पुलिस और पीड़ित पक्ष

अगर आप किसी मामले की फर्स्ट इनफौर्मेशन रिपोर्ट यानी एफआईआर दर्ज कराने थाने जाते हैं और पुलिस अधिकारी इनकार करता है तो आप उस के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं. इस के अलावा पीडि़त व्यक्ति के पास और भी विकल्प हैं.

सोहनलाल के साथ उस के पड़ोसियों ने गंदे पानी की नाली के विवाद को ले कर खूब झगड़ा किया. उस ने पड़ोसियों को बहुत समझाया कि यह विवाद अदालत में विचाराधीन है. सो, अदालत का फैसला होने तक स्थिति को यथावत रखा जाए. उस के पड़ोसी संख्या में ज्यादा थे, इसलिए उन्होंने सोहन के साथ मारपीट कर दी. इस मारपीट में सोहन के हाथ और पांव पर कई चोटें आईं. अपने हितैषी के कहने पर वह थाने में रिपोर्ट लिखाने गया. थानाधिकारी ने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया. उस ने थानाधिकारी को मौके पर चलने का भी अनुरोध किया लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.

सोहन आरामशीन पर नौकरी करता था. उस के मालिक के कहने पर उस ने जिला पुलिस अधीक्षक को रजिस्टर्ड डाक से रिपोर्ट भेज दी. उस रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज हो गया और मारपीट करने वाले लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया.

ये भी पढ़ें- अजब गजब: 100 किलोग्राम सोने के सिक्का का बना रहस्य

थानाधिकारी द्वारा रिपोर्ट न लिखने के किस्से रोजाना अखबारों के माध्यम से प्रकाश में आते रहते हैं. बहुत फरियादी तो रिपोर्ट न दर्ज होने के चलते न्याय से वंचित रह जाते हैं. लेकिन याद रखें, थानाधिकारी ही सर्वेसर्वा नहीं हैं. उस से भी उच्च अधिकारी हैं. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि यदि थानाधिकारी किसी पीडि़त व्यक्ति की रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दे तो उस जिले के पुलिस अधीक्षक को रजिस्टर्ड डाक से रिपोर्ट भेजी जा सकती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...