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बदलना होगा शहरों के पुराने इलाकों को

दिल्ली जैसे कितने ही शहरों में होलसेल मार्केटें शहर की रिहायशी बस्तियों व घने बाजारों के बीचोंबीच हैं और धीरेधीरे आसपास के मकानों में भी घुस रही हैं. इन संकरी गलियों में न चलने की जगह है, न ठेलों की और न ही सैकड़ों मजदूरों के लिए, जो दुकानों का माल सप्लाई करने आते हैं. ये चल रही हैं क्योंकि रेल से आनेजाने में सुविधा है. दिल्ली के चावड़ीबाजार, सदरबाजार, पहाड़गंज, खारीबावली के इलाके ऐसे ही हैं.

इन इलाकों में रहने वालों के लिए मुसीबतें ही हैं. सदियों नहीं तो दशकों से रह रहे लोगों की जिंदगियां उन के बिना कुसूर के खराब हो रही हैं. उन्हें अपने पुश्तैनी मकान छोड़ कर भागना पड़ रहा है. कई फिल्मों ने इन इलाकों की घरेलू, व्यापारी, धार्मिक जिंदगी को पेश किया है पर रोमांटिक माहौल तो यहां असलियत से काफी दूर है. यहां की बदबू, भीड़, बिखराव, लटके तार जानलेवा हैं. जिन बस्तियों ने पुश्तों को शरण दी है वे अब खतरा बन गई हैं.

राजनीति में महिलाएं आज भी हाशिए पर

हर नई सरकार यहां सफाई का वादा करती है पर न व्यापारी, न उन के ग्राहक और न ही यहां रहने वाले लोग किसी ठोस प्लान पर सहमत हो पा रहे हैं. घरों में व्यापारिक काम न हो इस पर सुप्रीम कोर्ट कानून के अनुसार सख्त हो रहा है और इसीलिए बहुतों को मजबूर किया जा रहा है कि अपनी बसी बसाई दुकानों से 30-40 किलोमीटर दूर जाएं. इस पर भारी गुस्सा है और अडि़यल रवैया अपनाया जा रहा है. व्यापारियों को लगता है कि नई जगह उन्हें फिर से नई साख बनानी पड़ेगी, क्योंकि वहां उन की दुकान की पहचान खो जाएगी. यह सच है पर शहर की मजबूरी है.

शहरों के पुराने इलाकों को बदलना तो होगा. दिल्ली, भोपाल, आगरा, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों के पुराने इलाकों को तो म्यूजियम ही बनना पड़ेगा. वे धरोहरों के हिस्से हैं, आज के धंधों के नहीं. यूरोप के ज्यादातर शहरों के ऐसे इलाके केवल पर्यटकों के लिए बन गए हैं. पुराने मकानों में होटल बन गए हैं, हवेलियां म्यूजियम बना दी गई हैं. दुकानों में पर्यटकों का सामान बिकता है या रेस्तरां हैं. लोग सैर करने और पुराने माहौल में एक बार फिर जीने के लिए आते हैं.

व्यापारियों को नए जमाने के साथ तो चलना ही होगा. पुरानी सोच से चिपके रहने का अर्थ है खुद पुराना बना रहना. अगली पीढि़यों को इन्हीं इलाकों में रखना है तो इन का ढांचा वैसा ही रख कर इन्हें नया रंग देना जरूरी है.

सावधान, आप बेचे जा रहे हैं

सबला का जवाब

अनजान शहर और उस पर घिरती शाम. रीना का मन घबराने लगा था. वह सोच रही थी, ‘आज के जमाने में पति के साथ होना भी कौन सी सिक्योरिटी की गारंटी है. अभी हाल ही में हनीमून पर आई एक नईनवेली दुलहन को उस के पति के सामने ही खींच कर…’

‘‘मुकेश, तुम्हें मैं ने बोला था न कि या तो जल्दी लौटने की कोशिश करेंगे या पहले से कोई रुकने की जगह तय कर लेंगे… तुम ने दोनों में से एक भी काम नहीं किया…’’ रीना ने अपने पति मुकेश से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘अरे डार्लिंग, चिंता मत करो…’’ मुकेश अपनी दुकान के लिए खरीदे गए माल का हिसाब मिलातेमिलाते बोला, ‘‘यहां ज्यादा देर हुई तो राजन के यहां रुक जाएंगे. पिछली बार याद है कितना गुस्सा कर रहा था वह कि मेरा घर होते हुए भी होटल में क्यों रुके?’’

राजन मुकेश का दोस्त था. अकसर उन के घर आताजाता रहता था, लेकिन चूंकि रीना अपने घरपरिवार में ही खुश रहने वाली औरत थी, सो उसे जल्दी किसी से घुलनामिलना पसंद नहीं था.

‘‘अरे, तुम पागल हो क्या…’’ रीना झल्ला गई, ‘‘राजन कौन है तुम्हारा? चाचा, मामा, नाना… मैं ने पहले भी कहा है कि किसी के भी घर यों ही नहीं रुकना चाहिए…’’

‘‘फिर होटल का खर्च लगेगा. माल लेने आते हैं यहां, घूमने थोड़े ही,’’ मुकेश ने उसे समझाने की गरज से कहा.

रीना चिढ़ कर यह कहते हुए चुप हो गई, ‘‘जो मन में आए, करो.’’

आखिर वही हुआ जो रीना नहीं चाहती थी. सारा सामान लेतेलेते शाम के 7 बज गए. वापस लौटना भी खतरे से खाली नहीं था. हाईवे का सुनसान रास्ता और इतने सारे सामान के साथ रीना जैसी खूबसूरत जवान बीवी.

मुकेश ने डरतेडरते पूछा, ‘‘चलो न, बस रातभर की तो बात हैं.’’

रीना ने चुपचाप कुछ सामान उठा लिया मानो अनिच्छा से सहमति दे रही हो. मुकेश उस के साथ राजन के घर पहुंचा जो वहां से तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी पर ही था.

राजन उन दोनों को देखते ही खिल उठा, ‘‘अरेअरे भाभीजी, आइएआइए… इस बार तू ने समझदारी की है मुकेश.’’

रीना को यों किसी के घर जाना बिलकुल पसंद नहीं था. वह सकुचाते हुए सोफे पर बैठ गई और घर पर ननद को फोन लगाया. अपने 5 साल के नटखट बेटे की चिंता सताना स्वाभाविक था.

‘‘टिंकू ज्यादा तंग तो नहीं कर रहा है न पायल?’’ रीना ने पूछा.

‘नहीं भाभी, टीवी देख रहा है…’ रीना की ननद पायल ने फोन पर बताया.

‘‘अच्छा सुनो… फ्रिज में दाल है, गरम कर लेना…’’ वह उसे जरूरी निर्देश देने लगी. तब तक मुकेश बाथरूम से फ्रैश हो कर आ चुका था. रीना ने फोन काट दिया.

‘‘फ्रैश हो लो तुम भी…’’ मुकेश धीरे से बोला, ‘‘इंतजाम सही है. साफसुथरा है सब…’’

रीना हिचकते हुए उठी. देखा कि राजन किचन में जुटा था. उस की अच्छीखासी सरकारी नौकरी थी लेकिन उस ने शादी नहीं की थी, सो सब काम वह खुद ही करता था. खाना खाने के बाद उस ने उन्हें उन का कमरा दिखाया.

‘‘चलिए भाभी, गुड नाइट…’’ कहता हुआ राजन बाहर जातेजाते अचानक मुड़ा और बोला, ‘‘मैं यह पूछना तो भूल ही गया कि मेरी कुकिंग कैसी लगी?’’

‘‘जी अच्छी थी. खाना अच्छा बना लेते हैं आप,’’ रीना ने मुसकरा कर जवाब दिया.

राजन चला गया. उस के जाते ही मुकेश ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ कर रीना से लिपटने लगा.

‘‘अरेअरे, क्या कर रहे हो… वह भी दूसरे के घर में,’’ रीना उस की इस हरकत पर असहज हो गई.

‘‘2 मिनट में कर लूंगा, तुम लेटो तो…’’ मुकेश ने अपने होंठ उस के चेहरे पर रगड़ने शुरू कर दिए.

‘‘बाबा, यह हमारा बैडरूम नहीं है…’’ रीना उस के हाथ अपने सीने से हटाने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली, लेकिन न जाने आज मुकेश पर क्या धुन सवार थी. उस ने उसे बिस्तर पर दबा ही दिया.

रीना इंतजार कर रही थी कि जल्दी यह सब खत्म हो लेकिन आज मुकेश में गजब का बल आया हुआ था. सामने लगी घड़ी में रीना बीतते मिनटों को हैरत से गिन रही थी.

‘‘क्या हो गया है जी तुम को…’’ अनियमित सांसों के बीच वह किसी तरह बोल पाई लेकिन मुकेश सुने तब न. हार कर रीना भी सहयोग करने पर मजबूर हो गई. काफी देर बाद दोनों अगलबगल निढाल पड़े सुस्ता रहे थे.

‘‘कपड़े तुम्हारे… जल्दी पहनो…’’ अपने अंदरूनी कपड़ों को खोजती पसीने से तरबतर रीना ने मुकेश के ऊपर उस की टीशर्ट रखते हुए कहा. आज उसे भी भरपूर संतुष्टि मिली थी लेकिन चादर के हाल पर बहुत शर्म भी आने लगी कि सुबह राजन देख कर क्या सोचेगा. लेकिन मुकेश इन सब बातों से बेपरवाह खर्राटे लेने में मगन था.

भोर के तकरीबन 4 बजे रीना की आंख लगी, जिस से उठने में देर हो गई.

7 बजे राजन दरवाजा खटखटाने लगा. रीना ने मुकेश को चिकोटी काट कर जगाया.

‘‘राजन दरवाजे पर है…’’ मुकेश के उठते ही वह फुसफुसा कर बोली.

मुकेश ने दरवाजा खोला.

‘‘चल, हाथमुंह धो कर फ्रैश हो ले. मैं नाश्ता बनाने जा रहा हूं,’’ राजन ने मुकेश से कहा और साथ लाया अखबार रीना को दे कर चला गया.

नाश्ता करते ही रीना ने तुरंत सामान बांध लिया. बिसकुट और साबुन के कुछ पैकेट जबरदस्ती राजन को थमा कर वे दोनों वहां से चल पड़े.

कुछ हफ्तों बाद एक दिन जब रीना नहा रही थी, उसी समय डोरबैल बज उठी. मुकेश दुकान गया हुआ था और पायल अपने होस्टल जा चुकी थी. घर में बस रीना और टिंकू ही थे.

रीना ने जल्दीजल्दी साड़ी बांधी और दरवाजा खोला तो देखा कि सामने राजन खड़ा था.

‘‘ओह राजन भैया…’’ रीना ने उस का औपचारिक स्वागत करते हुए उसे अंदर बुलाया.

‘‘मुकेश तो दुकान के लिए निकल चुका होगा?’’ राजन ने इधरउधर देख कर पूछा.

‘‘हां, इस समय तो वे दुकान पर ही होते हैं…’’ रीना बोली, ‘‘बैठिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ कह कर रीना जल्दी से किचन में चली गई. टिंकू अपने कमरे में खेल रहा था.

चाय पीतेपीते रीना को कुछ ठीक महसूस नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि राजन की नजर उस की कमर पर… लेकिन वह इन खयालों को झटक दे रही थी. हां, उस ने पल्लू को करीने से कर लिया था.

‘‘रुकिए, मैं मुकेश को फोन करती हूं…’’ ऐसा बोल कर वह उठने को हुई कि राजन ने हाथ पकड़ कर जरबदस्ती रीना को बिठा लिया.

‘‘अरे बैठिए न भाभी… वह तो आ ही जाएगा.’’

रीना को उस का हाथ पकड़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. जल्दी से हाथ खींच कर छुड़ाया और बेटे को बुलाने लगी जिस से एकांत मिटे, ‘‘टिंकूटिंकू… देखो अंकल आए हैं,’’ मगर उस के आने से पहले ही राजन बोल उठा, ‘‘भाभी, मुझे आप को कुछ दिखाना है.’’

‘‘क्या दिखाना है?’’ रीना को कुछ समझ नहीं आया. राजन ने अपने मोबाइल फोन पर कोई वीडियो प्ले कर उसे थमा दिया. मोबाइल पर चलती पोर्न फिल्म देख कर रीना गुस्से और बेइज्जती से भर उठी.

‘‘यह क्या बेहूदगी है…’’ रीना ने चिल्ला कर मोबाइल राजन पर फेंकते हुए कहा, ‘‘निकलो अभी के अभी यहां से, उस दिन बहुत शरीफ होने का ढोंग कर रहा था राक्षस…’’

लेकिन राजन एकदम शांत बैठा रहा. उस ने मोबाइल फोन दोबारा उस की ओर घुमाया, ‘‘जरा, इस फिल्म की हीरोइन को तो देख लो भाभीजान…’’

उस वीडियो की लड़की का चेहरा देखते ही रीना को तो जैसे चक्कर आने लगे. वीडियो में वह और मुकेश थे. वह समझ गई कि राजन ने उसी रात यह वीडियो बनाया था जब वे लोग उस के यहां रुके थे.

‘‘मैं ने ही मुकेश के खाने में वह मर्दानगी की दवा मिलाई थी जिस से वह आप को खुश कर दे और मैं वीडियो बना सकूं…’’ राजन बेशर्मी से हंसता हुआ बोला, ‘‘हाहाहा, वह बेचारा अनजाने में ही हीरो बन गया.’’

रीना बेइज्जती के मारे वहीं फूटफूट कर रो पड़ी. चिडि़या जाल में फंसी समझ कर राजन ने उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘भाभी, आप की आंखें प्यार में डूबी अच्छी लगती हैं, रोती नहीं. चलिए बिस्तर पर, एक फिल्म मेरे साथ भी बना ही लीजिए, मुकेश से भी ज्यादा मस्त कर दूंगा आप को…

‘‘मेरी कमाई भी उस से तिगुनी है और मुकेश को हमारे बारे में कुछ पता भी नहीं चलेगा,’’ राजन ने बेशर्मी से कहा.

रीना को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उस दिन का उतना सभ्य राजन आज इतने गंदे तरीके से उस से बातें कर रहा है. वह शेरनी की तरह उठी और उसे धक्का दे कर दूर धकेल दिया. वह सोफे के पास जा गिरा लेकिन खुद पर काबू रखता हुआ गुर्राया, ‘‘रीना, मैं तुझे मसल कर रहूंगा और ज्यादा नानुकर की न तो तेरी यह फिल्म जाएगी वैबसाइट पर… जब से तुझे देखा है, तुझ को ही सोचसोच कर सपने देखता हूं, मुझे आज मना मत कर.’’

राजन फिर से उठा और रीना को अपनी बांहों में भर लिया. रीना ने अपने सिर का जोरदार प्रहार राजन की नाक पर किया. वह दर्द से बिलबिलाता हुआ नीचे बैठ गया. नाक से खून आने लगा था.

रीना ने उस पर लातमुक्कों की बरसात कर दी. वह खुद को बचाने के लिए इधर से उधर हो रहा था. शोर सुन कर टिंकू भी वहां आ चुका था और वैसा सीन देख कर घबरा कर रो रहा था.

आंसुओं को पोंछते हुए रीना दहाड़ी, ‘‘पति को धोखा देने के लिए सिखा रहा है मुझे. वैबसाइट पर डालेगा मेरा वीडियो? हैवान, जा कर डाल दे, कौन क्या कर लेगा मेरा? इस में मैं अपने पति के साथ हूं कोई गलत काम नहीं कर रही. अखबार वाले मेरा नाम छिपा लेंगे, टैलीविजन वाले तेरा चेहरा वायरल कर देंगे और पुलिस चुटकी में इस वीडियो को डिलीट करवा देगी… जेल में तू सड़ेगा, मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला.’’

राजन किसी तरह से संभलता हुआ वहां से भागने की कोशिश करने लगा, पर रीना के हाथ में पास रखा पेपरवेट आ चुका था. उस ने मारमार कर राजन की खोपड़ी से भी खून निकाल दिया. वह बेहोश हो कर लुढ़क गया.

रीना ने मुकेश को फोन कर दिया. वह पुलिस को साथ लिए ही घर आया. राजन के इस रूप पर मुकेश को भी भरोसा नहीं हो रहा था.

पुलिस की जीप में बैठते राजन के कानों में रीना की गुर्राहट पिघले सीसे की तरह घुस रही थी, ‘‘इस सबला का जवाब याद रखना दरिंदे…’’

‘द ताशकंद फाइल्स’ का कुछ लोगों की जिंदगियों पर जरुर असर पडे़गा : विवेक अग्निहोत्री

‘चाकलेट’,‘धन धना धन गोल’,‘हेट स्टोरी’,‘जिद’,‘बुद्धा इन ट्रैफिक जाम’ जैसी फिल्मों के सर्जक और खुद को नरेंद्र मोदी समर्थक बताने वाले फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री इस बार देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्व.लाल बहादुर  शास्त्री की मृत्यु की साजिश पर फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ लेकर आ रहे हैं, जो कि 12 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है. विवेक अग्निहोत्री का दावा है कि उनकी फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ दर्शकों के सामने एक ऐसा सच उजागर करेगी कि दर्शक समझ जाएगा कि क्या हुआ था.

फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ क्या है?

देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्व.लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में जो मृत्यु हुई थी, उसी पर एक रोमांचक फिल्म है. 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकंद में हुई मृत्यु पर फिल्म सवाल खड़े करती है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश का प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश में युद्ध संधि पर हस्ताक्षर करने जाता है और हस्ताक्षर करने वाली रात ही उसी देश में उनका निधन हो जाता है. ऐसे में उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया गया? यह देश पर कालिख है. इसी पर सवाल उठाती है हमारी यह फिल्म.

शास्त्री जी की मृत्यु के 53 साल बाद उस पर फिल्म बनाने की वजह क्या रही?

लगभग पांच छह वर्ष पहले दो अक्टूबर के दिन मैने ट्वीट किया कि आज राष्ट्पिता महात्मा गांधी के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म दिन है, तो उन्हें भी श्रृद्धांजली अर्पित करता हूं.मेरे ट्वीट के जवाब में हजारों लोगों ने लिखा कि मैं शास्त्री जी के मौत के राज पर फिल्म बनाउं किसी ने भी शास्त्री जी की जिंदगी पर फिल्म बनाने के लिए नहीं कहा.किसी ने भी 1965 के युद्ध पर फिल्म बनाने के लिए नहीं कहा. लोगों की मांग पर मैं फिल्म बनाने के लिए जानकारी इकट्ठा करने निकला तो कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली. किसी भी मंत्रालय से सही जवाब नहीं मिला. सभी ने एक ही जवाब दिया कि शास्त्री जी की मृत्यू हार्टअटैक से हुई. तब मैंने एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला. मैंने इस वीडियो में कहा कि,‘लोग क्राउड फंडिंग से पैसा इकट्ठा करते हैं,मैं क्राउड फंडिंग से अपने देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय शास्त्री जी की मृत्यू से संबंधित जानकारी चाहता हूं. जिसके पास जो भी जानकारी हो, जो भी तथ्य या किताब आदि हो, वह मुझे भेजें. ’उसके बाद लोगों ने मुझे एक दूसरे से मिलवाया. फिर हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंचे कि सच जानकर मेरी आंखे खुली की खुली रह गयीं.

पर 53 साल तक लोग चुप क्यों रहे?

लोग आवाज उठाते रहे,पर सरकार ने उनकी आवाज नहीं सुनी. हमारे देश में चोर लोग शासन कर रहे थे. शास्त्री जी के बेटे भी कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए है, उन्होंने भी आवाज नहीं उठायीं? ऐसा नही है. यह चुप नहीं रहे. इन्होंने खूब आवाज उठाई. स्वर्गीय शास्त्री जी कि पत्नी ललिता शास्त्री ने भी आवाज उठायी. उनके दोनों बेटों ने भी आवाज उठायी. मेरी फिल्म में उनके दोनों बेटों के इंटरव्यू है. कांग्रेस से जुड़े उनके बेटे का मानना है कि शास्त्री जी को जहर दिया गया था. इंटरव्यू में तो उन्होंने मुझे जहर का नाम भी बताया. आप जब फिल्म देखेंगे तो आपको बहुत कुछ नयी जानकारी मिलेगी, बहुत कुछ समझ आएगा.

आपकी फिल्म में शास्त्री जी हत्या की साजिश व राजनीति में से किस पर ज्यादा बात की गयी है?

देखिए, शास्त्री की मृत्यु छोटे कद या अच्छा चेहरा नही है, यह कहकर नही हो सकती. उनकी मृत्यू के पीछे हर हाल में राजनीति ही है. तो उसी की बात हमारी फिल्म करती है.

क्या आपकी फिल्म शास्त्री जी की मृत्यु से संबंधित सच को उजागर करती है?

सौ प्रतिशत..हमारी फिल्म एक ऐसा सच उजागर करेगी,जो हर इंसान को सोचने पर मजबूर करेगा.पर मैंने यह फिल्म जजमेंट देने के लिए नहीं बनायी है. पर यह फिल्म दर्शकों के सामने एक ऐसा सच उजागर कर देगी कि दर्शक समझ जाएगा कि क्या हुआ था.

फिल्म को बनाने के पीछे आपका मकसद क्या रहा?

मेरा मकसद यह था कि इस देश के हर नगारिक को समझ लेना चाहिए कि सच पर पहला अधिकार इस देश के नागरिक का है.

फिल्म ‘‘द ताशकंद फाइल्स’’ के प्रदर्शन के बाद क्या रूस से हमारे जो संबंध हैं, उन पर असर पड़ेगा?

मुझे नहीं लगता कि पड़ेगा. पर यदि पड़ता है, तो मेरी राय में शास्त्री जी की मृत्यु के सच को जानने का मुद्दा इतना बड़ा है कि उसके सामने रूस से संबंध का मसला बहुत छोटा है. पर आज के हालात में मुझे नहीं लगता कि रूस से हमारे संबंधों पर असर पड़ेगा. हां भारत में कुछ लोगों की जिंदगियों पर जरुर असर पडे़गा. अब क्या होगा, इसका इम्तहान 12 अप्रैल से होगा.

फिल्म की शूटिंग के दौरान इस फिल्म को लेकर किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही थीं?

लोगों के बीच प्रचारित नहीं किया था. क्योंकि हमें पता था कियदि प्रचारित कर दिया तो पोलीटीशियन कुछ कहेंगे, मीडिया भी कुछ कहेगा. उस वक्त विवाद बढ़ेगा और हमारी फिल्म की शूटिंग रूक सकती है. अब बात करनी शुरू की है, तो लोगों के बीच खलबली मच रही है.

पर सोशल मीडिया पर लोग गाली गलौज करने के अलावा धमकी ही क्यों देते हैं?

सोशल मीडिया ही क्यों, अब तो लोग चैराहे पर या पान की दुकान पर खडे होकर गाली गलौकोई काम नहीं रह गया. पर यह गलतफहमी है, यह कहना या सोचना कि सोशल मीडिया पर गाली गलौज करके ही चर्चा में रह सकते हैं. सच तो यह है कि मुझे सोशल मीडिया पर लोग नई नई आइडिया देते हैं. नई जानकारी व जोक्स भी भेजते हैं. मैं तो अस्सी प्रतिशत रचनात्मक चीजे देखता हूं और बीस प्रतिशत बकवास.

फिल्म के प्रचार में सोशल मीडिया कितनी अहम भूमिका निभाता है?

अब सोशल मीडिया ही मुख्य मीडिया हो गया है. यही बदलते जमाने का मीडियम है.

सिनेमा की जो स्थिति है,उसे आप किस तरह से देखते हैं?

सिनेमा बदलाव के दौर से गुजर रहा है. अब बड़े स्टार या बड़े बजट की बजाय जमीन से जुड़ी भारतीय कहानी वाली फिल्में चाहिए.

पर अब हौलीवुड हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में डब फिल्में बौलीवुड की फिल्मों के लिए खतरा बनी हुई हैं?

हौलीवुड ही भारतीय फिल्मों को बदलने पर मजबूर कर रहा. हौलीवुड की फिल्मों में कहानी होती है, हमारे देश की फिल्में कहानी विहीन होती है. हमारी फिल्मों में गानों के नाम पर आइटम नंबर और आइटम रूपी कुछ एक्षन दृष्य ही हुआ करते थे. पर अब लोग कहानी पर काम करने लगे हैं. जब तक कहानी पर काम नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता.

इंदौरी पोहा बनाने की आसान रेसिपी

इंदौरी पोहा सभी खाने में पसंद करते हैं. सुबह के नाश्ते में पोहा की बात ही अलग होती है. चाय के साथ गर्म-गर्म पोहे बहुत स्वादिष्ट लगते हैं. यह पोहा हल्का-फुल्का और बेहद स्वादिष्ट भी होता है. इसे बनाना भी बेहद आसान है.

सामग्री :

– पोहा (250 ग्राम)

– हरी मिर्च (2-3)

– 1 बड़े साइज का प्याज (बारीक कटा हुआ)

– हल्दी पावडर (1 चम्मच)

– कालीमिर्च पावडर (1 चम्मच)

– शकर (2 छोटे चम्मच)

– छौंक के लिए  राई-जीरा,

– 1 चम्मच सौंफ

–  मीठा नीम (थोड़ा सा)

– चुटकी भर हींग

– 1 बड़ा चम्मच तेल

– नमक  (स्वादानुसार)

– बारीक कटा हरा धनिया

– आधा बारीक कटा प्याज

– सेंव

– जीरावन मसाला

– 1  नींबू

अब आसान टिप्स से बना पाएंगे घर में मशरूम सौस

बनाने की विधि :

सरबसे पहले पोहे को थाली में लेकर साफ करके 2-3 बार पानी से धो लें.

और पोहे का सारा पानी निकाल लें और उसे एक तरफ ढेरी करके जमा दें.

करीबन  15-20 मिनट तक उसे गलने दें.

अब एक कड़ाही में तेल गरम करके राई-जीरा तड़काएं.

मीठा नीम, सौंफ और हींग डालें.

फिर हरी मिर्च डालें, अब प्याज डालकर गुलाबी होने तक भून लें.

अब हल्दी डालें और इसके बाद पोहे में कालीमिर्च, नमक, शकर डालकर अच्छी मिक्स करें और कड़ाही में डाल दें.

एक प्लेट से ढंककर  5-7 मिनट तक धीमी आंच पर पोहे को पकने दें.

इसके बाद गैस बंद कर दें और ऊपर से हरा धनिया डालें.

अब पोहे को प्लेट में परोसें और  ऊपर से जीरावन, सेंव, कटा प्याज डालें और नींबू निचोड़कर टेस्टी,  चटपटे इंदौरी खट्‍टे-मीठे पोहे का आनंद लें.

छेना रबड़ी बनाने की रेसिपी

चटपटी शाही आंवले की सब्जी

सामग्री

– 250 ग्राम प्याज (किसी हुई)

– 1 चम्मच लाल मिर्च

– 1 चम्मच सूखा धनिया

–  1 चम्मच हल्दी

–  2 बड़े चम्मच मोयन के लिए

– 200 ग्राम बेसन

– 10-15 कली सूखे आंवले

– 4-5 हरी मिर्च

–  4-5 कली लहसुन

– अदरक एक गांठ (बारीक कटी हुई)

– तेल 1/2 (आधा) चम्मच

– सौंफ, जीरा, अजवाइन

– तेजपात

– स्वादानुसार नमक

– गरम मसाला

–  तलने के लिए तेल

 बनाने की विधि : 

– सबसे पहले 10-15 सूखे आंवलों को गरम तेल में तलिए, ठंडा होने पर बारीक मिक्सी में पीस लें.

– आंवला और बेसन साथ में मिलाकर छान लें.

– ऊपर दी गई सामग्री में से आधी सामग्री बेसन के साथ मिला लीजिए (प्याज, हरी मिर्च, अदरक, लहसुन, सौंफ, अजवाइन, लाल मिर्च, स्वादानुसार नमक, मोयन के लिए दो चम्मच तेल) आदि सभी सामग्री डालकर खुरमे की तरह आटा गूंथ लें.

– गैस पर कड़ाही रखकर तेल गरम करके गूंथे हुए आटे की छोटे, गोल, चपटे खुरमे बनाकर तलिए, सुनहरा होने पर निकालिए.

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तरी के लिए सामग्री : 

– सबसे पहले कड़ाही में दो बड़े चम्मच तेल डालकर गरम करें.

– फिर उसमें जीरा व तेजपान और उपरोक्त बची हुई आधी सामग्री (अदरक, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन)     डालकर सुनहरा होने तक भूनें.

– अब उसमें एक-एक चम्मच सूखा धनिया, लाल मिर्च, हल्दी डालकर भूनें.

– जब मसाले तेल छोड़ने लगे तो आधा लीटर पानी डालकर एक उबाली लें, और आंवले के खुरमे डाल दें.

– फिर 15 से 20 मिनट तक पकने दें.

– पकने के बाद आधा चम्मच गरम मसाला व हरा धनिया डालकर गर्म-गर्म पराठे के साथ सर्व करें.

ओट्स डोसा की रेसिपी

जेनेटिक हो सकती है नींद की परेशानी, शोध में हुआ खुलासा

क्या आप भी नींद संबंधित परेशानी से पीड़ित हैं? इस परेशानी के लिए आमतौर पर खराब लाइफस्टाइल और खराब खानपान कारण होते हैं. पर हाल में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई कि यह समस्या अनुवांशिक हो सकती है, यानि जेनिटिक. शोधकर्ताओं ने यह खोज की है कि हमारे शरीर के कई अनुवांशिक कोड्स के खराब होने के कारण नींद की परेशानी होती है.

मेसाचुसेट्स जनरल अस्पताल में हुए इस शोध में शोधकर्ताओं ने ऐसी 47 कारणों की पहचान की जो अनुवांशिक कोड और नींद के गुण और मात्रा से संबंधित होते हैं.  इस परेशानी के लिए कारण पीडीई11ए नाम का एक जीन को बताया जा रहा है.

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क्या है पीडीई11ए जीन?

जीनोमिक क्षेत्रों में पीडीई11ए नाम का एक जीन खोजा गया. जानकारों ने ये पाया कि असाधारण व भिन्न प्रकार का यह जीन न सिर्फ नींद के समय को प्रभावित करता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता पर भी असर डालता है.

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जानकारों का मानना है कि नींद की गुणवत्ता व मात्रा और समय में बदलाव से मनुष्य कई तरह की बीमारियां- मधुमेह, मोटापा, मनोविकार वगैरह की गिरफ्त में आ जाते हैं.

कौन थे सैंपल?

जनरल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में अध्ययनकर्ताओं ने यूके बायोबैंक के करीब 85,670 और अन्य अध्ययनों से करीब 5,819 प्रतिभागियों के आकड़े एकत्रित किए थे. इन्होंने अपनी कलाइयों पर त्वरणमापक यंत्र बांध रखी थी, जो इनकी गतिविधियों के स्तर को लगातार रिकौर्ड कर रहा था.

नींद की गोली का सेवन करने वालों के लिए जरूरी है ये खबर

शहरी लाइफस्टाइल, फास्टफूड का अत्यधिक इस्तेमाल, स्ट्रेस नींद ना आने के प्रमुख कारणों में से एक होते हैं. ये समस्या लोगों को इतना अधिक प्रभावित करती है कि लोग नींद की दावाइयों को लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं. शुरुआती समय में तो ये गोलियां लोगों को सुकून देती हैं, पर लंबे वक्त के लिए इनका सेवन सेहत पर काफी बुरा असर डालता है.

क्या होता है असर

हाल ही में हुई एक स्टडी की माने तो लंबे समय तक इन गोलियों का सेवन करने से आपको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है. स्पेन की एक युनिवर्सिटी में हुए शोध के मुताबिक नियमित तौर पर नींद की गोलियों का सेवन करना बुढ़ापे में हाई ब्लड प्रेशर के खतरे को और बढ़ा देता है.

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कौन हैं सैंपल

इस स्टडी को करने के लिए शोधकर्ताओं ने तनाव और हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त करीब 750 लोगों को शामिल किया. स्टडी के दौरान पाया गया कि करीब 156 लोगों ने एंटीहाइपरटेंसिव दवाइयों की संख्या में वृद्धि की. इससे नींद की अवधि या क्वालिटी और एंटीहाइपरटेन्सिव ड्रग के उपयोग में परिवर्तन के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया.

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क्या कहना है जानकारों का

शोधकर्ताओं का कहना है कि नींद की गोलियों का सेवन भविष्य में उच्च रक्तचाप के इलाज की आवश्यकता और अनहेल्दी लाइफस्टाइल की ओर संकेत करता है, जो उच्च रक्तचाप के लिए जिम्मेदार हो सकता है.

सोशल मीडिया और झूठ

फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप ने झूठ का प्रचार करने में धर्मों को भी मात दे दी है. हर धर्म को अपने झूठ को ही अंतिम सत्य साबित करने में 100-200 या इस से भी ज्यादा साल लगे हैं, पर इन हाईटैक कंपनियों ने झूठ को सच मानने की आदत कुछ सालों में ही डलवा दी.

धर्मों की खबर फैलाने में लंबा समय लगता था. जिस ने झूठ गढ़ा उसे अपने आसपास के 10-20 लोगों को झूठ दूत बना कर दूसरी जगह भेजना पड़ता था, जिस में महीनों लगते थे. लेकिन आज के टैक प्लेटफौर्मों पर झूठ तैयार करो, और घंटों में दुनिया के कोनेकोने में पहुंचा दो. अगर वहां झूठ को सच मानने वाले मिले तो वह वायरल हो कर कुछ ही दिनों में सदासदा के लिए सच बन जाता है.

फर्क यह रहा है कि धार्मिक झूठ ने पक्की जमीन ली थी. उसे जिस ने माना अंतिम सत्य मान लिया और उसे झूठ कहने वाले का सिर काट दिया या अपना कटवा लिया. पर झूठ को झूठ नहीं माना. लेकिन हाईटैक झूठ की पोल तेजी से खुलने लगी और अब फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप के लिए खतरे की घंटी बज रही है कि उन पर भरोसा किया जाए या नहीं.

अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया का जम कर फायदा उठाया क्योंकि वहां के गोरों को डर था कि काले, भूरे, सांवले, पीले लोग उन के देश पर कब्जा न कर लें. भारत में 2014 में विकास और अच्छे दिनों के पीछे दलितों, पिछड़ों की बढ़ती तादाद और ताकत डरा रही थी. दोनों जगह चुनावों में इस स्पैशल मीडिया पर जम कर झूठ फेंका गया. अब टैक कंपनियां थोड़ी सावधान हुई हैं. फेसबुक ने अब संदेश पढ़ने शुरू कर दिए हैं और उस ने उन के अकाउंट बंद करने भी शुरू कर दिए हैं जो भ्रामक झूठ या घृणा फैलाने में माहिर हैं. मतलब यह है कि अब फेसबुक की चिट्ठी डाकिया पढ़ने लगा है और यदि उसे लगे कि उस में गलत बातें हैं तो वह चिट्ठी दबा सकता है और भेजने वाले या पाने वाले को बैन कर सकता है.

फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और गूगल अब सरकारों से ज्यादा ताकतवर हो गए हैं. वे पार्टियों के ऊपर हैं. वे जनता के अकेले मार्गदर्शक हैं जबकि उन्हें जनता के भले की नहीं, अपने पैसों की चिंता है. वे पैसा मिले तो हर झूठ को फैला देंगे, न मिले तो सच को झूठों के अंबार के नीचे दबा देंगे.

लोग इस की भारी कीमत चुकाने लगे हैं. आज अज्ञान और गलत ज्ञान जम कर फैल रहा है जबकि विज्ञान पिछड़ रहा है. नतीजा यह है कि लोग चुटकुलों से जीवन जीना सीख रहे हैं, पोर्न से साथी बना रहे हैं, मोबाइल के कैमरे से खींची अंतरंग तसवीरों को इन टैक प्लेटफौर्मों से फैलाने की धमकियां दे कर अपनी बात मनवा रहे हैं. इन का असर गलत सरकार चुनने से ले कर घर, परिवार और संबंधों में गलतफहमी पैदा करने तक पर पड़ रहा है.

यूज ऐंड थ्रो के दौर में जानवर

दुनिया में सब से ज्यादा मवेशी भारत में हैं. यही नहीं, 50 करोड़ से ज्यादा पशुओं वाले हमारे देश में 8 से 10 फीसदी तक आवारा पशु हैं. आवारा पशुओं की कोई तय परिभाषा नहीं है. पर आमतौर पर आवारा पशुओं से मतलब उन पशुओं से है जिन का कोई मालिक नहीं होता. जो सड़कों में, गलियों में, खेतखलिहानों में भटकते रहते हैं. जहां कुछ पाया चर लिया, जिस ने कुछ फेंक दिया उसे खा लिया.

हम न सिर्फ दुनिया में सब से ज्यादा पालतू पशुओं वाला देश हैं, बल्कि दुनिया में सब से ज्यादा आवारा पशु भी हमारे यहां ही पाए जाते हैं. याद करिए अभी एकडेढ़ दशक पहले तक कैसे इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाड़ी भारत में क्रिकेट खेलने के लिए आते समय नाकभौं सिकोड़ते थे क्योंकि उन्हें भारतीय शहरों की मुख्य सड़कों पर भटकते आवारा पशुओं को देख कर चिढ़ होती थी. इस से भारत बेतरतीब और बेढंगा नजर आता था.

क्यों हैं आवारा पशु

दर्जनों विदेशी सैलानियों ने सपेरों, साधुओं और समस्याओं के साथसाथ भारत को हर जगह भटकते आवारा पशुओं वाला देश भी कहा है. राजधानी नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडलीय खेलों में तब रंग में भंग पड़ गया था जब विदेशी खिलाडि़यों ने भारतीय खेलगांव में आवारा कुत्तों के घूमने की शिकायत की और कई देशों के खिलाडि़यों ने इसी बिना पर तब तक खेलगांव आने से इनकार कर दिया था कि जब तक यह सुनिश्चित न हो जाए कि आवारा कुत्ते खेलगांव के इर्दगिर्द मंडराते नहीं दिखेंगे.

सवाल है एक पिछड़े, गरीब और भुखमरी से पीडि़त देश में इस कदर बड़ी तादाद में आवारा पशुओं के होने की आखिर क्या वजह है? हमारे देश में दुनिया में सब से ज्यादा आवारा कुत्तों से ले कर दुधारू गाय और भैसों तक के पाए जाने का एक बहुत बड़ा कारण धर्मभीरुता रही है.

हिंदुस्तान वह देश है जहां घरों में चूल्हा जलने के बाद सब से पहले गाय और कुत्ते के लिए रोटियां बनाई जाती हैं. यह हैरानी की बात नहीं है कि हमारे यहां शहरों से ज्यादा आवारा कुत्ते गांवों में पाए जाते हैं क्योंकि यह मान्यता है कि कुत्ते को खिलाने से हमारा पुण्य बंटता नहीं है और वह हमें स्वर्ग में ले जाने वाली सीढि़यों का सबब बनता है. शायद इस कहानी का एक धुंधला आधार महाभारत का वह प्रसंग है जिस में कुत्ता धर्मराज युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग जाता है.

हमारे महानगरों में भी हमारी धार्मिक मान्यताएं धुंधली नहीं पड़ी हैं. यही वजह है इंजीनियर, डाक्टर, आईटी सैक्टर में काम करने वाले एग्जीक्यूटिव तक सुबह नंगेपैर, हाथ में रोटियां लिए गाय ढूंढ़ते मिल जाएंगे. धार्मिकता के चलते हमारे देश में आवारा पशुओं को कभी अपना पेट भरने में दिक्कत नहीं हुई. लेकिन यह गुजरे दौर का किस्सा है. जब लोगों में इतनी सहिष्णुता थी, आवारा पशुओं को ले कर इतनी संवेदना थी कि वे खाने से पहले, बतौर अपने फर्ज के, एक हिस्सा इन पशुओं के लिए निकालते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज का आदमी न तो इतना भावुक है और न ही मासूम कि पापपुण्य के फेरे में पड़े. हां, इन दिनों गायों पर राजनीति खूब हो रही हैं.

बदतर होती हालत

लोगों में घटती संवेदनशीलता, बढ़ती व्यस्तता और खुद के उत्थान के लिए सिमटती प्रवृत्ति के चलते आवारा पशु अब बोझ बन गए हैं. आम लोगों के लिए भी, साथ ही उन नागरिक संस्थाओं के लिए भी जिन पर बीचबीच में आम लोगों की तरफ से यह जोर डाला जाता है कि उन्हें आवारा पशुओं से होने वाली परेशानियों से बचाएं. यही कारण है कि चाहे दिल्ली हो या इंदौर, रतलाम हो या रोहतक, हर जगह आवारा कुत्तों को पकड़ कर नसबंदी की जा रही है. उन्हें शहर से दूर छोड़ आने की घटनाएं बढ़ रही हैं. यह सब इसलिए होता है कि ये आवारा जानवर लोगों को परेशान न करें.

दिल्ली में हर साल तकरीबन 60 से 65 आवारा कुत्तों को नगर निगम पकड़ता है, उन की नसबंदी करता है और उन्हें शहर की सीमा से दूर छोड़ देता है. इस के पीछे 2 कारण होते हैं. एक तो यह कि आवारा कुत्ते जनसंख्या न बढ़ाएं और दूसरा मकसद यह होता है कि कुत्ते शहर के लोगों को परेशान न करें. मगर हम

2 चीजें भूल जाते हैं. एक यह कि शहर की सीमा से दूर छोड़े गए कुत्ते अगर शहर वालों को नहीं तो किसी और को परेशान करते ही हैं, तो क्या गांव के लोग या छोटे कसबों व बड़े महानगरों से सटे पिछड़े इलाकों को आवारा कुत्तों से किसी तरह की परेशानी नहीं होती होगी?

हां, शायद सिर्फ इसलिए क्योंकि उन की हैसियत बेहतर नहीं होती वरना नागरिक संस्थाएं शहर वालों के सिरदर्द को कम करने के लिए गांव व कसबे वालों के सिरदर्द को क्यों बढ़ाएं?

बहरहाल, आवारा पशुओं की करुण कहानी महज इतनीभर नहीं है कि अब लोग उन को खाना खिलाने के प्रति उदासीन हो रहे हैं, बल्कि यह भी है कि जैसे आज के उपभोक्ता दौर में तमाम चीजों को इस्तेमाल कर के उन्हें फेंक देने की प्रवृत्ति बढ़ी है उसी तर्ज पर आवारा पशु अर्थहीन हो गए हैं और अपनी महत्त्वाकांक्षाओं में उलझे लोगों के लिए बोझ बन गए हैं.

अनुत्पादक, बूढ़े, बीमार या विकलांग पशुओं की स्थिति तो और भी हृदयविदारक है. घर से बेघर इन पशुओं को सुबहशाम भी नहीं पूछा जाता. इन के जीवन के अंतिम दिन, मृत्यु की प्रतीक्षा में ही किसी चौराहे या सड़क के किनारे व्यतीत होते हैं. जिस मनुष्य ने पूरे जीवनभर उस की उत्पादकता का दोहन किया, वह अब पानी पिलाना भी जरूरी नहीं समझता.

भारत में जानवरों को पश्चिमी संस्कृति की तरह मास उत्पादन की नजर से नहीं देखा जाता रहा है. भारतीय लोकजीवन में पशु हमारी जीवनशैली का हिस्सा रहे हैं. भारतीय कृषक तो पशुओं के बिना अपनी जिंदगी के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं कर सकते. मगर जैसेजैसे जीवन बदल रहा है, जीवनशैली बदल रही है, पशुओं को ले कर पारंपरिक सोच भी बदल रही है.

पश्चिमी देशों में तो हमेशा से जानवर कारोबारी मानसिकता से देखे गए हैं या वे मांस अथवा दुग्ध उत्पादन के नजरिए से पाले गए हैं. इसलिए वहां असहाय होने से पहले पशुओं को निर्ममता से मांस में तबदील कर दिया जाना आश्चर्य नहीं पैदा करता. मगर भारत, जहां यह मान्यता हो कि मरने के बाद बैकुंठ जाने के लिए वैतरणी को गाय की पूंछ पकड़ कर ही पार किया जा सकता है, इसीलिए मरने के पहले लोग धार्मिक श्रद्धा से मरने वाले के लिए गाय का दान देते हैं, उस देश में उपयोगितारहित हो जाने पर पशुओं को आवारा या खुला छोड़ देना जिस से वह तिलतिल कर परेशानियों से मर जाए, हैरानी पैदा करता है.

मशीनीकरण के इस युग में ऊंट, गधा, बैल, बछड़ा आदि की उपयोगिता वैसे भी पहले के मुकाबले बहुत कम रह गई है. बोझ ढोना, खेत जोतना, यातायात आदि के लिए अब पशु अनुपयोगी होते जा रहे हैं. ऐसे में अर्थशास्त्र की कसौटी तो यही कहती है कि लावारिस होना और बोझ बनना इन पशुओं की नियति है.

आज के दौर में पशुओं को इसलिए भी उपयोगिता व अनुपयोगिता की कसौटी से कस कर देखा जाता है क्योंकि पशुओं में बड़ी तादाद में हुई जेनेटिक फेरबदल के कारण आज विदेशों में जानवर कहीं ज्यादा उपयोगी व लाभकारी हो गए हैं. जिस की तुलना में भारतीय पशु कहीं नहीं टिकते.

हमें लगता है कि विदेशी नस्ल की गायें जब एक दिन में 20-20 लिटर दूध देती हैं तो फिर 4- 5 लिटर दूध देने वाली भारतीय गायों का महत्त्व ही क्या है? यह भी सच है कि जिस तरह पशुओं के चारे की समस्या पैदा हुई, उस के चलते वह पशुपालक पर एक आर्थिक बोझ बन गया है. यही कारण है कि लोग पशुओं के पालने को घाटे का सौदा मानने लगे हैं.

लेकिन, बड़ी समस्या यह है कि पशुओं के प्रति हमारी सोच में जबरदस्त गिरावट आई है. जिस कारण पशु अब इस्तेमाल करो और फेंको के दायरे में आ गए हैं. अगर देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखना है तो हमें पशुओं के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा और उन्हें बड़ी तादाद में आवारा होने से बचाना होगा, वरना पशुओं की यह करुण कहानी 21वीं सदी में भारतीय समाज की एक दारुणगाथा बन कर रह जाएगी.

बीच बहस में

मैं जब अपने औफिस से लौट कर आया तो पत्नी के चेहरे पर अजीब सी खुशी नाच रही थी. मैं समझ गया कि शायद हमारी सासुजी आ रही हैं क्योंकि बरसात के मौसम में जब घने काले बादल छाए हों, बिजली चमके, मौसम में अजीब सी उमस हो तो जान लें कि तेज बरसात होने वाली है. उसी तर्ज पर पत्नीजी के चेहरे की मुसकान देख कर हम जान गए कि हमारी आफत (सासुजी) आने वाली होंगी और पता नहीं यह साढ़ेसाती कितने बरसों तक रहेगी? कब तक हम परेशान होते रहेंगे. लेकिन पत्नी ने हमारे भ्रम को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आज आप के पसंद के पकौड़े बनाए हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘एक खुशखबरी है…’’

‘‘अच्छा,’’ हम ने डरते हुए थूक निगलते हुए आगे कहा, ‘‘मम्मीजी आ रही होंगी?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘मैं मेरी मां की नहीं, तुम्हारी अम्मा की कह रहा हूं.’’

‘‘न मेरी मां, न तुम्हारी मम्मी.’’

पत्नी ने हमें संशय में डाल दिया था.

‘‘फिर क्या बात है?’’ हम ने अपने को संयत करते हुए प्रश्न किया.

‘‘मैं ने तुम्हें बताया था न, कि मेरी एक सहेली थी,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘कौन, वो मीनाटीना?’’

‘‘जी नहीं, अमीना,’’ पत्नी ने बताया.

‘‘अमीना के बारे में तो कभी नहीं बताया.’’

‘‘भूल गई शायद.’’

‘‘कौन, वो…?’’

‘‘जी नहीं, मैं बताना भूल गई.’’

‘‘तो क्या हो गया.’’

‘‘वह दिल्ली जा रही थी, तो उस ने खबर दी कि वह यहां रुकते हुए आगे जाएगी,’’ पत्नी ने बताया.

‘‘तो ठीक है न, आ जाने दो.’’

‘‘लेकिन…?’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘वह मुसलमान है.’’

‘‘तो क्या हो गया?’’

‘‘तुम ऐडजस्ट कर लोगे?’’

‘‘मुझे ऐसा क्या करना है. आए, शौक से,’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम कितने अच्छे हो.’’

‘‘सो तो पहले से ही हूं.’’

‘‘जानती हूं इसलिए तो मैं ने तुम से शादी की,’’ पत्नी ने जवाब दिया, फिर मेरे सामने गोभी के पकौड़े रखते हुए वे कहने लगीं, ‘‘जानते हैं, अमीना और हमारा घर पासपास था. हम दोनों के बीच कभी भी धर्म दीवार नहीं बनी. हमारे त्योहार में वह भागीदारी करती थी और ईद पर हम सब उस के घर जाते थे. कभी किसी भी तरह का धर्म या जाति का भेदभाव नहीं था. उस के बाद वह स्थानीय चुनाव में खड़ी हो गई थी. उसे जिताने में हम ने एड़ीचोटी की ताकत लगा दी थी और वह जीत गई थी. क्या दिन थे वे…’’

पत्नीजी अपने में गुम मुझे पूरा किस्सा सुनाए जा रही थीं. मैं हूं हां करते जा रहा था.

‘‘तर्क देने में तो वह माहिर है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘अमीना, और कौन,’’ पत्नी समझ गई थी कि मेरा ध्यान उस ओर कम ही है, इसलिए वह नाराज हो कर किचन में चली गई. मैं न्यूज देखने लगा था. रात को भोजन किया तो पत्नी की आंखों में अपनी सहेली के आने की खुशी जाहिर हो रही थी. खरबूजे को तो कटना ही है, चाहे सासू के नाम पर, चाहे सहेली के नाम पर.

सुबह 8 बजे टैक्सी रुकी तो अमीनाजी ने हमारे गरीबखाने में प्रवेश किया. दोनों सहेलियां गलबहियां हुईं. हम से परिचय हुआ. हमारी शादी के समय वह कहीं विदेश गई हुई थी. इसलिए हम से माफी मांगी और मैरिज का गिफ्ट शादी के

7 बरसों बाद ला कर दिया. हम ने भी दांतों को निपोरते हुए स्वीकार कर लिया. इस में 2 मत नहीं थे कि अमीना वास्तव में बहुत सुंदर थी. बातचीत में तहजीब थी. उस की आवाज का सुर कम था, लय में था जबकि हमारी बेगम का तो बेसुर कभीकभी तो गधे को मात देने वाला हो जाता था. वह जब चीखती तो मैं शांत ही रहना पसंद करता था.

सुबह नाश्ते में इतने विभिन्न प्रकार के व्यंजन थे कि तबीयत खुश हो गई. नाश्ते के टेबल पर मैं ने प्रशंसा करते हुए अमीनाजी से कहा, ‘‘आप तो महीने में

4-6 बार आ जाया करें.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘ताकि हमारी बेगम इतने वैरायटी का नाश्ता रोज बना कर खिलाएं.’’ पत्नीजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘जनाब, यह मेहनत, मेरी नहीं, अमीना की है. यह खाना पकाने में भी मास्टर है.’’ अमीना थोड़ा शरमा गई थी.

‘‘भई अमीनाजी, कुछ प्रकार का नाश्ता इधर भी सिखा देना.’’

अमीना चुप हो गई, लेकिन अणुबम जैसे आग्नेय नेत्रों से पत्नी ने हमें देखा.

नाश्ते के बाद हम घूमने गए. अगले दिन अमीनाजी को रवाना होना था. एक समाचारपत्र वाहक सांध्य का समाचारपत्र ले कर चीखता हुआ निकला. वह हैडलाइन को देख कर चीख रहा था, ‘‘राज्य में गौमांस पर प्रतिबंध…’’

मैं ने पेपर लिया. उस को पढ़ा. उस में लिखा था, ‘पूरे देश में गौहत्या या बीफ के मांस पर रोक लगाने के लिए सरकार विचार कर रही है.’

पत्नीजी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, उन्होंने खुश हो कर कहा, ‘‘चलो, हमारी गौमाता अब मरने से बचेगी.’’

मुझ से नहीं रहा गया, मैं ने कहा, ‘‘बूढ़ी होने पर उसे सड़कों पर छोड़ देंगे मरने के लिए.’’

‘‘उस में तैंतीस करोड़ देवीदेवताओं का वास होता है,’’ पत्नी ने तर्क दिया.

‘‘एक बात बताओ, रेलगाड़ी से कट कर या ट्रक से टकरा कर जब

वह मरती है तो यह तैंतीस करोड़ देवीदेवता कहां चले जाते हैं? वे भी कटमरते होंगे?’’

‘‘चुप रहो, फालतू की बातें नहीं करते,’’ पत्नीजी ने तुनक कर कहा.

‘‘यार, जीजाजी सही ट्रैक पर हैं, तुम इस बात का जवाब दो. ये तर्क की बातें हैं,’’ अमीना ने बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘तुम ही बताओ, अरबों का मांस विदेश में निर्यात होता है, हजारों लोग इस व्यवसाय में लगे हैं, वे सब बेरोजगार हो जाएंगे. फिर सस्ता प्रोटीन जो मिलता है वह भी नहीं मिल पाएगा. यह तो किसी एक वर्ग एक जाति को संतुष्ट करने की राजनीतिभर है,’’ मैं ने अमीना के सामने खुद को बुद्धिमान साबित करते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ पत्नी लगभग दहाड़ीं.

‘‘तुम नाराज मत हो तो एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए न जीजाजी,’’ अमीनाजी ने मजे लेते हुए कहा.

‘‘देखो, हिंदुओं में गाय की पूजा होती है, इसलिए धर्म के खिलाफ है गौहत्या. कहो, सच है?’’

‘‘बिलकुल सच है.’’

‘‘धर्म में ऐसा उल्लेख है, ऐसा कहा जाता है.’’

‘‘बिलकुल,’’ पत्नीजी ने उछलते हुए कहा.

‘‘हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है.’’

‘‘हां, है,’’ पत्नी ने कहा.

‘फिर एक बात बताएं?’

‘‘कहिए?’’

‘‘अमीनाजी इसलाम में शराब को हराम माना गया है, उन के धर्म की चिंता करते हुए पूरे देश में शराबबंदी हो जानी चाहिए.’’

‘‘हां, यह तो सच है,’’ पत्नीजी ने कहा.

‘‘क्या सरकार कर पाएगी?’ बिलकुल नहीं. देश में कुछ राज्यों में चूहे को खाया जाता, कुछ राज्यों में कुत्तों को खाया जाता है और कुछ राज्यों में भैंसे को खाया जाता है. डियर, एक बात बताओ, इन में से कौन सा पशु हिंदू देवीदेवता का पूजनीय नहीं है? गणेश को ले कर दत्तात्रेय तक सब पशु देवताओं के नाम के साथ जुड़े हैं. क्या सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए इन जानवरों को मार कर खाने पर प्रतिबंध लगाएगी? बिलकुल नहीं.’’

‘‘यह बात बिलकुल सच है, जीजाजी,’’ अमीना ने खुश हो कर कहा.

‘‘अरे, हमारे धर्म में तो चींटी, चिडि़या, बरबूटे, मोर, सारस, तोता, उल्लू सब खाए जाते हैं और सब किसी न किसी देवीदेवता के वाहन हैं. फिर बताओ, क्या देश में सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए मांसाहार पर प्रतिबंध लगा सकती है? देश की 35 प्रतिशत आबादी मांसाहार पर निर्भर है. और तो और, कछुआ, सांप, अजगर, मछली तक खाए जाते हैं जो कि हमारे देवीदेवता के पूज्य वाहन हैं. मैं ऐसे किसी भी प्रतिबंध के खिलाफ हूं. जिसे नहीं खाना है वह न खाए. लेकिन झूठी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में, झूठी प्रसिद्धि पाने का प्रयास करना गलत है. क्यों अमीनाजी, सच है या गलत?’’

अमीनाजी खुश हो गईं और मेरी पत्नी को एक ओर खींच कर ले गईं. थोड़ी देर में पत्नी आईं और फिर हम लौट कर घर आ गए.

सुबह अमीनाजी गईं तो हम सब को बहुत दुख हो रहा था बिछुड़ने का. अमीनाजी चली गईं तो मैं ने पत्नीजी से प्रश्न किया, ‘‘बीच बहस में तुम उठ कर अमीना के साथ कहां चली गई थीं? और अमीना ने तुम से क्या कहा था जो तुम एकदम शांत हो कर लौटी थीं?’’

पत्नीजी थोड़ा मुसकराईं और कहने लगीं, ‘‘वह मुझे खींच कर एक ओर ले गई और मेरा हाथ जोरों से पकड़ कर कहा, ‘तुझे बधाई हो.’ मैं ने पूछा, ‘किस बात की बधाई?’ तो उस ने कहा, ‘मालिक ने तुझे इतना समझदार, तर्क में निपुण पति दिया है. सच में यहां आ कर धन्य हो गई. मेरी इच्छा तो उन्हें उस्ताद बनाने की हो रही है.’’

‘‘सच, यही कहा था अमीनाजी ने?’’ मैं ने खुश हो कर पूछा.

‘‘बिलकुल सच. उस के बोलने के बाद मुझे लगा कि अमीना जैसी तार्किक बात करने वाली यदि तुम्हारी इतनी प्रशंसा कर रही है, तो दम तो है तुम में,’’ पत्नीजी ने खुश हो कर कहा.

‘‘सो तो हम हैं ही,’’ मैं ने हंस कर कहा.

‘‘वो तो तुम शादी होने के बाद इतने बुद्धिमान हो गए, वरना मैं जानती हूं तुम कैसे थे?’’ पत्नी ने कहा और मेरे किसी तरह के उत्तर को सुने बिना अंदर किचन में चली गई थीं.

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