं स्त्री हूं इसलिए पत्नी हूं. मैं स्त्री हूं, यही पहला और अंतिम सत्य है. पहले मैं स्त्री हूं. मैं स्त्री हूं इसलिए मेरी देह को आप पुरुष होने के नाते अपनी जागीर समझ कर मेरी देह पर नैतिक और अनैतिकता, चरित्रहीनता के आरोप लगा रहे हैं. पुरुष की नजर में स्त्री की देह पर ही सबकुछ तय होता है. नीति, न्याय, दोषारोपण, पापिन, कुलटा-सारे आरोप मेरी देह पर हैं. और मेरे मन का क्या? जो पुरुषों के आघात सहता रहता है. तन पर तुम्हारा अधिकार लेकिन मन पर तो किसी का जोर नहीं. मैं ने जो किया वह अच्छा था या बुरा, गलत था या सही, उसे इस तरह नहीं तोला जा सकता. स्त्री देह से परे जब तक न सोचोगे, स्त्रीपुरुष के संबंध आत्मिक नहीं हो सकते. और शरीर के रिश्ते एक न एक दिन सड़गल कर टूटते ही हैं. यदि यह देह तुम्हारी रही भी और मन और कहीं रहा तो इस शरीर का क्या करोगे? यह तो मात्र मांस रहेगा तुम्हारे लिए.

‘‘मैं ने जो किया, मुझ से जो हुआ, वह गलत था या सही. मैं नहीं जानती. हां, तुम्हारे पुरुषप्रधान समाज की सोच के हिसाब से पाप हो सकता है लेकिन स्त्रियां हिसाब लगा कर कुछ नहीं करतीं, प्यार तो हरगिज नहीं. तुम जख्म दोगे और स्त्रियां कहीं मरहम तलाशें तो मेरी दृष्टि में यह गलत नहीं. हां, यदि पुरुष जख्म ही न दे और यदि जख्म दे कर मरहम भी दे तो स्त्री सहन कर लेगी. लेकिन जख्म को सड़ने देना, यह तो आत्महत्या करना हुआ. यही पहला और अंतिम सत्य है कि मैं स्त्री हूं.’’

पुरुष चाह कर भी क्षमा न कर सका. क्योंकि वह स्त्रीमन को समझने को तैयार न था. एकदूसरे के पूरक होने के बाद भी स्त्रीपुरुष न चाहते हुए भी विरोधी बने रहे. रिश्तों के बीच एक दरार बनी रही जो ताउम्र खटकती रही लेकिन दुनिया को दिखाते हुए वे रिश्तों का बोझ उठाते रहे. थक कर चूर होते रहे, फिर भी खींचते रहे रिश्तों को मरते दम तक. और घावों से भरा मन भटकता रहा इधरउधर शीतल ठंडी छांव के लिए. थोड़ा सा सुख पाने की चाह में सारी उम्र स्वाहा होती रही कर्तव्यों के हवनकुंड में.

Love Story : प्यार का पहला खत – सौम्या के दिल में कैसे उतर गया आशीष ?

Love Story : मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधरउधर देखे जा रही थी क्योंकि वह मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था या यों कहें वह कहीं छिप गया या वहां से दूर भाग चुका था. शायद मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने उस से किताब ले ली थी. सच कहूं तो वह काफी समय से मुझे इंप्रैस करने में लगा हुआ था. हालांकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जैक्ट की किताब की जरूरत है तो न जाने कहां से फौरन उस किताब को अरेंज कर के मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था.

मैं ने उस समय तो वह किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उस के छिप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बैंच पर बैठ गई. वहां पर कुछ लोग जौगिंग कर रहे थे और वे मेरे आसपास ही घूम रहे थे. मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देख कर वे सब मेरे और करीब आ रहे हैं. खैर, हर तरफ से मन हटा कर मैं ने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफेद प्लेन पेपर मेरे हाथों के पास आ कर गिर पड़ा. न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इस में. फिर भी झुक कर उसे उठाया और खोल कर चैक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था.

मैं खुद को ही गलत कहने लगी. वह तो एक समझदार लड़का है और मेरी हैल्प करना चाहता है, बस. मैं ने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफेद प्लेन पन्ना सरक कर गिर पड़ा. इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी. पार्क में मौजूद आधे लोग पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे और बचेखुचे लोग भी अपनी सेहत पर ध्यान देने के बजाय मेरी ओर निहार रहे थे.

‘‘क्या हुआ सौम्या?’’ अचानक से आशीष दौड़ कर मेरे पास आ गया. वह मेरे चीखने की आवाज सुन कर काफी घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘कुछ नहीं, बस इस घास के कीड़े से डर गई थी. यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था,’’ उस ने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा.

‘‘तुम बहुत डरती हो सौम्या. इस नन्हे से कीड़े से ही डर गईं. देखो, वह तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया,’’ आशीष मुसकराते हुए बोला.

सौम्या भी थोड़ा झेंपते हुए मुसकरा दी.

‘‘तुम अभी तक कहां थे आशीष? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचानक कहां से आ गए?’’

‘‘अरे पागल, मैं तो यहीं पर था, जौगिंग कर रहा था.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम यहां रोज आते हो?’’

‘‘हां और क्या. तुम्हें क्या लगा आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूं?’’

‘‘नहींनहीं. ऐसा नहीं है, मैं ने यों ही पूछा.’’

‘‘चलो, अब मैं घर आ जा रहा हूं. तुम आराम से इस किताब को पढ़ कर वापस कर देना,’’ आशीष बिना कुछ कहे व रुके वहां से चला गया.

‘कितना बुरा है आशीष, बताओ उस ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि तुम साथ चल रही हो?’ उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किताब दे कर उस पर कोई एहसान कर के गया है.

मैं उदास होे घर की तरफ वापस चल पड़ी. मन में उस के लिए न जाने क्याक्या सोच रही थी और वह एकदम से उस का उलटा ही निकला.

घर आ कर भी बिलकुल मन नहीं लगा. कमरे में बैड पर लेट कर उस के बारे में ही सोचती रही, आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या है यह सब? मन उस की तरफ से हट क्यों नहीं रहा? क्या वह भी मेरे बारे में सोच रहा होगा?

ओह, यह आज मेरे मन को क्या हो गया है. उस ने हलके से सिर को झटका दिया, पर दिमाग था कि उस की तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. चलो, थोड़ी देर मां के पास जा कर बैठती हूं. अब तो वे स्कूल से आ गई होंगी. थोड़ी देर उन से बातें करूंगी तो उधर से दिमाग हट जाएगा. वह मां के पास आ कर बैठ गई.

‘‘तुम आ गई सौम्या बेटा?’’

‘‘हां मा.’’

‘‘बेटा, एक कप चाय बना लाओ. आज मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है. स्कूल में बच्चों की कौपियां चैक करना बहुत दिमाग का काम है. वह बिना कुछ बोले चुपचाप किचन में आ कर चाय बनाने लगी. 2 कप चाय बना कर वापस मां के पास आ कर बैठ गई.

लेकिन आज मां ने कोई बात नहीं की. उन्होंने चुपचाप चाय पी और आंखें बंद कर के लेट गईं. शायद वे आज बहुत थकी हुई थीं. सौम्या वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई. इसी तरह 10 दिन गुजर गए.

आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी. येलो कलर की साड़ी पहन कर वह कालेज पहुंची. वहां सब उसे ही देख रहे थे. उसे लगा आज तो पक्का आशीष उस से बात करेगा. लेकिन पूरी पार्टी निकल गई पर आशीष ने एक बार भी उस की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था.

गुस्से और रोने के समय अकसर सौम्या के चेहरे पर लालिमा आ जाती है जो उस की सुंदरता में इजाफा कर देती है. वह यों ही कालेज गेट से बाहर निकल कर आ गई. अचानक से लगा कि कोई उस के पीछे आ रहा है. कौन हो सकता है, मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा.

वह एकदम से सौम्या के सामने आ गया. ‘‘ओह आशीष तुम, मैं तो एकदम घबरा ही गई थी,’’ उस का दिल वाकई में घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था.

वह कुछ नहीं बोला, फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘यह सर ने आप के लिए भिजवाया है.’’

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘आप की ड्रैस के लिए शायद बैस्ट कौंप्लिमैंट्स हैं.’’

उस के चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वह सच ही कह रहा है, क्योंकि उस के चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिस से लगे कि वह मजाक कर रहा है. उस वक्त अचानक से उस के मन में यह खयाल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो.

‘‘सौम्या, अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं? आज मैं अपने पापा की कार ले कर आया हूं,’’ आशीष ने उसे जाते देख कर कहा.

उस ने बिना देर किए फौरन सिर हिला दिया था क्योंकि वह आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गंवाना नहीं चाहती थी. ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिस से अनुमान भी लगाया जा सके कि उस के दिल में कोई कोमल भावना भी है.

सौम्या का घर आ गया था और वह उतर गई. उस ने आशीष से कहा, ‘‘आशीष घर के अंदर नहीं आओगे?’’

‘‘नहीं, आज नहीं फिर कभी. आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है.’’

‘ओह, कितना खड़ूस है यह, इस की नजर में उस की कोई वैल्यू ही नहीं. मैं ही पागल हूं, जो इस से एकतरफा प्यार कर रही हूं. आज से इस के बारे में सोचना बिलकुल बंद.’ उस ने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था. चाहे कैसे भी हो, मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा.

चलो, अब कभी उस का नाम ले कर उसे याद नहीं करूंगी. मैं मुसकराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गई. आईने के सामने खड़े हो कर खुद को निहारा. मन में उदासी का भाव आया. उस की वजह से ही तो इतना सजसंवर के गई थी. खैर, अब छोड़ो. उस ने हाथ में पकड़े लिफाफे को बैड पर रखा और कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने लगी.

‘चलो, पहले इस लिफाफे को ही खोल कर देख लूं, सर ने न जाने क्या लिखा होगा?’ बेमन से उस को खोला. उस में से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा. ओह, यह तो आशीष की बदतमीजी है. आज उसे फोन कर के कह ही देती हूं कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है. गुस्से में आ कर वह फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गई. वह निकाल कर पढ़ने के लिए खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई.

मम्मी को भी अभी ही आना था.

‘‘बेटा, जरा मार्केट तक जा रही हूं, कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

‘‘नहीं मम्मी, कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘चलो, ठीक है.’’

मम्मी के जाते ही उस ने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया, ‘प्रिय सौम्या, के संबोधन के साथ शुरू हुआ वह पत्र तुम्हारा आशीष के साथ खत्म हुआ. उस के बीच में जो लिखा था वह उसे खुशी से झुमाने के लिए काफी था. वह भी मुझे उतना ही प्यार करता था. वह भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था. वह भी कुछ कहने को तरसता था. वह भी मेरा साथ पाना चाहता था. लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूं. उस के प्यार को अस्वीकृत न कर दूं.

वाकई वह मुझे सच्चा प्यार करता है, तभी तो कभी उस ने मेरे हाथ तक को एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आए थे. वह खुशी से झूम उठी. एक बार खुद को आईने में निहारा और अब वह खुद पर ही मोहित हो गई और उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘आई लव यू, आशीष.’’

उस की आंखों के सामने आशीष का मुसकराता चेहरा था और अब वह शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ कर के जमीन को देखने लगी थी. आखिर, उस के सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गई थी.

Hindi Kahani : अस्तित्व – काम्या के गुजरे हुए कल की अनसुनी कहानी

Hindi Kahani : ‘नहीं आऊंगी, मैं कभी नहीं आऊंगी. जिस घर में मुझे और मेरे बच्चे को इज्जत नहीं मिल सकती, हक नहीं मिल सकता, वहां मैं कभी नहीं आऊंगी.’ ससुराल से निकलते समय कहे गए अपने शब्द काम्या आज भी भूली नहीं थी लेकिन पति के मुन्ने सहित लौट आने के अनुरोधपत्र और हालत के मद्देनजर उसे लौटना पड़ रहा था.मायके से ससुराल तक की यात्रा तय करने के बाद कश्मीरी गेट, दिल्ली के बसअड्डे पर बैठी काम्या गोद में मुन्ने को लिए पति की प्रतीक्षा कर रही थी.

गुजरा हुआ कल उसे वर्तमान से बारबार खींच अतीत में ले जा रहा था…‘हां, नहीं भूल सकती मैं उस रात को, जिस ने सजा बना दिया है मेरी जिंदगी को’, रो पड़ी थी वह कहते हुए.‘तो बारबार उस बात का जिक्र कर के घर की शांति क्यों भंग कर देती हो?’ पति शायद चिल्ला कर अपनी बात को सही करार देना चाहता था. उस की गुस्सैल लाल आंखें मानो मुझ से इस बात पर चुप्पी चाहती हों. मानो उस के मन में मेरे लिए अपवित्रता की ईर्ष्या ने जन्म ले लिया हो.‘इसलिए कि उस में मेरा कोई दोष नहीं था और वह जो भी था, आप के अपनों में से ही था’, वह आक्रोशित हो उठी थी. आंखों से आंसू मानो लुढ़कने को तैयार ही थे.मुन्ना के रोने से सहसा ही वह अतीत से उबर आई. मुन्ने को बहलाने के बाद उस ने घड़ी में समय देखा तो उसे कुछ चिंता सी होने लगी. समय अधिक हो गया था और बसअड्डे पर आवाजाही कम होने लगी थी. एक मन हुआ कि यहीं से कोई औटो या रिकशा करे और खुद ही घर पहुंच जाए, लेकिन कई महीनों बाद पति के बिना ससुराल की दहलीज पर पैर रखना उसे एकदम से सही नहीं लगा. कुछ उलझन से भरी काम्या की नजरें एक बार फिर से पति को देखने की चाह में इधरउधर घूमने लगीं.शायद मेरी बस ही समय से पहले आ गई थी या यह भी हो सकता है कि शिखर को ही आने में देर हो गई हो.

अपने मन को तस्सली दे कर वह फिर अपने अतीत में डूबने लगी थी.विवाह के कुछ ही महीने गुजरे थे जब ससुराल में एक पारिवारिक समारोह में उस के साथ धोखे से बेहोशी की हालत में दुराचार हुआ था. पति सहित ससुराल के दबाव में उन के मानसम्मान की खातिर उसे उस विष को पीना पड़ा. लेकिन जब विष का प्रभाव मुन्ना के रूप में सामने आया तो बहुत देर हो चुकी थी. घर की हालत ही नहीं, घरवालों के मन भी बदल गए थे.समाज के लिए वह बच्चा उन की संतान था लेकिन शिखर की नजरों में वह जायज नहीं था. बस, यहीं से शुरू हुआ था एक पति के विरोध का सिलसिला और मां के मातृत्व का संघर्ष, जिस की परिणति उस की मायके लौटने के रूप में हुई थी.‘हां, बस, बहुत हुआ यह हर दिन का जलना.’ इस बार वह अपना सामान बांधे मायके लौटने को तैयार हो गई थी. ‘नहीं रहना मुझे अब, बारबार की इस बेइज्जतीभरी जिंदगी में जहां मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है.’‘तो लौट कर भी मत आना इस दहलीज पर अगर इतने ही मानसम्मान की चिंता है तुम्हें.’ शिखर के कहे इन शब्दों में जैसे पूरी ससुराल की आवाज शामिल थी उस दिन.‘हां, नहीं आऊंगी…’ और उन्हीं शब्दों पर फिर आ अटकी थी काम्या सोचतेसोचते.‘‘क्या सोच रही हो, काम्या?’’

सामने आ खड़े हुए शिखर की आवाज ने जैसे उसे एक गहरी खाई में से वापस जमीन की सतह पर ला खड़ा किया हो.‘‘जी, कुछ नहीं,’’ उस ने सामान समेटते हुए शिखर को जवाब दिया,’’ ‘‘जेठजी के अचानक गुजर जाने का सुन कर बहुत दुख हुआ.’’ ‘‘मनुष्य के कर्म उस के आगेआगे चलते हैं, काम्या,’’ शिखर के स्वर में गंभीरता थी, ‘‘शायद, यही उन के कर्मों का फल था. चलो, घर चलें.’’ अपनी बात पूरी करते हुए पति ने काम्या के हाथ से मुन्ने को उठा गोद में ले लिया.इस अप्रत्याशित क्रिया से जहां काम्या के मन में खुशी की लहर उठी, वहीं वह अपनी हैरानी को भी दबा नहीं सकी थी, ‘‘आप ने मेरे मुन्ने को गोद में उठाया.’’‘‘हां काम्या, मैं ने इस के साथ बहुत अन्याय किया है. लेकिन मुझे क्या पता था कि यह हमारे ही वंश की एक बेल है.’’ कहते हुए पति का स्वर अनायास ही कांपने लगा था, ‘‘दरअसल काम्या, बड़े भैया ने अपने आखिरी समय में ही खुद बताया कि उस रात…’’‘‘क्या…?’’ शिखर की अनकही बात की तह में जाते ही काम्या का रोमरोम सुलग उठा. पलभर को लगा कि उस के पैरों के नीचे से जमीन और सिर के ऊपर से जैसे आसमान हटा दिया गया हो. एकाएक पत्थर हो गए कदमों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया.‘‘रुक क्यों गईं, काम्या? चलो न, घर चलें,’’ शिखर ने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा.‘‘घर, कौन से घर? किस के घर?’’ सहसा एक व्यंग्यभरी कंपकंपाती मुसकान काम्या के होंठों पर आ गई. ‘‘अपनी संतान के उस नीच पिता के घर, जिस ने मेरी देह को कलंकित किया और अब मरखप गया या फिर सात वचनों से बंधे उस पति के घर, जिस ने अपने कुल के सम्मुख सभी लिए गए वचनों को दरकिनार कर हमेशा अपनी पत्नी को एक देहमात्र ही समझा.’’‘‘देखो काम्या, हम घर चल कर भी बात कर सकते हैं न, अभी घर में भैया के बेटे का इंतजार हो रहा है ताकि…’’ शिखर ने काम्या को शांत करना चाहा.‘‘भैया का बेटा? हां, उस का बेटा… मेरा नहीं? अब मेरा है भी नहीं,’’ काम्या के चेहरे पर रोष झलक आया था, ‘‘अब मुझे चाहिए भी नहीं यह. हां, ले जाओ इसे,’’ यह कहते हुए काम्या पीछे की ओर लौट पड़ी.‘‘काम्या, काम्या,’’ शिखर उसे पुकार रहा था. लेकिन काम्या वापस पीछे लौटते हुए उसी बस में जा सवार हुई जिस से कुछ देर पहले ही वह अपने पति के शहर लौटी थी.बस का हौर्न अपनी तेज आवाज में बस के चलने की घोषणा कर रहा था.

Hindi Story : मैं जलती हूं तुम से – विपिन का कौन सा राज जानना चाहती थी नीरा ?

Hindi Story : विपिन और मैं डाइनिंगटेबल पर नाश्ता कर रहे थे. अचानक मेरा मोबाइल बजा. हमारी बाई लता का फोन था.

‘‘मैडम, आज नहीं आऊंगी. कुछ काम है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है,’’ पर मेरा मूड खराब हो गया.

विपिन ने अंदाजा लगा लिया.

‘‘क्या हुआ? आज छुट्टी पर है?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

‘‘कोई बात नहीं नीरा, टेक इट ईजी.’’

मैं ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बड़ी परेशानी होती है… हर हफ्ते 1-2 छुट्टियां कर लेती है. 8 साल पुरानी मेड है… कुछ कहने का मन भी नहीं करता.’’

‘‘हां, तो ठीक है न परेशान मत हो. कुछ मत करना तुम.’’

‘‘अच्छा? तो कैसे काम चलेगा? बिना सफाई किए, बिना बरतन धोए काम चलेगा क्या?’’

‘‘क्यों नहीं चलेगा? तुम सचमुच कुछ मत करना नहीं तो तुम्हारा बैकपेन बढ़ जाएगा… जरूरत ही नहीं है कुछ करने की… लता कल आएगी तो सब साफ कर लेगी.’’

‘‘कैसे हो तुम? इतना आसान होता है क्या सब काम कल के लिए छोड़ कर बैठ जाना?’’

‘‘अरे, बहुत आसान होता है. देखो खाना बन चुका है. शैली कालेज जा चुकी है, मैं भी औफिस जा रहा हूं. शैली और मैं अब शाम को ही आएंगे. तुम अकेली ही हो पूरा दिन. घर साफ ही है. कोई छोटा बच्चा तो है नहीं घर में जो घर गंदा करेगा. बरतन की जरूरत हो तो और निकाल लेना. बस, आराम करो, खुश रहो, यह तो बहुत छोटी सी बात है. इस के लिए क्या सुबहसुबह मूड खराब करना.’’

मैं विपिन का शांत, सौम्य चेहरा देखती रह गई. 25 सालों का साथ है हमारा. आज भी मुझे उन पर, उन की सोच पर प्यार पहले दिन की ही तरह आ जाता है.

मैं उन्हें जिस तरह से देख रही थी, यह देख वे हंस पड़े. बोले, ‘‘क्या सोचने लगी?’’

मेरे मुंह से न जाने क्यों यही निकला, ‘‘तुम्हें पता है, मैं जलती हूं तुम से?’’

जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े विपिन, ‘‘सच? पर क्यों?’’

मैं भी हंस दी. वे बोले, ‘‘बताओ तो?’’

मैं ने न में सिर हिला दिया.

फिर उन्होंने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब चलता हूं, आज औफिस में भी इस बात पर हंसी आएगी कि मेरी पत्नी ही जलती है मुझ से. भई, वाह क्या बात कही. शाम को आऊंगा तो बताना.’’

विपिन औफिस चले गए. मैं ने घर में इधर, उधर घूम कर देखा. हां, ठीक ही तो कह रहे थे विपिन. घर साफ ही है पर मैं भी आदत से मजबूर हूं. किचन में सारा दिन जूठे बरतन तो नहीं देख सकती न. सोचा बरतन धो लेती हूं. बस फिर झाड़ू लगा लूंगी, पोंछा छोड़ दूंगी. काम करतेकरते अपनी ही कही बात मेरे जेहन में बारबार गूंज रही थी.

हां, यह सच है कभीकभी विपिन के सौम्य, केयरफ्री, मस्तमौला स्वभाव से जलन सी होने लगती है. वे हैं ही ऐसे. कई बार उन्हें कह चुकी हूं कि विपिन, तुम्हारे अंदर किसी संत का दिल है क्या, वरना तो क्या यह संभव है कि इंसान किसी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित न हो? ऐसा भी नहीं कि कभी उन्होंने कोईर् परेशानी या दुख नहीं देखा. बहुत कुछ सहा है पर हर विपरीत परिस्थिति से यों निकल आते हैं जैसे बस कोई धूल भरा कपड़ा धो कर झटक कर तार पर डाल कर हाथ धो लिए हों. जब भी कभी मूड खराब होता है बस कुछ पल चुपचाप बैठते हैं और फिर स्वयं को सामान्य कर वही हलकीफुलकी बातें. कई बार उन्हें छेड़ चुकी हूं कि कोई गुरुमंत्र पढ़ लेते हो क्या मन में?

रात में सोने के समय अगर हम दोनों को कोई बात परेशान कर रही हो तो जहां मैं रात भर करवटें बदलती रहती हूं, वहीं वे लेटते ही चैन की नींद सो जाते हैं.

विपिन की सोने की आदत से कभीकभी मन में आता है कि काश, मैं भी विपिन की तरह होती तो कितनी आसान सी जिंदगी जी लेती पर नहीं, मुझे तो अगर एक बार परेशान कर रही है तो सुखचैन खत्म हो जाता है मेरा, जब तक कि उस का हल न निकल आए पर विपिन फिर सुबह चुस्तदुरुस्त सुबह की सैर पर जाने के लिए तैयार.

विदेश में पढ़ रहा हमारा बेटा पर्व. अगर सुबह से रात तक फोन न कर पाए तो मेरा तो मुंह लटक जाता है पर विपिन कहेंगे ‘‘अरे, बिजी होगा. वहां सब उसे अपनेआप मैनेज करना पड़ता है. जैसे ही फुरसत होगी कर लेगा फोन वरना तुम ही कर लेना. परेशान होने की क्या बात है? इतना मत सोचा करो.’’

मैं घूरती हूं तो हंस पड़ते हैं, ‘‘हां, अब यही कहोगी न कि तुम मां हो, मां का दिल वगैरहवगैरह. पर डियर, मैं भी तो उस का पिता हूं, पर परेशान होने से बात बनती नहीं, बिगड़ जाती है.’’

मैं चिढ़ कर कहती हूं, ‘‘अच्छा, गुरुदेव.’’

जब खाने की बात हो, मेरी हर दोस्त, मेरी मां, बच्चे सब हैरान रह जाते हैं कि खाने के मामले में विपिन जैसा सादा इंसान शायद ही कोई दूसरा हो.

कई सहेलियां तो अकसर कहती हैं, ‘‘नीरा, जलन होती है तुम से… कितना अच्छा पति मिला है तुम्हें… कोई नखरा नहीं.’’

हां, तो आज मैं यही तो सोच रही हूं कि जलन होती है विपिन से, जो खाना प्लेट में हो, इतने शौक से खाएंगे कि क्या कहा जाए. सिर्फ दालचावल भी इतना रस ले कर खाएंगे कि मैं उन का मुंह देखती रह जाती हूं कि क्या सचमुच उन्हें इतना मजा आ रहा होगा खाने में.

हम तीनों अगर कोई मूवी देखने जाएं और अगर मूवी खराब हुई तो शैली और मैं कार में मूवी की आलोचना करेंगे. अगर विपिन से पूछेंगे कि कैसी लगी तो कहेंगे कि अच्छी तो नहीं थी पर अब क्या मूड खराब करना. टाइमपास करने गए थे न, कर आए. हंसी आ जाती है इस फिलौसफी पर.

हद तो तब थी जब हमारे एक घनिष्ठ रिश्तेदार ने निरर्थक बात पर हमारे साथ दुर्व्यवहार किया. हमारे संबंध हमेशा के लिए खराब हो गए. जहां मैं कई दिनों तक दुख में डूबी रही, वहीं थोड़ी देर चुप बैठने के बाद उन्होंने मुझे प्यार भरे गंभीर स्वर में कुछ यों समझाया, ‘‘नीरा, बस भूल जाओ उन्हें. यही संतोष है कि हम ने तो कुछ बुरा नहीं कहा उन्हें और अगर किसी अपने से इतना दिल दुखे तो वह फिर अपना कहां हुआ. अपने से तो प्यार, सहयोग मिलना चाहिए न… जो इतने सालों से मानसिक कष्ट दे रहे थे, उन से दूर होने पर खुश होना चाहिए कि व्यर्थ के झूठे रिश्तों से मुक्ति मिली, ऐसे अपने किस काम के जो मन को अकारण आहत करते रहें.’’

विपिन के बारे में ही सोचतेसोचते मैं ने अपने सारे काम निबटा लिए थे. आज अपनी ही कही बात में मेरा ध्यान था. ऐसे अनगिनत उदाहरण

हैं जब मुझे लगता है काश, मैं विपिन की तरह होती. हर बात को उन की तरह सोच लेती. हां, उन के जीने के अंदाज से जलन होती है मुझे,

पर इस जलन में असीमित प्रेम है मेरा, सम्मान है, गर्व है, खुशी है. उन की सोच ने मुझे जीवन में कई बार मेरे भावुक मन को निराशाओं से उबारा है.

शाम को विपिन जब औफिस से लौटे तो सामान्य बातचीत के बाद उन्होंने किचन में झांका, तो हंस पड़े, ‘‘मैं जानता था तुम मानोगी नहीं. सारे काम कर लोगी… क्यों किया ये सब?’’

‘‘जब जानते हो मानूंगी नहीं तो यह भी पता होगा कि पूरा दिन गंदा घर मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अच्छा, ठीक है तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां,’’ वे जब तक फ्रैश हो कर आए, मैं ने चाय बना ली थी.

चाय पीतेपीते मुसकराए, ‘‘चलो, बताओ क्यों जलती हो मुझ से? सोचा था, औफिस से फोन पर पूछूंगा, पर काम बहुत था. अब बताओ.’’

‘‘यह जो हर स्थिति में तालमेल स्थापित कर लेते हो न तुम, इस से जलती हूं मैं. बहुत हो गया, आज गुरुमंत्र दे ही दो नहीं तो तुम्हारे जीने के अंदाज पर रोज ऐसे ही जलती रहूंगी मैं,’’ कह कर मैं हसी पड़ी.

विपिन ने मुझे गहरी नजरों देखते हुए कहा, ‘‘जीवन में जो हमारी इच्छानुसार न हो, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो. जीवन जीने का यही एकमात्र उपाय है, ‘टेक लाइफ एज इट कम्स’.’’

मैं उन्हें अपलक देख रही थी. सादे से शब्द कितने गहरे थे. मैं तनमन से उन शब्दों को आत्मसात कर रही थी.

अचानक उन्होंने शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘अब भी मुझ से जलन होगी?’’

मैं जोर से हंस पड़ी.

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