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Bridge Collapse : पुल टूटे “जनता भुगते”

Bridge Collapse : भारत के ज्यादातर राज्यों में बरसात के मौसम में अकसर पुल ढहने की घटनाएं घटती हैं. इन्हें आपदाओं का हिस्सा मान लिया जाता है जबकि ये प्राकृतिक कम व मानवनिर्मित घटनाएं ज्यादा होती हैं.

भारत में बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से तो हो रहा है लेकिन हाल के वर्षों में बारबार होने वाली पुल ढहने की घटनाएं इस प्रगति पर सवाल उठाती हैं. ये हादसे न केवल जानमाल के नुकसान का कारण बनते हैं, बल्कि निर्माण गुणवत्ता, रखरखाव और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करते हैं. बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में हाल की घटनाएं, जैसे 2025 में पुणे और वडोदरा में हुए हादसे, इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करते हैं. वहीं, असम में बना देश का सब से पुराना पुल ‘नामदांग ब्रिज’ आज भी मजबूती से खड़ा है और लोगों व वाहनों के प्रयोग में है.

यह पुल (नामदांग ब्रिज) 1703 में अहोम राजा रुद्र सिंह द्वितीय द्वारा नामदांग नदी पर बनवाया गया था. इस की खासीयत यह है कि इसे एक ही पत्थर के टुकड़े से बनाया गया है. वहीं, इस के निर्माण में चावल, अंडे, काली दाल और नीबू जैसी सामग्रियों का उपयोग किया गया था. यह पुल 3 शताब्दियों से अधिक समय तक भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को सहन कर आज भी मजबूत स्थिति में है और उपयोग में है. यही नहीं, इस के अलावा कुछ अन्य ऐतिहासिक पुल, जैसे जौनपुर का शाही पुल (1568-69 में बादशाह अकबर द्वारा निर्मित) और इलाहाबाद का नैनी ब्रिज (1865 में अंगरेजों द्वारा निर्मित) भी उपयोग में हैं.

शताब्दियां गुजरने के बाद भी ये पुल न केवल उपयोग में हैं बल्कि प्रयागराज के नैनी पुल पर से तो दिनभर में दिल्ली, हावड़ा और पूर्वोत्तर की दर्जनों जोड़ी ट्रेनें पूरी रफ्तार से गुजरती भी हैं. हर साल बारिश में यह पुल यमुना नदी का उफान भी आराम से ?ोलता है तो सवाल यहीं खड़ा होता है कि आखिर हाल के बने पुल या कुछ वर्षों पहले के पुल कभी बरसात में या बिना बरसात के भी हादसों के क्यों शिकार हो रहे हैं? तकनीकी जानकार तो बस यही कहते हैं कि पुलों की डिजाइनों में तकनीकी त्रुटियां, जैसे गलत लोड गणना, पर्यावरणीय कारकों (जैसे भूकंप या हवा) की अनदेखी और अपर्याप्त नींव डिजाइन हादसों का कारण बनते हैं.

ढहते अधकचरे पुल

हाल में मध्य प्रदेश के भोपाल में एक निर्माणाधीन पुल इसलिए चर्चित हो गया कि उस में एक जगह 90 डिग्री का मोड़ आ गया. कुछ निलंबन के बाद मामला फिलहाल ठंडा है. एक और उदाहरण देखिए, 2022 में गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना केबल पुल ढह गया, जिस में विशेषज्ञों ने डिजाइन और मरम्मत में खामियों को जिम्मेदार ठहराया.

एक शैक्षिक अध्ययन 2019 के अनुसार, डिजाइन की कमियां 20-25 फीसदी पुल हादसों में योगदान देती हैं. निर्माण में निम्न गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग, जैसे कमजोर सीमेंट, सरिया या अन्य सामग्री, पुलों की संरचनात्मक अखंडता को प्रभावित करता है.

पुलों के निर्माण में गलत डिजाइन की बात तो होती है लेकिन गुणवत्ता पर चर्चा कम ही होती है. एक तकनीकी जानकार का कहना है कि पुल पर सड़क हादसे डिजाइन में तकनीकी गड़बड़ी से तो हो सकते हैं लेकिन उस के ढहने के पीछे अधिकांश मामलों में निम्न गुणवत्ता ही होती है.

काबिले गौर है कि बिहार में 2024 में हुए 15 पुल हादसों में ठेकेदारों पर निम्न गुणवत्ता वाली सामग्री और खराब कारीगरी के आरोप लगे थे. उदाहरण के लिए, भागलपुर में 1,717 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा अगुवानी-सुल्तानगंज पुल तीन बार ढह चुका है, जिसे विशेषज्ञों ने खराब सामग्री और निर्माण प्रक्रिया से जोड़ा. पुलों पर निर्धारित क्षमता से अधिक भार डालना, जैसे भारी वाहनों या भीड़ का दबाव, ढहने का एक प्रमुख कारण है.

क्या कारण है इन हादसों का

2022 के मोरबी हादसे में पैदल पुल पर क्षमता से अधिक भीड़ के कारण 141 लोगों की मौत हुई. इसी तरह, बिहार के सहरसा में एक पुराना पुल ओवरलोडेड ट्रैक्टर के कारण ढह गया. शोध के अनुसार, 3-5 फीसदी पुल हादसे ओवरलोडिंग से संबंधित होते हैं. पुराने पुलों का नियमित रखरखाव न होना एक गंभीर समस्या है. कई पुल, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, दशकों तक बिना निरीक्षण या मरम्मत के उपयोग में रहते हैं. 2025 में वडोदरा में गंभीरा पुल (40 वर्ष पुराना) ढहने की घटना में रखरखाव की लंबे समय से अनदेखी को कारण बताया गया.

भारतीय पुल प्रबंधन (आईबीएमएस) के अनुसार, देश में 1,72,517 बड़े और छोटे पुल हैं, जिन में से कई पुराने और जर्जर हैं. उधर नदियों में अवैध बालू खनन से पुलों की नींव कमजोर होती है, जिस से उन के ढहने का खतरा बढ़ता है. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह एक आम समस्या है. उदाहरण के लिए, कोसी नदी पर बने कई पुलों के ढहने में अवैध खनन को एक कारक माना गया.

निर्माण प्रक्रिया में भ्रष्टाचार, जैसे लागत कम करने के लिए नियमों की अनदेखी, निम्न गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग और अपर्याप्त निरीक्षण हादसों के प्रमुख कारण हैं. जैसे, मोरबी हादसे में मरम्मत के बाद बिना फिटनैस सर्टिफिकेट के पुल को खोलना लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण था.

बिहार में 2024 में हुए हादसों में ठेकेदारों और अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन जवाबदेही तय करने में कमी देखी गई. प्राकृतिक आपदाएं, जैसे बाढ़, भारी बारिश और भूकंप भारत में पुल ढहने के प्रमुख कारण हैं. नदियों में तेज प्रवाह और बाढ़ के कारण होने वाला स्काउर प्रभाव (नींव के पास मिट्टी का क्षरण) पुलों की नींव को कमजोर करता है. उदाहरण के लिए, 2016 में महाराष्ट्र के महाद में सावित्री नदी पर बना 100 साल पुराना पुल भारी बारिश के कारण ढह गया, जिस में 28 लोगों की मौत हुई. इसी तरह, बिहार में कोसी और गंगा जैसी नदियों पर बने कई पुल बाढ़ के कारण प्रभावित हुए हैं.

क्या कहते हैं शोध

एक शोध के अनुसार, 80 फीसदी से अधिक पुल हादसे प्राकृतिक कारकों से जुड़े हैं. भारत में पुलों की औसत आयु 34.5 वर्ष है, जो वैश्विक औसत (50 वर्ष) से काफी कम है. यह भी गौरतलब है कि केवल बिहार में 2024 के हादसों में 1,200-1,700 करोड़ रुपए के प्रोजैक्ट प्रभावित हुए. 2020 में एक अध्ययन किया गया था. इस का नाम था ‘भारत में 1977 से 2017 तक पुलों के टूटने का विश्लेषण’. यह अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ‘स्ट्रक्चर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग’ में प्रकाशित हुआ था.

इस अध्ययन में कहा गया कि पिछले 40 सालों में 2,130 पुल ढह गए. उन में से अधिकांश निर्माण चरण में थे. वहीं 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक सड़क परिवहन मंत्रालय ने राज्यसभा को जानकारी दी थी कि पिछले 3 सालों में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 21 पुल ढह गए. इन में से 15 पुल बने हुए थे और 6 निर्माणाधीन थे. इस दौरान एक और अध्ययन सामने आया है. अध्ययन में 2,010 पुलों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. इस में पाया गया कि भारत में पुलों के टूटने का सब से बड़ा कारण प्राकृतिक आपदाएं हैं. लगभग 80.3 फीसदी पुल प्राकृतिक आपदाओं के कारण टूटे.

इस के अलावा, 10.1 फीसदी पुल सामग्री की खराबी के कारण टूटे, जबकि 3.28 फीसदी पुल ओवरलोडिंग के कारण टूटे.

जांच, पर आंच नहीं

देश में हादसों के बाद जांच कमेटी बनती है,जांच होती है लेकिन नतीजा कभी नहीं निकलता. कुछ निलंबन तक कार्रवाई सिमट जाती है. भारत में पुल गिरने की घटनाएं एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, जिस में प्राकृतिक, तकनीकी और मानवीय कारक शामिल हैं. ऐसा नहीं है कि समस्या का समाधान नहीं है. है, दरअसल, इन हादसों से बचने के लिए पुलों का नियमित निरीक्षण, परीक्षण और मरम्मत करना बहुत जरूरी है.

पुलों के नियमित निरीक्षण, परीक्षण और मरम्मत के साथ पुलों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलों पर ओवरलोडिंग न हो. अगर हम ये कदम उठाएंगे तो हम लोगों की जान बचा सकते हैं. नियमित निरीक्षण, परीक्षण, रिपोर्टिंग और बहाली के लिए सुधारात्मक उपाय ऐसी आपदाओं को कम करेंगे.

हाल के वर्षों में पुल ढहने की कई घटनाएं घटित हुई हैं. ये बुनियादी ढांचे की कमजोरियों को उजागर करती हैं. यह मुद्दा जटिल है और विभिन्न पक्षों के बीच जवाबदेही व सुधारों पर मतभेद हैं. इन हादसों को रोकने के लिए सरकार, इंजीनियरिंग समुदाय और नागरिकों को मिल कर एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो गुणवत्तापूर्ण निर्माण, नियमित रखरखाव और जवाबदेही सुनिश्चित करे, केवल तभी भारत सुरक्षित और टिकाऊ बुनियादी ढांचे की दिशा में आगे बढ़ सकता है.

Caste War : क्या जातीय युद्ध में टूटेगी भाजपा

Caste War : दुनिया के सब से बड़े राजनीतिक दल भाजपा के सामने दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं. अब विपक्ष पहले से कहीं अधिक जागरूक हो चुका है. ऐसे में भाजपा क्या अपने ही बोझ से दब कर टूट जाएगी?

भारतीय जनता पार्टी देश की सब से बड़ी पार्टी बन चुकी है. भाजपा का दावा है कि वह दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी है. 18 से 20 करोड़ के बीच भाजपा के सदस्यों की संख्या है. केंद्र में 2014 के बाद से लगातार एनडीए की अगुवाई करते हुए भाजपा नेता नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हुए हैं. देश के 20 राज्यों में भी भाजपा सत्ता में है. उन में से 14 राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं और 6 राज्यों में सहयोगी दलों के साथ सत्ता में हैं. एक समय में यही हालत कांग्रेस की थी. कुछ समय के बाद अपने ही बोझ से दब कर कांग्रेस डूब गई.

भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में बने रहने के लिए जिस तरह से अलगअलग विचारधाराओं के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ा उस से पार्टी के अंदर ही अंदर काफी रोष फैला हुआ है. इस के अलावा भाजपा अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करती रही है. अब सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा को जिस तरह से एससी और ओबीसी जातियों की जीहुजूरी करनी पड़ रही है उस से अगड़ी जातियों के नेता और कार्यकर्ता कसमसा रहे हैं. जातियों के बीच संतुलन बनाए रखना पार्टी की सब से बड़ी परेशनी बन गई है. अब यह परेशानी खुल कर सामने आ रही है.

इस का सब से बड़ा उदाहरण पार्टी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने में पहली बार इतनी देरी हो रही है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल लोकसभा चुनाव के समय खत्म हो गया था. 2024 से अब तक एक साल बीतने के बाद भी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर पाई. बात केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने तक सीमित नहीं रही है. प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल बनाने तक में उस को जातीय समीकरण बैठाना पड़ता है. पहले यह काम संगठन स्तर पर हो जाता था. अब जैसे ही एक नाम सामने आता है दूसरा खेमा विरोध करने लगता है. जिस की वजह से किसी पदाधिकारी का चुनाव करना मुश्किल हो जाता है. अलगअलग प्रदेशों में अध्यक्ष के चुनाव में इस तरह का विरोध खूब देखने को मिल रहा है.

भाजपा जब तक सत्ता में है, मीडिया पर उस का पूरा कंट्रोल है, पैसा कुछ के ही हाथ में है. ऐसे में विरोध के स्वर मुखर नहीं हो रहे हैं लेकिन जैसे ही वह कोई कदम लेने को होती है, पार्टी के भीतर और बाहर विरोध से सुर उभरने लगते हैं. यह किसी एक प्रदेश की कहानी नहीं है. विरोध के सुर कई प्रदेशों में खदबदा रहे हैं. जिस तरह से हांडी के एक चावल को देखने से पता चल जाता है कि पूरी हांडी के चावल पके हैं या नहीं उसी तरह से विरोध का एक स्वर बता देता है कि पार्टी में क्या चल रहा है?

तेलंगाना का ताजा उदाहरण सामने है. वहां भाजपा को बड़ा झटका तब लगा जब उस के फायर ब्रैंड नेता और विधायक टी राजा सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. टी राजा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर एन रामचंद्र राव का नाम सामने आने के बाद नाराज हो गए थे. टी राजा सिंह ने सोशल मीडिया हैंडल ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट में लिखा कि ‘बहुत से लोगों की चुप्पी को सहमति नहीं समझ जाना चाहिए. मैं सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उन अनगिनत कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के लिए बोल रहा हूं जो हमारे साथ आस्था के साथ खड़े थे और जो आज निराशा महसूस कर रहे हैं’. तेलंगाना में सरकार कांग्रेस की है और नेताओं के पास अवसर हैं कि वे कांग्रेस में जा मिले.

टी राजा ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार को भेजे पत्र में लिखा कि ‘भले ही मैं पार्टी से अलग हो रहा हूं, लेकिन मैं हिंदुत्व की विचारधारा और हमारे धर्म और गोशामहल के लोगों की सेवा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हूं. मैं अपनी आवाज उठाता रहूंगा और हिंदू समुदाय के साथ और भी अधिक मजबूती से खड़ा रहूंगा. यह एक कठिन निर्णय है, लेकिन एक जरूरी निर्णय है.’ टी राजा सिंह भाजपा के लिए मजबूत नेता थे. उन की तरह ही अलगअलग राज्यों में यह बेचैनी अंदर ही अंदर बढ़ रही है. हिंदुत्व की ढाल ही अब भारतीय जनता पार्टी के पास बची है पर उस से वोट नहीं मिलते. यह जून 2024 के लोकसभा चुनाव और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में साफ हो गया था.

कहां चला गया एक नेता एक पद का सिद्धांत

भाजपा को अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को उन का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उन को लंबे समय तक पद पर बनाए रखना पड़ा. भाजपा इस बात का बखान बड़े जोरशोर से करती है कि उस की पार्टी में एक नेता एक पद का सिद्धांत ही काम करता है. इसी वजह से जब 2019 में अमित शाह को मोदी मंत्रिमंडल में गृहमंत्री बनाया गया तो उन को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा. जिस के बाद जेपी नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. आखिर 2019 और 2024 के बीच क्या बदल गया जो जेपी नड्डा को उन के पद से हटाने में मुश्किल आ गई.

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद

जेपी नड्डा को मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गई. इस के बाद भी जेपी नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी बने रहे. सवाल उठता है कि जो सिद्धांत अमित शाह के मामले में काम कर रहा था उस ने जेपी नड्डा के समय काम क्यों नहीं किया. असल में 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से वोट मिले जितनी भाजपा की सीटें आईं उन के कारण ही भाजपा को फैसला करने में कठिनाई आई. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2014 के लोकसभा से अधिक सीटें मिली थीं. ऐसे में भाजपा ताकतवर थी. उस ने एक झटके में अमित शाह को गृहमंत्री बना दिया और जेपी नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया.

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें घट कर 240 रह गईं. वह अपने बूते सरकार बनाने में सफल नहीं हुई. उस को दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ा. चुनावी हार का कारण यह था कि हिंदुत्व के बावजूद एससी और ओबीसी का समर्थन उस को नहीं मिला. उत्तर प्रदेश में उस को केवल 33 सीटें ही मिल सकीं जबकि उस की विरोधी समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिलीं. यानी भाजपा की ताकत घटी.

पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया पर उन की जगह पर अपनी मनपसंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाने में दिक्कत पेश आ रही है. ऐसे में लगातार एक पद एक नेता सिद्धांत को दरकिनार कर के जेपी नड्डा ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे.

लोकसभा में भाजपा की सीटें घटने का प्रभाव भले ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाया पर पार्टी के भीतर मोदीशाह के फैसलों को प्रभावित किया. अगर 2019 के चुनाव जैसी सफलता भाजपा को 2024 के चुनाव में भी मिली होती तो जेपी नड्डा को हटा कर दूसरा कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में दिक्कत नहीं आती. भाजपा के कमजोर होने से मोदीशाह के फैसलों पर आरएसएस अपनी धौंस जमाने लगा है. वह अपनी पसंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहता है. मोदीशाह अपनी पसंद को बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे में बीच का रास्ता यह निकाला गया कि एक नाम पर दोनों सहमत हो जाएं. अब भाजपा पर आरएसएस की पकड़ मजबूत होती जा रही है. अब भाजपा को संतुलन बना कर काम करना पड़ रहा है.

उत्तर प्रदेश में बढ़ी मुश्किल

भाजपा में सब से बड़ी गुटबाजी उत्तर प्रदेश में चल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सब से बड़ा नुकसान भाजपा को इसी प्रदेश में हुआ जबकि भाजपा को यह लग रहा था कि अयोध्या में भव्य राममंदिर निर्माण के बाद उत्तर प्रदेश में उस की स्थिति मजबूत होगी. लोकसभा चुनाव में राममंदिर के नाम पर भाजपा को वोट नहीं मिले. यही भाजपा और आरएसएस की चिंता का कारण है. चुनाव में धर्म का असर खत्म होते ही मसला जाति पर टिक जाता है. जाति के मसले पर भाजपा को नुकसान हो जाता है. ऐसे में जातीय गुटबाजी उभार मारने लगती है.

लोकसभा चुनाव में हार के बाद उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने हार का ठीकरा प्रदेश सरकार पर फोड़ दिया. उन के निशाने पर शुरू से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहे हैं. भाजपा धर्म के वोट पर प्रभाव के कारण ही योगी आदित्यनाथ को आगे किए है. सवाल उठ रहा है कि जब धर्म का मुद्दा वोट नहीं दिला पा रहा क्या तब भी भाजपा योगी आदित्यनाथ पर ही दांव लगाने का खतरा मोल लेगी? तेलंगाना में फायरब्रैंड नेता और विधायक टी राजा सिंह को दरकिनार किया गया, उस से साफ संकेत मिल रहा है कि उत्तर प्रदेश में भी धर्म की जगह जातीय समीकरणों पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा.

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद जब से योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. उसी समय से उन का विरोध चल रहा है. केशव प्रसाद मौर्य का लगातार दूसरी बार उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह अपनी सीट भी हार गए थे. योगी आदित्यनाथ और पार्टी संगठन मंत्री सुनील बंसल के बीच भी टकराव होता रहा. जिस के कारण सुनील बंसल को उत्तर प्रदेश से हटाया गया.

योगी आदित्यनाथ पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगा. यह आरोप उस समय कांग्रेस के नेता रहे जतिन प्रसाद ने लगाया. योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी बताया. यह बात और थी कि इस के बाद जतिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए. पहले वह प्रदेश सरकार में मंत्री थे. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उन को केंद्र सरकार में मंत्री बना दिया गया. योगी आदित्यनाथ को हटाने की खबरें लगातार उत्तर प्रदेश में आती रहती हैं. इस के पीछे भाजपा के नेताओं की गुटबाजी सब से प्रमुख कारण है.

बिहार में क्यों नाराज हो रहे हैं चिराग पासवान लोकजनशक्ति पार्टी के नेता और केंद्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान बिहार के विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए भाजपा पर दबाव बना रहे हैं. वैसे तो वह खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते हैं. इस के बाद भी अंदर ही अंदर वह दबाव की राजनीति अपना रहे हैं. बिहार में इस साल के आखिरी में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं. बिहार में भाजपा का प्रमुख सहयोगी जदयू है. जदयू यह चाहता है कि भाजपा चुनाव के पहले ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे.

दूसरी तरफ चिराग पासवान यह चाहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में उन को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए. वही भाजपा का एक खेमा यह चाहता है कि पार्टी अपने नेता को मुख्यमंत्री का फेस बना कर चुनाव में उतरे. इसी कारण चिराग पासवान और जदयू अपनीअपनी खींचतान में लगे हैं. भाजपा को पता है कि अकेले वह बिहार के चुनाव में राजद और कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सकती है. ऐसे में उस को चिराग पासवान और नीतीश कुमार सहित दूसरे नेताओं को भी साधना पड़ेगा.

हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान राज्यों के नेता अनिल विज, किरोड़ी लाल मीणा और पंकजा मुंडे नाराज चल रहे हैं. पंकजा मुंडे ने पिछले दिनों यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि उन के पिता के समर्थक एकत्र हो जाएं तो वह एक नई पार्टी खड़ी कर सकती है. पंकजा मुंडे भाजपा के बड़े नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की पुत्री हैं. पंकजा मुंडे को पार्टी से जितनी उम्मीद थी उतना उन को नहीं मिला, इस को ले कर वह लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रही है. महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को महत्त्व मिलने से पंकजा मुंडे को नाराजगी है.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद जब भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया तब से किरोड़ी लाल मीणा नाराज चल रहे हैं. वह लगातार सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं. उन का कहना है कि जिन बुराइयों को दूर करने के लिए हम ने आंदोलन किए, सरकार बनाई वह बुराइयां आज भी कायम हैं. उन मुद्दों पर काम नहीं किया गया वे आज भी कायम हैं. किरोड़ी लाल मीणा राज्य सरकार में अच्छा विभाग न मिलने से नाराज चल रहे हैं.

हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री अनिल विज भी नाराज हैं. वह हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडौली के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे थे. प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से उन को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है. इस को पार्टी की नीति के खिलाफ और पार्टी की छवि को खराब करने वाला बताया गया है. ऐसे में पार्टी का अनुशासन टूट रहा है. अब पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही पार्टी पर हमले कर रहे हैं. कमोबेश यह हालत पूरे देश में पार्टी की हो गई है. अब पार्टी अपने ही नेताओं और कार्यकर्ताओं के बोझ को संभाल नहीं पा रही है.

पुरू की सेना के हाथी हो गए हैं भाजपा के जातीय महारथी

जातीय गुटबाजी में संतुलन बनाए रखने के कारण ही मुख्यमंत्री के साथ 2 उपमुख्यमंत्री बनाए गए. उत्तर प्रदेश से निकला यह फार्मूला राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी चला. अब प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव में यह संतुलन फिर से बनाना होगा. राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पहली बार जातीय दबाव महसूस किया जा रहा है. भाजपा के जातीय महारथी अब पुरु की सेना के हाथी जैसे हो गए हैं, जिस के चलते वे अपनी ही पार्टी के लिए खतरा बन गए हैं.

झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पुरु के बीच युद्ध हुआ. पुरु की सेना में बड़ी संख्या में हाथी थे जो दीवार की तरह से सिकंदर की सेना के सामने खड़े हो गए. सिकंदर को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे पुरु की सेना का मुकाबला करे. ऐसे में सिकंदर को एक युक्ति सूझी और तब सिकंदर की सेना ने हाथियों को घेर कर उन पर भाले से हमला किया. एक तीरंदाज ने हाथी की आंख में तीर मारा, जिस से वह बेकाबू हो कर अपनी ही सेना को कुचलने लगा. जिस से पुरु की हार हो गई.

भाजपा में अटलआडवाणी युग की 2004 में हार हुई तो 2014 तक भाजपा को केंद्र की सरकार नसीब नहीं हुई. इस दौर में भाजपा ने जातियों में राष्ट्रवाद और धर्म को जाग्रत करने का काम किया. जिस के बाद एससी और ओबीसी जातियों ने भाजपा को साथ दिया. नतीजा यह हुआ कि भाजपा की न केवल केंद्र में वापसी हुई बल्कि कई प्रदेशों में भाजपा सरकार बनाने में सफल रही.

2024 में विपक्ष जनता को यह समझने में सफल रहा कि अगर भाजपा की 400 से अधिक सीटें आ गईं तो संविधान और आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा. यह बात जनता समझ गई और भाजपा को 240 सीटों से संतोष करना पड़ा. कमजोर होती भाजपा को पार्टी के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी के भीतर के एससी और ओबीसी नेताओं में अपना हक लेने की होड़ लग गई है. जिस जातीय समीकरण को बना कर भाजपा सत्ता तक पहुंची अब वही उस के लिए चुनौती बन गए हैं.

सजग हो गया विपक्ष

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और विपक्ष के बीच मिले वोटों में बहुत अंतर नहीं था. जो भाजपा पहले अजेय समझ जा रही थी उस के बारे में यह सच सामने आ गया कि उस को हराया भी जा सकता है. अब विपक्ष चुनाव दर चुनाव ज्यादा समझदार और आक्रामक हो रहा है जिस से उस के नेताओं में आत्मविश्वास आ गया है. वह एकजुट हो रहा है. चुनाव आयोग को ले कर विपक्ष सचेत हो चुका है. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका को ले कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विस्तार से लिखा. उस से सबक लेते हुए अब बिहार विधानसभा चुनाव के पहले ही विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है जिस से निष्पक्ष चुनाव हो सकें.

अब विपक्षी दल अपने वोटों को बिखरने से रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं. बिहार में राजद और कांग्रेस सहित गैर भाजपाई खेमा इस प्रयास में है कि वोट बिखरने न पाएं. महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एकसाथ आ खड़े हुए हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सपा साथ है. ऐसे में जहां एक तरफ भाजपा में बिखराव दिख रहा है वहीं विपक्ष अपनी पूरी ताकत से एकजुट हो कर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहा है. भाजपा दोहरी मुसीबत में फंस गई है.

विपक्ष के आरोपों से बैकफुट पर भाजपा

2024 के लोकसभा चुनावों ने जहां विपक्ष को ताकत दी वहीं भाजपा को बैकफुट पर ढकेल दिया. इस के बाद भाजपा को वे काम करने पड़ रहे हैं जिन को वह पहले नहीं करती थी. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस के राहुल गांधी को देना पड़ा. राहुल गांधी लगातार भाजपा पर ओबीसी और एससी की उपेक्षा का सवाल उठा रहे थे. ब्यूरोक्रेसी में ओबीसी अफसरों की नियुक्ति पर सवाल कर रहे थे. राहुल गांधी लगातार जातीय गणना की मांग कर रहे थे. यह सवाल पहले भाजपा हंसीमजाक समझ कर टाल देती थी.

2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद भाजपा बैकफुट पर आ गई. उस ने जातीय गणना की मांग मान ली. अब दबाव इस बात का है कि वह पार्टी संगठन में भी ओबीसी को उन का हक देते दिखे. ओबीसी को अब केवल दिखावे वाले पद देने से काम नहीं चलने वाला. जैसे ही संगठन में ओबीसी और एससी नेताओं का बोलबाला बढ़ेगा टी राजा जैसे नेताओं में बेचैनी होगी. भाजपा के शिखर और निर्णायक पदों पर अगड़ी जाति की सोच रखने वालों का बोलबाला है. मजबूरी में उन को ओबीसी और एससी के लोगों को संगठन में रखना पड़ रहा है.

भाजपा चुनाव जीतने के लिए जिस तरह के टोटके करती रहती है वे अब काम नहीं आ रहे हैं. 2019 में लोकसभा चुनावों के पहले पुलवामा अटैक हो गया था. जिस के बाद भाजपा ने राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बना कर वैतरणी पार कर ली थी. अब भाजपा ने पहलगाम हमले के औपरेशन सिंदूर को भुनाने का जब काम किया तो यह मुद्दा टांयटांय फिस्स हो गया.

पुलवामा अटैक के बाद देश के 4 राज्यों गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल और केरल में 5 विधानसभा की सीटों पर चुनाव हुए. इस में से गुजरात की विसादर विधानसभा की सीट पर आम आदमी पार्टी के गोपाल अटालिया चुनाव जीत गए. भाजपा यहां केवल कड़ी सीट पर जीत हासिल कर पाई. जहां उस के उम्मीदवार राजेंद्र चावला चुनाव जीत गए. पंजाब, पश्चिम बंगाल औैर केरल में भाजपा को कोई सफलता नहीं मिली. इस से साफ पता चलता है कि औपरेशन सिंदूर को ले कर भाजपा ने जो सोचा था वह नहीं हो पाया.

भाजपा ने जातीय गणना को भी स्वीकार कर लिया है. यह मुद्दा भी बहुत प्रभावी नहीं होता दिख रहा है. इस से भाजपा के अगड़े नेता नाराज हो रहे हैं. उन को डर है कि अगर जातीय गणना हुई तो एससी और ओबीसी को इस का लाभ मिलेगा. उन को सत्ता में अधिक हिस्सेदारी देनी पड़ेगी. भाजपा में अगड़ेपिछड़ों का जो संघर्ष कल्याण सिंह के दौर में शुरू हुआ था वह एक बार फिर होता दिख रहा है. अब पिछड़े नेता भी मुखर हो कर अगड़ों के सामने खड़े हो गए हैं.

भाजपा की ताकत ही उस की कमजोरी बन गई है. जिस के कारण पार्टी जातीय संघर्ष में फंसती नजर आ रही है. यही जातीय युद्ध उस के पतन का कारण बन सकता है. भाजपा ने जातियों के समीकरण का जो बोझ अपनी पीठ पर लाद लिया था उसी बोझ से अब वह दब रही है. देखने वाली बात यह है कि कब तक उस की रीढ़ की हड्डी इस बोझ को सहन कर पाती है?

वैसे दक्षिणापंथी दल में टूटन पहले भी होती रही है. हिंदू महासभा के बाद भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी का बनना वैसी ही एक का हिस्सा रहा है. भारतीय जनता पार्टी की शुरुआत अटल आडवाणी की जोड़ी के साथ हुई. 2004 में यह जोड़ी फेल हो गई. 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद मोदीशाह की जोड़ी को भी 10 साल से अधिक का समय बीत चुका है. 2024 के लोकसभा चुनाव में इस जोड़ी को झटका लगा है. अब विपक्ष की मजबूत घेराबंदी से भाजपा कैसे खुद को बचाती है यह देखने वाली बात होगी?

USA : चुनाव का हक छीनने को बेचैन ट्रंप भी

USA : भारत की ही तरह अमेरिका में भी राजनीतिक ध्रुवीकरण गहराता जा रहा है. लगातार वहां की संवैधानिक संस्थाओं पर मागावाद का प्रहार हो रहा है, जिस की लगाम खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में है और वे वहां लोकतंत्र को लगातार कमजोर करने की जुगत में रहते हैं.

भारत की तरह अमेरिका में भी राजनीतिक ध्रुवीकरण गहराता जा रहा है. यह धु्रवीकरण कई स्तरों पर दिखाई दे रहा है- राजनीतिक विचारधाराओं, मीडिया, सामाजिक मुद्दों और यहां तक कि वैज्ञानिक तथ्यों पर भी गहरी असहमति दिखाई दे रही है.

जिस तरह भारत में 2 बड़ी राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच वैचारिक मतभेद, नफरत और एकदूसरे पर आरोपोंप्रत्यारोपों की बौछार करने की प्रवृत्ति चरम पर है, उसी तर्ज पर अमेरिका में भी दोनों प्रमुख सियासी पार्टियों रिपब्लिकन और डैमोक्रेट्स के बीच वैचारिक दूरी बढ़ रही है.

रिपब्लिकन और डैमोक्रेटिक पार्टियों के बीच विचारधारा का फासला पिछले कुछ दशकों में बढ़ा है, जिस के चलते देश को सफलतापूर्वक चलाने का उन का आपसी सहयोग चरमरा गया है, खासकर, डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में दोबारा आने के बाद गन कंट्रोल, अबौर्शन, माइग्रेशन, वोटिंग राइट्स आदि मुददों पर विपक्ष ही नहीं, आम अमेरिकी भी ट्रंप सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं.

ट्रंप की बयानबाजी

अमेरिका में नस्लीय असमानता, पुलिस की बर्बरता और श्वेत बनाम गैरश्वेत मुद्दे काफी गर्म हैं. उस पर ट्रंप की शैली और बयानबाजी ने अमेरिकी राजनीति में ध्रुवीकरण को और तेज किया है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नीत रिपब्लिकन पार्टी ध्रुवीकरण की बदौलत उसी तरह सत्ता में मजबूती बनाए रखना चाहती है जैसे भारत में भारतीय जनता पार्टी. दोनों ही देशों में ध्रुवीकरण का खेल शैक्षिक स्तर पर सब से अधिक नजर आने लगा है.

भारत में जहां शिक्षा नीति बिलकुल फेल हो चुकी है, देश के एक बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या निरंतर घटती जा रही है, स्कूलों का विलय कर बच्चों को शिक्षा से दूर किया जा रहा है, वहीं अमेरिका में भी बच्चों की शिक्षा के प्रति कोई खास दिलचस्पी ट्रंप सरकार की नहीं है. अमेरिका में आएदिन स्कूलों में बच्चों द्वारा गोलीबारी किए जाने की खबरें आती रहती हैं.

रिपब्लिकन नेता रूढि़वादी मानसिकता से ग्रस्त हैं. वे स्त्रियों को स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे संघ और भाजपा की मानसिकता स्त्रियों को सिर्फ घर और धर्म के चक्रव्यूह में फंसाए रखने की है. उस के नेता पढ़ेलिखे हों या न हों, मगर पूजापाठी अवश्य हों. बिलकुल यही सोच रिपब्लिकन पार्टी की भी है. रिपब्लिकन उन मतदाताओं का अधिक प्रतिनिधित्व करते हैं जिन के पास कालेज की डिग्री तो नहीं है मगर वे गोरी चमड़ी वाले और जीसस क्राइस्ट में गहरा विश्वास रखने वाले हैं. इस के विपरीत विपक्षी डैमोक्रेट्स प्रामाणिक विशेषज्ञों का पक्ष लेते हैं और शिक्षा व विज्ञान को ज्यादा महत्त्व देते हैं.

मुश्किल दौर में अमेरिका

रिपब्लिकन विश्वविद्यालयों और मीडिया संस्थाओं के प्रति संदेह जताते हैं. डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद बढ़ते ध्रुवीकरण के कारण अमेरिका में विधायी गतिरोध पैदा हो गया है. स्वास्थ्य सेवा, आप्रवासन और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे इस गतिरोध के शिकार बन गए हैं. जाहिर है, ऐसे गतिरोध लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के विश्वास को कम करते हैं और दबाव वाले मुद्दों से निबटने में सरकार की क्षमता को प्रभावित करते हैं.

अमेरिका इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है. आप्रवासन एक बड़ा विभाजनकारी मुद्दा बना हुआ है. ट्रंप प्रशासन ने कई आक्रामक नीतियां लागू की हैं, जिन से इस मसले पर राष्ट्रीय बहस तेज हो गई है और बड़े पैमाने पर ट्रंप सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं. सरकार के आदेश पर अनेक देशों के आप्रवासी लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें जंजीरों में जकड़ कर उन के देश वापस भेजा गया. भारत उन में से एक है.

अनुमान है, आने वाले वक्त में ट्रंप के कार्यकाल में लाखों अवैध आप्रवासियों को अमेरिका से निकाला जाएगा. इस के लिए उन्होंने ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ भी पेश किया है. यह एक व्यापक विधायी प्रस्ताव है, जो इन कदमों के लिए अरबों डौलर आवंटित करता है. इन में सालाना 10 लाख लोगों को अमेरिका से बाहर निकालने और सीमाओं पर दीवार खड़ी करने के लिए धन मुहैया कराना शामिल है.

मतदान का मुद्दा

जिस तरह भारत में चुनाव आयोग ने लोगों की नागरिकता की जांच के नाम पर वोटर लिस्ट से लाखों नागरिकों के नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू की है, बिलकुल उसी तरह अमेरिका में ट्रंप प्रशासन अमेरिकियों से उन के मत का अधिकार छीनने की कोशिश में है.

वर्ष 2017-2021 के बीच भी डोनाल्ड ट्रंप ने मतदान अधिकारों को सीमित करने की कोशिश की थी. इस के लिए उन्होंने ‘मेल इन वोटिंग’ का विरोध किया था, यानी आप चिट्ठी या मेल द्वारा अपने मत का इस्तेमाल नेता को चुनने के लिए नहीं कर सकते. इस के लिए ट्रंप ने तर्क दिए कि मेल द्वारा मतदान धोखाधड़ी को बढ़ावा देता है, जबकि उन के वक्तव्य के पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं था.

दरअसल, 2020 के चुनाव में कोविड-19 के कारण बहुत से लोग मेल से मतदान करना चाहते थे. लेकिन ट्रंप ने इसे ले कर देशभर में अविश्वास फैलाया और मतदाता पहचानपत्र के साथ मतदान केंद्र पर होने वाले मतदान को ही वास्तविक चुनाव करार दिया. उन के इस प्रोपेगेंडा के कारण कई बुजुर्ग, महिलाएं और कोविड से पीडि़त लोग मतदान के अपने हक से वंचित रह गए.

तब डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था, ‘मैं मानता हूं कि बहुत से लोग ईमेल से मतदान में फर्जीवाड़ा करेंगे. मेरा मानना है कि लोगों को मतदाता पहचानपत्र के साथ मतदान करना चाहिए. मैं मानता हूं कि मतदाता पहचानपत्र बहुत महत्त्वपूर्ण है और यही वजह है कि वे मतदाता पहचानपत्र नहीं चाहते क्योंकि वे फर्जीवाड़ा करना चाहते हैं.’

अगस्त 2020 में एसपीएस (डाक सेवा) को फंड देने का ट्रंप ने विरोध किया था, जिस के पीछे असली मकसद मेल-इन वोटिंग को अवरुद्ध करना था. हाल ही में मार्च 2025 में उन्होंने एक कार्यकारी आदेश जारी किया, जिस में फैडरल वोट के लिए नागरिकता प्रमाण की अनिवार्यता और चुनाव के बाद आने वाले मेल-इन बैलेट्स को अमान्य करने जैसे प्रावधान हैं. ट्रंप के इस ई-और्डर को ले कर कई राज्यों ने फंडिंग के दबाव या कानूनी चुनौतियों के चलते मेल-इन वोटिंग को सीमित करने का निर्णय लिया है.

विपक्षी पार्टी के समर्थकों, अल्पसंख्यकों, गरीबों, बुजुर्गों और काले अमेरिकी नागरिकों को मतदान से दूर रखने के लिए ट्रंप आईडी कानून यानी सख्त पहचानपत्र की जरूरत को अनिवार्य करने की कोशिश कर रहे हैं. इस के साथ ही, वहां मतदान केंद्रों की संख्या को भी कम कर दिया गया है. नतीजा यह कि मतदान केंद्र दूरदूर होने से अधिक उम्र के मतदाता और महिलाएं अपने मत का प्रयोग नहीं कर पाएंगे.

तीसरा काम अमेरिका में मतदाता सूची से नागरिकों के नाम हटाने का चल रहा है जैसे यहां बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किया जा रहा है. ट्रंप प्रशासन ने फैडरल और राज्य स्तर पर ऐसी व्यवस्था की है जिस से विरोधी विचारधारा के मतदाताओं को वोट देने से रोका जा सके. ट्रंप प्रशासन नागरिक मताधिकार को सीधे छीनने की दिशा में तो मूव नहीं कर रहा लेकिन संघीय डेटा संग्रह और एसएवीई डेटाबेस को वोटर सूची से जोड़ कर यह प्रक्रिया तैयार की जा रही है.

मतदाता सूचियों में हस्तक्षेप करने की साजिश

गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग यानी डीओजे, ट्रंप प्रशासन के निर्देशन में, कम से कम 9 राज्यों, जैसे न्यू हैम्पशायर, कोलोराडो, मिनेसोटा आदि से उन की पूरी वोटर लिस्ट, सक्रिय और निष्क्रिय मतदाताओं के नामों सहित, मांगी है. यह मांग फैडरल मिड टर्म 2026 की तैयारी के तहत की जा रही है. यह संघीय स्तर पर मतदाता सूचियों में हस्तक्षेप करने की साजिश है.

इस के साथ ही आंतरिक सुरक्षा की एससीआईएस इकाई एसएवीई का दायरा बढ़ाया गया है, ताकि यह एक राष्ट्रीय नागरिकता डेटाबेस के रूप में काम करे. ट्रंप प्रशासन का उद्देश्य इसे नागरिकता सत्यापन में इस्तेमाल करना है, खासकर, वोटर सूची से उन गैरनागरिकों को हटाने के लिए जो दशकों से वहां रह रहे हैं.

ट्रंप ने मार्च 2025 में एक कार्यकारी आदेश जारी किया, जिस में डौक्यूमैंट्री प्रूफ औफ सिटिजनशिप को अनिवार्य करना और मेल-इन वोटों में कड़ाई लाना शामिल है. इस के तहत फैडरल वोटर पंजीकरण फौर्म में नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण (पासपोर्ट/सिटिजन प्रमाणपत्र) अनिवार्य किया गया है. मेल-इन वोटों को तभी स्वीकार किया जाएगा जब वे चुनाव के दिन ही प्राप्त होंगे. ट्रंप के आदेश को अनफौलो करने वाले राज्यों पर संघीय निधि रोकने का प्रावधान किया गया है ताकि राज्य दबाव में इन आदेशों का पालन करें.

लोकतंत्र के लिए खतरा

ट्रंप के फैसले न सिर्फ एक बड़े लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं बल्कि लोगों से उन के सिविल राइट्स छीन रहे हैं. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद ट्रंप ने बिना ठोस सुबूत के बारबार यह दावा किया कि चुनाव ‘चोरी’ हुआ है. इस से जनता का चुनावी प्रक्रिया में विश्वास कमजोर हुआ और लोकतंत्र की नींव, यानी शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण, पर एक अनदेखा हमला हुआ.

6 जनवरी, 2021 को ट्रंप के समर्थकों ने अमेरिकी संसद भवन (कैपिटल हिल) पर हमला किया, जिस में ट्रंप की भड़काऊ भाषण की बड़ी भूमिका मानी जाती है. उस घटना ने भी लोकतांत्रिक संस्थाओं और कानून के शासन पर सीधा हमला किया.

ट्रंप ने अपने कार्यकाल में न्याय विभाग, एफबीआई और अन्य स्वतंत्र एजेंसियों को निजी हितों के लिए प्रभावित करने की कोशिश की. इस से संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वायत्तता पर सवाल उठे. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे भारत में भाजपा नीत केंद्र सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों- सीबीआई, एनआईए या प्रवर्तन निदेशालय का दुरुपयोग अपने हित साधने के लिए करती है.

आलोचकों का मानना है कि ट्रंप की नीतियां अमेरिकी लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने वाली हैं. संवैधानिक संस्थाओं, प्रैस और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर हमले लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त कर सकते हैं.

गौरतलब है कि स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है, जिसे कमजोर करना लोकतंत्र के लिए खतरा है. ट्रंप ने मीडिया को ‘देश का दुश्मन’ कहा और असहमति रखने वाले पत्रकारों पर व्यक्तिगत हमले किए. लोकतंत्र के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिहाज से ये सब बेहद चिंताजनक हैं न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि भारत सहित दुनिया के बाकी लोकतांत्रिक देशों के लिए भी, जो अमेरिका को एक आदर्श के रूप में देखते आए हैं.

Social Story In Hindi : पप्पू प्रसाद का बाघ दर्शन

Social Story In Hindi : पप्पू प्रसाद को एक ही दुख है कि उस ने अब तक जंगल में जिंदा बाघ नहीं देखा. जंगलात की नौकरी करते हुए उसे 20 साल बीत गए लेकिन जंगल में विचरते हुए जिंदा बाघ नहीं देखा. बड़े साहब के साथ क्षेत्रीय दौरे के दौरान वनों का चप्पाचप्पा छान डाला लेकिन पशुराज से आमनेसामने मुलाकात अब तक नहीं हो पाई.

पप्पू प्रसाद के दिवंगत पिता हरिहर प्रसाद वन विभाग में वनरक्षक थे. 16 साल की उम्र में ही पितृवियोग हो जाने पर पप्पू की मां नाबालिग पप्पू को ले कर वन विभाग के बड़े साहब के पास जा कर बोली, ‘‘साहब, अब हमारे घर में रोटी कमाने वाला कोई नहीं रह गया. इस बालक के प्रति आप को कृपा करनी ही होगी.’’

पप्पू की मां बहुत रोई. रोती हुई मां का हाथ पकड़ कर खड़े बेचारे नाबालिग पप्पू को देख कर बड़े साहब की मेमसाहिबा ने उसे वन विभाग में नौकरी दिलाने के लिए बड़े साहब से सिफारिश की.

बड़े साहब ने कहा, ‘‘बच्चा अभी छोटा है, फिलहाल यह लड़का दैनिक मजदूर के तौर पर खलासी का कार्य करता रहे, समय आने पर पक्का कर दिया जाएगा.’’

तभी से पप्पू प्रसाद बड़े साहब के घर पर खलासी का काम करता आ रहा है. जब कभी बड़े साहब जंगल के निरीक्षण के लिए दौरा करते पप्पू साहब का सामान ले कर जीप की पीछे वाली सीट पर बैठ कर साथ जाता था.

पप्पू के पिता हरिहर प्रसाद जब जीवित थे तब वे वनरक्षक चौकी पर सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ ही रहते थे. पप्पू बचपन में हिरण, खरगोश, लोमड़ी, सियार, नील गाय वगैरह देखा करता था. तब भेडि़यों से जंगल के लोग बहुत डरेडरे रहते थे. रात में भेडि़यों की आवाज से सभी लोग भयभीत होते थे क्योंकि पालतू जानवरों के साथसाथ कभीकभी भेडि़ए छोटे बच्चों को भी पकड़ कर ले जाते थे. शाम होते ही हर आंगन में आग जलाई जाती थी और बच्चों को कमरे के अंदर बंद कर दिया जाता था. पप्पू ने इस प्रकार डरावने माहौल में बचपन बिताया था.

जंगल में बाघ तो देखा नहीं, लेकिन पप्पू ने बाघ के बारे में बहुत कुछ सुना था कि जंगल का ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो बाघ से डरता न हो. हर वन्यप्राणी की कोशिश यही रहती है कि बाघ से किस प्रकार बचा रहे. पप्पू ने यह भी जाना कि बाघ जब भी जंगल में घूमताफिरता है तब जंगल के अन्य पशुपक्षी अलगअलग तरह की त्रासदी भरी आवाज निकाल कर एकदूसरे को सचेत किया करते हैं ताकि जंगल के निरीह वन्यजीव अपना और अपने छोटेछोटे बच्चों का बचाव करने का प्रयास कर सकें.

बड़े साहब का खलासी होने के बाद पप्पू प्रसाद की योगेन यादव के साथ दोस्ती हुई. योगेन यादव व्याघ्र संरक्षण परियोजना में वनरक्षक था. योगेन यादव से पप्पू प्रसाद को जानकारी मिली कि जंगल में बाघों की संख्या बहुत कम हो चुकी है. पप्पू की सम?ा में नहीं आया कि सब से शक्तिशाली बाघ का विनाश कैसे हो रहा है? आएदिन तो सुनाई देता है कि गांव में पालतू पशुओं को बाघ मार देता है. बडे़ साहब बहुत परेशान रहते हैं.

एक दिन पप्पू प्रसाद ने बड़े साहब के साथ जंगल में गश्त करते वक्त नदी के किनारे एक मरे हुए बाघ को देखा. बाघ की हड्डियां, उस के नाखून, दांत और जननेंद्रिय निकाल कर कोई ले गया था. आंख, दांत, हड्डीविहीन मरे हुए बाघ को देख कर पप्पू को नहीं लगा कि बाघ बहुत शक्तिशाली प्राणी है.

मरे पशुराज की हालत देख कर पप्पू को दुख हो रहा था. बगल में खड़े योगेन यादव से उस ने फुसफुसा कर पूछा, ‘‘बाघ की ऐसी हालत किस ने बनाई?’’

योगेन धीरे से बोला, ‘‘इस के पीछे बहुत बड़ा गिरोह है,’’ इतना कह कर वह चुप हो गया, क्योंकि मरे बाघ की जांच पड़ताल के लिए नापजोख चल रही थी. पप्पू ने देखा कि मरे बाघ के सामने वाले बाएं पैर का पंजा लोहे के बनाए फंदे में फंसा हुआ था. पंजे का आधे से ज्यादा हिस्सा कट कर फंदे के दोनों फलक के बीच में मजबूती से कसा हुआ था. असहाय बाघ के पैर में फंसे फंदे को निकालने की कोशिश का सुबूत नजदीक की जमीन पर पंजों की निशानी के रूप में था.

गांव वालों से पूछताछ करने पर जानकारी मिली कि कुछ दिन पहले एक बाघ अपने जख्म से रात भर कराहता रहा जिस की आवाज गांव वालों को सुनाई दी. जांचपड़ताल का नतीजा यह निकला कि शिकारी तस्करों ने बाघ के आनेजाने के रास्ते पर लोहे का फंदा छिपा कर रखा था, उस में उस का पैर फंस गया. फंदे में फंसे पैर की तीव्र पीड़ा से बाघ रात भर आर्तनाद करता रहा. बाद में घाव विषाक्त हो जाने से उस की मृत्यु हो गई.

पप्पू सोचने लगा कि तस्कर शिकारी कितने नृशंस हैं कि बाघ जैसे निर्भीक जानवर को निर्ममता से मारते हैं. उस की समझ में यह नहीं आया कि बाघ की हड्डियों, दांतों, नाखूनों तथा जननेंद्रिय को किस ने तथा क्यों निकाला होगा?

जांचपड़ताल में शाम हो चुकी थी. जांचदल के साथ पप्पू वन विश्रामगृह में वापस आया. रात को खाने के लिए योगेन यादव के यहां निमंत्रण था. वहां पर पप्पू ने यह बात छेड़ी, ‘‘मरे हुए बाघ की हड्डियों, दांतों को किस ने निकाला होगा?

योगेन यादव ने निराशा भरे भाव से कहा, ‘‘तस्कर शिकारियों ने.’’

फिर गले में भरी खराश को निकालते हुए योगेन ने बताना शुरू किया, ‘‘बाघ तस्कर बडे़ ही शातिर होते हैं. वे लोग बंजारों के रूप में जंगल के किनारे डेरा डालते हैं और सरल वनवासियों से बाघों के बारे में सूचना जमा करते हैं. समुचित जानकारी के बाद वे बाघ के आवागमन के रास्ते पर लोहे का फंदा बिछा कर या बंदूक की गोली से उन का शिकार करते हैं.’’

बीच में पप्पू ने फिर पूछा, ‘‘बाघों की हड्डियों, दांतों, नाखूनों एवं जननेंद्रिय क्यों निकाली जाती हैं?’’

योगेन यादव ने उदासी भरी आवाज में बताया, ‘‘यही तो सब से बड़ी विडंबना है. विदेशों में यह माना जाता है कि बाघ की हड्डियां, नाखून, दांत तथा जननेंद्रिय शक्ति से भरे रहते हैं और इन सब से बनी शक्तिवर्धक दवाएं पीने से आदमी भी बाघ की तरह जोशीले, शक्तिशाली एवं बलवान हो जाएंगे. वहां बाघों की हड्डी, चमड़ा आदि का बहुत बड़ा बाजार है. शिकारी तस्कर पैसा कमाने के लिए मरे हुए बाघ की खाल, हड्डियां आदि चोरी से विदेशों में भेजते हैं.’’

पप्पू यह सुन कर अचंभित हो गया. बाघ जैसे शक्तिशाली जीव के प्रति उस को दया आने लगी. दूसरे दिन सुबह जब बड़े साहब की जीप में पीछे बैठ कर पप्पू वापस जा रहा था तब उस के दिल में यह विचार आया कि बाघ को चोरीछिपे मारने वाले तस्कर तो बाघ से भी ज्यादा बुद्धिमान एवं बलवान हैं. तब उन तस्करों की हड्डियों आदि अंगप्रत्यंगों से अधिक शक्तिशाली दवा बनाने की सोच मनुष्य के दिमाग में क्यों नहीं आई.

उस बार भी विषादग्रस्त पप्पू का मन जिंदा बाघ न दिखाई पड़ने पर खेद से भर गया.

एक दिन बड़े साहब के पास खबर आई कि गांव के जंगल की सीमा पर चरवाहे के छप्पर के नजदीक एक मरा बाघ मिला है. बड़े साहब तुरंत घटना की तफतीश करने के लिए निकल पड़े. जीप में पीछे बैठे पप्पू को लगा कि शायद इस बार मरे बाघ के साथसाथ वह एक जिंदा बाघ का भी दर्शन कर ले. दिनभर जीप से चलने के बाद बड़े साहब जब मरे बाघ के पास पहुंचे तब पप्पू प्रसाद ने देखा कि योगेन यादव पहले से ही वहां पहुंच चुका था और बाघ के मरने से संबंधित सूचनाएं जमा कर चुका था.

योगेन यादव के अनुसार बाघ ने कुछ दिन पहले चरवाहों की एक भैंस को मार डाला था. गांव वाले चरवाहों ने मृत भैंस के मांस में विषाक्त पदार्थ डाल कर बाघ को मार डाला. पप्पू को यह जानकारी मिली कि बाघ एक बार शिकार करने के बाद कई दिन तक घूमफिर कर उसी शिकार को खाता रहता है. बाघ की इस आदत के बारे में चरवाहों को अच्छी तरह जानकारी थी. गांव वालों ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया.

इसी दौरान योगेन यादव को एकांत में मिलने पर पप्पू ने पूछा, ‘‘गांव वाले ऐसी स्थिति में बाघ को मारते क्यों हैं? क्या उन को जानकारी नहीं है कि हमारे देश की धरोहर इन बाघों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है?’’

योगेन ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘भैया, बाघ की संख्या कम हो या बढ़े इस से गरीब चरवाहों को क्या लेनादेना? उन के रोजगार के सीमित साधनों में से एक भैंस का मर जाना कितना नुकसानदेह है, यह बात उन के सिवा और कोई नहीं समझ सकता.’’

पप्पू प्रसाद के मन में यह सुन कर विषाद छा गया. उस को लगा कि जिस दर से बाघों की संख्या कम होती जा रही है उस को देखते हुए अब जीवित बाघ का दर्शन नामुमकिन है.

बड़े साहब के साथ मुख्यालय वापसी के समय पप्पू के मन में आया कि क्यों न बाघ परियोजना की आय से ग्रामीण गरीबों को जोड़ा जाए जिस से उन को अपने जंगलों में रह रहे बाघों के प्रति लगाव हो, लेकिन वह तो महज एक चपरासी है. उस की बात कौन सुनेगा?

एक बार तो जंगल के बीचोंबीच रेल लाइन के ऊपर एक बाघिन और उस के 2 बच्चे टे्रन से कट कर मरने की जांच में बड़े साहब के साथ पप्पू भी जंगल गया था. दरअसल, अंगरेजों के समय में जंगल से लकड़ी ढोने के लिए यह रेल लाइन बनाई गई थी जो बाद में वनवासी यात्रियों के लिए इस्तेमाल होने लगी. अब हर वर्ष रेलगाड़ी से कुचल कर कई जंगली जानवर मर जाते हैं. योगेन यादव ने यह भी बताया कि टे्रन के आनेजाने और इंजन की आवाज से जंगली जानवरों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और इस का उन की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है.

एक बार बड़े साहब के परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए जीप में पीछे बैठ कर पप्पू जंगल गया. उस पार्टी में बड़े साहब के साथ उन का बेटा और मेमसाहिबा भी थीं. यह तय हुआ कि हाथी पर सवार हो कर बड़े साहब, मेमसाहिबा और उन का बेटा दलदली क्षेत्र में जाएंगे. बड़े साहब के बेटे को संभालने के लिए पप्पू को भी हाथी पर जाने का मौका मिला.

इस प्रकार घूमतेघूमते कब दिन ढल गया किसी को पता ही नहीं चला. सूर्यास्त के वक्त हाथी के महावतों के बीच में कुछ शोर सा उठा. फुसफुसाहट से पप्पू को पता चला कि दलदली बेंत के जंगल के बीच कोई बाघ लेटा है. सभी लोग हाथियों पर बैठ कर सांस थामे बाघ के दर्शन के लिए प्रतीक्षा करने लगे. हाथियों को भी बाघ के नजदीक होने का आभास हुआ. वे बारबार अपनी सूंड ऊंची कर हवा में बाघ की गंध पा कर उस की मौजूदगी का एहसास करने लगे.

पप्पू के लिए समस्या यह थी कि बाघ हाथी के सामने की ओर छिपा था. बड़े साहब और मेमसाहिबा सामने बैठी थीं. बाघ का स्पष्ट रूप से दर्शन हो नहीं सकता था. जब सभी लोग बाघ के बारे में फुसफुसा रहे थे तभी पप्पू ने इधरउधर झांका, क्योंकि वह बाघ दर्शन का यह अवसर कतई खोना नहीं चाहता था. उधर शाम की वेला थी. सूर्यास्त हो चुका था. निशब्द अंधकार धीरेधीरे छा रहा था. कोई उपाय न देख कर पप्पू हाथी पर खड़ा हो गया. तब बेंतों के जंगलों में एक पूंछ हिलती हुई दिखाई दी. पप्पू के खड़े होते ही बड़े साहब ने जोर से धमकी दी और पूरी पार्टी वापस चल दी. धमकी से आहत पप्पू ने अपने मन को भरोसा दिया, ‘‘जंगल के अंधेरे में चेहरा छिपा कर जो जीव अपने अस्तित्व का संकेत पूंछ हिला कर देता है उसी का नाम बाघ है.’’ Social Story In Hindi 

Family Story In Hindi : ठीक हो गए समीकरण

Family Story In Hindi : ‘प्रैक्टिकल होने का क्या फायदा? लौजिक बेकार की बात है. प्रिंसिपल जीवन में क्या दे पाते हैं? सिद्धांत केवल खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द होते हैं, जो हमेशा डरडर कर जीवन जीते हैं. सचाई, ईमानदारी सब किताबी बातें हैं. आखिर इन का पालन कर के तुम ने कौन से झंडे गाड़ लिए,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और उसे लगा जैसे वह किसी कठघरे में खड़ी है. उस के जीवन यहां तक कि उस के वजूद की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. सारे समीकरण गलत व बेमानी साबित करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘जो तुम कमिटमैंट की बात करती हो वह किस चिडि़या का नाम है… आज के जमाने में कमिटमैंट मात्र एक खोखले शब्द से ज्यादा और कुछ नहीं है. कौन टिकता है अपनी बात पर? अपने हित की न सोचो तो अपने सगे भी धोखा देते हैं और तुम हो कि सारी जिंदगी यही राग अलापती रहीं कि जो कहो, उसे पूरा करो.’’

‘‘तुम कहना चाहते हो कि झूठ और बेईमान ही केवल सफल होते हैं,’’ सुकांत की

इतनी कड़वी बातें सुनने के बावजूद वह उस की संकीर्ण मानसिकता के आगे झुकने को तैयार नहीं थी. आखिर कैसे वह उस की जिंदगी के सारे फलसफे को झुठला सकता है? जिस आदमी को उस ने अपनी जिंदगी के 25 साल दिए हैं, वही आज उस का मजाक उड़ा रहा है, उस की मेहनत, उस के काम और कबिलीयत सब को इस तरह से जोड़घटा रहा है मानो इन सब चीजों का आकलन कैलकुलेटर पर किया जाता हो. हालांकि जिस तरह से सुकांत की कनविंस व मैनीपुलेट करने की क्षमता है, उस के सामने कुछ पल के लिए तो उस ने भी स्वयं को एक फेल्योर के दर्जे में ला खड़ा किया था.

‘‘अगर तुम ने यह ईमानदारी और मेहनत का जामा पहनने के बजाय चापलूसी और डिप्लोमैसी से काम लिया होता तो आज अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रही होती. सोचो तो उम्र के इस पड़ाव पर तुम कहां हो और तुम से जूनियर कहां निकल गए हैं. अचार डालोगी अपनी काबिलीयत का जब कोई पूछने वाला ही नहीं होगा,’’ सुकांत के चेहरे पर एक बीभत्सता छा गई थी. लग रहा था कि आज वह उस का अपमान करने को पूरी तरह से तैयार था. अपनी हीनता को छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था उस के लिए कि वह उस के सम्मान के चीथड़े कर दे.

‘‘फिर तो तुम्हारे हिसाब से मैं ने जो ईमानदारी और पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे साथ अपना रिश्ता निभाया, वह भी बेमानी है. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ उस ने थोड़ी तलखी से कहा.

‘‘मैं रिश्ते की बात नहीं कर रहा. दोनों चीजों को साथ न जोड़ो. मैं तुम्हारे कैरियर के बारे में बात कर रहा हूं,’’ सुकांत जैसे हर तरह से मोरचा संभाले था.

‘‘क्यों, यह बात तो हर चीज पर लागू होनी चाहिए. तुम अपने हिसाब से जब चाहो मानदंड तय नहीं कर सकते… और जहां तक मेरी बात है तो मैं अपने से संतुष्ट हूं खासकर अपने कैरियर से. तुम ने कभी न तो मुझे मान दिया है और न ही दे सकते हो, क्योंकि तुम्हारी मानसिकता में ऐसा करना है ही नहीं. किसे बरदाश्त कर सकते हो तुम,’’ न जाने कब का दबा आक्रोश मानो उस समय फूट पड़ा था. वह खुद हैरान थी कि आखिर उस में इतनी हिम्मत आ कहां से गई.

‘‘ज्यादा बकवास मत करो नीला, कहीं मेरा धैर्य न चुक जाए,’’ बौखला गया था सुकांत. इतना सीधा प्रहार इस से पहले नीला ने उस पर कभी नहीं किया था.

‘‘तुम्हारा धैर्य तो हमेशा बुलबुलों की तरह धधकता रहा है… मारोगे? गालियां दोगे? इस के सिवा तुम कर भी क्या सकते हो? अच्छा यही होगा हम इस बारे में और बात न करें,’’ नीला बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. फायदा भी कुछ नहीं था. सुकांत जब पिछले 24 सालों में नहीं बदला तो अब क्या बदलेगा. जो अपनी पत्नी की इज्जत करना न जानता हो, उस से बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था.

नीला को बस इसी बात का अफसोस था कि वह अपने बेटे को सुकांत के इन्फलुएंस से बचा नहीं पाई थी. पता नहीं क्यों नीरव को हमेशा लगता था कि पापा ही ठीक हैं. संस्कारों की जो पोटली उस ने बचपन में नीरव को सौंपी थी वह उस ने बड़े होने के साथ ही कहीं दुछती पर पटक दी थी. उस के बाद उसे कभी खोलने की कोशिश नहीं की. वह बहुत समझाती कि नीरव खुद अपनी आंखों से दुनिया देखो, पापा के चश्मे से नहीं. पर वह भी उस की बेइज्जती कर देता. उस की बात अनसुनी कर पापा के खेमे में शामिल हो जाता. वह मनमसोस कर रह जाती. स्कूलकालेज और उस के बाद अब नौकरी में भी वह पापा के बताए रास्ते पर ही चल रहा है.

अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही थी.

उस पीड़ा को वह दिनरात सह रही थी और नीरव की जिंदगी को ले कर ही वह उस समय सुकांत से लड़ पड़ी थी. विडंबना तो यह थी कि नीरव की बात करने के बजाय सुकांत उस की जिंदगी के पन्नों को ही उलटनेपलटने लगा था. यह सच था कि वह डिप्लोमैसी से सदा दूर रही और सिर्फ काम पर ही उस ने ध्यान दिया और इस वजह से वह बहुत तेजी से उन लोगों की तुलना में कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाई जो खुशामद और चालाकी की फास्ट स्पीड ट्रेन में बैठ आगे निकल गए थे. लेकिन उसे अफसोस नहीं था, क्योंकि उस की ईमानदारी ने उसे सम्मान दिलाया था.

कई बार सुकांत के रवैए को देख कर उस का भी विश्वास डगमगा जाता था पर वह संभल जाती थी या शायद उस की प्रवृत्ति में ही नहीं था किसी को धोखा देना.

‘‘और जो तुम नीरव को ले कर मुझे हमेशा ताना मारती रहती हो न, देखना एक दिन वह बहुत तरक्की करेगा. सही राह पर चल रहा है वह. बिलकुल वैसे ही जैसे आज के जमाने की जरूरत है. लोगों को धक्का न दो तो वे आप को धकेल कर आगे निकल जाते हैं.’’

नीला का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए और उस से कहे कि वह नीरव को मुहरा न बनाए. नीला को परास्त करने का मुहरा. सुकांत उसे देख रहा था मानो उस का उपहास उड़ा रहा हो.

कितनी देर हो गई है, नीरव क्यों नहीं आया अब तक. परेशान सी नीला बरामदे के चक्कर लगाने लगी. रात के 10 बज रहे थे. मोबाइल भी कनैक्ट नहीं हो रहा था उस का. मन में अनगिनत बुरे विचार चक्कर काटने लगे. कहीं कुछ हो तो नहीं गया… औफिस में भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. सुकांत को तो शराब पीने के बाद होश ही नहीं रहता था. वह सो चुका था.

अचानक नीला का मोबाइल बजा. कोई अंजान नंबर था. फोन रिसीव करते हुए उस के हाथ थरथराए.

‘‘नीरव के घर से बोल रहे हैं?’’

नीला के मन की बुरी आशंकाएं फिर से सिर उठाने लगीं, ‘‘क्या हुआ उसे, वह ठीक तो है न? आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस का स्वर कांप रहा था.

‘‘वैसे तो वे ठीक हैं, पर फिलहाल जेल में हैं, उन्हें अरैस्ट किया गया है. अपनी कंपनी में कोई घोटाला किया है उन्होंने. कंपनी के मालिक के कहने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया है.’’

तभी लाइन पर नीरव के दोस्त समर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आंटी मैं हूं नीरव के साथ. बस आप अंकल को भेज दीजिए. उस की जमानत हो जाएगी.’’

पूरी रात जेल में बीती उन तीनों की. नीला को नीरव को सलाखों के पीछे खड़ा देख लग रहा था कि वह सचमुच एक फेल्योर है. हैरानी की बात थी कि सुकांत एकदम चुप थे. न नीरव से, न ही नीला से कुछ कहा, बस उस की जमानत कराने की कोशिश में लगे रहे.

नीला को लगा नीरव को कुछ भलाबुरा कहना ठीक नहीं होगा. उस के चेहरे पर पछतावा और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी. शायद मां ने उसे जो ईमानदारी का पाठ बचपन में सिखाया था, उसे ही वह आज मन ही मन दोहरा रहा था.

शाम हो गई थी उन्हें लौटतेलौटते. अपने को घसीटते हुए, अपनी सोच के दायरों में

चक्कर काटते हुए तीनों ही इतने थक चुके थे कि उन के शब्द भी मौन हो गए थे या शायद कभीकभी चुप्पी ही सब से बड़ा मरहम बन जाती है.

‘‘मुझे माफ कर दो मां,’’ नीरव उस की गोद में सिर रख कर सुबक उठा.

‘‘तू क्यों माफी मांग रहा है? गलती तो मेरी है. मैं ने ही तेरे मन में बेईमानी के बीज बोए, तुझे तरक्की करने के गलत रास्ते पर डाला. आज जो भी कुछ हुआ उस का जिम्मेदार मैं ही हूं और नीला मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं. सारी उम्र तुम्हें तिरस्कृत करता रहा, तुम्हारा उपहास उड़ाता रहा. सारे समीकरण गलत साबित कर दिए थे मैं ने. प्रिंसिपल ही जीवन में सब कुछ होते हैं, सिद्धांत खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द नहीं वरन जीवन जीने का तरीका है. सचाई, ईमानदारी किताबी बातें नहीं हैं,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और नीला की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे.

नीरव को जब उस ने सीने से लगाया तो लगा सच में आज उस की ममता जीत गई है. उस का खोया बेटा उसे मिल गया है. सारे समीकरण ठीक हो गए थे उस की जिंदगी के. Family Story In Hindi 

Hindi Love Stories : सच्चा प्रेम

Hindi Love Stories : कनाट प्लेस की उस दसमंजिली इमारत की नौवीं मंजिल पर अपने औफिस में बैठे प्रताप ने घड़ी पर नजर डाली. रात के आठ बज रहे थे. वैसे तो वह शाम सात, साढ़े सात बजे तक औफिस से निकल जाता था, लेकिन आज नवीन ने आने के लिए कहा था, इसलिए वह औफिस में बैठा उसी का इंतजार कर रहा था.

नवीन की अभी नईनई शादी हुई थी. उसी के उपलक्ष्य में आज उस ने पीनेपिलाने का इंतजाम किया था.

आखिर साढ़े आठ बजे नवीन आया. उस के साथ अश्विनी और राजन भी थे. नवीन ने नीचे से ही प्रताप को फोन किया, तो वह नीचे आ गया था.

जनवरी का महीना और फिर हलकीफुलकी बूंदाबांदी होने से ठंड एकदम से बढ़ गई थी. शाम होते ही कोहरे ने भी अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया था.

प्रताप के नीचे आते ही नवीन ने कहा, “यार, जल्दी गाड़ी निकाल. ठंड बहुत है…”

प्रताप को भी ठंड लग रही थी. उस ने जैकेट का कौलर खड़ा कर के कान ढकने का प्रयास किया. फिर दोनों हथेलियां रगड़ते हुए पार्किंग की ओर बढ़ गया. उस के गाड़ी लाते ही तीनों जल्दीजल्दी गाड़ी में घुस गए. गाड़ी बिल्डिंग के गेट तक पहुंचती, उस के पहले ही तीनों ने तय कर लिया कि कहां खानापीना होगा.
बिल्डिंग के गेट से गाड़ी सड़क पर आई, तो सड़क पर वाहनों की रेलमपेल थी. धीरेधीरे चलते हुए वे एक शराब की दुकान पर पहुंचे. शराब खरीदने के बाद उन्होंने एक रेस्टोरेंंट से खाना पैक कराया और चल पड़े राजन के घर की ओर.

राजन वहीं करीब ही रहता था. गाड़ी इमारत के नीचे खड़ी कर सभी राजन के फ्लैट में पहुंच गए.

राजन उन दिनों अकेला ही था, इसलिए उस का घर अस्तव्यस्त था. उस ने पानी वगैरह का इंतजाम किया और फिर सभी पीने बैठ गए. दोदो पैग गले से नीचे उतरे, तो सब के मुंह खुलने लगे.

नवीन ने प्रताप के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, “यार प्रताप, तुझे भाभी की याद नहीं आती?”

“मुझे छोड़ कर चली गई. उस की याद करने से क्या फायदा…” प्रताप ने उदास हो कर कहा.

“क्या अब वह वापस नहीं आ सकती?” अश्विनी ने पूछा.

“यदि उसे वापस आना होता, तो जाती ही क्यों?” सिगरेट सुलगाते हुए प्रताप ने कहा.

शराब के साथ इसी तरह की बातों में किसी को समय का भी खयाल नहीं रहा. शराब खत्म हुई, तभी उन्हें खाने का खयाल आया. तब प्रताप ने कहा, “यार जल्दी करो. बहुत देर हो गई.”

“तू तो ऐसे कह रहा है, जैसे घर में बीवी तेरा इंतजार कर रही है.”

“भई बीवी नहीं है तो क्या हुआ, ल्यूसी तो है. वैसे भी दो दिनों से वह ठीक से खाना नहीं खा रही है,” प्रताप ने बाहर की ओर देखते हुए कहा.

फिर जल्दीजल्दी खाना खा कर प्रताप चलने के लिए तैयार हुआ. अश्विनी और नवीन का राजन के यहां ही रुकने का प्रोग्राम था. वे प्रताप को भी रोक रहे थे, लेकिन उसे तो ल्यूसी की चिंता थी.

प्रताप नीचे आया, तो वातावरण में कोहरे की सफेद चादर फैल गई थी. ठंड भी बहुत तेज थी. प्रताप ने पीछे की सीट पर रखे औफिस बैग से टोपी निकाल कर लगाई और घर की ओर चल पड़ा. सड़कें सूनी थीं, फिर भी कोहरे की वजह से वह गाड़ी बहुत तेज नहीं चला पा रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते उसे रात के 1 बज गए. नोएडा के सेक्टर 56 में साढ़े तीन सौ गज में बनी उस की कोठी में अंधेरा छाया था. उस ने गेट का ताला खोला, गाड़ी अंदर की. फिर घर का ताला खोल कर अंदर घुसते ही आवाज लगाई, “ल्यूसी… ल्यूसी…”

उस के ये शब्द दीवारों से टकरा कर वापस आ गए.
“ल्यूसी… ल्यूसी… मैं यहां हूं,” कहते हुए प्रताप ड्राइंगरूम से अंदर कमरे की ओर बढ़ा, तो उस ने महसूस किया कि किचन से ‘कूं… कूं…’ की आवाज आ रही है. उस ने किचन में जा कर देखा, तो ल्यूसी उस तेज ठंड में भी पैर फैलाए लेटी थी.

प्रताप ने उसे सहलाते हुए कहा, “तू यहां है?”

ल्यूसी ने गरदन उठा कर अधखुली आंखों से प्रताप की ओर देखा, लेकिन उठी नहीं. ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस में उठने की शक्ति नहीं रह गई है. प्रताप उस की बगल में बैठ गया. उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “लगता है, आज तू ने कुछ खाया नहीं है.”

ल्यूसी बिना कुछ बोले गरदन नीची कर आंखें बंद कर ली. प्रताप ने उस की गरदन पर हाथ रख कर कहा, “इस तरह नाराज नहीं होते. चल, मैं तुझे खाना खिलाता हूं.”

ल्यूसी ने कोई हरकत नहीं की. प्रताप ने ध्यान से देखा, तो उसे लगा कि ल्यूसी की सांसें भारी हैं. उस की खुली निश्चल आंखों के खालीपन ने उसे द्रवित कर दिया. उस का नशा गायब हो गया. कपड़े बदलने का इरादा छोड़ कर वह बड़बड़ाया, “लगता है, तुझे डाक्टर के पास ले जाना होगा. मुझे पता है, अब तू कुछ बोलेगी नहीं.”

ल्यूसी ने धीरे से ‘कूं… कूं…’ किया. प्रताप की चिंता दोगुनी हो गई. वह बड़बड़ाया, ‘इसे डाक्टर के पास तो ले ही जाना पड़ेगा.’

डाक्टर उस का परिचित था. ल्यूसी को गाड़ी में ले कर वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. ल्यूसी को देखने के बाद डाक्टर ने कहा, “प्रताप, लगता है, इसे न्यूमोनिया हो गया है. इसे यहीं छोड़ दो, हमारा नौकर इस की देखभाल कर लेगा.”

प्रताप ल्यूसी का सिर चूम कर लौट आया. कपड़े उतार कर वह बेड पर लेटा, तो रात के ढाई बज रहे थे. इतनी भागदौड़ के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी. विरह की वह रात बड़ी लंबी लग रही थी.

वह उठ कर बैठ गया. आज वह एकदम अकेला था. उस की ओर कोई भी देखने वाला नहीं था. उसे कोई प्यार करने वाला भी नहीं था. बिना किसी के जीना भी कोई जीना है. कोई तो चाहने वाला होना ही चाहिए, चाहे वह जानवर ही क्यों न हो. कोई साथ होता है, तो आनंद से जीवन बीतता है. वह लेट गया. ल्यूसी की याद में करवटें बदलता रहा. बेचैन मन में ल्यूसी की याद आती रही. वह सोना चाहता था, पर ल्यूसी की यादें सोने नहीं दे रही थीं. तभी टेलीफोन की घंटी बजी. वह फट से उठ कर बैठ गया. झट से रिसीवर उठा कर कान से इस तरह लगाया, जैसे किसी की आवाज सुनने को उतावला हो.

“प्रताप… प्रताप…” उसे विषादयुक्त स्वर सुनाई दिया.

“जी…” सामने वाले व्यक्ति की आवाज प्रताप को परिचित लगी. लेकिन यह आवाज काफी दिनों बाद उसे सुनाई दी थी.

“इतनी रात को फोन करने के लिए माफ करना?”

“ठीक है,” प्रताप से वह बात करना चाहता है, यह जान कर उसे प्रसन्नता हुई.
“एक बैड न्यूज है.” सामने वाले व्यक्ति ने कहा.

“बैड न्यूज…?” आवाज में आशंका उपजी. हृदय धड़का, “क्या है बैड न्यूज…?”

“तुम्हारी पत्नी…” सामने वाले की आवाज धीमी पड़ गई.

“मेरी पत्नी…?”

“मेरा मतलब है, तुम्हारी एक्स पत्नी अब इस दुनिया में नहीं रही…” कहते हुए सामने वाले व्यक्ति भी आवाज लड़खड़ा गई.
प्रताप चुप रह गया. उस की आंखों के सामने अंतिम बार देखा गया अनुपमा का चेहरा उभर आया. अनुपमा अब इस दुनिया में नहीं रही.

प्रताप के चुप रह जाने पर सामने वाला व्यक्ति बोला, “प्रताप, तुम ठीक तो हो?”

“हां, मैं ठीक हूं, फोन करने के लिए धन्यवाद,” बात को आगे न बढ़ाते हुए प्रताप ने फोन रख दिया. एकांत और अकेलेपन ने उसे फिर घेर लिया. वह क्या मिस कर रहा, किस से कहे. ‘सुन कर उसे बहुत दुख हुआ’, जैसे शब्द भी वह नहीं कह पाया था. उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ. इस का मतलब वह बदल गया है. अब अनुपमा के प्रति न उस के मन में प्रेम था, न तिरस्कार. इसलिए वह क्या कहे. इस संसार में आने वाला हर कोई जाता है. उस का अनुपमा से पहले ही संबंध विच्छेद हो चुका था. जीवन का एक खूबसूरत मोड़ दिखा कर वह गायब हो गई थी. अब तो ल्युसी ही उस के जीवन में सबकुछ थी.

प्रताप के दिल से आवाज आई. अनुपमा के लिए अपने हृदय के किसी कोने में थोड़ाबहुत प्रेम खोजना चाहिए. उस की मृत्यु का उसे दुख तो मनाना ही चाहिए. इस के लिए उसे थोड़ा रोना चाहिए. कम से कम आंखें तो नम कर ही लेनी चाहिए. आखिर तीन साल वह उस के साथ रही थी. उस के साथ कुछ रेखाएं तो खींची थीं, भले ही चित्र नहीं बन पाया. लोग दूसरे की मृत्यु पर ही दुखी होते हैं. अनुपमा तो कभी उस की अपनी थी. मृत्यु पर शोक प्रकट करने की जो हमारे यहां परंपरा है, उसे निभाना ही चाहिए. वह इनसान है, इसलिए उस के अंदर इनसानियत तो होनी ही चाहिए. इतने प्रयास के बाद भी अंदर से ऐसा भाव नहीं उपजा कि आंखें नम हो जातीं. वह लाचारी का अनुभव करने लगा. इस बेरुखी का उपाय वह खोजने लगा. अनुपमा के लिए थोड़े आंसू हृदय से निकालने के लिए वह प्रयास करता रहा, पर सफल नहीं हुआ. इसी कशमकश में वह करवट बदलता रहा. ऐसे में ही उस की आंखें लग गईं, तो सुबह फोन की घंटी बजने पर खुलीं. आंखों की पलकें भारी थीं. काफी कोशिश के बाद खुलीं तो देखा धूप निकल आई थी.

जम्हाई लेते हुए प्रताप ने रिसीवर उठा कर कान से लगाते हुए कहा, “हैलो?”

“प्रताप…” सामने वाले ने कहा, “लगता है, फोन की घंटी सुन कर उठे हो.”

“कोई बात नहीं डाक्टर साहब, दरअसल, रात सोने में देर हो गई थी न. अब ल्यूसी की तबीयत कैसी है?” प्रताप ने पूछा.

“प्रताप, ल्युसी तो नहीं रही. काफी प्रयास के बाद भी मैं उसे नहीं बचा सका.”

“हे भगवान…”

“प्रताप… प्रताप…”
लेकिन प्रताप तो खामोश. उस का हृदय जोर से धड़क उठा. उस की देह उस ठंड में भी पसीने से भीग गई. रिसीवर उस के हाथ से छूट गया. उस का सिर जैसे चकरा रहा था. वह वहीं पड़ी कुरसी पर बैठ गया. दोनों हथेलियां उस ने आंखों पर रख लीं. आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. फिर वह फफक कर रो पड़ा.  Hindi Love Stories

Romantic Story in Hindi : टीचर – क्या था रवि और सीमा का नायाब तरीका?

Romantic Story in Hindi : जिस सुंदर, स्मार्ट महिला को मैं रहरह कर देखे जा रहा था, वह अचानक अपनी कुरसी से उठ कर मेरी तरफ मुसकराती हुई बढ़ी तो एअरकंडीशंड बैंकेट हौल में भी मुझे गरमी लगने लगी थी.

मेरे दोस्त विवेक के छोटे भाई की शादी की रिसैप्शन पार्टी में तब तक ज्यादा लोग नहीं पहुंचे थे. उस महिला का यों अचानक उठ कर मेरे पास आना सभी की नजरों में जरूर आया होगा.

‘‘मैं सीमा हूं, मिस्टर रवि,’’ मेरे नजदीक आ कर उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय दिया. मैं उस के सम्मान में उठ खड़ा हुआ. फिर कुछ हैरान होते हुए पूछा, ‘‘आप मुझे जानती हैं?’’ ‘‘मेरी एक सहेली के पति आप की फैक्टरी में काम करते हैं. उन्होंने ही एक बार क्लब में आप के बारे में बताया था.’’

‘‘आप बैठिए, प्लीज.’’

‘‘आप की गरदन को अकड़ने से बचाने के लिए यह नेक काम तो मुझे करना ही पड़ेगा,’’ उस ने शिकायती नजरों से मेरी तरफ देखा पर साथ ही बड़े दिलकश अंदाज में मुसकराई भी.

‘‘आई एम सौरी, पर कोई आप को बारबार देखने से खुद को रोक भी तो नहीं सकता है, सीमाजी. मुझे नहीं लगता कि आज रात आप से ज्यादा सुंदर कोई महिला इस पार्टी में आएगी,’’ उस की मुसकराने की अदा ही कुछ ऐसी थी कि उस ने मुझे उस की तारीफ करने का हौसला दे दिया.

‘‘कुछ सैकंड की मुलाकात के बाद ही ऐसी झूठी तारीफ… बहुत कुशल शिकारी जान पड़ते हो, रवि साहब,’’ उस का तिरछी नजर से देखना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा गया.

‘‘नहीं, मैं ने तो आज तक किसी चिडि़या का भी शिकार नहीं किया है.’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इतने भोले लगते तो नहीं हो. क्या आप की शादी हो गई है?’’

‘‘हां, कुछ महीने पहले ही हुई है और तुम्हारे पूछने से पहले ही बता देता हूं कि मैं अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट व खुश हूं.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस, रियली.’’

‘‘जिस को घर का खाना भर पेट मिलता हो, उस की आंखों में फिर भूख क्यों?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांकते हुए पूछा.

‘‘कभीकभी दूसरे की थाली में रखा खाना ज्यादा स्वादिष्ठ प्रतीत हो तो इनसान की लार टपक सकती है,’’ मैं ने भी बिना शरमाए कहा.

‘‘इनसान को खराब आदतें नहीं डालनी चाहिए. कल को अपने घर का खाना अच्छा लगना बंद हो गया तो बहुत परेशानी में फंस जाओगे, रवि साहब.’’

‘‘बंदा संतुलन बना कर चलेगा, तुम फिक्र मत करो. बोलो, इजाजत है?’’

‘‘किस बात की?’’ उस ने माथे पर बल डाल लिए.

‘‘सामने आई थाली में सजे स्वादिष्ठ भोजन को जी भर कर देखने की? मुंह में पानी लाने वाली महक का आनंद लेने की?’’

‘‘जिस हिसाब से तुम्हारा लालच बढ़ रहा है, उस हिसाब से तो तुम जल्द ही खाना चखने की जिद जरूर करने लगोगे,’’ उस ने पहले अजीब सा मुंह बनाया और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘क्या तुम वैसा करने की इजाजत नहीं दोगी?’’ उस की देखादेखी मैं भी उस के साथ खुल कर फ्लर्ट करने लगा.

‘‘दे सकती हूं पर…’’ वह ठोड़ी पर उंगली रख कर सोचने का अभिनय करने लगी.

‘‘पर क्या?’’

‘‘चिडि़या को जाल में फंसाने का तुम्हारा स्टाइल मुझे जंच नहीं रहा है. मन पर भूख बहुत ज्यादा हावी हो जाए तो इनसान बढि़या भोजन का भी मजा नहीं ले पाता है.’’

‘‘तो मुझे सिखाओ न कि लजीज भोजन का आनंद कैसे लिया जाता है?’’ मैं ने अपनी आवाज को नशीला बनाने के साथसाथ अपना हाथ भी उस के हाथ पर रख दिया.

‘‘मेरे स्टूडैंट बनोगे?’’ उस की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी.

‘‘बड़ी खुशी से, टीचर.’’

‘‘तो पहले एक छोटा सा इम्तिहान दो, जनाब. इसी वक्त कुछ ऐसा करो, जो मेरे दिल को गुदगुदा जाए.’’

‘‘आप बहुत आकर्षक और सैक्सी हैं,’’ मैं ने अपनी आवाज को रोमांटिक बना कर उस की तारीफ की.

‘‘कुछ कहना नहीं, बल्कि कुछ करना है, बुद्धू.’’

‘‘तुम्हें चूम लूं?’’ मैं ने शरारती अंदाज में पूछा.

‘‘मुझे बदनाम कराओगे? मेरा तमाशा बनाओगे?’’ वह नाराज हो उठी.

‘‘नहीं, सौरी.’’

‘‘जल्दी से कुछ सोचो, नहीं तो फेल कर दूंगी,’’ वह बड़ी अदा से बोली.

उस के दिल को गुदगुदाने के लिए मुझे एक ही काम सूझा. मैं ने अपना पैन  जेब से निकाल कर गिरा दिया और फिर उसे उठाने के बहाने झुक कर उस का हाथ चूम लिया.

‘‘मैं पास हुआ या फेल, टीचर?’’ सीधा होने के बाद जब मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो शर्म से उस के गोरे गाल गुलाबी हो उठे.

‘‘पास, और अब बोलो क्या इनाम चाहिए?’’ उस ने शोख अदा से पूछा.

‘‘अब इसी वक्त तुम कुछ ऐसा करो जिस से मेरा दिल गुदगुदा जाए.’’

‘‘मेरे लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है,’’ कह वह मेरा हाथ थाम डांस फ्लोर की तरफ चल पड़ी.

उस रूपसी के साथ चलते हुए मेरा मन खुश हो गया. उधर लोग हमें हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे.

डांस फ्लोर पर कुछ युवक और बच्चे डीजे के तेज संगीत पर नाच रहे थे. सीमा ने बेहिचक डांस करना शुरू कर दिया. मेरा ध्यान नाचने में कम और उसे नाचते हुए देखने में ज्यादा था. क्या मस्त हो कर नाच रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उस के अंगअंग में बिजली भर गई हो. आंखें यों अधखुली सी थीं मानो कोई सुंदर सपना देखते हुए किसी और दुनिया में पहुंच गई हों.

करीब आधा घंटा नाचने के बाद हम वापस अपनी जगह आ बैठे. मैं खुद जा कर 2 कोल्डड्रिंक ले आया.

‘‘थैंक यू, रवि पर मेरा दिल कुछ और पीने को कह रहा है,’’ उस ने मुसकराते हुए कोल्डड्रिंक लेने से इनकार कर दिया.

‘‘फिर क्या लोगी?’’

‘‘ताजा, ठंडी हवा की मिठास के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘बड़ा नेक खयाल है. मैं ने कुछ दिन पहले ही घर में नया एसी. लगवाया है. वहीं चलें?’’

‘‘बच्चे, इस टीचर की एक सीख तो इसी वक्त गांठ बांध लो. जिस का दिल जीतना चाहते हो, उस के पहले अच्छे दोस्त बनो. उस के शौक, उस की इच्छाओं व खुशियों को जानो और उन्हें पूरा कराने में दिल से दिलचस्पी लो. अपने फायदे व मन की इच्छापूर्ति के लिए किसी करीबी इनसान का वस्तु की तरह से उपयोग करना गलत भी है और मूर्खतापूर्ण भी,’’ सीमा ने सख्त लहजे में मुझे समझाया तो मैं ने अपना चेहरा लटकाने का बड़ा शानदार अभिनय किया.

‘‘अब नौटंकी मत करो,’’ वह एकदम हंस पड़ी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर उठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी कार में ठंडी हवा का आनंद लेने हम कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘वाह, तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे लौंग ड्राइव पर जाना बहुत पसंद है?’’ मैं ने बहुत खुश हो कर पूछा.

‘‘अरे, मुझे तो दूल्हादुलहन को सगुन भी देना है. तुम यहीं रुको, मैं अभी आया,’’ कह कर मैं स्टेज की तरफ चलने को हुआ तो उस ने मेरा बाजू थाम कर मुझे रोक लिया. बोली, ‘‘अभी चलो, खाना खाने को तो लौटना ही है. सगुन तब दे देना,’’ और फिर मुझे खींचती सी दरवाजे की तरफ ले चली.

‘‘और अगर नहीं लौट पाए तो?’’ मैं ने उस के हाथ को अर्थपूर्ण अंदाज में कस कर दबाते हुए पूछा तो वह शरमा उठी.

कुछ देर बाद मेरी कार हाईवे पर दौड़ रही थी. सीमा ने मुझे एसी. नहीं चलाने

दिया. कार के शीशे नीचे उतार कर ठंडी हवा के झोंकों को अपने चेहरे व केशों से खेलने दे रही थी. वह आंखें बंद कर न जाने कौन सी आनंद की दुनिया में पहुंच गई थी.

कुछ देर बाद हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई पर उस ने फिर भी खिड़की का शीशा बंद नहीं किया. आंखें बंद किए अचानक गुनगुनाने लगी.

गाते वक्त उस के शांत चेहरे की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना असंभव था. उस का मूड न बदले, इसलिए मैं ने बहुत देर तक एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला.

गाना खत्म कर के भी उस ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. अचानक उस का हाथ मेरी तरफ बढ़ा और वह मेरा बाजू पकड़ कर मेरे नजदीक खिसक आई.

‘‘भूख लग रही हो तो लौट चलें?’’

मैं ने बहुत धीमी आवाज में उस की इच्छा जाननी चाही.

‘‘तुम्हें लग रही है भूख?’’ बिना आंखें खोले वह मुसकरा पड़ी.

‘‘अब हम जो करेंगे, वह तुम्हारी मरजी से करेंगे.’’

‘‘तुम तो बड़े काबिल शिष्य साबित हो रहे हो, रवि साहब.’’

‘‘थैंक यू, टीचर. बोलो, कहां चलें?’’

‘‘जहां तुम्हारी मरजी हो,’’ वह मेरे और करीब खिसक आई.

‘‘तब खाना खाने चलते हैं. यह चुनाव तुम करो कि शादी का खाना खाना है या हाईवे के किसी ढाबे का.’’

‘‘अब भीड़ में जाने का मन नहीं है.’’

‘‘तब किसी अच्छे से ढाबे पर रुकते…’’

‘‘बच्चे, एक नया सबक और सीखो. लोहा तेज गरम हो रहा हो, तो उस पर चोट करने का मौका चूकना मूर्खता होती है,’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा तो मेरी रगरग में खून तेज रफ्तार से दौड़ने लगा.

‘‘बिलकुल होगी, टीचर. अरे, गोली मारो ढाबे को,’’ मैं ने मौका मिलते ही कार को वापस जाने के लिए मोड़ लिया.

अपने घर का ताला खोल कर मैं जब तक ड्राइंगरूम में नहीं पहुंच गया, तब तक सीमा ने न मेरा हाथ छोड़ा और न ही एक शब्द मुंह से निकाला. जब भी मैं ने उस की तरफ देखा, हर बार उस की नशीली आंखों व मादक मुसकान को देख कर सांस लेना भी भूल जाता था.

मैं ने ड्राइंगरूम से ले कर शयनकक्ष तक का रास्ता उसे गोद में उठा कर पूरा किया. फिर बोला, ‘‘तुम दुनिया की सब से सुंदर स्त्री हो, सीमा. तुम्हारे गुलाबी होंठ…’’

‘‘अब डायलौग बोलने का नहीं, बल्कि ऐक्शन का समय है, मेरे प्यारे शिष्य,’’ सीमा ने मेरे होंठ अपने होंठों से सील कर मुझे खामोश कर दिया.

फिर जो ऐक्शन हमारे बीच शुरू हुआ, वह घंटों बाद ही रुका होगा, क्योंकि मेरी टीचर ने स्वादिष्ठ खाने को किसी भुक्खड़ की तरह खाने की इजाजत मुझे बिलकुल नहीं दी थी.

अगले दिन रविवार की सुबह जब दूध वाले ने घंटी बजाई, तब मेरी नींद मुश्किल से टूटी.

‘‘आप लेटे रहो. मैं दूध ले लेती हूं,’’ सीमा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पलंग से नहीं उठने दिया.

‘‘नहीं, तुम यहां से हिलना भी मत, टीचर, क्योंकि यह शिष्य कल रात के सबक को 1 बार फिर से दोहराना चाहता है,’’ मैं ने उस के होंठों पर चुंबन अंकित किया और दूध लेने को उठ खड़ा हुआ.

आजकल मैं अपनी जीवनसंगिनी सीमा की समझदारी की मन ही मन खूब दाद देता हूं. मैं फैक्टरी के कामों में बहुत व्यस्त रहता हूं और वह अपनी जौब की जिम्मेदारियां निभाने में. हमें साथसाथ बिताने को ज्यादा वक्त नहीं मिलता था और इस कारण हम दोनों बहुत टैंशन में व कुंठित हो कर जीने लगे थे.

‘‘हम साथ बिताने के वक्त को बढ़ा नहीं सकते हैं तो उस की क्वालिटी बहुत अच्छी कर लेते हैं,’’ सीमा के इस सुझाव पर खूब सोचविचार करने के बाद हम दोनों ने पिछली रात से यह ‘टीचर’ वाला खेल खेलना शुरू किया है.

कल रात हम रिसैप्शन में पहले अजनबियों की तरह से मिले और फिर फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. कल उसे टीचर बनना था और मुझे शिष्य. कल मैं उस के हिसाब से चला और मेरे होंठों पर एकाएक उभरी मुसकराहट इस बात का सुबूत थी कि मैं ने उस शिष्य बन कर बड़ा लुत्फ उठाया, खूब मौजमस्ती की.

अगली छुट्टी वाले दिन या अन्य उचित अवसर पर मैं टीचर बनूंगा और सीमा मेरी शिष्या होगी. उस अवसर को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए मेरे मन ने अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है. हमें विश्वास है कि साथसाथ बिताने के लिए कम वक्त मिलने के बावजूद इस खेल के कारण हमारा विवाहित जीवन कभी नीरसता व ऊब का शिकार नहीं बनेगा.  Romantic Story in Hindi

Social Story In Hindi : देश को बढ़ाने का नुरखा

Social Story In Hindi : वैसे तो वे अपने घर, परिवार, महल्ले, गांव, जाति और धर्म से बाहर निकलने के आदी नहीं थे, पर इस बार जाने कहां से उन्होंने देश को आगे बढ़ाने का नारा सुन लिया और सोचा कि चलो, देश को आगे बढ़ा लिया जाए.

देश उन्हें हमेशा ही भगवान की तरह लगा. वैसे उन्हें न भगवान नजर आता था न देश. हां, घर दिखाई देता है, महल्ला दिखाई देता है, गांव दिखाई देता है, पर देश की केवल बातें ही बातें सुनाई देती हैं. उन्होंने जब से यह गाना सुना था कि ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ तब से कई बार पूरे खेत को खोद डाला था पर मिट्टी ही मिट्टी निकली थी.

इस से उन्हें लगने लगा था, जैसे किसी दूसरे देश में रह रहे हों क्योंकि देश की धरती को तो सोना और हीरेमोती उगलना चाहिए था. वे तो भागेभागे उन दिनों गुजरात भी चले गए थे. लोगों ने सोचा था कि भूकंप पीडि़तों की सहायता के लिए गए होंगे, पर वे तो यह सोच कर गए थे कि शायद खोदने पर हीरेमोती न निकलते हों, मगर भूकंप आने पर तो धरती हीरेमोती जरूर उगलेगी.

जिस तरह पंडेपुरोहित भगवान से प्रेम रखने के लिए कहते रहते हैं, उसी तरह नेता लोग देश से प्रेम करने के लिए लोगों को उकसाते रहते हैं. दोनों के ही धंधे का सवाल है, इसलिए वे दिनरात अपना धंधा चमकाने के लिए लोगों को देश और धर्म से प्रेम करना सिखाते हैं.

पंडित जबजब मिलता तबतब कहता, ‘‘भैया, भगवान से प्रेम करो. वही अजर, अमर, अविनाशी हैं, कणकण में विराजमान हैं, घटघट वासी हैं, उन की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, वे सबकुछ जानते हैं, सबकुछ देखते हैं, सबकुछ सुनते हैं. वही कर्ता हैं, वही कर्म हैं, वही करण हैं, वे संप्रदान, अपादान आदि हैं. उन से प्रेम करो क्योंकि वे हैं तभी तो हमारा धंधा है.

इसी तरह नेता कहता है कि देश से प्रेम करो. फिर वह इस अमूर्त को मूर्त रूप देने की जरूरत महसूस करता है तो इस निर्णय पर पहुंचता है कि आम आदमी अपनी मां को बहुत चाहता है, सो वह देश को मां बना देता है, भारत माता. फिर वह कहता है कि अपनी मातृभूमि से प्रेम करो और खुद दूसरों की भूमि से प्यार जताने विदेशों में डोलता फिरता है.

नेता खुद कहता है और अपने टुच्चे चापलूसों से भी कहलवाता है, ‘मातृभूमि पर शीश चढ़ाओ, मातृभूमि पर बलिबलि जाओ…’ और खुद रक्षा के नाम पर बड़ेबड़े हथियारों के सौदों में तहलका कर रहा होता है. इधर लोग मातृभूमि से प्रेम करने लगते हैं तो उधर मातृभूमि पर हमेशा खतरा मंडराने के नाम पर और मातृभूमि की रक्षा के नाम पर हथियार और परमाणु तकनीक खरीदने के लिए बड़ेबड़े सौदे करते हुए नेता दलाली की रकम से स्विस बैंक की तिजोरी भरता जाता है.

सो सुबह से शाम तक देश से प्रेम करना सिखाना नेता का चोखा धंधा है.

पंडित हो या नेता दोनों ही देशवासियों को अपनीअपनी तरह से उल्लू बनाने में लगे हैं, पर जब पंडित नेता बन जाता है तब नीम चढ़ा करेला बन कर देश का कचूमर निकाल देता है.

इस बार वे चक्कर में आ चुके थे. वे यानी कि श्याम सेवकजी. नेता ने कहा कि देश को आगे बढ़ाना है तो वे सोच में पड़ गए कि क्या और कैसे बढ़ाना है. देश तो देखा ही नहीं. केवल उस का नक्शा देखा है जो उन्हें अपने हाथों बनाए आलू के परांठे जैसा नजर आता है. इसलिए बिना खाना खाए तो वे देश का नक्शा देखना ही नहीं चाहते हैं, उन्हें लगता है कि ये नेता शायद भूखे पेट देश का नक्शा देख लेते होंगे तभी उसे खाने लगते हैं.

इस देश को किस ओर आगे बढ़ाया जाए? उत्तर की तरफ बढ़ाते हैं तो चीन नहीं बढ़ने देगा, पश्चिम की ओर पाकिस्तान नहीं बढ़ने देगा, पूर्व में बंगलादेश, दक्षिण में श्रीलंका व मालदीव बाधक बनेंगे. उन्होंने सोचा कि संस्कृत में कहा गया है कि  ‘महाजनो येन गत: स पंथ:’ (वही रास्ता है जिस से महान व्यक्ति गया) इसलिए लोगों से पूछना चाहिए. उन के अनुभवों का लाभ लेने के लिए वे निकल पड़े. सब से पहले वे महाजन (व्यापारी) के पास पहुंचे और बोले, ‘‘सेठजी, क्या आप देश को आगे बढ़ा रहे हैं?’’

‘‘हां, बढ़ा तो रहे हैं,’’ सेठजी बोले.

‘‘तो हमें भी बताइए,’’ वे बोले.

‘‘देखो भाई, देश को आगे बढ़ाना एक ऊंचा भाव है, इसलिए हम चीजों के भाव बढ़ा रहे हैं.’’

श्याम सेवकजी आगे बढ़े तो सरकारी दफ्तर के एक बाबू मिले. उन्हें लगा ये दूसरे किस्म के महाजन हैं. महान हैं, इसीलिए सरकारी बाबू बने. उन से भी उन्होंने वही सवाल दोहराया, ‘‘बाबूजी, आप देश को आगे बढ़ा रहे हैं?’’

‘‘हां, बढ़ा देंगे, 2 हजार लगेंगे,’’ बाबूजी बोले.

‘‘मैं समझा नहीं?’’ श्याम सेवक ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे भाई, जब एक दुबलीपतली फाइल को आगे बढ़ाने के 100-50 ले लेते हैं, फिर ये तो इतना बड़ा देश है. 50 तो चपरासी ही ले लेगा,’’ बाबूजी बोले.

श्याम सेवक ने सोचा कि देश का भविष्य तो नौजवानों के कंधों पर है, सो वे एक शिक्षित बेरोजगार के पास पहुंचे, जो पान की दुकान पर बैठ कर लड़कियों के कालेज की छुट्टी का इंतजार कर रहा था. उस से भी वही सवाल किया, ‘‘क्यों भैया, क्या तुम देश को आगे बढ़ा रहे हो?’’

उस ने अपने गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘फिलहाल तो हम अपनी दाढ़ी बढ़ा रहे हैं और तुम अपनी गाड़ी बढ़ाओ, फूटो यहां से, छुट्टी होने वाली है.’’

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों से तो पूछना ही बेकार था, क्योंकि वे तो अपना प्रदेश घटा चुके थे सो देश को क्या आगे बढ़ाते.

दूध वाले के पास गए तो उस ने कहा, ‘‘हम तो दूध में पानी बढ़ा रहे हैं.’’

डाक्टरों ने कहा, ‘‘हम फीस बढ़ा रहे हैं.’’

अदालतों ने कहा, ‘‘हम तारीख बढ़ा रहे हैं.’’

कुछ महिलाएं महिला सशक्तीकरण के कार्यक्रम में जाने से पहले ब्लाउज के गले का दायरा बढ़ा रही थीं. वकील वादी/प्रतिवादियों के बीच दरार बढ़ा रहे थे ताकि वे समझौता न कर सकें. कुल मिला कर यह कि नेताओं के नारों के कारण देश में हर कोई कुछ न कुछ बढ़ा रहा था, मगर देश है कि बढ़ ही नहीं पा रहा.

थकहार कर श्याम सेवकजी एक धार्मिक पीठ पर पहुंचे. जा कर पीपल के पेड़ के नीचे लेट गए. लेटेलेटे ही उन्होंने देखा कि पीपल के पेड़ पर एक लोहे की प्लेट ठुकी थी जिस पर पीले रंग का पेंट पुता था. पेंट पर नीले रंग से लिखा हुआ था, ‘तुम सुधरोगे, जग सुधरेगा.’

वे फिर लेटे नहीं रह पाए. अगर आर्कमिडीज होते तो यूरेकायूरेका चिल्लाते हुए सड़क पर भागते, पर चूंकि वे आर्कमिडीज नहीं थे, इसलिए पूरे वस्त्रों में अपने को ढके हुए तेज कदमों से घर पहुंचे. उन्हें अपने हिस्से के देश को आगे बढ़ाने का सूत्र मिल गया था.

अगले दिन ही उन्होंने राजमिस्त्री बुलवाए, अपना चबूतरा तुड़वा कर 3 फीट आगे गली में बढ़वा दिया. गली संकरी हो गई थी. पर उन्होंने अपने हिस्से का देश आगे बढ़ा लिया था और लोगों की नासमझ पर वे बेहद दुखी हुए. यदि सारे देशवासी उन्हीं की तरह अपनीअपनी जिम्मेदारियां निभाएं तो सारा देश कहां का कहां पहुंच जाए. Social Story In Hindi

Family Story : सौगात- नमिता को किस बात की सबसे ज्यादा खुशी थी?

Family Story : पति के बाहर जाते ही नमिता ने बाहरी फाटक को बंद कर लिया. कुछ पल खड़ी रह कर वह पति को देखती रही फिर घर की ओर बढ़ने लगी. उस ने 8-10 कदम ही बढ़ाए कि डाकिए की आवाज सुन उसे रुकना पड़ा. डाकिया ने अत्यंत शालीनता से कहा, ‘‘मेम साहिबा, यह आप के नाम का लिफाफा.’’

लिफाफा नाम सुन कर एकबारगी उस के जेहन में तरहतरह के भाव पनपने लगे. फिर वह लिफाफे पर अंकित भेजने वाले के नाम को देख अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाई. वहीं खडे़खड़े उस ने लिफाफा खोला, जो उस के चचेरे भाई सुजीत ने भेजा था. लिफाफे के अंदर का कार्ड जितना खूबसूरत था, उस पर दर्ज पता उतने ही सुंदर अक्षरों में लिखा गया था. सुजीत ने अपने पुत्र मयंक की शादी में आने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था.

शादी का कार्ड नमिता की ढेर सारी स्मृतियों को ताजा कर गया. वह तेज कदमों से बढ़ी और बरामदे में रखी कुरसी पर बैठ गई. फिर लिफाफे से कार्ड निकाल कर पढ़ने लगी. एकदो बार नहीं, उस ने कई बार कार्ड को पढ़ा. उस ने कार्ड को लिफाफे में रखना चाहा, उसे आभास हुआ कि लिफाफे के अंदर और कुछ भी है. उस ने लिफाफे के कोने में सिमटे एक छोटे से पुरजे को निकाला. उस पर लिखा था : ‘बूआ, मेरी शादी में जरूर आना, नहीं तो मैं शादी करने जाऊंगा ही नहीं.’

बड़ा ही अधिकार जताया था उस के भतीजे मयंक ने. अधिकार के साथ अपनत्व भी. उस ने उस छोटे से पत्र को दोबारा लिफाफे में न रख कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया. उस ने निर्णय लिया कि भतीजे के पत्र का उल्लेख पति से नहीं करेगी. पति कहेंगे कि तुम्हारे भतीजे ने तो सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है. उन्हें वहां जाने की जरूरत ही नहीं है. तुम अकेली ही चली जाओ. मायके जाने की बात सोच कर ही नमिता के मन में गुदगुदी होने लगी. साथ ही मयंक की शादी के संबंध में पति को सूचना देने की ललक भी. मयंक का वह छोटा सा धमकीभरा पत्र. आज जबकि संचार माध्यमों की विपुलता की वजह से लोग पत्र लिखना भी भूल गए हैं, तब मयंक के उस छोटे से पत्र ने उसे वह खुशी दी थी जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

उस का बचपन गांव की अमराइयों में बीता था, जहां घंटों तालाब में तैरना, अमिया तोड़ कर खाना, कभी गन्ना चूसना तो कभी मूली कुतरना. कोई रोकटोक नहीं. फिर उसे अपने पिता की यादें कुरेदने लगीं. बचपन में ही मां के गुजर जाने के बाद पिता ने ही मांबाप, दोनों का स्नेह उस पर उडे़ल दिया था. उस के पिता गांव के संपन्न किसान थे. उन्होंने नमिता को पढ़ाने में भी किसी तरह की कोताही नहीं बरती.

उस की शादी शहर के संभ्रांत परिवार के आकर्षक, मेधावी युवक युवराज के साथ अत्यंत धूमधाम से कर दी. वह गुलमोहर के फूलों से सजी कार पर सवार हो कर ससुराल आई थी, जो उस समय के लिए बड़ी बात थी. अपने पिता की लाड़ली तो वह थी ही, ससुराल में भी उसे बड़ा प्यार मिला. गौने में जब वह ससुराल पहुंची तो उस के कुछ महीने के बाद ही पति को बैंक के ऊंचे पद पर नौकरी मिल गई. नतीजतन, ससुराल वालों ने भी उसे हाथोंहाथ लिया. कालांतर में वह मां भी बनी और घरगृहस्थी में वह इस कदर मशगूल हुई कि नैहर की यादें यदाकदा ही आतीं. पहले पुत्रवधू का दायित्व और बाद में चल कर गृहिणी व मां का दायित्व, सब का निर्वाह उस ने बड़ी कुशलता से किया. एक आदर्श परिवार की कुशल गृहिणी थी वह.

आज उस का लड़का अनिमेष जहां इंजीनियर बन बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था, वहीं उस की बेटी सुजाता डाक्टरी की परीक्षा पास कर सरकारी सेवा में थी. दोनों का पारिवारिक जीवन अत्यंत सफल था. सबकुछ अच्छा होने के बाद भी आज नैहर की यादों ने उस के अंदर हलचल पैदा कर दी. पिता के निधन के बाद नैहर से उस का संबंध टूट सा गया था. सिर्फ रक्षाबंधन के अवसर पर वह लिफाफे में सुजीत के लिए राखी रख कर डाक से भेज देती थी और सुजीत भी कुछेक रुपए मनीऔर्डर से भेज देता था. सच तो यह था कि न तो नमिता ने संबंध प्रगाढ़ करने की कभी कोशिश की और न सुजीत ने. शायद इस के पीछे नमिता के बड़े होने का अहं था या फिर सुजीत के मन में छिपा अपराधबोध.

पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध समाप्त होने के उपरांत लौटने के क्रम में भतीजे की गोलमटोल काया को देख अनायास ही उस के मुंह से निकल गया था, ‘सुजीत, इस की शादी में मुझे जरूर बुलाना. मैं ही इस की एकमात्र बूआ हूं.’ आज वही घटना उसे याद हो आई थी. लंबे समय तक वह वहीं बैठी रही. घर के अंदर बहुत सारे काम उसे निबटाने थे. पर वह उस ओर से उदास ही रही. महरी आई और अपना काम कर लौट भी गई. उस की ओर भी उस ने ध्यान नहीं दिया. बस, नैहर की यादों में खोई रही. मां का चेहरा तक उसे याद नहीं था. कारण, जब वह कुछेक महीने की थी, तभी वे चल बसी थीं. हां, पिता की याद आते ही उस की आंखों में न चाहते हुए भी अश्कों के समंदर लहराने लगे. मन ही मन वह सोचने लगी कि आखिर सुजीत ने इतने दिनों बाद उसे आने को क्यों कहा.

आखिर सुजीत जिस संपत्ति के बूते इतरा रहा है उस में से आधी संपत्ति की मालकिन तो वह भी है. पानी के बुलबुले की तरह उस के अंदर का भाव तिरोहित हो गया है. तमाम तरह के भौतिक संसाधनों से संपन्न है उस का जीवन. पिता की संपत्ति की बात उस के जेहन में आई जरूर पर भूल से भी उस ने कभी उजागर न किया. उस ने सोचा कि पति को निमंत्रणपत्र के संबंध में सूचना अभी क्यों दूं, जब वे बैंक से लौटेंगे तो उन्हें सरप्राइज दूंगी. वह पति का इंतजार करने लगी. लेकिन आज के इंतजार में बेताबी ज्यादा थी, साथ ही साथ कई विचार भी मन में आजा रहे थे.

उस के नैहर वालों ने उस की ज्यादा खोजखबर क्यों नहीं ली. क्या कारण हो सकता है इस के पीछे. पिता के श्राद्ध के समय उस ने अपने चाचा और चाची की आंखों में संदेह के डोरे मंडराते देखे थे. शायद उन्हें पिता के हिस्से की जमीन जाने का संशय था या और कुछ. लेकिन पिता के हिस्से की जमीन की एकमात्र वारिस होने के कारण भी उस के मन में उस के प्रति रत्ती भर भी आसक्ति न थी. आखिरकार उस के इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं. युवराज की गाड़ी फाटक पर आ रुकी. उस ने दौड़ कर गेट खोल दिया. गाड़ी गैराज में लगा कर युवराज जैसे ही कार से बाहर आए नमिता उन के पास पहुंच गई.

युवराज का स्वर उभरा, ‘‘तुम्हारे चेहरे पर यह अव्यक्त खुशी किस बात की है?’’

नमिता ने बगैर कुछ बोले लिफाफा उन की ओर बढ़ा दिया. पर…

‘‘रुक क्यों गए?’’

‘‘अनिमेष और सुजाता तो वहां जाने से रहे. हां, मेरी जबरदस्त इच्छा तुम्हारे नैहर जाने की है.’’

‘‘मेरा नैहर, आप का ससुराल नहीं?’’

‘‘हांहां, मेरा ससुराल भी,’’ फिर आगे आते हुए बोले युवराज, ‘‘नैहर जाने की खुशी में आज चाय नहीं मिलेगी क्या?’’

‘‘क्यों नहीं, अभी लाती हूं.’’

कुछ ही देर में नमिता नाश्ते की प्लेट और चाय ले कर आ गई है. चायनाश्ते के बाद युवराज शालीन मुसकराहट के साथ बोले, ‘‘नैहर जाने की खुशी में चाय का स्वाद मीठा हो गया है.’’

दरअसल, नमिता ने भूले से चाय में दोबारा चीनी डाल दी थी, अपनी भूल पर झेंप गई नमिता.

‘‘एक बात कहूं, नमिता?’’

‘‘एक ही बात क्यों, हजार बात कहिए.’’

‘‘मैं तो अपनी ससुराल में 15 दिनों तक रहूंगा. तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं होगी?’’

‘‘मुझे क्यों आपत्ति होगी. पर आप को इतने दिनों की छुट्टी मिलेगी?’’

‘‘मिलेगी क्यों नहीं, मैं ने छुट्टी ही कब ली है. इस बार तो 15 दिनों की छुट्टी ले कर ही रहूंगा. और हां, शादी आज से 7वें दिन है न. मैं अभी छुट्टी हेतु ईमेल से आवेदन कर देता हूं. जाओ, तुम तैयार हो जाओ. सब से पहले हम लोग शौपिंग करेंगे और रात का डिनर भी कावेरी होटल में करेंगे. एक बात गौर से सुन लो, कोई अगरमगर नहीं. जाओ, जल्दी तैयार हो कर आओ.’’ अगले दिन उन दोनों के गांव पहुंचने पर ही अजीब सी हलचल मच गई. मयंक जो नमिता के गले से लिपटा तो गरदन छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस ने अत्यंत धीमे स्वर में बूआ से पूछा, ‘‘बूआ, हमारा पत्र मिला था?’’

‘‘हां रे, तभी तो मैं दौड़ीदौड़ी आई हूं.’’

‘‘हां, मैं ने उसे स्पीडपोस्ट करते समय जल्दीजल्दी में डाल दिया था. आप को बुरा तो नहीं लगा न?’’

उस के बालों को सहलाती हुई नमिता बोली, ‘‘बुरा क्यों लगता. सच तो यह है कि मुझे बड़ा ही अच्छा लगा था. अच्छा, अब छोड़ो, चाचा व चाची से भी मिलना है. बहुत सारे लोगों से मिलना है और ढेर सारी बातें करनी हैं.’’

दिनप्रतिदिन शादी की गहमागहमी बढ़ती गई. वातावरण में शादी का उत्साह छाता जा रहा था. नमिता सिर से पांव तक शादी के विधिविधान में डूबी हुई थी. बुजुर्ग महिलाओं के मन में जहां नमिता को जानने के लिए अनेक जिज्ञासाएं थीं, वहीं बुजुर्गों के आशीर्वाद से वह सिर से पैर तक नहा गई. अत्यंत खुशनुमा माहौल में शादी संपन्न हो गई. नववधू अपने ससुराल आ गई. 8-10 दिनों की अवधि में वह युवराज को भी भूल सी गई थी. रिश्तेदारों का जाना शुरू हो गया था. धीरेधीरे लोगों का जमावड़ा काफी कम हो गया. लोगों के आग्रह को पा उस ने गांव के लोगों के यहां जाना शुरू किया. हर परिवार में जाना और ढेर सारी बातचीत, यही उस की दिनचर्या थी. लेकिन गांव में सब के यहां जाना उस के चाचा को कचोट रहा था. वे मन ही मन कुढ़ रहे थे.

एक दिन शाम के समय सुजीत के पिताजी ने उसे अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, देख रहे हो, नमिता पूरे गांव में घूमती है. ये गांव के लोग अजीब किस्म के धूर्त होते हैं. निश्चय ही कई लोग इसे जमीन के बारे में उकसाते होंगे. मैं तो इसी वजह से उसे बुलाने से आज तक परहेज करता रहा पर तुम नहीं माने. सोचो, उस के हिस्से की 10 एकड़ जमीन अगर हाथ से निकल गई तो तुम्हारी सारी साहबी धूल में मिल जाएगी.’’

‘अब चाहे जो हो, पिताजी. आप के एकमात्र पोते की शादी में, उस की जिद पर मुझे नमिता दीदी को बुलाना पड़ा.’’

पितापुत्र की बातें नमिता बाहर खड़ी हो सुनती रही. उस की उपस्थिति का एहसास पितापुत्र को नहीं था. वह समझ गई कि उस के चाचा के मन में बेबुनियाद आशंका पल रही है. इसे निर्मूल कर देना ही चाहिए. और वह अविलंब युवराज के पास पहुंच गई. संयोग ऐसा कि युवराज भी वहां अकेले बैठे थे. नमिता को देख युवराज मुसकराने लगे. बड़े गंभीर स्वर में नमिता ने पूछा, ‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं, और तुम कैसी हो?’’

‘‘मैं तो बहुत ठीक हूं.’’

‘‘आज 10 दिन बाद मेरी याद आई है तुम्हें?’’

‘‘हां, मैं तो शादी के विधिविधान और गहमागहमी में एकदम डूब गई थी. आप को कोई कष्ट तो नहीं हुआ?’’

‘‘कष्ट क्यों होता. इतने मधुर रिश्ते वालों का मेरे पास जमघट था कि मुझे तुम्हारी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’

‘‘चलिए, अच्छा हुआ. और एक गंभीर बात है.’’

अचकचा गए युवराज, ‘‘यहां और गंभीरता, ऐसा नहीं हो सकता.’’

फिर नमिता ने सुजीत तथा अपने चाचाजी के मध्य की बात युवराज को सुनाई तो युवराज ने कहा, ‘‘देखो, नमिता जिस जमीन का हिस्सा 2 परिवारों के बीच शूल बना हुआ है उसे निकाल कर फेंक दिया जाना चाहिए. वैसे यह तुम्हारा विशेषाधिकार है. जमीन तुम्हारे पिताजी की है.’’

‘‘हां, मैं ने भी निर्णय किया है. सिर्फ आप की सहमति की आवश्यकता है.’’

‘‘वैसे क्या निर्णय है तुम्हारा, मैं जानना चाहता हूं्?’’

‘‘एकदम सीधासादा. मैं पिताजी की सारी जमीन मयंक दंपती को बतौर सौगात देने का निर्णय ले चुकी हूं.’’

‘‘नमिता, तुम तो पहले भी मेरे लिए अच्छी थीं और आज तुम्हारे निर्णय ने तुम्हारे व्यक्तित्व को और अधिक ऊंचाई दे दी है. चलो, यह निर्णय हमदोनों चल कर चाचाचाची, सुजीत, उस की पत्नी और मयंक दंपती को सुना डालते हैं.’’

एकबारगी वातावरण में एक अजीब सी खुशी छा गई. नमिता के चाचा की आंखों के कोर से अश्रु बूंदें ढुलक गईं. उस की चाची बोलीं, ‘‘नमिता बेटी, मयंक केवल सुजीत का बेटा या मेरा पोता ही नहीं, तुम्हारा भतीजा भी है,’’ कहतेकहते उन की आंखों से बहती अश्रुधारा में सारी कलुषता धुल गई. नमिता व युवराज के चेहरे पर संतोष का भाव झलक रहा था. मयंक को जहां जमीन की सौगात मिली थी, वहीं नमिता को नैहर व युवराज को ससुराल की सौगात. प्रसन्नता की समानता जो थी. Family Story

Vice President : जगदीप धनखड़ की बेचारगी

Vice President : वफादार, चाटुकार, योग्य और बड़बोले अच्छी तरह जानते हैं कि ताकतवर लोगों से जहां ईनाम मिलता है वहीं जरा सी चूक होने पर सिर काट भी दिया जाता है. इतिहास ऐसे मामलों से भरा पड़ा है कि राजाओं ने अपने सब से नजदीकी शख्स को या सरेआम या गुपचुप मरवा डाला हो. आज के शासक हत्याएं तो नहीं कराते लेकिन विरोधी की राजनीतिक हत्या करवा देते हैं.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का मामला भी ऐसा ही है. जब तक वे सिर और कमर झुकाए सत्ता के आगे पसरे रहे तब तक उन्हें सहा गया और जैसे ही उन्होंने अपनी मरजी चलाई, उपराष्ट्रपति के पद से उन्हें हटाने में देरी नहीं की गई.

जगदीप धनखड़ जरूरत से ज्यादा सरकारी पक्ष लेते रहे हैं. उन्होंने राज्यसभा को चलाने में सत्ता पक्ष का खयाल रखने में एक निष्पक्ष सभापति का काम कभी नहीं किया. अपने साथी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की तरह विपक्ष को कभी संसद या सरकार को घेरने की अनुमति नहीं दी. वे जजों की नियुक्ति, संविधान के मौलिक ढांचे के फैसलों की आलोचना करते रहे जबकि सरकार की मंशा, कि सत्ता सिर्फ 2 हाथों में रहे, के मुताबिक पूरी कोशिश करते रहे.

फिर भी उन का पद न सिर्फ अचानक छीन लिया गया बल्कि नए राष्ट्रपति प्रागंण में बने घर के कार्यालय को बंद भी शायद करा दिया गया. आज वे स्मृति ईरानी, विशंभर प्रसाद, मेनका गांधी, वरुण गांधी, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी की श्रेणी में आ गए है जिन से पद छीन लिए गए.

ऐसा हर राजा ने किया. राजा राम ने शत्रुघ्न और लक्ष्मण के साथ भी ऐसा ही किया था कि जब उन की जरूरत नहीं रही तो उन्हें अपने निकट नहीं रखा. जो शासक इस तरह की पौराणिक कहानियों को सुनसुन कर बड़े हुए उन के लिए इसी तरह के फैसले लेना कोई कठिन नहीं है.

ऐसा नहीं कि दूसरी पार्टियां यह नहीं करतीं. जो कांग्रेसी नेता आज भाजपा में किसी तरह छुटभैये नेता की तरह रह कर जिंदगी काट रहे हैं, एक वक्त कांग्रेस में इसी तरह गांधी परिवार के कोपभाजन के शिकार हुए थे. उन्हें भाजपा ने उस समय लपक लिया क्योंकि तब उन्हें कांग्रेस को डूबता जहाज कहने का मौका मिल रहा था.

राजनीति में जरूरत से ज्यादा चतुराई और चाटुकारिता दोनों खतरनाक हैं. जिन्हें अपना महत्त्व बना कर रखना है उन्हें जीहुजूर कहने वाला बन कर रहना होगा वरना उन का हाल टेस्ला और स्टारलिंक के मालिक एलन मस्क जैसा होगा जो डोनाल्ड ट्रंप की जीत के कुछ माह बाद तक तो उन के सब से बड़े साथी थे जबकि आज सब से बड़े दुश्मन.

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