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मेरे औफिस का कलीग मेरे साथ सैक्स करने की जिद कर रहा है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं दिल्ली के द्वार्का इलाके की रहने वाली हूं और मेरी उम्र 30 साल है. करीब 2 साल पहले ही मेरी शादी हुई है. मेरे पति का खुद का बिजनेस है और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती हूं. मेरे पति काम की वजह से अक्सर रात को देरी से घर आते हैं और औफिस जाने के कारण मैं भी थक कर जल्दी सो जाती हूं तो ऐसे में मेरे पति और मेरे बीच काफी कम ही बातचीत हो पाती है. हाल ही में मेरे औफिस में एक लड़के ने ज्वाइन किया है जो दिखने में बहुत हैंडसम और फिट है. वे मुझसे उम्र में 3 साल छोटा है लेकिन उसकी फिजीक कमाल की है. मैं उसे मन ही मन पसंद करने लगी थी और शायद वो भी मुझसे कुछ चाह रहा था. देखते ही देखते हम दोनों ने एक दूसरे को अपना नंबर दिया और मैसेज पर रोजाना बात होने लगी. कुछ दिनों से वे लड़का मेरे साथ सैक्स करने की जिद कर रहा है और मुझे अपने साथ होटल चलने को कह रहा है. सच कहूं तो उसके साथ सैक्स करने का मेरा भी बहुत मन है लेकिन मुझे डर है कि अगर मेरे पति को इस बारे में पता चल गया तो वे कहीं मुझसे तलाक ना ले लें. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

पति-पत्नी के रिश्ते की डोर बहुत नाजुक होती है और यह डोर सिर्फ विश्वास पर टिकी होती है. जब रिश्ते में विश्वास खत्म हो जाता है तो फिर उस रिश्ते के कोई मायने नहीं रहते. आप जो कर रही हैं या जो सोच रही हैं वे बिल्कुल गलत है. आपके पति काम में बिजी रहते हैं क्यूंकि उनके ऊपर घर चलाने की जिम्मेदारी है और ऐसे में अगर आप किसी दूसरे लड़के के साथ संबंध बना लेंगी तो सोचिए उनके दिल पर क्या बीतेगी ?

अगर आपको अपने पति से कोई शिकायत है तो आप उनके साथ शेयर करें और उन्हें बताएं कि आप उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहती हैं तो उनको अपने काम का साथ साथ आपको भी समय देना चाहिए. आप अपने पति से कहिए कि वे अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी ले लें और आप दोनों एक साथ किसी ट्रिप पर चले जाइए जिससे कि आप दोनों एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिता पाएं जो आपने काफी समय से नहीं बिताया है.

आपको अपने औफिस वाले लड़के के साथ सारे संबंधों को खत्म कर देना चाहिए क्यूंकि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आपका बसा बसाया घर सिर्फ एक गलती की वजह से तहस नहस हो सकता है. एक बार जो घर उजड़ जाते हैं उन्हें बसाने में लोगों की जिंदगी बीत जाती है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

कहीं दोस्त ही बन न जाए जान का दुश्मन

वैसे तो आपने दोस्ती पर बहुत से गाने सुने होंगे लेकिन हमारे इस लेख के लिए यह गाना बिल्कुल सटीक है “दोस्त दोस्त न रहा”. जी हां जिस दोस्ती की लोग आपस में कसमे खाते हैं जो खून का रिश्ता नहीं भी हो कर गहरा हो जाता है उसी रिश्ते को कुछ लोग दागदाग कर देते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि किस पर विश्वास करें. जो हमारी दोस्ती के लायक हो.

हाल ही में एक प्रौपर्टी डीलर का कत्ल उसी के अपने दो दोस्तों ने कर दिया. महज सोने की चेन, ब्रेसलेट और 6,400 रुपए के लिए.

प्रौपर्टी डीलर संजय यादव गाज़ियाबाद का रहने वाला था. जिस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. साजिश के तहत दोस्त ने संजय को थाना मधुबन बापूधाम के अक्षय एंक्लेव की जैन बिल्डिंग स्थित घर बुलाया. वहां साथ तीनों ने बियर पी. नशे में धुत होने के बाद संजय के गले में में कुत्ते के पट्टा दबा कर मार डाला गया और शव को संजय की फार्च्यूनर कार में रख कर जला दिया.

पुलिस ने बताया कि शव की पहचान होने के बाद संजय यादव के भाई ने विशाल और जीत पर हत्या करने का शक जताया. दोनों आरोपियों ने कबूला कि पैसे और गहने हड़पने के लिए वारदात को अंजाम दिया था.

तो आज का समय सतर्क होने का है. दोस्ती करने से पहले जरूरी है कि आप को व्यक्ति की पहचान करनी आती हो.

ऐसे करें सच्चे दोस्त की पहचान

* कभी भी ऐसे व्यक्ति को अपना मित्र ना बनाएं जो पीठ पीछे आप की बुराई करता हो और सामने आप की तारीफ. ऐसे में इन लोगों से दूर रहना ही भला है.

*भरोसा करो लेकिन आंख मुंद कर नहीं क्योंकि कई बार वहीं भरोसा तोड़ते हैं जिन पर हम अत्यधिक विश्वास करते हैं. कभी रिश्तों में अनबन हो जाए तो वही मित्र उन सभी राज को खोल सकता है जो आपने उस पर भरोसा कर के उसे बताए हैं.

*दोस्ती हमेशा हम उम्र के लोगों से करनी चाहिए. क्योंकि कई बार उम्र का फर्क होने के कारण रिश्तों में दरार आने की संभावना ज्यादा रहती है. और आजकल दोस्ती सामने वाले का पैसा व रुतबा देख कर करने का चलन है. ऐसे में किसी से भी दोस्ती करते समय इन बातों का खास ख्याल रखें.

*आप से विपतीत सोच रखने वालों से दोस्ती कतई न करें. क्योंकि आप के विचारों में मतभेद ही दोस्ती में खटास डाल सकते हैं.

*दोस्त का चयन करते समय खूब सोचविचार कर व सामने वाले की नियत जानने की कोशिश करें.

आरएसएस से मुकाबला, कांग्रेस दिखाए बड़ा दिल

देश की राजनीति में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जरूरत इस लिए नहीं है कि वह बड़े राजनीतिक घराने से आते हैं. कांग्रेस इसलिए जरूरी है क्योंकि आरएसएस के मुकाबले वह ही सब से बड़ा संगठन है. आरएसएस समाज के लोगों से नहीं मंदिरों के जरिए चलती है. कांग्रेस कभी भी लोगों के निजी जीवन में दखल नहीं देती है. आरएसएस का दखल मंदिरों के जरिए लोगों के निजी जीवन तक होता है. मंदिर में बैठा पुजारी तय करने लगा है कि लोग किस दिन कौन सा त्यौहार मनाएं. किस तरह का खाना किस दिन खाएं और कौन सा कपड़ा कब पहने? आरएसएस की सोच का मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है इसलिए कांग्रेस जरूरी है.

कांग्रेस के लिए जरूरी यह है कि वह अपने सहयोगी दलों का साथ दे. समाजवादी पार्टी, नैशनल कांफ्रेंस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी और दूसरे सहयोगी दल तब इंडिया गठबंधन में अपने लिए अलग राज्यों में सीटें मांगते हैं तो उन का उद्देश्य यह होता है कि वह खुद को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल कर सके. दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने गुजरात के विधानसभा चुनाव में लड़ने से आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है. शरद पवार की नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कम्युनिस्ट पार्टी औफ इंडिया (सीपीआई) का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया.

कैसे मिलता है राष्ट्रीय दल का दर्जा

केंद्रीय चुनाव आयोग का नियम 1968 कहता है कि किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने के लिए चार या उस से ज्यादा राज्यों में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है. इस के साथ ही इन चुनावों में उस पार्टी को कम से कम 6 प्रतिशत वोट हासिल करने होते हैं. इस के अलावा उस पार्टी के कम से कम 4 उम्मीदवार किसी राज्य या राज्यों से सांसद चुने जाएं. वह पार्टी कम से कम 4 राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा हासिल कर ले. इस के साथ ही साथ वह पार्टी लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम दो प्रतिशत सीटें जीत जाए. वह जीते हुए उम्मीदवार 3 राज्यों से होने चाहिए. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद राजनीतिक दलों को कई लाभ और अधिकार मिल जाते हैं.

राष्ट्रीय पार्टी को पूरे देश में एक चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने का मौका मिलता है. वह चुनाव चिन्ह किसी भी दूसरे दल को नहीं दिया जाता. अगर किसी राज्य में राष्ट्रीय पार्टी चुनाव लड़ रही है और वहां कोई क्षेत्रीय दल उसी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय पार्टी को वरीयता दी जाती है. उदाहरण के लिए समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है. वहीं आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी का चुनाव चिन्ह भी साइकिल है. ऐसे में अगर दोनों दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है, तो उस पार्टी को वरीयता मिलेगी जिसे पहले राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला हो.

चुनाव के वक्त राष्ट्रीय पार्टियों को दूरदर्शन के टीवी चैनल पर मुफ्त में चुनाव प्रचार करने का समय दिया जाता है. अलगअलग पार्टियों को अलगअलग समय दिया जाता है. स्टेट पार्टियों को भी चुनाव प्रचार का समय दिया जाता है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टियों को इस में वरीयता मिलती है. चुनाव आयोग की तरफ से चुनाव में खर्च की एक सीमा तय की जाती है. सभी उम्मीदवारों को अपने खर्चो की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. सभी पार्टियों में चुनाव प्रचार के लिए कुछ स्टार प्रचारक भी होते हैं. जब वो किसी क्षेत्र में प्रचार के लिए जाते हैं तो वहां का चुनावी खर्च निश्चितरूप से बढ़ जाता है. ऐसे में इस बढ़े हुए खर्च को राष्ट्रीय पार्टी चुनावी खर्च से अलग कर सकती है.

हर राष्ट्रीय पार्टी 40 स्टार प्रचारक तय कर सकती है. इस के साथ ही राष्ट्रीय पार्टियों को सरकार की तरफ से दफ्तर बनाने के लिए जमीन मुहैया करवाई जाती है. देश की राष्ट्रीय पार्टियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया सीपीएम, नैशनल पीपल्स पार्टी एनपीपी और आम आदमी पार्टी प्रमुख हैं. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. देश में 6 राष्ट्रीय पार्टियां और 56 स्टेट पार्टियां हैं.

सपा कांग्रेस के बीच षह मात का खेल

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी कापी प्रयासरत है. 2023 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय वह कांग्रेस के साथ समझौता कर के चुनाव लड़ना चाहती थी. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी समाजवादी पार्टी को अपने गठबंधन में नहीं जोड़ा. कांग्रेस का मानना था कि इंडिया ब्लौक लोकसभा चुनाव के लिए है विधानसभा चुनाव के लिए नहीं. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी ने अपनी हिस्सेदारी मांगी. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को कोई टिकट नहीं दिया.

हरियाणा में सामजवादी पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा. जम्मू कश्मीर में समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ी. हरियाणा में जब कांग्रेस हारी तो समाजवादी पार्टी ने तंज कसा कि यह हार कांग्रेस के अति आत्मविश्वास की हार है. हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश में उपचुनाव हैं. उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा के उपचुनाव है. इन में कांग्रेस 4 से 5 सीट चाहती थी. समाजवादी पार्टी ने 2 सीटें दी, जबकि महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी 8 से 10 सीटें कांग्रेस से मांग रही थी.

कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी पर दबाव डालने के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने से मना कर दिया. जिस से उसे महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी को सीटें न देनी पड़े. समाजवादी पार्टी को अपने संगठन और विस्तार के बारे में पता है. उत्तर प्रदेश के बाहर उसका वजूद नहीं है. ऐसे में वह चाहती है कि कांग्रेस उसे उत्तर प्रदेश के बाहर संगठन को मजबूत कराने के लिए मौका दे. बदले में सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जगह देगी. कांग्रेस का प्रयास रहता है कि वह सहयोगी दलों को ज्यादा पांव पसारने का दर्जा न दे.

कांग्रेस को अगर लंबी लड़ाई लड़नी है तो उसे सहयोगी दलों की जरूरत है. ऐसे में उसे छोटे दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद करनी चाहिए. क्योंकि आरएसएस से लड़ने लायक ताकत कांग्रेस के पास नहीं है. आरएसएस और कांग्रेस के बीच मंदिर और समाज का फासला है. आरएसएस की ताकत समाज नहीं मंदिर है. कांग्रेस के पास मंदिर की ताकत नहीं है. मंदिरों के बहाने आरएसएस घरघर तक के फैसलों को प्रभावित करने का काम करती है. वैसे तो आरएसएस लोगों के निजी जीवन को प्रभावित करने का काम देश की आजादी के पहले से कर रही है. जब वह सत्ता में होती है तो उस की ताकत कई गुना बढ़ जाती है.

सत्ता में आने के बाद आरएसएस यह तय करने का काम करती है कि कौन किस दिन क्या खाएगा ? किस दिन मांसाहार नहीं होगा? किस रंग के कपड़े पहने जाएंगे? मंदिरों का काम बढ़ जाता है. तमाम तरह के धार्मिक आयोजन होने लगते हैं. सरकार इन में हिस्सा लेने के लिए छुट्टी कर देती है. दुर्गापूजा मूलरूप से पष्चिम बंगाल का त्यौहार है. उस के उपलक्ष्य में स्कूल और सरकारी विभागों को उत्तर प्रदेश में एक दिन का सावर्जनिक अवकाश दे दिया गया.

आरएसएस, मंदिर और धर्म के गठजोड़ वाली उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोजर धर्म विशेष पर खासतौर पर चलता है. दुकानों पर नाम लिखे जाने का मुद्दा भी इसी उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू किया. इस की सब से बड़ी वजह आरएसएस है. अब सत्ता में भाजपा भले ही आए उस का रिमोट आरएसएस के हाथ होता है. आरएसएस को सत्ता में आने से कांग्रेस ही रोक सकती है. उस के लिए कांग्रेस को पूरे विपक्ष का साथ चहिए. कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने सहयोगी दलों को साथ दें. उन को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद करें.

प्रशासन तो कोई भी दल चला सकता है. भाजपा के सत्ता में आने के बाद आरएसएस लोगों के निजी जीवन को संभालने का जिम्मा उठा लेती है. यह लोगों को समझ नहीं आता. यह देश की जनता के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस के मुकाबले के लिए कांग्रेस को सहयोगी दलों को स्थान देना पड़ेगा क्योंकि यह राजनीतिक दल अपनेअपने राज्यों में ताकतवर है और आरएसएस का मुकबला कर रहे हैं. जबकि जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा मुकाबले में हैं वहां कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल नहीं होती है.

कांग्रेस का महत्व इसलिए है क्योंकि वह आरएसएस से लड़ने की क्षमता है. राहुल गांधी भले ही चुनाव न जीत पाएं लेकिन उन की बात का महत्व देश और देश के बाहर भी होता है. यही वजह है कि राहुल गांधी जब भी देश के बाहर बोलते हैं मिर्ची आरएसएस को लगती है. आरएसएस कांग्रेस और राहुल गांधी से डरती है. इस डर को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस विपक्ष का एक गठबंधन ले कर चलने लायक माहौल और प्रबंध कर लें. इस में उसे अपना सब से पुरानी और ताकतवर पार्टी होने का ईगो दरकिनार रख कर चलना होगा.

सिंघम अगेन : धर्म को बेचना भी फिल्म को न बचा सका

एक स्टार

कटु सत्य यही है कि बौलीवुड का फिल्मकार अजेंडे वाला सिनेमा नहीं बना सकता. हिंदी सिनेमा के फिल्मकार जब अजेंडे वाला सिनेमा बनाते हैं, तो वह खुद के साथ ही दूसरों को भी डुबाने का प्रण ले लेते हैं. यही बात ‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की असफलता का दंश झेल रहे फिल्मकार रोहित शेट्टी पर भी लागू होती है. अपने निर्देशन कैरियर को बुरी तरह डूबते देख रोहित शेट्टी ने सोचा कि क्यों न राष्ट्रवादियों व अंध भक्तों को खुश करने वाली फिल्म बनाई जाए लेकिन रोहित शेट्टी ने दर्शकों को मनोरंजन परोसने के साथ एक अच्छी कहानी सुनाने की दिशा में काम करने की बनिस्बत ‘सिंघम अगेन’ के नाम पर सीधे ऐसा अजेंडे वाला सिनेमा ले कर आ गए, जिसे देख दर्शक अपना माथा पीट रहा है और कसमें खा रहा है कि वह दूसरों को उन का सिरदर्द करवाने से बचाएगा.

एक नवंबर को दिवाली के अवसर पर सिनेमाघरों में प्रदर्शित बड़े बजट की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ पूरी तरह से सरकार परस्त सिनेमा है. जिस में कहानी तो है ही नहीं. कुछ लोग इसे डाक्यूमेंट्री की भी संज्ञा दे सकते हैं. गुटके का विज्ञापन करने वाले दो स्टार कलाकार इस में ‘ड्रग्स’ बेचने वाले रैकेट को पकड़़ने की बात करते हैं. है न हास्यास्पद बात.

रोहित शेट्टी ने अपनी इस फिल्म में देशभक्ति, ‘नए भारत का नया कश्मीर’, निजी बदले के लिए किसी भी हद तक गुजर जाने के साथ ही देश की संस्कृति के नाम पर धर्म, रामायण, श्रीराम व राष्ट्रवाद को बेचते हुए बारबार ‘श्री राम’ के नारे लगवाने से भी बाज नहीं आए. ‘राम’, ‘रामायण’, ‘हनुमान’ आदि को ले कर फिल्म की शुरूआत में ही ‘अस्वीकरण’ किया गया है कि इस के पात्रों को पूजनीय रूप में न देखा जाए.

आश्चर्य की बात यह है कि देश में राम मंदिर बनवाने से ले कर सनातन धर्म की रक्षा व हिंदुत्व की बात करने वाली सरकार की मौजूदगी में ‘रामायण’ पर ‘आदिपुरूष’ जैसी फिल्म बन जाती है और अब रोहित शेट्टी ने ‘रामायण’ पर ही ‘सिंघम अगेन’ जैसी फिल्म ले कर आए हैं, जिस में अजय देवगन व अक्षय कुमार भी हैं. हनुमान चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र, एक श्लोकी रामायण का ‘सिंघम अगेन’ में जिस तरह से खंडखंड उपयोग किया गया है, उस से 9 सदस्यीय लेखक दल व निर्देशक के दिमागी दिवालिएपन का अहसास हो जाता है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है कश्मीर से, जहां एक टीवी चैनल की रिपोर्टर एनएसजी कमांडो के एसएसपी बन कर कश्मीर पहुंचे बाजीराव सिंघम (अजय देवगन ) से उन के जांबाज कारनामों को ले कर इंटरव्यू कर रही है. तो दूसरी तरफ भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय में सेवा रत सिंघम की पत्नी अवनी ( करीना कपूर खान ) ‘रामायण’ से नई पीढ़ी को परिचित कराने के लिए बड़े स्तर पर ‘रामलीला’ का कार्यक्रम करवा रही है. अवनी का मानना है कि आज की पीढ़ी तो ‘रामायण’ को आउट डेटेड मानती है. कश्मीर में ही अचानक एक दिन आतंकवादी मुठभेड़ में सकुशल बचने के बाद बाजीराव सिंघम, कुख्यात आतंकवादी उमर हाफिज ( जैकी श्राफ) को पकड़ने में कामयाब हो जाते हैं.

उमर हाफिज जो अपने बेटों, रियाज और रजा की योजनाओं को विफल करने के बाद पाकिस्तान से श्रीलंका भाग गया और ड्रग्स बेचना शुरू कर दिया था. अब श्रीलंका में उन का पेाता जुबेर हाफिज कुख्यात सरगनाप बन चुका है. उमर हाफिज अपने पोते जुबेर के माध्यम से अपने बेटों की हत्या के लिए संग्राम उर्फ सिम्बा भालेराव और वीर सूर्यवंशी से बदला लेना चाहता है. मंत्री (रवि किशन) खुश हैं कि आखिर सिंघम ने उमर हाफिज को गिरफतार कर लिया. फिर सिंघम मंत्री से मिल कर उन्हें भारत में हो रहे ड्रग के अवैध कारोबार के बारे में बताता है. गृह मंत्री एक नया दस्ता गठित करते हैं, शिवा दस्ता जिस में सिंघम प्रमुख होता है और उस के सहयोगी दया (दयानंद शेट्टी) और देविका (स्वेता तिवारी) उस के साथ शामिल होते हैं. तभी उमर हाफिज जेल के अंदर सिंघम को चेतावनी देता है कि जल्द ही उन की नींव हिलाने के लिए उन्होंने एक तूफान को तैयार कर दिया है.

सिंघम की टीम श्रीलंका से तमिलनाडु की ओर जाने वाले एक जहाज को पकड़ती है और कंटेनरों में ड्रग्स पाता है और 4 लोगों को गिरफ्तार करता है, जिन्हें डेंजर लंका ने भेजा था और उस के 3 मुख्य गुर्गे मदुरै में रह रहे थे. सिंघम मदुरै से डीसीपी शक्ति शेट्टी (दीपिका पादुकोण) से कहता है कि इन्हें गिरफ्तार कर मुंबई ले कर आओ. उसी रात, डेंजर लंका (अर्जुन कपूर) पुलिस स्टेशन के सभी अधिकारियों जिंदा जला अपने लोगों को साथ ले जाता है.

इस के बाद कहानी ‘रामायण’ की तर्ज पर चलने लगती है. अवनी की रामायण’ पर आधारित रामलीला में जो दृष्य आते हैं, उसी के अनुरूप सिंघम के साथ घटनाएं घटित होती है.

एक दिन सिंघम की पत्नी अवनी बताती हैं कि ‘कल हमारी रामलीला में राम 14 साल के लिए वनवास जाएंगे.’ इस पर उन का बेटा शौर्य सवाल करता है ‘क्या आप को सीरियसली लगता है कि भगवान राम सीता मां को लेने 3 हजार किलोमीटर दूर श्रीलंका गए थे. अवनी इसे सच बताती है, तब शौर्य अपने पिता सिंघम से सवाल करता है कि यदि मां को कोई वहां किसी ले जाए तो क्या आप मां को वहां से लाने जाएंगे?

इस पर अजय देवगन कहते हैं, ‘‘गूगल कर ले बाजीराव सिंघम को ले कर…’उधर सिंघम का बेटा शौर्य लंदन जाने की तैयारी कर रहा है, उस की एक गर्ल फ्रैंड भी है, जिसे शौर्य ‘गर्लफ्रैंड’ की बजाय सिचुएशन’ की संज्ञा देता है.

अवनि अपनी सहकर्मी मृग्या के साथ ‘रामलीला’ के शो लिए कुछ फुटेज शूट करने के लिए रामेश्वरम जाती है, उन के साथ जटायू रूपी दया भी है. जिस दिन ‘रामलीला’ में रावण, सीता का अपहरण करता है, उसी दिन जिस तरह रामायण में रावण ने जटायू की हत्या की थी. उसी तरह डेंजर लंका उर्फ रावण, दया की हत्या कर अवनी का अपहरण कर लेता है. तब पता चलता है कि मृगया तो वास्तव में उमर हाफिज के मृत भतीजे की पत्नी है.

‘रामायण’ में राम ने हनुमान को सीता का पता लगाने भेजा था, यहां हनुमान यानी कि सिंबा यानी कि रणवीर सिंह जाते हैं. अवनि और जुबैर से मिलते हैं इसी बीच, सिंघम गुप्त रूप से श्रीलंका पहुंचता है. साथ में जुबेर के कहने पर सिंघम, सिंबा( रणवीर सिंह ), सूर्यवंशी (अक्षय कुमार), सत्या (टाइगर श्राफ), शक्ति शेट्टी (दीपिका पादुकोण) के साथ श्रीलंका पहुंचते हैं. फिर राम की ही तरह सिंघम भी अवनी को ले कर भारत लौटते हैं.

‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ में बुरी तरह से मात खा चुके रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ की कहानी व पटकथा का लेखन अन्य 8 लेखकों के साथ मिल कर किया है. फिल्म की कहानी व पटकथा में कोई दम नहीं है. इंटरवल से पहले फिल्म बहुत ही ज्यादा यातना वाली है. इंटरवल के रणवीर सिंह कुछ हास्य के क्षण पैदा करने का असफल प्रयास करते हैं. राम के 14 साल के वनवास व पंचवटी से ले कर श्रीलंका में सीता मंदिर तक की कहानियां ‘सिंघम अगेन’ की कलयुगी ‘रामलीला’ का हिस्सा हैं, जो कि जबरन रची होने का अहसास कराती है. यह फिल्म की कहानी में अवरोध ही पैदा करती हैं.

धर्म व ‘रामायण’ को बेचने के चक्कर में रोहित शेट्टी और उन की लेखकीय टीम फिल्म के किसी भी किरदार का सही चरित्र विकास नहीं कर पाए. एक तरफ ‘सिंघम अगेन’ भारतीय संस्कृति व संस्कारों की बात करती है, तो वहीं दूसरी तरफ ‘सिचुएशन रिलेशन ’की बात करती है, जिस रिश्ते में लड़की या लड़के किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती. अब यह लेखकों व निर्देशकों की दुविधा है या दीमागी दिवालियापन.

फिल्म के संवाद स्तरहीन व चोरी के हैं. एक दृश्य में करीना कपूर खान, दया शेट्टी से कहती हैं, ‘‘दया दरवाजा तोड़’’. यह संवाद सीरियल ‘सीआईडी’ में कई साल तक लगभग हर एपीसोड में सुनाई देता रहा है. एक दृश्य में अर्जुन कपूर से अजय देवगन कहते हैं, ‘‘तेरे सामने जो खड़ा है वह महात्मा गांधी का आदर करता है, मगर पूजा छत्रपति शिवाजी महाराज की करता है.’’

वाह क्या कहने. इस तरह के संवाद विवादों को जन्म देते हैं. मगर सेंसर बोर्ड ने इन्हे हरी झंडी दे दी. पूरी फिल्म देख कर अहसास होता है कि ‘रामायण’ के अलगअलग पात्रों व उन के साथ के अनसार अपनी फिल्म के किरदारों के साथ अलगअलग लोकेशन पर एक्शन सीन फिल्माकर फिल्म एडिटर को दे दिया गया कि इसे ‘जिस अंदाज’ में रामायण की कहानी चलती है उसी अंदाज में जोड़ दो. एडिटर ने शब्दशः वैसा ही किया होगा यह सारे दृश्य एक फिल्म की लय में नहीं चलते.

हम आप को बता दें कि रोहित शेट्टी ने किन किरदारों को किस रूप में पेश किया है. तो ‘सिंघम अगेन’ में सिंघम हैं राम, अवनी हैं सीता, जटायु बने हैं दया, खिलाड़ी उर्फ अक्षय कुमार बने हैं गरूण, हनुमान बने हैं रणवीर सिहं, लक्ष्मण बने हैं सत्या उर्फ टाइगर श्राफ. कहने का अर्थ यह कि राष्ट्रवाद व धर्म को बेचने की फिराक में रोहित शेट्टी ‘फिल्म मेकिंग की कला’ भी भूल गए. इस फिल्म को देख कर अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक वही रोहित शेट्टी हैं, जिन्हें एक्शन दृश्यों में महारत हासिल है और अतीत में वह ‘सिंघम’ सहित कई सफलतम व बेहतरीन एक्षन फिल्में दे चुके हैं.

‘सिंघम अगेन’ के एक्शन दृश्य बहुत ही कमजोर हैं. तो वहीँ सिंबा उर्फ हनुमान उर्फ रण्वीर सिंह के माध्यम से जो हास्य परोसने का प्रयास है, वह तो फिल्म की सफलता में कील ठोंकने वाला कृत्य ही है. सिनेमाघर में मेरे बगल में बैठे हुए युवा दर्शकों का झुंड तो इन दृश्यों व रणवीर सिंह की हंसी उड़ा रहा था.

इस फिल्म में बाजीराव सिंघम पहली बार समाज या देश के लिए नहीं बल्कि अपनी निजी वजह यानी कि अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए देश के सभी जांबाज व ‘शिवा स्कवाड’ के अफसरों की जान जोखिम में डाल देता है. आखिर इस तरह की कहानी के माध्यम से  रोहित शेट्टी क्या संदेश देना चाहते हैं. क्या यही उन का राष्ट्रवाद है. क्या देश के किसी एनएसजी कमांडो को अपने निजी दुशमन से लड़ने के लिए सभी कमांडो की सेवाएं लेने का हक है.

कैमरामैन को यदि नजरंदाज कर दें तो फिल्म के सभी तकनीशियनों ने बेमन ही काम किया है. फिल्म का पार्श्व संगीत कानफोड़ू व अति लाउड है. जहां जरुरत नहीं है, वहां भी पार्श्व संगीत इतना लाउड है कि दर्शक संगीतकार व साउंड इंजीनियर दोनों के गाली देने लगता है. कश्मीर की वादियों में ‘शिव तांडव स्तोत्र’ बजता है, रावण यानी जुबेर हाफिज के संहार से पहले ही ‘एक श्लोकी रामायण’ बैकग्राउंड में बजा देते हैं. ‘हनुमान चालीसा’ को भी खंडखंड में काफी बजाया गया.

अफसोस की बात यह है कि ‘सिंघम अगेन’ में किसी भी कलाकार का अभिनय प्रभावशाली नहीं है. ‘सिघम अगेन’ की सब से बड़ी कमजोरी खुद बाजीराव सिंघम के किरदार में अजय देवगन ही हैं. वह सिर्फ अपनेआप को दोहराते हुए नजर आए हैं. उन की संवाद अदायगी भी निराश करती है. नायक के बाद सब से बड़ी कमजोर कड़ी खलनायक यानी कि रावण रूपी जुबेर हाफिज के किरदार में अर्जुन कपूर हैं. अर्जुन अपने अभिनय से डराते नहीं हैं. तो वहीँ लक्ष्मण रूपी सत्या के किरदार में टाइगर श्राफ बिलकुल नहीं जमे. बल्कि यह तो लक्ष्मण का अपमान ही है.

लक्ष्मण इतने कमजोर नहीं थे, जितना कि सत्या कमजोर है. इतना ही नहीं टाइगर श्राफ के किरदार को स्थापित करने या यूं कहें कि टाइगर श्राफ के डूब चुके अभिनय कैरियर को नई सांस देने के प्रयास में फिल्म इतनी लंबी खींची गई है कि दर्शक बोर हो जाता है और उसे लगता है कि फिल्मकार उन्हें मानसिक यातना दे रहा है.

परदे पर उछलकूद करना ही एक्शन व अभिनय नहीं है. हकीकत तो यही है कि सत्या के किरदार में टाइगर श्राफ का चयन ही गलत है. गरूण उर्फ खिलाड़ी के किरदार में अक्षय कुमार दर्शकों से सिर्फ अपना मजाक उड़ावाते ही नजर आते हैं. उन्होंने ‘सिंघम अगेन’ क्यों की यह समझ से परे है. उन के हिस्से करने को कुछ खास आया नहीं और जो आया, उसे भी वह ठीक से नहीं कर पाए. हनुमान उर्फ सिंबा के किरदार में रणवीर सिंह ने जो कौमेडी की है, उसे कौमेडी वही कह सकते हैं.

इस फिल्म में घटिया अभिनय कर रणवीर सिंह ने खुद ही अपने कैरियर के खात्मे की घंटी बजा दी है. उधर उन की निजी जीवन की पत्नी दीपिका पादुकोण भी पुलिस इंस्पेक्टर शक्ति शेट्टी के किरदार में है, जबकि वह कहीं से भी पुलिस अफसर नजर ही नहीं आती. खुद को ‘लेडी सिंघम’ कहने वाली शक्ति सिंह ऐसी पुलिस अफसर हैं, जिन के कार्यक्षेत्र में आने वाले थाने के 14 सिपाहियों को डैंजर लंका उर्फ जुबेर हाफिज जिंदा जला देता है. सीता उर्फ अवनी के किरदार में करीना कपूर का अभिनय काफी कमजोर है. ऐसा लगता है जैसे कि वह नौटंकी कर रही हैं.

फिल्म में एक संवाद है, ‘जंग में सब जायज है.’’ लगतार दोदो असफलताएं झेल चुके रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ को सफल सिद्ध करने को ‘जंग’ की तरह ले कर अपनी फिल्म के संवाद की ही तर्ज पर ‘सिंघम अगेन’ के ट्रेलर लांच के दिन से ही अब तक घटिया हरकतें व शतरंजी चालें ही चलते आए हैं. फिल्म देख कर समझ में आया कि रोहित शेट्टी ने वितरक के माध्यम स ‘सिंघम को ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन्स पर क्यों रिलीज करवाया और क्यों टिकटों की कीमतें बढ़वा कर आम जनता को लूटा. शायद वह पहले दिन जम कर पैसा बटोर लेना चाहते थे, उन्हें अहसास था कि उन की फिल्म देख कर निकलने वाले दर्शक को उन की फिल्म पसंद नहीं आएगी.

साइबर अरेस्ट: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विवशता उजागर होती चली गई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल जब कुछ कहते हैं तो आम आदमी सोचने लगता है और खिलखिला कर हंसने लगता है. ताजा उदाहरण है 27 अक्तूबर को मन की बात का. देश भर में विभिन्न माध्यमों से इस का प्रसारण हमेशा की तरह किया गया. लोगों ने सुना और आश्चर्य वक्त एकदूसरे की तरफ देखते और हंसने लगे थे. इस का सब से बड़ा उदाहरण यह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा, “कोई सरकारी एजेंसी कभी भी पैसे नहीं मांगती…!”

 

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यह तो दुनिया के आठवें अजूबे जैसी बात हो गई कि भारत में एक पटवारी से ले कर के ऊपर तक लेनदेन होती है, भ्रष्टाचार है, यह सारा देश जानता है और प्रधानमंत्री कहते हैं कि कोई सरकारी एजेंसी का कर्मचारी, अधिकारी पैसे नहीं मांगता. भला इसे कौन मानेगा. और इसीलिए जब प्रधानमंत्री के मुंह से ऐसी बात निकलती है तो लोग हंसने पर मजबूर हो जाते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए इस से बचने के लिए देशवासियों से ‘रूको, सोचो और एक्शन लो’ का मंत्र साझा किया और इस बारे में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने का आव्हान किया. सब से बड़ी बात प्रधानमंत्री ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े एक फरेबी और पीड़ित के बीच बातचीत का वीडियो भी साझा किया और कहा कि कोई भी एजेंसी न तो धमकी देती है, न ही वीडियो काल पर पूछताछ करती है और न ही पैसों की मांग करती है.

अब प्रधानमंत्री की इस बात को बच्चाबच्चा नहीं मानेगा. क्या कोई भी एजेंसी हाथ जोड़ कर बात करती है? क्या रिश्वत नहीं लेती? इसे सारा देश जानता है मगर शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे इस बात को नहीं मानेंगे और जैसे ही पद से हट जाएंगे तो बातों को ले कर मुद्दा भी बना सकते हैं.

दरअसल, आकाशवाणी के मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 150 वीं ऐतिहासिक कड़ी में प्रधानमंत्री ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े एक फरेबी और पीड़ित के बीच बातचीत का वीडियो साझा किया. मजे की बात तब होती जब उसे खरीदी को गिरफ्तार कर के कानून सजा देता मगर उस का वीडियो साझा करने से तो यही संदेश जाता है कि ऐसे लोग आज सरकार के सर पर बैठ कर नाच रहे हैं.

आज दुनिया भर में इंटरनेट के तेजी से बढ़ते उपयोग के बीच ‘डिजिटल अरेस्ट फरेब का एक बड़ा माध्यम बनता जा रहा है. इस में किसी शख्स को आनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से “अरेस्ट” ही गया है और उसे जुर्माना देना होगा. कई लोग ऐसे मामलों में ठगी का शिकार हो रहे हैं.

मोदी सरकार विवश और मजबूर यह आश्चर्य की बात है कि 56 इंच की बात करने वाले, ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा लगाने वाले साइबर क्राइम के मामले में असहाय और विवश दिखाई देते हैं. देश भर में लगातार इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं मगर कानून असहाय है और अपराध करने वाले अपना काम करते चले जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने जो बातें कही हैं उस का निचोड़ यह है कि आप को खुद जागरूक बनना पड़ेगा. आप को अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी सरकार इस में कुछ नहीं कर सकती. नरेंद्र मोदी के मन की बात का संपूर्ण निचोड़ यही है.
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के दर्शकों को विस्तार से बताया, इस प्रकार के फरेब करने वाले गिरोह कैसे काम करते हैं और कैसे “खतरनाक” खेल खेलते हैं.
उन्होंने कहा, “डिजिटल अरेस्ट’ के शिकार होने वालों में हर वर्ग और हर उम्र के लोग हैं और वे डर की वजह से अपनी मेहनत से कमाए हुए लाखों रुपए गंवा देते हैं.” उन्होंने कहा, इस तरह का कोई फोन काल आए तो आप को डरना नहीं है. कुल मिला कर देश में किस तरह की खराब स्थितियां है और कानून असहाय है सरकार विवश है यह बता दिया.

प्रधानमंत्री ने एक बार फिर वही कहा जो हर बार दोहराया जाता है ऐसे मामलों में राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन 1930 पर डायल करने और साइबर क्राइम डाट जीओजी डाट इन पर रिपोर्ट करने के अलावा परिवार और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. इस की जगह अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में कुछ ऐसा बताते की सरकार आप की सुरक्षा के लिए पूरी तरह मुस्तैद हो चुकी है, अब आज के बाद देश में एक भी साइबर ठगी नहीं होगी तो लोग तालियां बजाते मुक्त कंठ से प्रशंसा करते और ठगे हुए लोगों के दिल में ठंडक पहुंचती.

नहले पे दहला : आखिर क्यूं वह युवक पालकी के पीछे चलने लगा

एक घटना जो दिल्ली शहर में 1657 ई. में घटी…

वह युवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का अपना निवासस्थान था. दासदासियां थीं. काफी संपत्ति भी थी. मातापिता काफी अरसा पहले गुजर गए थे. भाईबहन नहीं थे. उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था. उस के चाहने वालों की कमी नहीं थी, किंतु वह किसी को भी प्रश्रय नहीं देती थी. इधर कुछ दिनों से जब भी वह बाहर निकलती, एक युवक उस के आगेपीछे चक्कर मारता. उस के चेहरे पर कामना के भाव पढ़ने में उसे कोई असुविधा नहीं हुई. अपने चाहने वालों में एक की बढ़ोतरी होने से कोई परेशानी नहीं हुई थी.

एक दिन वह किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी. लौटते वक्त वह युवक उस की पालकी के साथसाथ चलने लगा. मौका पा कर उस ने प्रणय निवेदन भी कर दिया. युवती ने युवक की तरफ देखा भी नहीं. युवक उस की इस उपेक्षा से मर्माहत हुआ था. युवक का प्यार एकतरफा था. प्रणय निवेदन में असफल हो उस ने युवती को उपहार भेजने शुरू किए. किंतु वे उस के पास वैसे ही लौट आते. युवती ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. इस से युवक ने बेइज्जती महसूस की तथा युवती के गर्व को कुचलने के लिए योजना बना एक षड्यंत्र रच डाला.

युवती की एक वृद्धा बांदी थी. वह उसे गुसल कराती. उस के केश संवारती. युवक ने इस वृद्धा बांदी के घर जाना शुरू किया तथा थोड़े समय में उसे अपने वश में कर लिया. बांदी को रिश्वत दे कर उस ने युवती के बारे में गोपनीय खबरें एकत्र कर लीं. युवक ने योजनानुसार षड्यंत्र को मूर्तरूप देने के लिए दिल्ली के काजी की अदालत में मामला दायर कर दिया. युवक की नालिश के अनुसार, युवती उस के साथ बहुत सी रातें गुजारने के बाद अब शादी करने से मुकर रही है. युवती ने व्यभिचार किया है. इसलिए काजी इस का उचित फैसला करें.

युवक की नालिश के अनुसार, काजी ने युवती को अपनी अदालत में तलब किया. काजी के पूछने पर युवती ने आश्चर्य व्यक्त कर युवक को झूठा ठहराया. उस ने बताया कि उलटे युवक ही कुछ दिनों से उस के पीछे चक्कर लगाता हुआ उसे परेशान कर रहा है. उस ने उपहार भेजे, जिन्हें उस ने लौटा दिया. युवक के साथ विवाह करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.

काजी ने इस बार युवक की तरफ देखा. युवक ने युवती की तरफ आग्नेय नेत्रों से देख कर कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है.’’

‘‘तुम सत्य कह रहे हो, इस का प्रमाण क्या है?’’

‘‘हुजूर, प्रमाण है.’’

‘‘तो पेश करो.’’

‘‘हुजूर, पहले ये बताएं कि इन्होंने कभी मुझ से एकांत में भेंट की है या नहीं?’’

युवती ने घृणा से युवक की तरफ देख कर कहा, ‘‘प्रश्न ही नहीं उठता है.’’

‘‘हुजूर, मैं इन के ढके शरीर के कुछ गोपन चिह्न इन्हें बता सकता हूं. जब ये कभी मुझ से एकांत में मिली ही नहीं तो मैं इस की जानकारी कहां से पाऊंगा?’’

काजी सोच में पड़ गया. उस ने युवक को अपने पास बुलाया. युवक ने युवती के कुछ गोपन चिह्नों के बारे में काजी को बताया.

युवती काजी और युवक के वार्त्तालाप को सुन नहीं पा रही थी, किंतु वह अंदाजा ठीक ही लगा रही थी. फिर भी वह निश्चिंत थी. युवक से उस ने एकांत में कभी मुलाकात ही नहीं की तो वह उस के शरीर के गोपन चिह्नों की खबर कैसे पा जाएगा. युवक ने काजी को पसोपेश में डाल दिया. अंत में काजी ने निर्णय लिया कि युवक के दावे के सचझूठ की परीक्षा कर ली जाए. उस ने एक खोजा और एक बांदी को युवती के शरीर पर उन निशानों को देख कर परीक्षा करने के लिए भेज दिया. कुछ देर बाद बांदी काजी की अदालत में हाजिर हुई तथा सिर झुका कर युवक के समर्थन में सिर हिला दिया. सत्य ही युवती के शरीर पर वे चिह्न पाए गए थे. काजी की दृष्टि में अब युवक सच्चा था तथा युवती व्यभिचारिणी. उस ने युवती को फैसला सुना आदेश दिया, ‘‘तुम्हें इस युवक से विवाह करना होगा.’’

युवती काजी के फैसले से आई विपत्ति को अच्छी तरह अनुभव कर रही थी. युवक ने किसी तरह उस के शरीर के गोपनीय चिह्नों को जान उसे मात दी थी. उस ने भी नहले का उत्तर दहले से देने का निश्चय कर तुरंत प्रकृतिस्थ हो काजी से अनुनय भरे स्वर में कहा, ‘‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर, किंतु विवाह की तैयारियों के लिए मुझे कुछ महीनों की मुहलत देनी होगी. मेरे रिश्तेदार दूर रहते हैं, उन्हें खबर देनी होगी. विवाह की तैयारियों में वैसे भी देर होती ही है.’’

युवक अपने षड्यंत्र में सफल हो जाने पर फूला नहीं समा रहा था. युवती उस से विवाह करने को रजामंद हो गई थी, वह भी काजी के सामने. इसलिए कुछ महीने इंतजार कर लेने में हर्ज ही क्या है. वह इंतजार करने को खुशीखुशी राजी हो गया.

युवकयुवती के राजी हो जाने पर काजी क्यों अपनी टांग अड़ाता. उस ने भी युवती को सहर्ष कुछ महीनों की मुहलत दे दी. युवती काजी की अदालत से अपने घर वापस आ कर अपनी दासियों से जिरह करने लगी. तब वृद्धा दासी ने घबरा कर सत्य को कुबूल कर लिया. उस ने ही सोने की कुछ मुहरों के लालच में युवक को उन गोपनीय चिह्नों की जानकारी दी थी. जब युवती ने वृद्धा दासी को धमकाया तो वह युवती के कहे अनुसार काजी की अदालत में उचित समय आने पर सही बातें बताने को राजी हो गई.

धीरेधीरे 8 महीने गुजर गए. एक दिन युवती 2 शक्तिशाली दासों तथा एक पालकी व उस के वाहकों को ले कर युवक के घर पहुंची. युवक अपने घर में अकेला रहता था तथा कुछ महीनों से बीमार था. उस का शरीर अब एक जीर्ण काया में बदल गया था. युवती ने युवक के घर में प्रवेश कर अपने दोनों दासों को संकेत किया. दासों ने उस युवक को जबरदस्ती उठा कर पालकी में लिटा दिया. शीघ्र ही पालकी शहर काजी की अदालत की ओर चल पड़ी.

युवती ने उस युवक को अपने दोनों दासों की सहायता से काजी के समक्ष उपस्थित कर कहा, ‘‘हुजूर, कल मैं और यह युवक जब एकांत में मिले थे तो यह मेरे बहुमूल्य स्वर्णहार को चोरी कर भाग गया. हुजूर, इंसाफ कर मेरे हार को वापस दिलवाएं.’’

युवक ने कराहते हुए कहा, ‘‘हुजूर, मैं तो महीनों से बीमार हूं. मुझ से तो ठीक से चला भी नहीं जाता. यह औरत मुझे जबरदस्ती इन दोनों व्यक्तियों के सहारे पकड़ कर लाई है.’’

‘‘हुजूर, यह व्यक्ति मक्कार तथा झूठ गढ़ने में माहिर है.’’

‘‘हुजूर, यह औरत ही झूठी है. इसे तो मैं ने कभी देखा भी नहीं है.’’

‘‘क्यों, कल क्या तुम मेरे घर में नहीं थे?’’

‘‘हुजूर, इस औरत को आज से पहले मैं ने कभी देखा नहीं है.’’

काजी को लगा कि युवक सही कह रहा है. उस ने औरत से पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई गवाह है?’’

औरत ने समर्थन में सिर हिलाया तो युवक ने चीखते हुए कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है. इस का कोई भी गवाह नहीं है.’’

‘‘हुजूर, मेरा गवाह यह युवक ही है.’’

काजी ने विस्फारित नेत्रों से युवती की तरफ देखा. उसे लग रहा था कि उस ने युवती को कहीं देखा है. किंतु वह स्मरण नहीं कर पा रहा था. इस पर युवती ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘हुजूर ने मुझे पहचाना नहीं?’’

काजी ने अपनी स्मरणशक्ति पर जोर दिया, किंतु वह उस औरत को पहचानने में विफल रहा. इस पर उस युवती ने कहा, ‘‘हुजूर, 8 महीने पहले इस युवक ने आप की अदालत में मेरे विरुद्ध नालिश की थी. हुजूर ने भी मुझे व्यभिचारिणी मान मुझे इस से विवाह करने का हुक्मनामा सुनाया था.

‘‘मैं ने हुजूर से कुछ महीने की मुहलत मांगी थी. आज यह युवक मुझे पहचानने से इनकार कर रहा है. मेरे शरीर के गोपनीय चिह्नों को स्मरण रखने वाला मेरे चेहरे को इतनी जल्दी कैसे भूल गया? हुजूर, उस बांदी तथा खोजा से इस की शिनाख्त करें, जिन्होंने इस की नालिश पर हुजूर के हुक्म से मेरे शरीर की परीक्षा की थी.’’

काजी ने बांदी और खोजा को बुलवा कर उन से पूछा तो उन्होंने युवती और युवक को पहचान युवती के कथन का समर्थन किया.

इस पर लज्जित हो काजी ने कहा, ‘‘मुझे प्रतिदिन सैकड़ों मामलों पर फैसला सुनाना पड़ता है. फिर मैं वृद्ध भी हो चला हूं. अत: तुम्हें पहचानने की मेरी भूल स्वाभाविक है. किंतु मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इस व्यक्ति ने तुम्हारे शरीर के गोपन चिह्नों के बारे में कैसे जान लिया?’’

इस पर उस युवती ने अपनी वृद्धा दासी की सोने की कुछ मुहरों के लालच में गद्दारी किए जाने की घटना को कह सुनाया. काजी ने दासी को उसी समय सिपाही भेज अदालत में बुलवाया तो उस ने डरतेडरते सभी कुछ स्वीकार कर लिया. काजी ने अब क्रोधित हो युवक की तरफ देखा. वह थरथर कांप रहा था. काजी ने दांत भींचते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो जिंदा गाड़ कर कुत्तों से नुचवा देना चाहिए. किंतु मैं स्वयं को भी लज्जित महसूस कर रहा हूं. तुम्हारी चिकनीचुपड़ी बातों में आ मैं ने इस शरीफजादी के साथ बेइंसाफी की है. अब तुम्हारे साथ इंसाफ शहंशाह ही करेंगे.’’

काजी ने पूरे मामले को मुगल बादशाह शाहजहां के पास फैसले के लिए भेज दिया. दोनों की मुगल दरबार में पेशी हुई. युवती ने सारी घटना का वर्णन कर बादशाह से इंसाफ करने की प्रार्थना की. बादशाह ने वृद्धा दासी से पूछताछ की तो उस ने डरतेडरते सही घटना बता दी शाहजहां ने युवक से प्रश्न किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि वह उस औरत के प्रेम में पड़ गया था. पर उस की उपेक्षा से वह उसे किसी भी तरह हासिल करने को कटिबद्ध हो गया था. उस ने उस वृद्धा बांदी को लालच दे उस से उस युवती के शरीर के गुप्त चिह्नों की जानकारी पा काजी को बहका कर अपने पक्ष में फैसला करवा लिया था. वह युवती 8 महीने बाद अपना केश विन्यास बदल तथा दूसरे किस्म के कपड़े पहन अपने दोनों दासों की सहायता से उसे जबरदस्ती काजी की अदालत में ले गई. फिर उस ने चोरी के मामले में उसे अभियुक्त ठहराना चाहा तो वह उस के बदले भेस के चलते उसे पहचान नहीं पाया.

वह अपने किए पर लज्जित था तथा बादशाह से माफ कर देने की आरजू कर रहा था. बादशाह ने गंभीर हो कहा, ‘‘एक शरीफ औरत को बदनामी के साथसाथ मानसिक कष्ट भी हुआ. उस की क्षतिपूर्ति तो मैं स्वयं भी नहीं कर सकता. किंतु इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो, अत: युवक और वृद्धा बांदी को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.’’

बादशाह ने युवती की बुद्धि की तारीफ कर उसे पुरस्कृत किया. उसी दिन बादशाह के आदेश से दिल्ली के राजपथ पर उस युवक और उस की सहयोगिनी वृद्धा बांदी को कमर तक मिट्टी में गाड़ दिया गया. फिर तीर मार कर दोनों की हत्या कर दी गई. दोनों की मृत देह 24 घंटे तक रास्ते पर पड़ी रही, जिस से कि राहगीर उन्हें देख कर शिक्षा ग्रहण करें. युवती द्वारा नहले पर दहला मारने की घटना भी दिल्ली में काफी दिनों तक चर्चित रही.

अफसोस: उसकी बचपन की आदत से पिता जी क्यों खफा रहते थे

मैं औफिस में काफी रंगीनतबीयत माना जाता था और खुशमिजाज भी. हर रोज किसी को सुनाने के लिए मेरे पास नया व मौलिक लतीफा तैयार रहता था. मैं हाजिरजवाब भी गजब का था. कोई गंदा सा जोक अपने साथियों को सुना कर मैं इतनी बेशर्मी से आंख मारता और सारी बात इतनी गंभीरता से कहता कि हर कोई सच में मेरी बात मान लेता था.

वैसे तो मेरी कहानी सब लोगों के सामने एक खुली किताब रही है. मैं ने जिंदगी में जीभर कर ऐश की है. घर अच्छा था. मेरी बीवी भी कमाती थी. मैं ने सबकुछ खायापीया, घूमाफिरा. इतनी सारी औरतों से यारी की, रोमांस भी किया. वह मजेदार जिंदगी जी कर मजा आ गया.

मगर जनाब, असली बात तो यह है कि मैं ने गफलतभरी जिंदगी जी है. कोई ऐसा काम नहीं किया कि जिसे याद कर के दिल को कोई सुकून मिले. किसी ने मेरे अंदर की बात को कभी संजीदगी से नहीं लिया.

सभी सोचते रहे कि यह आदमी कितना मिलनसार और खुशमिजाज है. चलो, इस के पास चलते हैं. कुछ घड़ी बैठ कर गपें मारते हैं. मैं उन्हें ऐसी बातें बताता जो असल में सच नहीं थीं. कोरी कल्पनाएं थीं, वे सुन कर खुश हो जाते, ठहाके मार कर हंसते.

उन के जाने के बाद मैं उदास हो जाता. एक बलात्कार की सी स्थिति थी मेरे साथ. लगता था मानो इस बलात्कार को मैं ने खुद ही अरेंज करवाया है. रोजरोज मैं अपने अंतर्मन के साथ बलात ढोंग करता.

यह आदत मुझे बचपन से ही थी. लोग बताते हैं कि मेरे पिताजी को भी यही सनक थी, हरेक बात को बढ़ाचढ़ा कर बताना. अगर उन के पास हजार रुपए होते तो वे लोगों को बताते कि उन के पास 10 हजार रुपए हैं. मुझ में यह शेखी एक सनक की हद तक विकसित हो चुकी थी. अगर मैं कभी सच बोलता भी तो लोगों को यकीन न होता.

इस से बहुत नुकसान उठाए हैं, साहब, मैं ने. कई अधेड़ स्त्रियां तो मेरी अच्छी दोस्त बनीं मगर मेरी हमउम्र जवान औरतें मुझ से परहेज करतीं. कालेज में मुझे अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियां भाती थीं जिन्हें हम दोस्त लोग आंटीज कह कर मजे लेते थे. एकदो तो मेरी चिकनी, हंसोड़ बातों में आ भी गई थीं. उन की गहरी जिस्मानी अंतरंगता भी मिली मुझे. वे मेरी शेखी भरी बातें सुन कर प्रभावित हो जाती थीं.

मगर ज्योंज्यों मेरी शादी पुरानी हुई, मुझे कच्ची उम्र की जवान, शोख लड़कियां अच्छी लगने लगीं. मगर मेरी बढ़ती हुई उम्र, आगे निकलती हुई तोंद और पकते जा रहे बालों ने उन्हें हमेशा मुझ से दूर ही रखा.

ऐसे में एक बार मुझे लगा कि मैं जिंदगी के सही अर्थ पा गया हूं. बात उन दिनों की है जब मैं अपने औफिस के स्टाफ टे्रनिंग कालेज में प्रशिक्षण अधिकारी था. एक बैच में एक लड़की थी जो मेरी हंसोड़, लच्छेदार तथा चुटीली बातों में आ गई थी. वह थोड़ी सांवली थी मगर हम हिंदुस्तानी लोग गोरे रंग पर टूट कर पड़ते हैं. अब मैं सोचता हूं कि मुझे उस का दिल दुखाना नहीं चाहिए था.

हां, तो जनाब, विजया, यही नाम था उस का. प्रशिक्षण पीरियड खत्म होने के बाद वह मुझ से मिलने मेरे सैक्शन में आई. वह 21 बरस की जवान लड़की थी और मैं 38 बरस का था. इतना अधेड़ तो न था मगर बाल जरूर पकने लगे थे मेरे और शरीर भी फूलने लगा था.

सारा सैक्शन हैरान नजरों से उसे देख रहा था. विजया को मैं ने साथ पड़ी कुरसी पर बिठाया. औपचारिकतावश चाय मंगवाई. हमारे बीच उम्र का बहुत बड़ा फासला था. वह कमसिन थी, जवानी की दहलीज पर अभी उस ने कदम रखा था मगर मैं उम्र की सीढि़यां उतर रहा था.

वह उस दिन मजाक के मूड में थी. मेरी नेमप्लेट देख कर बोली, ‘सर, आप का नाम तो लड़कियों जैसा है.’ मैं असंयत हो गया, जवाब में कुछ नहीं सूझा. मैं ने बस यही कहा, ‘तुम्हारा नाम भी तो लड़कों जैसा है.’

वह हंस पड़ी. अपने सैक्शन वालों के सामने मुझे पहली बार बेहद झिझक महसूस हुई. इसलिए नहीं कि वह लड़की थी बल्कि इसलिए कि वह उम्र में मुझ से बहुत छोटी थी. मेरी बगल वाली सीट पर हमेशा एक औरत बैठी रहती थी क्योंकि मैं इस बातकी कम ही परवा करता था कि लोग क्या कहेंगे.

लोग मुझे ठरकी कहते थे. यह बात मुझे पता थी. मेरी बगल में बैठने वाली तमाम औरतें लगभग संवेदनशून्य थीं, जो चाहे घटिया बात उन्हें कह लो, हाथवाथ लगा लो, कुछ बुरा नहीं मानती थीं. कुछ तो कोई न कोई बहाना लगा कर मेरी बगल वाली सीट पर विराजमान होने के लिए लालायित रहती थीं.

हां, तो विजया दूसरी बार आई, वह भी एक सप्ताह के अंदर. सैक्शन की बाकी औरतों को बहुत झुंझलाहट हुई. मन ही मन मैं खुश तो था मगर घबरा रहा था, डर रहा था. विजया की गलती यही थी कि जब वह मुझ से मिली थी तो मैं काफी उम्र जी चुका था. मैं 40 की तरफ जा रहा था और वह 20 पार कर रही थी. उस की बातें बेहद दिलचस्प होती थीं. मैं साफ देख रहा था कि यह लड़की मेरे प्रति कितना गहरा मोह पाले बैठी है.

एक जवान लड़की का साथ पाने की एक प्रकार की मेरी दिली इच्छा पूरी होने जा रही थी मगर मैं बेहद डर गया था, बुरी तरह हांफ रहा था, घबरा रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए या लोग क्या सोचेंगे.

विजया सांवली थी, उस का शरीर गोलमटोल और गुदाज था. आंखें छोटी मगर बेहद कटीली और नशीली थीं. चुस्त, आधुनिक कपड़े पहनती थी. विचारों से वह काफी बोल्ड और साहसी थी. एमए इंगलिश कर रही थी. साहित्य में काफी शौक रखती थी. मैं ने भी बी ए औनर्स अंगरेजी साहित्य के साथ किया था. इसलिए लारैंस, कीट्स, बैकन और हक्सले की बहुत सी बातें मुझे अभी तक याद थीं.

सो, काफी देर तक हमारा वार्त्तालाप चलता. विजया के साथ मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से दहकता हुआ गरम अंगारा उठा ले. विजया ने मेरे विश्वासों, मेरी मान्यताओं और मेरे विचारों को उलटपलट कर रख दिया था जैसे बरसात के बाद गलियों में बहने वाले पानी का पहला रेला अपने साथ तमाम बिखरे कागज, तिनके आदि बहा ले जाता है.

वह एक पहाड़ी नदी की तरह पगली थी, आतुर थी. उसे बह निकलने की बहुत जल्दी थी. उसे कई रास्ते, कई मोड़ पार करने थे. मैं एक सपाट मैदानी नाला था. मैं ने काफीकुछ देखा था.

इसी झिझक के मारे मैं ने कभी उस के सामने बाहर घूमने का प्रस्ताव नहीं रखा. विजया ने कई बार कहा, ‘सर, चलिए, कहीं चलते हैं, शिमला या मनाली, हिल स्टेशन पर मस्ती मारते हैं. चलो, बाहर नहीं तो यहीं अपने शहर के लेक व रौक गार्डन पर तो चलो.’ मगर मैं कोई न कोई बहाना लगा कर उसे टालता रहता.

3-4 बार मैं उस के साथ शहर के आसपास गया भी मगर कहीं उस से इत्मीनान से बात करने के लिए सुरक्षित जगह नजर नहीं आई. हर जगह मुझे कोई न कोई परिचित खड़ा नजर आया.

उस के साथ चल कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गया हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर विजया की उम्र देख कर मुझे यह बोध होता कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूं. अपराधबोध के बिना सच्चा प्यार क्यों नहीं होता. प्यार तो समाज की धारा के खिलाफ चल कर ही किया जा सकता है.

मैं डर गया था लोगों से, समाज से, अपनेआप से. कहीं फंस गया तो? हालांकि मैं विजया के प्यार में फंसना चाहता था मगर इतना गहरा फंसने का मेरा इरादा नहीं था.

मैं तो बस उसे छू कर, महसूस कर के देखना चाहता था. मगर विजया तो दीवानगी की हद तक पागल थी. मैं उस की कमसिन उम्र से डर कर अजीब परस्परविरोधी फैसले करता था. कभी सोचता था कि आगे बढ़ूं तो कभी बिलकुल पीछे हट जाने की ठान लेता था. उसे कहीं मिलने का समय दे कर उस से मिलने नहीं जाता था.

फिर मैं ने विजया के साथ एक रात किसी होटल में गुजारने की सोची. मगर उस से पहले मैं उस के प्यार की परीक्षा लेना चाहता था कि क्या वह मेरे सामने समर्पण करेगी या वैसे ही कोरी भावुकता में बह कर वह ऐसी बातें करती है. अपने औफिस की कई औरतों के साथ मुझे उन के घर पर ही उन के साथ अंतरंग संबंध बना लेने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई. मगर विजया के केस में मुझे 1 साल लग गया यह सब सोचने में कि शुरुआत कहां से करूं.

सच बात तो यह थी कि मैं उस के साथ सिर्फ प्यार का खेल ही खेलना चाहता था मगर वह दीवानी लड़की अपनी जवानी के आवेगों को रोक नहीं पा रही थी. हर रोज मुझे यही लगता कि वह मेरे सम्मुख समर्पण करने के लिए बेकरार है.

एक दिन जी कड़ा कर के मैं ने शिमला के ग्रैंड होटल में 2 लोगों के लिए एक कमरे की बुकिंग करवा ही दी. वोल्वो बस से शिमला जाने का प्लान बन गया मगर उस सुबह जिस दिन मुझे विजया के साथ निकलना था उस दिन मेरे मन में पता नहीं कैसे नैतिकता की ओछी सनक सवार हो गई कि इस तरह तो मैं उस का भविष्य खराब कर दूंगा. विजया बस स्टैंड से मोबाइल पर रिंग करती रही मगर मैं मोबाइल बंद कर के अपने रूम में सिरदर्द का बहाना कर के पड़ा रहा.

अब मेरी बात बहुत लंबी हो चली है. मैं अपनी बात यहीं खत्म करता हूं कि एक मौका जब मैं सच में किसी को दिल की गहराइयों से प्रेम करने लगा था, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.

विजया को अपमानित किया, उसे बुला कर मिलने नहीं गया. वह मेरे पास आई तो मैं अधेड़ उम्र की सुरक्षित किस्म की खांटी व अधेड़ औरतों से बतियाने में मशगूल रहा. मैं ने विजया को भूल जाना चाहा. वह बारबार मेरे पास आई तो मैं ने जी कड़ाकर के उस की उपेक्षा की, अपनेआप को ऐसा दिखाया कि मैं औफिस के काम में बुरी तरह मसरूफ हूं.

आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया जैसे गृहिणियां अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में भर कर कस कर बंद कर देती हैं. अब मेरी कैफियत ऐसी थी कि जैसे मैं विजया के काबिल नहीं हूं और यह कि उस के साथ और कुछ दिन चला तो फिर संभलना मुश्किल था. मैं यह खेल बस इसी खूबसूरत मोड़ पर ला कर बंद कर देना चाहता था. उस के साथ जिस्मानी दलदल में धंसने का मेरा कोई इरादा न था.

इस तरह विजया धीरेधीरे मुझ से दूर होती गई. मगर अब इस उम्र में जब मैं 55 के काफी करीब जा रहा हूं, मुझे उन मधुर क्षणों की याद आती है कि जब मुझ में और विजया में जबरदस्त दीवानगी थी तो मैं बेहद मायूस हो जाता हूं. मैं सोचता हूं कि मैं ने कभी किसी से प्यार नहीं किया और एक प्यारभरा दिल तोड़ दिया. सचमुच सिर्फ एक लड़की जिस से मैं ने पहली और आखिरी बार मन की गहराइयों से प्यार किया था, उस का प्यार गंवा दिया, उस से निष्ठुरता दिखा कर बहुत बड़ा अपराध किया था.

रिटायर्ड आदमी : आलोक की कौन सी बात सुन कर प्रतिभा हैरान रह गई

‘‘सुनो, दीदी का फोन आया  था,’’ पति को चाय का प्याला पकड़ाते हुए प्रतिभा ने सूचना दी.

‘‘क्या कह रही थीं? कोई खास बात?’’ आलोक ने अपनी दृष्टि प्रतिभा के चेहरे पर गड़ा दी.

‘‘कुछ नहीं, यों ही परेशान थीं, बेचारी. अब देखो न, 5 वर्ष रह गए हैं जीजाजी को रिटायर होने में, अब तक न कोई मकान खरीदा है न ही प्लौट लिया है. अपनेआप को वैसे तो जीजाजी बुद्धिमान समझते हैं पर देखो तो, कितनी बड़ी बेवकूफी की है उन्होंने,’’ कहते हुए प्रतिभा ने ठंडी सांस भरी.

‘‘5 साल कहां होंगे उन की सेवानिवृत्ति में, 3 वर्ष बचे होंगे. वे तो मुझ से बड़े हैं. 4 वर्ष बाद तो मैं भी रिटायर हो जाऊंगा.’’

आलोक की बात सुन कर प्रतिभा हैरान रह गई. पति के कथन पर विश्वास नहीं हुआ था उसे. हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘सच कह रहे हो? 4 वर्ष बाद रिटायर हो जाओगे?’’

‘‘हां भई, ठीक 4 साल बाद,’’ आलोक निश्ंिचत हो कर चाय पीते रहे.

प्रतिभा को तो जैसे सांप सूंघ गया था. ऐसा कैसे हो सकता है? 4 वर्ष बाद आलोक घर में होंगे. आलोक जैसा चुस्त व्यक्ति निष्क्रिय घर पर कैसे बैठ सकता है? इतनी व्यस्त दिनचर्या के बाद एकाएक जब इंसान के पास कुछ भी करने को नहीं रह जाता तो वह कुंठाग्रस्त हो जाता है. कुंठा, तनाव को जन्म देगी और तनाव क्रोध को, फिर क्या होगा?

आलोक को वहीं छोड़ कर वह अनमनी सी रसोई की ओर चल दी. आया खाना पका रही थी. उस का पति रामदीन चटनी पीस रहा था. हमेशा प्रतिभा आया को बीचबीच में निर्देश देती रहती थी, पर अब वह चुपचाप उन्हें काम करते देखती रही. कुछ भी कहने को जी नहीं किया. सोचने लगी, ‘वैसे भी 4 साल बाद यह बंगला कहां होगा. जब बंगला नहीं होगा तो नौकरों के क्वार्टर और गैरेज भी नहीं होंगे. फिर ये नौकर, आया भी कहां. अब तो धीरेधीरे उसे हर नई परिस्थिति को झेलने के लिए अभ्यस्त होते जाना चाहिए.’

आलोक निदेशक के पद पर कार्यरत थे. खासी आय थी उन की. सरकार की तरफ से इंडिया गेट के पास ही उन्हें यह घर रहने के लिए मिला हुआ था. दोनों बेटे विशाल और कपिल इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे.

इतने बड़े घर में अकेले बैठेबैठे प्रतिभा बोर हो जाती थी. काम करने के लिए आया और उस का पति था ही. यहां आसपास के सभी अफसर नौकरों के क्वार्टर किराए पर दे देते थे. वे लोग बड़ी ही तल्लीनता से साहब लोगों का काम कर देते थे और अफसरों की बीवियां क्लबों व किटी पार्टियों में अपना समय बिताती थीं. यही दिनचर्या प्रतिभा की भी थी. इतने बड़े बगीचे में उस ने सब्जियां और फूल भी लगवा दिए थे. कभीकभार सरकारी माली आ कर पौधों की देखभाल कर जाता. निगरानी के लिए तो रामदीन था ही. कुल मिला कर बड़ी खुशगवार जिंदगी थी.

रात का खाना मेज पर सजा हुआ था. आलोक टीवी पर अंगरेजी फिल्म देख रहे थे. थोड़ी देर के अंतराल के बाद वे हंस भी पड़ते थे, शायद कोई हास्य फिल्म थी.

प्रतिभा एकटक पति का चेहरा निहार रही थी. कैसा विचित्र स्वभाव पाया है इन्होंने? कोई और होता तो हर समय तनावग्रस्त रहता. 4 वर्ष तो ऐसे ही गुजर जाएंगे. दिन बीतते क्या पता चलता है. फिर क्या करेंगे ये? भविष्य के बारे में कोई योजना भी बनाई है या यों ही हाथ पर हाथ धर कर बैठने का इरादा है. वैसे जिस पद पर ये हैं और जो अनुभव इन के पास हैं उस से तो रिटायर होने के बाद काम मिल जाना चाहिए लेकिन एक पुछल्ले के समान ‘रिटायर’ शब्द तो जुड़ ही जाता है इंसान के साथ.

‘‘प्रतिभा, खाना ठंडा हो रहा है. आओ भई, बड़ी जोर की भूख लगी है.’’

आलोक ने पुकारा तो वह चौंक उठी.

लेकिन उसे भूख महसूस नहीं हो रही थी. पति को खाना परोस कर वह सोफे पर अधलेटी सी हो गई. एक बार फिर विचारों की दुनिया में उतर गई, ‘दीदी का तो मकान ही नहीं बना है न, कम से कम बच्चे तो व्यवस्थित हो चुके हैं. बिटिया नेहा का पिछले वर्ष ब्याह कर दिया था उन्होंने. बेटा डाक्टर बन गया है.

‘पिता सेवारत हों तो ब्याह का समारोह भी कितना भव्य होता है. जीजाजी उत्तर प्रदेश में सिंचाई विभाग में मुख्य अभियंता हैं. लाखों का दहेज दिया था बिटिया को. किसी ठेकेदार ने फर्नीचर उपहारस्वरूप भिजवा दिया था तो किसी ने पंडाल और हलवाई का खर्चा अपने जिम्मे ले लिया था. दीदी 5 तोले का नैकलेस पहने कैसी ऐंठी घूम रही थीं.

‘इसी वर्ष आलोक के सहयोगी निदेशक ने भी तो पांचसितारा होटल में बेटे का ब्याह किया था. उन के पद के अनुसार लोग भी आए थे. उपहारों के ढेर देख कर तो सब अचंभित ही रह गए थे. अब मकान नहीं है दीदी का तो क्या हुआ, पैसा तो है. कुछ समय तक किराए के मकान में रह कर अपना मकान खरीद लेंगे.

‘पर हमारे तो बच्चे ही अभी मंझधार में हैं. बड़ा बेटा अभी इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में है और छोटा तो मात्र इसी वर्ष कालेज में पहुंचा है. कितने आराम से रह रहे हैं सब. जितना मांगा, जो मांगा, पिता बिना पूछे ही दे देते हैं. चलो, मान भी लें कि अगले वर्ष तक कपिल इंजीनियर बन जाएगा, लेकिन विशाल को तो 3 वर्ष और वहां रहना है. अवकाशप्राप्ति के बाद क्या वे पिता से अधिकार जता कर पैसे मांग सकेंगे? शायद नहीं.

‘मैं ने तो कल्पना के मोतियों को पिरो कर स्वप्निल संसार सजाया था. दोनों बेटों के पास अपनीअपनी गाडि़यां होंगी. पति दफ्तर की गाड़ी में चले जाएंगे तो भी उस की अपनी गाड़ी गैरेज में रहेगी. ससुर काम पर जाते हों तो सास का भी खासा रुतबा रहता है. एक बार बेटों ने कमाना शुरू कर दिया तो अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती जाएगी. हम बच्चों पर निर्भर नहीं रहेंगे, बच्चे हम पर निर्भर नहीं रहेंगे. वैसे भी ससुर का घर पर रहना बहुओं को कहां भाता है.’

सहसा उसे लगा जैसे उस ने कोई रंगीन सपना देखा था. ताश के पत्तों से बना महल पति के एक कथन से ही धराशायी हो गया था.

आलोक न जाने कितनी देर से नींद के आगोश में कैद हो चुके थे पर प्रतिभा की आंखों में नींद कहां थी. सोचने लगी, ‘कैसी मीठी नींद सो रहे हैं. क्यों न सोएं, वे तो मानसिक रूप से तैयार ही होंगे इस स्थिति के लिए. दफ्तर में न जाने कितने लोगों को रिटायर होते देखते ही होंगे. कई बार विदाई समारोहों में भाग भी लिया होगा. इन के लिए विचलित होने जैसी कोई बात नहीं है. कितना बुरा समाचार सुनाया आज आलोक ने.’

दूसरे दिन सुबह पति के जागने से पहले ही वह उठ गई थी. वैसे जब तक आया उठती, वे दोनों सुबह की सैर से लौट चुके होते थे. प्रतिभा को चाय की ट्रे लाते हुए आलोक ने देखा तो वे चौंक उठे. पूछा, ‘‘आज आया नहीं आई? तुम क्यों चाय बना कर ले आईं?’’

‘‘यों ही, घर के काम की आदत पड़नी चाहिए.’’

‘‘तुम्हारी सुबह की सैर का क्या होगा?’’ उन्होंने शरारत से पूछा, पर वह बात को टाल गई.

लेकिन सोचने लगी कि अब सब काम करना ही पड़ेगा. धीरेधीरे ही तो आदत पड़ेगी. सोचने को सोच तो गई थी, पर उस की आंखों से आंसू टपक पड़े थे. निढाल सी कुरसी पर बैठ गई थी. न जाने आलोक कब तैयार हुए, कब नाश्ता खाया और कब दफ्तर के लिए चल पड़े, उसे पता ही नहीं चला. वह तो उन की आवाज सुन कर चौंकी थी. वे कह रहे थे, ‘‘प्रतिभा, तुम्हें कहीं जाना तो नहीं है? जाना हो तो गाड़ी भिजवा दूं?’’

गयादीन ड्राइवर सफेद वरदी पहने साहब का ब्रीफकेस हाथ में पकड़े हुए था. प्रतिभा ने सोचा, ‘आलोक अपना ब्रीफकेस खुद क्यों नहीं पकड़ लेते? और गाड़ी के लिए क्यों पूछ रहे हैं. उसे क्या पैदल चलना नहीं आता? वैसे बसें तो सड़कों पर रेंगती ही हैं,’ लगा, तनाव से उस के माथे की नसें फट जाएंगी. प्रत्यक्ष में उस ने दोटूक सा उत्तर दिया, ‘‘कहीं नहीं जाना है.’’

‘‘जाना चाहो तो फोन कर देना, गाड़ी भिजवा दूंगा.’’

उस ने गरदन हिला दी. आलोक चले गए तो लगा, कुछ काम निबटा दें. आलू छीलने बैठी तो रक्त की धारा बह निकली. कितने वर्षों से सब्जी काटी कहां थी. दर्द के मारे चीख निकल पड़ी.

मां की आवाज सुन कर बड़ा बेटा कपिल दौड़ा हुआ आया. वह छुट्टियों में घर आया हुआ था. चौंक कर बोला, ‘‘आप क्यों सब्जी काट रही थीं, मां? आया कहां है?’’

‘‘आया यहीं है. अब कुछ समय बाद सब काम करना ही पड़ेगा. सोचा, अभी से थोड़ीथोड़ी आदत डाल लेनी चाहिए,’’ वह बोली.

‘‘क्या मतलब?’’

4 वर्ष बाद तुम्हारे पिता रिटायर हो जाएंगे,’’ प्रतिभा को लगा, मन का बोझ बेटे के साथ बांट ले. बेटों की शिक्षा से ले कर नौकरी तक और उन के विवाह के जो भी सपने उस ने संजोए थे, बेटे को ज्यों के त्यों बता दिए. लगा, बेटा कुछ तो सहानुभूति दिखाएगा.

पर वहां तो प्रतिक्रिया ऐसी हुई कि बेटे को ही संभाल पाना मुश्किल हो गया था. रोंआसा सा कपिल मां पर झल्लाने लगा, ‘‘तुम्हें हमारे विवाह की चिंता हो रही है, पर यह तो सोचो कि हमारे भविष्य का क्या होगा? पिताजी तो इंटरव्यू बोर्ड में बैठने वाले किसी न किसी सदस्य को जानते ही होंगे. बिना सिफारिश के अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है, मां.’’

कपिल घर के बाहर चला गया. बात सौ फीसदी सही थी. वह सोचने लगी, ‘आलोक मिलनसार व्यक्ति हैं. इस पद पर उन के संबंध भी काफी बने हुए हैं. न जाने कितने लोगों ने उन के माध्यम से अच्छे पदों को पाया होगा. आज अपने बच्चों का समय आया तो कौन पूछेगा? उसे रहरह कर खुद पर भी क्रोध आने लगा था. जीवन के इस कड़वे सच की ओर उस का ध्यान क्यों नहीं गया.’

शाम को दफ्तर से आलोक हंसते हुए आए, चाय पी और टैनिस खेलने चले गए. उस ने तो 2 दिन से ढंग से खाना भी नहीं खाया था. ऐसा लग रहा था जैसे गश खा कर गिर पड़ेगी.

पति बाहर गए. बेटा दोस्तों के पास चला गया तो पुराने अलबम निकाल कर देखने लगी. गोलमटोल, थुलथुल से प्यारे बच्चे अब जवान हो गए थे. पिछले वर्ष का एक फोटो उस के हाथ लग गया. नजर आलोक के चेहरे पर अटक कर रह गई. सुंदर, सजीले, चुस्तदुरुस्त, कहीं भी उम्र की परतों का प्रभाव नहीं था.

अचानक उस की कल्पना में जर्जर, कमजोर से आलोक दिखाई दिए. उन पर क्रोध सा आ गया. क्या जरूरत थी, इतनी देर में ब्याह करने की? ब्याह देर से किया तो बच्चे भी देर से हुए. अब भुगतें खुद भी और हमें भी दुखी करें. कितना बुद्धिमान समझते हैं खुद को, हर काम योजनाबद्ध तरीके से करने का बखान करते हैं और अपना जीवन ही ढंग से जी नहीं पाए. अपनी ममेरी, फुफेरी, चचेरी बहनें एकएक कर याद आ गई थीं. वे सब दादी, नानी बन चुकी हैं और उन के पति अभी तक कार्यरत हैं. और एक वह है जो…

खाने की मेज पर प्रतिभा गुमसुम बैठी थी. अचानक आलोक का ध्यान उस के चेहरे की तरफ चला गया. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो, प्रतिभा?’’

‘‘कुछ नहीं. सोच रही हूं 4 साल बाद क्या होगा?’’ वह मायूस थी.

‘‘क्या होगा?’’ तभी आलोक का ध्यान 3 दिन पहले कही बात की तरफ चला गया. सोचने लगा, ‘तो क्या प्रतिभा इसीलिए गंभीर है?’ उस की उदास आंखें दिल का हाल कह रही थीं.

आलोक ने उस का हाथ अपने हाथ

में ले लिया और बोले, ‘‘प्रतिभा, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो. मेरी जन्मतिथि कैसे भूल गईं? तुम यह भी जानती हो कि सेवानिवृत्ति की उम्र क्या है?’’

‘‘हां, उस हिसाब से तो तुम्हारी सेवानिवृत्ति में अभी 7 वर्ष बाकी हैं. फिर तुम ने…’’

‘‘मैं ने मजाक किया था,’’ प्रतिभा की बात काटते हुए आलोक बोले.

‘‘प्रतिभा, एक बात कहूं, जीवन में कुछ सच इतने कड़वे होते हैं कि उन पर विचार नहीं किया जा सकता. पर वे सनातन सत्य होते हैं. जैसे, सूरज का उदय और अस्त होना. जवानी के साथसाथ बुढ़ापा, जन्म के बाद मृत्यु. सेवानिवृत्ति

तो एक छोटी सी बात है. कल को मैं दुर्घटनाग्रस्त हो जाऊं या दिल का दौरा पड़ जाए तो क्या जीओगे नहीं तुम सब? सपने हमेशा यथार्थ के धरातल पर सजाने चाहिए, नहीं तो वे पानी के बुलबुले के समान मिट जाते हैं. सही इंसान वही है जो अपनी योग्यता से आगे बढ़े और जीवन की परिस्थितियों में खुद को ढाल ले.’’

वातावरण शांत हो गया था. सब जीवन के सच को जान चुके थे. तभी आलोक हंस दिए, ‘‘10-12 वर्ष बाद की चिंता में अभी से भोजन करना क्यों छोड़ रहे हो? भई, मुझे तो बड़ी जोर की भूख लगी है.’’

घर का बोझिल वातावरण खुशनुमा हो गया था. सभी खिलखिला रहे थे. प्रतिभा भी अब शांत थी.

कांटे की टक्कर में क्या America का RSS साबित हो पाएंगे इंजील इसाई

बस चंद घंटों बाद ही दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न हो जाना है . उम्मीद है कि 5 नवम्बर की रात तक पता चल जायेगा कि कड़े मुकाबले में कौन जीता डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हेरिस या रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प .  दुनिया भर की निगाहें इस चुनाव पर हैं जिसका सस्पेंस अब चरम पर है . तमाम सर्वे कुछ स्पष्ट कह पाने में असमर्थ हैं क्योंकि द्वंद से जूझते अमेरिका के वोटर का मूड भांपना अब आसान नही रह गया है जो कट्टरवाद और उदारवाद नाम के दो पाटों के बीच में फंस कर रह गया है .

रैलियों , सभाओं , बहसों और विज्ञापनों का दौर खत्म होने के बाद अब बारी वोटर की है हालाँकि 2 नवम्बर तक लगभग 3 करोड़ वोट एडवांस वोटिंग के तहत डल चुके हैं  लेकिन ये वे वोट हैं जो पहले से मन बना चुके थे कि कौन देश के लिए बेहतर साबित होगा . बडबोले उद्दंड और अय्याश ट्रम्प या सधी हुई हेरिस जिनके पास बोलने को बहुत कुछ है लेकिन वे अनर्गल बकवास नहीं करतीं . उन्होंने अमेरिकी वोटर को सार रूप में आगाह कर दिया है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है और अगर ट्रम्प जीते तो इसका खात्मा हो जायेगा . इसी लोकतंत्र के दम पर अमेरिका उस मुकाम पर है जहाँ दुनिया उसकी तरफ उम्मीद से देखती है और दुनिया भर के लोग आकर अमेरिका बसना चाहते हैं ,

उलट इसके ट्रम्प अमेरिकियों के दिलो दिमाग में यह खटका या डर भरने में कामयाब रहे हैं कि यदि कमला राष्ट्रपति बनी तो देश बर्बाद हो जायेगा क्योंकि वह एक उदारवादी खतरनाक महिला है . वह प्रवासियों के लिए अमेरिका की सीमाएं खोल देगी जो अंततः अमेरिका के लिए बेहद दुखदायी होगा . हालाँकि गर्भपात अमेरिकी चुनाव में अहम मुद्दा रहा है जिस पर समर्थन उदारवादी कमला को मिल रहा है . लेकिन प्रवासियों के मसले पर लोग ट्रम्प के साथ हैं क्योंकि बड़ी चालाकी से उन्होंने इसे अमेरिका की संस्कृति , पहचान , गौरव , अस्तित्व और श्रेष्टता से जोड़ दिया है . इसके लिए ट्रम्प ने अपनी मुहिम को नाम दिया है मेगा यानी मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन अर्थात अमेरिका को फिर से महानता के शिखर पर पहुँचाना है , यह अभियान असर कर रहा है लेकिन सिर्फ श्वेत दक्षिणपंथियों पर जो चाहते हैं कि देश लोकतंत्र के बजाय धर्म और चर्च से भी चले तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ना .
कौन हैं ये लोग , इनकी पहचान मुश्किल नहीं है . ये श्वेत इसाई हैं जो अमेरिका में इसाई राज देखना चाहते हैं . इनकी तुलना भारत के ब्राह्मणों और सवर्णों से की जा सकती है जो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को हिंदुत्व का नायक और उद्धारकर्ता मानते हैं . मोदी और ट्रम्प में फर्क इतना ही है कि ट्रम्प मोदी की तरह पूर्णकालिक धार्मिक नहीं दिखते . मुमकिन है न भी हों क्योंकि उनकी लाइफ स्टाइल विलासी है जो इसाइयत के मूलभूत सिद्धांतों से मेल नहीं खाती लेकिन इसके बाद भी वे रूढ़िवादियों के नायक हैं तो इसके पीछे हैं इंजील इसाई जिनके बारे में हम आप कुछ खास तो क्या आम भी नही जानते .संक्षेप में इंजील इसाई 2016 से ही ट्रम्प को प्रमोट कर रहे हैं .

इंजील इसाई मूलतः प्रोटेस्टेंट इसाई धर्म का एक आन्दोलन है जिसके मानने वालों को इंजीलवादी कहा जाता है . इंजील शब्द ग्रीक शब्द इवेंजेलियन से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ अच्छी खबर होता है . पुनर्जन्म में अंधा भरोसा करने बाला यह समुदाय ईसा मसीह के संदेशों और शिक्षाओं का दुनिया भर में प्रचार प्रसार करता है और धर्मान्तरण का प्रबल पक्षधर है . अमेरिका में इंजीलवादियों की तादाद सबसे ज्यादा है वहां हर चौथा नागरिक इंजील है यह समुदाय धीरे धीरे ईसाईयों का एक उप धर्म ही बनता जा रहा है जिसके अपने अलग चर्च भी होने और बनने लगे हैं . इस आन्दोलन का एक अघोषित मकसद अमेरिका को अपने शिकंजे में भी लेना है और वह एक हद तक इसमें कामयाब भी हो रहा है . डोनाल्ड ट्रम्प उसका घोषित मोहरा हैं . इसकी एक खूबी यह भी है कि यह लोगों की जाती जिन्दगी में दखल देता है और अपनी मान्यताएं थोपता है .

इंजील इसाई धर्म की रूढ़िवादिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह समान विवाह प्रजनन विकल्प व स्कूलों में यौन शिक्षा का धुर विरोधी है . इतना ही नही यह पब्लिक स्कूलों में मानव विकास शिक्षा का भी विरोध करता है . अमेरिका के शिक्षण संस्थाओं और सांस्कृतिक संस्थाओं पर इसका वैसा ही कब्जा हो चला है जैसा भारत में आरएसएस का है .यह घोषित तौर पर रिपब्लिकन पार्टी का मजबूत ब्लाक है . 1973 में गर्भपात से ताल्लुक रखते अमेरिका के चर्चित मुकदमे रो बनाम वेड फैसले की प्रतिक्रिया में कई श्वेत इवेंजेलिकल सियासी तौर पर सक्रिय हो गये थे और दूसरे कई मुद्दों पर अभी तक एकजुट हैं . .

तमाम मुद्दों के बीच मूल मुद्दा कम से कम ट्रम्प खेमे की तरफ से धर्म ही है जिसकी एक नुमाइश बीती 12 अक्तूबर को राजधानी वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी संसद केपिटल हिल के सामने हुई थी . इस दिन यहाँ कोई 20 हजार ट्रम्प समर्थक इकट्ठा हुए थे और रिवाइवल रिवाइवल रिवाइवल चिल्ला रहे थे . साथ ही वे यीशु की प्रार्थना भी करते जा रहे थे . रिवाइवल रिवाइवल यानी मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन . यह जमावड़ा या मजमा धर्म और आस्था के नाम पर किया गया था जिसमे डोनाल्ड ट्रम्प ईसाईयों के मसीहा के रूप में प्रगट हुए थे .इस आयोजन में भक्ति और प्रार्थना के बाद चर्चा अमेरिका पर मंडराते संकटों की होने लगी जिसके लिए यह सभा आयोजित की गई थी . चर्चा गर्भपात पर भी हुई कि यह धर्म विरुद्ध है चर्चा समलैंगिकों पर भी हुई कि वे संस्कृति के लिए खतरा हैं .

ऐसी कुछ और बातों और थोपे गये मुद्दों को कुछ अमेरिकन एक विचार और विचारधारा के रूप में फ्रेम किये रखना चाहते हैं . यही 15 – 20 फीसदी लोग ट्रम्प के कट्टर समर्थक हैं और उनसे सहमत न होते हुए भी उन्हें लोकप्रिय बनाये हुए हैं . वजह सिर्फ इतनी है कि ट्रम्प यह आश्वासन देते रहे हैं कि वे प्रवासियों को उखाड़ फेकेंगे , उनकी घुसपैठ बंद कर देंगे .ट्रम्प इन्हें युद्धों से भी डराते रहे हैं कि इनसे देश को नुकसान हो रहा है और इसकी जिम्मेदार सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी है

लेकिन यह जीत के लिए नाकाफी है और भारत के मद्देनजर वैसा ही है जैसा यह कि इंडिया गठबंधन रोहिंग्याओ को बसा रहा है . पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी इन मुस्लिम घुसपैठियों को शरण देती हैं और दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल इन्हें बसाते हैं और तमाम सरकारी व गैर सरकारी सहूलियतें देते हैं . देखते ही देखते ये रोहिंग्या भारत के वोटर बन जाते हैं और भाजपा यानी हिंदुत्व के खिलाफ वोट करते हैं . ये मूलतः मुसलमान हैं और उन्हीं की तरह देश के लिए धर्म और संस्कृति के लिए खतरा हैं . इन्हें मोदी जी ही भगा सकते हैं .

दिक्कत यह है कि सभी अमेरिकन इससे सहमत नहीं पर एक डर उनके मन में बैठा तो दिया गया है . यह डर अगर धर्म के नाम पर न होता तो डोनाल्ड ट्रम्प कभी के ख़ारिज हो चुके होते जिन्होंने धर्म को हथियार बना रखा है और इसमें उनकी मदद इंजील इसाई कर रहे हैं जो अमेरिकन आबादी का कोई 25 फीसदी हिस्सा होते हैं .पिछले दिनों आए एक आंकड़े ने गोरों को चौंका दिया था कि साल 2010 से 2020 के बीच श्वेत आबादी 63.7 फीसदी से घटकर 57.8 फीसदी रह गई है . कम उम्र वर्ग में यह महज 47.3 रह गई है .

तो मेगा आन्दोलन का मूल मकसद पुराने दौर में लौटने की इच्छा है जहाँ श्वेत ईसाईयों का दबदबा हुआ करता था . ठीक वैसे ही जैसे भारत में सवर्णों का राज था , एकदम पितृसत्तात्मक और मनुवादी शासन . लेकिन कमला हेरिस इस मुहिम से ठीक वैसे ही लड़ रही हैं विरोध कर रही हैं जैसे भारत में राहुल गाँधी कर रहे हैं . लोकसभा चुनाव से ही वे संविधान को सीने से लगाये घूम रहे हैं . इसी तर्ज पर अमेरिका में कमला हेरिस कह रही हैं कि हम पुराने युग में वापस नही जा रहे हैं .

डोनाल्ड ट्रम्प ने कमला के कालेपन को वेवजह निशाने पर नहीं ले रखा है . वे अक्सर उच्चारण में कमला को का-म -ला बोलते हैं ( जैसे कभी नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी के लिए दीदी… ओ…. दीदी बोला था ) उनकी हर मुमकिन कोशिश कमला हेरिस को जलील करने की होती है . यहाँ भी लड़ाई नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी सरीखी दिखती है . खासकर उस वक्त और जब ट्रम्प हेरिस को कम बुद्धि वाली महिला कहते हैं . जाहिर है ट्रम्प ने अपने पक्के दोस्त नरेन्द्र मोदी से उन्हें बिना राजनैतिक गुरु बनाये काफी कुछ उनसे सीख लिया है जिसमे प्रमुख है विरोधी पर व्यक्तिगत और चारित्रिक हमले करते रहना जो कम से कम उनके भक्तों को तो भाते ही हैं और वे तालियाँ पीटने लगते हैं क्योंकि वे अपने प्रभु के श्रीमुख से यही उदगार सुनना चाहते हैं और फिर उन्हें सोशल मीडिया के जरिये देश भर में फैला देते हैं .

भारत में इस टोटके का उल्टा असर लोकसभा चुनाव में देखने मिला था जब मतदाता ने भाजपा के पर कुतर दिए थे . यही अमेरिका में देखने में आ रहा है कि कमला को जितना ज्यादा बदनाम और बेइज्ज्त किया जा रहा है वे उतनी ही लोकप्रिय होती जा रही हैं . लेकिन यह लोकप्रियता जिताऊ है या थी या नही यह तो 5 नवम्बर को ही पता चलेगा .

अब बात मूल मुद्दे की जिसके तहत ट्रम्प ने जुलाई के महीने में इसाई रूढ़िवादियों को संबोधित करते हुए कहा था कि , आपको बाहर निकलकर मतदान करना होगा , चार साल बाद आपको फिर से मतदान करने की जरूरत नहीं पड़ेगी . हम इसे इतना ठीक कर देंगे कि आपको मतदान करने की जरूरत ही नही पड़ेगी . इस वक्तव्य से अमेरिका में खलबली मच गई थी कि डोनाल्ड ट्रम्प वाकई में लोकतंत्र को खत्म कर देंगे . डेमोक्रेट्स ने जमकर इसी आलोचना की थी .

इस बयान के जिसने जो चाहे जैसे चाहे मतलब निकाले लेकिन आम अमेरिकन का यह डर अभी तक कायम है कि अगर ट्रम्प जीते तो घोषित तौर पर तानाशाह हो जायेंगे . ऐसा सोचने बालों में रिपब्लिकन्स भी कम नही थे और वे श्वेत भी बहुत थे जो धर्म का और इसाइयत का शासन तो चाहते हैं लेकिन लोकतंत्र की बर्बादी और खात्मे की शर्त पर नहीं क्योंकि इन्हें यह अंदाजा या एहसास है कि कल को यही कट्टरवाद गले की हड्डी बन जायेगा . ये दोनों काम एक साथ हों ऐसा भी कोई रास्ता नहीं है इसलिए भी कमला हेरिस भारी पड़ रही हैं जिनके लिए धर्म सेकेंडरी चीज है . इसाई होने के नाते वे यदा कदा चर्च जाती हैं लेकिन उसका ढिंढोरा नहीं पीटती . कमोवेश यही हाल भारत में राहुल गाँधी का है जो अपनी हिन्दू पहचान दिखाने मन्दिर जाने लगे थे और तो और जनेऊ भी दिखाने लगे थे यहाँ तक कि अपना गोत्र भी बताने लगे थे लेकिन वोटर ने उनके इस रूप को ख़ारिज कर दिया तो वे अब वक्त जरूरत ही ऐसा करते हैं

फरवरी के शुरुआती दिनों में डोनाल्ड ट्रम्प टेनेसी के नैशविले में राष्ट्रीय धार्मिक प्रसारकों के एक अहम समारोह में थे . यहाँ उन्होंने खुद को एक धार्मिक व्यक्ति और नेता के तौर पर पेश किया था और एक यह बात प्रमुखता से कही थी जो भारत के दक्षिणपंथी उदारवादी हिन्दुओ को निशाने पर लेते अक्सर कहा करते हैं कि सबसे बड़ा खतरा हमारे देश के बाहर से नहीं है . यह हमारे देश के अंदर से है .हमारे देश के कुछ लोग ही बाहर के लोगों से ज्यादा खतरनाक हैं .इन उदार और् सुधारवादियों को भारत में भी वामपंथी कहा जाता है और अमेरिका में भी .

अब बात उन इंजील ईसाईयों की जिनके दम और शह पर ट्रम्प इतनी उछल कूद मचा रहे हैं . साल 2016 में उनका समर्थन पादरियों ने किया था इसके बाद उन्होंने उन्हें इंजील सलाहकार बोर्ड के जरिये नीति निर्धारण में सीधे हाथ देने की पेशकश की थी . इससे हुआ यह कि दक्षिणपंथी ईसाईयों को व्हाइट हाउस में उतना ही स्पेस और मान सम्मान मिलने लगा था जितना कि रामराज्य में किसी विश्वामित्र या वशिष्ठ को मिलता था . इस दिन ट्रम्प ने अपनी उपलब्धियां बताते बड़े गर्व से कहा था कि अपने पहले कार्यकाल में मैंने ईसाईयों के लिए पहले के किसी भी राष्ट्रपति से ज्यादा संघर्ष किया . मौका मिला तो अब और ज्यादा करूँगा .

इसाई नेताओं यानी धर्म गुरुओ को खुश करते हुए ट्रम्प ने एक टास्कफ़ोर्स बनाने का भी वादा कर डाला जो अमेरिका में ईसाईयों के खिलाफ भेदभाव और उत्पीडन की निगरानी करेगा . इतना ही नहीं हद तो तब हो गई जब उन्होंने अति उत्साह में आते यह वादा भी कर डाला कि मैं ज्यादा से ज्यादा रूढ़िवादी जजों की नियुक्ति की कसम खाता हूँ .

इन कसमे वादों के एवज में कमला हेरिस खामोश नहीं रहीं . उन्होंने प्रचार के आखिरी दिनों में ट्रम्प को फासिस्ट करार दे दिया .यह शब्द या विशेषण दो विश्व प्रसिद्द तानाशाहों इटली के बेनिटो मुसोलनी और जर्मनी के एडोल्फ़ हिटलर के लिए प्रयोग किया जाता है बहुत थोड़े से में फासिज्म को समझें तो यह एक राजनितिक विचारधारा और शासन प्रणाली है जिसमे एक नेता पर ही पूरी निष्ठां रखने पर जोर वाध्यता की हद तक दिया जाता है . और अगर कोई ऐसा करने से इंकार करता है तो उसे तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता है .

कमला हेरिस का इशारा ट्रम्प समर्थक ग्रुप प्राउड बोयज की तरफ भी था जिसने साल 2021 में अच्छा खासा बवाल वाशिंगटन की सड़कों पर मचाया था और केपिटल हिल्स पर भी हिंसा की थी . प्राउड बोयज युवाओं का एक गैर राजनितिक समूह है लेकिन यह शुद्ध धार्मिक है और स्त्री विरोधी भी है जैसे भारत में बजरंग दल है . इसका काम धर्म और संस्कृति की रक्षा की आड़ में हिंसा करना और उन सीधे सादे लोगों को परेशांन करना है जो धार्मिक उसूलों से इत्तफाक नही रखते . प्राउड बोयज को ट्रम्प की हार नही पची थी इसलिए उसने जमकर बबाल काटा था . लेकिन इससे कोई बहुत अच्छा सन्देश नहीं गया था . इसके मद्देनजर अमिरिका में फिर चर्चा है कि अगर ट्रम्प फिर हारे तो हिंसा होगी . लिहाजा लोग डरे हुए भी हैं . यह बात भी शांत और गंभीर स्वभाव बाली कमला हेरिस के पक्ष में जाती है जिन्हें अमन पसंद रिपब्लिकन्स भी वोट कर सकते हैं क्योंकि सभी रिपब्लिकन्स उपद्रवी नहीं है .
चंद घंटों बाद ही साफ़ हो जाना है कि दुविधा में फसे अमेरिकी वोटर ने आख़िरकार किसे चुना कट्टरवादी डोनाल्ड ट्रम्प को या फिर उदारवादी कमला हैरिस को .

कर्ण : खराब परवरिश के अंधेरे रास्तों से गुजरती रम्या

न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के उस फोस्टर होम के विजिटिंग रूम में बैठी रम्या बेताबी से इंतजार कर रही थी उस पते का जहां उस की अपनी जिंदगी से मुलाकात होने वाली थी. खिड़की से वह बाहर का नजारा देख रही थी. कुछ छोटे बच्चे लौन में खेल रहे थे. थोड़े बड़े 2-3 बच्चे झूला झूल रहे थे. वह खिड़की के कांच पर हाथ फिराती हुई उन्हें छूने की असफल कोशिश करने लगी. मृगमरीचिका से बच्चे उस की पहुंच से दूर अपनेआप में मगन थे. कमरे के अंदर एक बड़ा सा पोस्टर लगा था, हंसतेखिलखिलाते, छोटेबड़े हर उम्र और रंग के बच्चों का.

रम्या अब उस पोस्टर को ध्यान से देखने लगी, कहीं कोई इन में अपना मिल जाए. ‘ज्यों सागर तीर कोई प्यासा, भरी दुनिया में अकेला, खाने को छप्पन भोग पर रुचिकर कोई नहीं.’ रम्या की गति कुछ ऐसी ही हो रखी थी. तड़पतीतरसती जैसे जल बिन मछली. उस ने सोफे पर सिर टिका अपने भटकते मन को कुछ आराम देना चाहा, लेकिन मन थमने की जगह और तेजी से भागने लगा, भविष्य की ओर नहीं, अतीत की ओर. स्याह अतीत के काले पन्ने फड़फड़ाने लगे, बिना अंधड़, बिना पलटे जाने कितने पृष्ठ पलट गए.

जिस अतीत से वह भागती रही, आज वही अपने दानवी पंजे उस के मानस पर गड़ा और आंखें तरेर कर गुर्राने लगा. बात तब की है जब रम्या 14-15 वर्ष की रही होगी. उस के डैडी को 2-3 वर्षों में ही इतने बड़ेबड़े ठेके मिल गए कि वे लोग रातोंरात करोड़पति बन गए. पैसा आ जाने से सभ्यता और संस्कार नहीं आ जाते. ऐसा ही हाल उन लोगों का भी था. पैसों की गरमी से उन में ऐंठन खूब थी. आएदिन घर में बड़ीबड़ी पार्टियां होती थीं. बड़ेबड़े अफसर और नेताओं को खुश करने के लिए घर में शराब की नदियां बहती थीं. एक स्वामीजी हर पार्टी में मौजूद रहते थे. रम्या के डैडी और मौम उन के आने से बिछबिछ जाते. वे बड़ेबड़े औद्योगिक घरानों में बड़ी पैठ रखते थे.

उन घरानों से काम या ठेके पाने के लिए स्वामीजी की अहम भूमिका होती थी. पार्टी वाले दिन रम्या और उस की दीदी को नीचे आने की इजाजत नहीं होती थी. अपनी केयरटेकर सुफला के साथ दोनों बहनें छत वाले अपने कमरे में ही रहतीं और छिपछिप कर पार्टी का नजारा लेतीं. कुछ महीने से दीदी भी गायब रहने लगीं. वे रातरातभर घर नहीं आती थीं. जब सुबह लौटतीं तो उन की आंखें लाल और उनींदी रहतीं. फिर वे दिनभर सोती ही रहतीं. यों तो मौम और डैड भी रात की पार्टी के बाद देर से उठते, सो, उन्हें दीदी के बारे में पता ही नहीं था कि वे रातभर घर में नहीं होती हैं.

उस दिन सुबह से ही घर में चहलपहल थी. मौम किसी को फोन पर बता रही थीं कि एक बहुत बड़े ठेके के लिए उस के पापा प्रयासरत हैं. आज वे स्वामीजी भी आने वाले हैं, यदि स्वामीजी चाहें तो उक्त उद्योगपति यह ठेका उस के पापा को ही देंगे. रम्या उस दिन बहुत परेशान थी, उस के स्कूल टैस्ट में नंबर बहुत कम आए थे और उस का मन कर रहा था कि वह मौम को बताए कि उसे एक ट्यूटर की जरूरत है. वह चुपके से सुफला की नजर बचा कर मौम के कमरे की तरफ चली गई. अधखुले दरवाजे की ओट से उस ने जो देखा, उस के पांवतले जमीन खिसक गई. मौम और स्वामीजी की अंतरंगता को अपनी खुली आंखों से देख उसे वितृष्णा सी हो गई. वह भागती हुई छत वाले कमरे की तरफ जाने लगी.

अब वह इतनी छोटी भी नहीं थी, जो उस ने देखा था वह बारबार उस की आंखों के सामने नाच रहा था. इसी सोच में वह दीदी से टकरा गई. ‘दीदी, मैं ने अभी जो देखा…मौम को छिछि…मैं बोल नहीं सकती,’ रम्या घबरातीअटकती हुई दीदी से बोलने लगी. दीदी ने मुसकराते हुए उसे देखा और कहा, ‘चल, आज तुझे भी एक पार्टी में ले चलती हूं.’ ‘कैसी पार्टी, कौन सी पार्टी?’ रम्या ने पूछा. ‘रेव पार्टी,’ दीदी ने आंखें बड़ीबड़ी कर उस से कहा. ‘यह शहर से दूर बंद अंधेरे कमरों में तेज म्यूजिक के बीच होने वाली मस्ती है, चल कोई बढि़या सा हौट ड्रैस पहन ले,’ दीदी ने कहा तो रम्या सब भूल झट तैयार होने लगी. ‘बेबी आप लोग किधर जा रही हैं, साहब, मेमसाहब को पता चला तो मुझे ही डांटेंगे?’ सुफला ने बीच में कहा. ‘चल सुफला, आज की रात तू भी ऐश कर ले,’ दीदी ने उसे 100 रुपए का एक नोट पकड़ा दिया.

उस दिन रम्या पहली बार किसी ऐसी पार्टी में गई. दीदी व दूसरे लड़केलड़कियों को बेतकल्लुफ हो तेज संगीत और लेजर लाइट में नाचते, झूमते, पीते, खाते, सूंघते, सुई लगाते देखा. थोड़ी देर वह आंख फाड़े देखती रही. फिर धीरेधीरे शोर मध्यम लगने लगा, अंधेरा भाने लगा, तेजी से झूमना और जिसतिस की बांहों में गुम होते जाना सुकूनदायक हो गया. दूसरे दिन जब आंख खुली तो देखा कि वह अपने बिस्तर पर है. घड़ी दोपहर का वक्त बता रही थी यानी आज सारा दिन गुजर गया. वह स्कूल नहीं जा पाई. रात की घटनाएं हलकीहलकी अभी भी जेहन में मौजूद थीं. उसे अब घिन्न सी आने लगी.

रम्या को पढ़नेलिखने और कुछ अच्छा बनने का शौक था. बाथरूम में जा कर वह देर तक शौवर में खुद को धोती रही. उसे अपनी भूल का एहसास होने लगा था. ‘क्यों रामी डिअर, कल फुल एंजौयमैंट हुआ न, चल आज भी ले चलती हूं एक नए अड्डे पर,’ दीदी ने मुसकराते हुए पूछा तो रम्या ने साफ इनकार कर दिया. आने वाले दिनों में वह मौमडैड और बहन व आसपास के माहौल सब से कन्नी काट अपनी पढ़ाई व परीक्षा की तैयारी में लगी रही. एक सुफला ही थी जो उसे इस घर से जोड़े हुए थी. बाकी सब से बेहद सामान्य व्यवहार रहा उस का. कुछ दिनों से उसे बेहद थकान महसूस हो रही थी. उसे लगातार हो रही उलटियां और जी मिचलाते रहना कुछ और ही इशारा कर रहा था.

सुफला की अनुभवी नजरों से वे छिप नहीं पाईं, ‘बेबीजी, यह आप ने क्या कर लिया?’ ‘सुफला, क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूं, उस एक रात की भूल ने मुझे इस कगार पर ला दिया है. मुझे कोई ऐसी दवाई ला दो जिस से यह मुसीबत खत्म हो जाए और किसी को पता भी न चले. अगले कुछ महीनों में मेरी परीक्षाएं शुरू होंगी. मुझे आस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय से अपनी आगे की पढ़ाई करनी है. मुझे घर के गंदे माहौल से दूर जाना है,’ कहतेकहते रम्या सुफला की गोद में सिर रख कर रोने लगी. अब सुफला आएदिन कोई दवा, कोई जड़ीबूटी ला कर रम्या को खिलाने लगी. रम्या अपनी पढ़ाई में व्यस्त होती गई और एक जीव उस के अंदर पनपता रहा. इस बीच घर में तेजी से घटनाक्रम घटे.

उस की दीदी को एक रेव पार्टी से पुलिस पकड़ कर ले गई और फिर उसे नशामुक्ति केंद्र में पहुंचा दिया गया. उस दिन मौम अपनी झीनी सी नाइटी पहन सुबह से बेचैन सी घर में घूम रही थीं कि उन की नजर रम्या के उभार पर पड़ी. तेजी से वे उस का हाथ खींचते हुए अपने कमरे में ले गईं. ‘रम्या, यह क्या है? आर यू प्रैग्नैंट? बेबी तुम ने प्रिकौशन नहीं लिया था? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’

मौम ने प्रश्नों की झड़ी सी लगा दी थी. रम्या खामोश ही रही तो मौम ने आगे कहा, ‘मेरी एक दोस्त है जो तुम्हें इस मुसीबत से छुटकारा दिला देगी. हम आज ही चलते हैं. उफ, सारी मुसीबतें एकसाथ ही आती हैं,’ मौम बड़बड़ा रही थीं. रम्या ने पास पड़े अखबार में उन स्वामीजी की तसवीर को देखा जिन्हें हथकड़ी लगा ले जाया जा रहा था. अगले कुछ दिन मौम रम्या को ले अपनी दोस्त के क्लिनिक में ही व्यस्त रहीं, लेकिन अबौर्शन का वक्त निकल चुका था और गलत दवाइयों के सेवन से अंदरूनी हिस्से को काफी नुकसान हो चुका था. इस बीच न्यूज चैनल और अखबारों में स्वामीजी और उस की मौम के रिश्ते भी सुर्खियों में आने लगे. रम्या की तो पहले से ही आस्ट्रेलिया जाने की तैयारियां चल रही थीं.

मौम उसे ले अचानक सिडनी चली गईं ताकि कुछ दिन वे मीडिया से बच सकें और रम्या की मुसीबत का हल विदेश में ही हो जाए बिना किसी को बताए. लाख कोशिशों के बावजूद एक नन्हामुन्ना धरती पर आ ही गया. मौम ने उसे सिडनी के एक फोस्टर होम में रख दिया. रम्या फिर भारत नहीं लौटी. अनचाहे मातृत्व से छुटकारा मिलने के बाद वह वहीं अपनी आगे की पढ़ाई करने लगी. 5 वर्षों बाद उस ने वहीं की नागरिकता हासिल कर अपने साथ ही काम करने वाले यूरोपियन मूल के डेरिक से विवाह कर लिया. रम्या अब 28 वर्ष की हो चुकी थी. शादी के 5 वर्ष बीत गए थे.

लेकिन उस के मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. सिडनी के बड़े अस्पताल के चिकित्सकों ने उसे बताया कि पहले गर्भाधान के दौरान ही उस कीबच्चेदानी में अपूर्णीय क्षति हो गई थी और अब वह गर्भधारण करने लायक नहीं है. यह सुन कर रम्या के पैरोंतले जमीन खिसक गई. डेरिक तो सब जानता ही था, उस ने बिलखती रम्या को संभाला. ‘रम्या, किसी दूसरे के बच्चे को अडौप्ट करने से बेहतर है हम तुम्हारे बच्चे को ही अपना लें,’ डेरिक ने कहा. यह सुन कर रम्या एकबारगी सिहर उठी, अतीत फिर फन काढ़ खड़ा हो गया. ‘लेकिन, वह मेरी भूल है, अनचाहा और नफरत का फूल,’ रम्या ने कहा. जब कोई वस्तु या व्यक्ति दुर्लभ हो जाता है तो उस को हासिल करने की चाह और ज्यादा हो जाती है.

अब तक जिस से उदासीन रही और नफरत करती रही, धीरेधीरे अब उस के लिए छाती में दूध उतरने लगा. फिर एक दिन डेरिक के साथ उस फोस्टर होम की तरफ उस के कदम उठ ही गए. …तभी संचालिका ने रम्या की तंद्रा को भंग किया, ‘‘यह रहा उस बच्चे को अडौप्ट करने वाली लेडी का पता. वे एक सिंगल मदर हैं और मार्टिन प्लेस में रहती हैं. मैं ने उन्हें सूचना दे दी है कि आप उन के बच्चे को जन्म देनेवाली मां हैं और मिलना चाहती हैं.’’ फोस्टर होम की संचालिका ने कार्ड थमाते हुए कहा. जो भाव आज से 13-14 वर्र्ष पहले अनुभव नहीं हुआ था वह रम्या में उस कार्ड को पकड़ते ही जागृत हो उठा.

उसे ऐसा लगा कि उस के बच्चे का पता नहीं, बल्कि वह पता ही खुद बच्चा हो. मातृत्व हिलोरे लेने लगा. डेरिक ने उसे संभाला और अगले कुछ घंटों में वे लोग, नियत समय पर मार्टिन प्लेस, मिस पोर्टर के घर पहुंच चुके थे. 50-55 वर्षीया, थोड़ा घसीटती हुई चलती मिस पोर्टर एक स्नेहिल और मिलनसार महिला लगीं. रम्या के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए उन्होंने लौन में लगी कुरसी पर बैठने का इशारा किया. ‘‘क्या मैं अपने बेटे से मिल सकती हूं्? क्या मैं उसे अपने साथ ले जा सकती हूं?’’ रम्या ने छूटते ही पूछा पर आखिरी वाक्य बोलते हुए खुद ही उस की जबान लड़खड़ाने लगी. डेरिक और रम्या ने देखा, मिस पोर्टर की आंखें अचानक छलछला गईं.

‘‘आप उस की जन्म देनेवाली मां हैं, पहला हक आप का ही है. वह अभी स्कूल से आता ही होगा. वह देखिए, आप का बेटा,’’ गेट की तरफ इशारा करते हुए मिस पोर्टर ने कहा. रम्या अचानक चौंक गई, उसे ऐसा लगा कि उस ने आईना देख लिया. हूबहू उस की ही तरह चेहरा, वही छोटी सी नुकीली नाक, हिरन सी चंचल बड़ी सी आंखें, पतले होंठ, घुंघराले काले बाल और बिलकुल उस की ही रंगत. ‘‘आओ बैठो, मैं ने तुम्हे बताया था न कि तुम्हारी मां आने वाली हैं. ये तुम्हारी मां रम्या हैं,’’ मिस पोर्टर ने प्यार से कहा. 14 वर्षीय उस बच्चे ने गरदन टेढ़ी कर रम्या को ऊपर से नीचे तक देखा और मिस पोर्टर की बगल में बैठ गया, ‘‘मौम, तुम्हारे पैरों का दर्द अब कैसा है, क्या तुम ने दवा खाई?’’

रम्या लालसाभरी नजरों से देख रही थी, जिस के लिए जीवनभर हिकारत और नफरत भाव संजोए रही, आज उसे सामने देख ममता का सागर हिलोरे मारने लगा. ‘‘बेटा, मेरे पास आओ. मैं ने तुम्हें जन्म दिया है. तुम्हें छूना चाहती हूं,’’ दोनों हाथ पसार रम्या ने तड़प के साथ कहा. बच्चे ने मिस पोर्टर की तरफ सवालिया नजरों से देखा. उन्होंने इशारों से उसे जाने को कहा. पर वह उन के पास ही बैठा रहा. ‘‘यदि आप मेरी जन्मदात्री हैं तो इतने वर्षों तक कहां रहीं? आप के होते हुए मैं अनाथ आश्रम में क्यों रहा?’’ बेटे के सवालों के तीर अब रम्या को आगोश में लेने लगे. बेबसी के आंसू उस की पलकों पर टिकने से विद्रोह करने लगे. उस मासूम के जायज सवालों का वह क्या जवाब दे कि तुम नाजायज थे, पर अब उसी को जायज बनाने, बेशर्म हो, आंचल पसारे खड़ी हूं. बेटा आगे बोला, ‘‘आप को मालूम है, मैं 5 वर्ष की उम्र तक फोस्टर होम में रहा.

मेरी उम्र के सभी बच्चों को किसी न किसी ने गोद लिया था. पर आप के द्वारा बख्शी इस नस्ल और रंग ने मुझे वहीं सड़ने को मजबूर कर दिया था.’’ ‘‘मैं वहां हफ्ते में एक बार समाजसेवा करने जाती थी. इस के अकेलेपन और नकारे जाने की हालत मुझे साफ नजर आ रही थी. फोस्टर होम की मदद से मैं ने इंडिया के कुछ एनजीओज से संपर्क साधा, जिन्होंने आश्वासन दिया कि शायद वहां इसे कोई गोद ले लेगा. मैं ले कर गई भी. कुछ लोगों से संपर्क भी हुआ. पर फिर मेरा ही दिल इसे वहां छोड़ने को नहीं हुआ, बच्चे ने मेरा दिल जीत लिया. और मैं इसे कलेजे से लगा कर वापस सिडनी आ गई,’’ मिस पोर्टर ने भर्राए हुए गले से बताया. ‘‘इस के जन्म के वक्त आप की मां ने आप के बारे में जो सूचना दी थी, उस आधार पर मुझे पता चला कि आप यहीं आस्ट्रेलिया में ही कहीं हैं.

यह भी एक कारण था कि मैं इसे वापस ले आई और मैं ने अपने कोखजाए की तरह इसे पाला. मन के एक कोने में यह उम्मीद हमेशा पलती रही थी कि आप एक दिन जरूर आएंगी,’’ मिस पोर्टर ने जब यह कहा तो रम्या को लगा कि काश, धरती फट जाती और वह उस में समा जाती. डबडबाई आंखों से उस ने शर्मिंदगी के भार से झुकी पलकों को उठाया. बच्चा अब मिस पोर्टर से लिपट कर बैठा था. मिस पोर्टर स्नेह से उस के घुंघराले बालों को सहला रही थीं. ‘‘आप ले जाइए अपने बेटे को. मैं इसे भेज, ओल्डएज होम चली जाऊंगी,’’ उन्होंने सरलता से मुसकराते हुए कहा. रम्या की आंखों में चमक आ गई, उस ने अपनी बांहें पसार दीं. ‘‘आज इतने सालों बाद मुझ से मिलने और मुझे अपनाने का क्या राज है?

आप यहीं थीं, जानती थीं कि मैं किस अनाथ आश्रम में हूं, फिर भी आप का दिल नहीं पसीजा? आज क्यों अपना मतलबी प्यार दिखाने मुझ से मिलने चली आईर्ं? लाख तकलीफें सह कर, मुसीबतों के पहाड़ टूटने के बावजूद इन्होंने मुझे नहीं छोड़ा और अब मैं इन्हें नहीं छोडूंगा.’’ बेटे के मुंह से यह सुन रम्या को अपनी खुदगर्जी पर शर्म आने लगी. ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’ डेरिक ने रम्या का हाथ थाम उठते हुए पूछा. ‘‘कीन, कीन पोर्टर है मेरा नाम.’’ ‘‘क्या कहा कर्ण. ‘कर्ण,’ हां यही होगा तुम्हारा नाम, वाकई तुम क्यों छोड़ोगे अपने आश्रयदाता को. पर मैं कुंती नहीं, मैं कुंती होती तो मेरे पांडव भी होते. मेरी भूल माफ करने लायक नहीं…’’ खाली गोद लौटती रम्या बुदबुदा रही थी और डेरिक हैरानी से उस की बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था.

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