एक समय में गुलाब की खेती को कांटों की खेती कह कर खिलाफत करने वाले ही अब गुलाब के बगीचे लगा रहे हैं. गुलाब के फूलों की खेती से एक छोटे से गांव मालीखेड़ा के लोगों की जिंदगी में माली तरक्की की महक घुल गई है. भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों की सीमा पर स्थित इस गांव की पहचान अब गुलाब की खेती से बनती जा रही है.
भीलवाड़ा जिले की सीमा पर स्थित चित्तौड़गढ़ जिले के बेगूं इलाके की मोतीपुरा ग्राम पंचायत के इस छोटे से गांव मालीखेड़ा में गुलाब की खेती की शुरुआत गांव के ही देवीलाल और कालूलाल धाकड़ ने साल 2008 में की थी. उन्होंने महज आधा बीघा जमीन पर गुलाब के पौधे रोपे. जब उत्पादन और मुनाफा अच्छा हुआ तो उन्हें गुलाब की खेती रास आने लगी. ऐसे में उन्होंने बोआई का क्षेत्र बढ़ा दिया. गुलाब के फूलों से उन्हें प्रति बीघा सालाना डेढ़ लाख रुपए तक की कमाई होने लगी.
देवीलाल और कालूलाल धाकड़ के मुताबिक, गुलाब की खेती हमारे लिए वरदान साबित हो रही है. भले ही शुरुआत में गांव व परिवार में इसे घाटे की खेती बनाने का विरोध हुआ था, लेकिन अब माहौल बदल गया है. पूरे गांव के किसान साथी गुलाब की खेती करने लगे हैं.
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गांव के दूसरे किसानों ने गुलाब की खेती से देवीलाल और कालूलाल की तरक्की देखी तो उन्होंने भी देखादेखी गुलाब की खेती करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे पूरा गांव ही गुलाब की खेती करने लगा.
इतना ही नहीं, आसपास के गांवों मोतीपुरा, किशनपुरा, बरनियास, हमेरपुर, बरूनंदनी सरीखे गांवों के किसानों ने भी गुलाब की खेती करना शुरू कर दिया. नतीजतन, गुलाब उत्पादन से इलाके के गांवों की पहचान आज गुलाबी गांवों के रूप में होती है.