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Love Story : मीनू – कंडोलिम बीच पर क्या हुआ?

Love Story : बात उन दिनों की है, जब मैं मिलिटरी ट्रेनिंग के लिए 3 एमटीआर मडगांव, गोवा गया हुआ था. कुछ दिनों के लिए मिलिटरी अस्पताल, पणजी में मैं अपने पैरदर्द के इलाज के लिए रुका हुआ था. एक दिन यों ही मैं अपने एक दोस्त साजन के साथ कंडोलिम बीच की तरफ घूमने निकला था. पहले हम मिलिटरी अस्पताल से बस ले कर फैरी टर्मिनल पहुंचे. फिर हम ने पंजिम का मांडोवी दरिया फैरी से पार किया. फिर वहां से हम दोनों कंडोलिम बीच के लिए बस में बैठ गए. आप को बता दूं कि कंडोलिम बीच पंजिम से 13 किलोमीटर दूर है. साथ ही, यह भी बता दूं कि पणजी को ही आम बोलचाल में पंजिम कहा जाता है.

खैर, हम बस में सवार हो चुके थे. हम 3 सवारी वाली सीट पर बैठ गए थे. तीसरी सवारी कोई और थी. वह मर्द था. मेरा दोस्त साजन शीशे की तरफ वाली सीट पर बैठ गया था. मैं बीच वाली सीट पर बैठ गया. अचानक मेरी नजर हम से अगली सीट पर बैठी लड़की पर गई. उस पर सिर्फ एक ही सवारी बैठी थी. वह 18-19 साल की लड़की थी. उस का रंग सांवला था. उस के हाथ में गोवा मैडिकल कालेज और अस्पताल का कार्ड था. कार्ड पर उस का नाम मीनू लिखा हुआ था.

मैं ने अचानक ही पूछ लिया, ‘‘आप जीएमसी से आ रही हैं?’’

उस ने कहा, ‘‘हां.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इलाज के लिए जीएमसी में जाता रहता हूं.’’

मैं ने एकदम पूछ लिया, ‘‘आप को क्या हुआ है?’’

वह बोली, ‘‘छाती में दर्द है.’’

मैं ने अफसोस में कहा, ‘‘ओह.’’ फिर उस ने पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘हम भारतीय सेना में हैं. मैं अपने दोस्त साजन को कंडोलिम बीच दिखाने ले जा रहा हूं.’’ वह लड़की मेरे साथ बात करने में खुशी महसूस कर रही थी, इसलिए मैं बातें जारी रखना चाहता था. फिर मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप भी कंडोलिम बीच पर जा रही हैं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘नहीं, रास्ते में मेरा गांव है. मैं वहां जा रही हूं.’’

अब मीनू मुझे अपनी सी लगने लग गई थी. मैं भी उस के सपने देखने लगा था. उस की भावनाएं भी शायद कुछ ऐसी ही होंगी. उस उम्र में हर लड़कालड़की के मन में अपने एक जीवनसाथी की तलाश रहती है.

मीनू बोली, ‘‘आगे आ जाइए.’’ उस के साथ वाली सीट खाली थी. वह फिर बोली, ‘‘आप को बात करने में दिक्कत आ रही है, आगे आ जाइए.’’ मेरा दोस्त साजन बोला, ‘‘जाओ, आगे चले जाओ.’’ मैं आगे जा कर मीनू के साथ वाली सीट पर बैठ गया.

वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त अकेला रह गया. उसे भी बुला लो.’’ मैं ने साजन से आगे आने के लिए कहा. पर उस ने कहा कि कोई बात नहीं, आप अपनी बातें करो. मैं ने मीनू को अपनेपन से कहा, ‘‘आप भी हमारे साथ बीच पर चलो. हमें भी बीच घुमा लाओ.’’

उस ने कहा, ‘‘जी नहीं, मैं नहीं जा सकती. मेरा घर जाना जरूरी है.’’ इतने में कंडक्टर आ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘2 टिकट कंडोलिम बीच के और एक टिकट…’’ उस के गांव का नाम मेरे मुंह में ही रह गया. उस ने बात मेरे मुंह से छीनते हुए कहा, ‘‘3 टिकट कंडोलिम बीच…’’

फिर वह मेरी तरफ मुंह घुमा कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे साथ ही चलती हूं. जल्दी वापस आ जाएंगे.’’ मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. हम जल्दी ही कंडोलिम बीच पहुंच गए. हम वहां पर घूमे, खाना खाया और इधरउधर की बातें कीं. मैं ने मीनू से पूछा, ‘‘आप के पिताजी क्या काम करते हैं?’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मेरे डैडी मजदूरी करते हैं. मेरी मम्मी घरों में बरतन धोने का काम करती हैं. मैं एक गारमैंट्स स्टोर पर काम करती हूं और साथ में बरतन धोने का काम भी करती हूं.’’

मीनू ने यह भी बताया कि एक उस की बड़ी बहन है, जो शादीशुदा है और पणजी में अपने पति के साथ रहती है. उस के मम्मीडैडी कोल्हापुर से यहां आ कर बसे हुए हैं. बिना संकोच किए उस ने सबकुछ साफसाफ बता दिया था. उस समय मेरी उम्र 23 साल थी और उस की उम्र 19 साल थी. उम्र का अंतर ठीक था. मैं ने पूछा, ‘‘आप कितना पढ़ीलिखी होंगी?’’

उस ने बताया कि वह एसएससी पास है. वैसे, मेरी पढ़ाई उस से काफी ज्यादा थी, पर चूंकि हमारे दिल मिल चुके थे, इसलिए सबकुछ ठीक लग रहा था. फिर हम एक होटल में कुछ देर के लिए रुके. हम एक हो गए थे. अब हमें लौटना था. मैं चाहता था कि मेरे बाकी आर्मी के दोस्त भी अपनी भाभी को देख लें. मैं बहुत जोश में था. अब मैं अकेला नहीं था. मैं ने उस से कहा कि मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल चले. वह बोली, ‘‘ठीक है.’’ मीनू मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल आई. मैं ने अपने दोस्तों को उन की भाभी दिखाई. उस ने खुद हमारे कर्नल साहब से बात की. उस के बाद वह वापस चली गई. एक दिन बाद ही मुझे मडगांव सैंटर जाना था. मैं ने मीनू को वहां का पता लिख कर दे दिया था.

मैं मडगांव सैंटर चला गया था. मीनू की बहुत याद आ रही थी. उस का खत आ गया. वह भी उदास थी. वह मुझ से मिलना चाहती थी. उस ने लिखा कि मैं उस को जीएमसी, पणजी में 10 तारीख को 12 बजे मिलूं. मैं ने उसे जवाब दिया कि मैं भी बहुत उदास हूं. मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं जीएमसी, पणजी आ रहा हूं. वहां मेरे पैर का आपरेशन है. आप से भी मिल लूंगा. उस के आने के एक दिन पहले मेरे पैर का आपरेशन हो गया था. मैं वार्ड में भरती था. जब उस ने मेरा नाम ले कर इनक्वायरी पर पता किया, तो स्टाफ ने मुझ से मिला दिया. मिलने के लिए उसे कम समय दिया गया था. मैं ने उसे बताया कि मैं परमानैंट डिसएबल्ड हो गया हूं. अब मुझे नौकरी छोड़नी होगी और मजबूरन अपने घर पंजाब जाना होगा. मुझे नौकरी छूट जाने का गम था. मन में बहुत सी बातें घूम रही थीं कि बिना नौकरी के मेरा कैसे गुजारा होगा, मीनू को कहां रखूंगा. क्या करूं? वापस अपने घर पंजाब चला जाऊं या यहीं रह कर कुछ कामधंधा करूं?

वह मुझ से मिल कर जल्दी चली गई. मैं और उदास हो गया था. उस के अगले दिन मैं अपने मडगांव सैंटर चला गया. एक हफ्ते बाद टांके कटवाने के लिए जीएमसी आया था और टांके कटवा कर वापस मडगांव सैंटर चला गया था. नौकरी से डिस्चार्ज के कागज तैयार हो गए थे. पैंशन नहीं लगी थी, क्योंकि मैडिकल बोर्ड ने डिसएबल्टी की वजह ट्रेनिंग नहीं लिखी थी. मैं अपने घर पंजाब नहीं जाना चाहता था. जिस के साथ मैं नई जिंदगी बसाने के सपने देख रहा था, उसे कैसे छोड़ कर जाता. नौकरी छोड़ कर गरीब मातापिता को कैसे मुंह दिखाता. पैसे से हाथ खाली थे. कोई छोटामोटा कमरा या घर भी तो किराए पर नहीं ले सकता था. सेहत भी ठीक नहीं थी, जिस वजह से कोई काम भी नहीं कर सकता था. मैं ने सोचा कि कोई न कोई काम करने की कोशिश करनी चाहिए. कर्नल साहब की सिफारिश पर मुझे एक पैट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई. पहले ही दिन काम कर के देखा था. शरीर साथ नहीं दे रहा था. मन भी उदास था. शाम को बस में बैठ कर मैं मीनू के गांव की तरफ चल पड़ा. उस के गांव उतर कर मैं वहीं बैठ गया. वहां से उस के गांव जाने के लिए थोड़ा पैदल रास्ता था. कदम आगे जाने से रुक गए थे. मन कोई फैसला नहीं ले पा रहा था कि क्या करूं.

इतने में वापसी की बस आ कर रुकी. मैं बिना कुछ सोचे ही उस बस में बैठ गया. वहां से पणजी, पणजी से मडगांव सैंटर पहुंच गया. अगले दिन रेलवे का टिकट वारंट लिया और वापस अपने घर पंजाब के लिए चल पड़ा उदास मन ले कर. आज मेरी उम्र 50 साल से ऊपर हो गई है. उस को मैं एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया हूं. मीनू के साथ बिताया एकएक पल मुझे ऐसे याद रहता है, जैसे कल की ही बात हो. (यह कहानी एक सच्ची घटना पर लिखी गई है. पात्रों के नाम व जगह बदल दी गई है)

Romantic Story : प्यार के मायने – निधि को किस ने सिखाया प्यार का सही मतलब?

Romantic Story : उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे. एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

Best Hindi Story : हिजड़ा – क्यों सिया को खुद से ही चिढ़ थी?

Best Hindi Story : ‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था. मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे. शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी. एकसाथ कई सवाल उस के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में सिया को उस के सवालों का जवाब नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थीं.

श्री नाम था उस का. 20 साल का होतेहोते वह और उस के मांबाप ये समझ चुके थे कि श्री का शरीर भले ही एक मर्द का हो, पर उस के अंदर का मन एक औरत का ही है.

मांबाप ने श्री को कई डाक्टरों को दिखाया, इलाज भी चला, पर कोई फायदा नहीं हुआ. डाक्टरों ने श्री को ‘जैंडर आइडैंटिटी डिसऔर्डर’ का मरीज बताया, जिस में शरीर तो औरत या मर्द का हो सकता है, पर हावभाव और लक्षण विपरीत लिंग के होते हैं.

श्री के नैननक्श तीखे थे. उस के चेहरे की खूबसूरती और चमक से लड़कियों को जलन होना लाजिमी था. वह लड़कियों के कपड़े पहनता, उन की तरह हावभाव रखता, गाने गाता और लड़कियों की तरह डांस करना उसे बहुत अच्छा लगता था. किसी से बात करते समय लचकनामचकना श्री की आदत थी.

श्री 22 साल का हो चुका था. बाहर जाने पर लड़कियों जैसे कपड़े पहनने लगा था वह… मानो अब उसे जमाने के कहनेसुनने की कोई परवाह नहीं थी. उस ने अमर नाम का एक दोस्त बनाया, जिसे वह अपना बौयफ्रैंड कहता था.

अमर को इस बात का अहसास था कि श्री की हरकतें लड़कियों जैसी हैं, पर उसे तो सिर्फ श्री के पैसे से मजे करने थे, इसलिए वह उस के नाज उठाता था.

आज वे दोनों श्री का जन्मदिन मनाने के लिए किसी रैस्टोरैंट में जाने वाले थे.  इस खास दिन के लिए श्री ने अपने लंबे बालों को खुला छोड़ा हुआ था और वह सलवारसूट पहने था.

उन दोनों को वापसी में रात के साढ़े 11 बजे गए थे. अमर और श्री एकदूसरे का हाथ पकड़े गाड़ी की पार्किंग की तरफ बढ़ रहे थे.

‘‘अरे लगता है, मैं अपना मोबाइल रैस्टोरैंट में ही भूल आया हूं,’’ कह कर अमर अंदर की ओर लपक गया, जबकि श्री बाहर ही उस के आने का इंतजार करने लगा.

एक बड़ी सी गाड़ी श्री के ठीक सामने आ कर खड़ी हुई और उन में से बाहर निकले एक बलशाली लड़के ने श्री को अंदर घसीट लिया और उस के मुंह पर टेप लगा दिया, ताकि वह शोर न मचा सके. गाड़ी को वे लोग एक आधी बनी बिल्डिंग के पास ले गए और श्री को बाहर घसीटा.

‘‘आज बहुत दिनों बाद कोई चिकना माल मिला है,’’ श्री के कपड़े फाड़ते हुए एक वहशी बोला, पर अगले ही पल वह बुरी तरह चौंक गया, ‘‘अरे, यह तो लड़की के वेश में लड़का है. क्यों बे, लड़की बन कर घूमने में ज्यादा मजा आता है क्या?’’ कह कर उस वहशी ने श्री के गाल पर 2-4 घूंसे रसीद कर

दिए थे.

‘‘अब क्या करें, सारे मूड का तो सत्यानाश हो गया, अब मूड कैसे फ्रैश करें?’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘भाई तुम लोग अपना सोच लो, मुझे तो आज इस लड़के के साथ ही मजे लेना है. कभीकभी स्वाद भी तो बदलना चाहिए न,’’ इतना कह कर वह लड़का श्री के साथ जबरदस्ती करने लगा और फिर कुछ देर बाद बारीबारी से तीनों दोस्तों ने भी श्री के साथ मुंह काला किया और उसे तड़पती हालत में छोड़ कर वहां से चले गए.

बेहोशी की हालत में श्री कब तक रहा, उसे कुछ पता नहीं था. आंखें खुलीं, तो उस ने अपनेआप को एक अस्पताल में पाया. पुलिस वाले उस के सामने खड़े थे.

‘‘तो आप का कहना है कि आप के बेटे का रेप हुआ है,’’ पुलिस वाले ने श्री के पिता से पूछा.

‘‘जी.’’

‘‘हमें पीडि़त का बयान लेना होगा,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और श्री से कुछ अटपटे सवाल पूछने के बाद जल्द ही कार्यवाही करने की बात कह कर बाहर निकलते हुए पुलिस कांस्टेबल इंस्पैक्टर से कह रहा था, ‘‘साहब, ये सब अमीर घर के लड़कों  के चोंचले हैं, पहले लड़की बन कर घूमते हैं और फिर रेप करवा कर हमारे लिए काम बढ़ा देते हैं. हिजड़े कहीं के.’’

‘हिजड़े…’ श्री को यह शब्द गाली की तरह चुभा था. उस का कलेजा अंदर तक छलनी हो गया था.

यह पहला मौका था, जब उसे अपनी इस दोहरी जिंदगी जीने के ढंग पर शर्म आई थी.

तकरीबन 5 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद श्री अपने मांबाप के साथ  घर आया और अपने बौयफ्रैंड अमर को फोन लगाया.

काफी देर बाद अमर ने उस का फोन उठाया और सीधे शब्दों में कह दिया कि तुम्हारे साथ जो हादसा हुआ है, उस से हमारी काफी बदनामी हो गई है, इसलिए वह उस के साथ अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.

जिस दोस्त की अब उसे सब से ज्यादा जरूरत थी, उसी ने उस का साथ छोड़ दिया. श्री काफी परेशान हो उठा.

श्री ने अपने मर्दाना पर बेजान से पड़े हुए अंग को देखा और नफरत से भर गया. यह पहला मौका था, जब श्री ने अपना लिंग बदलवाने की बात गहराई से सोची, इस के लिए सब से पहले उस ने इंटरनैट खंगालना शुरू किया.

श्री के जैसे लक्षणों वाले और बहुत से लोग हैं इस दुनिया में. यह बात उसे पता चली, तो उस के मन को थोड़ा सुकून मिला और गहरे जाने पर उसे बहुत सी नई बातें पता चलीं. उस में से एक बात यह भी थी कि अब लिंग कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है और 10 लाख से भी कम खर्चे में भारत में ही रह कर अपना लिंग बदलवाया जा सकता है.

ये सारी बातें जान कर श्री ने अपने मांबाप से बात की, तो पहले तो वे  सकते में आ गए, पर बाद में उन्होंने हामी भर दी.

कुछ और जरूरी खोजबीन के बाद डाक्टर मुकेश माथुर से अपना लिंग बदलवाने के लिए श्री गुजरात में उन से मिला और उन के अस्पताल में भरती

हो गया.

डाक्टर मुकेश माथुर ने सब से पहले उसे हार्मोन के इंजैक्शन देने शुरू किए और थैरेपी व दूसरी दवाएं भी देनी शुरू कीं, जिन के असर से कभीकभी श्री परेशान हो उठता. कभी वह मूड स्विंग्स का शिकार भी हो जाता था. औरत के स्वभाव के साथसाथ उस का शरीर भी एक औरत का हो जाएगा, यह सोच कर श्री ये सारे दर्द झेलता रहा.

40 साल के डाक्टर मुकेश माथुर शहर के जानेमाने सर्जन थे और उन्होंने कई इनाम भी जीते थे. उन्हें मरीज की मनोदशा का अच्छी तरह से पता था. वह  घंटों श्री का हाथ पकड़ कर उस के सिरहाने बैठे रहते और उसे हिम्मत बंधाते. श्री को उन का यह अपनापन बहुत अच्छा लगता था.

धीरेधीरे दवाएं और हार्मोन का असर श्री के शरीर पर आने लगा. सीने पर उभार आने लगे और शरीर के बाल पतले हो कर गायब होने लगे.

आखिर वह दिन भी आया, जब डाक्टर मुकेश माथुर ने श्री को औरत घोषित कर दिया.

डाक्टर माथुर ने श्री को नया नाम भी दिया, ‘‘नए शरीर के साथ तुम्हारा नया नाम होगा सिया.’’

श्री अपने नए नाम सिया को बारबार दोहरा रहा था और ऐसा करते समय उस की आंखों से आंसू लगातार बहे जा  रहे थे.

श्री से सिया बन कर उस के जीने  का अंदाज ही बदल गया था. सिया अपनेआप को घंटों आईने के सामने निहारती रहती थी.

उस ने सिया के नाम से नया फेसबुक एकाउंट भी बना लिया था. सब से पहली फ्रैंड रिक्वेस्ट उस ने अमर को भेजी. एक खूबसूरत लड़की का फोटो देख कर अमर ने तुरंत ही फ्रैंडशिप स्वीकार कर ली. धीरेधीरे फोन नंबरों का आपस में बदलना हुआ और अमर और सिया में बातचीत होने लगी.

सिया ने वीडियो काल कर अमर को अपनी खूबसूरती की एक झलक भी दिखला दी थी.

अमर सिया से मिलने के लिए बेचैन हो उठा और एक रैस्टोरैंट में बुलाया, फिर उसे बहाने से एक होटल के कमरे में ले गया. उस की मंशा सिया जैसी खूबसूरत लड़की को भोगने की थी, इसलिए वह सिया को बातों मे लगा कर उस के कपड़े उतारने लगा. सिया ने भी कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद सिया बिना कपड़ों के अमर के सामने खड़ी थी.

अमर अपलक सिया को निहारे जा रहा था. उसे अपनी बांहों में भर लिया था, पर जैसे ही सिया के शरीर में अमर ने समाने की कोशिश की, सिया ने उसे जोर का धक्का दिया.

यह देख अमर थोड़ा सा चौंक उठा, ‘‘अरे सिया, अब इतना नाटक क्यों कर रही हो?’’

‘‘मैं नाटक नहीं कर रही, बल्कि मैं तुम्हें यह अहसास कराना चाहती हूं कि तुम ने क्या खोया  है. यह सिया वही श्री है, जिस को तुम ने एक दिन अपनी बदनामी के डर से ठुकरा दिया था,’’  ऐसा कह कर सिया ने झट से कपड़े पहने और कमरे से बाहर निकल गई.

अमर को अपने ऊपर भरोसा नहीं हो रहा था कि यह सब हकीकत थी या कोई छलावा था.

सिया अपने मांबाप के साथ रहने लगी. महल्ले के लोगों को पता चल चुका था कि श्री ही सिया है, इसलिए सब उसे अजीब नजरों से देखते थे. कभीकभी 15-16 साल के लड़के पीठ पीछे उसे ‘हिजड़ा’ बोल कर हंसते हुए चले  जाते थे.

पहलेपहल तो सिया ने ध्यान नहीं दिया, पर जब इन चीजों की हद होने लगी, तो सिया के मन में खटास आने लगी.

‘‘मैं कोई हिजड़ा नहीं, बल्कि पूरी औरत हूं,’’ सिया फुसफुसा उठती थी.

इस दौरान सिया को हार्मोन थैरेपी के लिए डाक्टर मुकेश माथुर के पास जाना पड़ता था. उस दिन 14 फरवरी यानी ‘वैलेंटाइन डे’ था. डाक्टर मुकेश माथुर ने हाथों में एक सुर्ख गुलाब ले कर सिया को दिया.

‘‘क्या आप किसी लड़की को लाल गुलाब देने का मतलब जानते हैं डाक्टर?’’ सिया ने पूछा.

‘‘अच्छी तरह जानता हूं, तभी तो दे रहा हूं.’’ डाक्टर मुकेश माथुर ने कहा, ‘‘तुम्हारी सर्जरी करने के बाद मुझे तुम से मिलतेमिलते इतना प्यार हो गया है कि अब तुम्हारे बिना मुझ से रहा नहीं जाता है, इसलिए मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

एक ट्रांसजैंडर बनने के बाद से ही सिया एक ऐसे इनसान को ढूंढ़ रही थी, जो उस के साथ शादी करने की हिम्मत जुटा सके और उसे औरत के जिस्म का अहसास करा सके.

सिया डाक्टर मुकेश माथुर की ये बातें सुन कर फूली नहीं समा रही थी. उसे लग रहा था कि उस का सपना पूरा हो गया है.

सिया के मांबाप को भला इस फैसले से क्या एतराज होता… उन्होंने उस की हां में हां मिला दी.

एक सादा समारोह में डाक्टर मुकेश माथुर ने सिया से शादी कर ली. एक ट्रांसजैंडर की एक डाक्टर से शादी को लोकल अखबारों ने प्रमुखता से जगह दी. सोशल मीडिया पर भी डाक्टर मुकेश माथुर और सिया की शादी खूब सुर्खियों में रही.

शादी के बाद डाक्टर मुकेश और सिया जी भर कर सैक्स का सुख लेने लगे. अपने शरीर को ले कर सिया का हर तरह का डर खत्म हो गया था.

आज कुछ मीडिया वाले डाक्टर मुकेश माथुर का इंटरव्यू लेने आए थे, जो उन से बारबार वही जानना चाह रहे थे कि एक ट्रांसजैंडर के साथ शादी कर के उन्हें कैसा लग रहा है. पत्रकार घुमाफिरा कर उन के सैक्स संबंधों के बारे में ही सवाल पूछ रहे थे. उन के हर सवाल का डाक्टर मुकेश माथुर बड़ी गर्मजोशी से जवाब दे रहे थे.

पत्रकारवार्त्ता खत्म होने के बाद डाक्टर मुकेश माथुर के मोबाइल पर एक फोन आया, जिसे सुन कर वे बहुत खुश हुए और सिया से बोले, ‘‘सुनो सिया, मैं ने एक लिंग बदले हुए एक लड़के से शादी की है. मेरे इस हिम्मती फैसले के लिए मुझे मानव कल्याण संस्था वाले एक अवार्ड दे रहे हैं,’’ डाक्टर मुकेश चहक रहे थे. उन को खुश देख कर सिया भी खुश हो गई.

2 दिन बाद ही डाक्टर मुकेश माथुर को जब अवार्ड मिल गया, तो उस ने अपने कुछ डाक्टर साथियों को इस खुशी में घर पर पार्टी के लिए बुलाया. सारा खाना बाहर से मंगवाया गया था और महंगी वाली शराब का दौर चल रहा था. मुकेश के सभी साथी नशे में झूमने लगे थे.

‘‘यार मुकेश, शराब तो तू ने पिला दी, पर शबाब के लिए अपनी उस ट्रांसजैंडर बीवी को ही बुला ले,’’ एक साथी ने कहा.

‘‘हां यार, बड़ा मूड हो रहा है,’’ दूसरे साथी ने कहा.

‘‘नहीं यार, भले ही वह ट्रांसजैंडर हो, पर है तो उस की बीवी ही,’’ दूसरे दोस्त ने बचाव किया.

‘‘इन ट्रांसजैंडर की भी क्या इज्जत और क्या बेइज्जती? ये तो ग्रुप सैक्स के लिए भी राजी हो जाते हैं.’’

कमाल की बात यह थी कि डाक्टर मुकेश माथुर उन सब की बातों का कोई विरोध नहीं कर रहे थे, बल्कि उन की हां में हां मिला रहे थे.

दीवार के पीछे खड़ी सिया यह सब सुन रही थी. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. इतने में सिया ने अपनी पीठ पर किसी का मजबूत हाथ महसूस किया. ये डाक्टर मुकेश माथुर थे.

मुकेश सिया को घसीटते हुए अपने साथियों के सामने ले गए और बोले, ‘‘लो दोस्तो, शराब के बाद शबाब… मजे ले लो इस के.’’

‘‘यह आप क्या कर रहे हैं, मैं आप की पत्नी हूं.’’

डाक्टर मुकेश माथुर बड़ी जोर से हंस पड़े, ‘‘अरे ओ… मैं ने तुझ जैसे हिजड़े सौरी, ट्रांसजैंडर से शादी इसलिए की है कि मुझे समाज में सम्मान मिल सके, अवार्ड मिल सके… और मैं एक हिजड़े का उद्धार करने वाले डाक्टर के रूप मे जाना जाऊं,’’ नशे में डाक्टर मुकेश माथुर बुरी तरह हावी हो रहे थे, जबकि डाक्टर मुकेश के साथी सिया के कपड़े खींचने में लगे हुए थे.

कुछ ही देर में सिया उन सब के सामने नंगी खड़ी हुई फफक रही थी. वह हाथों से अपने सीने को ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी कि एक आदमी ने उसे बिस्तर पर गिरा लिया.

उस के बाद सभी लोगों ने बारीबारी से सिया के साथ मुंह काला किया और इस घटना का वीडियो भी बनाया, ताकि इस रेप की यादें ताजा रहें.

अगली सुबह जब सिया को होश आया, तब कमरे में कोई नहीं था, सिर्फ शराब और सिगरेट की बदबू थी.

सिया ने किसी तरह से कपड़े  पहने और उस की नजर आईने के टूटे हुए टुकड़ों पर पड़ी, जो उसे चिढ़ा  रहे थे मानो कह रहे हों कि तू एक हिजड़ा है, तू एक ट्रांसजैंडर है और  तुझे समाज वाले इज्जत की नजर  से कभी नहीं देखेंगे, बड़ी चली थी शादी करने…

सिया ने भरे मन से टूटे आईने का एक टुकड़ा उठाया और अपनी कलाई की नस को काट लिया. उस की कलाई से खून तेजी से टपकने लगा था.  सिया के कानों में अब भी आवाजें गूंज रही थीं… ‘ट्रांसजैंडर, हिजड़ा… हिजड़ा...’

लेखक : नीरज कुमार मिश्रा

Relationship Problem : पति रिटायर हो चुके हैं, वे देखने में चुस्तदुरुस्त, हैल्दी हैं

Relationship Problem : इन की कंपनी 55 वर्ष की उम्र में ही रिटायर कर देती है. इन का एक फ्रैंड्स ग्रुप बना हुआ है, जिस में इन्हीं की उम्र के लेडीज, जैंट्स हैं. सब आपस में बहुत घुलेमिले हैं. घूमते हैं, हंसीमजाक करते हैं और साथसाथ गेम्स, जौगिंग, फन एक्टिविटीज होती रहती हैं. उन के साथ ये मस्त रहते हैं. मुझे सब ठीक लगता है. लेकिन लेडीज के साथ इन का फ्री बिहेवियर मुझे पसंद नहीं. शिकायत करती हूं तो कहते हैं, ‘तुम भी साथ शामिल हो जाओ.’ मैं जरा इंट्रोवर्ट हूं. मुझे ये सब पसंद नहीं. क्या करूं, आप राय दीजिए.

जवाब : आप की उलझन अपनी जगह सही है और यह स्वाभाविक है कि आप अपने हसबैंड की रिटायरमैंट के बाद उन की नई रूटीन लाइफ और दोस्तों के साथ उन के बिहेवियर को ले कर थोड़ा अनकम्फर्टेबल महसूस कर रही हैं. पति का अन्य महिला दोस्तों के साथ हद से ज्यादा फ्री होना किसी भी पत्नी को पसंद नहीं आएगा. खासकर जब आप स्वभाव से इंट्रोवर्ट हैं, तो पति के दोस्तों के ग्रुप में घुलनामिलना आप के लिए मुश्किल है.

सब से पहले सिचुएशन को पति के दृष्टिकोण से देखते हैं. हो सकता है दोस्तों के साथ समय बिताना उन के लिए सिर्फ टाइमपास का जरिया हो. उन का उद्देश्य सिर्फ दोस्ती का आनंद लेना हो जो वे जौब में रहते हुए उठाने में वंचित रह गए हों अपनी व्यस्तता की वजह से. आप की फीलिंग्स को हर्ट करने का उन का कोई इरादा न हो.

खैर, आप अपने पति से शांत और सम्मानजनक तरीके से बात करें. उन्हें बताएं कि महिला दोस्तों के साथ उन के मजाक और फ्रीनैस आप को पसंद नहीं. दोस्ती की एक सीमा में रह कर हंसीमजाक और दोस्तों के साथ घूमेंगेफिरेंगे तो आप को कोई तकलीफ नहीं.

आप भी उन के साथ कुछ समय बिताने की कोशिश करें, ताकि आप को उन के दोस्तों के साथ घुलनेमिलने का थोड़ा अनुभव हो. हो सकता है कि शुरुआत में आप को मुश्किल लगे, लेकिन धीरेधीरे आप थोड़ा आरामदायक महसूस करेंगी. यदि पूरा ग्रुप आप को असहज करता है तो कुछ चुनिंदा लोगों से पर्सनल रूप से बातचीत करने का प्रयास करें.

आप अपना आत्मविश्वास बढ़ाने की भी कोशिश करें, जैसे किसी ग्रुप में बैठ कर थोड़ी बातचीत करना. आत्मविश्वास बढ़ने से आप को इस तरह की सामाजिक स्थितियों में ज्यादा सहजता महसूस होगी.

आप अपने पति के साथ कुछ खास समय बिताने की योजना बनाएं. रिटायरमैंट के बाद अपना जो खालीपन वे दोस्तों के साथ मिल कर भर रहे हैं उसे आप भरने की कोशिश कीजिए. दोनों साथ घूमें, कोई नया शौक शुरू करें, घर पर साथसाथ टाइम स्पैंड करें. इस से आप दोनों के बीच का रिश्ता मजबूत होगा और आप को उन की दोस्तों वाली बातें कम खटकेंगी. आखिर में हम यहीं कहेंगे कि पति पर भरोसा रखें, इसी में सुखी जीवन का राज है.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Wedding : बेटे के लिए लड़की ढूंढ़नी है, वह 28 साल का हो गया है

Wedding : पहले तो शादी के लिए राजी नहीं था लेकिन अब हो गया है. वह कहता है, आप ढूंढ़ लो. आप की पसंद मेरी पसंद. मैं ने बीड़ा तो उठा लिया है लेकिन आजकल के हालात और फ्रौड केसेस देख कर डर लगता है कि कहीं मैं ने गलत लड़की का सलैक्शन कर लिया तो? बेटा तो मुझे ही ब्लेम करेगा? बड़ी पसोपेश में पड़ गई हूं, क्या करूं?

जवाब : आप अपने बेटे के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ़ना चाहती हैं जो उस के लिए सही हो और उस की जिंदगी में खुशी ले कर आए. आप की चिंता यह है कि आप को सोशल मीडिया या औनलाइन वैबसाइट्स पर जो लड़कियां मिलती हैं, उन में कभीकभी असलियत नहीं होती और उन के बारे में पता नहीं चलता कि वे किस टाइप की हैं. इसलिए आप को एक सही तरीके से लड़की ढूंढ़नी है.

कुछ तरीके हैं जो आप अपने बेटे के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ़ने में अपना सकती हैं. आप एक अच्छी रिश्ते ढूंढ़ने वाली एजेंसी की मदद ले सकती हैं. ये एजेंसियां आप को ऐसी लड़कियां दिखाएंगी जो शादी को ले कर सीरियस हैं. एजेंसियां आप की जरूरतों के हिसाब से रिश्ता ढूंढ़ती हैं. उन का काम यह भी होता है कि वे लड़कियों के बैकग्राउंड और फैमिली को ठीक से जांचती हैं.

आप अपने परिवार और दोस्तों से भी मदद ले सकती हैं. अकसर, परिवार और दोस्तों के जरिए शादी के लिए अच्छे रिश्ते मिलते हैं जो ज्यादा रिलायबल और जेन्युइन होते हैं.

आप अपने समाज में होने वाले मैरिज फंक्शंस, कम्युनिटी इवैंट्स या शादी के मिलन समारोह में शामिल हों. ऐसे इवैंट्स में आप को लड़कियों से मिलने का अच्छा मौका मिलता है और आप उन की फैमिली बैकग्राउंड व नेचर के बारे में भी जान सकते हैं.

अगर आप को औनलाइन वैबसाइट्स से बचना है तो आप लोकल न्यूजपेपरों में मैट्रिमोनियल ऐड्स दे सकते हैं. यह एक पुराना और ट्रस्टेड मैथड है.

जब भी आप किसी लड़की को कंसिडर करते हैं, उस की बैकग्राउंड वैरिफिकेशन जरूर करें. आजकल कुछ प्रोफैशनल सर्विसेज हैं जो आप की मदद कर सकती हैं, जैसे कि फैमिली बैकग्राउंड, एजुकेशन, जौब और पर्सनल बिहेवियर को वैरिफाई करना.

सब से जरूरी बात यह है कि आप अपने बेटे से भी अच्छे से बात करें और उस की पसंद को समझ कर उस के लिए लड़की ढूंढें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Population : उत्तरी राज्य और दक्षिण राज्य

Population : उत्तरी राज्यों में जनसंख्या ज्यादा बढ़ने और दक्षिणी राज्यों में कम बढ़ने से लोकसभा की सीटों के लिए होने वाले परिसीमन से दक्षिण के राज्य चिंतित हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें बढ़ जाएंगी जबकि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में उस तरह नहीं बढ़ेंगी. गृहमंत्री से यह तो कहलवाया गया है कि दक्षिणी राज्यों की सीटें कम नहीं होंगी लेकिन उत्तरी राज्यों में जरूरत से ज्यादा नहीं बढ़ेंगी, ऐसा आश्वासन नहीं दिलवाया गया है.

धर्मभीरुओं, गौभक्तों व आरएसएस के गढ़ उत्तरी राज्यों में जनसंख्या ज्यादा बढ़ रही है जबकि दक्षिणी राज्यों में आर्थिक उन्नति ज्यादा हो रही है. उत्तरी राज्य पैसा मंदिरों और धार्मिक कामों में गंवा रहे हैं. उत्तरी राज्यों में अभी भी हिंदूमुसलिम, दलितसवर्ण, यादवकुर्मी विवादों में सिर फोड़े जा रहे हैं और दक्षिणी राज्य फैक्ट्रियां लगा रहे हैं, बढि़या शिक्षा संस्थान खड़े कर रहे हैं, अस्पताल बनवा रहे हैं, अनुशासित हैं, ज्यादा सभ्य हैं.

उत्तर व दक्षिण की यह लड़ाई टेढ़ा मोड़ न ले ले, यह डर सताने लगा है. दक्षिण के नेताओं की अब केंद्र की राजनीति पर पकड़ बहुत कम रह गई है. केंद्र की शक्ति अब सिमट कर उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे 2 राज्यों के नेताओं के हाथों में रह गई है. दक्षिणी राज्यों पर उत्तरी राज्यों के नेताओं के फैसले थोपे जा रहे हैं चाहे मामला शिक्षा में भाषा का हो या जीएसटी और आय कर के बंटवारे का.

एक जमाना था जब भरभर के दक्षिणी राज्यों के मजदूर और शिक्षित लोग उत्तरी राज्यों में सरकारी व गैरसरकारी नौकरियां करने के लिए आते थे. अब तो दक्षिणी राज्यों में बिहारी और उत्तर प्रदेश के मजदूर जा रहे हैं क्योंकि जब उत्तर के राज्य मंदिर बनाने में लगे थे तब दक्षिण भारत के लोग अपने को स्वावलंबी और शिक्षित बनाने में लगे थे.

वहां भी ब्राह्मणवाद था, वहां भी जातिवाद था पर फिर भी वहां उदारता की लहर भी थी. सदियों तक वहां पिछड़े वर्गों के राजाओं के साम्राज्य पनपे थे जिन्होंने कभी कट्टरता को लागू किया तो कभी उदारता दर्शायी. वहां चेतना पहले जागी पर वह चेतना ब्राह्मणवादी नहीं, खुद को सुधारने की थी. नतीजा यह हुआ कि चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, त्रिवेंद्रम जैसे छोटे शहर धीरेधीरे विशाल मैट्रो बन गए जिन का उत्तर के शहरों से ज्यादा अच्छा प्रबंध हो रहा था.

वहां जनसंख्या नियंत्रण हुआ, वहां रामचरितमानस की गंध नहीं फैली. आज दक्षिणी राज्यों की आर्थिक उन्नति से उत्तर भारत के राज्य जल रहे हैं और लोकसभा में उन का स्थान और महत्त्व कम करने का प्रयास कर रहे हैं. वे विघटन का बीज बो रहे हैं. हालांकि विघटन तो नहीं हो सकता लेकिन खटपट चलती रहेगी. भारत की समृद्धि अब दक्षिणी राज्यों पर निर्भर है और उन्हें विवादों में फंसा कर दिल्ली की केंद्र सरकार अपना उल्लू सीधा करना चाह रही है.

Emotional Story : इंसाफ की सीवन

Emotional Story : ‘बालात्कार की मारी युवती को कोर्ट के अहाते में चाय की दुकान चलाने वाली से कैसा सहारा मिला?

“यहां बैठ जाऊं, चाची?” रेखा ने चबूतरे पर चाय की दुकान सजाए एक बुजुर्ग औरत से कहा.

“चाय पीनी है?” बुढ़िया ने बिना उस की ओर देख सवाल किया.

“पैसे नहीं हैं मेरे पास.”

“फिर काहे मेरी दुकान की जगह घेरनी है?”

“ठीक है नहीं बैठती,” इतना कह कर रेखा वापस मुड़ गई.

बुढ़िया ने उस की ओर नजर उठाई.पीला सलवारकुरता पहने एक लड़की पीठ फेरे खड़ी थी. रोज कोर्ट में कई लोगों को आतेजाते देख उस की आंखों ने उन्हें तोला है, लेकिन यह लड़की कुछ अलग थी.

“रुक, बैठ जा,” बुढ़िया बोली.

रेखा ने अपना झोला चबूतरे पर रख दिया और पैर ऊपर कर बैठ गई.बुढ़िया की निगाहें उस का ऐक्सरे करने लगी. चौड़े माथे वाली दुबलीपतली गेहुंए रंग की यह लड़की कुंआरी है या शादीशुदा, पता नहीं चल रहा था. वह चुपचाप अपने में खोई कोर्ट में आतेजाते लोगों को देख रही थी.

“2 चाय बना दे हसीना,” अपना नाम सुन कर बुढ़िया की नजर ऊपर उठी.

“अदरक वाली या बिना अदरक वाली?”

“डाल दे अदरक भी. पैसे कौन सा अपनी जेब से लगने हैं.”

“हां, बेचारे गरीबों की जेब से निकालते हो तुम नाशपीटे काले कोट वाले,” हसीना ने मुंह बनाते हुए कहा.

“तेरी दुकानदारी भी तो इन से ही चल रही है चाची,” आदमी ने कहा.

“चलचल, अपनी चाय ले और बातें न बना,” हसीना ने मुंह बिचका कर कहा. आदमी हंसते हुए चुपचाप चाय ले कर वहां से चला गया.

रेखा का ध्यान हसीना की ओर चला गया जोकि चाय के भगोने से जमी हुई पत्ती खुरच रही थी. रेखा को अपनी ओर देखती हसीना के हाथ रुक गए. रेखा की आंखों में कुछ तो था जो उसे झिंझोड़ रहा था.

“मुझे क्यों घूर रही है बीवी? चाय पीने हैं तो बना दूं. मत देना पैसे,” हसीना ने कहा.

“नहीं, चाची रहने दो. मैं… बस…” कुछ झिझक के साथ रेखा बोलतेबोलते रुक गई.

“अरे बता दे…क्या पता कुछ मदद कर दूं. ये काले कोट वाले मानते हैं मुझे. वकील के लिए आई है क्या?” हसीना ने उसे कुरेदते हुए पूछा.

“चाची…मुझे कल फिर यहां आना है.. ठहरने के लिए कोई…” रेखा की आवाज में डर था.

“कहां रहती है तू?” हसीना ने पूछा.

“बलरामपुर.”

“अरे, इस समय तुम वापसी भी नहीं कर सकतीं. दूर बहुत है बलरामपुर. अकेले क्यों आई कोर्ट में. कोई है नहीं क्या?” हसीना ने रेखा से कुछ तेज आवाज में कहा. रेखा बिना कुछ बोले वहां से उठ गई.

“अरे, खड़ी क्यों हो गई? बैठ जा. मेरी बात बुरी लग रही है तो कुछ नहीं पूछूंगी. आज रात चाहे तो मेरे पास रुक जा,” हसीना बोली.

“न चाची, मैं कर लूंगी कुछ,” इतना कह कर रेखा आगे बढ़ गई. हसीना उसे जाते देखती रही. तभी एक ग्राहक चाय के लिए आया तो वह अपने काम में फिर से मसरूफ हो गई.

शाम का धुंधलका छाने लगा था. कोर्ट के बस्ते बंद होने लगे. हसीना भी अपनी दुकान को समेट कर एक बोरे में भरने लगी. हसीना को बारबार रेखा का खयाल आ रहा था. शाम की ओर देखती हसीना अनजान चिंता अपने दिल में बैठाए जा रही थी. बोरे को सिर पर उठाए हसीना कोर्ट के गेट के बाहर थी. 4 कदम ही चली थी कि सड़क पर बने चबूतरे पर गठरी बनी रेखा को देख चहक सी गई,”मुई, यहां क्या कर रही है? गई क्यों नहीं?” हसीना ने लगभग डांटते हुए पूछा. रेखा ने गरदन उठा कर हसीना की तरफ देखा. बिना जवाब दिए वापस घुटनों में सिर दे कर बैठ गई.

“तुझ से पूछ रही हूं, यहां क्यों बैठी है?” हसीना ने जोर दे कर कहा.

“मैं…बैठ गई,” रेखा ने गरदन उठा कर जवाब दिया.

“हां, दिख रही है कि बैठ गई लेकिन यहां क्यों बैठ गई? रात में इंसान के भेष में घूमते भेङिए तेरी देह नोंच खाएंगे. चल उठ, यह बोरा उठा कर चुपचाप पीछे आ,” हसीना ने सख्ती से आदेश देते हुए कहा.

एक पल को रेखा अचकचा गई लेकिन फिर उठ कर बोरे को अपने सिर पर रख ली. हसीना आगे बढ़ने लगी और रेखा उस के पीछे. 15-20 मिनट बाद वे लोग एक छोटे से घर के सामने खड़े थे. अपनी कुरती की जेब से चाबी निकाल हसीना ताला खोलने लगी और रेखा आसपास के माहौल को ताकने लगी.

“चल, आजा भीतर,” दरवाजे को धकेल अंदर घुसते हुए हसीना ने कहा. रेखा चुपचाप अंदर जा कर बोरा नीचे रख खड़ी हो गई.

10 मिनट बीते होंगे, हसीना हाथ में थाली पकड़े भीतर आई और रेखा के सामने कर के बोली, ले यही है, खा कर पेट को तसल्ली दे.”

“मुझे भूख नहीं है चाची,” रेखा ने प्यार से जवाब दिया.

“भूख नहीं है? बावली समझ रखा है क्या? सूखी रोटियां कैसे खाऊं, यही सोच रही है न?”

“नहीं चाची, मैं ऐसा नहीं सोच रही. जाने क्यों भूख नहीं लग रही.”

“चल समझ गई. तेरे मजहब की नहीं हूं न इसलिए नहीं खा रही,” हसीना कुछ अनमनी सी बोली.

“अरे, ऐसा क्यों सोच रही हो चाची? लाओ, खा लेती हूं लेकिन आप भी आओ,” रेखा ने थाली अपने हाथ में ले कर कहा और रोटी से टुकड़ा तोड़ कर हसीना की ओर बढ़ा दिया.

“अरी खा ले बावली, मैं खुद ले लूंगी.”

हसीना ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा और चारपाई पर बैठ गई.
“भूख भी कैसी बीमारी है न चाची, इलाज ही नहीं है किसी के पास. दुख हो तो भी रोटी चाहिए और सुख हो तो भी.”

“सही कहती है रे. पेट की आग ऐसी ही है…चल बातें बाद में करना. यह थाली भीतर बावर्चीखाने में रख आ और पड़ जा. थक गई होगी काले कोट वालों के चक्कर काटते,” चारपाई पर लेटते हुए हसीना बोली.

“मुझे थकान नहीं होती. हो ही नहीं सकती,” रेखा उठ कर भीतर जाते हुए बोली.

“क्यों इस छटांक भर जिस्म में मशीन फिट कर दी किसी ने,” हसीना बोली. वापस आ कर रेखा चाची के पास जमीन पर ही बैठ गई.

“तू किसलिए कोरट के चक्कर काट रही है? तेरे घर में कौन है?” हसीना के सवाल पर रेखा ने ठंडी सांस भरी. वह चुपचाप हसीना को देखने लगी.

“क्या देख रही है मुई, इस चेहरे पर दुख के सिवा कुछ नहीं दिखेगा.”

“वही देख रही हूं चाची. जाने क्यों तुम्हारे चेहरे पर छाया दुख अपना दुख लगता है. बेलोस सा, नकटा सा,” रेखा ने कहा.

“दुख नहीं नासूर है मेरी जिंदगी का. रोज खरोंच देती हूं ताकि खुरंट न जमे. जम गया तो भूल न जाऊंगी इस दुख को,” हसीना ने सिरहाने रखी एक तसवीर को उठा कर सीने से लगा लिया. कमरे में गहरे कुएं सा सन्नाटा फैल गया. दोनों अपनी आंखों में सुई गाड़तीं जैसे कुछ कुरेद रही थीं.

“तू बता, जरा सी उम्र में क्यों कोरट के चक्कर में पड़ गई? घर में कौन है तेरे?” हसीना ने कुएं में जैसे पत्थर फेंका.

“कहने को सब हैं काकी. फिर भी कोई नहीं,” इतना कह कर रेखा हंस पड़ी.

” कोई नहीं होता…कौन होता है अपना…हा…हा…हा…अपना सब दे कर भी किसी को अपना नहीं बना सकते,” रेखा के बोलने और हंसने की रफ्तार बढ़ती जा रही थी. हसीना उस के चेहरे पर छाई मलीनता को देख सिहर सी गई. रेखा हंस रही थी लेकिन आंखों से पानी बह रहा था.

“होश में आ बीबी, क्यों हंस रही है? होश में आ,” हसीना ने उसे जोर से झिंझोड़ा. रेखा एकदम चुप हो हसीना को देखने लगी फिर जोर से रोना शुरू कर दी. हसीना उस के करीब आ कस कर अपने सीने में रेखा को भींच ली. कमरे में जलता बल्ब और खिड़की पर रेंगता परदा भी जैसे रेखा के रोने से बेचैन थे. वह हसीना के सीने से लगी रोती रही और हसीना उस की पीठ को सहलाती रही. कहने को 2 अनजान औरतें थीं लेकिन जैसे आंसू एक थे दोनों के. हसीना को रेखा के दिल में चलती धड़कनें भी टूटी लग रही थीं.

कहते हैं, औरत समुद्र बन जाती है क्योंकि दुनिया के दिए दुखों के तरल को पी कर वह जिंदा रहती है. अनुभव का खारापन और ठोकरों का लवण उस के समुद्र में जीवाश्म इकट्ठा करते हैं. यह जीवाश्म उस की यादों के हैं.

“मैं ठीक हूं चाची. आप सो जाओ…मैं ठीक हूं,” रेखा अपनी आंखों को साफ करती हसीना से कुछ दूर सरक गई.

“सो जाऊंगी. वैसे भी बुढ़ापे में नींद किसे आती है. तेरी आंखों में लिखी इबारत पढ़ने की कोशिश कर रही थी. हो सके तो बता दे मुई. हलका हो जाएगा मन,” हसीना ने रेखा के सिर पर हाथ फेर कर कहा.

“क्या बताऊं काकी, औरत के पास बताने के लिए है ही क्या? दुनिया उस के बारे में इतना बता चुकी होती है कि दुनिया के किस्से ही हमारी सचाई बन जाते हैं…क्या बताऊं बताओ…” रेखा दुखी हो कर बोली.

“दुनिया निगोड़ी को चूल्हे में डाल. मुझे देख, 20 साल से अपने बेटे के सम्मान के लिए लड़ रही हूं. रोज मरती हूं, रोज जीती हूं लेकिन हिम्मत नहीं हारी. इस दुनिया ने तो मेरे माथे पर लिख दिया आतंकवादी की मां, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरा अकरम ऐसा नहीं कर सकता था. वह आतंकवादी नहीं था और यह मैं साबित कर के रहूंगी,” हसीना के शरीर में कंपन होने लगी. अकरम की तसवीर को सीने से लगाए बुदबुदाने लगी,’मुझे यकीन है अपनी कोख पर. मेरी औलाद गद्दार नहीं. नहीं है गद्दार. तू देख लेना अकरम, मैं तेरे माथे का कलंक हटा कर रहूंगी, हटा कर रहूंगी,’ हसीना की बड़बड़ाहट धीरेधीरे कम होने लगी और वह नींद में चली गई. रेखा हसीना के मासूम चेहरे को निहारने लगी. वह एक बच्ची सी लग रही थी.

रात आगे बढ़ रही थी. रेखा की पलकें बोझिल होने लगीं और वह जमीन पर ही लेट गई. अभी कुछ देर ही हुई थी कि किसी ने उसे जोर से झिंझोड़ा.

“उठउठ…सो गई क्या?” रेखा ने आंखों को खोल कर देखा तो हसीना उस के सिर के पास ही बैठी थी.

“क्या हुआ चाची, सुबह हो गई क्या?” रेखा ने चारों ओर देख कर कहा.

“नहीं, सुबह नहीं हुई. पहले यह बता तू है कौन और यहां कैसे आई?” हसीना के सवाल पर रेखा चौंक पड़ी.

“आप ही लाई थीं मुझे अपने साथ. कोर्ट से,” रेखा ने हसीना को बताया तो हसीना माथा पकड़ कर बैठ गई.

“अच्छा, याद आया लेकिन तू कोरट क्यों आई थी और तू है कौन?”

“बलरामपुर में रहती हूं. कोर्ट में अपने केस की तारीख पर आई थी,” रेखा ने कहा.

“तो अकेली आई थी? घर में कोई नहीं तेरे, मांग में तो सिंदूर भी नहीं दिख रहा है…” हसीना एकसाथ अनेक सवाल कर गई.

“अकेले की लड़ाई है. अकेली ही लडूंगी. मेरी इज्जत की लड़ाई. मेरे स्वाभिमान की लड़ाई,” रेखा हांफते हुए बोली.

“क्या बीता तेरे साथ. कुछ तो बता पगलिया,” हसीना उस के पास उकङूं बैठ गई.

“16 साल की थी जब ब्याह दिया था मुझे. 10 साल बड़ा था मेरा मरद. एक हाथ छोटा था उस का. टुंडा कहते थे सब उसे. मेरी जान जलती थी यह सुन कर लेकिन कुछ कह नहीं पाती थी,” रेखा की आंखें जुगनू से चमक उठे.

“तुम्हें पता है चाची, प्रेम बहुत करता था मुझे. 2 साल तक मुझे छुआ भी नहीं. भला बहुत था वह,” रेखा अचानक चुप हो गई.

“था मतलब? अब भला नहीं रहा?” हसीना ने हैरानी से पूछा.

“जिंदा ही नहीं रहा तो भला कैसे रहेगा?” रेखा लड़खड़ाती जबान से बोली.

“कुछ समझ नहीं आ रहा था. ठीक से बता रे,” हसीना डपटते हुए बोली.

“मेरे पति का कत्ल हुआ था. मार डाला था उस के अपनों ने,” इतना कह रेखा जोरजोर से रोने लगी.

“हाय, यह क्या कह रही है तू. कौन अपने?” हसीना के कान गरम हो उठे.

रेखा अपनी गुजरी जिंदगी में लौट आई. संतोष था उस के पति का नाम. नाम के अनुरूप संतोषी. वरना कौन पागल अपनी पत्नी को 2 साल तक इसलिए हाथ न लगाए क्योंकि वह नाबालिग है. संयोग रेखा को एक सुंदर संसार में ले आई थी जहां वह थी, संतोष था और थे संतोष के सपने, रेखा को पढ़ाने के सपने. पिता के मरने के बाद संतोष घर का मुखिया बन बैठा. पढ़ाई को किनारे कर के खर्चों के लिए दिनरात खेत में जुट गया. एक हाथ कुछ छोटा था संतोष का लेकिन हिम्मत छोटी नहीं थी. परिवार के विरोध के बाद भी रेखा को हाईस्कूल का फौर्म भरवा पढ़ने को प्रेरित करता रहा. वह भी संतोष के दिखाए सपने को आंखों में सजा आगे बढ़ने लगी. प्रथम स्थान ले कर हाईस्कूल की परीक्षा पास कर संतोष के दिल में सपनों के पेड़ को रोंप आई.

सास की आंखों में रेखा का पढ़ना आवारागर्दी थी और इसलिए रातदिन उसे कोसती रहती. पर रेखा संतोष का साथ पा कर हंसती रहती. दोनों ननद की शादी और 12वीं की परीक्षा. हर काम को उत्साह से करती रेखा. 12वीं में भी अव्वल आई. संतोष का मन उसे स्नातक कराने का था लेकिन यह इतना सरल नहीं था. घर में महाभारत छिड़ गई. संतोष ने अपना चूल्हा अलग कर लिया. यहीं से शुरुआत हुई उस के जीवन में काले अंधेरे की. रेखा को दुश्मन मान सास और देवर उसे संतोष से दूर करने की कोशिशें करने लगे.

वह काली रात थी जब रेखा को पैर मुड़ने के कारण मोच आ गई और वह रसोई में नहीं जा पाई. संतोष ने जैसे ही रसोई में कदम रखा तेज बिजली के झटके से नीचे गिर पड़ा. उस की चीखें रेखा के कानों में अब भी सुनाई देती है. वह बच गई लेकिन संतोष चला गया.

“उसे मारा था.. मारा था…मुझे कभी पता नहीं चलता अगर उस रात वह…बबलू…वह बबूल…मुझ से जबरदस्ती न करता,” रेखा की आंखों के सामने बबलू का बीभत्स चेहरा चमकने लगा.

संतोष को गए 2 महीने ही हुए थे. उस रात बबलू उस के कमरे में आया और जबरन गले लग गया. अपने को बचातीभागती रेखा के कानों में लावा उतर गया जब बबलू ने करंट वाली बात कबूली.

“देख रेखा, चुपचाप मुझे खुश कर दे वरना तेरा हसर भी तेरे पति जैसा कर दूंगा,” बबलू ने दांत पीसते हुए कहा.

“मतलब, तू कहना क्या चाहता है? बोल कमीने,” रेखा उस के कौलर को खींच कर बोली.

“मतलब यह कि करंट तेरे लिए था लेकिन ले गया संतोष को. सब तेरी वजह से हुआ. मेरा भाई तेरी वजह से मरा,” इतना कह बबलू रेखा को दबोच कर चारपाई पर गिरा दिया और उस के मन और तन दोनों को तोड़ दिया.

अपनी अस्मिता को लुटता देख कर भी रेखा कुछ नहीं कर पाई. उस का दिमाग झुलसे संतोष के जिस्म के दर्द से करहाने लगा. वह पड़ी रही निष्क्रिय हो कर.

“मुझे गंदा कर दिया था उस ने. मेरा शरीर मेरे पति का था लेकिन बबलू…उस हरामी ने मुझ से मेरा सब छीन लिया,” हांफने लगी रेखा.

“तेरी सास कहां थी? उस ने क्यों नहीं रोका उस दरिंदे को,” हसीना की आत्मा तड़प उठी.

“सास नहीं है वह. राक्षसी है. बस, जीवन में एक अच्छा काम किया. मेरे पति को पैदा किया. वह चुप रही. अपनी औलाद को समर्थन देती रही. 3 दिन लगातार वह मुझे नोंचता रहा. उस रात जब वह आया मैं ने उस की मर्दानगी पर लात मार दी और निकल आई घर के बाहर.

“मैं चिल्ला रही थी. भीड़ भी लगी थी लेकिन मुझे कुलक्षिणी साबित कर दिया. मुझ पर बबूल पर झूठा आरोप लगाने का इलजाम डाल दिया उस औरत ने जो मेरी सास थी. मेरा पति छीन लिया, मेरी इज्जत छीन ली. अब तो अपनी लाश ढो रही हूं न्याय की उम्मीद लिए. कोई नहीं है मेरा. कोई नहीं,” रेखा की जबान से निकले शब्द लावे से बह कर हसीना के दिल को फूंकने लगे. वह देर तक रेखा के चेहरे को देखती रही. फिर उस के हाथों को अपने हथेलियों में ले कर बैठ गई. रेखा सुबक रही थी और हसीना उस के दुख में बह रही थी.

कमरे में रेखा की सिसकियों की आवाज और सड़क पर कुत्ते के रोने की आवाज अजीब सी स्थिति पैदा कर रही थी.

“अब थम जा. रोक ले इन आंसुओं को. लड़ने के लिए जान चाहिए शरीर में. और तू तो अपने को ही मारे जा रही है. चुप हो जा मेरी लाडो,” हसीना उसे समझाते हुए बोली.

“जीने की इच्छा नहीं है, चाची. बस, संतोष को न्याय दिला दूं. उस की मौत उस की पत्नी के इज्जत के लुटेरे को सलाखें दिलवा दूं, फिर चाहे मौत तुरंत ले जाए मुझे,” रेखा बोली.

“न्याय इतनी जल्दी नहीं मिलती मेरी बच्ची. मुझ बुढ़िया को देख. सालों से इंसाफ के लिए जी रही हूं. अपनी औलाद के माथे लगे कलंक को धोने के लिए न जाने कितनी रातें जाग कर गुजारी हैं लेकिन उम्मीद नहीं खोई. जीत मेरी होगी यकीन है और सुन, तू आज से अकेली नहीं है. मैं हूं तेरे साथ, तेरी चाची, तेरी मां,” इतना कह हसीना ने उस के माथे को चूम लिया.
अपनत्व के स्पर्श से रेखा के मन का विलाप तसल्ली पाने लगा. वह बच्ची की तरह हसीना की गोद में सिर रख कर लेट गई. हसीना उस के बालों को उंगलियों से सहलाने लगी.

“चाची, मैं गलत तो नहीं कर रही न? उन दरिंदों का संतोष के साथ खून का रिश्ता था. मेरा संतोष मुझ से नाराज तो नहीं होगा न?” रेखा धीरे से बोली.

“न पगली, अगर उन्हें माफी मिल गई तो तेरा संतोष मर कर भी खुश नहीं रहेगा. उस के कातिल हैं वे. इंसाफ दिला तू संतोष को. जीत कर दिखा,” हसीना बोली.

“हां, चाची मैं जीतूंगी…मैं संतोष को दुखी नहीं होने दूंगी. मैं जीतूंगी,” रेखा के स्वर की दृढ़ता बाहर उगते सूरज की तरह रौशनी लिए थी. उजाला हो रहा था मगर 2 दुखिया बैठी अपनेअपने दुख सी रही थी.

Best Hindi Story : मकान को घर बनाने वाली का कोना कौन सा ?

Best Hindi Story : “क्या सोनम, आजकल तुम बहुत देर करने लगी हो सोने में?” नवीन ने चिढ़ते हुए कहा.

सोनम बोली, “मैं फिल्म देख रही थी, लाइव शूटिंग, बगीचे में हीरोहीरोइन बैठे रोमांस कर रहे हैं… उम्र हमारी है. मजे ये ले रहे हैं, हा… हा… हा…”

“क…क…क…क्या मतलब है तुम्हारा? किस की बात कर रही हो?” नवीन किसी पड़ोसी को समझ कर हंसते हुए बोला.

“और कौन…? तुम्हारे मम्मीपापा आजकल सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो रहे हैं,” सोनम ने हंसी उड़ाते हुए कहा.

“आओ… चुपचाप चलो मेरे साथ गैलरी में, दबे पांव देखना. हद कर दी है, उम्र पचपन की दिल बचपन का,” सोनम बोली.

“अरे यार, उन को छोड़ो,
अपनी बात करो. वे दोनों तो सठिया गए हैं बुढ़ापे में, लैलामजनू बन रहे हैं,” नवीन ने उखड़े स्वर में कहा.

फिर औफिस बैग से एक बौक्स निकाल कर पूछा, “इस नेकलेस की डिजाइन कैसी लग रही है?”

“लवली,” सोनम अदा से बोली.

नवीन ने उस के गले में पहना कर हीरो राजकुमार के अंदाज में कहा, “आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं, इन्हें जमीन पर मत रखिएगा,” और धीरे से उस के गालों पर एक जोरदार किस दे दिया.

तब तक अशोकजी ने नवीन को फोन लगाया.

“हुंह बजने दो,” सोनम मुंह बिचका कर बोली, “स्विच औफ कर दो.”

“अब इन लोगों के पैर बिना गाड़ी नहीं चलते, जब से घर में रहने लगे हैं, न किटी हो पाती है इधर और न ही कोई आता है. कहीं आओजाओ तो भी देर लगने का हिसाब दो…” सोनम उस के और करीब बैठ गई और दीवार पर लगी शादी की तसवीर को ध्यान से देखने लगी.

सोनम बोली, “नवीन, कौन कहेगा हमारे 2 बच्चे हैं. अब भी तुम पहले जैसे ही रोमांटिक हो…”

नवीन मुसकराते हुए बोला, “क्यों न हो, जिस की पत्नी इतनी सुंदर हो,” और नवीन ने एक बार फिर उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

सोनम प्यार से देखते हुए बोली, “नवीन, यह नेकलेस काफी महंगा लग रहा है…?”

नवीन हंसते हुए बोला, “होने दो. तुम ने ये डिजाइन पसंद की थी, तो लाता कैसे न…”

“लेकिन, पापाजी ने कल घर के खर्च में सहयोग करने को कहा था, तो तुम ने तनख्वाह न मिलने का बहाना किया था… पर, अब क्या कहोगे, अगर इस हार के बारे में पूछा तो?” उस ने उलझन में पड़ते हुए कहा.

“तो… अब पापा रिटायर हैं. इतनी पैंशन है, कहां खर्च करेंगे इतनी रकम…?”

“यार, हम लोगों पर ही खर्च होगी. जैसे पहले चल रहा था, सब वैसे ही चलने दो…”

“क्या चलने दूं, जब से पापा रिटायर हुए हैं, तब से मम्मी ने घर के काम मे इंट्रैस्ट लेना कम कर दिया है…

“पहले मैं कितना घूम लेती थी, लेकिन अब तो रोज उन को साथ ले कर कहीं न कहीं घूमने चले जाते हैं, वरना दिनभर बगीचे में झूले पर बैठे रहेंगे.”

“चलो, मूड मत खराब करो. सो जाओ,” और जब अगले दिन उन की आंख खुली, तो कमरे के दरवाजे पर कोई तेज दस्तक दे रहा था…

“सुबह के साढ़े 8 बजे हैं… अब तक तो पीहू के स्कूल का टाइम हो जाता है…” सोनम ने बौखलाहट से कहा.

“अरे यार, मम्मीपापा को सुख लेने दो दादादादी बनने का,” नवीन चिढ़ कर बोला.

मगर, जब दस्तक बढ़ती गई, तो नवीन को दरवाजा खोलना ही पड़ा, सामने उस की बेटी पीहू खड़ी थी…

उस ने चौंक कर पूछा. “अरे, पापा की जान आज स्कूल नहीं गई…”

“नो पापा, आज दादी के पैर में चोट लग गई है,” दादू उन को दवा लगा रहे हैं, गार्डन में… उन्हें गाड़ी की चाभी चाहिए…”

नवीन हड़बड़ाहट में चाभी देने बाहर निकला, तो उस ने देखा कि उस के पिता अशोकजी बगीचे में लगे हुए झूले में बैठे हैं और अपनी पत्नी प्रभा के पैरों में दवा लगा रहे हैं…

वे बड़ी अदा से कह रहे थे, “आप के पांव देखे, बहुत खूबसूरत हैं जमीन पर मत रखिएगा. और वे शरमाई जा रही थीं…

उन दोनों को एकसाथ बैठे देख कर नवीन थोड़ा कुढ़ते हुए बोला, “पापा, आज पीहू स्कूल क्यों नहीं गई?”

अशोकजी ने उत्तर दिया, “क्योंकि वह तुम्हारी और बहू की जिम्मेदारी है, रातभर हम दोनों को कुशल (नवीन के बेटे) ने सोने नहीं दिया… कल गाड़ी की चाभी भी नहीं दी. फोन किया तो उठाया नहीं…

“बरखुरदार, अब तुम दोनों सिर्फ पतिपत्नी ही नहीं, मांबाप भी हो…”

नवीन उलटे पैर पटकते हुए अपने कमरे में गया और बोला, “सोनम, तुम सच कह रही थी… पापामम्मी हद किए रहते हैं आजकल… चाय लाओ…”

सोनम रसोईघर में गई तो देखा, वहां कुछ भी नहीं बना हुआ था. उस का मूड और खराब हो गया. वह अपने कमरे में लौट गई…

तभी सोनम की मां का फोन आ गया. वह बिफर कर बोली, “क्या बताऊं मम्मी, आजकल तो बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है. जब से पापाजी रिटायर हुए हैं, दोनों लोग फिल्मी हीरोहीरोइन की तरह दिनभर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं… न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है, न बहूबेटे का. इस उम्र में दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं…”

तब तक हाथों में चाय की केतली लिए हुए चाय पीने के लिए सोनम को पूछने आई प्रभाजी उस के कमरे की तरफ बढ़ीं, पर उदास मन से रसोई में दाखिल हुईं. उन्होंने सुन सब लिया था, पर नजरअंदाज करते हुए खामोशी से 2 कप में चाय ले गईं और सोनम को भी उसी के कमरे में दे दी.

उन्हें अशोकजी के लिए चाय ले जाते देख उन की बहू सोनम के चेहरे पर फिर से व्यंग्यात्मक मुसकान तैर गई. पर, वह नजरअंदाज कर सिर झुकाए निकल गईं. पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उन की यही दिनचर्या हो गई थी…

अशोकजी की इच्छानुसार अच्छे से तैयार हो कर अपने घर के सब से खूबसूरत हिस्से अपने पेड़पौधों के साथ बैठना, क्योंकि सारी उम्र तो उन की बच्चों के लिए जीने में निकल गई थी. उन का कहना था कि बच्चों को उन की जिम्मेदारी उठाने दो, बस वाजिब सहयोग करिए…

पांडेय विला… दोमंजिला कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवनभर का सपना था, बड़ा खूबसूरत लगता देखने में, उस पर वातावरण भी बेहद सुरम्य…

20 बाई 20 गज की कच्ची जगह भी थी उस घर में बाहर, जहां था प्रभा के सपनों का बगीचा… बेला के पौधे, हरसिंगार का घनेरा पेड़, अंगारों सा दहकता गुड़हल का पेड़ और छोटा सा टैंक, जिस में कमल के फूल खिले रहते…

जाड़े में तो रंगबिरंगे फूल डहेलिया, गुलाब, पैंजी और तमाम किचन गार्डन की सब्जियां चार चांद लगा देतीं देखने वाले की आंखों में और रसोईघर में भी. ताजा धनिया, पोदीना, मेथी की बहार रहती…

हर मौसम में घर खुशबू और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर रहता. उस पर वहां पड़ा झूला. जो भी वहां बैठ जाता तो उठने की इच्छा ही न होती उस की…

जाड़ों में वहीं तसले में आग जलती और भुने आलू, शकरकंद के मजे लिए जाते तो बरसात में सुलगते कोयलों पर सिंकते भुट्टे स्वर्ग के आनंद की अनुभूति करवाते…

अशोकजी ने वह जगह छुड़वाई तो प्रभा और अपने लिए कमरे के लिए थी, लेकिन संयोग ऐसा बना कि जिम्मेदारी ने उन्हें उस जगह का इस्तेमाल ही न करने दिया…

ऐसे में प्रभा ने अपने खाली समय और उस खाली जगह का इस्तेमाल इस बुद्धिमत्ता से किया कि वह कोना घर की जान बन गया…

उन का पूरा खाली समय वहीं बीत जाता. अब उन्हें उस जगह उन का कमरा न बन पाने का मलाल भी न था… पर प्रभा का अरमान था कि घर में झूला हो तो अशोकजी ने उसे वहां जरूर लगवा दिया…

पेड़ों से लगाव कुछ ऐसा हो गया कि फिर दोनों में से किसी की इच्छा उन के स्थान पर कमरा बनवाने की हुई ही नहीं…

पर वह और अशोक कभी एकसाथ उस जगह कम ही बैठ पाते, कभी प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े जिंदादिल शब्दों में कहते, “पार्टनर रिटायरमैंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खाएंगे… हर शिकायत दूर कर देंगे. फिलहाल तो हमें बच्चों के लिए जीना है…

बच्चों के कैरियर पर सबकुछ बलिदान हो गया. अब बेटा भी अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी…

रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी. अशोकजी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था. वे बड़े पद पर थे, तो कभी उन के कदम घर में टिके ही नहीं…

गांव से आ कर शहर में बसेरा बनाना आसान न था, लेकिन किसी तरह 400 गज जमीन कर ली. सहधर्मिणी प्रभा भी सहयोगी महिला थीं, तो मंजिल और आसान हो गई…

अब दोनों पतिपत्नी आराम के इन पलों को संजो लेना चाहते थे… उन के घर में जरूरी सब सुविधाएं भी थीं, फिर भी बहू सोनम को न जाने क्यों वह कोना सब से ज्यादा खटकता था…

अशोकजी जब से घर में रहने लगे थे, प्रभाजी को उन के काम करने पड़ जाते थे…

सोनम को भी अब अपने हिस्से के बहुत सारे वो काम करने पड़ जाते थे, जिन्हें प्रभाजी कर देती थीं, क्योंकि कोई भी बंधन न होने पर भी अशोकजी के घर में रहने से उसे घर का काम बढ़ा महसूस होता, क्योंकि बेटी बनने की आड़ में उस ने अपनी बेटी और बेटे का काम भी सास पर डाल दिया था.

दिनभर उस के साथ लगी रहने वाली प्रभा का अब थोड़ा समय अपने पति को देना उसे अखरने लगा था…

अकसर वह नवीन को उस के मातापिता के लिए ताने देने का कोई मौका न छोड़ती… ऊपर से सुविधाभोगी आदत पड़ गई थी तो उसे अशोकजी का उन की ही कार ले जाना खटका करता…

उस ने उस कोने से छुटकारा पाने के लिए नवीन को बांहों के घेरे में लेते हुए एक रास्ता सुझाते हुए कहा, “क्यों न हम बड़ी कार खरीद लें… नवीन.”

“वह कार तो लव बर्ड्स की ही हो गई है, टैक्सी महंगी पड़ती है…”

“आइडिया तो अच्छा है, पर रखेंगे कहां. एक कार रखने की ही तो जगह है घर में,” नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला.

“जगह तो है न, वह गार्डन तुम्हारा.. जहां आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं,” सोनम थोड़े तीखे स्वर में बोली.

तब तक दूर से आते हुए अशोकजी को देख कर उस ने पैंतरा बदला.

“थोड़ा तमीज से बात करो,” नवीन क्रोध से बोला जरूर, पर उस ने भी अशोकजी से बात करने का मन बना लिया था.

अगले दिन वह कुछ कार की तसवीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला, “पापा, मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं…”

“पर बेटा, बड़ी गाड़ी तो घर में पहले से ही है, फिर उसे रखेंगे कहां?” अशोकजी ने प्रश्न किया.

“यह जो बगीचा है, यहीं गैराज बनवा लेंगे. वैसे भी सोनम से तो इन की देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक करेंगी?”

“इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा. वैसे भी ये सब जड़ें मजबूत कर घर की दीवारें कमजोर कर रहे हैं…”

प्रभा तो वहीं कुरसी पर सीना पकड़ कर बैठ गईं. अशोकजी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, “मुझे तुम्हारी मां से भी बात कर के थोड़ा सोचने का मौका दो.”

“क्या पापा… मम्मी से क्या पूछना. वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है?” नवीन थोड़ा गुस्सा होते हुए बोला.

“आप दोनों दिनभर इस जगह बगैर कुछ सोचेसमझे, चार लोगों का लिहाज किए बगैर साथ बैठे रहते हैं…

“कोई बच्चे तो हैं नहीं आप दोनों के. और अब घर में सोनम भी है, छोटे बच्चे भी हैं…

“पर, आप दोनों ने दिनभर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है. और ये भी नहीं सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे…

“इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने के बजाय अपनी उम्र के लोगों में उठाबैठे करेंगे, तो वह ज्यादा अच्छा लगेगा, न कि यह सब,” कह कर वह दनदनाते हुए अंदर चला गया.

अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी जारी थी. अशोकजी भी एहसास कर रहे थे प्रभा के साथ अपनी ज्यादती का…

जब कभी पत्नी ने अपने मन की कही तो उन्होंने उन्हें ही सामंजस्य बिठाने की सीख दी… पर, आज की बात से तो उन के साथ प्रभाजी भी सन्न रह गईं, अपने बेटे के मुंह से ऐसी बातें सुन कर…

रिटायरमैंट को अभी कुछ ही समय हुआ था उन के, जिंदगी तो भागमभाग में ही निकल गई थी बच्चों के लिए सुखसाधन जुटाने में…

नवीन और सोनम ने उस शाम आदत के अनुसार खाना बाहर से और्डर कर दिया. पर, प्रभा से न खाना खाया गया और न उन्हें नींद आई…

नींद तो अशोकजी को भी नहीं आ रही थी और वो प्रभा की मनोस्थिति भी समझ रहे थे… किसी ट्रैफिक सिगनल पर खड़े सिपाही जैसी, जिस से हर रिश्ता बस अपनी ही तवज्जुह चाह रहा था. पर सोचतेसोचते सुबह, कुछ सोच कर उन के होंठों पर मुसकान तैर गई…

अगले दिन जब सो कर वह उठे तो देखा प्रभाजी सो रही थीं, पर बेचैनी चेहरे पर दिख रही थी… वह रसोई में गए और खुद चाय बनाई. कमरे में आ कर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे…

“आप ने क्या सोचा?” प्रभा ने रोआंसी आवाज में पूछा.

“मैं सब ठीक कर दूंगा. बस, तुम धीरज रखो,” अशोक बोले.

पर हद से ज्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं और न ही किसी से कोई बात की.

दिनभर सब सामान्य रहा, लेकिन शाम को अपने घर के बाहर ‘टूलेट’ यानी किराए के लिए का बोर्ड टंगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोकजी से प्रश्न किया, “पापा, माना कि घर बड़ा है, पर ये ‘टूलेट’ का बोर्ड किसलिए?”

“अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहे हैं, तो अब वे इसी घर में रहेंगे,” उन्होंने शांत लहजे में उत्तर दिया.

हैरानपरेशान नवीन बोला, “पर कहां…?”

“तुम्हारे पोर्शन में,” अशोकजी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया.

नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था, “और हम लोग…?”

“तुम्हे इस लायक बना दिया है. 2-3 महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कंपनी के फ्लैट में रह लेना, अपनी उम्र के लोगों के साथ, वरना मुझे कानून का सहारा लेना पड़ेगा,” अशोकजी एकएक शब्द चबाते हुए बोले.

“हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठेंगेबैठेंगे, सारी उम्र तुम्हारी मां की सब का लिहाज करने में निकल गई. कभी बुजुर्ग, तो कभी बच्चे. अब लिहाज की सीख तुम सब से लेना बाकी रह गया था.”

“पापा, मेरा वह मतलब नहीं था,” नवीन सिर झुका कर बोला.

“नहीं बेटा, तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया. जब हमतुम दोनों को साथ देख कर खुश हो सकते हैं, तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्यों है…?”

नवीन समझ गया कि उन दोनों की बातें उन के कानों में पड़ चुकी हैं.

“इस मकान को घर तुम्हारी मां ने बनाया, ये पेड़ और इन के फूल तुम्हारे लिए मांगी गई न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं, तो उस का कोना मैं किसी को छीनने का अधिकार नहीं दूंगा…”

“पापा, आप तो सीरियस हो गए,” नवीन का स्वर अब नरम हो चला था.

“न बेटा… तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सह कर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया. आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज नहीं है… इसलिए सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी मां का ऋणी है…

“घर तुम दोनों से पहले उस का है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दांत…

“औलाद होने का हम से लाभ उठाओ, पर तुम्हें मांबाप साथ में बुरे क्यों लगते हैं?”

“जिंदगी हमें भी तो एक ही बार मिली है… हम तुम्हें प्यार से रहते देख खुश होते हैं, तो तुम्हें हम क्यों खटकते हैं…”

“तकलीफ मुझे बहू से ज्यादा तुम से हुई. तुम्हें भी मेरी तरह अपनी पत्नी की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहिए,” कह कर अशोकजी प्रभा के पास जा कर खड़े हो गए.

अशोकजी के इस कठोर फैसले ने सोनम और नवीन दोनों के होश उड़ा दिए.

वह मुंह लटका कर अंदर गया और सोनम को पापा के फैसले से अवगत कराया. उन के इस फैसले ने सोनम की नींद उड़ा दी. उस ने सब से पहले अपने मायके फोन कर के वस्तुस्थिति की जानकारी दी.

सोनम रोते हुए बोली, “हैलो मम्मी, पापाजी ने हमें घर खाली करने को कह दिया है.”

“ऐं, ऐसे कैसे… बेटा, समझाओबुझाओ, इतनी जल्दी तो हम भी कुछ नहीं कर सकते, यहां अपने घर का हाल तुम जानती तो हो… यहां तुम्हारी भाभी हमें ही परेशान किए हुए है,” उस की मम्मी ने कहा.

उधर नवीन ने भी तनावग्रस्त हो कर माथा पकड़ लिया.

सोनम बोली, “नवीन, क्यों न अपनी बुआ और चाचा को सब हाल बता कर उन्हें पापा को समझाने के लिए मनाओ न… अभी तो एकाउंट खाली है. इतनी जल्दी सब कैसे होगा?”

नवीन ने उस के इस सुझाव पर उसे गले लगा लिया.

अगले ही दिन उस ने छुट्टी ले कर अपनी बुआ और चाचा दोनों से मिलने का समय ले लिया.

“अरे नवीन, आज चाचा की याद कैसे आ गई?” विवेक ने अनुभवी नजरों से परखते हुए सवाल दाग दिया.

नवीन सिर झुकाए बोला, “चाचाजी, पापा ने घर खाली करने को कहा है. बताइए अच्छा लगता है कि घर होते हुए अपना ही बेटा उसी शहर में किराए पर रहे…?”

“देखो बेटा, यह परिवार का मामला है. किराए पर रहने के लिए कहा है भैया ने, तो सोचसमझ कर ही कहा होगा,” विवेक ने कहा, “मैं भैया के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता और न ही तुम्हें अपने घर में रहने को कह सकता हूं. यहां भी सीमित जगह है,” विवेक ने अपना पक्ष साफ कर दिया.

अब नवीन का एकमात्र सहारा थीं उस की बुआ. उस ने कहा, “बुआ, पापा ने 3 महीने का अल्टीमेटम दे दिया है… आप समझाओ न उन्हें.”

वे तपाक से बोलीं, “सही कर रहे हैं भैया. तुम ने और तुम्हारी पत्नी ने कौन सी कसर छोड़ दी थी, जो हम तुम्हारी तरफ से उन से बात करें…”

“हमारे घर मे भी तुम्हें रखने की जगह नहीं है, 2-4 दिन के लिए रहना अलग बात है और रोज के लिए रखना अलग.

“तुम अपने दोस्तों से बात क्यों नहीं करते? मैं मायके से रिश्ता क्यों बिगाड़ लूं?”

नवीन ने अपने दोस्तों अमन और पवन से इस आकस्मिक मुसीबत से निबटने का रास्ता मांगा, तो अमन भी घबरा कर बोला, “यार, पैसा तेरे पास होता तो तू आराम से कहीं भी रह लेता…”

पवन यह भी बोला, “फिर हमारे घर में जगह भी नहीं है और कहीं हमारे मम्मीपापा को अंकल के इस निर्णय के बारे में पता चला, तो हम लोगों के साथ भी यही कहानी न दोहरा दी जाए…

“भाई, तू थोड़े दिन दूर ही रह. आजकल ये बुजुर्ग भी इमोशनल न रहे सब अपने लिए सोचने लगे हैं… फिर अच्छाभला रह रहा था तो क्या जरूरत थी तुम दोनों को अपने मांबाप का अपमान करने की… कोई हम ने कहा था ऐसा करने को?”

नवीन और सोनम को बच्चों के साथ मकान के लिए सुबहशाम भटकतेभटकते, लोगों के असली चेहरे और अपनी गलती सब समझ में आने लगी थी.

शाम को घर जा कर वो उन के पैरों में गिर कर फफक कर रो पड़ा, “पापा, प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.”

“एक शर्त पर,” उन की धीरगंभीर आवाज गूंजी, “आप अपने खर्च खुद उठाएंगे और किराया भी देंगे, ताकि यह सनद रहे कि घर है किस का…?”

और सोनम की भी गज भर लंबी जबान वास्तविकता झेल कर तालू से चिपक चुकी थी. उसे रिश्तों के लिहाज और सम्मान का अच्छा सबक मिल चुका था.

Family Story : पतझड़ का अंत : सुषमा के जीवन का अंत कैसे हुआ?

Family Story : सुहाग सेज पर बैठी सुषमा कितनीसुंदर लग रही थी. लाल जोड़े में सजी हुई वह बड़ी बेताबी से अपने पति समीर का इंतजार कर रही थी. एकाएक दरवाजा खुला और समीर मुसकराता हुआ कमरे में दाखिल हुआ. सुषमा समीर को देखते ही रोमांचित हो उठी. समीर ने अंदर आ कर धीरे से दरवाजा बंद किया. पलंग पर बिलकुल पास आ कर वह बैठ गया. फिर सुषमा का घूंघट उठा कर उसे आत्मविभोर हो देखने लगा.

सुषमा उसे इस तरह गौर से देखने पर बोली, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हें, जो आज के पहले मेरी नहीं थी. पता है सुसु, पहली बार मैं ने जब तुम्हें देखा था तभी मुझे लगा कि तुम्हीं मेरे जीवन की पतवार हो और अगर तुम मुझे नहीं मिलतीं तो शायद मेरा जीवन अधूरा ही रहता,’’ फिर समीर ने अपने दोनों हाथ फैला दिए और सुषमा पता  नहीं कब उस के आगोश में समा गई.

उस रात सुषमा के जीवन के पतझड़ का अंत हो गया था. शायद  40 साल के कठिन संघर्ष का अंत हुआ था.

सुषमा और समीर दोनों खुश थे, बहुत खुश. एकदूसरे को पा  कर उन्हें दुनिया की तमाम खुशियां नसीब हो गई थीं.

प्यार और खुशी में दिन कितनी जल्दी बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता. देखते ही देखते 1 साल बीत गया और आज सुषमा की शादी की पहली सालगिरह थी. दोनों के दोस्तों के साथ उन के घर वाले भी शादी की सालगिरह पर आए थे.

घर में अच्छीखासी रौनक थी. घरआंगन बिजली की रोशनी से ऐसा सजा था जैसे  घर में शादी हो.

सुषमा के घर वालों ने जब यह साजोसिंगार देखा तो उन का मुंह खुला का खुला रह गया और छोटी बहन जया अपनी मां से बोली, ‘‘मां, दीदी को इतना सबकुछ करने की क्या जरूरत थी. अरे, शादी की सालगिरह है, कोई दीदी की  शादी तो नहीं.’’

सुषमा की मां बोलीं, ‘‘हमें क्या, पैसा उन दोनों का है, जैसे चाहें खर्च करें.’’

शादी की पहली सालगिरह बड़ी धूमधाम से मनी. जब सभी लोग चले गए तब सुषमा ने अपनी मां से आ कर पूछा, ‘‘मां, तुम खुश तो हो न, अपनी बेटी का यह सुख देख कर?’’

‘‘हां, खुश तो हूं बेटी. तेरा जीवन तो सुखमय हो गया, पर प्रिया और सचिन के बारे में सोच कर रोना आता है. उन दोनों बिन बाप के बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘मां, तुम ऐसा क्यों सोचती हो. मैं हूं न, उन दोनों को देखने वाली. तुम्हारे दामादजी भी बहुत अच्छे हैं. मैं जैसा कहती हूं वह वैसा ही करते हैं. जब मैं ने एक बहन की शादी कर दी तो दूसरी की भी कर दूंगी. और हां, सचिन की भी तो अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो गई है.’’

‘‘हां, पूरी हो तो गई है, लेकिन कहीं नौकरी लगे तब न.’’

‘‘मां, तुम घबराओ नहीं, हम कोशिश करेंगे कि उस की नौकरी जल्दी लग जाए.’’

‘‘सुषमा, हमें तो बस, एक तेरा ही सहारा है बेटी. जब तू हमें छोड़ कर चली आई तो हम अपने को अनाथ समझने लगे हैं.’’

अभी सुषमा और मां बातें कर ही रहे थे कि समीर आ गया. वह हंसते हुए बोला, ‘‘क्यों सुसु, आज मां आ गईं तो मुझे भूल गईं. मैं कब से तुम्हारा खाने पर इंतजार कर रहा हूं.’’

मां की ओर देख कर सुषमा बोली, ‘‘मां, अब तुम सो जाओ. रात काफी बीत गई है. हम भी खाना खा कर सोएंगे. सुबह हमें कालिज जाना है.’’

सुषमा जब कमरे में आई तो समीर थाली सजाए उस का इंतजार कर रहा था, ‘‘सुसु, कितनी देर लगा दी आने में. यहां मैं तुम्हारे इंतजार में बैठा पागल हो रहा था. थोड़ी देर तुम और नहीं आतीं तो मेरा तो दम ही निकल जाता.’’

‘‘समीर, आज के दिन ऐसी अशुभ बातें तो न कहो.’’

‘‘ठीक है, अब हम शुभशुभ ही बातें करेंगे. पहले तुम आओ तो मेरे पास.’’

‘‘समीर, हमारी शादी को 1 साल बीत गया है लेकिन तुम्हारा प्यार थोड़ा भी कम नहीं हुआ, बल्कि पहले से और बढ़ गया है.’’

‘‘फिर तुम मेरे इस बढ़े हुए प्यार का आज के दिन कुछ तो इनाम दोगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं, अब आप सो जाइए. सुबह मुझे कालिज जल्दी जाना है.’’

‘‘सुसु, अभी मैं सोने के मूड में नहीं हूं. अभी तो पूरी रात बाकी है,’’ वह मुसकराता हुआ बोला.

सुबह सुषमा जल्दी तैयार हो गई और कालिज जाते समय मां से बोली, ‘‘मां, मैं दोपहर में आऊंगी, तब तुम जाना.’’

‘‘नहीं, सुषमा, मैं भी अभी निकलूंगी. पर तुझ से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां मां, बोलो.’’

‘‘प्रिया का एम.ए. में दाखिला करवाना है. अगर 5 हजार रुपए दे देतीं तो बेटी, उस का दाखिला हो जाता.’’

‘‘ठीक है मां, मैं किसी से पैसे भिजवा दूंगी.’’

‘‘सुषमा, एक तेरा ही सहारा है बेटी, मैं  तुझ से एक बात और कहना चाहती हूं कि ज्यादा  फुजूलखर्ची मत किया कर.’’

‘‘मां, तुम्हें तो पता है कि मैं ने बचपन से ले कर 1 साल पहले तक कितना संघर्ष किया है. जब पिताजी का साया हमारे सिर से उठ गया था तब से ही मैं ने घर चलाने, खुद पढ़ने और भाईबहनों को पढ़ाने के लिए क्याक्या नहीं किया. अब क्या मैं अपनी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती?’’

‘‘मैं ऐसा तो नहीं कह रही हूं. फिर भी पैसे बचा कर चल. हमें भी तो देखने वाला कोई नहीं है.’’

आज सुबह ही जया का फोन आया कि दीदी, आज मंटू का जन्मदिन है. तुम और जीजाजी जरूर आना.

‘‘ हां, आऊंगी.’’

‘‘और हां, दीदी, एक बात तुम से कहनी थी. तुम ने अपनी फ्रेंड की शादी में जो साड़ी पहनी थी वह बहुत सुंदर लग रही थी. दीदी, मेरे लिए भी एक वैसी ही साड़ी लेती आना, प्लीज.’’

‘‘ठीक है, बाजार जाऊंगी तो देखूंगी.’’

‘‘दीदी, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम अपनी वाली साड़ी ही मुझे दे दो.’’

‘‘जया, वह तुम्हारे जीजाजी की पसंद की साड़ी है.’’

‘‘तो क्या हुआ. अब तुम्हारी उम्र तो वैसी चमकदमक वाली साड़ी पहनने की नहीं है.’’

‘‘जया, मेरी उम्र को क्या हुआ है. मैं तुम से 5 साल ही तो बड़ी हूं.’’

यह सुनते ही जया ने गुस्से में फोन रख दिया और सुषमा फोन का रिसीवर हाथ में लिए सोचने लगी थी.

दुनिया कितनी स्वार्थी है. सब अपने बारे में ही सोचते हैं. चाहे वह मेरी अपनी मां, भाईबहन ही क्यों न हों. मैं ने सभी के लिए कितना कुछ किया है और आज भी जिसे जो जरूरत होती है पूरी कर रही हूं. फिर भी किसी को मेरी खुशी सुहाती नहीं. जब मैं ने शादी का फैसला किया था तब भी घर वालों ने कितना विरोध किया था. कोई नहीं चाहता था कि मैं अपना घर बसाऊं. वह तो बस, समीर थे जिन्होंने मुझे अपने प्यार में इतना बांध लिया कि मैंउन के बगैर रहने की सोच भी नहीं सकती थी.

सुषमा की आंखों में आंसू झिल- मिलाने लगे थे. समीर पीछे से आ कर बोले, ‘‘जानेमन, इतनी देर से आखिर किस से बातें हो रही थीं.’’

‘‘जया का फोन था. समीर, आज उस के बेटे का जन्मदिन है.’’

‘‘तो ठीक है, शाम को चलेंगे दावत खाने…और हां, तुम वह नीली वाली साड़ी शाम को पार्टी में  पहनना. उस दिन जब तुम ने वह साड़ी पहनी थी तो बहुत सुंदर लग रही थीं. बिलकुल फिल्म की हीरोइन की तरह.’’

‘‘समीर, लेकिन वह साड़ी तो जया मांग रही है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, वैसे मैं ने उस से कहा है कि वह आप की पसंद की साड़ी है.’’

‘‘तुम पार्टी में जाने के लिए कोई दूसरी साड़ी पहन लेना और वह साड़ी उसे दे देना, आखिर वह तुम्हारी बहन है.’’

‘‘समीर, तुम कितने अच्छे हो.’’

‘‘हां, वह तो मैं हूं, लेकिन इतना भी अच्छा नहीं कि नाश्ते के बगैर कालिज जाने की सोचूं.’’

सुषमा और समीर एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. दोनों के विचार एक थे. भावनाएं एक थीं.

एक दिन सुषमा का भाई सचिन आया और बोला, ‘‘दीदी, मुझे कुछ रुपए चाहिए.’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘शहर से बाहर एकदो जगह नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जाना है.’’

‘‘कितने रुपए  लगेंगे?’’

‘‘10 हजार रुपए दे दो.’’

‘‘इतने रुपए का क्या करोगे सचिन?’’

‘‘दीदी,  इंटरव्यू देने के लिए अच्छे कपड़े, जूते भी तो चाहिए. मेरे पास अच्छे कपड़े नहीं हैं.’’

‘‘सचिन, अभी मैं इतने रुपए तुम्हें नहीं दे सकती. तुम्हारे जीजाजी की बहुत इच्छा है कि हम शिमला जाएं. शादी के बाद हम कहीं गए नहीं थे न.’’

‘‘दीदी,  तुम्हारी  शादी हो गई वही बहुत है. अब इस उम्र में घूमना, टहलना ये सब बेकार के चोचले हैं. मुझे पैसे की जरूरत है, वह तो तुम दे नहीं सकतीं और यह फालतू का खर्च करने को तैयार हो.’’

‘‘सचिन, क्या हम अपनी खुशी के लिए कुछ नहीं कर सकते. अरे, इतने दिनों से तो मैं तुम लोगों के लिए ही करती आई हूं और जब अपनी खुशी के लिए अब करना चाहती हूं तो बातबात पर तुम लोग मुझे मेरी उम्र का एहसास दिलाते हो.

‘‘सचिन, प्यार की कोई उम्र नहीं होती. वह तो हर उम्र में हो सकता है. जब मैं खुश हूं, समीर खुश हैं तो तुम लोग क्यों दुखी हो?’’

समीर उस दिन अचानक जिद कर बैठे कि सुसु, आज मैं अपने ससुराल जाना चाहता हूं.

‘‘क्यों जी, क्या बात है?’’

‘‘अरे, आज छुट्टी है. तुम्हारे घर के सभी लोग घर पर ही होंगे. फिर जया भी तो आई होगी. और हां, नए मेहमान के आने की खुशखबरी अपने घर वालों को नहीं सुनाओगी?’’

‘‘ठीक है, अगर तुम्हारी इच्छा है तो चलते हैं, तुम्हारे ससुराल,’’ सुषमा मुसकरा दी थी.

सुषमा आज काफी सजधज कर मायके आई थी. लाल रंग की साड़ी से मेल खाता ब्लाउज और उसी रंग की बड़ी सी बिंदी अपने माथे पर  लगा रखी थी. उस ने सोने के गहनों से अपने को सजा लिया था.

मां उसे देख कर मुसकरा दीं, ‘‘क्या बात है, आज तू बड़ी सज कर आई है.’’

अभी सुषमा कुछ कहना चाह रही थी कि प्रिया बोली, ‘‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.’’

प्रिया की बातें सुन कर सुषमा का खून खौल उठा पर वह कुछ बोली नहीं.

मां ने आदर के साथ बेटी को बिठाया और दामादजी से हाल समाचार पूछे.

सुषमा बोली, ‘‘मां, खुशखबरी है. तुम नानी बनने वाली हो.’’

मां यह सुन कर बोलीं, ‘‘चलो, ठीक है. एक बच्चा हो जाए. फिर अपना दुखड़ा रोने लगीं कि सचिन की नौकरी के लिए 50 हजार रुपए चाहिए. बेटी, अगर तुम दे देतीं तो…’’

सुषमा बौखला उठी. मां की बात बीच में काट कर बोली, ‘‘मां, अब और नहीं, अब बहुत हो गया. मुझे जितना करना था कर दिया. अब सब बड़े हो गए हैं और वे अपनी जिम्मेदारी खुद उठा सकते हैं. मैं आखिर कब तक इस घर को देखती रहूंगी.

‘‘मैं  जब 12 साल की थी तब से ही तुम लोगों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढो रही हूं. रातरात भर जाग कर मैं एकएक पैसे के लिए काम करती थी. फिर सभी को इस योग्य बना दिया कि वे अपनी जिम्मेदारियां खुद उठा सकें.

‘‘अब मेरा भी अपना परिवार है. पति हैं, और अब घर में एक और सदस्य भी आने वाला है. मैं अब तुम सब के लिए करतेकरते थक गई हूं मां. अब मैं जीना चाहती हूं, अपने लिए, अपने परिवार के लिए और अपनी खुशी के लिए.

‘‘जिंदगी की  खूबसूरत 40 बहारें मैं ने यों ही गंवा दीं, अब और नहीं. मेरे जीवन के पतझड़ का अंत हो गया है. अब मैं खुश हूं, बहुत खुश.’’

Love Story : एयरपोर्ट पर एक रात – गोवा जाने वाली फ्लाइट क्यों कैंसिल हो गई?

Love Story : मुंबई से गोवा की रात 10 बजे की फ्लाइट बुक करवाते हुए ही मुझे अंदाजा तो हो ही गया था कि आज तो सोने की छुट्टी. पर, दिनभर औफिस की जरूरी मीटिंग्स थीं तो इस से पहले की फ्लाइट बुक करवाने में भी समझदारी नहीं थी.

अब फ्लाइट एक घंटे लेट होने की जैसे ही घोषणा हुई, दिमाग घूम गया. अभी तक तो फोन में टाइम पास कर लिया था, अब क्या करूं. सामने की चेयर्स पर बैठे लोगों पर नजर डाली, एक जोड़ा सुंदर आंखें मुझे निहार रही थीं, सीरियसली? यह सलोनी सी सूरत मुझे देख रही है और मैं फोन में चिपका हूं.

मैं ने फौरन अपनी टीशर्ट और जींस पर उड़ती सी नजर डाली, हां, मम्मी कहती हैं कि मैं इस ब्लू टीशर्ट में अच्छा लगता हूं. मैं ने उस के आसपास की दो और आंटी टाइप महिलाओं पर नजर डाली, हां, ये इस के साथ ही हैं.

लड़की ने अब मेरी तरफ देखना बंद कर दिया था, समझ गई थी कि मैं ने उस की चोरी पकड़ ली है. इतने में वो लड़की यों ही उठ कर थोड़ा इधरउधर टहलने लगी, तो मैं ने उसे भरपूर नजरों से देखा. उस ने घुटनों तक की एक ड्रैस पहनी हुई थी, बाल खुले, लंबे थे, स्टाइलिश से शूज थे. अच्छी लग रही थी वह. इतने में उस की साथी महिला ने कहा, “कहां जा रही है, शन्नो?”

उस के नाम से मुझे निराशा हुई, शन्नो… सीरियसली? इस लड़की का नाम शन्नो क्यों है? जरूर नाम बिगाड़ा जा रहा है. मुझे गाना याद आ गया, ‘मेले में लड़की, लड़की अकेली, शन्नो, नाम उस का’.

शन्नो तो तब का नाम है, अब क्यों? मैं ने देखा, उस ने नोट किया कि मैं ने उस का नाम ध्यान से सुना है, उस ने पक्का जानबूझ कर जोर से कहा, “मम्मी, मौसी को समझा दो कि मेरा नाम शनाया है, ये शन्नोबन्नो न कहा करें.”

मैं मुसकरा दिया, उस ने देखा. हां, अब ठीक है, शनाया. लगा कि इस का नाम शनाया ही होना चाहिए. मतलब क्या है इस के नाम का. चलो, खाली ही तो बैठा हूं, शनाया नाम का मतलब गूगल करता हूं. मैं ने गूगल पर शनाया टाइप किया, प्रख्यात, प्रतिष्ठित, पहले सूरज की किरण. सही है. मुझे अचानक लगा कि यह मैं कितना फालतू काम कर रहा हूं, न अतापता, न कोई मतलब. एक अनजान लड़की के नाम का मतलब गूगल कर रहा हूं.

मैं भी उठ कर इधरउधर टहलने लगा, जब दोबारा यह घोषणा हुई कि फ्लाइट फिर एक घंटे लेट है. इस फ्लाइट के यात्रियों की गुस्से से भरी आवाजें आनी शुरू हो गईं, गेट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी. अब बहुत शोरगुल था. छोटे बच्चों वाली महिलाएं, बुजुर्ग तो परेशान हो ही चुके थे, मेरे जैसे अकेले लोग क्या करते. कभी बैठते, कभी जा कर काउंटर पर पूछते कि हुआ क्या है. पता चला कि फ्लाइट में कुछ रिपेयरिंग हो रही है, बस ठीक होने ही वाली है.

मैं बोरीवली में रहता हूं, अंधेरी में औफिस है, मैं तो अपना बैग सुबह ही औफिस ले आया था, बस एयरपोर्ट आने से पहले दिन के कपड़े वहीं अपने औफिस की ड्राअर में छोड़ आया हूं और ये कपड़े बदल कर आया हूं. फ्लाइट में मुझे इन्हीं कपड़ों में आराम मिलता है.

शनाया मुझे बीचबीच में देख लेती है, उस की मम्मी और मौसी बातें कर रही हैं, मैं जानबूझ कर उन के पीछे खड़ा हो गया, जिस से इन की बातें सुनूं, शनाया के बारे में और जान सकूं.

मैं ने देखा कि जब शनाया ने मुझे उन दोनों के पीछे खड़ा देखा, वह झेंपी क्योंकि वह तो अपने मम्मी और मौसी के सारे गुण जानती होगी न.

उस की मम्मी कह रही हैं, “अच्छा हुआ, मुंबई डौली की बेटी की शादी में आ गए, नहीं तो दिल्ली से मुंबई कोई ऐसे तो आने न देता. शनाया के पापा तो अपने औफिस के काम से सारे इंडिया में घूमते रहते हैं, मैं ही घर में बैठी रहती हूं.

“मैं ने एक बार कहा था कि चलो, मुंबई घूम आएं. तो कहते हैं कि वहां है क्या. लो बताओ, लोग पागल हैं क्या कि मुंबई घूमने आते हैं, कितना मजा आया बीच पर, एलिफैंटा केव, गेट वे औफ इंडिया, जहां निकल जाओ, मजा आता है. है न. दिल्ली जा कर तो फिर वही घर के काम. और ये शनाया तो कहीं भी दोस्तों के साथ घूमने चली जाती है, दीदी.”

“हां, पम्मी, मजा तो गोवा में देखना, वहां के बीच बहुत साफ हैं. यहां मुझे इतना मजा नहीं आया. मैं तो तेरे जीजाजी के साथ कई बार गोवा आ चुकी हूं.”

मेरी नजरें शनाया से मिलीं, वह झेंपी, मैं मुसकरा दिया, कम से कम एयरपोर्ट पर एक लड़की तो अपनी पसंद की दिख रही है, मन अब उतना नहीं ऊब रहा.

इतने में फिर अनाउंसमैंट हुआ कि फ्लाइट चली गई है. सब काउंटर पर जैसे चढ़ गए, वहां की महिला कर्मचारियों को भीड़ का सामना करने के लिए छोड़ दिया गया था, वे समझा रही थीं कि फ्लाइट फुल हो गई थी तो चली गई. किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ.

‘सौरी’ बोल कर वे सब इधरउधर होने की कोशिश करती रहीं. पर लोगों ने बहुत ज्यादा शोर मचाया, वीडियो बनने लगे, कोई रतन टाटा को टैग कर के ट्वीट करने की धमकी देने लगा, कोई कहने लगा कि भूखे बैठे हैं, हमें खाना खिलाओ.

मैं सब सुन रहा था. बहुत गड़बड़ हो चुकी थी, सारी परेशानी एक तरफ, मुझे कुछ और सूझा, सब वीडियो बना ही रहे थे, लगे हाथ मैं ने भी एक कोने में उदास, परेशान, थकी सी शनाया का कुछ सैकंड्स का वीडियो बना लिया. अपने पास रखने के लिए.

शनाया अपनी मम्मी और मौसी को एक जगह छोड़ लोगों के पास जा कर सुनने की कोशिश कर रही थी कि अब क्या किया जा सकता है. वहां के कर्मचारी लोगों को दूसरी फ्लाइट बुक करने की सलाह दे कर चलते बने थे.

इतने में आवाज आई, “शन्नो, इन से कह कि हमारे खाने का इंतजाम करना इन की ड्यूटी है.”

शनाया और मेरी नजरें मिलीं, मैं ने अंदाजा लगा लिया कि शन्नो अब मेरी उपस्थिति की फिक्र कर के सजग हो रही है. अगर मेरी मम्मी भी इस समय ऐसे कहती कि ‘बिल्लू, इन से कह कि मेरे खाने का इंतजाम करें.’ तो मुझे भी ऐसी ही शर्मिंदगी होती जैसी अभी शनाया को हो रही थी.

एक तो ये मातापिता न बिलकुल नहीं सोचते कि इन के जवान बच्चों की भी कोई इज्जत होती है, कहीं भी शुरू हो जाते हैं, शन्नो, बिल्लू. अरे, वाह, शन्नो, बिल्लू साथ बोलने में तो बहुत फनी लग रहा है.

शनाया की मौसी ने आ कर कहा, “शन्नो, फंस गए, बेटा. कहा था, थोड़े परांठे, अचार रख लें, पर तू ने रखने ही नहीं दिए. अब बारबार पूरी रात बर्गर खाते रहेंगे क्या? और यह बता कि वापस घर चलें या गोवा जाना ही है?”

“मौसी, आप मम्मी के पास जा कर बैठो, मैं सब पता कर के आती हूं. मम्मी का गोवा का मन है, उन्हें ले ही जाती हूं.”

लोग बहुत परेशान हो गए थे, इस समय 12 बज रहे थे, एयरपोर्ट पर बैठेबैठे ही घंटों हो गए थे. सब से बुरा हाल छोटे बच्चों और व्हीलचेयर पर बैठे बुजुर्गों का था. महिलाएं भी अब थक कर बोले जा रही थीं. यह तो गोवा पहुंचने का टाइम था और सब यहीं लटके हुए थे.

पता चला कि 4 बजे दूसरे टर्मिनल से एक फ्लाइट है, उस से जा सकते हैं. मैं ने शनाया से अचानक पूछ लिया, “आप लोग भी इस फ्लाइट से जा रहे हैं?” जैसे दिल से दिल को राहत हुई हो, उस ने धीरे से कहा, “हां, अभी टिकट्स बुक कर लेती हूं, ये वाले पैसे तो रिफंड हो ही जाएंगे.”

मैं ने भी उसी समय अपने फोन से अपना टिकट बुक कर लिया और कहा, “दूसरा टर्मिनल थोड़ा दूर है, आप अकेली तो जा भी सकती थी, पर आप के साथ भी हैं.”

“हां, मेरी मम्मी, मौसी हैं.”

“जानता हूं,” मैं हंस पड़ा, तो वह भी अब मुसकरा दी.

मैं ने कहा, “चलो, टैक्सी करें?”

“हां, आप हमारे साथ ही आ जाओ.”

मैं उस के साथसाथ चलने लगा और उस की मम्मी के पास जा कर कहा, “आंटी, आ जाओ, साथ ही चलते हैं, टैक्सी करनी पड़ेगी.”

इस बार दो जोड़ी आंखों ने मुझे ऊपर से नीचे तक कई बार देखा, मन ही मन ओके किया, एक ने कहा, “तुम कौन, बेटा?”

“आंटी, गोवा ही जा रहा हूं, यहां तो बड़ी मुश्किल है, अब दूसरे टर्मिनल जाना है.”

आंटी लोगों ने सोचा होगा कि उन का सामान उठाने में उन की हैल्प कर देगा और कोई इस तरह खुद ही औफर कर रहा है तो क्या बुरा है. हम टैक्सी से दूसरे टर्मिनल गए, फिर वही सब चैकिंग. काउंटर बंद था, यह और मुश्किल थी, अब सामान के साथ फिर वहीं रखी चेयर पर बैठ गए. अब की बार मैं उन सब से कुछ दूर बैठा, कहीं किसी को यह न लगे कि पीछे ही पड़ गया हूं. हां, ऐसी जगह जरूर बैठा, जहां से शनाया साफसाफ दिखती रहे.

चेयर पर अपने पैर फैला कर मैं अधलेटा सा हो गया, तीनों बेचारी औरतें कभी टहल रही थीं, कभी बैठतीं, कभी एकदूसरे की गोद में सिर रख कर लेट जातीं. अब तक उस फ्लाइट के बाकी लोग भी यहीं आ गए थे और कोई जमीन पर अखबार फैला कर लेट गया था, कोई जमीन पर यों ही लेट गया था.

इस तरह की स्थिति में हर इनसान को परेशानी होती है, न बैठते बनता है, न लेटते, पूरी रात एयरपोर्ट पर बैठेबैठे बिताना किसी के लिए भी आसान नहीं.

मैं ने शनाया पर नजर डाली, बेचारी कभी पास की चेयर पर बैठी अपनी मम्मी के कंधे पर सिर रखती, कभी यों ही खड़ी हो जाती. कभी मेरी उस से नजरें मिलतीं, मैं कहीं और देखने लगता. थोड़ा कौंशियस हो गया था कि कहीं मुझे पीछे पड़ जाने वाला लड़का न समझ ले.

खैर, काउंटर खुले, चैकइन किया, अभी फ्लाइट में 2 घंटे थे, मैं ने सोचा कि लाउंज में जा कर थोड़ा ठीक से उठबैठ सकता हूं, कुछ चायकौफी भी पी लूंगा. पर शनाया, क्या अब इस से बात नहीं हो पाएगी. क्या करूं?

इतने में उस की मौसी की आवाज आई, “शन्नो, लाउंज चलें? कुछ खा कर थोड़ा कमर सीधे कर लें?”

मुझे मन ही मन हंसी आ गई, मौसी को शायद खाने का शौक था, मैं इन्हें एयरपोर्ट पर कम से कम 3-4 बार कुछ खाते देख चुका था, पर मौसी मुझे इस समय दुनिया की सब से समझदार महिला लगी, जो लाउंज में जाने की सोच रही थी.

मैं अब चुपचाप लाउंज की तरफ चल दिया, वहां टिकट दिखाया, और आराम से अंदर जा कर एक कोने वाले सोफे पर पसर गया.

लाउंज जैसे दूसरी ही दुनिया का हिस्सा लग रहा था, कुछ लोग गहरी नींद में सोए हुए थे, बहुत शांति थी, एकाध लोग ही बैठ कर कुछ खा रहे थे.

इस शांति को भंग किया शनाया की मम्मी और उस की मौसी ने. शनाया अंदर आई, मुझ से कुछ ही दूर रखे सोफे पर उस ने अपना शोल्डर बैग रखा, फिर मुझे देख कर बड़ी प्यारी स्माइल दी.

उस ने अपनी मम्मी से कहा, “मैं यहां बैठी हूं, आप लोगों को जो खाना हो, खा कर आ जाओ. फिर मैं थोड़ी देर में एक कप कौफी ले लूंगी, बस.”

उस की मम्मी ने मुझे देखा, “बेटा, आप भी यहां आ गए?”

“जी, आंटी.”

“चल, शन्नो. सामान ये देख लेंगे. है न बेटा. जरा देख लेना, आज तो एयरपोर्ट वालों ने भूखे मार दिया.”

पर, उन की शन्नो को कुछ खानेपीने से ज्यादा मुझ में इंटरैस्ट था, बोली, “नहीं, आप दोनों जाओ, मुझे बस थोड़ी देर आराम करना है.”

वे दोनों यह कहती हुई मिनमिन करती चली गई कि इस लड़की को कुछ कहना बेकार है, हमेशा अपने मन की करती है. कुछ खाना नहीं, सूखती जा रही है. रात के 3 बजे उन की इन बातों से बाकी सोए हुए लोग डिस्टर्ब हो रहे थे, शनाया कुछ शर्मिंदा सी हुई, तो मैं ने बहुत धीरे से कहा, “कोई बात नहीं, ये तो हर घर वाले कहते हैं.”

वह हंस पड़ी, मैं ने पूछा, “गोवा कितने दिन हो?”

“3 दिन. आप?”

“वहां बैंगलुरू से आए 3 दोस्त इंतजार कर रहे हैं. वे आज दिन में पहुंच गए हैं, मैं परसों वापस आ जाऊंगा.”

“दिल्ली रहती हो न?”

“आप को कैसे पता?”

मैं ने उस की मम्मी और मौसी की तरफ इशारा किया. वह हंस पड़ी, फिर मैं ने उसे अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर दिया, जिसे उस ने फौरन लपक लिया, पढ़ा, “मलय शर्मा. ओह्ह, वाह… सीए हो? लगते तो नहीं.”

“मतलब…?”

“सुना है, थोड़े बोरिंग होते हैं,” उस ने मुझे छेड़ा.

मैं मुसकरा दिया, कहा, “इस में मेरा फोन नंबर है, बात करना चाहोगी?”

“करनी है?”

“हां.”

“करूंगी.”

हम बहुत धीरे बात कर रहे थे. इतने में उस की मम्मी और मौसी आ गईं, शनाया ने मेरा कार्ड अपने बैग में रख लिया था. मैं आंखें बंद कर लेट गया. वे तीनों भी शायद सोने की कोशिश करने लगीं.

मैं ने आंखें जरूर बंद की थीं, पर एक चेहरा जो अब खास हो गया था, मेरी बंद आंखों के आगे डटा रहा. मैं ने आंखें खोल कर गरदन घुमाई तो वह मुझे ही देख रही थी. एकदम से उस ने गरदन दूसरी तरफ घुमा ली. उस की मम्मी और मौसी के खर्राटों में कोई कंपीटिशन चल रहा था. मुझे अब नींद आ रही थी, मैं इतना जान चुका था कि अब से कुछ ही घंटों में भले ही एयरपोर्टसे हम चले जाएंगे, पर यह रात कोई आम रात नहीं है, इस रात में इस एयरपोर्ट पर जो सफर शुरू हुआ है, उस की मंजिल बहुत खूबसूरत है, इस सफर का अंत यकीनन शानदार होगा. गोवा पहुंचने पर शनाया मुझे कब फोन करेगी, देखना था, इंतजार रहेगा मुझे.

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