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अमिताभ-जया की शादी के 46 साल पूरे, अभिषेक ने लिखा ये मैसेज

बौलीवुड के एवरग्रीन कपल अमिताभ बच्चन और जया बच्चन  की आज वेडिंग एनिवर्सरी है. ये दोनो एक दूसरे के साथ 4 दशक पूरे कर चुके हैं. बौलीवुड के इस कपल की 46वीं एनिवर्सरी है. इस खास मौके पर इनके बेटे अभिषेक बच्चन ने अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की एक खूबसूरत तस्वीर अपने इंस्टाग्राम पर शेयर कर उन्हें विश किया हैं.

 

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इस फोटो में अमिताभ बच्चन व्हाइट शर्ट पर ब्लैक जैकेट पहने हुए हैं  जबकि जया बच्चन व्हाइट सूट में हैं, दोनों के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान है. अभिषेक ने इस फोटो के साथ कैप्शन में लिखा हैं- ‘Happy Anniversary to the parentals! Love you both eternally. #46andcounting.’

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Abhishek-Bachchan---Amitabh-Bachchan---Jaya-Bachchan

आपको बता दें कि अमिताभ और जया बच्चन एक दूसरे के साथ कई हिट फिल्में दे चुके हैं. इनमें शोले, अभिमान, गुड्डी,  एक नजर, कभी खुशी कभी गम जैसी बेहतरीन फिल्में शामिल हैं. रियल लाइफ के साथ-साथ सिल्वर स्क्रीन पर भी अमिताभ और जया की केमिस्ट्री देखते बनती है.

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क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019: बांग्लादेश ने बिगाड़ा दक्षिण अफ्रीका का खेल

5 जून को भारत अपना पहला मुकाबला दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलेगा पर वह दक्षिण अफ्रीका का तीसरा मैच होगा. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि इस देश ने वर्ल्ड कप में लगातार 3 मैच हारे हों, लेकिन अगर 5 जून को ऐसा हो गया तो नया रिकौर्ड बन जाएगा.

दक्षिण अफ्रीका की ऐसी पतली हालात की है जुझारू बंगलादेशी टीम ने. जब सोशल मीडिया पर 2 जून को ‘दो जून की रोटी कमाने’ का मजाक गरमी की हद तक यहांवहां बह रहा था तब इंगलैंड में चल वर्ल्ड कप में बंगलादेश ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ियों के माथे पर पसीना ला दिया था.

इंगलैड से अपना पहला मैच हार चुकी दक्षिण अफ्रीकी टीम को यह मैच जीतना जरूरी था ताकि हार के मलाल को कम किया जा सके, जबकि उस से बहुत कमजोर बांग्लादेशी टीम का यह पहला मैच था.

ओवल के मैदान पर पहले बल्लेबाजी करते हुए ‘बंगाली बाघों’ ने पिच और मौसम का मिजाज भांपते हुए सधी हुई शुरुआत की और उन का यह देखने लायक खेल पारी के अंत तक ऐसा ही चला. शाकिब अल हसन (75) और मुशफिकुर रहीम (78) की शानदार पारियों की मदद से बांग्लादेश ने 6 विकेट पर 330 रन बनाए. यह इस देश का दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ और आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप में बेस्ट स्कोर है.

शाकिब अल हसन और मुशफिकुर रहीम ने तीसरे विकेट के लिए 142 रन की भागीदारी की जो वर्ल्ड कप में उन की सर्वश्रेष्ठ साझेदारी भी है. इन दोनों बल्लेबाजों के अलावा सलामी बल्लेबाज सौम्य सरकार ने 42 और आखिर में महमूदुल्लाह रियाद ने नाबाद 46 रन का योगदान दिया.

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दूसरी तरफ दक्षिण अफ्रीका की गेंदबाजी में वह धार नहीं दिखी जिस के लिए वह जानी जाती है. उस के सारे गेंदबाज लाइन और लेंथ से भटके दिखे. वे बांग्लादेश के बल्लेबाजों को लगातार रन बनाने से रोकने में नाकाम रहे. टीम के लिए एक बुरी खबर यह भी रही कि तेज गेंदबाज लुंगी निडी (4 ओवर में 34 रन) हैमस्ट्रिंग का इलाज कराते दिखे और इस के बाद गेंदबाजी के लिए दोबारा मैदान पर नहीं उतरे. दक्षिण अफ्रीका के लिए आदिले फेहलुकवायो, क्रिस मौरिस और इमरान ताहिर ने 2-2 विकेट लिए.

इंगलैंड के खिलाफ अपना पहला मैच खेलते हुए दक्षिण अफ्रीका के अनुभवी सलामी बल्लेबाज हाशिम अमला को बल्लेबाजी करते हुए चोट लग गई थी जिस से वह इस मैच में खेल नहीं पाए थे. 331 रनों के विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरे दक्षिण अफ्रीका को पहला झटका क्विंटन डि काक (23) के रूप में लगा जो रन आउट हुए. उस के बाद एडेन मार्करम (45) को शाकिब अल हसन ने बोल्ड कर दक्षिण अफ्रीका को दूसरा झटका दिया. कप्तान फाफ डु प्लेसिस कुछ देर टिके और उन्होंने 53 गेंदों पर 5 चौके और 1 छक्का जड़ा. उन्हें मेहदी हसन ने बोल्ड किया.

डेविड मिलर और वैन डेर ड्यूसेन ने कुछ उम्मीदें बांधी लेकिन दोनों एक के बाद एक आउट हुए जिस से दक्षिण अफ्रीका का स्कोर 5 विकेट पर 228 रन हो गया. डेविड मिलर ने 38 और वैन डेर ड्यूसेन ने 41 रन का योगदान दिया. आखिरी उम्मीद जेपी डुमिनी ने 37 गेंदों पर 4 चौकों की मदद से 45 रन बनाए लेकिन उन के आउट होते ही दक्षिण अफ्रीका की हार पर मानो मोहर लग गई थी. लिहाजा, इस रोमांचक मैच में वह 21 रन से पिछड़ गया.

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पेट भरा होने पर रूह के लिए काम करते हैं,मगर: श्रवण रेड्डी

बौलीवुड में सफलता मिलनी आसान नही होती. यहां पर कलाकार की प्रतिभा से ज्यादा मायने उसकी तकदीर रखती है. पिछले 12 वर्ष से बौलीवुड में सक्रिय श्रवण रेड्डी ने 2007 में टीवी सीरियल ‘‘जर्सी नंबर 10’’अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था. उसके बाद उन्होंने कुछ सीरियल किए. टीवी जगत मे उन्हे पहचान भी मिली,मगर फिल्मों में अभिनय करने का अवसर नही मिल पाया. जबकि उन्होंने बतौर सहायक निर्देशक कुछ फिल्में की इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एमएक्स प्लेअर’’ पर प्रसारित हो रही हास्यप्रद वेब सीरीज ‘‘थिंकिस्तान’’में अंग्रेजी दा हेमा का के किरदार में जबरदस्त शोहरत बटोर रहे हैं.

प्रस्तुत  है श्रवण रेड्डी के साथ हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश

अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?

मैं मूलतः हैदराबाद का रहने वाला हूं. मेरे पापा बिजनेस मैन हैं और मम्मी हाउस वाइफ हैं. मेरी पूरी पढ़ाई हैदराबाद में हुई. मुझे पहले कभी समझ में नही आया कि मुझे क्या करना चाहिए. स्कूल व कौलेज के दिनों में मैं क्रिकेट खेलता था. अभिनय को लेकर मैंने कुछ सोचा नहीं था. कुछ वजहों के चलते मुझे क्रिकेट से दूरी बनानी पड़ी. तब अचानक अभिनय की तरफ मेरी रूचि बढ़ गयी. कौलेज के दिनों में ही मैंने सोच लिया था कि अब मुझे अभिनय ही करना है. कौलेज की पढ़ाई पूरी होते ही मैं  मुंबई पहुंच गया.

मुबई में किस तरह से करियर की शुरूआत हुई?

मैंने किसी एक्टिंग स्कूल से ट्रेनिंग हासिल नहीं की. लेकिन मैंने एक्टिंग के कई वर्कशौप किए. मैंने बहुत कुछ टीवी सीरियल में अभिनय करते हुए सीखा.एक्टिंग वर्कशौप मैं अभी भी करता रहता हूं. क्योंकि मेरा मानना है कि एक कलाकार को अपने अंदर की प्रतिभा को हमेशा निखारते रहना चाहिए.

पहला सीरियल कैसे मिला था?

मैं अपने आपको लक्की मानता हूं कि मुंबई पहुंचने के बाद मुझे लंबा संघर्ष नहीं करना पड़ा.जब मैं मुंबई पहुंचा,उस वक्त मुझे इस बात का अहसास नहीं था कि टीवी कितना बड़ा माध्यम है. लेकिन यहां पहुंचने के बाद मैंने देखा कि लोग एक टीवी सीरियल में काम पाने के लिए किस तरह से भाग रहे हैं. मैं 2007 की बात बता रहा हूं. उन दिनों कौस्टिंग डायरेक्टर नहीं थे. उस वक्त तो एक फिल्म के लिए औडीशन दे पाना ही बड़ा मुश्किल था. तो मैंने टीवी सीरियलों के लिए औडीशन देना शुरू किया. यह सोचकर की इससे मेरी एक्टिंग की प्रैक्टिस होती रहेंगी. क्योंकि उस वक्त तक मुझे यह भी नहीं पता था कि काम पाने के लिए किस तरह से संघर्ष किया जाए. घर पर बैठने की बजाय मैंने औडीशन देना शुरू कर दिया था. मेरा मानना है कि आप अच्छे कलाकार हों या बुरे कलाकार हों, पर अपने अंदर के कलाकार को हमेशा बचाकर रखना जरूरी है. मैंने अपने अभिनय को तराशने के लिए औडीशन देना शुरू किया था.मुझे पहले औडीशन से ही अच्छे रिस्पांस मिलने लगे थे. मैंने सबसे पहले टीवी सीरियल क्रिकेट पर आधारित ‘‘जर्सी नंबर 10’’के लिए औडीशन दिया था. उस वक्त मैं काफी छोटा भी था, मैच्योर नहीं था.पर मुझे इस सीरियल में अभिनय करने का मौका मिल गया.मैंने दो वर्ष पहले ही क्रिकेट खेलना बंद किया था,इसलिए मेरे लिए इसमें अभिनय करना ज्यादा आसान हो गया.

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SHRAVAN-REDDY

वैसे पहले मेरे मन में हिचक हुई कि मैं यह सीरियल करूं या ना करूं. पर कुछ लोगों ने सलाह दी कि,‘अभी तू बच्चा लग रहा है और तेरे जैसे को फिल्म में काम मिलना आसान नही है. तू पहले सीरियल कर ले,मैच्योरिटी आ जाएगी,फिर फिल्म करना.’उसके बाद मैंने सीरियल में अभिनय किया.लोगों ने बहुत सराहा और मुझे दूसरा सीरियल भी मिल गया.लेकिन 2-3 सीरियल करने के बाद मुझे चार साल का ब्रेक लेना पड़ा.

यानी कि आप मानते हैं कि कलाकार को हमेशा कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए. प्रैक्टिस करते रहना चाहिए?

जी हां! किसी भी कलाकार को कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि उन्हें सब कुछ आता है.जितने भी बड़े व सफल कलाकार हैं,उनकी सोच यही है कि अभी बहुत कुछ सीखना है. मेरी राय में जितने भी अच्छे कलाकार हैं,वह कभी नहीं सोचते कि उन्हें सब कुछ आता है.हर अच्छा कलाकार सदैव ओवर कौन्फीडेंस से खुद को बचाकर रखता हैं.

चार साल के बाद वापसी करने पर संघर्ष करना पड़ा?

-चार साल बाद जब मैंने फिर से अभिनय में वापसी की,तो मैं सब कुछ भूल चुका था कि मैंने पहले क्या किया है.क्योंकि मुझे इस बात का अहसास है कि बौलीवुड में नजरों से ओझल होते ही आपको गायब मान लिया जाता है.इसलिए मैंने एकदम नई शुरूआत मानकर संघर्ष षुरू किया. यहां हर 6 माह में लोग बदल जाते हैं. लोगों की पोजिशन बदल जाती है. तो मैंने पुनः औडीशन देना शुरू किया. दूसरी बात चार साल पहले जो मैंने काम किया था,उसमें मैं स्टार बना नही था.इसलिए भी लोगों को याद नही था.खैर,धीरे धीरे काम मिलता रहा.मेरे अभिनय की गाड़ी दौड़ रही है.

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वेब सीरीज‘‘थिंकिस्तान’’कैसे मिली?

-मैंने एक फिल्म के लिए औडीशन दिया था. कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कहा कि मैं फिलहाल कोई सीरियल या फिल्म ना करूं. क्योंकि इस फिल्म के लिए मेरा चयन लगभग तय है. फिलहाल मैं तीसरे नंबर पर था. निर्देशक को तीनों में से किसी एक को लेना था. फिल्म बड़ी थी. निर्देशक बड़ा था तो मैंने चार माहे तक इंतजार किया. अचानक एक दिन उसी कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझे फोन कर वेब सीरीज करने के लिए कहा. इसके निर्देशक से मेरी मुलाकात हुई. मुझे काफी सुलझे हुए निर्देशक लगे. निर्देशक को मेरा औडीशन पसंद आ गया. उनके अनुसार मैं इस वेबसीरीजके किरदार के लिए फिट था. पर मैं दुविधा में था कि वेबसीरीज करूं या फिल्म के लिए इंतजार करूं. कास्टिंग डायरेक्टर की सलाह पर मैंने कर ली.उसने कहा कि ‘‘थिंकिस्तान’’ मिलेगी या नहीं, यह दावा फिलहाल नही किया जा सकता.

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वेब सीरीज ‘‘थिंकिस्तान’’है क्या?

-जैसा कि आपने नाम देखा, इसका आधा नाम अंग्रेजी भाषा और आधा हिंदी में है. यदि मैं इसकी रूह की बात करूं, तो यह दो दोस्तों की कहानी है. एक मुंबई के चेम्बूर इलाके में पला बढ़ा है और दूसरा भोपाल में पला बढ़ा है. दोनों विज्ञापन जगत से जुड़ते हैं. दोनों के बीच गहरी दोस्ती और उनके एक साथ ग्रो करने कहानी है. दो दोस्तों के प्यार की कहानी है. इसी के साथ दोनों की अपनी अपनी निजी समस्याएं हैं. पर दोनों अलग अलग भाषाओं में माहिर हैं, जिसके चलते किसके करियर की गति क्या होती है, वह सब इसका हिस्सा है. इन दोनों की ताकत दोनों का इंटेलीजेंस पावर एक जैसा है. दोनों की काबीलियत भी एक समान है. पर हमारे देश में हिंदी व अंग्रेजी भाषा को लेकर जो भेदभाव है, उसके चलते जो कुछ होता है, वह इसका मुख्य मुद्दा है. यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में आम धरणा यह है कि यह हिंदी भाषी है,तो इसमें काबीलियत नहीं है. अंग्रेजी बोलने वालों को यहां टैलेंटेड मान लिया जाता है.

इस वेब सीरीज में भोपाल से आया हुआ अमित श्रीवास्तव नामक लड़का हिंदी भाषी और मुंबई वाला लड़का हेमा अंग्रेजी भाषी है, पर यह दोनों कैसे दोस्त बनते हैं, इनके बीच कैसे एक समझ विकसित होती है, उसकी कहानी है. फिर अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए यह दोनों अपनी दोस्ती को संभालते हैं या नहीं, यह सब इस वेब सीरीज का मुद्दा है. इसमें अंग्रेजी भाषी लड़के की जद्दोजेहाद अलग है, जबकि हिंदी भाषी लड़के का संघर्ष अलग है. अंग्रेजी भाषी लड़के को ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता. लड़कियां भी उसकी तरफ आकर्षित होती हैं. इसलिए उसकी प्रगति ज्यादा तेज होती है. यह पहला सीजन है, जिसमें 11 एपीसोड प्रसारित होंगे. उसके बाद इसका दूसरा सीजन आएगा.

एड वल्र्ड में भाषा को लेकर जो भेदभाव है,उसकी बात इसमें है?

सिर्फ विज्ञापन जगत ही नहीं आम जीवन में भी आप भाषा का विभाजन महसूस करते होंगे. हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अंगे्रजी और हिंदी के प्रति जो भेदभाव है, वह झेलते रहते हैं. हिंदी की बजाय अंग्रेजी भाषी को जल्दी स्वीकार कर लिया जाता है.

भाषा का मुद्दा कही न कही पोलीटिकल इश्यू भी हो गया है. क्या इसमें उस पोलीटिक्स की भी बात की गयी है?

जी नहीं..यह वेब सीरीज इस बारे में बात करती है कि भाषा के चलते किस तरह एक इंसान के हूनर की पहचान नहीं होती है.उसकी वजह से दोस्ती पर जो असर पड़ता है, उसकी बात की गयी है.

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इस किरदार को निभाते हुए आपको अपनी जिंदगी का कोई घटनाक्रम याद आया?

कई घटनाक्रम याद आए.मेरी भी अंग्रेजी बहुत अच्छी नही है. दक्षिण मुंबई में अंग्रेजी का एक अलग माहौल है,तो मुझे भी खुद को उस कल्चर में ढालने में वक्त लगा.कई उतार चढ़ाव देखने पडे़. मैं खुद इस वेब सीरीज की कहानी के साथ रिलेट करता हूं. मेरा मानना है कि मुंबई पूरा हिंदुस्तान नही है.

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इसके बाद क्या कर रहें हैं?

दो फिल्मों की बात चल रही है. एक हिंदी है,दूसरी दक्षिण भारत की. पर अभी से इनको लेकर कोई बात नही कर सकता.

भविष्य की क्या योजना है?

मैंने योजनाएं बनाना बंद कर दिया है.मेरे पास जो अच्छे औफर आएंगे, वह करूंगा.जब मेरे पास कोई औफर आएगा,उस वक्त मुझे जो अच्छा लगेगा,कर लूंगा.जब पेट भरा होता है,तो हम रूह के लिए काम करते हैं.जब पेट खाली हो तो पहले पेट को भरने के बारे में सोचते हैं.

वर्ल्ड कप 2019: ये एशियाई टीमें भी हुईं ढेर

पाकिस्तान के बाद श्रीलंका और अफगानिस्तान की टीमों ने भी इस वर्ल्ड कप में एशियाई चुनौती की पोल खोल दी. 1 जून को 2 मैच खेले गए थे. पहला मैच श्रीलंका और न्यूजीलैंड के बीच कार्डिफ में हुआ था. पहले बल्लेबाजी करने उतरी श्रीलंकाई टीम अनमनी सी दिखी. लगा कि जैसे श्रीलंका में हुए हालिया बम धमाकों की टीस से यह अभी उबर नहीं पाई है.

टौस गंवाने के बाद जल्दी ही विकेट गंवाने का सिलसिला भी शुरू हो गया था. एक बार तो ऐसा लग रहा था जैसे वह पाकिस्तान जैसा प्रदर्शन ही करेगी और मुश्किल से रनों का सैंकड़ा छू पाएगी. लेकिन डी. करुणारत्ने, कुसाल परेरा और तिसारा परेरा की जुझारू पारियों से वह पाकिस्तान के 105 रनों से आगे निकल गई. इस टीम के बाकी 8 खिलाड़ी महज 17 रन ही जोड़ पाए.

न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने घास वाली पिच का खूब फायदा उठाया. गेंदबाज मैट हेनरी तो मैच के 9वें ओवर में हैटट्रिक लेने के मुकाम पर जा पहुंचे थे. उन्होंने पहले कुसाल परेरा को 29 के निजी स्कोर पर आउट किया, फिर अगली ही गेंद पर कुसाल मेंडिस को ‘गोल्डन डक’ थमा दी. पूरे मैच में बैकफुट पर दिखी श्रीलंकाई टीम 29.2 ओवरों में 136 ही बना पाई.

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अब तो यही उम्मीद की जा रही थी कि श्रीलंका की गेंदबाजी और फील्डिंग मैच में कुछ रोमांच ले आएगी पर न्यूजीलैंड की सलामी जोड़ी ने मैच देखने आए लोगों को मायूस कर दिया.

मार्टिन गुप्टिल और कॉलिन मुनरो ने शुरू से ही अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. इस का नतीजा यह रहा कि अभी 17 ओवर भी नहीं फेंके गए थे और मैच न्यूजीलैंड की झोली में जा चुका था. मार्टिन गुप्टिल ने नाबाद 73 और कॉलिन मुनरो ने नाबाद 58 बना कर न्यूजीलैंड को रिकॉर्ड 10 विकेट से जीत दिला दी.

अफगान भी रहे नाकाम

इसी दिन जुझारू अफगानिस्तान और दिग्गज ऑस्ट्रेलिया के बीच दूसरा मैच खेला गया. ब्रिस्टल में हुए इस मैच में अफगानिस्तान ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया. यह टीम कागजों में पाकिस्तान और श्रीलंका से बहुत कमजोर थी और सामने पीले कपड़ों से सजी टूर्नामेंट जीतने की दावेदार ऑस्ट्रेलिया खड़ी थी.

लेकिन इस टीम के बल्लेबाजों ने अपने हौसले बुलंद रखे और विपक्षी टीम के शानदार गेंदबाजों का हिम्मत से सामना करते हुए उन्हें परेशान किया, क्योंकि एक समय इस टीम के आधे खिलाड़ी महज 77 रन बना कर पवेलियन लौट चुके थे. दोनों सलामी बल्लेबाज बिना खाता खोले आउट हुए थे पर नजीबुल्ला जादरान के 51 और रशीद खान के 27 रनों की बदौलत 38.2 ओवर में 207 रन बोर्ड पर लगवा दिए. ऑस्ट्रेलिया की तरफ से पैट कमिंस और एडम जांपा ने 3-3 विकेट लिए.

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अफगानिस्तान को अब अपने गेंदबाजों का सहारा थे और वे सब इस फौर्म में थे कि आस्ट्रेलिया को नाको चने चबवा देते. पर एक साल के बैन के बाद टीम में लौटे डेविड वार्नर और कप्तान आरोन फिंच का मूड कोई और ही कहानी सुनाने का था.

आउट होने से पहले आरोन फिंच ने 49 गेंदों पर ताबड़तोड़ 66 रन जड़े. उन्होंने शानदार 6 चौके और 4 छक्के लगाए थे जबकि डेविड वार्नर ने सधे और शांत मन से बल्लेबाजी की और 114 गेंदों पर नाबाद 89 रनों की बेहतरीन पारी खेली. इस तरह कंगारुओं ने 34.5 ओवरों में 3 विकेट खो कर जीत के लिए जरूरी 209 बना लिए और एक आसान जीत हासिल की.

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घर पर बनाएं चौकलेट एंड बनाना क्रेप्स

चौकलेट एंड बनाना क्रेप्स को बनाना काफी आसान है. इसमे  दालचीनी, औरेंज टौपिंग कर तैयार की जाती है. इसे बनाने में भी काफी कम समय लगता है.

सामग्री

पानी (1/4 कप)

अंडे (2)

दूध (1/2 कप)

मक्खन (1 टेबल स्पून)

टौपिंग के लिए:

चौकलेट/हेजलनट

बनाना (1)

औरेंज (छीलकर कटा हुआ)

दालचीनी (एक चुटकी)

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बनाने की वि​धि

दूध, अंडे और मक्खन को एक साथ मिला लें.

थोड़ा सा मैदा लेकर बैटर तैयार करें.

इसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर पतला कर लें.

थोड़ा सा मक्खन पैन में गर्म करें और बैटर को उसमें डालें.

इसे हल्का सा पकने दें और इसे पर टौपिंग्स डालें, चौकलेट/हेजलनट और केला डाला, इसके अलावा कटे हुए संतरे और चुटकी भर दालचीनी डालें.

आप चाहे तो थोड़ा सा नींबू का रस और आइसिंग शुगर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और इसे सर्व करें.

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अगर आपके बौडी में भी है आयरन की कमी तो पढ़े ये खबर

आपके बौडी में आयरन की मात्रा शरीर के वजन के हिसाब से 3 से 5 ग्राम होती है. और जब यह कम हो जाती है, तो खून बनना भी कम हो जाता है. जब आपके बौडी में खून की कमी होती है तो इसे ‘एनीमिया’ कहते है.  इस बीमारी का शिकार अधिकतर औरतें ही होती हैं. एनीमिया होने पर शरीर में आयरन की कमी हो जाती है और इसके चलते हीमोग्लोबिन बनना भी कम हो जाता है. इससे शरीर में खून की कमी हो जाती है.

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जब शरीर में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है, तो नसों में औक्सीजन का प्रवाह भी कम होता है.  और शरीर को जरूरी ऊर्जा भी नहीं मिल पाती. एक शोध के मुताबिक भारत में करीब 60 फीसदी लोगों में एनीमिया पाया जाता है और इसमें ज्यादातर औरतें ही होती हैं.

एनीमिया क्या होता है

एनीमिया का सबसे बड़ा कारण है शरीर में आयरन की कमी. एनीमिया होने पर  हर समय थकान महसूस होती है. इस बीमारी का लक्षण का है:  चक्कर आना, त्वचा और आंखों में पीलापन होना आदी.  इसके साथ सांस लेने मे भी तकलीफ महसूस होती है. कई बार शरीर से बहुत अधि‍क खून बह जाने से भी एनिमिया हो सकता है.

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एनीमिया से बचने के लिए करें ये उपाय

– सबसे पहले आप आहार में बदलाव करें. शरीर में आयरन की जरूरत को पूरा करने के लिए खाने में चकुंदर, गाजर, ट्माटर और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें.

– जब भी घर पर सब्जी बनाएं, तो उसे लोहे की कढ़ाई में बनाएं. इससे खाने में आयरन की मात्रा काफी बढ़ जाती है.

– खाने में गुड चने का इस्तेमाल करें. काला गुड  काफी फायदेमंद होगा और यह हीमोक्लोबिन बनाने में भी मददगार होता है.

– आयरन की कमी अधि‍क हो गई है, तो अपने डौक्टर से सलाह लेकर आप दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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घर की चाबी हो सब के पास

आज प्रियांक को घर लौटने में काफी देर हो गई थी. रात 12 बजे के करीब घर की सीढ़ियां चढ़ते हुए उस की टांगें कांप रही थीं. वैसे वजह बहुत सामान्य थी. औफिस में पार्टी होने की वजह से उसे देर हो गई थी मगर वह जानता था कि इस बात पर घर में कोहराम मच सकता है. दरअसल उस के यहां सालों से यह नियम चलता आ रहा था कि घर का कोई भी सदस्य रात 9 बजे के बाद घर से बाहर नहीं रहेगा. सब को समय पर लौटने की सख्त हिदायत थी. ऐसे में वह जानता था कि उसे नियम उल्लंघन की सजा भोगनी पड़ेगी.

पहली घंटी पर ही उस की मां ने दरवाजा खोल दिया. गुस्से से उन की आंखें लाल हो रही थी. झट उसे अंदर खींच दरवाजा बंद करते हुए वह फुसफुसाई ,” जल्दी जा अपने कमरे में, खाना मैं वहीँ ले कर आ रही हूं. तेरे पिता जग रहे हैं. बहुत गुस्से में है. तू खा कर जल्दी सो जा. ”

सवाल यह उठता है कि एक जवान लड़का जो जौब कर रहा है यदि अपने औफिस में काम की वजह से किसी दिन देर से घर लौटता है तो क्या उसे इस बात के लिए डांटनाफटकारना चाहिए? क्या इस उम्र में आ कर भी वह इतना समझदार नहीं हुआ कि अपना भलाबुरा समझ सके और अपनी जिम्मेदारी खुद उठा सकें ? इसी तरह घर की बहूबेटियों पर भी पाबंदियां कम नहीं रहतीं.

बरेली में रहने वाली बिनीता मलिक कहती हैं ,” हमारे यहां घर की चाबी दादी के पास होती है. यदि कोई बच्चा देर से घर लौटता है तो उस की जम कर कुटाई होती है. यही वजह है कि मैं न तो कॉलेज के बाद डांस क्लास जा पाती हूं और न ही कभी किसी फ्रेंड की पार्टी ही अटेंड कर पाती हूं. थोड़ी भी देर हो जाए तो जान सांसत में आने लगती है. जिंदगी में एक घुटन सी है. कुछ करने या आगे बढ़ने की इच्छा दबा कर जीना पड़ता है.

2 बच्चों की मां कनुप्रिया अपना दुखड़ा सुनाती हुई कहती है कि शादी के 10 साल बीत गए पर आज तक पति के साथ कभी लेट नाईट मूवी या पार्टी नहीं जा पाई. यहाँ तक की एक बार सहेली की शादी से आने में देर हो गई तो सासू मां दरवाजे पर ही बैठी मिली. पहले तो बीसियों बार फ़ोन कर के पूछती रही कि और कितनी देर लगेगी और आने के बाद तो पूरा घर सर पर उठा लिया कि इतनी रात तक बहु बाहर क्यों रही.

जाहिर है कि आज के समय में भी कुछ घरों में ऐसा आलम नजर आ जाता है जब टाइमबेटाइम घर का दरवाजा खुलवा कर घर में घुसना एक बड़ी परीक्षा की घड़ी बन जाती है.

पर क्या यह उचित है? क्या होना यह नहीं चाहिए कि घर के सभी सदस्यों के पास अलग चाबी हो ताकि जिसे जब आना है दूसरों को डिस्टर्ब किए बगैर अंदर आ जाए. कई दफा घर का बच्चा स्कूलकॉलेज से जल्दी लौट आए तो भी घरवाले सवाल खड़े कर देते हैं. आखिर यह उस का भी घर है. यदि वह अपने घर में भी बेखटके नहीं आ सकता तो फिर कहां जाएगा ?

ज्यादा बंदिशों से घुटता है दम

अक्सर ज्यादा बंदिशें लगाए जाने वाले घरों में ही बच्चेबड़े गलत कारनामे कर गुजरते हैं क्योंकि बंदिशें जब उन का दम घोटने लगती है तो वे हर बंधन तोड़ कर खुली हवा में सांस लेने को बेताब हो जाते हैं.

बेहतर हो कि घर में सब को अपनी जिंदगी जीने, अपने फैसले लेने और अपने हिसाब से आगे बढ़ने की आजादी मिले.जरूरत से ज्यादा रोकटोक तो उन्हें विद्रोही बना सकता है. बच्चों में अच्छे संस्कार डालना ,भलेबुरे का ज्ञान कराना ,घर के हालात समझाते हुए उन्हें उन की जिम्मेदारियों से अवगत कराना आदि अभिभावकों का काम है. मगर हर समय चौकीदारी करना या हर वक्त उन पर निगाह रखना गलत है. बच्चों को थोड़ी आजादी दे. उन्हें उन की जिंदगी अपने ढंग से जीने दे.

चिल्लाना उचित नहीं

बहुत से मातापिता की आदत होती है कि वे बच्चों पर छोटीछोटी बातों पर चिल्लाते रहते हैं. यहाँ तक कि घर देर से लौटने ,किसी से बात कर लेने या फिर मनमुताबिक सफलता न मिलने पर भी डांटने लगते हैं. दूसरों के आगे बेइज्जती करते हैं. आप को अपनी इस आदत को छोड़ने की जरूरत है. ऐसा व्यवहार न केवल आप दोनों के संबंध पर बुरा असर डालेगा बल्कि बच्चे के विकास में भी बाधक होगा. बच्चों को थोड़ा स्पेस दें. उन्हें खुद अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होने दें.

बच्चे पर चिल्लाने की बजाय उन उम्मीदों पर ध्यान दें जो आप उन से लगाते हैं. बच्चों को उन की उम्र और क्षमता के हिसाब से जिम्मेदारियां दें. जरूरत पड़ने पर उन की मदद करें.

वार्निंग दे कर छोड़ दें

बच्चा बिना उचित वजह किसी के देर से लौटे तो भी उस से बहुत तेज़ आवाज में बात न करें. बच्चे तेज आवाज से डर जाते हैं और अपनी बात सामने नहीं रख पाते. बेहतर रहेगा कि आप अपने गुस्से या नाराजगी पर नियंत्रण कर के हमेशा बच्चे से सामान्य हो कर बात करें.  उस से आंखें मिलाएं और फिर मजबूती से अपनी बात सामने रखें. ऐसे में बच्चा आप को और आप की बातों को अनदेखा नहीं कर सकता. उसे वार्निंग दे कर छोड़ दें. आगे से वह ऐसी गलती करने से पहले सोचेगा. फिर आप को भी उस पर नजर रखने की जरुरत नहीं पड़ेगी.

विश्वास करें

हर बच्चे की अपनी अलग क्षमता होती है. अपने सपने होते हैं. उन पर विश्वास करें. उन्हें अपने पर खोलने दें. बंदिशों के बोझ से उन के परों को इतना बोझिल न बना दें कि वे उड़ ही न पाएं. इस लिए बच्चों पर भरोसा करें. पर अगर वे आप का भरोसा तोड़ें तो दोबारा भरोसा बनने तक बेशक आप उनकी स्वतंत्रताओं में कटौती कर सकती हैं.

रोल मौडल बनें

बच्चे आमतौर पर वही करते हैं, जो वे अपने मातापिता से सीखते हैं. अपने बच्चों के रोल मॉडल बनें. आप जैसा व्यवहार उन का देखना चाहते हैं वैसा ही खुद करें.  उन पर हर पल नजर रखने की जरुरत नहीं पड़ेगी.

फायदेमंद भी है अकेले घर में रहना

अक्सर हमें लगता है कि बच्चा घर में अकेला पहुंचेगा तो उसे बोरियत, अकेलेपन और डर का सामना करना पड़ेगा. खासकर 10 साल तक के बच्चों को इस तरह की समस्या ज्यादा होती है. टीनएज में पीयर प्रेशर अधिक होने की वजह से अकेला बच्चा अल्कोहल एब्यूज ,ड्रग्स एब्यूज सेक्सुअल अट्रैक्शन ,स्मोकिंग आदि का शिकार बन सकता है. इस उम्र में घर पर अकेले रहने वाले बच्चे के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन संभव है. वह अधिक उग्र, व्यसनी या मिसबिहैव करने वाला बन सकता है. 2 -3 बजे तक घर लौटने के बाद अकेले बच्चे प्रायः नेटसर्फिंग करते या मोबाइल चलाते पाए जाते हैं.

वैसे कुछ बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है. चाबी अपने हाथ में होने और अपनी इच्छा से घर में अकेले रह कर उन में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता ,कठिन परिस्थितियों से निबटने का हौसला और घर के कामों में अपना योगदान देने की प्रवृत्ति जैसी खूबियां उभर कर आती हैं. वे कम उम्र में ही अपने भरोसे जीना सीख जाते हैं.

द आफ्टर- स्कूल लिव्स औफ चिल्ड्रन के औथर डेबोराह बेले कहते हैं कि घर में अकेला छोड़ा जाना बच्चों के लिए बेबीसिटर या बड़े भाईबहनों के साथ छोड़े जाने की अपेक्षा बेहतर ऑप्शन है.

दिल्ली में रहने वाले 37 साल के अनुज कहते हैं, ” जब मैं छोटा था तो अक्सर अपना समय वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया पढ़ते हुए बिताता था जिस में मैं ने एनिमेटेड फिल्म बनाने से जुड़ी जानकारी बहुत विस्तार से पढ़ी. अब मैं इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर रहा हूं. इस तरह वे तनहा लम्हे मैं ने अपने सपनों को हकीकत बनाने के प्रयास में बिताया था जिस का फायदा आज मुझे मिल रहा है. इस खाली, अकेले समय ने मुझे सोचने और ढूंढने की आजादी दी. बिना किसी दूसरे के डायरेक्शन के आत्मनिर्भर हो कर अपना काम करने की आजादी दी. अकेले में बिताए जाने वाले उस समय ने मुझे मेरे पंखों को खोलने में मेरी मदद की. मैं ने दूसरों से रिश्ता निभाना सीखा. छोटीछोटी खुशियों को जीना सीखा. मेरे ऊपर किसी का प्रेशर नहीं होता था. मैं उस दौरान बहुत आजादी महसूस करता था.

40 साल के रवि कहते हैं, “मेरे पापा दूसरे शहर में जॉब करते थे और मां बैंक में काम करती थी. वह शाम 6 बजे तक लौटती थी जब कि मैं 3 बजे तक घर आ जाता था. इन 3 -4 घंटों में मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से बिताता था. नईनई चीज़ें सीखता , नईनई डिश बनाता. तभी से कुकिंग में मेरा इंटरेस्ट बढ़ने लगा और आज में एक शेफ बन कर प्रसिद्धि कमा रहा हूँ.

जाहिर है यह आप पर निर्भर करता है कि आप घर में अकेले होने पर अपना समय कैसे बिताते हैं.

बौयफ्रेंड / गर्लफ्रेंड के साथ चाबी शेयर करना

आज कल लड़केलड़कियां पढ़ाई या जौब के सिलसिले में अक्सर कमरा या पूरा फ्लैट ले कर अकेले रहते हैं. कई बार 2 या 3 लोग मिल कर भी कोई घर ले लेते हैं. परिवार और घरवालों से दूर रह रहे ये लड़केलड़कियां समय के साथ अपने बॉय/गर्ल फ्रेंड के काफी करीब आने लगते हैं. इन का दिल जुड़ता है तो सपने भी एक रंग लेने लगते हैं . वे साथ जीवन गुजारने को ले कर उत्साहित रहते हैं.  ऐसे में एकदुसरे की इतनी आदत हो जाती है कि वे घर की चाबी भी शेयर करने लगते हैं. इस तरह अपनी चाबी किसी को देना गलत नहीं पर कुछ बातों का ख़याल जरूर रखें.

यदि आप को लगता है कि अब आप अपने बौयफ्रेंड / गर्लफ्रेंड को अपने घर की चाबी दे सकते हैं तो इस का मतलब है कि आप उन के साथ अपना भविष्य देख रही है. आप उन के साथ सुरक्षित और कंफर्टेबल महसूस कर रही है और आप चाहती हैं कि आप का पार्टनर आप के बारे में सब कुछ जाने और समझे. आप उस से कुछ भी छिपा कर रखने की जरूरत महसूस नहीं करती. फिर भी कुछ बातें और कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिनके प्रति सावधानी रखना जरूरी है. कोई आप के कितना भी करीब हो पर अपनी अलमारी की चाभी उसे न दें. अपने पर्सनल ,एजुकेशनल , फाइनेंसियल और मेडिकल से जुड़े कागजात अलग लॉक में रखें.

अपने घरवालों को अपने बौयफ्रेंड / गर्लफ्रेंड के बारे में थोड़ी जानकारी जरूर दे कर रखें.

यदि आप अकेली रहती हैं तब तो अपने बौयफ्रेंड / गर्लफ्रेंड को चाबी देने का फैसला आप का अपना है.  पर यदि आप के रूममेट्स भी हैं तो उन से पूछ कर ही चाभी किसी के साथ शेयर करनी चाहिए क्यों कि इस फैसले में उन की सहमति भी आवश्यक है.

आइए, डोरे डालें

डोरे डालने का सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने देश में अनादिकाल से चला आ रहा है. स्त्री और पुरुष तो परस्पर एकदूसरे पर डोरे डालते ही हैं, जानवरों में भी नर व  मादा एकदूसरे पर डोरे डालते हैं. जीवित प्राणियों की बात तो छोडि़ए आदमी ने बेजान चीजों के मामले में भी डोरे डालना सीख लिया है. अब देखिए कि इनसान ने सिलाई मशीन तक को नहीं छोड़ा, सुई को भी नहीं छोड़ा. वहां भी अनेक प्रकार के डोरे डाले जाते हैं.

सतयुग में एकदूसरे पर डोरे डाले जाते थे. विश्वामित्र पर मेनका ने डोरे डाले तो दुष्यंत ने शकुंतला पर. त्रेता में राम और उन के भाई लक्ष्मण पर रावण की बहन सूर्पणखा ने डोरे डाले. द्वापर में कृष्ण और राधा के परस्पर डोरे डालने की दास्तां तो अनेक कवियों ने बखानी है. कलियुग में तो डोरे डालने का अभियान विधिवत और योजना बना कर अबाध गति से चल रहा है. पूरे महल्ले से ले कर विदेशों तक डोरे डालने के कार्यक्रम चलते आए हैं.

एक राजनेता विदेशी महारानी पर डोरे डालने में सफल हो गए थे. दूसरे राजनेता तो विदेशी मैडम पर डोरे डाल कर उसे डोली में बिठा कर बाकायदा स्वदेश ही ले आए. प्रेम के डोरों से ही तो प्रेम की रस्सी बनती है. कोई छिप कर डोरे डालता है तो कोई खुलेआम डोरे डाल कर प्रेम की डोर तगड़ी करता रहता है.

डोरे डालने के लिए उम्र का बंधन नहीं होता है. किशोरों से ले कर बुजुर्गों तक और किशोरियों से ले कर बुजुर्ग बालाओं तक परस्पर डोरे डालने का कार्यक्रम चलता रहता है. फलां लड़का फलां लड़की को या फलां आदमी फलां स्त्री को भगा ले गया या वह उस के साथ भाग गई, ये सभी डोरे डालने के नतीजे हुआ करते हैं.

डोरे डालतेडालते ही घर बसते हैं, तो कहीं घर उजड़ते हैं, कई जेल की हवा खाते हैं.

डोरे डालने के वाबस्ता कइयों के मंत्री पद छिन गए, कइयों के मुख्यमंत्री पद छिने. प्राचीनकाल में तो कइयों के राज्य छिन गए और राजगद्दियां छिन गईं. पड़ोसी अपनी पड़ोसिन पर और पड़ोसिन अपने पड़ोसी पर डोरे डालते देखे जा सकते हैं. बहरहाल अंजाम कुछ भी हो, डोरे डालने का व्यक्तिगत और सामाजिक कार्य कभी रुकता नहीं है.

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यों तो डोरे डालने का कार्यक्रम सदाबहार रहता है और यह कार्यक्रम बारहों महीने चलता है, लेकिन कुछ समय या ऋतु विशेष इस के लिए विशेष मुफीद होती है. शीत ऋतु सब से अच्छी होती है जब डोरे डालने का कार्य सर्वत्र चलता है. शीतकाल में जिधर देखिए उधर, जब देखिए तब डोरे डलते दिखाई देते हैं. महिलाएं अपनी नाजुक कलाइयों की उंगलियों से स्वैटर बुनने की सलाइयों पर फंदे तो रजाइयों में डोरे डालती देखी जा सकती हैं. उधर लड़कीलड़का, पुरुष व महिलाएं धूप सेंकने के बहाने छत पर या एक छत से दूसरी छत पर डोरे डालते मिल जाएंगे. अपनी छत पर एक खड़ा है तो सामने या बगल की छत पर दूसरा खड़ा है और बस हो जाती है डोरे डालने की प्रक्रिया प्रारंभ.

डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर बन जाती है जो 2 प्राणियों को बांधने में समर्थ होती है. ऐसी स्थिति को कवि देखता है तो कह बैठता है, ‘‘पहले मन लेते बांध प्यार की डोरी से पीछे चुंबन पर कैद लगाया करते हैं.’’ पाबंदी तो जालिम जमाना लगाता है, जो प्रेमीप्रेमिकाओं को जीने नहीं देता. डोरे डालतेडालते यह स्थिति हो जाती है कि ‘मरने न दे मुहब्बत, जीने न दे जमाना.’ आजकल टेलीविजन पर चैनल वाले भी तरहतरह के सीरियल दिखा कर डोरे डालने का अच्छा प्रशिक्षण दे रहे हैं.

पहले जमाने में महल्ले में ही डोरे डालने की डबिंग और कार्यक्रम होता था. मकान की छतों, छज्जों, बालकनियों, खिड़कियों, पिछले दरवाजों और एकांत गलियों का उपयोग इस कार्य के लिए होता था. अब महल्ले की सीमा लांघ कर बागबगीचे, पार्क, दफ्तर, मैट्रो स्टेशन की सीढि़यां, तालाब और नदी के किनारे, एकांत सड़कें या पहाडि़यां परस्पर डोरे डालने के मुफीद स्थान हैं.

अपने देश और विदेशों में प्रेम करने का यही मूलभूत अंतर है. विदेशों में तो परस्पर मिलनेजुलने के लिए समय की कमी है, इसलिए तड़ाकफड़ाक प्रेम किया और काम पर चल दिए. अपने यहां प्यार भी विधिवत तरीके से होता है. डोरे डालतेडालते प्रेम की डोर में लिपटते हैं, और डोर जब तक सड़ नहीं जाती तब तक उस में बंधे रहते हैं. कोई ऐरागैरा सत्यानाशी व्यक्ति प्रेम की डोर को बीच से काट देता है, तो फिर स्थिति अलग होती है.

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जब से राजनीतिक दलों की हिम्मत टूटी है और अकेले सरकार बनाने की कूवत नहीं रही, तब से राजनीति में भी डोरे डालने का कार्यक्रम शुरू हुआ है. घटक दलों पर परस्पर डोरे डाले जा रहे हैं. कभी अम्मा किसी दल के दादा पर डोरे डालती हैं तो कभी किसी दल का सदस्य किसी दल की बहनजी या मैडम पर डोरे डालता है. यह राजनीति ही है, जहां सभी मर्यादाओं और पिछली परंपराओं को दरकिनार करते हुए कुरसी हेतु अम्मा और बहनजी पर भी डोरे डाल कर गठबंधन की गांठ मजबूत की जाती है. तभी सरकार चलती है और कुरसी कुछ समय के लिए स्थिर होती है.

ये डोरे बड़े महीन होते हैं लेकिन इस में एक से एक तीसमारखां बांधे जा सकते हैं. राजनीति में भी यों तो परस्पर डोरे डालने का समय 5 साल तक रहता है लेकिन चुनावों के समय डोरे डालने की गतिविधियां काफी तेज हो जाती हैं. इस समय अगर किसी पर डोरे डाल कर पटा लिया जाए तो चुनाव की वैतरणी पार होने में काफी मदद मिलती है.

डोरे डालते समय डोरा टूटता भी है, कभी व्यवधान भी आता है. घबराइए नहीं और आप भी समय और अनुकूल मौका पा कर डोरे डालिए. डोरे डालने के लिए उम्र, समय, ऋतु तथा स्थान का तो बंधन होता नहीं है, यह सदाबहार प्रक्रिया है. यह जरूर ध्यान रहे कि डोरे डालने में सावधानी रहे, आप भी न फंसें और डोरे भी न फंसें. फंसने पर दोनों के टूटने का डर है, तभी तो कहा है कि ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय…’ और हां, कैंची ले कर घूमने वालों से सावधान.

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उमाशंकर चतुर्वेदी 

9 टिप्स: सफेद बालों की समस्या से पाएं राहत

बाल में मेलनिन नामक पिग्मेंट पाया जाता है, पर ये उम्र के साथ बनना कम हो जाता है और बाल सफेद होने लगते है. आजकल तो कम उम्र में  ही बाल सफेद होना शुरू होने लगते है. आप सफेद बालों की समस्या से बचने के लिेए कई तरह के हेयर कलर का भी  इस्तेमाल करते हैं, जिससे आपके बाल डैमेज होकर और ज्यादा सफेद होने लगते है. तो आइए जानते हैं  इस समस्या से राहत पाने के टिप्स.

सफेद बाल से राहत पाने के टिप्स

  1. मेंहदी और मेथी को मिलाकर पेस्ट बना लीजिए. इसके बाद उसमें कुछ मात्रा में बटर मिल्क और नारियल का तेल मिला लीजिए. इस मिश्रण से मसाज करना बहुत फायदेमंद रहेगा.

2.आंवला बालों को काला करने में काफी मदद करता है. आंवले के रस को बादाम के तेल में मिलाकर लगाने से बालों में कालापन आता है.

3. नारियल के तेल में कड़ी पत्ता और आंवले को उबाल लें. इस तेल को ठंडा कर के अपनी स्केल्प पर लगाने से सफेद बालों से छुटकारा मिल सकता है.

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4. दही में मेहंदी मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को हफ्ते में 2 बार लगाने से सफेद बाल काले होने लगते हैं.

5. अदरक को कूटकर इसमें शहद मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को हफ्ते में दो बार लगाने से बालों का सफेद होना कम हो जाता है.

6. प्याज के रस को बालों की जड़ों में लगाने से बाल काले और चमकदार बनते हैं.

7. सफेद बालों को रोजाना ब्लैक कॉफी या ब्लैक टी से धोने से बालों का रंग काला होता हैं.

8. सफेद बालों में एलोवेरा लगाने से भी बहुत फायदा होता है.

9. बालों में रोजाना सरसों के तेल की मालिश करने से बाल काले रहते हैं.

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