औरत की मर्जी (एक महिला की सहमति या पसंद) जैसे वैकल्पिक नैरेटिव के जरिए लोकप्रिय टेलीविजन शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ परिवार नियोजन के फैसले में महिलाओं के अधिकार के महत्व को उजागर कर रहा है और दंपत्ति के बीच बातचीत को प्रोत्साहित कर रहा है. शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’, पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा परिवार नियोजन और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए एक पहल है.
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि आठ में से तीन भारतीय पुरुष मानते हैं कि गर्भनिरोधक एक महिला की जिम्मेदारी है. परिवार नियोजन का भार महिलाओं पर पड़ता है और समाज में प्रचलित सामाजिक मानदंडों के तहाता, महिलाओं के पास प्रजनन निर्णय नहीं होते हैं. परिवार और समाज के भीतर रवैये में बदलाव महिलाओं के प्रजनन संबंधी फैसलों में समान महत्व देगा, मसलन कब और कितने बच्चे हों. "औरत की मर्जी" की अवधारणा एक महिला की पसंद और गरिमा को बढ़ाने में योगदान करती है और उन्हें अपने जीवन के बारे में मजबूत निर्णय लेने में सक्षम बनाती है.
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उदाहरण के लिए, शो में औरत की मर्जी का इस्तेमाल इंजेक्टेबल गर्भ निरोधकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, जो महिलाओं को स्वतंत्रता प्रदान करती है, क्योंकि इसका प्रत्येक खुराक उन्हें तीन महीने तक अवांछित गर्भधारण से बचाता है. पहले भी ‘औरत की मर्जी का दिन’ का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें किसी एक खास दिन महिलाएं घरेलू कामों से मुक्त होती हैं और पुरुषों को घर और बच्चों की देखभाल करना होता है. पूनम मुत्तरेजा, कार्यकारी निदेशक, पीएफआई का कहना है, “एक समाज तभी स्वस्थ हो सकता है जब महिलाएं स्वस्थ और सशक्त हो. औरत की मर्जी को एक अवधारणा के रूप में लोकप्रिय बनाना हमें महिलाओं की पसंद और सहमति पर एक महत्वपूर्ण बातचीत शुरू करने की अनुमति देता है. यह न केवल परिवार नियोजन तक सीमित है, बल्कि शिक्षा, काम और घरेलू फैसलों जैसे अन्य पहलुओं के बारे में भी बात करती है.
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