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एक का फंदा : एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स यानी एक ब्रह्म, एक पार्टी, एक नेता…

लेखकः भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेन्द्र सिंह

‘एक देश एक चुनाव’ का ढिंढोरा जम कर पीटा जा रहा है जिसे लागू कराने के लिए संविधान में कई संशोधन करने पड़ेंगे, इसलिए हो रहे आम चुनाव में भाजपा को 400 पार की जरूरत है. इस तरह की डैमोक्रेसी से व्यक्तिवाद और तानाशाही के खतरे बढ़ेंगे क्योंकि यह संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है.

भारत जब अपना संविधान बना रहा था उस समय चर्चा का सब से बड़ा विषय यह था कि देश का संविधान कैसा हो? लंबी बहस के बाद यह तय हुआ कि भारत का संविधान उदार हो. समय, काल और परिस्थितियों की जरूरत के हिसाब से उस में संशोधन हो सकें. यह हुआ भी. संविधान लागू होने के बाद 104 संशोधन उस में हो चुके हैं. संविधान के उदार होने का मतलब यह होता है कि देशहित के लिए विचारविमर्श होता रहना चाहिए.

संविधान के इस सिद्धांत के तराजू में ‘एक देश एक चुनाव’ को रख कर देखें तो यह संविधान की मूल भावना के एकदम खिलाफ दिखता है. ‘एक देश एक चुनाव’ असल में ‘एक नेता’ को सामने रख कर गढ़ा गया सिद्धांत है.

हमारे देश के विधानसभा या लोकसभा चुनाव में जनता सब से पहले विधायक और सांसद चुनती है. इस के बाद सब से बड़े दल के सांसद या विधायक अपना नेता चुनते हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए राज्यपाल और प्रधानमंत्री पद के लिए राष्ट्रपति महोदय पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं. इस के बाद मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिमंडल के नाम तय होते हैं.

हाल के कुछ सालों में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का चेहरा पहले से चुने जाने का चलन होने लगा है. असल में यह नेता थोपने की बात है. इस में पार्टी एक चेहरा चुन लेती है. इस के बाद सांसद या विधायक केवल औपचारिकता के लिए सदन में पार्टी मीटिंग के दौरान नाम का प्रस्ताव और समर्थन जैसा दिखावा करते हैं.

‘एक देश एक चुनाव’ भी इसी तरह की औपचारिकता भर रह जाएगी. इस में एक नेता ही अपना चेहरा सामने रखेगा. पूरे देश में उसी के नाम पर चुनाव होगा. भारत विविधता वाला देश है. एक देश एक चुनाव के जरिए इस की खासीयत को खत्म करने का प्रयास हो रहा है.

संविधान संशोधन का अधिकार

भारत के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया है. इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किए जाते हैं. इन्हें संसद के प्रत्येक सदन से पर्याप्त बहुमत के द्वारा अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए. विशिष्ट संशोधनों को राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए.

1950 में संविधान के लागू होने के बाद से इस में 104 संशोधन किए जा चुके हैं. विवादास्पद रूप से भारतीय सुप्रीम कोर्ट के एक महत्त्वपूर्ण फैसले के अनुसार संविधान में किए जाने वाले प्रत्येक संशोधन को अनुमति देना संभव नहीं है.

संशोधन इस तरह से हो कि जो संविधान की मूल सरंचना का सम्मान करे. संविधान की मूल संरचना में किसी तरह का बदलाव संभव नहीं है. संशोधन की शुरुआत संसद में संबंधित प्रस्ताव को पेश करने के साथ होती है जिसे बिल कहा जाता है. इस के बाद उसे संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अनुमोदित किया जाता है.

संशोधन के लिए प्रत्येक सदन में इसे उपस्थित सांसदों का दोतिहाई बहुमत प्राप्त होना चाहिए. इस के अलावा सभी सदस्यों का साधारण बहुमत प्राप्त होना चाहिए. विशिष्ट संशोधनों को कम से कम आधे राज्यों की विधायिकाओं द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए. एक बार जब सभी जरूरतें पूरी कर ली जाती हैं तब इस संशोधन पर देश के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त की जाती है.

मौजूदा केंद्रीय सरकार देश के संविधान की मूल भावना के खिलाफ ‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जोर लगा रही है. इस के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया.

एक देश एक चुनाव

‘वन नेशन वन इलैक्शन’ यानी ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना पर विचार करने के लिए बनी समिति का कहना है कि सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद उस ने रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में आने वाले वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथसाथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने के मुद्दे से जुड़ी सिफारिशें दी गई हैं.

191 दिनों में तैयार 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ सा?ा किए थे जिन में से 32 राजनीतिक दल ‘एक देश एक चुनाव’ के समर्थन में थे. केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़ कर बाकी 32 दलों ने न केवल साथसाथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए

यह विकल्प अपनाने की जोरदार वकालत की.

रिपोर्ट में ही कहा गया है कि ‘एक देश एक चुनाव’ का विरोध करने वालों ने दलील दी थी कि इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा. यह अलोकतांत्रिक, संघीय

ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलगथलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा. ‘एक देश एक चुनाव’ व्यवस्था देश को राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी.

समिति के सुझाव

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस छोड़ गए नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डा. सुभाष कश्यप, सुप्रीम कोर्ट में भाजपा के मामलों की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ विजिलैंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे. इस के अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डा. नितेन चंद्रा भी समिति में थे. सभी लोग भाजपा समर्थक ही थे, यह नामों से स्पष्ट है.

समिति का कहना है कि सभी चुनाव एकसाथ न कराने से नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ा है. पहले हर 10 साल में 2 चुनाव होते थे, अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं. इसलिए सरकार को साथसाथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से तंत्र बनाना चाहिए. चुनाव 2 चरणों में कराए जाएं. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एकसाथ कराए जाएं, दूसरे चरण में एकसाथ नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव हों.

इन्हें पहले चरण के चुनावों के साथ इस तरह कोऔर्डिनेट किया जाए कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के 100 दिनों के भीतर इन्हें पूरा किया जाए. इस के लिए संविधान में जरूरी संशोधन किए जाएं. इसे निर्वाचन आयोग की सलाह से तैयार किया जाए.

समिति की सिफारिश के अनुसार, त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं.

इस स्थिति में नए लोकसभा

(या विधानसभा) का कार्यकाल, पहले की लोकसभा (या विधानसभा) की बाकी बची अवधि के लिए ही होगा. इस के बाद सदन को भंग माना जाएगा. इन चुनावों को ‘मध्यावधि चुनाव’ कहा जाएगा. वहीं 5 साल के कार्यकाल के खत्म होने के बाद होने वाले चुनावों को ‘आम चुनाव’ कहा जाएगा.

आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक के दिन राष्ट्रपति एक अधिसूचना के जरिए इस अनुच्छेद के प्रावधान को लागू कर सकते हैं. इस दिन को ‘निर्धारित तिथि’ कहा जाएगा. इस तिथि के बाद लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले विधानसभाओं का कार्यकाल बाद की लोकसभा के आम चुनावों तक खत्म होने वाली अवधि के लिए ही होगा. इस के बाद लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के सभी चुनाव एकसाथ कराए जा सकेंगे.

लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए जरूरी लौजिस्टिक्स, जैसे ईवीएम मशीनों और वीवीपीएटी खरीद, मतदानकर्मियों और सुरक्षाबलों की तैनाती व अन्य व्यवस्था करने के लिए निर्वाचन आयोग पहले से योजना और अनुमान तैयार करेगा. वहीं नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए ये काम राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा किए जाने की बात है.

ये सब बातें वे हैं जिन का न देश की राजनीति से कोई मतलब है न समस्याओं से. ये पौवर गेन का हिस्सा हैं.

क्यों हो रहा विरोध

औल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘जल्दीजल्दी चुनाव होने से सरकारों को भी परेशानी होती है. वन नेशन वन इलैक्शन से कई तरह से संवैधानिक मुद्दे जुड़े हैं. सब से बुरा यह होगा कि सरकार को 5 साल तक लोगों की नाराजगी की कोई चिंता नहीं रहेगी. यह भारत के संघीय ढांचे के लिए मौत की घंटी के समान होगा. यह भारत को एक पार्टी सिस्टम में बदल कर रख देगा.’

कांग्रेस नेता और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है, ‘एक देश, एक चुनाव कैसे हो सकता है जब मौजूदा भाजपा सरकार जनादेश को स्वीकार ही नहीं कर रही? क्या पूर्व राष्ट्रपति और समिति के अन्य सदस्यों ने इस साठगांठ से पाए गए बहुमत पर भी कोई सिफारिश की है?’

करना पड़ेगा संविधान संशोधन

‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. इस के लिए कानूनी पैनल बनाया गया है. जस्टिस (रिटायर्ड) रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाला यह पैनल संविधान में एक नया चैप्टर जोड़ सकता है. असल में इसे संविधान को समाप्त कर देने वाला चैप्टर कहा जा सकता है. इस के जरिए चुनाव आयोग 2029 तक देश में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एकसाथ कराने की सिफारिश कर पाएगा. जो जानकारियां मिल रही हैं उन के अनुसार अगले

5 सालों में 3 चरणों में विधानसभाओं को एकसाथ लाने की योजना है. जिस से पहला एकसाथ चुनाव मईजून 2029 में हो सके. तब देश में 19वीं लोकसभा के लिए चुनाव होंगे.

2024 के लोकसभा चुनावों के साथ

5 विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं. महाराष्ट्र, हरियाणा और ?ारखंड के विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने हैं.

सिफारिशों के अनुसार ‘एक देश एक चुनाव’ लागू करने के लिए कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा. मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हाल ही में चुनाव हुए हैं. इसलिए इन विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ा कर जून 2029 तक किया जाएगा. उस के बाद सभी राज्यों में एकसाथ विधानसभा-लोकसभा चुनाव होंगे. हरियाणा, महाराष्ट्र, ?ारखंड और दिल्ली की सरकार के कार्यकाल में

5-8 महीने कटौती करनी होगी और जून 2029 तक इन राज्यों में मौजूदा विधानसभाएं चलेंगी.

बिहार का मौजूदा कार्यकाल पूरा होगा. इस के बाद का साढ़े 3 साल ही रहेगा. असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के मौजूदा कार्यकाल 3 साल 7 महीने घटेंगे. उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल पूरा होगा, उस के बाद का कार्यकाल

सवा 2 साल रहेगा. गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का मौजूदा कार्यकाल 13 से 17 माह घटेगा. यह सब जनता के अधिकारों का हनन है पर 400 सीटों के दंभ में इसे लागू कराने के लिए मोदी सरकार कुछ भी कर सकती है.

देश की सभी विधानसभाओं का कार्यकाल जून 2029 में समाप्त होगा. कोविंद कमेटी विधि पैनल से एक और प्रस्ताव मांगेगी, जिस में स्थानीय निकायों के चुनावों को भी शामिल करने की बात कही जाएगी. भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलगअलग समय पर होते हैं. ‘एक देश एक चुनाव’ का मतलब है कि पूरे देश में एकसाथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों. मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय

पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे.

लोगों को डर आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग हो गईं. उस के बाद 1970 में लोकसभा भी भंग हो गई. इस वजह से एक देश एक चुनाव की परंपरा टूट गई.

खर्च की बात करें तो देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अगर एकसाथ कराए जाते हैं तो हर 5 साल में सिर्फ ईवीएम पर 10 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होंगे. एक ईवीएम

15 साल ही प्रयोग होती है. यदि एकसाथ चुनाव कराए जाते हैं तो मशीनों के दो सैट बनवाने होंगे. एक सैट का इस्तेमाल 3 बार चुनाव कराने के लिए किया जा सकता है.

यह भी पता चला है कि लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़ा कर 6 साल किया जा सकता है.

यह है मंशा

लोगों को गलत भी नहीं लग रहा है क्योंकि अकसर नेताओं की असल मंशा होती कुछ और है और वे उसे दिखाते कुछ और हैं. बात अगर नरेंद्र मोदी की हो तो यह शक और गहरा हो जाता है. इस का एक बेहतर उदाहरण उन का नोटबंदी का फैसला है जिस की घोषणा करते वक्त उन्होंने 8 नवंबर, 2016 को जनता को भरोसा दिलाया था कि इस से आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, जाली करैंसी व कालाधन वगैरह सब बंद और खत्म हो जाएंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, पिछले 8 साल इस के गवाह हैं.

ताजी मिसाल बीती 4 मई को ही पुंछ में हुआ आतंकी हमला है जिस में एयरफोर्स का एक जवान मारा गया और 4 घायल हो गए.

उस के ठीक 4 दिनों पहले छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र बौर्डर पर अबू?ामाड़ के जंगलों में नक्सलियों और सुरक्षाकर्मियों की मुठभेड़ में 10 नक्सली मारे गए थे. खबर अच्छी थी लेकिन चिंताजनक इस लिहाज से है कि नक्सली गतिविधियां खत्म नहीं हुईं हैं बल्कि आतंकी घटनाओं की तरह एक अनियमित अंतराल से होती रहती हैं. मारे गए नक्सलियों के पास से हथियारों का जखीरा बरामद होने से तो साबित यही होता है कि नक्सलियों के पास नोटों की कमी नहीं.

ठीक इसी दिन बिहार के मोतिहारी से कोई 13 लाख रुपए के जाली नोट बरामद होने का सिलसिला जारी रहने की पुष्टि हुई थी.

ये कुछ ताजी घटनाएं नोटबंदी के फैसले को जबरन देश पर थोपने की हकीकत बयां करती हुई हैं जिस की असल मंशा उत्तर प्रदेश का 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव था जिस में खासतौर से सपा और बसपा कंगाल हो गए थे और पैसों की कमी के चलते चुनाव हार गए थे.

इस के बाद तो नरेंद्र मोदी की कुछ भी करगुजरने की हिम्मत बढ़ती गई. जब इस फैसले से लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूटने लगा था तो 5 दिनों बाद ही वे गोवा में यह कहते रो दिए थे कि मु?ो 30 दिसंबर तक का वक्त दो, इस के बाद अगर मेरी गलती निकल आए तो किसी भी चौराहे पर मु?ो जो चाहो सजा दे देना. उन के आंसू देख जनता जज्बाती हो गई थी और बात आईगई हो गई थी. लेकिन नोट बदलने के चक्कर में सैकड़ों लोग बेमौत मारे गए थे.

इस के बाद ‘एक देश एक टैक्स’ के नाम पर 1 जुलाई, 2017 से जीएसटी लागू कर दी गई. इस की एक वजह लोगों का उन्हें नोटबंदी के फैसले की बाबत माफ सा कर देना भी था. जीएसटी पर देश के व्यापारी आज तक ?ांकते नजर आते हैं. इस से भी, ऐलान के मुताबिक, घपलेघोटाले खत्म नहीं हुए जिस के ताजे उदाहरण हैं 27 अप्रैल को गोरखपुर में एक स्क्रैप व्यापारी सुनील सेठ के यहां पड़ा छापा जिस में लाखों की टैक्स चोरी पकड़ी गई.

इस के कुछ दिनों ही पहले जबलपुर रेलवे स्टेशन के पार्सल विभाग में भी तगड़ी टैक्स चोरी पकड़ी गई थी. टैक्स चोरी जीएसटी के बाद भी बदस्तूर जारी है और लाखों छोटे व्यापारी व कारोबारी इस से कंगाल व तबाह हो गए थे. आम लोग महंगाई से कराहने लगे हैं जो खानेपीने के आइटमों पर भी टैक्स भर रहे हैं. जीएसटी का विरोध भी फुस्स हो कर रह गया तो सरकार को सम?ा आ गया कि कुछ भी करते रहो, बहुत बड़ा विरोध नहीं होगा क्योंकि देश में अंधभक्तों की भरमार है जो मंदिर और हिंदूमुसलिम के चक्कर में उल?ो हां में हां मिलाते रहते हैं. इन लोगों को बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से कोई सरोकार नहीं है.

अब ‘वन नेशन वन इलैक्शन’ की चर्चा पर भी हो वही रहा है जैसा कि सरकार चाहती है कि लोग ?ांसे में आ कर 400 पार करा दें. नई व्यवस्था वजूद में आने के बाद 5 साल कुछ भी करते रहो उस से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. इस के पीछे छिपी मंशा कम ही लोग सम?ा पा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी बहुत सधे कदमों से मनमानी की तरफ बढ़ रहे हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचने के रास्ते में कोई रोड़ा नहीं चाहते.

अहं ब्रह्मास्मि की तरफ

‘एक देश एक चुनाव’ के जो फायदे आज गिनाए जा रहे हैं वे नोटबंदी और जीएसटी सरीखे ही काल्पनिक व सपने दिखाने वाले हैं. चुनावी खर्च इस से कम होगा, इस की कोई गारंटी नहीं है. सरकार को अगर जनता के पैसे की इतनी ही चिंता है तो पहले उसे अपनी फुजूलखर्ची कम करनी चाहिए. खुद चुनाव आयोग भी बहुत दरियादिली, जिसे बेरहमी कहना ज्यादा सटीक होगा, से पैसा खर्च करता है जिस पर कोई सवाल नहीं उठाता मानो यह कोई धार्मिक अनुष्ठान हो जिस के खर्च के बारे में सवाल करने से ही पाप लग जाएगा.

चुनाव के खर्च पर हालफिलहाल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. पिछले 35 सालों से चुनावी खर्च पर नजर रख रहे सैंटर फौर मीडिया स्टडीज के मुताबिक इस बार के चुनाव पर 2019 के चुनाव से दोगुना खर्च हो रहा है. देश में इस वक्त 96.6 करोड़ वोटर हैं. 2019 के चुनाव में प्रतिवोटर 31.52 रुपए खर्च आया था जो कि 60,000 करोड़ रुपए था. अब महज 5 साल में इस से दोगुना खर्च हो रहा है तो इस की एक वजह बढ़ते वोटर और पोलिंग बूथ भी हैं. इन्हें एक देश एक चुनाव में कम नहीं किया जा सकता. दूसरे, कुछ खर्च कम हो सकते हैं लेकिन वे इतने नहीं होंगे कि भारीभरकम बचत हो जाए और देश से गरीबी हट जाए.

अंदाजा यह भी है कि पार्टियों और प्रत्याशियों के खर्च भी इस में जोड़ दिए जाएं तो प्रतिवोटर खर्च हजारों में हो जाएगा. क्या चुनाव आयोग या दूसरा कोई इन पर अंकुश लगा सकता है? जवाब बेहद साफ है कि नहीं. इस बार तीसरे चरण का मतदान आतेआते ही तगड़ा कैश देशभर से बरामद हुआ था जिस से लगा था कि असल ?ां?ाट लगभग 2 महीने तक चलने और 7 चरणों में होने वाले चुनाव हैं जिस की तुक ही सम?ा से परे हैं.

चुनाव पहले भी होते थे और एकदो चरण में संपन्न हो जाते थे. लिहाजा, पैसा कम खर्च होता था. अब तो मतदाता जागरूकता के नाम पर ही मोटा पैसा खर्च किया जा रहा है जो दूसरे कई खर्चों की तरह गैरजरूरी है. तमाम कोशिशों और बेतहाशा खर्च के बाद भी मतदान 60-70 फीसदी पार नहीं कर पा रहा तो इस का उत्तर ‘एक देश एक चुनाव’ नहीं है.

सनातन के नाम पर वोट

एक कड़वा सच यह है कि अब लोगों को चुनाव का औचित्य ही सम?ा नहीं आ रहा कि सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल आखिर किस और किन मुद्दों पर वोट चाह रहे हैं. प्रचार इतना उबाऊ और एक हद तक फूहड़ है कि लोग वोट न डालना ही बेहतर सम?ा रहे हैं. कहने को तो एक विकल्प नोटा है लेकिन वह कोई प्रत्याशी नहीं है जिस का बटन दबाने से खास फर्क पड़ता हो. हाल तो यह है कि खुलेआम धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगे गए, सनातन की रक्षा के नाम पर वोट डालने की अपीलें की गईं, जिस से वोटर का मन उचटा.

इस कथित धर्मनिरपेक्ष देश में 5 मई को भाजपा ने एक विज्ञापन जारी किया था जिस में कहा गया था कि हम महाकाल की तर्ज पर धर्मस्थलों का विकास करेंगे, इसलिए भाजपा को वोट दो. आचार संहिता और संविधान के इस खुले उल्लंघन पर चुनाव आयोग का ध्यान भी नहीं गया, न ही विपक्ष ने कोई एतराज जताया तो चुनाव आयोग की मतदान बढ़ाने की कवायद एक शिगूफा और औपचारिकता ही लगती है.

हालांकि खर्च कम हो सकता है लेकिन वह ‘एक देश एक चुनाव’ के नाम पर ही कम हो सकता है, यह दलील सिरे से न सम?ा आने वाली है.

बारबार चुनावों से होता यह है कि सरकार पर जनता का दबाब बना रहता है कि एक भी गलत या मनमाना फैसला केंद्र और राज्यों से बेदखल कर सकता है ठीक वैसे ही जैसे नोटबंदी के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा से कई राज्य छिन गए थे. इन में दिल्ली, पंजाब, बिहार, ?ारखंड, सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे गढ़ भी शामिल थे. 2017 के उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा अगर काबिज हो पाई थी तो इस की सियासी वजहें थीं. नोटबंदी को भी तब इतना वक्त नहीं हुआ था कि लोगों को इस का खुद की जिंदगी पर पड़ता असर साफतौर पर महसूस होने लगता.

इस के बाद धर्म, मंदिर और जाति की राजनीति की हवा चली तो वह अब तक थमने का नाम नहीं ले रही है. चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दे जमीनी कम हवाहवाई ज्यादा हैं, मसलन राम मंदिर, हिंदूमुसलिम और पाकिस्तान वगैरह. ‘एक देश एक चुनाव’ के पीछे मंशा यही है कि इन मुद्दों को एक बार में ही भुना लिया जाए और फिर एक नेता 5-6 साल बैठ कर इत्मीनान से राज करे क्योंकि तब तक जनताजनार्दन के हाथ कटे रहेंगे. किसी मुद्दे या फैसले पर ज्यादा विरोध होगा तो उस नेता के पास उस की अनदेखी करने और सख्ती से निबटने के कई रास्ते होंगे.

तो यह एक एक बड़ी साजिश है जिसे कानून का जामा पहना कर नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि 5 साल उन के अलावा कोई और न दिखे और उन्हें बारबार मेहनत न करनी पड़े. एक ही चेहरा और एक ही नेता नजर आए. अभी तो विपक्ष दिख भी जाता है और उस का दबाव भी सरकार के उलटेसुलटे फैसलों पर रहता है. आशंका इस बात की भी है कि सरकार मनमाने फैसले चुनाव के 2-3 साल बाद तक ले लेगी और चौथेपांचवें साल में मुफ्त के राशन जैसी कोई लोकलुभावनी योजना ले आएगी या जाति की कारपेट फिर बिछा लेगी व हिंदूमुसलिम को बड़े पैमाने पर भुनाएगी जिस से लोग नोटबंदी और जीएसटी की तरह भूल जाएं कि उन का और देश का अहित व नुकसान करते फैसलों का कितना, क्या और कैसा खमियाजा भुगतना पड़ा था.

खतरा एक का

गणित में भले ही एक की अपनी अलग अहमियत हो लेकिन लोकतांत्रिक राजनीति में एक बड़ा खतरा है जो मूलतया तानाशाही का संकेत देता है. इतिहास में जितने भी तानाशाह हुए हैं वे कोई रातोंरात तानाशाह नहीं बन गए थे. जरमनी का एडोल्फ हिटलर, इटली का बेनिटो मुसोलनी, सोवियत संघ का व्लादिमीर इलीइच लेनिन, जोसेफ स्टालिन या चीन का माओ त्से तुंग इन, युगांडा के ईदी अमीन से ले कर इराक के सद्दाम हुसैन तक के कोई दर्जनभर नाम दुनिया के तानाशाहों में शुमार किए जाते हैं.

ये सभी या कोई एक खास किस्म की सनक के लिए तानाशाह बने थे जिस पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह सनक क्या थी, वामपंथी या दक्षिणपंथी. अहम यह बात है कि उन की सनक, जिस से किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ, ने जम कर खूनखराबा कराया, लाशों के ढेर लगा दिए, अनगिनत औरतों को विधवा बना दिया और बच्चों को अनाथ बना दिया. इन्होंने लोगों की आजादी छीनी और दहशत फैलाई.

होता इतना भर है कि इन्होंने और इन की सरकारों ने संवैधानिक सीमाओं को तोड़ते सारे अधिकार अपनी मुट्ठी में कैद कर लिए थे और लोकतंत्र को ध्वस्त कर दिया था. इतिहास बताता है कि आधुनिक यानी तथाकथित लोकतांत्रिक तानाशाहों में और प्राचीन तानाशाहों में बड़ा फर्क होता है. अब तानाशाही का मतलब सामूहिक नरसंहार नहीं बल्कि पूंजी को मुट्ठीभर हाथों को सौंप देना हो गया है और इस के लिए किसी विचार या दर्शन का नहीं बल्कि धर्म का सहारा लिया जाने लगा है, जिस से आम लोग गुलामों की तरह शासक के इशारे पर नाचने लगते हैं. यह भी राजशाही वाली तानाशाही की तरह ही घातक और नुकसानदेह है.

‘एक देश एक चुनाव’ की धारणा तानाशाही की तरफ तीसरा कदम है जिस के लिए 1950 के संविधान की दुहाई चुनावप्रचार के दौरान बारबार दी तो गई जबकि उसी संविधान को तारतार किए जाने की मंशा छिपी हुई है. और इसी से हरकोई चिंतित है.

लोकतांत्रिक तानाशाही में तमाम दक्षिणपंथी शासक भगवान हो जाने की आदिम इच्छा से ग्रस्त होते हैं. लंबे समय तक सत्ता एक ही के हाथ में रहे तो उसे धीरेधीरे अपने भगवान होने का भ्रम होने लगता है. इस भ्रम को विश्वास में बदलने के लिए वह जनता की सहमति लेने को संविधान को अपनी मरजी के मुताबिक ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

हिटलर विकट का धार्मिक था और तानाशाही के उत्तरार्ध में शुद्ध नस्ल के आदमी पर जोर देने लगा था. यह एक मूर्खतापूर्ण बात थी जिस का दोहराव मौजूदा शासकों में दूसरे तरीकों से देखने में आता है लेकिन वह धार्मिक सिद्धांतों, जो पूर्वाग्रह ज्यादा हैं, से इतर नहीं है.

सभी धर्म और उन के ग्रंथों का निचोड़ यही है कि ईश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान है, पूजनीय है और अपनी बात अपने प्रतिनिधियों के जरिए कहता है जिन की हैसियत भगवान से कम नहीं होती. हालांकि समयसमय पर नीत्शे जैसे दार्शनिक भी हुए हैं जिन्होंने ईश्वर की परिकल्पना को ही तर्कों से तारतार कर दिया लेकिन नीत्शे जैसे दार्शनिक चूंकि ‘मैं’ पर जोर नहीं देते इसलिए वक्त रहते अप्रांसगिक होते गए.

रूस में व्लादिमीर पुतिन भी लगभग भगवान होते जा रहे हैं और चीन में शी जिनपिंग भी साम्यवादी विचारधारा को ले कर अनियंत्रित होते जा रहे हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का भगवान होने का भ्रम अब एक खतरनाक जिद में तबदील हो चुका

है जिस के चलते वे अनापशनाप बातें करने लगे हैं. वे जैसे भी हों, जो बाइडेन को अपदस्थ कर सत्ता हथिया लेना चाहते हैं.

यह सारा ?ामेला एक और उस से उपजी सनक ‘मैं’ का है.

भारत में यह अद्वैत दर्शन की वजह से है. नरेंद्र मोदी की मंशा अब विकास या देश चलाना नहीं रह गई है, बल्कि वे अद्वैत को थोपने में जुट गए हैं. अहं ब्रह्मास्मि बृहदारण्यक उपनिषद का एक महावाक्य है जिस की लोकतंत्र में भूमिका की चर्चा सब से पहले एकात्म मानववाद के रूप में जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने की थी. यह दर्शन अंत में अनंत ब्रह्मांड की बात करने लगता है.

लोकतंत्र में धार्मिक दर्शनों या सिद्धांतों की जरूरत ही नहीं है क्योंकि इस में सब की भागीदारी होती है जिसे खत्म कर देने के लिए संविधान को बदलने की बात से ही जिम्मेदार लोग चिंतित हैं.

पहली चिंता जानेमाने अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने इन शब्दों में जताई-

‘‘अगर नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा सत्ता में वापस लौटती है तो आप और चुनाव की उम्मीद मत कीजिए. इस के बाद चुनाव होगा ही नहीं. देश का संविधान और नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा. आप लालकिले से नफरत की बातें सुनेंगे जो काफी खतरनाक हैं. जो आज मणिपुर में हुआ वह कहीं और भी हो सकता है. किसानों और लद्दाख जैसा हाल पूरे देश का होने वाला है.’’ प्रभाकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण के पति हैं और भाजपा में रह चुके हैं. इस नाते भी उन की इस चेतावनी को नजरंदाज करना बुद्धिमानी की बात नहीं कही जा सकती.

निरंकुशता की तरफ

अब औक्सफोर्ड डिक्शनरी के एक शब्द औटोक्रेसी की बात करें तो इस का मतलब होता है कि किसी देश की वह शासन व्यवस्था जिस में एक ही व्यक्ति के हाथों में सारी शासन व्यवस्था होती है. सहूलियत के लिए इसे अधिनायकवाद का पर्याय भी माना जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर एक पर जोर देते रहे हैं, वन रैंक वन पैंशन, एक विधान एक टैक्स और अब एक देश एक चुनाव इसी सीरीज की अहम कड़ी है. इस में वे घोषिततौर पर लोकतांत्रिक तानाशाह लगते हैं. विपक्ष ने इसे कई बार मुद्दा बनाने की कोशिश की है लेकिन हर बार उस की आवाज को धार्मिक शोर तले बड़ी चालाकी से दबा दिया गया. दबे शब्दों में एक ही धर्म की बात की जाती है क्योंकि दूसरे बड़े धर्म को विदेशी कह दिया जाता है.

इसी से ताल्लुक रखती स्वीडन के गोथेनबर्ग में स्थित वी डेम इंस्टिट्यूट यानी वेरायटीज औफ डैमोक्रेसी की बीती 7 मार्च को जारी एक रिपोर्ट, जिस का शीर्षक है ‘डैमोक्रेसी विनिंग एंड लूजिंग एट द बैलेट’, में कहा गया है कि भारत 2023 में ऐसे टौप 10 देशों में शामिल रहा जहां अपनेआप में तानाशाही या निरकुंश शासन व्यवस्था है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2018 में चुनावी तानाशाही में नीचे चला गया और आखिर तक इसी श्रेणी में बना रहा. इस में एक दिलचस्प बात यह भी कही गई है कि इस समूह के 10 में से 8 देश निरंकुशता की शुरुआत से पहले लोकतांत्रिक थे. उन 8 में से 6 देशों- भारत, हंगरी, मौरिशस, कोमोरोस, निकारागुआ और सर्बिया में लोकतंत्र खत्म हो गया. इस लंबी रिपोर्ट में देश की मौजूदा हालत को कुछ यों भी बयां किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ बहुलता विरोधी, हिंदू राष्ट्रवादी भाजपा ने उदाहरण के लिए आलोचकों को चुप कराने के लिए राजद्रोह, मानहानि और आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल किया. भाजपा सरकार ने 2019 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूपीए में संशोधन कर के धर्मनिरपेक्षता की प्रतिबद्धता को कमजोर किया.

एक मंदिर एक देवता क्यों नहीं

भाजपा के 5 मई को प्रकाशित धार्मिक विज्ञापन ऐसे तमाम आरोपों की पुष्टि ही करता है कि यहां राजनीति धर्म की ही चलती है. बाकी छिटपुट बातें तो खाने में सलाद की तरह होती हैं. धर्मस्थलों के विकास के वादे वाला विज्ञापन सरासर जन प्रतिनिधित्व अधिनयम की धारा 123 (3) को धता बताता हुआ तो था ही, इस में सुप्रीम कोर्ट के 2 जनवरी, 2017 के उस फैसले का भी उल्लंघन भी था जिस में 7 जजों की बैंच ने कहा था कि प्रत्याशी या उन के समर्थकों द्वारा धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है. चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है, सो, धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना संविधान की भावना के खिलाफ है.

इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या के रामलला मंदिर में साष्टांग थे. हालांकि पूरे चुनाव प्रचार में वे राधेराधे और रामश्याम ही करते रहे थे जिस से उन का कोर वोटर भी ?ाल्ला गया था कि कभीकभार ही सही कुछ तो कायदे की बात करो.

भाजपा का पूरा चुनाव अभियान नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द ही सिमटा रहा था जिसे गोदी मीडिया ने जितना हो सकता था उस से भी ज्यादा स्पेस दिया. हर सीट पर भाजपा उम्मीदवारों ने यही कहा कि चुनाव मोदीजी लड़ रहे हैं आप का वोट उन्हीं को जाएगा. खुद नरेंद्र मोदी ने भी कई बार कहा कि आप का वोट मोदी को मिलेगा.

जब वोट भी एक ही को देना है तो पूरी 542 सीटों पर मोदी खुद ही लड़ लेते तो कोई पहाड़ न टूट पड़ता. एक की रट लगाए वे लगेहाथ यह भी बता देते कि आखिर एक मंदिर एक देवता की बात या व्यवस्था कब की जाएगी जिस से बहुतों को पूजने की ?ां?ाट ही खत्म हो जाए.

लेकिन ऐसा होने नहीं दिया जाएगा क्योंकि ये बहुत से देवीदेवता ही हिंदू धर्म की दुकान के बड़े प्रोडक्ट हैं जिन से श्रेष्ठि वर्ग को रोजगार मिला हुआ है, इसीलिए इन दुकानों को सरकारी खर्चे पर और चमकाया जा रहा है जिस से आमदनी ज्यादा से ज्यादा हो और लोग जातियों में बंटे रहें. इस बाबत पटेल और अंबेडकर तक के मंदिर बना दिए गए हैं.

4 जून के नतीजे क्या होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन एक देश एक चुनाव की व्यवस्था अगर लागू हो पाई तो देश का क्या हाल होगा, इस का जरूर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

 

डिग्री : यश के पिता क्या कहना चाहते थे

रोहन दोपहर के खाने के बाद औफिस में सुस्ता रहा था. औफिस का कामधंधा तो बढ़िया टनाटन चल रहा है, फिर भी सोच उन की पुत्री नेहा पर अटक गई.

नेहा 32  वर्ष की हो गई है. रोहन की सोच नेहा के विवाह की थी. इस उम्र तक पुत्री का विवाह हो जाना चाहिए.

हुआ कुछ यों, पहले नेहा ने विवाह के लिए इनकार कर दिया. जब तक उस की पढ़ाई समाप्त नहीं हो जाती, वह विवाह नहीं करेगी. नेहा पढ़ने में होशियार थी. बी कौम के साथ चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई कर रही थी. बी कौम फर्स्ट डिवीजन में पास कर ली. सीए इंटर भी पास हो गया. सीए फाइनल में अटक गई. नेहा ने ठान लिया जब तक सीए नहीं बन जाती, शादी नहीं करेगी. एक ग्रुप अटका हुआ था, आखिर 2 वर्ष बाद सफलता मिल ही गई. नेहा सीए बन गई और नौकरी भी करने लगी.

रोहन ने पत्नी रिया के माध्यम से नेहा से कहना आरंभ कर दिया. विवाह कर ले. नेहा ने अपनी पसंद से विवाह की बात की.

कालेज के दिनों में नेहा की मित्रता नयन से गाढ़ी हो गई थी. नयन के पिता का अपना व्यापार था. नेहा और नयन एकदूसरे के घर आतेजाते रहते थे. रिया को ऐसा महसूस हुआ, नेहा की पहली और अंतिम पसंद नयन ही है.

रोहन और रिया को नयन के साथ रिश्ते में कोई आपत्ति नहीं थी. उन्हें नेहा की हरी झंडी की प्रतीक्षा थी.

जहां नेहा ने फर्स्ट डिवीजन में बी कौम किया, नयन थर्ड डिवीजन में पास हुआ. उस ने भी सीए में दाखिला तो लिया लेकिन इंटर में लुढ़क गया और सीए की पढ़ाई छोड़ कर अपने पिता के व्यापार में सैट हो गया.

नेहा के सीए बनने पर रोहन और रिया ने एक शानदार पार्टी का आयोजन किया और अपने दिल की बात नयन के पिता को बता ही दी. नयन के पिता ने एक सप्ताह बाद बातचीत करने को कहा.

एक रैस्त्रां में रोहन और रिया नयन के मातापिता से मिले. कुछ औपचारिक कुशलक्षेम की बातें हुईं और फिर रोहन सीधे मुद्दे की बात पर आए.

“नेहा और नयन कालेजके दिनों से घनिष्ठ मित्र हैं और मेरी इच्छा है हम दोनों के विवाह के लिए सहमत हो जाएं.”

नयन के मातापिता का जवाब सुन कर रोहन का माथा घूम गया.

“माना दोनों बहुत वर्षों से दोस्त हैं. दोस्ती का यह मतलब नहीं होता, वे आपस में विवाह भी करें.”

“अच्छी दोस्ती का सीधा अर्थ होता है, वे एकदूसरे को अच्छी तरह समझते हैं. विवाह सफल रहेगा,” रोहन ने अपना मत रखा.

“देखिए, नयन बी कौम है और हमारे पारिवारिक व्यवसाय में रचबस गया है. उस के लिए कई व्यापारिक घरानों से रिश्ते आ रहे हैं. हम उन रिश्तों पर भी विचार कर रहे हैं.”

“मेरा भी अपना व्यापार है. दादा जी ने एक दुकान से काम आरंभ किया था, अब 2 फैक्ट्री हैं,” रोहन ने नयन के पिता को प्रभावित किया.

“वह तो ठीक है लेकिन हमें अधिक पढ़ीलिखी लड़की बहू के रूप में स्वीकार्य नहीं है.”

“शादी का पढ़ाई से क्या संबंध है. लड़का और लड़की जब एकदूसरे को पसंद करते हैं तब पढ़ाई आड़े नहीं आती.”

“हम आप की बात से सहमत नहीं हैं. आप की लड़की हमारे लड़के से अधिक पढ़ी है. स्वाभाविक रूप से वह अपनी पढ़ाई का रोब डाल कर लड़के से ऊपर रहेगी. नयन कुंठा में नहीं जीना चाहता. हमें सिर्फ बी कौम पास लड़की ही चाहिए, जो नयन की बराबरी करे लेकिन ऊपर रहने का रोब न डाले,” नयन के पिता ने दो टूक कह दिया.

रोहन ने बात संभालने का प्रयास किया, “नेहा और नयन एकसाथ घूम फिर रहे हैं. दोनों खुश हैं. मुझे तो कभी एहसास नहीं हुआ, नेहा को अपने सीए होने का घमंड हो या नयन को कभी ताना मारा हो. जब अच्छे मित्र पतिपत्नी बनते हैं तब उन का प्यार और निखरता है. नेहा सीए है, उस की पढ़ाई आप के काम आएगी. उस के ज्ञान और टैक्स की जानकारी से आप को फायदा होगा, आप के व्यापार को फायदा होगा.”

“फिर तो हमारे ऊपर भी रोब डालेगी, हमें कुछ नहीं आता. सब ज्ञान उसी को है. हम जिस सीए से काम कराते हैं वह हमें सलाम मारता है और झुक कर काम करता है. उस को मालूम है अधिक टूंटा की तो किसी और सीए से काम करवा लेंगे. अगर नेहा ने हमारा काम संभाला तब वह बहू नहीं, हमारा बाप बन जाएगी जो हम नहीं चाहते.”

रोहन नयन के पिता के तर्क सुन कर चुप हो गया. उस ने कभी सोचा नहीं था आज के आधुनिक युग में भी पुरानी सोच के लोग जी रहे हैं.

नेहा और नयन अच्छे मित्र तो थे लेकिन पतिपत्नी नहीं बन सके. जो सपने संजोए थे उन्होंने, धाराशाही हो गए.

कुछ दिनों बाद नयन की शादी का समाचार मिला. एक बार फिर रिया ने बात छेड़ी.

“तेरी कोई पसंद हो, तो बता. कोई औफिस सहपाठी या फिर कोई मित्र?”

नेहा ने कुछ समय मांगा. अभी नौकरी बदलनी है. कुछ समय बाद सोचेगी. लड़की सीए है, अच्छी नौकरी है. सैलरी बढ़िया है. रिश्तेदारों ने भी अपने लड़कों के लिए रिश्ते भेजने बंद नहीं किए थे.

रोहन औफिस में यही सोच रहा था. लड़की हो या लड़का, हर किसी को शारीरिक जरूरतों के लिए विवाह के बंधन में बंधना होता है. कुदरत के नियम पर समाज ने अपनी मोहर लगाई है. नयन की शादी हो गई. नेहा को कुछ सोचना चाहिए. जब उसे खुली छूट दी है, जिस लड़के को पसंद करेगी उसी से विवाह करा देंगे. इसी उधेड़बुन में रिया को फोन लगाया.

“मैं आज रात फाइनल बात करती हूं. आज भी मेरे पास 2 रिश्ते आए हैं, क्या जवाब दूं. कब तक मना करती रहूं. एक समय बाद तो रिश्ते आने भी बंद हो जाएंगे.”

रात को नेहा ने कह दिया, “नयन के बाद कोई लड़का उसके जीवन में नहीं है. आप के सुझाए लड़के पर वह विचार करेगी.”

रोहन और रिया को इस जवाब पर प्रसन्नता हुई. आए रिश्तों पर चर्चा होने लगी. कुछ लड़के नेहा की 32 वर्ष उम्र देखते ही पीछे हट गए, हमें अपने से बड़ी उम्र की लड़की नहीं चाहिए.

बिरादरी के होली मिलन पर रोहन, रिया और नेहा हंस-मिल कर सभी से बातें कर रहे थे. कुछ आंखें संभावित बहू और वर की तलाश में थीं.

“और रिया, अपने को खूब मेंटेन कर रखा है,” सुकन्या ने हायहेलो करते हुए पूछा.

“थैंकयू, और बता, क्या चल रहा है?”

“इस से तो मिलवा,” नेहा को देख कर पूछा.

“अब वर्षों बाद मिल रही है, भूल गई क्या. मेरा एक ही तो बच्चा है, नेहा.”

“हाऊ स्वीट, बड़ी प्यारी बच्ची है. शादी का कोई इरादा है क्या?”

“सीए बन गई है. गुरुग्राम में नौकरी कर रही है. कोई लड़का हो तो बताना,” रिया ने सुकन्या के कान में बात डाल दी.

“नेकी और पूछपूछ. वह सामने देख लड़का, जंचे तो बता. अभी मिलवा देती हूं.”

“कौन है?”

“मेरी भाभी का लड़का है. गुरुग्राम में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.”

सुकन्या रिया का हाथ पकड़ कर अपनी भाभी से मिलवाने ले गई. लड़के का नाम यश था. रिया और यश को मिलवाया. खैर, मिलने का पहला अवसर था. बस, हायहेलो हुई.

रिया ने यह अवसर लपक लिया. सुकन्या और उस की भाभी से पूरी जानकारी प्राप्त कर ली.

नेहा खूबसूरत थी. यश भी हैंडसम था. पहली नजर में दोनों एकदूसरे के परिवार को पसंद आ गए. 2 दिनों बाद रविवार था. सुकन्या के घर मिलने का कार्यक्रम तय हुआ. रोहन का पहला अनुभव खट्टा रहा था, इसलिए उस ने एक रैस्त्रां में मिलने का कार्यक्रम तय किया.

रैस्त्रां में नेहा और यश अलग टेबल पर बैठ कर बातचीत करने लगे.

रोहन ने यश के परिवार को स्पष्ट कर दिया. नेहा सीए है और यश सिर्फ बी टैक है. देखा जाए तो नेहा की डिग्री बड़ी है. और दूसरी बात यह है कि नेहा की उम्र 32 वर्ष है और यश की आप ने 30 वर्ष बताई है. मुझे और रिया को कोई फर्क नहीं पड़ता. भारतीय समाज में आज भी कुछ पुरानी सोच के व्यक्ति हैं जो विवाह के समय लड़की का कम पढ़ा होना और छोटी उम्र का होना पसंद करते हैं.

यश के पिता ने रोहन का हाथ पकड़ा और एक अलग टेबल पर ले गए. रोहन को कुछ समझ नहीं आया. आखिर, एकांत में क्या कहना चाहते हैं.

“देखो, एक अंदर की बात बताता हूं. मैं इन बातों पर विश्वास नहीं रखता हूं.”

“यह तो आप का बड़प्पन है,” रोहन ने यश के पिता का शुक्रिया अदा किया कि वे दकियानूस नहीं हैं.

“पहले नेहा और यश अपनी पसंद बताएं. उन की पसंद मिल जाए तो आप को वह बात बताऊंगा जिस के लिए मैं आप को अलग टेबल पर लाया हूं.”

कुछ बातें हुईं. खाना हुआ और सभी अपने घर वापस आ गए. रोहन उस बात को समझने की कोशिश कर रहा था, यश के पिता क्या कहना चाहते थे, कहीं बेवकूफ तो नहीं बना रहे.

रात को नेहा और यश ने अपनी अपनी स्वीकृति प्रदान की. रोहन और रिया के चेहरे पर रौनक आ गई. अगले रविवार शगुन की थाली ले कर रोहन यश के घर पहुंचे. रिश्ता पक्का हुआ.

मुसकराते हुए यश के पिता रोहन को फिर एकांत में ले गए.

“वह एक बात रह गई जो उस दिन रैस्त्रां में बतानी थी.”

“जी, कहिए.”

“शादी के समय मैं सिर्फ 12वीं पास था. 33 फीसदी के साथ पास हुआ. कालेज में एडमिशन के लिए कम से कम 40 फीसदी नंबर चाहिए होते हैं. मैं तो स्टौकब्रोकर बन गया. यश की मां एमए पास है. जब मुझे मालूम हुआ, नेहा सीए है तब सब से बड़ी खुशी मुझे हुई. नेहा से कहना, नौकरी छोड़ कर मेरे औफिस में हाथ बंटाए.”

रोहन मुसकरा दिया. यश के पिता को गले लगाया. मुड़ कर देखा, नेहा और यश एकदूसरे कमरे में बतिया रहे थे. उन दोनों को डिग्री से अधिक एकदूसरे के विचारों से मतलब था.

मेरा बेटा शादी के लिए तैयार नहीं है, कैसे उसे समझाएं?

सवाल

बेटा शादी के लिए तैयार नहीं. बेटे की उम्र 28 साल है. जहां तक कैरियर में सैटल होने की बात है तो वह अच्छी नौकरी कर रहा है. घर में किसी चीज की कमी नहीं है. मातापिता होने के नाते घर हम चलाते हैं. बेटे से हम ने कभी उस की सैलरी का एक पैसा भी नहीं लिया.  हां, अपने खर्चे वह खुद करता है. हम उसे यह सम?ाते हैं कि शादी करनी है तो यह सही उम्र है. तुम्हारे ऊपर कोई पारिवारिक जिम्मेदारी भी नहीं. लेकिन वह राजी ही नहीं होता शादी के लिए. कैसे उसे विवाह के लिए तैयार करें?

जवाब

मातापिता यही चाहते हैं कि उन के बच्चों की शादी हो जाए और उन का घर बस जाए. ठीक भी है. यदि शादी करनी है तो समय से हो जाए तो हर तरह से ठीक रहता है. शारीरिक रूप से भी और आर्थिक रूप से भी. लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि बच्चे उम्र होने के बावजूद, सैटल हो जाने के बाद भी शादी नहीं करना चाहते. यहां तक देखने को मिल रहा है कि वे रिलेशनशिप में रहने लगते हैं लेकिन शादी नहीं करना चाहते.

खैर, आप बेटे की शादी से इनकार करने की वजह जानें. अगर समस्या का हल निकल सकता है तो जरूर निकालें. कई बार युवा बच्चे अपने कैरियर को ले कर ज्यादा गंभीर होते हैं तो इस बारे में भी उन्हें सम?ाएं कि पूरी तरह सैटल तो व्यक्ति 35-40 की उम्र में जा कर होता है. तब तक का इंतजार करना बेवकूफी है.

कई बार ऐसा होता है कि अपनी पसंद का जीवनसाथी नहीं मिलने की वजह से वे शादी से भागने लगते हैं. ऐसे में आप अपने बेटे से इस बारे में खुल कर बात करें कि उसे किस तरह का जीवनसाथी चाहिए. शादी के लिए लड़की ढूंढ़ने में बच्चे की पसंद का ध्यान रखें.

हो सकता है आप के बेटे ने कोई लड़की पसंद कर रखी हो और वह आप के मापदंडों पर पूरी न उतरती हो या किसी लड़की को वह पसंद करता हो लेकिन उस से बोलने की हिम्मत न कर पा रहा तो इस में भी आप मातापिता होने के नाते उस की मदद कर सकते हैं. उस लड़की के घरवालों से आप बात कर सकते हैं.

आखिर में हम यह बात जरूर कहना चाहेंगे कि बेटे पर शादी को ले कर किसी तरह का दबाव न बनाएं. इस से उस की मैंटल हैल्थ पर काफी असर पड़ेगा. इतना ही नहीं, कई बार दबाव में आ कर बच्चे शादी तो कर लेते हैं लेकिन बाद में आने वाली परेशानियों का ठीकरा पेरैंट्स पर फोड़ते हैं. ऐसे में हमेशा बच्चे से बात करने और उस की हां बोलने के बाद ही शादी की बात आगे चलाएं.

अमीर देशों में प्रजनन दर में निरंतर गिरावट

पिछले दिनों भाजपा नेता बड़ा होहल्ला मचा रहे थे कि हिंदुओं की संख्या कम हो रही है, मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है, हिंदू खतरे में है, वगैरहवगैरह. हालांकि, लोकसभा चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण की कोशिश के मद्देनजर जिस आंकड़े के आधार पर वे होहल्ला मचा रहे थे वह, दरअसल, 1950 और 2015 के बीच की स्टडी थी.

मोदी सरकार ने तो जाति आधारित जनगणना कभी करवाई ही नहीं कि जिस से पता चले कि किस धर्म-जाति के लोगों की संख्या बढ़ी या कम हुई. फिर यह समझना भी जरूरी है कि जन्मदर में बदलाव के पीछे आर्थिक और सामाजिक कारण होते हैं और इस का किसी धर्म से कोई संबंध नहीं होता है. जन्मदर में गिरावट शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच का नतीजा है.

बीते एक दशक में दुनियाभर के देशों में प्रजनन दर बहुत तेजी से गिर रही है. यूएस सैंटर फौर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवैंशन की हालिया रिपोर्ट यह कहती है कि 2023 में अमेरिका की प्रजनन दर में 2 फीसद की गिरावट आई है. कोरोना महामारी के चरम समय प्रजनन दर में कुछ वृद्धि हुई थी क्योंकि लगभग 2 साल तक लौकडाउन के चलते पतिपत्नी घर पर एकसाथ रहे और उन के एकांत में खलल डालने वाले रिश्तेदार उन से दूर रहे. लिहाजा, औरतें ज्यादा प्रैगनैंट हुईं, यह दुनियाभर में हुआ परंतु यह वृद्धि अस्थाई थी.

हालांकि, 1971 के बाद से अमेरिकी प्रजनन दर लगातार गिर रही है. अधिक वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यदि अन्य औद्योगिक देशों को देखें तो सभी जगह समान पैटर्न दिखाई दे रहा है. जापान, दक्षिण कोरिया और इटली में प्रजनन दर सब से कम है.

अमेरिका और आस्ट्रेलिया में वर्तमान प्रजनन दर 1.6 है. ब्रिटेन में यह 1.4 है. वहीं दक्षिण कोरिया में यह मात्र 0.68 है. ये देश लगातार सिकुड़ रहे हैं. दक्षिण कोरिया तो बहुत तेजी से सिकुड़ रहा है. इस का मतलब यह है कि इन देशों में जितने लोग पैदा हो रहे हैं उस से ज्यादा लोग मर रहे हैं. इस से काम करने वाले हाथ कम हो रहे हैं, गरीबी बढ़ रही है और लोग अपनी देखभाल के लिए दूसरों पर या सरकार पर अधिक निर्भर हो रहे हैं.

किसी जनसंख्या के वर्तमान आकार को बनाए रखने के लिए, अर्थात न तो वह सिकुड़े और न ही बहुत ज्यादा हो, कुल प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 से ऊपर होनी चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें मातापिता दोनों के मरने के बाद उन की जगह लेने के लिए पर्याप्त बच्चे पैदा करने की जरूरत होती है– एक बच्चा मां की जगह लेता है और दूसरा पिता की जगह लेता है और शिशु मृत्युदर के लिए थोड़ा अतिरिक्त.

संक्षेप में समझें तो यदि हम चाहते हैं कि जनसंख्या बढ़े, तो महिलाओं को 2 से अधिक बच्चे पैदा करने की आवश्यकता है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कई पश्चिमी देशों में बिलकुल यही हुआ था. महिलाएं 2.1 से अधिक बच्चों को जन्म दे रही थीं, जिस के परिणामस्वरूप शिशु जन्म में वृद्धि हुई. कई परिवारों में 3 या अधिक बच्चे हो गए. मगर अब महिलाएं एक या दो बच्चे ही पैदा कर रही हैं और बहुतेरी तो बच्चा पैदा ही नहीं करना चाहती हैं. जिस की वजह से दुनिया के देशों में प्रजनन दर में भारी कमी देखी जा रही है. यह चिंता का विषय है.

प्रजनन दर कम होने की कई वजहें हैं और एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं. शिक्षा के प्रचारप्रसार के कारण दुनियाभर में औरतें शिक्षित हुई हैं. भारत में भी औरतों की शिक्षा के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है. पहले लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती थी. 17-18 साल की उम्र में वे मां बन जाती थीं. उन के पास मां बनने के लिए अधिक साल भी थे. पिछली पीढ़ी पर ही नजर डालें तो अनेक घरों में 5 से 8 या 10 बच्चे तक हैं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 भाईबहन हैं जबकि नरेंद्र मोदी निसंतान हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 5 भाईबहन हैं जबकि नीतीश कुमार का सिर्फ एक बेटा है. संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर 14 भाईबहन थे, सुभाष चंद्र बोस भी 14 भाईबहन थे, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई 7 भाईबहन थे. अपने गृहमंत्री अमित शाह 7 भाईबहन हैं, तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव 10 भाईबहन हैं और लालू यादव के 9 बच्चे हैं. जबकि अगली पीढ़ी में बच्चों की संख्या घट कर एक या दो रह गई है.

शिक्षा और उच्च शिक्षा ग्रहण करने और फिर कैरियर बनाने के चलते लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ कर 28-35 हो गई है. इस उम्र में शादी होने पर बच्चे भी एकाध ही हो रहे हैं. इस के अलावा दुनियाभर में औरतें सिर्फ गृहिणी नहीं रहीं, बल्कि नौकरीपेशा हैं, व्यवसाय कर रही हैं, ऊंचे पदों पर नियुक्त हैं, ग्लैमर की दुनिया में हैं. इस व्यस्तता के कारण भी वे अधिक बच्चे नहीं चाहती हैं.

आज के समय में संयुक्त परिवार टूट चुके हैं. पहले बहू को यदि बच्चा न हुआ तो लड़के की मां, दादी, बूआ, मौसी, चाची सब उस को टोकती थीं, इलाज के लिए डाक्टर से ले कर साधुसंतों या झाड़फूक वालों के चक्कर काटती थीं. जब तक बहू की गोद न भर जाए, बड़ीबूढ़ी चैन से नहीं बैठती थीं. अगर तमाम दवाइलाज के बाद भी बच्चा न हुआ तो लड़के की दूसरी शादी भी करवा दी जाती थी. अगर लड़के में दोष हुआ तो चुपचाप घर के दूसरे पुरुषों से संसर्ग करवा कर बच्चा पाया जाता था. मगर संयुक्त परिवार के टूटने से नवविवाहिताएं घर की बड़ीबूढ़ियों के तानों से आजाद हो गई हैं. अब अगर शादी के कई साल तक बच्चा न भी हुआ तो चिंता नहीं है. अनेक ऐसे कपल हैं जो निसंतान है और खुश हैं. किसी को बच्चे की ज्यादा चाह हुई तो आईवीएफ से एक बच्चा पा लिया या गोद ले लिया.

उच्च शिक्षा प्राप्त और अच्छी नौकरी या व्यवसाय में लगी बहुतेरी महिलाएं शादी कर के किसी बंधन में नहीं बांधना चाहती हैं, इसलिए भी प्रजनन दर लगातार प्रभावित हो रही है. आस्ट्रेलियाई महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर शिक्षित हैं. आस्ट्रेलिया में दुनिया की सब से अधिक शिक्षित महिलाएं हैं. अधिकांश महिलाएं मां नहीं बनना चाहती हैं.

आज युवाओं को हर चीज में देरी हो रही है. युवाओं के लिए उच्च शिक्षा पाना, स्थिर नौकरी प्राप्त करना और अपना घर खरीदना शादी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. ये ऐसे कारक हैं जो पहले बच्चे के जन्म के लिए भी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं. इसलिए, कई युवा आर्थिक और आवास असुरक्षा के कारण बच्चा पैदा करने में देरी करते हैं.

इस के अलावा, अब हमारे पास सुरक्षित और प्रभावी गर्भनिरोधक है, जिस का अर्थ है कि विवाह के बाहर यौन संबंध संभव है और प्रजनन के बिना यौन संबंध की लगभग गारंटी दी जा सकती है. इन सब का मतलब है कि मातापिता बनने में देरी हो रही है. महिलाएं देर से और कम बच्चे पैदा कर रही हैं.

बच्चे पालना एक महंगा और समय लेने वाला काम है. कई औद्योगिक देशों में बच्चों के पालने पर आने वाली लागत बहुत अधिक है. आस्ट्रेलिया में बच्चों की देखभाल की औसत लागत मुद्रास्फीति से अधिक हो गई है. स्कूल की ट्यूशन फीस, यहां तक कि पब्लिक स्कूलों के लिए भी, मातापिता के बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा खर्च कर देती है. इसलिए लोग एक बच्चे से ज्यादा नहीं पैदा कर रहे हैं.

यदि प्रजनन दर को बढ़ाना है तो सहायक देखभाल के बारे में गंभीरता से सोचना होगा. युवाओं को जल्द से जल्द बेहतर कैरियर और आवास मिले, बच्चों और वृद्ध देखभाल के बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश, बढ़ती उम्र की आबादी का समर्थन करने के लिए तकनीकी नवाचार और ऐसे कार्यस्थलों की आवश्यकता है जो मूल रूप से देखभाल को ध्यान में रख कर तैयार किए गए हों. इस के बगैर लड़केलड़कियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

परिवारों में कम बच्चे पैदा होने या बच्चे न होने से एक और समस्या सिर उठाने लगी है. यदि परिवार में एक ही बच्चा है और वह शिक्षा के लिए विदेश गया और वहीं सैटल हो गया तो उस की पैतृक संपत्ति और उस के मातापिता द्वारा अर्जित चल-अचल संपत्ति की देखभाल करने और भोगने वाला कोई नहीं बचता है. दिल्ली में कई ऐसी कोठियां उजाड़ हालत पड़ी हैं, क्योंकि जो बच्चे विदेश में सैटल हो गए, वो वापस भारत नहीं लौटे.

जेरोधा के सहसंस्थापक और अरबपति निखिल कामथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए धन जमा करने में विश्वास नहीं करते हैं. निखिल कामथ अपनी अधिकांश संपत्ति परोपकारी कार्यों के लिए दान करने के बाद ‘द गिविंग प्लेज’ में शामिल होने वाले सब से कम उम्र के भारतीय हैं. वे बेंगलुरु स्थित उद्यमियों और गिरवी रखने वाले साथी इन्फोसिस के सहसंस्थापक नंदन नीलेकणि, बायोकोन की संस्थापक किरण मजूमदार शा और विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी से प्रेरित हैं. वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए धन जमा करने में विश्वास नहीं करते हैं.

अपने पोडकास्ट, डब्ल्यूटीएफ में, 37 वर्षीय अरबपति निखिल कामथ ने कहा कि वे अपने जीवन के 2 दशक केवल ‘बच्चों की देखभाल’ में नहीं बिताना चाहते हैं केवल यह आशा करने के लिए कि जब वे बूढ़े हो जाएंगे तो उन के बच्चे उन के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे.

कामथ कहते हैं, “मैं बच्चे की देखभाल करतेकरते अपने जीवन के 18-20 साल बरबाद कर दूं और एक दिन वह 18 साल की उम्र में ‘स्क्रू** यू’ कहे और मुझे छोड़ कर चला जाए. मैं अपने जीवन में ऐसी स्थिति नहीं चाहता.”

मंगलसूत्र पर सवार मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक  भाषण में कह डाला है कि कांग्रेस आम लोगों से पैसा छीन कर उन को बांटना चाहती है जिन के बच्चे ज्यादा होते हैं, यानी मुसलमानों को. आम जनता में यह गलतफहमी बड़ी जोर से फैली है कि 4 शादियां कर के मुसलिम ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं और 2002 के गुजरात विधानसभा के चुनावों में नरेंद्र मोदी यह कहते घूमे थे कि वे 5 से 25 हो रहे हैं.

हिंदुओं की माताओं और बहनों के मंगलसूत्रों पर कांग्रेस की नजर है जिन्हें छीन कर वह बांटना चाहती है, प्रधानमंत्री ने खुलेआम यह आरोप लगाया. असल बात यह है कि हिंदू औरतों की सोच और संपत्ति यदि कहीं जा रही है तो वह मंदिरों में जा रही है और नरेंद्र मोदी की पार्टी ही नहीं, उस के कर्मठ समर्थक, जो मंदिरों की दुकानदारी चलाते हैं, अब अपने बढ़ते भंडार को देख कर खुश भी हैं और चिंतित भी कि कहीं दूसरी पार्टी सत्ता में आ गई तो उस पर नई सरकार की नजर न पड़ जाए. जो मंगलसूत्र औरतों के गलों से निकल कर मंदिरों में पहुंच चुके हैं उन का आकलन तो किया ही नहीं जा सकता.

तिरुपति मंदिर के कुछ आंकड़े सार्वजनिक हुए. इन के अनुसार, मुख्य मंदिर ट्रस्ट के पास 2023-2024 के वर्ष में 13.287 करोड़ रुपए की फिक्स्ड डिपौजिट है. यही नहीं, उस के सहयोगी ट्रस्टों के पास 5,529 करोड़ रुपए की फिक्स्ड डिपौजिट है. मोदीकाल में यह रकम 970 करोड़ से 800 करोड़ सालाना बढ़ रही है.

तिरुपति मंदिर के पास 800 चल संपत्तियां भी हैं. उन का मूल्य भी बेतहाशा बढ़ा है और अब कुल सकल संपत्ति 2.25 लाख करोड़ रुपए हो गई है. यह बात सिर्फ एक मंदिर की हो रही है.

देश में 5 से 20 लाख तक मंदिर गिने जाते हैं जिन में लाखों सरकारी जमीनें घेर कर बनाए गए हैं. यह संपत्ति है जिसे लूटा जा सकता है. हमारा मौखिक इतिहास इसी संपत्ति को लूटने आए मंगोलों, तुर्की, अफगानों, ग्रीकों, हूण्णों और मुगलों की बात करता है जिसे लूटने ये लोग आते रहे. यह जनता का पैसा तो था ही नहीं, जनता से लूटा जा चुका था. नरेंद्र मोदी ने अच्छा किया कि माताओं और बहनों को अपने गहनों और मंगलसूत्रों की ओर ध्यान दिलाया क्योंकि आज सनातन धर्म जब फिर से शक्तिशाली हो रहा है तो उस की नजर आम लोगों की इसी संपत्ति पर है.

लोगों को खतरा कांग्रेसी मैनिफैस्टो से नहीं, भगवा इरादे से होना चाहिए. कांग्रेस यह तब करेगी जब सत्ता में आएगी और उस की ऐसी कहीं मंशा माइक्रोस्कोप से देखने पर भी मैनिफैस्टो में नहीं मिलती है पर भगवा मैनिफैस्टो तो सभी तरह विदेशियों के शासनों में भी चलता रहा है. और विदेशी शासनों के दौरान भी लोग अपनी संपत्तियां जम कर मंदिरों में चढ़ाते रहे हैं. जो लूट विदेशी शासक जनता से कर रहे थे उस से कई गुना लूट तो मंदिरों की होती रही है.

घटती वोटिंग के पीछे देश के आम चुनाव में देशवासियों की जो रुचि बढ़ रही थी, अचानक घटने लगी है और पहले 3 चरणों में घटा मतदान एक चिंता का विषय बन गया है. यह सिर्फ गरमी की वजह से हुआ, यह बहाना नहीं चल सकता क्योंकि पिछले कई चुनाव इसी तरह की गरमी में ही हुए हैं और लोग उत्साह से मतदान में भाग लेते रहे हैं. यह एक और ही ट्रैंड की निशानी है जिसे देश की सरकार के प्रति गुस्सा ही कहा जा सकता है.

लोगों को लगने लगा है कि उन के वोटों से कुछ नहीं होने वाला और जो भी चुन कर आएगा वह दूध का धुला तो दूर, काले कोलतार से पुता होगा. 2014 में लोगों ने जम कर उत्साह से वोट दिया क्योंकि एक ओर कोयला और 2जी घोटालों के ?ाठे आरोपों से घिरी सरकार को हटाना था तो दूसरी ओर धर्म की स्थापना करने, अच्छे दिनों और भ्रष्टाचारमुक्त सरकार को लाने का मौका मिल रहा था.

देश की सत्ता पर काबिज भाजपा की सरकार ने विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर वोटरों को जता दिया कि उन के वोट से जीते नेता और उन की राज्य सरकारें व देश की ज्यादातर अदालतें उस के चंगुल में हैं यानी सरकार काम करे या न करे, उस का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. ऐसे में फिर मतदाताओं के मतदान करने का क्या मतलब, ऐसा सोचा जाना स्वाभाविक है.

सरकार के गठन में जहां भी वोट उत्साह से पड़ते हैं या जब भी भरभर कर वोटों से सरकारें बनती हैं, कुछ चमत्कार होते हैं, ऐसा नहीं है. हां, लोगों को बस यह लगता है कि सरकार उन की सुन तो रही है. अब तो यह साफ हो चुका है कि वोट, आवाज, कोर्ट, अर्जी का कोई मतलब नहीं रह गया. सरकार हाथी नहीं, डायनासोर है, बड़ा बुलडोजर है जो अपनी मरजी से चलेगी और जो सामने आएगा, उसे कुचल देगी. उस के भरोसे कोई कल्याण नहीं होने वाला.

अगर चुनावों के अन्य चरणों में भी यही हुआ तो साफ हो जाएगा कि देश में चुनावी लोकतंत्र का भाव खत्म होने वाला है और पौराणिक काल लौटेगा जिस में ऋषिमुनियों की चलेगी क्योंकि उन्हें भगवानों ने वरदान दिया और वे दुर्वासाओं की तरह सब को धमकाते रहेंगे. जनता का काम तो दान करना रहेगा चाहे वह वोट का दान हो, टैक्स का दान हो, मंदिरों में मंगलसूत्रों का दान हो या किसी के चरणों में देह का दान हो.

मौन स्वीकृति : रितु-रवि भी प्यार के एहसास में डूब गए

उस समय मैं एमए फाइनल ईयर में थी. परीक्षा की तारीख नजदीक थी. तैयारी के लिए अपने कालेज की लाइब्रेरी में कुछ महत्त्वपूर्ण नोट्स तैयार करने में लगी हुई थी. मेरी ही टेबल पर सामने एक लड़का भी अपने कुछ नोट्स तैयार करने में लगा था. मैं लंच ब्रेक में लाइब्रेरी जाती और वह लड़का भी उसी समय मेरे ठीक सामने आ कर बैठ जाता. एक दिन जब मैं लाइब्रेरी की अलमारी से कुछ किताबें हाथों में ले कर आ रही थी तभी उस के पास पहुंचते ही उन में से कुछ किताबें फिसल कर उस के पैरों पर जा गिरीं.

‘‘सौरी,’’ बोलते हुए मैं पुस्तकों को उठाने लगी. उस ने किताबों को उठाने में मेरी मदद की और मेरे हाथों में उन्हें थमाते हुए बोला, ‘‘नो प्रौब्लम, कभीकभी ऐसा हो जाता है.’’

उस के बाद हम दोनों में अकसर बातें होने लगीं. बातचीत से पता चला कि वह गांव का रहने वाला एक गरीब विद्यार्थी था जो एमए की तैयारी कर रहा था और उस का मकसद बहुत ऊंचा था. वह एमए करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहता था. वह अपने कुछ साथियों के साथ एक कमरा किराए पर ले कर रहता था और वे लोग अपना खाना खुद बनाते थे और बहुत ही कम पैसे में अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहते थे. वे सभी किसानों के लड़के थे. उस का नाम रवि था.

रवि गरीब जरूर था लेकिन शरीर से सुडौल और मन से शांत चित्त वाला एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का मधुरभाषी व दूसरों की मदद करने की भावना लिए एक हंसमुख लड़का था. कभीकभी बहुत आग्रह करने पर रवि मेरे साथ कालेज के कैफेटेरिया में जाता और एक कप चाय से ज्यादा कुछ नहीं लेता. जबरन चाय का पैसा मैं ही देती.

लगातार कई दिनों तक एक ही टेबल पर एकसाथ नोट्स बनाते हुए एकदूसरे के प्रति काफी लगाव महसूस होने लगा और जब कभी रवि कालेज की लाइब्रेरी में नहीं आता तो मेरा मन उस के लिए बेचैन हो उठता. उस का भी एमए फाइनल था किंतु उस का सब्जैक्ट अलग था, इसलिए मेरी कक्षा में नहीं बैठता था.

मेरे पिताजी एक उच्च सरकारी पदाधिकारी थे और मां के गुजर जाने के बाद मैं ही उन के लिए बेटीबेटा सबकुछ थी. मैं जो कुछ चाहती, पिताजी मुझे उपलब्ध कराते. मैं इकलौती बेटी थी. घर में कोई कमी नहीं थी. पिताजी ने हैदराबाद में एक फ्लैट खरीदा था. रिटायरमैंट के बाद वे वहीं रहने लगे थे.

एमए करने के बाद हम दोनों अलगअलग हो गए. रवि एमए करने के बाद सिविल सर्विसेज के लिए  कंपीटिशन की तैयारी करने लगा.

कई कंपीटिशन की तैयारी करते हुए अंत में मुझे इनकम टैक्स औफिसर की नौकरी मिल गई. रवि किसी जिले में फौरैस्ट औफिसर बन गया. अलगअलग क्षेत्र में होने के कारण हमारा संबंध भी टूट गया.

इनकम टैक्स औफिसर के रूप में मेरे साथ ही प्रवीण का भी चयन हुआ था. प्रवीण लंबा, गोरा और स्मार्ट था. हमारी ट्रेनिंग दिल्ली में थी. जिस इंस्टिट्यूट में टे्रनिंग हो रही थी उसी बिल्ंिडग में हमारा होस्टल भी था, किंतु हमारा एकदूसरे से महज औपचारिक संबंध था.

एक दिन शाम को ट्रेनिंग के बाद मैं शौपिंग करने बाजार गई थी. वहां प्रवीण भी मिल गया.

‘‘अकेले ही शौपिंग करने आई हो?’’ प्रवीण ने मुसकराते हुए पूछा. ‘‘हां,’’ उसे देख कर जाने कैसे मेरे चेहरे पर भी मुसकराहट बिखर गई.

‘‘शौपिंग हो गई कि अभी बाकी है?’’

‘‘हो गई,’’ मैं ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘फिर चलो, कौफी पी कर होस्टल लौटते हैं.’’

प्रवीण के आग्रह को मैं ठुकरा न पाई और हम दोनों एक कौफी हाउस में आ कर एक टेबल पर बैठ गए. ‘‘तुम कहां के रहने वाले हो?’’ मैं ने पूछा तो प्रवीण बोला, ‘‘मेरठ. वहां मेरे पिताजी की  होलसेल की 4 दुकानें हैं.’’

‘‘अच्छा, तो तुम बिजनैसमैन हो.’’

‘‘हां, लेकिन अब तो नौकरी में हूं.’’

‘‘अच्छा है, कम से कम अब बेवजह इनकम टैक्स वाले तुम्हारे परिवार को तंग नहीं करेंगे.’’

‘‘हां, कुछ तो फायदा होगा ही.’’

कौफी पी कर हम लोग एक ही औटो में होस्टल आए. इस के बाद हम लोग ट्रेनिंग के दौरान रिसेस में एकसाथ चाय पीते, लंच भी साथ लेते और कभीकभी डिनर में भी साथ हो जाते. टे्रनिंग के बाद अकसर हम लोग मार्केट निकल जाते. सारे खर्च प्रवीण ही करता. जब कभी मैं पेमैंट करने की कोशिश करती, वह रोक देता.

यह संयोग ही था कि ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्ंिटग मेरठ में हो गई और उस की हैदराबाद में. प्रवीण को एक दिन मैं अपने पिताजी से मिलाने ले गई. प्रवीण ने उन्हें प्रणाम किया और सोफे पर पसर गया.

‘‘यह प्रवीण है, इसी शहर में इनकम टैक्स औफिसर है.’’

‘‘तुम लोग कहां के रहने वाले हो, बेटा?’’ पिताजी ने पूछा तो उस ने सोफे पर पसरे ही पसरे कहा, ‘‘मेरठ.’’

‘‘तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?’’

‘‘इस के परिवार का बहुत बड़ा बिजनैस है पापा,’’ मैं बोली तो पापा कुछ बोले तो नहीं किंतु उन के हावभाव से लग रहा था प्रवीण के व्यवहार से वे संतुष्ट नहीं हैं.

उस के बाद प्रवीण उन से कभी न मिला. किंतु मैं अकसर प्रवीण के मांबाबूजी से मिलती. उन का व्यवहार मेरे प्रति बहुत अच्छा था. वे लोग मुझे बेटी सा मानते. कुछ न कुछ इनकम टैक्स से संबंधित उन का काम रहता, जिसे मैं अपने पद के प्रभाव से जल्दी निबटा देती.

हम दोनों के बीच संबंध गहराता जा रहा था. जब प्रवीण मेरठ आता तो मेरे क्वार्टर में मुझ से मिलने अवश्य आता. हम शाम में एकसाथ डिनर लेते. प्रवीण को रात में खाने से पहले डिं्रक की आदत थी. मैं उसे डिं्रक लेने से रोकती तो वह हंस कर टाल जाता. मैं सोचती कि किस अधिकार से प्रवीण को डिं्रक लेने से रोकूंगी, इसलिए वह नहीं मानता, तो चुप हो जाती.

एक दिन प्रवीण मेरे क्वार्टर में आया हुआ था. उस दिन मैं ने नौनवेज बनाया था और प्रवीण अपने साथ व्हिस्की की एक बोतल लेते आया था. उस दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी और उस का सुरूर उस पर चढ़ने लगा था.

मैं ने कहा, ‘‘डिं्रक की आदत अच्छी नहीं है. धीरेधीरे तुम इस के आदी बनते जा रहे हो. आज तो तुम ने कुछ ज्यादा ही ले ली है. अब घर कैसे जाओगे?’’

‘‘यार, आज यहीं सो जाता हूं. घर पर इस अवस्था में जाऊंगा तो मांबाबूजी को बुरा लगेगा. मैं पीता जरूर हूं लेकिन उन से छिपा कर. बाबूजी जानेंगे तो उन्हें बहुत दुख होगा.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे बाबूजी खोजेंगे. तुम घर चले जाओ. ड्राइवर को बोल देती हूं, तुम्हें पहुंचा देगा.’’

‘‘नहीं, आज यहीं सोने दो. ड्राइवर से बाबूजी पूछेंगे और कहीं वह सचसच बता देगा तो यह और बुरा होगा.’’

‘‘लेकिन मेरे यहां तो एक ही बैड है. यहां अब तक कोई आया ही नहीं, इसलिए इस की आवश्यकता नहीं महसूस हुई.’’ मैं अब चिंतित होने लगी थी.

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं नीचे सो जाऊंगा.’’

‘‘बाबूजी को फोन कर दो. तब तक मैं अपने सोने का इंतजाम करती हूं.’’

मैं ने सोचा आज डाइनिंग टेबल पर ही बैड लगा देती हूं.

प्रवीण ने अपनी मां को फोन कर के बताया कि वह आज अपने दोस्त के साथ रह गया है. कल आएगा. उस ने जानबूझ कर मेरे साथ रहने के बारे में न बताया. अब यह बताता भी कैसे कि वह मेरे साथ रात में अकेले रुका हुआ है. लोग जानेंगे तो क्या कहेंगे.

उस का मेरे घर में अकेले रुकना मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर वह पुरुष है. देररात में उस ने कुछ गलत करने का प्रयास किया तो मैं अकेले उस का कैसे विरोध कर पाऊंगी.

लेकिन अब और कुछ हो भी नहीं सकता था. मैं ने अपना बैड डाइनिंग टेबल पर लगाया तो वह बोला, ‘‘मैं तुम्हारे बैड पर सोऊं और तुम डाइनिंग टेबल पर, यह अच्छा नहीं लगता. तुम अपने कमरे में सो जाओ. मैं ही डाइनिंग टेबल पर सो जाता हूं.’’

‘‘लेकिन यह अच्छा नहीं होगा, आखिर तुम मेरे गेस्ट भी तो हो.’’

इन्हीं तर्कवितर्क में कब वह नशे में आ कर बैड पर सो गया, पता ही नहीं चला. फिर जब मैं डाइनिंग टेबल पर सोने गई तो पतला बैड होने के कारण उस पर मुझे नींद नहीं आ रही थी, साथ ही उस पर से रात में ढुलक कर गिरने का भी भय लग रहा था. सो, मैं ने सोचा कि प्रवीण अब होश में तो है नहीं, क्यों न मैं पलंग पर किनारे सो जाऊं.

फिर नींद में प्रवीण जाने कब मेरे पास सरक आया. जीवन में पहली बार किसी पुरुष की देह को इतनी नजदीक पा कर मैं अपने होश खो बैठी और हम सारी मर्यादाएं भूल कर एक हो गए.

जब सुबह नींद टूटी तो हम अस्तव्यस्त कपड़ों में एकदूसरे से लिपटे सो रहे थे. मैं झटके से अलग हटी. मुझे लगा मुझ से एक बड़ी गलती हो गई है. हां, गलती तो मेरी ही थी. मैं ही तो उस के साथ पलंग पर सो गई थी. अगर ऐसा नहीं करती तो यह शर्मनाक घटना न घटती.

प्रवीण भी आंखें नीची किए हुए उठा और गुसलखाने चला गया. जब वह लौटा तब मैं मायूस सा चेहरा बनाए बैठी थी. वह किचन में चाय बनाने चला गया. मैं जानती थी कि उसे किचन में चाय का सामान नहीं मिलेगा. इसलिए बिना कुछ बोले दूध, चाय पत्ती और चीनी उस के सामने रख कर चली आई. वह एक ट्रे में 2 कप चाय ले कर आया और मेरी तरफ एक कप चाय बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चाय पियो, जो होना था हो गया.’’

‘‘लेकिन यह अच्छा नहीं हुआ,’’ मैं दुखी हो कर बोली.

‘‘अब जानबूझ कर तो हम ने कुछ किया नहीं, रितु. कभीकभी वह हो जाता है जो हम नहीं चाहते. लेकिन चिंता न करो हम जल्दी ही शादी कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे मांबाबूजी इस के लिए तैयार होंगे तब तो?’’

‘‘उन्हें मैं मना लूंगा. वे हमेशा ही तुम्हारी प्रशंसा करते हैं.’’

‘‘लेकिन मेरे पापा न मानेंगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वे अपने एक दोस्त के बेटे से मेरा रिश्ता करना चाहते हैं.’’

‘‘अब यह जिम्मेदारी तुम्हारी है कि उन्हें कैसे मनाओगी.’’

उस रात के बाद हम लोग अकसर रात एकसाथ बिताते.

प्रवीण ने अपने मांबाबूजी से कहा तो कुछ नानुकुर के बाद वे लोग हमारी शादी के लिए तैयार हो गए. हालांकि बिजनैसमैन कम्युनिटी के उस के कई रिश्तेदार अपनी लड़की से उस की शादी के लिए जोर दे रहे थे किंतु मेरे साथ शादी की उस की जिद पर सभी चुप हो गए.

मैं अपने बाबूजी की इकलौती बेटी थी. मां के निधन के बाद उन्होंने मुझे बेटे जैसा पालापोसा था. मेरी जिद के आगे उन्हें भी झुकना पड़ा और आखिरकार हम लोग विवाह के बंधन में बंध गए.

शादी का हवाला दे कर हम लोगों ने अपनी पोस्ंिटग अगलबगल के ही जिलों में करा ली. शादी के पहले प्रेमीप्रेमिका के बीच जो संबंध होते हैं वे बड़े ही मधुर और उल्लासवर्धक होते हैं क्योंकि एकदूसरे को पाने के लिए उन के दिलों में जज्बा होता है. किंतु जब प्रेमीप्रेमिका आपस में शारीरिक संबंध बना लेते हैं तब इस का आकर्षण धीरेधीरे कम होने लगता है.

हम लोगों के बीच भी यही हो रहा था. शादी के बाद कुछ महीनों तक तो हम लोग एकदूसरे के साथ बड़े ही उल्लास से मिलते रहे, किंतु बाद में धीरेधीरे प्रवीण के व्यवहार में परिवर्तन होने लगा. शुक्रवार को कभी मैं उस के यहां चली जाती और कभी वह मेरे यहां आ जाता क्योंकि हमारे औफिस में शनिवार को छुट्टी रहती थी.

लेकिन इधर मैं देख रही थी कि वह न तो मेरे यहां आना चाह रहा है, न मेरा उस के यहां जाना उसे पसंद आ रहा है. वह कुछ कहता तो नहीं था लेकिन मैं उस के हावभाव से महसूस कर रही थी कि उस का ध्यान मुझ से हट कर कहीं और भटक रहा है.

जब मैं कभी उस से अपने यहां आने के लिए कहती तो वह काम के बोझ का बहाना बना कर टाल देता और जब कभी मैं उस के यहां पहुंच जाती तो औफिस का वर्कलोड बता कर रात में देर से लौटता.

एक दिन शाम को मैं सप्ताहांत में प्रवीण के यहां पहुंची. प्रवीण अभी औफिस से नहीं लौटा था. हम लोगों के पास एकदूसरे के क्वार्टर की चाबी रहती थी. मैं ने देखा कि उस के वार्डरोब में कपड़े बेतरतीब ढंग से रखे हुए थे. सोचा, प्रवीण अकेले रहता है, इसलिए कपड़ों को जैसेतैसे रख देता है. फिर मैं इन कपड़ों को एकएक कर निकालने लगी ताकि उन्हें तह कर के ढंग से रख सकूं. तभी छोटा सा जेवरों का डब्बा नीचे गिर गया. मैं ने उसे खोल कर देखा तो उस में एक बहुत ही कीमती प्लेटिनम धातु में जड़ी हीरे की अंगूठी थी. मैं सोचने लगी कि इस अंगूठी के बारे में तो प्रवीण ने मुझे कभी नहीं बताया. यह कहां से आई और यहां अलमारी में कपड़ों में छिपा कर क्यों रखी हुई है. फिर मैं ने सोचा या तो प्रवीण को इसे किसी ने रिश्वत में दी होगी या किसी प्रेमिका को देने के लिए उस ने खरीदी होगी और मैं देख न लूं, इसलिए इसे यहां छिपाया है.

फिर मुझे संदेह हुआ कि कहीं यह रिश्वत में मिली अंगूठी तो नहीं है क्योंकि अगर उसे अंगूठी अपनी किसी प्रेमिका को देनी होती तो उस से पसंद करा कर उसे तुरंत दे दी होती. यहां छिपा कर नहीं रखता. इसलिए मैं दूसरे रखे और कपड़ों को भी वहां से हटाने लगी तो देखा, 2 हजार रुपयों की कई गड्डियां कपड़ों में रखी हुई हैं.

यह देखते ही मेरे तो होश ही उड़ गए. अभी हम दोनों की सर्विस नईर् थी और उस ने लोगों से रिश्वत लेना शुरू कर दिया था. मैं प्रवीण की प्रतीक्षा करने लगी और यह सोचा कि आने के बाद उसे समझाने की कोशिश करूंगी कि यह काम ठीक नहीं है, जल्दी से जल्दी इसे छोड़ दे वरना वह किसी मुसीबत में फंस सकता है और नौकरी भी जा सकती है.

प्रवीण अपनी आदत के अनुसार रात 8 बजे लौटा.

मैं ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’

‘‘अब तुम से क्या बताऊं? औफिस में बहुत काम रहता है. देर हो ही जाती है.’’

‘‘अच्छा यह बताओ, इतना कैश घर में कहां से आया और यह हीरे की अंगूठी?’’

मेरी बात सुन कर पहले तो वह झेंपा, फिर बोला, ‘‘अरे, यह मेरे एक मित्र की है.’’

‘‘तो इन को तुम ने अपने घर में क्यों रखा है?’’

अचानक ही यह सब घटित हो गया था. सच तो यह था कि वह ऐसे हालात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था. उस से कोई जवाब देते नहीं बना तो बोला, ‘‘एक पार्टी ने काम से खुश हो कर दे दिया था.’’

‘‘आखिर हमारे पास क्या नहीं है प्रवीण, जो हमें रिश्वत लेने की जरूरत पड़े? घर का अच्छा बिजनैस है, अच्छी आमदनी है. फिर यह अनैतिक काम क्यों. सोचो, हम क्या करेंगे इतने पैसे का. फिर कोई भी रिश्वत गलत काम के लिए ही देता है और सरकार को टैक्स चोरी के कारण इस से काफी नुकसान होता है. कभी न कभी गलत काम करने वाले फंस जाते हैं.’’

‘‘अब कौन ऐसा है जो रिश्वत नहीं लेता, फिर ईमानदारी का ठीकरा हमारे ही सिर पर क्यों?’’ प्रवीण बौखला कर बोला, ‘‘मौका मिलने पर औफिस का चपरासी भी अपने स्तर से कुछ न कुछ वसूलता है.’’

‘‘अब ये बातें रिश्वत को सही तो नहीं ठहराएंगी न.’’ प्रवीण को समझाने का मैं ने बहुत प्रयत्न किया किंतु मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरे दिन मैं लौट आई.

प्रवीण को शराब पीने की आदत तो पहले से ही थी. अब वह और भी महंगी शराब पीने लगा. वह कई पार्टियों में जाने लगा. बाद में मुझे कई स्रोतों से खबर मिली कि वह रात में किसी होटल में कौलगर्ल के साथ अपनी रातें रंगीन करता है.

एक दिन कुछ आवश्यक कार्य से मुझे अचानक हैदराबाद जाना पड़ा. मैं ने प्रवीण को फोन लगाया. लेकिन उस का फोन स्विचऔफ बता रहा था, इसलिए सीधे उस के क्वार्टर में पहुंची. उस समय रात के 9 बज रहे थे. मैं ने होटल से अपने लिए खाना पैक करवा लिया था.

घंटी की आवाज सुन कर भी जब प्रवीण ने दरवाजा नहीं खोला तो मेरा मन आशंका से भर उठा. मैं ने फिर उसे फोन लगाने का प्रयत्न किया, किंतु अभी भी उस का फोन स्विचऔफ बता रहा था.

फिर मैं ने दरवाजा नौक किया. उस ने दरवाजा खोला तो मैं ने पूछा, ‘‘दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों हुई?’’ सुनते ही प्रवीण बौखला गया और गुस्से में बोला, ‘‘तुम्हें फोन कर के आना था.’’

‘‘लगातार 2 घंटे से प्रयत्न कर रही हूं, तुम्हारा फोन स्विचऔफ बता रहा है. अचानक हैदराबाद आना पड़ गया, जल्दी में मैं तुम्हें खबर नहीं कर पाई.’’

वह कुछ नहीं बोला. जब मैं अंदर गई तो जो दृश्य देखा उस ने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया. अंदर टेबल पर शराब की बोतलें और गिलास पड़े हुए थे. एक लड़की बगल में बैठी हुई थी.

‘‘यह कौन है?’’

उस ने झूठ छिपाने का प्रयत्न करते हुए कहा, ‘‘मेरे रिश्तेदार की एक लड़की है. परीक्षा देने आई थी. रात होने के कारण यहां आ गई.’’

लड़की के हावभाव और बोलचाल से मैं तुरंत ही समझ गई कि यह कोई बाजारू लड़की है और किसी पार्टी द्वारा भेजी हुई है.

अब मैं समझ गई इस शख्स के साथ मेरी जिंदगी नरक बन गई है और अब आगे इस के साथ जीवन निर्वाह संभव नहीं है. जिस दांपत्य जीवन में पति द्वारा पत्नी के विश्वास का लगातार हनन किया जा रहा हो, जिस की भावनाओं को कुचला जा रहा हो और जहां अनैतिकता का बोलबाला हो उस को ढोना स्वयं पर जुल्म करने जैसा ही है.

लड़की सहमी, डरी हुई और सिकुड़ कर बैठी थी.

मैं बोली, ‘‘अब तुम्हारे साथ मैं एक मिनट भी न रहूंगी.’’

‘‘तुम्हें मैं ने क्या तकलीफ दी है जो तुम मुझ से इतनी नाराज हो, तुम्हें कभी डांटा, कभी मारापीटा या कभी तुम्हारे व्यक्तिगत जीवन में दखल दिया?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं किया प्रवीण, किंतु जो किया इस से ज्यादा घातक है. मेरी गलती पर तुम मुझे डांटते, मारपीट भी देते या हमारे दांपत्य जीवन में जहर घोलने वाले मेरे व्यक्तिगत जीवन में दखल भी देते तो मैं बिलकुल बुरा नहीं मानती क्योंकि इतना तो पति के नाते तुम्हारा अधिकार बनता ही है. लेकिन जो तुम कर रहे हो वह मुझ से सहन नहीं होता. तुम मेरी जिंदगी में अचानक आए थे, परिथितियां ऐसी बनीं कि हम दोनों वैवाहिक जीवन में बंध गए. तुम रिश्वत लेने लगे, उस का मैं ने विरोध किया लेकिन इस से मैं उतनी आहत न हुई. मुझे लगता था कि तुम समझ जाओगे लेकिन तुम न समझे और एक नया घटिया तरीका अपना लिया.’’

प्रवीण कुछ न बोला. मेरी बातों में सचाई थी जिस के प्रतिकार का उस के पास नैतिक बल नहीं था.

मैं निकलने लगी तो उस ने रोका. लेकिन मैं अब रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि मैं अब उस जैसे अनैतिक इंसान के साथ नहीं रहना चाहती थी.

मैं उस रात होटल में रही. जानबूझ कर पापा के पास नहीं गई. सोचा, पापा इतनी रात को आने का कारण पूछेंगे तो क्या जवाब दूंगी, कहीं गुस्से में सचाई मुंह से निकल गई तो उन्हें काफी तकलीफ होगी.

रातभर एक झंझावात से मेरा दिमाग घूमता रहा. क्या मैं ने यह उचित किया? क्या मुझे प्रवीण को संभलने का एक और मौका देना चाहिए था? क्या वैवाहिक जीवन को खत्म करने का यह फैसला जल्दी में लिया गया है?

लेकिन मेरे दिल के किसी कोने से आवाज आई. वह वैवाहिक जीवन ही कैसा जो इस की मर्यादाओं का पालन न करे. सच तो यह था कि वैवाहिक जीवन में बंधने का मेरा यह फैसला ही जल्दी में लिया गया था. यह मेरी एक गलती का परिणाम था. मुझ से प्रवीण को ही समझने में गलती हुई थी. पापा उसे एक ही मुलाकात में समझ गए थे जब उस ने उन्हें प्रणाम किया था और उन के सामने ही वह सोफे पर पसर गया था. पापा ने उस के अंदर तक झांक लिया था.

जब मैं ने पापा से प्रवीण से शादी की इजाजत मांगी थी, उन्होंने इस का पुरजोर विरोध किया था, लेकिन उस समय मैं प्रवीण के प्यार में पागल थी. उन के इशारों को मैं न समझ पाई थी. यह बात मुझे समझ में नहीं आईर् कि हमारे बुजुर्गों के पास एक लंबे समय का अनुभव होता है और वह अनुभव हमें कई परेशानियों से बचा सकता है. किंतु अब क्या हो सकता था. मैं दूसरे दिन मेरठ लौट आई और इस विषय पर सलाह लेने के लिए शहर के एक सीनियर वकील से मिली.

प्रवीण से तलाक लेने के लिए एक ठोस साक्ष्य की जरूरत थी जो मेरे पास नहीं था. म्यूचुअल डिवोर्स के लिए प्रवीण तैयार होगा, इस पर मुझे संदेह था. फिर भी मैं ने सोचा, क्यों न प्रवीण से इस बिंदु पर चर्चा की जाए. शायद तैयार ही हो जाए. अभी हमारी शादी को एक वर्ष से कुछ ही दिन ज्यादा हुए थे और हमारे अब तक कोई बच्चा नहीं था. यह अच्छा ही था क्योंकि पतिपत्नी के तलाक के बीच सब से ज्यादा बच्चे ही परेशान होते हैं. उन्हें न मां का पूरा प्यार मिल पाता है न पिता का और जीवन की शुरुआत से वे एक तल्ख जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं और उन का बचपन मातापिता के झगड़े में तनाव व चिंता में बीतने लगता है.

उस दिन के बाद से मैं ने न प्रवीण को फोन किया और न ही उस ने मुझ से बात करने की कोशिश की. हमारे बीच पैदा हुई खाई दिनोंदिन और गहरी होती जा रही थी. एक दिन इनकम टैक्स के सभी अफसरों की मीटिंग के लिए हैडक्वार्टर से बुलावा आया था. जब मीटिंग हौल में मेरी प्रवीण से मुलाकात हुई तो वह मुझ से अपनी नजरें बचाता हुआ दूसरे मित्रों से बात करने लगा.

‘‘अरे भाभी, आप से प्रवीण की कुछ अनबन चल रही है क्या. आप लोगों को आपस में बातें करते नहीं देखा,’’ रिषि ने पूछा तो मैं ने उस से इधरउधर की बातें कर के प्रसंग को टाल दिया. लेकिन बातों को टालने से सचाई तो खत्म नहीं हो जाती. हमारे बीच की तनातनी ने हमारे कई साथियों के मन में संदेह पैदा कर ही दिया.

जब शाम को मीटिंग खत्म हुई तो मैं प्रवीण के पास जा कर बोली, ‘‘प्रवीण, हम लोगों के बीच जो मसले हैं वे आसानी से हल होने वाले नहीं लगते. इस तरह घुटघुट कर जीवन जीने से तो अच्छा है कि हम दोनों अलग हो जाएं. अगर तुम कोऔपरेट करोे तो हम दोनों म्यूचुअल डिवोर्स ले लें.’’

‘‘तुम तो ऐसी बात करती हो जैसे डिवोर्स बच्चों का खेल हो. जब चाहे शादी कर ली, जब चाहे डिवोर्स

ले लिया.’’

‘‘तो तुम ही बताओ क्या करें हम. जो तुम कर रहे हो, क्या सही है?’’

‘‘तुम गलतफहमी की शिकार हो. वैसा कुछ नहीं है जैसा तुम समझ रही हो.’’

‘‘प्रवीण, अगर तुम्हारे व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है और तुम आगे कोई ऐसा काम नहीं करोगे जिस से मुझे तुम से कोई भी शिकायत हो तो मैं डिवोर्स की बात वापस ले लूंगी.’’

‘‘प्रौमिस, अब आगे तुम्हें मुझ से कोई शिकायत न होगी.’’

मैं ने प्रवीण की बातों पर विश्वास कर लिया और एक बार फिर हमारा आपस में मिलनाजुलना शुरू हो गया. किंतु प्रवीण में कोईर् सुधार नहीं हुआ. वह मुझ से झूठे वादे करता रहा और रिश्वत का खेल खेलता रहा. हां, अब वह किसी कौलगर्ल को घर में बुलाने की जगह उन्हें होटल ले जाने लगा और आखिरकार, वही हुआ जिस का मुझे भय था. विजिलैंस वालों ने उसे रंगेहाथों पैसा लेते हुए पकड़ लिया और जेल भेज दिया.

विजिलैंस वालों ने छापा मार कर उस के क्वार्टर से एक करोड़ से भी ज्यादा नकदी रुपए जब्त किए. उस हीरे की अंगूठी के साथ अन्य कई जेवरात भी बरामद हुए थे. साथ ही, कई अन्य आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए गए थे.

पत्नी होने के कारण विजिलैंस वालों ने मेरे क्वार्टर में भी छापा मारा किंतु मेरे यहां उन्हें कोई भी आपत्तिजनक वस्तु न मिली. कहते हैं न कि विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती. उधर मेरठ में सीबीआई ने प्रवीण के परिवार वालों के कई बिजनैस ठिकानों पर एकसाथ छापा मारा और आयकर चोरी के कई मामले पकड़े. प्रवीण और उस का परिवार चारों तरफ से बुरी तरह से फंस गया था.

इस दौरान मैं निरपेक्ष रही. आखिर मैं कर भी क्या सकती थी. मैं ने कोशिश कर के प्रवीण की कोर्ट से बेल करवाई. उस के बाबूजी भी सीबीआई की गिरफ्त में आ गए थे और उन्हें भी जेल भेज दिया गया था. दौड़धूप कर उन की भी बेल करवाई, किंतु अंत बड़ा ही भयानक ढंग से हुआ. प्रवीण को कई वर्षों के ट्रायल के बाद रिश्वत और आय से अधिक इनकम के कारण नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. उस के परिवार के कई ठिकानों को सीबीआई ने बंद करवा दिया.

अब प्रवीण बेरोजगार था और अपने परिवार के बचेखुचे बिजनैस को संभालने में लग गया था. अब उस के साथ मेरा किसी भी हालत में साथ रहना संभव नहीं था, इसलिए मैं ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दी और प्रवीण के खिलाफ कई अनैतिक आचरण व मेरे प्रति उस के गलत व्यवहार को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने मेरी तलाक की अर्जी मंजूर कर ली.

अब एक कहानी का पटापेक्ष हो गया था. मैं इसे एक सपना समझ कर भूल जाना चाहती थी. किंतु पापा बहुत चिंतित थे. वे जानते थे कि एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है. समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है. उस के साथ शादी करने के लिए कोई लड़का आसानी से तैयार नहीं होता.

उस समय गरमी की छुट्टियां थीं. मैं पापा के पास हैदराबाद आई हुईर् थी. पापा बोले, ‘‘बेटी, गोवा के लिए फ्लाइट बुक करा लो. तुम्हारा मन बहल जाएगा.’’

दूसरे दिन मैं ने फ्लाइट बुक कराई और हम लोग गोवा आ गए. हमें 2-3 दिनों तक गोवा रुकना था. पापा के कहने पर मैं उन के साथ बीच पर आई हुई थी. बीच पर सैलानियों की भीड़ थी. पानी में अच्छा लग रहा था.

जब मैं बीच के किनारे पहुंची तो लहरों की तेजी के कारण दिक्कत हो रही थी. तभी किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और पानी में ले गया. मेरी नजर पड़ी तो मैं देख कर विस्मित होते बोली, ‘‘अरे, तुम, रवि.’’

रवि ने भी मेरी ओर देखा, ‘‘हां, रितु?’’

‘‘हां,’’ अचानक रवि को पा कर स्वयं को रोक न पा रही थी. वह भी बीच पर घूमने के लिए आया था.

‘‘पापा भी आए हैं,’’ मैं बोली.

‘‘अच्छा, चलो, मैं 5-10 मिनट में आता हूं. मैं मां के साथ आया हूं,’’ रवि बोला. मैं पापा के पास आ कर उस के लौटने का इंतजार करने लगी.

15-20 मिनट के बाद रवि हमें खोजते हुए अपनी मां के साथ आया, ‘‘ये मेरी मां हैं.’’

मैं ने उस की मां के पैर छुए तो मांजी ने स्नेह से सिर पर हाथ फेर दिया.

फिर मैं ने रवि से पापा का परिचय कराया. अत्यंत नम्रता से उस ने उन के पैर छुए तो पापा ने उस को आशीर्वाद देते हुए पूछा, ‘‘बेटा, अपना परिचय नहीं दिया?’’

‘‘पापा, यह रवि है, कालेज में हम लोग साथ पढ़ते थे,’’ मैं प्रफुल्लित होते हुए बोली.

‘‘बेटा, बहू को साथ नहीं लाए?’’

उस की मां ने पापा का अभिवादन करते हुए कहा, ‘‘बहुत कहा लेकिन अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘क्यों बेटा, अब तो तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए. घर में कौनकौन है?’’

‘‘बाबूजी पिछले ही साल गुजर गए. अब मां मेरे साथ ही देहरादून में रहती हैं.’’

‘‘वहां क्या करते हो?’’

‘‘फौरेस्ट औफिसर हूं.’’

‘‘लेकिन प्रवीण कहीं दिखाई नहीं दे रहे, क्या वे नहीं आए हैं?’’ रवि ने पूछा तो पापा उदास हो गए.

‘‘रवि, तुम तो जानते ही होगे कि उस के साथ क्या हुआ था?’’ पापा को चुप देख कर मैं बोली.

‘‘सुना था रितु. सुन कर बहुत दुख हुआ था. लेकिन…’’

‘‘अब सबकुछ खत्म हो गया रवि. मैं ने उस से तलाक ले लिया.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’

‘‘अब पुराने घाव को कुरेदने से क्या मिलेगा?’’ मैं उदास हो कर बोली.

‘‘हां बेटा, इतनी कम उम्र में तलाक. मुझे समझ में नहीं आता यह इतना लंबा जीवन अकेले कैसे काटेगी?’’ बाबूजी ने कहा.

‘‘बेटी, क्या तुम वही रितु हो जो रवि के साथ उस के कालेज में पढ़ती थीं?’’ रवि की मां ने पूछा.

‘‘हां, मांजी, लेकिन आप…?’’

‘‘कैसे जानती हूं, यही जानना चाह रही हो न? तो सुनो, रवि हमेशा तुम्हारे बारे में चर्चा करता है. बेटी, इस को तुम्हारी इतनी चिंता है कि प्रवीण जब अरैस्ट हुआ था तब यह रातभर न सोया था, कहता था, जाने क्या बीत रही होगी रितु पर. तुम ने शादी पर इस को निमंत्रण नहीं दिया था. कई दिनों तक परेशान रहा था. बेटी, यह सोच कर तुम्हें फोन नहीं करता था कि कहीं तुम्हारे दांपत्य जीवन में गलतफहमी न पैदा हो जाए. लेकिन बेटी, अब तो तुम तलाकशुदा हो. तुम चाहोगी तो हमारा घर बस जाएगा,’’ मांजी भावुक हो कर एक ही सांस में बोल गई थीं.

मैं तो सोच ही न पा रही थी कि रवि के दिल में मेरे लिए अभी भी इतना प्रेम है. मैं अभिभूत थी.

मैं ने लज्जा से सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘आप का आदेश, सिरआंखों पर, मांजी.’’

‘‘बेटा, इस से बढि़या क्या होगा. अगर तुम मेरी बेटी का हाथ थाम लेते हो तो मैं भी इस उम्र में सुकून की सांस ले पाऊंगा,’’ पापा बोले.

रवि ने मेरी आंखों में झांका तो मैं कुछ देर तक उस को देखती रह गई. हमारी मौन स्वीकृति ने मेरे पापा और रवि की मां की आंखों में खुशी के आंसू भर दिए थे.

एकादशियों की ऊलजलूल कथाएं बनाम लूट का साधन

पुरोहिताई पुस्तकों में एकादशी व्रत का बहुत महत्त्व बताया गया है. इस व्रत का पुण्य ट्रांसफरेबल है, जिस के बल पर पीढि़यों से नरक में पड़े हुए व्रती के पुरखे स्वर्ग पहुंच जाते हैं. मध्य व उत्तर भारत के गांवों में पुरोहित लोग प्रति एकादशी को भिक्षा लेने घरघर जाते हैं.

भाल पर तिलक लगाए और दोनों कंधों पर खोली (   झोली) लटकाए पंडितजी ‘आज ग्यारस हो गई भाई’ कहते हुए दालान या आंगन के चबूतरे पर बैठ जाते हैं. गृहिणी सब काम छोड़ कर थाली में आटादाल, नमकमिर्च आदि रख कर पंडितजी को देती हैं व पैर पड़ती हैं. पंडितजी दिया हुआ सामान खोली में भर कर दूसरे घर पहुंच जाते हैं. आजकल मोबाइल से बुकिंग भी होने लगी है.

एकादशी व्रत उद्यापन पूजा के लिए ब्राह्मण की औनलाइन बुकिंग कराई जा सकती है. इस की कीमत 6,000 रुपए से 10,000 रुपए तक है. बेंगलुरु में मिलने वाली यह सेवा फलफूल के साथ 8,300 रुपए एडवांस में देने पर मिलती है.

2 पंडित आते हैं, सारा सामान लाते हैं. दिल्ली में 11,000 रुपए में एक पंडित यह सेवा दे रहा है, सामग्री सहित 21,000 रुपए लेता है.

ग्यारस से कैसे पाप मुक्त

आप ने अकसर किसी पार्टी या पंगत में स्त्री व पुरुषों को कहते सुना होगा कि ‘आज मेरी ग्यारस है.’ इस का अर्थ यह हुआ आज मैं अन्न ग्रहण नहीं करूंगा.

इस व्रत को विधवाएं अधिक करती हैं. इस का कारण यह है कि मृतक (पति) के दशाकर्म (मृत्यु के 10 दिनों बाद) परिवार की ‘शुद्धि’ के नाम पर पंडित से कराई जाने वाली लूट की धार्मिक रस्म की पूजा के बाद चढ़ावे का सामान समेटते हुए विधवा से पंडितजी कहते हैं, ‘भगवान की इच्छा को कोई रोक नहीं सकता, अब बहन तुम को प्रत्येक ग्यारस का व्रत रखना है ताकि तुम्हारे पुण्य के प्रताप से पति की भटकती हुई आत्मा का उद्धार (स्वर्ग जाना) हो जाए.’

विधवा जानकार की भी यह कहानी ही है, दूसरों से कहने पर व्रत रख कर अपने पुण्य के बल (पुण्य ट्रांसफर कर) पर पति को स्वर्ग भेजेगी.

वर्ष में 12 माह (किसी वर्ष अधिक लौंद मास) होते हैं. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष को मिला कर 24 ग्यारसें होती हैं. अधिक मास होने पर 26 होती हैं. अंधविश्वासी हिंदू सभी ग्यारसों का व्रत रखते हैं.

‘एकादशी व्रत कथा’ नामक पुस्तक में पंडितों ने 26 एकादशियों की कथाएं लिखी हैं और उन के अलगअलग नाम दिए हैं. अधिकांश कथाओं का महत्त्व कृष्ण (विष्णु भगवान) से कहलवाया है. कुछ कथाएं ब्रह्मा, नारद, अंगिरा व वशिष्ठ आदि ऋषिमुनियों से भी कहलवाई हैं. जब भगवान, ब्रह्मा और ऋषिमुनि कहेंगे तो विश्वास करना ही पड़ेगा.

प्रत्येक कथा में व्रत रखने के साथ व्रती को विष्णु भगवान (कृष्ण) की पूजा और रात्रि जागरण बताया है. इस व्रत के पुण्य से व्रती के पितरों का उद्धार होता है, सौभाग्य (स्त्रियों के लिए) धन संपत्ति, पुत्र की प्राप्ति होती है. सुखशांति और प्रत्येक काम में सफलता मिलती है. अंत समय में व्रती विष्णु भगवान के विमान या गरुड़ पर सवार हो कर स्वर्ग जाता है, जहां इंद्रादि देवता उस का स्वागत करते हैं.

लेकिन मृत्यु के समय विष्णु का विमान या गरुड़ तभी आएगा जब पुराहितों व ब्राह्मणों को दान देंगे व मालपुआ खिलाएंगे. हर एकादशी की कथा में ब्रह्मभोज कराने का उल्लेख है. समग्र रूप से व्रती घर, स्वर्ण आभूषण, चांदीपीतल के बरतन, हाल ही ब्याही हुई बछड़ा सहित कपिला गाय, पंडित व पंडितानी को कपड़े, शृंगार-सामान, सात प्रकार का अनाज, बिस्तर सहित शैया, दूधदही, घी, शहद, जूते आदि पंडितों को दान करे व शक्ति अनुसार दक्षिणा दे. पुरोहित व ब्राह्मणी की पूजा कर उन का चरणामृत (पैरों का धोवन) पान कर विदा करे.

अब पंडित लोग कैश ही चाहते हैं. सभी एकादशियों की कथा छोटे से लेख में न संभव है और न उचित. कुछ एकादशियों की कथा अति संक्षेप में प्रस्तुत है ताकि धर्मभीरु लोगों को मालूम हो कि धर्म के धंधेबाज बेसिरपैर की काल्पनिक कथाओं को गढ़ कर किस प्रकार उन को लूट रहे हैं. इसी धंधे को चलाने के लिए  हिंदूहिंदू के नारे लगवाए जाते हैं.

दैत्य आतंक व दुर्दशा

‘एकादशी महात्म्य’ पुस्तक में सब से पहले मार्ग (अगहन) माह कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा दी गई है. पंडितजी (पुस्तक लेखक) ने इस का नाम ‘उत्पन्ना’ दिया है. यह कथा भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई है. कथा इस प्रकार है-

सतयुग में नाड़ीजंग नामक एक दैत्यराज था. उस की राजधानी चंद्रवती नामक नगरी थी. नाड़ीजंग का पुत्र मुरे दैत्य बहुत प्रतापी था. कथा कहती है कि उस ने पूरे विश्व को जीत कर इंद्र आदि सब देवताओं को देवलोक से निकाल दिया. देवता अपनी रक्षा के लिए शिवजी के पास जाते हैं पर शिवजी उन को विष्णु के पास भेज देते हैं.

देवताओं ने विष्णु के पास जा कर मुरे दैत्य का आतंक और अपनी दुर्गति सुनाई. उन्होंने विष्णु से कहा कि वह (मुरे) इंद्र, अग्नि, यम, वरुण, चंद्र व सूर्य बन कर पूरी पृथ्वी को तपा रहा है. मेघ बन कर जल वर्षा रहा है. सो, आप उसे मार कर हमारी रक्षा कीजिए.

इंद्र व देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु अपना सुदर्शन चक्र ले कर मुरे दैत्य को मारने के लिए चल देते हैं. मुरे दैत्य से लड़तेलड़ते विष्णु थक जाते हैं. अपनी थकावट दूर करने के लिए वे बद्रिका आश्रम की एक गुफा में विश्राम करते हैं. इधर, विष्णु से लड़ने के लिए मुरे दैत्य भी पहुंच जाता है. शयन करते हुए विष्णु के शरीर में से एक कन्या प्रगट होती है. वह मुरे से लड़ती है और उसे मार डालती है.

जब विष्णु जागे तो उन्होंने मुरे दैत्य को मरा पाया. वे सोच में पड़ गए कि इसे किस ने मारा. इतने में कन्या हाथ जोड़ कर कहती है, ‘हे भगवन, यह दैत्य आप को मारने को तैयार था, तब मैं ने आप के शरीर से उत्पन्न हो कर इस का वध कर दिया.’ तब विष्णु भगवान प्रसन्न हो कर उस से वर मांगने को कहते हैं. इस पर कन्या कहती है, ‘हे भगवन, मु   झे यह वर दीजिए कि जो मेरा व्रत करे उस के समस्त पाप नष्ट हो जाएं.’

कन्या के वर मांगने पर विष्णु बोले, ‘हे कन्या, तेरा नाम ‘एकादशी’ होगा. जो मनुष्य तेरा व्रत करेंगे उन के समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और अंत में स्वर्ग जाएंगे.’ कथा के अनुसार, एकादशी को उत्पन्न कर विष्णु भगवान अंतर्धान हो गए.

इस कथा पर कई प्रश्न उठते हैं. देवता तो करामाती और पावरफुल हैं. वे विमानों में यात्रा करते हैं, अनेक रूप बदल लेते हैं और अदृश्य हो जाते हैं. फिर एक अदना से दैत्य से क्योंकर हारे? मुरे दैत्य सूर्य, अग्नि, चंद्र, मेघ आदि कैसे बन जाता था? विष्णु ईश्वर हैं, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान हैं, फिर मुरे दैत्य को क्यों नहीं मार सके? उन को यह भी पता नहीं पड़ा कि मुरे कैसे मरा? कन्या विष्णु के शरीर में से कैसे निकली? वह ‘एकादशी’ कैसे बनी? पंडितजी यदि महीनों, दिनों व अन्य तिथियों की उत्पत्ति भी बता देते तो पुरोहितों के धंधे (धर्म के) में और इजाफा हो जाता.

माघ शुक्ल पक्ष (जया) एकादशी की कथा

इस कथा में कृष्ण से कहलाया गया है कि एक समय इंद्र ने अप्सराओं के साथ रमण किया. थक जाने के बाद वह उन को नचाने लगा. नाचगाने में पुष्पवती नामक अप्सरा और माल्यवान नामक गंधर्व भी थे. नाचते समय वे दोनों कामातुर हो जाते हैं जिस से दोनों का मन नाचगाने में नहीं लगा. इसे इंद्र ताड़ गए और उन्होंने अपना अपमान सम   झ कर दोनों को श्राप दिया कि मृत्युलोक में जा कर पिशाच बनो.

श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच योनि को प्राप्त हुए. एक दिन उन को कुछ भी खाने को नहीं मिला. उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी थी. ठंड के दिन थे. दोनों ने परस्पर चिपक कर एक पेड़ के नीचे रात्रि व्यतीत की. द्वादशी के दिन सुबह दोनों अलग हुए तो पुष्पवती सुंदर अप्सरा और माल्यवान गंधर्व के रूप में दिखे.

कथा के अनुसार, यह एकादशी का प्रभाव था क्योंकि अन्नाभाव के कारण उस दिन दोनों को भूखा रहना पड़ा था. सुंदर वस्त्र पहन कर दोनों स्वर्ग पहुंचे तो इंद्र ने उन का स्वागत किया और कहा कि यह एकादशी का प्रभाव है.

हिंदू संस्कृति के रक्षक सिनेमा के भद्दे पोस्टर देख कर पूरे देश में हुल्लड़ मचाते हैं. लेकिन इस कथा में कितना नंगापन है जिसे पंडेपुरोहित नयन नचा कर और हाथ मटका कर महिलाओं के बीच में पढ़ते हैं. इसे कमाल ही कहा जाएगा कि (जया) एकादशी के दिन कुछ खाना न मिला तो उसे व्रत मान लिया गया और उस का तत्काल सुफल भी मिल गया. जबकि, भूखे व्यक्तियों को यह पता ही नहीं है कि आज एकादशी है.

चैत्र कृष्ण पक्ष (पाप मोचनी) एकादशी की कथा

इस एकादशी की कथा कृष्ण ने लोमस ऋषि से सुनी है. कथा के अनुसार प्राचीन काल में चेत्ररथ नामक वन में अप्सराएं रहती थीं. उसी वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि भी तपस्या करते थे. मंजुघोषा नामक अप्सरा मेधावी ऋषि पर मोहित हो जाती है. मेधावी ऋषि को कामातुर करने के लिए उस ने अपनी, ‘भौंहों को धनुष बनाया, कटाक्ष (चितवन) को डोरी, नेत्रों को संकेत  (तीर का फल) और कुचों को लक्ष्य (निशान) बना कर मेधावी ऋषि को कामातुर कर दिया. काम के वशीभूत हो कर ऋषि उस के साथ रमण करने लगे.’

मेधावी ऋषि 57 वर्ष 7 माह 3 दिन तक रमण करते रहे. समय का ज्ञान होने पर वे अप्सरा को श्राप देते हुए कहते हैं, ‘रे दुष्टे, तू ने मेरे तप को नष्ट कर दिया, इसलिए तू पिशाचनी बन जा.’

मंजुघोषा पिशाचनी हो कर मुनि से पूछती है, ‘आप मु   झे श्रापमुक्ति का उपाय बताइए.’

इस पर मुनि ने कहा, ‘तू चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की (पाप मोचनी) एकादशी का व्रत कर. इस से तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे और तू सुंदर स्त्री बन जाएगी.’ उस ने पाप मोचनी एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उस के सब पाप नष्ट हो गए और वह सुंदर स्त्री बन गई. च्यवन ऋषि के कहने से मेधावी ने भी इस एकादशी का व्रत किया और पापमुक्त हो गए.

अश्लीलताभरी कथाएं

बताइए, कथा कितनी अश्लील है. ऋषि 57 वर्ष 7 माह 3 दिन तक लगातार कैसे रमण करते रहे? क्या दोनों को भूखप्यास नहीं लगी होगी? समय की गणना कैसे की होगी? फिर तो लोग परस्त्री और परपुरुष गमन करें तथा इस एकादशी का व्रत रख, पाप से छुटकारा पाएं. कुकर्म दूर करने का इस से सस्ता नुस्खा क्या हो सकता है. वहीं यदि कालेज के लड़केलड़कियां नयन लड़ाएं तो हम पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बता कर उन को बदनाम करते हैं. धन्य है कथा लेखक और कथावाचक, वे भी धन्य हैं जो ऐसी अश्लील कथाओं पर विश्वास कर व्रत रखती हैं.

यह बात दूसरी है कि राष्ट्रपति को सरकारी संसद और सरकारी मंदिर में भी प्रवेश के समय नहीं बुलाया जाता क्योंकि ये सारी पूजाएं असल में द्विजों के लिए ही होती हैं, हालांकि अब दूसरे भी करने लगे हैं. इस में पैसा बनता है और वोट भी मिलते हैं, इसलिए कोई सवाल नहीं उठाता.

हमारे देश की राष्ट्रपति एक महिला हैं. 10 वर्षों से देश की जनता को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. महंगाई आसमान छू रही है. अगर कोई पंडित, राष्ट्रपति से देवशयनी एकादशी का व्रत रखने को कह देता तो जनता को ये दुर्दिन न देखने पड़ते.

इन सब कथाओं में बराबर कहा जाता है कि केवल व्रत व पूजा से स्वर्ग नहीं मिलने वाला. व्रती को पंडित के लिए भूमि, स्वर्ण, हाल की ब्याही हुई बछड़ा सहित गाय, शैया, घी आदि दान देने से ही स्वर्ग की गारंटी है.

दुकान चलाते पंडे

सभी कथाओं का सार यह निकला कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति भिखारी से धनी बन जाता है, स्त्रियों का सौभग्य अमर रहता है, पुत्र की प्राप्ति होती है, बीमारियां दूर होती हैं और समस्त पाप नष्ट हो कर अंत में स्वर्ग मिलता है.

अगर ये कथाएं सही होतीं तो आज एक भी हिंदू गरीब न होता और न पुत्रहीन, अंधा, बहरा, विकलांग व बीमार भी कोई नहीं दिखता. सौभाग्य का जहां तक प्रश्न है, समाज में विधवाएं ही अधिक मिलेंगी और विधुर कम. जबकि, स्त्रियां ही अधिक व्रत रखती हैं.

साधुसंत व पंडेपुरोहित प्रत्येक एकादशी का व्रत रखते हैं. पर इन की मृत्यु के बाद विष्णु का विमान या गरुड़ को आते किसी ने नहीं देखा. वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष का कोनाकोना छान मारा पर स्वर्ग कहीं भी नहीं दिखा.

प्रत्येक एकादशी व्रत में पंडोंपुरोहितों को भोजन कराने व दानदक्षिणा देने से ही मरने के बाद स्वर्ग मिलना बताया जाता है. इस का अर्थ यह हुआ कि भोलेभाले और धर्मभीरु हिंदुओं को और उन के वोट पाने के लिए ही ये व्रतकथाएं आज भी कराई जाती हैं. जब एकादशी के व्रत रखने से समस्त कुकर्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं तो व्यक्ति कुकर्म करने से क्यों डरेगा. सो, क्या ये व्रतकथाएं पापों को बढ़ावा नहीं देती हैं?

सम   झ में नहीं आता है कि लोग सदियों से इन अश्लील, बेसिरपैर और तर्कहीन कथाओं पर कैसे विश्वास करते आ रहे हैं? समस्या यह है कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के हिंदू वहीं भी ये सब करतेकरवाते हैं और वहां भी पंडित मजे से दुकानें चला रहे हैं.

पाइल्स के मरीज शरमाएं नहीं, सलाह लें

सुस्त जीवनशैली, मानसिक तनाव, नींद के कम होते घंटे और मसालेदार जंक फूड के प्रति लगाव इस सदी में ज्यादातर स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे के कुछ मूल कारण हैं. बवासीर उन समस्याओं में से सब से आम है. बवासीर या पाइल्स को मैडिकल भाषा में हेमराइड्स के नाम से जाना जाता है.

यह एक ऐसी स्थिति है जिस में गुदा (ऐनस) के अंदरूनी और बाहरी क्षेत्र व मलाशय (रेक्टम) के निचले हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है. इस की वजह से ऐनस के अंदर और बाहर या किसी एक जगह मस्से जैसी स्थिति बन जाती है, जो कभी अंदर रहते हैं और कभी बाहर भी आ जाते हैं.

करीब 70 फीसदी लोगों को जीवन में किसी न किसी वक्त पाइल्स की समस्या रहती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ पाइल्स की समस्या बढ़ सकती है. अनेक स्टडीज सुझाती हैं कि 45 से 65 साल के बीच की उम्र में, दुनियाभर के देशों में, हर दूसरे व्यक्ति को यह क्रोनिक बीमारी उन के जीवन में कभीकभी होती है. बड़ी संख्या में महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बवासीर का अनुभव करती हैं.जो लोग चाय, जंक फूड के आदी होते हैं, जिन्हें कब्ज और तनाव रहता है, उन्हें यह बीमारी होने की ज्यादा आशंका रहती है.

लक्षण पहचान

निम्न संकेतों से पता लगाया जा सकता है कि बवासीर हो गई है-

– ऐनस के इर्दगिर्द एक कठोर गांठ जैसी महसूस हो सकती है. इस में ब्लड हो सकता है, जिस की वजह से इस में काफी दर्द होता है.

– टौयलेट के बाद भी ऐसा महसूस होना कि पेट साफ नहीं हुआ है.

– मलत्याग के वक्त लाल चमकदार रक्त का आना.

– मलत्याग के वक्त म्यूकस यानी चिपचिपे तरल पदार्थ का आना और दर्द का एहसास होना.

– ऐनस के आसपास खुजली होना व उस क्षेत्र का लाल होना और सूजन आ जाना.

बवासीर के प्रकार

अंदरूनी पाइल्स : ऐनस के अंदर हलकी सूजन होती है जो कि दिखाई भी नहीं देती. मरीज मलत्याग के वक्त या जोर लगाने पर खून आने की शिकायत करता है. सूजन बढ़ने लगती है और मलत्याग के वक्त जोर लगाने पर खून के साथ मस्से बाहर आ जाते हैं, लेकिन हाथ से अंदर करने पर वे वापस चले जाते हैं.

तीसरी तरह की स्थिति गंभीर होती है. इस में सूजन वाला हिस्सा या मस्सा बाहर की ओर लटका रहता है और उसे उंगली की मदद से भी अंदर नहीं किया जा सकता. ये बड़े होते हैं और हमेशा बाहर की ओर निकले रहते हैं. अंदरूनी पाइल्स को ही खूनी बवासीर कहा जाता है.

बाहरी पाइल्स : इसे मैडिकल भाषा में पेरिएनल हेमाटोमा कहा जाता है. इस में छोटीछोटी गांठें या सूजन ऐनस की बाहरी परत पर होती हैं. इन में बहुत ज्यादा खुजली होती है. अगर इन में रक्त भी जमा हो जाए तो दर्द होता है. इस में तुरंत इलाज की जरूरत होती है.

मलाशय और गुदा में नसें जब मुड़ जाती हैं, उन में सूजन आ जाती है और वे फूल जाती हैं तो वे बवासीर को जन्म देती हैं. पाइल्स के मरीजों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि रेशे युक्त भोजन खाना चाहिए.

करेले का रस, खूब सारा सलाद व मौसमी खाना भी बवासीर के मरीजों के लिए लाभदायक होता है. इस के अलावा फलों में केला, नारियल आंवला, अंजीर, पपीता इत्यादि खाना भी इस में फायदेमंद होता है.

पाइल्स के मरीजों को खूब सारा पानी पीना चाहिए. लस्सी पीना भी फायदेमंद होता है. भोजन करने के बाद अमरूद खाने से भी फायदा होता है. पालक, गाजर, मूली, तुरई, टमाटर, लौकी इत्यादि सब्जियां भी खा सकते हैं. नियमित व्यायाम करना चाहिए और मलत्याग के दौरान बहुत ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहिए.

पाइल्स के मरीजों को कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे तेज मिर्च, मसालेदार खाने से परहेज करना चाहिए. इस के अलावा मांस, मछली, अंडे, उरद की दाल, खटाई, अचार, आलू, बैगन इत्यादि से भी बचना चाहिए. डब्बाबंद भोजन भी बवासीर के मरीजों के लिए हानिकारक होता है. पाइल्स के मरीजों को चाय व कौफी भी कम कर देनी चाहिए.

बवासीर लाइलाज नहीं है. बस, जरूरत है कि बीमारी होने पर शरमाएं नहीं, तुरंत डाक्टर की सलाह लें. और हां, ध्यान रखें कि औपरेशन इस बीमारी का इलाज नहीं है. उस के बिना भी इस बीमारी से नजात पाई जा सकती है.

आम न समझें गले की खिचखिच को

सर्दीजुकाम के साथ गला खराब होना, गले में खराश, कुछ भी खानेपीने में तकलीफ, लगातार खांसी आना आदि गले से जुड़ी समस्याएं हैं जिन्हें लोग साधारण समझ कर अनदेखा कर देते हैं. हालांकि इन समस्याओं की अनदेखी कभीकभी गंभीर रोग को आमंत्रण देना साबित हो सकती है. इन गंभीर रोगों में से एक गले का कैंसर है जिस का अगर समय पर इलाज न किया जाए तो रोगी के बोलने की क्षमता के खोने के साथसाथ उस के पूरे शरीर मैं कैंसर फैल सकता है.
कैसे होता है गले का कैंसर : गले की सांस लेने, बोलने और निगलने के लिए प्रयोग में आने वाली कोशिकाएं असामान्य रूप से विभाजित होना शुरू हो जाती हैं और फिर नियंत्रण से बाहर आ जाती हैं. तब गले का कैंसर होता है. ज्यादातर गले का कैंसर मुखगुहा से शुरू हो कर ग्रसनी तक फैलता है.
महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में यह कैंसर अधिक पाया जाता है क्योंकि धूम्रपान पुरुषों में आम है. यदि धूम्रपान और तंबाकू सेवन के साथ मद्यपान किया जाता है तो गले के कैंसर की संभावना अधिक बढ़ जाती है.

गले के कैंसर के कारण : अत्यधिक धूम्रपान, तंबाकू सेवन और मद्यपान भेजने में प्रोटीन व विटामिन की कमी.

लक्षण

– भोजन निगलने में कठिनाई या दर्द
– लगातार गले में खराश
– गले में गांठ महसूस होना
– गले में दर्द या सूजन
– गले में बढ़े हुए लिम्फ नोड्स (लसीका पर्व)
– लगातार खांसी
– घबराहट या सांस लेने पर आवाज आना
– अचानक वजन घटना
– खांसने पर खून आना

निदान : चिकित्सक गले की जांच करते हैं. जांच में कुछ असामानताएं पाई जाती हैं तो चिकित्सक बायोप्सी के लिए गले के ऊतक का नमूना भेजते हैं. बायोप्सी की रिपोर्ट से चिकित्सक कैंसर की पुष्टि करते हैं. उस के बाद सीटी स्कैन द्वारा ट्यूमर के स्थान का पता लगाया जाता है. साथ ही, यह भी पता लगाया जाता है कि क्या ट्यूमर शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जा सकता है.

डाक्टर कैंसर के चरणों का वर्णन करने के लिए संख्या का प्रयोग करते हैं. चरण 1-2 में ट्यूमर आसपास के ऊतकों में अंदर तक दाखिल नहीं हुए होते जबकि चरण 3-4 में ट्यूमर आसपास के ऊतकों के पार व्याप्त हो जाते हैं.
पीईटी स्कैन कैंसर के फैसले की सीमा निर्धारण का नवीनतम अरिक्त परीक्षण है. इस परीक्षण की मदद से यह पता लगाया जाता है कि क्या कैंसर लिम्फ नोट्स (लसीका पर्व) के साथसाथ शरीर के अन्य भागों में फैल गया है.

गले के कैंसर की चिकित्सा : गले के कैंसर की चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर कितनी दूरी तक फैला है. गले के कैंसर के प्रारंभिक दौर के लिए विकिरण चिकित्सा और शल्य चिकित्सा प्रयोग में लाई है. तीसरेचौथे चरण के गले कैंसर के लिए कीमोथेरैपी चिकित्सा, सर्जरी और विकिरण चिकित्सा भी की जाती है.
गले के कैंसर के लिए लैरिजक्टोमी यानी स्वरयंत्र अच्छेदन सब से आम सर्जरी है. इस के अतिरिक्त ग्रसनी या उस के हिस्से को सर्जरी से हटाने की प्रक्रिया को कैरिजैक्टोमी यानी ग्रसनी उच्छेदन कहा जाता है. इस सर्जरी की जरूरत तब पड़ती है जब कैंसर कोशिकाएं स्वरयंत्र या ग्रसनी से परे लिम्फ नोड्स में फैल जाती हैं.
सर्जरी से रोगी की बोलने की क्षमता प्रभावित होती है, बोलने की क्षमता दोबारा प्राप्त करने के लिए रोगी को विशेष तकनीकों की जरूरत पड़ती है.

गले में खराश

अगर आप को पानी पीने या अन्य तरल पदार्थ निगलने में कठिनाई हो, मुंह से सांस लेने में कठिनाई हो, सांस लेने पर आवाज आती हो, अत्यधिक लार टपकती हो. 101 डिगरी फारेनहाइट से अधिक बुखार हो तो आप गले की खराश या ग्रसनीशोध यानी गले के इंफैक्शन से पीड़ित हैं.
इंफैक्शन की वजह से गले में खराश पैदा होती है. ऐसा वायरल और बैक्टीरियल इंफैक्शन के कारण होता है. अगर गले की खराश 2 हफ्ते से अधिक रहे तो उसे अनदेखा न करें. बारबार होने वाली खराश या इंफैक्शन हृदय के वौल्व और किडनी द्वारा रक्त की शुद्धीकरण की प्रक्रिया पर असर पड़ता है. इसे नेफ्राइटिस कहते हैं, जिस की वजह से किडनी कुछ समय के लिए फेल हो सकती है.

ज्यादातर केसों में इस का उपचार हो जाता है लेकिन बारबार गले का इंफैक्शन गुर्दे को फेल भी कर सकता है. इसी तरह गले का इंफैक्शन हृदय के वौल्व पर भी असर डालता है. जिस की वजह से वौल्व सिकुड़ जाते हैं और उन की कंपन गति कमजोर हो जाती है और खून के संचालन में बाधा आती है. ऐसा ज्यादातर बाईं तरफ के वौल्व में होता है. जिसे माइट्रल या एओरटिक कहते हैं.

गले की खराश का निदान

– बुखार की दवाइयों के साथ एंटीबायोटिक दवाओं का भी पूरा कोर्स करें.
– इंफैक्शन की रोकथाम के लिए वैक्सीन भी लगवा सकते हैं.
– खानपान का पूरा ध्यान दें. विटामिन ‘सी’ का भरपूर सेवन करें.
– वायु प्रदूषण से बचें.
– हाथों को बारबार धोएं.
-अत्यधिक ठंडे और तैलीय पदार्थों का प्रयोग न करें.
-निर्जलीकरण को रोकने के लिए खूब पानी पिएं.
– भाप लें.
– गरम पानी से गरारा करें.
-जब तक संक्रमण पूरी तरह खत्म न हो जाए, दवाइयां बंद न करें.

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