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वर्जित फल : मालती की जिंदगी में राकेश के आने से क्या बदलाव आया

मालती ने जिस साल बीए का का इम्तिहान पास किया था, उसी साल से उस के बड़े भाई ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था. इस सिलसिले में राकेश का पता चला, जो इंटर कालेज, चंपतपुर में अंगरेजी पढ़ाता है. वे 2 भाई हैं. उन के पास 8 एकड़ जमीन है, जिस पर राकेश का बड़ा भाई खेती करता है. राकेश के घर वालों ने मालती को देखते ही शादी के लिए हां कह दी और शादी की तारीख तय करने के लिए कहा. उन की बात सुन कर मालती की मां ने कहा, ‘‘बहनजी, अभी लड़के ने तो लड़की देखी नहीं है. उन्हें भी लड़की दिखा दी जाए.

आखिर जिंदगी तो उन दोनों को ही एकसाथ गुजारनी है.’’ इस पर राकेश की मां ने जवाब दिया, ‘‘हमारा राकेश बहुत सीधा और संकोची स्वभाव का है. हम ने उस से लड़की देखने के लिए बारबार कहा, मगर उस ने हर बार यही कहा, ‘‘आप लोग पहले लड़की देख लीजिए. जो लड़की आप को पसंद होगी, वही मु?ो भी पसंद होगी.’’ उन की बात सुन कर सभी लोग राकेश की तारीफ करने लगे, केवल मालती ही मन मसोस कर रह गई. उसे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि क्या केवल लड़के को ही हक है कि वह अपना जीवनसाथी पसंद करे, लड़की को इस का हक नहीं है? उसे इतना भी हक नहीं है कि उसे जिस के साथ जिंदगी बितानी है, उसे शादी के पहले एक झगोलक देख ले.

वार में त्योहार का सा माहौल बन गया और देखते ही देखते बरात मालती के दरवाजे पर आ गई. मालती की सखियां उसे सजा कर जयमाल के लिए सजाए गए मंच की ओर ले कर पहुंचीं. मालती हाथों में वरमाला लिए सखियों के साथ जब मंच पर पहुंची, तो वर पर नजर पड़ते ही वह सन्न रह गई. हड्डियों का ढांचा सिर पर मौर धरे उस के सामने खड़ा था. मालती का चेहरा अपने वर को देख कर उतर गया. उस की इच्छा हुई कि वह जयमाल को तोड़ कर फेंक दे और वहां से भाग जाए. कैसेकैसे सपने देखे थे उस ने अपने जीवनसाथी के बारे में और यह कैसा जोड़ मिला है. मालती यह सब सोच ही रही थी, तभी उस की बड़ी बहन ने उस का हाथ कस कर दबा दिया. उस की चेतना लौटी और उस ने बु?ो मन से राकेश के गले में जयमाल डाल दी. वर को देख कर हर कोई उस पर टिप्पणी कर रहा था. उन की बात सुन कर कुछ जिम्मेदार औरतों ने हालात संभालते हुए कहा, ‘कुछ लोगों की सेहत शादी के बाद सुधर जाती है. जब पत्नी के हाथ का भोजन करेगा, तो उस की सेहत सुधर जाएगी.

शादी के बाद मालती जब ससुराल पहुंची, तो घर की अच्छी हालत देख कर उसे कुछ तसल्ली हुई. ससुराल में उस के रूपरंग की खूब तारीफ हुई. उस की ननद और जेठानी ने उस की सुहागरात के लिए फूलों की सेज तैयार कराई और रात के साढ़े 9 बजे वे दोनों मालती के साथ हंसीमजाक करते हुए उस के कमरे में छोड़ आईं. रात 10 बजे राकेश ने कमरे में प्रवेश किया, तो उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. राकेश ने उस का घूंघट उठाया, तो मालती का खूबसूरत चेहरा देख कर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह देर तक मालती का मुंह चूमता रहा और उस के शरीर को प्यार से सहलाता रहा. जब राकेश ने पहली बार संबंध बनाया, तो वह एक मिनट भी नहीं टिक सका. इस के बाद उस रात को उस ने 2 बार संबंध बनाया, पर दोनों बार वह एक मिनट से आधे मिनट के अंदर ही पस्त हो गया. मालती सारी रात प्यासी मछली की तरह छटपटाती रही. मालती 5 दिन तक ससुराल में रही और हर रात उसे ऐसे ही दुखदायी हालात से गुजरना पड़ा. मालती जब अपने मायके पहुंची, तो अपनी मां और भाभी के गले लग कर खूब रोई.

उस की भाभी द्वारा रोने की वजह बारबार पूछे जाने पर उस ने सारी बात उन्हें बता दी. 2 महीने बाद राकेश बड़े भाई सुरेश के साथ ससुराल गया और मालती को विदा करा कर ले आया. घर में परदा प्रथा होने के चलते भयंकर गरमी में भी मालती को राकेश के साथ बंद कमरे में ही सोना पड़ता था. उस के कमरे के आगे बने बरामदे में उस के जेठजेठानी सोते थे और उस के सासससुर छत पर सोते थे. एक रात जब राकेश एक मिनट में अपनी मर्दानगी दिखा कर खर्राटे भर रहा था और मालती काम की आग में जलते हुए सोने की कोशिश कर रही थी, तभी बरामदे में चारपाई के चरमराने और औरत के सीत्कार की आवाज उसे सुनाई दी. यह आवाज तकरीबन 20 मिनट तक उस के कानों में गूंजती हुई उस की तड़प को बढ़ाती रही. अगले दिन फुरसत के पलों में मालती ने अपनी जेठानी को बातों ही बातों में आभास करा दिया कि कल रात जब वह जेठजी के साथ धमाचौकड़ी मचा रही थी, तो वह जाग रही थी.

मालती की जेठानी यह सुन कर शर्म से पानीपानी हो गई, फिर सफाई देते हुए बोली, ‘‘क्या करूं, रात में भोजन करने के बाद उन्हें होश ही नहीं रहता है. मेरे शरीर को तो वे रूई की तरह धुन कर रख देते हैं. उस समय इन के शरीर में बिजली जैसी फुरती और घोड़े जैसी ताकत आ जाती है. घंटों छोड़ते ही नहीं. मैं तो बेदम हो जाती हूं और अगले दिन घर का काम निबटाने में भी मुश्किल हो जाती है.’’ जेठानी की बात सुन कर मालती का मन हुआ कि वह अपनी छाती पीट ले, मगर उस ने हंस कर कहा, ‘‘तुम जेठजी को मनमानी करने दो, घर का काम मैं संभाल लूंगी.’’ इस चर्चा का नतीजा यह हुआ कि उस रात मालती की जेठानी बरामदे में न लेट कर अपने कमरे में जा कर लेट गई. रात में जब उस के जेठ ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘वहां क्यों गरमी में सड़ रही हो. यहां बाहर ठंडी हवा में क्यों नहीं लेटती?’’ ‘‘आज मैं कमरे में ही लेटूंगी. तुम्हें वहां लेटना हो तो लेटो,’’ जेठानी ने कमरे से ही जवाब दिया. मालती अपने कमरे में लेटी उन दोनों की बातचीत सुन रही थी. राकेश मालती को कुछ क्षणों में अपनी मर्दानगी दिखा कर हांफता हुआ एक तरफ को लुढ़क गया और जल्दी ही गहरी नींद में सो गया. मगर मालती को आधी रात तक नींद ही नहीं आई. इस बीच वह अपने कमरे से बाहर निकली. बरामदे में उस के जेठ खर्राटे भर रहे थे.

बाथरूम से जब वह वापस लौटी, तो जेठ की चारपाई के पास आ कर उस के पैर ठिठक गए. उस ने एक क्षण रुक कर पूरे घर का जायजा लिया. घोर सन्नाटा पसरा हुआ था. उसे इतमीनान हो गया कि सभी लोग गहरी नींद में सो रहे हैं. वह हिम्मत कर के सुरेश की चारपाई पर उस से चिपक कर लेट गई. नशे में चूर सुरेश की नींद जल्दी ही खुल गई और उस ने मालती को दबोच कर संबंध बनाना शुरू कर दिया. जल्दी ही मालती की ?ि?ाक दूर हो गई और वह भी सुरेश का साथ देने लगी. जब सुरेश की पकड़ धीमी पड़ी, तब तक मालती संतुष्ट हो चुकी थी. पसीने से लथपथ सुरेश ने जब उसे छोड़ा, तभी उस की नजर मालती के चेहरे पर पड़ी. उस ने चौंक कर कहा, ‘‘तुम…?’’ तभी मालती ने सुरेश के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप ने एक प्यासी की आज प्यास बुझाई है. आप के भाई तो किसी लायक हैं नहीं, मजबूरन मु?ो अपनी प्यास बु?ाने के लिए आप के पास आना पड़ा.’’ मालती चुपचाप अपने कमरे में आ कर सो गई. इस के बाद से तो वह हर दूसरेतीसरे दिन रात को उठ कर सुरेश के पास जा कर अपनी प्यास बुझाने लगी.

सुरेश ने 2-3 बार तो संकोच का अनुभव किया, मगर फिर वह भी हर रात को मालती का इंतजार करने लगा. उस की अपनी पत्नी तो बच्चे पालने में ही परेशान रहती थी, फिर उम्र के साथ ही उस का जोश भी कम होता जा रहा था. सर्दियों में मालती ने सुरेश से नींद की गोलियां मंगवा लीं और रोजाना खाने में नींद की गोलियां डाल कर राकेश और अपनी जेठानी को देने लगी. सुरेश अब दिनभर चौपाल में पड़ा सोता रहता और रात में राकेश के सोने के बाद उस के कमरे में घुस जाता और मालती के साथ मजे लेता.

मगर, एक रात सुरेश की मां जब आंगन में शौचालय जा रही थीं, तभी सुरेश को मालती के कमरे से निकल कर अपने कमरे में जाते हुए देख लिया. वे दबे पैर मालती के कमरे में गईं, राकेश खर्राटे भर रहा था. उन्होंने मालती को बाल पकड़ कर उठाया और बोलीं, ‘‘वर्जित फल खाते हुए शर्म नहीं आई तु?ो कुलच्छिनी?’’ मालती चोरी पकड़े जाने पर पहले तो सकपकाई, मगर फिर संभल कर बोली, ‘‘भूख पर एक सीमा तक ही काबू रखा जा सकता है अम्मां. वर्जित फल स्वाद के लिए नहीं, मजबूरी में खाती हूं. तुम्हारे बेटे को तो औरत की जरूरत ही नहीं है. मैं उन के सहारे नहीं रह सकूंगी अम्मां.’’ उन दोनों की बातचीत सुन कर राकेश भी जाग गया था. उसे अपनी कमजोरी का अहसास तो था ही, इसीलिए वह चुपचाप सिर ?ाका कर कमरे के बाहर निकल गया.

अदालतों के रुख की मारी हिंदू युवतियां

वर्ष 2020 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सिंदूर और चूड़ी को ले कर एक फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नी के सिंदूर लगाने और चूड़ी पहनने से इनकार करने का मतलब है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी आगे जारी नहीं रखना चाहती है और यह तलाक दिए जाने का आधार है.

क्या है यह पूरा मामला, जानते हैं-

एक व्यक्ति जिस की शादी 2012 में हुई थी और कुछ सालों में ही पतिपत्नी अलग हो गए थे. उस ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में तलाक के लिए याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उस की पत्नी चूड़ी, मंगलसूत्र नहीं पहनती है और न ही सिंदूर लगाती है. उस पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एक निर्णय दिया और कहा कि अलग रह रही पत्नी द्वारा ‘थाली’ यानी मंगलसूत्र को हटाया जाना पति के लिए एक मानसिक क्रूरता समझा जाएगा.

यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने पति के तलाक की अर्जी को मंजूरी दे दी थी लेकिन महिला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उस ने अपने गले की चेन हटाई थी, मंगलसूत्र नहीं.

वहीं, महिला की वकील ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा था कि मंगलसूत्र पहनना आवश्यक नहीं है और इसलिए पत्नी द्वारा इसे हटाने से वैवाहिक संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन चीफ जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने पत्नी के सिंदूर लगाने से इनकार को एक साक्ष्य के तौर पर माना.

न्यायिक बैंच ने अपने फैसले में कहा कि, ‘हिंदू रीतिरिवाजों के हिसाब से शादी करने वाली महिला अगर सिंदूर, मंगलसूत्र और चूड़ी नहीं पहनती है, तो ऐसा करने से वह अविवाहित लगेगी और प्रतीकात्मक तौर पर इसे शादी से इनकार माना जाएगा. ऐसा करना महिला के इरादों को साफ जाहिर करता है कि वह पति के साथ अपना वैवाहिक जीवन आगे जारी नहीं रखना चाहती है.’

कोर्ट ने यह भी कहा कि इन हालात में पति का पत्नी के साथ रहना महिला द्वारा पति और उस के परिवार को प्रताड़ना देना ही माना जाएगा.

एक आदर्श स्त्री की परिभाषा क्या है, आजकल अदालतों में इस का खूब बखान हो रहा है. कुछ वर्षों पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस परिभाषा को स्पष्ट किया था और कहा था कि आदर्श स्त्री वही है जो बलात्कार के बाद सोए नहीं, बल्कि तुरंत इस अपराध की इत्तेला करे.

बनारस की एक स्टार्टअप कंपनी ने लड़कियों को आदर्श बहू बनने की ट्रेनिंग देने की पेशकश कर डाली. ऐसी ट्रेनिंग गीताप्रैस वाले कई सालों से दे रहे हैं. उन की पुस्तकों के नाम पढ़ कर ही आप समझ जाएंगे, जैसे ‘नारीधर्म’, ‘स्त्री के लिए जीवन के आदर्श’, ‘दांपत्य जीवन के आदर्श’, ‘गृहस्थ में कैसे रहें’ आदिआदि. ऐसा ही एक आदेश गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी सुना डाला कि अगर एक विवाहित महिला सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं पहनती, तो इस का मतलब है वह अपने शादीशुदा जीवन में खुश नहीं है.

2018 में पुणे में एक महिला से एक पुलिस वाले ने पूछा था कि आप ने कोई गहना क्यों नहीं पहना है? सिंदूर क्यों नहीं लगाया है? एक पारंपरिक गृहिणी की तरह कपड़े क्यों नहीं पहने हैं? 2018 में ही आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के गांव थोकलापल्ली की औरतों को दिन में नाइटी न पहनने का फरमान सुनाया गया था.

एक बार किसी ने कहा था कि शादी के बाद लड़कियां सिंदूर और चूड़ियां नहीं पहनतीं तो लगता ही नहीं है कि वे शादीशुदा हैं. यानी, लड़कियों के लिए शादीशुदा दिखना जरूरी है. यह दिखाना जरूरी है कि उन के शरीर पर एक पुरुष का कब्जा है. सिंदूर और मंगलसूत्र के जरिए यह दिखाना होता है कि उक्त महिला किसी की संपत्ति है. सो, वह किसी और के लिए उपलब्ध नहीं है. अदालत ने भी इस बात को पुख्ता कर दिया कि शादी के बाद महिलाओं को सिंदूर लगाना और मंगलसूत्र पहनना ही पहनना है, वरना माना जाएगा कि उन्हें शादी में विश्वास नहीं है.

गुवाहाटी कोर्ट ने महिला को अत्याचारी भी बताया क्योंकि वह अपनी सास की सेवा नहीं करती. यानी कि उन्हें बहू नहीं, नौकरानी चाहिए थी अपने लिए?

महिलाओं के खिलाफ फैसला सुनाने वाली ज्यूडीशियरी खुद एक पुरुषप्रधान है, तो वह कहां महिलाओं की भावना को समझ पाएगी.

अपने एक प्रवचन के दौरान बागेश्वर बाबा धीरेंद्र शास्त्री ने मंगलसूत्र को ले कर कहा था, ‘किसी स्त्री की शादी हो गई हो तो उस की 2 पहचान होती हैं- मांग का सिंदूर और गले का मंगलसूत्र. अगर कोई महिला मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहने न दिखे, तो समझ लो प्लौट खाली है. और अगर किसी महिला के मांग में सिंदूर भरा दिखे और गले में मंगलसूत्र लटका दिख जाए, तो समझो उस प्लौट की रजिस्ट्री हो चुकी है.’

बाबा के इस बयान पर सोशल मीडिया पर महिलाओं का गुस्सा फूटा था. लेकिन आज तक बाबा का कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया.

पीएम मोदी की एक चुनावी रैली में मंगलसूत्र चर्चा का विषय बना रहा. चुनावी सभा में मंगलसूत्र का जिक्र होने का अर्थ है, एक तरीके से पूरे समाज को आवाज देना है, क्योंकि छाप-तिलक और कंठीमाला से ज्यादा हमारी रोज की जिंदगी का सब से अभिन्न अंग है मंगलसूत्र, जो उत्तर से ले कर दक्षिण तक, हरेक विवाहित महिला के गले में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता मिलेगा फिर चाहे वह सोने का हो, पीतल का या सिर्फ धागे में पिरोये काले मोतियों से बना हो. राजतिलक की चाहत ने चुनावी रण के दांवपेंच अचानक बदल दिए. मोदी से पहले मंगलसूत्र पहुंच गया. देश की करोड़ों महिलाओं का मंगलसूत्र चुनावी रण में भाजपा का नया मुद्दा बन कर उभरा.

कानून की नजर में विवाह की वैधता

कोर्ट का यह अजीबोगरीब फैसला शादी की अस्मिता पर सवाल तो उठा रहा है लेकिन हम यहां जानते हैं कि कानून की नजर में विवाह कब वैध माना जाता है?

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 5 के अनुसार-

* विवाह के लिए किसी भी व्यक्ति या पार्टी को पहले से शादीशुदा नहीं होना चाहिए, यानी कि शादी के समय किसी भी पार्टी में पहले से ही जीवनसाथी नहीं होना चाहिए. इस प्रकार, यह अधिनियम बहूविवाह पर प्रतिबंध लगाता है.

* शादी के समय यदि कोई पक्ष बीमार है तो उस की सहमति वैध नहीं मानी जाएगी, भले ही वह वैध सहमति देने में सक्षम हो लेकिन मानसिक विकारग्रस्त नहीं होना चाहिए जो उसे शादी के लिए और बच्चों की जिम्मेदारी के लिए अयोग्य बनाता है. दोनों में से कोई पक्ष पागल भी नहीं होना चाहिए.

* दोनों पक्षों में किसी की उम्र विवाह के लिए कम नहीं होनी चाहिए.

* दोनों पक्षों को सपिंडों या निषिद्ध संबंधों की डिग्री के भीतर नहीं होना चाहिए, जब तक कि कोई भी कस्टम प्रशासन उन्हें इस तरह के संबंधों के विवाह की अनुमति नहीं देता.

इस के अलावा एक्ट में यह कहीं पर भी नहीं लिखा है कि यदि कोई विवाहित महिला मंगलसूत्र या सिंदूर नहीं पहनती है तो यह पति के साथ क्रूरता का प्रतीक है और इस का यह मतलब हुआ कि महिला शादी को नहीं मानती है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला ने अपनी तरफ से शादी निभाने का कोई प्रयास नहीं किया. लेकिन सवाल यह उठता है कि शादी का रिश्ता पतिपत्नी दोनों के बीच का होता है, तो फिर रिश्ता निभाने का सारा बोझ औरतों के सिर ही क्यों? विवाहित पुरुषों के लिए शादी का कोई सिंबल क्यों नहीं है, ताकि लग सके कि फलां पुरुष भी शादीशुदा है. केवल महिलाओं के लिए ही सारे नियम कानून क्यों बनाए गए हैं? जवाब कौन देगा, क्योंकि यह पुरुषप्रधान देश जो है.

मनुस्मृति में महिलाओं के लिए लिखा गया है कि एक लड़की को हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहना चाहिए. विवाह पश्चात पति द्वारा उस का संरक्षण होना चाहिए और पति के बाद अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए. लेकिन किसी भी स्थिति में एक महिला आजाद नहीं हो सकती. यह बात मनुस्मृति के 5वें अध्याय के 148वें श्लोक में लिखी गई है. इस के अलावा मनुस्मृति मे दलितों और महिलाओं के बारे में काफीकुछ लिखा गया है जो अकसर विवादों को जन्म देता है.

वैदिक पद्धति और उपनिषदों में कहीं पर भी मंगलसूत्र का जिक्र नहीं है. लेकिन इसे बाद में रूढ़िवादी पुजारियों द्वारा पेश किया गया जब हम हिंदू बन गए. इस प्रणाली को पौराणिक पद्धति या पुराणों/पौराणिक शास्त्रों द्वारा अपनाई गई प्रणाली के रूप में जाना जाता है. हिंदू धर्म के बाद के हिस्से में वैदिक धर्म की उपेक्षा की गई और हिदुओं ने इसे पौराणिक में बदल दिया. हां, विवाह में सात फेरों और सिंदूर का वर्णन जरूर मिलता है.

एक विवाह में बंधे रहने के लिए चूड़ी, सिंदूर और मंगलसूत्र से ज्यादा आपसी समझ, प्यार और विश्वास की जरूरत होती है. मंगलसूत्र और चूड़ी जैसी चीजें प्रेम की गारंटी नहीं होतीं. मंगलसूत्र और चूड़ी, सिंदूर पहनना न पहनना एक महिला का खुद का निर्णय होना चाहिए. लेकिन यह बात मद्रास हाईकोर्ट समझ नहीं पाई और इसे पति के खिलाफ मानसिक क्रूरता की पराकाष्ठा बताते हुए अपना फैसला सुना दिया.

कितनी ही महिलाओं को सिंदूर से एलर्जी और चकत्ते जैसे हो जाते हैं, इसलिए वे इसे मांग में नहीं भरती हैं. पहले सिंदूर हर्बल सामग्री से बनाया जाता था लेकिन आजकल इसे लाल शीशा और पारा के साथ तैयार किया जाता है, जो महिलाओं के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है. ऐसे सिंदूर लगाने से बाल झड़ने की समस्या, खुजली और इस में मौजूद मरकरी सल्फाइड तत्त्व कैंसर का कारण बन सकता है.

इस के अलावा, आज की पढ़ीलिखी एजुकेटेड महिलाएं बड़ीबड़ी कंपनियों में जौब करती हैं, जहां औफिसवियर के साथ मंगलसूत्र और सिंदूर मैच नहीं करता, इसलिए वे इसे नहीं पहनती हैं, तो इस का मतलब यह कैसे हो गया कि वे अपने पति को प्रताड़ित कर रही हैं? सच तो यह है कि इस पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को सिंदूर, चूड़ी, मंगलसूत्र जैसी चीजों में बांध रखा गया है लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि अदालतों का रुख महिलाओं के खिलाफ क्यों है?

अभी हाल ही में एप्पल कंपनी, फौक्सकौन ने भारत की विवाहित महिलाओं को आईफोन में नौकरी देने से मना कर दिया यह कहते हुए कि शादीशुदा महिलाओं के पास ज्यादा पारिवारिक जिम्मेदारियां होती हैं और शादी के बाद उन के बच्चे होते हैं. विवाहित महिलाओं का ज्वैलरी पहनना भी प्रोडक्शन को प्रभावित कर सकता है. मतलब, महिलाओं की तो कोई मरजी है ही नहीं. वे क्या पहनें, क्या न पहनें, परिवार-सासससुर का ध्यान रखें न रखें, यह तय वे नहीं कोई और करेगा और वे मूकबधिरों की तरह देखती रहेंगी.

भारतीय सनातन परंपरा में जन्म से ले कर मृत्यु तक के बीच 16 संस्कार के विधान हैं. इन 16 संस्कारों में विवाह संस्कार सब से खास माना जाता है. यह दो परिवारों के लिए उन के निजी उत्सव, उत्साह और समय के साथसाथ संपन्नता को प्रदर्शित करने का भी एक जरिया रहा है. बल्कि, राजामहाराजाओं के युग में तो विवाह संस्कार कूटनीति का भी हिस्सा रहा है. इस के जरिए बिना किसी युद्ध और शक्ति प्रदर्शन के समाज को सांकेतिक भाषा में ही अपनी ताकत का एहसास करा दिया जाता था.

भारत का कानून मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानता

मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा ही भारतीय समाज को अनुचित लगती है. समाज इस बात को अपने गले ही नहीं उतार पाया कि आखिर पति की मरजी को कोई पत्नी अस्वीकार भी कर सकती है. जहां पत्नी की इच्छा का कोई मतलब ही न हो, वहां इसे अपराध कैसे माना जा सकता है? शादी का मतलब ही है एक पति का अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार. ऐसी सोच के दायरे में भारत में अब भी मैरिटल रेप अपराध नहीं माना जाता है. कानून ने पतियों को इस से मुक्त रखा है, जबकि दुनिया के 150 देशों में इसे अपराध मानते हुए कानून बन चुके हैं. जब भी ऐसा मामला भारतीय न्यायालय के सामने आया, संवेदनशीलता बरती गई. लेकिन महिलाओं के दर्द को किसी ने नहीं समझा, न देश ने, न समाज और परिवार ने और न ही देश के कानून ने.

एक अच्छा लोकतंत्र वही होता है जो अपने नागरिकों की समस्याओं को समझे. उसे प्रताड़ित होने और रोनेकलपने से पहले ही उस के अधिकार दे दे, जो एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी होता है.

बलात्कारी से करो शादी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत जेल में बंद एक आरोपी को अंतरिम जमानत दे दी ताकि वह शिकायतकर्ता, जिस का उस ने रेप किया था, से शादी कर सके. कोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील के बावजूद आरोपी को जमानत की अनुमति दे दी कि लड़की की अभी शादी की उम्र नहीं हुई है, क्योंकि वह अभी केवल 17 साल की है.

बलात्कार कानून का एक नियम है जिस के तहत बलात्कार, यौन उत्पीड़न, वैधानिक बलात्कार, अपहरण या इसी तरह का कोई अन्य कृत्य करने वाले व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया जाता है यदि वह पीड़ित महिला से विवाह कर लेता है, या कुछ अधिकार क्षेत्रों में कम से कम उस से विवाह करने की पेशकश जरूर करता है. ‘बलात्कारी से विवाह करो’ कानून अभियुक्त के लिए अभियोजन या दंड से बचाने का एक कानूनी तरीका है.

‘सहमति से बनाए गए संबंधों के बाद अगर कोई शादी से इनकार कर दे तो इसे रेप नहीं माना जाएगा,’ यह टिप्पणी केरल हाईकोर्ट की है. रेप के आरोप में गिरफ्तार एक वकील की जमानत पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बेचू कुरियन थौमस की बैंच ने यह बात कही थी. साथ ही, आरोपी को जमानत भी दे दी थी.

केरल हाईकोर्ट के मामले में महिलावादी लेखिका कविता कृष्णन कहती हैं कि कोर्ट का यह फैसला सही है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि लड़कियों के साथ गलत नहीं होता. कई बार लड़के बिना बताए दूसरी शादी कर लेते हैं, रिश्ता तोड़ देते हैं या लड़कियों को गलत तरीके से ट्रीट करते हैं. लेकिन रिश्ते में चीटिंग कानूनी मसला नहीं बल्कि सामाजिक और पितृसत्तात्मक नजरिया का मामला है.

विजातीय विवाह पर सवाल

2020 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्याय’ जारी किया गया था. देश में कई अन्य राज्यों की सरकारें भी ऐसे ही भारीभरकम प्रावधानों को लागू करने की प्रक्रिया में हैं. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी विविध बल सीआरवाई, प्रभावशाली, धोखाधड़ी से या विवाह के उद्देश्य से किए जाने वाले किसी भी धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है, साथ ही, इस तरह के विवाह को अवैध घोषित किए जाने का प्रावधान भी करता है और धर्मांतरण के तहत एक गैरजमानती अपराध माना जाता है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्मांतरण की प्रवृत्ति को ले कर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि धार्मिक सभाओं में धर्मांतरण की प्रवृत्ति जारी रही तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी. इसलिए धर्मांतरण करने वाली धार्मिक सभाओं पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए. यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने हिंदुओं को ईसाई बनाने के आरोपी मौदहा, हमीरपुर के कैलाश की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक एक भारतीय नागरिक को अपनी पसंद के किसी भी धर्म को स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त है. जबकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया कानून किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के चुनावों में हस्तक्षेप कर के उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी यह धर्मांतरण निषेध नीति महिलाओं के किसी भी रिश्तेदार को उस के विवाह की वैधता को चुनौती देने की अनुमति देता है.

लेकिन ऐसी स्थिति में प्रभाव उलटा पड़ेगा जिस के तहत धर्मांतरण और विवाह के लिए महिला की सहमति होने की गवाही को अनदेखा किया जाएगा.

सदियों से पितृसत्तात्मक सोच यह रही है कि महिलाओं को स्वतंत्र नहीं होने देना है. उन्हें नियंत्रण में रखना है. महिलाओं के जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण बातों पर उन की सहमति जरूरी नहीं मानी जाती है और उन्हें अपने जीवन के निर्णय लेने के अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है.

ऐतिहासिक रूप से विवाह को महिलाओं की कामुकता को नियंत्रण करने, जातिगत जातियों को बढ़ावा देने और महिलाओं को उन की स्वात्यत्ता का प्रयोग करने से रोकने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाता रहा है. इस प्रकार के सांप्रदायिक दुष्प्रचार का महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में कोई योगदान नहीं होता है, बल्कि यह उन के पैरों में बेड़ियां डालने का काम करता है.

देश में क्यों आसान नहीं है एक महिला के लिए तलाक लेना

समाज की सोच आज भी उसी ढर्रे पर है जहां महिलाओं को यह समझाइश दी जाती है कि भले ही पति से नहीं बन रही है, पर साथ रहो, वरना समाज तुम पर ही थूकेगा. लेकिन बात तो यह है कि महिलाओं को दी गई हर इंच आजादी के लिए खतरा है. लगभग हर समाज के नियम महिलाओं के हितों के विरुद्ध है. अंतर बस इतना है कि कोई नियम ज्यादा खिलाफ है और कोई कम.

हमारे समाज में शादी को उम्रभर के बंधन की तरह देखा जाता है. शादी में हिंसा और उत्पीड़न की वजह से भले ही दरार पड़ने लगे पर महिलाओं को परंपरा के नाम पर बरदाश्त करने की सलाह दी जाती है. मुश्किल शादियों में फंसी महिलाओं से अकसर यह कहा जाता है कि अलग हुए तो समाज क्या कहेगा? परिवार व समाज के दबाव के कारण ही महिलाएं एक असहनीय रिश्ते की गिरफ्त में कैद हो कर घुटघुट कर जीने को मजबूर हो जाती हैं. अगर कोई महिला शादी के बंधन को तोड़ कर तलाक लेने का फैसला लेती है तो समाज उसे ही गलत ठहराने का प्रयास करता है.

मुआवजे बिना गुजारा

तलाक लेने के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं होता, क्योंकि उन्हें बहुत कम मेंटिनैंस मिलता है या मिलता ही नहीं है. 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई, जिस में गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए एक शख्स गायब हो गया. उसे खोजने के लिए बनी पुलिस टीम भी उस का कुछ पता नहीं लगा पाई. तलाक की चाह में पति एलिमनी पर हामी तो भर देते हैं, लेकिन डायवोर्स मिलते ही कहीं गायब हो जाते हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष भदौरिया कहते हैं कि तलाक के बाद पति गुजारा भत्ता से बचने के लिए तरहतरह के जुगाड़ लगाते हैं.

राजकोट की रहने वाली 52 साल की मीना बेन का कहना है कि उस के 2 युवा बेटे हैं. पति सरकारी जौब में हैं. सबकुछ बढ़िया चल रहा था, लेकिन असल में पति का किसी और औरत से चक्कर चल रहा था. जब महिला ने इस बात पर पति से सवाल किया तो वह उखड़ गया और बच्चों को छोड़ कर घर से चला गया. जातेजाते उस ने धोखे से तलाकपेपर पर साइन भी ले लिया. महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया.

गुजरात हाईकोर्ट ने उस के हक में फैसला भी सुनाया. लेकिन उसे अब तक न्याय नहीं मिला. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 14 वर्षों से वह महिला गुजारा भत्ता पाने के लिए लड़ रही है. मीना बेन एकलौती महिला नहीं है जो गुजारा भत्ता के लिए एड़ियां रगड़ रही है. ऐसे ढेरों मामले हैं.
भारत में विवाह समाप्त करना अधिकांश व्यक्तियों के लिए दर्दनाक होता है, लेकिन महिलाओं के लिए यह स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जिन्हें समझौते की शर्तों को समझना पड़ता है.

मिताली अपने 11 साल की शादी से ऊब चुकी है. वह कहती है कि पति की ज्यादतियां अब उस की बरदाश्त के बाहर हैं. न तो वह अपने पति से लड़ना चाहती है और न ही उसे उस से कोई गुजारा भत्ता चाहिए. वह, बस, इस अशांत विवाह से बाहर निकलना चाहती है.

हिंदू विवाह अधिनियम जैसे कुछ व्यक्तिगत कानूनों के तहत पति भी भरणपोषण के लिए क्लेम कर सकता है, लेकिन यह कानून केवल निर्दिष्ट धर्मों से संबंधित व्यक्तियों को भरणपोषण के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है.

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 में भी भरणपोषण का प्रावधान है. यह एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है जिस के तहत सभी धर्मों की महिलाएं भरणपोषण के लिए आवेदन कर सकती हैं.

एक वरिष्ठ वकील संध्या राजू का कहना है कि ‘धारा 125 सीआरपीसी का मुख्य उद्देश्य तलाक के बाद महिला को बेसहारा होने से बचाना है. इसलिए जब कोई महिला भरणपोषण के लिए अदालत जाती है तो बहुत उम्मीद के साथ जाती है. और अदालत ज्यादातर मामलों में सहायक भी रही है. लेकिन भरणपोषण आदेश का प्रभावी क्रियान्वयन हमेशा उस पुरुष पर निर्भर करता है जिसे भुगतान करना होता है.

साल 2020 में टाइम्स ग्रुप के ‘मुंबई मिरर’ के लिए चित्रा सिन्हा की किताब ‘डिबेटिंग पैट्रिआर्की, द हिंदू कोड बिल कोंटरोवरसी इन इंडिया (1941-1959) पर एक आर्टिकल में लिखा था, जिस में उन्होंने तलाक के अधिकार के लिए महिलाओं का संघर्ष बताया था. ऐसा संघर्ष जो जारी है. वजह है कि भले ही कानून ने महिलाओं को अधिकार दिए हैं लेकिन अदालत की लंबी प्रक्रिया और समाज का दबाव तलाक लेना मुश्किल बना देता है. कठिनाई महिला-पुरुष दोनों के लिए है पर महिलाओं के लिए थोड़ा ज्यादा ही.

यह किताब हिंदू कोड बिल पर है जिस में हिंदू महिलाओं को तलाक का अधिकार देने की मांग की गई थी. चित्रा सिन्हा की इस किताब पर विरोध के स्वर भी उठे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से बुलाई गई बैठक में एक वक्ता कथित तौर पर बोले थे कि यह बिल हिंदू समाज पर एटम बम है. वहीं एक अखबार के संपादक इस की तुलना विभाजन से करते हैं.

उसी बैठक में बैठे एक नेता कहते हैं कि तलाक के अधिकारों से गरीब का जीवन मुश्किल हो जाएगा. उन्हें अदालत में जाना पड़ेगा और वकील करना पड़ेगा.

सच तो यही है कि आज भी हमारे भारतीय समाज में महिलाओं के लिए तलाक लेना आसान नहीं है. तलाक के बाद भी एक महिला को ही समाज को जवाब देना पड़ता है, पुरुष को नहीं. यह एक गहरी सोच है कि स्त्री चाहे पद और पैसे में कितनी ही बड़ी क्यों न हो, लेकिन वह रहेगी पुरुष से नीचे ही.

हमारे समाज में जहां एक लड़के के जन्म पर खुशी मनाई जाती है वहीं एक लड़की के जन्म पर मातम छा जाता है. लड़की के जन्म के बाद उस के बचपन से ही मातापिता पैसे जोड़ने लगते हैं ताकि उसे दूसरे घर भेजा जा सके. उसे शिक्षित करने, कैरियर बनाने या खुद से जीवन जीने से हतोत्साहित करना, उस से कहना कि वह तो पराया धन है और एक दिन यह घर छोड़ कर चली जाएगी आदि सब कह कर मातापिता एक लड़की को बचपन से ही यह एहसास दिला देते हैं कि वह इस घर के लिए पराई अमानत है और बड़ी होने के बाद उसे दूसरे घर जाना है.

लड़की को एक संपत्ति की तरह ट्रीट किया जाता है. जताया जाता है कि वह किसी एक पुरुष की संपत्ति है जिसे शादी के बाद उसे सौंप दिया जाएगा और फिर वह उसे चाहे जैसे इस्तेमाल करे. शादी के बाद एक महिला का कर्तव्य पति की सेवा करना और उस का वंश बढ़ाना मात्र ही रह जाता है. आज भले ही समाज कई चीजों के प्रति दृष्टिकोण बदल रहा है लेकिन महिलाओं को पुरुष से नीचे रखने की सोच नहीं बदली है.

एमपी हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है. साथ ही, हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि चूंकि वैवाहिक बलात्कार आईपीसी के तहत अपराध नहीं है, इसलिए पत्नी की सहमति महत्त्वहीन हो जाती है.

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की बैंच ने कहा कि यदि एक पत्नी वैध विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है तो पति द्वारा अपनी पत्नी (15 साल से ऊपर) के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध बलात्कार नहीं होगा. बता दें कि अक्तूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इंडिपेंडैंट थौट बनाम यूनियन औफ इंडियन (2017) के फैसले में नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार की श्रेणी में लाने के लिए धारा 375 के अपवाद 2 में उम्र को 18 साल के बजाय 15 साल कर दिया था.

बालविवाह अब भी जारी

बालविवाह को ले कर सरकार ने भले ही सख्त कानून बनाए हों और सजा का प्रावधान भी रखा हो लेकिन बालविवाह आज भी बेरोकटोक जारी है.

जिस उम्र में लड़कियां पढ़नेलिखने और जिंदगी में कुछ कर गुजरने के सपने देखती हैं, उस नाजुक उम्र में लड़कियों की शादी उस से बड़े उम्र के पुरुष से करा दी जाती है और फिर उसे बच्चे पैदा करने को मजबूर किया जाता है. लेकिन लोग छोटी उम्र में मां बनाने के जोखिम को समझ नहीं पाते हैं.

एक निजी जैनल ने उन इलाकों का रुख किया जहां औरतों की शादी होते ही उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझा जाता. उम्र 16 की हो या 18 की, शादी के 9 महीने बाद से उसे मां बनाने के लिए मजबूर किया जाने लगता है. और अगर किसी कारणवश लड़की मां नहीं बन पाती है तो उस के साथ मारपिटाई शुरू हो जाती है. धमकी दी जाती है कि अगर वह मां नहीं बनी तो उस की शादी टूट जाएगी. और इसी डर से लड़कियां कम उम्र में मां बनने को मजबूर हो जाती हैं यह सोच कर कि कहीं उस की शादी न टूट जाए, पति उसे घर से न निकाल दे.

सीमा की शादी 15 साल की उम्र में कर दी गई और शादी के अगले साल यानी 16 साल की उम्र में उस के पेट में बच्चा आ गया. लेकिन वह बच्चा उस के पेट में ठहर नहीं पाया. ऐसे कर के 5 बार उस का मिसकैरेज हो चुका है. वह कहती है कि अब उस का शरीर पहले जैसा नहीं रहा, काफी कमजोर हो चुका है. लेकिन फिर भी उसे मां बनना है नहीं तो उस का पति उसे छोड़ देगा. यह कहते हुए उस के आंखों से आंसू ढलक पड़ते हैं.

20 साल की सावित्री की शादी को 4 साल हो चुके हैं लेकिन अब तक वह मां नहीं बन पाई है. वह अपना इलाज किसी डाक्टर से न करवा कर एक तांत्रिक से झाड़फूंक करवा रही है ताकि वह मां बन सके और उस का पहला बच्चा बेटा ही पैदा हो क्योंकि उस की सास और पति ऐसा चाहते हैं.

यूपी के एक गांव की रहने वाली मालती की शादी को 9 साल हो चुके हैं. वह कहती है कि शादी के एक साल बाद से ही ताने शुरू हो गए कि अब तक वह पेट से क्यों नहीं हुई. जैसेजैसे साल आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे पति का अत्याचार भी बढ़ता चला गया. शराब के नशे में चूर पति उसे इस बात की धमकी देता था कि अगर वहवो उसे बच्चा नहीं दे सकती तो उसे धक्के मार कर इस घर से बाहर निकाल देगा और दूसरी शादी कर लेगा. तबीयत खराब में भी पति उसे इलाज के लिए पैसे नहीं देता था. एक दिन तंग आ कर वह खुद ही ससुराल छोड़ आई और मायके में रहने लगी. लेकिन यहां भी भाईभाभी उसे देखना नहीं चाहते, कहते हैं कि वह वापस ससुराल चली जाए. लेकिन मालती अब किसी भी हालत में अपने पति के पास नहीं जाना चाहती है.

देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाली शारीरिक और यौन हिंसा को ले कर नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सर्वे के मुताबिक, 18 से 49 साल की लगभग 30 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें 15 साल की उम्र के बाद शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है. 6 फीसदी महिलाओं को जीवन में कभी न कभी यौन हिंसा झेलनी पड़ी. लेकिन महज 14 फीसदी महिलाएं ही ऐसी रहीं जिन्होंने अपने साथ हुई शारीरिक या यौन हिंसा के बारे में बताया. सर्वे यह भी बताता है कि अकसर शराब पीने वाले 70 फीसदी लोग ऐसे होते हैं जो पत्नियों के साथ शारीरिक या यौन हिंसा करते हैं. महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा के 80 फीसदी से अधिक मामलों में पति ही जिम्मेदार देखा गया है.

‘तुम इतना सहती क्यों हो? छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’ किसी महिला को, जिस का पति उसे रोज पीटता है, उसे यह सलाह देना बहुत आसान होता है. मगर यह समझना उतना ही मुश्किल है कि एक महिला अपने जीवन में किस तरह की परेशानियों से जूझ रही है. उस के मन में कौन सा डर घर कर चुका है और उस की मानसिक स्थिति क्या है.

रिलेशनशिप एक्सपर्ट डाक्टर गीतांजली शर्मा का कहना है कि लंबे समय से घरेलू हिंसा झेल रही महिला मन से डरपोक हो चुकी होती हैं. उसे हर वक़्त इस बात का डर लगा रहता है कि घर आने पर पति उसे मारेगापीटेगा तो नहीं?

मालती अपने पति से अलग हो चुकी है और वह अब अपने मायके में रहती है, पर यहां भी उसे भाईभाभी के तानोंउलाहनों से गुजरना पड़ता है जो उसे मानसिक कष्ट देता है. मालती जानती है कि बापदादा की अर्जी संपत्ति में उस का भी बराबर का अधिकार है, पर वह बोलने से डरती है कि कहीं यहां से भी मां, भाईभाभी ने उसे निकाल दिया, तो फिर वह कहां जाएगी.

आज बेटियों को बेटों के बराबर ही पैतृक संपत्ति के अधिकार मिले हैं. लेकिन फिर भी महिलाएं अपने अधिकार से वंचित हैं, तो इसलिए कहीं उस के ऐसा करने से मायके से उस का रिश्ता न टूट जाए. 45 साल की गोदावरी कहती है कि उस ने केवल अपने बापदादा की संपत्ति में हिस्से की बात की और भाइयों ने उस का फोन नंबर ब्लौक कर दिया. अगर लड़झगड़ कर संपत्ति ले लेती तो शायद वे लोग उस की जान ही ले लेते.

कानून के दिए अधिकार को ले कर वह कहती है कि वो सब सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गए हैं. अगर सच में कानून बेटियों को उस के अधिकार दिला पाते, तो मानते.

इस पुरुषसत्तात्मक समाज में अजीबोगरीब तर्क दे कर महिलाओं को उन के अधिकार से वंचित रखने की कुचेष्टा की जाती रही है. बात चाहे पैतृक संपत्ति में अपने अधिकार की हो, सवैतनिक मातृत्व अवकाश की हो, कार्यस्थल पर नवजात शिशु की देखभाल की हो, या समान वेतन की हो, महिलाओं को हर जगह वंचित रखा गया है.

देखा जाए तो आजादी के इतने सालों बाद भी देश की आधी आबादी अभी भी गुलाम है. वह अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही है. वैश्विक महामारी कोरोना ने इन के संघर्षों को और बढ़ा दिया था. यह कहना गलत नहीं होगा कि पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति हमेशा हाशिए पर रही है. महिला सशक्तीकरण के तमाम दावे इस सत्य को झुठलाते नजर आते हैं कि महिलाओं को पूरी तरह से पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं. सचाई यह है कि अपने छोटेबड़े अधिकार के लिए महिलाओं को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और यह भी जरूरी नहीं है कि वहां उन्हें न्याय मिल ही जाए.

वहीं, यह भी सच है कि पहले के मुकाबले आज कहीं ज्यादा बच्चियां शिक्षा पा रही हैं, बालविवाह और खतना जैसी कुप्रथाओं में गिरावट आई है. महिला स्वास्थ्य की दिशा में प्रगति हुई है जिस की वजह से महिलाओं की औसत उम्र में इजाफा हुआ है. इसी तरह बच्चों को जन्म देते समय महिलाओं की होने वाली मौतों की दरों में भी गिरावट आई है. अब पहले से ज्यादा महिलाएं संसद पहुंच रही हैं. उन के खिलाफ होने वाली हिंसा पर लोग बोलने लगे हैं. महिला श्रमिकों के अधिकारों में भी बढ़ोतरी हुई है. 155 देशों में अब घरेलू हिंसा कानून हैं. 140 देशों के पास कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से जुड़े कानून हैं.

लेकिन इस सब के बावजूद महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता की जो खाई है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. उन के बीच इस गहरी खाई को भरने में सदियों लग जाएंगे. भले ही हम ने विकास के कितने ही पायदान चढ़ लिए हों, लेकिन आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा नहीं मिल पाया है. महिलाएं आज भी रोजगार, आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्रों में पुरुषों से पीछे हैं.

वर्ल्ड बैंक ने कुछ समय पहले दुनिया के प्रमुख 187 देशों में कुछ 35 पैमानों के आधार पर एक सूची तैयार की. इस में संपत्ति के अधिकार, नौकरी की सुरक्षा व पैंशन पौलिसी, विरासत में मिलने वाली चीजें, शादी संबंधित नियम, यात्रा के दौरान सुरक्षा, निजी सुरक्षा, कमाई आदि आधार पर जब आंकड़े जुटाए तो पता चला कि दुनिया में केवल कुछ देश ही ऐसे हैं जहां वाकई महिलाओं को उन के अधिकार प्राप्त हैं.

हालांकि, एकदो दशकों पहले महिलाओं को बराबरी का दर्जा किसी भी देश में नहीं था, यानी यह संख्या शून्य थी.

लेकिन बीते सालों में इस में प्रगति हुई. बराबरी के 35 मानदंडों पर खरा उतरने वाले कुछ देश ही हैं. लेकिन भारत नहीं है.

वर्ल्ड बैंक की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 240 करोड़ महिलाएं पुरुषों के समान अधिकारों से वंचित हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों का बमुश्किल 77 फीसदी ही लाभ ले पाती हैं.

यह बात हमारे देश के लिए सचमुच ही शोचनीय है कि जिसे हम जननी कहते हैं, पूजनीय कहते हैं और जिसे देवी का दर्जा मिला हुआ है, उसी देश की महिलाओं को अपने हक के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है और वहां उन्हें ज्यादातर निराशा ही हाथ लग रही है.

लेकिन देश और कानून को यह बात समझनी होगी कि समाज को महिलाओं के अनुकूल बनाए बिना हम सभ्य नहीं कहलाए जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन उस का असर अभी दिख नहीं रहा है.

चीन के राजनीतिक विचारक माओत्से तुंग ने एक बार कहा था कि ‘आधा आकाश महिलाओं का है’ लेकिन महिलाओं की स्थिति को देख कर लगता है कि न तो उन की धरती आधी और न ही आधा आकाश.

महिला अधिकारों की रक्षा की जंग केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि समाज के विकास के लिए भी जरूरी है, यह बात देश के कानून, सरकार और समाज को समझनी होगी, तभी असल में देश का विकास होगा.

महंगा इंसाफ और लंबा इंतजार

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके आर सी लाहोटी ने अपने विदाई भाषण में कहा था, “मैं ने देश की सर्वोच्च अदालत की प्रमुख कुरसी पर बैठ कर यह नजारा देखा है कि यहां एक गरीब, आम इंसान को इंसाफ मिलना तो दूर की बात है, अगर वह अदालत की चौखट तक भी पहुंच जाए, यही बहुत बड़ी बात है. क्योंकि न्याय मिलना भी अब इतना महंगा हो चुका है जिस के बारे में कभी सोचा तक नहीं था. इसलिए आज मेरी आंखें नम हैं क्योंकि मैं चाहते हुए भी देश की न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए बहुतकुछ नहीं कर पाया.”

देश के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने वर्षों पहले लिखा था कि ‘न्याय वह है जो दूध का दूध और पानी का पानी कर दे. यह नहीं कि खुद कागजों के धोखे में आ जाए और खुद ही पाखंडियों के जाल में फंस जाए.’

दुनिया के तमाम बड़े कानूनविदों ने कहा है कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए. लेकिन देरी से मिलने वाला न्याय एक नए जुर्म की जमीन तैयार करता है.

मेरे मांबाप एकदूसरे से तलाक लेना चाहते हैं. मैं उन्हें कैसे रोकूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं गाजियाबाद में रहता हूं और मेरी उम्र 30 साल है. जब देखो मेरे मांबाप एकदूसरे से लड़ते रहते हैं और ऐसा लगता है कि वे अब एकदूसरे के साथ रहना ही नहीं चाहते. कभीकभी तो उस दोनों में छोटी सी बात को ले कर भी इतना बड़ा झगड़ा हो जाता है कि मैं भी देख कर हैरान हो जाता हूं. मेरे मांबाप पहले भी कई बार अपने मुंह से तलाक की बात निकाल चुके हैं, लेकिन फिर दोनों में सुलह हो जाती है. पिछले कुछ दिनों से उन दोनों में काफी लड़ाई चल रही है और ऐसा लग रहा है कि उन दोनों ने ठान लिया है कि अब वे एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते और तलाक ले कर ही मानेंगे. इसी वजह से मेरे मांबाप एकदूसरे के साथ भी नहीं सोते. मैं उन दोनों की लड़ाई से परेशान आ चुका हूं और चाहता हूं कि सब ठीक हो जाए और उन्हें तलाक न लेना पड़े. आप ही मुझे बताइए कि मैं क्या कर सकता हूं?

जवाब –

लड़ाईझगड़े सब के घरों में होते हैं और पतिपत्नी की लड़ाइयां तो अकसर ही चलती रहती हैं, लेकिन आप की बातों से साफ पता चल रहा है कि आप के घर का मामला गंभीर है. एक औलाद ही होती है जिस की हर छोटीबड़ी बात मांबाप झट से मान जाते हैं और आप अब छोटे नहीं हैं, जो सहीगलत की पहचान न कर पाएं.

आप के मांबाप में से जो भी गलत है उन्हें आप अकेले में बैठ कर प्यार से समझाएं और उन्हें बताएं कि तलाक लेना किसी भी समस्या का हल नहीं है. जब उन्होंने इतने साल एकदूसरे के साथ बिता दिए हैं, तो अब वे तलाक क्यों लेना चाहते हैं? मैं तो कहूंगा कि आप को दोनों को अलगअलग बिठा कर समझाना चाहिए कि अगर वे इस उम्र में आ कर अलग होंगे, तो समाज में कैसीकैसी बातें बनेंगी. तो अच्छा यही होगा कि वे दोनों एकदूसरे की गलत बातों को थोड़ा इग्नोर करने की आदत डाल लें.

आप उन दोनों को किसी अच्छी जगह घूमने भेज दीजिए, क्योंकि कभीकभी इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो चुका होता है, तो जब आ उन्हें एक नई जगह छुट्टी मनाने भेजेंगे, तो उन दोनों को अच्छा लगेगा और शायद उन दोनों के बीच सब सही भी हो जाए. आप बीचबीच में उन्हें फिल्म देखने या डिनर पर भी भेज सकते हैं, जिस से वे दोनों एकदूसरे के साथ अच्छा समय बिता पाएं. ऐसा करने से वे फिर से एकदूसरे के नजदीक आने लगेंगे.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

फ्रीडा और रिवेरा का लव कंप्लीकेटेड एंड कंट्रास्ट

हमारे देश में प्यार हो जाना आम तो है पर प्यार का अंजाम तक पहुंचना आम नहीं है. यहां अपने पार्टनरचुनते समय धर्म, जाति, संस्कृति और रीतिरिवाज आड़े आने लगते हैं. हालांकिकहते तो हैं कि प्यार सच्चा हो तो सारी बेड़ियां टूट जाती हैं मगरउस के लिए फ्रीडा काहलो जैसी खुलीसोच और साहस का होना भी जरुरी होता है.

1907 में जन्मी घनी जुड़ी आईब्रो और बालों में फूलों के गुच्छे लगाने वाली फ्रीडा मैक्सिको की जानीमानी पेंटर रहीं. चटख रंगों वाली अपनी अनूठी पेंटिंग्स के कारण उन्होंने दुनिया भर का ध्यान अपनी और खींचा. उन की बनाई 143 पेंटिंग्स में से 55 सेल्फ पोर्ट्रेट्स थीं जिन्हें उन्होंने अपने बेडरूम में खुद को मिरर में देखते हुए बनाया था.

बचपन में पोलियो की शिकार हुई इस खूबसूरत पेंटर के लिए बात सिर्फ इतनी सी नहीं थी. उन की पेंटिंग्स ने मैक्सिकन सोसायटी, कल्चर, जेंडर, क्लास के सवालों को भी उठाने का काम किया. उन के जीवन में कई हादसे हुए, कई ऐसे जो किसी को भी भीतर से तोड़ने के लिए काफी थे, मगर वह साहस जुटाती और फिर से चल पड़ती.

दिलचस्प बात यह कि उन की स्वच्छंदता पेंटिंग के अलावा उन के निजी जीवन में भी एक सी थी.फ्रीडाने प्यार को ले कर बने सोशल टैबू को तोड़ा. रिश्तों को आजाद रखा. 1927 के इर्दगिर्द जब वह 20-21 साल की थी तब एक भयंकर हादसे से निकल करमैक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ीं, तबफ्रीडा काहलोकी मुलाकात डिएगो रिवेरा से हुई, जो शादीशुदा थे और उन की एक मिस्ट्रैस भी थी. यहां तक कि उन की फ्रीडा की बहन के साथ तक संबंध थे.दोनों में तकरीबन 20 सालों का अंतर था. डिएगो खुद भी मैक्सिको के जानेमानेपेंटर थे. यहां तक कि फ्रीडा के लिए वे गुरु के रूप में भी थे.

लोंग स्कर्ट को चलन में लाने वाली फ्रीडा और डिएगो का यह रिश्ता समाज के लिए रिश्ता कंप्लीकेटेड जरुर था पर इन दोनों के लिए नहीं. दोनों ने 1929 में एकदूसरे से शादी की. दोनों अकसर अपने गरमठंडे रिश्ते को अपनी पेंटिंग्स और लैटर्स के जरिए जाहिर करते थे. यह एक तरह का सौफ्ट वार भी था और प्रेम भी. मगर फ्रीडा डिएगो से मिली उस बेवफाई से भी गुजरी जिस से वह मुक्ति पाना चाहती थी और इस के लिए उस ने लैटर का सहारा लिया, उस आखिरी लैटर का जिस में प्यार तो था पर जबरदस्ती का बंधन नहीं.

आज जब फ्रीडा और डिएगो के रिलेशन का जिक्र किया जा रहा है तो इस की एहमियत इस तौर पर और बढ़ जाती है कि हमारी युवा जेनरेशन, जिन का अधिकतर समय सोशल मीडिया पर बिताता है, फ्रीडा काहलो की तरह खुद को एक्सप्रेस कर सकते हैं? क्या प्यार की वेदना और उस की तड़प को वे जाहिर कर सकते हैं जिस में हाई और बाए के अलावा भावनाएं हों? पेंटिंग्स तो दूर की बात क्या वह संबंध तोड़े जाने के लिए कोई ऐसा पत्र लिखने लायक भी हैं?

शायद नहीं. और अगर नहीं तो फ्रीडा का डिएगो को लिखा एक लैटर हमारी पीढ़ी को जरुर पढ़ लेना चाहिए-

मेक्सिको, 1953
मेरे प्रिय डिएगो,

मैं यह पत्र अस्पताल के कमरे से लिख रही हूं, औपरेशन थिएटर में जाने से पहले. वे मुझे जल्दी करने को कह रहे हैं, लेकिन मैं पहले यह लिखना चाहती हूं, क्योंकि मैं कुछ अधूरा नहीं छोड़ना चाहती. खासकर अब जब मुझे पता चल गया है कि वे क्या करने वाले हैं. वे मेरा एक पैर काटना चाहते हैं. जब उन्होंने मुझे बताया कि यह आवश्यक होगा, तो इस खबर का मुझ पर वैसा असर नहीं हुआ जैसा सभी को उम्मीद थी. नहीं, मैं पहले ही से अधूरी महिला थी जब मैंने तुम्हें खो दिया, शायद हजारवीं बार, और फिर भी मैं जीवित रही.

मुझे दर्द से डर नहीं लगता, और तुम यह जानते हो. यह मेरे अस्तित्व का हिस्सा है, हालांकि मैं यह स्वीकार करती हूं कि मैंने बहुत सहा है, खासकर जब तुमने मुझे धोखा दिया, हर बार, न सिर्फ मेरी बहन के साथ बल्कि और भी कई महिलाओं के साथ. वे कैसे तुम्हारे जाल में फंस गईं? तुम सोचते हो कि मुझे क्रिस्टिना से गुस्सा था, लेकिन आज मैं कबूल करती हूं कि वह इसलिए नहीं था. यह मेरे और तुम्हारे बारे में था. सबसे पहले मेरे बारे में, क्योंकि मैं कभी समझ नहीं पाई कि तुम क्या ढूंढते हो, जो मैं तुम्हें नहीं दे सकी. चलो खुद को धोखा न दें, डिएगो, मैंने तुम्हें वह सब कुछ दिया जो इंसानियत से संभव था और हम दोनों यह जानते हैं. लेकिन फिर भी, तुमने इतनी सारी महिलाओं को कैसे रिझाया जब तुम इतने बदसूरत हो?

मैं यह पत्र तुम्हें दोष देने के लिए नहीं लिख रही हूं, जितना कि हम पहले ही एकदूसरे को दोषी ठहरा चुके हैं. यह इसलिए है क्योंकि मेरा पैर काटा जा रहा है (कमबख्त चीज, आखिर में इसे जो चाहिए था वो मिल गया). मैंने तुम्हें बताया कि मैंने खुद को लंबे समय से अधूरा माना है, लेकिन अब क्यों हर किसी को यह भी जानना जरूरी है? अब मेरी टूटन सबको दिखेगी, तुम्हें भी. मैं तुम्हें बता रही हूं, इससे पहले कि तुम इसे कहीं और से सुनो.
मुझे माफ करना कि मैं तुम्हारे घर जाकर यह सब खुद नहीं कह सकी, लेकिन इन हालात में मुझे कमरे से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है, यहां तक कि बाथरूम जाने के लिए भी नहीं. मेरा इरादा किसी को दया दिखाने का नहीं है, और न ही मैं चाहती हूं कि तुम दोषी महसूस करो. मैं यह बताने के लिए लिख रही हूं कि मैं तुम्हें छोड़ रही हूं, मैं तुम्हें अपनी जिंदगी से काट रही हूं. खुश रहो और कभी मुझे मत ढूंढना. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरी कोई खबर सुनो और न ही मैं तुम्हारी सुनना चाहती हूं. अगर मरने से पहले मेरी कोई आखिरी ख्वाहिश है, तो वह यह है कि मुझे तुम्हारा बदसूरत चेहरा मेरे बगीचे में भटकता हुआ न देखना पड़े.

यही सब है, अब मैं शांति से कटने के लिए जा सकती हूं.

तुम्हारी कोई पागल जो तुमसे बेहद प्यार करती है,

तुम्हारी फ्रीडा

मार्क ट्वेन : तीखे व्यंगकार का नर्म प्यार

“धर्म का अविष्कार तब हुआ जब पहला चोर पहले मूर्ख से मिला.” यह बात अमेरिका के उस प्रसिद्ध लेखक ने कही जो अपनी किताबों से ज्यादा अपनी सूक्तियों के लिए मशहूर हुए. नाम मार्क ट्वेन. जन्म तिथि 30 नवंबर 1835. पेशा लेखक, व्यंग्यकार, उद्यमी और प्रकाशक.

मार्क ट्वेन अपनी तीखी चुटकियों के लिए मशहूर थे. धर्म पर अपने बेधड़क विचारों के लिए भी. व्यंग्य के मामले में भारत में ऐसी सिमिलेरिटी थोड़ीबहुत 20वीं सदी में पैदा हुए लेखक हरिशंकर परसाई की भी रही लेकिन मार्क ट्वेन अपने जमाने में हरिशंकर से 21 ही थे. वो संगठित धर्मों के खिलाफ थे और अकसर उन के बारे में लिखते भी थे. उन्होंने कहा था कि, “ईसा अगर आज मौजूद होते तो एक चीज़ कभी नहीं बनना चाहते – ईसाई.”

उन की कही यह बात तो उन सभी धर्मों पर लागू होती है जो खुद को महान बताने पर तुले रहते हैं कि, “मुझे बाइबिल के वे हिस्से परेशान नहीं करते जिन्हें मैं समझ नहीं पाता, बल्कि वे करते हैं जो मुझे समझ आती है.”

मार्क अपने 7 भाईबहनों में छटे नंबर पर थे लेकिन उन में से बचे सिर्फ 3. जिस समय मार्क ने लिखना शुरू किया उस समय उन के शहर मिसौरी में स्लेवरी लीगल थी और उन की राइटिंग्स की थीम स्लेवरी पर होती थीं. उन का मानना था कि समय के साथ स्लेवरी ख़त्म होनी चाहिए. बताया भी जाता है कि ट्वेन सीक्रेटली येल लौ स्कूल में एक ब्लैक की पढ़ाई का खर्चा भी उठाया करते थे और ब्लैक एंटी स्लेवरी रेवोलुशनिष्ट फ्रेडरिक डगलस और औथर बुकर टी का समर्थन किया करते थे.

ट्वेन ने अपने काम की शुरुआत टीनएज में टाइपसेटर के रूप में की. इस के साथ वे आर्टिकल्स, ह्यूमरस स्कैच बनाने लगे थे. कुछ समय बाद वे उस दौरान नएनए बने ‘प्रिंटर्स ट्रैड यूनियन’ से जुड़ गए. ट्वेन ने कोई लम्बीचौड़ी एकेडमिक पढ़ाई नहीं की लेकिन वे लाइब्रेरी में नियमित खिद से पढ़ लिया करते थे. मार्क के नाम पर 8 नोटेबल नोवेल्स हैं, इस के साथ बच्चों के लिए फेमस ‘टोम शायर और हक्क फिन्न’ की ढेरों सीरीज लिखीं हुई हैं. शोर्ट स्टोरीज तो गिनती से ही बाहर हैं. यही कारण है कि उन्हें अमेरिका के ग्रेटेस्ट राइटर में शुमार किया जाता है.

लेकिन इस के साथ बड़ी बात यह कि वे अच्छे लेखक के साथसाथ अच्छे प्रेमी और पति भी रहे. इस की झलक उन के लिखे उन खतों से मिल जाती है जो उन्होंने अपनी पत्नी ओलिविया लेंगडों को लिखे, जो खुद भी नास्तिक और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक्टिविस्ट थीं. यहां मार्क ट्वेन के लिखे एक पत्र को उदाहरण के लिए दिया जा रहा है ताकि टैक्नोलौजी से लैस आज के युवा जान पाएं कि सोशल मीडिया पर रील बनाने और देखने से न तो समझदारी विकसित होती है न ही व्यक्तिगत निखार आ पाता है.

मेरी प्यारी ओलिविया,

भले ही तुम मुझे साबित कर दो कि तुम में वे खामियां हैं, जो तुम समझती हो, फिर भी मैं उन से घबराऊंगा नहीं, क्योंकि उन खामियों के साथ भी, तुम अब भी उन सब से बेहतर, प्यारी और खूबसूरत हो, जिन्हें मैं ने जाना है.

जब ये कमियां मेरे सामने आएंगी, तो भी मैं तुम्हारी मदद करूंगा उन्हें दूर करने में, पर तुम इस बारे में परेशान मत हो, क्योंकि तुम्हारे सामने एक और कठिन काम है – मुझे मेरी कमियों से छुटकारा दिलाने में मदद करना.

मुझे तुम्हारे मूल्य को पहचानने दो. मुझे तुम्हें सभी से ऊपर सम्मान देने दो. मुझे तुम्हें उस प्रेम से प्रेम करने दो, जो न कभी संदेह करता है, न सवाल उठाता है क्योंकि तुम मेरा संसार हो, मेरी जिंदगी, मेरा गर्व, और धरती पर मेरे लिए सब से कीमती चीज हो.

आओ, यह उम्मीद और विश्वास करें कि हम जीवन के इस लंबे रास्ते पर एकदूसरे का हाथ थामे चलेंगे, एक दिल, एक भावना और एक प्रेम में बंधे हुए, एकदूसरे के बोझ को उठाते हुए, खुशियों को बांटते हुए, और एकदूसरे के दुखों को सहलाते हुए.

जो हम अपनी जवानी में खो देंगे, उसे हम अपने प्रेम से पूरा कर लेंगे, ताकि हिसाब बराबर रहे और किसी को कोई नुकसान न हो.

मैं तुम से प्यार करता हूं मेरी जान और मेरा ये प्यार दिन-ब-दिन बढ़ेगा, जैसे दांत एकएक कर गिरते हैं और मुझे उस महान रहस्य की ओर ले जाते हैं, जहां मीठा ‘बाय एंड बाय’ हमारा इंतजार कर रहा है.

क्योंकि मैं तुम से वैसे ही प्यार करता हूं. जैसे ओस फूलों से करती है, जैसे पक्षी धूप से करते हैं, जैसे लहरें हवा से करती हैं, जैसे मां अपने पहले बच्चे से करती है, जैसे यादें पुराने चेहरों से प्यार करती हैं, जैसे ज्वार की लहरें चांद से करती हैं.

मेरा चुंबन और आशीर्वाद लो और इस तथ्य को स्वीकार करने की कोशिश करो कि मैं तुम्हारा हमेशा के लिए हूं.

– मार्क ट्वेन

सोशल मीडिया डिटौक्स भी जरुरी

1. साफ लक्ष्य और उद्देश्य तय करें

• अपनेआप से पूछें कि आप सोशल मीडिया से दूर क्यों रहना चाहते हैं. समझें कि सोशल मीडिया कम करना आप के लिए क्यों महत्वपूर्ण है. चाहे वह काम, पढ़ाई, रिश्ते या मानसिक शांति के लिए हो, एक स्पष्ट उद्देश्य आप के लिए प्रेरणा का काम करेगा.
• सीमाएं तय करें: तय करें कि आप कितना समय या कौन से प्लेटफार्म इस्तेमाल कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, प्रतिदिन 30 मिनट तक सीमित करें या सप्ताह के दिनों में पूरी तरह से बचें.

2. ऐप टाइमर और डिजिटल वेल-बीइंग फीचर्स का उपयोग करें

• अपने फोन में ऐप टाइमर सक्षम करें. अधिकांश स्मार्टफोन में डिजिटल वेल-बीइंग फीचर्स होते हैं जो यह ट्रैक करते हैं कि आप ऐप्स पर कितना समय बिता रहे हैं और उसे सीमित कर सकते हैं.
• Forest या StayFocusd जैसी ऐप्स का उपयोग करें, जो एक निश्चित अवधि के लिए ऐप्स को ब्लौक कर देती हैं.

3. नोटिफिकेशन बंद करें

• सोशल मीडिया ऐप्स से आने वाले नोटिफिकेशन को बंद कर दें. लगातार आने वाली पिंग्स और अलर्ट आप को फोन बारबार चेक करने के लिए प्रेरित करते हैं. नोटिफिकेशन बंद करने से आप का ध्यान भटकने की संभावना कम हो जाती है.

4. ऐप्स को होम स्क्रीन से हटाएं या डिलीट करें

• सोशल मीडिया ऐप्स को फोल्डर में रखें या होम स्क्रीन से हटा दें ताकि वे आसानी से दिखें नहीं.
• सोशल मीडिया ऐप्स को डिलीट करें: अपने फोन से फेसबुक, इंस्टा या एक्स जैसे ऐप्स को हटाने पर विचार करें और केवल कंप्यूटर पर ब्राउज़र से एक्सेस करें (जिसे आप और भी सीमित कर सकते हैं).

5. सीमित उद्देश्यों के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करें

• सोशल मीडिया के लिए विशेष समय तय करें, जैसे लंच ब्रेक या काम के बाद 15 मिनट. समय समाप्त होते ही लौग आउट कर दें.
• उत्पादक उद्देश्यों के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करें, जैसे नौकरियों के लिए नेटवर्किंग करना, नए कौशल सीखना या दूर रहने वाले परिवार से संपर्क में रहना.

6. समय को उत्पादक गतिविधियों से भरें

• सोशल मीडिया के समय को ऐसी रुचियों या गतिविधियों से बदलें जो आप को पसंद हों. यह पढ़ाई, व्यायाम, कोई नया कौशल सीखना, खाना बनाना या ध्यान हो सकता है. खुद को व्यस्त रखने से बेमतलब स्क्रौल करने की आदत कम हो जाएगी.
• औफलाइन रुचियां जैसे बागवानी, पेंटिंग, या संगीत वाद्ययंत्र बजाने से आप को मानसिक रूप से सक्रिय रहने में मदद मिलती है.

7. मनोरंजन के लिए विकल्प खोजें

• सोशल मीडिया पर मनोरंजन के बजाय, डाक्यूमेंट्री देखें, पौडकास्ट सुनें, या किताबें पढ़ें. Kindle या Audible जैसी ऐप्स औनलाइन मनोरंजन का अच्छा विकल्प हो सकती हैं.

8. सोशल मीडिया डिटौक्स ग्रुप्स से जुड़ें

• भारत में कई ग्रुप्स और कम्युनिटीज जैसे Telegram, Reddit, या WhatsApp पर उपलब्ध हैं, जहां लोग एकदूसरे को सोशल मीडिया का उपयोग कम करने के लिए प्रेरित करते हैं. एक सपोर्ट ग्रुप ज्वाइन करें, जहां आप ऐसे अन्य लोगों से प्रेरणा और सुझाव प्राप्त कर सकते हैं.

9. वास्तविक जीवन के संपर्कों में जुड़ें

• असली दुनिया में रिश्तों को बनाने और पोषित करने पर ध्यान दें. दोस्तों और परिवार से व्यक्तिगत रूप से मिलें, उन्हें मैसेज करने के बजाय कौल करें या सोशल मीडिया के बिना सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लें.
• औफलाइन क्लब्स ज्वाइन करें, जैसे योगा क्लास, बुक क्लब, या स्पोर्ट्स ग्रुप. यह आप को बिना औनलाइन प्लेटफार्म के सामाजिक रूप से जुड़ने में मदद करेगा.

10. डिजिटल डिटौक्स डे

• सप्ताहांत में सोशल मीडिया से डिटौक्स करें, जब आप एक या दो दिन सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहें. धीरेधीरे इसे बढ़ाएं यदि आप सहज महसूस करते हैं.
• डिजिटल डिटौक्स जैसी चुनौतियों में भाग लें, जो खास दिनों या घंटों के लिए स्क्रीन से दूर रहने को प्रोत्साहित करती हैं.

11. सोने से पहले सोशल मीडिया का उपयोग सीमित करें

• सब से प्रभावी आदतों में से एक है रात में सोने से पहले सोशल मीडिया से बचना, खासकर सोने से एक घंटा पहले. इस से आप को आराम करने, अच्छी नींद लेने और देर रात की अनचाही स्क्रौलिंग से बचने में मदद मिलेगी.

12. अपने उपयोग को सचेत रूप से नियंत्रित करें

• जब भी आप सोशल मीडिया ऐप्स खोलें तो यह जानने की कोशिश करें कि आप क्यों कर रहे हैं. अकसर यह आदत होती है, आवश्यकता नहीं. सचेत रूप से ब्राउज़िंग का अभ्यास करें, जहां आप केवल किसी विशेष उद्देश्य से सोशल मीडिया पर जाएं और जैसे ही वह उद्देश्य पूरा हो जाए, लोग आउट कर लें.

13. डिस्ट्रैक्टिंग कंटेंट को ब्लौक करें

• फेसबुक, इंस्टा, यूट्यूब या एक्स पर, ऐसे अकाउंट्स या टौपिक्स को अनफौलो करें जो आप का समय बरबाद करते हैं या नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न करते हैं. इस से आप की फीड साफ हो जाएगी और स्क्रौल करने की आदत कम हो जाएगी.
• न्यूज़ फीड इरेडिकेटर जैसे ब्राउज़र एक्सटेंशन का उपयोग करें, जो सोशल मीडिया फीड को ब्लौक करते हैं ताकि आप अधिक उत्पादक चीजों पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

14. अकाउंटेबिलिटी पार्टनर रखें

• एक दोस्त या परिवार के सदस्य को अकाउंटेबिलिटी पार्टनर बनाएं, जो आप की प्रगति पर नजर रखे और सोशल मीडिया से दूर रहने के लिए आप को प्रोत्साहित करे. वे आप को असल जीवन में बातचीत और गतिविधियों के जरिए व्यस्त रखने में मदद कर सकते हैं.

15. अस्थायी ब्रेक लें

• सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए ब्रेक लेने पर विचार करें, जैसे एक सप्ताह या एक महीने के लिए अपने अकाउंट्स को निष्क्रिय करें. यह आप को सोशल मीडिया के शोर से दूर रहने की आदत डालने में मदद करेगा और यह अहसास दिलाएगा कि असल जिंदगी में आप क्या खो रहे थे.

इन उपायों को नियमित रूप से अपना कर आप सोशल मीडिया पर निर्भरता को कम कर सकते हैं और अपने औनलाइन और औफलाइन जीवन के बीच एक बेहतर संतुलन बना सकते हैं.

लौट आओ अपने वतन: विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

लेखक- केशव राम वाड़दे

लंदन एयरपोर्ट पर ज्यों ही वे तीनों आधी रात उतरे, उर्वशी को छोड़ उस के मम्मीपापा का चेहरा एकाएक उतर गया. आंखें नम हो आईं.

एयरपोर्ट पर हर तरफ जगमगाहट थी. चकाचौंध इतनी थी कि रात होने का आभास ही नहीं हो रहा था.

इस चकाचौंध में भी उर्वशी के मम्मीपापा के चेहरों की उदासी साफ झलक रही थी. उर्वशी का रिश्ता तय करने के लिए वे लंदन उसे लड़के वालों को दिखाने लाए थे, लेकिन उन का मन इतना उदास था कि मानो उसे विदा करने आए हों.

सड़क  के दोनों ओर बड़ीबड़ी स्ट्रीट लाइटें, हर चौराहे पर रैड सिगनल, मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही टैफिक पुलिस, साफसुथरी, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीभागती लंबीलंबी चमचमाती कारें, बाइक, साइकिलें और विक्टोरिया (तांगे), पैदल यात्रियों के लिए ईंटों से बने फुटपाथ, अनगिनत दुकानें, मौल वहां की शोभा बढ़ा रहे थे.

उस समय लंदन की ठिठुरन वाली ठंड में भी हाफ जींस, टीशर्ट डाले, हर उम्र के कई जोड़े स्टालों पर कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम का मजा उठाते दिखे. कहीं कोई तनाव नहीं. सुकूनभरी जीवनशैली चलती दिख रही थी.

विशाल बहुमंजिला इमारतें और उन पर टंगे बड़ेबड़े ग्लोसाइन. रास्ते में कई छोटेछोटे पार्क और उन की शोभा बढ़ाते फुहारे. हर तरफ एक सिस्टम. उर्वशी तो जैसे दूसरी दुनिया में भ्रमण कर रही थी. उस के चेहरे का उत्साह देखते ही बनता था. मन ही मन अनेक सपने संजोए उस ने. अपने वतन से कोसों दूर लंदन में अपने लिए वर देखने आना उर्वशी का उद्देश्य था. वह भारत में अपनी शादी के लिए किसी से भी बात करने में अपनी तौहीन समझती थी. और तो और अपनी मातृभाषा में बात करना भी उसे पसंद नहीं था. गिनती के लड़केलड़कियों से ही उस की मित्रता थी.

उसे लगता कि हर भारतीय गंदगी, आलस्य और बेचारगी में जीता है. भारतीय कामचोर होते हैं. यहां के बड़ेबड़े घोटाले, किसानों की लाचारी और नेताओं के बड़ेबड़े लच्छेदार भाषण? सारा दोष पब्लिक का ही तो है. यहां की सड़कें तो गायभैंसों के लिए बनी हैं ताकि वे सड़क के बीचोंबीच जुगाली कर सकें, धूलधुएं से भरा वातावरण, चूहोंमच्छरों से अस्तव्यस्त जनजीवन. ऊपर से दौड़तेभागते कुत्तों का झुंड. पान की पीकों से रंगी दीवारें, सड़कें,  बेतरतीबी से बने मकान, सोच कर ही उबकाई आने लगती थी उसे.

जमाने से चला आ रहा ‘ओल्ड फैशंड’ धोतीकुरता, सलवारजंपर, ऊपर से दुपट्टा. एडि़यों से ऊपर उठी सिमटीसिकुड़ी साडि़यां और किलो के भाव से लदे सोनेचांदी के जेवर, भला यह भी कोई पहनावा है? न चेहरे पर कोई क्रीम, न बौडीलोशन लेकिन खुद को फैशनेबल मानने वाली ये औरतें? कहीं कोई मैचिंग नहीं. अगर कपड़े ठीकठाक हों तो भी पैरों में फटी खुली जूतियां, जैसे मुंह चिढ़ा रही हों.

जेन ड्राइव कर रहा था. उर्वशी का ध्यान उस की तरफ नहीं था. उस का नाम जेन नहीं था. लेकिन जयदीप से बदल कर उस ने अपना अंगरेजों वाला नाम रख लिया था. पूरे परिवार में मात्र उर्वशी ही थी, जिस ने अपनी सभ्यता, संस्कृति बिलकुल पीछे छोड़ रखी थी. पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर खुद को अंगरेजों जैसा ही बना डाला था उस ने.

शौर्ट स्कर्ट, पैंसिल हील वाले सैंडल, जींस, ब्रेसलेट यही सब उर्वशी को पसंद था. कंधों तक का स्टाइलिश हेयरकट, इंगलिश फिल्मों और पौप म्यूजिक की शौकीन, कांटेछुरी से खाना, एकदम बोल्ड.

भारत में तो उर्वशी को एक भी लड़का पसंद नहीं आया था. यों कहें कि वह किसी भी लड़के को देखनेमिलने में इच्छुक ही नहीं थी. उस की तो इच्छा ही थी कि उस की शादी इंडिया से बाहर ही हो चाहे वह अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया या फिर ब्रिटेन ही क्यों न हो, पर वह भारत में शादी नहीं करेगी. चाहे उसे जिंदगी यों ही क्यों न गुजारनी पड़े.

हरियाणा में रहने वाली उर्वशी की बूआ, जो अब मुंबई में थीं और अपनी पंजाबी बोलना नहीं भूल पाई थीं, को उर्वशी की मम्मी सरला ने फोन किया. एक समय था जब बूआजी को उर्वशी की मम्मी से बात करना पसंद नहीं था, लेकिन आज उर्वशी के लिए रिश्ता बताने के लिए उन्होंने फोन किया, ‘‘भाभीजी, तुसी उर्वशी दे ब्याह दी चिंता न करो. चाहो ते इक फोटो भिजवा देवो, मुंडे दी माताजी नू. इक मुंडा हैगा लंडन विच… काफी साल होए, मां हरियाणा दी रहण वाली सी. मां चाहंदी है कि लड़के दा ब्याह हिंदुस्तानी कुड़ी नाल होवे. इस वास्ते मैं फून कीत्ता…’’ बस, इधर बूआ से फोन पर बात हुई और उधर उर्वशी का परिवार लंदन पहुंचा.

जेन को देखते ही उर्वशी को लगा कि जैसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया हो. उस ने उर्वशी का बैग  पिछली सीट पर डाला और तुरंत डिग्गी खोल दी. तब उर्वशी ने देखा कि उस के मम्मीपापा ने अपनेअपने बैग उठा कर डिग्गी में खुद ही रखे थे. थोड़ा बुरा तो लगा था तब उसे. जेन के कहने पर वह आगे की सीट पर बैठी थी.

जयदीप से जेन तक की कहानी लंबी तो नहीं थी. जेन का परिवार हरियाणा का था. 18 वर्ष से वे लंदन में रचबस गए. होश संभालते ही जयदीप ने सब से पहला और बड़ा काम यही किया कि अपना नाम बदल कर जेन रख लिया. साथ ही अपना तौरतरीका व रहनसहन भी बदल डाला. उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि वह हिंदुस्तानी है.

उर्वशी को एक नजर में वह भा तो गया, पर अभी ढेर सारी जांचपड़ताल जो करनी थी उसे.

घर कालोनी में था और काफी अच्छा भी था. बड़ा सा मेन गेट और गेट के दोनों तरफ एक कतार में नारियल के कई ऊंचेलंबे वृक्ष मकान की शोभा बढ़ा रहे थे. हर कमरा बड़ी तरतीब से सजा हुआ मिला. पर वहां रहने वाले मात्र 2 प्राणी थे. एक उस की मम्मी और दूसरा खुद वह.

चंद मिनटों में उन के सामने जेन की मम्मी ने हिंदुस्तानी भोजन परोसा, उन की मम्मी आनेजाने वाले हर हिंदुस्तानी को खुद खाना बना कर ऐसे ही खिलाती थीं, फिर देर तक हिंदुस्तान में रह रहे खासमखास लोगों के विषय में पूछती रहीं, बतियाती रहीं. वे बड़ी सलीकेदार थीं, व्यावहारिक थीं. उन के मन में कई बातों की पीड़ा थी, दर्द था जो जबान से फूट पड़ा था.

‘‘अब तो जीनामरना, सबकुछ यहीं होगा. अपने वतन की खूब याद सताती है. फिर इस के डैडी ने तो हम से नाता ही तोड़ रखा है. एक अंगरेजन के साथ रह रहे हैं. वह तो अच्छा है जो यह नौकरी कर रहा है. वरना बड़ी खराब जगह है यह और लोग बड़े गंदे हैं. बस, चमकदमक के अलावा और कुछ भी नहीं है यहां. मन तो नहीं लगता, देखो, लड़का क्या चाहता है?’’

फिर थोड़ा ठहर कर, एक लंबी सांस खींची. जब वे बोलीं तो भीतर की कड़वाहट चेहरे पर साफ झलक रही थी, ‘‘अगर अंगरेजन के चंगुल से इस के डैडी मुक्त हो जाएं तो यकीन मानें, यह देश छोड़ अपने वतन लौट आऊंगी. काश, ऐसा हो जाए.’’

जेन और उर्वशी के बीच बातचीत अधिकतर अंगरेजी में ही होती थी. जेन की फर्राटेदार अंगरेजी कभीकभी उर्वशी समझ नहीं पाती. फिर भी वह संभाल लेती. ऐसा नहीं कि जेन हिंदी नहीं जानता था, पर टूटीफूटी. हिंदी बोलतेबोलते न जाने कब अंगरेजी में घुस जाता…

‘‘चलो, तुम्हें घुमा लाऊं,’’ बात दूसरे दिन की शाम की थी. खुशीखुशी उर्वशी ने मम्मीपापा को भी साथ चलने के लिए कहा. सुनते ही जेन आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘हमारे बीच इन बुड्ढों का क्या काम? सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. यह तुम्हारा इंडिया नहीं, जहां कहीं भी पूरा परिवार एकसाथ निकल पड़े. यहां का कल्चर, सोसाइटी, कुछ अलग है, तभी तो यह लंदन है.’’

वह अभी और कुछ कहता, तभी सरलाजी उर्वशी को देख कर अपनी आंख हौले से भींचते हुए इशारा कर बोलीं, ‘‘तुम दोनों हो आओ, जयदीप ठीक ही कह रहा है?’’

‘‘मेरा नाम जेन है. जयदीप नहीं. इस घटिया नाम से मुझे फिर न बुलाएं. सो प्लीज, जेन कहा करें,’’ उस ने एतराज जताते हुए कहा.

‘‘ओह, सौरी जेन, आगे से याद रखूंगी,’’ सरलाजी ने सुधार कर उस हिप्पी जेन से क्षमा मांगी. उधर पापाजी  का चेहरा तमतमा उठा. उर्वशी अपनी मम्मी का इशारा समझ जेन के साथ हो ली. तब जेन का व्यवहार उसे जरा भी नहीं भाया था. ऐसा रूखापन?

काफी देर इधरउधर भटकने के बाद वे दोनों डिस्कोथिक गए. आधी रात गए डिस्कोथिक में कईकई जोड़े थिरकते दिखे. कुछ पल वह भी उर्वशी के साथ डांस फ्लोर पर रहा. फिर वह एक अंगरेज युवती के साथ देर तक डांस करता रहा.

उर्वशी जेन को देर तक निहारती रही. उसे समझने का प्रयास करती रही पर विफल रही. अभी वह उस के विषय में सोच ही रही थी कि किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. वह चौंक पड़ी. सामने एक युवक खड़ा था. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘डांस प्लीज?’’

‘‘वाय नौट,’’ वह उठ खड़ी हुई.

अभी उस ने डांस शुरू किया ही था कि उसे महसूस हुआ कि वह बदतमीजी पर उतर आया है. यही नहीं उस की बदतमीजी लगातार बढ़ती ही जा रही थी. उस ने खुद को  छुड़ाने की कोशिश की, पर अपने को छुड़ा नहीं पाई और जेन से चिल्लाचिल्ला कर मदद मांगने लगी पर जेन ने यह सब देख कर भी अनदेखा कर दिया. जैसेतैसे वह खुद मुक्त हुई और साथ ही उस ने एक जोरदार थप्पड़ उस व्यक्ति के चेहरे पर रसीद कर दिया. अंगरेज थप्पड़ खा कर तिलमिला उठा था.

जोरदार थप्पड़ की झनझनाहट से उस का सिर घूम गया था. वह कुछ भी कर जाता, अगर जेन ने मिन्नतें न की होतीं. काफी देर बाद वह शांत हुआ और जेन को धक्का देते हुए वहां से हट गया. जेन ने इस बात की नाराजगी उर्वशी पर निकाली, ‘‘जानती हो, वह एक गुंडा है. फिर, वह कौन सा निगल रहा था तुम्हें?’’

‘‘तो क्या तुम किसी के साथ हो रहे अन्याय को बस देखते ही रहोगे. विरोध नहीं करोगे उस का? कैसी परवरिश है तुम्हारी?’’ उर्वशी गुस्से में बोली.

‘‘छोड़ो भी, तुम लोगों को जीना आता ही कहां है? हर पल किसी न किसी से उलझते ही रहो बस,’’ जेन बोला.

उर्वशी ने जेन से उलझना उचित नहीं समझा और चुपचाप घर लौट आई. फिर तो रास्तेभर दोनों ने एकदूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं की. मम्मीपापा को सोता देख वह भी सोने चली गई.

‘‘कैसा रहा जेन के साथ कल का दिन तुम्हारा?’’ सरलाजी ने उर्वशी से पूछा. उस ने मुंह बिचका दिया. सरलाजी के होंठों पर एक मुसकान तैर गई. एक  शाम को उर्वशी और उस के मम्मीपापा को जेन समुद्र किनारे ले गया.

समुद्रतट पर अंगरेजों का साम्राज्य था. नंगेधड़ंगे, कुछ तो हदें पार कर रहे थे. सरलाजी उर्वशी के साथ थीं इसलिए, बात घुमा कर बोलीं, ‘‘चलो, यहां से… बहुत घूम लिए. फिर मेरी तो सांस भी फूलने लगी है.’’ फिर वे लौटते हुए देर तक न जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही थीं. वैसे उर्वशी को समुद्रतट का नजारा जरा भी न भाया था. यहां के लोग सभ्य, सलीके वाले होते हैं, भ्रम टूटने लगा था अब तो.

जेन ने डायनिंग टेबल पर पूछा, ‘‘कैसा लगा हमारा लंदन?’’ उस ने शराब के 2 पैग बना, मम्मीपापाजी को पेश किए. पापाजी के इनकार करने पर उस ने कहा, ‘‘आप इंडिया के लोग शराब नहीं पीते? फिर जीते कैसे हैं?’’ यही वजह है कि भारत हमेशा पीछे रहा है. अब यहां के लोगों को ही देख लें. हर कोई एंजौय करता है. जेन का इतना कहना ही उस के लिए मुसीबत ले आया. अपने को बहुत देर से दबा कर बैठी उर्वशी अपना आपा खो बैठी जैसे सहस्र बिच्छुओं ने उसे एकसाथ काट खाया हो. ऊंची आवाज में वह कहती रही और जेन स्तब्ध खड़ा बस, सुनता ही रहा.

‘‘मैं ने यहां की तहजीब और तमीज अच्छी तरह महसूस कर ली है. बड़ीबड़ी इमारतों और झूठी चकाचौंध के अलावा और कुछ नहीं पाया. यहां बुजुर्गों का तो जरा भी लिहाज नहीं. नग्नता के अलावा और कुछ भी नहीं. जबरन एंजौय का ढोंग. फिर तुम्हारी मम्मी के होते, तुम्हारे पापा ने कितना घृणित काम किया? यही है यहां का कल्चर. औैर बात इतने में खत्म नहीं होती. तुम बुजदिल हो. तुम में इंसानियत नाम की चीज नहीं है. मेरा भारत महान है, महान ही रहेगा. वहां दिखावा नहीं है. सच्चे, सीधेसादे लोग बसते हैं, हमारे वतन में.’’

वह तैश में थी, थोड़ा ठहर कर, पल भर रुक कर बोली, ‘‘जयदीप, तुम भी अंगरेज नहीं हो. नाम बदल लेने से किसी के संस्कार, संस्कृति नहीं बदलती, समझे मिस्टर जेन. तुम भी हिंदुस्तानी हो. इस देश ने तुम में अहम भर दिया है. इस देश में तुम पूरी जिंदगी क्यों न बिता लो, तब भी तुम्हारी यहां कोई अहमियत नहीं है. मेरी यह बात याद रखना.’’

हक्काबक्का जेन स्तब्ध खड़ा सुन रहा था. जेन की माताजी भी सिर झुकाए, शर्म से गढ़ी खड़ी थीं. मम्मीपापा के साथ उर्वशी ने डायनिंग टेबल छोड़ दी. उर्वशी ने महसूस किया कि उस के मम्मीपापा की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी. वे खुश थे यह जान कर कि उन की बेटी अब इस लायक हो गई है कि वह अच्छेबुरे की पहचान कर सके और वे लोग उसे नासमझ समझते रहे थे.

बेहद दृढ़ स्वर में उर्वशी बोली, ‘‘हम कल लौट रहे हैं अपने वतन, तुम्हारा लंदन तुम्हें ही मुबारक. एक बात और कि तुम हमें छोड़ने नहीं आओगे.’’

उर्वशी का तमतमाया चेहरा देखने की ताकत जेन में थी ही नहीं, उस ने चुपचाप वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी.

एक बेटी ऐसी भी: जब मंजरी ने उठाया माता-पिता का फायदा

‘‘नानी आप को पता है कि ममा ने शादी कर ली?’’ मेरी 15 वर्षीय नातिन टीना ने जब सुबहसुबह यह अप्रत्याशित खबर दी तो मैं बुरी तरह चौंक उठी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुझे कैसे पता? फोन आया है क्या?’’

‘‘नहीं, फेसबुक पर पोस्ट किया है,’’ नातिन ने उत्तर दिया.

मैं ने झट से उस के हाथ से मोबाइल लिया और उस पुरुष के प्रोफाइल को देख कर सन्न रह गई. वह पाकिस्तान में रहता था. मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. ‘यह लड़की कब कौन सा दिन दिखा दे, कुछ नहीं कह सकते… इस का कुछ नहीं हो सकता.’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

टीना ने देखते ही अपनी मां को अनफ्रैंड कर दिया. 10वीं क्लास में है. छोटी थोड़ी है, सब समझती है.

पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था. मेरे पति घर पर नहीं थे. वे थोड़ी देर बाद आए तो यह खबर सुन कर चौंके. फिर थोड़ा संयत होते हुए बोले, ‘‘अच्छा तो है. शादी कर के अपना घर संभाले और हमें जिम्मेदारी से मुक्ति दे. उस के नौकरी पर जाने के बाद उस के बच्चे अब हम से नहीं संभाले जाते… तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

मैं ने थोड़े उत्तेजित स्वर में कहा, ‘‘अरे, मुक्ति कहां मिलेगी? और जिम्मेदारी बढ़ गई है. जिस आदमी से शादी की है वह पाकिस्तानी है, अब वह वहीं रहेगी. इसीलिए तो उस ने नहीं बताया और चुपचाप शादी कर ली. अब बच्चे तो हमें ही संभालने पड़ेंगे… कम से कम मुझे शादी करने से पहले बताती तो… लेकिन जानती थी कि इस शादी के लिए हम कभी नहीं मानेंगे. मानते भी कैसे. अपने देश के लड़के मर गए हैं क्या? मुझ से तो बोल कर गई थी कि औफिस के काम से मुंबई जा रही है.’’

वे विस्फारित आंखों से अवाक से मेरी ओर देखते रह गए.

‘कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है? उसे अपने बूढ़े मांबाप और बच्चों का जरा भी खयाल नहीं आया?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘उफ, यह तो बहुत बुरी बात है. हमारे बारे में न सोचे, लेकिन अपने बच्चों की जिम्मेदारी तो उसे उठानी ही चाहिए… वैसे बच्चे तो हम ही संभाल रहे थे उस के बावजूद उस के यहां हमारे साथ रहने से घर में तनाव ही रहता था. अब कम से कम हम शांति से तो रह सकते हैं,’’ उन्होंने मुझे सांत्वना दी.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन हम भी कब तक संभालेंगे? हमारा शरीर भी थक रहा है. फिर इन का खर्चा कहां से आएगा?’’ मैं ने थके मन से कहा.

यह सुन उन्हें अपनी अदूरदर्शिता पर क्षोभ हुआ तो फिर सकारात्मक में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हूं.’’

हमारे कोई बेटा नहीं था. इकलौती बेटी मंजरी, जिसे हम ने कंप्यूटर इंजीनिरिंग की उच्च शिक्षा दिलाई थी, को जाने किस के संस्कार मिले थे. उस का जब दूसरा बच्चा हुआ था, तभी से हम अपना घर छोड़ कर उस के बच्चों को संभालने के लिए उस के साथ रह रहे थे. उस के पिता रिटायरमैंट के बाद भी उसे आर्थिक सहायता देने हेतु नौकरी कर रहे थे.

मंजरी के दोनों बच्चे हमारी ही देखरेख में पैदा हुए थे, पले थे. कई बार हम मंजरी के व्यवहार से आहत हो कर यह कह कर कि अब हम कभी नहीं आएंगे, अपने घर लौट जाते, फिर बच्चों की कोई न कोई समस्या देख कर लौट आते. मंजरी हमारी इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाने में नहीं चूकती थी.

हम उसे समझाते तो वह कहती, ‘‘आप लोगों ने जिस तरह मेरी परवरिश की है वैसी मैं अपने बच्चों की नहीं होने दूंगी.’’

वास्तविकता तो यह थी कि वह बिना मेहनत के सब कुछ प्राप्त करना चाहती थी, यह हमें बहुत बाद में ज्ञात हुआ. औफिस से आ कर प्रतिदिन बताना कि आज उस की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी. झूठी बीमारियों की रिपोर्ट बनवा कर हमें डरा कर हम से इलाज के लिए पैसे भी ऐंठती थी.

हम सब को इमोशनली ब्लैकमेल करती थी. शुरू में तो मैं भी उस की रिपोर्ट्स देख कर घबरा जाती थी कि उस का और उस के बच्चों का क्या होगा, लेकिन उस के चेहरे पर शिकन भी नहीं होती थी. बाद में समझ आया कि अकसर वह गूगल पर बीमारियों के बारे में क्यों जानकारी लेती रहती थी. नौकरी छोड़ के बिजनैस करना, उस को बंद कर के फिर नौकरी करना यह उस की आदत बन गई थी. घर के कार्यों में तो उस की रत्ती भर भी रुचि नहीं थी. खाना बनाने वाली पर या बाजार के खाने पर ही उस के बच्चे पल रहे थे.

मंजरी ने पहली शादी नैट के द्वारा अमेरिका रहने के लोभ के कारण किसी अमेरिका निवासी से की, जिस में हम भी शामिल हुए थे. बिना किसी जानकारी के यह रिश्ता हमें समझ नहीं आ रहा था. हम ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर तो अमेरिका का भूत सवार था. फिर वही हुआ जिस का डर था. कुछ ही महीनों बाद वह गर्भवती हो कर इंडिया आ गई.

शादी के बाद अमेरिका जाने के बाद उसे पता लगा कि वह पहले से विवाहित था, तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई थी. हम बेबस थे. उस ने एक बेटी को जन्म दिया. हम ने मंजरी की बेटी को अपने पास रख लिया और वह दिल्ली जा कर किसी कंपनी में नौकरी करने लगी.

एक दिन अचानक जब हम उस से मिलने पहुंचे तो यह देख कर सन्न रह गए कि वह एक पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी. हम ने अपना सिर पीट लिया. हमें देखते ही वह व्यक्ति वहां से ऐसा गायब हुआ कि फिर दिखाई नहीं दिया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 4 महीने का गर्भ उस के पेट में पल रहा था, असहाय से हम कर भी क्या सकते थे. अपना घर छोड़ कर उस के साथ रहने को मजबूर हो गए.

महरी ने जब डोर बैल बजाई तो मेरे विचारों का तारतम्य टूटा. किचन में जा कर बरतन खाली कर उसे दिए और डिनर की तैयारी में लग गई. लेकिन दिमाग पर अभी भी मंजरी ने ही कब्जा कर रखा था. सोच रही थी इनसान एक बार धोखा खा सकता है, 2 बार खा सकता है, लेकिन यह  तीसरी बार… मुसलमानों में तो 4 शादियों की स्वीकृति उन का धर्म ही देता है, तो क्या गारंटी है कि… और एक और बच्चा हो गया तो?

आगे की स्थिति सोच कर मैं कांप गई, लेकिन जो उस की पृष्ठभूमि थी, उस में कोई संस्कारी पुरुष तो उसे अपनाता नहीं. जो कदम उस ने उठाए हैं, उस के बाद क्या वह अपने परिवार को तथा अपनी किशोरावस्था की ओर अग्रसर होती बेटी को मुंह दिखा पाएगी? जरूर कोई बहुत बड़ा आसामी होगा, जिसे उस ने अपने चंगुल में फांस लिया होगा. पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकती है, यह सर्वविदित था. बहुत जल्दी सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, कब तक परदे के पीछे रहेगी.

टीना के द्वारा उस को फेसबुक पर अनफ्रैंड करते ही वह समझ गई कि सब को उस के विवाह की खबर मिल गई है और टीना उस से बहुत नाराज है. आए दिन उस का फोन आने लगा. लेकिन इधर की प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आया. मैं ने मन ही मन सोचा आखिर कब तक बात नहीं करूंगी? बच्चों के भविष्य के बारे में तो उस से बात करनी ही पड़ेगी.

एक बार उस का फोन आने पर जैसे ही मोबाइल को अपने कान से लगा कर मैं ने हैलो कहा, वह तुरंत बोली, ‘‘टीना को समझाओ… मुझे भी तो खुशी से जीने का हक है. मेरे विवाह से किसी को क्या परेशानी है. अभी भी मैं अपने बच्चों की जिम्मेदारी संभालूंगी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी, क्योंकि जिस से मैं ने विवाह किया है उस का बहुत समृद्घ व्यवसाय है…’’

मुझे उस का कथन बड़ा ही हास्यास्पद लगा और मैं ने जो उस के वर्तमान पति की हैसियत के बारे में अनुमान लगाया था वह सत्य निकला. फिर एक दिन अचानक बहुत बड़ा सा कूरियर आया, जिस में बहुत महंगे मोबाइल और बच्चों के लिए कपड़े थे और औन लाइन बहुत सारा खाने का सामान, जिस में चौकलेट, केक, पेस्ट्री आदि भेजा था. सामान को देख कर चिंटू के अलावा कोई खुश नहीं हुआ.

एक दिन मंजरी ने हमें अपने बच्चों का वीजा बनवाने के लिए कहा कि एअर टिकट वह भेज देगी और हमारे लिए भी फ्लाइट के टिकट भेजेगी ताकि हम अपने घर लौट जाएं.

यह सुनते ही टीना आक्रोश में बोली, ‘‘नहीं जाना मुझे. आप के पास रहना है, आई हेट हर…’’ चिंटू बोला, ‘‘मुझे जाना है, ममा के पास, लेकिन वे यहां क्यों नहीं आतीं?’’

मैं तो शब्दहीन हो कर सन्न रह गई. थोड़ा मौन रहने के बाद कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बहुत अच्छा संदेश दिया है तूने… तूने बच्चों को जन्म दिया है, तेरा पूरा अधिकार है उन पर, कानून भी तेरा ही साथ देगी. हम तो केयरटेकर मात्र हैं. हमारा कोई रिश्ता थोड़ी है बच्चों से… पूछे कोई तुम से रातरात भर जाग कर किस ने बच्चों को पाला है. वहां जाने के बाद तो हम इन से मिलने को तरस जाएंगे.

‘‘यदि तुम्हें बच्चों की इतनी चिंता होती तो ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं, पैसे के नहीं. हमारी भावनाओं की तो कद्र ही नहीं है, जाने किस मिट्टी की बनी है तू. मुझे अफसोस है कि  तू मेरी बेटी है, मुझे तुझ पर ही विश्वास नहीं है कि तू बच्चों को अच्छी तरह पालेगी, फिर मैं उस सौतेले बाप पर कैसे कर सकती हूं…’’

‘‘चिंटू जाना चाहे तो चला जाए, लेकिन टीना को तो मैं हरगिज नहीं भेजूंगी. जमाना वैसे ही बहुत खराब है… यदि मैं नहीं संभाल पाई तो होस्टल में डाल दूंगी,’’ मैं ने एक सांस में अपनी सारी व्यथा उगल दी. मेरे वर्चस्व का सब ने सम्मान कर के मेरे निर्णय का समर्थन किया. टीना के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वह मेरे गले से लिपट गई.

डबल सैलिब्रेशन

जैसे ही अंगद के बौस चौहान सर ने उस के प्रमोशन की खबर अनाउंस की, सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि प्रमोशन के साथसाथ उसे औफ़िस की तरफ़ से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में 2 साल के लिए शिकागो भेजा जा रहा था. अंगद की टीमवर्क के नेचर व जौब के प्रति उस की डैडिकेशन की आदत ने सिर्फ़ 2 साल में ही उसे इस प्रमोशन का हक़दार बनाया था. उस के प्रमोशन से सभी बहुत खुश थे.

“वाऊ, यू आर सो लकी अंगद, तेरी तो लौटरी खुल गई, यार,” उस के ख़ास दोस्त नितिन ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा. उस के कहने पर अंगद थोड़ा सा मुसकराया. “चल, पार्टी दे बढ़िया सी,” नितिन आगे बोला.

तभी चौहान सर अंगद की तरफ आए, “क्या हुआ यंग बौय, इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी सुन कर तुम ख़ुश नहीं नज़र आ रहे, एनी प्रौब्लम?”

“नो, नो सर, नथिंग,” कहते हुए न चाहते हुए भी उस की ज़बान लड़खड़ा गई.

“नो, एवरीथिंग इज़ नौट ओके, तुम्हारा चेहरा कुछ कह रहा है और आंखें कुछ और ही बयां कर रही हैं. तुम अपनी प्रौब्लम शेयर कर सकते हो. शायद, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.”

“ओके सर. थैंक्स, सो नाइस औफ यू.”

“घर जाओ, पार्टी करो और अपनी इस ख़ुशी को एंजौय करो,” चौहान सर ने कहा.

चौहान सर के यह कहने पर अंगद मिठाई का डब्बा ले कर घर पहुंचा और मां को गुड न्यूज़ सुनाई, “मां, तेरी बरसों की मेहनत ने रंग दिखा दिया है. मुझे आज प्रमोशन मिला है और साथ ही, 2 साल के लिए विदेश जाने का मौक़ा भी.”

मां मानसी के चेहरे पर प्रमोशन की बात सुन कर ख़ुशी की लहर दौड़ गई लेकिन दूसरे ही क्षण 2 साल के लिए शिकागो जाने की बात सुन कर चेहरे पर कई रंग आए और गए.

मानसी अपनी आंखों की नमी छिपाते हुए बोली, “इतने लंबे समय के लिए जा रहा है तो शादी कर के मीरा को भी साथ ले कर जा. वह बेचारी तो तेरे लौटने के इंतज़ार में 2 साल मै सूख कर आधी हो जाएगी.”

“और तुम्हारा क्या मां, तुम भी तो इतने बड़े घर में एकदम अकेली पड़ जाओगी.”

मां चुप रह गई यह सुन कर. अंगद मां की आंखों की नमी देख कर परेशान हो गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में वह क्या निर्णय ले. उस ने मीरा को फ़ोन मिलाया. उसे मालूम था कि मीरा बहुत प्रैक्टिकल है, वह इस परिस्थिति का कोई न कोई हल ज़रूर निकाल ही देगी.

मीरा अंगद की मंगेतर थी. अंगद और मीरा का रिश्ता अंगद के पिता रमाकांत ने अपने दोस्त विश्वनाथ से बात कर के बचपन में ही पक्का कर दिया था. मीरा व अंगद भी युवावस्था तक आतेआते अपने इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके थे. मीरा भी एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी मे मार्केटिंग हैड के पद पर कार्यरत थी.

अंगद के पिता की मृत्यु जब वह 15 साल का था, तभी हो गई थी एक सड़क दुर्घटना में. मानसी के सुखी दांपत्य को दुख की काली छाया ने ढक लिया था. मानसी ने अंगद के सुनहरे भविष्य की ख़ातिर इस दुर्घटना को विधि का विधान मान कर अपने मन को समझा लिया था.

मानसी अधिक शिक्षित नहीं थी. लेकिन व्यावहारिकता व कर्मठता कूटकूट कर भरी थी उस में. बचपन में सीखे बुनाई के हुनर को तराशा. मानसी के हाथ के बने स्वेटर मार्केट के रैडीमेड स्वेटरों को मात देते. मानसी ने मीरा की मदद से अपने इस काम में बुनाई में रुचि रखने बाली कई महिलाओं को जोड़ लिया जिस से मार्केट से मिलने वाले और्डर को सही समय पर पूरा किया जा सके. थोड़ा समय ज़रूर लगा लेकिन कुछ ही दिनों में काम काफ़ी बढ़ गया और सफलता मिलने लगी.

अपने व्यस्त कार्यकारी जीवन में भी उस ने अंगद की हर छोटीबड़ी ज़रूरत का ध्यान रखा और देखतेदेखते अंगद ने इंजीनियरिंग पास कर के एमबीए भी कर लिया व नामी कंपनी हिंदुस्तान लीवर में नौकरी भी मिल गई.

मीरा का अंगद के घर जबतब आनाजाना लगा रहता था. दोनों ही अपनीअपनी हर छोटीबड़ी बात शेयर करते, फ़ोन पर घंटों बात करते और फ्यूचर के रंगीन सपने बुनते. वीकैंड दोनों साथ ही गुज़ारते कभी लौंग ड्राइव पर जा कर तो कभी रोमांटिक फ़िल्म देख कर.

अंगद ने फ़ोन कर के नीरा को अपने प्रमोशन व शिकागो जाने की बात शेयर की तो मीरा ख़ुशी से उछल पड़ी, “ओह, व्हाट अ प्लेजंट सरप्राइज़. मुझ से तो रुका ही नहीं जा रहा. मैं औफ़िस से सीधे तुम्हारे घर आ रही हूं इस ख़ुशी को सैलिब्रेट करने के लिए.”

मीरा के आने पर अंगद ने बताया कि मां चाहती है, शिकागो जाने से पहले शादी कर के तुम्हें भी साथ ले कर जाऊं.

“वह सब तो ठीक है, यदि मैं और तुम दोनों चले गए तो मां बेचारी तो एकदम अकेली पड़ जाएंगी न.”

“हां, मैं भी तो तब से यही सोच रहा था और प्रमोशन व शिकागो की ट्रिप पर जाने की न्यूज़ को एंजौय ही नहीं कर पा रहा था. क्या शिकागो जाने का औफ़र ठुकरा दूं? अंगद ने पूछा.

“अरे नहींनहीं, समय का दरवाज़ा हर समय सब के लिए नहीं खुलता. तुम तो इस मौक़े को लपक लो दोनों हाथों से, बाक़ी सब मुझ पर छोड़ दो. रही मेरी और तुम्हारी शादी की बात, सो मेरी एक शर्त है, मैं तुम से शादी तभी करूंगी जब तुम मां को भी सैटल कर दो.”

“मतलब?” अंगद ने चौंकाते हुए कहा.

“मतलब सीधा सा है, अपनी शादी करने से पहले मां की भी शादी करा दो.”

“यह क्या अंटशंट बोल रही हो. नातेरिश्तेदार सब क्या कहेंगे ये सब सुन कर. कुछ भी बोल देती हो बिना सोचेसमझे. यह कोई उन की शादी करने की उम्र है क्या? तुम भी कभीकभी सिरफिरों जैसी बातें करती हो. मां भला मानेगी शादी के लिए इस उम्र में?”

“आजकल यह सब कोई नई बात नहीं है,” मीरा ने जवाब दिया, “हम तुम तो शादी कर के उड़नछू हो जाएंगे लेकिन मां की तो सोचो. मां आसानी से तो राज़ी नहीं होगी परंतु मैं उन्हें मना लूंगी. और फिर, मां की अभी उम्र ही क्या है, मुश्किल से 50-55 वर्ष के बीच की होगी. सोचो, कितना संघर्ष कर के मां ने तो तुम को इस मुक़ाम तक पहुंचाया है.

“जिंदगी में खुशियों की हक़दार तो वे भी हैं खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलगअलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुज़रा हो. ज़िंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. लोग क्या कहेंगे जैसे पूर्वाग्रह से डर कर क्या हम मां की ज़िंदगी में आती खुशियों को नहीं रोक रहे. क्या फ़र्क पड़ेगा किसी को यदि मां बाक़ी की अपनी ज़िंदगी हंस कर गुजारे तो. जिंदगी इतनी कठोर भी नहीं होती की उम्मीद की संभावनाओं को अनदेखा कर दिया जाए.”

मीरा की कही बातों का अंगद पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा था.

“तुम को मेरे पापा के दोस्त शर्मा अंकल याद हैं न. अचानक मीरा ने चहकते हुए कहा, “आंटी के गुज़र जाने के बाद एकदम अकेले पड़ गए थे. फिर बहूबेटे उन्हें अपने साथ ज़िद कर के अमेरिका ले गए. जाने से पहले अंकल यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर गए थे. मन में था कि अब शेष लाइफ बच्चों के साथ उन के पास रह कर ही गुज़ारेंगे लेकिन 6 महीने में ही उन का मोहभंग हो गया. अकेलेपन से तो वहां भी पीछा नहीं छूटा. हालांकि बेटाबहू अपनी तरफ़ से भरसक प्रयास करते लेकिन जौव की मजबूरियां उन्हें बांधे रखतीं. चाहते हुए भी वे दोनों शर्मा अंकल को उतना समय नहीं दे पाते.

“शर्मा अंकल के लिए इस उम्र में वहां की लाइफ़स्टाइल अपनाना मुसीबत सा लगता. काफ़ी सोचविचार के बाद अपने देश इंडिया आने का निर्णय कर लिया, ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ वाली कहावत उन्हें याद आई.

“हां, इंडिया वापस आ कर अपने लिए एक लाइफ़पार्टनर के साथ शेष लाइफ़ गुज़ारने का सपना ज़रूर साथ लाए.

“एक दिन पापा के पास आ कर जब अपने लिए लाइफ़पार्टनर तलाशने की बात की तो पहले तो पापा को उन की बातों पर यक़ीन नहीं हुआ, पापा ने पूछा, क्या तू सच में सीरियस है इस शादी की बात को ले कर?

“उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे कुछ दिन कहीं पेइंगगेस्ट बन कर रहने का इंतज़ाम करना होगा, फिर आगे का प्लान पूरा करना है.’

“मैं और पापा उन अंकल की बातें सुन रहे थे, तभी मेरे मन में आइडिया आया, सोचो, तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा रूम तो ख़ाली हो ही जाएगा और मां अकेली हो जाएंगी. सो, क्यों न शर्मा अंकल को तुम्हारे घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ़्ट करवा दें. घर में रौनक भी रहेगी और मां का अकेलापन भी नहीं रहेगा. दोनों साथ रहेंगे तो मेलजोल भी बढ़ेगा और एकदूसरे की पसंद व नापसंद भी जान जाएंगे. फिर साथ रहतेरहते कौन जाने इन दोनों का मन भी मिल जाए.”

अंगद को मीरा का आइडिया क्लिक कर गया.

अंगद के जाने के बाद मीरा ने उस की मां मानसी से बात कर के शर्मा अंकल को उस के घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ़्ट करवा दिया. कुछ दिनों तक तो शर्माजी मानसी से सिर्फ जरूरतभर की ही बातचीत करते, जिस का जवाब मानसी हां या हूं में ही देती.

मानसी सरल स्वभाव की महिला थी. उसे बेवजह किसी से बात करना पसंद नहीं था. शायद, इस का कारण उस की परिस्थितियां थीं. उस का अधिकांश समय अपनी बुनाई के और्डर पूरा करने में ही व्यतीत होता.

शर्माजी को मानसी का ऐसा व्यवहार नागवार लगता. वे चाहते कि मानसी उन से खुल कर बातचीत करे, उन के साथ हंसेबोले, घूमने जाए. इस के लिए शर्माजी मानसी को विदेश का उदाहरण दे कर बताते कि वहां लोग लाइफ को कैसे एंजौय करते हैं.
एक दिन वे बोले, “मानसी, तुम को अपनेआप को सिर्फ काम में ही नहीं मगन रहने देना चाहिए. यू नो, मानसी, लाइफ में एंजौयमैंट भी बहुत जरूरी है. तुम अपनी इस बोरिंग लाइफ से बाहर निकलो. घर के पास की टौकीज में एक पुरानी मूवी लगी है ‘हम दिल दे चुके सनम.‘ मैं ने कल के 2 टिकटें बुक
करवा लिया है. कल हमतुम दोनों पहले मूवी देखने जाएंगे, फिर किसी अच्छे रैस्तरां में डिनर करेंगे. तुम अच्छी तरह तैयार हो कर चलना.”

मानसी को शर्माजी का उस की लाइफ में इस तरह घुसते जाना व जिंदगी जीने के बारे में समयसमय पर अपने सुझाव देना नागवार लगने लगा. हद तो तब हो गई जव शर्माजी एक दिन बाहर से पी कर लौटे और घर में घुसते ही उन्होंने मानसी का हाथ पकड़ लिया. उस समय मानसी ने उन को धक्का दे कर अपनेआप को
बचाया और अपने रूम में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.

मानसी उस पूरी रात सो न सकी. उस ने मन ही मन शर्माजी को अपने घर से निकालने के बारे में सोचा. दूसरे दिन जव वह अपने बुनाई का औडर देने दुकान पर गई तो उस दुकान के मालिक ने उसे टोका, “क्या बात है, आप कुछ परेशान लग रही हैं. यदि आप चाहें तो अपनी समस्या मुझ से शेयर कर सकती हैं.”

मानसी चूंकि उस दुकानदार को अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि बुनाई का व्यवसाय शुरू करने में इन मिस्टर यादव ने काफी मदद की थी, सो यादवजी से घरेलू ताल्लुकात हो गए थे. मानसी ने शर्माजी के अव तक के व्यवहार के बारे में सारी बातें यादवजी को बता दीं, साथ ही, यह इच्छा भी जाहिर कर दी कि वह अब
शर्माजी को अपने घर से निकालना चाहती है.

मिस्टर यादव के उस शहर में कई बड़े शोरूम थे, उस का उठनाबैठना कई रसूखदारों से था. उस ने मानसी को विश्वास दिलाया कि इस शर्मा नाम की मुसीबत से छुटकारा दिलाने में वह उस की पूरी मदद करेगा.

वादे के मुताबिक यादव ने शर्माजी को मानसी के घर से निकलवा दिया. यादव 45-50 वर्ष की उम्र का आदमी था, सो अब मानसी के घर उस का आनाजाना बराबर लगा रहता. यादव की पत्नी एक फैशनेबल महिला थी, किटी, जिम, मौल में शौपिंग व सैरसपाटा उस की आदतों में शामिल था. यादव का मानसी के घर आनाजाना लगा रहता, कभी पत्नी के साथ तो कभी अकेले भी आ जाता. मानसी उस के एहसान तले दब सी गई थी, सो कुछ कह भी न पाती.

अड़ोसपड़ोस के लोगों ने जब यादव को इस तरह खुलेआम उन के घर आतेजाते देखा तो उन को यह सब अच्छा नहीं लगा. यादव की फैशनपरस्त बीवी ने मानसी को अपने साथ ले जा कर किटी पार्टी था मैंबर बनवा दिया था. इतना ही नहीं, वह अपने साथ मानसी को शौपिंग करवाने के लिए मौल भी ले जाने लगी. देखा जाए तो मानसी एक तरह से उन के हाथों की कठपुतली सी बन गई थी. यादव ने व्यावसायिक रूप से उस की इतनी मदद की थी कि वह कुछ कह ही न पाती.

जब मीरा को इन सब बातों का पता चला तो उस ने इस बाबत अंगद से फोन पर बात कर के सारा हाल उसे बताया. अंगद ने सारी बातें सुनने के बाद कहा, “मीरा, क्या टैलीपैथी है मेरेतुम्हारे बीच, इनफैक्ट मैं भी अब चाहता हूं कि मां का घर भी बसा ही दूं ताकि आसपड़ोस वालों की उंगलियां उठनी बंद हो जाएं.

“यहां मेरी मुलाकात मेरे बचपन के दोस्त समीर से अचानक हुई. वह भी अपने डैड के अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी जानपहचान में शादी करवा के उन का घर फिर से बसाना चाहता है.

“मैं ने मां की बाबत जब सबकुछ बताया तो वह बहुत खुश हुआ, कहने लगा, ‘अरे, हम दोनों तो एक ही कश्ती में सवार हैं, फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द हम दोनो इंडिया आने का प्रोग्राम बनाते हैं. अब तो मेरे डैड व तेरे सिर पर सेहरा एकसाथ ही बंधेगा.’ यानी, डबल सैलिब्रेशन.” और मीरा सैलिब्रेशन की तैयारी में जुट गई.
***

पन्ने पैनड्राइव के

एक बार देखने पर रीवा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. सो उस ने दोबारा दर्पण में देखा और पूरा ध्यान अपनी आंख के उस कोने पर केंद्रित किया जहां पर उसे संदेह था, क्या त्वचा की यह सिकुड़न उस की बढ़ती आयु को दिखा रही है, कहीं यह झुर्री तो नहीं है? हां, यह झुर्री ही तो है.

‘खुश रहा करो, तनाव लेने से ऐसी झुर्रियां आती हैं चेहरे पर,’ यह सुना था रीवा ने लेकिन तनाव तो वह लेती नहीं.

‘बहुत से तनाव लिए नहीं जाते पर वे हमारे अंतर्मन में इस तरह बैठे होते हैं कि चेहरे पर अनजाने में ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं,’ कहा था एक बार रीवा की सहेली सिमरन ने.

‘कोई बात नहीं, अब हम और भी अनुभवी कहलाएंगे इस हलकी सी झुर्री के साथ,’ 48-वर्षीया रीवा ने मुसकराते हुए अपनेआप से कहा.

रीवा की आयु भले ही बढ़ गई हो पर उस के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का भंडार था. गिलास आधा खाली या भरा में से उस ने सदैव ही भरे गिलास को चुना था. जीवन की हार को भी अच्छे शब्दों में परिभाषित कर के उसे एक अच्छा आयाम दे देना रीवा के व्यक्तित्व का मुख्य हिस्सा था.

अभी रीवा आईने के सामने से हट नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. मोबाइल पर एक निश्चित रिंगटोन के बजने से ही रीवा को पता चल गया था कि यह फोन सुबाहु का था. रीवा जब तक मोबाइल उठाती तब तक मोबाइल कट गया पर रीवा के डायल करने से पहले ही दोबारा कौल आ गई, उधर से सुबाहु का व्यग्र स्वर था-

“क्या आंटी, आप ने आने में इतनी देर कर दी, हम सब कब से आप का वेट कर रहे हैं. और कितनी देर लगाओगी आप?”

सुबाहु और भी लंबी शिकायत करता पर रीवा ने बीच में ही टोक कर कहा कि अभी उसे 15 मिनट और लगेंगे. सुबाहु का हताशाभरा स्वर “ओह नो” रीवा के कानों में सुनाई दिया, जिसे सुन कर  बिना मुसकराए नहीं रह सकी वह, मोबाइल रख कर वह झटपट तैयार होने लगी.

रीवा को लखनऊ शहर के बाहरी इलाके में बने रिजौर्ट गोमती राइड में पहुंचना था जहां पर सुबाहु का 25वां जन्मदिन सैलिब्रेट होना था. सुबाहु अपनी मम्मी रेवती और पापा अभिराज के साथ पहुंच चुका था.

रीवा के वहां पहुंचते ही सुबाहु का चेहरा खिल गया और उस ने लपक कर रीवा का स्वागत किया. रेवती और अभिराज से मिलने के बाद सुबाहु ने अपने दोस्तों से भी रीवा को मिलवाया और केक काटने के बाद जब गिफ्ट देने की बारी आई तो रीवा सुबाहु को गोमती राइड के लौन में ले गई जहां पर एक शानदार कवर से ढकी थी एक चमचमाती स्पोर्ट्स बाइक. सुबाहु बाइक देख कर खुशी से चीख पड़ा. अभी वह ठीक से खुश भी नहीं हो पाया था कि अभिराज ने रीवा से इतना महंगा गिफ्ट देने के लिए नाराज़गी जताई.

“कुछ भी महंगी नहीं, सुबाहु के शौक के आगे इस बाइक की कीमत कोई माने नहीं रखती,” रीवा ने कहा तो अभिराज प्यारभरी कसमसाहट में पड़े दिखाई दिए पर कुछ कह नहीं सके. पत्नी रेवती और रीवा एकसाथ खड़े मुसकरा रहे थे. सुबाहु बाइक स्टार्ट कर चुका था. सारे दोस्त सुबाहु से मन ही मन रश्क कर रहे थे.

सुबाहु ने जब से होश संभाला है तब से रीवा आंटी को मेहता परिवार की फैमिलीफ्रैंड के रूप में ही जाना, जो उस परिवार के हर सुख और दुख में शामिल होती थी.

सीबीडी बैंक में मैनेजर के पद पर काम करने वाली रीवा, मेहता परिवार की नई गाड़ी की प्लानिंग में शामिल होती तो पिकनिक में भी साथ होती. खूबसूरत और अपने जीवन में  एक सफल महिला होने के बावजूद रीवा ने शादी क्यों नही की, यह बात बहुत से लोगों को समझ नहीं आती थी. सुबाहु भी उन में से एक था और उस ने कई बार अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश भी की पर हर बार रीवा ने उस के प्रश्न को टाल दिया.

सुबाहु भी अपने जीवन के हर छोटेबड़े काम में रीवा की सहायता लेता था फिर चाहे वह कालेज के ऐनुअल डे की स्पीच हो या फिर किसी प्रोजैक्ट का. रीवा भी व्यस्त होने के बावजूद बड़े मनोयोग से सहायता करती थी सुबाहु की.

उस दिन सुबाहु देरशाम रात 8 बजे  रीवा के फ्लैट पर पहुंचा. वह काफी परेशान लग रहा था. जब उस की परेशानी रीवा ने जाननी चाही तो उस ने बताया कि उसे उस के क्लास में साथ पढ़ने वाली एक बहुत सुंदर लड़की से प्यार हो गया है.

“बधाई हो भाई, तुम्हें प्यार हुआ. इस में हैरान और परेशान होने वाली बात क्या है?” रीवा ने चुटकी लेते हुए कहा तो सुबाहु ने अपनी प्रौब्लम बताते हुए कहा, “वह लड़की बहुत सुंदर है और उसे इस बात का गुमान भी है. कालेज का हर लड़का उस पर डोरे डाल रहा है. वह मेरी अच्छी फ्रैंड है. मैं उस से अपनी प्रौब्लम्स शेयर करता हूं पर उस की बातों से लगता है कि वह मेरी  25 और उस की 23 वर्ष की आयु को विवाह के लिये ठीक नहीं मानती और पहले अपना कैरियर बनाना चाहती है.”

रीवा बड़े ध्यान से सुबाहु की सारी बातें सुनीं. उस ने सुबाहु से कुछेक सवाल किए, मसलन वह उस लड़की को कब से जानता है, वह उसे क्यों पसंद है इत्यादि. जो उत्तर सुबाहु ने उसे दिए उस के आधार पर रीवा ने जो फैसला सुनाया वह सुबाहु को बड़ा नागवार गुज़रा था.

रीवा ने कहा कि कुछ दिनों की जानपहचान और शारीरिक सुंदरता को देख कर होने वाला प्यार अकसर ही आभासी प्यार होता है. उस में व्यग्रता तो होती है पर स्थायित्व नहीं होता. जोश और जनून तो होता है पर गहराई नहीं होती.

रीवा की बातें सुबाहु को समझ नहीं आ रही थीं. उस ने मुंह बना कर कहा कि प्रेम तो प्रेम होता है, असली और नकली क्या?

“अकसर ही नकली चीजें असली चीजों से भी ज्यादा असली लगती हैं,” रीवा ने मुसकराते हुए कहा तो सुबाहु खीझ उठा, बोला, “आप ने अब तक शादी नहीं की पर प्यार तो किया होगा न, तो क्या वह नकली प्यार था या कोई ऐसा था जो आप को धोखा दे कर चला गया, तो क्या आप पहचान पाईं असली और नकली प्यार को?”

सुबाहु के इन तीखे सवालों पर रीवा का जी चाहा कि वह इन सब बातों का उत्तर दे दे पर नाजुक विषय और सुबाहु के इमोशन देख कर फिलहाल चुप रह जाना पड़ा था उस को. सुबाहु अभी भी प्यार के जनून में तो था पर उसे भी लगा कि वह थोड़ा अधिक बोल गया है.

कुछ देर की खामोशी के बाद रीवा सहज होते हुए बोली कि अभी वह घर चला जाए, सुबह इस मैटर पर बात होगी.

सुबाहु वापस लौट आया था पर उस ने रीवा के दबे जख्मों को कुरेद दिया था जिस से अब दर्द की टीस उठनी शुरू हो गई थी और वह टीस चीखचीख़ कर अपना दर्द किसी दूसरे को बताना चाहती थी.

रीवा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही सुबाहु से मिलने के लिए उस के घर जा पहुंची. रेवती और अभिराज उसे देख कर थोड़ा चौंके.

रीवा सीधा सुबाहु के कमरे में गई और उसे एक पैनड्राइव देते हुए कहा, “असल में इस पैनड्राइव के अंदर मेरी डायरी के कुछ ऐसे राज़ हैं जिन्हें मैं अपनी डायरी पर लिखती थी, सोचती थी समय मिलने पर इन्हें किताब का रूप दूंगी पर दे नहीं सकी. इस पैनड्राइव में स्टोर डायरी के पन्ने तुम्हें प्रेम की सही परिभाषा समझाने में मदद करेंगे.”

रीवा का यह रूप देख कर अभिराज और रेवती दोनों की आंखों में कई सवाल उभर आए थे और सारे सवाल मिल कर यही कह रहे थे कि नहीं, रीवा, ये सब उसे बताना ठीक नहीं. पर रीवा भला कहां सुनने वाली थी, वह हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई. अभिराज शांत खड़े थे, उन्होंने इशारे से रेवती को भी शांत रह कर अपना काम करने को कहा.

सुबाहु उस पैनड्राइव में स्टोर बातों को पढ़ने के लिए बहुत व्यग्र हो रहा था. उस ने अपने लैपटौप में पैनड्राइव लगा दी और बिस्तर पर लेट कर लैपटौप बगल में रख लिया और जो कुछ लैपटौप की स्क्रीन पर आया उसे बड़े धयान से वह पढ़ने लगा. जैसेजैसे वह पंक्तिदरपंक्ति पढ़ता गया वैसेवैसे ही उसके चेहरे पर कई रंग बदलते गए और उत्सुकता की चरमसीमा पर पहुंचने लगा. सुबाहु से लेटा न जा सका. उस की रीढ़ की हड्डी में चेतना और व्यग्रता का संचार तेज़ी से हो रहा था, वह उठ कर बैठ गया.

‘पर इतना सब कैसे हो सकता है? और मुझे इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं लग सका?’ अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर मां से यही सवाल था सुबाहु का.

“मां, रीवा आंटी की पैनड्राइव से मुझे पता चल चुका है कि आप तीनों ने मुझ से बहुतकुछ छिपाया. आप तीनों में एक अद्भुत रिश्ता है. रीवा आंटी और पापा एक दूसरे से कालेज के समय से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे पर रीवा आंटी की दूसरी जाति यानी बढ़ई जाति के होने से पापा के घरवालों को एतराज़ था जिस के कारण वे दोनों शादी नहीं कर पाए पर पापा और रीवा आंटी की दोस्ती अब तक कायम है,” सुबाहु किसी कथाकार की तरह सबकुछ वर्णित कर रहा था और रेवती शांति से उसे सुने जा रही थी.

“रीवा आंटी का हमारे घर में इतना इन्वौल्वमैंट? आई मीन, आप ने पापा की पत्नी होते हुए भी किसी दूसरी औरत को घर में और हमारे जीवन में दखल सहन कैसे कर लिया?” सुबाहु चुप हो गया था पर एक प्रश्नचिन्ह उस के चेहरे पर तैर रहा था.

रेवती ने अब बोलना ठीक समझा और सुबाहु को बताया कि जब उस की शादी अभिराज से हुई तो किसी भी अन्य लड़की की तरह उस के अरमान भी आसमान छू रहे थे पर ये अरमान तब धड़ाम हो गए जब एक रात को अभिराज ने खुद ही अपने और रीवा के रिश्ते के बारे में उसे बता दिया. वह सदमे में आ गई थी कि उस का पति पहले से किसी लड़की के प्रेम में रंगा हुआ है, ऐसे में उस का प्रेम फीका ही रह जाएगा और वह अपने हिस्से के प्रेम और अधिकार की मांग करते हुए अभिराज से विवाद कर वैठी. अभिराज से उस ने कई हफ्तों तक बात ही नहीं की. विवाह के तुरंत बाद पत्नी से मनमुटाव हो जाए, तो उस का असर पूरे घर पर होता ही है, अभिराज भी तनाव में रहने लगे थे. उन्होंने उसे मनाना चाहा पर वह न मानी.

रेवती पुरानी यादें बता रही थी पर इस समय उस के चेहरे पर बीती बातों का कसैलापन नहीं दिख रहा था बल्कि एक असीम शांति छाई हुई थी. रेवती ने आगे बोलना शुरू किया, “मैं अभिराज के साथ रिश्ता तोड़ देती अगर उस दिन रीवा ने घर आ कर मुझे न समझाया होता कि प्रेम के सही माने क्या होते हैं.

“रीवा के शब्दों में- ‘जब 2 लोग आपस में प्रेम करते हैं तो उन का प्रेम एकदूसरे के ह्रदय को स्पर्श तो करता है पर इस का मतलब यह नहीं होता कि उन्होंने एकदूसरे के शरीरों को भी स्पर्श किया है.’

“रीवा की इस बात से मैं थोड़ा नरम हुई थी. इस के बाद रीवा अकसर मुझ से मिलने के लिए घर आने लगी. वह अकसर ही हरवंशराय बच्चानजी की कविता की पंक्तियां दोहराती कि ‘जो बीत गई सो बात गई’ और बड़े जोशीले अंदाज़ में कहती, ‘लेट्स मूव औन, यार.’

“उस की बातों में कभीकभी बनावटीपन भी लगता था पर एक बार जब मुझे मेरे ममेरे भाई की शादी में मायके जाना था पर उस समय अभिराज अपना नाम और कैरियर बनाने में व्यस्त थे और चाहते थे कि मैं उन के साथ रहूं और काम की व्यस्तता में उन का ध्यान रखूं तो रीवा ने मुझे सपोर्ट करते हुए अभिराज से कहा कि शादी के शुरुआती कुछ दिनों में लड़की को अपने मायके आनेजाने से नहीं रोकना चाहिए क्योंकि इन दिनों में लड़कियों के मन में मायके का प्रेम हिलोरें मारता रहता है.

“रीवा की इस बात से मेरे मन में उस के लिए थोड़ी जगह बनी तो बाकी जगह उस ने गुजरते वक्त के साथ बना ली, जैसे मेरी तबीयत खराब होने पर मेरे सिरहाने बैठी रहती और एक नर्स की तरह मेरा ध्यान रखती. जब तुम गर्भ में आए तब भी वह परछाई की तरह मेरे साथ और पास रही. कभीकभी अभिराज से मेरी वकालत करते करते वह लड़ जाती और वुमेनहुड को सपोर्ट करती.

“उस का मेरी तरफ यह झुकाव भी मुझे असहज बना रहा था. मुझे लगा कि उस का मेरे घर यों आनाजाना और मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करना कहीं उस का कोई निजी स्वार्थ या प्रयोजन तो नहीं,’ रेवती की बातों को बड़े धयान से सुन और समझ रहा था सुबाहु.

“‘क्यों करती हो ऐसा? क्या महान बनना चाहती हो अभिराज की नज़रों में?’ मैं लगभग चीख कर बोली थी रीवा से लेकिन इस बात का उस ने बड़ी शांति से उत्तर दिया, ‘मुझे गलत मत समझो, रेवती. तुम अगर कहो तो अभिराज की तरफ देखूंगी भी नहीं और मैं यहां आना बंद कर दूंगी पर फिर भी बताना चाहूंगी कि मैं यहां क्यों आती हूं?’ और फिर उस ने मुझे अपनी लिखी पंक्तियां सुनाईं जो उस ने कभी अभिराज के लिए लिखी थीं-

‘हां यह सच है कि मैं तुम से प्रेम करती हूं

पर प्रेम की परिणीति विवाह हो, 

यह आवश्यक तो नहीं

ज़रूरी तो प्रेम है

जो बेशर्त है, निस्वार्थ और निश्च्छल,

तुम्हें बताऊं

तुम्हारे सिवा अब मुझ को कोई और नहीं भाएगा 

मेरे जीवन में अब कोई और न आएगा

और हां,

मैं तुम्हारी हर चीज़ से प्रेम करती रहूंगी

यहां तक कि

तुम्हारी बाकी सब प्रेमिकाओं से भी.’

“रीवा की इन पंक्तियों ने मेरा मन साफ कर दिया था. मेरी रीवा के प्रति सारी ईर्ष्या तिरोहित होती जा रही थी भले ही अभिराज से मेरा विवाह हुआ है पर उस से सच्चा प्रेम तो रीवा ने ही किया है. मैं रीवा के सामने अपनेआप को काफी छोटा महसूस कर रही थी और इसी कारण मैं उसे एक सौतन नहीं बल्कि एक अच्छी दोस्त के रूप में स्वीकार कर पाई और आज रीवा हम सब की अच्छी फैमिलीफ्रैंड है.”

रेवती खामोश हो गई, अभिराज चाय के घूंट लेने लगे थे. सुबाहु के मन के अंदर रीवा की एक नई इमेज बन गई थी जो पहले से बहुत अलग थी. वह काफीकुछ समझ गया था और उस के कई सवालों के उत्तर भी मिल गए थे.

कुछ दिनों तक उस ने रीवा आंटी से कोई संपर्क नहीं किया. एक दिन उस ने रीवा आंटी को फोन किया और अपनी बाइक ले कर रीवा को पिक करने उस के बैंक पहुंच गया और उसे ले कर सीधा अपने घर पर आ गया जहां पर रेवती और अभिराज पहले से ही रीवा और सुबाहु का वेट कर रहे थे.

रीवा की आंखों में कई प्रश्न तैर रहे थे, जल्द ही उसे इन सब के उत्तर मिल गए. सुबाहु ने रीवा को सुनहरी जिल्द में लिपटी हुई एक पुस्तक भेंट की. रीवा ने किताब को देखा, किताब का शीर्षक था- ‘परिभाषा प्रेम की’.

रीवा समझ गई थी कि पैनड्राइव के डिजिटल और व्यक्तिगत पन्नों को किताब के रूप में लाने का साहस रीवा तो नहीं कर पाई थी पर वह काम सुबाहु ने कर दिखाया.

“आंटी, आप से ही मैं ने जाना है कि प्रेम किसी को जबरदस्ती पाने का नाम नहीं है बल्कि दूसरे के प्यार में अपने प्रेम को ढूंढ लेना ही सच्चा प्यार है. आप से पापा का मिलन नहीं हो सका पर आप ने उन के परिवार से दोस्ताना निभा कर इस रिश्ते को नई पहचान दी है. और तो और, मेरी दोस्त बन कर भी आप ने मुझे कई गलत रास्तों में पड़ने से बचाया.”

सुबाहु इमोशनल होता, इस से पहले ही रीवा बोल पड़ी, “मैं यह अनोखा रिश्ता निभा सकी, इस का असली श्रेय जाता है रेवती को, क्योंकि कोई भी पत्नी अपने पति के शादी से पहले के रिश्ते से द्वेष ही रखती है पर रेवती ने न केवल मुझे अपने दिल में जगह दी बल्कि अपने परिवार के मैंबर की तरह रखा. हमारे इस आपसी प्रेम का शीशमहल इसीलिए खड़ा हो सका क्योंकि इस के सभी स्तंभों ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई है.”

अभिराज बड़ी देर से खामोश खड़े थे, बोल पड़े, “अरे भाई, इस पूरी पिक्चर में इस असली हीरो को भी तो याद कर लो तुम लोग.”

अभिराज के इस नाटकीयताभरे कथन पर सब लोग हंस पड़े थे. रीवा ने सब को एकपास इकट्ठा कर लिया. वह सब की सैल्फी लेना चाहती थी. सभी ने मोबाइल की तरफ मुसकराता चेहरा कर दिया. रीवा ने देखा कि उस की आंख के कोने पर आई हुई झुर्री अब धुंधला चुकी थी.

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