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शादी कर लो भगवान जाग गए हैं

दीवाली के बाद बजने वाले पटाखों की आवाजों से ही मैं जान गया कि ‘भगवान’ जाग गए हैं. यह आतिशबाजी उन के स्वागत के लिए की जा रही है. 4 माह की गहन निद्रा के बाद अंगड़ाई ले कर वे उठ गए हैं. अब हिंदुओं का इंतजार खत्म हुआ. देवताओं ने इस दौरान शादी करनेकरवाने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी है. अब अटके हुए प्रेम प्रकरण या सगाइयां अपनी मंजिल पा लेंगे. पंडेपुरोहित, बैंडबाजे वाले, टैंट वाले और कैटरिंग वाले फिर से अपनेअपने मूल व्यापार में व्यस्त हो जाएंगे. अभी तक बेचारे पेट पालने के लिए चार माह से मन मार कर दूसरे काम कर रहे थे. भगवान ने उन्हें अपने असली काम करने का परवाना दे दिया है. भिड़ जाओ अपने पुश्तैनी धंधे में. चार माह का इंतजार कोई कम नहीं होता. अब कमाई करो जब तक कि हम फिर से सो नहीं जाते.

स, सभी जुट जाते हैं अपनेअपने काम में. कहीं ऐसा न हो कि सोचनेसोचने में समय निकल जाए और भगवान फिर से सो जाएं. लड़केलड़कियों की जन्मपत्रिकाएं खंगाली जाने लगती हैं. उम्मीदवारों की जन्मराशि देख कर मुहूर्त निकाले जाने लगते हैं. लड़केलड़की में खोट को नजरअंदाज करने की नौबत आने लगती है. अगर इस बार चूक गए तो कहीं कुंआरे ही न रह जाएं. पंडितजी अपनी डायरी देखने लगते हैं कि कौन सी तारीख को वे उपलब्ध हैं और कितना समय दे सकते हैं. मैरिज हौल के लिए वरवधू के पिता भागदौड़ करने लगते हैं. रिश्तेदार एडवांस में छुट्टी की अर्जियां देने लगते हैं. कैटरिंग मैन्यू और मेहमानों की संख्या के हिसाब से सामान और पैकेज व डील्स बताने लगते हैं.

बैंड वाले बैंड के आकार को ले कर अपनी दर बताने लगते हैं. मेहमानों की सूची बनने लगती है. सवाल उठता है कि डीजे कितने डैसिबल का शोर बजाएगा और कौनकौन से डांस होंगे. मेहंदी रचाने वालों के हाथपैर जोड़ने की नौबत आ जाती है. मुसीबत तो तब होती है जब वर तो तय हो जाता है पर घोड़ा नहीं मिलता.

भगवान ने ढेरों इंसान तो बना दिए पर गिनती के घोड़े क्यों बनाए? बरात के आगेआगे कौनकौन नाचेगा या नाचेगी, इस की सूची बनने लगती है. गानों की भी सूची तैयार की जाने लगती है. इस बात पर वादविवाद होता है कि सड़क पर नाचतेनाचते कितनी देर का जाम लगाया जाए ताकि मंडप पर समय पर पहुंच सकें. वर मंडली को कौन सी शराब परोसी जाए, इस पर चर्चा होने लगती है. लेनदेन की शर्तों पर गुपचुप ‘हां’ ‘न’ होती हैं.

विवाह के निमंत्रणकार्ड छापने वाले भी पहले से कंपोज और टाइपसैट किए रटेरटाए वाक्य फिर से छापने लगते हैं, ‘भेज रहे हैं प्रियजन निमंत्रण तुम्हें बुलाने को. ओ मानस के हंस, तुम भूल न जाना आने को.’ और अंत में तुतलाते हुए बच्चों की मनुहार, ‘जलूल जलूल आना’. न तो निमंत्रणकार्डों का मैटर बदला और न ही विवाह की रीत. यानी सारे रुके हुए काम अब वर्तमान काल में होने लगते हैं.

रावण के भाई कुंभकरण के साल में

6 माह सोने का वर्णन तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि देवताओं के

4 माह सोने का वर्णन किसी धर्मप्राण जीव ने भी कहीं नहीं पढ़ा होगा. सवाल यह है कि आखिर देवताओं को 4 माह तक ‘सुलाने’ का और्डर किस ने दिया होगा? शायद देवताओं ने खुद ही अपनी छुट्टी तय की हो और पंडों को बता दिया हो. पंडों ने अपने वारिसों को बता दिया हो और वारिस भले बदलते रहते हों लेकिन ‘भगवान’ का सोने का सीजन वही रहता है.

हो सकता है कुंभकरण को आधे साल सोता देख देवताओं के मन में भी प्रतिस्पर्धा की भावना जागी हो. सोचा होगा, वह राक्षस हो कर 6 माह सोता है तो हम दुनिया चलाने वाले हो कर 4 महीने क्यों नहीं सो सकते. हो सकता है कि उन्होंने कुंभकरण को पछाड़ने के लिए 8 माह तक सोने का टारगेट बनाया हो लेकिन मंदिरों में होने वाले भजन नामक शोर से परेशान हो कर कटौती कर दी हो. 4 माह ही सही, खर्राटे तो भर लें. आखिर इतनी बड़ी दुनिया चलाने वाले को भी आराम की जरूरत तो होती ही है.

 

आम आदमी सप्ताह में एक दिन छुट्टी रख सकता है तो उसे बनाने वाला उस की हैसियत के अनुसार साल में 4 महीने की छुट्टी नहीं ले सकता क्या? सूर्य भगवान और उन का कर्ज नियमित रूप से चुकाने वाला कर्जदार चंद्रमा भी छुट्टी मनाता है, लेकिन वे कभी किसी की शादी के आड़े नहीं आते. वे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं. इसीलिए उन के भक्त और भजन कम हैं. इन्हें छोड़ कर बाकी के सारे भगवान इन 4 माह के अलावा बीचबीच में झपकियां भी ले लेते हैं. मैं समझ जाता हूं कि अब शादियां किसी भी हालत में नहीं हो सकेंगी. चूंकि भगवानों का हर शादी में उपस्थित रहना जरूरी है और पहली निमंत्रणपत्रिका उन्हें ही देते हैं, इसलिए उन के जागने का इंतजार करो. सिर्फ पंडे ही उन्हें जागते हुए देखने की दिव्यदृष्टि रखते हैं. वे भगवान के नाम से फरमान निकालते हैं और धड़ाधड़ शादियां करवाने में भिड़ जाते हैं. मातापिता भी उन की राय मान कर अपनी बेटियों को जल्दीजल्दी रवाना करने लगते हैं.

हिंदुओं की मान्यता है कि उन के 33 कोटि (यानी श्रेणी, करोड़ नहीं) देवीदेवता हैं. इस हिसाब से तो एक माह में पौनेतीन देवीदेवता तो आराम से हो सकते हैं. शेष दुनिया चला सकते हैं. मेरा कहना है कि आपसी समझबूझ से काम लें तो वे बारहों महीने दुनिया चला सकते हैं और इंसान की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. बस, टाइमटेबल बनाना है. शिवरात्रि को महादेव जागें तो रामनवी को राम, जन्माष्टमी को कृष्ण तो हनुमान जयंती को हनुमान जागते रहें. वैसे भी, अपने बर्थडे के दिन झांझमंजीरों के शोर में ये सो ही नहीं सकते. बाकी सब पैर पसार कर सोएं. लेकिन नहीं. ये भी सांसदों की तरह अडि़यल रवैया अपनाते हैं. किसी के साथ ऐडजस्ट नहीं करते. माखन चुराने वाला, लड्डू चुराने वाले के लिए अपनी नींद खराब नहीं करेगा. त्रिशूल वाला सुदर्शन चक्र वाले के लिए अपना शैड्यूल नहीं बिगाड़ना चाहता. शेर की सवारी करने वाली, कमल पर बैठने वाली के लिए छुट्टी पर नहीं जाना चाहती. सब गड़बड़ है. एक बार तय कर लिया कि बारीबारी से ड्यूटी नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे. सोएंगे तो सभी एकसाथ. जागेंगे भी तो सभी एकसाथ. कोई क्या बिगाड़ लेगा? तो भैया नोट कर लो, दुनिया चलाने वाले सोते भी हैं. लेकिन यह भी नोट कर लो कि उन के सोने के साथ दुनिया नहीं सो जाती. उस का काम बदस्तूर चलता रहता है. स्कूलकालेज चालू रहते हैं. दफ्तरों में काम होता है, बच्चे पैदा होते हैं, व्यापार होता है, बसें, कार, रेलें चलती हैं, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, दलबदल, तस्करी, धोखाधड़ी वगैरा भी आम दिनों की तरह होते रहते हैं.

इन चार महीनों में न तो पाप थकता है और न ही पुण्य सुस्ताता है. फिर शादी ने ऐसा क्या अपराध किया है जो भगवानों के जागने पर ही हो पाती है? और क्या इन दिनों मंदिरों पर ‘डौंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी होती है? नहीं, वहां तो हमेशा जैसी ही भीड़ लगी रहती है. किसी खास तिथि को ऐसी भगदड़ मचती है कि कई लोग सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं. इस दौरान पैदा हुए बच्चे को मंदिर में ले जाने की क्या तुक है? भगवान तो सो रहा है. वह आशीर्वाद कैसे देगा?

परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सिनेमाघरों में कम, मंदिरों में ज्यादा नजर आते हैं. आशीर्वाद किस से लें? भगवान तो खर्राटे मार रहे होते हैं. शायद इसीलिए सभी सफल नहीं हो पाते. मंदिर का पुजारी असफल विद्यार्थी को दिलासा देता है कि परीक्षा वालों ने देवताओं के सोने के दिनों में परीक्षा रखी, इसलिए उन का आशीर्वाद नहीं मिल पाया. वे शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय परीक्षाओं की तारीख बदलने का सुझाव देते हैं.

अजीब बात है. भगवान तो सो रहे होते हैं. लेकिन मंदिरों में चढ़ावा बदस्तूर आ रहा है. चांदी का सिंहासन, सोने का मुकुट, हीरे की अंगूठी और भी न जाने क्याक्या. भजनआरती नामक शोर भी जारी है. कमाल है जिस के हजारवें हिस्से में भी इंसान सो नहीं पाता, उस शोर में भगवान आराम से सो कैसे सकते हैं. नींद की कौन सी गोली खाते होंगे वे? अगर उन की नींद टूटती तो वे पुजारियों और भक्तों को डांटते, ‘कमबख्तो, सोने दो. हम तुम्हारे लिए काम करते हैं. बंद करो यह शोरशराबा. यह हमारे सोने का सीजन है. नहीं माने, तो जागने पर एकएक को देख लेंगे.’ लेकिन सभी के सभी सो रहे होते हैं.

अजीब बात तो यह है कि दूसरे धर्मों के देवता कभी नहीं सोते. मजाल है जो एक पल के लिए भी सो जाएं. कर्तव्यनिष्ठ भगवान हैं उन के. वे जानते हैं कि उन के धर्मावलंबी अक्लमंद हैं, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हैं इसलिए, वे शादी करनेकरवाने का फरमान जारी करवाने के पचड़े में नहीं पड़ते. जब हमारे भगवानों के सोते हुए भी वही काम होते रहते हैं जो उन के जागते हुए होते हैं, तो फिर उन की नींद खुलने का इंतजार करते रहने में कोई समझदारी है क्या? नहीं न. तो फिर सोने दो उन्हें?

बीवी का मर्डर

रविवार की सुबह 7 बजे के लगभग नोएडा का धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही

यहां मछलियों का बाजार लग जाता था. इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता था.

सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर

2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल का एक फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे. रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. रोहिणी शाम साढ़े 6 बजे तक घर लौट आती थी.

पति पत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्टी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था. पहली अप्रैल की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो  चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, ‘‘साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हैं?’’

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी.

फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, ‘‘उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.’’

उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रख कर वह बैडरूम में घुसा तो उस की चीख निकल गई, ‘‘रोहिणी?’’

धनंजय की सुंदर पत्नी रोहिणी रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. उस के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी. कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विश्वास?’’

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, ‘‘रो…हि…णी.’’

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर गए. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा पहुंच गए. तब तक आशीष शर्मा भी 2 सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए थे. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए पुलिस सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंची. पुलिस के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

प्रकाश राय ने सीधे ऊपर न जा कर इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढि़यां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था. इमारत के चारों ओर घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने सिक्योरिटी इंचार्ज खन्ना से पूछा, ‘‘ये कमरे किस के हैं?’’

‘‘सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .’’

‘‘कितने वाचमैन हैं?’’

‘‘2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में होती है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.’’

‘‘दोनों के नाम क्या हैं और ये रहते कहां है?’’

‘‘कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो गार्ड अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.’’

‘‘अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?’’

‘‘एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.’’

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर पहुंचे. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए. प्रकाश राय चौकीदार नारायण, जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. उस से पूछताछ करने लगे, पर उस से प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट लेने जाते और लौटते देखा था बस.

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रख कर सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिला तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर रहूंगा.’’

प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. कमरे का निरीक्षण करते. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग क र जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना. प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए धनंजय से कहा, ‘‘मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?’’

धनंजय ने प्रकाश राय को दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?’’

फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में पूछा, ‘‘तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?’’

‘‘रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.’’

‘‘इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?’’

‘‘नहीं साहब, कल शनिवार  था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.’’

‘‘कारण?’’

‘‘अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने जाने वाले थे.’’ कहते हुए धनंजय ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. वह सही कह रहा था. आशीष शर्मा को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आशीष, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.’’

प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?’’

‘‘साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.’’

‘‘तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?’’

‘‘जी सर.’’

थोड़ी देर में आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे.

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते इसी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

पोस्टमार्टम के बाद लाश धनंजय और उस के घर वालों को सौंप दी गई थी. अंतिम संस्कार में प्रकाश राय तो फोर्स के साथ गए ही थे, अपने कुछ लोगों को भी ले गए थे, जो अंतिम संस्कार में आए लोगों की बातें सुन रहे थे.

विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए. एक आदमी कह रहा था, ‘‘कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?’’

‘‘सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.’’

‘‘आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.’’

‘‘शनिवार को बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?’’

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी ने भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था—

‘‘विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.’’

‘‘आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.’’

‘‘वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ था.’’

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं.

यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

प्रकाश राय स्वयं आशीष शर्मा को ले कर चल पड़े. रास्ते में उन्होंने उसे आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग नहीं मिल रहा है.’’

‘हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.’’

‘‘तुम्हें किस ने फोन किया था?’’

‘‘सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम अलकनंदा गए थे. मैं दाहसंस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.’’

‘‘आप जरा बुलाएंगे उन्हें?’’

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हैडकैशियर सोलंकी से पूछा, ‘‘शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?’’

‘‘हां, 40 हजार…’’

‘‘खाता किस के नाम था?’’

‘‘मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.’’

‘‘आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी, वह किस रूप में थी?’’

‘‘5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दी थी. उन नोटों के नंबर भी मेरे पास हैं.’’

प्रकाश राय ने आशीष शर्मा से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, ‘‘बिष्ट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?’’

‘‘नहीं,’’ वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.’’

‘‘अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?’’

‘‘निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था?’’

‘‘यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है? अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है? अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.’’

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

‘‘पता कहां का है?’’ मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

‘‘साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?’’

‘‘औपरेटर ने बताया कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.’’

इतने में ही आशीष शर्मा और मिश्रा वहां आ पहुंचे. आशीष अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बडे़ ही सहज ढंग से पूछा, ‘‘मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?’’

‘‘हां, है. आप को कुछ…?’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.’’

प्रकाश राय और आशीष शर्मा बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं. मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, ‘‘मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.’’

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

‘‘मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?’’

‘‘हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.’’

‘‘आइए, अंदर आइए.’’

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.’’

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौपिंग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसीलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे. आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, ‘‘अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?’’

‘‘मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?’’

प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

‘‘हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?’’

‘‘आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

‘‘हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.’’

‘‘लेकिन जानपहचान कैसे हुई?’’

‘‘हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.’’

‘‘सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?’’

‘‘अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को गाजियाबाद उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिए थे.’’

‘‘तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘इस का कारण?’’ प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘कारण…?’’ आनंद गड़बड़ा गया, ‘‘एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.’’

‘‘रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?’’ प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

‘‘पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.’’

‘‘अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?’’

‘‘शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.’’

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. लेकिन ॐन के एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, ‘‘आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हैं?’’

 

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, ‘‘लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.’’

‘‘नहीं..,’’ आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.’’

‘‘लेकिन सर, किसी ने हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?’’ आनंद ने पूछा.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?’’

‘‘मैं क्या कह सकता हूं?’’

‘‘मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं है, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.’’

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा,  ‘‘आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?’’

‘‘नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं फिर मिलूंगा.’’

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद नहीं किया ज सकता. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे यह…तो.’’ घंटी बजा कर इन्होंने आशीष शर्मा को बुलाया.

‘‘आशीष शर्मा, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.’’ कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं. आशीष शर्मा और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले,  ‘‘जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा दूसरे केस देखता हूं.’’

उत्साहित हो कर आशीष शर्मा निकल पड़े. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार आशीष शर्मा पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और आशीष शर्मा अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘मि. विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का हाथ जरूर है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.’’ कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस  में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी. गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?’’

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप…?’’

‘‘मैं बैंक मैनेजर हूं.’’

‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां, यह धनंजय विश्वास हैं.’’

‘‘आप के बैंक में इन का खाता है?’’

‘‘खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.’’

‘‘आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?’’

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, ‘‘मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.’’

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, ‘‘यह क्या है मिस्टर विश्वास?’’

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

‘‘मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?’’ प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.’’

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही प्रिंट्स मिले थे.  इसीलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मौत आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी.

जबकि धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था. धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था. उन्होंने आशीष शर्मा को समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…

‘‘धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा? आशीष कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो? हो सकता है.’’ प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, ‘‘वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.’’

इस के बाद आशीष शर्मा ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह आशीष शर्मा जानते थे. इसलिए उन्होंने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के वह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.

5 मई का दिन बेकार चला गया. 6 मई को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही आशीष शर्मा सावधान हो गए. वह अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर वह उस के पीछे हो लिए. गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. आशीष ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही उन्होंने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.

थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही आशीष ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.

धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर आशीष शर्मा वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही वह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. ’’

‘‘धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए  था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.’’

आशीष शर्मा ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद बैंक मैनेजर से कहा, ‘‘यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.’’

धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छे में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.

पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.’’

प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया. रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.

इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, ‘‘मालूम नहीं.’’

धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,‘‘धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ पेज तुम ने क्यों फाड़ डाला?’’

धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.

‘‘आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.’’

‘‘क्या?’’ प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’

‘‘मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.

‘‘इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…

‘‘ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.’’

धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, ‘‘एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया. मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.

‘‘इस के बाद कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.’’

धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, ‘‘कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.’’

इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.

एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, ‘‘मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.’’

यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?

(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)

पार्क वाली लड़की और आजकल की हीरोइनें

वे अपनी बैंच पर बैठे रहते हैं और वह लड़की उस पार्क के कोने में. देखा जाए तो दोनों में न कोई समानता है, न संबंध, फिर भी पता नहीं क्यों, पार्क के उस कोने में बैठी लड़की उन्हें बहुत अच्छी लगती है. उस लड़की को भी उन का उस बैंच पर बैठे रहना अखरता नहीं बल्कि आश्वस्त करता है, एक प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है. बस, एक यही सूत्र है शायद, जो इन दोनों को इस पार्क से जोड़े हुए है.

कैसी अजीब बात है, वे इस लड़की को देखदेख कर उस के बारे में बहुतकुछ बातें जान गए हैं, पर उस का नाम वे अब तक नहीं जान पाए. वह रोज इस पार्क में 5 बजे शाम को आ बैठती है. कल वह बसंती सूट पहन कर आई थी, परसों हलका हरा. कल वह जामुनी सूट पहन कर आएगी और परसों सफेद जमीन पर खिले नीले फूलों वाला.

जिस दिन वह बसंती सूट पहनती है उस दिन चुन्नी हलकी हरी होती है. हलके हरे सूट पर बसंती चुन्नी. जामुनी सूट पर सफेद चुन्नी और नीले फूलों पर वह नारंगी रंग की चुन्नी डाल कर आती है. वे माथे पर बिंदी नहीं लगाती. अगर लगाए तो उन का मन मचल जाए और वह मन ही मन गाने लगें, ‘चांद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा…’

ऐसा कटावदार चेहरा हो, और इतना गोरा रंग, ऐसा चौड़ा चमकता हुआ माथा हो और ऐसी कमान सी तनी हुई पतली, काली भौंहें और उन के बीच बिंदी न हो, जानें क्यों, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगती. उन का कई बार मन हुआ, कभी इस लड़की से कहें, ‘बिंदी लगाया करो न, बहुत अच्छी लगोगी.’ पर कह नहीं सके. उम्र का बहुत फासला है. यह फासला उन्हें ऐसा कहने से रोकता है. कहां 55-56 साल की ढलान पर खड़े पकी उम्र के, उम्रदराज खेलेखाए व्यक्ति और कहां यह 20-22 साल की खिलती धूप सी बिखरबिखर पड़ते यौवन वाली नवयौवना.

लड़की हंसती है तो दाएं गाल पर गड्ढा बनता है. बायां गाल उन्हें दिखाई नहीं देता, इसलिए वे उस के बारे में निश्चित नहीं हैं. उस के दांत सुघड़ और चमकीले सफेद हैं. वह लिपस्टिक नहीं लगाती, पर अधर बिलकुल ताजे खिले कमलदल से नरम और कोमल हैं. बाल बहुत घने और काले हैं.

बालों की हठीली लट उस के माथे पर हवा के साथ बारबार आ जाती है, जिसे वह किताब पढ़ते समय अदा से सिर झटक कर हटाया करती है, पर अकसर वह हटती नहीं है. वह नाक में कील या लौंग नहीं पहनती, पर नाक छिदी हुई है. कानों में वह गोल, छोटी बालियां पहनती है, जो हमेशा हिलती रहने के कारण बहुत लुभावनी लगती हैं. लंबी गरदन में अगर वह काले मनकों की माला पहनने लगे तो अच्छा रहेगा.

यह लड़की किसी प्रतियोगिता में बैठने की तैयारी कर रही है. इस के पास वे जिन किताबों को देखते हैं वैसी किताबें उन के लड़के के पास रही हैं. उन का लड़का अब नौकरी में है. एमबीए करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सहायक मैनेजर. 15 हजार रुपए से तनख्वाह शुरू हुई है. बाप रे, आजकल की कंपनियां इन नएनए छोकरों को कितना रुपया दे देती हैं, जबकि वे 10 हजार रुपए पर पहुंचतेपहुंचते रिटायर हो जाएंगे.

इस लड़की को अंगरेजी में खास दिक्कत होती है. पार्क में आ कर अकसर वह अंगरेजी के वाक्यांश, मुहावरे और शब्दार्थ रटा करती है. यह लड़की चूडि़यां नहीं पहनती, कड़े पहनती है. अगर चूडि़यां पहने तो इसे लाल रंग की पहननी चाहिए, बहुत अच्छी लगेंगी इस की गोरी कलाइयों पर, वे कई बार ऐसा सोच चुके हैं. इस की लंबी, नाजुक, पतली उंगलियों में अंगूठी सचमुच बहुत अच्छी लगे, पर यह नहीं पहनती. लंबे नाखूनों पर नेलपौलिश नहीं लगाती, पर उन का कुदरती गुलाबी रंग उन्हें हमेशा अच्छा लगता है…अच्छा यानी…?

यों आजकल ढीलेढाले कुरतों का रिवाज है पर इस लड़की का कुरता ऊपर कसा हुआ और नीचे काफी ढीला होता है. पुराने जमाने में जिस प्रकार की फ्रौकें बना करती थीं, उस तरह का होता है. कसे हुए कुरते में उस के उभार बेहद आकर्षक और दिलकश प्रतीत होते हैं, तिस पर कुरते का नीचा कटा गला. जब कभी हवा से उस की चुन्नी उभारों पर से उड़ जाती है, गले के नीचे उस के पुष्ट उभार नजर आने लगते हैं, खासकर तब, जब वह पार्क की घास पर बेलौस हो, लेटी हुई पढ़ती रहती है.

पार्क में आते ही वह सैंडल उतार कर उन्हें पौधों के नजदीक रख देती है. सैंडल बहुत कीमती नहीं होतीं. कभीकभार वे मरम्मत भी मांगती रहती हैं, पर शायद उसे वक्त नहीं मिलता कि ठीक करवा लाए या फिर घर में कोई ऐसा नहीं जिसे वह मोची के पास तक भेज कर…वैसे अगर सुनहरी बैल्टों वाली सैंडल वह पहने तो एकदम परी लगे. मन हुआ, वे उस से कहें किसी दिन, पर कह नहीं सके.

ढीले कुरते के कारण कमर का अंदाजा नहीं लग पाता, पर जरूर उस की नाप…वह कौन सा आदर्श नाप होती है विश्व सुंदरियों की, 36-24-36 या ऐसा ही कुछ. वे अगर दरजी होते तो जरूर इस लड़की का कोई सूट तैयार करने के लिए मचल उठते.

इस लड़की को देखदेख कर ही वे यह भी जान गए हैं कि इस की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है. बहुत खराब भी नहीं होगी, वरना उस के पास इतने रंग के सूट कहां से आते? पर इस ने शादी के बजाय पढ़ाई को तरजीह दी है. इस का मतलब है, इस के मांबाप इस की शादी के लिए पर्याप्त पैसा नहीं जोड़ पाए हैं और लड़की को अच्छा वर मिल जाए, इसलिए किसी अच्छी नौकरी में लगवाने के लिए इस का कैरियर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जरूर इस के मांबाप समझदार लोग हैं वरना इसे यहां अकेली पार्क में पढ़ने क्यों आने देते? वे इस पर शक भी तो कर सकते थे. नजर रखने के लिए यहां किसी न किसी बहाने दसियों बार आ भी तो सकते थे.

वे सोचने लगे, प्रतियोगिता के लिए इस के पास ज्यादा किताबें नहीं हैं. इस की तुलना में उन के लड़के के पास ढेरों किताबें थीं, एक से एक अच्छे लेखकों की देशीविदेशी किताबें. अकसर यह उन्हीं किताबों को ले कर यहां आती है और उन्हें रटती रहती है. घर में या तो कमरे कम हैं या फिर आसपास का माहौल अच्छा नहीं है वरना यह यहां आ कर क्यों पढ़ा करती? हो सकता है पासपड़ोस के लोग ऊंची आवाज में टीवी वगैरा चलाते हों. आजकल के पड़ोसी भी तो अजीब होते हैं, उन्हें दूसरों की तकलीफों से कुछ लेनादेना नहीं होता.

इस पार्क का सब से ज्यादा हराभरा वही कोना है, जहां हर शाम आ कर यह लड़की अपना अड्डा जमा लेती है. इस लड़की के सामने वाली बैंच पर वे भी कब्जा कर लेते हैं. अब हर शाम का यही काम हो गया है, बल्कि जब से पत्नी लड़के के पास चली गई है. वे दफ्तर से आने के बाद एकदम अकेले हो जाते हैं. घर में पड़ेपड़े जी घबराने लगता है. अखबार वे सुबह ही पढ़ डालते हैं. फिर शाम को उसे उठाने का मन नहीं होता.

टैलीविजन के सीरियल उन्हें पसंद नहीं आते. ज्यादातर पारिवारिक तनाव, लड़ाईझगड़े और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा वाले, मनमुटाव भरे, शत्रुता और बिखराव वाले सीरियल होते हैं.

 

फिल्में भी उन्हें पसंद नहीं आतीं. आजकल की हीरोइनें, बाप रे! एक गाने में 50 बार तो पोशाकें बदल जाती हैं और सिवा लटकेझटके, कूल्हे मटकाने व उछलकूद करने के उन्हें आता क्या है?

इन सब से अच्छा तो इस पार्क में आ कर बैठना है. ढलते सूरज का मजा लेना, खुली हवा, खिले हुए फूल, हरी, मखमली घास, पार्क के कोने में चहकते, गेंद खेलते बच्चे. उधर बैठी बतियाती महिलाएं. उस तरफ बैठे ताश खेलते लड़के. यहां आ कर उन्हें लगता है, जीवन  अभी खत्म नहीं हुआ है. अभी बहुतकुछ बचा है जिंदगी में जिसे नए सिरे से संजोया जा सकता है, जिसे नए सिरे से जीया जा सकता है.

हालांकि जैसेजैसे रिटायर होने का समय नजदीक आ रहा है, वे परेशान होते जा रहे हैं. उन्हें लगता है, जिंदगी की रेत उन की मुट्ठी से झर कर खत्म होने जा रही है. बस, चंद जर्रे और बचे हैं उन की बंद मुट्ठी में, फिर खाली…रीती…

फिर क्या होगा? यह सवाल अब हर वक्त उन के दिलोदिमाग पर हावी रहता है. वे तय नहीं कर पा रहे. हालांकि लड़का कहता है, ‘पिताजी, बहुत हो गया काम. अब तो आप रिटायर होने के बाद घर पर आराम करिए, सुबहशाम टहलिए. अपनी सेहत का खयाल रखिए.’ लेकिन फिर भी भविष्य को ले कर वे चिंतित हैं.

छोटे बच्चे अचानक गेंद ले कर पार्क के उस हिस्से में आ गए जिस में वह लड़की पढ़ रही थी. लड़की के माथे पर बल पड़ने लगे. वह परेशान हो उठी. उस की परेशानी वे सह न सके. बैंच से उठे और गेंद खेलते बच्चों के कप्तान के पास पहुंचे, ‘‘बेटे, यहां ये दीदी पढ़ती हैं तुम्हारी…इन की परीक्षा नजदीक है. इन्हें पढ़ने दो यहां. तुम्हें अपनी जगह खेलना चाहिए.’’

‘‘कैसे खेलें दादाजी?’’ कप्तान ने परेशान हो कर कहा, ‘‘हमारी जगह पर दूसरे लड़कों ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया है. आप उन्हें रोकिए, हमारी जगह न खेलें.’’

बात जायज थी. पर क्रिकेट खेलने वाले लड़के शक्ल से ही उन्हें उद्दंड लगे. उन से उलझना उन्हें ठीक न लगा. इसलिए उन बच्चों को ले कर वे दूसरे कोने में पहुंचे. वहां ताश खेलने वाला दल बैठा था. वे सचमुच चिंतित हुए कि बच्चे कहां खेलें? आखिरकार उन्होंने फैसला किया, ‘‘तुम लोग उस पानी की टंकी के पास वाले मैदान में खेलो, वहां कोई नहीं आता.’’

बच्चे मान गए तो उन्हें सचमुच खुशी हुई. अनजाने ही या जानबूझ कर उस लड़की को परेशान करने की नीयत से ताश खेलने वाले लड़कों का वह दल एक दिन उस लड़की वाले कोने में आ जमा. लड़की आई और परेशान सी पार्क में अपने लिए कोई सुरक्षित कोना देखने लगी पर उसे कोई उपयुक्त जगह न दिखी. चिंतित, खिन्न, उद्विग्न वह उन के नजदीक बैंच के एक सिरे की तरफ आ खड़ी हुई.

‘‘कहो तो इन उद्दंड लड़कों से तुम्हारा कोना खाली करने को कहूं?’’ उन्होंने उस लड़की के परेशान चेहरे की तरफ एक पल को ताका.

‘‘रहने दीजिए. आप जैसे भले आदमी का अपमान कर देंगे तो हमें अच्छा नहीं लगेगा,’’ लड़की के स्वर के अपनेपन ने उन की रगों में एक झनझनाहट पैदा कर दी. ‘कितना मधुर स्वर है इस का,’ उन्होंने सोचा.

कुछ सोच कर वे बैंच से उठे. लड़कों के नजदीक पहुंचे. एक लड़के की बगल में जा कर बैठ गए. कुछ देर चुपचाप उन का खेल देखते रहे. वह लड़का बीचबीच में बैंच के पास खड़ी लड़की को देखे जा रहा था. मन ही मन शायद मुसकरा भी रहा था. उन्हें ऐसा ही लगा.

‘‘आप लोग तो शरीफ और पढ़ेलिखे लड़के हैं,’’ उन्होंने कहना शुरू किया.

‘‘इसीलिए बेकार हैं. घर में रहें तो मांबाप को खटकते हैं. यहां किसी को खटकते नहीं हैं, इसलिए ताश जमाते हैं,’’ वह लड़का बोला.

‘‘जिंदगी के ये खूबसूरत दिन आप लोग यों बेकार बैठ कर जाया  कर रहे हैं. आप लोगों को नहीं लगता कि इन दिनों का कोई इस से बेहतर उपयोग हो सकता था?’’ वे बोले.

‘‘जिंदगी खूबसूरत होती है खूबसूरत लड़की से, जनाब,’’ एक मुंहफट लड़का बोला, ‘‘और खूबसूरत लड़की मिलती है अच्छी नौकरी वालों को या आरक्षण वालों को. हम लोग न सिफारिश वाले हैं और न आरक्षण वाले, इसलिए यहां बैठ कर ताश खेलते हुए जिंदगी को जाया कर रहे हैं. अब बताइए आप?’’

‘‘इस उम्र में आप लोगों को इस तरह जिंदगी की लड़ाई से हार मान कर अपने हथियार नहीं डाल देने चाहिए. मेरा खयाल है, आप लोग वक्त जाया न कर के अपने रुके हुए कैरियर को कोई और मोड़ देने का प्रयास करिए. न कुछ करने से, कुछ करना हमेशा बेहतर होता है. अगर आप चाहें तो मैं आप लोगों की इस मामले में मदद करने को तैयार हूं.’’

उन की बात सुनते ही ताश खेलती उंगलियां एकदम थम गईं, सब के चेहरे उन की तरफ उन्मुख हो गए. वे सब उसी तरह शांत बने रहे, ‘‘मैं उस सामने वाले मकान में ऊपर वाले हिस्से में रहता हूं. अपनी डिगरियां और प्रमाणपत्र ले कर आएं किसी दिन, शायद मैं आप लोगों को कुछ सुझा सकूं.’’

‘‘जी, धन्यवाद, दादाजी,’’ कह कर वे सब लड़के वहां से उठ कर चले गए.

‘‘आप तो सचमुच जादूगर हैं,’’ वह लड़की पार्क के अपने उस कोने में आ कर उन के निकट ही घास पर किताबें लिए बैठ गई. उस ने उस दिन जामुनी रंग का सूट पहन रखा था और उस पर सफेद रंग की चुन्नी.

वह अपलक उस के चेहरे को ताकते रहे. उन का मन हुआ, उस से कह दें, ‘इस तरह हंसती हुई तुम कितनी अच्छी लगती हो. क्या नाम है तुम्हारा? कहां रहती हो? किस की बेटी हो? और कौनकौन हैं तुम्हारे घर में?’ पर वे कुछ न बोले, सिर्फ मुसकराते रहे.

‘‘गेंद खेलने वाले बच्चों को दूसरी जगह पहुंचा दिया और अब इन लड़कों को पता नहीं आप ने कान में क्या कह दिया कि सब गऊ बने हुए यहां से चले गए,’’ लड़की चकित थी.

‘‘मैं ने लड़कों को अपने उस सामने वाले घर को दिखा दिया. कह दिया, वे जिंदगी के ये खूबसूरत दिन यों जाया न करें. जरूरी समझें तो मेरे घर में आएं, मैं ऊपर वाले हिस्से में रहता हूं. शायद उन की मदद कर सकूं.’’

‘‘आप सिर्फ लड़कों की ही मदद करेंगे, मेरी नहीं?’’ पता नहीं क्या सोच कर लड़की मुसकराई, ‘‘अगर मैं किसी दिन आप से सहायता मांगने आऊं तो…?’’

‘‘आइए न किसी दिन. मुझे तो उस दिन का इंतजार रहेगा,’’ हालांकि वे कहना तो यह चाहते थे कि उन्हें तो उस दिन का बेताबी से इंतजार रहेगा. पर लड़की से वे पहली बार बोल रहे थे. सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘नाम नहीं बताना चाहोगी मुझे?’’

‘‘जी, ताना, लोग घर में तन्नू कहते हैं,’’ वह हंसी.

वे उस के हंसते गुलाबी अधरों और संगमरमरी दांतों को अपलक ताकते रहे, ‘कितनी प्यारी लड़की है, न जाने किस का जीवन संवारेगी.’

‘‘ताना, कुछ अजीब सा नाम नहीं लगता तुम्हें?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘हां, है तो अजीब ही. मेरे पिता बहुत अच्छे संगीतकार हैं. घर में हर वक्त रियाज करते रहते हैं. उन से कुछ कह नहीं सकती. पढ़ने में बाधा पड़ती है, इसलिए यहां चली आती हूं. ताना नाम उन्होंने ही दिया है, तान से या लय से मतलब बताते हैं वे इस का. पर मुझे पता चला है, विख्यात संगीतसम्राट तानसेन की महबूबा थी कोई ताना नाम की लड़की. और वह तानसेन से भी ज्यादा अच्छी गायिका थी. पिताजी ने जरूर उसी के नाम पर मेरा नाम रखा होगा, यह सोच कर कि मैं भी उन की तरह संगीत में रुचि लूंगी और अच्छी गायिका बनूंगी. पर मुझे संगीत में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘तुम शायद एमबीए की तैयारी कर रही हो?’’ वे बोले. हालांकि वे कहना तो यह चाहते थे कि आजकल के बच्चे कितने खोजी किस्म के हो गए हैं. बाप ने ताना का जो अर्थ बताया, उस से संतुष्ट नहीं होते. नाम का अर्थ खोजा और पता चला ही लिया कि ताना तानसेन की प्रेमिका थी. कोई बाप अपनी लड़की से यह कैसे कह देता कि उस का नाम उस संगीतसम्राट की महबूबा के नाम पर रखा है.

‘‘जी, आप ने कैसे जाना?’’ वह हंस दी.

 

एकदम निश्छल, भोली, बच्चों जैसे हंसी को वे अपलक ताकते रहे,

‘‘तुम्हारी किताबों से…और मैं यह भी जान गया हूं कि तुम्हें अंगरेजी में खास दिक्कत आ रही है.’’

‘‘जी, बिलकुल ठीक कहा आप ने,’’ वह बोली, ‘‘असल में हमारे घर का माहौल बिलकुल पुराना और परंपरावादी है. मां ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं हैं. शहर में रहते जिंदगी निकल गई, पर बोलती अभी भी अपने गांव की ही भाषा हैं. पिताजी संगीत अध्यापक हैं. वे रागरागिनियों में हर वक्त खोए रहने वाले परंपरा से जुड़े व्यक्ति हैं. उन के लिए गीत, संगीत, लय, तान, तरन्नुम, स्वर, आरोह, अवरोह,  बाप रे बाप, क्याक्या शब्दावली प्रयोग करते हैं. सुनसुन कर ही सिर में दर्द होने लगता है.’’

‘‘मेरा लड़का एमबीए कर चुका है. उस की ढेरों किताबें हमारे घर में पड़ी हैं. आप उन्हें देख लें, अगर मतलब की लगें तो उन्हें ले जाएं,’’ वे संभल कर बोले, ‘‘लड़का अहमदाबाद के प्रसिद्ध मैनेजमैंट संस्थान में चुन लिया गया था. वहां से निकलते ही उसे बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. आजकल बंबई में है.’’

लड़की एकदम उत्सुक हो गई, ‘‘अहमदाबाद के संस्थान में लड़के का चुना जाना वाकई एक उपलब्धि है. उस के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी…यह सब जरूर आप के दिशानिर्देश की वजह से संभव हुआ होगा. हमारे घर में हमें कोई गाइड करने वाला ही नहीं है. अपने मन से पढ़ रही हूं, प्रतियोगिता की तैयारी कर रही हूं. किसी से पूछने का मन नहीं होता. लोग हर लड़की से कोई न कोई लाभ उठाने की सोचने लगते हैं. इसलिए मेरे मातापिता भी पसंद नहीं करते. पर आप तो इसी महल्ले में रहते हैं. आप का घर देख लिया है. किसी दिन आऊंगी, किताबें देखूंगी,’’ उस ने कहा.

वे सोचने लगे, ‘किसी दिन क्यों? आज ही क्यों नहीं चलती?’ पर कुछ बोले नहीं. अच्छा भी है, उन लड़कों के सामने वे उसे अपने घर नहीं लिवा ले जा रहे. पता नहीं वे सब क्या समझें, क्या सोचें?

दूसरे दिन इतवार था. नौकरानी के साथ वे खुद जुटे. सारा घर ठीक से साफ किया. सब चीजें करीने से लगाईं. लड़के की किताबें भी झाड़फूंक कर करीने से अलमारी में लगाईं.

नौकरानी चकित थी, ‘‘कोई आ रहा है क्या, बाबूजी?’’

वे हंस पड़े. कहना तो चाहते थे कि कोई न आ रहा होता तो इस उम्र में इतनी मशक्कत क्यों करते, किसी पागल कुत्ते ने काटा है क्या? पर वे हंस दिए, ‘‘नहीं, कोई नहीं आ रहा. बस, लगा कि घर ठीक होना चाहिए, इसलिए ठीक कर लिया.’’

नौकरानी को विश्वास न हुआ. वह उन के चेहरे को गौर से ताकती रही. फिर मुसकरा दी, ‘‘जरूर आप हम से कुछ छिपा रहे हैं. काई आएगा नहीं तो यह सब क्यों?’’

वे सोचने लगे, ‘अजीब औरत है. बेकार बातों में सिर खपा रही है. इसे इस बात से क्या मतलब? पर दूसरों के मामले में दखल देने की इस की आदत है?’

खाना बना कर जाने में नौकरानी को 2 बज गए. वह बड़बड़ाती रही, ‘‘दसियों घरों का काम निबटाती इतनी देर में. आप ने हमारा सारा वक्त खराब करा दिया.’’

पर वे उस से कुछ बोले नहीं. कौन बेकार इन लोगों के मुंह लगे और अपना मूड खराब करे. खाना खा कर वे कुरतापाजामा पहन, आराम से कुछ पढ़ने का बहाना कर उस का इंतजार करने लगे. लड़़की का इंतजार, जैसे खुशबू के झोंके का इंतजार, जैसे ठंडी फुहार का इंतजार, जैसे संगीत की मधुर स्वर लहरियों की कानों को प्रतीक्षा, जैसे किसी अप्सरा का हवा में उड़ता एहसास, जैसे रंगबिरंगी तितली का फूलों पर बेआवाज उड़ना, जैसे मदमत्त भौंरे का गुनगुनाना, जैसे नदी का किलकारियां भरते हुए बहना, जैसे झरने का…

इसी इंतजार के दौरान घंटी बजने लगी. वे लपक कर पलंग से उठे और दरवाजे की तरफ बढ़े.

ताना ही थी. देख कर वे फूल की तरह खिल गए. लगा, जैसे उन की रगों में फिर वही पुराना वाला, जवानी के दिनों वाला रक्त धमकने लगा है. उन्होंने उस का स्वागत किया. हलके हरे रंग का सूट और उस पर नारंगी रंग की चुन्नी. उन का मन हुआ, उस से कहें, ‘तुम ने हरी या नारंगी बिंदी क्यों नहीं लगाई?’ पर वे प्रकट में बोले, ‘‘आइए.’’

उन्होंने उसे बैठक में बिठाया. ताना ने उड़ती सी नजर सब पर डाली. टीवी पर रखी लड़के की हंसती फोटो पर उस की नजर टिकी रह गई. वह सोफे से उठ कर टीवी के नजदीक पहुंची. फोटो को कुछ पल ताकती रही, फिर मुसकरा दी, ‘‘काफी स्मार्ट है आप का लड़का. क्या नाम है इस का?’’

‘‘सुब्रत,’’ वे भी ताना के समीप आ खड़े हुए, ‘‘सब से पहले बताओ, क्या लोगी, ठंडा या गरम? और गरम, तो चाय या कौफी? वैसे मैं कौफी अच्छी बना लेता हूं.’’

‘‘आप भी कमाल करते हैं,’’ वह बेसाख्ता हंसी, ‘‘आप मेरे लिए कौफी बनाएंगे और मैं बनाने दूंगी आप को? इतना पराया समझा है आप ने मुझे?’’

‘‘पराया क्यों नहीं?’’ वे बोले, ‘‘पहली बार हमारे घर आई हो. हमारी मेहमान हो. और भारतीय कितने भी दुनिया में बदनाम हों, पर मेहमाननवाजी में तो अभी भी वे मशहूर हैं.’’

‘‘इस तरह बोर करेंगे तो चली जाऊंगी, सचमुच,’’ ताना लाड़भरे स्वर में बोली, ‘‘आप हमारे पास बैठिए. आप से आज गपशप करने का मन है. खूब बातें करूंगी. कुछ आप की सुनूंगी, कुछ अपने गम हलके करूंगी. रसोई किधर है? कौफी मैं बनाती हूं.’’

वे उसे अपने साथ रसोई में ले गए. कौफी के साथ ही लौटे. ताना का रसोई में इस तरह काम करना और खुला, बेतकल्लुफ व्यवहार उन्हें बहुत पसंद आया. कौफी पीते हुए वे देर तक तमाम तरह की बातें करते रहे. लड़की उन्हें हर तरह से समझदार लगी. फिर वह उन के लड़के के नोट्स व किताबें देखती रही. अपने मतलब की तमाम किताबें और नोट्स उस ने छांट कर अलग कर लिए और बोली, ‘‘धीरेधीरे इन्हें ले जाऊंगी, उन्हें एतराज तो न होगा?’’

‘‘किन्हें, लड़के को?’’ वे हंसे, ‘‘उसे अब इन से क्या काम पड़ेगा?’’

‘‘कभी बुलाइए न उन्हें यहां. चाचीजी भी शायद अरसे से वहां हैं. आप को भी अकेले तमाम तरह की तकलीफें हो रही होंगी. हमारे पिताजी तो अपने हाथ से पानी का एक गिलास भी उठा कर नहीं पी सकते. पता नहीं आप कैसे इतने दिनों से अकेले इस घर में रह रहे हैं.

‘‘चाचीजी को ले कर वे आएं तो हमें बताइएगा. हम भी उन से मिलना चाहेंगे. शायद उन से कुछ दिशानिर्देश मिल जाए. मैं जल्दी से जल्दी अपने पांवों पर खड़ी होना चाहती हूं. पिताजी की पुरानी, शास्त्रीय संगीत वाली दुनिया से ऊब गई हूं. मैं एक नई दुनिया में रमना चाहती हूं. जिंदगी की ताजा और तेज हवा में उड़ना चाहती हूं. मेरी कुछ मदद करिए न,’’ घर से जाते समय उस ने अनुरोधभरे स्वर में कहा.

‘‘आज इतवार है न. और इस वक्त 5 बजे हैं. चलो, पार्क के पास जो पीसीओ है, वहां चलते हैं. तुम्हें नंबर दूंगा. लड़का इस वक्त घर पर ही होगा. लड़के की मां भी वहीं होगी. फोन कर के दोनों को चौंकाओ. बोलो, चलोगी? मजा आएगा?’’ वे उस की चमकती आंखों में ताकने लगे.

बहुत मजा आया फोन पर. लड़की ने ऐसे चौंकाने वाले अंदाज में लड़के और उस की मां से बातें कीं कि वे खुद चकित रह गए. बाद में उन्होंने दोनों से आग्रह किया कि वे जल्दी यहां आएं.

लड़के की मां ने पूछा, ‘‘कोई खास बात?’’

वे ताना की तरफ देख कर शरारत से हंस दिए, ‘‘खास बात न होती तो दोनों को क्यों बुलाता? हमेशा की तरह वह तुम्हें ट्रेन में बैठा देता और मैं तुम्हें स्टेशन पर उतार लेता… एक बहुत अच्छी लड़की?’’

‘‘यह फोन वाली लड़की?’’

‘‘नहीं, पार्क वाली लड़की,’’ वे बेसाख्ता हंसे. ताना का मुख एकदम सूरजमुखी की तरह खिल कर झुक गया.

‘‘पार्क वाली लड़की? क्या मतलब? कोई लड़की आप को पार्क में पड़ी मिल गई क्या?’’ पत्नी ने चमक कर पूछा.

‘‘पार्क में पड़ी नहीं मिल गई बल्कि फूलों में खिली हुई मिल गई है.’’ ताना उन्हें आंखों ही आंखों में डांट रही थी.

रिसीवर रख जब वे उस के साथ बाहर आए तो वह लजाई हुई बोली, ‘‘सचमुच आप जैसे इंसान भी इस दुनिया में हैं, सहज विश्वास नहीं होता.’’ वे मुसकराए, ‘‘ताना, कल से तुम माथे पर बिंदी जरूर लगाना, हाथों में लाल चूडि़यां और पांवों में सुनहरी बैल्ट वाली सैंडल पहनना.’’ और उस की तरफ ताकते हुए हंसने लगे.

हसबैंड के टूअर पर जाने का इंतजार

अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’ कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया. कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं, सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था. कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ. मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’ मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’ नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं. सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’

‘‘मम्मी प्लीज… मम्मी प्लीज,’’ दोनों बच्चे कहने लगे, ‘‘पापा को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’ सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है. शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई. अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है  कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे. अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य : धर्म की ब्रेनवाशिंग का मौडर्न आर्किटैक्ट

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज ने सोशल मीडिया का उपयोग अपने धार्मिक विचारों को फैलाने के लिए किया है. उन के विवादित व ऊटपटांग बयानों ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी है, सोशल मीडिया पर मीम बनाए जा रहे हैं पर चिंता वाली बात उन के धार्मिक प्रवचन हैं जो युवाओं को प्रभावित और भ्रमित कर रहे हैं.

डिजिटल एरा में कोई भी अपने विचार दुनियाभर में फैला सकता है. सोशल मीडिया ने सभी को आसान मंच दे दिया है. अब इस का इस्तेमाल कैसे करना है यह निर्भर उसी पर करता है जो इस का इस्तेमाल कर रहा है. कुछ लोग इस का बेहतर इस्तेमाल करते हैं मगर अधिकतर के लिए यह दस्तबिन बन गया है, जहां अपना सारा कचरा त्यागा जा रहा है.
बात यहां अनिरुद्धाचार्य महाराज की, जिन के ‘मेरे चरणों में आप का कोटिकोटि प्रणाम’ और ‘बिस्किट का मतलब विष की किट’ जैसे मीम सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं. अनिरुद्धाचार्य महाराज भी उसी श्रेणी में आते हैं जो विज्ञान जनित टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर धर्म का प्रचारप्रसार करने में जुटे हैं. कथावाचकों की कैटगरी में अनिरुद्धाचार्य महाराज का बड़ा नाम है और हालफिलहाल वे अपनी ऊटपटांग बातों से चर्चाओं में भी हैं.

सोशल मीडिया पर एक्टिव
यूट्यूब को इन का दूसरा गढ़ माना जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि ये भारत में इकलौते कथावाचक हैं जिन के 1 करोड़ 40 लाख से ऊपर सब्सक्राइबर्स हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो इन्हें कथावाचकों का ध्रुव राठी कहा जा सकता है. इन का प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ के नाम से है. इस के अलावा ‘गौरी गोपाल आश्रम’, ग्रौरी गोपाल टीवी’, ‘अनिरुद्धाचार्य शोर्ट्स’ भी इन्हीं के चैनल हैं. खुद ही अपने नाम के पीछे ‘जी’ और आगे ‘श्री’ लगाना संतों, कथावाचकों, बाबाओं के बीच आम प्रचलन है तो इन्होने भी लगाया हुआ है. इन के प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ में 7 हजार से ज्यादा वीडियोज डाले गए हैं और प्रोफाइल भक्तिमयी दिखाई देती है.
अनिरुद्धाचार्य का जन्म 27 सितंबर 1989 को मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के रेवझ गांव में हुआ था. उन का शुरूआती जीवन एक साधारण परिवेश में बीता, जहां उन्होंने धार्मिक ग्रंथों और वेद-पुराणों का अध्ययन किया. उन्होंने वृंदावन में रामानुजाचार्य संप्रदाय से आने वाले संत गिरिराज शास्त्री से दीक्षा प्राप्त की. आज वे कथावाचकों की टोली के सरदार हैं.
अपने यूट्यूब प्रोफाइल में ये लिखते हैं, “सनातन धर्म की ध्वजा को ले कर पूरे विश्व में लाखोंकरोड़ों लोगों को गौरी गोपाल भगवान की भक्ति और अपनी अमृतमयी वाणी से सेवा, संस्कृति और संस्कारों से जोड़ कर लोगों का जीवन बदलने वाले श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के आधिकारिक यूट्यूब चैनल में आप का स्वागत है.”
अब ये कैसे लोगों का जीवन बदलने की बात करते हैं इसे आगे समझेंगे. ये उसी प्रोफाइल में लिखते हैं, “आइए हम भी इस परिवार का हिस्सा बन कर सनातन धर्म को और उच्च शिखर तक पहुंचाने में पूज्य महाराज जी की मदद करें.”
अपने इस चैनल में अनिरुद्धाचार्य सनातन धर्म की शिक्षाएं देते हैं, लेकिन इन की वीडियोज के कंटेंट देखें तो यह पारिवारिक, दांपत्य, युवाओं, खासकर युवतियों के जीवन पर सेंट्रिक रहती हैं. प्रवचन के दौरान इन के कई कमेंट्स विवादों में घिरे हैं और सोशल मीडिया पर मीम मैटिरियल भी बने हैं.

महिलाओं पर टीकाटिप्पणी
ये सत्संग लगाते हैं. हजारों की भीड़ इन के सत्संग में आती है. महाराज के सत्संग के लिए बड़ा सा रंगबिरंगी स्टेज सजा रहता है. वे अपने माथे पर हमेशा चंदन लगा कर रखते हैं. गले में ढेर सारी मालाएं होती हैं और उन के कपड़ों की तरह ही उन का सिंहासन भी चमचमाता है.
इन के सत्संग हाथरस के ‘भोले बाबा’ जैसे मिसमैनेज नहीं होते. स्टेज और लोगों में दूरी होती है तो भगदड़ जैसी नोबत की गुंजाइश कम होती है. एक तरह से माने तो ये खातेपीते और पढ़ेलिखे अंधभक्तों के कथावाचक हैं. यह जाहिर भी करता है कि अंधविश्वासी होने के लिए किसी का अनपढ़ होना जरुरी नहीं. अनिरुद्धाचार्य महाराज के पास अकूत पैसा है तो लोगों के बैठनेबिठाने की जगह ठीकठाक हो जाती है. लोगों में अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. अनिरुद्धाचार्य उन्हीं महिलाएं पर उलजलूल टीकाटिप्पणी करते हैं, फिर भी बड़ी संख्या में वे भक्त बनी हुई हैं.
वे अपने सत्संगों के माध्यम से महिलाओं को पतिव्रता होने का धार्मिक पाठ पढ़ाते हैं. 2 महीने अफ्ले अपलोड की अपनी एक वीडियो ‘पति के साथ एक थाली में खाना खाने वाली स्त्रियां’ में वे कहते हैं, “जो पत्नी अपने पति के खाना खाने के बाद ही खाना ग्रहण करती हैं वही पतिव्रता स्त्रियां हैं.” इस वीडियो में वह हिदायत देते हैं कि अगर पति कभी बाहर हो तो उन की एब्सेंस में पत्नियां पहले गाय को खाना खिलाएं फिर खाना खाएं. इस से दोष ख़त्म हो जाता है.”
हैरानी तो यह कि वह इस का साइंटिफिक कहते हैं और तर्क देते हैं कि, “जैसे गर्भवती स्त्री खाए तो उस के बच्चे में पेट में अपनेआप चले जाता है ऐसे ही गाय को खिलाने से पति के पेट में अपनेआप चले जाता है.”
वे अपने एक और वीडियो, “गृहस्थ में पति के साथ संभोग करने से भक्ति पर असर’ पर कहते हैं, “एक महिला मेरे पास आई और कहने लगी कि हमारा मन भगवान् में लग गया है पर मगर मेरे पति का मन नहीं लगा है. वे हमारे पास आते हैं और प्रेम का इजहार करते हैं. हमें तो सारी वासना से मन हट गया है. हमारे पति अभी ब्रह्मचारी नहीं बन पाए. हमारे पति जब हमारे पास काम भाव ले कर आते हैं तो असंतुष्टि होने लगती है.”
अनिरुद्धाचार्य महाराज उस महिला को एक पत्नी का फर्ज समझाते हैं और पति से सहयोग करने को कहते हैं. अब ये अजीब विडंबना है कि एक तो उसे धर्मकर्म में फंसा कर ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ा दिया और अब उसे बेमन पति से सम्भोग करने को कहा जा रहा है. एक अन्य वीडियो ‘दिन में संभोग करने वाले स्त्रीपुरुषों की कैसी होती है संतान’ में अनिरुद्धाचार्य महाराज बताते हैं कि, “शास्त्ररोक्त बात कह रहा हूं यदि कोई स्त्री दिन में गर्भवती (गर्भ स्थापित) हो गई तो लिख लो जो स्त्री दिन में गर्भवती हुई है उस का बच्चा मांबाप और समाज को बहुत बड़ी हानि पहुंचाएगा.” वे आगे कहते हैं, “शाम के समय अगर स्त्री गर्भवती हो गई तो वह नालायक ही होगी.” अनिरुद्धाचार्य महाराज के कहे अनुसार संभोग रात में ही करना चाहिए और दिन और शाम को करने से बच्चे नालायक पैदा होते हैं.
इन कथावाचक का महिलाओं पर कुतर्की कमेन्ट करने का एक लंबा इतिहास है. वे महिला को पतिव्रता नारी की पहचान के बारे में बताते हैं. वे अपने प्रवचन में यह भी बताते हैं कि, “सुंदर होना स्त्री का दोष है,” और “बेटियां फिल्में देखने जाती हैं इसलिए उन के 35 टुकड़े होते हैं.”
वे अपने एक और वीडियो, ‘लड़की का विवाह कहां कराना चाहिए’ में कहते हैं, “पति की सेवा करना नारी का परमधरम है. चाहे पति कैसा भी हो, अंधा हो, लंगड़ा हो, काना हो. अच्छा हो चाहे बुरा हो. किसी के पति बुरे भी हैं. कोई बात नहीं, शादी के पहले छानबीन कर लेनी थी. अब जैसा है सो तुम्हारा है. जुवारी, भंगेड़ी, गंजेड़ी, चरित्र का खोटा यह सब शादी से पहले देख लो. शादी के बाद तो भगवान मान कर सेवा करो.” हैरानी यह कि यह सुनने वालों में अधिकतर भीड़ महिलाओं की है, साथ में उन की किशोर लड़कियां होती हैं. यही नहीं वे हर दूसरे प्रवचन में पत्नी का पति के लिए कर्तव्य की बातें करते हैं.

गुमराह करने वाली बातें
वे अपने एक वीडियोज में बताते हैं कि अमीर होना अच्छा नहीं और दूसरी वीडियो में बताते हैं कि दीवाली में ऐसे उपाय करने से बरसेगी धनवर्षा, किसी और वीडियो में वे बिल गेट्स की तरह बनने के टिप्स दे देते हैं. वे ब्राह्मणों को श्रेष्ट बताते हैं. वे अपने एक सत्संग में बताते हैं, “तुलसीदास जी ने पहला प्रणाम ब्राह्मणों को किया. ब्राह्मणों को प्रणाम करना चाहिए. क्योंकि ब्राह्मण अन्य लोगों की अपेक्षा तपस्वी और त्यागी होते हैं. नित्य नियम से रहता है. ब्राहमण होना सरल नहीं है.” वे इस वीडियो में सुदामा, चाणक्य जैसे ब्राह्मणों का उदाहरण देते हैं. लेकिन वे ये नहीं बताते कि अतीत में ब्राह्मणों ने कैसे अपने लालच और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए जातिप्रथा को पोषित किया.
वे अपने एक अन्य वीडियो ‘ब्राह्मणों के योगदान’ की बात करते हैं. अब कोई उन्हें बताए कि जब नियमकानून बनाने की सारी व्यवथा उन्हीं के हाथ में थी तो योगदान भी तो उन्हीं के दिखाई देंगे. अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयान और उन के विचारों का प्रसार केवल हास्यास्पद या विवादित नहीं है, बल्कि यह युवाओं के दिमागों को गुमराह करने का एक गंभीर प्रयास भी है. उन के बयानों का युवाओं पर प्रभाव पड़ता है.
वे आधुनिकता पर हमला करते हैं. कहते हैं, “आज की शिक्षा ने युवाओं को जानवर बना दिया है. आजकल के पढ़े लिखे लोग, आधुनिक कल्चर के नाम पर लिव-इन में रह रहे हैं, किसी के भी साथ रह रहे हैं, यह जानवरों का कल्चर है. हमारे देश में कुत्तेबिल्ली लिवइन में रह रहे हैं. हमारा हिंदू संस्कृति ऐसी नहीं है. जो लड़की आज इस के साथ, कल उस के साथ, वो लड़की लड़की रही नहीं बल्कि वैश्या हो गई.” अनिरुद्धाचार्य महाराज विधवा होने से बचने का उपाय भी बताते हैं, जिस में पति की सेवा, व्रत उपवास की बातें ही मुख्य हैं. वे असली पति भगवान को बताते हैं.

कई लोगों को इस तरह की बातें मजाकिया लग सकती हैं पर अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयानों का प्रभाव युवाओं की मानसिकता पर गहरा हो रहा है. उन के भक्त अकसर उन के बयानों को बिना सोचेसमझे मानते हैं, जिस से उन की सोच प्रभावित होती है. पंडाल में बहुत से युवा भी दिखते हैं जिस में ज्यादातर लड़कियां होती हैं. उन्हीं लड़कियों पर अनिरुद्धाचार्य महाराज कमेन्ट करते हैं, और उन के मातापिता खड़ेखड़े मुसकरा रहे होते हैं.
छोटे शहरों के युवा भी अपनी परेशानियों का हल इन्हीं जैसे कथावाचकों के पास ले कर जा रहे हैं, और ये कथावाचक कथा में आने की मोटी फीस तो वसूलते ही हैं साथ में दान चंदा भी खूब बटोरते हैं. ‘दीपावली’ नाम की वेबसाइट के अनुसार अनिरुद्धाचार्य एक कथा के लिए करीब 7,00,000 से 10,00,000 तक फीस लेते हैं. यानी अनिरुद्धचार्य की भागवत कथा सुनाने की प्रतिदिन फीस्ट लगभग 1-3 लाख रुपए है और कथा कुल 8-10 दिनों तक चलती है. बताया जाता है कि यह पैसा सामाजिक सेवा में लगता है, लेकिन इस का क्या हिसाबकिताब है ये तो वही जानें.

अगर अनिरुद्धाचार्य महाराज की नेट वर्थ की बात करें तो उन की कुल संपत्ति करीब 25 करोड़ रुपए के आसपास बताई जाती है. अब यह संपत्ति कैसे अर्जित की गई, कितना दानपिंड लपेटा गया, समाज सेवा के नाम पर कितनों का फर्जीवाड़ा चल रहा है यह बातें तो तभी निकलती हैं जब ऐसे बाबा लोग विवादों में घिरते हैं.
आज लोग घरों में बैठेबैठे इन जैसे कथावाचकों के प्रवचन यूट्यूब से सुनते हैं. इस में पैसा नहीं लगता लेकिन समय और दिमाग दोनों ख़राब होते हैं. सोशल मीडिया के दौर में अनिरुद्धाचार्य अपनी कुतर्की बातों का प्रचारप्रसार कर रहे हैं. 21वीं सदी में यदि अनिरुद्धाचार्य महाराज के करोड़ से अधिक फौलोवर्स हैं तो समझ जाइए देश किस तरफ बढ़ रहा है.

डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली : चुनाव में वायलेंस का पुराना है इतिहास

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमला हुआ है. अमेरिका में चुनाव के दौरान वायलेंस का पुराना इतिहास है, जानिए.

अमेरिका में एक ऐसी सनसनीखेज घटना घटित हुई है जो दुनिया भर में चर्चा का विषय है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर गोली का चलना और गोली चलाने वाले की सुरक्षा कर्मियों द्वारा उसे मौत के घाट पहुंचाना. यह सब कुछ ऐसे घटित हुआ जैसे किसी फिल्म या ड्रामे का दृश्य. आप को हम बताते चलें कि डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल के समय में चर्चा में रहते थे मगर यह चर्चा नकारात्मक ज्यादा होती थी. और जब चुनाव हुए थे तो जो बाइडेन राष्ट्रपति निर्वाचित जब हुए और डोनाल्ड ट्रंप हारते हुए दिखाई दिए तो डोनाल्ड ट्रंप इसे स्वीकार नहीं कर सके और अपने लावा लशकर के साथ आपा खो बैठे. यह दृश्य सारी दुनिया ने टीवी पर देखे और यह सब इतिहास में दर्ज है.

यह भी तथ्य है कि उन पर कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं जिस में वह लगातार दोषी पाए जाते रहे हैं. मगर अमेरिका में जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है उस के साए में वे अभी भी राष्ट्रपति दावेदार हैं और जो घटनाक्रम हुआ है उस के बाद उन की लोकप्रियता बढ़ने की संभावना दिखाई देती है. आमतौर पर यह माना जाता है कि जो हमले का शिकार होता है वह लोगों की संवेदना का पात्र बन जाता है और वह चुनाव जीत जाता है. दुनियाभर का यही इतिहास है. मगर जो डोनाल्ड ट्रंम्प का व्यवहार है, प्रदर्शन है उन की प्रकृति है वह इस घटनाक्रम के बाद भी बदल नहीं सकते. दरअसल, अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप पर हुए जानलेवा हमले से पहले भी अमेरिका में राष्ट्रपतियों, पूर्व राष्ट्रपतियों और प्रमुख दलों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को निशाना बनाने की कई घटनाएं हो चुकी हैं.

वर्ष 1776 से देश के राजनीतिक इतिहास में हत्या और हत्या के प्रयासों की कुछ ऐसी ही घटनाएं इस प्रकार हैं:
अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे, जिन की जान वाइक्स बूथ ने 14 अप्रैल 1865 की गोली मार कर हत्या कर दी थी. घटना के दौरान वह अपनी पत्नी मेरी टाड लिंकन के साथ वाशिंगटन के फोर्ड थियेटर में ‘अवर अमेरिकन कजिन’ नाटक देख रहे थे.

अमेरिका के 20 वें राष्ट्रपति जेम्स गारफील्ड देश के दूसरे राष्ट्रपति थे जिन की कार्यभार संभालने के 6 महीने बाद हत्या कर दी गई थी. वह दो जुलाई 1881 को वाशिंगटन में एक ट्रेन स्टेशन की ओर जा रहे थे तभी चार्ल्स गितेऊ ने उन्हें गोली मार दी थी. गितेऊ को जून 1882 में दोषी ठहराया गया और मृत्युदंड दिया गया.

अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैकिनले को 6 सितंबर 1901 में न्यूयौर्क के बफेलो में तब गोली मारी गई थी जब वह भाषण देने के बाद लोगों से हाथ मिला रहे थे. एक व्यक्ति ने नजदीक से उन की छाती में दो गोली मारी. मैकिनले की 14 सितंबर 1901 में मौत हो गई थी.

अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डीरूजवेल्ट ने मियामी में एक खुली कार से भाषण दिया ही था कि तभी गोलियां चलने लगीं. फरवरी 1933 में हुई इस घटना में रूजवेल्ट घायल नहीं हुए लेकिन इस में शिकागो के महापौर एंटन कर्मांक की जान चली गई थी.

अमेरिका के 33 वें राष्ट्रपति हैरी एस टुमैन नवंबर 1950 में वाशिंगटन के ब्लेयर हाउस में थे तभी दो बंदूकधारी उसमें घुस गए थे. बंदूकधारियों के साथ गोलीबारी में टुमैन तो बच गए थे लेकिन वाइट हाउस का एक पुलिसकर्मी और एक हमलावर मारा गया था.

अमेरिका के 35 वें राष्ट्रपति जान एफ केनेडी नवंबर 1963 में जब प्रथम महिला जैकलीन केनेडी के साथ डलास गए थे तो एक बंदूकधारी ने घात लगा कर उन पर हमला कर दिया था और उन की मृत्यु हो गई.

अमेरिका के 38 वें राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड पर 1975 में कुछ ही हफ्तों के भीतर दो जानलेवा हमले किए गए थे और वह दोनों घटना में बच गए‌ थे. अमेरिका के 40 वें राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन मार्च 1981 में वाशिंगटन में भाषण दे कर निकल रहे थे तभी भीड़ में शामिल जान हिंकले जूनियर ने उन्हें गोली मारी. वह बच गए‌.

अमेरिका के 43 वें राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश 2005 में जार्जिया के राष्ट्रपति मिखाइल साकाश्विली के साथ एक रैली में भाग ले रहे थे तभी उन की और एक हथगोला फेंका गया. हथगोला फटा नहीं था और कोई भी हताहत नहीं हुआ. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी थियोडोर रूजवेल्ट को 1912 में मिलवाकी में प्रचार के दौरान गोली मारी गई थी.

उन्हें इस हमले में कोई गंभीर चोट नहीं आई थी. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी राबर्ट एफ केनेडी डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने की दौड़ में शामिल थे तभी 1968 में लास एंजिलिस में उन की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जार्ज सी वालेस डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल थे तभी 1972 में मैरीलैंड में एक प्रचार अभियान के दौरान उन्हें गोली मारी गई थी. इस घटना के कारण उन्हें कमर के निचले हिस्से में लकवा मार गया था.

अब हम बात करते हैं डोनाल्ड ट्रंप की, जिस ने भी गोली चलवाई या चलाई इस का उद्देश्य क्या हो सकता है? और क्या डोनाल्ड ट्रंप इतने लोकप्रिय हैं या फिर अलोकप्रिय हैं कि उन पर गोली चलाई गई है? यह विचारणीय सवाल है. उन के राष्ट्रपति बनने से अमेरिका किस दिशा में जाएगा और दुनिया भर में क्या असर होगा यह भी आज चिंतन का विषय बन गया है.

बाबाओं और चमत्कार का चक्कर कहीं खाली न कर दे तिजोरी

हाल ही में दिल्ली के आदर्श नगर की महिला को कष्ट हरने और मनोकामना पूरी करने का भरोसा दे कर दो बाबाओं ने लूट लिया. ये दो ‘फूंक मार’ बाबा थे जिन्होंने माल डबल करने के बहाने नीलम नाम की इस महिला से गहने मंगाए और सब ले कर फरार हो गए.

 

नीलम का पति फ्रूट शौप चलाता है. वह अपने पति को खाना दे कर दोपहर 3 बजे घर लौट रही थी. तभी गली में दो लोग मिले जिन्होंने तांत्रिकों जैसे कपड़े पहने थे. वे नीलम को रोक कहने लगे कि उन पर हनुमानजी की कृपा रहती है. इसलिए मंत्र फूंक कर किसी की भी मनोकामना पूरी कर देते हैं. दोनों ने नीलम से पूछा कि इन दिनों परिवार में पैसों की तंगी बनी रहती है. नीलम के हामी भरते ही दोनों ने उसे मंदिर चलने को कहा ताकि मंदिर में पूजा अनुष्ठान कर के सारे कष्ट हमेशा के लिए खत्म कर दें. नीलम उन की बातों में आ गई और दोनों के साथ पैदल शनि मंदिर पहुंची.

फिर पास के पार्क में बैठ कर दोनों ने पहले कुछ मंत्र फूंके. फिर उस की सोने की बालियां ले लीं. साथ ही मोबाइल भी रख लिया. दोनों बाबाओं ने कहा कि घर में जो भी सोने की जूलरी और कैश है वह ले आओ. उस पर फूंक मार कर जूलरी और कैश को डबल करने का दावा किया. महिला दोनों बाबाओं पर भरोसा कर के अपने घर पहुंची और एक जोड़ी चांदी की पायल, सोने का मंगलसूत्र, सोने का लौकेट और 20 हजार कैश ले कर आ गई. फिर यह सब तिकोना पार्क में उन दोनों बाबाओं को दे दिया. दोनों ने पूरे सामान में फूंक मारी. मंत्र पढ़े फिर राख जैसी चीज मुट्ठी में देकर कहा कि चौराहे पर जा कर अपने सिर से घुमाकर पीछे की और फेंक देना. रास्ते में पीछे मुड़ कर मत देखना. नीलम ने वैसा ही किया. फिर लौट कर वापस पहुंची तो वो दोनों बाबा गायब मिले.

चमत्कार की ख्वाहिश और विज्ञान की हकीकत

दरअसल हम हमेशा ही चमत्कार की तलाश में रहते हैं. हम चाहते हैं हमें बिन मेहनत कहीं से अचानक बहुत सारी दौलत मिल जाए. हमें एकदम से कोई हैंडसम या खूबसूरत पार्टनर मिल जाए. हमारी सब समस्याएं एकदम से खत्म हो जाएं. हम सो कर उठें और हमारी उम्र 10 साल पीछे चली जाए. हम बिल्कुल स्वस्थ हो जाएं. हमारी लौटरी निकल जाए या फिर हमें कोई गढ़ा हुआ धन या खजाना मिल जाए. कहने का मतलब यह कि हम अपने जीवन में सदैव कुछ चमत्कार की ख्वाहिश रखते हैं. इस के लिए हम दूसरों का मुंह ताकते हैं. हमें लगता है कोई चमत्कारी शख्स ही हमारे लिए इस तरह का कोई चमत्कार कर सकता है. ऐसे में अगर कोई फरेबी बाबा, फ़कीर या गुरु हमें इस बात का आश्वासन देता है तो हम एकदम से उस के कहे अनुसार काम करने लगते हैं ताकि वह हमारे लिए तुरंत कोई चमत्कार कर दे.

हमारे धर्म ग्रन्थ, धार्मिक पुस्तकें, धार्मिक रीतिरिवाज से जुड़ी कहानियां और मुल्ला, पादरी, पंडेपुजारी सब हमें चमत्कार की कहानियां सूना कर अपना अंधभक्त बनाने की कोशिश में रहते हैं. आप कोई भी धार्मिक किताब उठा कर पढ़ो उस में कितनी ही चमत्कार की कहानियां मिल जाएंगी. कृष्ण ने बचपन में ही कितने सारे चमत्कार कर डाले थे तो हनुमान भी चमत्कारों में कम नहीं थे. रीतिरिवाजों से जुड़ी कहानियां भले ही वह सावित्री की हों या प्रह्लाद की, तीज की हो या करवा चौथ की चमत्कार हर जगह मिल जाएगा.

हमारे यहां चमत्कार की बहुत सी घटनाओं को धार्मिक रूप से महिमा मंडित किया जाता रहा है. मगर वे घटनाएं वैज्ञानिक धरातल पर महज विज्ञान की सामान्य घटनाएं पाई गईं. याद कीजिए 21 सितंबर 1995 का दिन जब दुनिया का सब से महान धार्मिक चमत्कार घटित होने की अफवाह उड़ी थी. दुनियाभर की मूर्तियों ने दूध पीना शुरु कर दिया था. इस के बाद यही घटना दोबारा 2006 में घटी. भारत के सभी न्यूज़ चैनलों सहित बीबीसी, सीएनएन, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयौर्क टाइम्स, डेली एक्सप्रेस आदि दुनियाभर के अखबारों और चैनलों ने इस को कवरेज दिया था.

तर्कवादी लोग चमत्कार होने की बातों का पुरजोर विरोध करते हैं क्योंकि अधिकतर कथित चमत्कारों का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार होता ही है. इस अफवाह का ही मामला लीजिए. तब हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों के बाहर कतारें लगा कर भगवान को दूध पिलाने पहुंच गए थे. अंत में यह भौतिकी का एक सामान्य सा नियम निकला और हमें पता लग गया था कि एक चम्मच से दूध कैसे गायब हो जाता है और गुरुत्व बल के कारण कैसे वह धरती की ओर चला जाता है.

ऐसी मान्यता है कि रामसेतु बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वे पत्थर राम नाम लिखा होने की वजह से पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे. कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इस के पीछे जो तर्क देता है वह बिल्कुल विपरीत है.

दरअसल कुछ ऐसे पत्थर होते हैं जिस में कई सारे छिद्र होते हैं. छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पौजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इन का वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है. इस खास पत्थर के छिद्रों में हवा भरी रहती है. यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है.

एक और सब से आम चमत्कार है एक नारियल पर पानी छिड़क कर किसी के शरीर से भूत निकालना. आम तौर पर कथित चमत्कार करने वाले व्यक्ति ने नारियल के रेशों में सोडियम का टुकड़ा छिपाया होता है. जब उस पर पानी छिड़का जाता है तो सोडियम आग पकड़ लेता है और उस से धुंआ उठने लगता है. लोगों यह सोच कर मूर्ख बन जाते हैं कि भूत को पीड़ित के शरीर से निकाल दिया गया है. वास्तव में यह और कुछ नहीं बल्कि पानी और सोडियम की ऊष्मा पैदा करने वाली अभिक्रिया है जिसे भूत निकाले जाने का नाम दे दिया जाता है.

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिस में एक शख्स बता रहा था कि गंगाजी के पानी में इतना चमत्कार है कि छलनी से पानी नहीं गिरेगा. वीडियो में वह शख्स एक गिलास में पानी भर कर उसे छलनी पर रख कर उल्टा कर देता है लेकिन गिलास का पानी एक बूंद भी नहीं गिरा.

दरअसल इस में कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान है. इसे आप भी घर पर ट्राय कर सकते हैं. वैसे तो छलनी में पानी नहीं रुकता है लेकिन विज्ञान की एक तकनीक का इस्तेमाल कर आप छलनी से पानी गिरने से रोक सकते हैं. इसे पृष्ठ तनाव कहते हैं. जब आप सावधानी से छलनी पर रखे गिलास को उल्टा करते हैं तो एक परत बन जाती है जो पानी को गिरने से रोकती है. इस वीडियो को देखने के बाद एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा कि यह चमत्कार तो है लेकिन विज्ञान का. एक ने लिखा कि इसी तरह विज्ञान दिखा कर चमत्कार बताते रहो हम विश्व गुरु बन जाएंगे. वीडियो को सोशल मैसेज नाम के फेसबुक पेज से शेयर किया गया था. इस वीडियो को कुछ ही दिनों में 20-25 मिलियन से अधिक लोगों ने देखा. हैरानी की बात यह कि अधिकतर लोग इसे चमत्कार मानने लगे.

देखा जाए तो भारत के संविधान का अनुच्छेद 51 ए (एच) ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीयता और जांच एवं सुधार की भावना का विकास’ करने पर जोर देता है. यहीं इन कथित चमत्कारों और आधुनिक विज्ञान की समझ के बीच टकराव पैदा होता है. लेकिन भारत एक ऐसी जटिल सभ्यता है जहां आस्था, विज्ञान, धर्म और अंधविश्वास सब साथ साथ रहते हैं.

भारत रत्न से सम्मानित किए गए देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रोफैसर सीएनआर राव से एक सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, ‘मैं चमत्कारों में यकीन नहीं रखता. मैं एक बात आप को बता देना चाहता हूं कि भारत में धर्म, विश्वास, अंधविश्वास और विज्ञान के बीच एक उलझन है. हर किसी को किसी न किसी चीज में आस्था होनी चाहिए. उदाहरण के लिए यदि आप विज्ञान से जुड़े हैं तो आप को भौतिकी के नियमों पर विश्वास होना चाहिए. यदि कोई दर्शन या ईश्वर में आस्था रखता है तो मैं उस के खिलाफ नहीं हूं. हालांकि इस से अंधविश्वास पैदा नहीं होना चाहिए.’

मदर टेरेसा के चमत्कार

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी चमत्कार की बहुत महिमा देखी जाती है. उदाहरण के लिए मदर टेरेसा नाम से दिमाग में एक तस्वीर उभरती है. नीली धारियों वाली सफेद धोती में लिपटी हुई एक महिला जो बीमार और गरीब लोगों की सेवा कर रही हो. उन को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वह एक उच्च कोटि की महिला थी लेकिन उन्हें संत का दर्जा मरने के कई साल बाद मिला.

दरअसल ईसाई धर्म में संत होना इतना आसान नहीं. बाक़ायदा पूरी प्रक्रिया का पालन होता है. रिज्यूमे भेजा जाता है, क्रेडेंशियल चेक होते हैं और देखा जाता है कि उस ने कितने चमत्कार किए. दुनिया में रह कर अच्छे काम किए हों ये भी काफ़ी नहीं. दुनिया से चले जाने के बाद भी ज़रूरी है कि संतत्व की झलकियां मिलती रहें. मदर टेरेसा के संतत्व को ले कर किसी को शक नहीं होने के बावजूद आधिकारिक ऐलान ज़रूरी था. चर्च को इंतजार था दो चमत्कारों का जो कथित तौर पर हुए भी और तभी उन्हें यह उपाधि मिली.

मदर टेरेसा का पहला चमत्कार : मोनिका बेसरा का उपचार

मोनिका बेसरा का ट्यूमर ठीक होना पहला चमत्कार था जिस के कारण मदर टेरेसा को संत घोषित किया गया. मोनिका के पेट में लगभग 16 सेंटीमीटर का ट्यूमर था. एक दिन मोनिका प्रार्थना सभा में गई और उस ने मदर टेरेसा की तस्वीर से प्रकाश की किरण निकलती देखी. बाद में एक पदक जिसे अंतिम संस्कार के समय मदर टेरेसा के शरीर पर सीधे स्पर्श कराया गया था. उसे मोनिका के पेट पर रखा गया और एक बहुत ही सरल प्रार्थना की गई, ‘मदर आज आप का दिन है. आप गरीबों से प्यार करती हैं. मोनिका के लिए कुछ करें.’

करीब 8 घंटे बाद मोनिका का ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो गया था. ग्यारह डाक्टरों ने मोनिका के मामले की जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ट्यूमर इतनी जल्दी कैसे गायब हो गया इस का कोई मैडिकल स्पष्टीकरण नहीं है. वेटिकन ने मोनिका के ठीक होने को मदर टेरेसा के पहले चमत्कार के रूप में स्वीकार किया. मोनिका बेसरा का चमत्कारी उपचार 2002 में हुआ था और अक्तूबर 2003 में पोप सेंट जौन पौल द्वितीय ने मदर टेरेसा को संत घोषित किया था.

नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, ‘दूसरा चमत्कार दिसंबर 2008 में ब्राजील में हुआ. ब्राजील के सांतोस के 42 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर मार्सीलियो हेडाड एंड्रिनो को मस्तिष्क में बेक्टीरिया का संक्रमण हो गया था. इस के कारण मस्तिष्क में एक बड़ा फोड़ा हो गया था और सिर में भारी दर्द उठता था.’ इस के अनुसार, ‘एक पादरी के मित्र ने इस नवविवाहित युवक और उस की पत्नी फर्नेडा नासीमेंटो रोचा से मदर टेरेसा की मदद के लिए प्रार्थना करने को कहा. एंड्रिनो तो कोमा में चला गया लेकिन रोचा ने प्रार्थना की. उस समय एंड्रिनो को उस की अंतिम गंभीर सर्जरी के लिए ले जाया गया. इस में कहा गया, जब सर्जन औपरेशन कक्ष में दाखिल हुआ तो उस ने एंड्रिनो को जागा हुआ पाया और वह सर्जन से पूछ रहा था- क्या चल रहा है? एंड्रिनो पूरी तरह ठीक हो गया और इस दंपति के दो बच्चे हुए. चिकित्सकों ने ऐसा होना भी चिकित्सीय रूप से असंभव करार दिया था.

इन चमत्कारों की तथाकथित रूप से पुष्टि की गई और इन्हीं के चलते 2016 में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दे दी गई. जाहिर है अपने जीवनकाल में ही ‘गरीबों की मददगार’ और हजारों जरूरतमंदों के लिए ‘जीवित ईश्वर’ कहला चुकी मदर टेरेसा को मरने के बाद संत की उपाधि दी गई. यह इंतजार किया गया कि उन की आत्मा कोई चमत्कार करे. मेसेडोनिया में जन्मीं कैथोलिक नन एग्नेस गोंक्शे बोयाशियु का लोगों की सेवा के लिए पश्चिम बंगाल तक आना और गरीबों तथा बीमारों के लिए काम करना अपने आप में एक खासियत है. लेकिन गरीबों की सेवा का असीम हौसला अपने अंदर समेटे महिला के बारे में यह कहना अतार्किक जैसा है कि उस ने मरने के बाद ‘चमत्कार’ किए और तब उन्हें संत माना गया. मदर टेरेसा के नाम से इन कथित चमत्कारों को जोड़े बिना भी उन्हें संत बनाया जा सकता था.

पाखंडी बाबाओं की हकीकत

नए जमाने के इन बाबाओं के क्या कहने. बैठने के लिए भव्य सिंहासन चाहिए. घूमने के लिए लंबी गाड़ी और ए-ग्रेड बाबा है तो हेलिकौप्टर से कम में काम नहीं चलता. इन का ईश्वर से सीधा कनैक्शन है फिर भी ज़ेड प्लस सिक्यूरिटी चाहिए. बाबा के आसपास 10-20 चेलाचेली दौड़ते रहते हैं. राजनेता इन के आशीर्वाद लेने आ रहे हैं. जहां ये प्रवचन झाड़ते हैं वहां फूलों से भव्य सजावट की जाती है. शहंशाही आसन पर बाबा विराजमान होता है. जनता बेवकूफ है. उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे चमत्कार पाएंगे.

बाबाओं की झोलियां लगातार भरती रहती है. बाबाओं के नाम प्रौपर्टी की भरमार, होटल, फ्लैट्स, बड़ीबड़ी गाड़ियां. बाबा के बैंक खाते में हर दिन करोड़ों रुपए आते हैं. ये है 21वीं सदी का अंधविश्वासी भारत. कौन कहता है भारत में पैसे की कमी है. गरीब से गरीब और धनी से धनी बाबा के लिए अपनी संपत्ति कुर्बान कर देना चाहता है.

ये बाबा भी बड़ी सोचसमझ कर ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं जो असुरक्षित हैं. आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं. नौकरी के लिए तरसता व्यक्ति या फिर बेटी की शादी न कर पाने में असमर्थ कोई गरीब इन बाबाओं का टारगेट नहीं. इन का टारगेट है मध्यमवर्ग जो बड़ेबड़े स्टार्स और व्यापारिक घराने के लोगों की श्रद्धा देख कर इन बाबाओं की शरण में आ जाता है. बच्चन फैमिली हो या अंबानी, राजनेता हों या नौकरशाह बड़े लोगों ने जाने अनजाने में इस अंधविश्वास को बल दिया है.

चुनाव जीतने के लिए मंदिरों मस्जिदों या बाबाओं के चक्कर लगाते नेता दरअसल अंधविश्वास का ही प्रचार करते हैं. उन्हें अपना रुतबा, अपनी दौलत कायम रखने का लालच होता है. जो जितना समृद्ध वो उतना ही अंधविश्वासी होता है. फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यमवर्ग इस मामले में क्यों पीछे रहेगा. जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी ऐसे फरेबी बाबा और तांत्रिक हमें मूर्ख बनाते ही रहेंगे.

यह एक हकीकत है कि हर युग में चाहे जिस का भी शासन रहा हो हिंदू शासन हो या मुसलिम शासन इन साधु संतों और तथाकथित गुरुओं बाबाओं का बोलबाला रहा है. शासन में यह लोग दूध मलाई का भोग खाते रहे हैं. शासक वर्ग की कुटिलता और शोषण के टूल के रूप में कार्यरत रहे हैं. किसी एक पीर, फ़कीर या बाबा की पोल खुलतेखुलते दूसरा हाज़िर नाज़िर हो कर लूट खसोट शुरू कर देता है.

हमारा संविधान वैज्ञानिक सोच और उस के आधार पर व्यवस्था चलाने की वकालत करता है और इस का प्रावधान कर रखा है. लेकिन हमेशा उलटी गंगा बहती है. तरह तरह के बाबा, पीर फकीर समय समय पर खुद को किसी न किसी का अवतार कह कर अपना उल्लू सीधा करते ही रहते हैं.

बाबाओं के अलावा ऐसे मंदिर भी हैं जिन में रोज करोड़ों रुपयों का चढ़ावा आता है. दोनों को एक ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए. अंतर बस इतना है कि एक में हाड़मांस का पुतला नजर आ रहा है दूसरे में नहीं. लोगों की आस्था और कुछ पैसे देकर काम चमत्कार करवाने की चाह दोनों जगह है.

सबक लेना जरूरी

भारत एक ऐसा देश है जहां आप सड़क से एक बड़े पत्थर को तिलक लगा कर अगरबत्ती सुलगा दीजिए वही आस्था का केंद्र बन जाएगा. लोगों के इस पढ़ेलिखे अनपढ़ होने या फिर चमत्कार की ख्वाहिश रहने की प्रवृत्ति का नाजायज फायदा उठाया जाता है. हमारे देश में पैसा कमाना बहुत आसान है बस आपके दिमाग में एक शातिर खुराफात होनी चाहिए. धर्म हमेशा से ही हमारे देश की सब से बड़ी कमजोरी रहा है.

हाथरस हादसा ऐसे ही अंधविश्वासियों के लिए एक सबक है. आप भीड़ का हिस्सा क्यों बन रहे हैं? आप इन बाबाओं की गुलामी में क्यों लगे होते हैं? ये ढोंगी जादू टोना, चमत्कार के नाम पर रोजाना आपको ठगते हैं, आप के आत्मसम्मान के साथ छल करते हैं. आप की दरिद्रता, गरीबी का फायदा उठाते हैं. आप के जागरूक न होने का लाभ ले कर अपनी कोठियां बनवाते हैं और आप वही के वहीं रह जाते हैं या और भी बुरे हालात हो जाते हैं. ये ढोंगी चमत्कार नहीं कर सकते. ये केवल ढोंग कर के आप को बेवकूफ बना रहे हैं. आप के नाम पर करोड़ों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. जिस दिन इन ढोंगियों के यहां आप जाना बंद कर देंगे इन की दुकान खुद बख़ुद बंद हो जाएगी.

बाबाओं की सब से ज्यादा शक्तियां और चमत्कार भारत में ही पाए जाते हैं. लेकिन मजेदार बात यह है कि इन की इतनी शक्तियों और चमत्कारों के बावजूद भारत विश्व में सैकड़ों सालों से गुलाम रहे देशों में तीसरा देश कहलाता है. गरीबी, गंदगी, अनुशासनहीनता, लालच, भ्रष्टाचार, अंधभक्ति जैसी समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु ये बाबा आज तक देश का कल्याण नहीं कर पाए. यदि आप यकीन कर सकें तो वास्तविकता यह है कि किसी बाबा में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं. आप अपने को टटोलें तो पायेंगे कि शक्ति तो आप में है, चमत्कार तो आप में है. बेवजह ही आप बाबाओं के चक्कर में पड़े थे.

इस देश में पाखंडी व ढोंगी बाबाओं का जमावड़ा हो गया है कि जिधर देखो उधर ये पाखंडी डेरा जमाए हुए हैं. कोई सैक्सी फिल्में बना रहा है तो कोई पूरा सैक्स रैकेट ही चला रहा है. कहीं ये देखने को आ रहा है कि अपनी उम्र से भी आधी से भी कम उम्र की लड़कियों को बाबा अपने प्रेमजाल में फंसा रहे हैं. उन से अनुष्ठान करा रहे हैं.

अच्छा होता आप अपनेआप पर कृपा करते. इन से दूर रह कर अपनी शक्ति को पहचानते. प्रकृति तथा ब्रह्मांड के अचूक, तर्कसम्मत एवं वैज्ञानिक नियमों की पहचान करते. आप अज्ञानता, बेबसी एवं भय के कारण ही तो बाबाओं, ज्योतिषियों, तांत्रिकों या अन्य पाखंडी गुरुओं के पीछे भागते हैं. यदि आप वैज्ञानिक विश्लेषण एवं तर्क से सोचते तो आप की आंखें हमेशा के लिए खुल जातीं. ये फालतू और बेवजह की भागदौड़ हमेशा के लिए बंद हो जाती.

भारत जैसे देश में आज सब से बड़ी आवश्यकता बौद्धिक स्तर को ऊंचा करने की है. साइंटिफिक तरीकों से तथ्यों का विश्लेषण करने की है. आंख मूंद कर विश्वास करना मूर्खतापूर्ण है. हमें अपने बच्चों को स्कूल में सही जानकारी देनी चाहिए. उन्हें तार्किक बातें बतानी चाहिए. इस तरह की ढोंगी बातों को तर्क के आधार पर तुरंत खारिज किया जाना चाहिए. हमारे देश मे ऐसे लोगों को हमेशा हतोत्साहित किया जाना चाहिए जो भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए जिस से हमारे बच्चे तार्किक हो सकें.

धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का हक हर आश्रित को

धारा – 125 सिर्फ तलाक लेने वाली महिलाओं के लिए ही गुजारे भत्ते का इंतजाम नहीं करती, बल्कि यह निराश्रित मातापिता, जायजनाजायज या अनाथ बच्चों, छोटे भाईबहनों या बहुओं के लिए भी सम्मान से जीवन जीने लायक पूंजी दिलवाने का प्रावधान करती है. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में किया गया है.

 

10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा स्त्री को गुजारा भत्ता देने के संबंध में फैसला सुनाते हुए उस के पति को प्रतिमाह 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. मामला चूंकि मुसलिम धर्म से जुड़ा था, लिहाजा अखबारों और टीवी चैनलों पर खूब चला. भारतीय जनता पार्टी और उस के गोदी मीडिया ने तो दो कदम आगे बढ़ कर इसे तीन तलाक के मुद्दे के बाद मुसलिम महिलाओं की दूसरी जीत करार दिया. तमाम मुसलिम महिलाओं की बाइट टीवी पर दिखाई जाने लगी. जबकि सीआरपीसी की धारा – 125 के तहत किसी भी आश्रित के लिए गुजारा भत्ता पाने का यह कोई पहला मामला नहीं था. देश भर की अदालतों में हर दिन ऐसे सैकड़ों मामलों की सुनवाई होती है और आश्रितों के हक में अदालतों द्वारा ऐसे फैसले दिए जाते हैं. पर चूंकि यह मुसलिम समाज से जुड़ा मामला था इसलिए होहल्ला अधिक हुआ.

पत्नी, बच्चों, और मातापिता के भरणपोषण के लिए आदेश देने से जुड़ी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125, साल 1973 में बनी और 1 अप्रैल, 1974 को लागू हुई. यह धारा खासतौर पर हिंदू महिलाओं की दुर्दशा को देखते हुए लागू की गयी थी. पति द्वारा त्याग दिए जाने पर, पति की मृत्यु हो जाने पर, बच्चों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर अधिकांश हिंदू औरतें नारकीय जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाती थीं. उन्हें उस नारकीय जीवन से निकल कर सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिले, इस सोच के तहत यह कानून बना.

आमतौर पर हिंदू विवाह विच्छेद के बाद महिलाओं की दूसरी शादी बहुत मुश्किल से होती है. पुराने समय में तो होती भी नहीं थी, यही वजह थी कि पति द्वारा त्याग दिए जाने पर वे वृन्दावन की राह पकड़ लेती थीं और वहां भिक्षा मांग कर अपना गुजरबसर करती थीं. वृन्दावन विधवाओं और निराश्रित हिंदू महिलाओं का इतना बड़ा स्थल इसीलिए बना क्योंकि महिलाओं के पास ना तो कोई आश्रय स्थल होता था और न ही अपने गुजरबसर करने लायक पूंजी होती थी. पति ने यदि त्याग दिया तो मायके वाले भी उस को नहीं अपनाते थे. हिंदू समाज ऐसी औरतों को बहुत नीच दृष्टि से देखता था. इस के विपरीत मुसलिम समाज में तलाक और दूसरा निकाह दोनों ही काफी आसान और जल्द होते थे. वे अपनी महिलाओं को बेसहारा नहीं छोड़ते थे और तलाक के 3 महीने बाद ही उस का दूसरा निकाह पढ़वा देते थे. यही वजह है कि मुसलिम महिलाओं के लिए वृन्दावन जैसी किसी व्यवस्था की जरूरत इस देश में कभी नहीं हुई. हिंदू महिलाओं की दुर्दशा को दृष्टिगत रखते हुए कानून के जानकारों ने धारा-125 लागू की और इस के जरिए महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन करने की राह हासिल हुई.

धारा-125 सिर्फ तलाक लेने वाली महिलाओं के लिए ही गुजारे भत्ते का इंतजाम नहीं करती, बल्कि यह निराश्रित मातापिता, जायज, नाजायज या अनाथ बच्चों, छोटे भाईबहनों या बहुओं के लिए भी सम्मान से जीवन जीने लायक पूंजी दिलवाने का प्रावधान करती है. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में किया गया है.

ये धारा कहती है कि कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और मातापिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता. इस में नाजायज लेकिन वैध बच्चों को भी शामिल किया गया है. धारा साफ करती है कि पत्नी, बच्चे और मातापिता अगर अपना खर्चा नहीं उठा सकते तो पुरुष को उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा. गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट तय करेंगे. पत्नी को गुजारा भत्ता तब तक मिलेगा जब तक महिला दोबारा शादी नहीं कर लेती.

ढेरों मामले

इस धारा में ये भी प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी बिना किसी कारण के पति से अलग रहती है या किसी और पुरुष के साथ रहती है या फिर आपसी सहमति से अलग होती है तो वो गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी. वहीं अगर पत्नी की आय पति से अधिक है, या पति बेरोजगार है तो वह भी इस धारा के तहत पत्नी से गुजारा भत्ता पाने का हकदार हो सकता है. इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त साधन संपन्न है, लेकिन भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है, तो प्रभावित व्यक्ति मजिस्ट्रेट के सामने आवेदन कर के भरणपोषण की मांग कर सकता है. मजिस्ट्रेट को भरणपोषण देने की उचित मासिक दर तय करने का अधिकार है. किसी भी धर्मजाति, सम्प्रदाय, भाषा का नागरिक इस धारा के तहत आवेदन कर सकता है. ऐसे सैकड़ों केस देशभर की अदालतों में आएदिन आते हैं.

हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इतनी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि मुसलिम महिला पर 1986 का मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून भी लागू होता है. यह कानून 1986 में तब बना जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने धारा-125 के तहत उसे गुजारा भत्ता देने का प्रावधान किया. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशभर में राजनीतिक माहौल गरमा गया था. मुसलिम धर्मगुरुओं और पर्सनल ला बोर्ड ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया था. जिस के चलते कांग्रेस पार्टी के हाथ से मुसलिम वोट के खिसकने का डर पैदा हो गया था, लिहाजा मई 1986 में मुसलिम कठमुल्लाओं के दबाव में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून पास किया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.

1986 के इस कानून की धारा 3 में तलाकशुदा मुसलिम महिला के गुजारा भत्ता का प्रावधान है. धारा 3 में लिखा है कि तलाकशुदा मुसलिम महिला को पूर्व पति से इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता मिल सकता है. इद्दत की अवधि तीन महीने होती है. इसी धारा में ये भी लिखा है कि अगर तलाक से पहले या तलाक के बाद महिला अकेले बच्चे का पालनपोषण नहीं कर सकती तो उसे दो साल तक पूर्व पति से गुजारा भत्ता मिलेगा.

हालांकि, शाहबानो मामले में फैसले के दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसले में साफ किया था कि तलाकशुदा मुसलिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी पूर्व पति से तब तक गुजारा भत्ता पाने की हकदार है, जब तक वो दोबारा शादी नहीं कर लेती. शाहबानो इंदौर की रहने वाली थीं और उन के पति ने उन्हें तीन तलाक दे दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत शाहबानो अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.

इतना ही नहीं, 2001 में डेनियल लतीफी नाम के वकील ने 1986 की कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की वैधता बरकरार रखते हुए साफ किया था कि 1986 का कानून सिर्फ इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता देने तक सीमित नहीं है.

गौरतलब है कि इद्दत एक इस्लामी परंपरा है. इद्दत का पालन एक मुसलिम महिला को करना पड़ता है. पति से तलाक होने या उसकी मृत्यु होने पर मुसलिम महिला को इद्दत का पालन करना होता है.

इद्दत की अवधि के दौरान तलाकशुदा महिला के दोबारा शादी करने पर पाबंदी होती है. अगर किसी गर्भवती महिला का तलाक होता या वो विधवा होती है तो बच्चे के जन्म के साथ ही इद्दत की अवधि खत्म हो जाती है. पति की मृत्यु के बाद इद्दत की अवधि 4 महीने 10 दिन होती है, जबकि तलाक के बाद 3 महीने 10 दिन की इद्दत की जाती है.

1986 का कानून और धारा 125 दोनों ही देश में एक साथ चल रहे हैं. मुसलिम महिला अगर 1986 के कानून के तहत आवेदन नहीं करना चाहती है तो वह धारा 125 के तहत मुकदमा दर्ज कर गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है. हालिया केस में यही हुआ है.

क्या है मामला

ये पूरा मामला शुरू होता है 15 नवंबर 2012 से. उस दिन तेलंगाना में एक मुसलिम महिला आगा ने अपने पति अब्दुल समद का घर छोड़ दिया. 2017 में महिला ने अपने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और 406 के तहत दहेज़ उत्पीड़न, विश्वासघात और घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराया. इस से नाराज हो कर पति ने महिला को तीन तलाक दे दिया. 28 सितंबर 2017 को दोनों को तलाक का सर्टिफिकेट जारी हो गया.

दावा है कि तलाक के बाद इद्दत की अवधि तक पति ने महिला को हर महीने 15 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने की पेशकश की. इद्दत की अवधि तीन महीने तक होती है. लेकिन महिला ने इसे लेने से इनकार कर दिया. इस के बजाय महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने की मांग की. 9 जून 2023 को फैमिली कोर्ट ने हर महीने 20 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश पति को दिया.

फैमिली कोर्ट के फैसले को पति ने तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी. 13 दिसंबर 2023 को हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. लेकिन हर्जाने की रकम 20 हजार से घटा कर 10 हजार रुपये कर दी.

अब्दुल समद ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उस ने दलील दी कि एक तलाकशुदा मुसलिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है. मुसलिम महिला पर 1986 का मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून लागू होता है. उस ने यह भी दलील दी 1986 का कानून मुसलिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है. लेकिन वहां से भी उसे राहत नहीं मिली और मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस औगस्टिन जौर्ज मसीह की बेंच ने 99 पन्नों का फैसला देते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुसलिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर करने की हकदार है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है, जिन में शादीशुदा मुसलिम महिलाएं भी शामिल हैं. अदालत ने ये भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी गैर-मुसलिम तलाकशुदा महिलाओं पर भी लागू होती है.

मुसलिम तलाक पर कोर्ट ने कहा –

– अगर किसी मुसलिम महिला की शादी या तलाक स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होती है, तो भी उस पर धारा 125 लागू होगी.

– अगर मुसलिम महिला की शादी और तलाक मुसलिम कानून के तहत होता है तो उस पर धारा 125 के साथसाथ 1986 के कानून के प्रावधान भी लागू होंगे. तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के पास दोनों कानूनों में से किसी एक या दोनों के तहत गुजारा भत्ता पाने का विकल्प है.

– अगर 1986 के कानून के साथसाथ मुसलिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भी याचिका दायर करती है तो 1986 के कानून के प्रावधानों के तहत जारी हुए किसी भी आदेश पर सीआरपीसी की धारा 127(3)(b) के तहत विचार किया जा सकता है. इस का मतलब ये है कि अगर पर्सनल लॉ के तहत मुसलिम महिला को गुजारा भत्ता दिया गया है, तो धारा 127(3)(b) के तहत मजिस्ट्रेट उस आदेश पर विचार कर सकते हैं.

दोनों जजों का फैसला

1. जस्टिस मसीह – एक तलाकशुदा मुसलिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के अधिकार का उपयोग करने से नहीं रोका जा सकता, बशर्ते वो सारी शर्तें पूरी करती हो. धारा 125 एक सेक्युलर प्रावधान है और 1986 के कानून की धारा 3 के बराबर ही है.

2. जस्टिस नागरत्ना – 1986 का कानून धारा 125 का विकल्प नहीं है और दोनों कानून तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के लिए हैं. अगर मुसलिम महिलाओं को धारा 125 से बाहर रखा जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन होगा, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है.

गौरतलब है कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इस के बाद 2019 में मोदी सरकार ने कानून लाकर तीन तलाक को न सिर्फ असंवैधानिक किया, बल्कि इसे अपराध के दायरे में भी रखा.

जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में साफ किया है कि तीन तलाक के अवैध तरीके से भी किसी मुसलिम महिला को तलाक दिया जाता है तो वो भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत हर्जाने का दावा कर सकती है.

उन्होंने कहा, तलाकशुदा मुसलिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 से बाहर नहीं रखा जा सकता है, भले ही उसे किसी भी कानून के तहत तलाक दिया गया हो. जिस का

लेखपाल ऋचा, PCS अधिकारी ज्योति ने पति को छोड़ा तो सोसाइटी जजमैंटल क्यों हो गया

कुछ घटनाओं में यह देखा गया कि कुछ पत्नियों ने कामयाब होते ही  पति का हाथ जोर से झटक दिया, पति का कसूर था कि वह  शिक्षा और ओहदे की दृष्टि से पत्नी के लायक नहीं रह गया था, इसके बाद सारा समाज जज बन गया और ऐसी महिलाओं को भलाबुरा कहने लगा, लेकिन क्या इस तरह के मामलों में औरतों को लेकर जजमैंटल होना जरूरी है 

 

घटनाएं जिसने बदलती महिलाओं की ओर समाज का ध्यान खींचा
जुलाई 2024 में,  कारपेंटर नीरज विश्वकर्मा ने झांसी के सदर तहसील में हाल में नियुक्त हुई पत्नी लेखपाल ऋचा पर गंभीर आरोप लगाया. नीरज का कहना था कि जिस पत्नी को मेहनतमजदूरी कर उसने पढ़ाया और लेखपाल बनाया, उसने नौकरी मिलते ही पति को छोड़ दिया.  ऋचा का कहना है कि उनकी शादी नहीं हुई है हालांकि इनकी 3 साल पहले हुई लव मैरिज शादी की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है.  इस मामले से पहले 2023 में भी इसी तरह का एक केस बहुत चर्चा में रहा. जब यूपी की PCS अफसर ज्योति मौर्या पर पति आलोक मौर्या ने ऐसा ही आरोप लगाया था. आलोक का आरोप था कि उसने पत्नी के एजुकेशन में मदद की और उसने एसडीएम बनते ही पति से मुंह मोड़ लिया, यहां तक कि किसी अन्य अधिकारी के साथ प्रेमसंबंध भी बनाया.
उन दिनों कई पतियों के वीडियो वायरल हुए, जिसमें वे कह रहे थे कि इन मामलों की वजह से वे पत्नी को आगे नहीं पढ़ाना चाहते हैं. उन्हीं दिनों पटना के मशहूर खान सर ने भी कहा था कि उनके BPSC बैच से 93 महिलाओं के पति ने अपनी पत्नियों के नाम कटवा दिए.

 

लड़कियों को लेकर समाज जजमैंटल क्यों
एक समय था दहेज के लिए लड़कियां जला दी जाती थी इस वजह से भ्रूण हत्याएं होने लगी. समय बदला साथ ही समाज भी, बेटियों की दशा और दिशा में शिक्षा के मामले में थोड़ा सुधार आया.  कम ही संख्या में सही लड़कियों ने बोर्ड परीक्षा से  लेकर आईएएस की परीक्षाओं में टौप करके दिखा दिया कि सोसाइटी ने जिस चिंगारी को हवा से बुझाने का काम किया, उसी हवा का औक्सीजन ले कर चिंगारी, मशाल बन गई और दहकने लगी है.  कई बार यह मशाल अंधेरे में रास्ता दिखाने का काम करती है, तो कई बार इसका इस्तेमाल जलाने के लिए भी किया जाता है.  आज ऋचा और ज्योति जैसे ऐसे कई मामले आ रहे हैं, जिसमें लड़की की शिक्षा रूपी मशाल ने अपने ही आशियाने में आग लगाने का काम किया है, लेकिन क्या वाकई इसके लिए लड़कियां जिम्मेदार है या वो समाज जिसने उसे ऐसा करने पर विवश कर दिया? 

 

 

न नजरअंदाज किए जाने वाले कारण
National Crime Record Bureau के डेटा को देखें, तो दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत साल 2022 में करीब 13,479 मामले दर्ज किए गए जबकि उसी साल दहेज से होने वाली मौतों की संख्या 6,450 रही.   NCRB के आंकड़ों में इस बात का भी जिक्र था कि दहेज से होने वाली मौतों में 4.5 % की और रजिस्टर्ड केसेज की संख्या में  0.6% की कमी आई है यह हाल तो साल 2022 का है. जरा सोचिए, 70, 80 और 90 के दशक में ऐसे मामलों का क्या हाल रहा होगा.  भले ही दहेज के मामलों में कमी पौजिटिव चेंज की तरह दिख रहा है लेकिन NCRB की रिपोर्ट में दिए गए इस डेटा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि 2020 की तुलना में 2021 में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या 56. 5% से बढ़कर 64.5 % हो गई. ‘क्राइम इन इंडिया 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराध उसके पति या रिश्तेदारों के क्रूरता के थे, जो करीब 31. 2% है. जब घर के अंदर सबसे ज्यादा पीड़ा पहुंचाई जा रही है, तो सबसे पहला प्रतिकार तो वहीं दिखेगा, जो पतियों को छोड़ने वाली महिलाओं के रूप में सामने आ रहा है. ऋचा विश्वकर्मा ने अपने मामले में कहा भी कि उसका पति नीरज उसे शराब पीकर मारता पीटता था. 

 

गिरेबान में झांककर देखें

  महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दहेज तो बस एक मामला भर है और भी कई ऐसे अपराध है जिसने महिलाओं को अपने हित के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया .  समाज उनको स्वार्थी कह सकता है लेकिन यही समाज उनके साथ बलात्कार, भ्रूण हत्या, किडनैपिंग, घरेलू हिंसा, शील भंग करने के प्रयास से हिंसा जैसे मामलों को अंजाम देता रहा है . आखिर इन चीखों को कब तक दबाया जा सकता था, ऋचा, ज्योति मौर्या जैसे मामले उसी बैड एक्शन के रिएक्शन के रूप में उभरी है.  लेकिन सम्मानित पदों पर बैठनेवाली ऐसी महिलाओं की संख्या काफी  कम है . ज्यादातर तो हर परिस्थिति में घर की चाहरदीवारी में ही रंगीन चमकदार साड़ियों में सजधज कर सुखद दांपत्य का दिखावा करती रहती हैं, जबकि उन्हीं साड़ियों की तहों के नीचे बदन पर नीले दाग के निशान होते हैं .      

समाज के रूढ़िवादी और हिंसात्मक तौरतरीके का प्रतिकार पढ़ीलिखी महिलाओं का पति का साथ छोड़ने तक ही सीमित नहीं है . महिलाओं के प्रतिकार के कई रूप होते हैं सूरजपाल, रामरहीम, आशाराम बाबू  जैसे ढोंगियों की ड्योढ़ी पर मत्था टेकनेवाली महिलाएं भी इसमें शामिल है . घर और समाज में दुत्कार मिलने पर बाबाओं का सहारा इनको रास आता है . पर अफसोस कि यहां से फिर उनके शोषण का दौर शुरू होता है . 

उच्च तबका और पीड़ित शरीर पर ग्लैमर का मलहम

अफसोस की बात तो यह है कि समाज के उच्च तबके की हाइअली एजुकेटेड महिलाएं भी बाबाओं से दूर नहीं है, बस किसी का बाबा गेरुआ पहना है, तो किसी का सफेद, किसी का बाबा गांव की बोली बोलता है, किसी की फ्लूएंट इंग्लिश . हाईअर सोसायटी में डोमेस्टिक वाैयलेंस के मामले सामने नहीं आ पाते क्योंकि वहां पीड़ित महिला यह स्वीकार कर चुकी होती है कि पति के घर से निकलने के बाद वह तमाम तरह की सुविधाओं से वंचित हो जाएगी . इन्हें लंबी कार में घूमने, महंगे रेस्तरां में खाने, फाइवस्टार होटल में पार्टियां करने, डिजाइनर ड्रेसेज पहनने की लत लग चुकी होती है, डिवोर्स मांगने पर इनके हाथ से ये सारे भत्ते उसी तरह स्लिप कर जाएंगे जैसे बरसात में चिकनी मिट्टी पर पैर फिसल जाते हैा और चोट भी जबरदस्त आती है इसलिए वह पीड़ित होने का उपचार तलाशती है, जो बाबाओं की शरण में जाकर खत्म होता है .
 द डेली बीस्ट को दिए इंटरव्यू में साइकोथेरैपिस्ट सुजैन वीट्जमैन ने ऐसे मामलों के लिए अपस्केल अब्यूज का शब्द इस्तेमाल किया.  Not To People Like Us Hidden Abuse In Upscale Marriage विषय पर अपने  शोध में उन्होंने अपर मिडिल क्लास की ऐसी शादीशुदा महिलाओं से बात की, जो काफी पढ़ीलिखी थी, अच्छे खानदान से थी और अमीर घरानों में ब्याही गई थीं. इन्होंने हिंसक पार्टनर की बात को एक सिरे से नकार दिया क्योंकि ऐसे मामले को जाहिर करने को वह शर्मिंदगी मानती हैं. जब यूएस के शिकागो का यह हाल है, तो इंडिया के बिहार, यूपी का क्या कहे

महलों में रहने वाली सीता और द्रौपदी भी तो 

अब  लड़कियों ने प्रतिकार करना शुरू कर दिया है, तो समाज बहुत कसमसा रहा है, पुरुषवादी सोच यह कैसे बरदाश्त करेगा कि औरत ने मर्द को छोड़ दिया जबकि छोड़ी जानी वाली चीज तो महिला रही है. जब सीता और द्रौपदी जैसी राजकुमारियों को छोड़ा या छेड़ा गया , तो सामान्य घरों की युवतियों का पतियों का तिरस्कार कर देनेवाली बात कैसे हजम होगी.  कभी शादी के इश्तेहारों में सांवले लड़के भी मिल्की वाइट लड़की की मांग करते थे आज उन्हीं लड़कियों ने इन लड़कों को झटक दिया, तो पूरा समाज दर्द से कराह रहा है.  लड़की को धोखेबाज बता रहा है, उसके कैरेक्टर को कटघरे में खड़ा कर रहा है, क्यों ? 

 

धर्म का ठेला

मैंने बहुत से कारोबार किए, पर कामयाब न हुआ. थकाहारा मैं एक ग्राहक के लिए एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम गोभी तोल रहा था कि एकाएक कहीं से प्रकट हुए बाबा ने मुझ से पूछा, ‘‘सब्जी के ठेले पर एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम तोल कर अपना यह लोक तो छोड़ो, परलोक तक क्यों खराब कर रहे हो कामपाल?’’

मैं ने उन के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘मैं कामपाल? मैं तो… प्रभु, और क्या करूं? अगर मैं एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम न तोलूं, तो शाम को कमेटी वालों को, इस इलाके के हवलदार को, इनकम टैक्स वाले अफसर को 4-4 किलो मुफ्त सब्जी कहां से दूंगा? अगर न दूंगा, तो कल यहां ठेला कौन लगाने देगा?

‘‘बाबा, अपना तो नसीब ही ऐसा है कि जब भी सिर मुंड़वाने बैठता हूं, तो साफ मौसम में भी पता नहीं कहां से ओले पड़ने लगते हैं.

‘‘जवानी में पहली दफा प्यार के चक्कर में सिर मुंड़वाने बैठा ही था कि शादी कर के वह मेरे गले पड़ गई. और फिर कमबख्त आज तक पता ही नहीं चल पाया कि प्यार किस बला का

नाम है.

‘‘अब आप ही बताइए कि ऐसे में मैं एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम न तोलूं, तो और क्या करूं?’’

‘‘तो सुनो कामपाल, अब तुम्हारे शक्तिवर्धक कैप्सूल खाने के दिन आ गए हैं. कल से तुम्हें यह देश कामपाल के नाम से जानेगा. बाबा का हुक्म है कि कल से तुम सब्जी का पंचर टायरों वाला ठेला लगाना बंद कर के धर्म का ठेला लगाओ.’’

‘‘धर्म ठेले पर भी बिकता है क्या बाबा? मैं ने तो आज तक धर्म के मौल ही देखे हैं. ऐसे में ठेले पर कौन मुझ से धर्म खरीदने आएगा? ऐसा न हो कि मैं दो वक्त की रोटी से भी जाता रहूं.’’

बाबा मेरी अक्ल पर गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘मूर्ख, लगता है कि बीवी ने तुम्हारे दिमाग को चाटचाट कर साफ कर दिया है. इस देश में जितना धर्म बिकता है, उतना और कोई माल नहीं बिकता. धर्म के खरीदार यहां हर तबके के लोग हैं. जिन लोगों के पास आटादाल खरीदने तक को पैसे नहीं हैं, वे भी आटेदाल की परवाह किए बिना धर्म जरूर खरीदते हैं.

‘‘रही बात ठेले पर धर्म बेचने की, तो आज धर्म के जितने भी मौल सजे देख रहे हो न, सब ने ठेले से ही धर्म बेचना शुरू किया था. यह धंधा वह धंधा है, जो दिन दूनी रात सौ गुनी तरक्की करता है. जिस ने भी यह धंधा किया है, वह गंगू तेली से राजा भोज हो गया है.

‘‘मेरा तुझे आदेश है कि जनता में धर्म की स्थापना के लिए तू भी धर्म का ठेला लगा और ठेले से मौल तक पहुंच कर करोड़पति हो जा.’’

‘‘पर बाबा, मेरे पास तो सब्जी बेचने की ही पुश्तैनी कला है. ऐसे में मैं धर्म को कैसे बेच पाऊंगा? सड़ी सब्जी की गंध मेरी नसनस में बस चुकी है,’’ मैं ने अपने भीतर का दर्द कहा.

बाबा मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले, ‘‘धर्म बेचना सब्जी बेचने से कहीं ज्यादा आसान है. न तराजू, न बट्टे. न लंगोट, न कच्छे. न तेल लगा कर चमकाई गई सड़ी शिमला मिर्च, न ग्रीस मले मुरझाए भुट्टे. कोशिश कर के तो देख. इस धंधे में न गला फाड़ने की जरूरत, न सड़ी बंदगोभी को ताजा बनाए रखने के लिए उस के सड़े पत्ते उखाड़ने की.’’

बाबा की बातों से हैरानपरेशान हो कर मैं गश खा कर गिरतेगिरते बचा. मैं ने टूटी तराजू और सील निकाले बट्टों को परे फेंकते हुए पूछा, ‘‘पर बाबा…’’

‘‘जानता हूं. तुम बरवाला वाले का केस देख कर डर रहे हो. पर बेटा, चांदनी चौक की एक दुकान बंद होने का मतलब पूरे चांदनी चौक का बाजार बंद होना तो नहीं? गरीबी की सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं मौल के 2-4 दिन. घोर कलियुग है, घोर कलियुग. अब धर्म का झंडा उठाने वालों के साथ यहां ऐसा ही होगा, पर तुम डरना मत.’’

‘‘पर बाबा…’’

‘‘पर क्या… सब्जी का ठेला छोड़ कर कल से धर्म का ठेला लगा और चंद दिनों में ही इसरो से भी कम लागत में चांद पर पहुंच जा,’’ इतना कह कर बाबा अंतर्ध्यान हो गए.

मुझे बाबा की बात जंच गई. लिहाजा, शाम को ठेले की बची सब्जी के भरभर झोले कमेटी वालों को, इलाके के हवलदार को, इनकम टैक्स वाले अफसर को दे कर घर पर ही धर्म का ठेला लगाने की बात पत्नी से की, तो 10-20 दिन न नहाने वाली बीवी खोली में ही स्विमिंग पूल में तैरने के सपने लेने लगी.

खुले में शौच जाने वाली मेरी आंखों के सामने एयरकंडीशंड वाशरूम सज उठा. इधरउधर से गत्ते की पेटियां चुन कर लाने वाली मेरी बीवी की आंखों के आगे मौड्यूलर किचन नाचने लगा. देखते ही देखते मैं ने देखा कि जैसे मैं नामीगिरामी बाबा हो गया हूं.

कुछ भी बकने के लिए मेरे भक्तों ने मेरे लिए सोने का सिंहासन बनवा दिया है. भक्त मेरी बकवास सुनने को बेचैन हैं.

मेरे पास स्वर्ग तक जाने के लिए लिफ्ट मौजूद है. भीतर ही भीतर आई फील दैट स्वर्ग के देवता तक मुझ से चिढ़ने लगे हैं.

हजारों की तादाद में मेरे दिमाग और बिना दिमाग वाले भक्त हैं. घर के खाली दालचावल के डब्बों में सोने के गहने, हीरेजवाहिरात भरे पड़े हैं. कल तक जिन्हें मैं हफ्ता दिया करता था, वे सब मेरे पैरों में ‘डेली’ चढ़ाने आ रहे हैं.

 

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