प्याज की आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी की रसोई से इस सब्जी को गायब कर दिया. दिल्ली एनसीआर में प्याज की कीमत 80 रूपये प्रति किलो तक जा पहुंची है लेकिन हुकूमतों का इससे कोई नाता नहीं है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि प्याज की कीमतें आसमान छू रही हों लेकिन हर बार ऐसा क्यों होता है यहां पर सवाल ये आ गया है. हालांकि सरकारें प्याज की बढ़ती कीमतों पर नकले कसने की तुरंत कोशिश में जुट जातीं हैं क्योंकि देश की आवाम ने कई सरकारों की गद्दी इसी वजह से छीन ली थी. इतिहास हमें सिखाता है. इसी इतिहास को देखते हुए राजनेता प्याज की दामों को कम करने की कवायद कर रहे हैं लेकिन इससे वो कुछ ही लोगों को लाभ पहुंचा सकते हैं. सबको नहीं. सरकार के पास न तो इतने स्टोर हैं कि हर व्यक्ति के पास आसानी से पहुंच सके न ही सरकार के पास किसी प्रकार की कोई व्यवस्था.
प्याज की ऐतिहासिकता पर हम चर्चा नीचे करेंगे लेकिन उससे पहले जरूरी है कि ये दाम बढ़ क्यों रहे हैं. इसके बाद कोई इसपर बात क्यों नहीं कर रहा है. हो सकता है खादी वालों के लिए इतने पैसे कोई मायने न रखते हों लेकिन ध्यान रहे गरीब की थाली में प्याज का तड़का लगते ही वो पांच सितारा होटल की नवरत्न थाली में तब्दील हो जाती है. देश में इस पर कोई खास चर्चा सुनने को नहीं मिल रही बस इतना ही सुनाई आ रहा है कि प्याज महंगी हो गई है. क्यों का जवाब भी दिलचस्प आता है कि हर साल बारिश के बाद ऐसा होता है. फेसबुकिया और व्हाट्सपिया ज्ञान से खुदा ही बचाए. यहां हर खेमे की अपनी एक अलग ही कहानी है. अब हम आते हैं सीधे फैक्ट्स पर.
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राजधानी दिल्ली सहित देश के दूसरे हिस्सों में प्याज की ऊंची कीमतों ने लोगों को रुलाना शुरू कर दिया है. देश के अधिकांश हिस्सों में प्याज का खुदरा भाव 70 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुका है. ऐसे में केंद्र सरकार प्याज व्यापारियों के भंडारण की सीमा तय करने पर विचार कर रही है.
देश के सबसे बड़े प्याज के बाजार लासलगांव (महाराष्ट्र) में इस समय प्याज पिछले 4 साल में सबसे महंगी हो गई है. मौजूदा समय में होलसेल में प्याज की कीमत 4500 रुपए प्रति क्विंटल है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि पिछली बार 16 सितंबर 2015 को प्याज 4300 रुपए प्रति क्विंटल हुई थी और 22 अगस्त 2015 को प्याज ने 5700 रुपए प्रति क्विंकल का ऑल टाइम हाई का रिकौर्ड बनाया था. आपको बता दें कि होलसेल मार्केट में जब कीमतें इस लेवल पर पहुंच गई थीं, तो रिटेल बाजार में प्याज की कीमतें 80 रुपए प्रति किलो तक जा पहुंची थीं. एक बार फिर से रिटेल बाजार में प्याज की कीमतें 70-80 रुपए प्रति किलो हो गई हैं.
प्याज के दाम बढ़ने के दो प्रमुख कारण होते हैं पहला तो मौसम और दूसरा कालाबाजारी. सरकारें मौसम पर तो काबू नहीं पा सकती लेकिन कालाबाजारी रोकी जा सकती हैं. मौसम विभाग के अनुसार प्याज उत्पादन वाले अहम राज्यों खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारी बारिश की वजह से प्याज की सप्लाई पर असर पड़ा है, जिसकी वजह से कीमतें बढ़ गई हैं. इस बात में कोई दोराय नहीं है कि मौसमी आपदाओं के कारण ही प्याज के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन ये कहना भी बेमानी है कि केवल यही एक कारण है.
आगे आने वाले त्योहारी सीजने को देखते हुए थोक व्यापारियों ने प्याज की सप्लाई बाजार में रोक दी है. इन व्यापारियों ने ये ऐसे वक्त किया है जबकि ज्यादातर राज्यों में भारी बारिश की वजह से किसान फसल ही नहीं काट पाया. जब नई फसल बाजार में आई ही नहीं और ऊपर से इन बड़े व्यापारियों ने स्टौक को जाम कर दिया. ऐसे में दाम बढ़ने को लाजिमी है. आलू और प्याज की कालाबाजारी सबसे ज्यादा होती है. ये दोनों सब्जियों के बिना रसोई अधूरी होती है और दूसरी बात की ये काफी दिनों तक टिक जाती हैं. हम देखते हैं कि कभी-कभी प्याज के दाम इतने गिर जाते हैं कि किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिलती. आखिरकार इतनी अनिश्चता क्यों. सरकार को कालाबाजारी के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए.
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दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में प्याज की कीमतों को काबू में रखने के लिए केंद्र सरकार सस्ते प्याज मुहैया करा रही है. इसके लिए नाफेड और NCCF जैसी एजेंसियों के जरिए 22 रुपए प्रति किलो और मदर डेयरी के जरिए 23.90 रुपए प्रति किलो के भाव पर प्याज बेची जा रही है. आपको बता दें कि केंद्र के पास करीब 56 हजार टन का स्टौक है, जिसमें से 16 हजार टन बिक चुका है. सिर्फ दिल्ली में ही रोजाना करीब 200 टन प्याज सरकारी स्टौक से खत्म हो जाता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में कीमतों को बढ़ने से सरकार कैसे रोकती है.