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विदेशी दामाद : परदेस की बेमानी हसरत

चिंता की बात तो है. पर ऐसी नहीं कि शांति, सुमन के मामा के साथ मिल कर मुझ पर बमबारी शुरू कर दे. मेरी निगाहें तो कुमार पर जमी हैं. फंस गया तो ठीक है. वैसे, मैं ने तो एक अलग ही सपना देखा था. शायद वह पूरा होने वाला नहीं.

कल शाम पुणे से सुमन के मामा आए थे. अकसर व्यापार के संबंध में मुंबई आते रहते हैं. व्यापार का काम खत्म कर वह घर अवश्य पहुंचते हैं. आजकल उन को बस, एक ही चिंता सताती रहती है.

‘‘शांति, सुमन 26 पार कर गई है. कब तक इसे घर में बिठाए रहोगे?’’ सुमन के मामा चाय खत्म कर के चालू हो गए. वही पुराना राग.

‘‘सुमन घर में नहीं बैठी है. वह आकाशवाणी में काम करती है, मामाजी,’’ मैं भी मजाक में सुमन के मामा को मामाजी कह कर संबोधित किया करता था.

‘‘जीजाजी, आप तो समझदार हैं. 25-26 पार करते ही लड़की के रूपयौैवन में ढलान शुरू हो जाता है. उस के अंदर हीनभावना घर करने लगती है. मेरे खयाल से तो….’’

‘‘मामाजी, अपनी इकलौती लड़की को यों रास्ता चलते को देने की मूर्खता मैं नहीं करूंगा,’’ मैं ने थोड़े गंभीर स्वर में कहा, ‘‘आप स्वयं देख रहे हैं, हम हाथ पर हाथ रखे तो बैठे नहीं हैं.’’

‘‘जीजाजी, जरा अपने स्तर को थोड़ा नीचे करो. आप तो सुमन के लिए ऐसा लड़का चाहते हैं जो शारीरिक स्तर पर फिल्मी हीरो, मानसिक स्तर पर प्रकांड पंडित तथा आर्थिक स्तर पर टाटाबाटा हो. भूल जाइए, ऐसा लड़का नहीं मिलना. किसी को आप मोटा कह कर, किसी को गरीब खानदान का बता कर, किसी को मंदबुद्धि करार दे कर अस्वीकार कर देते हैं. आखिर आप चाहते क्या हैं?’’ मामाजी उत्तेजित हो गए.

मैं क्या चाहता हूं? पलभर को मैं चुप हो, अपने बिखरे सपने समेट, कुछ कहना ही चाहता था कि मामाजी ने अपना धाराप्रवाह भाषण शुरू कर दिया, ‘‘3-4 रिश्ते मैं ने बताए, तुम्हें एक भी पसंद नहीं आया. मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा. अभी तुम लड़कों को अस्वीकार कर रहे हो, बाद में लड़के सुमन को अस्वीकार करना शुरू कर देंगे. तब देखना, तुम आज की लापरवाही के लिए पछताओगे.’’

‘‘भैया, मैं बताऊं, यह क्या चाहते हैं?’’ शांति ने पहली बार मंच पर प्रवेश किया. मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से शांति को ताका और विद्रूप स्वर में बोला, ‘‘फरमाइए, हमारे मन की बात आप नहीं तो और क्या पड़ोसिन जानेगी.’’

शांति मुसकराई. उस पर मेरे व्यंग्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह तटस्थ स्वर में बोली, ‘‘भैया, इन्हें विदेशी वस्तुओं की सनक सवार है. घर में भरे सामान को देख रहे हो. टीवी, वीसीआर, टू इन वन, कैमरा, प्रेस…सभी कुछ विदेशी है. यहां तक कि नया देसी फ्रिज खरीदने के बजाय इन्होंने एक विदेशी के घर से, इतवार को अखबार में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से पुराना विदेशी फ्रिज खरीद लिया.’’

‘‘भई, बात सुमन की शादी की हो रही थी. यह घर का सामान बीच में कहां से आ गया?’’ मामाजी ने उलझ कर पूछा.

‘‘भैया, आम भारतवासियों की तरह इन्हें विदेशी वस्तुओं की ललक है. इन की सनक घरेलू वस्तुओं तक ही सीमित नहीं. यह तो विदेशी दामाद का सपना देखते रहते हैं,’’ शांति ने मेरे अंतर्मन के चोर को निर्वस्त्र कर दिया.

इस महत्त्वाकांक्षा को नकारने की मैं ने कोई आवश्यकता महसूस नहीं की. मैं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ शांति के द्वारा किए रहस्योद्घाटन का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘इस सपने में क्या खराबी है? आज अपने हर दूसरे मित्र या रिश्तेदार की बेटी लंदन, कनाडा, अमेरिका या आस्टे्रलिया में है. जिसे देखो वही अपनी बेटीदामाद से मिलने विदेश जा रहा है औैर जहाज भर कर विदेशी माल भारत ला रहा है,’’ मैं ने गंभीर हो कर कहा.
‘‘विदेश में काम कर रहे लड़कों के बारे में कई बार बहुत बड़ा धोखा हो जाता है, जीजाजी,’’ मामाजी ने चिंतित स्वर में कहा.

‘‘मामाजी, ‘दूध के जले छाछ फूंकफूंक कर पीते हैं’ वाली कहावत में मैं विश्वास नहीं करता. इधर भारत में क्या रखा है सिवा गंदगी, बेईमानी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के. विदेश में काम करो तो 50-60 हजार रुपए महीना फटकार लो. जिंदगी की तमाम भौतिक सुखसुविधाएं वहां उपलब्ध हैं. भारत तो एक विशाल- काय सूअरबाड़ा बन गया है.’’

मेरी इस अतिरंजित प्रतिक्रिया को सुन कर मामाजी ने हथियार डाल दिए. एक दीर्घनिश्वास छोड़ वह बोले, ‘‘ठीक है, विवाह तो वहां तय होते हैं.’’

मामाजी की उंगली छत की ओर उठी हुई थी. मैं मुसकराया. मैं ने भी अपने पक्ष को थोड़ा बदल हलके स्वर में कहा, ‘‘मामाजी, मैं तो यों ही मजाक कर रहा था. सच कहूं, मैं ने सुमन को इस दीवाली तक निकालने का पक्का फैसला कर लिया है.’’

‘‘कब इंपोर्ट कर रहे हो एक अदद दामाद?’’ मामाजी ने व्यंग्य कसा.

‘‘इंपोर्टेड नहीं, देसी है. दफ्तर में मेरे नीचे काम करता है. बड़ा स्मार्ट और कुशाग्र बुद्धि वाला है. लगता तो किसी अच्छे परिवार का है. है कंप्यूटर इंजीनियर, पर आ गया है प्रशासकीय सेवा में. कहता रहता है, मैं तो इस सेवा से त्यागपत्र दे कर अमेरिका चला जाऊंगा,’’ मैं ने रहस्योद््घाटन कर दिया.

शांति और मामाजी की आंखों में चमक आ गई. दरवाजे पर दस्तक हुई तो मेरी तंद्रा टूट गई. मैं घर नहीं दफ्तर के कमरे में अकेला बैठा था.
दरवाजा खुला. सुखद आश्चर्र्र्र्य, मैं जिस की कल्पना में खोया हुआ था, वह अंदर दाखिल हो रहा था. मैं उमंग और उल्लास में भर कर बोला, ‘‘आओ कुमार, तुम्हारी बड़ी उम्र है. अभी मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था और तुम आ गए.’’

कुमार मुसकराया. कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘हुक्म कीजिए, सर. कैसे याद कर रहे थे?’’

मैं ने सोचा घुमाफिरा कर कहने की अपेक्षा सीधा वार करना ठीक रहेगा. मैं ने संक्षेप में अपनी इच्छा कुमार के समक्ष व्यक्त कर दी.

कुमार फिर मुसकराया और अंगरेजी में बोला, ‘‘साहब, मैं केवल बल्लेबाज ही नहीं हूं, मैं ने रन भी बटोरे हैं. एक शतक अपने खाते में है, साहब.’’

मैं चकरा गया. आकाश से पाताल में लुढ़क गया. तो कुमार अविवाहित नहीं, विवाहित है. उस की शादी ही नहीं हुई है, एक बच्चा भी हो गया है. क्रिकेट की भाषा की शालीनता की ओट में उस ने मेरी महत्त्वाकांक्षा की धज्जियां उड़ा दीं. मैं अपने टूटे सपने की त्रासदी को शायद झेल नहीं पाया. वह उजागर हो गई.

‘‘साहब, लगता है आप अपनी बेटी की शादी के बारे में चिंतित हैं. अगर कहें तो…’’ कहतेकहते कुमार रुक गया. अब कहने के लिए बचा ही क्या है?

मैं मोहभंग, विषादग्रस्त सा बैठा रहा.

‘‘साहब, क्या आप अपनी बेटी का रिश्ता विदेश में कार्य कर रहे एक इंजीनियर से करना पसंद करेंगे?’’ कुमार के स्वर में संकोच था.

अंधा क्या चाहे दो आंखें. कुमार की बात सुन मैं हतप्रभ रह गया. तत्काल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सका.

‘‘साहब, कुछ लोग अपनी बेटियों को विदेश भेजने से कतराते हैं. पर आज के जेट युग में दूरी का क्या महत्त्व? आप कनाडा से दिल्ली, मैसूर से दिल्ली की अपेक्षा जल्दी पहुंच सकते हैं.’’

मेरे अंतर के सागर में उल्लास का ज्वार उठ रहा था, परंतु आवेग पर अंकुश रख, मैं ने शांत स्वर में पूछा, ‘‘कोई लड़का तुम्हारी नजर में है? क्या करता है? किस परिवार का है? किस देश में है?’’

‘‘साहब, मेरे कालिज के जमाने का एक दोस्त है. हम मैसूर में साथसाथ पढ़ते थे. करीब 5 साल पहले वह कनाडा चला गया था. वहीं पढ़ा और आज अंतरिक्ष इंजीनियर है. 70 हजार रुपए मासिक वेतन पाता है. परसों वह भारत आया है. 3 सप्ताह रहेगा. इस बार वह शादी कर के ही लौटना चाहता है.’’

मेरी बाछें खिल गईं. मुझे लगा, कुमार ने खुल जा सिमसिम कहा. खजाने का द्वार खुला और मैं अंदर प्रवेश कर गया.

‘‘साहब, उस के परिवार के बारे में सुन कर आप अवश्य निराश होंगे. उस के मातापिता बचपन में ही चल बसे थे. चाचाजी ने पालपोस कर बड़ा किया. बड़े कष्ट, अभावों तथा ममताविहीन माहौैल में पला है वह.’’

‘‘ऐसे ही बच्चे प्रगति करते हैं. सुविधाभोगी तो बस, बिगड़ जाते हैं. कष्ट की अग्नि से तप कर ही बालक उन्नति करता है. 70 हजार, अरे, मारो गोली परिवार को. इतने वेतन में परिवार का क्या महत्त्व?’’

इधर कुमार का वार्त्ताक्रम चालू था, उधर मेरे अंतर में विचारधारा प्रवाहित हो रही थी, पर्वतीय निर्झर सी.

‘‘साहब, लगता है आप तो सोच में डूब गए हैं. घर पर पत्नी से सलाह कर लीजिए न. आप नरेश को देखना चाहें तो मैं…’’

बिजली की सी गति से मैं ने निर्णय कर लिया. बोला, ‘‘कुमार, तुम आज शाम को नरेश के साथ चाय पीने घर क्यों नहीं आ जाते?’’

‘‘ठीक है साहब,’’ कुमार ने अपनी स्वीकृति दी.

‘‘क्या तुम्हारे पास ही टिका है वह?’’

‘‘अरे, नहीं साहब, मेरे घर को तो खोली कहता है. वह मुंबई में होता है तो ताज में ठहरता है.’’

मैं हीनभावना से ग्रस्त हो गया. कहीं मेरे घर को चाल या झुग्गी की संज्ञा तो नहीं देगा.

‘‘ठीक है, कुमार. हम ठीक 6 बजे तुम लोगों का इंतजार करेंगे,’’ मैं ने कहा.

मेरा अभिवादन कर कुमार चला गया. तत्पश्चात मैं ने तुरंत शांति से फोन पर संपर्क किया. उसे यह खुशखबरी सुनाई. शाम को शानदार पार्टी के आयोजन के संबंध में आदेश दिए. हांगकांग से मंगवाए टी सेट को निकालने की सलाह दी. शाम को वे दोनों ठीक समय पर घर पहुंच गए.

हम तीनों अर्थात मैं, शांति औैर सुमन, नरेश को देख मंत्रमुग्ध रह गए. मूंगिया रंग का शानदार सफारी सूट पहने वह कैसा सुदर्शन लग रहा था. लंबा कद, छरहरा शरीर, रूखे किंतु कलात्मक रूप से सेट बाल. नारियल की आकृति वाला, तीखे नाकनक्श युक्त चेहरा. लंबी, सुती नाक और सब से बड़ा आकर्षक थीं उस की कोवलम बीच के हलके नीले रंग के सागर जल सी आंखें.

बातों का सैलाब उमड़ पड़ा. चायनाश्ते का दौर चल रहा था. नरेश बेहद बातूनी था. वह कनाडा के किस्से सुना रहा था. साथ ही साथ वह सुमन से कई अंतरंग प्रश्न भी पूछता जा रहा था.

मैं महसूस कर रहा था कि नरेश ने सुमन को पसंद कर लिया है. नापसंदगी का कोईर् आधार भी तो नहीं है. सुमन सुंदर है. कानवेंट में पढ़ी है. आजकल के सलीके उसे आते हैं. कार्यशील है. उस का पिता एक सरकारी वैज्ञानिक संगठन में उच्च प्रशासकीय अधिकारी है. फिर और क्या चाहिए उसे?

लगभग 8 बजे शांति ने विवेक- शीलता का परिचय देते हुए कहा, ‘‘नरेश बेटे, अब तो खाने का समय हो चला है. रात के खाने के लिए रुक सको तो हमें खुशी होगी.’’

‘‘नहीं, मांजी, आज तो नहीं, फिर कभी सही. आज करीब 9 बजे एक औैर सज्जन होटल में मिलने आ रहे हैं,’’ नरेश ने शांत स्वर में कहा.

‘‘क्या इसी सिलसिले में?’’ शांति ने घबरा कर पूछा.

‘‘हां, मांजी. मेरी समझ में नहीं आता, इस देश में विदेश में बसे लड़कों की इतनी ललक क्यों है? जिसे देखो, वही भाग रहा है हमारे पीछे. जोंक की तरह चिपक जाते हैं लोग.’’

हम लोगों के चेहरे उतर गए. तत्काल नरेश संभल गया. क्षमायाचना करते हुए बोला, ‘‘माफ कीजिएगा, आप लोगों का अपमान करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, फिर आप लोग तो उन में से हैं भी नहीं…वह तो कुमार ने आप को मजबूर कर दिया वरना आप कब सुमनजी को सात समुंदर पार भेजने वाले थे.’’

हम सहज हो गए, परंतु शांति के अंतर्मन में कोई चोर भावना सिर उठा रही थी. शायद वह नरेश को अधिकांश मुंबइया फिल्मों का वह बेशकीमती हीरा समझ रही थी जिसे हर तस्कर चुरा कर भाग जाना चाहता था. व्यावहारिकता का तकाजा था वह, इसलिए जैसे ही नरेश जाने के लिए उठा, शांति ने फटाक से सीधासीधा प्रश्न उछाल दिया, ‘‘बेटा, सुमन पसंद आई?’’

‘‘इन्हें तो कोई मूर्ख ही नापसंद करेगा,’’ नरेश ने तत्काल उत्तर दिया.

सुमन लाज से लाल हो गई. वह सीधी अपने कमरे में गई और औंधी लेट गई.

‘‘फिर तो बेटे, मुंह मीठा करो,’’ कह कर शांति ने खाने की मेज से रसगुल्ला उठाया और नरेश के मुंह में ठूंस दिया.

घर में बासंती उत्सव सा माहौल छा गया. कुमार के चेहरे पर चमक थी. नरेश के मुख पर संतोष और हम दोनों के मुख दोपहर की तेज धूप से दमक रहे थे.

‘‘अब आगे कैसे चलना है? तुम तो शायद सिर्फ 3 सप्ताह के लिए ही आए हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अब जब लड़की मिल गई तो मैं 2-3 हफ्ते के लिए अपनी छुट्टी बढ़वा लूंगा. हनीमून मैं कनाडा की जगह कश्मीर में मनाना पसंद करूंगा. एक बात और पिताजी, शादी एकदम सादी. व्यर्थ का एक पैसा भी खर्च नहीं होगा. न ही आप कोई दहेज खरीदेंगे. कनाडा में अपना खुद का सुसज्जित मकान है. घरेलू उपकरण खरीदना बेकार है. एक छोटी सी पार्टी दे दें, बस.’’

‘‘पंडितजी से मुहूर्त निकलवा लें?’’

‘‘अभी नहीं, मांजी.’’

हम दोनों अभिभूत थे. नरेश ने हमें मां औैर पिताजी कह कर पुकारना शुरू कर दिया था. किंतु उस की अंतिम बात ने हमें चौंका दिया.

‘‘क्यों बेटे?’’

‘‘मैं कल बंगलौर जा रहा हूं. जरा अपने चाचाचाची से भी पूछ लूं. बस, औपचारिकता है. बड़े हैं, उन्हीं ने पाला- पोसा है. वे तो यह सब जान कर खुश होंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

और वे दोनों चले गए. पीछे छोड़ गए महान उपलब्धि की भीनीभीनी सुगंध.

सुमन अपने कमरे से निकली. पहली बार उस के मुंह से एक रहस्योद्घाटन हुआ. जब शांति ने सुमन से नरेश के बारे में उस की राय जाननी चाही तो उस ने अपने मन की गांठ खोल दी.

सुमन और एक नवयुवक कुसुमाकर का प्रेम चल रहा था. कुसुमाकर लेखक था. वह रेडियो के लिए नाटक तथा गीत लिखता था. इसी संबंध में वह सुमन के समीप आ गया. सुमन ने तो मन ही मन उस से विवाह करने का फैसला भी कर लिया था, पर अब नरेश को देख उस ने अपना विचार बदल दिया. उस ने शांति के सामने स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया. नरेश जैसे सागर के सामने कुसुमाकर तो गांव के गंदले पानी की तलैया जैसा है.

नरेश मैसूर से लौट आया. उस ने घर आ कर यह खुशखबरी सुनाई कि उस के चाचाचाची इस संबंध से सहमत हैं. शांति ने शानदार खाना बनाया. नरेश ने डट कर खाया, शादी की तारीख के बारे में बात चली तो नरेश बोला, ‘‘कुमार से सलाह कर के…’’

शांति ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘उसे छोड़ो. बिचौलियों का रोल लड़के को लड़की पसंद आने तक होता है. उस के बाद तो दोनों पक्षों को सीधी बात करनी चाहिए. मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं.’’

नरेश हंस पड़ा. मैं शांति के विवेक का लोहा मान गया. थोड़े से विचारविमर्श के बाद 20 अक्तूबर की तिथि तय हो गई. सुबह कोर्ट में शादी, दोपहर को एक होटल में दोनों पक्षों के चुनिंदा व्यक्तियों का भोजन, बस.

हमें क्या आपत्ति होनी थी.

तीसरे दिन नरेश का फोन आया. उस ने अपने हनीमून मनाने और कनाडा वापस जाने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया था. उस ने बड़ी दबी जबान से 50 हजार रुपए की मांग की. कश्मीर का खर्चा. कनाडा जाने के 2 टिकट और उस के चाचाचाची तथा उन के बच्चों के लिए कपड़े और उपहार. इन 3 मदों पर इतने रुपए तो खर्च हो ही जाने थे.

मैं थोड़ा सा झिझका तो उस ने तत्काल मेरी शंका का निवारण करते हुए कहा, ‘‘पिताजी, निश्चित नहीं था कि इस ट्रिप में मामला पट जाएगा, इसलिए ज्यादा पैसा ले कर नहीं चला. कनाडा पहुंचते ही आप को 50 हजार की विदेशी मुद्रा भेज दूंगा. उस से आप कार, स्कूटर या घर कुछ भी बुक करा देना.’’

‘‘ठीक है, बेटे,’’ मैं ने कह दिया.

फोन बंद कर के मैं ने यह समस्या शांति के सामने रखी तो वह तत्काल बोली, ‘‘तुरंत दो उसे 50 हजार रुपए. वह विदेशी मुद्रा न भी भेजे तो क्या है. किसी हिंदुस्तानी लड़के से शादी करते तो इतना तो नकद दहेज में देना पड़ता. दावत, कपड़े, जेवर और अन्य उपहारों पर अलग खर्चा होता. इस से सस्ता सौदा औैर कहां मिलेगा.’’

मैं ने दफ्तर में भविष्यनिधि से रुपए निकाले और तीसरे दिन ताजमहल होटल के उस कमरे में नरेश से मिला और उसे 50 हजार रुपए दे दिए.

उस के बाद मैं ने एक पांचसितारा होटल में 100 व्यक्तियों का दोपहर का भोजन बुक करा दिया. निमंत्रणपत्र भी छपने दे दिए.
सुमन और शांति शादी के लिए थोड़ी साडि़यां और जेवर खरीदने में जुट गईं. बेटी को कुछ तो देना ही था.

लगभग 10 अक्तूबर की बात है. नरेश का फोन आया कि वह 3 दिन के लिए किसी आवश्यक काम से दिल्ली जा रहा है. लौट कर वह भी सुमन के साथ खरीदारी करेगा.

सुमन ने नरेश को मुंबई हवाई अड्डे पर दिल्ली जाने के लिए विदा किया.

2 महीने बीत गए हैं, नरेश नहीं लौटा है. 20 अक्तूबर कभी की बीत गई है. निमंत्रणपत्र छप गए थे किंतु सौभाग्यवश मैं ने उन्हें वितरित नहीं किया था.

मैं ने ताज होटल से पता किया. नरेश नाम का कोई व्यक्ति वहां ठहरा ही नहीं था. फिर उस ने किस के कमरे में बुला कर मुझ से 50 हजार रुपए लिए? एक रहस्य ही बना रहा.

मैं ने कुमार को बुलाया. उसे सारा किस्सा सुनाया तो उस ने ठंडे स्वर में कहा, ‘‘मैं कह नहीं सकता, मेरे मित्र ने आप के साथ यह धोखा क्यों किया? लेकिन आप लोगों ने एक ही मीटिंग के बाद मेरा पत्ता साफ कर दिया. उसे रुपए देने से पहले मुझ से पूछा तो होता. अब मैं क्या कर सकता हूं.’’

‘‘वैसे मुझे एक बात पता चली है. उस के चाचाचाची कब के मर चुके हैं. समझ में नहीं आया, यह सब कैसे हो गया?’’

मेरे सिर से विदेशी दामाद का भूत उतर चुका है. मैं यह समझ गया हूं कि आज के पढ़ेलिखे किंतु बेरोजगार नवयुवक हम लोगों की इस कमजोरी का खूब फायदा उठा रहे हैं.

आज तक तो यही सुनते थे कि विदेशी दामाद लड़की को ले जा कर कोई न कोई विश्वासघात करते हैं पर नरेश ने तो मेरी आंखें ही खोल दीं.

रही सुमन, सो प्रथम आघात को आत्मसात करने में उसे कुछ दिन लगे. बाद में शांति के माध्यम से मुझे पता चला कि वह और कुसुमाकर फिर से मिलने लगे हैं.

यदि वे दोनों विवाह करने के लिए सहमत हों तो मैं कोई हस्तक्षेप नहीं करूंगा.

जीवनधारा : अपनों से धोखे की दास्तां

हादसे जिंदगी के ढांचे को बदलने की कितनी ताकत रखते हैं, इस का सही अंदाजा उन की खबर पढ़नेसुनने वालों को कभी नहीं हो सकता. एक सुबह पापा अच्छेखासे आफिस गए और फिर उन का मृत शरीर ही वापस लौटा. सिर्फ 47 साल की उम्र में दिल के दौरे से हुई उन की असामयिक मौत ने हम सब को बुरी तरह से हिला दिया.

‘‘मेरी घरगृहस्थी की नाव अब कैसे पार लगेगी?’’ इस सवाल से उपजी चिंता और डर के प्रभाव में मां दिनरात आंसू बहातीं.

‘‘मैं हूं ना, मां,’’ उन के आंसू पोंछ कर मैं बारबार उन का हौसला बढ़ाती, ‘‘पापा की सारी जिम्मेदारी मैं संभालूंगी. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’’

मुकेश मामाजी ने हमें आश्वासन दिया, ‘‘मेरे होते हुए तुम लोगों को भविष्य की ज्यादा चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. संगीता ने बी.काम. कर लिया है. उस की नौकरी लगवाने की जिम्मेदारी मेरी है.’’

मुझ से 2 साल छोटे मेरे भाई राजीव ने मेरा हाथ पकड़ कर वादा किया, ‘‘दीदी, आप खुद को कभी अकेली मत समझना. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करते ही मैं आप का सब से मजबूत सहारा बन जाऊंगा.’’

राजीव से 3 साल छोटी शिखा के आंखों से आंसू तो ज्यादा नहीं बहे पर वह सब से ज्यादा उदास, भयभीत और असुरक्षित नजर आ रही थी.
मोहित मेरा सहपाठी था. उस के साथ सारी जिंदगी गुजारने के सपने मैं पिछले 3 सालों से देख रही थी. इस कठिन समय में उस ने मेरा बहुत साथ दिया.

‘‘संगीता, तुम सब को ‘बेटा’ बन कर दिखा दो. हम दोनों मिल कर तुम्हारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाएंगे. हमारा प्रेम तुम्हारी शक्ति बनेगा,’’ मोहित के ऐसे शब्दों ने इस कठिन समय का सामना करने की ताकत मेरे अंगअंग में भर दी थी.

परिवर्तन जिंदगी का नियम है और समय किसी के लिए नहीं रुकता. जिंदगी की चुनौतियों ने पापा की असामयिक मौत के सदमे से उबरने के लिए हम सभी को मजबूर कर दिया.

मामाजी ने भागदौड़ कर के मेरी नौकरी लगवा दी. मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया तो सब रिश्तेदारों व परिचितों ने बड़ी राहत की सांस ली. क्योंकि हमारी बिगड़ी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने वाला यह सब से महत्त्वपूर्ण कदम था.

‘‘मेरी गुडि़या का एम.बी.ए. करने का सपना अधूरा रह गया. तेरे पापा तुझे कितनी ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे और आज इतनी छोटी सी नौकरी करने जा रही है मेरी बेटी,’’ पहले दिन मुझे घर से विदा करते हुए मां अचानक फूटफूट कर रो पड़ी थीं.

‘‘मां, एम.बी.ए. मैं बाद में भी कर सकती हूं. अभी मुझे राजीव और शिखा के भविष्य को संभालना है. तुम यों रोरो कर मेरा मनोबल कम न करो, प्लीज,’’ उन का माथा चूम कर मैं घर से बाहर आ गई, नहीं तो वह मेरे आंसुओं को देख कर और ज्यादा परेशान होतीं.

मोहित और मैं ने साथसाथ ग्रेजुएशन किया था. उस ने एम.बी.ए. में प्रवेश लिया तो मैं बहुत खुश हुई. अपने प्रेमी की सफलता में मैं अपनी सफलता देख रही थी. मन के किसी कोने में उठी टीस को मैं ने उदास सी मुसकान होंठों पर ला कर बहुत गहरा दफन कर दिया था.

पापा के समय 20 हजार रुपए हर महीने घर में आते थे. मेरी कमाई के 8 हजार में घर खर्च पूरा पड़ ही नहीं सकता था. फ्लैट की किस्त, राजीव व शिखा की फीस, मां की हमेशा बनी रहने वाली खांसी के इलाज का खर्च आर्थिक तंगी को और ज्यादा बढ़ाता.

‘‘अगर बैंक से यों ही हर महीने पैसे निकलते रहे तो कैसे कर पाऊंगी मैं दोनों बेटियों की इज्जत से शादियां? हमें अपने खर्चों में कटौती करनी ही पडे़गी,’’ मां का रातदिन का ऐसा रोना अच्छा तो नहीं लगता पर उन की बात ठीक ही थी.

फल, दूध, कपडे़, सब से पहले खरीदने कम किए गए. मौजमस्ती के नाम पर कोई खर्चा नहीं होता. मां ने काम वाली को हटा दिया. होस्टल में रह रहे राजीव का जेबखर्च कम हो गया.

इन कटौतियों का एक असर यह हुआ कि घर का हर सदस्य अजीब से तनाव का शिकार बना रहने लगा. आपस में कड़वा, तीखा बोलने की घटनाएं बढ़ गईं. कोई बदली परिस्थितियों के खिलाफ शिकायत करता, तो मां घंटों रोतीं. मेरा मन कभीकभी बेहद उदास हो कर निराशा का शिकार बन जाता.

‘‘हिम्मत मत छोड़ो, संगीता. वक्त जरूर बदलेगा और मैं तुम्हारे पास न भी रहूं, पर साथ तो हूं ना. तुम बेकार की टेंशन लेना छोड़ दो,’’ मोहित का यों समझाना कम से कम अस्थायी तौर पर तो मेरे अंदर जीने का नया जोश जरूर भर जाता.

अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में मैं जीजान से जुटी रही और परिवर्तन का नियम एकएक कर मेरी आशाओं को चकनाचूर करता चला गया. बी.टेक. की डिगरी पाने के बाद राजीव को स्कालरशिप मिली और वह एम.टेक. करने के लिए विदेश चला गया.

‘‘संगीता दीदी, थोड़ा सा इंतजार और कर लो, बस. फिर धनदौलत की कमी नहीं रहेगी और मैं आप की सब जिम्मेदारियां, अपने कंधों पर ले लूंगा. अपना कैरियर बेहतर बनाने का यह मौका मैं चूकना नहीं चाहता हूं.’’

राजीव की खुशी में खुश होते हुए मैं ने उसे अमेरिका जाने की इजाजत दे दी थी. राजीव के इस फैसले से मां की आंखों में चिंता के भाव और ज्यादा गहरे हो उठे. वह मेरी शादी फौरन करने की इच्छुक थीं. उम्र के 25 साल पूरे कर चुकी बेटी को वह ससुराल भेजना चाहती थीं.

मोहित ने राजीव को पीठपीछे काफी भलाबुरा कहा था, ‘‘उसे यहां अच्छी नौकरी मिल रही थी. वह लगन और मेहनत से काम करता, तो आजकल अच्छी कंपनी ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करती हैं. मुझे उस का स्वार्थीपन फूटी आंख नहीं भाया है.’’

मोहित के तेज गुस्से को शांत करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी थी. मां कभीकभी कहतीं कि मैं शादी कर लूं, पर यह मुझे स्वीकार नहीं था.

‘‘मां, तुम बीमार रहती हो. शिखा की कालिज की पढ़ाई अभी अधूरी है. यह सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ कर मैं कैसे शादी कर सकती हूं?’’

मेरी इस दलील ने मां के मुंह पर तो ताला लगाया, पर उन की आंखों से बहने वाले आंसुओं को नहीं रोक पाई. एम.बी.ए. करने के बाद मोहित को जल्दी ही नौकरी मिल गई थी. उस ने पहली नौकरी से 2 साल का अनुभव प्राप्त किया और इस अनुभव के बल पर उसे दूसरी नौकरी मुंबई में मिली.

अपने मातापिता का वह इकलौता बेटा था. उन्हें मैं पसंद थी, पर वह उस की शादी अब फौरन करने के इच्छुक थे.

‘‘मैं कैसे अभी शादी कर सकती हूं? अभी मेरी जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुई हैं, मोहित. मेरे ससुराल जाने पर अकेली मां घर को संभाल नहीं पाएंगी,’’ बडे़ दुखी मन से मैं ने शादी करने से इनकार कर दिया था.

‘‘संगीता, कब होंगी तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी? कब कहोगी तुम शादी के लिए ‘हां’?’’ मेरा फैसला सुन कर मोहित नाराज हो उठा था.

‘‘राजीव के वापस लौटने के बाद हम….’’

‘‘वह वापस नहीं लौटेगा…कोई भी इंजीनियर नहीं लौटता,’’ मोहित ने मेरी बात को काट दिया, ‘‘तुम्हारी मां विदेश में जा कर बसने को तैयार होंगी नहीं. देखो, हम शादी कर लेते हैं. राजीव पर निर्भर रह कर तुम समझदारी नहीं दिखा रही हो. हम मिल कर तुम्हारी मां व छोटी बहन की जिम्मेदारी उठा लेंगे.’’

‘‘शादी के बाद मुझे मां और छोटी बहन को छोड़ कर तुम्हारे साथ मुंबई जाना पड़ेगा और यह कदम मैं फिलहाल नहीं उठा सकती हूं. मेरा भाई मुझे धोखा नहीं देगा. मोहित, तुम थोड़ा सा इंतजार और कर लो, प्लीज.’’

मोहित ने मुझे बहुत समझाया पर मैं ने अपना फैसला नहीं बदला. मां भी उस की तरफ से बोलीं, पर मैं शादी करने को तैयार नहीं हुई.

मोहित अकेला मुंबई गया. मुझे उस वक्त एहसास नहीं हुआ पर इस कदम के साथ ही हमारे प्रेम संबंध के टूटने का बीज पड़ गया था.
वक्त ने यह भी साबित कर दिया कि राजीव के बारे में मोहित की राय सही थी.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने वहीं नौकरी कर ली. वह हम से मिलने भी आया, एक बड़ी रकम भी मां को दे कर गया, पर मेरी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर लेने को वह तैयार नहीं हुआ.

परिस्थितियों ने मुझे कठोर बना दिया था. मेरे आंसू न मोहित ने देखे न राजीव ने. इन का सहारा छिन जाने से मैं खुद को कितनी अकेली और टूटा हुआ महसूस कर रही थी, इस का एहसास मैं ने इन दोनों को जरा भी नहीं होने दिया था.

मां रातदिन शादी के लिए शोर मचातीं, पर मेरे अंदर शादी करने का सारा उत्साह मर गया था. कभी कोई रिश्ता मेरे लिए आ जाता तो मां का शोर मचाना मेरे लिए सिरदर्द बन जाता. फिर रिश्ते आने बंद हो गए और हम मांबेटी एकदूसरे से खिंचीखिंची सी खामोश रह साथसाथ समय गुजारतीं.

मैं 30 साल की हुई तब शिखा ने कंप्यूटर कोर्स कर के अच्छी नौकरी पा ली. शादी की सही उम्र तो उसी की थी. उस के लिए एक अच्छा रिश्ता आया तो मैं ने फौरन ‘हां’ कर दी.

राजीव ने उस की शादी का सारा खर्च उठाया. वह खुद भी शामिल हुआ. मां ने शिखा को विदा कर के बड़ी राहत महसूस की.

राजीव ने जाने से पहले मुझे बता दिया कि वह अपनी एक सहयोगी लड़की से विवाह करना चाहता है. शादी की तारीख 2 महीने बाद की थी.

उस ने हम दोनों की टिकटें बुक करवा दीं. पर मैं उस की शादी में शामिल होने अमेरिका नहीं गई. मां अकेली अमेरिका गईं और कुछ सप्ताह बिता कर वापस लौटीं. वह ज्यादा खुश नहीं थीं क्योंकि बहू का व्यवहार उन के प्रति अच्छा नहीं रहा था.

‘‘मां, तुम और मैं एकदूसरे का ध्यान रख कर मजे से जिंदगी गुजारेंगे. तुम बेटे की खुदगर्जी की रातदिन चर्चा कर के अपना और मेरा दिमाग खराब करना बंद कर दो अब,’’ मेरे समझाने पर एक रात मां मुझ से लिपट कर खूब रोईं पर कमाल की बात यह है कि मेरी आंखों से एक बूंद आंसू नहीं टपका.

अब रुपएपैसे की मेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रही थी. मैं ने मां व अपनी सुविधा के लिए किस्तों पर कार भी ले ली. हम दोनों अच्छा खातेपहनते. मेरी शादी न होने के कारण मां अपना दुखदर्द लोगों को यदाकदा अब भी सुना देतीं. मैं सब को हंसतीमुसकराती नजर आती, पर सिर्फ मैं ही जानती थी कि मेरी जिंदगी कितनी नीरस और उबाऊ हो कर मशीनी अंदाज में आगे खिसक रही थी.

‘संगीता, तू किसी विधुर से…किसी तलाकशुदा आदमी से ही शादी कर ले न. मैं नहीं रहूंगी, तब तेरी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी?’ मां ने एक रात आंखों में आंसू भर कर मुझ से पुराना सवाल फिर पूछा था.

‘जिंदगी हर हाल में कट ही जाती है, मां. मैं जब खुश और संतुष्ट हूं तो तुम क्यों मेरी चिंता कर के दुखी होती हो? अब स्वीकार कर लो कि तुम्हारी बड़ी बेटी कुंआरी ही मरेगी,’ मैं ने मुसकराते हुए उन का दुखदर्द हलका करना चाहा था.

‘तेरे पिता की असामयिक मौत ने मुझे विधवा बनाया और तुझे उन की जिम्मेदारी निभाने की यह सजा मिली कि तू बिना शादी किए ही विधवा सी जिंदगी जीने को मजबूर है,’ मां फिर खूब रोईं और मेरी आंखें उस रात भी सूनी रही थीं.

अपने भाई, छोटी बहन व पुराने प्रेमी की जिंदगियों में क्या घट रहा है, यह सब जानने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी. अतीत की बहुत कुछ गलीसड़ी यादें मेरे अंदर दबी जरूर पड़ी थीं, पर उन के कारण मैं कभी दुखी नहीं होती थी.

मेरी समस्या यह थी कि अपना वर्तमान नीरस व अर्थहीन लगता और भविष्य को ले कर मेरे मन में किसी तरह की आशा या उत्साह कतई नहीं बचा था. मैं सचमुच एक मशीन बन कर रह गई थी.

जिंदगी में समय के साथ बदलाव आना तो अनिवार्य ही है. मेरी जिंदगी की गुणवत्ता भी कपूर साहब के कारण बदली. कपूर साहब आफिस में मेरे सीनियर थे. अपने काम में वह बेहद कुशल व स्वभाव के अच्छे थे. एक शाम बरसात के कारण मुझ से अपनी चार्टर्ड बस छूट गई तो उन्होंने अपनी कार से मुझे घर तक की ‘लिफ्ट’ दी थी. वह चाय पीने के लिए मेरे आग्रह पर घर के अंदर भी आए. मां से उन्होंने ढेर सारी बातें कीं. हम मांबेटी दोनों के दिलों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने के बाद ही उन्होंने उस शाम विदा ली थी.

अगले सप्ताह ऐसा इत्तफाक हुआ कि हम दोनों साथसाथ आफिस की इमारत से बाहर आए. जरा सी नानुकुर के बाद मैं उन के साथ कार में घर लौटने को राजी हो गई.

‘‘कौफी पी कर घर चलेंगे,’’ मुझ से पूछे बिना उन्होंने एक लोकप्रिय रेस्तरां के सामने कार रोक दी थी.

हम ने कौफी के साथसाथ खूब खायापिया भी. एक लंबे समय के बाद मैं खूब खुल कर हंसीबोली भी.

उस रात मैं इस एहसास के साथ सोई कि आज का दिन बहुत अच्छा बीता. मन बहुत खुश था और यह चाह बलवती थी कि ऐसे अच्छे दिन मेरी जिंदगी में आते रहने चाहिए.

मेरी यह इच्छा पूरी भी हुई. कपूर साहब और मेरी उम्र में काफी अंतर था. इस के बावजूद मेरे लिए वह अच्छे साबित हो रहे थे. सप्ताह में 1-2 बार हम जरूर छोटीमोटी खरीदारी के लिए या खानेपीने को घूमने जाते. वह मेरे घर पर भी आ जाते. मां की उन से अच्छी पटती थी. मैं खुद को उन की कंपनी में काफी सुरक्षित व प्रसन्न पाती. मेरे भीतर जीने का उत्साह फिर पैदा करने में वह पूरी तरह से सफल रहे थे.

फिर एक शाम सबकुछ गड़बड़ हो गया. वह पहली बार मुझे अपने फ्लैट में उस शाम ले कर गए जब उन की पत्नी दोनों बच्चों समेत मायके गई हुई थीं.

उन्हें ताला खोलते देख मैं हैरान तो हुई थी, पर खतरे वाली कोई बात नहीं हुई. उन की नीयत खराब है, इस का एहसास मुझे कभी नहीं हुआ था.

फ्लैट के अंदर उन्होंने मेरे साथ अचानक जोरजबरदस्ती करनी शुरू की, तो मुझे जोर का सदमा लगा.

मैं ने शोर मचाने की धमकी दी, तो वह गुस्से से बिफर कर गुर्राए, ‘‘इतने दिनोें से मेरे पैसों पर ऐश कर रही हो, तो अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’’

उन से निबटना मेरे लिए कठिन नहीं था, पर अकेली घर पहुंचने तक मैं आटोरिकशा में लगातार आंसू बहाती रही.

घर पहुंच कर भी मेरा आंसू बहाना जारी रहा. मां ने बारबार मुझ से रोने का कारण पूछा, पर मैं उन्हें क्या बताती.

रात को मुझे नींद नहीं आई. रहरह कर कपूर साहब का डायलाग कानों में गूंजता, ‘…अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल, बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’

यह सच है कि उन के साथ मेरा वक्त बड़ा अच्छा गुजरा था. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं बहुत खुश थी, पर अब अजीब सी शर्मिंदगी व अपमान के भाव ने मन में पैदा हो कर सारा स्वाद किरकिरा कर दिया था.

रात भर मैं तकिया अपने आंसुओं से भिगोती रही. अगले दिन रविवार होने के कारण मैं देर तक सोई.

जब आंखें खुलीं तो उम्मीद के खिलाफ मैं ने खुद को सहज व हलका पाया. मन ने इस स्थिति का विश्लेषण किया तो जल्दी ही कारण भी समझ में आ गया.

नींद आने से पहले मेरे मन ने निर्णय लिया था, ‘मैं अब खुश रह कर जीना चाहती हूं और जिऊंगी भी. यह नेक काम मैं अब अपने बलबूते पर करूंगी. किसी कपूर साहब, राजीव या मोहित पर निर्भर नहीं रहना है मुझे.’

‘परिस्थितियों के आगे घुटने टेक कर…अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर मेरी जीवनधारा अवरुद्ध हो गई थी, पर अब ऐसी स्थिति फिर नहीं बनेगी.’

‘मेरी जिंदगी मुझे जीने के लिए मिली है. दूसरों की जिंदगी सजानेसंवारने के चक्कर में अपनी जिंदगी को जीना भूल जाना मेरी भूल थी. कपूर साहब मेरी जिस नासमझी के कारण गलतफहमी का शिकार हुए हैं, उसे मैं कभी नहीं दोहराऊंगी. जिंदगी का गहराई से आनंद लेने से मुझे अब न अतीत की यादें रोक पाएंगी, न भविष्य की चिंताएं.’

अपने अंतर्मन में इन्हीं विचारों को गहराई से प्रवेश दिला कर मैं नींद के आगोश में पहुंची थी. अपनी भावदशा में आए सुखद बदलाव का कारण मैं इन्हीं सकारात्मक विचारों को मान रही थी.

कुछ दिन बाद मेरे एक दूसरे सहयोगी नीरज ने मुझ से किसी बात पर शर्त लगाने की कोशिश की. मैं जानबूझ कर वह शर्त हारी और उसे बढि़या होटल में डिनर करवाया.

इस के 2 दिन बाद मैं चोपड़ा और उस की पत्नी के साथ फिल्म देखने गई. अपने इन दोनों सहयोगियों के टिकट मैं ने ही खरीदे थे.

पड़ोस में रहने वाले माथुर साहब मुझे मार्किट में अचानक मिले, तो उन्हें साथसाथ कुल्फी खाने की दावत मैं ने ही दी और जिद कर के पैसे भी मैं ने ही दिए.

मैं ने अपनी रुकी हुई जीवनधारा को फिर से गतिमान करने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए थे. कपूर साहब की तरह मैं किसी दूसरे पुरुष को गलतफहमी का शिकार नहीं बनने देना चाहती थी.

इस में कोई शक नहीं कि मेरी जिंदगी में हंसीखुशी की बहार लौट आई थी. अपनों से मिले जख्मों को मैं ने भुला दिया था. उदासी और निराशा का कवच टूट चुका था.

हंसतेमुसकराते और यात्रा का आनंद लेते हुए मैं जिंदगी की राह पर आगे बढ़ चली थी. मेरा जिंदगी भर साथ निभाने को कभी कोई हमराही मिल गया, तो ठीक, नहीं तो उस के इंतजार में रुक कर अपने अंदर शिकायत या कड़वाहट पैदा करने की फुर्सत मुझे बिलकुल नहीं थी.

पत्नी के हाथों पिटते पति और प्रेमिका, दुनिया बना रही है वीडियो

रमा का अपने पति रामकुमार के साथ झगड़ा चल रहा था. शादी के बाद से ही शुरू हुई अनबन में रिश्ते बिगड़ते चले गए. पिछले 4 साल से दोनों के बीच झगड़ा बढ़ता ही गया. मारपीट और पुलिसकचहरी तक मामला गया. अब वे दोनों अलग रहते हैं. तलाक के लिए मुकदमा किया जा चुका है, पर तलाक मिलना आसान नहीं है.

 

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नतीजतन, रमा अपने मायके में रहने लगी और रामकुमार की दोस्ती सपना से हो गई. सपना और रामकुमार में एक कौमन बात यह थी कि उन दोनों का अपनेअपने जीवनसाथी से झगड़ा चल रहा था. सपना का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अब पति से अलग रह रही थी.

एक दिन रामकुमार सपना के साथ अपने फ्लैट में था कि अचानक उस की पत्नी रमा अपनी मां और भाई के साथ वहां आ धमकी. वह रामकुमार पर आरोप लगाने लगी कि वह सपना के साथ ऐश कर रहा है, जबकि उन का तलाक नहीं हुआ है.

सोसाइटी में हंगामा मच गया. लोग झगड़े का वीडियो बनाने लगे. इस बीच सोसाइटी का रखरखाव देखने वाली संस्था आरडब्ल्यूए के लोग भी आ गए. पुलिस को फोन किया गया. पुलिस आई और सपना और रामकुमार को पकड़ कर थाने ले गई.

रामकुमार और सपना दोनों बालिग थे. एकसाथ फ्लैट में थे और यह कोई कानूनी अपराध नहीं था. पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस धारा में मामला दर्ज करे. रमा और उस के परिवार वाले पुलिस पर दबाव डाल रहे थे. ऐसे में सपना के लिए तो यही सजा से कम नहीं था कि उसे थाने ला कर बेइज्जत किया गया.

पुलिस ने थाने में कुछ देर बिठाने के बाद रामकुमार को शांति भंग करने के मुकदमे में जेल भेज दिया और सपना को देर रात निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

रमा को रामकुमार के साथ रहना भी नहीं है और वह उसे आजादी से रहने भी नहीं देना चाहती है. इस से उस की अपनी जिंदगी तो बरबाद हो ही रही है, रामकुमार की भी जिंदगी बरबाद हो रही है.

रमा को इस बात की खुशी है कि वह रामकुमार को अपने हिसाब से जीने नहीं दे रही है. रामकुमार इस बात से बेहद परेशान हो चुका है. वह अब किसी सूरत में रमा के साथ रहना नहीं चाहता. दूसरी तरफ अदालत उन के तलाक का मुकदमा जल्दी नहीं निबटा रही है. इस के चलते रमा, रामकुमार और सपना तीनों की जिंदगी तबाह हो रही है.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में प्रेमिका के साथ घूम रहे पति को पत्नी ने पकड़ कर बीच सड़क पर जम कर पीटा. पति की प्रेमिका की भी पटकपटक कर पिटाई की गई. पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही. मारपीट में घायल हुई प्रेमिका और पत्नी को अस्पताल में भरती कराया गया, जबकि पति को पुलिस थाने ले गई.

सौहरवा तालाब का रहने वाला राहुल अपनी गर्लफ्रैंड के साथ एक रैस्टोरैंट के पास घूम रहा था. तभी राहुल की पत्नी सुमन ने उन दोनों को पकड़ लिया और फिर सड़क पर ही पति और उस की प्रेमिका की पिटाई करने लगी.

मारपीट के चक्कर में प्रेमिका और पत्नी दोनों घायल हो गईं. बाद में दोनों को महिला पुलिस जिला अस्पताल में इलाज के लिए ले गई. अस्पताल पहुंचते ही पत्नी फिर पति पर टूट पड़ी और उस की पिटाई करने लगी. मारपीट में पति ने पत्नी को पटक दिया, जिस से उस के सिर पर चोट आ गई.

राहुल और सुमन की शादी 6 साल पहले हुई थी. पति राहुल अपनी पत्नी समेत परिवार के साथ लोक नगर चौधरी खजान सिंह महल्ले में किराए के मकान में रहता था. राहुल हलवाई का काम करता है और सुमन लोगों के घरों में साफसफाई का काम करती है.

सुमन का आरोप था कि राहुल ने चोरीछिपे अपनी प्रेमिका शिल्पी से शादी कर ली है और उस को ले कर वह गांधीनगर में एक किराए के मकान में रहता है.

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में अपनी पत्नी के साथ बंद कमरे में एक नौजवान को देख कर पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. साथ ही लोगों की भीड़ को मौके पर बुला लिया. पत्नी और उस के प्रेमी ने कमरे के गेट की कुंडी लगा रखी थी. इस वजह से भीड़ अंदर नहीं घुस सकी. लेकिन इस पूरे मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया.

रात को जब उस औरत का पति किसी काम से बाहर गया था, तभी रात के तकरीबन 9 बजे विजयपुर एसडीएम का रीडर जितेंद्र यादव अपने सरकारी मकान से निकल कर औरत के किराए के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने अंदर से गेट की कुंडी भी लगा ली कि तभी कुछ देर बाद औरत का पति वहां आ गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो औरत और उस के साथ मौजूद रीडर डर गए. उन्होंने कुछ देर तक दरवाजा नहीं खोला और चुप हो गए. जब खिड़की को धक्का दे कर खोला गया, तो उस में रीडर और औरत आपत्तिजनक हालत में दिखाई दिए. इस से उस औरत के पति ने हल्ला मचा दिया. यह सुन कर वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई.

भीड़ ने पुलिस बुला ली. मौके पर पहुंच कर पुलिस ने गेट खुलवाया. बाहर निकलते ही मारपीट शुरू हो गई. विजयपुर थाने के टीआई पप्पू सिंह यादव ने बताया कि रात को सूचना मिलने के बाद पुलिस वहां पहुंची थी. लेकिन दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई, इसलिए कार्यवाही नहीं हुई.

लखनऊ के एक रैस्टोरैंट में एक आदमी अपनी गर्लफ्रैंड को ले कर डिनर करने पहुंचा था. दोनों खाना खा ही रहे थे कि उस आदमी की पत्नी वहां आ धमकी. पति को दूसरी औरत संग देख कर पत्नी का पारा चढ़ गया. फिर पत्नी ने अपने भाई के साथ मिल कर पति और उस की गर्लफ्रैंड की जम कर पिटाई की. सड़क पर ले जा कर दोनों को पीटा. इस का वीडियो भी वायरल हुआ है. जब पुलिस वहां पहुंची, तब जा कर मामला शांत हुआ.

सीमित है पुलिस के हक

इस तरह के मामले समाज में बढ़ते जा रहे हैं. पहले पत्नियां सारे दुख सहन कर लेती थीं, पर आज की लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं. मातापिता भी उन की मदद करने को तैयार रहते हैं. ऐसे में वे पति के साथ दब कर नहीं रहती हैं. कोई दिक्कत होती है, तो वे सब से पहले पुलिस बुला लेती हैं. पहले पुलिस बुलाने के लिए थाने जाना पड़ता था, सिफारिश लगवानी पड़ती थी, पर अब केवल मोबाइल से 112 नंबर डायल करने की जरूरत होती है और पुलिस पहुंच जाती है. किसी औरत या लड़की को सताने की कोई घटना हो तो पुलिस के साथ कई एनजीओ वाले भी आ धमकते हैं.

आज के डिजिटल के जमाने में पड़ोसी दुख में भले साथ न दें, लेकिन वीडियो बनाने के लिए आ जाते हैं. अब सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होने लगे हैं, जिन में पति और उस के साथ मिली लड़की या औरत को उस की प्रेमिका बता दिया जाता है. लोग सब से पहले पुलिस बुला लेते हैं. पुलिस के आने के बाद मामला और ज्यादा बिगड़ जाता है.

पुलिस के पास घरेलू मामलों में मुकदमा दर्ज करने का हक बहुत सीमित हो गया है. ऐसे में वह लोगों को थाने लाती है फिर मारपीट या शांति भंग करने जैसी धाराओं में चालान कर देती है. औरतों को ले कर पुलिस को सावधानी ज्यादा बरतनी पड़ती है. ऐसे में वह लिखापढ़ी कर के थाने से ही जमानत दे देती है.

कोर्ट नहीं करते जल्दी फैसले

मुसलिमों में तलाक के जरीए जल्दी अलगाव हो जाता है, पर हिंदुओं में शादी कराने वाला पंडित तलाक कराने नहीं आता. हिंदू धर्म में पतिपत्नी का साथ सात जन्मों का माना जाता है, जबकि बहुत से जोड़े तो सात कदम साथ चलने को तैयार नहीं होते हैं. कानून अलग भी नहीं रहने देता. इस वजह से पतिपत्नी हिंसक और अराजक हो जाते हैं, मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. दहेज हत्याएं इस का सुबूत हैं. इस के साथसाथ दूसरी तरह की मारपीट की हिंसक घटनाएं होती हैं.

कई बार पति का बाहर अफेयर हो जाता है. कई बार पत्नी भी बाहर चक्कर चलाने लगती है. इन पर लोग नजर रखने लगते हैं. जैसे ही यह पता चलता है कि 2 लोग छिपछिप कर मिल रहे हैं, तीसरा पहुंच जाता है. हंगामे और मारपीट के वीडियो और पुलिस सीन में आ जाते हैं. कम कपड़ों में पिटते पति और उस की प्रेमिका के वीडियो बनने लगते हैं. पूरा समाज इस को चटपटे अंदाज में देखता है. ऐसे मसलों में पुलिस के आने से समझौते की उम्मीद खत्म हो जाती है. अब कोर्ट को यह करना चाहिए कि तलाक जल्द से जल्द मिल सके, जिस से दूसरा पक्ष जल्द अपनी नई जिंदगी शुरू कर सके.

इन घटनाओं का सारा असर औरतों पर पड़ता है. धर्म के बताए रास्ते पर चल कर वे पति की मार और फटकार झेलती हैं. ऐसे में चाहे पत्नी के रूप में या प्रेमिका के रूप में बदनाम औरत ही होती है. मर्द पर उंगली नहीं उठती है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि औरत की चाह पर कोर्ट उस का फैसला जल्द से जल्द करे. घर, परिवार और समाज को यह समझना चाहिए कि एक बार मामला पुलिस और कोर्ट तक गया, तो इस का हल केवल तलाक ही है. समझौते की कोई गुजांइश नहीं रहती है. कोर्ट को ऐसे मसले को लटकाने के बजाय जल्द तलाक दिला देना चाहिए, जिस से वे दोनों आजाद हो कर अपनी नई जिंदगी शुरू कर सकें.

(लेख में कानूनी सलाह के चलते पीड़ितों के नाम बदले गए हैं)

मांबाप कभी पराए नहीं होते

सदियों से परंपरा चली आ रही है कि बच्चे मातापिता का खयाल रखते हैं. आज आप अपने मातापिता का खयाल रखेंगे, तो कल आप के बच्चे आप का खयाल रखेंगे. वैसे भी, बच्चे जो आप को करते हुए देखेंगे, वही वे सीखेंगे. हां, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पहले कई सारे भाईबहन होते थे और वे मांबाप की देखभाल मिलजुल कर कर लेते थे. अब की पीढ़ी के साथ दिक्कत यह है कि अब एक भाई और एक बहन हैं. अब यह परेशानी है कि बीवी अपने मांबाप की या अपने सास ससुर की देखभाल करे या फिर बीवी चारों की देखभाल करे. लेकिन इसे ही तो मैनेज करने की कला आप को आनी चाहिए.

बेटे मांबाप का खयाल इसलिए भी रखें क्योंकि यह गिव और टेक यानी कि लेने का देना है. अगर आप ने आज अपने मातापिता का धयान नहीं रखा तो कल बुढ़ापा तो आप का भी आना है और तब आप के बच्चों द्वारा आप का धयान भी नहीं रखा जाएगा क्योंकि आप के बच्चे वही करेंगे जो वे आप को करते हुए देखेंगे. अगर आज आप का व्यवहार अपने मातापिता के साथ सही नहीं है तो कल आप भी वही सब भुगतने के लिए तैयार हो जाएं. यहां हमारा मकसद आप को डरानाधमकाना बिलकुल नहीं है बल्कि हम तो यही कहना चाहते हैं कि आप जो बोएंगे वही काटेंगे.

जिस तरह से आज आप की जान आप के बच्चों में बस्ती है और आप उन से दूर होने के बारे में सोच भी नहीं सकते बिलकुल इसी तरह आप के मातापिता भी आप से दूर होने की कल्पना तक नहीं कर कर सकते. फिर जब आप अपने बच्चों से दूर नहीं होना चाहते तो उन्हें ही क्यों दूर करना. आज भले ही आप का अपना परिवार, बीवीबच्चे हैं पर मातापिता का परिवार भी तो आप से ही है. उन्हें भी अपने परिवार का हिस्सा ही समझें, उन्हें बोझ न मानें.

वैसे भी, मांबाप का ध्यान रखना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है. मांबाप को आप की कोई ज्यादा लंबीचौड़ी जरूरत नहीं है. आप उन से हलकीफुलकी बात कर लें, उन के सुखदुख में उन्हें पूछ लें वही काफी है. उन्हें आप की जरूरत तब पड़ती है जब वे बीमार हो जाते हैं या फिर 70-80 साल की उम्र के हो जाते हैं. तब तक आप रिटायर हो जाते हो. तब आप आराम से उन की देखभाल कर सकते हो और आप को देखभाल करनी भी चाहिए क्योंकि उन की संपत्ति भी तो आप ही इस्तेमाल करते हैं. या तो वे अपना धन आप को दे कर जाएंगे या आप पर खर्च कर चुके होंगे. लेकिन अगर उन के पास कुछ नहीं भी है तो क्या हुआ, उन का होनहार बेटा ही उन की पूंजी है और आप को उन के साथ उसे शेयर करना भी चाहिए क्योंकि मांबाप के आशीर्वाद आप को हर दुख और तकलीफ से भी तो बचाते हैं. वह कर्ज भी तो आप को उन का उतरना है.

मांबाप के लिए किस तरह से समय निकले और किस तरह से मैनेज करें, मातापिता इरिटेट करें तो इग्नोर करें

जो मांबाप छोटीछोटी चीजों के लिए तंग करें, तो उन्हें इग्नोर करें, उन्हें छोड़ें नहीं. कई बार मांबाप के पास पैसों की कमी हो जाती है वो कहते हैं, तू अभी खड़ा है तो अभी पैसे ट्रांसफर कर. बेटा कहता है, मां, अब नहीं, कल करूंगा, आप ने कल क्यों नहीं बताया. इस बहस में न पड़ें, जो जरूरी लगे उसे कर दें, बाकी के लिए समझा दें. हर बात को तूल न दें बल्कि चीजों को इग्नोर करें.

उन के साथ कहीं घूमने जाएं

आप अपनी बीवीबच्चों के साथ लाख घूमने जाएं लेकिन महीने में एक बार ही सही अपने पेरैंट्स के लिए भी समय निकालें. भले ही उन्हें मार्केट घूमने या फिर कुछ खिलानेपिलाने के लिए ही बाहर ले जाएं.

इंडोर गेम्स खेलने की आदत डालें

पेरैंट्स के साथ टाइम स्पैंड करने का सब से अच्छा तरीका है कि उन के साथ कुछ गेम्स खेलने की आदत डालें, जैसे कि स्प्लेंडर, टिकट टू राइड, लूडो, ताश और ऐसे बहुत से बोर्ड गेम हैं जो वीकैंड पर साथ मिल कर पूरा परिवार खेल सकता है, इस से टाइम पास होगा और स्क्रीनटाइम भी काम होगा, साथ में, सब लोग एंजौय कर पाएंगे सो अलग.

कभीकभी शौपिंग के लिए ले जाएं

मांबाप की जरूरत का हर सामन आप उन्हें भले ही औनलाइन मंगा दें लेकिन कभीकभी साथ ले जा कर भी कुछ शौपिंग कराएं. इस से उन की भी कुछ आउटिंग हो जाएगी और वे खुश रहेंगे.

मातापिता की सीनियर सिटिज़न किटी शुरू करा दें

मातापिता के कुछ पुराने दोस्त, रिश्तेदार या हमउम्र पड़ोसियों के साथ उन की किटी शुरू करा दें ताकि वे अपने दोस्तों के साथ उठबैठ कर खुश रहें और एंजौय करें.

उन की बात पर झल्लाएं नहीं

कभीकभार उन की मांगें या कुछ बातें थोड़ी बेवजह सी लगती होंगी लेकिन क्या भूल गए आप अपना समय, जब उन्होंने आप की हर बात को सिरआंखों पर रखा. आज आप की बारी है. अगर उन की कोई बात पसंद नहीं आ रही, तो उन पर गुस्सा न करें बल्कि प्यार से समझाएं. उन की बात ठीक न लगे तो उस का कोई और तरीका निकालें जिस से वे और आप दोनों ही संतुष्ट हो जाएं.

अब बच्चों को उन के ग्रैंडपा चाहिए

बच्चों के साथ उन की बौन्डिंग बनवाएं ताकि बच्चों और ग्रैंडपा को एक साथी, एक दोस्त मिल जाए. इस से आप की मुश्किल भी काफी हद तक सौल्व हो जाएगी. दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे तो आप को दोनों की ही चिंता नहीं होगी. आजकल दादादादू हों या नानानानू, बच्चों की बौन्डिंग उन के साथ अच्छी होना चाहिए.

मांबाप के साथ में आप का अपना भी स्वार्थ छिपा है

अकसर यह सुनने को मिलता रहता है कि बेटे ने बुढ़ापे में अपने मांबाप को अकेले छोड़ दिया क्योंकि मांबाप की नसीहत उस को बुरी लगती है. लेकिन मांबाप की वसीयत सब को अच्छी लगती है. जबकि सच यह है कि आप के मांबाप जैसा दुनिया में कोई भी नहीं है जो सिर्फ़ आप की फिक्र करता हो. इसलिए अपने मातापिता का सम्मान करें, उन की पूरे दिल से सेवा करें क्योंकि मांबाप के बाद जीवन एकदम फीका हो जाता है. इसलिए सभी को अपने मातापिता का खयाल रखना चाहिए.

पिता खुद कितना भी कमजोर क्यों न हो मगर अपनी औलाद को मजबूत बनाने की हिम्मत रखता है. दुनिया आप की अच्छाइयों को भी बुराई बना देती है और मांबाप आप की बुराइयों को अच्छाई समझ कर स्वीकार कर लेते हैं. यह सच है और कहीं न कहीं आप सभी इस सच को जानते हैं. हम अपनी सुरक्षा के लिए मांबाप की सेवा कर रहे हैं. इस में अपना भी स्वार्थ है, इसलिए हम सेवा कर रहे हैं क्योंकि आप यह परंपरा अपने बच्चों को सिखा रहे हैं क्योंकि कल आप को भी बच्चों के साथ की जरूरत होगी.Community-verified icon

हाउसवाइफ चाहिए तो बैचलरहुड की तैयारी कर लें

आप सालोंसाल तलाश करेंगे तब कहीं जा कर दोचार ऐसी लड़कियां मिल पाएंगी जो इस के लिए राजी होंगी और दूसरी बात, अगर वे राजी हो भी गईं तो क्या आप इन लड़कियों से शादी करने को तैयार होंगे क्योंकि ये लड़कियां ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं होंगी और तभी हाउसवाइफ बनना पसंद करेंगी. सोचने की बात है अगर वे अच्छी एजुकेटेड होंगी तो भला वे अपनी पढ़ाईलिखाई बेकार कर घर में क्यों बैठना चाहेंगी.

आजकल की लड़कियां नौकरी के साथसाथ घर संभालना भी जानती हैं, फिर एजुकेशन का उपयोग क्यों न करें. इस का एक पहलू यह भी है कि आप भी लड़की अपनी बराबरी की ही लेना चाहेंगे. बिना एजुकेशन वाली लड़की से तो शादी नहीं करना चाहेंगे भले ही वह हाउसवाइफ बनने को तैयार ही क्यों न हो.

इस बारे में रजत का कहना है, ‘मैं खुद चाहता था कि मेरी पत्नी हाउसवाइफ हो पर इस के साथ शर्त यह भी थी कि लड़की एजुकेटेड हो. पर कई साल बीत जाने पर भी मुझे ऐसी लड़की नहीं मिली और मुझे वर्किंग लड़की से ही शादी करनी पड़ी. लेकिन मुझे इस का कोई पछतावा नहीं है. हम अब बहुत खुश हैं. अब मुझे लगता है कि मेरी सोच ही गलत थी कि वर्किंग लड़की घर नहीं संभाल सकती. बल्कि, यह तो कपल की आपसी समझदारी और सामंजस्य पर निर्भर होता है. अगर दोनों साथ में मिल कर कोशिश करें तो घर और बाहर दोनों संभल जाते हैं.’

संदीप पेशे से इंजीनियर है, उस का भी ऐसा ही कहना है. वे और उन की वाइफ भी सेम प्रोफैशन से हैं. वर्किंग वाइफ होने से वे दोनों अपने समय का सही यूटिलाइजेशन करते हैं. एक ही क्षेत्र के होने कारण वे अपने औफिस की समस्या भी एकदूसरे से शेयर कर सकते हैं. संदीप कहता है, ‘मुझे लगता है वर्किंग वाइफ का नुकसान उन्हें ज्यादा होता है जो यह उम्मीद करते हैं कि उन की पत्नी घर के सारे काम करे, खाना बनाए और पति जब घर आए तो पत्नी उसे टेबल पर खाना-पानी ला कर दे. तो उन लोगों के लिए तो वर्किंग वाइफ के नुकसान हैं. पर जो लोग अपनी पत्नी के साथ काम में हैल्प करवा सकते हैं उन के लिए वर्किंग वाइफ होना बहुत अच्छा है. वर्किंग पत्नी के होने से आप को वित्तीय सहायता तो मिलती ही है, पत्नी लौंग टर्म में फिट और हैल्दी भी रहती है.

वर्किंग लड़की के हैं फायदे ही फायदे

वर्किंग लड़की न सिर्फ भावनात्मक रूप से बल्कि पैसे के मामले में भी मदद कर पाएगी. इनकम टैक्स रिटर्न, लोन आदि की समझ, गाड़ी चलाना आना आदि सब में भी बराबर समझ रखेगी. वर्किंग वाइफ अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा बचत में रखती है, जैसे फिक्स्ड डिपौजिट, बैंक सेविंग, लाइफ इंश्योरैंस आदि जो आप की फैमिली के फ्यूचर के लिए बहुत जरूरी है.

जब आप दोनों रिलैक्स होना चाहें तो आप दोनों छुट्टी ले कर पूरी तरह से रिलैक्स हो सकते हैं. दोनों के पास सीमित वक़्त होता है, जिसे दोनों ही पार्टनर प्यार से गुजारने में विश्वास करते हैं. इन लोगों के पास लड़ाईझगड़े और वादविवाद के लिए वक़्त की हमेशा कमी रहती है.

घर के रोजमर्रा के कामों में एकदूसरे का सहयोग करते हुए संबंधों का बौंड मजबूत होता जाता है.

पति या पत्नी में से कोई भी एकदूसरे को पैर की जूती नहीं समझ सकता क्योंकि घर दोनों के समान योगदान से चलता है. हालांकि हाउसवाइफ का भी घर चलाने में समान योगदान रहता है लेकिन अभी समाज उस परिपक्वता को हासिल नहीं कर पाया है जहां एक हाउसवाइफ के योगदान को बराबरी का समझा जाए.

पैसे की कमी नहीं रहती है. सिंगल इनकम में आप बेहतर जी रहे होते हो तो डबल इनकम में बेहतरीन जिया जा सकता है.

दोनों एकदूसरे का सम्मान करते हैं. पति भी बड़े गर्व से अपने सर्कल में बताता है है कि उस की वाइफ भी वर्किंग है.

जब तक कोई बहुत बड़ी बात न हो जाए, वर्किंग वाइफ घरेलू झगड़े में पड़ने से बचती है क्योंकि उस के पास औऱ भी जरूरी काम होते हैं.

वर्किंग मदर्स के बच्‍चे अपनी मांओं को एकसाथ कई कामों के बीच तालमेल बैठाते हुए देखते हैं. उन्‍हें समझ होती है कि कई चीजों को एकसाथ संभालना कितना स्ट्रैसफुल होता है. लेकिन उन की मां हर चीज को बहुत अच्‍छे से संभाल रही है. उन्‍हें देख कर बच्‍चे भी मल्‍टीटास्किंग बनते हैं और आगे चल कर स्ट्रैस को हैंडल कर पाते हैं.

यदि आप अपनी जौब चेंज करना चाहते हैं और आप को एकदो महीने जौबलेस होना पड़े तो आप के और घर के खर्चे आप की वाइफ उठा सकती है.

ज़्यादातर वर्किंग वुमन खुली सोच की होती हैं. वे बेवजह किसी के मामले में पड़ना पसंद नहीं करती हैं. यही वजह है कि अगर पति देर तक अपनी महिला मित्रों के साथ गपशप में बिजी रहे या देररात तक औफिस का काम निबटाता रहे तो वे बेवजह किसी बात पर रोकटोक या शक करना पसंद नहीं करती हैं.

वर्किंग वुमेन के साथ सामंजस्य कैसे बैठाएं

वर्किंग वाइफ का नुकसान सिर्फ इतना है कि वह आप के हर उचितअनुचित निर्णय को स्वीकार नहीं करेगी. वह अपना भी मत व्यक्त करेगी. उस की भी अपनी एक सोच होगी और वह चाहेगी कि घर की हर छोटीबड़ी बात का निर्णय उस से सलाह ले कर किया जाए न कि निर्णय होने के बाद उसे पता चले. इसलिए अच्छा यह है की अपना रिश्ता ऐसा बनाएं कि दोनों एकदूसरे की सलाह से ही काम करें. इस से दोनों के बीच सामंजस्य बना रहेगा.

घर के और अपने काम आप खुद देखें या फिर आप मेड लगवाएं. हर काम के लिए बीवी पर डिपैंड न हों क्योंकि समय का भाव उस के पास भी है.

– सुबह और शाम के कामों में अपनी वाइफ की हैल्प करें, क्योंकि दोनों को सुबह औफिस टाइम पर जाना है और शाम को दोनों ही थके होंगे.

– वाइफ अगर आप से ज्यादा अच्छी पोस्ट पर काम कर रही है, तो उसे देख कर जलन नहीं होनी चाहिए. वह जौब कर रही है आप के और आप के घर के लिए ही, इसलिए उसे यह एहसास कभी न कराएं कि आप उस से जलते हैं.

– हो सकता है कि आप को लगे कि वाइफ की तरफ से आप के लिए सम्मान कम हो गया है. यह केवल गलतफहमी हो सकती है या सच में ऐसा हो. अगर ऐसी कोई परेशानी हो, तो साथ में बैठ कर हल करें.

– बच्चों की देखरेख के लिए किसी को घर में रखना होगा, फिर वह चाहे आप का कोई हो या फिर कोई मेड रखने का रिस्क लेना पड़े. इस से बच्चों को ले कर तनाव काम होगा.

हर लड़के को घर के कामकाज आने चाहिए जैसे कि डायपर कैसे बदलें, कैसे साफ़ करें, कपड़े कैसे धोएं आदि.

हर लड़के के पास पूरे दिन में 2 घंटे ऐसे होते हैं जब वह घर के काम कर सकता है, इसलिए उन्हें भी करने की आदत डालें.

सो, अगर आप हाउसवाइफ लाने की बात इसलिए सोच रहे हैं कि बच्चे कैसे पालेंगे, उन की देखरेख कैसे होगी तो यह न सोचें क्योंकि फिर आप बैचलर ही रह जाएंगे. कुंआरे रहने से तो अच्छा है कि या तो बच्चे न करें या फिर सोच लें कि दोनों के सहयोग से बच्चे पल ही जाएंगे. कम से कम शादी तो हो जाए वरना हाउसवाइफ तो ढूंढते ही रह जाओगे. वर्किंग लड़की के साथ जो भी समस्या आप सोचते हैं उसे डिस्कस किया जा सकता है जैसे कि अगर बच्चों को ले कर दिक्कत है और आप मेड पर भरोसा नहीं करते तो 4-5 साल के लिए नौकरी छोड़ी भी जा सकती है और फिर बच्चों के संभल जाने पर दोबारा जौइन की जा सकती है. अगर लड़की आप के स्तर की होगी, बराबर की होगी, उतनी ही एजुकेटेड होगी तो वह वर्किंग ही मिलेगी. अब चौइस है कि आप को हाउसवाइफ की चाहत रख कर बैचलर ही बने रहना है या फिर रिश्ते में सामंजस्य बिठा कर लाइफ में आगे बढ़ना है.Community-verified icon

खुदकुशी : सोनी का आखिर क्या दोष था जो उस के साथ ऐसा हुआ

आज के समाज में लड़की समय के बीतने से जवान नहीं होती बल्कि उसे घूरघूर कर जवान कर दिया जाता है. सोनी, पूजा, सीमा इन्हीं लड़कियों में से हैं जिन्हें लोगों ने समय से पहले जवान कर दिया था. अभी ये तीनों टीनएजर्स हैं और छोटे शहर के तथाकथित आधुनिक समाज की आधुनिक लड़कियां हैं जो बौयफ्रैंड बनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं. सोनी नहीं समझ सकी थी कि उस के जानेपहचाने लड़के जिन्हें वह अपना बौयफ्रैंड समझती थी, उसे इतना तंग और अपमानित कर देंगे कि एक दिन उसे दुनिया छोड़नी पड़ेगी. वह जिन्हें अपने आसपास हर वक्त देखती थी, जिन के साथ प्राय: घूमने, ट्यूशन पढ़ने व कालेज जाती थी वही उसे अपनी जान देने को मजबूर कर देंगे. वह सोच रही थी कि आखिर ये सभी लड़के पूजा के साथ भी तो इधरउधर घूमते नजर आते थे.

पूजा ही तो उसे भेजा करती थी उन लड़कों में से कभी एक के पास और कभी दूसरे के पास. उस वक्त तो वे लड़के उस के साथ बड़े रहमदिल की तरह पेश आते थे, उस की किताबें ले लेते थे, उसे बाइक पर कहीं दूर लंबे सफर पर भी ले जाते थे. ये लोग उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, मजाक कर रहे हैं, फिर छोड़ देंगे, वह समझती थी. लेकिन उन लड़कों के उस के साथ शारीरिक रोमांस को वह समझ नहीं पाई थी. वह खुश होती थी. जब दोएक सहेलियों के साथ वह होटल या रेस्तरां में जाती थी तो कभी बिलविल के चक्कर में वह नहीं पड़ी. बस चाट खाई, आइसक्रीम खाई, चाइनीज फूड लिया, इतने से ही उसे मतलब रहता था. यह तो वह जानती थी कि उस की सहेली पूजा होटल के अंदर किसी कमरे में अपने किसी बौयफ्रैंड से मिलने गई है, बातें करती होगी ऐसा सोचती थी वह. वह यह नहीं सोचती थी कि बातों के अलावा भी कोई और संबंध एक जवान होती लड़की एक लड़के से बना सकती है.

दीनदुनिया से बेखबर सोनी ऐसे परिवार में पलीबढ़ी थी जहां सिर्फ प्यार ही था. मातापिता का प्यार, भाई का प्यार, चाचाचाची का प्यार, दादादादी का प्यार. कला की छात्रा रही सोनी सैक्स के बारे में सिर्फ इतना ही जानती थी जितना एक सभ्य युवती जानती है. शादी के पहले सैक्स की कोई जरूरत ही नहीं होती ऐसी युवतियों को. सोनी वैसी लड़कियों में से थी जो शादी के बाद अपनी सुहागरात में सैक्स के टिप्स अपनी भाभियों, बड़ी बहनों या फिर कामसूत्र की पुस्तकों से लिया करती हैं. गहराई तक जाने वाला सैक्स जो हमारे समाज में शादी के बाद ही जाना जाता है या यों कहिए जानना चाहिए, सोनी नहीं जानती थी. अगर सोनी गलत संगत में नहीं पड़ी होती तो शायद जिंदगी का भरपूर आनंद उठा रही होती. सोनी को यह नहीं मालूम था कि लड़के तो लड़के, मर्द किसी भी उम्र की लड़कियों के वक्ष और नितंबों को किस कारण से घूरते हैं.

सोनी को यह भी नहीं मालूम था कि उस के साथ रहने वाले लड़के उसे अपनी तीसरी आंख से पूर्ण नंगा कर कई बार देख चुके हैं. सोनी कभीकभी अपनी सहेलियों से पूछती थी कि वे क्यों उसे मना करती हैं होटल और रेस्तरां में घटने वाली तमाम बातों को मम्मीपापा को न बताने को, जिस पर उस की सहेलियां उत्तर देने के बजाय उसे धमकी देती थीं कि वे कभी उसे कहीं भी नहीं ले जाएंगी. बाइक पर घूमने का मौका फिर कभी नहीं मिलेगा. सोनी चुप हो जाया करती थी और घर पर भी कुछ नहीं कहती या पूछती थी. फिर भी सयानी होती लड़की थी, कालेज में, महल्ले में अपनी सहेलियों और उन के बौयफ्रैंड्स के बारे में कई उलटीसीधी बातें सुनती थी तो उस का जिक्र वह अपनी सहेली पूजा से अवश्य करती, लेकिन वह उसे टाल जाती.

पूजा और सीमा होस्टल में अपने घर से दूर रह कर पढ़ाई कर रही थीं. खुले व विद्रोही विचारों वाली पूजा और सीमा में खूब पटती थी, वे लड़कों से मजा लेने की हिमायती थीं और लड़कों से खूब खर्च भी करवाती थीं और उन के साथ हमबिस्तर भी होती थीं. पूजा और सीमा का मानना था कि जब उन के बौयफ्रैंड्स वीरेंद्र, गोपी और राजू को उन के साथ शारीरिक संबंध बनाने में कोई रोकटोक नहीं है तो उन लोगों को भी समाज या आसपास के लोग कैसे रोक सकते हैं. पूजा को फुरसत ही नहीं थी कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ हुए शारीरिक संबंधों के बारे में सोचे कि उस की इन हरकतों से उस के सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है या उस के परिवार को इस का क्या खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. समाज उस के प्रति क्या धारणा बना रहा है, उस के अनैतिक संबंध के प्रति, तो फिर वह सोनी के दिलोदिमाग में क्या चल रहा है, इस की चिंता क्यों करती. देह सुख की लत लग गई थी पूजा और सीमा को. यही देह सुख सोनी को भी प्रदान करना चाहती थीं पूजा और सीमा इसलिए धीरेधीरे सोनी को भी देह सुख हासिल करने की प्रक्रिया में डाल रही थीं. पूजा और सीमा के लिए देह सुख दुनिया का सब से बड़ा सुख था उसे वे किसी भी कीमत पर हासिल करने की चाहत रखती थीं. पूजा और सीमा कहा करती थीं कि देह सुख दुनिया का सब से बड़ा सुख है. तख्त ओ ताज पलट गए इसी देह सुख प्राप्ति में.

देशविदेश के कई नामीगिरामी साहित्यकार, कवि, वैज्ञानिक जिन के लिए हमारे मन में बड़ी इज्जत हो सकती है जैसे फ्रांस के चर्चित लेखक वाल्जाक ने अपनी उम्र से बड़ी महिला डी बर्नी के साथ वर्षों यौनाचार किया, टैलीफोन के आविष्कारक अलैक्जेंडर ग्राहम बेल अपनी छात्रा मैविल हार्वर्ड के साथसाथ उस की मदद से कई अन्य छात्राओं के साथ भी लगातार यौनाचार करते रहे. अंगरेज कवि लौर्ड वायरन जिन की कविताएं हम अंगरेजी साहित्य में पढ़ते हैं अपने मित्र कैरो की सास के साथ यौनाचार करते रहे, प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपनी पत्नी को धोखा दे कर नर्स एल्सा लोवेंथल से जीवनभर यौनाचार किया, साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स ने अपनी नौकरानी के साथ न सिर्फ यौनाचार किया बल्कि उसे गर्भवती भी बना दिया था. यौनाचार से पूरा इतिहास भरा पड़ा है अगर लिखने बैठ जाऊं तो इन साहित्यकारों, कवियों, वैज्ञानिकों के यौनाचार पर पुस्तक लिख सकती हूं, पूजा ने अपनी जानकारी पर गर्व करते हुए कहा था, सीमा ने भी हामी भर दी थी.

पूजा और सीमा जब भी कालेज जातीं तो उन की निगाहें वीरेंद्र, गोपी या राजू को ढूंढ़ती रहतीं और जैसे ही क्लास खत्म होती दोनों अपनेअपने साझा बौयफ्रैंड्स को ले कर किसी गुप्त ठिकाने पर पहुंच जातीं. विवाह के बाद भी कोई इतने नियमित यौन संबंध नहीं बनाता जितने ये लड़कियां बिन ब्याहे बनाने की आदी हो गई थीं. हर दिन जैसे खाना, पीना, पढ़ना होता था उसी तरह पूजा और सीमा के लिए शारीरिक संबंध बनाना था. पर उन की समस्या तब शुरू होती थी जब कालेज में छुट्टियां रहती थीं और तब वे अपनी सहेली सोनी के सहारे अपने अनैतिक यौन संबंधों को अंजाम देती थीं. पूजा और सीमा बहुत कुछ करने की महत्त्वाकांक्षी थीं. अपने कमरे में सनी लियोन, मर्लिन मुनरो, पूनम पांडे की लेटैस्ट नैट पर पोस्ट हुई तसवीरों का प्रिंटआउट लेतीं और दीवारों पर चिपकाती थीं. यौन संबंध बनाने के बाद से पूजा और सीमा ने दीवारों पर नंगधड़ंग मर्दों के भी पोस्टर लगा छोड़े थे. सोनी जब भी उन के होस्टल के कमरे में जाती थी तो उस का सिर घूम जाता था, वह पूछती भी थी कि ऐसी तसवीरें क्यों लगा रखी हैं, तो पूजा और सीमा कहतीं कि ये कमरा तो प्रयोगशाला है यहां भावना को परखनली में डाल कर सैक्सी बनाया जाता है और परिणाम होटल के कमरे में वीरेंद्र के साथ प्राप्त किया जाता है. सोनी की समझ से बाहर थीं ये सब बातें, वह सुन कर भी कुछ समझ नहीं पाती इसलिए बहुत गंभीरता से इन बातों को लेती भी नहीं थी.

खेलने का शौक पूजा को कुछ ज्यादा ही था, वह फुटबौल और बौलीबौल की कालेज टीम की कप्तान थी और कालेज की तरफ से खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने, दूसरे शहरों में आयाजाया करती थी. शारीरिक खेल की लत भी उसे इन खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने के दौरान ही लगी. सीमा पूजा की तरह कप्तान तो नहीं थी पर खेल में वह भी रुचि रखती थी और पूजा के साथ दोस्ती गांठ कर कई फायदे उठाती थी. सीमा पूजा की अच्छी प्रशंसक थी और पूजा का अनुकरण भी करती थी. शौर्ट्स और टीशर्ट्स पहन कर खेलने वाली लड़कियों को तो मेल टीचर्स तक खा जाने वाली निगाहों से देखा करते हैं तो उन हमउम्र लड़कों का क्या जो कालेज की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने सिर्फ इसलिए जाते हैं कि उन्हें लड़कियों का संसर्ग प्राप्त हो सके. नतीजतन, छोटे शहरों की परंपरानुसार विवाह के पहले शारीरिक संबंध बनाने वाली लड़कियों का जो होता है वही हुआ. पूजा धीरेधीरे बदनाम होने लगी और यही बदनामी की बात सोनी को समझ में नहीं आती थी. पूछने पर उसे कुछ बताया भी नहीं जाता था. लिहाजा, वह चुप रहती थी.

सोनी की समस्या तब शुरू हुई जब वह इंतजार करना छोड़ कर एक दिन अचानक उस कमरे में घुस गई जहां पूजा अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी. उस दिन सीमा के एक दूर के रिश्तेदार के खाली पड़े घर में 3 लड़के थे, जिन में वीरेंद्र भी एक था जो एकएक कर अपना काम निबटाने में लगे थे. सोनी भी वहीं थी, एक आता, दूसरा जाता, यद्यपि सोनी अनजान थी परंतु जिज्ञासा उसे हो ही रही थी कि आखिर एकएक कर लड़के अंदर जाते हैं जहां पूजा है और थोड़ी देर बाद बाहर आ जाते हैं. सीमा का उस दिन देह सुख का प्रोगाम नहीं था इसलिए वह घर के बगीचे में चली गई थी और पेड़ों के साए में आहिस्ताआहिस्ता चहलकदमी कर रही थी. सोनी से रहा नहीं गया, तीसरा लड़का जब कमरे में दाखिल हुआ तो सोनी ने सोचा कि इस बार वह जा कर उन लोगों की बातें सुनेगी. लौट कर आए 2 लड़के उतनी मुस्तैदी से उस की निगरानी कर भी नहीं रहे थे और ऐसा करना स्वाभाविक भी था, क्योंकि वे लोग निबट चुके थे. बस, फिर क्या था सोनी निढाल पड़े दोनों लड़कों की आंख बचा कर कमरे में अचानक घुस गई और जो देखा उस के लिए बिलकुल अचंभित करने वाला था. इस से पहले न सोनी ने ऐसा कुछ देखा था और न ही ऐसा कुछ सोच सकी थी लेकिन निर्वस्त्र तो वह खुद को भी नहीं देख सकती थी, तो फिर अपनी सहेली पूजा को. वह बाहर भागी लेकिन उस की आंखों में एक खौफ था, नंगेपन का खौफ, बाहर कमरे में लड़के उसे दबोच चुके थे और इस से पहले कि वह कुछ कहती या करती, पूजा कपड़े पहन कर आ गई थी और बिना कुछ कहे उस का हाथ पकड़ कर बाहर की ओर चल दी थी.

पूजा थकी हुई जरूर लग रही थी लेकिन लंबे, कसरती, खिलाड़ी बदन से अभी भी एकदो लड़कों से वह बिस्तर पर निबट सकती थी. लंबे समय के अभ्यास से उस ने अच्छा स्टैमिना प्राप्त कर लिया था. रास्ते में सोनी कुछ बोल नहीं रही थी और न ही पूजा से आंखें मिला पा रही थी. गलती पूजा ने की थी, शर्म सोनी को आ रही थी. न जाने सोनी में कैसे यह एहसास जाग गया था कि वह कुछ ऐसा देख चुकी है जो उसे नहीं देखना चाहिए था. नहीं जानते हुए भी वह उतने बेबाक ढंग से अपनी सहेली पूजा की ओर नहीं देख पा रही थी. जैसी उस की आदत थी लेकिन पूजा के पास वक्त कम था, थोड़ी ही देर में सोनी का घर आ जाता और न जाने सोनी अपने पापामम्मी के सामने अपनी कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करती इसलिए उसे रास्ते में ही समझा देना जरूरी था. बात की शुरुआत करते हुए पूजा ने कहा, ‘‘तुम ने जो भी देखा वह किसी को बताना, नहीं क्योंकि कोई इस बात को सही ढंग से समझेगा नहीं और हम लोगों का होस्टल से निकलना बंद हो जाएगा. जो लड़के मेरे साथ थे उन में से कोई भी कुछ नहीं पूछेगा लेकिन अगर तुम ने मुंह खोला, तो प्रश्नों की बौछार लगा दी जाएगी. चरित्र पर प्रश्न उठेगा, समाज की मर्यादा का प्रश्न उठेगा, घरपरिवार की इज्जत का प्रश्न उठेगा. इन सभी प्रश्नों के उत्तर सिर्फ हम लोगों को ही देने हैं, वीरेंद्र, गोपी व राजू को नहीं. उन से कोई कुछ नहीं पूछेगा,’’ सोनी सिर्फ सुने जा रही थी, कुछ बोल नहीं रही थी.

सोनी घर पर भी चुप ही रही परंतु पूरे वाकये में कुछ न कुछ गलत होते उस ने देखा था, ऐसा उसे लग रहा था. दिन बीतने के साथसाथ अब पूजा के लिए एक नई मुसीबत शुरू हो गई थी कि सोनी उस किस्से के बारे में बारबार पूछती रहती थी और नहीं बताने की सूरत में उसे एक दबी हुई धमकी दे डालती थी कि वह अपने मातापिता से कह कर इसे समझने की कोशिश करेगी. एक दिन पूजा ने झल्ला कर पूछ डाला, ‘‘क्या समझने की कोशिश करेगी अपने मांबाप से,’’ पूजा ने थप्पड़ उठाया था मारने को पर रुक गई. सोनी सहम गई थी परंतु उस ने कहा, ‘‘पूछूंगी कि तुम्हारे ऊपर वह लड़का क्यों सोया हुआ था और एक भी कपड़ा नहीं था तुम दोनों के बदन पर.’’

पूजा कांप गई थी यह सोच कर कि सोनी अपने मातापिता से अगर ऐसी बातें पूछेगी तो वे लोग फिर हमारे मातापिता से इस संबंध में बात करेंगे. फिर सीमा के मातापिता तक भी बात पहुंचेगी. इतना सब सोच कर पूजा का गुस्सा ठंडा हो गया. उस ने सोनी को समझाया और रेस्तरां ले गई. सोनी को इतना तो समझ में आ गया कि इस तरह के सवाल पूजा से पूछने पर वह उसे होटल या रेस्तरां जरूर ले जाएगी. सोनी के लिए यह वाकेआ एक खेल बनता जा रहा था पर वह नहीं समझ रही थी कि यह खेल कितना खतरनाक हो सकता है. अब सोनी के दिमाग में यह बात आने लगी कि जब पूजा नहीं चाहती कि उस ने जो देखा है, किसी से कहे, तो सीमा और वे लड़के जो उस दिन कमरे में थे, भी नहीं चाहेंगे कि उस ने जो देखा है वह किसी से कहे. इस बात को आजमाने के लिए सोनी कभी सीमा से और कभी उन लड़कों से यही कहती और बदले में रेस्तरां या होटल जाती, बाइक पर घूमती. अनजाने में सोनी ब्लैकमेलिंग का खतरनाक खेल खेलने लगी थी.

पूजा और सीमा अब सोनी की धमकियों से तंग आ चुकी थीं. इस बीच उस दृश्य से भी ज्यादा रोमांचक दृश्यों को अंजाम दे चुकी थीं पूजा और सीमा अनेक कमरों में. फिर उसी एक खास दृश्य का उन लोगों के लिए क्या अर्थ रह जाता था, लेकिन सोनी ने तो सिर्फ एक ही दृश्य देखा था इसलिए वह उसी से चिपकी थी. पूजा से ज्यादा नजदीक थी सोनी, सीमा के साथ बातचीत हुआ करती थी सोनी की पर सीमा पूजा की सहेली थी. पूजा सोचती थी, कोई अन्य इस तरह उसे ब्लैकमेल कर रहा होता तो उसे समझाती पर अपनी सहेली सोनी का वह क्या करे. अपने तथाकथित प्रेमियों से भी इस का जिक्र उस ने किया था और एक दिन वह हादसा हुआ जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. पूजा ने अपने तथाकथित प्रेमियों से कहा कि वे लोग सोनी को किसी भी तरह से मनवा लें कि वह अब कभी भी इस बात का जिक्र नहीं करेगी परंतु सोनी इस बात को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही थी. पूजा को इस बात के लीक होने से डर था कि उसे मिली हुई आजादी छिन जाएगी जो उसे कतई मंजूर नही था. वह स्वच्छंद रहना चाहती थी, साधारण लड़की की तरह जिंदगी जीना उसे पसंद नहीं था. सोनी को पूजा इसलिए एक असाधारण लड़की में तबदील कर देना चाहती थी. बस क्या था पूजा के प्रेमियों ने मतलब यही निकाला कि सोनी को सबक सिखाना है किसी भी कीमत पर.

एक दिन शाम को वह लड़के सोनी को चौकलेटस्नैक्स वगैरा दे कर समझाने की कोशिश करते रहे परंतु सोनी न समझी. उसे समझ में नहीं आया कि जिन लड़कों के साथ वह बाइक पर घूमती है, वे उस को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं. पूजा के प्रेमियों को किसी नासमझ लड़की को सैक्स संबंधों के बारे में समझाने, समाज पर उस का असर, मांबाप पर उस का प्रभाव, को तफसील से समझाने की सलाह तो थी नहीं, उजड्ड गंवार की तरह उन का व्यवहार था. सोनी बारबार यह जानना चाहती थी कि पूजा और सीमा के साथ उन्होंने होटल के बंद कमरे में ऐसा क्या किया कि आज उसे यहां सुनसान जगह पर बुला कर इतना समझायाबुझाया जा रहा है. बहुत मुमकिन था कि अगर पूजा और सीमा उन लड़कों के साथ जो जिस्मानी रिश्ता कायम करती थीं, उसे सोनी को खुल कर समझा दिया जाता तो शायद सोनी को बहुत कुछ खुदबखुद समझ आ जाता और वह इतनी भी नासमझ नहीं थी, आखिर सयानी हो चुकी थी. एक मनोवैज्ञानिक तरीका होना चाहिए सैक्स से अनभिज्ञ ऐसी लड़कियों को समझाने का और खासकर ऐसी स्थिति में तो बहुत ही सावधानी की जरूरत होती है परंतु वे मूढ़मगज लड़के क्या जानें, बस, एक ही भाषा वे जानते थे, शक्ति प्रदर्शन और डराने की भाषा.

इधर सोनी जो उन लोगों से हिलीमिली हुई थी उन लोगों की बात को गंभीरता से नहीं ले रही थी और साथ ही साथ सोनी जैसे यह नहीं समझ पाई थी कि 2 नंगे जिस्म एकदूसरे से लिपटे हुए क्यों थे, उसी तरह यह भी नहीं समझ पाई थी कि उसे भी नंगा किया जा सकता है और पूजा और सीमा के साथ जो वे लड़के करते आ रहे हैं वह उस के साथ भी हो सकता है. इसी तरह वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि सैक्स अगर गहराई तक उतर जाए तो फर्क पड़ता है, लड़के और लड़की दोनों को. लड़कों को बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी सोनी से, वह तो चूंकि पूजा ने कहा था कि सोनी को सबक सिखा दें इसलिए इतनी मशक्कत की जा रही थी. कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब एकएक कर लड़के सोनी को सैक्स की गहराई समझाते रहे वह भी वहशियों की तरह. पहले तो सोनी के मुंह को जबरन बंद कर दिया गया. उस के बाद सोनी के जिस्म से एकएक कर कपड़े उतार दिए गए और उसे जमीन पर लिटा कर वीरेंद्र के 2 रंगरूटों ने उस के हाथों और पांवों को पकड़ लिया. अब सोनी बोल नहीं पा रही थी, बोल रही थी सिर्फ उस की आंखें, जो आंसुओं से डबडबाई हुई थीं, पहले वीरेंद्र ने उसे सैक्स की गहराई को समझाया. फिर उस ने सोनी के पैरों को दबोच कर रखा. दूसरे ने भी वही किया और तीसरे ने.

सोनी की आंखें भी बंद हो चुकी थीं, खून से लथपथ जांघों के बीच सोनी ने असहनीय दर्द महसूस किया था और बेहोश हो गई थी, लड़के उस के मुंह की पट्टी खोल कर उसे अकेला छोड़ चले गए थे. लड़के बताए गए रेस्तरां पहुंच गए, जहां पूजा और सीमा उन का इंतजार कर रही थीं. पूजा ने पूछा था कि क्यों इतनी देर हो गई उन लोगों को तो वीरेंद्र ने घमंड से पूजा और सीमा को कहा कि अब सोनी कभी भी उन बातों को नहीं दोहराएगी, उसे सबक सिखा चुके हैं हम. सोनी को जब होश आया तो वह खुद को क्षतविक्षत महसूस कर रही थी. नंगा शरीर, जांघों के बीच से रिसता खून, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पूजा और सीमा ने इतनी बड़ी साजिश क्यों की, उस के साथ. क्यों उस के शरीर को लड़कों से नुचवा दिया. सिर घूम रहा था सोनी का, ये सब सोच कर. किसी तरह उस ने पास रखे कपड़े पहने और बहुत आहिस्ताआहिस्ता चलने की कोशिश करने लगी.

रात होतेहोते जब वह किसी तरह घर पहुंची तो उस की मां बहुत चिंतित नजर आ रही थीं. सोनी के पापा अभी तक औफिस से लौटे नहीं थे. सोनी की मां ने जब सोनी को देखा तो वह डर गईं. सोचने लगीं कि उस की मासूम सी बच्ची के साथ न जाने कौन सा हादसा हो गया. सोनी को वे उस के कमरे में ले गईं, उसे पानी पीने को दिया, फिर उस के सिर को सहलाते हुए पूछा कि क्या बात है, क्या हुआ, सबकुछ सचसच बताओ बेटी. सोनी समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ जो हुआ वह क्या था. ऐसा उस ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस के साथ जो हुआ वह सब उसे अपनी मां और पापा को बताना पड़ेगा. हालांकि दर्द से वह लगभग कराह रही थी. उस ने अपनी मां को बाथरूम में जा कर दिखाया, देखते ही उस की मां बेहोश हो गईं. सोनी ने हिम्मत कर अपनी मां के सिर पर पानी के छींटें दिए, सिर सहलाया, तब जा कर कहीं उस की मां होश में आई और होश में आते ही रोने लगीं, पूरा वृत्तांत सुनने के बाद सोनी की मां तो लगभग अर्द्धमूर्छित अवस्था में पहुंच चुकी थीं.

किसी तरह सोनी को फर्स्टऐड दे कर, उसे आराम करने को कह, दूसरे कमरे में निढाल सी पड़ गई थीं सोनी की मां. डाक्टर को दिखाने की खबर सोनी के भविष्य को बदनुमा न बना दे, यही सोच रही थीं सोनी की मां. अगर इस बात की जरा भी भनक किसी को लगी तो कौन करेगा सोनी से ब्याह? इसी तरह के खयाल सोनी की मां के मन में चल रहे थे कि कौल बेल बजी. सोनी की मां की तंद्रा टूटी. सोनी की मां ने जा कर दरवाजा खोला, सोनी के पापा आ गए थे, आते ही सोनी के बारे में पूछा, सोनी की मां ने कहा कि वह अपने कमरे में सो गई है. सोनी की मां ने सोनी के साथ हुए हादसे को छिपा लिया था. बेटी के साथ हुए गैंगरेप को शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे सोनी

के पिता. रात को अपनी मां से हुई बातचीत से सोनी इतना तो समझ चुकी थी कि उस ने पूजा और सीमा के साथ मिल कर अनजाने में ही सही ऐसा गलत कदम उठाया है कि जिस की भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं. सोनी सोच रही थी कि उस के साथ जो कुछ हुआ और उस की मां ने जो कुछ बताया, इस से तो यही नतीजा निकलता है कि मैं बहुत बुरी लड़की हूं, मेरी सभी सहेलियां बुरी हैं, उन लोगों से मुझे दूरी बना कर रखनी चाहिए थी, पर ऐसा करने पर मेरी पढ़ाई, कहीं जाना, ऐग्जाम देना सब बंद हो जाता. पागल की तरह सोचे जा रही थी सोनी.

दूसरे दिन घर पर सन्नाटा छाया रहा, न जाने सोनी की मां ने सोनी के पिता को क्या कह दिया था इस संबंध में कि वे सिर्फ सोनी के कमरे के बाहर ही एक मिनट रुक कर औफिस चले गए. सोनी घर से दोपहर के वक्त चुपचाप, बिना कुछ बोले निकल कर चल दी और पास ही के थाने में जा कर थानेदार को पूरा वृत्तांत सुना दिया. हालांकि सोनी की कहानी उस की जबानी सुनते हुए थानेदार के साथसाथ अन्य पुलिसकर्मी भी मजा ले रहे थे.

पूरी बात सुनने के बाद थानेदार ने पूछा कि जब घटना हुई उस वक्त तुम ने थाने में आ कर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई. जवाब में सोनी कुछ न बोल सकी सिर्फ इतना ही कहा कि मैं आने की हालत में नहीं थी. थानेदार ने उसे जाने को कहा और कार्यवाही करने की बात कही. सोनी घर चली गई. पूजा और सीमा ने उसे इन दोचार दिनों में कभी कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की. वीरेंद्र और उस के साथियों ने हालांकि एक बार सोनी को थाने से निकलते देखा था.

वीरेंद्र एक अमीरजादा था, ऐयाशी के साथसाथ वह शराब और शबाब का भी आदी था. अपनी पहुंच लगा कर वह साफ बच निकला. लिहाजा, मुकदमा क्षेत्राधिकार के बिंदु पर दर्ज नहीं किया गया और सोनी को थानेदार ने बतलाया कि घटना जहां हुई थी उसी इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज हो सकता है और इतने विलंब से तो उस इलाके के भी थाने में मुकदमा अब दर्ज नहीं होगा. सोनी बिना घर में बताए इस थाने से उस थाने के चक्कर लगाती रही परंतु जैसा पुलिस का हाल है कि रसूख वालों की ही वह सुनती है औरों की नहीं इसलिए सोनी कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवा पाई बल्कि थानेदार ने उसे ही भलाबुरा कहा और यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि वह एक मनगढ़ंत घटना बयान कर रही है जैसा उस ने बताया वैसा कुछ हुआ ही नहीं. जबकि सोनी की मां चाहती थीं कि वह फिर से सामान्य जिंदगी के लिए खुद को तैयार करे और इस के लिए वे अपनी बेटी को समझाती रहती थीं कि वह घर से निकले. कहीं अगर जाना भी हो तो उसे साथ ले ले. परंतु सोनी पर इस का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वह सजा दिलवाना चाहती थी वीरेंद्र और उस के साथियों को और साथ में पूजा और सीमा को भी. न्याय न पाने का सदमा उसे अपने साथ हुए हादसे से भी ज्यादा लगा. उस ने उस रात एक कागज पर लिखा, ‘मैं बहुत बुरी लड़की हूं. वीरेंद्र और उस के साथी हर सीमा को लांघ चुके थे. मेरे मां और पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या बुरा और क्या अच्छा है.

मुझे पूजा और सीमा ने कई गलत रास्ते दिखाए लेकिन मैं ने उन्हें नहीं अपनाया पर न जाने उस दिन पूजा और सीमा ने ऐसा क्या कह दिया वीरेंद्र और उस के साथियों को कि मैं उस दिन के हादसे के बाद वैसी नहीं हूं जैसी मैं थी अगर उन लोगों को पुलिस सजा देती तो शायद मुझे जीने की कोई वजह मिल जाती. तब मैं यह साबित कर सकती कि मैं निर्दोष हूं पर ऐसा नहीं हुआ. अब जीने की कोई वजह मेरे पास नहीं है, मैं अपने मांपापा को समाज में शर्मिंदा होते नहीं देख सकती. इसलिए मैं हमेशा के लिए जा रही हूं… सोनी.’ सोनी की लाश उस के कमरे के पंखे से झूल रही थी. पहले तो पुलिस ने खोजबीन में सक्रिय होने की तत्परता दिखाई पर सुसाइड नोट पढ़ने के बाद सोनी के मातापिता ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई हत्यारों को पकड़वाने में. हत्यारे तो अभी भी खुले घूम रहे थे. सोनी के मातापिता अपनी इज्जत को सरेआम नीलाम होते नहीं देखना चाहते थे. पत्थर रख लिया था दोनों ने अपने सीने पर और खून का घूंट पी कर भी चुप थे. पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं थी कि अनुसंधान करे कि सोनी ने क्यों खुदकुशी की और सोनी को खुदकुशी करने के लिए मजबूर करने वाले हत्यारों को खोज निकाले और सजा दे.

शायद सोनी के मातापिता परिवार की इज्जतप्रतिष्ठा को दावं पर नहीं लगाना चाहते थे इसलिए वे भी खामोश थे अपनी बेटी की तरह, जो खामोश हो चुकी थी हमेशा के लिए

अपनी खातिर : दो नावों की सवारी कर रही शिखा के साथ क्या हुआ

जिस शादी समारोह में मैं अपने पति के साथ शामिल होने आई, उस में शिखा भी मौजूद थी. उस का कुछ दूरी से मेरी तरफ नफरत व गुस्से से भरी नजरों से देखना मेरे मन में किसी तरह की बेचैनी या अपराधबोध का भाव पैदा करने में असफल रहा था.

शिखा मेरी कालेज की अच्छी सहेलियों में से एक है. करीब 4 महीने पहले मैं ने मुंबई को विदा कह कर दिल्ली में जब नया जौब शुरू किया, तो शिखा से मुलाकातों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया था.

जिस शाम मैं पहली बार उस के औफिस के बाहर उस से मिली, विवेक भी उस के साथ था. वह घंटे भर हम दोनों सहेलियों के साथ रहा और इस पहली मुलाकात में ही मैं उस के शानदार व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई थी.

‘‘क्या विवेक तुझ से प्यार करता है,’’ उस के जाते ही मैं ने उत्तेजित लहजे में शिखा से यह सवाल पूछा था.

‘‘हां, और मुझ से शादी भी करना चाहता है,’’ ऐसा जवाब देते हुए वह शरमा गई थी.

‘‘यह तो अच्छी खबर है, पर यह बता कि रोहित तेरी जिंदगी से कहां गायब हो गया है?’’ मैं ने उस के उस पुराने प्रेमी के बारे में सवाल किया जिस के साथ घर बसाने की इच्छा वह करीब 6 महीने पहले हुई हमारी मुलाकात तक अपने मन में बसाए हुए थी.

आंतरिक कशमकश दर्शाने वाले भाव फौरन उस की आंखों में उभरे और उस ने संजीदा लहजे में जवाब दिया, ‘‘वह मेरी जिंदगी से निकल गया था, पर…’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘मैं विदेश जा कर बसने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं रखती, पर वह मेरे लाख मना करने के बावजूद अपने जीजाजी के साथ बिजनैस करने 3 महीने पहले अमेरिका चला गया था. उस समय मैं ने यह मान लिया था कि हमारा रिश्ता खत्म हो गया है.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘उस का न वहां काम बना और न ही दिल लगा, तो वह 15 दिन पहले वापस भारत लौट आया.’’

‘‘और रोहित के वापस लौटने तक तू विवेक के प्यार में पड़ चुकी थी.’’

‘‘हां.’’

‘‘तो अब तू रोहित को सारी बातें साफसाफ क्यों नहीं बता देती?’’

‘‘यह मामला इतना सीधा नहीं है, नेहा. मैं आज भी अपने दिल को टटोलने पर पाती हूं कि रोहित के लिए वहां प्यार के भाव मौजूद हैं.’’

‘‘और विवेक से भी तुझे प्यार है?’’

‘‘हां, मैं उस के साथ बहुत खुश रहती हूं. उस का साथ मुझे बहुत पसंद है, पर…’’

‘‘पर कोई कमी है क्या उस में?’’

‘‘तू तो जानती ही है कि रोमांस को मैं कितना ज्यादा महत्त्व देती हूं. मुझे ऐसा जीवनसाथी चाहिए जो मेरे सारे नाजनखरे उठाते हुए मेरे आगेपीछे घूमे, पर विवेक वैसा नहीं करता. उस का कहना है कि वह मेरे साथ तो चल सकता है, पर मेरे आगेपीछे कभी नहीं घूमेगा. वह चाहता है कि मैं अपने बलबूते पर खुश रहने की कला में माहिर बनूं.’’

उस के मन की उलझन को मैं जल्दी ही समझ गई थी. रोहित अमीर बाप का बेटा है और शिखा पर जान छिड़कता है. रोहित उस की जिंदगी से इतनी देर के लिए दूर नहीं हुआ था कि वह उस के दिल से पूरी तरह निकल जाता.

दूसरी तरफ वह विवेक के आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित है, पर उस के साथ जुड़ कर मिलने वाली सुरक्षा के प्रति ज्यादा आश्वस्त नहीं है. वह अपने पुराने प्रेमी को अपनी उंगलियों पर नचा सकती है, पर विवेक के साथ ऐसा करना उस के लिए संभव नहीं.

हम दोनों ने कुछ देर रोहित और विवेक के बारे में बातें की, पर वह किसी एक को भावी जीवनसाथी चुनने का फैसला करने में असफल रही थी.

मेरा ममेरा भाई कपिल प्रैस रिपोर्टर है. उस के बहुत अच्छे कौंटैक्ट हैं. मैं ने उस से कहा कि विवेक की जिंदगी के बारे में खोजबीन करने पर उसे अगर कोई खास बात मालूम पड़े, तो मुझे जरूर बताए.

उस ने अगले दिन शाम को ही मुझे यह चटपटी खबर सुना दी कि विवेक का सविता नाम की इंटीरियर डिजाइनर के साथ पिछले 2 साल से अफेयर चल रहा था, पर फिलहाल दोनों का मिलना कम हो गया था.

मैं ने यह खबर उसी शाम शिखा के घर जा कर उसे सुनाई, तो वह परेशान नजर आती हुई बोली थी, ‘‘यह हो सकता है कि अब उन दोनों के बीच कोई चक्कर न चल रहा हो, पर मैं फिल्मी हीरो से आकर्षक विवेक की वफादारी के ऊपर आंखें मूंद कर विश्वास नहीं कर सकती हूं. क्या गारंटी है कि वह कल को इस पुरानी प्रेमिका के साथ फिर से मिलनाजुलना शुरू नहीं करेगा या कोई नई प्रेमिका नहीं बना लेगा?’’

अगले दिन उस ने विवेक से सविता के बारे में पूछताछ की, तो उस ने किसी तरह की सफाई न देते हुए इतना ही कहा, ‘‘सविता के साथ अब मेरा अफेयर बिलकुल खत्म हो चुका है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, पर अगर तुम्हें मेरे प्यार पर पूरा भरोसा नहीं है, तो मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगा. किसी तरह का दबाव बना कर तुम्हें शादी करने के लिए राजी करना मेरी नजरों में गलत होगा.’’

अगले दिन शाम को मुझे लंबे समय बाद रोहित से मिलने का मौका मिला था. इस में कोई शक नहीं कि विवेक के मुकाबले उस का व्यक्तित्व कम आकर्षक था. वह शिखा की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था, पर उसे विवेक हंसा कर खुश नहीं कर पाया.

उस रात औटोरिकशा से घर लौटते हुए शिखा ने अपने दिल की उलझन मेरे सामने बयान की, ‘‘रोहित के साथ भविष्य सुरक्षित रहेगा और विवेक के साथ हंसतेहंसाते वक्त के गुजरने का पता नहीं चलता. रोहित के साथ की आदत गहरी जड़ें जमा चुकी है और विवेक जीवन भर साथ निभाएगा, ऐसा भरोसा करना कठिन लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि किस के हक में फैसला करूं.’’

वैसे उस ने जब भी मेरी राय पूछी, मैं ने उसे रोहित के पक्ष में शादी का फैसला करने की सलाह ही दी थी. उस के हावभाव से मुझे लगा भी कि उस का झुकाव रोहित को जीवनसाथी बनाने की तरफ बढ़ गया था.

करीब 3 दिन बाद शिखा ने फोन पर रोंआसी आवाज में मुझे बताया, ‘‘विवेक को किसी से रोहित के बारे में पता चल गया है. उस ने मुझ पर दो नावों में सवारी करने का आरोप लगाते हुए आज मुझ से सीधेमुंह बात नहीं की. मुझे लगता है कि वह मुझ से दूर जाने का मन बना चुका है.’’

‘‘इस में ज्यादा परेशान होने वाली बात नहीं, क्योंकि तू भी तो रोहित से शादी करने का मन काफी हद तक बना ही चुकी है,’’ मैं ने उसे हौसला दिया.

‘‘अब मेरा मन बदल गया है, नेहा. विवेक के दूर हो जाने की बात सोच कर ही मेरा मन बहुत दुखी हो रहा है. देख, रोहित ने एक बार मुझ से दूर जाने का फैसला कर लिया था, इसी कारण मैं उस के साथ रिश्ता तोड़ने में किसी तरह का अपराधबोध महसूस नहीं करूंगी. विवेक की गलतफहमी दूर करने में तू मेरी हैल्प कर, प्लीज.’’

‘‘ओके, मैं आज शाम उस से मिलूंगी,’’ मैं ने उसे ऐसा आश्वासन दिया था.

आगामी दिनों में विवेक के साथ अकेले मेरा मिलनाजुलना कई बार हुआ और इन्हीं मुलाकातों में मुझे लगा कि उस जैसे ‘जिओ और जीने दो’ के सिद्धांत को मानने वाले खुशमिजाज इंसान के लिए बातबात पर रूठने वाली नखरीली शिखा विवेक के लिए उपयुक्त जीवनसाथी नहीं है. इसी बात को ध्यान में रख इस मामले में मैं ने रोहित की सहायता करने का फैसला मन ही मन किया.

मैं अगले दिन शाम को रोहित से मिली और उसे शिखा का दिल जीत लेने के लिए एक सुझाव दिया, ‘‘मेरी सहेली खूबसूरत सपनों और रोमांस की रंगीन दुनिया में जीती है. अगर तुम उसे हमेशा के लिए अपनी बनाना चाहते हो, तो कुछ ऐसा करो जो उस के दिल को छुए और वह तुम्हारे साथ शादी करने के लिए झटके से हां कहने को मजबूर हो जाए.’’

मेरी सुझाई तरकीब पर चलते हुए अगले सप्ताह अपने जन्मदिन की पार्टी में रोहित ने शिखा को पाने का अपना लक्ष्य पूरा कर लिया.

बड़े भव्य पैमाने पर उस ने बैंकट हाल में अपनी बर्थडे पार्टी का आयोजन किया, जिस में शिखा वीआईपी मेहमान थी. रोहित के कोमल मनोभावों से परिचित होने के कारण उस के परिवार का हर सदस्य शिखा के साथ प्रेम भरा व्यवहार कर रहा था.

बीच पार्टी में रोहित ने पहले सब मेहमानों का ध्यान आकर्षित किया और फिर शिखा के सामने घुटने के बल बैठ कर बड़े रोमांटिक अंदाज में उसे प्रपोज किया, ‘‘तुम जैसी सर्वगुणसंपन्न रूपसी अगर मुझ से शादी करने को ‘हां’ कह देगी, तो मैं खुद को संसार का सब से धन्य इंसान समझूंगा.’’

वहां मौजूद सभी मेहमानों ने बड़े ही जोशीले अंदाज में तालियां बजा कर शिखा पर ‘हां’ कहने का दबाव जरूर बनाया, पर हां कराने में रोहित के हाथ में नजर आ रही उस बेशकीमती हीरे की अंगूठी का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा, जिसे मैं ने ही उसे खरीदवाया था.

शिखा ने रोहित के साथ शादी करने का फैसला कर लिया, तो औफिस में बहुत ज्यादा काम होने का बहाना बना कर मैं ने उस से मिलना बंद कर दिया. मैं विवेक के साथ लगातार हो रही अपनी मुलाकातों की चर्चा उस से बिलकुल नहीं करना चाहती थी.

विवेक को मैं अपना दिल पहले ही दे बैठी थी, पर अपनी भावनाओं को दबा कर रखने को मजबूर थी. चूंकि अब शिखा बीच में नहीं थी, इसलिए मुझे उस के साथ दिल का रिश्ता मजबूत बनाने में किसी तरह की झिझक नहीं थी.

विवेक के दिल की रानी बनने के लिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मैं उस के मन को समझने लगी थी. मैं जैसी हूं, अगर वैसी ही उस के सामने बनी रहूंगी, तो उसे ज्यादा पसंद आऊंगी, यह महत्त्वपूर्ण बात मैं ने अच्छी तरह समझ ली थी. उसे किसी तरह बदलने की कोशिश मैं ने कभी नहीं की. उस की नाराजगी की चिंता किए बिना जो मन में होता, उसे साफसाफ उस के मुंह पर कह देती. हां, यह जरूर ध्यान रखती कि मेरी नाराजगी बात खत्म होने के साथसाथ ही विदा हो जाए.

मेरी समझदारी जल्दी ही रंग लाई. जब विवेक की भी मुझ में रुचि जागी, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

एक दिन मैं ने आंखों में शरारत भर कर उस का हाथ पकड़ा और रोमांटिक लहजे में कह ही दिया, ‘‘अब तुम से दूर रहना मेरे लिए संभव नहीं है, विवेक. तुम अगर चाहोगे, तो मैं तुम्हारे साथ शादी किए बिना ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में भी रहने को तैयार हूं.’’

विवेक ने मेरे हाथ को चूम कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘मुझे इतनी अच्छी तरह समझने वाली तुम जैसी लड़की को मैं अपनी जीवनसंगिनी बनाने से बिलकुल नहीं चूकूंगा. बोलो, कब लेने हैं बंदे को तुम्हारे साथ सात फेरे?’’

शादी के लिए उस की हां होते ही मैं ने शिखा वाली मूर्खता नहीं दोहराई. अपने मम्मीपापा को आगामी रविवार को ही उस के मातापिता से मिलवाया और सप्ताह भर के अंदर शादी की तारीख पक्की करवा ली.

शिखा और रोहित की शादी से पहले विवेक और मेरी शादी के कार्ड छपे थे. मैं अपनी शादी का कार्ड देने शिखा के घर गई, तो उस ने सीधे मुंह मुझ से बात नहीं की.

मैं ने उसी दिन मन ही मन फैसला किया कि भविष्य में शिखा के संपर्क में रहना मेरे हित में नहीं रहेगा. मैं ने विवेक को हनीमून के दौरान समझाया, ‘‘शिखा का होने वाला पति रोहित नहीं चाहता है कि कभी वह तुम से कैसा भी संपर्क रखे. उस की खुशियों की खातिर हम उस से नहीं मिला करेंगे.’’

विवेक ने मेरी इस बात को ध्यान में रखते हुए शिखा से कभी, किसी माध्यम से संपर्क बनाने की कोशिश नहीं की.

मैं इस पूरे मामले में न खुद को कुछ गलत करने का दोषी मानती हूं, न किसी तरह के अपराधबोध की शिकार हूं. मेरा मानना है कि अपनी खुशियों की खातिर पूरी ताकत से हाथपैर मारने का हक हमसब को है.

शिखा ने फैसला लेने में जरूरत से ज्यादा देरी की वजह से विवेक को खोया. वह नासमझ चील जो अपने मनपसंद शिकार पर झपट्टा मारने में देरी करे, उस के हाथ से शिकार चुनने का मौका छिन जाना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है.

शिखा की दोस्ती को खो कर विवेक जैसे मनपसंद जीवनसाथी को पा लेना मैं अपने लिए बिलकुल भी महंगा सौदा नहीं मानती हूं. तभी उस से ‘हैलोहाय’ किए बिना विवाह समारोह से लौट आने पर मेरे मन ने किसी तरह का मलाल या अपराधबोध महसूस नहीं किया था.

महिलाओं की सुरक्षा पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की चिंता जाहिर, पर हासिल क्या?

कोलकाता में हौस्पिटल के भीतर एक ट्रेनी डाक्टर की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या ने देश भर के डॉक्टर्स को आंदोलित कर रखा है. लम्बे समय तक डाक्टर्स हड़ताल पर रहे. ये और बात कि देश भर में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते इलाज ना मिलने पर अनेक मरीज असमय मौत के मुँह में समा गए. उनको समय पर इलाज मिल जाता तो शायद जान बच जाती मगर डॉक्टर्स किसी मरीज को देखने के लिए राजी ही नहीं थे. लाखों ऑपरेशन निलंबित हुए. कैंसर तक के मरीजों को अस्पतालों से लौटा दिया गया.

 

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ऐसा भी नहीं हुआ कि डाक्टर्स की हड़ताल के चलते देश में महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार और हत्या की घटनाएं रुक गयीं. बिलकुल नहीं. वे उसी रफ़्तार से जारी रही जैसे पहले हो रही थीं. आगे भी ऐसे ही होती रहेंगी, क्या निर्भया केस के बाद समाज में महिलाओं के प्रति सोच में कोई बदलाव आया? क्या महिलाओं के प्रति अपराध का ग्राफ कम हो गया? नहीं, उलटा बढ़ गया क्योंकि कानून व्यवस्था को मजबूत करने की नीयत भारतीय जनता पार्टी सरकार में नहीं है. अपराध नहीं होंगे तो गैर भाजपाई सरकारों के खिलाफ जनता को भड़काएंगे कैसे? उकसायेंगे कैसे? सड़क पर कैसे लाएंगे?

कोलकाता में हुई हालिया घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी को ममता सरकार को हिलाने का बहुत बढ़िया मौक़ा हाथ लग गया है और वह लगी है ममता सरकार के खिलाफ देश भर की जनता को सड़क पर उतारने में. ममता बनर्जी की उन दो चिट्ठियों के जवाब का कोई अता-पता नहीं जो उन्होंने बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों पर कड़ी सजा की मांग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी थीं.

कोलकाता की घटना पर चीखने चिल्लाने, आंदोलन करने या अस्पतालों को बंद कर देने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा. नतीजा तब निकलेगा जब कानून को लागू करने वाले और अपराधी को दंड देने वाले कार्यों में तेजी और सख्ती आएगी. इसके लिए केंद्र सरकार और न्यायपालिका दोनों जिम्मेदार हैं.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कोलकाता में ट्रेनी डाक्टर की हत्या पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट द्वारा और दिल्ली में भारत मंडपम में जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर भी इसको लेकर न्यायपालिका को आड़े हाथों लिया. उन्होंने त्वरित न्याय सुनिश्चित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि जब बलात्कार जैसे मामलों में कोर्ट का फैसला एक पीढ़ी गुजर जाने के बाद आता है तो न्याय की प्रक्रिया में संवेदनशीलता नहीं बचती.

द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि गाँव के लोग तो न्यायपालिका को दैवीय मानते हैं क्योंकि उन्हें वहीं न्याय मिलता है. एक कहावत भी है – भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं. मगर सवाल है कि कितनी देर? हमें इस बारे में सोचना होगा. उन्होंने जोर देते हुए कहा – जब तक किसी पीड़ित को न्याय मिलता है तब तक तो उसके चेहरे से मुस्कान गायब हो चुकी होती है. कई मामलों में उसकी जिंदगी तक ख़त्म हो जाती है. इसलिए हमें इस बारे में गहराई से विचार करने की जरूरत है. इसके अलावा उन्होंने अदालतों में लंबित केसेस का मामला भी उठाया.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निशाने पर दरअसल चीफ जस्टिस औफ़ इंडिया जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ थे. जिन्होंने पिछले समय में कई ऐसे फैसले दिए जो भाजपा को काफी नुकसानदेह साबित हुए, खासतौर पर इलेक्टोरल बांड्स के मामले में तो जैसी सख्ती उन्होंने दिखाई उसने भाजपा के चेहरे पर चढ़ा ईमानदारी का मुखौटा ही खींच कर फेंक दिया. खैर, राष्ट्रपति मुर्मू ने जो चिंता जाहिर की वह उचित है पर यदि उनकी मंशा सिर्फ चीफ जस्टिस की खिंचाई का था, तब देश की जनता को कुछ हासिल नहीं होगा, भले चिंता और चिंतन लगातार होते रहें.

सच तो यह है कि बलात्कार-हत्या जैसे अपराधों पर सख्त कानून लाये जाने की आवश्यकता है. कानून बनाना केंद्र सरकार का काम है. अब अपनी सरकार को कुछ ना कह कर यदि राष्ट्रपति सारा दोष न्यायपालिका के सिर मढ़ें तो नतीजा सिफर ही रहेगा. इस मामले में कोलकाता की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिलकुल सही और सटीक मांग केंद्र सरकार के सामने रखी है उन्होंने महिलाओं के साथ रेप और हत्या जैसे घृणित अपराधों पर ऐसे कानून बनाने की मांग की, जिससे एक नजीर पेश हो. ममता ने कहा है – मैं प्रधानमंत्री से अनुरोध करती हूं कि बलात्कार और हत्या जैसे घृणित अपराधों पर एक सख्त केंद्रीय कानून और दंड पर विचार करें, जिससे समाज में एक नजीर पेश हो. इन मामलों में ट्रायल प्राधिकरण द्वारा मामलों के निपटाने के लिए एक विशिष्ट समय सीमा का अनिवार्य प्रावधान किया जाए.

न्यायालयों में पेंडिंग केस और बैकलौग वाकई एक बड़ी चुनौती है जिसकी ओर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चीफ जस्टिस का ध्यान खींचा. उन्होंने कहा कि न्यायालयों में तत्काल न्याय मिल सके इसके लिए हमें मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाने की संस्कृति को खत्म करना होगा. इस देश के सारे जजों की जिम्मेदारी है कि वे न्याय की रक्षा करें. राष्टपति ने कहा कि कोर्टरूम में आते ही आम आदमी का स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है. उन्होंने इसे ‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ का नाम दिया और सुझाव दिया कि इसकी स्टडी की जाए.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत मंडपम के मंच से बोलते हुए राष्ट्रपति मुर्मू की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए साफ़ किया कि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को कम करने के लिए एक ठोस योजना बनायी जा चुकी है. इस योजना के तीन मुख्य चरण हैं. पहले चरण में जिला स्तर पर मामलों के प्रबंधन के लिए समितियों का गठन किया जाएगा. ये समितियां लंबित मामलों और रिकार्ड्स की स्थिति की जांच करेंगी. दुसरे चरण में उन मामलों का निपटारा किया जाएगा जो दस से तीस वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं. तीसरे चरण में जनवरी 2025 से जून 2025 तक दस वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों की सुनवाई की जाएगी. इसके लिए विभिन्न तकनीकी और डाटा प्रबंधन प्रणालियों की जरूरत होगी.

सीजेआई ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं में रिक्त पदों को भरने पर जोर दिया. उन्होंने सभी राज्यों की न्यायिक सेवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर की भर्ती प्रक्रिया के विचार का समर्थन किया और कहा कि अब समय आ गया है कि न्यायिक सेवा में भर्ती करके राष्ट्रीय एकता के बारे में सोचा जाए जो “क्षेत्रवाद और राज्य-केंद्रित चयन की संकीर्ण घरेलू दीवारों” को पार करती है.

सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतों में जो बड़ी संख्या में जजों के पद खाली पड़े हैं उन रिक्तियों को समय पर भरा जाए. उन्होंने बताया कि जिला स्तर पर न्यायिक कर्मियों की रिक्तियां 28 प्रतिशत और गैर न्यायिक कर्मियों की रिक्तियां 27 प्रतिशत है. अदालतों में केसेस का निपटारा और फाइलिंग अनुपात को बढ़ाना कुशल कर्मियों पर निर्भर करता है.

अदालतों के बुनियादी ढाँचे में महिलाओं के लिए सुविधाएं बढ़ाने पर जोर देते हुए चीफ जस्टिस ने राष्ट्रपति का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि कहीं कहीं 60 से 70 प्रतिशत महिलाओं की नियुक्ति है मगर उनके लिए सुविधाएं मात्र 6.7 फ़ीसदी ही हैं. उन्होंने कहा कि अदालत में चिकित्सा सुविधाएं, क्रेच और ई-सेवा केंद्र व वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी तकनीकी परियोजनाएं खोलने पर ही न्याय तक पहुंच बढ़ेगी.

भारत मंडपम के मंच पर दिया राष्ट्रपति मुर्मू का बयान यह दर्शाता है कि वे महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर चिंतित हैं. लेकिन क्या सिर्फ बयानबाजी से देश के सड़े हुए सिस्टम में बदलाव लाया जा सकता है? जस्टिस चंद्रचूड़ अपनी तरफ से न्यायालय के कार्यों में तेजी लाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं मगर राजनीतिक स्तर पर नेताओं के बीच सिर्फ तूतूमैंमैं का खेल हो रहा है.

भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति में यह साफ़ हो चुका है कि उनकी पूरी कोशिश पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की है. खासकर जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री से मिलने आए थे, तभी से इस बात के पुख्ता संकेत मिलने लगे थे. हैरानी की बात है कि मणिपुर में औरतों पर हमले और उनकी नग्न परेड जैसे वीभत्स मामलों पर चुप्पी भाजपा में हमेशा चुप्पी छाई रही. राष्ट्रपति का भी कोई बड़ा बयान तब सामने नहीं आया. ममता बनर्जी को राजनीतिक रूप से मात देने में नाकाम रहने के बाद, भाजपा में कई लोग पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि अब “दीदी” बैकफुट पर दिखाई दे रही हैं. मगर केंद्रीय शासन तभी लागू किया जा सकता है जब संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए, केवल कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर समस्याएं होने के कारण संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार को नहीं हटाया जा सकता है.

कोलकाता की घटना पर राजनीतिक अवसर को भांपते हुए, राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल एक-दूसरे पर हमला करने के लिए कर रहे हैं. जबकि इस तरह के मुद्दों पर सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आना चाहिए ताकि अपराधियों को कठोर सजा मिले और न्याय सुनिश्चित हो सके. लेकिन देश में ऐसी घटनाओं पर राजनीतिक आक्रोश भी चुनिंदा रूप से व्यक्त किया जाता है. 2020 में जब हाथरस में एक दलित महिला के साथ गैंगरेप और मर्डर हुआ था, अधिकारियों ने उसके परिवार को बिना बताए रात के अंधेरे में उसका अंतिम संस्कार कर दिया. इस घटना पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने मोर्चा संभाला और हाथरस की यात्रा की. हालांकि उन्होंने कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुए रेप-मर्जर की निंदा तो की है, लेकिन उनमें से कोई भी अभी तक कोलकाता नहीं गया है. उन्हें समझना चाहिए कि विपक्ष में होकर भी उनमें बड़ी ताकत है कि वे पीड़ित को न्याय दिला सकने. अगर विपक्षी दलों ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों की रिहाई की निंदा नहीं की होती तो शायद सुप्रीम कोर्ट दोषियों की रिहाई रद्द नहीं करती.

कोलकाता केस में पीड़ित को न्याय दिलाने से ज्यादा भाजपा अपनी राजनीति चमकाने में लगी है. अगर भाजपा ने कोलकाता की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों का समर्थन नहीं किया होता, तो यह एक विपक्षी दल के रूप में अपने अस्तित्व को साबित नहीं कर पाती. गौरतलब है कि भारत में शायद किसी भी लोकतांत्रिक देश के मुकाबले सबसे सख्त रेप के खिलाफ कानून हैं. 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया मामले और न्यायमूर्ति वर्मा आयोग के गठन के बाद, निर्भया हेल्पलाइन (112) और साथ ही निर्भया फंड की स्थापना की गयी, मगर अफसोस की बात है कि 10 साल बाद भी, आधे से भी कम फंड का उपयोग किया गया, जो सत्ता में बैठे लोगों की कल्पना और इच्छाशक्ति दोनों की कमी को दर्शाता है. गौर कीजिए, आंकड़े खंगालिए कि भारत में आज तक जघन्य रेप केसेस के कितने आरोपियों को फांसी की सजा हुई?

जब ससुर लेता हो बहू का पक्ष

सासबहू की नोकझोंक के किस्से तो आम हैं. यह रिश्ता ऐसा है जिस में घर घर में महाभारत जारी है. सासबहू के बीच वर्चस्व की लड़ाई में बेटे और ससुर की बुरी गत बनती है. ये दोनों प्राणी निरीह गेहूं के दानों जैसे 2 पाटों के बीच पिसते रहते हैं. बेटा अगर मां का पक्ष लेता है तो बीवी नाराज और बीवी का पक्ष ले तो मां नाराज. ससुर भी पत्नी के डर से बहू के अच्छे कामों की तारीफ नहीं कर पाता. अधिकांश ससुर घर में बहू आने के बाद ज़्यादा समय ख़ामोशी ओढ़ कर बाहरी कमरे में अपना ठिकाना बना लेते हैं. भारतीय घरों में जहां बेटा अपनी पत्नी और माँ बाप के साथ एक ही घर में रहता है वहाँ यही स्थिति नजर आती है. मगर हेमंत के घर की स्थिति इस के विपरीत है.

हेमंत की शादी जब निकिता से हुई और निकिता मायके से विदा होकर अपनी ससुराल पहुंची तो कुछ ही दिनों में उसने अपने ससुर को अपना फैन बना लिया. दरअसल निकिता ब्यूटीशियन थी. एक दिन उसने ससुर के पैर छूते वक्त उनके पैरों की फटी बिवाइयों और काले धब्बों को देखा और पूछ बैठी कि- पापा आप पेडीक्योर नहीं करवाते क्या?

पेडीक्योर उस के ससुर ने आश्चर्य से यह शब्द दोहराया. निकिता ने कहा- पापा पेडीक्योर करवाते रहने से एड़ियों में बिवाइयां नहीं पड़तीं हैं. एड़ियां साफ़ और मुलायम रहती हैं. आप को तो चलने में बड़ा दर्द होता होगा? आपकी एड़ियां तो कितनी ज्यादा फटी हुई हैं और इनमें कितना मैल जम गया है.

बहू की बात सुन कर हेमंत के पिता भावुक हो गए. बोले – बेटी पहली बार किसी को मेरे दर्द और मेरी बिवाइयों का ख़याल आया है. दर्द तो बहुत होता है. इसीलिए मैं जूता भी नहीं पहन पाता हूँ, चप्पल या सैंडिल ही पहनता हूँ.

थोड़ी देर में निकिता गुनगुने पानी के एक टब में शैम्पू, नीबू, ब्रश, स्क्रबर और कई तरह के ऑयल वगैरा ले कर अपने सास-ससुर के कमरे में पहुंच गई. ससुर को कुर्सी पर बिठा कर उसने आधे घंटे उनके पैर गुनगुने पानी में डलवा कर रखे और उसके बाद उसने उनका एक घंटा पेडीक्योर किया. स्क्रबर से उनके पैर अच्छी तरह रगड़े. पेडीक्योर के बाद उसने गर्म नारियल के तेल से ससुर के पैरों की मसाज भी की. तौलिये से पैर पोंछने के बाद जब हेमंत के पिता ने अपने पैरों पर नजर डाली तो इतने साफ़ पैर देख कर भौचक्के रह गए. सारी ड्राई स्किन हट चुकी थी. पैर काफी मुलायम हो गए थे. रात में उन्होंने कई बार अपने पैर अपनी पत्नी को दिखाये और बहू की तारीफ की.

निकिता ने 15 दिन में ही उनको पैरों की बिवाइयों और उसके दर्द से मुक्ति दिला दी. उसके ससुर के पैरों पर उभर आये काले काले धब्बे भी पेडीक्योर से समाप्त हो गए. एक दिन निकिता ने उनका अच्छा हेयर कट भी कर दिया. हेमंत अपने पापा के लिए स्पोर्ट्स शूज ले आया था. फिर क्या था, पापाजी अब रोज सुबह स्पोर्ट्स शूज पहन कर मॉर्निंग वाक पर निकल जाते हैं. पैरों में दर्द जो नहीं रहा. जिससे मिलते हैं अपनी बहू की तारीफ करते हैं.

अंशुला की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. अंशुला चार्टर्ड अकाउंटैंट है जबकि उसके पति डॉक्टर हैं. मगर अंशुला के ससुर चार्टर्ड अकाउंटैंट थे. अब तो काफी बूढ़े हैं मगर अपनी बहू अंशुला से उनकी खूब पटती है क्योंकि दोनों की फील्ड एक ही है. अंशुला को उनके अनुभव से काफी कुछ सीखने को मिलता है. वहीं ससुर जी को इतने साल बाद घर में कोई तो मिला जो उनके फील्ड के बारे में उनसे बात कर सकता है वरना अंशुला की सास तो साधारण गृहणी ही रही. उनकी समझ में नंबरों का खेल नहीं आता और ना कभी उनसे इस बारे में कोई बात हुई. और बेटे को मरीजों और दवाइयों से फुर्सत नहीं मिलती. खाने की टेबल पर अकसर अंशुला और उसके ससुर आपस में खूब बातें करते नजर आते हैं जबकि अंशुला के पति और सास मुँह बंद किये बस उन दोनों को ही निहारते रहते हैं. कई बार तो सास चिढ भी जाती हैं क्योंकि वहां उनके मतलब की कोई बात ही नहीं होती है. फोन पर अक्सर अपनी बड़ी बहन से शिकायत करती हैं कि पता नहीं आते ही बहू ने अपने ससुर पर क्या मंतर फूंक दिए हैं कि वे उसी के गुण गाते रहते हैं.

जिन माता पिता के पास सिर्फ बेटे ही होते हैं वे भी घर में बहू के आने के बाद बहुत खुश होते हैं. बहू में वे बेटी की कमी को पूरा करना चाहते हैं. ऐसे में ससुर के साथ बहू के रिश्ते बहुत अच्छे हो जाते हैं क्योंकि लड़कियां बाप की ज्यादा लाडली होती हैं. मुश्किल तब आती है जब इस अच्छे रिश्ते को सास की नजर लग जाती है. जैसा की सीमा की सास ने किया और एक अच्छे खासे घर को तबाह कर दिया.

सीमा का पति सौरभ अपने माँ बाप का इकलौता लड़का है. ससुराल में आने के बाद सीमा का लगाव अपने ससुर से ज्यादा बढ़ गया क्योंकि सीमा खाने में जो कुछ बनाती थी वह उसके ससुर को बहुत पसंद आती थी. सीमा को चटपटा खाना पसंद था और उसके ससुर की जुबान भी बड़ी चटोरी थी. मगर सास हमेशा सादा खाना खाती थी. तो जब तक सौरभ की शादी नहीं हुई थी पूरे घर को वैसा ही बेस्वाद खाना खाना पड़ता था जो माताजी बनाती थीं. सीमा के आने के बाद उसके ससुर और पति को जब उनके स्वाद के अनुसार चटपटा स्वादिष्ट खाना मिलने लगा तो सास चिढ गई. हालांकि सास के लिए सीमा पहले ही बिना मिर्च मसाले की सब्जी दाल अलग निकाल देती थी फिर भी सास को बहू में खोट ही खोट नजर आते थे. वह नहीं चाहती थी कि उसका बेटा या पति सीमा के खाने की तारीफ करे. कभी सीमा के ससुर को हाजमे की प्रॉब्लम हुई नहीं कि उसकी सास सीमा पर चढ़ बैठती थी. कहती कि वह मिर्च मसाला खिला खिला कर उन्हें समय से पहले ही मर डालना चाहती है.

प्रौपर्टी पर उसकी नजर है इसलिए वह सबको ब्लड प्रेशर और हार्ट का मरीज बना रही है. इस तरह घर में कई कई दिन कलह रहती. जबकि उसके ससुर एकाध हींग की गोली खा कर ठीक भी हो जाते मगर सास की गालियां और ताने नहीं रुकते. वह चाहती कि सीमा वैसा ही बेस्वाद खाना बनाये जैसा कि वह बनाती आई हैं और खिलाती आई हैं. वह अपने पति के मुँह से बहू की तारीफ हरगिज सुनना नहीं चाहती थी.

एक दिन तो हद हो गई. सीमा ने अपने सास ससुर के सामने जब खाने की थाली रखी तो उसमें तड़का दाल और गोभी आलू की मसालेदार सब्जीपूड़ी देख कर ससुर जी तो ख़ुशी से उछाल पड़े. बोले – बेटा आज तुमने मेरे मन का खाना बनाया है. सालों हो गए ऐसी मसालेदार गोभी-आलू की सब्जी पूड़ी खाये हुए. इतना सुनना था कि सीमा की सास ने दोनों थालियां उठा कर दीवार पर दे मारीं. और जोर जोर से अपने पति पर चीखने लगी – इतना ही पसंद है इसके हाथ का तो इसी से ब्याह रचा लो. चुड़ैल जबसे आई है तुम पर डोरे डाल रही है और तुमको रत्ती भर समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब तुम्हारी जायदाद हड़पने की तरकीबें हैं. बस खाये जाओ जो ये खिलाये जाए.

सीमा और उसके ससुर यह सब सुनकर हक्के बक्के रह गए. और दूसरे दिन सीमा अपने मायके चली गई. उसके बाद तो हालत यह हो गई कि ना सीमा उस घर में वापस आना चाहती थी ना ही उसकी सास अब उसको वहाँ देखना चाहती थी. आखिरकार सौरभ को एक मकान किराए पर लेकर माँ बाप से अलग होना पड़ा क्योंकि सीमा प्रेग्नेंट भी थी और इतने तनावपूर्ण और नकारात्मक माहौल में वह अपने बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी. सीमा की सास की जलन और कुढ़न ने एक अच्छे खासे परिवार के टुकड़े कर दिए जबकि सीमा सबके स्वाद का ख़याल करके खाना बनाती थी. सास के खाने में तो वह भूल कर भी तेज मसाले नहीं डालती थी. उनकी दाल सब्जी सब अलग से बनाती थी. फिर भी सास को बहू पसंद नहीं थी.

कई बार ऐसा होता है कि जब बेटा बहू दोनों वर्किंग हो और ससुर भी कामकाजी हों और तीनों सारा दिन घर के बाहर रहते हों तो सास को लगता है कि वह तो बस घर की नौकरानी और चौकिदारनी भर है. शाम को जब तीनों अपने अपने कार्यालयों से वापस आते हैं तब आपस में अपने ही काम और व्यस्तता की बातें करते हैं. इन बातों का बुरा प्रभाव सास पर पड़ता है और वह गुस्से व जलन से भर उठती है. अब पति और बेटा तो अपने हैं, उन पर तो वह अपनी भड़ास नहीं निकालती मगर बहू जो पराए घर से आई है उस पर ताने मार कर या उसके कामों में मीनमेख निकाल कर वह उसे परेशान करने लगती है. इस व्यवहार से घर में तनाव पैदा होता है और इसका अंत घर के टूटने से होता है.

कई घरों में ससुर समझदार होते हैं. वे अपनी पत्नी के व्यवहार, गुस्से और जलन को भी समझते हैं. ऐसे में बहू का फैन होने के बावजूद वे अपनी पत्नी के सामने बहू की तारीफ नहीं करते मगर अकेले में वे बहू से खूब बातें करते हैं. ऐसे में बहुओं को भी समझना चाहिए और घर को बनाये रखने के लिए ससुर ही नहीं सास की चाहतों का भी ख़याल करना चाहिए. उनसे भी उनकी तरह की बातें कर लेनी चाहिए ताकि वे खुद को निगलेक्ट फील ना करें. हो सकता है कि ऐसा करने से सास बहू की निकटता भी बन जाए. सास का दिल जीतना भारतीय बहुओं के लिए टेढ़ी खीर है मगर कोशिश करने में क्या हर्ज है?

सैक्स में लड़कियां शरमाएं क्यों

आजकल बहुत से लोग काफी मौडर्न विचार रखते हैं और अपने पार्टनर से हर बात कर पाते हैं फिर चाहे वे सैक्स से जुडी बात हो या फिर किसी और चीज से. अरेंज्ड मैरिज में लोगों को अपने पार्टनर से खुलने में थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन वह जल्दी ही सारी बातें एकदूसरे से डिस्कस करने लग जाते हैं और वहीं दूसरी तरफ लव मैरिज में पार्टनर्स एकदूसरे से पहले ही काफी मिलजुल चुके होते हैं तो उन के बीच पहले ही एक अच्छी बौंडिंग बन जाती है.

सैक्स में जरूरी है दोनों का एंजौयमेंट

आज भी कई लड़कियां अपने पार्टनर से सैक्स से जुड़ी बातें नहीं कर पातीं और अपने पार्टनर को अपने सैक्स डिजायर्स या फिर सैक्स में उन की पसंदनापसंद के बारे में नहीं बता पाती जो कि बिलकुल गलत है.

सैक्स एक ऐसा प्रोसेस है जिसे दोनों पार्टनर की रजामंदी से किया जाता है। तो अगर दोनों पार्टनर्स सैक्स करना चाहते हैं तो सैक्स करते समय दोनों की पसंदनापसंद का पूरा खयाल रखा जाना चाहिए ताकि दोनों इस प्रोसेस को अच्छे से ऐंजौय कर पाएं.

लड़कियों को नहीं चाहिए सिर्फ लंबे समय तक सैक्स

कई लड़के समझते हैं कि उन की पार्टनर को सिर्फ यह चाहिए कि वे देर तक सैक्स कर पाएं जिस से कि उन की वाइफ या गर्लफ्रैंड संतुष्ट हो सकें जोकि गलत है.

लड़कियों को सिर्फ लंबे समय तक सैक्स नहीं चाहिए होता बल्कि उन की और भी सैक्स डिजायर्स होती हैं जैसेकि लड़कियों को पसंद होता है कि उन का पार्टनर सैक्स करने से पहले उन के साथ रोमांस करे, उन को जम कर किस करे, पूरी बौडी पर हाथ फेरे, ओरल सैक्स करे और उस के बाद संसर्ग करे.

शेयर करें अपनी सैक्स फैंटेसीज और डिजायर्स

कई लड़कियां अपने पार्टनर को यह नहीं समझा पातीं कि उन की भी कुछ सैक्स से जुडी फैंटेसीज हैं जिन्हें वे पूरा करना चाहती हैं. अकसर लड़कियां सैक्स से जुडी बातें करने में शरमाती हैं, तो ऐसे में लड़कों को पता ही नहीं चल पाता कि उन का पार्टनर उन से संतुष्ट है भी या नहीं.

लड़कियों को अपने पार्टनर के साथ खुलना चाहिए और अपने सैक्स डिजायर्स या अपनी सैक्स फैंटेसीज के बारे में अपने पार्टनर को बताना चाहिए.

सैक्स करते समय बिलकुल न शरमाएं

कई बार ऐसा देखा गया है कि लड़कियां सैक्स की बातें करने में शरमाती हैं और उन का पार्टनर सैक्स में कुछ नया ट्राई करने की कोशिश में ऐसी चीजें करने लगता है जिसे वे बिलकुल ऐंजौय नहीं करतीं बल्कि उन को उस प्रोसेस में तकलीफ हो रही होती है। तो ऐसे में जब तक आप अपने पार्टनर के साथ सैक्स की बातें नहीं करेंगी तब तक उन्हें कैसे पता चलेगा कि आप के मन में क्या चल रहा है.

सैक्स में जरूरी है अंडरस्टैंडिंग

एक हैल्दी सैक्स लाइफ के लिए एकदूसरे के साथ सारी बातें करना बेहद जरूरी है. अगर लड़कियां सैक्स की बातें करने में शरमाती ही रहेंगी तो न वे खुद संतुष्ट हो पाएंगी और न ही अपने पार्टनर को कभी संतुष्ट कर पाएंगी.

लड़कियों को हमेशा लड़कों से फ्रैंक होना चाहिए और अपने दिल की हर बात उन्हें बतानी चाहिए. सैक्स करते समय दोनों पार्टनर्स की अंडरस्टैंडिंग होना बहुत जरूरी होता है.

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