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पेरैंटल बर्नआउट एक इमोशनल कंडीशन

हम बच्चों को अपने जीवन का मोहरा बना लेते हैं. लगता है कि हर कोई हमारे बच्चे की तारीफ़ करे. पेरैंट्स खुद दूसरों से कहते हैं कि मेरी तरफ देखो, क्या नायाब चीज है मेरा बच्चा, मेरा बच्चा आईपीएल में गया है, स्कूल की तरफ से बाहर गया है, वह स्विमिंग चैंपियन बन गया है. यानी, आज पेरैंट्स चाहते हैं कि उन का बच्चा पढ़ाई के साथसाथ ड्राइंग, पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, क्राफ्ट, स्पोर्ट्स आदि में भी सब से आगे रहे. इस सब के चलते मातापिता पेरैंटल बर्नआउट की गिरफ्त में आ जाते हैं.

यह आप को उलटवार करता है. बच्चे के बारे में आप सोसाइटी में इतनी बातें करते हैं कि एक दिन वह बच्चा आप के गले की फांस बन जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो वह गले की ऐसी हड्डी बन जाता है जो न निगलते बने न उगलते. दरअसल, बच्चे की तारीफ इतनी ज्यादा कर दी जाती है सोसाइटी में कि उसे मैनेज करना एक चैलेंज बन जाता है.

बच्चा है कि आप की अब एक नहीं सुनता, आप पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो. उस को खादपानी दो लेकिन अपने को उस पर न्योछावर मत करो. बच्चों के लिए उतना करो जितना जेब इजाजत करे. बच्चों के लिए खुद को पूरी तरह न थकाएं. अगर आप भी अपने बच्चों की देखभाल और पालनपोषण के दौरान थकान व तनाव का अनुभव करते हैं, अपने बच्चों की जिम्मेदारियों व अपेक्षाओं के बीच संतुलन नहीं बना पाते हैं और आप को पर्याप्त आराम व सपोर्ट नहीं मिल पाता है, तो समझिए की कमी खुद में ही है. आइए जानें इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें.

बच्चों को न कहना भी सीखे मां

अगर बच्चे ने बोला है कि मेरा दोस्त यहां से कोचिंग ले रहा है, मैं भी लूंगा, लेकिन आप को लग रहा है कि वो बहुत महंगा है, आप अफोर्ड नहीं कर पाएंगे, तो बच्चे को साफ़ मना कर दें. इस के अलावा अगर बच्चों का ग्रुप ट्रिप पर बाहर जा रहा है और बच्चा भी जाना चाहे पर आप उसे अकेले नहीं भेजना चाहते, तो उसे प्यार से समझा कर मना कर दें. उस की हर बात मानना आप के लिए प्रैशर क्रिएट करता है. इसलिए उतना ही करें जिसे आप ख़ुशीख़ुशी हां कह सकें वरना मना करने की भी आदत डालें.

हर किसी के आगे बच्चों की तारीफ़ न करें

बच्चों की तारीफों के पुल अगर आज आप रिश्तेदारों के सामने बांध रहे हैं तो ध्यान रखें, कल आप को उसे मैनेज करने के लिए लगातार बच्चों से कुछ अच्छा करने की उम्मीद रखनी होगी ताकि आप ने अपने सर्कल में बच्चों की जो इमेज बनाई है उसे कायम रख सकें. इस के लिए आप के साथसाथ बच्चों पर भी दबाव बनेगा. इसलिए ऐसा करना ही क्यों. आप के बच्चे जैसे हैं उन्हें वैसा ही रहने दें, बेकार के दिखावे के चक्कर में एक्स्ट्रा पैन लेना ही क्यों.

बच्चों की तरफदारी न करें

आज अगर आप ने जरूरत से ज्यादा बच्चे की तरफदारी की. यह बच्चा इतना अहं वाला हो जाएगा कि बड़ा होने के बाद यह अपने मांबाप को कुछ नहीं समझेगा. उस को लगेगा, मेरी मां को तो कुछ आता ही नहीं है. उस को लगेगा सारा ज्ञान उस के पास है. वह बातबात में आप को आप के ही फ्रैंड्स सर्कल में नीचे दिखाएगा. फिर आप पछताएंगी कि बच्चे को ज्यादा ही सिर चढ़ा लिया है लेकिन तब आप के पास इस का कोई हल नहीं होगा. आप मन मसोस कर रह जाएंगी क्योंकि बच्चा आप की सुनेगा नहीं और बच्चे की वजह से अपनी होती हुई बेइज्जती आप सह पाएंगी नहीं. इसलिए हर गलत बात में बच्चे का साथ न दें. कुछ गलत है, तो उसे इग्नोर करने के बजाय बच्चे को बताएं.

बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो

अगर आप की सहेली का बच्चा स्विमिंग सीख रहा है तो यह जरूरी नहीं है कि आप का बच्चा भी वही सीखे. हो सकता है आप के बच्चे का मन न हो या उस के पास टाइम न हो, वह अपनी स्टडीज पर ज्यादा टाइम देना चाहता हो. क्या जरूरत है अपने बच्चे को सब के बच्चों के जैसा बनाने की. आप का बच्चा जिस में अच्छा है उसे वह करने दें. बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो.

बच्चों को स्पेस दें

वे वास्तव में हम से ज़्यादा जानते हैं और यह आज भी सच है. चाहे हमें यह पसंद हो या न, वे ज़्यादातर समय सही होते हैं. आप ने देखा होगा कि बच्चों को लगातार परेशान करना और उन के इर्दगिर्द मंडराते रहना हम में से किसी के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए स्पेस देना हमेशा मददगार होता है और हम भी टैंशन-फ्री रहते हैं.

बच्चे को सहीगलत में फर्क करना सिखाएं

बच्चों की जिद पूरी करने से मातापिता कई बार बच्चों को यह संदेश दे देते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं वह गलत नहीं है. बच्चे भी धीरेधीरे इसी व्यवहार को सही मान बैठते हैं. लेकिन, ऐसा न करें. बच्चों को बताएं कि गलत और सही क्या है और उसे के अनुसार उन के साथ व्यवहार करें.

बच्चा आप का अपमान करें तो बरदाश्त न करें

कई बार बच्चे मांबाप से झगड़ा करने के दौरान बहुत जिद करते हैं और मांबाप का अपमान भी करने लगते हैं. वहीं, बच्चों का यह व्यवहार धीरेधीरे घर के बाहर यानी स्कूल में, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच भी दिखाई देने लगता है. इस बात को ले कर कई बार मातापिता इतनी टैंशन ले लेते हैं कि अपने में बीमारी लगा लेते हैं. अगर आप के साथ भी ऐसा हो रहा है तो बच्चे को समझाएं. न समझे तो उस से कुछ दिन बात न करें. वह खुद ही बेचैन हो जाएगा और तब उसे बताएं कि यह व्यवहार आखिरी होना चाहिए क्योंकि इस से आप को प्रौब्लम होती है.

बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें

सब से महत्त्वपूर्ण बात, अपने बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें और हमेशा याद रखें, कोई भी आप को उतना प्यार नहीं करेगा जितना वे करते हैं. प्रेरणा कहती हैं, यह एक ऐसा सबक है जिसे हमें पहले इंसान और फिर मातापिता के तौर पर सीखना होगा कि कोई भी परफैक्ट नहीं होता. इसलिए हम किसी और, खासकर अपने बच्चों, से परफैक्शन की उम्मीद नहीं कर सकते. इन अवास्तविक अपेक्षाओं को दूर करने से मातापिता के तौर पर हम पर और हमारे बच्चों पर बोझ कम होगा.

पेरैंट्स के रूप में कई बार हमें ऐसा लगता है कि हम अपना 100 प्रतिशत नहीं दे रहे हैं. इस जगह हम न केवल तनाव महसूस करते हैं, बल्कि हमें असफलताओं का अनुभव भी होता है. ऐसे में खुद को दोष न दें, बल्कि अपने लिए थोड़ा समय निकालें और बच्चों के बचपन को खुद भी एंजौय करें व उन्हें भी एंजौय करने दें.

देश संकट में है : गायब हुई मंत्रीजी की बकरी

हमारे देश की जनता को लालकिले से प्रधानमंत्रीजी का भाषण हूबहू सुनाते हुए लोक संपर्क महकमे ने दुखी मन से सूचित किया कि मंत्रीजी की लोकप्रिय बकरी कई दिनों से गायब है. देश संकट की घड़ी से गुजर रहा है. यह सुन कर देश के सरकारी तंत्र समेत कुछ भावुक किस्म के खाली दिमागों में हायतोबा मच गई.

बंधुओ, ऐसा नहीं है कि मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने के लिए प्रशासन ने कोई कोशिश न की हो.

प्रशासन ने मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश की थी. अब प्रशासन के हाथ कुछ खास नहीं लगा, तो उस बेचारे का क्या कुसूर.

प्रशासन को तनख्वाह मिलती ही अपने देश के नेताओं के जानमाल की हिफाजत करने की है. जनता की हिफाजत करने के लिए तो ऊपर वाला बैठा है.

अब जब प्रशासन का सारा अमला मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने में नाकाम हो गया, तो प्रशासन को न चाहते हुए भी जनता की मदद लेनी पड़ी.

ऐसे में देश के नमक के साथ राशन की दुकान के सड़े आटे की चपाती खाने वाली जनता का भी फर्ज बनता था कि वह खानापीना छोड़ कर मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़े.

जब तक प्रशासन को मंत्रीजी की बकरी नहीं मिल जाती, तब तक वह मंत्रीजी के दुख में शरीक होते हुए अपने महल्ले में दुख सभाएं कराए.

प्रशासन द्वारा इस बारे में पटवारी को जिला प्रशासन तक अपनी रिपोर्ट पहुंचानी होगी और जिला प्रशासन यह रिपोर्ट मंत्रीजी के मंत्रालय को सूचित करेगा.

पटवारी इस बात की तसदीक करेगा कि किसकिस महल्ले में मंत्रीजी के दुख से दुखी हो कर दुख सभाएं की जा रही हैं और फिर मंत्रालय का काम यह रहेगा कि वह तमाम दुख सभाओं की रिपोर्ट बना कर नेताजी को तब तक भेजेगा, जब तक मंत्रीजी की बकरी मिल नहीं जाती.

जिला लैवल पर प्रशासन की दुख सभाओं की रिपोर्ट को खंगालने के बाद ही आगे के लिए यह तय किया जाएगा कि अगले महीने सरकार द्वारा जनता को खिलाया जाने वाला राशन किस महल्ले को भेजा जाए और किस महल्ले में नहीं.

ऐसी जनता को राशन खिलाना अपने लिए हार के दरवाजे खोलने के समान है, जो राशन तो मंत्रीजी का खाए और गुणगान दूसरों के गाए.

मीडिया की मानें, तो सरकार ने मंत्रीजी की बकरी को ढूंढ़ने के लिए खुफिया महकमे की भी मदद ली है. ऐसा भी नहीं है कि मंत्रीजी का आदेश पा कर खुफिया महकमे ने उन की बकरी को ढूंढ़ने में कोई लापरवाही बरती हो.

हमारे खुफिया तंत्र का काम ही सरकार के हर काम को मुस्तैदी से करना है. सरकार के हर आदेश को कोई और माने या न माने, पर वह पूरी ईमानदारी से मानता आया है.

अब इसे मंत्रीजी का सौभाग्य मानें या बकरी का कि इतना सब होने के बाद भी खुफिया महकमे के हाथ अब तक निराशा ही लगी है.

रही बात पुलिस वालों की, वे तो बेचारे अपने थाने के अंदर गुम हुए माल को ढूंढ़ने तक में नाकाम रहते हैं, तो उन की बकरी क्या खाक ढूंढ़ पाएंगे.

अब उन बेचारों का भी क्या कुसूर. उन्हें अपने आम के बागों की रखवाली करने से कोई बाहर आने दे तो बेचारे कुछ और नया सीखें, वरना बंदूक उलटी ही पकड़ेंगे, इसलिए इस बार यह काम मंत्रीजी ने उन्हें नहीं दिया.

अपने मंत्रीजी ऐसेवैसे तो हैं नहीं. वे जनता के लिए शहर में सरकारी अस्पताल खुलवाते हैं और अस्पताल जनता को समर्पित कर छींक तक आने पर अपना इलाज कराने चुपचाप विदेश चले जाते हैं.

अब तक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हैरत की बात तो यह है कि इतनी छानबीन करने के बावजूद भी बकरी नहीं मिली, तो नहीं मिली.

अब बकरी के न मिलने पर मीडिया में ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बकरी को विपक्ष ने अगवा कर लिया है, ताकि इस बकरी के दम पर कुरसी को ले कर मंत्रीजी से परदे के पीछे कोई सौदा किया जा सके.

उधर एक खबरिया चैनल तो ब्रेकिंग न्यूज में यहां तक दावा कर रहा है कि मंत्रीजी की बकरी को आतंकवादियों ने अगवा कर लिया है और वे चाहते हैं कि बकरी को छोड़ने के बदले मंत्रीजी जेलों में बंद उन के दोस्तों को छोड़ें.

कहा तो यह भी जा रहा है कि मंत्रीजी की बकरी को ढूंढ़ने का काम अमेरिका की खुफिया एजेंसी को दिया जा रहा है.

कुलमिला कर मंत्रीजी की बकरी के गुम होने पर जितने मुंह उतनी बातें. पार्टी के ही लोग अपना नाम न छापने की शर्त पर यह बात कहते फिर रहे हैं कि बकरी खुद ही नेताजी के दुहने से तंग आ कर भाग गई है. कुछ लोगों का तो यही कहना है कि बकरी का दूध सूख जाने पर मंत्रीजी ने खुद ही उसे कहीं छिपा दिया है.

अब तो दबे शब्दों में मंत्रीजी ने अपनी बकरी के गुम होने पर विपक्ष पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं.

कुछ राजनीतिक माहिरों का तो यहां तक कहना है कि मंत्रीजी की बकरी के अपहरण के पीछे आईएसआई का हाथ भी हो सकता है.

दरअसल, बकरी हमारे दैनिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का एक मूलभूत अंग रही है. यही वजह है कि संस्कृति मंत्रालय भी मंत्रीजी की बकरी को ढूंढ़ने में जनता से अपील कर रहा है.

बकरी की जगह अगर मंत्रीजी का कुछ और गुम होता, तो प्रशासन तो प्रशासन, मंत्रीजी तक उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते.

हे मेरे देश के वोटरो, बकरी न होती, तो हमारे साहित्य में यह कहावत न होती कि आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी. अगर हमारी जिंदगी में बकरी न होती तो क्या कबीर कभी यह लिख पाते :

‘बकरी खाती घास है, ताकी काडि़ खाल,
जो बकरी को खात है, तिनको कौन हवाल.’

अगर बकरी न होती, तो चुनाव में हार के बाद बलि का कोई बकरा न बन पाता.

दोस्तो, अगर बकरी न होती, तो बकरा भी कहां से होता? तब उस की जगह बलि चढ़ने के लिए कौन तैयार हो पाता? गीदड़, सियार तो समाज से आने से पहले ही चालाक रहे हैं. राजनीति में आने के बाद तो क्या मजाल, जो उन का कोई बाल तक बांका कर सके.

यह एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा है, पर इस मुद्दे पर बहस इसलिए जरूरी नहीं मानी जाती, क्योंकि राजनीतिक दलों के पास हार की बेदी पर बलि चढ़ाने के लिए अपनेअपने बकरे मौजूद होते हैं.

बकरी का सब से बड़ा फायदा यह होता है कि इस के केवल 2 ही थन होते हैं. इसे नेताजी कहीं भी दुह सकते हैं. बकरी का दूध निकालने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. बकरी को जनता से ज्यादा आसानी से दुहा जा सकता है. बस, इसीलिए मंत्रीजी लोकप्रिय बकरी के गुम होने पर बहुत दुखी हैं.

जनता की सुविधा के लिए बकरी का रंगरूप, नैननक्श, कदकाठी से ले कर मिमियाने तक की सारी जानकारी देश के तमाम चैनलों, प्रिंट मीडिया को सरकारी विज्ञापन के रूप में दे दी गई है.

जिस किसी को भी लोकप्रिय बकरी का पता चले, वह तुरंत अपने नजदीकी थाने में खबर करे. सही खबर देने वाले को गणतंत्र दिवस के मौके पर मंत्रीजी द्वारा सम्मानित किया जाएगा.

मेरे पति शराब के अलावा चरस गांजे का भी नशा करते हैं.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरे शादी को अभी कुछ ही समय हुआ है और शादी के समय मेरे ससुराल वालों ने मुझसे और मेरे घरवालों से यह बात छिपाई थी कि मेरे होने वाले पति कोई भी नशा नहीं करते और इसी शर्त पर मैं उनके साथ शादी करने के लिए मानी थी. शादी के बाद मेरे कुछ दिन तो बिल्कुल अच्छे निकले लेकिन अब मुझे धीरे धीरे पता चला है कि मेरे पति ना सिर्फ शराब पीते हैं बल्कि चरस गांजा तक पीते हैं और इसी वजह से वे अक्सर अपने दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर रहते हैं और उनकी इन आदतों के बारे में उनके घरवालों को भी पता था. जब मैंने उनके इस बारे में बात की तो उन्होनें पहले तो मेरी बात का ठीक से जवाब नहीं दिया पर उसके बाद उन्होनें साफ कह दिया कि हां मैं यब सब चीज़ें करता हूं. ऐसे में अब हमारे रोज लड़ाई-झगड़े होते हैं और मैं इस लड़ाई-झगड़ों से परेशान आ चुकी हूं. मेरा अपने पति के साथ रहने का बिल्कुल मन नहीं करता. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

अक्सर मां-बाप शादी के समय अपने बच्चों की खामियां उनके ससुराल वालों से छिपा जाते हैं जो कि बेहद गलत है. हमें सबसे पहले अपने बच्चों की सारी अच्छी बुरी आदतें उनके होने वाले लाइफ पार्टनर से डिस्कस करनी चाहिए क्यूंकि अक्सर घर टूटने और तलाक की वजह यही बातें होती है.

लड़के के मां-बाप को लगता है कि शादी के बाद जिम्मेदारी आने पर लड़का अपने आप सुधर जाएगा या उसकी पत्नी उसे सुधार देगी पर वह इस बात को नहीं समझते कि शादी के बाद भी अगर उनका लड़का नहीं सुधरा तो आने वाली लड़की की जिंदगी भी खराब हो सकती है.

आपके केस में आपसे आपके पति की बुरी आदतें छिपाई गई हैं जो कि बिल्कुल गलत है. आपको सबसे पहले अपने सास-ससुर के पास जाना चाहिए और उन्हें उनके बेटे की सारी आदतों के बारे में बताना चाहिए. हो सकता है कि उन्हें अपने बेटे की सारी आदतों का ना पता हो या फिर उन्हें लगता तो कि अब उनका बेटा सुधर गया है. आप अपने सास-ससुर को बताएं कि आपके समझाने के बावजूद आपके पति नशे नहीं छोड़ रहे.

अगर आपके सास-ससुर के समझाने पर आपके पति समझ जाते हैं तो अच्छी बात है लेकिन अगर आपके पति फिर भी नहीं सुधरते तो आप अपने पति को धमकी दे सकती हैं कि अगर उन्होनें नशों की बुरी आदतें नहीं छोड़ी तो आप उन्हें छोड़ कर चली जाएंगी. ऐसे में उनको डराने के लिए आप 3-4 दिन या एक हफ्ते के लिए अपने मायते रहने चले जाइए जिससे कि आपके पति को एहसास हो कि वे जो कर रहे हैं वे बिल्कुल गलत है और इससे उनका घर कभी नहीं बस सकेगा.

अगर आपके पति नशे छोड़ना चाहते हैं और वे चाह कर भी नशे नहीं छोड़ पा रहे तो आप उन्हें किसी अच्छे डौक्टर के पास ले कर जाएं ताकि उन्हें नशे छोड़ने में मदद मिल सके.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

तिकड़ी और पंच : विशाल, कमल और मुन्ना के कैसे उड़े तोते

आज कालेज का पहला दिन था. चारों तरफ चहलपहल और गहमागहमी का माहौल एहसास करा रहा था कि आज से कालेज का नया सत्र शुरू हो गया है. छात्रछात्राएं एकदूसरे का इंट्रोडक्शन लेने में व्यस्त थे. स्कूल से निकल कर कालेज लाइफ में प्रवेश करने पर जहां छात्रछात्राओं में एक अलग ही आत्मविश्वास और उत्साह नजर आ रहा था, वहीं पुराने छात्र खुद को सीनियर्स की श्रेणी में पा कर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘हाय, आई एम दिवाकर…दिवाकर सक्सेना… ऐंड यू?’’ उस ने एक खूबसूरत छात्रा की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा. ‘‘आई एम केपी… केपी, आई मीन कुनिका पांडे. फर्स्ट ईयर कौमर्स,’’ जवाब आया.

‘‘आई एम फर्स्ट ईयर इंगलिश औनर्स,’’ दिवाकर ने हाथ मिलाते हुए कहा. वहीं इसी कालेज के कुछेक छात्र पिछले 4-5 साल से सीनियर्स का तमगा गले में लटकाए अपनी सीनियौरिटी की धौंस जमाते फिर रहे थे, दरअसल, पढ़ाई से उन का कोई लेनादेना नहीं था. वे अमीरजादे

थे इसलिए मांबाप की दौलत पर ऐश कर रहे थे. विशाल, कमल और मुन्ना की तिकड़ी ने अपने गैंग का नाम रखा था त्रिशंकु और तीनों के गले में टी आकार का लौकेट लटका रहता था. कालेज परिसर में मोटरसाइकिलें धड़धड़ाते हुए घुसना, छेड़छाड़ करना, मारपीट, छीनाझपटी, मुफ्तखोरी कर घर चले जाना यही इन का सिलेबस था.

कालेज प्रशासन, अभिभावक, छात्रछात्राएं, स्टाफ, कैंटीनकर्मी सभी इन से परेशान थे. चिकने घड़े पर गिरे पानी की तरह इन पर किसी की बात का असर ही नहीं होता था. आज कालेज का पहला दिन होने के कारण यह तिकड़ी रैगिंग के मूड में छटपटा रही थी. कालेज लौन में लगे बरगद के घने छायादार पेड़ के नीचे बैठे ये माहौल को कुछ गरमाने की ताक में थे. ये गिद्ध दृष्टि लगाए सोच रहे थे कि शुरुआत कहां और किस से की जाए.

त्रिशंकु के इन गिद्धों को पता नहीं था कि उन की टक्कर का और शायद उन से अधिक खुर्राट कोई और भी कालेज में आ चुका है. इसी साल तिकड़ी के सरकिट विशाल की छोटी बहन अनुष्का ने भी बीए फर्स्ट ईयर में ऐडमिशन लिया था. त्रिशंकु के कौमेडियन मुन्ना ने ठहाका लगाते हुए विशाल से कहा, ‘‘बौस, एक बात और भी है, जिस की तरफ अभी तक हमारा ध्यान ही नहीं गया.’’

‘‘वह क्या है?’’ विशाल ने अपने चिरपरिचित दादागीरी वाले अंदाज में पूछा. ‘‘बौस, इस साल हमें संभल कर चलना होगा, क्योंकि तुम्हारी बहन ने भी तो कालेज में ऐडमिशन लिया है.’’

‘‘तो फिर?’’ विशाल उसे घूरता हुआ बोला. ‘‘यार, तुम समझते क्यों नहीं कि तुम्हारी हरकतों का आंखों देखा हाल तुम्हारे मम्मीपापा को अब हर शाम मिलेगा,’’ मुन्ना अचानक समझदार हो गया था.

‘‘अरे, तू घबरा मत, कुछ नहीं होगा. उन्हें सब पता है. अपना तो बस, एक ही फंडा है और रहेगा, खाओपीओ, मौज करो, पेमैंट करेंगे जूनियर्स,’’ खोखली सी हंसी हंसता हुआ वह बोला. उधर नए छात्र दिवाकर की भी 4 लोगों की एक टीम थी, जो स्कूल से ही उस के साथ आई थी यानी 5 का पंच. ये सभी पढ़ाकू, मेहनती, ईमानदार और मध्यवर्गीय परिवारों से आए थे, जिन का लक्ष्य था पढ़ाई के अलावा परिसर में किसी किस्म की बदतमीजी और गुंडागर्दी नहीं चलने देना और किसी के साथ हो रही ज्यादती को रोकना. पहले प्यार से और फिर मार से. इन्हें त्रिशंकु दल की खुराफातों के बारे में सबकुछ पता था.

दरअसल, त्रिशंकु की इस दादागीरी के पीछे एक राज था और वह यह कि विशाल के पिता कालेज के ट्रस्टीज में से एक थे, जिस का वह नाजायज फायदा उठा रहा था. तभी इंटरवल का सायरन बजा, जैसा होता आया था तिकड़ी कैंटीन में घुसी और एक टेबल पर बैठे फ्रैशर्स को देख कर हुक्म दिया, ‘‘अबे, देखते नहीं सीनियर्स आए हैं, टेबल खाली करो और हमारे लिए 3 कौफी और आमलेट ले कर आओ.’’

‘‘अरे, सीनियर्स हैं तो क्या हुआ, इन्होंने कैंटीन का फर्नीचर खरीद लिया है?’’ नए आए छात्र अशफाक ने कहा. ‘तड़ाक,’ उसे शायद थप्पड़ की उम्मीद नहीं थी. वह कुरसी से गिर पड़ा. बाकी बैठे छात्र भी टेबल छोड़ कर खड़े हो गए.

‘‘अरे…अरे, खड़े क्यों हो गए बैठोबैठो. वाकई कैंटीन का फर्नीचर किसी के बाप की बपौती नहीं है. बैठ जाओ,’’ पीछे से आई रौबदार आवाज की ओर सभी का सिर घूमा. कैंटीन के दरवाजे पर दिवाकर अपने साथियों के साथ खड़ा था. उस ने आगे बढ़ कर अशफाक को सहारा दे कर उठाया और उसी टेबल पर बैठा दिया जहां न बैठने की धौंस तिकड़ी दे रही थी. वह विशाल की ओर देख कर मुसकराया. इस पर तिकड़ी आगबबूला हो गई. विशाल ने दिवाकर को ललकारते हुए कहा, ‘‘अबे, ओ चिकने, हम से मत उलझ, तू मुझे जानता नहीं.’’

बजाय उस की बात पर ध्यान देने के दिवाकर ने नए आए छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आज के बाद या कहूं अभी से इन लफंगों को कोई अपनी सीट नहीं देगा, कोई इन के लिए कौफी, ठंडा या आमलेट नहीं लाएगा. अब तक जो होता आया है वह आगे नहीं होगा. आप सब लोग अपनीअपनी जगह पर बैठें और ऐंजौय करें. वैसे भी लंच टाइम के 15 मिनट बचे हैं,’’ दिवाकर ने समझाया. तभी तिकड़ी का कौमेडियन मुन्ना चहका, ‘‘बौस, इस ने तो आप का हुक्म मानने से इनकार कर दिया. कहो तो धो दूं.’’

इस से पहले कि कोई कुछ समझ पाता एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने उसे 5 फुट दूर फेंक दिया. फिर क्या था, पंच ने तिकड़ी को जम कर धोया. ‘‘तू समझता है कि हाथ सिर्फ तेरे पास ही हैं. जो कुछ तू करता आया है, वह हम भी कर सकते हैं. मगर न तो ये हमारी फितरत है और न आदत. अपनी इज्जत का खयाल नहीं तो अपनी बहन की इज्जत का खयाल कर ले,’’ विशाल को कौलर से पकड़ कर उठाते हुए दिवाकर ने कहा.

विशाल की बहन अनुष्का यह सब दूर खड़ी देख रही थी. उस के चेहरे पर संतोष के भाव थे कि चलो, ‘सेर को कोई तो सवा सेर मिला.’ ‘‘कोई तेरी बहन को तंग करे तो तुझे कैसा लगेगा,’’ दिवाकर ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘कोई उसे कुछ कह कर तो देखे, अपने पैरों से चल कर घर नहीं जा पाएगा,’’ पिट कर भी उस के तेवर ज्यों के त्यों थे. ‘‘अरे, तो इस में बड़ी बात क्या है, हम ही उसे कुछ कहे देते हैं,’’ कह कर दिवाकर ने अनुष्का को अपने पास बुलाते हुए कहा, ‘‘हैलो, अनु आई एम दिवाकर… दिवाकर सक्सेना, फ्रौम इंगलिश औनर्स,’’ दोनों ने हाथ मिलाया.

उस ने एक बार भाई की तरफ देखा और अपना हाथ खींच लिया. ‘‘घबराओ मत, मैं ऐंगेज्ड हूं, मेरी सगाई हो चुकी है. यों भी मुझे आप से दोस्ती या अफेयर में कोई दिलचस्पी नहीं है. ये सब इस सिरफिरे को सबक सिखाने के लिए जरूरी था. तुम मेरी भी बहन की तरह हो. मेरी तुम पर पूरे 3 साल नजर रहेगी. कोई प्रौब्लम हो तो बताना.’’

विशाल चुपचाप उठ कर कैंटीन से बाहर जाने लगा तो दिवाकर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘विशाल, मेरी तुम से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन ये समझ लो कि तुम्हारी दादागीरी के दिन लद गए. तुम पढ़ो या न पढ़ो, मुझे इस से कोई मतलब नहीं, मगर आज से सबकुछ बंद.’’ विशाल सचाई समझ चुका था. अगले 3 साल तिकड़ी और पंच दोस्त बन कर रहे. इस दौरान कालेज में न तो कोई मारपीट हुई और न ही रैगिंग.

काशी वाले पंडाजी : पंडाजी के साथ ऐसा क्या हुआ

रबी की फसल तैयार होने के बाद काशी वाले पंडाजी का इलाके में आना हुआ. लेकिन इस बार पंडाजी के साथ एक पहलवान चेला भी था, जिस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास थी. पर देखने में वह 21-22 साल का ही लगता था. हाथ में कई अंगूठियां, छोटेछोटे काले बाल, प्रैस की हुई खादी की धोती और पैर में कोल्हापुरी चप्पल उस पर खूब फबती थी. पंडाजी बांस की बनी एक छोटी डोलची ले कर चलते थे. डोलची के हैंडिल के सहारे 2 छोटीछोटी गोल रंगीन शीशियां बंधी रहती थीं.

पंडाजी बड़ी सावधानी से शीशी खोलते और बहुत ही थोड़ा जल निकाल कर यजमान के बरतन में डालते. इस के बाद पहलवान चेला शुरू हो जाता, ‘‘यह प्रयाग का गंगाजल है. पंडाजी ने नवरात्र के समय मंदिर में इसे कठिन साधना के साथ मंत्रों से पढ़ा है. ‘‘इस गंगाजल में शुद्ध जल मिला कर घर के चारों तरफ छिड़क दें. इस के बाद सारा उपद्रव शांत हो जाएगा. बालबच्चे खुश रहेंगे और यजमान का कल्याण होगा.’’

उस पहलवान चेले की बात खत्म होते ही लाल और पीले धागे वाले 2 तावीज वह पंडाजी की ओर बढ़ा देता और कुछ क्षण बाद तावीजों को ले कर यजमान के हाथों में रखते हुए कहता, ‘‘पंडाजी बता रहे हैं कि लाल धागे वाला तावीज यजमान बाएं हाथ में मंगलवार को पहनें और पीले धागे वाला तावीज बुधवार को यजमान दाहिने हाथ में पहनें. इस के बाद सब तरह की बाधा दूर हो जाएगी और हर काम में तरक्की होगी.’’

यजमान दोनों हथेलियों पर 2 रंगों वाले तावीजों को इस तरह देखने लगता, मानो वह तावीज नहीं, कुबेर के खजाने की कुंजी और दवा हो. चेला दक्षिणा उठा कर गिनता. अगर वह 51 रुपए होती, तो चुपचाप पंडाजी की दाहिनी जेब से पर्स निकाल कर उस में रख देता और अगर पैसा इस से कम होता, तो कहता, ‘‘यह तो नवरात्र का खर्च भी नहीं है. लौट कर भी तो अनुष्ठान करना होगा.’’

तब यजमान कुछ रुपए निकाल कर चेले को बढ़ा देता. चेला नोटों की गिनती किए बिना पर्स के हवाले कर देता. पंडाजी यजमानों द्वारा दी गई दक्षिणा के हिसाब से ही अपना कीमती समय देते थे. पर वे माई के घर पर घंटों आसन जमाते. माई बहुत दिनों तक परदेश में रही थीं और उन की तीनों कुंआरी बेटियां भी देखने में खूबसूरत थीं.

पंडाजी के गांव में पधारते ही माई के दरवाजे पर उन के आसन का इंतजाम हो गया था. तीनों बेटियां भी अच्छी तरह सजसंवर कर तैयार हो चुकी थीं. पंडाजी के पहुंचते ही माई ने उन की आवभगत की. पंडाजी आसन पर बैठने ही वाले थे कि एक लड़की ने आ कर उन के पैर छुए. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, क्या नाम है?’’

‘‘जी… संजू.’’ ‘‘कुंभ राशि. कन्या के लक्षण तो अति विलक्षण हैं. यह तो पिछले जन्म में राजकन्या थी. कुछ चूक हो जाने के चलते इसे इस कुल में आना पड़ा, तभी तो यह इतनी सुंदर और चंचला है.’’

सुंदर और चंचला शब्द सुनते ही संजू के गाल और भी लाल हो उठे और वह रोमांचित हो कर पंडाजी के और करीब होने लगी. तभी दूसरी लड़की रंजू ने कहा, ‘‘पंडाजी, इस को घरवर कैसा मिलेगा? इस की शादी कब तक होगी? हम तो इसी चिंता में परेशान रहते हैं. इस साल ही इस के हाथ पीले होने का कोई जतन बताइए न.’’

रंजू की बातें सुन कर पंडाजी चेले की ओर देखने लगे. संजू के यौवन में भटकता चेला अचकचा कर पंडाजी की ओर देखता हुआ कुछ पल चुप रहने के बाद बोला, ‘‘बीते सावन में इस के हाथ से जो सांप मर गया, वह कुलदेवता था. कुलदेवता इस पर बहुत गुस्सा हैं. इस के लिए मंत्र और तंत्र दोनों की साधनाएं करनी होंगी. ‘‘अच्छा है कि आज मंगलवार है. आज रात यह अनुष्ठान हो जाए, तो सब बिगड़ा काम बन सकता है.’’

चेले का यह सुझाव माई को डूबते को तिनके का सहारा जैसा लगा. सभी समस्याओं का समाधान निकल आने से माई की जान में जान आई. ठीक 5 बजे अनुष्ठान शुरू करने की बात कह कर पंडाजी चेले के साथ कैथीटोला गांव की ओर चल पड़े.

रात 9 बजे से माई के आंगन में अनुष्ठान का काम पंडाजी और चेले ने शुरू किया. हर तरह से सजीसंवरी तीनों बहनें भी आ कर लाइन से बैठ गईं. कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद आग जला कर उन्होंने माई के साथसाथ संजू, रंजू और मंजू को भभूत मिला प्रसाद खाने को दिया. इस के बाद चेले ने वहां मौजूद पासपड़ोस के लोगों को बाहर जाने का इशारा किया.

इशारा पाते ही सभी वहां से चले गए. फिर उस के बाद रात में क्या हुआ, गांव वालों को इस का क्या पता… अगली सुबह माई के घर में हाहाकार मचा हुआ था. माई और उस की छोटी बेटी मंजू छाती पीटपीट कर चिल्ला रही थीं, ‘‘कोई हमारी संजू… रंजू को वापस ला दो. वह पंडा पुरोहित नहीं, ठग था.

‘‘हम दोनों को बेहोश कर के पंडा और चेला मेरी दोनों बेटियों को उठा कर कहां ले गए… कुछ मालूम नहीं. हमारी बेटियों को वापस ला दो. उन्हें बचा लो.’’

गांव वालों को माजरा समझते देर नहीं लगी. राजमणि काका ने तुरंत रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन वे सभी खाली हाथ निराश लौट आए. तब पुलिस में मामले को ले जाया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

माई के पास कलेजे पर पत्थर रख कर संजू और रंजू को भूलने के अलावा कोई चारा नहीं था. इधर उन दोनों बहनों ने समझदारी से काम लिया. पंडा और चेले की गलत मंसा भांपते हुए चालाकी से संजू ने पंडाजी से और रंजू ने चेले से ब्याह कर मौजमस्ती से जिंदगी बिताने का प्रस्ताव रखा.

पंडा और चेला इस प्रस्ताव को सुन कर बहुत खुश हुए. रंजू ने कहा, ‘‘लेकिन, इस के लिए जरूरी है कि हमारे घरपरिवार, गांव के लोग आगे आएं. कोई कानूनी दांवपेंच नहीं लगाएं और हमें पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना पड़े, सो हम लोग बिना समय गंवाए कोर्ट मैरिज कर लें.’’ संजू और रंजू के रूपजाल में फंसे पंडा और चेला कोर्ट मैरिज के कागजात के साथ अदालत में जज के सामने हाजिर हुए.

जब जज ने संजू और रंजू से उन की रजामंदी के बारे में पूछा, तो संजू कहने लगी, ‘‘जज साहब, ये दोनों हमारे गांव में पंडापुजारी बन कर आए थे. भोलेभाले गांव वालों के सामने तंत्रमंत्र का मायाजाल फैला कर इन ढोंगियों ने उन्हें खूब लूटा. ‘‘हम तीनों बहनों पर तो ये लट्टू बने थे. माई को घरपरिवार पर देवी का प्रकोप बता कर तांत्रिक अनुष्ठान कराने के लिए इन दोनों ने इसलिए मजबूर किया, ताकि उस की आड़ में हमें भोग सकें.

‘‘इन की खराब नीयत को भांप कर हम दोनों बहनों ने आपस में विचार किया और इन दोनों को कानून के हवाले करने के लिए यह नाटक खेला है, ताकि कानून इन ढोंगियों को ऐसी सजा दे, ताकि फिर कभी इस तरह की घटना न होने पाए.’’ संजू और रंजू के बयान को दर्ज करते हुए अदालत ने पंडा और चेले को जेल भेजने का आदेश दिया.

संजू और रंजू ने जब गांव वालों को यह दास्तान सुनाई, तो सभी कहने लगे, ‘सचमुच, तुम्हारी दोनों बेटियां बड़ी बहादुर हैं माई. इन दोनों ने वह कर दिखाया है, जो बहुत कम लोग ही कर पाते हैं. पूरे गांव को इन पर नाज है.’ माई की आंखों में भी खुशी और संतोष के आंसू छलछला रहे थे.

जबरदस्‍ती कम सहमति ज्यादा, हेमा आयोग की रिपोर्ट पर बेवजह का हल्ला क्यों

भोजपुरी फिल्म निर्माता और अभिनेता यश कुमार कोई बड़ा या जानामाना नाम नहीं है. लेकिन मलयालम फिल्म इंडस्ट्री यानी मालीवुड में मचे बवाल पर उन्होंने जो कहा वह न केवल फिल्म उद्योग का बल्कि हमारे समाज का भी बड़ा और कड़वा सच उजागर करता है. एक ऐसा सच जिस से हर कोई कतराता है. बकौल यश कुमार कहीं न कहीं इस के लिए लड़कियां खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि लोगों को शौर्ट टर्म कामयाबी पानी है और आते ही स्टार बन जाना है तो वे इस तरह की चीजों के साथ समझौता कर लेती हैं. हालांकि इस हल्ले को यश शर्मनाक और गंभीर मुद्दा बताते हैं लेकिन एक कड़वा सच यह भी जोड़ते हैं कि जिन के अंदर टैलेंट है वो स्ट्रगल करता है और काम हासिल कर लेता है. मगर कुछ लड़कियां कम समय में ग्लैमर पाना चाहती हैं और वे ये तरीके अपनाती हैं. इसी वजह से अच्छी लड़कियां मात खा जाती हैं. रेप वो होता है जो बिना सहमति के किया जाए.

फिल्मी दुनिया की एक और हकीकत यश यह कहते बयान करते हैं कि लड़कियां गांव से एक सपना लिए आती हैं लेकिन यहां तो सोए बिना काम नहीं मिलता. इज्जतदार घर की लड़की लौट जाएंगी या छोटेमोटे काम कर लेंगी. लेकिन अगर वो ऐक्ट्रैस बनना चाहती है तो घुटने टेक देगी कि अरे यहां तो आम है ये सब, चलो कर लेते हैं. मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि किसी के लिए रास्ते बंद मत कीजिए अगर लड़की भी आप को पसंद करती है और सहज है तो एंजोय कीजिए. लेकिन लड़की मर्जी के खिलाफ कुछ करेंगे तो भरपाई करनी होगी.

इस बयान में खोट निकालना जितना मुश्किल काम है उस से आसान इसे जस्टिफाई कर देना है लेकिन इस के पहले हेमा आयोग पर एक नजर डालें कि यह है क्या और किस तरह का हल्ला मलयालम फिल्म इंडस्ट्री सहित पूरे दक्षिण का चक्कर लगा कर हौलीबुड से होता हुआ भोजपुरी तक भी जा पहुंचा है. इसे मी टू मुहिम पार्ट टू भी कहा जा सकता है.

क्या है हेमा आयोग

बात साल 2017 की है, जब मलयाली फिल्मों की एक जानीमानी एक्ट्रैस को किडनेप कर उस के साथ बलात्कार किया गया था. यह मामला अभी भी अदालत में चल रहा है. इस मामले में पीड़िता ने मलयाली फिल्मों के एक बड़े एक्टर दिलीप का भी नाम लिया था. इस पर हल्ला मचना स्वभाविक बात थी जिसे तूल दिया महिलाओं के एक संगठन ने जिस का नाम वुमेन इन सिनेमा कलैक्टिव है. कोच्चि में 18 महिलाओं ने पीड़िताओं को इंसाफ दिलाने के लिए मुहिम शुरू की तो सरकार ने हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज हेमा की अगुवाई में 3 सदस्यीय आयोग गठित कर दिया जिसे हेमा आयोग के नाम से जाना गया. आयोग की एक सदस्य मलयाली फिल्मों की एक्ट्रैस शारदा और दूसरी सदस्य रिटायर्ड आईएएस अधिकारी केबी वलसाला थीं.

हेमा आयोग ने 2 साल में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की कई महिलाओं से बातचीत की और उस के आधार पर 235 पन्नों की एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. लेकिन इस में से भी 55 पन्ने गायब थे. जिन महिलाओं से आयोग ने बात की उन की उम्र 30 साल से कम थी.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सुनियोजित तरीके से महिलाओं का यौन शोषण होता है जिस में बड़े से ले कर छोटे नाम और लोग भी शामिल हैं. सरकार ने यह रिपोर्ट बीते दिनों उजागर की तो मालीबुड में तहलका मच गया. मलयालम मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन जिसे संक्षिप्त में अम्मा कहा जाता है के 17 मैम्बर्स ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.

अम्मा के अध्यक्ष मोहनलाल दक्षिण फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता हैं जिन्होंने रामगोपाल वर्मा की फिल्म आग और कम्पनी में भी अभिनय किया था. 355 से भी ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके मोहनलाल के नाम कई रिकौर्ड और उपलब्धियां भी हैं. दुबई के बुर्ज खलीफा में उन का एक फ्लेट भी है. नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने वाले मोहनलाल अम्मा का बचाव करते प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि हर बात के लिए अम्मा को दोषी ठहराया जाना गलत है और भी तो संगठन हैं.

यानी अगर यह शोषण है तो इसे हर कोई कर रहा है लेकिन अगर यह न्यू कमर्स को मौका और प्रोत्साहन देने के एवज में कीमत वसूलना है तो भी इस से कोई अछूता नहीं है. अभिनेत्री विद्या बालन अभिनीत डर्टी फिल्म जिन्होंने देखी और समझी है उन्हें हेमा आयोग की रिपोर्ट पर शायद ही हैरानी हुई होगी.

मधुर भंडारकर निर्देशित फिल्म पेज थ्री फिल्म भी इसी विषय पर बनी थी. खुद विद्या स्वीकार कर चुकी हैं कि वे भी इस तरह की हरकतों से दो चार हो चुकी हैं. भाजपा की नई नवेली बड़बोली सांसद कंगना रानौत भी एक इंटरव्यू में इस हकीकत पर रौशनी डाल चुकी हैं. उन्होंने तो सीधेसीधे अपने गोड फादर अभिनेता आदित्य पांचोली पर खुद के यौन शोषण का आरोप लगाया था. एक और विवादित अभिनेत्री पूनम पांडेय ने तो दिल्ली प्रेस पत्रिकाओं की फिल्म संवाददाता को बताया था कि मेरा शरीर मेरी प्रापर्टी है यह मेरी मर्जी है कि इस का जैसे चाहूं इस्तेमाल करूं.

नया क्या

हेमा आयोग की रिपोर्ट में नया कुछ भी नहीं है. इसे कुछ एक्ट्रैस के अनुभवों का एलबम कहना बेहतर होगा. मसलन इस तरह के बयान कि ‘उन्होंने मुझे एक होटल में बुलाया था उस होटल में मेरा यौन शोषण किया गया. बाद में मुझे पता चला कि ऐसी कोई फिल्म अस्तित्व में ही नहीं थी.’

यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई पत्नी पति और ससुराल वालों पर दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के आरोप मढ़ दे. यह ठीक वैसा भी है कि कोई युवती यह कहे कि मैं 5 साल उस के साथ लिव इन में रही लेकिन वह अब शादी के अपने वादे से मुकर रहा है लिहाजा इसे मेरा बलात्कार और यौन शोषण हुआ माना जाए. आमतौर पर ऐसी शिकायतों पर कानून महिला के साथ खड़ा दिखता है और आमतौर पर ही उसे हमदर्दी भी मिलती है. लेकिन ऐसा होना अब कम हो रहा है क्योंकि अदालती फैसले तथाकथित पीड़िताओं के पक्ष में इन शब्दों के साथ जाने लगे हैं कि इसे बलात्कार या यौन शोषण करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि इस में दोनों की रजामंदी थी शादी का झांसा देना कोई अपराधं नहीं है.

यही बात एक्ट्रैस बनने का सपना ले कर गई उस महत्वाकांक्षी बालिग लड़की पर लागू होती है जो होटल गई थी और जब फिल्म में काम नहीं मिला या बुलाने वाले ही फर्जी थे तो वह हल्ला मचाने लगी कि मेरा बलात्कार या यौन शोषण हुआ है. अगर ऐसा हुआ था तो उस ने शोर क्यों नहीं मचाया? वह भाग कर थाने क्यों नहीं गई? उस ने होटल के स्टाफ को अपने साथ हुई इस ज्यादती से अवगत कराते क्यों मदद नहीं मांगी? इन तमाम सवालों का इकलौता जवाब यही है कि वह अपनी मर्जी से गई थी और जो होना संभावित था उस के लिए तैयार हो कर गई थी. उसे कोई टैक्सी या कार में किडनेप कर नहीं ले गया था.

इस में हर्ज क्या

सच बहुत कड़वा है जो किसी आयोग की रिपोर्ट में नहीं मिलेगा कि लड़की अपनी मर्जी से गई थी और सैक्स संबंध बनाने भी सहमत थी. लेकिन जब रिटर्न मनमाफिक नहीं मिला तो इसे वह यौन शोषण और बलात्कार कहते हल्ला मचा रही है जिस से अपनी मूर्खता या स्वार्थ कुछ भी कह लें को ढक सके या फिर उस फिल्मकार से कुछ पैसा झटक सके.

इस सच को अब से कोई 6 साल पहले मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान ने यह कहते उधेड़ कर रख दिया था कि कास्टिंग काउच कोई नई बात नहीं है. यह बाबा आदम के जमाने से चला आ रहा है और सरकार सहित हर कोई इस का फायदा उठाना चाहता है. फिल्म इंडस्ट्री बलात्कार के बदले कम से कम रोटी तो देती है. सरकार के लोग तो वह भी नहीं देते फिर आप क्यों फिल्म इंडस्ट्री के पीछे पड़े रहते हो.

इस पर सरोज खान की खिंचाई शरू हुई तो उन के बचाव में आते दिग्गज अभिनेता और सांसद शत्रुध्न सिन्हा ने इस रिवाज को गिव एंड टेक करार देते जायज ठहराया था, तुम मुझे खुश करो मैं तुम्हे खुश करूंगा का कांसेप्ट सदियों से चला आ रहा है और इस में परेशान होने की कोई बात नहीं. जो आज भोजपुरी के यश कुमार कह रहे हैं वही शत्रुधन ने इन शब्दों के साथ कहा था कि कास्टिंग काउच व्यवस्था का हिस्सा बनना एक व्यक्तिगत पसंद है. हम अपने आसपास की मानसिकता से आखें नहीं मूंद सकते. सरोज खान के सच बोलने की निंदा नहीं करनी चाहिए बल्कि ऐसे हालात पैदा करने वालों की निंदा करनी चाहिए.

कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी ने तो यहां तक कह डाला था कि संसद भी इस प्रथा से अछूती नहीं है. इस खुलासे पर जब रेणुका भी घिरने लगीं तब भी शत्रु ने उन के बचाव में कहा था कि मनोरंजन जगत और राजनीति दोनों में यौन संबंधों की मांग की जाती है और दी जाती है और यह जीवन में आगे बढ़ने का एक पुराना और समय परीक्षनित ( time tested ) तरीका है.

दिक्कत यह नहीं है कि लड़कियां आगे बढ़ने की गरज से जिस्म को सीढ़ी बनाती हैं, दिक्कत यह है कि नाकाम रहने पर वे हल्ला मचाने लगती हैं या पुरुष को ब्लैकमेल करने लगती हैं. बात अकेले फिल्म या राजनीति तक सिमटी नहीं है बल्कि कौरपोरेट में भी आम है कि नौकरी या प्रमोशन चाहिए तो बौस का बिस्तर गर्म करो. नैतिकतावादियों को यह तरीका बुरा लगता है क्योंकि इस से महिला उन के बुने जाल और जकड़नों से आजाद होती है. जबकि इसे गलत तभी ठहराया जा सकता है जब यह वाकई जबरजस्ती किया गया हो नहीं तो बात वैसी ही है कि देख लिया तो बलात्कार नहीं तो रजामंदी है ही.

चूंकि यह नपातुला सच है इसलिए हेमा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद उठ रहा बवंडर भी प्याली के तूफान जैसे जल्द खत्म हो जाना है जैसे मीटू मुहिम फुस्स हो कर रह गई है.

पौराणिक भी है सिलसिला

न केवल आजकल के लिहाज से बल्कि पौराणिक युग के लिहाज से भी नैतिकता के तराजू पर देखें तो यह सिलसिला चला आ रहा है जिसे सरोज खान ने बाबा आदम के जमाने की संज्ञा दी थी. फर्क इतना भर है कि उन किस्सेकहानियों में पुरुष स्त्री को मोहरा बना कर अपना काम निकालता था आज भी ऐसा होता है. मोहिनी अवतार का किस्सा हर हिंदू जानता है कि समुद्र मंथन के बाद कैसे देवताओं को अमृत पान कराने की साजिश रची गई थी. इस कहानी के मुताबिक दैत्यों से अमृत पान छीनने के लिए खुद विष्णु ने एक अति सुंदर स्त्री का रूप धारण किया था. शिव को यह पता चला कि विष्णु यह चाल चलने वाले हैं तो वे उन की स्तुति करने पहुंच गए.

विष्णु ने उन्हें मोहिनी रूप दिखाया तो शिव मोहित हो कर अपनी सुधबुध खो बैठे. कभी कामदेव को भी मात देने वाले शिव कामातुर हो उठे और उन्होंने उस के पीछे दौड़ लगा दी. शिव इतने उत्तेजित हो गए थे कि उन का वीर्य पृथ्वी पर गिरने लगा और जहांजहां गिरा वहांवहां शिवलिंग स्थापित हो गए और सोने की खदानें बन गईं. अब इन शिवलिंगों के आसपास कहीं भी सोने की खदाने नहीं हैं, हां भक्तगण जरुर इफरात से पंडों को दान दक्षिणा चढ़ाते रहते हैं. मुमकिन है आजकल के प्रोड्यूसर भी एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए महिलाओं को मोहरा बनाते अपना उल्लू सीधा करते हों.

इंद्र अहिल्या और गौतम ऋषि की कहानी भी कुछ ऐसी है जिस के बारे में समकालीन टीकाकार और धार्मिक विशलेषक यह सवाल अधूरा छोड़ देते हैं कि वाकई में इंद्र ने अहिल्या का बलात्कार किया था या पति की गैरहाजिरी में खुद अहिल्या ने इंद्र को आमंत्रित किया था. धार्मिक उपन्यासकार नरेंद्र कोहली के उपन्यास दीक्षा में इस का वर्णन है कि गौतम ऋषि ने पत्नी पर स्वभाविक शक किया था.

कैसे एक्ट्रैस बनने की शौकीन महत्वाकांक्षी युवतियां अपनी मंशा पूरी न होने पर फिल्मकारों को फंसा देती हैं इस से कनैक्ट होती कहानी द्वापर युग में मिलती है. इस कहानी के मुताबिक एक बार इंद्र ने अपने पुत्र अर्जुन को स्वर्ग लोक में आमंत्रित किया. वहां के समारोह में बेहद खुबसूरत अप्सरा उर्वशी ने नृत्य पेश किया और नृत्य करतेकरते ही अर्जुन पर ठीक वैसे ही मोहित हो गई जैसे शिव मोहिनी पर हो गए थे. सभा खत्म होने के बाद उर्वशी अर्जुन के कमरे में जा पहुंची और उस से प्रणय निवेदन किया. जिसे अर्जुन ने अस्वीकार कर दिया. इस से गुस्साई उर्वशी ने अर्जुन को शिखंडी यानी हिजड़ा बनने का श्राप दे दिया. नतीजतन बेचारे अर्जुन को एक साल तक वृहन्नला बन कर रहना पड़ा था. अब आज के अर्जुन बेचारे जेल और अदालत के चक्कर काटने पर मजबूर रहते हैं. यह और बात है कि अधिकतर मामलों में उर्वशी आरोप साबित नहीं कर पाती.

केंद्र सरकार के अंत की शुरुआत है सहयोगी दलों का बढ़ता दबाव

4 जून के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पब्लिक मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया है. उन की मीटिंग बहुत ही कम और चुने हुए लोगों के बीच हो रही है, जिन में से ज्यादातर उन की विचारधारा वाले हैं. भाजपा की हार के बाद जो सवाल उठ रहे हैं उन का सामना करने की हालत में प्रधानमंत्री खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे. विदेशों में भी वे चुने हुए लोगों के बीच ही जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में पहली विदेश यात्रा में इटली गए.

वहां इटली की प्रधानमंत्री जौर्जिया मेलोनी ने नरेंद्र मोदी को 50वें जी7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए बुलाया था. आमतौर पर नरेंद्र मोदी जिस देश में जाते थे वहां भारत के रहने वालों से पब्लिक मीटिंग करते थे. इटली में उन की फोटो इटली की प्रधानमंत्री जौर्जिया मेलोनी के साथ दिखी. पब्लिक के बीच की कोई फोटो नहीं दिखी जिस में यह दिख रहा हो कि नरेंद्र मोदी इटली में रहने वाले भारतीयों से मिले हों.

अपनी दूसरी विदेश यात्रा में नरेंद्र मोदी रूस गए. रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू होने के बाद नरेंद्र मोदी की यह पहली रूस यात्रा थी. यूक्रेन और रूस के बीच युद्व को रुकवाने को ले कर सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी को ले कर तमाम तरह के मीम्स वायरल हुए हैं. बारबार यह कहने की कोशिश की गई कि यूक्रेन-रूस युद्व रुकवाने में मोदी प्रभावी भूमिका अदा कर सकते हैं. सचाई में यह युद्व अभी भी जारी है.

दूसरी तरफ, नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी देश और विदेशों में पब्लिक के बीच लोगों से मिल रहे हैं. दिल्ली में बस के चालकों से मिले. उन्होंने अपनी तीसरी भारत जोड़ो यात्रा ‘डोजो’ के नाम से शुरू करने की बात कही है. लोकसभा चुनाव के बाद नेताओं में सब से सक्रिय राहुल गांधी ही नजर आ रहे हैं. ऐसे में यह बात भी साफ हो गई है कि जनता को केवल राहुल गांधी से ही उम्मीद नजर आ रही है. जम्मूकश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में इंडिया ब्लौक राहुल गांधी के कारण मजबूत खड़ा हो गया है. एनडीए के घटक दलों में कश्मीर से ले कर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार में अंसतोष बढ़ता जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में खींचतान

एक तरफ लोग उन से यूक्रेन-रूस युद्व रुकवाने की उम्मीद कर रहे हैं, दूसरी तरफ एनडीए और भाजपा में आपसी लड़ाई अब खुल कर सामने आ रही है. नरेंद्र मोदी इस लड़ाई को रुकवाने में असफल साबित हो रहे हैं. लोकसभा चुनाव में भाजपा को सब से बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा जहां वह समाजवादी पार्टी से 4 सीटें कम पा कर दूसरे नंबर की पार्टी बनी. भाजपा को लोकसभा चुनाव में 33 सीटें मिलीं जबकि सपा को 37 सीटें मिलीं. सपा को 32 सीटों का लाभ हुआ और भाजपा को 32 सीटों का नुकसान हुआ. उस की 64 सीटों से घट कर 32 सीटें रह गईं.

जिस तरह से एक बरसात में ही अयोध्या के सड़क और मंदिर निर्माण की पोल खुल गई उसी तरह एक ही हार में भाजपा का पूरा अनुशासन तारतार हो गया. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, सहयोगी अपना दल की नेता और मंत्री अनुप्रिया पटेल, डाक्टर संजय निषाद जैसे नेताओं ने पार्टी की हार के लिए आरक्षण, बुलडोजर कार्रवाई और उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया.

केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘संगठन सरकार से बड़ा होता है. पार्टी की हार के लिए सरकारी अमला जिम्मदार है जिस ने संगठन के लोगों को महत्त्व नहीं दिया.’ अनुप्रिया पटेल ने ओबीसी आरक्षण को ले कर उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि सरकारी नौकरियों में सही तरह से आरक्षण का पालन नहीं किया गया. 69 हजार शिक्षकों की भरतियों को ले कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले से अनुप्रिया पटेल की बात पर मोहर लगा दी.

भाजपा के दूसरे सहयोगी नेता डाक्टर संजय निषाद ने कहा कि, ‘बुलडोजर गरीबों के घरों पर भी चल रहा है. ऐसे में उन से वोट की उम्मीद कैसे की जा सकती है. गरीबों का घर उजाड़ोगे तो वे हमें उजाड़ देंगे.’ उत्तर प्रदेश में सरकार के खिलाफ बगावत दबी नजर में दिख रही है. 10 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव के नतीजे आग में घी का काम करेंगे. नरेंद्र मोदी इन को संभाल नहीं पाएंगे.

दबाव बनाने लगे मोदी के हनुमान

लोक जनशक्ति पार्टी के नेता, केंद्र सरकार में मंत्री और अपने को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान एनडीए के सुर से सुर नहीं मिला रहे. वक्फ बिल, जातीय गणना और आरक्षण को ले कर उन की राय में विरोध के स्वर फूटते सुनाई दे रहे हैं. इसे नियंत्रण में करने के लिए भाजपा ने औपरेशन लोटस शुरू कर दिया है. भाजपा की निगाह लोक जनशक्ति पार्टी के सांसदों के साथ ही साथ चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस पर भी है.

पशुपित पारस पटना से ले कर दिल्ली में भाजपा के बड़े नेताओं से मिल रहे हैं. चिराग को नियंत्रण में लाने के लिए भाजपा पशुपति को भाव देने लगी है. 22 अगस्त को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पारस से मिलने उन के पटना वाले घर गए. गृह मंत्री अमित शाह से पारस की मुलाकात हो गई. भाजपा ने यह कदम तब उठाया जब लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान केंद्र सरकार से जुड़े कुछ संवेदनशील मामलों पर सार्वजनिक मंच पर टिप्पणी करने लगे.

असल में चिराग पासवान की कुछ गतिविधियां भाजपा को पसंद नहीं आ रही हैं. लोजपा (रामविलास) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की रांची में बैठक हुई थी. उस में चिराग ने झारखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में भी स्वतंत्र ढंग से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. भाजपा नहीं चाहती है कि झारखंड में राजग के वोटबैंक में बिखराव हो. इस से पहले लैटरल एंट्री को ले कर चिराग के रुख से भी भाजपा हैरान रह गई थी. चिराग ने ठीक उसी समय लैटरल एंट्री का विरोध किया जब इंडिया अलायंस के सभी दल एक सुर से इस का विरोध कर रहे थे.

इसी तरह एससीएसटी आरक्षण के लिए उपवर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के विरोध में चिराग की अतिसक्रियता भी भाजपा को नहीं भा रही है. एससीएसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की सुप्रीम कोर्ट की सलाह की केंद्र सरकार समीक्षा ही कर रही थी कि चिराग ने इस मामले में भी टिप्पणी की जो भाजपा को ठीक नहीं लगी.

चिराग पासवान की दिक्कत यह है कि वे एससीएसटी और मुसलिम बिरादरी को नाराज नहीं कर सकते. उन को लगता है कि अगर इन वर्गों के मुद्दों पर वे भाजपा के साथ खड़े दिखेंगे तो यह वोट उन की पार्टी से छिटक जाएगा जिस का राजनीतिक नुकसान उन की पार्टी को उठाना पड़ेगा. वे जानते हैं कि जब उन की पार्टी वोट नहीं पाएगी, उस के लोग चुनाव नहीं जीतेंगे तो भाजपा भी उन की परवा नहीं करेगी. ऐसे में वे भाजपा के साथ रहते एससीएसटी और मुसलिमों का साथ देना चाहते हैं. वेभाजपा पर अपना एहसान जताना चाहते हैं कि उन का साथ देने से यह वोट उन से दूर जा रहा है.

जदयू में भी हो रहा है खदबद

एनडीए की एक और सहयोगी जदयू में भी भाजपा के साथ संबंधों को ले कर माहौल खराब हो रहा है. पार्टी नेता के सी त्यागी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया है. अब राजीव रंजन यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. के सी त्यागी लंबे समय से जदयू का प्रमुख चेहरा रहे हैं. एक तरफ जदयू के नेता नरेंद्र मोदी की हां में हां मिला रहे थे दूसरी तरफ के सी त्यागी के कुछ बयान अलग आ रहे थे. असल में एससीएसटी और मुसलिमों को ले कर जदयू और भाजपा के विचारों में टकराव है. जदयू के लिए अपने इस वोटबैंक के खिलाफ जाना आसन नहीं है. इस से पार्टी की राजनीतिक जमीन के खिसकने का खतरा है.

ऐसे में पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ रहा है. वैसे तो के सी त्यागी ने अपने इस्तीफे की वजह व्यक्तिगत बताई है पर इस के राजनीतिक प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता. के सी त्यागी के इस्तीफे के पीछे कई और कारण छिपे हुए हैं, जिन में उन के बयानों के कारण पार्टी के भीतर और बाहर उत्पन्न हुए मतभेद शामिल हैं. इस कारण पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई और यह स्थिति धीरेधीरे गंभीर हो गई.

के सी त्यागी के बयानों के कारण सिर्फ जदयू ही नहीं, बल्कि एनडीए के भीतर भी मतभेद की खबरें सामने आईं. खासकर विदेश नीति के मुद्दे पर, उन्होंने इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ सुर मिलाते हुए इजराइल को हथियारों की आपूर्ति रोकने के लिए एक साझा बयान पर हस्ताक्षर कर दिए. यह कदम जदयू नेतृत्व को असहज करने वाला था और इस से पार्टी के भीतर और बाहर विवाद बढ़ गया.

इस के अलावा के सी त्यागी ने एससीएसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर बिना पार्टी से चर्चा किए बयान जारी कर दिया. लैटरल एंट्री के मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी व्यक्तिगत राय को पार्टी की आधिकारिक राय के रूप में पेश किया. के सी त्यागी की विदाई से जदयू ने भाजपा पर दबाव बनाने का प्रयास किया है. इस से उस ने अपनी छवि एससी, एसटी, ओबीसी और मुसलिमों के बीच सुधारने का प्रयास भी किया है.

जम्मूकश्मीर की जदयू इकाई ने नीतीश कुमार से अपील की है कि वे केंद्र में सरकाए के साथ गठबंधन पर विचार करें. नीतीश कुमार की जदयू ने जम्मूकश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने का ऐलान किया है. राज्य की जदयू इकाई ने केंद्र सरकार से जम्मूकश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल कराने की भी मांग करने का फैसला लिया है. जदयू के राज्य महासचिव विवेक बाली ने कहा, ‘जम्मूकश्मीर में भाजपा के कृत्यों ने हमें अपने राष्ट्रीय नेता नीतीश कुमार से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में हमारी भागीदारी पर पुनर्विचार करने की अपील करने के लिए मजबूर किया है. जदयू कश्मीर में इसलामी विद्वानों को मुख्यधारा में वापस लाने की कोशिश कर रही है लेकिन भाजपा कथित तौर पर इन प्रयासों में बाधाएं पैदा कर रही है.’

जदयू ने जम्मूकश्मीर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. जदयू का कहना है कि वह राज्य की ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और संगठन को लगातार मजबूत कर रही है. इस तरह की मांग से एनडीए के कुनबे पर संकट के बादल छा रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि जैसे केंद्र की नरेंद्र मोदी वाली एनडीए की सरकार के जाने का वक्त आ गया है.

महाराष्ट्र में बढ़ रही चुनौतियां

महाराष्ट्र में भाजपा को अपेक्षित सफलता न मिल पाने में कई अन्य कारणों के अलावा सांगठनिक असंतोष ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. इस का प्रभाव महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा. जनसंघ काल के बाद भाजपा की स्थापना मुंबई में ही हुई थी. स्थापना के बाद से ही भाजपा को राज्य में प्रमोद महाजन एवं गोपीनाथ मुंडे जैसे 2 युवा चेहरे मिले. महाजन की पहल पर ही यहां के उभरते क्षेत्रीय दल शिवसेना से गठबंधन की शुरुआत हुई. दोनों दलों ने मिल कर यहां की मजबूत जनाधार वाली कांग्रेस से टक्कर ले कर 1995 में पहली बार अपनी सरकार बनाई.

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण जातीय समीकरण रहे. जो हालत उत्तर प्रदेश में थी वही महाराष्ट्र में भी भाजपा की रही. चुनाव परिणाम आने के बाद खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने माना कि वे सोयाबीन एवं कपास उत्पादक किसानों तक पहुंच बना पाने में नाकाम रहे. प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले हार का ठीकरा जातिवाद की राजनीति को दे रहे हैं. जबकि महाराष्ट्र में भाजपा नेता माली, धनगर एवं वंजारी जैसे अन्य पिछड़ा वर्गों को साथ ले कर मजबूत मराठा नेताओं को चुनौती देते रहे थे.

भाजपा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री एवं अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बना कर भी मराठा आरक्षण आंदोलन से उपजी मराठों की नाराजगी दूर नहीं कर सकी, जबकि ये दोनों प्रमुख मराठा चेहरों में से एक हैं. उलटे, इन दोनों को साथ लाने से भाजपा के ही विधायकों में असंतोष पैदा हुआ क्योंकि इन दोनों के साथ आने से मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा विधायकों का ही हक मारा गया. विधायकों से नीचे के स्तर पर भी असंतोष पनप रहा है. जम्मूकश्मीर से ले कर महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश तक एनडीए में अंसतोष बढ़ रहा है, जो इस बात का संकेत है कि एनडीए के अंत की शुरुआत हो चुकी है.

पिघलते पल : मानव और मिताली की गृहस्थी क्या फिर से बस पाई

अभिमन्यु को वापस छोड़ कर मानव मुड़ा तो अभिमन्यु ने हाथ पकड़ लिया, ‘‘मत जाइए न पापा… यहीं रह जाइए… रुक जाइए न पापा… आप के बिना अच्छा नहीं लगता…’’

‘‘अगले रविवार को आऊंगा न अभि… हमेशा तो आता हूं,’’ मानव उस का गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘नहीं, आप बहुतबहुत दिनों बाद आते हैं… मुझे आप की बहुत याद आती है… मेरे दोस्त भी आप के बारे में पूछते हैं… मेरे स्कूल भी आप कभी नहीं आते. मेरे दोस्तों के पापा आते हैं… क्यों पापा?’’

8 साल के नन्हे अभि के अनगिनत सवाल थे. मानव हैरान सा खड़ा रह गया. उस के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ ऐसे सवाल थे जिन के जवाब देने से वह खुद से कतराता था. उसे नहीं पता कि यह सिलसिला कब तक यों ही चलता रहेगा.

‘‘मैं आऊंगा अभि. तुम तो मेरे समझदार बेटे हो. जिद्द नहीं करते बेटा… अब तुम ऊपर जाओ… मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. फिर हम दोनों साथ रहेंगे.’’

‘‘नहीं, फिर वहां मम्मी नहीं होंगी.’’

‘‘अभि, अब तुम ऊपर जाओ बेटा. हम फिर बात करेंगे. मुझे भी देर हो रही है,’’ कह कर मानव ने उसे लिफ्ट के अंदर किया और खुद बिल्डिंग के बाहर आ कर अपनी कार स्टार्ट की और घर की तरफ चल दिया. मुंबई जैसी जगह में दोनों घरों की दूरी बहुत थी. फिर भी हर रविवार की उस की यही दिनचर्या थी.

मानव एक कंपनी में अच्छे पद पर था. बड़ा पद था तो जिम्मेदारियां भी बड़ी थीं. बहुत व्यस्त रहता था. टूअरिंग जौब थी उस की. 10 साल पहले मिताली से उस का प्रेम विवाह हुआ था. दोनों ने एमबीए साथ किया था. पहली ही नजर में शोख, चुलबुली, फैशनेबल मिताली उसे भा गई थी. एमबीए पूरा होतेहोते कैंपस प्लेसमैंट में दोनों को बढि़या जौब मिल गई. फिर दोनों ने अपनेअपने मातापिता को एकदूसरे के बारे में बताया. दोनों के मातापिता खुशीखुशी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए. दोनों को ही पहली पोस्टिंग बैंगलुरु में मिली. विवाह के बाद दोनों बैंगलुरु चले गए.

नईनई नौकरी की व्यस्तता और नईनई शादी, व्यस्त दिनचर्या के बावजूद दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. दोनों बहुत खुश थे. विवाह का पहला साल खुशीखुशी में बीत गया. दूसरे साल में बच्चे के आने की आहट दस्तक दे गई. दोनों अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं थे पर दोनों परिवारों के दबाव की वजह से बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो गए.

मिताली को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. नौकरी छोड़ने का मिताली को बहुत दुख हुआ पर मानव ने उसे समझाया कि बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर वह फिर नौकरी कर सकती है. लेकिन वह समय फिर कभी नहीं आया और जब आया तब तक सब कुछ बिखर चुका था. जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता गया मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ती चली गईं. इधर मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ीं उधर मानव नौकरी में और एक के बाद बड़े पद पर पहुंचता चला गया. इसीलिए उस की नौकरी की जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं.

नौकरी छोड़ने के कारण एक रोष तो मिताली के स्वभाव में पहले ही घुल गया था. उस पर मानव की अत्यधिक व्यस्तता ने आग में घी का काम कर दिया. वह चिड़चिड़ी हो गई. थोड़ाबहुत गुस्सैल स्वभाव तो उस का पहले ही था. अब तो वह बातबात पर गुस्सा करने लगी. मानव के घर आने का कोई वक्त नहीं होता था. उस पर टूअरिंग जौब. मिताली जबतब भन्ना जाती थी.

‘‘ऐसे कब तक चलेगा मानव? घरगृहस्थी, बीवी के प्रति भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं?’’

‘‘क्या जिम्मेदारी नहीं निभा रहा हूं मैं?’’ थकामांदा मानव भी भन्ना जाता, ‘‘अब क्या नौकरी छोड़ दूं?’’

‘‘ऐसी भी क्या नौकरी हो गई… अभि को तुम से ठीक से मिले हुए भी कितने दिन हो जाते हैं… रात को जब तुम आते हो वह सो जाता है… सुबह वह स्कूल चला जाता है, तब तक तुम सो रहे होते हो… एक टूअर से आ कर तुम दूसरे पर चले जाते हो. यह कैसी जिंदगी बना दी है तुम ने हमारी?’’

‘‘मिताली प्राइवेट कंपनी में जौब कर चुकी हो तुम,’’ मानव किसी तरह स्वर संयत कर कहता, ‘‘प्राइवेट कंपनी की व्यस्तता को समझती हो, फिर भी नासमझों वाली बात करती हो… इतने बड़े पद पर ऐसे ही तो नहीं पहुंचा हूं… काम और मेहनत से ही पहुंचा हूं… ऐशोआराम के सारे साधन हैं तुम्हारे पास… ये सब मेरी मेहनत से ही आए न…’’

‘‘नहीं चाहिए हमें ऐसे ऐशोआराम के साधन जिन से जिंदगी इतनी नीरस हो गई. हमें तुम्हारी जरूरत है मानव, तुम्हारी,’’ मिताली का चिड़चिड़ा स्वर भर्रा जाता, ‘‘घर आ कर भी फोन कौल्स तुम्हारा पीछा नहीं छोड़तीं… फोन पर ही लगे रहते हो.’’

‘‘औफिस के काम के ही फोन आते हैं… अटैंड नहीं करूं क्या?’’ मानव का स्वर भी ऊंचा होने लगता.

‘‘कितने दिन हो जाते हैं हमें दोस्तों के घर गए हुए, दोस्तों को घर बुलाए हुए, कहीं बाहर गए… छुट्टी के दिन तुम थके हुए होते हो.’’

‘‘मैं तुम्हें मना करता हूं क्या? तुम अपना सामाजिक दायरा क्यों नहीं बढ़ातीं? व्यस्त रहोगी तो फालतू की बातों पर ध्यान नहीं जाएगा,’’ कह कर मानव पैर पटक कर सोने चला जाता और आंखों में आंसू भरे मिताली खड़ी रह जाती.

अब अकसर यही होने लगा. मानव ज्यादातर टूअर पर रहता या औफिस के काम में व्यस्त. जो थोड़ाबहुत वक्त मिलता वह दोनों के झगड़ों की भेंट चढ़ जाता. मानव टूअर पर रहता तो मिताली की अनुपस्थिति में परिस्थिति को नए नजरिए से सोचता. सोचता कि आखिर मिताली की शिकायत एकदम गलत भी तो नहीं है. अब वह कोशिश करेगा उसे और अभि को थोड़ा वक्त देने की. मानव की अनुपस्थिति में मिताली के सोचने का नजरिया भी बदल जाता कि आखिर मानव भी क्या करे. कंपनी के इतने बड़े पद पर है तो उस की जिम्मेदारियां भी बड़ी हैं. वह थक भी जाता है और वह उस की व्यस्तता समझने के बजाय उस से झगड़ा करने लगती है… जो थोड़ाबहुत वक्त उन्हें मिलता है उस का भी सदुपयोग नहीं कर पाते हैं.

मगर जब वे एकदूसरे के सामने होते तो ये विचार तिरोहित हो जाते. मानव की व्यस्तता ने पतिपत्नी के शारीरिक संबंधों को भी प्रभावित किया था. एक तो समय ही नहीं उस पर भी झगड़ा और नाराजगी. महीनों बीत जाते उन्हें संबंध बनाए हुए. दोनों मानसिक, शारीरिक स्तर पर अधूरापन महसूस कर रहे थे.

यह समस्या एकमात्र मानव और मिताली की ही नहीं थी. आज के समय में युवावर्ग इतना व्यस्त हो गया है कि अधिकतर की दिनचर्या कुछ ऐसी ही हो गई है. जहां दोनों नौकरी कर रहे हैं वहां तो घर जैसे रैन बसेरा हो गया है. एक तो नौकरी की व्यस्तता दूसरे महानगरों में घर से औफिस आनेजाने में काफी समय लग जाता है. एक छुट्टी का दिन थकान उतारने और दूसरे जरूरी कार्य करने में ही बीत जाता है.

युवावर्ग आज विवाह के नाम से ही घबरा रहा है. लड़का हो या लड़की विवाह की जिम्मेदारियां उठाना ही नहीं चाहते और विवाह कर लें तो बच्चे को जन्म देने से कतरा रहे हैं विशेषकर लड़कियां, क्योंकि विवाह और बच्चे के बाद सब से पहले उन्हीं की स्वतंत्रता और नौकरी दांव पर लगती है.

मानव और मिताली के झगड़े दिनोंदिन बढ़ते चले गए. धीरेधीरे झगड़ों की जगह शीतयुद्ध ने ले ली. दोनों के बीच बातचीत बंद या बहुत ही कम होने लगी. फिर एक दिन मिताली ने विस्फोट कर दिया यह कह कर कि उसे नौकरी मिल गई है और उस ने औफिस के पास ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया है. वह और अभि अब वहीं जा कर रहेंगे.

मानव हैरान रह गया. उस ने कहना चाहा कि अकेले वह नौकरी के साथ अभि को कैसे पालेगी और यदि नौकरी करनी ही है तो यहां रह कर भी कर सकती है. लेकिन उस का स्वाभिमान आड़े आ गया कि जब मिताली को उस की परवाह नहीं तो उसे क्यों हो. फिर मिताली ने उसी दिन नन्हे अभि के साथ घर छोड़ दिया. तब से अब तक 2 साल होने को आए हैं, 6 साल का अभि 8 साल का हो गया है. मानव की जिंदगी नौकरी के बाद इन 2 घरों की दूरी नापने में ही बीत रही थी.

तभी रैड लाइट पर मानव ने कार को ब्रैक लगाए तो उस की तंद्रा भंग हुई. कब तक चलेगा यह सब. वह पूरीपूरी कोशिश करता कि अभी का व्यक्तित्व उन के झगड़ों और मनमुटावों से प्रभावित न हो. उसे दोनों का प्यार मिले. लेकिन ऐसा हो ही नहीं पा रहा. नन्हे अभि का व्यक्तित्व 2 भागों में बंट गया था. बड़े होते अभि के व्यक्तित्व में अधूरेपन की छाप स्पष्ट दिखने लगी थी.

तभी सिगनल ग्रीन हो गया. मानव ने अपनी कार आगे बढ़ा दी. घर पहुंचा तो मन व्यथित था. अभि के अनगिनत सवालों के उस के पास जवाब नहीं थे. वह सोचने लगा कि इतने ही सवाल अभि मिताली से भी करता होगा, क्या उस के पास होते होंगे जवाब… आखिर कब तक चलेगा ऐसा?

दोनों के मातापिता ने पहलेपहल दोनों को समझाया, लेकिन दोनों ही झुकने को तैयार नहीं हुए. आखिर थकहार कर दोनों के मातापिता चुप हो गए. पर पिछले कुछ समय से मानव के मातापिता जो बातें दबेढके स्वर में कहते थे अब वे स्वर मुखर होने लगे थे कि ऐसा कब तक चलेगा मानव… साथ में नहीं रहना है तो तलाक ले लो और जिंदगी दोबारा शुरू करने के बारे में सोचो.

यह बात मानव के तनबदन में सिहरन पैदा कर देती कि क्या इतना सरल है एक अध्याय खत्म करना और दूसरे की शुरुआत करना… आखिर उस की जो व्यस्तता आज है वह तब भी रहेगी और फिर अभि? उस का क्या होगा? फिर वही प्रश्नचिह्न उस की आंखों के आगे आ जाता. आखिर क्या करे वह… बहुत चाहा उस ने कि जिस तरह मिताली खुद ही घर छोड़ कर गई है वैसे ही खुद लौट भी आए, लेकिन इस इंतजार को भी 2 साल बीत गए. खुद उस ने कभी बुलाने की कोशिश नहीं की. अब तो जैसे आदत सी पड़ गई है अकेले रहने की.

इधर अभि घर के अंदर दाखिल हुआ तो सीधे अपने कमरे में चला गया. उस का नन्हा सा दिल भी इंतजार करतेकरते थक गया था. कब मम्मीपापा एकसाथ रहेंगे. वह खिन्न सा अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गया. हर हफ्ते रविवार आता है. पापा आते हैं, उसे ले जाते हैं, घुमातेफिराते हैं, उस की पसंद की चीजें दिलाते हैं, उस की जरूरतें पूछते हैं और शाम को घर छोड़ देते हैं. मम्मी सोमवार से अपने औफिस चल देती हैं और वह अपने स्कूल. हफ्ता बीतता है. फिर रविवार आता है. वही एकरस सी दिनचर्या. कहीं मन नहीं लगता उस का. पापा के साथ रहता है तो मम्मी की याद आती है और मम्मी के साथ रहता है तो पापा की याद आती है. पता नहीं मम्मीपापा साथ क्यों नहीं रहते?

तभी मिताली अंदर आ गई. उसे ऐसे अनमना सा बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा? कैसा रहा तुम्हारा दिन आज?’’

अभि ने कोई जवाब नहीं दिया. वैसे ही चुपचाप बैठा रहा.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ वह उस के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली.

‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर अभि ने मिताली का हाथ हटा दिया.

‘‘तुम ऐसे चुपचाप क्यों बैठे हो? किसी ने कुछ कहा क्या तुम्हें?’’

‘‘नहीं,’’ वह तल्ख स्वर में बोला. फिर क्षण भर बाद उस की तरफ मुंह कर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मम्मी, यह बताओ कि हम पापा के पास जा कर कब रहेंगे? हम पापा के साथ क्यों नहीं रहते? मुझे अच्छा नहीं लगता पापा के बिना… चलिए न मम्मी हम वहीं चल कर रहेंगे.’’

‘‘बेकार की बात मत करो अभि,’’ मिताली का कोमल स्वर कठोर हो गया, ‘‘रात काफी हो गई है. खाना खाओ और सो जाओ. सुबह स्कूल के लिए उठना है.’’

‘‘नहीं, पहले आप मेरी बात का जवाब दो,’’ अभि जिद्द पर आ गया.

‘‘अभि कहा न कि बेकार की बातें मत करो. हम यहीं रहेंगे… खाना खाओ और सो जाओ,’’ कह कर मिताली हाथ छुड़ा कर किचन में चली गई.

अभि बैठा रह गया. ‘दोनों ही उसे जवाब देना नहीं चाहते. जब भी वह सवाल करता है दोनों ही टाल देते हैं या फिर डांट देते हैं. आखिर वह क्या करे,’ वह सोच रहा था.

काम खत्म कर के मिताली कमरे में आई तो अभि खाना खा कर सो चुका था. वह उस के मासूम चेहरे को निहारने लगी. कितनी समस्याओं से भरा था अभि के लिए उस का बचपन. वह उस के पास लेट कर उस का सिर सहलाने लगी. अभि के सवालों के जवाब नहीं हैं उस के पास. निरुद्देश्य सी जिंदगी बस बीती चली जा रही है. वह गंभीरता से बैठ कर कुछ सोचना नहीं चाहती. एक के बाद एक दिन बीता चला जा रहा है. कब तक यह सिलसिला यों ही चलता रहेगा. अभि बड़ा हो रहा है. उस के मासूम से सवाल कब जिद्द पर आ कर कल कठोर होने लगें क्या पता.

मानव के साथ भी जिंदगी बेरंग सी हो रही थी पर उस से अलग हो कर भी कौन से रंग भर गए उस की जिंदगी में. उस समय तो बस यही लगा कि मानव को सबक सिखाए ताकि वह उस की कमी महसूस करे. अपनी जिंदगी में वह पत्नी के महत्त्व को समझे. पर यह सब बेमानी ही साबित हुआ. शुरूशुरू में उस ने बहुत इंतजार किया मानव का कि एक न एक दिन मानव आएगा और उसे मना कर ले जाएगा. कुछ वादे करेगा उस से और वह भी सब कुछ भूल कर वापस चली जाएगी पर मानव के आने का इंतजार बस इंतजार ही रह गया. न मानव आया और न वह स्वयं ही वापस आ गई.

हर बार सोचती जब मानव को ही उस की परवाह नहीं, उसे उस की कमी नहीं खलती तो वही क्यों परवाह करे उस की. और दिन बीतते चले गए. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. उन दोनों के बीच की बर्फ की तह मोटी होतेहोते शिलाखंड बन गई. धीरेधीरे वह इसी जिंदगी की आदी हो गई. पर इस एकरस दिनचर्या में अभि के सवाल लहरें पैदा कर देते थे. वह समझ नहीं पाती आखिर यह सब कब तक चलेगा.

कल मां फोन पर कह रही थीं कि यदि उसे वापस नहीं जाना है तो अब अपने भविष्य के बारे में कोई निर्णय ले. कुछ आगे की सोचे. आगे का मतलब तलाक और दूसरी शादी. क्या सब इतना सरल है और अभि? उस का क्या होगा. वह भी शादी कर लेगी और मानव भी तो अभि दोनों की जिंदगी में अवांछित सा हो जाएगा.

यह सोच आते ही मिताली सिहर गई कि नहीं और फिर उस ने अभि को अपने से चिपका लिया. पहले ही कितनी उलझने हैं अभि की जिंदगी में. वह उस की जिंदगी और नहीं उलझा सकती. वह लाइट बंद कर सोने का प्रयास करने लगी. पता नहीं क्यों आज दिल के अंदर कुछ पिघला हुआ सा लगा. लगा जैसे दिल के अंदर जमी बर्फ की तह कुछ गीली हो रही है. कुछ विचार जो हमेशा नकारात्मक रहते थे आज सकारात्मक हो रहे थे. समस्या को परखने का नजरिया कुछ बदला हुआ सा लगा. वह खुद को ही समझने का प्रयास करने लगी. सोचतेसोचते न जाने कब नींद आ गई.

सुबह अभि उठा तो सामान्य था. वैसे भी कुछ बातों को वह अपनी नियति मान चुका था. वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा. अभि को स्कूल भेज कर वह भी अपने औफिस चली गई. सब कुछ वही था फिर भी दिल के अंदर क्या था जो उसे हलकी सी संतुष्टि दे रहा था… शायद कोई विचार या भाव… पूरा हफ्ता हमेशा की तरह व्यस्तता में बीत गया. फिर रविवार आ गया.

मानव जब बिल्डिंग के नीचे अभि को लेने पहुंचता तो अभि को फोन कर देता और अभि नीचे आ जाता. पर आज मिताली अभि के साथ नीचे आ गई. अभि के लिए यह आश्चर्य की बात थी.

अभि के साथ मिताली को देख कर मानव चौंक गया. आंखें चार हुईं. आज मिताली के चेहरे पर हमेशा की तरह कठोरता नहीं थी. बहुत समय बाद देख रहा था मिताली को… जिंदगी के संघर्ष ने उस के रूपलावण्य को कुछ धूमिल कर दिया था. किसी का प्यार, किसी की सुरक्षा जो नहीं थी उस की जिंदगी में… लेकिन उसे क्या… उस ने अपने विचारों को झटका दिया. तीनों चुपचाप खड़े थे. अभि बड़ी उम्मीद से दोनोें को देख रहा था कि दोनों कोई बात करेंगे. बहुत कुछ कहने को था दोनों के दिलों में पर शब्द साथ नहीं दे रहे थे.

‘‘चलें अभि,’’ आखिर उन के बीच पसरी चुप्पी को तोड़ते हुए मानव ने सिर्फ इतना ही कहा. फिर से मिताली से आंखें चार हुईं तो उसे लगा कि मिताली की आंखों में आज कुछ नमी है. मानव को भी अपने अंदर कुछ पिघलता हुआ सा लगा. बिना कुछ कहे वह मुड़ने को हुआ.

तभी मिताली बोल पड़ी, ‘‘मानव.’’

इतने समय बाद मिताली के मुंह से अपना नाम सुन कर मानव ठिठक गया.

‘‘कल अभि के स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है. क्या तुम थोड़ा समय निकाल कर आ सकते हो… अभि को अच्छा लगेगा.’’

मानव का दिल किया, हां बोले, पर प्रत्युत्तर में बोला, ‘‘मुझे टाइम नहीं है… कल टूअर पर निकलना है,’’ कह कर बिना उस की तरफ देखे ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और अभि के लिए दरवाजा खोल दिया. निराश सा अभि भी आ कर कार में बैठ गया.

मिताली अपनी जगह खड़ी रह गई. उस का दिल किया कि वह मानव को आवाज दे, कुछ बोले पर तब तक मानव कार स्टार्ट कर चुका था. मानव और अपने बीच जमी बर्फ को पिघलाने की मिताली की छोटी सी कोशिश बेकार सिद्ध हुई. वह ठगी सी खड़ी रह गई. मानव के इसी रुख के डर ने उसे हमेशा कोशिश करने से रोका. थके कदमों से वह घर की तरफ चल दी.

शाम को अभि घर आया तो मिताली ने हमेशा के विपरीत उस से कुछ नहीं पूछा. अभि भी गुमसुम था. आज उस का व मानव का अधिकांश समय अपनेआप में खोए हुए ही बीता था. अभि ने एक बार भी मानव से पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आने की जिद्द नहीं की.

अभि को छोड़ कर मानव जब घर पहुंचा तो मिताली व मिताली की बात दिलदिमाग में छाई थी और साथ ही अभि की बेरुखी भी चुभी हुई थी. अभि ने एक बार भी उसे आने के लिए नहीं कहा. शायद उसे उस से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी. सोचतेसोचते अनमना सा मानव कपड़े बदल कर बिना खाना खाए ही सो गया.

दूसरे दिन मिताली अभि के साथ स्कूल पहुंची. वे दोनों अभि की क्लास के बाहर पहुंचे तो सुखद आश्चर्य से भर गए. मानव खड़ा उन का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर अभि मारे खुशी के उछल पड़ा.

‘‘पापा,’’ कह कर वह दौड़ कर मानव से लिपट गया. उस की उस पल की खुशी देख कर दोनों की आंखें नम हो गईं. मिताली पास आ गई. उस के होंठों पर मुसकान खिली थी.

‘‘थैंक्स मानव… अभि को इतनी खुशी देने के लिए.’’

जवाब में मानव के चेहरे पर फीकी सी मुसकराहट आ गई.

पेरैंट्सटीचर मीटिंग निबटा कर दोनों बाहर आए तो उत्साहित सा अभि मानव से अपने दोस्तों को मिलाने लगा. उस की खुशी देख कर मानव को अपने निर्णय पर संतुष्टि हुई. उसे उस के दोस्तों के बीच छोड़ कर मानव उसे बाहर इंतजार करने की बात कह कर बाहर निकल आया. पीछेपीछे खिंची हुई सी मिताली भी आ गई.

दोनों कार के पास आ कर खड़े हो गए. दोनों ही कुछ बोलना चाह रहे थे पर बातचीत का सूत्र नहीं थाम पा रहे थे. इसलिए दोनों ही चुप थे.

‘‘अभि बहुत खुश है आज,’’ मिताली किसी तरह बातचीत का सूत्र थामते हुए बोली.

‘‘हां, बच्चा है… छोटीछोटी खुशियां हैं उस की,’’ और दोनों फिर चुप हो गए.

‘‘ठीक है… मैं चलता हूं. अभि से कह देना मुझे देर हो रही थी… रविवार को आऊंगा,’’ थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मानव बोला और फिर पलटने को हुआ.

‘‘मानव,’’ मिताली के ठंडे स्वर में पश्चात्ताप की झलक थी, ‘‘एक बात पूछूं?’’

मानव ठिठक कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘हां पूछो,’’ और फिर उस ने मिताली के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं, जहां कई भाव आ जा रहे थे.

मिताली चुपचाप थोड़ी देर खड़ी रही जैसे मन ही मन तोल रही हो कि कहे या न कहे.

‘‘पूछो, क्या पूछना चाहती हो.’’

मानव का अपेक्षाकृत कोमल स्वर सुन कर मिताली का दिल किया कि जिन आंसुओं को उस ने अभी तक पलकों की परिधि में बांध रखा है, उन्हें बह जाने दे. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘सच कहो, क्या कभी इन 2 सालों में मेरी कमी नहीं खली तुम्हें… क्या मेरे बिना जीवन से खुश हो?’’ मिताली का स्वर थका हुआ था. लग रहा था कि ये सब कहने के लिए उसे अपनेआप से काफी संघर्ष करना पड़ा होगा, लेकिन कह दिया तो लग रहा था कि कितना आसान था कहना. कह कर वह मानव के चेहरे पर नजर डाल कर उस के चेहरे पर आतेजाते भावों को पढ़ने का असफल प्रयास करने लगी.

‘‘क्या तुम्हें मेरी कमी खली? क्या तुम खुश हो मेरे बिना जिंदगी से?’’ पल भर की चुप्पी के बाद मानव बोला. मिताली को समझ नहीं आया कि तुरंत क्या जवाब दे मानव की बातों का, इसलिए चुप खड़ी रही.

‘‘छोड़ो मिताली,’’ उसे चुप देख कर मानव बोला, ‘‘अब इन बातों का क्या फायदा… इन बातों के लिए अब बहुत देर हो चुकी है.’’

‘‘जब देर नहीं हुई थी तब भी तो तुम ने एक बार भी नहीं बुलाया,’’ सप्रयास मिताली बोली. उस का स्वर भीगा था.

‘‘मैं ने बुलाया नहीं तो मैं ने घर छोड़ने के लिए भी नहीं कहा था. घर तुम ने छोड़ा. तुम्हें इसी में अपनी खुशी दिखी. जैसे अपनी मरजी से घर छोड़ा था वैसे ही अपनी मरजी से लौट भी सकती थीं,’’ मिताली के स्वर का भीगापन मानव के स्वर को भी भिगो गया था.

‘‘एक बार तो बुलाया होता मैं लौट आती,’’ मिताली का स्वर अभी भी नम था.

‘‘तुम तब नहीं लौटती मिताली. ऐसा ही होता तो तुम घर छोड़ती ही क्यों. घर छोड़ते समय एक बार भी अपने बारे में न सोच कर अभि के बारे में सोचा होता तो तुम्हारे कदम कभी न बढ़ पाते. तुम्हारी जिद्द या फिर मेरी जिद्द हम दोनों की जिद्द में मासूम अभि पिस रहा है. उस का बचपन छिन रहा है. उस का व्यक्तित्व खंडित हो रहा है. क्या दे रहे हैं हम उसे… न खुद खुश रह पाए न औलाद को खुशी दे पाए,’’ कह कर अपने नम हो आए स्वर को संयत कर मानव कार की तरफ मुड़ गया.

कार का दरवाजा खोलते हुए मानव ने पलट कर पल भर के लिए मिताली की तरफ देखा. क्या था उन निगाहों में कि मिताली का दिल किया कि सारा मानअभिमान भुला कर दौड़ कर जा कर मानव से लिपट जाए. इसी पल उस के साथ चली जाए.

एकाएक मानव वापस उस के करीब आया. लगा वह कुछ कहना चाहता है पर वह कह नहीं पा रहा है.

‘‘हां,’’ उस ने अधीरता से मानव की तरफ देखा.

‘‘नहीं कुछ नहीं,’’ कह कर मानव जिस तेजी से आया था उसी तेजी से वापस मुड़ कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. कार स्टार्ट की और चला गया. वह खोई हुई खड़ी रह गई कि काश मानव कह देता जो कहना चाहता था पर उस का आत्मसम्मान आड़े आ गया था शायद.

अभि के साथ घर पहुंची. अभि उस दिन बहुत खुश था. वह ढेर सारी बातें बता रहा था. खुशी उस के हर हावभाव, बातों व हरकतों से छलक रही थी. ‘कितना कुछ छीन रहे हैं हम अभि से,’ वह सोचने लगी.

कुछ पल ऐसे आ जाते हैं पतिपत्नी के जीवन में जो पिघल कर पाषाण की तरह कठोर हो कर जीवन की दिशा व दशा दोनों बदल देते हैं और कुछ ही पल ऐसे आते हैं जो मोम की तरह पिघल कर जीवन को अंधेरे से खींच कर मंजिल तक पहुंचा देते हैं. उस के और मानव के जीवन में भी वही पल दस्तक दे रहे थे और वह इन पलों को अब कठोर नहीं होने देगी.

दूसरे दिन मानव औफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था कि दरवाजे की घंटी बज उठी. ‘कौन हो सकता है इतनी सुबह’, सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला तो सामने मिताली और अभि को मुसकराते हुए पाया. वह हैरान सा उन्हें देखता रह गया.

‘‘तुम दोनों?’’ उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगे मानव?’’ मिताली संजीदगी से बोली.

‘‘तुम अपने घर आई हो मिताली… मैं भला रास्ता रोकने वाला कौन होता हूं,’’ कह मानव एक तरफ हट गया.

मिताली और अभि अंदर आ गए. मानव ने दरवाजा बंद कर दिया. उस ने खुद से मन ही मन कुछ वादे किए. अब वह अपनी खुशियों को इस दरवाजे से कभी बाहर नहीं जाने देगा.

सैल्फ क्लेम मिसोजनिस्ट एंड्रू टैट एंड इंडियन इन्फ्लुएंसर्स

सोशल मीडिया पर कई ऐसे इन्फ्लुएंसर्स उभर कर आएहैं जो रातोंरात मशहूर हो गए. इनमें से कुछ तो काम की बातेंबताते या दिखाते हैं लेकिन अधिकतरऐसेहैं जो हेट, मिसलीडिंग कंटेंट और टौक्सिक मर्दानगी को बढ़ावा देते हैं. एंड्रू टैट का नाम इसी सूची में सबसे ऊपर आता है. यह ब्रिटिश इन्फ्लुएंसर है. इंस्टाग्राम, टिकटौक व अन्य दूसरे प्लेटफौर्म पर उस के कंटेंट पर प्रतिबंध के बावजूद इस के फौलोवर्स अलगअलग नामों से उस के फेन पेज बना कर वीडियोज सोशल मीडिया पर सर्कुलेट करते हैं. हैरानी यह कि ट्विटर जैसे प्रोफैशनल प्लेटफौर्म पर एंड्रू टैट के 1 करोड़ से अधिक फौलोवर्स हैं.

टैट के लिए सोशल मीडिया ठीक वैसे ही साबित हो रहा है जैसे एवेंजर फिल्म के विलेन थेनोस के हाथ में 6 इनफिनिटी स्टोन्स थीं जिस से उस ने आधी आबादी को एक चुटकी में खत्म कर दिया था. हालांकि थेनोस के लिए जेंडर मायने नहीं रखता था लेकिनएंड्रू टैटको महिलाओं से सख्त नफरत है. वह अपने फौलोवर्स, जो सिर्फ मर्द हैं, काअपनेमहिलाविरोधीकंटेंट से रोज ब्रेनवाश करता है.

एंड्रू टैट खुद को एक “मिसोजिनिस्ट” क्लेम करता है जिस पर उसे कोई झिझक नहीं है. एंड्रू टैट पर रोमानिया में रेप, ह्यूमन ट्रैफिकिंग और ग्रुप क्राइम करने जैसे आरोप लगे हैं. उसे और उसके भाई ट्रिस्टन टैट को इस तरह के आरोपों में लिप्त पाए जाने के चलते दिसंबर 2022 में गिरफ्तार भीकिया गया था.उस पर आरोप हैं कि वह महिलाओं का यौन शोषण कर उन्हें प्रोस्टिट्यूशन में धकेलताथा.

सिर्फसैक्सुअल हैरासमेंट ही नहीं इनदोनों भाइयों पर कानूनी मामलों में भी कार्रवाईचल रही है, जिसमें औनलाइन व्यापारों से उत्पन्न इनकम पर टैक्स न चुकाने के आरोप शामिल हैं. लेकिन सब से बड़ी बात उन विचारों का है जिसे एंड्रू टैट ने सोशल मीडिया के जरिए यूथ तक पहुंचाया है. वह कई मौकों परकहता आया है कि महिलाओं के लिएस्वतंत्रताजैसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए. यह ठीक सभीधर्मोंकी किताबों में महिलाओं के लिए लिखी बातों की तरह है.

टैट का मानना है कि मर्दानगी का मतलब है शक्ति और अधिकार. टैट के अधिकतर रील्स इसी तरह के शेयर किए जाते हैं. उसे पोडकास्टमें बुलाया जाता है ताकि वह इसी तरह की बातें करे. टैट ने एक इंटरव्यू में कहा थाकि “रियलिस्ट होने के लिए सैक्सिस्टहोना जरूरी है”. उसका मानना है कि महिलाएं यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार खुद होती हैं.

टैट के मिसोजनिस्टविचार सोशल मीडिया के जरिएयुवाओं में फ़ैलरहे हैं. जुलाई 2024 में, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा पर रिपोर्ट के लौन्च करने के दौरान डिप्टी चीफ कांस्टेबल मेगीब्लीथ ने कहा कि एंड्रू टैट जैसे इंफ्लुएंसर्स का प्रभाव युवा लड़कों पर खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि पुलिस अब इस खतरे से निपटने के लिए काउंटर टेरिरिज्म टीमों के साथ मिलकर काम कर रही है.

टैट खुद को एक सेल्फ मेड मिलिनियर बताता है. उस का दावा है कि उसने “वेबकैम बिजनेस” से अपनी संपत्ति बनाई. वह बताया है कि”मेरा काम था लड़कियों को मिलना, उनसे डेटिंग करना, उन्हें प्यार में फंसाना और फिर उन्हें वेबकैम पर काम करने के लिए तैयार करना ताकि हम साथ में अमीर हो सकें.”

वह अपने फौलोवर्स को बताता है कि महिलाएंकमज़ोर कैरेक्टर वाली होती हैं जो सिर्फसैक्स केलिए अच्छी हैं, और जिन सेफिजिकली, सैक्सुअली औरइमोशनलीएब्यूजकिया जा सकता है. वहमानता है कि किसी मर्द के लिए ऐसा सोचना उसे पिक अप आर्टिस्ट या पीयूए ग्रुप का हिस्सा बनाता है.दरअसल पीयूए विदेशों में चल रहे मर्दवादी और स्त्रीविरोधी लोगों का औनलाइन ग्रुप है.

टेट पहली बार 2016 में यूके के रियलिटी शो “बिग ब्रदर” में एक कंट्रोवर्शियल कंटेस्टेंट के रूप में सामने आया था. बिग ब्रदर काइंडियन वर्जन ‘बिग बौस’ है. वही बिग बौस जहां इन दिनोंसोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भरे जा रहे हैं. हाल ही में एल्विश यादव और लव कटारिया जैसे मिसोजनिस्ट इन्फ्लुएंसर को यहां लाया गया औरउस से बड़ी हैरानी यह कि एल्विश यादव जैसा लफंगा इन्फ्लुएंसर इस शो से विनर बन कर निकलता है. और अब ख़बरों में इन्टरनेट के बदमाश रजत दलाल के आने की चर्चा है.

2022 में, आस्ट्रेलिया में डोमेस्टिक वायलेंस के रिसर्चरों ने एंड्रू टेट की यूथ में बढ़ती पहुंच के बारे में चेतावनी दी थी. इस चेतावनी में टेट को एक प्रीडेटर तक कहा गया जो युवाओं को कंजर्वेटिकऔर फंडामेंटालिस्ट बना रहा है.यहांतक कि ब्रिटेन में, स्कूल प्रशासकों ने स्टूडैंट्स के बीच टेट के प्रभाव की पहचान करने और उसका मुकाबला करने के लिए एक नया पाठ्यक्रम तकतैयार किया है.

ऐसा नहीं है कि टैट जैसे इन्फ्लुएंसर्स सिर्फ विदेशों में हैं. भारत में भी ऐसे कई इन्फ्लुएंसर्स हैं जो अपने कंटेंट में कुछ भी उलजलूल कहते रहते हैं खासकर महिलाओं के मामले में कहते समय वे जरा भी नहीं सोचते. ऐसा कहा जा सकता है कि बहुत मौकों पर वे जानबूझ कर कहते हैं.

उदाहरण के लिए एल्विशयादव को ‘रोस्ट’ की आड़ में महिलाओं के बारे में टिप्पणियां करना खासा पसंद है. एल्विश यादव ने अपने रोस्ट वीडियोज के ज़रिए प्रसिद्धि पाई लेकिनवह रोस्ट में लड़कियों के मेकअप, शरीर की बनावट, लड़कियों की पसंद न पसंद पर टिप्पणी करते दिखाई देता रहा है. यही नहीं गाड़ी चलाते हुए वह स्कूटी से जारही लड़कियों को खुलेआम छेड़ता दिखाई देता है और कमेंट पास करते दिखाई देता है.एल्विश यादव जहरीले सांपों की तस्करी का भी आरोपी है. ऐसे ही इन्फ्लुएंसर लक्ष्य चौधरी, दिग्विजय राठी, लव कटारिया, अनिरुद्धचार्या और देवकीनंदन महाराज हैं जिन की बातों और सोशल मीडिया में फैलाई जा रही रील्स में लड़कियां मूर्खों की तरह दिखती हैं. दिमाग से तेज लड़की को चालू दिखाया जाता है. कई इन्फ्लुएंसर अपनी रील्स में अपने दुखों, बरबादी और परेशानियों का कारण ही लड़कियों को दिखाते हैं.हर कोई खुद को फिल्म‘एनिमल’ केरणबीर कपूर (अल्फ़ा मेल) किरदार की तरह दिखाने की कोशिश करता है. इन तरह के इन्फ्लुएंसर्स की रील्स मेंसोफ्ट स्पोकनऔरलड़कियों से प्यार से बात करने वाले लड़कों को गेहोनेजैसा बताया जाता है.

इन जैसे इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव सिर्फ औनलाइन ही नहीं हो रहा है, बल्कि स्कूलों और कालेजों में भी देखा जा रहा है.लड़कों की भाषा में बदलाव आने लगा है. उनकी भाषा में इसी तरह के स्लैंग दिखाई देते हैं.इन इन्फ्लुएंसर्स का असरटीनएजर्स पर अधिक पड़ता है. इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स पैदा हो रहे हैं क्योंकि वह लड़कियों को ले कर एक तरह की धारणा बन लेते हैं. लड़कियां गाड़ियां नहीं चला सकतीं, घर तोड़ती हैं, ‘गोल्ड डिगर’ होती हैं, हमेशा धोखा देती हैं, वगेरहवगेरह का प्रचारप्रसार सोशल मीडिया के माध्यम ही हो रहा है, जिसे यही इन्फ्लुएंसर्स बढ़ावा देते हैं.

सही बौडी लैंग्वेज से बनाएं फ्रैंडली कनैक्शंस

कई दफा जो बात हम जुबान से नहीं कह पाते वह हमारी बौडी लैंग्वेज कह देती है. हमारी बौडी लैंग्वेज यानी हमारे हावभाव हमारे दिल और दिमाग से कनैक्टेड होते हैं. तभी तो जुबान की तरह ये हमें एक्सप्रेस करने में हेल्प करते हैं. अकसर हम जो बात करते हैं लोग उस का सिर्फ 50 प्रतिशत ही सुनते हैं. बाकी का काम बौडी लैंग्वेज करती है. यूसीएलए के प्रोफैसर एलबर्ट मेहराबियान के अनुसार किसी की बात को समझने में 55 प्रतिशत सहायता हमारी बौडी लैंग्वेज यानी शारीरिक प्रतिक्रयाएं करती हैं.

 

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शारीरिक भाषा में पहली एकेडमिक इन्वेस्टीगेशन किसी और ने नहीं बल्कि चार्ल्स डार्विन ने लिखी थी. उन की ‘द एक्सप्रेशन औफ द इमोशंस इन मैन एंड एनिमल्स’ किताब 1872 में प्रकाशित हुई थी. इस भाषा को समझना काफी दिलचस्प है. इस बौडी लैंग्वेज के जरिए हम किसी को दोस्त और किसी को दुश्मन बना सकते हैं. हम किसी के प्रति प्यार तो किसी के प्रति नफरत दर्शा सकते हैं. हम किसी को यह समझा सकते हैं कि उन में हमारी कोई रूचि नहीं तो किसी को यह अहसास भी दिला सकते हैं कि हमें उन की चाहत है और हम उन से दोस्ती करना चाहते हैं.

हमारी आंखों की मुसकान बताती है हमें कितना प्यार है

जब हम किसी को पसंद करते हैं तो हमारे दिल से निकली मुसकान हमारी आंखों से छलकती है. जब हम खुशी से मुसकरा रहे होते हैं तो हमारी आंखें भी हंसती हैं. किसी को करीब पा कर या उस से दिल की बातें कर हमें जो सुकून मिलता है और ह्रदय में जो तितलियां सी उड़ने लगती हैं उस का खुलासा हमारी मदमस्त मुसकान करती है. मगर जब हम दिल से नहीं हंसते और केवल हंसने का दिखावा करते हैं तो इस हंसी के पीछे की सचाई दूसरों को समझ आ जाती है.

यह तब होता है जब हम फेक स्माइल यानी झूठी हंसी ओढ़ते हैं. अगर कोई सिर्फ खुश दिखने की कोशिश कर रहा है लेकिन है नहीं तो उस की बौडी लैंग्वेज खासकर आंखों से इसे समझ पाना आसान होता है. इसलिए कहा जाता है कि अगर दिल के रिश्ते को पाना है तो हंसी भी रियल वाली होनी चाहिए.

चढ़ी या उठी हुई भौंहें रिश्तों में लाती हैं दूरी

जिस तरह ‘रियल मुसकराहट’ का पता हमारी आंखों में छिपा होता है ठीक उसी तरह हमारे मन की बेचैनी और अनिक्छा का पता चढ़ी हुई या तनी हुई भौंहे दे देती हैं. इसलिए अगर रिश्ते में प्यार और सकरात्मकता चाहिए तो ऐसी बौडी लैंग्वेज से तौबा कर लें.

बात करते समय आवाज के उतारचढ़ाव से व्यक्ति की रुचि का पता चलता है

हमारी आवाज का उतारचढ़ाव, बोलने का तरीका या बोलते समय बातों पर दिया जाने वाला जोर बातचीत में हमारी रुचि को प्रदर्शित करता है. किस की बात को हम रुचि ले कर सुन रहे हैं और किस की बात में हमारी रूचि नहीं या हम किस के जाने की राह देख रहे हैं यह सब हमारे बोलने के टोन या तरीके से पता चल जाता है. इसलिए आप जिस के करीब जाना चाहते हैं या जिस का साथ चाहते हैं उस से बातें करते समय अपने बोलने के टोन पर हमेशा ध्यान दें.

अगर वे आप की बौडी लैंग्वेज को मिरर कर रहे हैं तो समझ लीजिए बातचीत सही दिशा में है

दो लोगों में जब बातचीत हो रही होती है तो बातचीत के दौरान प्रयोग किए जाने वाले जेस्चर, तरीके, हाथों या मुंह के मूवमेंट हर चीज से आप को बातचीत का नेगेटिव या पौजिटिव पहलू सब समझ आएगा. कहने का अर्थ है कि जब दो लोग आपस में बात कर रहे होते हैं तो उन की मुद्राएं एकदूसरे का दर्पण होती हैं.

उदाहरण के लिए यदि हमारी सहेली पैर क्रौस कर के बैठती है तो हम भी वैसे ही बैठ जाते हैं. हमारी सहेली के चेहरे पर मुसकान आती है तो हम भी हंस पड़ते हैं. यानी हम अपनी सहेली से बहुत अच्छी तरह कनैक्ट कर पा रहे हैं. मनोवैज्ञानिक बारबरा फ्रेडरिकन कहती हैं कि जब दो लोग एकदूसरे से कनैक्शन फील करते हैं या उन में किसी भी तरह का सकारात्मक जुड़ाव होता है तब ऐसा होता है. यानी तब हम एकदूसरे को मिरर करते हैं.

आंखों में देख कर बात करना रुचि दर्शाता है

जब कोई व्यक्ति सीधे हमारी आंखों में देख कर बात करता है तो कुछ देर के लिए हम असहज महसूस करने लगते हैं. दरअसल जब हम किसी की आंखों में लगातार देखते हैं तो शरीर में एक उत्तेजनापूर्ण स्थिति पैदा होती है. इसी से हम असहजता महसूस करते हैं. क्लेयरमोंट मैककेना कालेज के मनोवैज्ञानिक रोनाल्ड ई रिगियो कहते हैं, ‘किसी अजनबी द्वारा घूरे जाने पर जहां ऐसा आई कौन्टैक्ट डर या भय का माहौल बनाता है और हमें सचेत होने के संकेत देता है. वहीं एक संभावित पार्टनर या प्रेमी को टकटकी लगा कर देखने से प्यार के अहसास पैदा होते हैं जो सकारात्मक रूप में महसूस किए जा सकते हैं. इस के विपरीत अगर हम बातें करते समय सामने वाले के बजाए इधरउधर देख रहे होते हैं तो इस का मतलब है हमें उस की बातों में इंटरेस्ट नहीं आ रहा या हम उस से कनैक्ट होना नहीं चाहते.

इसलिए ध्यान रखें कि बात करते समय आंख से आंख मिलाना संकेत देता है कि आप ध्यान दे रहे हैं. लेकिन बहुत ज्यादा आंख से आंख मिलाना लोगों को परेशान कर सकता है. एक अध्ययन के अनुसार 60-70% समय आंख से आंख मिलाना भावनात्मक संबंध स्थापित करने के लिए आदर्श है.

पैर क्रौस कर के बैठना यानी बातचीत में बुरा संकेत

अकसर हम ने देखा होगा बचपन में हमारे बड़े हमें पैर क्रौस कर के बैठने को मना करते थे. उस का कारण ही यही था कि इसे एक ‘निगेटिव साइन औफ बौडी लैंग्वेज’ माना जाता है. वैसे भी हमारे सामने जब कोई कुर्सी पर पीछे की ओर टेक ले कर पैरों को क्रौस करे आराम से बैठता है तो उसे देख कर ही समझ आ जाता है कि यहां बातचीत का आगे बढ़ पाना मुश्किल है.

मनोवैज्ञानिक रूप से भी क्रौस किए गए पैरों का संकेत एक व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से बंद होने से लगाया जाता है. जिस का अर्थ है- कि उन के साथ किसी तरह की बातचीत, सलाह या फीलिंग्स के आदानप्रदान होने की संभावना न के बराबर ही है. इस के विपरीत कोई आराम से करीब हो कर बैठता है तो उस के बैठने का अंदाज दोस्ती का इशारा कर देता है.

फीलिंग्स का असली कनैक्शन

कई दफा आप अपनी फीलिंग्स अपने हावभाव से दर्शा सकते हैं और इस के लिए कई सारी गतिविधियां शामिल करनी पड़ सकती हैं. खासकर अपने प्यार का अहसास अगर आप बिना बोले जाहिर करना चाहती हैं तो आप को बौडी लैंग्वेज की मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए न्यूरोसाइकोलौजिस्ट मार्शा ल्यूकस किसी फीमेल फिल्मी कैरेक्टर के एक उदाहरण से समझाती हैं, ‘उस ने आंखें मिलाई फिर वह नीचे देखने लगी. फिर उस ने हौले से नजरें उठा कर आंखों के कोने से फिर मुझे छेड़ा. फिर वह अपने बालों को छेड़ते हुए हौले से मुसकरा देती है.’ हुआ न यह एक पूरा संदेश यानी संकेतों का पूरा जखीरा.

यदि वे आप के साथ हंस रहे हैं

यदि कोई आप के मजाक या ह्यूमर पर हंसता है, आप के वन लाइनर्स उसे समझ में आते हैं, वह उन पर रिस्पोन्ड भी करता है तो हो सकता है वह आप में रुचि रखते हों. दरअसल हास्य किसी रिश्ते के बनने की इच्छा रखने को इंगित करता है. कहने का अर्थ है कि हमें किसी का साथ कितना पसंद है या नहीं इस का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि हमारा साथ और हमारी बातें वह कितना एन्जोय कर रहा है. जब आप उस के साथ होती हैं तो वह कितना खुश रहते हैं या उस के साथ आप कितना हंसती हैं या रिलैक्स फील करती हैं.

पैर हिलाना यानी मन का अस्थिर होना

मैसाचुसेटस के प्रोफैसर सुसान व्हिटबौर्न के अनुसार, ‘पैर हमारे शरीर का सब से बड़ा क्षेत्र होते हैं और जब वे मूव करते हैं या कहें हम उन्हें जल्दीजल्दी हिलाते हैं तो उन की अनदेखी करना नामुमकिन सा होता है. अस्थिर या हिलता हुआ पैर अशांत मन, चिंता, तनाव या जलन इन में से किसी भी बात का संकेत दे सकता है.’

पूरी तरह से उन की ओर मुड़ें

जब आप के शरीर का केवल एक हिस्सा जैसे कि आप का सिर, किसी दूसरे व्यक्ति की ओर मुड़ा होता है तो यह उन्हें बताता है कि आप बातचीत में शामिल नहीं हैं और शायद बातचीत से जल्दी बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. किसी को जीतने का एक सरल और शक्तिशाली तरीका है अपने पूरे शरीर को उन की ओर मोड़ना.

सिर हिलाएं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं

सिर हिलाना सामने वाले को बताता है कि आप उन की बात सुन रहे हैं और उन की बातों में दिलचस्पी रखते हैं. लेकिन आंख से आंख मिलाने की तरह जहां थोड़ाबहुत अच्छा होता है वहीं बहुत ज्यादा सिर हिलाना नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. बहुत ज्यादा सिर हिलाना अधीरता का संदेश देता है जैसे कि आप बातचीत को जल्दी खत्म करने की कोशिश कर रहे हों.

विनम्रता के साथ मिलना

जब भी आप किसी से मिलें तो अपने चेहरे पर एक विनम्र भाव अवश्य रखें. आप को सब से पहले मिलने वाले इंसान के साथ विनम्रता से हाथ मिलाना है और बड़ी शालीनता के साथ उन का कुशल मंगल पूछना है फिर आगे अपनी बात को बढ़ाना है. इस से आप अपनी बात को एक अच्छी शुरुआत दे सकते हैं और यह एक अच्छी बौडी लैंग्वेज को भी दर्शाता है.

स्माइली फेस

मुसकराता हुआ चेहरा किसे पसंद नहीं है. जब भी आप किसी से मिलने जाते हैं तो अपने चेहरे पर एक हल्की मुसकान रखें. किसी भी प्रकार का स्ट्रैस आप के चेहरे पर नजर नहीं आना चाहिए. जब भी कोई इंसान आप का मुसकराता हुआ चेहरा देखेगा तो वह आप से बातें करे बिना रह नहीं सकता और बिना किसी हिचक और परेशानी के सहजता के साथ आप से बातें करेगा.

सकारात्मक रहें

जब भी आप किसी से रिश्ता आगे बढ़ाना चाहते हैं तो अपने व्यवहार को सकारात्मक रखें. अगर आप अपने साथ नकारात्मकता को ले कर जाएंगे तो कोई इंसान आप से प्रभावित नहीं हो सकता. अतः आप को प्रयास करना चाहिए जब भी आप किसी से मिले तो एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ मिलें ताकि सामने वाला आप के सकारात्मक विचारों से प्रभावित हुए बिना न रह सके.

शारीरिक भाषा समझने के लाभ

जाहिर है बौडी लैंग्वेज को समझने और उस का इस्तेमाल करने के तरीके में सुधार कर के आप दूसरों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ सकते हैं. इस से आप को यह देखने में मदद मिलेगी कि कोई आप से कितना जुड़ा हुआ है, क्या वह आप का साथ एन्जोय कर रहा है? आप इस के जरिए ज्यादा दोस्त बना सकते हैं या अपने प्यार को भी पा सकते हैं.

वैसे बौडी लैंग्वेज के बारे में एकदम से किसी नतीजे तक नहीं पहुंचना चाहिए. इसे महज एक संकेत के रूप में देखने का प्रयास करें. बौडी लैंग्वेज के विभिन्न संस्कृतियों या परिस्थितियों में कई अर्थ हो सकते हैं. उदाहरण के लिए जम्हाई लेना यह संकेत देता है कि सामने वाला ऊब चुका है और उसे बातचीत करने में मजा नहीं आ रहा. लेकिन कई बार अगर कोई सच में थका हुआ है या नींद पूरी न हुई हो तो उसे बातचीत करते हुए बार बार उबासी आ सकती है. यानी किसी दिए गए व्यवहार का हमेशा एक ही मतलब नहीं होता. बौडी लैंग्वेज जटिल होती है और संदर्भ पर भी निर्भर कर सकती है. बौडी लैंग्वेज को लोगों की बातों के साथ जोड़ कर देखना चाहिए.

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