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आसमान छूता सोने का भाव और घिसतापिटता मध्यम वर्ग

क्योंकि अब पहले वाला जमाना रहा नहीं कि जब कम उम्र में शादियां होती थीं तो मातापिता बेटियों को सोना इसलिए दे देते थे कि मुसीबत में काम आएगा लेकिन अब जमाना बदल गया है, बेटियांबहुएं सब आत्मनिर्भर हैं फिर इतने महंगे रेट का एक तोला सोने में कुछ भी नहीं होता. समाज के कुछ लोगों ने सोने को स्टेटस सिम्बल बना दिया गया है, जिस की वजह से जैसेतैसे शादियों में सोना अरेंज करते हैं और जरूरत पड़ने पर जब इन जेवरों को बेचने जाओ तो आधे दाम ही मिलते हैं.

गोल्ड या सोना फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए ठीक हैं, डेली में पहनने के लिए लाइटवेट गोल्ड ज्वैलरी या इमिटेशन ज्वैलरी पहनी जा सकती है. आजकल आर्टिफिशल गहने इतने सुंदर मिलते हैं कि सोना उस के आगे फीका ही हो गया है. जब चाहो अलगअलग डिजाइन के ड्रैस से मैच कर के खरीदो और लूटने का भी चक्कर नहीं.

सोने के गहने खरीदना महिलाओं के लिए अच्छा औप्शन नहीं

जब बात निवेश की हो तो हर कोई इससे होने वाले रिटर्न के बारे में पहले सोचता है. पारंपरिक कारणों से भले ही सोना खरीदना शुभ माना जाता हो लेकिन शौक के अतिरिक्त सोने के गहने खरीदना एक अच्छा निवेश विकल्प नहीं है. सोने की अंगूठी, नौलखा हार, ईयरिंग्स खरीदना निवेश के नजरिए से घाटे का सौदा हो सकता है क्योंकि गहने बेचने जाने पर उस की रीसेल वैल्यू कम होती है यानी गहने खरीदते समय केवल सोने के पैसे नहीं लगते बल्कि कई अन्य चार्ज जैसे कि मेकिंग चार्जेज भी देने पड़ते हैं जो बहुत ज्यादा होते हैं. और जरूरत पर गहने बेचते समय मेकिंग चार्जेस नहीं मिलता. इस के अलावा सोने के गहनों की सेफ़्टी भी एक समस्या है. गहनों को सेफ रखने के लिए उन्हें लौकर में रखने पर चार्ज देना पड़ता है और घर में रखना सेफ नहीं होता.

कितना अच्छा होगा यदि फाइनेंशियल मजबूती के लिए गोल्ड को अपने पास रखने के अन्य विकल्प तलाशें जाएं.

समय के साथ निवेश करने के तरीके बदल रहे हैं. आज 10 में से 7 भारतीय गोल्ड में निवेश को सुरक्षित निवेश मानते हैं. 35 वर्ष से कम के 75 प्रतिशत लोग सोने में निवेश के लिए फिजिकल की तुलना में डिजिटल निवेश को अधिक महत्व दे रहे हैं. इस की वजह लिक्विडिटी और निवेश की आसान सुविधा का होना है.

गोल्ड में निवेश के तरीके

गोल्ड में निवेश के 2 तरीके हैं, एक डिजिटल, दूसरा फिजिकल. बहुत सारे लोग इमोशनल वैल्यू के चलते फिजिकल गोल्ड पसंद करते हैं लेकिन निवेश के लिहाज से डिजिटल गोल्ड खरीदना सही माना जाता है. गोल्ड ज्वैलरी या फिजिकल गोल्ड के साथ चोरी होने का खतरा रहता है. इस से बचने के लिए बैंक लौकर का सहारा लेते हैं तो उस के लिए भुगतान करना पड़ता है.

दूसरा गोल्ड ज्वेलरी खरीदते वक्त धोखाधड़ी हो जाती है और बेचते समय मेकिंग चार्ज और मिलावट आदि के नाम पर कटौती भी होती है.

डिजिटल गोल्ड

डिजिटल गोल्ड एक आधुनिक निवेश विकल्प है, जहां ग्राहक डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर के सोने की इकाइयां खरीद सकते हैं. यह विकल्प युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि यह सुविधाजनक और सरल है.

गोल्ड ईटीएफ

गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना कई लिहाज से फायदेमंद साबित होता है. गोल्ड ईटीएफ की यूनिट को शेयर की तरह इलैक्ट्रानिक फार्म में डीमैट खाते में रखा जा सकता है. बीएसई और एनएसई पर इन की ट्रेडिंग होती है. मतलब कारोबारी घंटों के दौरान इन्हें कभी भी बेचाखरीदा जा सकता है. गोल्ड ईटीएफ में स्टोरेज का खर्च कम है. इस में मेकिंग चार्ज या मिलावट का कोई झंझट नहीं है. आप छोटी रकम से भी गोल्ड ईटीएफ में निवेश कर सकते हैं. गोल्ड ईटीएफ को मार्केट वेल्यू पर खरीदा और बेचा जा सकता है.

ये इस तरह है कि सोना खरीदा और बेचा मगर फिजिकल फार्म में नहीं बस कीमत सोने की होती है. यह म्यूचुअल फंड की ही स्कीम है जिन्हें यूनिट के तौर पर खरीदा जाता है. न चोरी होने का डर, न मेकिंग चार्ज का लौस और न ही मिलावट का खतरा. जितना मर्जी चाहें खरीद सकते हैं. गोल्ड ईटीएफ में खरीददारी के लिए कई विकल्प बाजार में मौजूद हैं.

गोल्ड कोइन्स

ज्वैलर्स, बैंकों और ई-कौमर्स वेबसाइटों पर गोल्ड कोइन्स आसानी से मिलते हैं. हर कोइन बीआईएस मानक के अनुसार हौलमार्क किया गया होता है जो उस की गुणवत्ता की गारंटी देता है. इन कोइन्स को खरीदने का एक बड़ा फायदा यह है कि ये सुरक्षित और लेनदेन में आसान होते हैं.

घर में सोना रखने की लिमिट और सोना बेचने पर लगने वाला टैक्स

भारत सरकार के आयकर कानून के मुताबिक विवाहित महिलाएं अपने पास 500 ग्राम सोना रख सकती हैं जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए ये सीमा 250 ग्राम रखी गई है. वहीं पुरुषों को केवल 100 ग्राम सोना रखने की इजाजत है. इस के अलावा अगर आप टैक्स-फ्री इनकम से सोना खरीदते हैं या कानूनी तौर पर सोना आप को विरासत में मिलता है तो उस पर आप को कोई टैक्स नहीं देना होगा. लेकिन तय सीमा से ज्यादा सोना होने पर आप को रसीद दिखानी होगी और अगर आप 3 साल तक सोना रखने के बाद उसे बेचते हैं तो उस से होने वाले प्रौफिट पर 20 फीसदी की दर से लोन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स भी देना होगा.

गोल्ड के बदले लोन का औप्शन

गोल्ड एक ऐसा मेटल है जिस की हमेशा दुनियाभर में अपनी एक अलग अहमियत रही है. आभूषण की तरह पहनने से ले कर कई बार बच्चों की पढ़ाई, शादी, घर बनवाने या इमरजेंसी में मैडिकल खर्च के लिए भी गोल्ड, लोन लेने के काम आता है. गोल्ड लोन दूसरे अन्य लोन की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है साथ ही गोल्ड लोन की अच्छी बात है कि यह अनसिक्योर्ड लोन जैसे पर्सनल लोन, प्रौपर्टी लोन, कौर्पोरेट लोन की तुलना में सस्ताो पड़ता है लेकिन, गोल्ड लोन लेना तभी सही होता है, जब कुछ वक्त के लिए ही पैसों की जरूरत हो.

सामान्यतया बैंक 3 महीने से 3 साल तक के लिए गोल्ड लोन देते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप के कितने समय के लिए कर्ज चाहिए या फिर आप उसे कितने समय में लौटा सकते हैं.

सोने के बदले लोन लेने की पहली शर्त है कि जिस गोल्ड को आप गिरवी रख रहे हैं वह कम से कम 18 कैरेट शुद्ध होना चाहिए. बैंक या एनबीएफसी गहनों और सोने के सिक्कों के बदले ही लोन देते हैं. आप 50 ग्राम से ज्यादा वजन के सोने के सिक्के गिरवी नहीं रख सकते.

वित्तीय संस्थान गोल्ड बार को भी गिरवी नहीं रखते. अगर लोन पर आप डिफौल्ट कर गए तो वित्तीय संस्थान को आप का सोना बेचने का हक है इस के साथ ही, अगर सोने का भाव गिरता है तो आप से अतिरिक्त सोना गिरवी रखने के लिए भी कहा जा सकता है.

गोल्ड लोन में भी दूसरे आम लोन की तरह प्रोसेसिंग फीस लगती है जो बैंकों और एनबीएफसी के हिसाब से अलगअलग होती है और प्रोसेसिंग फीस पर जीएसटी लगने के अलावा कुछ बैंक और वित्तीय संस्थान वैल्यूएशन फीस भी लेते हैं. साथ ही सर्विस चार्ज, एसएमएस चार्ज और सिक्योर्ड कस्टडी फीस जैसे कुछ अन्य खर्चे भी होते हैं.

गोल्ड लोन का री-पेमेंट

अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आप हर महीने ईएमआई में पेमेंट कर सकते हैं या आप के पास एकमुश्त मूल भुगतान के साथ ब्याज भरने का विकल्प भी चुन सकते हैं.

अब आप समझ गए होंगे कि सोना कितना सोना है.

मां बनना एक युवती का निजी फैसला होना चाहिए

पिछले कुछ सालों में हमारे देश में बर्थ रेट तेजी से घट रही है. आबादी कम हो रही है. महिलाएं मां बनने से इनकार कर रही हैं.
बौम्बे बेगम्स मूवी में एक डायलौग था कि “अगर आप की शादी और बच्चे आप की सक्सेस हैंडल नहीं कर सकते तो वह बेकार हैं.”

कुछ महिलाएं हैल्थ रिलेटेड रीजन्स से तो कुछ अपनी मर्जी से मां नहीं बनना चाहतीं पर न तो ये महिलाएं कमतर हैं और न हीन स्वार्थी और अधूरी.

बच्चों के आसरे रहने की उम्मीद रखने या उन पर बोझ बनने की बजाय महिलाएं अपने बारे में सोचें तो गलत क्या है? इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बच्चे सहारा बनेंगे. पूरी पोसिबिलिटी है कि जीवन के आखिरी पड़ाव में बच्चों के बिना बाद में अकेले ही रहना पड़े इसलिए अपनी लाइफ सक्रिफाइस का क्या फायदा.

माना कि यह खयाल सोसायटी के नियमों के हिसाब से गलत या समाज के विरुद्ध होगा लेकिन अगर कोई महिला का मदरहूड के बिना रहना चाहती है तो उस में कोई बुराई या गलत बात नहीं है.

आज हमारे आसपास ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जिन्होंने मां न बनने का फैसला किया है और वे अपनी लाइफ अपनी मर्जी, अपने तरीके से जीना चाहती हैं क्योंकि वे समझने लगी हैं कि शादी और बच्चों के चक्कर में फंस कर उन्हें अपने कैरियर अपनी इच्छाओं को पीछे छोड़ना पड़ेगा, इस लिए वे वह नौबत ही नहीं आने देना चाहतीं.

महिलाएं मां बनने से हट रही हैं पीछे

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2019-21 में किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) प्रति महिला 2.2 बच्चों से घट कर 2.0 बच्चे प्रति महिला हो गई है और यह आंकड़ा रिप्लेसमेंट रेट 2.1 से कम है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि रिप्लेसमेंट रेट उस बर्थ रेट को कहते हैं, जिस में जन्म और मृत्यु का संतुलन बना रहता है और जनसंख्या स्थिर रहती है लेकिन किसी देश का बर्थ रेट रिप्लेसमेंट रेट से कम हो जाए तो वहां की आबादी घटने लगती है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में फर्टिलिटी रेट घटने का ये दौर लगातार जारी रहेगा. अगर ऐसा होना जारी रहा तो 2050 तक भारत में फर्टिलिटी रेट 1.3 रह जाएगी.

वंश बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही क्यों

हमारे समाज में अधिकांश लोगों का कहना है कि एक महिला सम्पूर्ण तब होती है जब वह मां बनती है, इस का मतलब तो यह हुआ कि जो महिला मां नहीं बन पाती वह औरत ही नहीं है.

अमेरिका की मैने (यूमैने) यूनिवर्सिटी में सोशियोलौजी की प्रोफैसर डा. ऐमी ब्लैकस्टोन उन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने बच्चा न पैदा करने का फैसला किया और उन्हें इस निर्णय के लिए बहुत ताने भी सुनने पड़े. डा. ऐमी ने इस विषय पर एक किताब भी लिखी है- ‘चाइल्डफ्री बाय चौइस’.

डा. एमी के अनुसार जब के आसपास के लोगों को पता चलता है कि उन के बच्चे नहीं हैं और न ही वह बच्चे चाहती हैं तो कुछ लोग उन्हें जज करते हैं, कुछ उन के साथ सिमपेथी दिखाते हैं कुछ उन्हें क्रिटिसाइज करते हैं तो कुछ सेल्फिश मानते हैं .

संडे टाइम्स, यूके की 48 वर्षीय पूर्व फीचर एडीटर, जानीमानी पत्रकार और लेखक रूबी वारिंगटन के अनुसार समाज मानता है कि बच्चे न चाहने के कारण मैं स्वार्थी हूं लेकिन मेरी किताब ‘वुमेन विदाउट किड्स: द रेवोल्यूशनरी राइज औफ एन अनसंग सिस्टरहुड’ मेरे जैसी महिलाओं के लिए बोल रही है.

रूबी कहती हैं कि कितना अच्छा हो, अगर बिना बच्चों वाली महिला होना वास्तव में अपनी तरह की विरासत बन जाए और बिना बच्चों वाली महिलाओं को दुखी, सैल्फ सेंटर्ड मानने की बजाय उन्हें साहसी होने के रूप में देखें और उन्हें वैसे ही स्वीकार करें.

मां बनना इतना ज्यादा ओवररेटेड क्यों

समाज हमेशा अपने पुराने और बनेबनाए ढर्रे पर ही चलना चाहता है. वह किसी भी तरह का बदलाव स्वीकार नहीं करना चाहता लेकिन समाज में बदलाव आ रहा है और आएगा क्योंकि बदलाव सृष्टि का नियम है. आज महिलाएं अगर मदरहुड को न कह रही हैं. अब वह अपने पैसे खुद कमा रही हैं, अपना बिल खुद भर रही हैं, अपने सिर पर छत खुद बना रही हैं और अपनी जिंदगी से जुड़े हर छोटेमोटे फैसले भी खुद ही ले रही हैं. महिलाएं मदरहुड के विरोध में नहीं हैं लेकिन वे मदरहुड की वजह से अपने कैरियर, आजादी और बराबरी की राह कोई कांम्प्रोमाइज नहीं करना चाहतीं.

वे चाहती हैं कि मदरहुड सिर्फ अकेले औरत की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. परिवार और समाज की भी इस में बराबर की साझेदारी और हिस्सेदारी होनी चाहिए. दरअसल, हमारे समाज में किसी भी महिला के मां बनने को इतना ज्यादा ओवररेटेड कर दिया गया है कि एक स्त्री का व्यक्तित्व उसी पैमाने पर तौला जाता है. लेकिन अब महिलाएं ये समझ रही हैं कि मां बनना या न बनना किसी भी महिला का निजी फैसला है, वूमनहुड का सर्टिफिकेट नहीं.

क्या सचमुच औरत की जिंदगी का सब से बड़ा सुख मां बनना ही है

क्यों हमारे समाज में एक औरत के मां ना बन पाने को उस की जिंदगी के अधूरेपन से जोड़ कर देखा जाता है ? शिक्षा, कैरियर, आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसी दूसरी चीज़ें एक महिला के लिए भी उतनी ही जरूरी हैं जितना कि एक पुरुष के लिए. वे मांएं जो समाज द्वारा तय मानकों के कारण एक मां और फिर एक अच्छी मां बनने के लिए औरतें अपने सपनों को छोड़कर अपनी पूरी जिंदगी लगा देती है वे ऐसा कर के वे कोई कमाल का काम नहीं कर रहीं क्योंकि बच्चे को दुनिया में लाना, उस की परवरिश मां का ही दायित्व होता है जिस के लिए उसे अनेक त्याग करने पड़ते हैं.

यदि कोई महिला भावनात्मक औऱ आर्थिक तौर पर बच्चे को दुनिया में नहीं लाना चाहती, उस की परवरिश के लिए वह तैयार नहीं हैं या फिर उसे बच्चे की जरूरत महसूस नहीं हो रही है तो यह निर्णय पूरी तरह एक महिला का होना चाहिए कि उसे मां बनना है या नहीं, बायोलौजिकली मां बनना है, अडौप्ट करना है, सेरोगेसी करनी है. उसे इस बात पर जज नहीं किया जाना चाहिए. क्या किसी बच्चे को प्यार करने के लिए यह जरूरी है कि बच्चा अपनी कोख से ही पैदा किया जाए ?

मातृत्व को आसपास के बहुत सारे जरूरतमंद बच्चों पर भी लुटाया जा सकता है. बच्चों के लिए अपने सपने दांव लगाने से कुछ नहीं मिलेगा. पहले जो लोग यह मानते थे कि बच्चा आने से प्यार बढ़ता है, अब वे उसे जिम्मेदारी मान कर उस से बचना चाहते हैं. अब उन्हें बच्चे इसलिए भी नहीं चाहिए कि वे बुढ़ापे की लाठी बनेंगे क्योंकि वे देख समझ रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है और कोई क्यों किसी के लिए अपनी लाइफ की इच्छाएं सपने दांव पर लगाए और फिर बाद में सुनने को मिले आपने हमारे लिए कुछ अनोखा नहीं किया.

दुनिया के हर व्यक्ति का अपना एक अस्तित्व अपनी ज़िंदगी है और कोई किसी दूसरे को पूरा नहीं कर सकता, बच्चे भी नहीं. बच्चा पैदा करना या न करना एक महिला का निजी निर्णय होना चाहिए यह कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है कि हर चलताफिरता व्यक्ति उस से पूछपूछ कर परेशान करे कि आप के बच्चे क्यों नहीं हैं?

सोशल मीडिया पर प्राइवेट मोमेंट्स अपलोड करना पड़ सकता है भारी

सोशल मीडिया पर लोग अपनी लव लाइफ से जुड़ी बातें शेयर करना पसंद कर रहे हैं और तस्वीरों और वीडियोज के जरिए दूसरों से तारीफ पाना चाहते हैं और खुद को बेहतर दिखाना चाहते हैं.

सोशल मीडिया पर अपने पार्टनर से जुड़ी जानकारी शेयर करना आजकल आम बात हो गई है लेकिन यह व्यवहार कई बार कई समस्याओं को जन्म देने का कारण बन सकता है. इस से परिवार और दोस्त भी प्रभावित हो सकते हैं. हो सकता है कि ऐसा करना कुछ समय के लिए अच्छी फीलिंग देता हो लेकिन फिर भी ऐसी कई चीजें होती हैं, जिन्हें उन्हें सोशल मीडिया पर बिल्कुल शेयर नहीं करनी चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया पर अपने प्यार अपनी पर्सनल बातों को शेयर करने के कई नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

42 वर्षीय रिचा और रितेश जो पिछले 10 सालों से शादी के रिश्ते में बंधे हैं, दोनों सोशल मीडिया पर पर्सनल बातों को शेयर करने के खिलाफ हैं और उन दोनों का मानना है कि रिलेशनशिप में प्राइवेसी, इंटिमेसी को बढ़ावा देती है. जब आप अपने पार्टनर की बातों को प्राइवेट रखते हैं तो इस से रिश्ते में गहराई बढ़ती है और आपस में गलतफहमियां पैदा होने का खतरा कम होता है.

वैसे भी कुछ निजी बातें ऐसी होती हैं जो सिर्फ एक कपल के बीच ही रहे तो ही अच्छा रहता है और रिश्ता मजबूत और लंबे समय तक चल पाता है. इस के अलावा अपने रिश्ते की बातों को प्राइवेट रखने से सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करने से हैप्पी दिखने का प्रेशर भी नहीं होता. साथ ही एक बार सोशल मीडिया पर अपने रिश्ते को फ्लांट करनी की आदत हो जाने के बाद एक समय के बाद यह आदत मजबूरी बन जाती है जो कपल के बीच कनफ्लिक्ट का कारण भी बन सकती है. इसलिए कोई भी अगर अपने प्यार भरे रिश्ते को लंबे समय तक बनाए रखना चाहता है तो उन्हें जितना हो सके अपनी पर्सनल बातों को प्राइवेट रखना चाहिए.

जानिए किन बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करना आपके रिश्ते में दूरियां ला सकता है –

पर्सनल तस्वीरें या बातें न करें शेयर

आजकल कपल्स लाइक व व्यूज बढ़ाने के चक्कर में कोजी मोमेंट्स की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. ऐसा करने से बचना चाहिए. कभीकभी उन पर्सनल तस्वीरों का लोग गलत तरीके से इस्तेमाल कर लेते हैं जिस से उन्हें बाद में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा कई बार पर्सनल रिलेशन की बातों को पब्लिक करने से कपल्स पर परफैक्ट दिखने का प्रेशर भी बढ़ जाता है. कई बार रियलिटी में आइडियल कपल्स न होने के बाद भी उन्हें खुद को परफैक्ट दिखाना पड़ता है और इस चक्कर में कपल्स के बीच क्लेश हो जाता है.

लोकेशन शेयर करना कर सकता है स्पेशल मोमेंट्स को बरबाद

कुछ लोग तो जब अपने पार्टनर के साथ कहीं घूम रहे होते हैं तो अपनी लोकेशन भी शेयर कर देते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. घरपरिवार या रिश्तेदारों में से कोई भी उन तक पहुंच सकता है और उन के स्पैशल पलों को खराब कर सकता है.

पर्सनल चैट को न करें शेयर

आजकल कपल्स द्वारा इंटरनेट पर चैट waवौयस कौल को शौर्ट वीडियो की तरह शेयर करने का चलन काफी बढ़ गया है. कुछ लोग अकसर अपने पार्टनर से की हुई पर्सनल चैट को रिकौर्ड कर के या फिर उस की तस्वीरें क्लिक कर के सोशल मीडिया पर या फिर दोस्तों के साथ शेयर कर देते हैं. ऐसा कर के वे बहुत बड़ा रिस्क लेते हैं. क्योंकि क्योंकि नहीं पता उन की यह पर्सनल चैट किस किस के पास किस तरह पहुंच जाए इस से उन की इज्जत और रिश्ते दोनों पर नेगेटिव असर पड़ सकता है.

पार्टनर की इमेज हो सकती है खराब

कई बार अपने पार्टनर की परमिशन के बिना उस की पर्सनल जानकारी पब्लिकली शेयर करने से उस की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है. हो सकता है उसे यह सब पसंद न हो, हो सकता है अपनी पर्सनल बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करना उस के स्वभाव में न हो और इस से आप के रिश्ते में अनबन हो सकती है. साथ ही कई बार सोशल मीडिया पर अपने पर्सनल रिश्ते को ले कर शेयर की गई पर्सनल बातें यूजर्स द्वारा गलत तरीके से समझी जा सकती हैं.

यूजर्स और फौलोअर्स आप के पार्टनर के बारे में उन की लुक्स या आप दोनों के मैच को कुछ गलत राय बना सकते हैं, कमेंट सेक्शन में उसे ट्रोल कर सकते हैं. इस से आप दोनों के रिश्ते में स्ट्रेस पैदा हो सकता है और आप के पार्टनर की इमेज भी खराब हो सकती है.

ब्रेकअप के बारे में न करें शेयर

जब दो लोग साथ में होते हैं, तो उन के बीच बहुत सी बातों को ले कर असहमति बनती है. यहां तक कि झगड़े भी होते हैं. कई बार झगड़े इस हद तक बढ़ जाते हैं कि दोनों पार्टनर अलग होने का मन बना लेते हैं. लेकिन कई बार लोग जल्दबाजी या गुस्से में अपने ब्रेकअप की बात भी सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं. ऐसा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं होता है. हो सकता है कि ब्रेकअप के बाद आप का पैचअप भी हो जाए. ऐसे में ब्रेकअप की बात सोशल मीडिया पर बिल्कुल भी शेयर नहीं करनी चाहिए. इस से आप की परेशानी व दुख कम होने की बजाय बढ़ेगा.

सेफ्टी का खतरा

आप की कुछ पोस्ट या तस्वीरें आप की और आप के पार्टनर की पर्सनल जानकारी को पब्लिक कर सकती हैं, जिस से पार्टनर की सेफ्टी को खतरा हो सकता है. आज के डिजिटल युग में जब डेटा चोरी और प्रोफाइल हैक जैसी घटनाओं के चलते औनलाइन सुरक्षा खतरे में पड़ रही है तब तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि अपनी और अपने पार्टनर की पर्सनल जानकारी को सोशल मीडिया पर शेयर न किया जाए.

ओवर शेयरिंग का परिणाम

आप शायद नहीं जानते होंगे कि कई बार किसी के द्वारा सोशल मीडिया पर अपलोड की गई एक सिंपल सी फोटो भी उस के लिए खतरा बन सकती है खासकर वह फोटो, जिस में किसी की हाथों की उंगलियों के निशान स्पष्ट दिख रहे हों. कई मामलों में ऐसा देखने में आया है कि साइबर अपराधियों ने अपलोड की गई व्यक्ति की उंगलियों के निशान का उपयोग कर के आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (AEPS) से रुपए निकाल लिए हैं और अन्य गैर-कानूनी कार्यों को भी अंजाम दिया है.

नोएडा में ऐसे 10 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जिन में ठगों ने लोगों की फोटो से उन के फिंगरप्रिंट का क्लोन तैयार किया और उस का गलत उपयोग किया.

स्वस्थ शरीर के लिए पोटैशियम और मैग्नीशियम कितना जरूरी

मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिए कुछ मिनरल्स बहुत जरूरी होते हैं. विटामिन्स और कैल्शियम के बारे में औसतन लोग कुछ न कुछ जानते हैं. पोटैशियम और मैग्नीशियम भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी हैं और इन के बारे में अकसर लोगों को ज्यादा पता नहीं होता है.

पोटैशियम: पोटैशियम ऐसा मिनरल है जो शरीर की सामान्य क्रिया के लिए जरूरी है. यह मांसपेशियों के सुचारु रूप से कार्य करने में सहायक होता है. यह सेल्स को पौषिक तत्त्व प्राप्त करने में मदद करता है. यह हाई ब्लडप्रैशर यानी हाइपरटैंशन कंट्रोल करता है. शरीर में पोटैशियम लैवल मेंटेन करना ह्रदय के सेल्स के लिए बहुत जरूरी है.

शरीर में पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया रोग कहते हैं.

हाइपोक्लेमिया के सिंप्टम्स: पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया कहते हैं. साधरतया संतुलित भोजन लेते रहने से पोटैशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थाई रूप से पोटैशियम की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस के मुख्य लक्षण हैं- थकावट या फैटिग, कमजोरी, क्रैम्प- मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज और एरिथ्मिया (असामान्य हार्ट बीट).

हाइपोक्लेमिया का कारण: शरीर के पाचनतंत्र से हो कर जब पोटैशियम शरीर से ज्यादा बाहर निकल जाता है तब इस की कमी से हाइपोक्लेमिया हो जाता है, जैसे दस्त, उलटी, किडनी या एड्रेनल ग्लैंड्स के ठीक से नहीं काम करने से कुछ दवा लेने पर पेशाब ज्यादा आता हो (डाइयुरेटिक), पसीना ज्यादा आना, फोलिक एसिड की कमी, अस्थमा की दवा, कब्ज की दवा और एंटीबायोटिक के सेवन से खून में कीटोन (एसिड) ज्यादा होने से, मैग्नीशियम की कमी और तंबाकू के सेवन से.

डायग्नोसिस या टैस्ट: शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं. ब्लड में सिरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन 3. 5 mmol/L (प्रति लीटर) – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 3. 5 mmol/L से कम होने पर इसे हाइपोक्लेमिया कहा जाता है और 2.5 mmol/L से कम होना घातक माना जाता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सके कि पेशाब के रास्ते कितना पोटैशियम शरीर से बाहर निकल रहा है. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे कि कहीं दस्त या उलटी की शिकायत तो नहीं है. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय की रिदम पर भी पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं.

उपचार: हाइपोक्लेमिया के उपचार के लिए डाक्टर पोटैशियम सप्लिमैंट्स, जो आमतौर पर टेबलेट के रूप में आता है, लेने की सलाह देते हैं. पोटैशियम की अत्यधिक कमी की स्थिति में टेबलट से हाइपोक्लेमिया में सुधार न होने से या हाइपोक्लेमिया के कारण असामान्य हृदय रिदम होने की स्थिति में इस का इंजैक्शन लेना पड़ सकता है. डाक्टर ब्लड में पोटैशियम के स्तर पर नजर रखते हैं क्योंकि इस की अधिकता से हाइपोक्लेमिया होता है जो और भी खतरनाक होता है. शरीर में पोटैशियम का एक डेलिकेट (नाजुक) लैवल मेंटेन करना पड़ता है.

कितना पोटैशियम जरूरी

14 साल या उस से बड़ी उम्र वालों को 4,700 एमजी (मिलीग्राम) प्रतिदिन पोटैशियम की आवश्यकता होती है-

6 महीने तक के बच्चे के लिए 400 एमजी

7 – 12 महीने तक के बच्चे के लिए 700 एमजी
1 – 3 साल तक के बच्चे के लिए 3,000 एमजी
4 – 8 साल तक के बच्चे के लिए 3,800 एमजी
9 – 13 साल तक के बच्चे के लिए 4,500 एमजी

ब्रेस्ट फीडिंग महिला के लिए 5,100 एमजी पोटैशियम प्रतिदिन चाहिए. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में हाइपोक्लेमिया की संभावना ज्यादा होती है.

पोटैशियम के श्रोत: पोटैशियम प्राकृतिक रूप से हमारे खाद्य पदार्थ में मिलता है, जैसे केला, आलू, एवाकाडो, तरबूज, सनफ्लौवर बीज, पालक, किशमिश, टमाटर, औरेंज जूस आदि में.

हाइपोक्लेमिया में रिस्क: अमेरिका के नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. केल्ड केल्डसन के अनुसार, दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 30 लाख लोग दिल की बीमारी से मरते हैं. इन में बहुत लोग तत्काल ट्रिगर के फलस्वरूप मौत के शिकार होते हैं. ह्रदय के सेल्स में अशांत और असामान्य पोटैशियम लैवल भी इस ट्रिगर का कारण होता है. 7-17 फीसदी दिल के रोगियों में हाइपोक्लेमिया पाया गया है. ह्रदय और हाइपरटैंशन रोग से अस्पताल में भरती 20 फीसदी रोगियों में और वाटर पिल्स या डाइयुरेटिक (ब्लडप्रैशर की दवा) 3 लेने वाले 40 फीसदी रोगियों में पोटैशियम की कमी पाई गई है. इस से हृदय का रिदम अशांत होता है. हाइपोक्लेमिया में अचानक हार्ट फेल होने की संभावना दसगुना ज्यादा होती है. इस के अतिरिक्त पोटैशियम की कमी से हाइपरटैंशन, बीएमआई में कमी, दस्त, मांसपेशियों में क्रैम्प, अल्कोहल की आदत और किडनी की बीमारी हो सकती है.

जब शरीर में पोटैशियम अधिक हो

हाइपरक्लेमिया: शरीर में पोटैशियम की अधिकता को हाइपरक्लेमिया कहते हैं. इस के चलते हार्ट के रिदम पर प्रतिकूल असर पड़ता है और यह जानलेवा भी हो सकता है. इस के अलावा मिचली या उलटी, मांसपेशियों में कमजोरी, नसों की बीमारी- झनझनाहट, दम फूलने की शिकायत हो सकती है.

कारण: साधारणतया हमारा किडनी यदि सुचारु रूप से काम करती है तब अतिरिक्त पोटैशियम को यह मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल फेंकती है. पर जब किडनी ठीक से काम नहीं करती तब ब्लड में पोटैशियम लैवल बढ़ जाता है और हाइपरक्लेमिया हो जाता है. एड्रेनल गलनाड में एल्डेस्टेरौन नामक एक हार्मोन होता है जो किडनी को पोटैशियम हटाने का संकेत देता है.

इस के अतिरिक्त भोजन में पोटैशियम की मात्रा अधिक होने से हाइपरक्लेमिया हो सकता है. हाइपरक्लेमिया के अन्य कारण हैं-

हेमोलिसिस- रेड ब्लड सेल्स का ब्रेकडाउन (विघटन)

रैब्डोमायोलिसिस- मसल टिश्यू का ब्रेक डाउन और जलने के कारण टिश्यू की समस्या

अनियंत्रित डायबिटीज- डायबिटीज का नियंत्रण में न होना

एचआईवी- एचआईवी बीमारी का होना

किडनी और ब्लडप्रैशर आदि रोगों की कुछ दवाएं, एनएसएआईडी इन्फ्लेमेशन की दवा, कुछ एंटीबायोटिक्स और हर्बल सप्लीमैंट्स जेनसिंग आदि के चलते भी पोटैशियम की मात्रा अधिक हो सकती है जिस से हाइपरक्लेमिया हो सकता है.

सिंप्टम्स: ब्रेन सेल्स को भी पोटैशियम की जरूरत होती है. इस के द्वारा ब्रेन सेल्स आपस में संवाद करते हैं और दूरस्थ सेल्स से भी संवाद करते हैं. पोटैशियम का स्तर अनियंत्रित होने से हार्मोन असंतुलन, लुपस, किडनी की बीमारी होती है.

डायग्नोसिस या टैस्ट: शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं. ब्लड में सिरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन 3. 5 mmol/L (प्रति लीटर) – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 5.1 mmol/L से ज्यादा होने पर इसे हाइपरक्लेमिया कहा जाता है और 6.5 से ज्यादा खतरनाक व जानलेवा हो सकता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सके कि पेशाब के रास्ते पोटैशियम शरीर से बाहर जा रहा है या नहीं. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे और आप के ह्रदय की रिदम चैक कर सकते हैं. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय पर पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं हालांकि हाइपरक्लेमिया के सभी मरीजों में रिदम पर असर होना जरूरी नहीं है.

उपचार: हाइपरक्लेमिया के उपचार में डाक्टर लो पोटैशियम भोजन की सलाह दे सकते हैं, आप की कोई दवा बंद कर सकते हैं या दवाओं में कुछ बदलाव कर सकते हैं, वाटर पिल्स (डाइयुरेटिक) दे सकते हैं ताकि एक्स्ट्रा पोटैशियम पेशाब से बाहर निकल जाए, किडनी के इलाज की दवा या डायलिसिस की सलाह, पोटैशियम बाइंडर दवाएं दे सकते हैं. पोटैशियम लैवल अत्यधिक होने पर इमरजैंसी की स्थिति में इंजैक्शन द्वारा दवा दी जा सकती है.

हाइपरक्लेमिया में रिस्क: हाइपरक्लेमिया के चलते हृदय रिदम में गंभीर बदलाव आने से जान का खतरा होता है. इस के चलते अत्यधिक कमजोरी हो सकती है और लकवा मार सकता है.

मैग्नीशियम

हमारे शरीर को समुचित मात्रा में मैग्नीशियम भी आवश्यक है. यह हमारी हड्डी को मजबूत बनाता है. इस के अतिरिक्त यह ह्रदय, मांसपेशियों और नसों के लिए भी जरूरी है. यह शरीर की ऊर्जा को कंट्रोल करता है और साथ में ब्लडशुगर, ब्लडप्रैशर आदि को मेंटेन करने में मदद करता है. मैग्नीशियम शरीर के लिए एक इलैक्ट्रोलाइट है जो खून में रह कर शरीर में बिजली संचालन करता है.

साधरणतया संतुलित भोजन लेते रहने से मैग्नीशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थाई रूप से मैग्नीशियम की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस का बहुत कम या बहुत ज्यादा होना दोनों हानिकारक है.

मैग्नीशियम की कमी का कारण: स्वस्थ मनुष्य के ब्लड में मैग्नीशियम की उचित मात्रा मेंटेन रहती है. हमारे किडनी और पाचनतंत्र दोनों मिल कर खुद निश्चित करते हैं कि भोजन से कितना मैग्नीशियम रखना है और कितना मूत्र से बाहर निकाल फेंकना है. थाईरायड की समस्या, टाइप 2 डायबिटीज़, ज्यादा शराब पीने से, किडनी की बीमारी होने से, कब्ज आदि की कुछ दवाओं के असर से और क्रोनिक पाचनतंत्र की बीमारी से शरीर मैग्नीशियम एब्जौर्ब नहीं कर पाता है और इस की कमी हो सकती है.

मैग्नीशियम टैस्ट: डाक्टर आप के स्वास्थ्य की हिस्ट्री जानना चाहेंगे, जैसे डायबिटीज़, थाईरायड या प्रैग्नैंसी की प्रौब्लम आदि लो मैग्नीशियम के संकेत हो सकते हैं. इन के अतिरिक्त हाल में हुई किसी सर्जरी से भी मैग्नीशियम की कमी हो सकती है. मैग्नीशियम का स्तर बढ़ने की संभावना कम होती है. किडनी खराब रहने से और कुछ दवाओं के इस्तेमाल से ऐसा हो सकता है. यह बहुत खतरनाक है और इस से हार्ट फेल्योर हो सकता है.

मैग्नीशियम लैवल की जांच के लिए आमतौर पर ब्लड और यूरिन टैस्ट किए जाते हैं. ब्लड में सिरम मैग्नीशियम कौन्सैन्ट्रेशन लैवल 1.7 – 2.3 एमजी सामान्य होता है. 1.2 एमजी लैवल बहुत खतरनाक होता है.

ब्लड टैस्ट से मैग्नीशियम की सही जानकारी नहीं भी मिल सकती क्योंकि ज्यादातर मैग्नीशियम हड्डी में स्टोर्ड रहता है. इस के अलावा रेड ब्लड सेल्स में मैग्नीशियम टैस्ट, सेल्स में मैग्नीशियम लैवल का टैस्ट, ब्लड में मैग्नीशियम दे कर फिर यूरिन टैस्ट करना ताकि मूत्र से निकलने वाले मैग्नीशियम का पता चले.

लो मैग्नीशियम के सिंप्टम्स: पाचनशक्ति में कमी, अनिद्रा, मिचली या उलटी और कमजोरी. इस की ज्यादा कमी से मसल क्रैम्प, सीजर या ट्रेमर (शरीर का अनियंत्रित शेक करना), सिरदर्द, कमजोर हड्डी, ओस्टोपोरोसिस और ह्रदय गति रुकने से सडेन डैथ भी हो सकती है. इस के चलते पोटैशियम और कैल्शियम की कमी भी हो सकती है.

कितने मैग्नीशियम की प्रतिदिन जरूरत

1-3 साल 80 एमजी
4-8 साल 130 एमजी
9-13 साल 240 एमजी

महिला

14-18 साल 360 एमजी
19 साल से ज्यादा 310-320 एमजी

प्रैग्नैंट और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को ज्यादा मैग्नीशियम की जरूरत होती है, यह उन की उम्र पर भी निर्भर करता है. प्रैग्नैंसी में 350-400 एमजी और ब्रेस्टफीडिंग में 310-360 एमजी की जरूरत होती है.

पुरुष

14-18 साल 410 एमजी
19-30 साल से ज्यादा 400 एमजी
31 साल से ज्यादा – 420 एमजी

टैस्ट कराने के बाद डाक्टर सही उपचार की सलाह देंगे.

हाइपोमैगनेसेमिया या लो मैग्नीशियम का उपचार: लो मैग्नीशियम में नैचुरल खाद्य सामग्रियों से इस की भरपाई की जा सकती है- केला, आलू, पीनट बटर, बादाम, काजू आदि नट्स, बीन्स, पालक, होल ग्रेन फ़ूड, दूध, बौटल्ड वाटर, मछली, ब्रेकफास्ट सीरियल आदि.

मैग्नीशियम के ओवरडोज से दस्त, मिचली, सिरदर्द, लो ब्लडप्रैशर, मसल्स की कमजोरी, थकावट, पेट फूलना जानलेवा हो सकता है. इस से हार्ट फेल, लकवा या कोमा में जाने की आशंका भी रहती है.

हाइपरमैगनेसेमिया या मैग्नीशियम ज्यादा होने से उपचार: 2.6 एमजी या अधिक मैग्नीशियम सिरम कौन्सैन्ट्रेशन होना हाइपरमैगनेसेमिया माना जाता है. इस की संभावना बहुत कम होती है पर कभी मैग्नीशियम का ओवरडोज लेने से ऐसी स्थिति हो सकती है. 7-12 एमजी या अधिक होना बहुत खतरनाक होता है. इस में हार्ट, लंग्स डैमेज और लकवा हो सकता है. ऐसे में सांस लेने के उपकरण की सहायता लेनी पड़ सकती है, कैल्शियम ग्लुकोनेट या कैल्शियम क्लोराइड का इंजैक्शन, डायलेसिस या स्टोमक पंपिंग (गैस्ट्रिक लावेज) किया जा सकता है. मामूली ओवरडोज में कब्ज और एसिडिटी की दवा व मैग्नीशियम सप्लीमैंट, यदि आप ले रहे हैं तो, बंद करना पड़ता है.

दीवाली नोस्टेलजिया से बचें चेंज को स्वीकारें

रितिका की मौम अपनी स्कूल फ्रैंड से फोन कौल पर अपने समय के दीवाली के त्योहार से जुड़े नोस्टेलजिक पलों को याद कर रही थीं, “यार अब दीवाली में वो मजा ही नहीं रहा. दीवाली की वो रौनक ही नहीं रही अब जो हमारे टाइम पर होता था. दीवाली तो है, पर वो खुशियां नहीं. घर में कई दिनों पहले बनने वाले खाने के तरहतरह के पकवान, मिठाइयां, मां की मदद से चकली, शक्करपारे, चिवड़ा वगैरह बनाना. उस समय सब एक साथ बैठे पूजा करते थे, खाना खाते थे, खूब पटाखे जलाते थे आज न तो वो दीवाली है और न ही वो खुशियां.

“याद है तुम्हें उस पटाखे जलाने का भी अपना मजा था. कैसे हम पटाखे धूप में रखते थे कि अगर धूप में नहीं रखे तो वे फुस्स हो जाएंगे. हमें जो फुलझड़ियां मिलती थी और उन्हें जला कर हम कितने खुश होते थे. अब तो बच्चे दीये कम और बिजली वाली एलईडी लाइट्स ही लगाते हैं.”

“हां यार , दीवाली के कई दिन पहले ही हम बाजार से दीये ले कर आते थे और अपने परिवार वालों से ज्यादा दीये लेने की जिद करते थे ताकि दीवाली पर घर सजाने में कोई कसर न रह जाए. बारीबारी दीयों में तेल डालना, बधाई देने और मिलने अपने रिश्तेदारों के यहां जाना. सही बात है यार, चल फिर बाद में बात करते हैं” कह कर रीतिका की मौम ने फोन रख दिया.

16 साल की रीतिका अपनी मौम के पास पहुंची और बोली, “मौम माना कि बदलते दौर में बहुत कुछ बदला है, दीवाली मनाने के तरीके भी बदल गए हैं. हर पीढ़ी दीवाली को अपने ढंग से मनाती है लेकिन मुझे लगता है हमें बदलते समय के साथ बदलना चाहिए और हल पल को एन्जोय करना चाहिए.” यह कह कर वह अपनी मौम के गले लग गई.

पुराने समय से कंपैरिजन करने में कोई समझदारी नहीं

पुराने समय को अच्छा और आज के समय गलत बता कर नुक्स निकालना या अपने समय से कंपेरिजन करने में कोई समझदारी नहीं है. बदलते समय के साथ अब बहुत सहूलियतें आ गई हैं. इस में आप ही सोचिए आज एक क्लिक पर घर बैठे आप के सामने बिना कहीं गए खानेपीने, कपड़े, ग्रोसरी या डेकोरेशन का सामान घर पर आ जाता है तब यह कहां पोसिबल था. बातबात पर “हमारे टाइम में तो ऐसे होता था” यह कह कर त्योहार का मज़ा किरकिरा ही होगा. बदलाव प्रकृति का नियम है और चेंज को एकसेप्ट कर के त्योहारों का मजा लेना चाहिए.

दीवाली गिफ्ट्स की औनलाइन शौपिंग से बढ़ाएं रिश्तों में मिठास

भागदौड़ भरी जिंदगी में समय निकालना और बाजार जा कर गिफ्ट्स खरीदना अब प्रेक्टिकल नहीं रह गया है इसलिए औनलाइन शौपिंग वेबसाइटों से ई-वाउचर, दीवाली गिफ्ट्स की शौपिंग कर के करीबियों को दीवाली गिफ्ट्स देना एक बेस्ट औप्शन है. अमेजन, फ्लिपकार्ट, मिंत्रा, मीशो, जिओ मार्ट जैसे ढेरों औनलाइन शौपिंग पोर्टल्स पर फेस्टिवल सेल्स लगी रहती हैं जहां लाखों शानदार दीवाली गिफ्ट के औप्शन हैं और आज का यूथ घर बैठे इन्हें और्डर कर सकता है और दीवाली पर अपने फ्रैंड्स, रेलटिव्स, क्लीग्स के साथ गिफ्ट्स एक्सचेंज कर के अपने रिश्तों को मजबूत बना सकता है.

ये सभी दीवाली गिफ्ट इन दिनों काफी ज्यादा ट्रेंड में भी चल रहे हैं. इस लिस्ट में मिल रहे दीवाली गिफ्ट में ढेरों चौइसेज हैं जिन्हें वे और्डर कर सकते हैं. दीवाली के त्योहार का जश्न मना सकते हैं. दीवाली गिफ्ट की ये औनलाइन लिस्ट इन दिनों काफी ज्यादा पसंद की जा रही है. हैवी डिस्काउंट और औफर्स के साथ घर बैठे बढ़िया डील पाने के लिए सेल को भी चेक किया जा सकता है.

अपनों के लिए दीवाली गिफ्ट्स खरीदने के लिए भीड़भाड़ में धक्के खाने के झंझट और मोलभाव करने की मुसीबत से बचते हुए औनलाइन शौपिंग के जरिए दीवाली गिफ्ट को काफी सस्ते दाम में लिया जा सकता है. हां अगर को कहे कि उसे भीड़भाड़ में जा कर, शोरशराबे और दुकानदार से नोंकझोंक करने में ही मजा आता है तो क्या ही कह सकते हैं.

इको-फ्रैंडली दीवाली है सही औप्शन

कई लोग बड़े गर्व से बताते हैं कि उन के समय में वे अंधाधुंध पटाखे जलाया करते थे. इसे वे अपने सुनहरे किस्सों के रूप में सुनाते हैं. वे ये नहीं समझते कि शोर करने वाले बम और फैंसी रौकेट अंधाधुंध तरीके से जलाए जाने से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है साथ ही पटाखों की आवाज जानवरों को भी परेशान करती है. कई बार हमारे घर के आसपास रहने वाले अधिक उम्र के लोगों को इन पटाखों की आवाज और उस से निकले धुएं से परेशानी हो सकती है इसलिए बदलते समय में दीवाली पर प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों के बजाय, इको-फ्रैंडली पटाखे इस्तेमाल करना बेस्ट औप्शन है.

मन से खुशी जताएं और दीवाली मनाएं

खुशी का संबंध मन से ही होता है. दीवाली के दिन रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ घर में छोटी सी पार्टी करना एक सुखद अनुभव हो सकता है. घर के टीनएजर्स अगर अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं तो अच्छी बात है.

दीवाली के उत्सव में गेम्स नाइट्स आयोजित करने की एक अच्छी परंपरा है, चाहे वह आप के घर पर हो या दोस्तों के घर. दीवाली की रात में एक साथ कोई गेम एक्टिविटी प्लान करें. साथ में मिल कर म्यूजिक पर डांस करें. गेम्स जैसे डम्ब शराड एक साथ खेल सकते हैं.

दीवाली के डिजिटल बधाई संदेश

परंपरागत रूप से पत्र, पोस्टकार्ड, स्मृति चिन्ह भेजना अब उबाऊ होने के साथसाथ प्रैक्टिकल भी नहीं है. ऐसे में मैसेज ईमेल, ई-कार्ड भेजे जा सकते हैं. दीवाली पर क्रिएटिविटी का एक रूप पर्सनल वीडियो मैसेज हो सकता है. यह आप के अपनों को खुशी और अपनेपन का एहसास देगा.

दीवाली पर दूर बैठे अपनों के साथ स्काइप सेशन, इंस्टाग्राम और फेसबुक स्टोरीज आदि के जरिए करीब आना दीवाली के जश्न को एक नया रूप दे सकता है . आप सोशल मीडिया लाइव सेशन के ज़रिए जुड़ना और सभी को अपनी दीवाली की झलक दिखाना भी कम इनोवेटिव नहीं होगा.

किचन में पसीना क्यों बहाना

खाने के शौकीनों के लिए भी यह डिजिटल दीवाली है. नहीं, आप को पहले की तरह दावत तैयार करने के लिए रसोई में दिन भर पसीना बहाने की जरूरत नहीं है. मिठाई से ऊब गए हैं और थाई करी खाना चाहते हैं? बस अपना खाना औनलाइन और्डर करें और डिनर से पहले सब कुछ तैयार कर लें. फूड डिलीवरी ऐप्स के जरिए मनचाही मिठाइयां फूड्स और्डर कर सकते हैं. अच्छी बात यह है कि पर पीस के हिसाब से भी इसे मंगवा सकते हैं. परिवार और दोस्तों के साथ स्वादिष्ट खाना और साथ में एक अच्छा टाइम बिताना दीवाली जैसे त्यौहार को और भी खास बना देता है.

घर की साफ सफाई और डेकोरेशन

आजकल घर की साफसफाई के लिए भी औनलाइन सर्विसेज एवलेबल हैं जिन से आप घर की साफसफाई करवा सकते हैं और मार्केट में मिलने वाले इलैक्ट्रानिक दीय, फ्लोटिंग कैंडल्स, बैटरी वाली एलईडी कैंडल, इलैक्ट्रिक लालटेन, बैटरी से घूमने वाले दीये, तरहतरह की फ़ैंसी लाइटों से घर को जगमगा सकते हैं.

कहानी एक अय्याश की : पहले किए मांबाप की कत्ल, फिर पत्नी को उतारा मौत के घाट

उदयन दास की कई माशूकाएं थीं. उन में से एक थी कोलकाता की रहने वाली 26 साला आकांक्षा शर्मा. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के एक बैंक में चीफ मैनेजर थे. भोपाल, मध्य प्रदेश के तकरीबन 32 साला उदयन दास को ऐयाशी करने के लिए दौलत नहीं कमानी पड़ी थी, क्योंकि उस के मांबाप इतना कमा कर रख गए थे कि अगर वह कुछ काम नहीं करता, तो भी जिंदगी में कभी भूखा नहीं सोता.

अब से तकरीबन 8 साल पहले आकांक्षा शर्मा की दोस्ती फेसबुक के जरीए उदयन दास से हुई थी. फेसबुक चैटिंग में उदयन दास ने खुद को आईएफएस अफसर बताया था, जो अमेरिका में रहता है और अकसर भारत आया करता है.

अपने पिता बीके दास को उस ने भेल, भोपाल का अफसर बताया था, जो रिटायरमैंट के बाद रायपुर में खुद की फैक्टरी चला रहे हैं और मां इंद्राणी दास को पुलिस महकमे से रिटायर्ड डीएसपी बताया था. उस ने मां का भी अमेरिका में रहना बताया था.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को यह भी बताया था कि वह आईआईटी, दिल्ली से ग्रेजुएट है.

आजकल जैसा कि आमतौर पर फेसबुक चैटिंग में होता है, वह आकांक्षा शर्मा और उदयन दास के मामले में भी हुआ. पहले जानपहचान, फिर दोस्ती और उस के बाद प्यार. जल्द ही दोनों ने मिलनाजुलना शुरू कर दिया.

उदयन दास भले ही भोपाल में रह रहा था, पर आकांक्षा शर्मा के लिए तो वह अमेरिका में था, इसलिए जल्द ही उदयन दास ने उसे बताया कि वह दिल्ली आ रहा है.

दोनों दिल्ली में मिले और कुछ दिन साथ गुजारे. उदयन दास की रईसी का आकांक्षा शर्मा पर खासा असर पड़ा. वे दोनों एकसाथ हरिद्वार, मसूरी और देहरादून भी घूमने गए और एक ही होटल में एकसाथ एक कमरे में रुके. फिर उदयन दास अमेरिका यानी भोपाल लौट गया, इस वादे के साथ कि जल्द ही वह फिर भारत आएगा और अब वे दोनों भोपाल में मिलेंगे, जहां उस के 2 मकान हैं.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया था कि उस का भोपाल वाला मकान काफी बड़ा है और उस का नीचे वाला हिस्सा किराए पर ब्रह्मकुमारी आश्रम को दे रखा है.

इन 2-3 मुलाकातों में आकांक्षा शर्मा सोचने लगी कि उदयन दास वैसा ही लड़का है, जैसा वह चाहती थी. वह तो शादी के बाद अमेरिका में नौकरी करने के सपने देखने लगी थी. लिहाजा, उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी, कत्ल और कब्र

एक दिन उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया कि उस का मन अब अमेरिका में नहीं लग रहा है और वह उस से शादी कर भोपाल में ही बस जाना चाहता है. इस से अमेरिका जा कर नौकरी करने की आकांक्षा शर्मा की ख्वाहिश मिट्टी में मिल गई, क्योंकि अब तक वह अपने घर वालों को बता चुकी थी कि वह नौकरी करने अमेरिका जा रही है.

आकांक्षा शर्मा उदयन दास को चाहने लगी थी, इसलिए राजी हो गई. आज नहीं तो कल उसे अमेरिका जाने का मौका मिल सकता है, इसलिए वह उदयन की बताई तारीख पर बीते साल जून महीने में भोपाल आ गई. मांबाप से हकीकत छिपाने के लिए उस ने यह झूठ बोला कि वह नौकरी करने न्यूयौर्क जा रही है.

आकांक्षा शर्मा ने भोपाल के ही पिपलानी के काली बाड़ी मंदिर में उदयन दास के साथ शादी भी कर ली. इस दौरान वह फोन पर घर वालों से भी बात करती रही, लेकिन खुद को अमेरिका में होने का झूठ बोलती रही.

कुछ दिन उदयन दास के साथ बीवी की तरह गुजारने के बाद आकांक्षा शर्मा को मालूम हुआ कि उस के शौहर ने उस से कई झूठ बोले हैं, क्योंकि न तो वह कभी अपने मांबाप से फोन पर बात करता था और न ही उन के बारे में पूछने पर कुछ बताता था.

हद तो उस वक्त हो गई, जब आकांक्षा शर्मा को यह पता चला कि उदयन दास अव्वल दर्जे का नशेड़ी है और दूसरी कई लड़कियों से उस के नाजायज ताल्लुकात हैं. जुलाई, तक तो आकांक्षा शर्मा ने अपने घर वालों से फोन पर बात की, लेकिन अब वह उन से कम ही बात करती थी. लेकिन फिर धीरेधीरे वह एसएमएस के जरीए उन से बात करने लगी थी.

14 जुलाई, का दिन आकांक्षा शर्मा पर कहर बन कर टूटा. अगर उदयन दास ने उस से कई झूठ बोले थे, तो एक झूठ उस ने भी उदयन से बोला था. दरअसल, आकांक्षा शर्मा का एक बौयफ्रैंड और था, जिस ने उस के कुछ फोटो, जो कम कपड़ों में थे, ह्वाट्सऐप पर डाल दिए थे. ये फोटो उदयन दास की निगाह में आए, तो वह भड़क उठा.

पूछने पर आकांक्षा ने कुछ सच्ची और कुछ झूठी बातें उसे बताईं, तो उदयन को लगा कि आकांक्षा ने उस से झूठ तो बोला ही है, साथ ही उस के नाजायज ताल्लुकात पुराने बौयफ्रैंड से हैं और वह उसे पैसे भी देती रहती है.

रात को लड़झगड़ कर आकांक्षा तो सो गई, पर उदयन की आंखों में नींद नहीं थी. साथ में सो रही बीवी उसे धोखेबाज लगने लगी थी. रातभर जाग कर उदयन दास आकांक्षा शर्मा के कत्ल की योजना बनाता रहा और सुबह के 5 बजतेबजते उस ने उस की हत्या भी कर डाली.

उदयन ने पहले गहरी नींद में सोती हुई आकांक्षा का चेहरा तकिए से दबाया. जब उस के मर जाने की पूरी तरह से तसल्ली हो गई, तब तकिया हटाया और उस का गला घोंट डाला, जिस से आकांक्षा के गले की हड्डी चटक गई.

अब समस्या आकांक्षा की लाश को ठिकाने लगाने की थी. सुबह नजदीक की दुकान से उदयन दास ने 14 बोरी सीमेंट खरीदा और आकांक्षा की लाश एक पुराने बक्से में डाल दी और तकरीबन 10 बोरी सीमेंट घोल कर उस में भर दिया, जिस से लाश जम जाए. बक्से से बदबू न आए, इसलिए उस के चारों तरफ उस ने सैलो टेप लगा दी.

दोपहर को उस ने अपने एक पहचान वाले मिस्त्री रवि को बुलाया और कमरे में चबूतरा बनाने की बात कही. इस बाबत उदयन ने बहाना यह बनाया कि वह मंदिर बनवाना चाहता है. रवि ने चबूतरा बनाने के लिए कमरा खोदा, पर चूंकि उस के सामने लाश वाला बक्सा नहीं रखा जा सकता था, इसलिए उदयन ने चतुराई से उसे बातों में उलझाया और तगड़ा मेहनताना दे कर चलता कर दिया.

इस के बाद उस ने बक्सा गड्ढे में डाला और उस पर चबूतरा बना दिया. खूबसूरती बढ़ाने के लिए उस पर मार्बल भी जड़ दिया.

यों पकड़ा गया

आकांक्षा शर्मा के मांबाप बांकुरा में परेशान थे, क्योंकि धीरेधीरे उन की बेटी ने एसएमएस के जरीए भी बात करना कम कर दिया था. कुछ दिनों तक तो उन्होंने सब्र रखा, लेकिन किसी अनहोनी का शक उन्हें हुआ, तो उन्होंने आकांक्षा की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.

बांकुरा क्राइम ब्रांच ने जब आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की, तो वह साकेत नगर, भोपाल की निकली. आकांक्षा के पिता शिवेंद्र शर्मा भोपाल आए और उदयन से मिले, क्योंकि आकांक्षा उन्हें उस के बारे में पहले बता चुकी थी.

उदयन ने उन्हें गोलमोल बातें बनाते हुए चलता कर दिया कि आकांक्षा तो न्यूयौर्क में नौकरी कर रही है. शिवेंद्र शर्मा के हावभाव देख कर समझ तो गए कि दाल में कुछ काला जरूर है, पर कुछ कहने की हालत में नहीं थे.

बांकुरा जा कर उन्होंने फिर पुलिस पर दबाव बनाया, तो क्राइम ब्रांच के टीआई अमिताभ कुमार 30 जनवरी, को अपनी टीम समेत भोपाल आए और गोविंदपुरा इलाके के सीएसपी वीरेंद्र कुमार मिश्रा से मिल कर उन्हें सारी बात बताई. इस पुलिस टीम के साथ आकांक्षा का छोटा भाई आयुष सत्यम भी था, जो बहन की चिंता में घुला जा रहा था.

पुलिस वालों ने योजना बना कर उदयन की निगरानी की, तो उस की तमाम हरकतें रहस्यमय निकलीं. 31 जनवरी, और 1 फरवरी, को पुलिस उदयन की निगरानी करती रही. इस से ज्यादा कुछ और हासिल नहीं हुआ, तो उन्होंने 2 फरवरी को उदयन के घर एमआईजी 62, सैक्टर 3-ए, साकेत नगर पर दबिश डाल दी.

उस वक्त उदयन दरवाजे पर ताला लगा कर अंदर बैठा था. गोविंदपुरा थाने के एएसआई सत्येंद्र सिंह कुशवाह छत के रास्ते अंदर गए और उदयन से मेन गेट का ताला खुलवाया, फिर तमाम पुलिस वाले अंदर दाखिल हुए.

अंदर का नजारा अजीबोगरीब था. उदयन का सारा घर धूल और गंदगी से भरा पड़ा था. तीनों कमरों में तकरीबन 10 हजार सिगरेट के ठूंठ बिखरे पड़े थे और शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. खाने की बासी प्लेटें भी पाई गईं, जिन से बदबू आ रही थी.

पर सब से ज्यादा हैरान कर देने वाली बात दूसरे कमरे में बना एक चबूतरा था, जिस के ऊपर फांसी का फंदा लटक रहा था और कमरों की दीवारों पर जगहजगह प्यारभरी बातें लिखी हुई थीं.

चबूतरे के बाबत पुलिस वालों ने सवालजवाब शुरू किए, तो पहले तो उदयन खामोश रहा, पर थोड़ी देर बाद ही उस ने फिल्मी स्टाइल में कहा कि उस ने आकांक्षा का कत्ल कर दिया है और उस की लाश इस चबूतरे के नीचे दफन है.

इतना सुनते ही पुलिस वालों के होश फाख्ता हो गए. उन्होंने तुरंत चबूतरे की खुदाई के लिए मजदूर बुला लिए. चबूतरा इतना पक्का था कि मजदूरों से नहीं खुदा, तो पुलिस वालों ने उसे जेसीबी मशीनों से खुदवाया. थोड़ी खुदाई के बाद निकला वह बक्सा, जिस में आकांक्षा की लाश 2 महीनों से पड़ी थी.

बक्सा खोला गया, तो उस में से आकांक्षा की मुड़ीतुड़ी हड्डियां निकलीं, जिन्हें पहले पोस्टमार्टम और फिर डीएनए टैस्ट के लिए भेज दिया गया.

खुली एक और कहानी

उदयन दास के मांबाप कहां हैं, यह सवाल भी अहम हो चला था. पुलिस वालों ने जब उन के बारे में पूछा, तो पहले तो उस ने उन्हें टरकाने की कोशिश की, पर जैसे ही पुलिस ने उस पर थर्ड डिगरी का इस्तेमाल किया, तो उस ने पूरा सच उगल दिया कि उस ने अपने मांबाप की हत्या अब से तकरीबन 5 साल पहले रायपुर वाले मकान में की थी और उन्हें लान में दफना दिया था.

मामला कुछ यों था. भोपाल में जब उदयन दास 7वीं जमात में था, तब उस ने एक दोस्त का स्कूल की दीवार पर सिर मारमार कर फोड़ दिया था. रायपुर आ कर भी उस की बेजा हरकतें कम नहीं हुई थीं. पढ़ाईलिखाई में तो वह शुरू से ही फिसड्डी था, पर रायपुर आ कर नशा भी करने लगा था.

मांबाप चूंकि उसे पढ़ाईलिखाई के बाबत डांटते रहते थे, इसलिए वह उन से नफरत करने लगा था. जब कालेज की डिगरी पूरी होने का वक्त आया, तो उस ने मांबाप से झूठ बोल दिया कि वह पास हो गया है. इस पर मांबाप ने उसे नौकरी करने को कहा, तो उसे लगा कि झूठ पकड़ा जाने वाला है. लिहाजा, उस ने मांबाप को ही ठिकाने लगाने का फैसला ले डाला.

एक रात जब पिता चिकन लेने बाजार गए हुए थे और मां ऊपर की मंजिल पर कमरे में कपड़े रख रही थीं, तो उस ने गला घोंट कर उन का कत्ल कर डाला. पिता जब बाजार से आए, तो उन की चाय में उस ने नींद की गोलियां मिला दीं और उन के गहरी नींद में चले जाने पर उन का भी गला घोंट दिया.

मांबाप की लाशें ठिकाने लगाने से उस ने मजदूर बुला कर लान में 2 बड़े गड्ढे खुदवाए और देर रात लाशें घसीट कर उन में डाल दीं और सीमेंट से उन्हें चुन दिया. मांबाप की हत्या करने के बाद उदयन ने रायपुर वाला मकान 30 लाख रुपए में बेच दिया और भोपाल आ कर साकेत नगर वाले घर में ऐशोआराम की जिंदगी जीने लगा.

निकम्मा और ऐयाश उदयन चालाक भी कम नहीं था. उस ने इंदौर से पिता का और इटारसी नगरपालिका से मां की मौत का झूठा सर्टिफिकेट बनवाया और उन की बिना पर सारी जायदाद अपने नाम करा ली.

मां की पैंशन के लिए जरूरी था कि उन के जिंदा होने का सर्टिफिकेट बनवाया जाए, जो उस ने दिल्ली की डिफैंस कालोनी के एक डाक्टर से बनवाया और बैंक मुलाजिमों को घूस दे कर हर महीने पैंशन निकालने लगा.

वैसे, उदयन दास के मामले से एक सबक लड़कियों को जरूर मिलता है कि फेसबुक की दोस्ती उस वक्त जानलेवा हो जाती है, जब वे उदयन दास जैसे जालसाज और फरेबियों के चंगुल में फंस कर घर वालों से झूठ बोलने लगती हैं और एक अनजान आदमी से चोरीछिपे शादी कर लेती हैं, इसलिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल उन्हें सोचसमझ कर करना चाहिए.

सैक्स और सिर्फ सैक्स

गिरफ्तारी के बाद भोपाल से रायपुर और रायपुर से बांकुरा ले जाए गए उदयन दास को जब 20 फरवरी, को भोपाल लाया गया, तब पता चला कि शादी के बाद अपनी बीवी आकांक्षा शर्मा के साथ वह खानेपीने के अलावा सिर्फ सैक्स ही करता रहा था. लगता ऐसा है कि सैक्स उस के लिए जरूरत नहीं, बल्कि एक खास किस्म की बीमारी बन गई थी. लगातार सैक्स करने में वह थकता इसलिए नहीं था कि हमेशा नशे में रहता था.

मुमकिन है कि आकांक्षा शर्मा को उस की इस आदत पर भी शक हुआ हो और उस ने एतराज जताया हो, लेकिन चूंकि वह एक तरह से उस की कैदी सी हो कर रह गई थी, इसलिए जीतेजी किसी से इस बरताव का जिक्र नहीं कर पाई और पूछने पर उदयन ने पुलिस वालों को बताया कि वह जब 8वीं जमात में था, तब जेब में कंडोम रख कर चलता था कि क्या पता कब कोई लड़की सैक्स करने के लिए राजी हो जाए.

असली जिंदगी तो ये जी रहे हैं  

यह अलग ही तरह का शख्स था. पता नहीं कहां कौन सी साधारण बात इसे खास लगने लगे, किस बात से मोहित हो जाए, कुछ कह नहीं सकते थे. जिन बातों से एक आम आदमी को ऊब होती थी, इस आदमी को उस में मजा आता था. एक अजीब सा आनंद आता था उसे. इस की अभिरुचि बिलकुल अलग ही तरह की थी. वैसे यह मेरा दोस्त है, फिर भी मैं कई बार सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि आखिर यह आदमी किस मिट्टी का बना है. मिट्टी सी चीज में अकसर यह सोना देखता है और अकसर सोने पर इस की नजर ही नहीं जाती.

मैं इस के साथ मुंबई घूमने गया था. हम टैक्सी में दक्षिण मुंबई के इलाके में घूम रहे थे. हमारी टैक्सी बारबार सड़क पर लगे जाम के कारण रुक रही थी. जब टैक्सी ऐसे ही एक बार रुकी तो इस का ध्यान सड़क के किनारे बनी एक 25 मंजिली बिल्ंिडग की 15वीं मंजिल पर चला गया, जहां एक कमरा खुला दिख रहा था. मानसून का समय था. आसमान में बादल छाए थे. कमरे की लाइट जल रही थी, पंखा घूमता दिख रहा था. वह बोल उठा, ‘यार, इस को कहते हैं ऐश. देखो, अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हैं और वो महाशय आराम फरमा रहे हैं, वह भी पंखे की हवा में.’

मैं ने सोचा इस में क्या ऐश की बात है? मैं ने कहा, ‘यार, वह आदमी जो उस कमरे में दिख रहा है, वह क्या कुछ काम नहीं करता होगा? आज कोई कारण होगा कि घर पर है.’

अब वह बोला, ‘यार, अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हैं और वह ऐश कर रहा है. यह तो एक बिल्डिंग के एक माले के एक फ्लैट की बात है, यहां तो हर फ्लैट में लोग मजे कर रहे हैं.’

मैं ने झल्ला कर कहा, ‘हां, हर फ्लैट नहीं, हर फ्लैट के हर कमरे में कहो और अपन यहां ट्रैफिक में फंसे हुए हैं.’

यह तो एक घटना मुंबई की रही. एक दिन शाम को घूमते हुए शहर के रेलवे स्टेशन पर मिल गया. मैं शाने भोपाल ट्रेन से दिल्ली जा रहा था. यह तफरीह करने आया था. चूंकि ट्रेन के लिए समय था, सो हम एक बैंच पर बैठ गए. स्टेशन पर आजा रही ट्रेनों को यह टकटकी लगा कर देखता. बोगी में बैठे लोगों को देखता. यदि किसी एसी बोेगी में कोई यात्री दिख जाता आपस में बतियाते या खाना खाते, लेटे पत्रिका पढ़ते तो यह कहता, ‘यार, देखो इन के क्या ऐश हैं. मस्त एसी में यात्रा कर रहे हैं, खापी रहे हैं, गपशप कर रहे हैं और अपन यहां कुरसी पर बैठे हैं?’

मैं ने कहा, ‘यार, इस में क्या खास बात हो गई? अपन लोग भी जाते हैं तो इसी तरह मौज करते हैं यदि तुम्हारे पैमाने से बात तोली जाए.’ मैं ने आगे कहा, ‘वैसे मैं तो रेलयात्रा को एक बोरिंग चीज मानता हूं.’ अब मेरा मित्र बोल पड़ा, ‘अरे यार, तुम नहीं समझोगे क्या आनंद है यात्रा का. मस्ती में पड़े रहो, सोते ही रहो और यदि घर से परांठेसब्जी लाए हो तो उस का भी मजा अलग ही है. काश, अपन भी ऐसे ही इस समय ट्रेन की ऐसी ही किसी बोगी में बैठे होते तो मजा आ जाता.’

मैं ने कहा, ‘तो चल मेरे साथ? असल जिंदगी जीना, मैं तो खैर बोर होऊंगा तो होते रहूंगा.’ लेकिन इस बात पर यह मौन हो गया.

इसे कौन से साधारण दृश्य अपील कर जाएं, कहना मुश्किल था. एक बार मैं और यह कार से शहर से 80 किलोमीटर दूर स्थित एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पौट को जा रहे थे. एक जगह ट्रैफिक कुछ धीमा हो गया था. इस की नजर सड़क के किनारे खड़े ट्रकों व उस के साइड में बैठे ड्राइवरक्लीनरों पर चली गई.

वे अपनी गाडिं़यां खड़ी कर खाना पका रहे थे. ईंटों के बने अस्थायी चूल्हे पर खाना पक रहा था. एक व्यक्ति रोटियां सेंक रहा था, एक सब्जी बना रहा था. बाकी बैठे गपशप कर रहे थे. बस, इतना दृश्य इस के लिए असली जिंदगी वाला इस का जुमला फेंकने और उसे लंबा सेंकने के लिए काफी था.

यह बोल उठा, ‘देखो यार, जिंदगी इस को कहते हैं मस्त, कहीं भी रुक गए, पकायाखाया, फिर सो गए और जब नींद खुली तो फिर चल दिए और अपन, बस चले जा रहे हैं. अभी किसी होटल में ऊटपटांग खाएंगे. ये अपने हाथ का ही बना खाते हैं, इस में  किसी मिलावट व अशुद्धता की गुंजाइश ही नहीं है. ऐसी गरम रोटियां होटल में कहीं मिलती हैं क्या?

मैं ने चिढ़ कर कहा, ‘ऐसा करते हैं अगली बार तुम भी रसोई का सामान ले कर चलना. अपन भी ऐसे ही सड़क के किनारे रुक कर असली जिंदगी का मजा लेंगे. और तुरंत ही मजा लेना है तो चल आगे, किसी शहरकसबे के बाजार से अपना तवा, बेलन और किराने का जरूरी सामान खरीद लेते हैं, इस पर वह मौन हो गया.

मैं एक बार इस के साथ हवाईजहाज से बेंगलुरु से देहरादून गया. फ्लाइट के 2 स्टौप बीच में थे. एयर होस्टैस और दूसरे हौस्पिटैलिटी स्टाफ के काम को यह देखतासुनता रहा. बाद में बोला, ‘यार, असली मजे तो इन्हीं के हैं? 2 घंटे में इधर, तो 2 घंटे में उधर. सुबह उठ कर ड्यूटी पर आए तो दिल्ली में थे, नाश्ता किया था मुंबई में. लंच लिया बेंगलुरु में और डिनर लेने फिर दिल्ली आ गए. करना क्या है, बस, मुसकराहटों को फेंकते चलना है. एक बार हर उड़ान में सैफ्टी निर्देशों का प्रदर्शन करना है, बस, फिर जा कर बैठ जाना है. प्लेन के लैंड करते समय फिर आ जाना है और यात्रियों के जाते समय बायबाय, बायबाय करना है. इसे कहते हैं जिंदगी.’

मैं ने कहा, ‘यार, तुझे हर दूसरे आदमी की जिंदगी अच्छी लगती है, अपनी नहीं.’ मैं ने आगे कहा कि इन की जिंदगी में रिस्क कितना है? अपन तो कभीकभी प्लेन में बैठते हैं तो हर बार सब से पहला खयाल सहीसलामती से गंतव्य पहुंच जाने का ही आता है. अब इस बात पर यह बंदा मौन हो गया, कुछ नहीं बोला. बस, इतना ही दोहरा दिया कि असली ऐश तो ये करते हैं.

एक और दिन की बात है. यह अपने खेल अनुभव के बारे में बता कर दूसरों की जिंदगी में फिर से तमगे पर तमगे लगा रहा था. वनडे क्रिकेट मैच देख आया था नागपुर में, बोला, ‘यार, जिंदगी हो तो खिलाड़ी जैसी. कोई काम नहीं, बस, खेलो, खेलो और जम कर शोहरत व दौलत दोनों हाथों से बटोर लो. जनता भी क्या पगलाती है खिलाडि़यों को देख कर, इतनी भीड़, इतनी भीड़, कि बस, मत पूछो.’

मैं ने कहा, ‘बस कर यार, अभी पिछले सप्ताह प्रसिद्ध गायक सोनू निगम का कार्यक्रम हुआ था, उस में भी तेरा यह कहना था कि अरे बाप रे, क्या भीड़ है. लोग पागलों की तरह दाद दे रहे हैं, झूम रहे हैं. जिंदगी तो ऐसे कलाकारों की होती है’ मैं ने आगे कहा, ‘इस स्तर पर वे क्या ऐसे ही पहुंच गए हैं. न जाने कितने पापड़ बेले हैं, कितना संघर्ष किया है. असली कलाकार तो मैं तुझे मानता हूं जो असली जिंदगी को कहांकहां से निकाल ढूंढ़ता है.’

वह बोला, ‘यार, यह सब ठीक है. पापड़आपड़ तो सब बेलते हैं, लेकिन समय भी कुछ होता है. ये समय के धनी लोग हैं और अपन समय के कंगाल? घिसट कर जी रहे हैं.’ मैं ने कहा, ‘मैं तो तुम्हारी असली जिंदगी जीने की अगली उपमा किस के बारे में होगी, उस का इंतजार कर रहा हूं. तुम्हारा यह चेन स्मोकर की तरह का नशा हो गया है कि हर दूसरे दिन किसी दूसरे की जिंदगी में तुम्हें नूर दिखता है और अपनी जिंदगी कू्रर.’

वह कुछ नहीं बोला. अब उस के मौन हो जाने की बारी थी. उस का मौन देख कर मैं ने भी अब मौन रहना उचित समझा, वरना मैं ने कुछ कहा तो पता नहीं यह फिर किस से तुलना कर के अपने को और मुझे भी नीचा फील करवा दे.

मेरे इस दोस्त का नाम तकी रजा है. महीनेभर बाद पिछले शनिवार को मैं इस से मिलने घर गया था. मैं आजकल इस के ‘असली जिंदगी इन की है’ जुमले से थोड़ा डरने लगा हूं. मुझे लग रहा था कि कहीं यह मेरे पहुंचते ही ‘असली जिंदगी तो इन की है’ कह कर स्वागत न कर दे. मैं इस के घर का गेट खोल कर अंदर दाखिल हुआ. यह लौन में ही बैठा हुआ था.

मेरी ओर इस की नजर गई. लेकिन तकी, जो ऊपर को टकटकी लगाए कुछ देख रहा था, ने तुरंत नजर ऊपर कर ली. मैं उस के सामने पड़ी कुरसी पर जा कर बैठ गया. उस के घुटनों को छू कर मैं ने कहा कि क्या बात है, सब ठीक तो है? वह मेरे यह बोलते ही बोला, ‘क्या ठीक है यार, ऊपर देख? कैसे एक तोता मस्त अमरूद का स्वाद ले रहा है?’

मैं ने ऊपर की तरफ देखा, वाकई एक सुरमी हरे रंग का लेकिन लाल रंग की चोंच, जोकि तोते की होती ही है, वाला तोता अमरूद कुतरकुतर कर खा रहा था और बारीकबारीक अमरूद के कुछ टुकड़े नीचे गिर रहे थे. थोड़ी देर बाद वह फुर्र से टांयटांय करते उड़ गया. फिर एक दूसरा तोता आ गया. उस के पीछे 2-3 तोते और आ गए. वे सब एकएक अमरूद पर बैठ गए.

एक अमरूद पर तो 2 तोते भी बैठ कर उसे 2 छोरों से कुतरने लगे. कौमी एकता का दृश्य था. तकी बोला, ‘यार, असली जिंदगी तो इन की है. जमीन पर आने की जरूरत ही नहीं, हवा में रहते ही नाश्ता, खाना, टौयलेट सब कर लिया.’ और हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि तकी ने जैसे ही यह बोला कि एक तोता, जो उस के सिर के ठीक ऊपर वाली डाल पर था, ने अपना वेस्ट मैटेरियल सीधे तकी के सिर पर ही गिरा दिया.

‘यह भी कोई तरीका है,’ कह कर तकी अंदर की ओर भागा. जब वह वापस आया तो मैं ने कहा, ‘हां यार, वाकई असली जिंदगी ये ही जी रहे हैं.’ तकी ने मुझे खा जाने वाली नजरों से देखा.

मैं ने इस के ‘असली जिंदगी ये जी रहे हैं’ वाले आगामी बेभाव पड़ने वाले डायलौग से बचने के लिए बात को आम भारतीय की तरह महंगाई को कोसने के शाश्वत विषय की ओर मोड़ दिया.

तकी बोला, ‘हां यार, यह महंगाई तो जान ले रही है.’ लेकिन थोड़ी ही देर में असली जिंदगी तो ये जी रहे हैं’ का साजोसामान ले जाती कुछ बैलगाडि़यां सामने से निकल रही थीं. ये गड़रियालुहार थे जोकि खानाबदोश जिंदगी जीते हैं. बैलगाडि़यों पर पलंग, बच्चे और सब सामान लदा दिख रहा था. अब तकी टकटकी लगा कर इन्हें ही देख रहा था. उस की आंखों ने बहुतकुछ देख लिया जो कि उसे बाद में शब्दों में प्रकट कर मेरी ओर शूट करना था. अंतिम बैलगाड़ी जब तक 25 मीटर के लगभग दूर नहीं पहुंच गई, यह उसे टकटकी लगा कर देखता ही रहा. अब वह बोला, ‘यार, जिंदगी तो इन की है?’

मैं ने कहा, ‘खानाबदोश जिंदगी भी कोई जिंदगी है?’

वह बोला, ‘यार, तुम नहीं समझोगे, इसी में जिंदगी का मजा है. एक जगह से दूसरी जगह को ये लोग हमेशा घूमते रहते हैं. कहीं भी रुक लिए और कहीं भी बनाखा लिया, और कहीं भी रात गुजार ली. भविष्य की कोई चिंता नहीं, मस्तमौला, घुमक्कड़ जिंदगी, सब को कहां मिलती है.’

मैं ने सोचा कि इस को भी यह अच्छा कह रहा है. अब तो यहां से रवानगी डालना ही ठीक होगा, वरना ‘असली जिंदगी तो इन की है’ का कोई न कोई नया संस्करण कहीं न कहीं से इस के लिए प्रकट हो जाएगा, जिसे वह मेरे पर शूट करेगा जो कि मुझे आजकल हकीकत की गोली से भी तेज लगने लगा है.

कांग्रेस को समझना होगा बड़े काम के होते हैं छोटे चुनाव

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस ने किसी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन है. जिस को ‘इंडिया ब्लौक’ के नाम से जाना जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा कांग्रेस गठबंधन ने 43 सीटें जीती थी. जिस में से सपा के खाते में 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं.

9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव अलीगढ़ जिले की खैर, अंबेडकर नगर की कटेहरी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, कानपुर नगर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, गाजियाबाद की गाजियाबाद, मिर्जापुर की मझवां, मुरादाबाद की कुंदरकी और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट शामिल है.

उत्तर प्रदेश के 9 सीटों पर चुनाव में 2022 के विधानसभा में इन में से समाजवादी पार्टी ने सब से अधिक 4 सीटें जीती थीं. भाजपा ने इन में से 3 सीटें जीतीं थीं. राष्ट्रीय लोक दल और निषाद पार्टी के एकएक उम्मीदवार इन सीटों पर विजयी हुए थे. कानपुर नगर की सीसामऊ सीट 2022 में यहां से जीते सपा के इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से खाली हुई है.

समाजवादी पार्टी ने सभी 9 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस पहले इस चुनाव में 5 सीटों को अपने लिए मांग रही थी. समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए 2 सीटें छोड़ी थी. कांग्रेस ने मनमुताबिक सीट नहीं मिलने के चलते उपचुनाव ना लड़ने का फैसला लिया. यूपी कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय ने साफ कहा कि कांग्रेस पार्टी चुनाव नहीं लड़ेगी.’ अविनाश पांडेय ने कहा कि आज सब दलों को मिल कर संविधान को बचाना है. अगर भाजपा को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में संविधान, भाईचारा और आपसी सौहार्द्रता और भी कमजोर हो जाएगी.

हरियाणा की हार से कांग्रेस में निराशा का महौल है. राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं. उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस हार जाती तो उन के लिए एक और मुश्किल हो जाती. नरेंद्र मोदी और भाजपा से लड़ने के लिए कांग्रेस अपनी जमीन छोड़ती जा रही है. जिस का प्रभाव आने वाले समय पर पड़ेगा. खासकर हिंदी बोली वाले क्षेत्रों में जहां पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है वहां कांग्रेस को कोई चुनाव छोटा समझ कर छोड़ना नहीं चाहिए. केवल विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने से ही काम नहीं चलने वाला. कांग्रेस को अगर अपने को मजबूत करना है तो उसे पंचायत चुनाव और शहरी निकाय चुनाव भी लड़ने पड़ेंगे. तभी उस का संगठन मजबूत होगा. बूथ लेवल तक कार्यकर्ता तैयार हो सकेंगे.

पार्टी को बूथ लेवल तक मजबूत करते है छोटे चुनाव:

पंचायत और निकाय चुनाव के चुनाव हर 5 साल में पचायती राज कानून के तहत होते हैं. इन में जातीय आरक्षण और महिला आरक्षण दोनो शामिल हैं. इन चुनाव में 33 फीसदी महिलाओं को आरक्षण है. पंचायती राज कानून प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय 1984 में लागू हुआ था. पंचायत और निकाय चुनाव विधानसभा और लोकसभा चुनाव की नर्सरी जैसे हैं. राजनीति में नेताओं की पौध पहले छात्रसंघ चुनावों से तैयार होती थी. आज के नेताओं में तमाम नेता ऐसे हैं जो छात्रसंघ चुनाव से बढ़ कर नेता बने. इन में वामदल और कांग्रेस दोनो शामिल हैं. छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगने के बाद से पंचायत और निकाय चुनाव राजनीति की नर्सरी बन गए हैं.

कांग्रेस ने पिछले कुछ सालों से पंचायत और निकाय चुनाव मे गंभीरता से लड़ना बंद कर दिया है. जिस के कारण उन का संगठन बूथ स्तर तक नहीं पहुंच रहा और नए नेताओं की पौध भी वहां तैयार नहीं हो पा रही है. पंचायत चुनाव और शहरी निकाय चुनाव का माहौल विधानसभा और लोकसभा चुनाव जैसा होने लगा है. पंचायत चुनावों में राजनीतिक दल अपनी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव भले ही नहीं लड़ते हैं लेकिन पार्टी का समर्थन होता है. शहरी निकाय चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़े जाते हैं.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने पंचायत चुनाव के महत्व को समझा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो सफलता मिली उसे रोकने के लिए पूरे दमखम से पंचायत और विधानसभा चुनाव लड़ कर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के सफलता हासिल कर ली. पश्चिम बंगाल की 63,229 ग्राम पंचायत सीटों में टीएमसी ने 35,359 सीटें जीतीं. दसरे नम्बर पर रही भाजपा 9,545 सीटों पर जीत की थी.

ममता बनर्जी ने पंचायत चुनाव के जरीए ही 16 साल पहले राज्य में अपनी पार्टी को मजबूत किया और विधानसभा चुनाव जीते थे. वहां से ही लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल कर के पश्चिम बंगाल से कांग्रेस और वामदलों को राज्य से बेदखल कर दिया.

दूसरे राज्यों को देखें तो जिन दलों ने पंचायत और निकाय चुनाव लड़ा वह राज्य की राजनीति में प्रभावी हुए. उत्तर प्रदेश और बिहार में समाजवादी पार्टी और राजद दोनों ही पंचायत चुनावों में सब से प्रभावी ढंग से हिस्सा लेती है. जिस की वजह से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी सब से प्रमुख दल के रूप में चुनाव मैदान में होते हैं. उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में जिला पंचायत सदस्य की 3050 सीटें हैं. 3047 सीटों पर हुए चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच था. भाजपा 768 ने और सपा ने 759 सीटे जीती थी.

2021 में उत्तर प्रदेश में हुए ग्राम पंचायत चुनाव में 58,176 ग्राम प्रधानों सहित 7 लाख 31 हजार 813 ग्राम पंचायत सदस्यों ने जीत हासिल की थी. वैसे तो यह चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े गए थे लेकिन ब्लौक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में क्षेत्र विकास समिति और जिला पंचायत सदस्य के साथ ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य वोट देते हैं. ऐसे में हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा अपने लोगों को यह चुनाव जितवाना चाहती है. पंचायत चुनाव की ही तरह से शहरी निकाय चुनाव होते हैं. इस चुनाव में पार्टी अपने प्रत्याशी खड़ा करती है. इस में पार्षद, नगर पालिका, नगर पंचायत और मेयर का चुनाव होता है.

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में कुल 17 नगर निगम यानी महापालिका, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायत हैं. इन सभी के चुनाव स्थानीय निकाय चुनाव होते हैं. नगर निगम सब से बड़ी स्थानीय निकाय होती है, उस के बाद नगर पालिका और फिर नगर पंचायत का नम्बर आता है. पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव खास इसलिए होते हैं क्योंकि यह कार्यकर्ताओं का चुनाव होता है जो पार्टियों को लोकसभा और विधानसभा जिताने में अहम भूमिका अदा करते हैं. यहां कार्यकर्ता और प्रत्याशी दोनों को अपने वोटरों का पता होता है. देखा यह गया है कि पंचायत और निकाय चुनावों में जिस पार्टी का दबदबा होता है, लोकसभा या विधानसभा चुनावों में उस के अच्छे प्रदर्शन की संभावना भी बढ़ जाती है.

बात केवल उत्तर प्रदेश की ही नहीं है बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ और दिल्ली का भी यही हाल है. जिस प्रदेश में जो पार्टी पंचायत और निकाय चुनाव में मजबूत होती है वह विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन दिखाती है. उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल इस का सब से बड़ा उदाहरण हैं. यहां भाजपा और टीएमसी ने पंचायत चुनाव में सब से अच्छा प्रदर्शन किया था तो विधानसभा और लोकसभा में भी उन का अच्छा प्रदर्शन रहा है. बिहार में 8053 ग्राम पंचायतें हैं. जबकि यहां गांवों की संख्या 45,103 हैं. मध्य प्रदेश के 52 जिलों में 55 हजार से अधिक गांव हैं. 23066 ग्राम पंचायतें हैं.

राजस्थान में 11 हजार 341 ग्राम पंचायतों के चुनाव है. वहां इन चुनाव का बड़ा राजनीतिक महत्व है. विधानसभा चुनाव के बाद जनता की सब से अधिक दिलचस्पी इन चुनावों में होती है. राजस्थान और हरियाणा में सरपंच यानि मुखिया की बात का महत्व उत्तर प्रदेश और बिहार से अधिक है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि राजस्थान और हरियाणा में खाप पंचायतों का प्रभाव रहा है. पंचायती राज कानून लागू होने के बाद खाप पंचायतों का प्रभाव खत्म हुआ और वहां चुने हुए मुखिया यानि सरपंच का प्रभाव होने लगा.

छोटे चुनावों का बड़ा आधार

पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण होने के कारण अब महिलाएं यहां मुखिया बनने लगी. बहुत सारे पुरूष समाज को यह पंसद नहीं था लेकिन मजबूरी में सहन करना पड़ता है. एक ग्राम पंचायत में 7 से 17 सदस्य होते हैं. इन को गांव का वार्ड कहा जाता है. इस के चुने सदस्य को पंच कहा जाता है. पंचायत चुनाव में जनता 4 लोगों का चुनाव करती है. इन में प्रधान या सरपंच या मुखिया के नाम से जाना जाता है. इस के बाद पंच के लिए वोट पड़ता है. तीसरा वोट क्षेत्र पंचायत समिति और चौथा जिला पंचायत सदस्य के लिए होता है.

छोटे चुनाव का बड़ा आधार होता है. इस की दो बड़ी वजहे हैं. पहली कि यहां चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी और वोटर के बीच जानपहचान सी होती है. फर्जी वोट और वोट में होने वाली गड़बड़ी को पकड़ना सरल होता है. इन चुनावों में आरक्षण होने के कारण हर जाति के वोट लेने पड़ते हैं. ऐसे में सभी को बराबर का हक देना पड़ता है. यहां पार्टी की नीतियां नहीं चलती हैं. ऐसे में जो अच्छा प्रत्याशी होता है चुनाव जीत लेता है. यह प्रत्याशी अगर विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक जाएगा तो चुनावी राजनीति की दिशा में बदलाव होगा.

‘ड्राइंग रूम पोलिटिक्स’ से चुनाव को जीतना सरल नहीं होता है. पंचायत और निकाय चुनाव लड़ने वाले नेता को मेहनत करने की आदत होती है. वह पार्टी के लिए मेहनत करेगा. कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वह छोटे चुनावों के बड़े महत्व को समझे. अधिक से अधिक संख्या में ज्यादा से ज्यादा चुनाव लड़ना कांग्रेस की सेहत को ठीक करने का काम करेगा. इस से गांवगांव शहरशहर बूथ लेवल पर उस के पास कार्यकर्ताओं का संगठन तैयार होगा जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव को जीतने लायक आधारभूत ढांचा तैयार कर सकेंगे.

युवाओं में बढ़ रहा चुनावों का आकर्षण

जिस तरह से छात्रसंघ चुनाव लड़ने के लिए कालेज में पढ़ने वाले युवा पहले ललायित रहते थे अब वह पंचायत और निकाय चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहते हैं. पिछले 10 सालों को देखें तो हर राज्य में औसतन 60 प्रतिशत पंचायत चुनाव लड़ने वालों की उम्र 40 साल से कम रही है. इन में से कई ने अपने कैरियर छोड़ कर चुनाव लड़ा और जीते. कांग्रेस इन युवाओं के जरीए राजनीति में बड़ी इबादत लिख सकती है. यह युवा जाति और धर्म से अलग हट कर राजनीति करते हैं.

प्रयागराज के फूलपुर विकासखंड के मुस्तफाबाद गांव निवासी आदित्य ने एमबीए जैसी प्रोफैशनल डिग्री लेने के बाद नौकरी नहीं की वरन अपने गांव की दुर्दशा को सुधारने की ठानी. अपने अंदर एक जिद पाली कि गांव में ही बेहतर करेंगे. यहां की दशा सुधार कर ही दम लूंगा.

गांव में बिजली नहीं थी तो खुद के पैसे से विद्युतीकरण करा दिया. गांव में बिजली आई तो सभी आदित्य के मुरीद हो गए. उसे अपना मुखिया चुनने का मन बनाया. आदित्य ने चुनाव जीत कर प्रयागराज के सब से कम उम्र के ग्राम प्रधान बनने में सफलता हासिल की.

हरियाणा पंचायत चुनाव में 21 साल की अंजू तंवर सरपंच बनीं. अंजू खुडाना गांव की रहने वाली हैं. खुडाना गांव के सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित थी. गांव के ही बेटी अंजू तंवर को चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया. खुडाना गांव की आबादी दस हजार है. कुछ 3,600 वोट चुनाव के दौरान डाले गए थे. जिस में से सब से ज्यादा 1,300 वोट अंजू तंवर को मिले थे. अंजू के परिवार से कोई भी राजनीति में नही है. वह अपने परिवार से राजनीति में प्रवेश करने वाली पहली सदस्य हैं.

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में निर्मला वल्के सब से कम उम्र की सरपंच बनी हैं. स्नातक की पढ़ाई करने के दौरान उन्होने परसवाड़ा विकासखंड की आदिवासी ग्राम पंचायत खलोंडी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. आदिवासी समाज से एक छात्रा को पढ़ाई की उम्र में गांव की सरपंच बनना समाज व गांव की जागरूकता का ही हिस्सा कहा जा सकता है.

पूरे देश में ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं. जहां युवाओं ने पंचायत और निकाय चुनाव में जीत हासिल की है. ऐसे में युवा चेहरों को आगे लाने में कांग्रेस अहम भूमिका अदा कर सकती है. कांग्रेस जाति और धर्म की राजनीति में फिट नहीं हो पाती है. पंचायत और निकाय चुनाव में जाति और धर्म का प्रभाव कम होता है. ऐसे में अगर इन चुनाव में कांग्रेस लड़े और युवाओं को आगे बढ़ाए तो देश की राजनीति से जाति और धर्म को खत्म करने मे मदद मिल सकेगी.

कांग्रेस का अपना चुनावी ढांचा मजबूत होगा. छोटे चुनावों को कमतर आंकना ठीक नहीं होता है. जब कांग्रेस ताकतवर थी तब वह इन चुनावों को लड़ती और जीतती थी. पूरे देश में कांग्रेस अकेली पार्टी है जो भाजपा को रोक सकती है. इस के लिए उसे अपने अंदर बदलाव और आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा. इस के लिए छोटे चुनाव बड़े काम के होते हैं.

काश! मैं मैडम का कुत्ता होता

सामने वाली कोठी की बालकनी में मैडम रोज सुबह नहा धो कर बाल संवारती आ खड़ी होती थीं. उनके साथ उनका प्यारा डौगी झक सफेद बालों और काली-काली आंखों वाला कभी उनकी गोद में चढ़ कर उनके गालों को चूमता तो कभी उनके कोमल मुलायम हाथों से बिस्कुट खाता नजर आता था. मैं दोनों के इस प्रणय सीन को देखने के चक्कर में सुबह छह बजे ही अपने मकान की छत पर दूरबीन लेकर चढ़ जाता था. कभी मैडम सुबह सवेरे ही नहा-धोकर बालकनी में निकल आतीं, तो कभी आने में नौ-दस भी बजा देती थीं.

मगर मैं था कि जब तक डौगी को उनका मुंह चाटते नहीं देख लेता, दिल को सुकून नहीं मिलता था. इस प्रणय दृश्य को देखकर मैं खूबसूरत कल्पनाओं से सराबोर हो जाता था. फिर भले ही देर हो जाने पर ऑफिस जाकर बड़े साहब की घुड़कियां खानी पड़ें, जो अक्सर मैं खाता ही था, आदत हो गई थी.मैं जब अपने छोटे से कस्बे से इस शहर में नौकरी की तलाश में आया था, तो चलते वक्त मां ने नसीहत की थी, बेटा कुछ भी हो जावे, सुबह नहा-धोकर पूजा करना और सूर्य भगवान को जल देना मत भूलना. मैं एक पेटी में कुछ कपड़े और एक झोले में कुछ बर्तन-भांडे लिए कई दिन इस अनजाने शहर में मकान की तलाश में भटकता रहा. किसी ने बताया कि कोई एलआईजी मकान देख लो, किराया कम होता है.

यहां कैंट एरिया खत्म होते ही सड़क के एक ओर रईसों की बड़ी-बड़ी कोठियां बनी हैं. बेहद खूबसूरत, नक्काशीदार कोठियां, दुमंजिली, तिमंजिली, बड़ी बड़ी बालकनी वाली, फूलों से सजे सुंदर गार्डन ऐसे कि निगाह ही न हटे. वहीं सड़क के दूसरी ओर एलआईजी मकानों की लम्बी कतार है. बेरंग, टूटे फूटे, गंदे और सीलन भरे कमरों वाले. इसी में से एक जर्जर बदसूरत सा मकान मैंने किराए पर ले लिया. मां की नसीहत थी सो पूजा पाठ के लिए एक कोने में रंगीन पन्नी चिपका कर भगवान जी के रहने का बंदोबस्त भी कर दिया. सूर्य भगवान को जल देने सुबह छत पर जाने लगा. एक दिन मोहतरमा अपने डौगी को गोद में लिए बालकनी में खड़ी दिखाई दीं. दूर से दृश्य बहुत साफ नहीं था, मगर निगाहें अटक गई. इतना तो दिख ही रहा था कि डौगी जी उनकी गोद में मचल मचल कर उनके गालों पर बार-बार अपना मुंह लगा रहे थे. दूसरे दिन भी कुछ ऐसा ही दृश्य. तीसरे दिन तो मैं दृश्य को स्पष्ट देखने के लिए बाजार से दूरबीन ले आया. दूरबीन आंखों पर चढ़ा कर दोनों की प्रेम लीलाओं का आनंद लेने लगा. यह मेरा रोज का काम हो गया.

एक दिन शाम को लौटते समय मैंने कोठी के दरबान को सलाम ठोंक दिया. उसका सीना साहब की तरह चौड़ा हो गया. मारे खुशी के स्टूल से उठ कर मेरे पास आया. मैंने उससे यूं ही माचिस मांग ली. दरअसल मेरी मंशा कुछ और थी. उसने माचिस दी तो मैं बोला, ‘सामने ही रहता हूं. इधर से रोजाना निकलना होता है.’ उसने सिर हिलाया. मैं आगे बढ़ गया. धीरे-धीरे मैं रोज ही किसी न किसी बहाने उसके पास रुकने लगा. फिर तो कभी-कभी वह चाय भी पिलाने लगा. दोस्ती हो गई. उसी से मुझे मैडम के कुत्ते का नाम पता चला. क्यूपिड. बड़ा क्यूट नाम था. एक दिन मैंने पूछा, ‘मैडम सारे दिन क्यूपिड के साथ रहती हैं?’ मेरा सवाल पूछना ही था कि उसने पूरा कुत्ता पुराण सुना डाला. बोला, ‘अरे भाई, वह कुत्ता नहीं, उनका सगेवाला ही समझो. एसी में रहता है. कार में घूमने जाता है. जॉनसन साबुन से नहाता है. बढ़िया चिकेन करी और ब्रेड खाता है. फुल क्रीम मिल्क पीता है. मैडम से इतना प्यार करता है कि साहब भी कभी न कर पाए. साहब का मैडम से झगड़ा भी इसी के कारण हुआ. अब साहब अलग बेडरूम में सोता है और मैडम क्यूपिड के साथ डबल बेड पर अलग बेडरूम में रहती हैं. कुत्ते पर जान देती हैं. मजाल है कोई उनके क्यूपिड को कुत्ता कह दे….’

कुत्ता पुराण सुन कर मैं हैरान रह गया. जलन के मारे सीना फुंकने लगा, कानों से धुंआ निकलने लगा और मुंह से निकला, ‘काश मैं मैडम का कुत्ता होता.’

सांझ पड़े घर आना

‘‘अब सब कुछ खत्म हो गया था. मैं ने उस पर कई झूठे इलजाम लगाए, जिन से उस का बच पाना संभव नहीं था…’’

उसकी मेरे औफिस में नईनई नियुक्ति हुई थी. हमारी कंपनी का हैड औफिस बैंगलुरु में था और मैं यहां की ब्रांच मैनेजर थी. औफिस में कोई और केबिन खाली नहीं था, इसलिए मैं ने उसे अपने कमरे के बाहर वाले केबिन में जगह दे दी. उस का नाम नीलिमा था.

क्योंकि उस का केबिन मेरे केबिन के बिलकुल बाहर था, इसलिए मैं उसे आतेजाते देख सकती थी. मैं जब भी अपने औफिस में आती, उसे हमेशा फाइलों या कंप्यूटर में उलझा पाती. उस का औफिस में सब से पहले पहुंचना और देर तक काम करते रहना मुझे और भी हैरान करने लगा.

एक दिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि पति और बेटा जल्दी चले जाते हैं, इसलिए वह भी जल्दी चली आती है. फिर सुबहसुबह ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं रहता.

वह रिजर्व तो नहीं थी, पर मिलनसार भी नहीं थी. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. उस का मेकअप भी एकदम नपातुला होता. वह अधिकतर गोल गले की कुरती ही पहनती. कानों में छोटे बुंदे, मैचिंग बिंदी और नाममात्र का सिंदूर लगाती.

इधर मैं कंपनी की ब्रांच मैनेजर होने के नाते स्वयं के प्रति बहुत ही संजीदा थी. दिन में जब तक 3-4 बार वाशरूम में जा कर स्वयं को देख नहीं लेती, मुझे चैन ही नहीं पड़ता. परंतु उस की सादगी के सामने मेरा सारा वजूद कभीकभी फीका सा पड़ने लगता.

लंच ब्रेक में मैं ने अकसर उसे चाय के साथ ब्रैडबटर या और कोई हलका नाश्ता करते पाया. एक दिन मैं ने उस से पूछा तो कहने लगी, ‘‘हम लोग नाश्ता इतना हैवी कर लेते हैं कि लंच की जरूरत ही महसूस नहीं होती. पर कभीकभी मैं लंच भी करती हूं. शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. वैसे भी मेरे पति उमेश और बेटे मयंक को तरहतरह के व्यंजन खाने पसंद हैं.’’

‘‘वाह,’’ कह कर मैं ने उसे बैठने का इशारा किया, ‘‘फिर कभी हमें भी तो खिलाइए कुछ नया.’’

इसी बीच मेरा फोन बज उठा तो मैं अपने केबिन में आ गई.

एक दिन वह सचमुच बड़ा सा टिफिन ले कर आ गई. भरवां कचौरी, आलू की सब्जी और बूंदी का रायता. न केवल मेरे लिए बल्कि सारे स्टाफ के लिए.

इतना कुछ देख कर मैं ने कहा, ‘‘लगता है कल शाम से ही इस की तैयारी में लग गई होगी.’’

वह मुसकराने लगी. फिर बोली, ‘‘मुझे खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक है. यहां तक कि हमारी कालोनी में कोई भी पार्टी होती है तो सारी डिशेज मैं ही बनाती हूं.’’

नीलिमा को हमारी कंपनी में काम करते हुए 6 महीने हो गए थे. न कभी वह लेट हुई और न जाने की जल्दी करती. घर से तरहतरह का खाना या नाश्ता लाने का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा. कई बार मैं ने उसे औफिस के बाद भी काम करते देखा. यहां तक कि वह अपने आधीन काम करने वालों की मीटिंग भी शाम 6 बजे के बाद ही करती. उस का मानना था कि औफिस के बाद मन भी थोड़ा शांत रहता है और बाहर से फोन भी नहीं आते.

एक दिन मैं ने उसे दोपहर के बाद अपने केबिन में बुलाया. मेरे लिए फुरसत से बात करने का समय दोपहर के बाद ही होता था. सुबह मैं सब को काम बांट देती थी. हमारी कंपनी बाहर से प्लास्टिक के खिलौने आयात करती और डिस्ट्रीब्यूटर्स को भेज देती थी. हमारी ब्रांच का काम और्डर ले कर हैड औफिस को भेजने तक ही सीमित था.

नीलिमा ने बड़ी शालीनता से मेरे केबिन का दरवाजा खटखटा भीतर आने की इजाजत मांगी. मैं कुछ पुरानी फाइलें देख रही थी. उसे बुलाया और सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. मैं ने फाइलें बंद कीं और चपरासी को बुला कर किसी के अंदर न आने की हिदायत दे दी.

नीलिमा आप को हमारे यहां काम करते हुए 6 महीने से ज्यादा का समय हो गया. कंपनी के नियमानुसार आप का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो चुका है. यहां आप को कोई परेशानी तो नहीं? काम तो आपने ठीक से समझ ही लिया है. स्टाफ से किसी प्रकार की कोई शिकायत हो तो बताओ.

‘‘मैम, न मुझे यहां कोई परेशानी है और न ही किसी से कोई शिकायत. यदि आप को मेरे व्यवहार में कोई कमी लगे तो बता दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगी… मैं आप के जितना पढ़ीलिखी तो नहीं पर इतना जरूर विश्वास दिलाती हूं कि मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहूंगी. यदि पिछली कंपनी बंद न हुई होती तो पूरे 10 साल एक ही कंपनी में काम करते हो जाते,’’ कह कर वह खामोश हो गई. उस की बातों में बड़ा ठहराव और विनम्रता थी.

‘‘जो भी हो, तुम्हें अपने परिवार की भी सपोर्ट है. तभी तो मन लगा कर काम कर सकती हो. ऐसा सभी के साथ नहीं होता है.’’ मैं ने थोड़े रोंआसे स्वर में कहा.

वह मुझे देखती रही जैसे चेहरे के भाव पढ़ रही हो. मैं ने बात बदल कर कहा, ‘‘अच्छा मैं ने आप को यहां इसलिए बुलाया है कि अगला पूरा हफ्ता मैं छुट्टी पर रहूंगी. हो सकता है

1-2 दिन ज्यादा भी लग जाएं. मुझे उम्मीद है आप को कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी. मेरा मोबाइल चालू रहेगा.’’

‘‘कहीं बाहर जा रही हैं आप?’’

उस ने ऐसे पूछा जैसे मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं… कोर्ट की आखिरी तारीख है. शायद मेरा तलाक मंजूर हो जाए. फिर मैं कुछ दिन सुकून से रहना चाहती हूं.’’

‘‘तलाक?’’ कह जैसे वह अपनी सीट से उछली हो.

‘‘हां.’’

‘‘इस उम्र में तलाक?’’ वह कहने लगी, ‘‘सौरी मैम मुझे पूछना तो नहीं चाहिए पर…’’

‘‘तलाक की भी कोई उम्र होती है? सदियों से मैं रिश्ता ढोती आई

हूं. बेटी यूके में पढ़ने गई तो वहीं की हो कर रह गई. मेरे पति और मेरी कभी बनी ही नहीं और अब तो बात यहां तक आ गई है कि खाना भी बाहर से ही आता है. मैं थक गई यह सब निभातेनिभाते… और जब से बेटी ने वहीं रहने का निर्णय लिया है, हमारे बीच का वह पुल भी टूट गया,’’ कहतेकहते मेरी आंखों में आंसू आ गए.

वह धीरे से अपनी सीट से उठी और मेरी साड़ी के पल्लू से मेरे आंसू पोंछने लगी.

फिर सामने पड़े गिलास से मुझे पानी पिलाया और मेरी पीठ पर स्नेह भरा हाथ रख दिया.

बहुत देर तक वह यों ही खड़ी रही. अचानक गमगीन होते माहौल को सामान्य करने के लिए मैं ने 2-3 लंबी सांसें लीं और फिर अपनी थर्मस से चाय ले कर 2 कपों में डाल दी.

उस ने चाय का घूंट भरते हुए धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘मैम, मैं तो आप से बहुत छोटी हूं. मैं आप के बारे में न कुछ जानती हूं और न ही जानना चाहती हूं. पर इतना जरूर कह सकती हूं कि कुछ गलतियां आप की भी रही होंगी… पर हमें अपनी गलती का एहसास नहीं होता. हमारा अहं जो सामने आ जाता है. हो सकता है आप को तलाक मिल भी जाए… आप स्वतंत्रता चाहती हैं, वह भी मिल जाएगी, पर फिर क्या करेंगी आप?’’

‘‘सुकून तो मिलेगा न… जिंदगी अपने ढंग से जिऊंगी.’’

‘‘अपने ढंग से जिंदगी तो आज भी जी रही हैं आप… इंडिपैंडैंट हैं अपना काम करने के लिए… एक प्रतिष्ठित कंपनी की बौस हैं… फिर…’’ कह कर वह चुप हो गई. उस की भाषा तल्ख पर शिष्ट थी. मैं एकदम सकपका गई. वह बेबाक बोलती जा रही थी.

मैं ने झल्ला कर तेज स्वर में पूछा, ‘‘मैं समझ नहीं पा रही हूं तुम मेरी वकालत कर रही हो, मुझ से तर्कवितर्क कर रही हो, मेरा हौंसला बढ़ा रही हो या पुन: नर्क में धकेल रही हो.’’

‘‘मैम,’’ वह धीरे से पुन: शिष्ट भाषा में बोली, ‘‘एक अकेली औरत के लिए, वह भी तलाकशुदा के लिए अकेले जिंदगी काटना कितना मुश्किल होता है, यह कैसे बताऊं आप को…’’ ‘‘पहले आप के पास पति से खुशियां बांटने का मकसद रहा होगा, फिर बेटी और उस की पढ़ाई का मकसद. फिर लड़ कर अलग होने का

मकसद और अब जब सब झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी तो क्या मकसद रह जाएगा? आगे एक अकेली वीरान जिंदगी रह जाएगी…’’ कह कर

वह चुप हो गई और प्रश्नसूचक निगाहों से मुझे देखती रही.

फिर बोली, ‘‘मैम, आप कल सुबह यह सोच कर उठना कि आप स्वतंत्र हो गई हैं पर आप के आसपास कोई नहीं है. न सुख बांटने को न दुख बांटने को. न कोई लड़ने के लिए न झगड़ने के लिए. फिर आप देखना सब सुखसुविधाओं के बाद भी आप अपनेआप को अकेला ही पाएंगी.’’

मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहना चाहती है. मेरे चेहरे पर कई रंग आ रहे थे, परंतु एक बात तो ठीक थी कि तलाक के बाद अगला कदम क्या होगा. यह मैं ने कभी ठीक से सोचा न था.

‘‘मैम, मैं अब चलती हूं. बाहर कई लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं… जाने से पहले एक बार फिर से सलाह दूंगी कि इस तलाक को बचा लीजिए,’’ कह वह वहां से चली गई.

उस के जाने के बाद पुन: उस की बातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरी सोच का दायरा अभी तक केवल तलाक तक सीमित था…उस के बाद व्हाट नैक्स्ट?

उस पूरी रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. सुबहसुबह कामवाली बालकनी में चाय रख

कर चली गई. मैं ने सामने वाली कुरसी खींच

कर टांगें पसारीं और फिर भूत के गर्भ में चली गई. किसी ने ठीक ही कहा था कि या तो हम

भूत में जीते हैं या फिर भविष्य में. वर्तमान में जीने के लिए मैं तब घर वालों से लड़ती रही

और आज उस से अलग होने के लिए. पापा को मनाने के लिए इस के बारे में झूठसच का सहारा लेती रही, उस की जौब और शिक्षा के बारे में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करती रही और आज उस पर उलटेसीधे लांछन लगा कर तलाक ले रही हूं.

तब उस का तेजतर्रार स्वभाव और खुल कर बोलना मुझे प्रभावित करता था और अब वही चुभने लगा है. तब उस का साधारण कपड़े पहनना और सादगी से रहना मेरे मन को भाता था और अब वही सब मेरी सोसाइटी में मुझे नीचा दिखाने की चाल नजर आता है. तब भी उस की जौब और वेतन मुझ से कम थी और आज भी है.

‘‘ऐसा भी नहीं है कि पिछले 25 साल हमने लड़तेझगड़ते गुजारे हों. कुछ सुकून और प्यारभरे पल भी साथसाथ जरूर गुजारे होंगे. पहाड़ों, नदियों और समुद्री किनारों के बीच हम ने गृहस्थ की नींव भी रखी होगी. अपनी बेटी को बड़े होते भी देखा होगा और उस के भविष्य के सपने भी संजोए होंगे. फिर आखिर गलती हुई कहां?’’ मैं सोचती रही गई.

अपनी भूलीबिसरी यादों के अंधेरे गलियारों में मुझे इस तनाव का सिरा पकड़ में

नहीं आ रहा था. जहां तक मुझे याद आता है मैं बेटी को 12वीं कक्षा के बाद यूके भेजना चाहती थी और मेरे पति यहीं भारत में पढ़ाना चाहते थे. शायद उन की यह मंशा थी कि बेटी नजरों के सामने रहेगी. मगर मैं उस का भविष्य विदेशी धरती पर खोज रही थी? और अंतत: मैं ने उसे अपने पैसों और रुतबे के दम पर बाहर भेज दिया. बेटी का मन भी बाहर जाने का नहीं था. पर मैं जो ठान लेती करती. इस से मेरे पति को कहीं भीतर तक चोट लगी और वह और भी उग्र हो गए. फिर कई दिनों तक हमारे बीच अबोला पसर गया.

हमारे बीच की खाई फैलती गई. कभी वह देर से आता तो कभी नहीं भी आता. मैं ने कभी इस बात की परवाह नहीं की और अंत में वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. बेटी विदेश क्या गई बस वहीं की हो गई. फिर वहीं पर एक विदेशी लड़के से शादी कर ली. कोई इजाजत नहीं बस निर्णय… मेरी तरह.

उस रात हमारा जम कर झगड़ा हुआ. उस का गुस्सा जायज था. मैं झुकना नहीं जानती थी. न जीवन में झुकी हूं और न ही झुकूंगी…वही सब मेरी बेटी ने भी सीखा और किया. नतीजा तलाक पर आ गया. मैं ने ताना दिया था कि इस घर के लिए तुम ने किया ही क्या है. तुम्हारी तनख्वाह से तो घर का किराया भी नहीं दिया जाता… तुम्हारे भरोसे रहती तो जीवन घुटघुट कर जीना पड़ता. और इतना सुनना था कि वह गुस्से में घर छोड़ कर चला गया.

अब सब कुछ खत्म हो गया था. मैं ने उस पर कई झूठे इलजाम लगाए, जिन से उस का बच पाना संभव नहीं था. मैं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी थी और अब उस का अंतिम फैसला कल आना था. उस के बाद सब कुछ खत्म. परंतु नीलिमा ने इस बीच एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया जो मेरे कलेजे में बर्फ बन कर जम गया.

पर अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था, होने वाला था. बस मेरे कोर्ट में हाजिरी लगाने भर की देरी थी. मेरे पास आज भी 2 रास्ते खुले थे. एक रास्ता कोर्ट जाता था और दूसरा उस के घर की तरफ, जहां वह मुझ से अलग हो कर चला गया था. कोर्ट जाना आसान था और उस के घर की तरफ जाने का साहस शायद मुझ में नहीं था. मैं ने कोर्ट में उसे इतना बेईज्जत किया, ऐसेऐसे लांछन लगाए कि वह शायद ही मुझे माफ करता. मैं अब भी ठीक से निर्णय नहीं ले पा रही थी.

हार कर मैं ने पुन: नीलिमा से मिलने का फैसला किया जिस ने मेरे शांत होते जीवन में पुन: उथलपुथल मचा दी थी. मैं उस दोराहे से अब निकलना चाहती थी. मैं ने कई बार उसे आज फोन किया, परंतु उस का फोन लगातार बंद मिलता रहा.

आज रविवार था. अत: सुबहसुबह वह घर पर मिल ही जाएगी, सोच मैं उसे

मिलने चली गई. मेरे पास स्टाफ के घर का पता और मोबाइल नंबर हमेशा रहता था ताकि किसी आपातकालीन समय में उन से संपर्क कर सकूं. वह एक तीनमंजिला मकान में रहती थी.

‘‘मैम, आप?’’ मुझे देखते ही वह एकदम सकपका गई? ‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘सब कुछ ठीक नहीं है,’’ मैं बड़ी उदासी से बोली. वह मेरे चेहरे पर परेशानी के भाव देख रही थी.

मैं बिफर कर बोली, ‘‘तुम्हारी कल की बातों ने मुझे भीतर तक झकझोर कर रख दिया है.’’

वह हतप्रभ सी मेरे चेहरे की तरफ

देखती रही.

‘‘क्या मैं कुछ देर के लिए अंदर आ

सकती हूं?’’

‘‘हां मैम,’’ कह कर वह दरवाजे के सामने से हट गई, ‘‘आइए न.’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें बिना बताए आ गई. मैं क्या करती. लगातार तुम्हारा फोन ट्राई कर रही थी पर स्विचऔफ आता रहा. मुझ से रहा नहीं गया तो मैं आ गई,’’ कहतेकहते मैं बैठ गई.

ड्राइंगरूम के नाम पर केवल 4 कुरसियां और एक राउंड टेबल, कोने में अलमारी और कंप्यूटर रखा था. घर में एकदम खामोशी थी.

वह मुझे वहां बैठा कर बोली, ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं.’’

थोड़ी देर में वह एक ट्रे में चाय और थोड़ा नमकीन रख कर ले आई और सामने की कुरसी पर बैठ गई. हम दोनों ही शांत बैठी रहीं. मुझे

बात करने का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ‘‘मैं ने सुबहसुबह आप लोगों को डिस्टर्ब किया. सौरी… आप का पति और बेटा कहीं बाहर गए हैं क्या? बड़ी खामोशी है.’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. फिर नजरें नीची कर के बोली, ‘‘मैम, न मेरा कोई पति है न बेटा. मुझे पता नहीं था कि मेरा यह राज इतनी जल्दी खुल जाएगा,’’ कह कर वह मायूस हो गई. मैं हैरानी

से उस की तरफ देखने लगी. मेरे पास शब्द नहीं थे कि अगला सवाल क्या पूछूं. मैं तो अपनी समस्या का हल ढूंढ़ने आई थी और यहां तो… फिर भी हिम्मत कर के पूछा, तो क्या तुम्हारी शादी नहीं हुई?

‘‘हुई थी मगर 6 महीने बाद ही मेरे पति एक हादसे में गुजर गए. एक मध्यवर्गीय लड़की, जिस के भाई ने बड़ी कठिनाई से विदा किया हो और ससुराल ने निकाल दिया हो, उस का वजूद क्या हो सकता है,’’ कहतेकहते उस की आवाज टूट गई. चेहरा पीला पड़ गया मानो वही इस हालात की दोषी हो.

‘‘जवान अकेली लड़की का होना कितना कष्टदायी होता है, यह मुझ से बेहतर और कौन जान सकता है… हर समय घूरती नजरों का सामना करना पड़ता है…’’

‘‘तो फिर तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘कोशिश तो की थी पर कोई मन का नहीं मिला. अपनी जिंदगी के फैसले हम खुद नहीं करते, बल्कि बहुत सी स्थितियां करती हैं.

‘‘अकेली लड़की को न कोई घर देने को तैयार है न पेइंग गैस्ट रखना चाहता है. मेरी जिंदगी के हालात बहुत बुरे हो चुके थे. हार कर मैं ने ‘मिसेज खन्ना’ लिबास ओढ़ लिया. कोई पूछता है तो कह देती हूं पति दूसरे शहर में काम करते हैं. हर साल 2 साल में घर बदलना पड़ता है. और कभीकभी तो 6 महीने में ही, क्योंकि पति नाम की वस्तु मैं खरीद कर तो ला नहीं सकती. आप से भी मैं ने झूठ बोला था. पार्टियां, कचौरियां, बच्चे सब झूठ था. अब आप चाहे रखें चाहे निकालें…’’ कह कर वह नजरें झुकाए रोने लगी. मेरे पास कोई शब्द नहीं था.

‘‘बड़ा मुश्किल है मैडम अकेले रहना… यह इतना आसान नहीं है जितना

आप समझती हैं… भले ही आप कितनी भी सामर्थ्यवान हों, कितना भी पढ़ीलिखी हों, समाज में कैसा भी रुतबा क्यों न हो… आप दुनिया से तो लड़ सकती हैं पर अपनेआप से नहीं. तभी तो मैं ने कहा था कि आप अपनी जिंदगी से समझौता कर लीजिए.’’

मेरा तो सारा वजूद ही डगमगाने लगा. मुझे जहां से जिंदगी शुरू करनी थी, वह सच तो मेरे सामने खड़ा था. अब इस के बाद मेरे लिए निर्णय लेना और भी आसान हो गया. मेरे लिए यहां बैठने का अब कोई औचित्य भी नहीं था. जब आगे का रास्ता मालूम न हो तो पीछे लौटना ही पड़ता है.

मैं भरे मन से उठ कर जाने लगी तो नीलिमा ने पूछा, ‘‘मैम, आप ने बताया नहीं आप क्यों

आई थीं.’’

‘‘नहीं बस यों ही,’’ मैं ने डबडबाती आंखों से उसे देखा

वह बुझे मन से पूछने लगी, ‘‘आप ने बताया नहीं मैं कल से काम पर आऊं या…’’ और हाथ जोड़ दिए.

पता नहीं उस एक लमहे में क्या हुआ कि

मैं उस की सादगी और मजबूरी पर बुरी तरह रो पड़ी. न मेरे पास कोई शब्द सहानुभूति का था और न ही सांत्वना का. इन शब्दों से ऊपर भी शब्द होते तो आज कम पड़ जाते. एक क्षण के लिए काठ की मूर्ति की तरह मेरे कदम जड़ हो गए.

मैं अपने घर आ कर बहुत रोई. पता नहीं उस के लिए या अपने अहं के लिए… और कितनी बार रोई. शाम होतेहोते मैं ने बेहद विनम्रता से अपने पति को फोन किया और साथ रहने की प्रार्थना की. बहुत अनुनयविनय की. शायद मेरे ऐसे व्यवहार पर पति को तरस आ गया और वह मान गए.

और हां, जिस ने मुझे तबाही से बचा

लिया, उसे मैं ने एक अलग फ्लैट ले कर दे

दिया. अब वह ‘मिसेज खन्ना’ का लिबास नहीं ओढ़ती. नीलिमा और सिर्फ नीलिमा. उस के मुझ पर बहुत एहसान हैं. चुका तो सकती नहीं पर भूलूंगी भी नहीं.

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