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मोहन यादव के राज में सैन्य अधिकारी की गर्लफ्रैंड से सामूहिक बलात्कार, जिम्मेदार कौन

नए रिवाज के लिहाज से तो मध्य प्रदेश के महू में हुए सामूहिक बलात्कार कांड का जिम्मेदार तो प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को माना जाना चाहिए. कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में हुए एक डाक्टर के बलात्कार का हल्ला अभी थमा नहीं है. भाजपाइयों ने इस मामले पर आसमान सर पर उठा लिया था. देश भर के डाक्टरों ने भी धरने प्रदर्शन किए थे और एक वक्त में तो माहौल ऐसा बन गया था मानो ममता बनर्जी ही इस की जिम्मेदार हों. इधर महू के बलात्कार पर देश तो क्या मध्य प्रदेश में भी कोई हलचल नहीं है. जब सैन्य अधिकारी ही सुरक्षित नहीं हैं तो बाकियों की तो बात करना ही बेकार है.

मामला 9 सितम्बर की देर रात 2 बजे के लगभग का है. महू छावनी के दो युवा सैन्य अधिकारी अपनी गर्लफ्रैंडों के साथ पिकनिक मनाने के लिए महू मंडलेश्वर मार्ग पर गए थे. ये दोनों महू केंट के इन्फेंट्री स्कूल में यंग औफिसर्स ( वाईओ ) पाठ्यक्रम के तहत ट्रेनिंग ले रहे हैं. इसी दौरान कुछ बदमाश वहां पहुंच गए और कार में बैठे इन सैन्य अधिकारीयों और उन की गर्लफ्रैंड्स को मारनापीटना शुरू कर दिया.

रोमांस में डूबे ये चारों माजरा ढंग से समझ पाते इस के पहले ही बदमाशों ने दोनों अफसरों को बंदूक की नोंक पर बंधक बना लिया. इन में से एक जो थोड़ी दूर पर था किसी तरह भाग निकलने में सफल हो गया. हालांकि लगता ऐसा है कि उसे अपनी गर्लफ्रैंड के साथ छोड़ दिया गया था और धौंस यह दी गई थी कि जब 10 लाख रुपए ले आओगे तभी इन्हें छोड़ा जाएगा. उस ने अपने सीनियर्स को इस वारदात की जानकारी दी. जब पुलिस को खबर दी गई तो वह मौका ए वारदात पर पहुंची लेकिन तब तक एक युवती का बलात्कार कर बदमाश फरार हो चुके थे. इन चारों को सुबह 6 बजे महू के सिविल अस्पताल में मैडिकल जांच के लिए ले जाया गया जिस में बलात्कार की पुष्टि हुई और चारों के शरीर पर चोटों के निशान पाए गए.

इंदौर से 50 किलोमीटर दूर पिकनिक स्पोट अहिल्या गेट प्रेमियों का प्रिय मिलन स्थल है अहिल्या गेट के नजदीक बने मंदिर में काफी भीड़ भाड रहती है लेकिन दिन में रात में यह रमणीक जगह सुनसान हो जाती है. ये चारों प्रेमी सुनसान में मौजमस्ती के लिए गए थे लेकिन जिस मुसीबत में फंसे उसे जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे. इस हादसे से चोरीछिपे एकांत में मिलने जाने वाले प्रेमी जोड़ों को सबक लेना चाहिए कि यह बहुत बड़े खतरे और जोखिम वाली बात साबित हो सकती है.

यह मामला चूंकि सैन्य अधिकारीयों का था इसलिए भारीभरकम पुलिस अमला घटना स्थल पर पहुंचा लेकिन तब तक बदमाश बलात्कार कर फरार हो चुके थे. हालांकि पुलिस के मुताबिक सभी 6 बदमाशों की पहचान कर ली गई है और जंगलों में से इन में से 2 को गिरफ्तार भी किया जा चुका है. बडगोंडा पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ बीएनएस की धाराओं 70 ( सामूहिक बलात्कार), 310 -2 (जबरिया वसूली) और 115 -2 (स्वेच्छा से चोट पहहुंचाना) के तहत मामला दर्ज कर लिया है और आगे की कार्रवाई जारी है.

आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता लेकिन पुलिस ने मामला दबाए रखने की पूरी कोशिश की. मीडिया को इस की खबर वारदात के कोई 24 घंटे बाद मिलना शक पैदा करने वाली बात है. देश में एक दिन में औसतन 86 बलात्कार होते हैं जिन में मध्य प्रदेश तीसरे नम्बर पर है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के ताजे आंकड़ों के मुताबिक देश में हर घंटे में 3 महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं. इस में भी दिलचस्प लेकिन चिंताजनक बात यह है कि 100 में से 27 बलात्कारियों को ही सजा हो पाती है बाकी 73 बाइज्जत बरी हो जाते हैं.

कोलकाता रेप कांड पर हल्ला मचाने वाले लोगों खासतौर से भाजपाइयों को यह जानकर शर्मिंदगी शायद ही हो कि बलात्कार के टौप 4 राज्यों में भाजपा का ही शासन है. राजस्थान में साल 2022 में बलात्कार के 5399 मामले दर्ज किए गए थे. दूसरे नम्बर पर योगी राज वाला उत्तर प्रदेश था जहां 3690 मामले बलात्कार के दर्ज हुए थे. तीसरे नम्बर पर रहे मध्य प्रदेश में 3029 और चौथे नम्बर पर महाराष्ट्र था जहां 2904 मामले बलात्कार के दर्ज हुए थे.

बलात्कार पर कितनी भी सख्त सजा बाले कानून बन जाएं रुक नहीं सकते लेकिन ऐसे बलात्कारों जो महू में हुए आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए हैं. युवा जोड़े आधी रात को सुनसान में मौजमस्ती के लिए अगर जाएंगे तो ऐसे हादसे होना आसान हो जाता है. बदमाशों को वारदात को अंजाम देने में आदर्श माहौल मिल जाता है. ये सैन्य अधिकारी जो देश की रक्षा की ट्रेनिंग ले रहे थे खुद की हिफाजत नहीं कर पाए तो लगता है कि इन्हें सेना में रखने का कोई औचित्य है या नहीं.

कोलकाता रेप कांड सरीखा हल्ला महू के गैंग रेप पर मचेगा ऐसा लग नहीं रहा. क्योंकि हल्ला मचाने के विशेषज्ञ भाजपाई हैं जो अपने राज्य और मुख्यमंत्री को घेरने का नैतिक साहस क्यों दिखाएंगे. यानी पश्चिम बंगाल का बलात्कार जघन्य होता है और उत्तर प्रदेश राजस्थान सहित मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के बलात्कार साफ्ट होते हैं.

मध्य प्रदेश कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में सिर्फ ट्वीट्स तक सिमटी नजर आ रही है. कभीकभार सड़कों पर प्रदर्शन कांग्रेसी कर दिया करते हैं. लेकिन महू रेप कांड पर राज्य सरकार को कांग्रेस घेर नहीं पाई तो यह अध्यक्ष जीतू पटवारी की नाकामी है जिन्होंने इस मामले की यह कहते निंदा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली कि मध्य प्रदेश में जंगल राज है.

लेकिन जनता कह देने भर से नहीं मान लेती पश्चिम बंगाल में भाजपा ने जो हल्ला मचाया उस से ममता बनर्जी जैसी सख्त सीएम के माथे पर भी पसीना आ गया था. फिर मोहन यादव तो एक तरह से अभी ट्रेनी सीएम ही हैं जिन के सामने कांग्रेस हथियार डालती नजर आ रही है. बलात्कारों पर राजनीति कोई नई बात नहीं है लेकिन यह भाजपा शासित राज्यों में नहीं होती.

इस पर विपक्ष गौर करे तो उसे समझ आएगा कि दरअसल में सत्ता रूढ़ दल की छवि कैसे बिगाड़ी जाती है. एसी दफ्तर में बैठ कर राजनीति करने का दौर अब जा चुका है. भाजपा की यह खूबी ही कही जाएगी कि उस का छोटे से छोटा कार्यकर्त्ता भी हर दम सक्रिय रहता है फिर चाहे वह मंगलवार और शनिवार को हनुमान मंदिरों में सुंदर कांड और भंडारा ही कराता क्यों न नजर आए. उलट इस के कांग्रेसी राहुल गांधी का मुंह ताकते रहते हैं कि वे कुछ बोले या करें तभी हम सक्रिय होंगे.

बौयफ्रेंड के साथ मिलकर बेरहमी से किया पिता का कत्ल

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे.

जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे.

उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए. दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया.

आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान  मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी कार्यवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली.

डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे.

कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी.

मौडल बनने की चाह अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया.

जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे.

पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी.

इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली.

जालिम बेटी राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.  संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था.

इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी.

हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था.

इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.  राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी.

जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता.

बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

राजनीति के दंगल में उतरी विनेश फोगाट

पेरिस ओलंपिक के बाद रैसलर विनेश फोगाट यूथ आइकन बन कर उभरी हैं. कुश्ती से संन्यास लेने के बाद विनेश ने अपनी दूसरी पारी कांग्रेस के साथ राजनीति के मैदान में शुरू की है. हरियाणा के जुलाना विधानसभा सीट से उन का चुनाव लड़ना तय हो गया है. उन के साथ पहलवान बजरंग पूनिया ने भी कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता लेने के साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया है. विनेश फोगाट के मैदान में आ जाने से जुलाना में मुकाबला दिलचस्प होने के पूरे आसार हैं. यहां से 2019 में जजपा के नेता अमर जीत डांडा ने चुनाव लड़ा था और 24193 वोटों के अंतर से भाजपा को शिकस्त दी थी.

जुलाना विधानसभा सीट जो विनेश के ससुराल क्षेत्र में आती है, अब एक हौट सीट बन गई है. जाटलैंड की इस सीट पर हमेशा क्षेत्रीय पार्टियों, जैसे इनेलो और जेजेपी का प्रभाव रहा है, लेकिन विनेश और बजरंग के कांग्रेस में शामिल होने से पार्टी को जाट वोट बैंक को मजबूत करने में मदद मिलेगी, जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत है.

विनेश का टिकट तय होते ही उन के ससुराल और मायके दोनों पक्ष के लोग उनके चुनाव प्रचार की तैयारियों में जुट गए हैं. विनेश के भाई हरविंद का कहना है, “संघर्ष जारी रहेगा, चाहे वह सड़क पर हो या कुश्ती मैट पर, और अब राजनीति में भी. हम महिलाओं, किसानों और गरीबों के लिए के लिए स्वस्थ राजनीति करेंगे.”

हरविंदर ने भाजपा नेताओं द्वारा विनेश के कांग्रेस में शामिल होने के बाद दिए गए बयानों पर भी निशाना साधा है और पूर्व खेल मंत्री अनिल विज की आलोचना करते हुए कहा कि ओलंपिक्स लौटने के बाद कोई भी भाजपा नेता विनेश का स्वागत करने नहीं आया.

उधर पार्टी की ओर से मिली अहम जिम्मेदारी के बाद बजरंग पूनिया ने भी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स पर लिखा “मैं अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, नेता विपक्ष राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल का धन्यवाद करना चाहूंगा, जो मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है. मैं संकट से जूझ रहे किसानों के साथ कंधे से कंधा मिला कर उन के संघर्षों का साथी बनने की कोशिश करूंगा और संगठन का सच्चा सिपाही बन कर काम करूंगा. जय किसान.”

गौरतलब है कि खिलाड़ियों के यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने और जंतर मंतर पर धरना दे कर पुलिस की क्रूरता का शिकार होने वाली विनेश फोगाट को आज देशव्यापी जनसमर्थन हासिल है, जिस को कांग्रेस अपने हक में न सिर्फ बड़ी आसानी से भुना लेगी बल्कि पहलवान ही हिम्मत, ताकत, जज्बा, जुझारूपन और महिला सुरक्षा के लिए संघर्ष का जो रूप पिछले साल से अब तक दिखाई पड़ा है, उस के बाद विनेश यदि अन्य कांग्रेसी उम्मीदवारों के प्रचार के लिए भी सड़क पर उतरती हैं, तो उन की विजय भी निश्चित कर देंगी ऐसा माना जा रहा है.

उधर विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद से ही भाजपाई खेमे में बड़ी बेचैनी है. खिलाड़ियों के यौन शोषण मामले में आरोपों का सामना करने वाले भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह के सीने पर भी सांप लोट रहे हैं. बृजभूषण के कारण पहले ही भाजपा अपनी काफी किरकिरी करवा चुकी है, अब बृजभूषण कह रहे हैं कि अगर पार्टी आज्ञा दे तो वे फोगाट और पुनिया के खिलाफ प्रचार में उतरना चाहते हैं. रस्सी जल गई पर बल नहीं गए. खिलाड़ियों के यौन शोषण के घृणित और संगीन आरोपों से घिरे बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मामला अभी कोर्ट में है. मगर अभी भी उनके बेतुके बयान जारी हैं. वे बारबार पार्टी की तरफ देख रहे हैं और भाजपा नेतृत्व से उम्मीद लगाए हैं कि वे उन्हें पहलवानों के खिलाफ दंगल की इजाजत देंगे यानी खुद तो डूबे सनम तुम को भी ले डूबेंगे.

बृजभूषण यह कहने से भी नहीं चूके कि ‘मैं बेटियों के अपमान का दोषी नहीं हूं. अगर कोई बेटियों के अपमान का दोषी है, तो वह बजरंग और विनेश हैं. और जिस ने इस की पटकथा लिखी, भूपिंदर हुड्डा इसके लिए जिम्मेदार हैं. कांग्रेस के कुछ बड़े नेता इस के जिम्मेदार हैं. दोनों पहलवान करीब 2.5 साल से अंदरखाने पौलिटिक्स खेल रहे थे.’ खैर, बृजभूषण अब कितना ही चीख चिल्ला लें और कितने ही हाथ पैर मार लें विनेश फोगाट को जीत से नहीं रोक सकते और यह बात भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी भलीभांति जानता है. दरअसल विनेश फोगाट को ओलंपिक्स से बाहर होने के बावजूद जो अपार जन समर्थन मिला उस से तिलमिलाए बृजभूषण शरण सिंह की हालत अब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे जैसी हो गई है.

पेरिस ओलिंपिक में फाइनल में पहुंच चुकी विनेश फोगाट जब मात्र 100 ग्राम वजन अधिक होने के कारण मैदान से बाहर हुई थी तब भाजपा के आईटी सेल में जश्न मनाया गया था. यह बात भी किसी से छुपी नहीं है. राष्ट्रप्रथम की ताल ठोंकने वाले निजी खुंदक निकालने के लिए राष्ट्र का अपमान होता देखते भी रहे और उस को सैलिब्रेट भी किया, भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से खिलाड़ी के समर्थन में एक बयान आया हो. जबकि अन्य दलों और पूरे राष्ट्र ने विनेश फोगाट के देश लौटने पर उन का उसी तरह भव्य स्वागत किया जैसे एक विजयी खिलाड़ी का किया जाता है. एयरपोर्ट से ले कर उन के गांव तक उन्हें भारी सम्मान और समर्थन मिला.

हरियाणा से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा खुद उन के स्वागत में एयरपोर्ट पहुंचे और उन की ही गाड़ी में फोगाट अपने गांव तक आई थीं. खाप पंचायत और शंभू बौर्डर पर किसानों ने भी उन का जोरदार अभिनंदन किया. पहलवान बजरंग पूनिया भी उन के साथ थे. तभी से अटकलें लगाई जा रही थीं कि विनेश फोगाट व बजरंग पूनिया कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. दोनों पहलवान दिल्ली में भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिले और जब राहुल गांधी के साथ दोनों की तस्वीरें एक्स पर सामने आईं तो यह तय हो गया कि फोगाट और पूनिया राजनीति के मैदान में अपनी नयी पारी शुरू कर रहे हैं.

ओलिंपिक पहलवान विनेश फोगाट का संघर्ष सिर्फ खेल के मैदान तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि निजी जीवन में भी वे एक योद्धा हैं. उन का जीवन और कैरियर संघर्षों से भरा रहा है. और हर संघर्ष के बाद वे चैम्पियन बन कर उभरी हैं. दिल्ली की सड़कों पर पहलवानों का आंदोलन विनेश के नेतृत्व में ही लड़ा गया था.

18 जनवरी 2023 को जब विनेश समेत भारत के कुछ दिग्गज पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे थे तो पूरे देश की निगाहें जंतर मंतर पर टिक गई थीं और जब खिलाड़ियों को खदेड़ने के लिए पुलिस ने लाठियां भांजी और खिलाड़ियों को उठाने के लिए उन से नोचखसोट की तो उसे देख कर पूरा देश हिल गया था. महिला खिलाड़ियों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इन खिलाड़ियों को जंतर मंतर से हटाने और उन के आंदोलन को ख़त्म करने के लिए भाजपा के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने जिस तरह खिलाड़ियों के साथ क्रूर व्यवहार किया और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला खिलाड़ियों को जिस तरह सड़कों पर घसीटा और पीटा गया, उस से भारी जनाक्रोश पैदा हुआ था.

इस के बाद तो मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि बृजभूषण शरण सिंह को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. बावजूद इस के बृजभूषण को शर्म नहीं आई. भारतीय कुश्ती संघ में चुनाव का ऐलान हुआ तो बृजभूषण के करीबी संजय सिंह को अध्यक्ष बना दिया गया. संजय सिंह जो कि बृजभूषण के हाथ की कठपुतली थे, के अध्यक्ष बनते ही विनेश की साथी पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया. बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री लौटा दिया, विनेश ने भी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार लौटाने का एलान कर दिया और पैरा पहलवान वीरेंद्र सिंह (गूंगा पहलवान) ने भी पद्मश्री लौटाने की बात की. इतनी छीछालेदर के बाद खेल मंत्रालय की आंख खुली और उस ने भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित किया. तदर्थ समिति बनाई गई तो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने भारतीय कुश्ती संघ को ही निलंबित कर दिया.

पिछले एकडेढ़ साल में विनेश का नाम काफी चर्चा में रहा. उन के खेल कैरियर के बारे में बताते चलें कि 3 बार की ओलंपियन विनेश फोगाट के पास कौमनवेल्थ गेम्स में 3 स्वर्ण, वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो कांस्य पदक और एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में एकएक स्वर्ण पदक हैं. वह पेरिस 2024 ओलंपिक के फाइनल में भी पहुंची लेकिन स्वर्ण पदक मैच की सुबह वेट-इन में विफल होने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.

25 अगस्त 1994 को जन्मी विनेश फोगाट अपनी चचेरी बहनों गीता फोगाट और बबीता कुमारी के नक्शेकदम पर चलती हैं और भारत के सबसे प्रसिद्ध कुश्ती परिवार से आती हैं. महज 9 साल की उम्र में विनेश फोगाट को अपने पिता की असामयिक मृत्यु का भी सामना करना पड़ा था. उन्हें बहुत कम उम्र में उन के चाचा महावीर सिंह फोगाट ने इस खेल से परिचित कराया था. जब विनेश फोगाट ने कुश्ती शुरू की थी तो गीता फोगाट धीरेधीरे खुद को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित कर रही थीं, लेकिन उन्हें सामाजिक बाधाओं और कई असफलताओं को भी पार करना पड़ा. गीता की तरह विनेश को भी उन ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा जो कुश्ती को पुरुषों का खेल मानते थे और महिलाओं को उनके घरों तक ही सीमित रखने की बात करते थे.

कई मुश्किलों और दर्द के बीच, यह विनेश फोगाट के चाचा महावीर ही थे जो उन के लिए मार्गदर्शक साबित हुए. उन्होंने इस युवा पहलवान की रुचि इस खेल में जगाई. एक शानदार जूनियर कैरियर के बाद, विनेश ने ग्लासगो में 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीत कर अपना पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय खिताब जीता. इस के बाद विनेश अपने पहले ओलंपिक अनुभव की ओर आगे बढ़ चलीं. विनेश ने इस्तांबुल में अपना ओलंपिक क्वालीफाइंग इवेंट जीत कर रियो 2016 के लिए अपना कोटा स्थान पक्का कर लिया और वह ओलंपिक खेलों से पहले आत्मविश्वास से लबरेज थीं. लेकिन क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के बाद विनेश का 21 साल की उम्र में अपने देश के लिए पदक जीतने का सपना टूट गया.

अंतिम 8 में पीपुल्स रिपब्लिक औफ चाइना की सुन यानान का सामना करते हुए, मैच के दौरान उन का दाहिना घुटना उखड़ गया. इस के बाद इस भारतीय पहलवान को बहते हुए आंसुओं के साथ मैट से बाहर ले जाया गया, उस समय विनेश का दर्द बिल्कुल साफ नजर आ रहा था और उन की पदक की संभावनाएं टूट चुकी थी.

लेकिन यह पहली बार नहीं था जब विनेश वापसी करते हुए सफलता के शिखर पर पहुंचीं. गोल्ड कोस्ट में 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स और जकार्ता एशियन गेम्स दोनों में स्वर्ण पदक उन के शीर्ष पर वापसी करने के दृढ़ संकल्प का प्रमाण था. इस के बाद भारतीय पहलवान ने 2019 सीजन में 53 किलोग्राम भार वर्ग में जाने का फैसला किया. विनेश फोगाट के प्रदर्शन पर इस बदलाव का कोई खास असर देखने को नहीं मिला, उन्होंने नूर-सुल्तान में वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहला कांस्य पदक जीतने से पहले एशियन रैसलिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता. वहां उन के प्रदर्शन ने टोक्यो 2020 के लिए उनकी जगह पक्की कर दी.

टोक्यो ओलंपिक से पहले विनेश फोगाट जबरदस्त फौर्म में थीं. वह पूरे साल अजेय रहीं और एशियन चैंपियनशिप में अपना पहला स्वर्ण भी जीता. टोक्यो 2020 में महिलाओं के 53 किग्रा भार वर्ग में पहली वरीयता प्राप्त विनेश फोगाट ने स्वीडन की सोफिया मैटसन पर जीत के साथ शुरुआत की, लेकिन बेलारूस की वेनेसा कलादज़िंस्काया के खिलाफ अपना अगला मुकाबला हार गईं और बाहर हो गईं. विनेश ने बाद में खुलासा किया कि टोक्यो 2020 के दौरान वह सब से अच्छी शारीरिक और मानसिक स्थिति में नहीं थीं और इस के तुरंत बाद उन की कोहनी की सर्जरी हुई.

विनेश फोगाट ने 2022 में मैट पर वापसी की और बेलग्रेड में वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप 2022 में कांस्य पदक और बर्मिंघम में कौमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक के साथ सफलता हासिल की. उन्होंने उस वर्ष बीबीसी इंडियन स्पोर्ट्सवुमन औफ द ईयर का पुरस्कार भी जीता. फोगाट को हांगझोऊ में एशियन गेम्स 2023 के लिए भारतीय टीम में भी नामित किया गया था, लेकिन चोट के कारण वह प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकीं. जब विनेश चोटों से जूझ रही थीं, उस समय 2023 विश्व चैंपियनशिप और एशियन गेम्स में सफल अभियानों के दम पर अंतिम पंघाल महिलाओं के 53 किग्रा भार वर्ग में भारत की शीर्ष पहलवान बन कर उभरीं. अंतिम ने भी इसी श्रेणी में भारत के लिए कोटा हासिल किया.

हालांकि, विनेश ने 50 किग्रा वर्ग के लिए वजन कम करने के बाद पेरिस 2024 में लगातार अपने तीसरे ओलंपिक में हिस्सा लिया. उन्होंने एशियन रेसलिंग ओलंपिक क्वालीफायर में 50 किलोग्राम भार वर्ग में भारत के लिए ओलंपिक कोटा हासिल किया. उन्होंने पेरिस 2024 में बिना वरीयता के प्रवेश किया और अपने कैरियर की 3 सब से बड़ी जीत हासिल करने के बाद फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया.

विनेश ने शुरुआती दौर में शीर्ष वरीयता प्राप्त और टोक्यो 2020 चैंपियन जापान की युई सुसाकी को हराया. उन्होंने सेमीफाइनल में क्यूबा की मौजूदा पैन अमेरिकन गेम्स चैंपियन युसनेलिस गुजमान को हराने से पहले क्वार्टरफाइनल में यूक्रेन की पूर्व यूरोपीय चैंपियन ओक्साना लिवाच को हराया. मगर ओलंपिक में कुश्ती के फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला बनने के लिए तैयार विनेश का सपना टूट गया. यूएसए की सारा हिल्डेब्रांट के खिलाफ स्वर्ण पदक मुकाबले की सुबह मात्र 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण उन्हें इस मुकाबले के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया.

पेरिस 2024 ओलंपिक कुश्ती प्रतियोगिता से दिल तोड़ने वाली हार के बाद, निराश विनेश ने कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. मगर देश वापस लौटने पर उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं हुआ कि वे विजयी नहीं हुई हैं. जनता ने उन्हें सर आंखों पर बिठाया और उन का बढ़चढ़ कर सम्मान किया. यह वही विनेश फोगाट हैं जिन के बारे में भाजपा ने कहा था – ये दागा हुआ कारतूस हैं.

कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद विनेश ने कहा, “मुझे खुशी है कि मैं ऐसे दल के साथ हूं, जो महिलाओं के हित में खड़ी है. उन की लड़ाई संसद से सड़क तक लड़ने के लिए तैयार हैं. हम हर उस महिला के साथ हैं, जो खुद को पीड़ित महसूस करती है.”

फोगाट ने कहा, “भाजपा ने हमें दगा हुआ कारतूस बताया था. उन्होंने कहा था कि मैं नैशनल नहीं खेलना चाहती. मैं खेली और जीती. फिर उन्होंने कहा कि मैं ट्रायल दे कर नहीं जाना चाहती. मैं ने ट्रायल दिया और ओलिंपिक में गई. दुर्भाग्य से अंत में चीजें बिगड़ गईं. परमात्मा ने मुझे देश की सेवा करने का मौका दिया है और इस से अच्छा कुछ नहीं हो सकता है.”

कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के बारे में फोगाट का कहना था, “हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. कोर्ट में केस चल रहा है. हम ने खेल में कभी हार नहीं मानी तो यहां भी हार नहीं मानेंगे. मैं अपनी बहनों को यकीन दिलाती हूं कि मैं उन के साथ खड़ी हूं.”

विनेश फोगाट के राजनीति में उतरने से भाजपा की चिंता बढ़ गई है. शायद यही वजह है कि क्रिकेटर रविंद्र जड़ेजा सहित कुछ अन्य खिलाड़ियों को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई है. योगेश्वर दत्त, बबीता फोगाट, तीर्थ राणा, दीपक हुड्डा व विजेंद्र सिंह पहले ही भाजपा में हैं. हरियाणा विधानसभा चुनाव में इन में से कुछ पर पार्टी दांव खेल सकती है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बबीता फोगाट, योगेश्वर दत्त और संदीप सिंह को मैदान में उतारा था. लेकिन इन में से सिर्फ संदीप सिंह ने ही जीत दर्ज की थी.

रूठे पिया को मनाना इतना मुश्किल भी नहीं

शादी के बाद वाला वो पहलापहला प्यार भला कौन भूल सकता है. भले ही आप का वो प्या र अब आप के साथ न हो, रूठ कर मायके चला गया हो, लेकिन उस की वो हंसी जिस के दम पर आप जिंदगी काटने के बारे में सोचते थे, वो प्याेर के दो बोल, जिस की एक हां पर आप दुनिया को ठोकर मारने को तैयार हो जाते थे और न जाने क्यााक्याल अकसर यादों के झरोखे से झांकने लगते हैं. दिल बारबार उन्हींे की तरफ खींचा चला जाता है.

आप भी शायद यही महसूस कर रहे होंगे कि जब वही जिंदगी से चली गई, तो फिर जिंदगी में बचा ही क्या. शायद आपने कभी उन से दूर होने के बारे में सोचा भी नहीं होगा और आप दोनों ही चाहते होंगे कि साथी वापस आ जाए पर पहल कौन करे. ये ईगो बात को आगे ही नहीं बढ़ने दे रहा.

प्यार की तड़प जब परवान चढ़ रही होती है

लड़का हो या लड़की दोनों का ही खुमार सगाई से शुरू होता है. शादी के पहले और बाद में दोनों को ही एक जैसे ही एक्साइटमेंट, होती है, उन की तड़प भी एकदूजे के लिए बराबर ही होती है. एक कमरे में नया साथी, नए कपडे, सैक्स, दोस्तों रिश्तेदारों के यहां आनाजाना, सब एक सा ही होता है, नयानया सब अच्छा ही लगता है. लेकिन अचानक से एक दिन दोनों में किसी बात पर बहस हुई और पत्नी रूठ कर मायके चली गई.

फिर वही दिनरात जो वे एकदूसरे की बांहों में बिता रहे थे. अचानक से विरह, एकदूसरे की याद और तड़प में बदल जाता है. दोनों आहें भरते हैं, अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलते हैं. साथ बिताया एकएक पल, अच्छे दिन भी याद करते हैं पर अपने प्रियतम को एक कौल करने का सफर सदियों सा जान पड़ता है. दिल चाहता है कि हम ऐसा करें पर दिमाग नामक शैतान अपनीअपनी ईगो को बीच में ले आता है और फिर हम मन मसोस कर तड़प कर रह जाते हैं कि मैं ही क्यों करूं? क्या वह नहीं कर सकता? ये कुछ दिन की दूरी सालों से लगती है.

मन साथी के पास जाने को बेचैन है पर कुछ है जो रोक देता है और फिर हम तकिये में मुंह छिपा कर उस वक्त को बिताने और साथी से न मिलने के विरह को दिल में दबाए घर में एक नौर्मल लाइफ जीने की नाकाम कोशिश में लग जाते हैं. जबकि सच है कि कुछ अच्छा नहीं लगता, मन है कि पिया के दीदार को तड़प रहा होता है. लेकिन अपने मन की तड़प किसे कहें.

घरवालों के सवालों का दौर भी शुरू हो जाता है

अभी ये सब चल ही रहा होता है कि घरवालों के सवाल जवाब भी शुरू हो जाते हैं. कितने दिन के लिए बोल कर आए हो बेटा ? नईनई शादी में इतने दिन मायके रहना अच्छा नहीं लगता? दामादजी से तो बात होती है न?

इन सब बातों पर लगी हुई चुप्पी एक दिन ज्वालामुखी की तरह फटती है और मन की सारी तड़प, शिकवे शिकायतों के रूप में आसुंओं के संग मौमडैड के आगे निकल पड़ती है, बस फिर क्या था. अब तो एक नई ही जंग शुरू हो जाती है.

उन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारी बेटी को कुछ कहने की? हम खुद दामादजी से बात करेंगे? और फिर बात नहीं सवालजवाब का ऐसा दौर शुरू होता है जिस में विरह कब नफरत में बदल जाता है पता ही नहीं चलता. प्यार की लड़ाई कब तेरेमेरे में बदल जाती है दोनों समझ ही नहीं पाते हैं.

तूने मेरे पेरैंट्स के लिए ऐसा बोला भी कैसे? फोन तो पहले तुम्हारे पापा ने किया न? तुम ने ढंग से बात तक नहीं की? तुम्हारी मम्मी ने मेरे मम्मी को 4 बातें, सुना कैसे दी?

ईगो में कुछ पता नहीं चलता

इस तरह की हजार बातें होने लगती है. जो बात पहले नए जोड़े के बीच प्यार की लड़ाई थी वह अब ईगो और तेरेमेरे की लड़ाई में बदल जाती है. शायद ही लड़कालड़की अपनी पेरैंट्स को ले कर इतने सेंसिटिव कभी हुए हों जितना अब हो जाते हैं बात मरनेमारने पर आ जाती है.

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसे हवा अपने ही मौमडैड के द्वारा दी जा रही होती है. कल तक जो परिवार और दामाद उन की बेहतरीन पसंद था आज वो सब से बुरा हो गया क्योंकि उन की वजह से लाड़ली की आंखें जो कुछ पलों के लिए भीग गई. उस पल दो पल की आंसुओं का बदला वे खुद ही अपने बच्चों से पूरी जिंदगी के आंसू और दुःख उन की आंखों में भर कर देते हैं.

कुछ ही दिनों में मौमडैड यह फैसला कर बैठते हैं कि अब हम तुझे ससुराल नहीं भेजेंगे. वहीँ दूसरी तरफ ससुराल वाले भी बेटे को समझाने में लग जाते हैं कि हम तेरे लिए एक से एक लड़की की लाइन लगा देंगे इसे छोड़ तू. ऐसा करते वक्त वे ये बात भूल जाते हैं कि उसी लाइन में से तो वे अपनी इस बहु को चुन कर लाए थे, जो आज इतने बुरी हो गई क़ि उस से पीछा छुड़ाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.

मौमडैड की दखलंदाजी बच्चों के लिए सजा

लेकिन सवाल है कि क्या यह सही है पतिपत्नी दोनों परिपक्व हैं? सोचसमझ कर ही उन्होंने शादी की है, अगर किसी बात को ले कर उन का मनमुटाव हो भी गया है तो पूरे खानदान को उस में घुसपैठ कर अपने अकल के घोड़े दौड़ाने की जरुरत नहीं है.

ये नए जोड़े का एकदूसरे को समझने और आपसी अंडरस्टैंडिंग डेवलप करने का टाइम पीरियड चल रहा है. जिस में 10 बार प्यार होगा तो 15 बार लड़ाई भी होगी क्योंकि दोनों एकदूसरे को अभी समझ ही रहे हैं, एकदूसरे की अच्छी बुरी बातों को एक्सैप्ट करने में उन्हें टाइम लग रहा है और उसी का नतीजा ये लड़ाई है.

लेकिन पेरैंट्स जो कल तक अपने बच्चों का घर बसाने के लिए मरे जा रहे थे आज वही उस से तुड़वाने के लिए वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं. वह भी बिना ये जाने की क्या इस में उन के बच्चों की ख़ुशी है भी या नहीं ?

जीवन भर का गम क्यों

हो सकता है वे दोबारा शादी ही न करें या फिर करना भी चाहें तो क्या गारंटी है इस बार उन में लड़ाई नहीं होगी या जीवनसाथी बहुत ही अच्छा मिल जाएगा?

ऐसा भी तो हो सकता है सालोंसाल निकल जाए और बच्चों को कोई पसंद ही न आए? इसलिए आप को बीच में पड़ने की इजाजत भला किस ने दी?

आप का काम बच्चों की शादी करा कर ख़त्म हो गया है अब उन की जिंदगी है, उन की गृहस्थी है, उन्हें अपने ढंग से हैंडल करने दें.

उन्हें खुद की गलतियों से सीखने दें

जब तक वे आप की राय न मांगे तब तक न दें, जब तक कोई बड़ी बात न हो उन्हें रिश्ता तोड़ने के बजाए निभाने की सलाह दें.

हां आप इतना अवश्य करें की बेटी की शादी के बाद उस का कमरा कुछ समय के लिए वैसा ही रहने दें. ताकि उसे यह भरोसा रहे कि मेरा अपना कुछ है और अगर मैं वापस आ गई हूं तो किसी को मेरे आने से परेशानी नहीं है. मैं अपने खुद के कमरे में हूं और आराम से अपने और अपने रिश्ते के बारे में सोच सकती हूं.

शुरूआती दिन कठिन

शादी के पहले कुछ हफ्तों तक कपल्स अपने हनीमून पीरियड्स में होते हैं. इस दौरान दोनों एकदूसरे को अच्छा और कंफर्ट महसूस कराने के लिए हर बात में सहमति जताते हैं. लेकिन इस के बाद चीजें बदलने लगती हैं. पति और पत्नी के पहले 365 दिन अकसर सब से कठिन होते हैं. क्योंकि इस दौरान आप चीजों को अपने अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, जिस के वजह से कभीकभी पार्टनर के साथ लड़ाई भी हो जाती है.

लेकिन इस प्यार की लड़ाई को बड़ा बनते भी देर नहीं लगेगी. अपनी लड़ाई को इतना भी न खींचें कि चाहेअनचाहे बाकि लोगों को इन्वोल्व होने का मौका मिल जाएं. अगर बात बड़ी है तो सोचने का टाइम अवश्य लें. लेकिन अगर बात बहुत बड़ी नहीं है तो उसे इग्नोर करें. वैसे भी अभी आप एकदूसरे को जानते ही कितना हैं. इसलिए छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे को जज न करें बल्कि एकदूसरे को समझने का मौका दें.

अब थोड़ा समय दूर रह कर एकदूजे की कमी, अहमियत समझ आ गए होगी. इसलिए अपने रिश्ते के बारे में सोचें, एकदूसरे को समझने के इस टाइम पीरियड में रिश्ता तोड़ने की नहीं बल्कि निभाने की सोचें.

जिस तरह की तड़प आप के अंदर है वैसी ही तड़प साथी में भी होगी इसलिए दोनों एकदूसरे को मना लीजिए और याद रखिए पहल करने वाला छोटा नहीं होता बल्कि सामने वाले की नजरों में उस की इज्जत ओर भी बढ़ जाती है.

पहली डिबेट में डोनाल्ड ट्रंप पर भारी पड़ीं कमला हैरिस

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में इलैक्टोरल कालेज सिस्टम का प्रयोग होता है. इसलिए अधिक मतदान से ज्यादा जरूरी यह है कि आप किन राज्यों में जीत दर्ज कर रहे हैं. अमेरिका में 50 राज्य हैं. लेकिन यह देखा गया है कि इन राज्यों में अधिकतर मतदाता हमेशा एक ही पार्टी को वोट देते हैं. ऐसे राज्य बहुत कम हैं जहां दोनों उम्मीदवार जीत की उम्मीद लगा सकें. मगर यही राज्य चुनाव में जीत और हार तय करते हैं. इन्हें अमेरिका में बैटलग्राउंड स्टेट्स कहा जाता है.

फ़िलहाल सात बैकग्राउंड राज्यों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर जारी है. इन में पेनसिल्वेनिया राज्य काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यहां इलैक्टोरल कालेज के सर्वाधिक वोट हैं. और यहां मिली जीत के सहारे कोई भी उम्मीदवार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक 270 इलैक्टोरल कालेज के वोटों का जादुई आंकड़ा छू सकता है.

पेनसिल्वेनिया, मिशिगन और विस्कानसिन 2016 में ट्रंप के राष्ट्रपति पद के चुनाव जीतने से पहले डैमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ था. जो बाइडन ने 2020 के चुनावों में इसे वापस हासिल कर लिया. अगर कमला हैरिस वैसा प्रदर्शन कर सकीं तो वो निश्चित चुनाव जीत जाएंगी, इस में कोई शक नहीं है.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट 10 सितम्बर को हुई जो काफी दिलचस्प और आक्रामक रही. करीब 90 मिनट तक चली इस डिबेट में कमला हैरिस और ट्रंप ने एकदूसरे की नीतियों की जम कर आलोचना की और एकदूसरे पर व्यक्तिगत हमले भी किए.

कमला हैरिस ने डोनाल्ड ट्रंप पर चल रहे मुकदमों और 2020 के चुनाव में हार न स्वीकारने को ले कर जोरदार हमला किया. वहीं मौडरेटर ने जब ट्रंप की एक विवादास्पद टिप्पणी जिस में उन्होंने कमला हैरिस की नस्ली पहचान के बारे में कहा था, को ले कर सवाल उठाया तो ट्रंप उस सवाल को टालते हुए कहा, ‘मुझे फर्क नहीं पड़ता कि वो क्या हैं.’ इस पर कमला हैरिस ने उन को आड़े हाथों लिया और बोलीं, ‘ये एक त्रासदी है. वो व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहता है, जिस ने हमेशा अमेरिका को नस्लीय आधार पर बांटने की कोशिश की है.’

90 मिनट की बहस में कमला हैरिस की आक्रामक बहस ने डोनाल्ड ट्रंप को बारबार परेशान किया. कमला हैरिस ने ट्रंप को उन की रैली में भीड़ की संख्या और कैपिटल हिल पर हुए हमले को याद दिलाया. हैरिस ने उन अधिकारियों का भी जिक्र किया जो कभी ट्रंप के साथ थे और अब उन की जम कर आलोचना करते हैं. कमला हैरिस ने ट्रंप को उकसाया कि वो उन अधिकारियों का बचाव करें. हालांकि ट्रंप हैरिस की मंशा समझ रहे थे इसलिए वे उन की ज्यादातर बातों को टालने की कोशिश करते नजर आए. कई जगह ट्रंप कमला हैरिस के तर्कों के सामने बेबस भी दिखे.

जैसेजैसे डिबेट आगे बड़ी, कमला हैरिस ने ट्रंप को बचाव की मुद्रा में ला दिया. हैरिस ने कई तरह से प्रहार और कटाक्ष किए, जिन का जवाब देने के लिए ट्रंप बाध्य महसूस कर रहे थे. अगर बहस इस बात पर जीती या हारी जाती है कि उम्मीदवार उन मुद्दों का सब से अच्छा फायदा उठाए जो मतदाताओं से सीधे जुड़े हैं तो कमला हैरिस इस मामले में भी सफल रहीं. कमला हैरिस मुद्दों को अपने हिसाब से मोड़ने में भी कामयाब रहीं.

कमला हैरिस ने ट्रंप को कमजोर कह कर उन का मजाक उड़ाया. उन्होंने कहा कि विदेशी नेता उन पर हंस रहे थे. वे इतने बोरिंग भाषण देते हैं कि लोग थकान और ऊब के कारण उन की रैलियों से जल्दी चले जाते हैं.

अमेरिका के लोग सोच रहे थे कि कमला हैरिस महंगाई, अप्रवासन और अफगानिस्तान वापसी जैसे विषयों पर कमजोर पड़ जाएंगी. मगर उन्होंने बहुत प्रभावशाली ढंग से उन मुद्दों पर बहस की, जबकि अधिकांश मामलों में ट्रंप अपने प्रहारों को प्रभावी ढंग से पेश करने में असमर्थ रहे और आने वाले दिनों में उन्हें इस चूक के लिए अफसोस हो सकता है.

दोनों उम्मीदवारों ने अमेरिकी मुद्दों के साथ रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास जंग, अमेरिकी सीमा से जुड़ी समस्या, अप्रवासन, अर्थव्यवस्था, कैपिटल हिल दंगे और अबौर्शन जैसे मुद्दों पर भी जम कर बहस की. उन की बहस में चीन, रूस, यूक्रेन, इजरायल और ईरान का मुद्दा भी बारबार उठा.

अर्थव्यवस्था या बौर्शन जैसे मुद्दों पर भी हैरिस ने सीधे कैमरे में देखते हुए अपनी बात रखी, मानो वो सीधे वोटर्स से बात कर रही हों. वहीं ट्रंप पूरी डिबेट में हैरिस से आंख मिलाने से बच रहे हैं. कई बार तो वो हैरिस के सवालों पर उन की ओर उंगली दिखा कर बात करते दिखे. अबौर्शन के मुद्दे पर डिबेट के दौरान ट्रंप काफी भड़क गए.

ट्रंप ने आरोप लगाया कि अगर कमला हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं तो वो अबौर्शन से जुड़े नियम बदल देंगीं. इस पर कमला ने ट्रंप पर झूठ बोलने का आरोप लगाया. जब ट्रंप से सवाल किया गया कि आपने कहा था कि 6 हफ्ते बाद भी अबौर्शन की अनुमति देंगे, लेकिन आप पलट गए. तो ट्रंप ने जवाब देते हुए कहा, ‘डैमोक्रेटिक पार्टी प्रैग्नेंसी के 9वें महीने में अबौर्शन का अधिकार देना चाहती है. वर्जीनिया के पूर्व गवर्नर ने कहा था कि बच्चा पैदा होने के बाद देखा जाएगा कि उस का क्या करना है. जरूरत पड़ी तो उसे मार देंगे. इसलिए मैं ने अपना पक्ष बदला.’

इस पर पलटवार करते हुए कमला हैरिस ने कहा, ‘ट्रंप सिर्फ झूठ बोल रहे हैं. ट्रंप की वजह से आज 20 राज्यों में अबौर्शन पर बैन है. इस की वजह से एक रेप पीड़िता को अपने लिए फैसला लेने में दिक्कत आ रही है.’ कमला हैरिस ने कहा कि ट्रंप नहीं बता सकते कि महिलाओं को अपने शरीर के साथ क्या करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रपति बनी तो अबौर्शन को मंजूरी देने देने वाला कानून लाया जाएगा.

दरअसल, अमेरिकी चुनाव में अबौर्शन एक बहुत बड़ा मुद्दा है. कमला हैरिस ने संघीय स्तर पर अबौर्शन के अधिकार को बहाल करने का वादा किया है. जबकि, ट्रंप का मानना है कि इस मुद्दे पर फैसला लेने का अधिकार राज्यों को होना चाहिए.

अमेरिका में अबौर्शन महिलाओं के लिए एक बड़ा और सेंसिटिव मुद्दा है. दो साल पहले तक अमेरिका में अबौर्शन का अधिकार था. 1973 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड मामले में फैसला देते हुए महिलाओं अबौर्शन को अधिकार दिया था. रो बनाम वेड मामले में फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक महिला को अपनी प्रैगनेंसी खत्म करने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को प्रैगनेंसी के 24 हफ्ते तक अबौर्शन करने का अधिकार दे दिया था. ये फैसला संघीय स्तर पर लागू हुआ, जिस कारण देशभर की सभी महिलाओं को अबौर्शन का अधिकार मिल गया. लेकिन, जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि अबौर्शन को ले कर अमेरिका के अलगअलग अपने हिसाब से कानून बना सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से पहले अमेरिका के 13 राज्य अबौर्शन को गैरकानूनी करार देने वाले कानून लागू कर चुके थे. और इस फैसले के बाद अब तक कई राज्य अबौर्शन पर पूरी तरह या फिर आंशिक रूप से प्रतिबंध लगा चुके हैं. न्यूयौर्क टाइम्स के मुताबिक, अमेरिका के 22 राज्य ऐसे हैं, जहां अबौर्शन पर या तो पूरी तरह प्रतिबंध है या फिर आंशिक रूप से.

अमेरिका की ज्यादातर महिलाएं अबौर्शन का कानूनी अधिकार चाहती हैं. इसी साल फरवरी में एक सर्वे हुआ था, जिस में ज्यादातर महिलाओं ने अबौर्शन का कानूनी हक मिलने की बात मानी थी. इस सर्वे में शामिल 74% महिलाओं ने माना था कि सभी मामलों में अबौर्शन का कानूनी अधिकार होना चाहिए. जबकि, जिन राज्यों में अबौर्शन पर बैन है, वहां की 67% महिलाओं का भी यही मानना था. एक सर्वे में शामिल रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों में से 57% ने ही अबौर्शन का हक मिलने की बात कही थी. जबकि, डैमोक्रेटिक पार्टी के 85% समर्थकों ने अबौर्शन के कानूनी अधिकार का समर्थन किया था. कमला हैरिस जहां अबौर्शन पर फैसला लेने का हक महिलाओं को देना चाहती हैं वहीं ट्रंप रूढ़िवादी जंजीरों में जकड़े हुए हैं. वे महिलाओं को अपने शरीर को ले कर आजाद नहीं होने देना चाहते. वे महिलाओं के शरीर को पुरुष के अधिकार में रखने के हिमायती हैं.

डिबेट के अंत में कमला हैरिस ने कहा, ”अमेरिका के भविष्य को ले कर उन का और ट्रंप का नजरिया बिल्कुल अलग है. मेरा ध्यान भविष्य पर है. ट्रंप अतीत में अटके हैं.”

ट्रंप ने कहा, ”कमला हैरिस की नीतियों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि बीते 4 सालों में उन्होंने कुछ हासिल नहीं किया है. हमारा देश बरबादी के रास्ते पर है. पूरा विश्व हम पर हंस रहा है. अगर नवंबर में हैरिस चुनाव में जीत जाती हैं तो तीसरा विश्व युद्ध संभव है.”

गौरतलब है कि ट्रंप ने पिछली बहस में राष्ट्रपति जो बाइडेन को अपनी बहस और तर्कों से चुप करा दिया था, जबकि इस बार हैरिस ने अपने तर्कों से ट्रंप के पसीने छुड़ा दिए हैं.

हैरिस ने ट्रंप को 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को पलटने की कोशिश करने और कैपिटल हिल पर हिंसक भीड़ को उकसाने का दोषी ठहराया. उन्होंने तर्क दिया कि वह अमेरिका में ऐसे राष्ट्रपति को नहीं देख सकते जो अतीत की तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में मतदाताओं की इच्छा को कुचलने का प्रयास करे.

इस पर ट्रंप ने अपना बचाव करते हुए कहा कि 6 जनवरी, 2021 को कैपिटल पर हुए हमले से उनका कोई लेनादेना नहीं है. बहस के दौरान अमेरिका की आर्थिक नीतियों को ले कर भी दोनों में टकराव दिखा. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था भयानक हो चुकी है, मुद्रास्फीति भी रिकौर्ड स्तर पर है, जो लोगों के लिए आपदा है. वहीं हैरिस ने छोटे स्टार्टअप के लिए पर्याप्त कर क्रेडिट की अपनी योजनाओं का विस्तार से वर्णन किया, ट्रंप ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अनुचित विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए टैरिफ पर ध्यान केंद्रित किया.

जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कई अमेरिकी इस बात से नाखुश हैं कि बाइडन प्रशासन ने महंगाई और अर्थव्यवस्था को कैसे संभाला है. लेकिन हैरिस ने इस विषय को ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ की ओर मोड़ दिया, जिसे उन्होंने “ट्रंप बिक्री कर” करार दिया. डिबेट के दौरान कमला हैरिस का हाव भाव बहुत प्रभावी दिखा.

प्रवासियों के मुद्दे पर भी ट्रंप की बातों का कोई सबूत नहीं था. रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने प्रवासियों पर कुछ ऐसे आरोप लगाए, जिस को मौडरेटर ने ही ग़लत बताया. प्रवासियों को ले कर ट्रंप ने बेतुके दावे किए कि वे ‘पालतू जानवरों को खाते हैं.’

ट्रंप ने कहा, “वे कुत्तों को खाते हैं. वे लोगों के पालतू जानवरों को खाते हैं.”

डिबेट के मौडरेटर डेविड मुइर ने कहा कि ‘स्प्रिंगफील्ड के सिटी मैनेजर ने कहा है कि इस तरह का कोई सबूत नहीं है.’

ट्रंप ने कहा, “मैं ने टीवी पर ये कहते हुए लोगों को सुना कि मेरे कुत्ते को चुरा कर खा लिया गया.”

इस पर कमला हैरिस ने उन को आड़े हाथों लिया और कहा कि ट्रंप ‘बहुत बढ़ाचढ़ा कर बातें’ करते हैं.

स्प्रिंगफ़ील्ड के अधिकारियों ने साफ़ कहा कि इस तरह की कोई विश्वसनीय रिपोर्ट नहीं है कि ऐसा वाक़ई हुआ है.

डिबेट के दौरान रूस-यूक्रेन यूद्ध को ले कर भी बहस हुई. डोनाल्ड ट्रंप से पूछा गया कि “क्या वो यह चाहते हैं कि यूक्रेन युद्ध जीते?”

इस पर ट्रंप ने कहा, “मैं चाहता हूं कि वार रुक जाए.”

यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से अमेरिका पर पड़ने वाले असर पर ट्रंप ने कहा कि इस युद्ध में यूरोप को अमेरिका की तुलना में बहुत कम कीमत चुकानी पड़ रही है.

उन्होंने कहा कि वह यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, दोनों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं.

ट्रंप ने जो बाइडन को ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति कहा जो कहीं दिखते नहीं हैं.

इस पर कमला हैरिस ने पलटवार किया. हैरिस ने कहा, “आप बाइडन के खिलाफ नहीं लड़ रहे हैं, आप मेरे खिलाफ लड़ रहे हैं.”

वहीं यूक्रेन युद्ध के सवाल पर हैरिस ने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ उन के मजबूत रिश्ते हैं. उन्होंने ट्रंप से कहा, “हमारे नेटो सहयोगी बहुत आभारी हैं कि आप अब राष्ट्रपति नहीं हैं. नहीं तो पुतिन कीएव में बैठे होते और यूरोप के बाकी हिस्सों पर उन की नजर होती.”

हैरिस ने कहा, “पुतिन एक तानाशाह हैं.”

इस पर ट्रंप ने कमला हैरिस को अब तक की सब से खराब उप-राष्ट्रपति कहा.

उन्होंने दावा किया कि वो आक्रमण से पहले यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत कर के युद्ध को रोकने में असफल रहीं.

डिबेट में इजराइल-गज़ा के मुद्दे पर कमला हैरिस ने पुरानी बात ही दोहराई. उन्होंने कहा, “इजराइल को अपनी सुरक्षा का अधिकार है, लेकिन ये भी मायने रखता है कि इजराइल ये कैसे कर रहा है. ये युद्ध तुरंत खत्म होना चाहिए. साथ ही उन्होंने संघर्ष विराम और दो राष्ट्र समाधान की बात की.”

ट्रंप ने कहा, “ये संघर्ष शुरू ही नहीं होता अगर वो राष्ट्रपति होते.”

ट्रंप ने कहा, “हैरिस इजराइल से नफरत करती हैं. अगर हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं तो दो साल में इसराइल का कोई अस्तित्व नहीं बचेगा. जबकि मैं इस समस्या का तेजी से समाधान करूंगा.”

उन्होंने कहा कि ‘अगर वो दोबारा चुने जाते हैं तो रूस और यूक्रेन युद्ध को भी खत्म करेंगे.”

इस पर हैरिस ने चुटकी लेते हुए कहा, “सभी जानते हैं कि वो तानाशाहों को पसंद करते हैं और पहले दिन से ही वो खुद तानाशाह बनना चाहते हैं.”

अमेरिका के टैक्सास यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी के महिलाओं पर दिए बयान के मायने

20 सितंबर, 1953 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र के जरिये लिखा था, पिछले आम चुनाव में मैं ने महिला उम्मीदवारों पर बहुत जोर दिया था. मेरे प्रयासों के बाबजूद बहुत कम महिलाओं को उम्मेदवार बनाया गया था या वे चुनी गईं. यह पत्र काफी लंबा था जिस का सार यह था कि अगर हम आधी आबादी को पूरा मौका नहीं दे पाते तो यह उन की अनदेखी और हमारी मूर्खता है.

राजनीति का यह वह दौर था जब महिलाओं की उस में भागीदारी आटे में नमक के बराबर थी लेकिन नेहरू इसे बढ़ाना चाहते थे. इसी दौर में टुकड़ोंटुकड़ों में पेश किए जाने वाले हिंदू कोड बिल को ले कर हिंदूवादी हद से ज्यादा तिलमिलाए हुए थे और उसे रोकने सड़क से संसद तक हायहाय कर रहे थे.

सरिता के सितंबर 2024 के प्रथम अंक में पाठक इस तथ्यपरक और हाहाकारी रिपोर्ट ‘1947 के बाद कानूनों से रेंगती सामाजिक बदलाव की हवाएं’ को विस्तार से पढ़ सकते हैं जो अब बिक्री के लिए स्टोल पर उपलब्ध है. डिजिटल संस्करण के पाठक इसे सरिता की वैबसाइट पर पढ़ सकते हैं.

आंद्रे मालराक्स एक मशहूर फ्रांसीसी उपन्यासकार हैं, जो लगभग 10 साल फ़्रांस के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री भी रहे हैं, ने एक बार जवाहरलाल नेहरू से सवाल किया था कि स्वतंत्रता के बाद आप की सब से बड़ी कठिनाई क्या रही है. इस सवाल का जवाब नेहरू ने एक गेप लेते हुए दो बार में दिया था. पहला था, न्यायपूर्ण साधनों से न्यायपूर्ण राज्य का निर्माण करना और दूसरा था शायद एक धार्मिक देश में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण करना भी.

यही सवाल जब किसी और लेखक या पत्रकार ने साल 1958 में उन से पूछा था तब उन का जवाब हिंदू कोड बिल की तरफ इशारा करते हुए कुछ यों था, ‘महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए किए गए उपाय.’ जवाहरलाल नेहरु महिलाओं की दशा ( हकीकत में दुर्दशा ) सुधारने कितने गंभीर और प्रयासरत थे इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने 50 के दशक में ही कट्टर हिंदूवादियों से भिड़ते एलान कर दिया था कि अब हिंदू कोड बिल तभी पारित होगा जब जनता कांग्रेस को चुन लेगी.

यानी जनता चाहे तो इस मुद्दे पर उन्हें नकार भी सकती है. ये दोनों विकल्प नेहरू ने ही जनता के सामने रखे थे जिस में से जनता ने पहले को चुनना अपनी प्राथमिकता में रखा. कांग्रेस भारी बहुमत से जीती जिस में महिलाओं का भी खासा समर्थन उसे और नेहरू को मिला था. 1951 – 52 के आजाद भारत के पहले आम चुनाव का बड़ा मुद्दा हिंदू कोड बिल यानी कानूनों के जरिए समाज सुधार ही था. इस चुनाव में दक्षिणपंथियों ने फूलपुर लोकसभा सीट से नेहरु के खिलाफ आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर के बेहद करीबी प्रभु दत्त ब्रह्मचारी को खड़ा किया था जो हिंदू कोड बिल विरोध समिति के प्रमुख नेता थे. वे नेहरू के मुकाबले बड़े अंतर से हारे थे. तब नेहरु को 2,33,571 वोट और प्रभु दत्त को महज 56,178 वोट मिले थे. यह जीत एक तरह से हिंदू कोड बिल संसद में पास कराने की जनता की सहमति भी और अनुमति भी थी.

इस और ऐसी कई बातों को गुजरे जमाना हो गया है. इस दौरान बिलाशक महिलाएं न केवल राजनीति में बल्कि दूसरे क्षेत्रों में भी आगे बढ़ी हैं लेकिन यह सब उन के अस्तित्व की तरह आधाअधूरा ही है यानी संतोषजनक नहीं है. महिलाएं शिक्षित तो हुईं लेकिन जागरूक भी हो गई हैं ऐसा कहने की कोई वजह नहीं लेकिन ऐसा न कहने की अहम वजह यह है कि वे धार्मिक गुलामी से आजाद नहीं हो पाई हैं. अगर साल में लगभग सौ तरह के व्रत उपवास वह भी घर के पुरुषों की सलामती के लिए करना, धार्मिक समारोहों में कलश यात्रा में सर पर बोझा रख मीलों दूर नंगे पैर चलना, बाबाओं के प्रवचन जो आमतौर पर स्त्री विरोधी ही होते हैं को घंटों सुनना, मंदिरों में मूर्ति के दर्शन के लिए धक्के खाना और सुरक्षाकर्मियों की झिड़कियां सुनना वगैरह ही वे जागरूकता मान बैठी हैं तो यह उन की भारी भूल है. भूल क्या है एक तरह की मजबूरी है जिस से बाहर निकलने का कोई रास्ता न मिलते देख वे हताश हैं. लेकिन इस का यह मतलब भी नहीं कि इस घुटन से वे निजात नहीं पाना चाहतीं.

अमेरिका के डलास में टैक्सास यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने इस स्थिति का जिम्मेदार भाजपा और आरएसएस को ठहराते कहा कि उन का मानना है कि महिलाओं को पारंपारिक भूमिका तक ही सीमित रखा जाना चाहिए. घर पर रहना खाना बनाना और कम बोलना. हमारा मानना है कि महिलाओं को वह सब करने की आजादी होनी चाहिए जो वे करना चाहती हैं.

राहुल ने महिला सशक्तिकरण से ताल्लुक रखती और जो बातें कहीं उन्हें सियासी कहा जा सकता है लेकिन महिलाओं को एक दायरे में कैद रखने की साजिश को उजागर कर उन्होंने भारतीय घरों में झांकने की जो कोशिश की है वह उन के परदादा के विचारों और राजनीति दोनों से मेल खाती हुई है. दिलचस्प समानता यह है कि तब भी हिंदू कट्टरवाद शबाब पर था और कमोबेश आज भी है लेकिन 4 जून के बाद इस की सीमाएं सिमटी हैं लेकिन उस में दलितों मुसलमानों पिछड़ों और आदिवासियों का रोल ज्यादा अहम था बनस्पत सवर्ण महिलाओं के.

इस बयान का कितना असर होगा इस का आंकलन एकदम से नहीं किया जा सकता. लेकिन इतना तय है कि भगवा गैंग के पास इन आरोपों का कोई ठोस जवाब नहीं है. टेक्सस में कही गई संविधान और चुनाव आयोग सहित दूसरी बातों के लिए भाजपाई नेता प्रवक्ता उन्हें राष्ट्रद्रोही कहते रहे, इस के कोई माने नहीं हैं क्योंकि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेशों में जा कर विपक्ष को पानी पीपी कर कोस सकते हैं तो सरकार को कोसने का हक राहुल गांधी या किसी दूसरे विपक्षी नेता से छीना नहीं जा सकता.

लेकिन महिलाओं की कैद वाला मुद्दा आज भी उतना ही प्रासंगिक और संवेदनशील है जितना कि नेहरू युग में था. 2014 से ले कर 4 जून, 2024 मोदी युग रहा है जिस में धर्म और मंदिर की राजनीति दूसरे मुद्दों पर हावी रही. इस का फर्क सवर्ण महिलाओं पर भी पड़ा वे भी अपने पुरुषों की तरह कट्टरता का शिकार हुईं. क्योंकि उन्हें मुसलमानों की आड़ ले कर इतना डरा दिया गया था कि उन्हें भगवान ही आखिरी सहारा लगा सो उन्होंने और जम कर पूजापाठ किया. इसी तबके की महिलाओं को अपने पाले में लाने की राहुल की इस नई चाल की कामयाबी इस बात पर निर्भर रहेगी कि कांग्रेसी इसे महिलाओं को कैसे समझा पाते हैं.

यहां तक तो भाजपा और संघ दोनों बेफिक्र हैं कि महिलाएं व्रत उपवास करती रहेंगी, मंदिरों में जाती रहेंगी, सत्संग और माता की चौकी जैसे आयोजनों में अपना वक्त और एनर्जी बरबाद करती रहेंगी क्योंकि इस के लिए देश में 10 साल में सैकड़ों छोटेबड़े बाबा उन्होंने तैयार कर छोड़ दिए हैं. लेकिन उन्हें डर इस बात का है कि कल को महिलाएं यह न सोचने और पूछने लगें कि यह सब हम क्यों करें.

ऐसा होना नामुमकिन नहीं है पर संघ और भाजपा के मंदिरों में बैठे एजेंट कब तक महिलाओं को बरगलाए और डराए रखने में कामयाब रहते हैं यह कम दिलचस्पी की बात नहीं. महिला तर्क न करे इस बाबत उसे आस्थावान बनाए रखे जाने के प्रपंच ये लोग रचते हैं. हैरत की बात तो यह है कि इस में पुरुषों की भी सहमति है जिन की धार्मिक कार्यों में भागीदारी महिलाओं के मुकाबले एकचौथाई भी नहीं होती जबकि धर्म के सहारे हासिल की गई सत्ता के सारे सूत्र और ताकत उन के हाथ में ही रहते हैं. यानी महिला इस लिहाज से भी मोहरा ही है.

कांग्रेसियों के सामने यह एक बड़ी चुनौती है और आगे भी रहेगी कि बगैर महिलाओं की आस्था को चोट पहुंचाए उन्हें यह वास्तविकता कैसे बताई जाए कि कैसेकैसे धर्म के नाम पर उन्हें घरों में कैद रखे जाने के षड्यंत्र कुछ इस तरह रचे जाते हैं कि वे इन्हें ही अपनी नियति और जिंदगी मानने लगती हैं.

नेहरू तमाम कोशिशों के बाद भी महिलाओं को एक सीमा तक ही शिक्षित कर पाए जो उस वक्त की मांग और जरूरत दोनों थे कि महिलाएं अपने अधिकार जाने, स्वावलंबी बने, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने जो होता भी दिख रहा है. अब राहुल उन महिलाओं को जागरूक कैसे कर पाते हैं यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा.

शिवा की बीवी का आशिक

नई उम्र के 2 थानेदार थे, जिन में से एक का नाम था अकबर शाह और दूसरे का नाम तलजा राम. दोनों बहुत बहादुर, दिलेर और निडर थे. दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी, इतनी घनिष्ठता कि एकदूसरे के बिना जीना भी अच्छा नहीं लगता था. उन की तैनाती कहीं भी हो, लेकिन मिलने के लिए समय निकाल ही लेते थे. दोनों कभीकभी अवैध काम भी कर जाते थे, लेकिन करते इतनी चालाकी से थे कि किसी को उस की भनक तक नहीं लगती थी. दोनों बहुत बुद्धिमान थे, इसीलिए बहुत अकड़ कर चलते थे.

सन 1930 की जब की यह कहानी है तब सिंध में पुलिस के थानेदार को सूबेदार कहते थे. उस समय सूबेदार इलाके का राजा हुआ करता था. अकबर शाह और तलजा राम की भी दूसरे सूबेदारों की तरह बहुत इज्जत थी. अकबर शाह ऊंचे परिवार का था, इसलिए हर मिलने वाला पहले उस के पैर छूता था और बाद में बात करता था. तलजा राम भी उच्च जाति का ब्राह्मण था.

एक बार दोनों एक हत्या के मामले में फंस गए. हत्या जिला मीरपुर खास के पथोरो रेलवे स्टेशन पर हुई थी. वहीं से कुछ देर पहले अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार हुए थे. रेलवे पुलिस के एसपी ने स्वयं विवेचना की और कह दिया कि हत्या दोनों के उकसावे पर की गई. देश की सभी रेलवे लाइन एकदूसरे से जुड़ी हुई थीं. फरंटियर मेल (अब स्वर्ण मंदिर मेल) मुंबई और लाहौर तक आतीजाती थीं, इसी तरह बीकानेर और जोधपुर से रेलवे की गाडि़यां हैदराबाद सिंध तक आतीजाती थीं.

एक शाम ऐसी ही एक गाड़ी में अकबर शाह और तलजा राम सवार होने के लिए पथोरो रेलवे स्टेशन पर बड़ी शानबान से आए. जोधपुर से आने वाली गाड़ी जब पथोरो स्टेशन पर आ कर रुकी तो दोनों झट से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में बैठ गए.

उन दिनों गाडि़यों में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी. उस डिब्बे से जिस में ये दोनों सवार हुए थे, रेलवे का एक अधिकारी उतरा जो पथोरो स्टेशन का निरीक्षण करने आया था. जब उस ने प्लेटफार्म पर भीड़ एकत्र देखी तो स्टेशन मास्टर से पूछा. उस ने बताया कि इस इलाके का सूबेदार सफर करने जा रहा है, ये भीड़ उसे छोड़ने आई है.

रेलवे का अधिकारी कुछ अनाड़ी किस्म का था, वह रेलवे का कुछ ज्यादा ही हितैषी था. उसे लगा कि पुलिस का एक सूबेदार फर्स्ट क्लास में कैसे यात्रा कर सकता है. उस ने टीटी को बुला कर कहा कि उन के टिकट चैक करे. जब टीटी ने टिकट मांगे तो अकबर शाह जो इलाके का सूबेदार था, उसे अपना अपमान लगा. उस ने गुस्से में दोनों टिकट निकाल कर टीटी के मुंह पर दे मारे. टिकट सेकेंड क्लास के थे. टीटी ने रेलवे अधिकारी की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘इन से कहो कि उतर कर सेकेंड क्लास में चले जाएं.’’

अकबर शाह को बहुत गुस्सा आया. लेकिन मजबूरी यह थी कि यह थाना नहीं रेलवे स्टेशन था, इसलिए उस ने तलजा राम को इशारा किया. दोनों उतर कर सेकेंड क्लास के डिब्बे में बैठ गए. गाड़ी हैदराबाद के लिए रवाना हो गई. अगली सुबह पुलिस को सूचना मिली कि पथोरो स्टेशन के प्लेटफार्म पर जोधपुर से आए रेलवे अधिकारी को किसी ने सोते में कुल्हाडि़यों के घातक वार कर के मार डाला है.

रेलवे के एसपी मंझे हुए अधिकारी थे, चूंकि हत्या रेलवे स्टेशन की सीमा में हुई थी इसलिए विवेचना भी रेलवे पुलिस को करनी थी. मृतक बीकानेर रेलवे का कर्मचारी था. उन लोगों ने शोर मचा दिया, जिस से सिंध की बदनामी होने लगी. जोधपुर रेलवे पुलिस ने हत्यारों का पता बताने वाले को 500 रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. बीकानेर वाले क्यों पीछे रहते उन्होंने भी 1000 रुपए के इनाम का ऐलान कर दिया.

मामला बहुत नाजुक था, इसलिए उस की तफ्तीश स्वयं एसपी ने संभाल ली. वह घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, गवाहों के बयान लिए. जब उन्हें पता लगा कि मृतक की 2 सूबेदारों से तूतूमैंमैं हुई थी तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि हत्या उन दोनों ने ही कराई होगी. वे दोनों सूबेदार थे, यह कैसे सहन कर सकते थे कि उन्हें फर्स्ट क्लास के डिब्बे से उतर कर सेकेंड क्लास में बैठना पड़ा.

वह भी उन चाटुकारों के सामने जो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे. उन दोनों के बारे में यह भी मशहूर था कि वे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से संबंध रखते थे. उन के लिए हत्या कराना बाएं हाथ का खेल था.

मृतक परदेसी आदमी था, जो एक दिन के लिए यहां आया था. वहां न तो उसे कोई पहचानता था और न उस की किसी से दुश्मनी थी. उस की हत्या उन दोनों सूबेदारों ने ही कराई थी. माना यह गया कि उन्होंने पथोरो से अगले स्टेशन पर पहुंच कर किसी बदमाश को इशारा कर दिया और वह बदमाश एक माल गाड़ी से जो पथोरो जा रही थी, उस में बैठ कर पथोरो स्टेशन पहुंचा. वह अफसर प्लेटफार्म पर सो रहा था, उस बदमाश ने कुल्हाड़ी के वार कर के उस की हत्या कर दी और भाग गया.

एसपी साहब ने अपनी रिपोर्ट डीआईजी को भेज दी और दोनों सूबेदारों की गिरफ्तारी की इजाजत मांगी. उन दिनों सिंध का उच्च अधिकारी डीआईजी हुआ करता था. रिपोर्ट डीआईजी के पास पहुंची तो उन्होंने एसपी साहब को बुला कर उन से इस मामले में बात की. फिर दोनों सूबेदारों को बुला कर पूछा कि उन पर हत्या का आरोप है तो दोनों भौचक्के रह गए.

हत्या और हम, दोनों ने कानों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप यह सोच भी कैसे सकते हैं. हम कानून के रक्षक हैं और कानून तोड़ने की सोच भी नहीं सकते. हमारा काम लोगों की जान बचाना है, जान लेना नहीं. मृतक ने हमारा अपमान जरूर किया था और हमें गुस्सा भी आया था लेकिन इतनी छोटीसी बात पर हत्या नहीं हुआ करती.’’

डीआईजी साहब ने उन की बात ध्यान से सुनी, एसपी से सलाह भी ली, उन्हें रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए कहा, लेकिन बेकार. एसपी साहब टस से मस नहीं हुए.

एसपी ने कहा, ‘‘आप को हत्यारा चाहिए, आप अकबर शाह और तलजा राम को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दीजिए, हत्यारा स्वयं चल कर आ जाएगा.’’ लेकिन डीआईजी साहब तैयार नहीं हुए.

मैं उन दिनों सिंध क्राइम ब्रांच में एसपी था. मेरे पास ऐसे बहुत से केस आते रहते थे. एक दिन मेरी मेज पर रेलवे एसपी साहब की तफ्तीश की फाइल भी आ पहुंची. डीआईजी ने मुझे उस की तफ्तीश के लिए कहा था. साथ ही अकबर शाह और तलजा राम को मीरपुर खास से दूसरे शहर में तैनात कर दिया, जिस से तफ्तीश में कोई बाधा न पडे़े.

रेलवे के एसपी साहब मेरे सीनियर भी थे और अच्छे दोस्त भी. तफ्तीश में हिचकिचाहट तो हो रही थी लेकिन हुक्म तो हुक्म था, इसलिए मैं ने काम शुरू कर दिया.

सब से पहले मैं एसपी साहब से मिला और उन से तफ्तीश के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि वे दोनों कैसे आदमी हैं. उन दोनों की प्रसिद्धि आप ने भी सुन रखी होगी. अपने अपमान का बदला कैसे लेते हैं, यह भी आप जानते होंगे. उन के लिए हत्या करवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मृतक कोई आम आदमी नहीं, रेलवे का उच्च अधिकारी था. उस की हत्या करने की हिम्मत उन के अलावा किसी में नहीं हो सकती.’’

‘‘यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी की इतनी जल्दी हत्या करवाना भी तो संभव नहीं है. पथोरो से गाड़ी रात के 8 बजे चली, शादीपुर स्टेशन वहां से 14 मील दूर है. गाड़ी वहां करीब 9 बजे पहुंची होगी, 4 मिनट वहां ठहरी भी होगी. अकबर और तलजा राम वहां नहीं उतरे, बल्कि हैदराबाद गए थे. उन्होंने 2-4 मिनट में हत्यारा कैसे तलाश कर लिया, जो वहां से गाड़ी में सवार हो कर पथोरो जा पहुंचा.’’

‘‘यह सब तो ठीक है लेकिन सवाल यह है कि फिर हत्या किस ने की? वह तो पथोरो पहली बार आया था. वह सीधासादा इंसान था. उस का न किसी से लेना था न देना. न झगड़ा न फसाद, उस का अचानक दुश्मन कैसे पैदा हो गया? जाइए इन सूबेदारों के अलावा कोई और हत्यारा ढूंढि़ए.’’

मैं पथोरो जाने के लिए तैयार हुआ, मेरे साथ मेरा अर्दली था. हैदराबाद से पथोरो 105 मील था. मुझे वहां पहुंचने में 5 घंटे लगे. पथोरो स्टेशन दूसरे कस्बों के स्टेशनों जैसा छोटा सा था और वीरान पड़ा था.

वहां पहुंच कर स्टेशन के वेटिंग रूम में अपना सामान रख कर मैं स्टेशन मास्टर से मिला. घटनास्थल का निरीक्षण किया, रेलवे एसपी साहब की रिपोर्ट को दोबारा पढ़ा. अपना काम शुरू करने से पहले मैं ने एसपी साहब की रिपोर्ट में लिखी खास बातों को देखा और उन पर आगे की काररवाई करने का निश्चय किया.

उस दिन जिस ट्रेन में मृतक और सूबेदार यात्रा कर रहे थे, वह जोधपुर से हैदराबाद जा रही थी. मृतक पहले से ही उस में सवार था. पथोरो पहुंच कर जब वह गाड़ी से उतरा, तभी अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार होने लगे. उन्हें फर्स्ट क्लास में सवार होते देख कर मृतक को संदेह हुआ, उस ने टीटी से कह कर उन के टिकट चैक करवाए. उन के टिकट फर्स्ट क्लास के नहीं थे इस पर उस ने उन्हें फर्स्ट क्लास से निकलवा दिया. फिर गाड़ी आगे के लिए रवाना हुई.

उस समय रात के 8 बजे थे. दोनों सूबेदार जब अगले स्टेशन शादीपुर पहुंचे तब रात के 9 बजे थे. उस समय वहां एक माल गाड़ी पथोरो जाने के लिए तैयार हो रही थी. दोनों सूबेदारों के चोरों के साथ संबंध थे. उन्होंने उस रेलवे अफसर को ठिकाने लगाने के लिए वहां एक बदमाश को ढूंढ निकाला. वह हत्या करने के लिए तुरंत तैयार हो गया और उसी माल गाड़ी में बैठ कर पथोरो पहुंच गया.

दोनों सूबेदार हैदराबाद चले गए. उस हत्यारे ने प्लेटफार्म पर सोेते हुए रेलवे अफसर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी. कहानी अच्छी थी, लेकिन किसी भी तरह मुझे सच नहीं लग रही थी. वे दोनों सूबेदार बदमाश होंगे, हत्या भी करवा सकते थे लेकिन इतनी जल्दी यह काम नहीं हो सकता था. मुझे इस पूरी कहानी पर यकीन नहीं आया.

मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाल कर पढ़ी. उस में लिखा था कि हत्या एक तेज धारदार हथियार से सिर की बाईं ओर वार कर के की गई थी. इस के अलावा पूरे शरीर पर कोई घाव नहीं था. इस से यह पता लगा कि जब मृतक की हत्या हुई तब वह बाईं ओर करवट ले कर सो रहा था.

मैं ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और उस के साथ उस जगह गया, जहां मृतक सोया हुआ था. वहीं खड़ेखड़े मैं ने उस से कुछ प्रश्न किए. उस ने बताया कि गाड़ी जाने के बाद मृतक मेरे कमरे में आया था. वह कुछ देर बैठा, अगले दिन के निरीक्षण के बारे में कुछ निर्देश दिए और वेटिंग रूम चला गया.

स्टेशन मास्टर ने उस से खाने को पूछा तो उस ने कहा कि वह खाना साथ लाया है. मैं ने एएसएम से कहा तो उस ने प्लेट फार्म के अंतिम सिरे पर उस के लिए एक पलंग लगवा दिया ताकि आनेवाली गाडि़यों से उस के आराम में खलल न पडे़. मृतक ने अपना बिस्तर खुद बिछाया और मुंह ढक कर सो गया.

उस के बाद सब लोग वहां से चले आए. बाकी स्टाफ तो अपने क्वार्टरों पर चला गया, लेकिन एएसएम अपने दफ्तर की एक बेंच पर सो गया. स्टेशन मास्टर तो बूढ़ा और वहां नया था, लेकिन एएसएम पुराना था और वहां के सब लोगों को जानता था. मैं ने उसे बुलवा कर उस से पूछा, ‘‘उस रात तुम कहां सोए थे?’’

‘‘जी, मैं स्टेशन मास्टर के दफ्तर के बाहर एक बेंच पर लेटा था.’’

‘‘वैसे तुम हर रात कहां सोते हो?’’

‘‘जी, मैं यहीं प्लेटफार्म के आखिरी सिरे पर सोया करता था.’’ उस ने कहा, ‘‘यहां हवा भी अच्छी आती है और शोर भी कम होता है. उस रात साहब यहां आए तो मैं ने उन के आराम की खातिर उन्हें यहीं सुला दिया था.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी और बच्चे कहां हैं?’’

उस ने दांत निकाल कर कहा, ‘‘जी, अभी मेरी शादी नहीं हुई है.’’

‘‘उस रात एक माल गाड़ी भी तो आई थी, कितने बजे पहुंची थी यहां?’’

‘‘जी हां,’’ उस ने कहा, ‘‘आई थी, वह यहां 2 बज कर 7 मिनट पर पहुंची थी. यहां लोडिंग का कोई काम नहीं था, इसलिए मैं ने लाइन क्लियर कर सिग्नल दे दिया था.’’

‘‘माल गाड़ी यहां कितने मिनट ठहरी?’’

‘‘यही कोई 3 मिनट.’’

‘‘कोई उतरा भी था?’’

‘‘जी नहीं, माल गाड़ी के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक घूमता रहा, यहां कोई आदमी नहीं था.’’ उस ने आगे बताया कि सुबह जब सूरज निकलने के बाद भी वह अफसर अपने बिस्तर से नहीं उठा तो मैं उस के पास गया, उस का मुंह चादर से ढंका था. मैं ने चादर हटा कर देखी तो उस का सिर फटा हुआ था और खून बह कर जम चुका था.

अब मैं ने सोचना शुरू किया, कहीं उस का दुश्मन जोधपुर से ही तो सवार नहीं हुआ था. ताकि सुनसान इलाके में अपना काम कर सके. मैं ने स्टेशन के पूरे स्टाफ से पूछा कि उस गाड़ी से किसी को उतरते तो नहीं देखा. उन्होंने बताया कि अपने अफसर को देख कर सब लोग उस के पास इकट्ठे हो गए थे. वैसे 2 आदमी और भी उतरे थे, उन के साथ उन की बीवी और बच्चे भी थे, वे यहीं के रहने वाले थे.

मैं ने स्टेशन मास्टर से उस के काम के बारे में भी सवाल किए. मैं सोच रहा था कि यह भी हो सकता था कि वह अफसर स्टेशन मास्टर के विरुद्ध किसी शिकायत की छानबीन करने आया हो और स्टेशन मास्टर ने उस की हत्या करा दी हो. स्टेशन मास्टर ने बताया कि वह तो स्टेशन पर साधारण सी चैकिंग के लिए आया था. उसे खुद भी अपने किसी अफसर से शिकायत नहीं थी. वैसे मृतक बहुत सज्जन पुरुष था.

मुझे पथोरो पहुंचे 3 दिन बीत चुके थे. इस बीच मैं बहुत से लोगों से मिला, आनेजाने वाली गाडि़यों को देखता रहा. हत्या के बारे में सोचता रहा.

चौथे दिन मैं ने टे्रन पकड़ी और जोधपुर पहुंच गया. मुझे लगा कि हत्यारा जोधपुर में है और मृतक का दुश्मन है. मृतक का हेडक्वार्टर भी वहीं था. वहां मैं ने उस के दफ्तर से उस की पर्सनल केस फाइल निकलवाई और उसे पढ़ने लगा. उस के काम की हर अफसर ने तारीफ की. उस के विरुद्ध एक भी शिकायत नहीं मिली. मैं ने स्टेशन मास्टर और एएसएम की फाइलें भी देखीं. उन में भी कोई काम भी बात नहीं मिली. उस के बाद मैं ने मृतक के घर का पता लिया और उस की विधवा से मिलने चला गया.

वह काली साड़ी पहने बैठी थी, आंखें रोरो कर सूज गई थीं. मैं ने उस से पूछा कि क्या उसे अपने पति की हत्या के बारे में किसी पर शक है. किसी ऐसे आदमी पर जिसे वह उस का दुश्मन समझती हो. वह फूटफूट कर रोने लगी और रोतेरोते कहने लगी कि हर आदमी यही पूछता है कि उन की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी.

इस पर वह बोली, ‘‘अगर आप उन से मिले होते तो आप भी यही कहते कि वह बहुत ही सज्जन थे, किसी लड़ाईझगड़े के बारे में वह सोच भी नहीं सकते थे.’’

मैं ने उस से कहा कि मैं आप को दुखी करने नहीं आया, बल्कि मैं आप की मदद करने आया हूं. अगर आप इस संबंध में मुझे कुछ बता देंगी तो मैं हत्यारे को पकड़ कर उसे सजा दिलवा सकूंगा. देखिए कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन का ज्ञान पत्नी के अलावा किसी को नहीं होता. मुझे एक दो मोटीमोटी बातें बता दीजिए. उस ने कहा, ‘‘पूछिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह बताइए आप के पति रात को किस समय सो जाया करते थे?’’

वह बोली, ‘‘हम शाम ढलते ही भोजन कर लेते थे और वह रात 9 बजे तक सो जाया करते थे.’’

‘‘वह किस करवट सोया करते थे?’’

‘‘वह पहले तो बाईं करवट लेटते थे और आधी रात के बाद दाईर्ं करवट ले कर सुबह तक सोते थे.’’

‘‘क्या वह हर रात इसी तरह करवट लिया  करते थे?’’

‘‘हर रात,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘यह उन की आदत थी.’’

इतना पूछ कर मैं पहली ट्रेन पकड़ कर पथोरो वापस आ गया. मैं वहां के वेटिंग रूम में बैठा सोचता रहा. 5 दिन हो गए थे और मैं अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था. मुझे यह भी सूचना मिल चुकी थी कि कराची  और हैदराबाद में मेरे बारे में खुसरफुसर हो रही थी, कि मैं अपने भाई अकबर शाह को बचाने के लिए तफ्तीश का रुख मोड़ने की कोशिश में लगा हुआ हूं.

लेकिन मैं ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी तफ्तीश में लगा रहा. मैं ने एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाली और उसे पढ़ने लगा. मैं ने घावों वाले हिस्से को ध्यान से पढ़ा. तेज धारदार हथियार से 3 गहरे घाव… कनपटी के आसपास, हर एक की लंबाई 3 इंच. अर्थात कुल्हाड़ी के गहरे घाव थे, क्योंकि हत्यारे ने सिर के पास खड़े हो कर इत्मीनान से वार किए थे.

पहला ही वार जबरदस्त लगा होगा, क्योंकि मृतक अपनी जगह से हिला तक नहीं. सुबह तक इसी तरह चादर ओढ़े पड़ा रहा और फिर मैं रिपोर्ट के उस वाक्य पर ठिठक गया, तीनों घाव सिर के दाएं हिस्से पर… यानी मृतक बाईं करवट सो रहा था. उसी तरह जिस तरह वह रात के पहले हिस्से में सोता था. दाईं ओर करवट तो वह आधी रात के बाद लेता था. इस से यह साबित हुआ कि हत्या रात के पहले हिस्से में हुई थी. वहां मुझे बताया गया था कि हत्यारा शादीपुर से मालगाड़ी द्वारा रात के 2 बजे पथोरो पहुंचा था.

मैं पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ता रहा, आगे चल कर जब मेदे का विवरण आया तो मैं ने एक वाक्य पढ़ कर झटके से पढ़ना बंद कर दिया. उस में लिखा था कि मेदे में बिना हजम हुआ खाना मौजूद था. आगे पढ़ने की जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि अफसर की हत्या का माल गाड़ी के आने से कोई संबंध नहीं था.

हत्या तो रात के 12 बजे से भी बहुत पहले की गई थी. रात के पहले हिस्से में हत्या वही लोग करते हैं, जिन्हें अपने ठिकाने पर पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होती है. अकबर शाह और तलजा राम के भेजे हुए हत्यारे को लंबी दूरी तय करनी थी. लेकिन जब इन सूबेदारों ने रात के 9 बजे किसी को हत्या करने के लिए भेजा तो वह हत्यारा 10 बजे तक पहुंचा कैसे?

मैं सुबह सवेरे वेटिंग रूम से निकला तो सामने एएसएम खड़ा मुस्कुरा रहा था. मैं ने उसे साथ लिया और स्टाफ के क्वार्टरों की ओर चल दिया.

‘‘कौन कौन रहता है यहां?’’ मेरे पूछने पर उस ने बताया, ‘‘यह पहला पानी वाले का है, दूसरा कांटे वाले का.’’

‘‘और यह तीसरा?’’

‘‘यह खाली पड़ा रहता है, इस से अगले में टिकट बाबू रहता है और उस से अगला मेरा है.’’

‘‘लेकिन तुम तो अविवाहित हो, क्वार्टर क्यों लिया हुआ है?’’

उस ने कहा, ‘‘जी यहां तो सब अविवाहित ही रहते हैं,  इस उजाड़ में बीवीबच्चों वाले भी अपनी फैमिली नहीं लाते.’’

‘‘तुम्हारा क्वार्टर तो बहुत अच्छा होगा, चलो देखें.’’

अंदर से क्वार्टर देखा, बहुत अच्छी तरह सजा हुआ था. रसोई तो और भी ज्यादा अच्छी तरह सजी हुई थी. मर्द कितना ही सफाई वाला हो, लेकिन इस तरह रसोई और घर नहीं सजा सकता. एएसएम तो वैसे भी अविवाहित था, मेरी छठी इंद्री जाग गई.

‘‘तुम्हारा खाना कौन पकाता है?’’

‘‘जी, वह पानी वाला पका देता है.’’

मैं ने उस का जवाब एक पुलिस वाले की नजर से उस के चेहरे की ओर देखते हुए सुना. मैं ने देखा उस के चेहरे का रंग बदल रहा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘इस उजाड़ में तुम्हारा दिल कैसे लगता है?’’

वह बोला, ‘‘बस जी, कोई किताब पढ़ लेता हूं या फिर घूमने निकल जाता हूं.’’

बातें करतेकरते हम घर से बाहर निकले तो क्वार्टर के सामने कुछ झोपडि़यां दिखाई दीं. मैं ने उस से पूछा, ‘‘ये किस की झोपडि़यां हैं?’’

‘‘जी, वे भीलों के झोपडे़ हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘चलो, चल कर देखते हैं.’’

वहां गए तो झोपडि़यों के पास कुछ बकरियां बंधी थीं. हमें देख कर कुत्ते भौंकने लगे. उन की आवाज सुन कर झोपडि़यों से औरतें निकल आईं और हमारी ओर देखने लगीं.

मैं ने झोपडि़यों का चक्कर लगा कर देखा तो वहां औरतें ही नजर आईं, मर्द कोई नहीं था. मैं ने उन औरतों से उन के मर्दों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे थरपारकर (रेगिस्तान की एक जगह) में खेतों पर काम करने जाते हैं.’’

‘‘तुम्हारे मर्द खेतों पर रहते हैं और तुम?’’ सवाल सुन कर एक औरत बोली, ‘‘वे वहां और हम यहां.’’

‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

‘‘बकरियों का दूध निकाल कर रेलवे वालों को बेचते हैं.’’ एक औरत ने एएसएम को देख कर कहा, ‘‘ये बाबू तो यहां भी दूध लेने आ जाते हैं.’’

मैं ने उसी औरत से कहा, ‘‘तुम्हारा आदमी कहां है?’’

उस ने कहा, ‘‘बताया था ना थरपारकर में काम करता है.’’

‘‘वह यहां कब आता है?’’

‘‘1-2 महीने बाद आता है.’’

‘‘उसे आए हुए कितने दिन हो गए?’’

‘‘एक महीने से तो उस ने सूरत भी नहीं दिखाई.’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘तुम्हारे आदमी का क्या नाम है?’’

वह कुछ लजा गई, दूसरी औरत ने बताया, ‘‘शिवाराम नाम है.’’

मैं ने एएसएम का बाजू पकड़ा और उसे स्टेशन पर ले आया. एएसएम का उजाड़ इलाके में क्वार्टर, भीलों की जवान लड़की, वह दूध लेने उन के घर जाता था. निस्संदेह वह कोई फरिश्ता नहीं था. उस समय सुबह 7 बजे थे. मैं ने वहां के थाने से पुलिस इंसपेक्टर को बुलवाया और उस से ऊंटों का इंतजाम करने के लिए कहा. उस ने तुरंत ऊंट बुलवा लिए.

मैं पुलिस इंसपेक्टर और 2 सिपाहियों को ले कर थर पार कर के खेतीबाड़ी वाले इलाके में 20 मील लंबा सफर कर के पहुंच गया. शाम का समय था, कुछ लोग अब भी खेतों पर काम कर रहे थे. ऊंट रुकवा कर मैं उन लोगों की ओर गया. पुलिस की वरदी में देख कर वे सब खड़े हो गए.

मैं ने जाते ही सख्ती से पूछा, ‘‘तुम में शिवा कौन है?’’

वे सब डर गए थे, फिर धीरेधीरे एक आदमी हमारी ओर आया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम हो शिवा?’’

‘‘हां, मेरा ही नाम शिवा है.’’ उस की आवाज में जरा भी घबराहट नहीं थी.

‘‘तुम ने हत्या की है. मैं तुम्हें गिरफ्तार करने आया हूं. वह कुल्हाड़ी कहां है, जिस से तुम ने हत्या की है?’’

वह जवाब देने के बजाए एक ओर मुंह घुमा कर देख रहा था, वहां एक झोंपड़ी थी. मेरा हमला उस पर इतना सख्त और जल्दबाजी वाला था कि वह संभल नहीं सका. सूबेदार को अपने एरिए का राजा समझने वाला भील अपने बचाव के बारे में सोच भी नहीं सका.

शिवा मेरे साथ झोपड़ी में गया और वहां से एक कुल्हाड़ी और खून में सने अपने कपड़े जमीन से खोद कर मेरे हवाले कर दिए. वह बिलकुल शांत था, उस के चेहरे से घमंड साफ दिखाई दे रहा था. वह यही समझ रहा था कि उस ने एक व्यभिचारी एएसएम को अपनी पत्नी को बिगाड़ने का बदला ले लिया है.

लेकिन जिस रात वह एएसएम की हत्या करने के लिए कुल्हाड़ी ले कर उस जगह गया था, जहां एएसएम सोया करता था, वहां वह अफसर सोया हुआ था, जो निरीक्षण के लिए आया हुआ था.

हत्यारे ने अंधेरे में अपने शिकार को पहचाना नहीं, उसे यह पता था कि यहां हर रात वही बाबू सोता था, जिस के क्वार्टर में उस की जवान पत्नी दूध देने जाती थी.

उस के  ऊपर हत्या का भूत सवार था. हत्या करने के बाद उसे 20 मील दूर भी जाना था. उसे जब आजीवन कारावास की सजा हुई तो उसे इस का दुख नहीं था, दुख तो उस की पत्नी के प्रेमी के बच जाने का था.

प्रस्तुति : एस.एम. खान

स्वामी बोतलानंद महाराज : उन में था ‘बोतल’ जैसा खिंचाव

यह नहीं मालूम कि उन का असली नाम ‘स्वामी’ था या ‘बोतलानंद’ या फिर दोनों ही थे. सच तो यह है कि उन में ‘बोतल’ जैसा खिंचाव था. जैसे शराबी किसी शराब की बोतल की ओर खिंचा चला आता है ठीक उसी तरह उन के भक्त भी अपना दिमाग अलमारी में बंद कर उन के पैरों में लमलेट हो जाया करते थे.

गजब का चमत्कार था उन में. हर समस्या का चुटकी बजाते इलाज, वह भी बहुत सस्ता, आसान और टिकाऊ. भक्त चाहें तो ‘तनमनधन’ से फीस अदा कर सकते थे. कोई दबाव, डर, धमकी कुछ भी तो नहीं था. सारा खेल श्रद्धा पर टिका था.

हमें तो लगता है कि अगर कश्मीर, आतंकवाद या पाकिस्तान को सबक सिखाने जैसे मसले हों या घोर गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दे, स्वामी बोतलानंद महाराज के पास इन का भी कोई शर्तिया इलाज जरूर होगा.

सरकार को एक बार उन से जरूर इन मसलों पर सलाह लेनी चाहिए, यह हमारा सुझाव है. सस्ते में और मजेमजे में इतनी बड़ी समस्याओं का इलाज हो जाए तो इस में बुराई क्या है? यही तो हम सब चाहते भी हैं.

खैर, अब मूल मुद्दे पर आते हैं कि स्वामीजी के नामकरण का आखिर राज क्या था? हर आम आदमी को यह नाम अटपटा लगेगा लेकिन यह पक्का है कि इस के मूल में कुछ न कुछ शुभ संकेत जरूर छिपा होगा.

जैसे कोई भी चमत्कारी बाबाओं की लीलाओं की थाह कभी नहीं पा सकता, ठीक वैसे ही स्वामी बोतलानंद महाराज को समझना आसान नहीं था. नाम हो या उन के कारनामे, सबकुछ किसी गहरे राज में लिपटी मुश्किल पहेली सा था.

ऐसा लगता है कि स्वामी बोतलानंद महाराज नाम का सही मतलब सिर्फ और सिर्फ सच्चे भक्त ही समझ सकते हैं जो सिर्फ सुनते हैं, कभी सवाल नहीं करते.

हर चीज को तर्क की कसौटी पर कसना भी ठीक नहीं है. क्या तर्क से कभी किसी का भला हुआ है? उलटे लोग धर्मकर्म से कटते चले जाते हैं, श्रद्धा का नाश हो जाता है.

स्वामी बोतलानंद महाराज का आश्रम कहो या कुटिया शहर से दूर सुनसान जगह पर बनी थी लेकिन सरकारी कृपा से वहां देशीविदेशी शराब के ठेके जरूर खुले हुए थे, इसलिए वह सुनसान जगह आबाद रहती थी.

इसे स्वामी बोतलानंद महाराज का कल्याणकारी काम माना जाए जो उन्होंने ऐसी सुनसान जगह को आबाद किया. पीने के शौकीन भक्तों के लिए तो यह सोने पर सुहागा जैसा है. पूरा पैकेज एक छत के नीचे.

महाराज बोतलानंद स्वामी के दर पर कोई भेदभाव नहीं, कोई रोकटोक भी नहीं. कायदेकानून का वहां न कोई वजूद और न ही जरूरत.

अब आप को दिव्य स्वामी बोतलानंद महाराज के दर्शन भी करा देते हैं. उन की कुटिया में लेदे कर एक बिछौना नजर आता था. उसी पर महाराज कभी बैठे, कभी लेटे तो कभी आधी नींद की हालत में मिलते थे.

पूरी कुटिया बोतलों से अटी नजर आती थी. खालीभरी बोतलों के बीच महाराज झूमते हुए प्रवचन करते रहते थे. कुछ नासमझों को उन की यह अदा रोनापीटना लग सकती है लेकिन बंदर अदरक का स्वाद नहीं जानता इसलिए बंदरों की सोच पर हमें कुछ कहना भी नहीं है. धर्म और श्रद्धा की बात हो तो सवाल खड़े करना घोर पाप है. यहां जो है, जैसा है, बस मान लो.

स्वामी बोतलानंद महाराज की कुटिया गरीबों और अमीरों से भरी रहती थी. भक्तों की ऐसी जबरदस्त भीड़ हर किसी के हिस्से में नहीं आती.

स्वामी बोतलानंद महाराज की एक खूबी यह भी थी कि वे कभी किसी भक्त को ‘न’ नहीं कहते थे. शायद ही उन के मुंह से कभी ऐसे शब्द निकले हों, ‘तुम्हारा काम नहीं होगा… यह सोच अच्छी नहीं है…’

जैसी जो भी इच्छा भक्त जाहिर करते महाराज तुरंत उन्हें आशीर्वाद दे देते.

अब सब से निराली खूबी देखिए. स्वामी बोतलानंद महाराज न संन्यासी का चोला धारण करते थे और न ही लंबे केश, जटाजूट. मतलब एक संन्यासी की इमेज से वे कोसों दूर थे. एक आम शराबी की तरह जो हर वक्त मदहोश रहता है. जिसे न तन का होश और न मन का. सबकुछ कुदरती रूप में देशी स्टाइल में चलता था.

यह बड़ी अच्छी बात है. फालतू के दिखावे, बाहरी आडंबर का क्या करना? जैसे हैं, उसी रूप को सच में दिखा दें, यह भी कम ईमानदारी नहीं है, वरना धर्म के कारोबार में मार्केटिंग इतनी हावी हो गई है कि हकीकत का पता पुलिस केस होने पर ही पता चलता है, इसलिए हम उन के इस रूप को दिल से नमस्कार करते हैं. उन्हें जमीन पर लेट कर प्रणाम करते हैं.

सभी भक्तजन एक बार जोर से जयकारा लगाएं, ‘‘बाबा बोतलानंद महाराज की जय.’’

बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बर्ताव करें

गांव में रहने वाले अंशिका के ससुर को एक दिन अचानक हार्ट अटैक आया तो अंशिका के पति उन्हें अपने साथ दिल्ली ले आए. 10 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद वे वापस घर आ गए. एक तरफ जहां उस के ससुर को स्वास्थ्य लाभ हो रहा था वहीं दूसरी तरफ अंशिका की मुसीबतें दिन पर दिन बढ़तीं जा रही थीं. ससुर के घर आने के बाद उन्हें देखने आने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था. दो बच्चों की पढ़ाई सास और बीमार ससुर की जिम्मेदारी. उसे ही समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैनेज करे.

अंशुल के पिता को प्रोस्टेट की समस्या थी. एक दिन जब बहुत अधिक समस्या बढ़ गई तो डाक्टर ने औपरेशन करने की सलाह दी. अंशुल को अभी मुंबई पहुंचे भी 1 साल ही हुआ था सो बहुत अधिक जानकारी भी नहीं थी. पर जैसे ही पिता को हौस्पिटल में एडमिड कराया तो उस की 2 बहनें और भाई भी मुंबई पहुंच गए. अब अंशुल पिता से कम अपने भाईबहनों से ज्यादा परेशान था क्योंकि पिताजी तो आईसीयू में थे, उन्हें खानापीना सब हौस्पिटल से ही मिलता था परंतु भाईबहन मुंबई में नए थे और वहां की कोई जानकारी न होने के कारण वे प्रत्येक काम के लिए अंशुल पर ही निर्भर थे जिस से अंशुल बहुत परेशान हो जाता.

हारी बीमारी तो हर किसी को कभी भी आ सकती है. यह सही है कि ऐसी स्थिति में इंसान को किसी अपने की दरकार होती है परंतु पहले के मुकाबले आज हौस्पिटल्स में इलाज के मायने बहुत बदल गए हैं. आजकल मरीज को हौस्पिटल्स में एडमिड कराने के बाद उस के परिजन का काम सिर्फ हौस्पिटल्स को पैसा देना होता है, यही नहीं अपने मरीज से मिलने तक का समय निर्धारित होता है. पहले जहां मिलने, देखने और बातचीत करने का कोई साधन नहीं होता था वहीं आज तकनीक का जादुई पिटारा मोबाइल का जमाना है जिस में पूरी दुनिया समाई रहती है. ऐसे में जब मरीज को देखने वाले अनावश्यक रूप से हौस्पिटल्स में भीड़ बढ़ाते हैं तो मरीज के परिजनों के लिए उन की खातिरदारी करना सब से बड़ी समस्या होती है. यही नहीं कई बार तो मेहमानों की खातिरदारी के कारण मरीज की समुचित देखभाल तक भी नहीं हो पाती. जब भी कोई परिचित बीमार होता है तो निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है-

लें तकनीक का सहारा

आगरा में रहने वाली सीमा के भाई का जब दिल्ली में पथरी का औपरेशन हुआ तो वह हर दिन एक निश्चित समय पर वीडियो कौल कर के अपने भाई का हालचाल ले लेती थी. वह कहती है कि “इस से मुझे अपने भाई का हर दिन का हाल तो मिल ही जाता था परंतु भाभी पर मेरी खातिरदारी करने का कोई भार भी नहीं पड़ा. आज जब वीडियो कौल की जा सकती है तो क्यों दूसरे को परेशान करना, अब जब मेरा भाई घर आ जाएगा तो मैं उस से मिलने जाउंगी.”

दें मोरल सपोर्ट

अजय के दोस्त के भाई को अचानक से चक्कर आए और वह गिर गया. जैसे ही अजय को पता चला वह तुरंत हौस्पिटल पहुंचा, जिस से अजय के दोस्त को बहुत मोरल सपोर्ट मिल सका, आईसीयू में 10 दिन रहने के दौरान अजय हर दिन फ़ोन से अपने दोस्त के टच में रहा और उसे आर्थिक मदद भी औफर की परंतु आईसीयू या अपने दोस्त के घर जाना उसे पसंद नहीं था. इस बारे में वह कहता है कि जा कर उसे परेशान करने से अच्छा है कि मैं फ़ोन से उस से टच में रहूं और जरूरत पड़ने पर उस के काम आ सकूं.

मुसीबत नहीं सहारा बनें

अपनी सास की बीमारी के दौरान अपने अनुभव को वर्तिका कुछ इस तरह बयान करती है, “जैसे ही मेरी सासूमां हौस्पिटल से घर आईं तो मेरे घर उन्हें देखने आने वाले मेहमानों का तांता लग गया, अब एक तरफ न तो मेरी सासूमां ठीक से आराम कर पाती हैं तो दूसरी तरफ हर किसी को जगह पर चाय पानी नाश्ता सब चाहिए होता है जिस से मैं दिन भर चकरघिन्नी की तरह घूमती रहती हूं.” इस की अपेक्षा आप यदि किसी को देखने उस के घर जा रहे हैं तो उस के काम में भरपूर मद्द करने का प्रयास करें ताकि उसे कुछ आराम मिल सके.

अपनी ही न कहें

गिरीश अपने बीमार दोस्त को देखने अस्पताल पहुंचें तो अपने दोस्त के हालचाल पूछने की अपेक्षा बस अपने ही भांतिभांति की बीमारियों के किस्से सुनाना शुरू कर दिया जिस से किसी तरह स्वयं सकारात्मक रह रहे मिश्राजी खुद को और अधिक बीमार अनुभव करने लगे. आप जब भी किसी को देखने अस्पताल या घर जाएं अपने और परिचितों की बीमारियों का जिक्र करने की अपेक्षा हल्कीफुल्की हंसीमजाक की बातें करें जिस से मरीज कुछ अच्छा अनुभव कर सके.

फौरमेलिटी नहीं सच्ची मद्द करें

डेंगू के कारण रीना को हौस्पिटल में भर्ती होना पड़ा, उस के सामने के फ्लैट में रहने वाली अपनी मित्र संघमित्रा के बारे में बताते हुए रीना की आंखों में चमक आ जाती है और वह कहती है कि, “आज जहां अधिकांश लोग दिखावा और फौरमेलिटी में भरोसा करते हैं वहीं मेरी मित्र संघमित्रा ने मेरी बीमारी के दौरान एक सप्ताह तक मेरे पूरे घर को संभाल लिया था जिस से मुझे लगा ही नहीं कि मैं इतनी बड़ी बीमारी झेल कर आई हूं.”

सूचना दे कर ही जाएं

बीमार व्यक्ति से मिलने जाने से पहले सूचित कर के ही जाएं ताकि मरीज के आराम के समय में व्यवधान न पड़े. साथ ही मरीज के परिजन भी आप से मिलने के लिए ख़ुद को तैयार कर सकें.

मुझे मंजूर नहीं

“फाइनली आज मुझे भरोसा हो ही गया हमेशा से सुनी इस बात पर कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं,” अश्लेषा ने अपना बैग डायनिंग टेबल पर रखते हुए कहा.

“ऐसा क्या हो गया जो आज तुम इतनी खुश और संतुष्ट दिख रही हो,” पति श्लोक ने अपनी टाई खोलते हुए कहा.

“आज की न्यूज ने मुझे मेरे जीवन के प्रत्येक संघर्ष का जवाब दे दिया है. मैं ही नहीं, तुम भी सुनेगो तो तुम भी खुश हुए बिना नहीं रह पाओगे,” कहते हुए पति श्लोक के गले में अपनी दोनों बाहें डाल अश्लेषा लगभग झूल सी गई.

“चलो तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ, मैं चाय बना कर लाती हूं, फिर बालकनी में बैठ कर बात करते हैं.”

“हां बिलकुल, मैं मुन्ना हलवाई के गरमागरम समोसे ले कर आया हूं, बैग से निकालो और लगाओ. मैं फ्रैश हो कर बालकनी में चेयरकुरसी सैट करता हूं.”

कुछ देर बाद वे दोनों भोपाल का पौश एरिया कहे जाने वाले चारइमली के बंगला न 204 के गार्डन में बैठे चाय पी रहे थे. चाय का पहला घूंट लेने के बाद अश्लेषा बोली, “आज अनिमेष को सर्विस से टर्मिनेट कर दिया गया, साथ ही, कोर्ट ने 4 लाख रुपए का मुचलका और 2 साल की सजा भी सुनाई है.”

“क्या बात कर रही हो, यह तो हमारी बहुत बड़ी जीत है. देखा, मैं हमेशा कहता था न कि तुम हिम्मत मत हारो, इस संसार में प्रत्येक इंसान को अपने कर्मों का फल हर हाल में मिलता ही है. अब निकल गई न उस की सारी अकड,” श्लोक ने खुश होते हुए कहा.

“सच में मुझे हमेशा लगता था कि वह दिन कब आएगा जब मैं अनिमेष को सजा होते देखूंगी. मेरे इतने सालों का संघर्ष फल लाया. सच कहूं तो मैं अभी तक अपने जीवन का एक एक दिन आज के दिन के इंतजार में काट रही थी. अब मेरा आगे का जीवन शांति से गुजरेगा,” अश्लेषा ने खुश होते हुए कहा.

वे दोनों बात कर रहे थे कि अश्लेषा का मोबाइल बज उठा. बेटी चित्रा की कौल थी.

“हेलो मौम-डैड, आप लोग कैसे हो? क्या बात है आप लोग आज बड़े खुश दिख रहे हो? मम्माडैड, यहां इतनी ठंड है कि आप लोग सोच भी नहीं सकते. अभी तो हम यहां शिमला का मार्केट घूमने आए हैं, कल मनाली जाएंगें.’’

“अभी औफिस से आ कर हम दोनों चाय पी रहे हैं और अब तुझ से बात कर ली तो दिल खुश हो गया,” अश्लेषा ने खुश होते हुए कहा.

“चलो ठीक है मां, अब मैं रात को वीडिओकौल करती हूं,” कहते हुए चित्रा ने फोन रख दिया.

‘’यह भी न, दिन में दस बार तो फोन करती ही है. खाना क्या खाओगे, अनीता आती होगी, जो तुम खाओ वही बनवा लेती हूं,” अश्लेषा ने रिलैक्स होते हुए कहा.

“आज का दिन तुम्हारा है, इसलिए जो तुम चाहो वह बनवा लो. आज तो तुम्हारी पसंद का ही खाना खाया जाएगा. मैं अंदर टीवी देख रहा हूं,” कह कर श्लोक अंदर चले गए.

इधर, अश्लेषा के मन में उमड़ रहा तूफान आंसू बन आंखों से बह निकला. उस का मन 20 साल पुरानी उन गलियों में जा पहुंचा जहां उस का बचपन बीता था. अपने मम्मीपापा की लाड़ली बेटी थी वह. मां एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं तो पिताजी एक बैंक में क्लर्क थे. एक छोटा भाई था जो उस से 4 साल छोटा था.

हर मध्यवर्गीय परिवार की तरह उस का परिवार भी अपनी सीमित आय में भी आराम से गुजारा कर लेता था. मांपापा ने अपने दोनों बच्चों को बड़े लाड़प्यार से तो पाला ही था, साथ ही, उन की शिक्षादीक्षा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी.

अश्लेषा ने इंजीनियरिंग कर के स्टेट इंजीनियरिंग सर्विस का एग्जाम दिया था और बीएसएनएल में असिस्टैंट इंजीनियर की पोस्ट पर उस की पहली नियुक्ति उज्जैन में हुई थी. उस की मम्मी ने हमेशा यही कहा था कि मैं अपनी बेटी को बहुत पढ़ाऊंगी ताकि वह आत्मनिर्भर बन कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके और अपनी जिंदगी का हर फैसला अपनी मरजी से ले सके और उन्होंने यही किया भी. उन के समाज में जहां ग्रेजुएट होते ही बेटियों की शादी कर दी जाती थी वहां उन्होंने नातेरिश्तेदारों के लाख कहने के बावजूद अपनी बेटी का ब्याह तभी किया जब वह आत्मनिर्भर हो गई.

जब उस की सर्विस को एक साल हो गया तभी अनिमेष का रिश्ता उस के लिए आया था. अनिमेष पीडब्ल्यूडी विभाग में असिस्टैंट इंजीनियर थे. उन की पोस्टिंग इंदौर में थी. कुछ प्रयासों के बाद दोनों में से किसी एक का स्थानांतरण करवा लिया जाएगा, ऐसा सभी का मानना था. दोनों ही टैक्निकल फील्ड के हैं, दोनों की ही गवर्नमैंट जौब है, सो, अपने सुखद भविष्य की कल्पना कर के उस ने भी इस रिश्ते पर अपनी सहमति दे दी थी.

अनिमेष मध्य प्रदेश के भिंड जिले के रहने वाले थे. पिता एक स्कूल में प्रिंसिपल और माता होममेकर थीं. परिवार में उन के अलावा 2 बहनें और थीं जिन की शादियां हो चुकी थीं. कुल मिला कर अच्छाख़ासा खातापीता परिवार था. इसलिए उस के मातापिता ने विवाह में कोई देर नहीं की थी. हां, उस की मम्मी दहेज के खिलाफ थीं, सो, गोदभराई की रस्म में ही उन्होंने अनिमेष के परिवार वालों के सामने स्पष्ट कर दिया था कि, ‘देखिए, हम ने अपनी बेटी को पढ़ानेलिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, इसलिए मैं दहेज़ नहीं दूंगी और न ही मैं अपनी नाजों से पाली बेटी का कन्यादान करूंगी. हां, हमें जो भी अपनी मरजी से देना होगा वह देंगे पर आप की कोई मांग होगी तो वह हम पूरी नहीं कर पाएंगे.’

‘कैसी बातें करती हैं जी, आप अपनी बेटी हमें दे रही हैं, यह क्या कम है. इस के आगे हमें कुछ भी नहीं चाहिए, प्रकृति का दिया हमारे पास सबकुछ है और जहां तक कन्यादान की बात है, उस से तो आप को ही पुण्य मिलना है, हमें तो कोई लाभ है नहीं. हमारी यों भी कोई डिमांड नहीं है,” अनिमेष की मां ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा था. और इस प्रकार बहुत ही सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में उन दोनों की शादी हो गई थी. विवाह के बाद अश्लेषा ने उज्जैन तो अनिमेष ने इंदौर में अपनी सर्विस जौइन कर ली थी.

अश्लेषा के बेहद सरल और शांत स्वभाव के विपरीत अनिमेष बेहद उग्र, बड़बोला और बातबात पर झगड़ने वाला था. भिंडमुरेना क्षेत्र का पर्याप्त प्रभाव उस के स्वभाव में परिलक्षित होता था. उस की ही तरह उस के परिवार वाले भी उग्र स्वभाव वाले थे, बिना गालीगलौज के तो मानो उन्हें बात करना ही नहीं आता था. अश्लेषा ने नोटिस लिया था कि वहां के हर घर में तो बंदूक होती थी जो जराजरा सी बात पर निकल आती थी.

विवाह के समय जब अनिमेष उसे मंगलसूत्र पहना रहा था तो उस की सास ने कहा, ‘बेटा, यह मंगलसूत्र सिर्फ एक गहना नहीं है, इसे गले में पहनने के साथ अब तुम मेरे बेटे के साथ सात जन्मों तक के लिए तो बंध ही गई हो, साथ ही साथ, इस परिवार का मानसम्मान रखना अब तुम्हारी भी जिम्मेदारी है. जिंदगी में अनेक उतारचढ़ाव आते हैं पर हमेशा ध्यान रखना कि तुम ने अपने गले में अपने पति के नाम का मंगलसूत्र पहन रखा है.’ उस ने भी हंसीख़ुशी इस जिम्मेदारी को अपने ऊपर ले लिया था.

अनिमेष ने इंदौर में एक फ्लैट किराए से ले रखा था जहां से वह प्रति शनिवार उज्जैन आ जाता था या फिर अश्लेषा भी कभीकभी चली जाती थी. इस तरह से दोनों अपनी नईनवेली गृहस्थी का आनंद उठाते हुए जिंदगी जी रहे थे. अकसर अनिमेष की बड़ीबड़ी डींगें सुन कर अश्लेषा मुसकरा देती और कहती कि तुम लोग कितनी बड़ीबड़ी बातें करते हो, ऐसा लगता है मानो सारी दुनिया ही तुम्हारी मुट्ठी में हो.

‘क्या बात करती हो. मुट्ठी में ही है मैडम. कहो तो प्रूव कर दूं. बस, शर्त यह है कि यह बात जिंदगी में कभी भी तुम्हारी जबान से बाहर नहीं आनी चाहिए.’

‘मुझे क्या पड़ी है जो मैं किसी को बताऊंगी. बताओ, ऐसी क्या बात है?’

‘तुम्हें पता है मैं ने जब बीए किया था तो एक दिन भी पढ़ाई नहीं की थी और कालेज में टौप किया था,’ अनिमेष ने गर्व से सीना फुलाते हुए कहा था मानो कोई बहुत बड़ा काम कर के आया हो.

‘नकल की होगी तो बिना पढ़े टौप करोगे ही. पर तुम ने तो स्टेट इंजीनियरिंग का एग्जाम पास कर के नौकरी पाई तो क्या उन दिनों कंपीटिशन की तैयारी कर रहे थे?” अश्लेषा ने उत्सुकता से कहा.

‘देखो, फिर एक बार कह रहा हूं कि तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए बता रहा हूं वरना मेरे घर में पापा के अलावा यह बात किसी और को पता नहीं है. हमारे सैंटर पर पैसे ले कर परचा आउट करवाया गया था. अब मैं ने पढ़ाई तो की नहीं थी जो कुछ लिख पाता क्योंकि नकल करने के लिए भी तो अक्ल की जरूरत होती है. जब रिजल्ट आया तो मेरी थर्ड डिवीजन थी. फिर मैं ने अपनी मार्कशीट की ही बिलकुल हूबहू मार्कशीट बनवाई, जिस में मैं ने टौप किया और उसी के बेस पर मैं ने अपनी नौकरी का इंटरव्यू दिया और नौकरी प्राप्त की.

मेरी नौकरी इंटरव्यू बेस्ड थी, सो, थोड़ा जुगाड़ लगा लिया, थोड़ा पैसा खर्च कर दिया और लग गई नौकरी. और देखो, आज नौकरी करते भी मुझे 5 साल हो गए हैं. अब तो कोई माई का लाल भी मेरा क्या बिगाड़ पाएगा.’

‘पर यह तो सरासर धोखाधड़ी है. कभी भी तुम्हारी नौकरी जा सकती है. तुम्हें पता है, इस तरह के केस के खुलने पर सीधे जेल होती है,’ अश्लेषा ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, कैसे कर लेते हो तुम लोग इतना गलत काम, कहां से लाते हो इतना बड़ा जिगर कि चोरी और सीना जोरी. मैं तो कभी नकल तक करने का भी नहीं सोच सकती और तुम, गजब है भाई.’ और अश्लेषा ने अनिमेष के आगे अपने हाथ जोड़ दिए थे.

“अरे यार, बातोंबातों में मैं तुम्हें बता तो गया पर प्लीज, तुम इसे अपने तक ही रखना, जिंदगी में कभी भी किसी भी हालत में यह बात बाहर नहीं आनी चाहिए. तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मैं ने सब सच तुम्हें बता दिया,’ अनिमेष ने उस के सामने अपनी बात रखते हुए कहा था.

‘अरे तुम पागल हो क्या, मैं क्यों कभी किसी से कहूंगी पर हां, तुम्हें जरूर चेतावनी देना चाहूंगी कि इसे कभी भी अपनी दिलेरी समझ कर किसी के भी सामने बयां मत कर देना. यह बहुत बड़ा अपराध है सरकार और कानून दोनों की निगाह में. अगर कभी खुल गया तो नौकरी तो जाएगी ही, साथ ही, तुम खुद जेल जाओगे.’ इस के बाद दोनों अपनेअपने काम में बिजी हो गए.

और इस तरह अश्लेषा को अपनी जिंदगी से कोई गिलाशिकवा न था. एक दिन अचानक औफिस में काम करते समय उसे चक्कर आने लगे तो वह अपनी फेमिली डाक्टर अनीशा के पास जा पहुंची. उस का पूरा चैकअप करने के बाद अनीशा बोली, ‘बधाई हो मैडम, अब आप की फेमिली में नया सदस्य आने वाला है. जाइए और अपने पतिदेव को यह शुभ सूचना दीजिए.’

उस का भी मन ख़ुशी से बावला हो रहा था. सो, गाड़ी में बैठते ही उस ने अनिमेष को फोन लगाया, ‘अनु, तुम जल्दी से घर आ जाओ, मुझे बहुत बड़ी न्यूज तुम्हें देनी है.’

‘अरे, मैं पहली बार तुम्हें इतना खुश देख रहा हूं, बताओ न क्या हुआ है? अब मुझ से सब्र नहीं हो रहा है. प्लीज, बता दो न,’ अनिमेष ने खुश होते हुए कहा.

‘नहीं, तुम आओ पहले, तभी बताऊंगी.’

2 घंटे बाद जब अनिमेष आया तो अश्लेषा ने खुश हो कर उसे अपनी प्रैग्नैंसी की बात बताई पर अनिमेष की ठंडी प्रतिक्रिया देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ,

‘क्या हुआ, तुम खुश नहीं लग रहे?’

‘हां, दरअसल मैं अभी इस जिम्मेदारी के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता. वैसे मेरी मानो तो तुम भी अभी बच्चे वगैरह के चक्कर में न ही पड़ो तो ही अच्छा रहेगा. इतनी अच्छी चल रही है अपनी जिंदगी, क्यों इस में तूफान लाना, बच्चा मतलब सारी मौजमस्ती ख़त्म. बस, दिनरात उस के डायपर ही बदलते रहो, न रात में नींद पूरी न दिन में चैन और कम से कम मैं तो अभी ये सब करने को तैयार नहीं हूं,’ अनिमेष ने अपना मत रखते हुए कहा.

‘यानी, तुम चाहते हो कि मैं अबौर्शन करवा लूं,’ उस ने चौंकते हुए कहा.

‘हां, इन सब झंझटों में मत पड़ो और कल ही अबौर्शन करवा लो. अभी तो शुरुआत ही है, सो तुम्हारी बौडी पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा.’

‘नहीं, यह संभव नहीं. तुम चाहो या न चाहो, मैं इस बच्चे को पैदा करूंगी. जो बच्चा हम दोनों के कारण इस संसार में आ रहा है उसे ही मैं यहां आने से रोक दूं, इस में उस अजन्मे बच्चे का क्या दोष. नहीं, मैं ऐसा बिलकुल नहीं करूंगी. मेरा शरीर है और मुझे क्या करना है, इस का हक़ मैं अपने सिवा किसी और को नहीं दूंगी,’ कह कर अश्लेषा किचेन में खाना डायनिंग टेबल पर लगाने चली गई. उस दिन दोनों में अबोला सा छाया रहा और दूसरे दिन दोनों अपनेअपने काम पर चले गए. बेमन, बेपरवाही से ही सही, एक बार फिर से दोनों की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चल निकली थी.

नौ माह बाद उस ने एक फूल सी नाजुक, प्यारी सी बेटी को जन्म दिया तो उसे लगा मानो उस ने पूर्ण नारीत्व प्राप्त कर लिया. इस सब के बीच अनिमेष का व्यवहार बहुत सुस्त रहा. जन्म लेने के दूसरे दिन जैसे ही अनाया को उस ने गोदी में लिया तो बोला, ‘लो आ गई तुम्हारी ही तरह हवा में झंडा गाड़ने वाली तुम्हारी बेटी.’

धीरेधीरे अनाया बड़ी हो रही थी. अश्लेषा अभी मैटरनिटी लीव पर थी, सो वह पूरे समय घर और चित्रा में व्यस्त रहती थी. पहले तो फिर भी सप्ताह के बीचबीच में अनिमेष उज्जैन आ जाता था पर पिछले कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि अनिमेष का मिजाज कुछ उखड़ाउखड़ा सा रह रहा है. उज्जैन आता भी है तो, बस, फौर्मैलिटी के लिए. एक रात रुकता और अगले दिन औफिस का जरूरी काम बता कर चला जाता. कभी कभी तो 15 दिनों तक भी इंदौर से उज्जैन न आता था. एक दिन जब अश्लेषा ने इस बाबत उस से कहा तो वह लगभग झुंझलाते हुए बोला, ‘हर समय एकजैसा नहीं होता. आजकल औफिस में बहुत काम रहता है. तुम्हारा क्या है, मैटरनिटी लीव ले कर आराम फरमा रही हो.’

इस बार एक महीना हो गया था, अनिमेष उज्जैन नहीं आया था. अश्लेषा ने इंदौर में रहने वाली अपनी दोस्त सीमा को फोन मिलाया. सीमा के पति अनिमेष के ही औफिस में क्लर्क थे.

सारी बात सुन कर सीमा बोली, ‘आशु, मैं खुद तुझे फोन लगाने की सोच रही थी पर समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं और क्या कहूं, अभी तो तेरी शादी को 3 साल ही हुए हैं. बेबी को हुए तो अभी 4 माह ही हुए हैं. पर अच्छा हुआ तूने खुद ही लगा दिया. सब गड़बड़झाला चल रहा है यहां. तू अपनी बिटिया में व्यस्त है, अनिमेष के परिवार की जिम्मेदारी संभाल रही है और अनिमेष यहां सबीना नाम की अपनी असिस्टैंट के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है. दोनों के प्यार के चर्चे पूरे औफिस में हैं. सुना है, दोनों जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’

‘अरे, पर यह सबीना कहां से आ गई. पहले से भी कुछ था इन दोनों के बीच और यदि था तो मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया?,’ कहते हुए अश्लेषा एकदम रो सी पड़ी थी.

‘देख, रोने से कुछ होने वाला है नहीं. सबीना अनिमेष की असिस्टैंट है, दोनों ने एकसाथ ही जौइन किया था. सबीना अविवाहित है. घर में सिर्फ उस की मां हैं. तेरी शादी से पहले भी इन दोनों के चर्चे औफिस में मशहूर थे. हर टूर पर दोनों साथसाथ जाते हैं. औफिस में तो चर्चा है कि अनिमेष और सबीना लिवइन रिलेशन में लगभग तब से हैं जब से अनिमेष ने औफिस जौइन किया है. तेरी शादी के समय थोड़ा कम हुआ था पर जब से बेटी हुई है तब से तो ये दोनों फ्री हो गए लगते हैं,’ सीमा ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा.

हे प्रकृति, यह क्या हो गया. अब कैसे हैंडिल करूं. एक पल को तो वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. तभी उस के कानों में अनाया के रोने की आवाज आई. उस ने दौड़ कर अनाया को सीने से लगाया और मन ही मन बोली, ‘अपनी बेटी के लिए न्याय तो मैं ले कर रहूंगी. अब सचाई का पता लगा कर सबक सिखाने का समय आ गया है.’

शनिवार को जब अनिमेष उज्जैन आया तो वह बोली, ‘अनु, यहां भी मैं अकेली ही रहती हूं, सोच रही हूं तुम्हारे पास इंदौर ही आ जाती हूं. कम से कम बेटी को अपने पापा का और मुझे अपने पति का प्यार तो मिल पाएगा. यहां तो अकेले पड़ेपड़े हम दोनों तुम्हारे दर्शन को ही तरस जाते हैं.’
‘अरे नहीं, वहां दिनभर अकेली पड़ीपड़ी भी तुम बोर ही होगी. यहां चित्रा का पूरा सैटअप है, वह यहां पर अच्छी तरह सैट है. जो सिस्टम है वही चलने दो.’

‘क्यों चलने दूं वही सिस्टम. चित्रा का सैटअप बिगड़ जाएगा या तुम्हारा सैटअप उखड़ जाएगा? जब तुम्हारा किसी और के साथ रिलेशन था तो मेरे साथ क्यों लिए सात फेरे,’ अश्लेषा ने क्रोध से कहा.

‘क्या बकवास कर रही हो तुम. मेरा सैटअप क्यों उखड़ेगा. रह तो रही हो यहां चैन से, क्या दिक्कत है? इसी सब के कारण ही मैं इन सब झंझटों में नहीं पड़ना चाहता था पर नहीं, तुम्हें तो मां बनना था. सो, अब क्या परेशानी है? कौन सा रिलेशन, किस के साथ रिलेशन? तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो? होश में हो कि बेहोश हो?’ अनिमेष ने बिलकुल अनजान बनते हुए कहा था.

‘ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत करो, मुझे है परेशानी तुम्हारी गर्लफ्रैंड सबीना से, कौन है सबीना, क्या रिलेशन है तुम्हारा?’

‘ओह, तो इसलिए मैडम उखड़ रही हैं. तुम तक भी पहुंच गई यह बात. देखो, अब मैं भी तुम्हें बता दूं सबीना से आज से नहीं, बरसों से मेरी दोस्ती है, हमारी शादी से पहले से.’

‘तो उसी से शादी क्यों नहीं की, मेरे गले में यह घंटा क्यों लटकाया था?’ अश्लेषा ने अपना मंगलसूत्र हिलाते हुए कहा.

‘शादी और दोस्ती दोनों अलग बातें हैं, मेरी जान. शादी उस से की जाती है जो घरपरिवार का मान रखे, घर की जिम्मेदारियां संभाले, बच्चे का पालनपोषण करे, परिवार की देखभाल करे. और इन सब में तुम एकदम परफैक्ट ही नहीं बल्कि एक कदम आगे हो क्योंकि तुम कमाती भी हो. वहीं, दोस्ती उस से की जाती है जिस के साथ आप मौजमस्ती कर सको. उस में सबीना परफैक्ट है. समझ गईं न,’ यह कह कर अपना बैग कार में डाल अनिमेष इंदौर चला गया.

उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. रोतेरोते उस ने अपनी मां को फोन लगा कर सारी बात बताई.

‘सब से पहले तो तू रोना बंद कर. तूने थोड़े ही कुछ किया है जो रो रही है. आत्मनिर्भर है तू. पहले बात को सुलझाने की कोशिश करते हैं, फिर देखते हैं. मैं आती हूं तेरे पास कल.’

अगले दिन उस की मां वीणा उस के पास थीं. मां के आने से उसे कुछ राहत मिली. शनिवार को जब अनिमेष आया तो वीणा ने सारी बात उस के सामने रख कर कहा, ‘ऐसे तो देखिए चलेगा नहीं. आप सबीना और अश्लेषा दोनों को ही धोखा दे रहे हैं. क्या सबीना को आप की शादी के बारे में पता है? यदि आप के परिवार में भी यह बात पता थी तो फिर मेरी बेटी के साथ धोखा क्यों किया गया?’

‘मैं आप की पूरी इज्जत करता हूं. आप की बात भी सही है पर मैं ने अपने घर में जब सबीना के बारे में बताया था तो तूफान आ गया था. एक मुसलमान लड़की के साथ दोस्ती को तो पचा नहीं पा रहे थे वे, शादी क्या करते. मेरी उस से महज दोस्ती ही है, इस से ज्यादा कुछ नहीं,’ कह कर उस दिन भी अनिमेष इंदौर चला गया.

इस के बाद वीणा ने अनिमेष के मातापिता को जब पूरी बात बताई तो वे बोलीं, ‘अरे बहनजी, बच्चों के बीच में आप क्यों पड़ती हैं. आपस में सब सुलझा लेंगे. अरे, अश्लेषा के गले में मंगलसूत्र तो अनु के नाम का ही है. ठीक है आदमी बाहर रहता है तो इस तरह के दोस्त बना ही लेता है. कुछ दिनों की बात है, सब ठीक हो जाएगा. आप चिंता मत कीजिए.’

‘और अगर मेरी बेटी इसी तरह के दोस्त बनाने लगे तो क्या आप को और आप के बेटे को सहन होगा. मंगलसूत्र है तो क्या मेरी बेटी ने अपनी जिंदगी अनिमेष के नाम कर दी है. मंगलसूत्र पहनने का मतलब यह तो नहीं कि मेरी बेटी अपनी जिंदगी बरबाद कर दे. ऐसे मंगलसूत्र को पहनने से क्या फायदा जो मेरी बेटी की जिंदगी को नरक बना दे.’

अब वे अपनी बेटी को मानसिक सपोर्ट देने के लिए उस के पास कुछ दिनों के लिए रुक गईं. कुछ और जांचपरख के बाद स्पष्ट हो गया था कि अनिमेष सबीना के साथ शादी से पहले से ही लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा था. शादी उस ने केवल घर वालों के दबाव में और समाज को दिखाने के लिए की थी.

एक दिन वीणा जी ने अश्लेषा से कहा, ‘देख बेटा, अब डिसीजन लेने का समय आ गया है. मैं बिलकुल नहीं कहूंगी कि इस मंगलसूत्र नाम के घंटे के लिए तू अपनी जिंदगी बरबाद कर दे. अभी तेरे सामने तेरी पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू कमाती है, आत्मनिर्भर है इसलिए जितनी जल्दी हो सके, इस जबरदस्ती के बंधन से मुक्त हो कर अपनी मरजी से अपनी जिंदगी जीना सुनिश्चित कर. पर हां, अंतिम निर्णय तेरा ही होगा.’

‘मां, देखो, अब मैं इसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि यह जिंदगीभर याद रखेगा. जो लोग लड़कियों को अपने हाथ की कठपुतली समझते हैं उन के लिए एक सबक साबित होगी अनिमेष की जिंदगी.’

इस के बाद एक तरफ जहां अश्लेषा ने तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दी वहीं, अनिमेष के डौक्युमैंट्स की जांच के लिए भी उस के विभाग में एक एप्लीकेशन दी थी. जैसे ही अनिमेष को इस बारे में पता चला, अश्लेषा के घर आ कर बहुत हंगामा किया, ‘तुम समझती क्या हो खुद को, यही तो समस्या होती है इन कमाऊ लडकियों के साथ, चार पैसे क्या कमाने लगती हैं, खुद को ही तीसमारखां समझने लगती हैं. मैं भी देखता हूं कि कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता है.’

रोजरोज के तनाव और विवाद से बचने के लिए अश्लेषा ने अपना ट्रांसफर भोपाल अपने मातापिता के पास करवा लिया था ताकि अपनी नौकरी पर फोकस कर सके. विगत में वह इतना खो गई थी कि कब सुबह के 4 बज गए थे, उसे ही पता नहीं चला था. बहुत कोशिश कर के उस ने खुद को उन बीती यादों से निकाला और कब उस की आंख लगी, उसे ही पता न चला.

“चायचाय, गरमागरम चाय, आप की सेवा में हाजिर है,” श्लोक की आवाज से उस की आंख खुली. घड़ी में 9 बज रहे थे. वह तो अच्छा था कि आज संडे था और हर संडे को श्लोक इसी तरह उस के सामने चाय ले कर हाजिर हो जाते हैं.

“क्या हुआ आज तो लगता है अनिमेष की यादों में ही खोई रहीं तुम. इसीलिए इतनी देर से सो कर उठीं.”

“हां, कह सकते हो तुम.”

चाय पी कर वह जो घर के कामों में लगी तो दोपहर हो गई. अनीता ने खाना डायनिंग टेबल पर लगा दिया था. संडे को खाना खा कर दोपहर की झपकी लेना उस के और श्लोक दोनों की ही आदत में शुमार है. सो, खाना खा कर दोनों बैड पर लेट गए. श्लोक को जब लिटा दो, तो निद्रादेवी झट आ कर उन्हें अपनी आगोश में ले ही लेती हैं. पर उस की आंखों में तो फिर से अधूरी दास्तान मानो बाहर आने को बेचैन थी.

उस की शिकायत के बाद अनिमेष की जब जांच हुई तो उस के सारे दस्तावेज फर्जी निकले. जांच 4 साल तक चली. डिपार्टमैंट के अधिकारियों ने फोन पर कई बार उस के बयान लिए थे. उधर कोर्ट में डायवोर्स के केस के लिए उसे बारबार उज्जैन जाना पड़ता था. इस से उसे मानसिक और शारीरिक थकान तो होती थी पर अब उसे अपराधी को सजा दिलवाए बिना चैन ही नहीं था. 2 साल के लंबे अंतराल के बाद उसे तलाक मिल गया था लेकिन अभी सर्विस वाले केस पर निर्णय आना शेष था.

डायवोर्स होने के बाद मांपापा उस पर अब दूसरी शादी करने के लिए दबाव बनाने लगे थे पर अनिमेष से धोखा खाने के बाद उस का मन अब किसी और पर विश्वास करने को तैयार न था. उन्हीं दिनों उसी के डिपार्टमैंट में चीफ इंजीनियर की पोस्ट पर श्लोक ट्रांसफर हो कर आए थे.

आम अधिकारियों से कुछ अलग ही व्यवहार था श्लोक का. दिखने में सुदर्शन, व्यवहार में सौम्य, वाणी में विनम्रता मानो उन की हर बात में झलकती थी. कभी किसी से डांट कर बात नहीं करते थे. चाहे अधिकारी हो या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, हरेक से प्लीज कर के बात करते थे, श्लोक. वह ही नहीं, औफिस के सभी कर्मचारी उन के व्यवहार के कायल थे. अकसर काम के सिलसिले में उस का सामना भी श्लोक से हो जाया करता था. डिपार्टमैंटल ट्रेनिंग पर इस बार श्लोक और उसे दोनों को सिक्किम जाने का और्डर आया था. वहां जा कर एक प्रोजैक्ट को देखना था और उस के आधार पर ही मध्य प्रदेश में भी एक प्रोजैक्ट लौंच किया जाना था. अपना नाम और्डर में देख कर वह घबरा गई और जा पहुंची श्लोक के केबिन में, ‘सर, आई डोंट वांट टू गो. प्लीज, आप मेरा नाम हटवा दीजिए.’

उसे देखते ही श्लोक उठ खड़े हुए और बोले, ‘आइए, आइए मेम. व्हाट हैपेंड, व्हाई यू डोंट वांट टू गो? इट इज ऐन अपौर्च्यूनिटी, इट विल हैल्प यू इन योर ब्राइट फ्यूचर. थिंक अगेन एंड टेल मी. आप अच्छे से सोच लीजिए, फिर जैसा आप कहेंगी, मैं कर लूंगा. कल बताइएगा मुझे.’
घर आ कर जब उस ने मांपापा को सिक्किम वाली बात और श्लोक की प्रतिक्रिया से अवगत कराया तो उन्होंने कहा, ‘सही तो कह रहे हैं तुम्हारे साहब, जाना ही चाहिए, इतना अच्छा मौका मिल रहा है. जाओ, वैसे भी इतने समय से फालतू के झंझट झेल कर परेशान हो गई हो. अनाया की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. अब तो वह तुम्हारे बिना बड़े आराम से रह लेती है.’

अगले दिन औफिस में पहुंच कर उस ने श्लोक को अपनी सहमति से अवगत कराया. वे बोले, ‘देखिए, इसीलिए मैं ने फिर से विचार करने को कहा था.’

इस के बाद एक सप्ताह की ट्रेनिंग पर वे दोनों सिक्किम गए थे. सिक्किम में दोनों को अधिकतर समय साथसाथ ही रहना होता था. अश्लेषा दिन में कई बार अपनी बेटी से बात करती थी तो श्लोक अपनी मां से. जिस से उस ने अंदाज लगाया कि श्लोक अपनी मां के काफी नजदीक हैं. एक दिन जब वह अनाया से बात कर रही थी तब श्लोक ने धीरे से कहा, ‘आप की बेटी कितनी बड़ी है और किस के पास छोड़ कर आई हैं आप?’

‘7 साल की है वह और अपनी नानीनाना के पास है.’

‘आप के पति कहीं और पोस्टेड हैं क्या?’’ शलोक ने विनम्रता से कहा.

‘नहीं सर, बहुत अलग सी कहानी है मेरी. फिर कभी बताऊंगी. आप बताइए, आप शायद अपनी मां के काफी नजदीक हैं?’

‘नजदीक क्या, मेरा परिवार ही मेरी मां हैं. मैं जब 8 साल का था तभी पापा देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे. मां ने अकेले ही मुझे बड़ा किया है और इस मुकाम तक पहुंचाया भी है. इसलिए मैं जो कुछ भी हूं, सिर्फ और सिर्फ अपनी मां के कारण हूं,’ श्लोक बात करतेकरते कुछ भावुक से हो गए थे.

बस, इस के बाद वे दोनों एकदूसरे से खुलते गए थे. श्लोक के शालीन व्यवहार पर तो वह वैसे ही फ़िदा थी, अब उसे उस से बात करना भी अच्छा लगने लगा था. एक दिन जब वह अनाया से वीडिओकौल पर बात कर रही थी तो श्लोक से भी उस ने उस की बात करवाई. बात करने के बाद श्लोक बोले, ‘आप के मम्मीपापा और बेटी बहुत अच्छे हैं. अब आज तो आप बता ही दीजिए अपनी कहानी अपनी ही जबानी.’ श्लोक ने इस तरह कहा कि वह एकदम खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘क्या हमेशा उदासी ओढ़े रहती हैं आप. देखिए हंसते हुए कितनी अच्छी लगती हैं आप?’ उस के हंसते समय श्लोक ने अपने द्वारा खींची तसवीर दिखाते हुए कहा.

इस के बाद उस ने धीरेधीरे अपने और अनिमेष के बारे में सारी दास्तान श्लोक को कह सुनाई थी. सुनने के बाद श्लोक एकदम से हंसे और बोले, ‘बाप रे, अपने भविष्य के साथ किस तरह का खिलवाड़ करते हैं लोग, कहां से लाते हैं इतना साहस. आप ने बिलकुल सही किया. और यह मंगलसूत्र का मान रखना क्या होता है यानी एक साधारण से गहने के पीछे एक महिला अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर दे. और हां, उस की सर्विस वाला डिसीजन हुआ कि नहीं?’

‘अभी कहां, सरकारी संस्थाएं पूरी जांचपड़ताल के बाद ही डिसीजन देती हैं. मामला चल रहा है, देखिए कब तक क्या होता है.’

ट्रेनिंग से आने के बाद भी दोनों का आपस में मिलनाजुलना जारी रहा. श्लोक की मम्मी का जन्मदिन था जिस में श्लोक ने अश्लेषा और उस के पूरे परिवार को भी बुलाया था. श्लोक की मम्मी भी उसी की तरह बहुत विनम्र और बहुत जिंदादिल थीं. उन्हें देख कर उन की उम्र का एहसास तक नहीं होता था. अश्लेषा और उस की बेटी को देखते ही वे चिहुंक उठीं, ‘ओह माई गौड, तुम ने जितना बताया था, ये मांबेटी तो उस से भी कहीं ज्यादा सुंदर हैं.’ उस की मम्मी और पापा को भी श्लोक और उस की मम्मी से मिल कर बहुत अच्छा लगा था.

अगले दिन जब वह औफिस चली गई तो श्लोक की मम्मी उस के घर आ पहुंचीं और बिना किसी औपचारिकता के वीणा जी से अश्लेषा का हाथ मांग बैठीं. पहले तो श्लोक की मम्मी का प्रस्ताव सुन कर वीणाजी चौंक गईं, फिर बोलीं, ‘पर आशू कहां तैयार है अभी. वह तो शादी का नाम सुन कर ही भड़क जाती है. मैं तो नहीं, आप ही उस से बात करो.’

‘मेरा बेटा कौन सा तैयार है. वह तो शादी न करने का ही तय कर के बैठा है, कहता है, पूरी जिंदगी आप ने मेरे लिए गुजार दी. अब कोई तीसरी आ कर हम दोनों को ही अलग करने का प्लान कर ले, यह मैं बिलकुल नहीं चाहता. आप लोग अपना बताइए, आप को तो कोई परेशानी नहीं है न मेरी समधन बनने में?’

‘अरे नहींनहीं, मेरे लिए तो बहुत ही ख़ुशी की बात होगी जो आप मेरी समधन बनें,’ कहते हुए वीणाजी ने श्लोक की मम्मी को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों की ही मम्मियों ने अपने बच्चों को तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दोनों को ही अपने मातापिता के सामने झुकना पड़ा था.

जब दोनों के विवाह पर लगभग मुहर सी लग गई तो एक दिन अश्लेषा ने कहा, “आप मुझ से विवाह करने को तो तैयार हैं पर क्या आप ने कभी सोचा है कि मेरे जीवन में एक बेटी भी है और जो मेरी जान है, उस के बिना मेरा ही कोई अस्तित्व नहीं है. और क्या आप की मम्मी मुझे मेरी बेटी के साथ अपनाने के लिए तैयार हैं?’

‘तुम्हें क्या लगता है, मैं और मेरी मां इतने दकियानूसी हैं कि तुम्हें अपनाएं और अनाया को नहीं. मुझे और मम्मा को तुम अनाया के साथ ही स्वीकार हो. हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी जो तुम दोनों हमारी जिंदगी में आओगी. तो प्लीज अपने कदमों से आप दोनों मेरे घरआंगन को रोशन करेंगी. और हां, अनाया और मेरी कितनी अच्छी बौन्डिंग है, यह तो तुम्हें पता ही है न.’

बस, इस के बाद जोरशोर से उन दोनों का सर्वसम्मति से विवाह हो गया. दोनों खुशनुमा जिंदगी पिछले 4 वर्षों से व्यतीत कर रहे थे. अनाया भी 10 साल की हो गई थी. श्लोक की मम्मी और उस के मम्मीपापा की बहुत पटती थी. तीनों अकसर कहीं घूमने निकल जाते थे.

चूंकि दोनों की पोस्टिंग भोपाल में ही थी सो अब विवाह के बाद श्लोक ने अपने नाम पर भोपाल की प्राइम लोकेशन कहे जाने वाले चार इमली में बंगला एलौट करा लिया था. इस समय अनाया अपने स्कूल ट्रिप पर मनाली गई हुई थी. आज अनिमेष के विभाग का निर्णय उसे पता चला था, तब से ही वह बहुत खुश थी. आखिर, असत्य पर सत्य की जीत हो ही गई थी.

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