अगर आपके सामने समोसा और बर्गर दोनों रख दिये जाएं, तो आप क्या उठाएंगे? दोनों के लिए ही मुंह में पानी भर आएगा, मगर डायट कौन्शेस लोग जहां दोनों से ही तौबा कर लेंगे, वहीं चटोरे लोग तो दोनों ही खा जाएंगे. समोसा और बर्गर दोनों जंक फूड की श्रेणी में आते हैं. दोनों ही अनहेल्दी माने जाते हैं. मगर सेंटर फौर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट मानें तो हमारा देसी समोसा बर्गर के मुकाबले कम नुकसानदेह होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि समोसा बनाने के लिए मैदे से लेकर आलू तक ताजे ही इस्तेमाल किये जाते हैं और आपकी प्लेट तक पहुंचने से पहले ये लजीज स्पाइसी समोसा सीधा गर्म तेल से छनकर निकलता है. दूसरी ओर बर्गर बनाने के लिए प्रिजरवेटिव, ऐसिडिटी रेग्युलेटर, फ्रोजन पैटीज और मीट जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है. रिपोर्ट के मुताबिक ताजा बने खाने में ऐसा कोई केमिकल मौजूद नहीं होता जैसा कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड में होता है. गौरतलब है कि सीएसई ने ‘बॉडी बर्डन’ नाम से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार भारत में होने वाली कुल मौतों में से 61 फीसदी केवल लाइफस्टाइल और गैर संचारी रोगों (नॉन कम्युनिकेबल डिजीज) की वजह से होती हैं.
कहां से आया समोसा?
शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसे समोसा न पसंद हो. लेकिन आपने कभी सोचा है कि आपका यह पसंदीदा स्नैक समोसा आया कहां से है? ज्यादातर लोग मानते हैं कि समोसा भारतीय पकवान है, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि समोसा विदेशी व्यंजन है. जी हां, समोसा मीलों की दूरी तय करके भारत पहुंचा है. कहते हैं कि 1526 में मुगल अपने साथ समोसा लेकर भारत आये. उनके खानपान की चीजों में समोसा स्नैक के रूप में होता था. 16वीं शताब्दी में लिखा गया मुगल दस्तावेज ‘आइन-ए-अकबरी’ में समोसे का जिक्र मिलता है. समोसा फारसी भाषा के ‘संबुश्क’ से निकला है और इसका जिक्र ग्यारहवीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल फजल बेहाकी के लेखन में भी मिलता है. उन्होंने गजनवी साम्राज्य के शाही दरबार में पेश की जाने वाली ‘नमकीन’ चीज का जिक्र किया है, जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे. मध्य एशिया का यह अल्प आहार दक्षिण एशिया के लोगों के दिलों पर राज करने लगा. ‘संबुश्क’ आज पूरे एशिया में अलग-अलग नाम और कई अवतारों में पाया जाता है.
ये भी पढ़ें- सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है ?
मोरक्को के इतिहासकार इब्न बतूता लिखते हैं – दिल्ली की सल्तनत के संबुश्क बहुत तीखे थे. वह छोटी-छोटी कचौड़ियों जैसे थे, जिनके अंदर कीमा, बादाम, पिस्ता और अखरोट भरा होता था और इसे पुलाव के तीसरे कोर्स के पहले सर्व किया जाता था. पहले जहां समोसे में मीट भरा जाता था, वहीं 16वीं सदी में पुर्तगालियों के भारत में बटाटाा यानी आलू लाने के बाद समोसे में आलू भरा जाने लगा. आज ट्रेडिशनल समोसे में मसला हुआ आलू, हरी मटर, हरी मिर्च और अन्य मसाले भरे जाते हैं. समोसा चटनी के साथ बेहद लजीज लगता है.
पूर्वी भारत में समोसे को सिंघाड़ा कहते हैं और इसे बनाने का तरीका मध्य भारत से थोड़ा अलग है. सिंघाड़े का साइज थोड़ा छोटा होता है. बंगाल की बात करें तो यहां समोसे के आटे में हींग जरूर मिलायी जाती है और उबले हुए आलू को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर भरा जाता है. वहीं दक्षिण भारत में समोसे में लोकल मसालों के साथ प्याज, गाजर, पत्तागोभी और करी पत्ते भरे जाते हैं. इस तरह विदेश से आये इस शाही पकवान समोसे का आज भारत के हर कोने में लुत्फ उठाया जा रहा है.