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नक्सलवादियों जैसे हमले कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच और लखीमपुर में भेड़ियों का आतंक इस कदर है कि अब सरकार उन को गोली मारने के आदेश दे चुकी है. कभी इंसान और भेड़िया एकदूसरे के दुश्मन नहीं होते थे. इस की एक कहानी सभी ने सुनी होगी जिस को ‘मोगली’ के नाम से जाना जाता है. पहले मोगली की कहानी को समझते हैं. ‘जंगल बुक’ का मोगली भारत के दीना सनीचर से प्रेरित था. इस का एक गीत ‘जंगलजंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है…’ बेहद लोकप्रिय था. मोगली की कहानी और कार्टून के बाद फिल्म भी बनी थी.

 

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यह कहानी इंसान के बच्चे की थी. कैसे जंगल के खूंखार जानवरों के बीच रहता है. यह कहानी सीधे तौर पर भारत से जुड़ी थी. असली मोगली यानी दीना सनीचर भारत में रहता था. वह एक ऐसा बच्चा था, जो अपने मातापिता से बिछड़ने के बाद भेड़िये के बच्चों के बीच बड़ा होता है. उस की आदतें भी जानवरों की तरह हो गई थीं. यह कार्टून रुडयार्ड किपलिंग की किताब ‘द जंगल बुक’ पर आधारित है.

भेड़ियों के बीच रहा यह बच्चा उत्तर प्रदेश के ही बुलंदशहर के जंगलों में 1889 में मिला था. वह 6 साल का था, नाम रखा गया दीना सनीचर. शिकारियों के समूह को वह एक गुफा में मिला था. सनीचर भेड़ियों के बीच बड़ा हुआ था. वह भेड़िए की तरह बैठता और बर्ताव भी जानवरों की तरह करता था. वह इंसानों के जैसा व्यवहार नहीं करता था.

उस ने बचपन में जंगली जानवरों जैसे देखा था, वैसा ही करने लगा. उस की शारीरिक और मानसिक क्षमता भी जानवरों की तरह थी. उस से ही कार्टूनिस्ट रुडयार्ड किपलिंग को मोगली का कैरेक्टर बनाने में मदद मिली थी. इस के बाद डिज्नी ने किताब को कार्टून फिल्म में तब्दील किया, जिसे पूरी दुनिया में पसंद किया गया. सनीचर को आगरा के अनाथालय में भेजा गया था लेकिन वह जीवनभर शारीरिक रूप से मजबूत नहीं हो पाया. वह कभी बोल नहीं पाया.

मोगली की कहानी बताती है कि कभी भेड़िया इंसान का दुश्मन नहीं होता था. आखिर भेड़िया और इंसान इतने दुष्मन कैसे हो गए ? इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इंसान घने जंगलों को खत्म करता जा रहा है. ऐसे में केवल भेड़िया जैसा जानवर ही नहीं घने जंगलों में रहने वाले इंसान भी विरोध करते हैं. भेड़िये भी उसी तरह से हमला कर रहे हैं जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के इलाकों में रहने वाले लोग अपने जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन को नक्सलवादी कह कर बंदूक के बल पर उन की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है.

भेड़िये भी नक्सलवादियों की तरह अपने जंगलों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. इंसान भेड़ियों के रहने वाले घने जंगलों को खत्म करते जा रहे हैं. जिस के घर को खत्म करोगे या उजाड़ोगे वह बचाव में हमले तो करेगा ही. जैसे बुलडोजर जस्टिस में घर गिराए गए तो चुनाव में जनता का समर्थन नहीं मिला. इस लेख के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि भेड़िया किस तरह से नक्सलवादियों की तरह अपने बचाव में उतर आया है.

नक्सलियों जैसे हमले करते हैं भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच की महसी तहसील के 35 गांवों में बरसात के मौसम भेड़ियों के हमले बढ़े हैं और जुलाई से अगस्त के अंत तक इन हमलों से 7 बच्चों सहित कुल 8 लोगों की मौत हो चुकी है. महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत करीब 36 लोग घायल भी हुए हैं. गांवों में भेड़ियों के आंतक से लोग सो नहीं पा रहे हैं. केवल बहराइच ही नहीं इस से लगे लखीमपुर में भी इन के हमले होते हैं. बहराइच में कर्तर्निया घाट वाइल्ड लाइफ और लखीमपुर के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में भेड़ियों का रहना होता है.

जनवरी व फरवरी माह में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे एक ट्रैक्टर से कुचल कर मर गए थे. तब से उग्र हुए भेड़ियों ने हमले शुरू किए. उस हमलावर भेड़ियों को पकड़ कर 40 से 50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया. यह भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए. बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हैं. वन विभाग ने जो 4 भेड़िये पकड़े सभी आदमखोर हमलावर थे यह साफतौर पर कहा नहीं जा सकता है. अब तक 8 से अधिक लोग भेड़िये का शिकार हो चुके हैं और 36 से अधिक लोगों पर वह हमला कर चुका है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच समेत कई जिलों के डीएम, पुलिस कप्तानों और वन अधिकारियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भेड़ियों और तेंदुए के हमलों से पैदा हुए हालात की समीक्षा की. जिलों के डीएम और एसपी सहित वन विभाग को इस मसले में सर्तक रहने के लिए कहा है. भेड़िये बच्चों को अपने मुंह दबा कर जंगल में ले जाता है.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती कहती है ‘यूपी के कुछ जिलों में जंगली जानवर बच्चों, बुजुर्गो और महिलाओं पर हमले कर रहे हैं. उसे रोकने के लिए सरकार जरूरी कदम उठाए. मजदूर और गरीब लोग डर की वजह से अपने पशुओं के चारे का प्रबंध और मजदूरी करने नहीं जा पा रहे हैं. उस की उचित व्यवस्था की जाए. सरकार जंगली जानवरों ने निबटने की रणनीति बनाएं.’

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों को पकड़ने के लिए थर्मल ड्रोन और थर्मो-सेंसर कैमरे लगाए गए हैं. देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर आदमखोर भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उन के हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प के तौर पर उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. भेड़ियों और इंसानों के बीच यह लड़ाई नई नहीं है. उत्तर प्रदेश में पहले भी भेड़ियों का आतंक रहा है.

जानकार इन से बचाव के तरीके बताते कहते हैं भेड़िये का सामना करते हुए धीरेधीरे पीछे हटें. इस के बाद सावधान रहते हुए आक्रामक तरह से उस का विरोध करे. लाठी, पत्थर, डंडे, मछली पकड़ने की छड़ें या जो कुछ भी आप पा सकते हैं उस का प्रयोग करें. एयर हौर्न या अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों का प्रयोग करें. सब से बेहतर यही है कि इंसान भेड़ियों के रहने वाले स्थान पर अतिक्रमण न करे नहीं तो वह अपना बुलडोजर चला देंगे, यानी इंसानों पर हमला कर के उन को मार देंगे.

27 साल पहले भी था भेड़िये का प्रकोप

उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमले की कहानी नई नहीं है. 1996 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर में भेड़ियों ने 30 बच्चों को मारा था. भेड़िया प्रभावित यह पूरा इलाका 1392 वर्ग किलोमीटर का था. यह पूरा सई नदी का कछार था. पूरा इलाका डरा हुआ था. हर तीसरे दिन भेड़िया हमला करता था. हर पांचवें दिन एक बच्चे की मौत हो रही थी. हत्यारा भेड़िया इतना बेफिक्र हो गया था कि वो गांव के बीच से बच्चों को उठा ले जा रहा था.

जांच में यह पता चला था कि यह हमला एक भेड़िया कर रहा था. पूरा समूह इस में शामिल नहीं था. उस समय तीनों जिले देश के सब से गरीब जिलों में आते थे. इन बच्चों को उन की मां पालती थीं. पिता या तो मारे जा चुके थे या तलाक हो चुका था या फिर काम के लिए घर से बाहर होते थे. मां के अकेले होने के कारण उस की बच्चों पर नजर कम रहती थी. गांव के कुछ लोगों ने भेड़िये की मांद में सो रहे उन के 3 बच्चों को मार दिया था. इस के बाद भेड़ियों ने बदला लेने के लिए इंसानों पर हमला कर 50 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया था.

इसलिए भेड़िये के लिए उन को शिकार करना आसान होता था. घर कच्चे थे. तमाम घरों में दरवाजे भी नहीं थे. अंधेरा होने के कारण भेड़िए का शिकार करना सरल हो जाता था. लोगों में अंधविश्वास ज्यादा था. उन को लगता था कि कोई इंसान भेड़िये का रूप रख कर यह काम कर रहा है. इस डर से भेड़िया प्रभावित इन गावों में कोई इंसान जाने की हिम्मत नहीं करता था.

शिकारी भेड़िया एक जगह को छोड़ कर दूसरी जगह चला जाता था. फिर अगले कुछ दिनों या महीनों तक वह दूसरी जगह पर 100 से 400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में शिकार करता था. हर शिकार के बीच कम से कम 13 से 28 किलोमीटर की दूरी होती थी. यह काम भेड़िये का झुंड नहीं करता था. इस को केवल एक शिकारी भेड़िया ही कर रहा था. वन विभाग के लोगों ने आदमखोर हो चुके भेड़िये को गोली मार दी तब गांव के लोग भेड़ियों के आंतक से बच सके.

दुनिया भर में रही यह दुश्मनी

उत्तर अमेरिका में 150 साल पहले तक भारी तादाद में भेड़िये पाए जाते थे. जब इंसान यहां बसने पहुंचे तो उन्हें महसूस हुआ कि भेड़िये इंसानों के लिए खतरा हैं. इंसानों ने भेड़ियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. इस दौरान ये भी सामने आया कि भेड़ियों के अंधाधुंध शिकार से उस इलाके का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुआ. इस से जानवरों की दूसरी प्रजातियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. भेड़ियों की संख्या खत्म होने के साथ बारहसिंहा जैसे जानवरों की संख्या में इजाफा हुआ जबकि भेड़ियों के रहते यह उन का शिकार हो जाते थे.

साल 1878 में पूरी दुनिया में भेड़ियों के हमलों से सब से ज्यादा नुकसान हुआ था, जब एक साल में 624 लोग भेड़िये का शिकार हुए थे. आज अमेरिका में भेड़िये बचाने का अभियान शुरू किया जा रहा है. भेड़िया एक कुत्ते जैसा दिखने वाला जंगली जानवर है. किसी जमाने में भेड़िये पूरे यूरेशिया, उत्तर अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में पाए जाते थे. जैसेजैसे इंसानों की आबादी बढ़ने लगी भेड़ियों के रहने का क्षेत्र कम होता गया.

कुत्तों की नस्ल भी भेड़ियों से ही निकली मानी जाती है. हजारों साल पहले इंसान भेड़ियों को पालतू बना कर अपने साथ रखता था. यहीं से कुत्तों को साथ रखने की शुरूआत हुई. उस दौर में इंसान शिकार मार कर अपना भोजन करता था. ऐसे में पालतू भेड़िए और कुत्ते शिकार करने में इंसान की मदद करते थे.

पूरी दुनिया में अब भी 38 नस्ल के भेड़िये पाए जाते हैं. भेड़िया सब से बेहतरीन शिकारी माना जाता है. इंसान और शेर के अलावा यह किसी के काबू में नहीं आते हैं. भेड़िया मांसाहारी भोजन करता है. स्वभाव से शिकारी होने के कारण अब इस को पाला नहीं जा सकता है. इन की खासियत यह होती है कि यह कभी अकेले शिकार नहीं करता है. यह झुंड बना कर हिरण, गाय जैसे जानवरों का शिकार करते हैं. इन की चाल 55 से 70 किमी प्रति घंटा होती है. यह करीब 5 मीटर लंबी छलांग लगा सकते हैं. यह अपने शिकार को कम से कम 20 मिनट तक तेजी से पीछा कर सकता है. भेड़िये का पैर बड़ा और लचीला होता है.

भेड़िये एक नर और एक मादा के परिवारों में रहते हैं जिस में उन के बच्चे भी पलते हैं. यह भी देखा गया है के कभीकभी भेड़ियों के किसी परिवार किसी अन्य भेड़ियों के अनाथ बच्चों को भी शरण दे कर उन्हें पालने लगते हैं. भेड़िये घास में, पेड़ों के नीचे या झाड़ियों में आराम करते हैं और सोते हैं. जैसे ही मादा बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है झुंड एक मांद में चला जाता है. जिसे अकसर पानी के पास खोदा जाता है. कभीकभी कई पीढ़ियों तक रहता है.

यह अपने छोटे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं. इन के बच्चों को उठा ले जाए या उस का शिकार कर दे तो यह पूरे इलाके को ही तबाह कर देते हैं. शिकार पर जाते समय यह अपने कम उम्र वाले भेड़िये को नहीं ले जाते हैं. भेड़ियों के थूथन बड़े होते हैं. इन के कान छोटे और अधिक गोल होते हैं, और पूंछ छोटी और झाड़ीदार होती है. भेड़ियों का रंग अलगअलग होता है. जिस में काले, सफेद और भूरे रंग शामिल हैं. इन की उम्र 13 साल तक होती है. 10 साल से अधिक उम्र तक प्रजनन कर सकते हैं. भेड़िए जंगल में पाए जाते हैं. यह इंसानों पर तभी हमला करते हैं जब वे इन के इलाके में प्रवेश करते हैं. ऐसे में दोष केवल भेड़ियो का नहीं है. इंसानों को भी अपना व्यवहार बदलना होगा.

सामंजस्य

‘‘ऐसा क्या हो गया मीताजी कि आप चाय पीने नहीं गईं?’’ सुरेश ने व्यंग्य भरे लहजे में पूछा तो अपने विचारों में खोई मीता चिहुंक उठी.

‘‘आप भी तो नहीं गए,’’ मीता को और कुछ नहीं सूझ तो उस ने उलटे प्रश्न कर डाला.

‘‘मैं जा रहा हूं. आप को अकेला बैठा देखा तो  पूछ लिया,’’ सुरेश बोला.

बाहर बरसात थम चुकी थी. सबकुछ भीगाभीगा सा था. मीता ने सुबह नाश्ता नहीं किया था इसलिए अब पेट में चूहे दौड़ रहे थे. उसे सुबह की घटना याद आ गई.

‘मुझे आज थोड़ी देर हो जाएगी,’ मीता ने तवे से चपाती उतारते हुए देवेश से कहा.

‘कितनी?’ देवेश ने पूछा.

‘यही कोई एकडेढ़ घंटा.’

‘वैसे ही तुम्हें घर आने में साढ़े 7 बज जाते हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आज तुम साढ़े 8-9 बजे तक आओगी?’ देवेश ने घूरते हुए मीता से कहा, ‘देख रहा हूं कि महीनेभर से ऐसा ही चल रहा है कि हर दूसरेतीसरे दिन दफ्तर में काम की वजह से तुम घर देर से आती हो.’

‘एडवरटाइजिंग का औफिस है, वहां मैं ही अकेली नहीं जो देर से घर लौटती हूं.’

‘लेकिन तुम्हारे अलावा वहां सभी पुरुष हैं. वैसे भी अगर काम इतना ज्यादा है तो सुबह एक घंटा पहले चली जाया करो पर रात को देर से आना ठीक नहीं.’

‘मेरे अलावा आयशा भी है उस औफिस में. मुझे कुछ नहीं होने वाला. औफिस की गाड़ी से ही घर वापस आऊंगी. वैसे अगर अभी मेहनत कर के सब के सामने खुद को काबिल साबित नहीं कर पाई तो अगली तरक्की मिलने से रही,’ किचन में सब्जी में छौंक लगाते हुए मीता ऊंची आवाज में बोली.

‘बातें मत बनाओ,’ किचन में आ कर देवेश भी ऊंचे स्वर में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं, हमारे बेटे को मेरी और तुम्हारी दोनों की जरूरत है. इस अभाव में उस के विकास पर फर्क पड़ेगा, कभी इस बारे में भी सोचा है?’

मीता चुप रही. वह किसी भी कीमत पर झगड़ा नहीं करना चाहती थी. उस ने खाना डब्बों में डालना शुरू कर दिया.

सुंदर व स्मार्ट होने के साथसाथ मीता वाकपटु भी है. किसी भी विषय पर, कहां क्या बोलना है और कहां चुप रहना है, यह वह अच्छी तरह जानती है और अपने इन्हीं गुणों के सहारे वह पिछले 5 सालों में औफिस में 2 बार विशेष तरक्की पा चुकी है.

‘कुछ तो बोलो,’ देवेश एकाएक चिल्लाए.

‘देवेश, मेरी बात शांति से सुनिए,’ मीता बोली, ‘मुझे मालूम है कि पिछले दिनों मैं ने घर को कम समय दिया है. आप को पता है, औफिस में मुझे किन हालात से गुजरना पड़ रहा है?’

देवेश ने मीता की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा.

‘मुझ से उम्र में छोटी ग्लैमरस आयशा को बौस ने अभी पिछले साल नियुक्त किया और उसे एक तरक्की भी मिल गई. यही रफ्तार रही तो वह मुझे जल्दी ही पीछे छोड़ देगी. मैं भी अब मेहनत, लगन और अनुभवों के माध्यम से खुद को आगे ला रही हूं. अगर मेरे काम का नतीजा अच्छा निकला तो मेरी तरक्की निश्चित है.’

‘कितनी तरक्की चाहिए तुम्हें? क्या अपनी तरक्की की चाह में अपने बच्चे की तरक्की का दायित्व तुम भूल गईं? तुम्हें बेटे के गुमसुम चेहरे पर कुछ नहीं दिखता? उसे अकेलापन खाए जा रहा है. मुझे उसे देख कर डर भी लगता है कि हमारी भागतीदौड़ती जिंदगी में वह खो न जाए?’

देवेश ने मीता से समझने के स्वर में कहा.

‘मैं ने तो औरत का जन्म ले कर ही गलती की.’ मीता कड़वे स्वर में बोल उठी, ‘मेरे नसीब में क्या हमेशा सम?ाता करना ही लिखा है? मेरी कोई आकांक्षा नहीं? मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला है तो मैं उसे क्यों खो दूं?’

‘देखो मीता, तुम तरक्की  को नशे की भांति पाना चाहती हो. यह तो अंधी दौड़ है. अभी एक तरक्की, फिर दूसरी तरक्की फिर…’

‘यह क्यों नहीं कहते कि मैं अगर औफिस के कामकाज में उल?ा गई तो तुम्हारी सुविधाओं को कौन देखेगा?’ मीता बुदबुदाई.

उन दोनों पतिपत्नी में जो बहस शुरू हुई, आखिर में दोनों ने अपना गुस्सा नाश्ते पर निकाला और दोनों भूखे ही औफिस के लिए निकल पड़े.

एक तो औफिस में टैंशन, उफ ऊपर से घर में भी टैंशन. मीता मन ही मन सोचने लगी कि कहां तक मैं दोनों को संभालूं? ऊपर से कल की आई यह नई लड़की आयशा. उसे देख कर तो मैं अंदर ही अंदर सहमने लगी हूं. कल तक जो बातें मैं क्लाइंट्स और बौस से केवल बातों और आंखों के हावभाव से मनवा लेती थी, अब आयशा के आने से मुझे इन क्षेत्रों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

कामयाबी के सोपान पर चढ़ती हुई मैं अपनी उम्र को भूल ही गई थी लेकिन आयशा की चंचलता और उभरते यौवन के आगे मुझे अब बारबार अपनी उम्र का एहसास होने लगा है. और तो और, औफिस में कल तक जहां पुरुष सहकर्मी मुझ से बात करने में दिलचस्पी दिखाते थे वहीं आयशा के आने के बाद मेरे लिए औफिस का माहौल ही बदल गया है. देख रही हूं इधर कई दिनों से जानबूझ कर मुझ पर कटाक्ष भी किए जाने लगे हैं.

सुरेश ने जब मुझ से चाय पीने के लिए कहा तब आयशा के साथ औफिस के सभी कर्मचारी कैंटीन चले गए थे. आजकल मेरा जीवन जिस उथलपुथल से गुजर रहा है, उस में किसी से बातचीत करने का मन ही नहीं होता और सुबह की बातों को ले कर तो मैं काफी अशांत थी, इसलिए चाय अवकाश में भी कैंटीन नहीं गई थी.

देखते ही देखते फिर बादल घुमड़ आए थे और रिमझिम फुहार बरसने लगी. ठंडी हवा के झोके खिड़की से मीता तक पहुंच रहे थे. हरीभरी प्रकृति और रंगबिरंगे हंसते हुए फूलों को देख कर एकाएक उस का मन कुलबुलाने लगा कि काश, मेरा जीवन भी सदा ही इतना रंगों भरा व खुशनुमा होता.

वह खिड़की से बरसात की बूंदों को देख कर विचारों में खो गई. एक वक्त था जब देवेश और मैं घंटों बारिश में खड़े एकदूसरे में खोए हुए भीगते रहते थे. हम दोनों को बारिश में भीगना बेहद पसंद था. शादी के 2 साल बाद हम दोनों के प्यार का प्रतीक हमारे बेटे का जन्म हुआ. इसलिए हम ने उस का नाम प्रतीक ही रखा. प्रतीक के आने पर मेरी जिम्मेदारियां भी बढ़ीं लेकिन मैं नौकरी और घर के बीच अच्छा तालमेल बना कर चल रही थी. बौस मेरे काम से खुश थे कि अचानक दफ्तर में आयशा की नियुक्ति हुई.

उस के आने पर मैं कहीं न कहीं उस से ईर्ष्या करने लगी क्योंकि वह मुझ से उम्र में छोटी, चुलबुली, सुंदर और बातूनी है. बौस के मुंह से उस की प्रशंसा मैं सहन नहीं कर पाती. औफिस में केवल वही एक महिला कर्मचारी होने के कारण मेरी उस से प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी.

‘आयशा नई है पर जोश और नए विचारों से भरी हुई,’ 2 दिन पहले रखी मीटिंग में आयशा के नए विचारों को बढ़ावा देते हुए बौस ने कहा था, ‘आयशा की नई सोच की धारणा हमारी कंपनी को निश्चित ही नई जिंदगी देगी.’

बौस के मुख से आयशा की प्रशंसा सुन कर मैं जलभुन गई. उधर देवेश इस बात को क्यों नहीं समझते कि मेरे कंपीटिशन में एक ऐसी लड़की खड़ी है जो मुझ से कहीं बेहतर कर सकती है. यही सोच कर मैं हताश हो गई हूं और अपनी इस हताशा से उबरने के लिए अधिक मेहनत कर रही हूं तो हर्ज क्या है. लेकिन देवेश इन बातों को सम?ाना नहीं चाहते हैं. उन्हें केवल वक्त की कमी का एहसास है, मेरे अरमानों, मेरे कैरियर का नहीं.

‘‘मैं आप के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, मीताजी, पर एक सहयोगी होने के नाते मुझे आप से पूरी सहानुभूति है. लगता है, आप एक कठिन दौर से गुजर रही हैं,’’ अचानक आयशा की आवाज मीता के कानों से टकराई तो वह चौंक गई.

‘‘अरे, तुम कब आईं. कैंटीन से चाय पी आईं?’’ मैं ने खुद को संभालते  हुए कहा.

‘‘हां, सोचा थोड़ा जल्दी आ कर आप की परेशानी बांट लूं,’’ कहते हुए उस ने मेज पर रखा पेपरवेट घुमाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम से किस ने कहा मैं परेशान हूं?’’ थोड़े रूखे स्वर में मीता बोली.

‘‘लीजिए, क्या मैं इतना भी नहीं जानती कि आजकल आप की बातें औफिस में सभी की जबान पर हैं,’’ आयशा बोली.

‘‘कैसी बातें, किस की बातें,’’ सकपका कर मीता के मुंह से निकला.

‘‘हम दोनों की बातें,’’ आयशा ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘जानती हूं,’’ मीता ने हथियार डालते हुए कहा, ‘‘दोष मेरा ही है. मैं ने ही अपना मानसिक तनाव कम करने के लिए विकास को सबकुछ बताया था. सोचा, एक अच्छा मित्र होने के नाते शायद वह मेरी सहायता करेगा पर उस ने तो उलटे चटखारे ले कर तुम्हारे बारे में मेरे क्या विचार हैं, सब को बता दिया.’’

‘‘आप ने अपनी व्यक्तिगत बात विकास को बता कर अच्छा किया या बुरा मैं इस विषय में क्या कह सकती हूं. बल्कि मैं यही कहूंगी कि दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त के राज को राज रख सके,’’ आयशा ने अपना मत प्रकट करते हुए आगे कहा, ‘‘आज के युग में महिलाओं की सब से बड़ी त्रासदी तो यही है कि उन्हें अपनेआप को पुरुषों में नहीं, स्त्रियों में साबित करना पड़ रहा है. अपनी स्थितियों से बाहर न निकल पाने के कारण, दस गुना ज्यादा मेहनत करने के बावजूद उसे बारबार यह बताना पड़ता है कि मैं भी कुछ हूं, मेरा भी अस्तित्व है.’’

‘‘धन्यवाद, आयशा,’’ मीता बोली, ‘‘लेकिन फिर भी दोष तो मेरा ही था जो मैं ने अपने दुख को दूसरों तक पहुंचाने की भूल की.’’

‘‘अच्छा,’’ आयशा ने मीता की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘मीताजी, आप चाहती हैं न, आप की योग्यता सराही जाए या कहीं ऐसा न हो कि मैं आप की जगह ले लूं और मेरा वर्चस्व स्थापित होने से आप कम महत्त्वपूर्ण न हो जाएं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता…’’ मीता घबरा गई.

‘‘देखिए, एक औरत की दूसरी औरत के प्रति ईर्ष्या इन्हीं बातों को ले कर उभरती है,’’ आयशा मुसकराई, ‘‘वास्तव में आप अपनी स्थिति को ले कर असुरक्षित हो गई हैं. मुझे ताज्जुब होता है कि आप में ऐसी भावना कैसे उभरी जबकि आप मेहनती हैं, अनुभवी हैं?’’

‘‘लेकिन, जवान नहीं, ओजस्वी नहीं.’’

मीता के मुंह से अस्फुट स्वर सुन कर आयशा ने कहा, ‘‘हां, लेकिन आप के पास अनुभवों का खजाना तो है. आप अभी भी ग्राहकों को पहले की तरह ही कुशलता से हैंडल करती हैं. मुझे नहीं लगता कि आप से सक्षम हमारे औफिस में कोई और होगा.’’

आयशा की बातें सुन कर मीता को लगा कि उस के मन में धीरेधीरे शक्ति का स्पंदन हो रहा है. आयशा कह रही थी, ‘‘मीताजी, नए और पुराने के बीच टकराव तो होना अनिवार्य है. यह आप पर निर्भर है कि जो कुछ आप को मिल रहा है उस का उपयोग आप कैसे करेंगी. जब तक आप अपने अंदर आत्मविश्वास का अनुभव नहीं करेंगी, आप को बारबार स्वयं को सिद्ध करते रहना होगा.’’‘मुझ से छोटी लड़की कितनी सुलझ, कितनी परिपक्व है,’ उसे अपने डैस्क की ओर जाता देख मीता ने सोचा.

चाय अवकाश समाप्त होने पर सभी कर्मचारी धीरेधीरे अपनीअपनी मेजों की ओर लौटने लगे थे. मीता प्रसाधन कक्ष में जा कर बहुत देर तक मुंह धोती रही, फिर अपनी सीट पर आ कर बैठी तो मन में अजीब सी शांति आ गई थी. लगा, बाहर जा कर बारिश में खूब देर भीगती रहे. लिहाजा, मीता ने अवकाश ले कर घर जाने का निश्चय किया.

घर पहुंच कर मीता को एक सुखद आश्चर्य हुआ जब देवेश को टेरेस पर खड़ा बारिश में भीगा पाया. अपना पर्स मेज पर पटक कर वह भी टेरेस पर चली आई देवेश के साथ भीगने के लिए. छोटेबड़े फूलपौधे, लताएं बारिश में नहा लेने के बाद उमंग में भरे हंसते हुए प्रतीत हो रहे थे. मीता को घर जल्दी लौटा देख कर देवेश को आश्चर्य हुआ. गरमी ?ोलने के बाद मानसून का पहला उपहार उसे भी सुखद अनुभूति देने में सफल हो रहा था.

देवेश ने मीता का बदला रूप देखा तो उस के भी मन का मैल बारिश के साथ बह गया. उस ने मीता का हाथ अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया. दोनों अभी और भी बारिश में भीगते कि प्रतीक की आवाज ने उन का ध्यान बंटाया जो कह रहा था, ‘‘बारिश में ज्यादा भीगोगे तो जुकाम हो जाएगा.’’

देवेश और मीता हंसते हुए अंदर आ गए. प्रतीक उन्हें हैरानी से देख रहा था, शायद अरसे बाद उस ने अपने मम्मीपापा को एकसाथ हंसते हुए देखा था. रात को मीता ने देवेश का मनपसंद भोजन बनाया.

‘‘यह करिश्मा कैसा? भई, हम तो तरस गए थे तुम्हारे हाथों का स्वादिष्ठ खाना खाने के लिए,’’ देवेश ने शिकवा किया.

‘‘बस, मैं भी अब तनावमुक्त होना सीख गई हूं. सोचती हूं नौकरी छोड़ दूं.’’

‘‘न, न, ऐसा मत करना वरना यह गुलाम अभी तो 8 घंटे की नौकरी करता है, फिर पूरे 24 घंटे की नौकरी करनी पड़ेगी,’’ देवेश ने शैतानी से अपनी आंखें नचाईं.

‘‘क्यों, आप ही तो चाहते हैं मैं घरपरिवार पर ध्यान दूं.’’

‘‘तुम्हारे साथियों ने बहुत उन्नति कर ली, मीता,’’ देवेश का स्वर एकाएक संजीदा हो गया, ‘‘तुम भी ऊपर उठना चाहती हो, लेकिन मूल तथ्य को नजरअंदाज कर रही हो.’’

मीता ने हैरानी से देवेश को देखा जो अपनी ही धुन में कहे जा रहा था, ‘‘देखो, मीता, मुझे अपनी कोई चिंता नहीं, मेरी तरफ से तुम दिनरात काम करो, मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा. हां, मैं तो तुम्हें केवल एक सलाह दे रहा हूं कि तुम अपनी जिंदगी का उद्देश्य तो तय कर लो.’’

‘‘जिंदगी का उद्देश्य?’’ मीता ने चौंक कर पूछा.

‘‘तुम जो चाहती हो वह तुम्हारा हक है, तुम्हें मिलना भी चाहिए. लेकिन इस के विपरीत तुम्हारे कुछ दायित्व भी हैं, मेरे प्रति और प्रतीक के भविष्य के प्रति. मेरी तरफ से तुम बिलकुल आजाद हो. मैं तुम्हें सिर्फ यह सम?ाने की कोशिश कर रहा हूं कि यह देखो कि आगे बढ़ने की कीमत क्या है?’’

‘‘अच्छा, तो अब आप को खाना नहीं खाना. ये दहीबड़े, छोले,’’ मीता ने हंस कर कहा तो जवाब में देवेश  भी मंदमंद मुसकराता हुआ खाना
खाने लगा.

सुबहसुबह फोन की घंटी बजने पर मीता की नींद खुल गई. फोन के दूसरी ओर बौस थे, ‘‘मीता, सुबहसुबह तुम्हें खुशखबरी सुनाने के लिए जगाया है. तुम्हारे काम की बहुत तारीफ हुई है. कुछ ही समय में तुम ने कंपनी के काम को काफी बढ़ाया. तुम्हें इसी शहर की दूसरी ब्रांच का मैनेजर बना कर भेजा जा रहा है. यह कल की मैनेजिंग डायरैक्टर की मीटिंग में तय हुआ है. तुम ने अपने घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ कंपनी के लिए इतना कुछ कर दिखाया वह काबिलेतारीफ है. बधाई हो.’’

मीता ने देवेश को जगाया और अपनी पदोन्नति की बात बताई जिसे सुन कर वह भी बहुत खुश हुआ.

‘‘अच्छा, मैं औफिस चल कर अपनी पदोन्नति की औपचारिकताएं पूरी कर लूं,’’ मीता ने देवेश से कहा.

औफिस में सब से पहले मीता का आयशा से ही सामना हुआ. उस के चेहरे पर अनोखी तृप्ति का भाव था. वह मुसकरा रही थी. इतने में बौस भी चैंबर से निकल कर बाहर आए और उसे देख कर बोले, ‘‘मीता, आयशा भी तुम्हारी जैसी मेहनती और लगन वाली लड़की है, देखना यह भी तुम्हारे जैसा ही मुकाम कंपनी को दिलाएगी.’’

बौस की बात सुन कर मीता ने हंस कर कहा, ‘‘सर, आज डिनर पर आप हमारे यहां सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, आयशा, तुम भी आज डिनर पर आना मत भूलना.’’

‘‘जैसी आप की आज्ञा, मीताजी. वैसे भी मैं इस तरह का मौका हाथ से जाने नहीं देती’’, आयशा ने कहा और आगे का वार्त्तालाप उस के ठहाके की गूंज में दब गया.

और मौसम बदल गया

‘‘सुनो, आप ने मांजी से बात की, आज भी पापा का फोन आया था, बहुत परेशान हो रहे थे.’’

‘‘मैं तो बिलकुल ही भूल गया. अच्छा हुआ तुम ने याद दिला दिया.’’

‘‘कितना मुश्किल होता होगा, पापा के लिए 2-2 बेटे हैं पर साथ में कोई रखना नहीं चाहता. मां के जाने के बाद पापा वैसे भी अकेले हो गए हैं, अब तो उन्हें साथ की जरूरत है, लेकिन यहां तो कोई बात समझने को तैयार ही नहीं है, पापा से कुछ कहो तो वे गांव जाने के लिए कहते रहते हैं. अब वहां कौन है, जो उन का ध्यान रखेगा, पिछली बार जब गए थे तो शुगर कितनी बढ़ गई थी, हौस्पिटल में एडमिट करवाना पड़ा था. पता नहीं, उम्र बढ़ने के बाद सब बच्चे क्यों बन जाते हैं, सोनाली अपनेआप ही परिस्थिति का विश्लेषण कर रही थी.’’

‘‘क्या हुआ, क्या सोच रही हो, कह तो रहा हूं, कल पक्का बात कर लूंगा.’’

‘‘कैसे होगा, दोनों ही जिद्दी हैं, आसानी से बात नहीं मानेंगे, पापा से बात करो तो वे संस्कृति और संस्कारों की दुहाई देने लगते है. हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते, बेटियां तो पराया धन होती हैं, उन के घर बारबार आना अच्छा नहीं लगता और मांजी. वे तो मेरे मायके का जिक्र आते ही चिढ़ जाती हैं.’’

‘‘न मैं भैया के घर रह सकती हूं और न ही पापा हमारे घर आ कर रह सकते हैं. अजीब मुश्किल है,’’ सोनाली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.

सोनाली, ‘‘उन की बात अपनी जगह सही है, अब यह पुराने रीतिरिवाज आसानी से पीछा कहां छोड़ते हैं.’’

‘‘मैं आप से अपनी परेशानी का हल मांग रही हूं और आप हैं कि मु?ो और परेशान किए जा रहे हो,’’ कहतेकहते सोनाली रोंआसी हो गई.

‘‘यह तुम्हारा बढि़या है, कुछ न भी कहो तो भी रोना शुरू कर के मु?ो मुजरिम बना देती हो. अब तुम ही बता दो कि मुझे क्या करना है.’’

‘‘एक बार आप बात कर के देखो, आप कहोगे तो पापा मना नहीं कर पाएंगे,’’ कहते हुए सोनाली के चेहरे पर मुसकान फैल गई.

‘‘यह तो है, मैं कहूंगा तो शायद मना नहीं कर पाएंगे पर मैं एक बात और सोच रहा हूं. मां को कैसे मनाया जाए? मां भी तो पुराने विचारों वाली हैं और ऊपर से उन का स्वभाव भी थोड़ा गरम है, कहीं उन्होंने कुछ कह दिया तो. मुझे तो डर है कि तुम्हारे पापा की स्थिति ‘आसमान से गिरे खजूर में अटके’ जैसी न हो जाए.’’

‘‘जानती हूं मैं, पापा की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा पर यहां मैं तो रहूंगी न. मैं उन का ध्यान रखूंगी तो सब सही होगा. बस, आप एक बार मांजी से बात कर के देखो, मेरे कहने से तो बात बिगड़ जाएगी.’’

अगले दिन शाम को घर लौटते हुए सुधीर गुलाबजामुन और समोसे ले कर आया. दोनों ही चीजें मां को बहुत पसंद हैं. पापा को जब भी अपना मनमाना काम करवाना होता तो वह यही फार्मूला अपनाते थे.

‘‘सोनाली, जल्दी से अदरक वाली कड़क चाय बना कर मां के कमरे में ले कर आना. गरमगरम समोसे लाया हूं.’’

‘‘मांमां, कहां हो तुम?’’

‘‘मैं कहां जाऊंगी, इन चारों कोनों को छोड़ कर, अब तो घर के चारों कोने ही मेरे लिए चारधाम बन गए हैं.’’

‘‘क्या बात है, आज तो तुम्हारा गुस्सा समोसे से भी ज्यादा गरम हो रहा है.’’

‘‘कोरोना के कारण पहले ही घर में बंद पड़ी थी. बड़ी मुश्किल से बाहर जाने का एक मौका आया वह भी तेरी पत्नी की वजह से न हो पाया.

‘‘कहां जा रही थी. तुम्हें मना किया है. अभी संकट पूरी तरह से नहीं टला है. रोज 4-5 केस आ ही जाते हैं.’’

‘‘कोई बहुत दूर थोड़े जा रही थी. सामने मिश्रा भाभी के पोते का मुंडन था. बस, आसपास के लोगों को ही बुलाया था. उसी दिन से सोच रखा था कि हरी वाली कौटन की साड़ी पहनूंगी, जो तू जयपुर से लाया था. अलमारी खोल कर देखा तो कोने में जैसेतैसे पड़ी थी. तेरी बहू से प्रैस करने के लिए कहा पर इसे मेरी बात कहां याद रहती है. मेरे हाथ में दर्द नहीं होता तो मैं खुद ही कर लेती.’’

‘‘भूल गई होगी, तुम कल मुझे दे देना. औफिस जाते समय प्रैस को देता जाऊंगा.’’

‘‘पता नहीं सारा दिन क्या करती रहती है. एक तू ही है, जो मेरा खयाल रखता है, वरना मैं तो कब का हरिद्वार निकल गई होती.’’

‘‘समोसे लाया है तो गुलाबजामुन भी जरूर लाया होगा.’’

‘‘कैसे भूल सकता हूं, रात को खाने के बाद गुलाबजामुन भी खाएंगे.’’

‘‘कुछ तो गड़बड़ है. जो तू मुझे इतना मक्खन लगा रहा है. बता क्या बात है.’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, तुम्हें तो हर वक्त दाल में काला ही नजर आता है.

‘‘अच्छी तरह से जानती हूं तुझे, यह सब ट्रिक तू ने अपने पापा से ही सीखी है. कोई न कोई ऐसी बात होगी, जिस के लिए मैं मंजूरी नहीं दूंगी.’’

‘‘मां, आज भी तुम मेरे मन की बात जान लेती हो,’’ सुधीर भावुक हो गया.

‘‘मां हूं न. मुंह की थोड़ी कड़वी जरूर हूं पर दिल चाशनी से भी ज्यादा मीठा है.’’

‘‘जानता हूं,’’ सुधीर ने मां का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘सोनाली के पापा के बारे में बात करनी है. उन को यहां बुलाने की सोच रहे हैं. आप से राय लेनी थी.’’

‘‘इस में पूछने वाली क्या बात है, मैं क्यों मना करूंगी?’’ बात को बीच में काटते हुए मां बोली.

‘‘नहीं, वह बात ऐसी है कि सोनाली की भाभी को उन का घर में रहना पसंद नहीं है. बातबात में घर में झगड़े होते रहते हैं. इसीलिए सोच रहे थे कि.’’

‘‘तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया जो ऐसी बेसिरपैर की बातें कर रहा है. 2-3 दिन की बात अलग थी. यहां रहने लगेंगे तो लोग क्या कहेंगे. जितने मुंह, उतनी बातें. किसकिस को समझते फिरेंगे.’’

‘‘हम लोगों की चिंता क्यों करें?

2-3 दिन बात बना कर सब चुप हो जाएंगे. कोरोना में मै ने सब को देख लिया कि कौन किस का साथ देता है.’’

‘‘मेरी बात तो तुम्हें हमेशा ही बुरी लगती है. कुछ कहने का फायदा तो है नहीं, तुम ने जय प्रकाशजी (सोनाली के पापा) से पूछ लिया?’’

‘‘अभी तो कुछ दिन रहने के लिए बुलाएंगे, फिर धीरेधीरे.’’

‘‘मतलब कि सारी खिचड़ी पक चुकी है, बस मेरे ही नाम का बघार लगाना बाकी है. जब तुम दोनों अपना मन बना चुके हो तो मुझ से पूछने की क्या जरूरत है. घर तुम्हारा. जिसे चाहे रखो, मैं कौन होती हूं मना करने वाली.’’

‘‘पर एक बात अच्छे से समझ लो, मैं अपना कमरा नहीं छोड़ूंगी जिसे जहां रहना है रहे. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

रात को डाइनिंग टेबल पर मौन ही पसरा रहा. किसी को गुलाबजामुन भी याद नहीं आए.

‘‘क्या हुआ. मांजी मान गईं?’’ सुधीर के कमरे में आते ही सोनाली ने पूछा.

दरवाजे के पीछे खड़ी सब सुन तो रही थी, अब मैं अलग से क्या बताऊं? मैं ने पहले ही कहा था, मां नहीं मानेंगी.’’

सोनाली ने बात को वहीं खत्म करते हुए कहा, ‘‘इस का भी समाधान मैं ने सोच लिया है, उन्हें अपना कमरा छोड़ने की जरूरत नहीं है. मैं ने विहान से बात कर ली, वह ड्राइंगरूम में दीवान पर सो जाएगा. आप पापा से बात कर लो, ‘‘वह ट्रेन का टिकट करवा लेंगे. परसों रविवार है आप भी घर पर होंगे. हम उन्हें स्टेशन से ले आएंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहो, हम तो तुम्हारे गुलाम हैं, जैसा आदेश दोगी, मानना तो वही पड़ेगा पर पापा के आने के बाद हमें भूल मत जाना,’’ कह कर सुधीर ने सोनाली को अपनी बांहों में भर लिया.

कुछ दिनों के लिए पापा घर आने के लिए राजी हो गए पर मां के तेवर बदले हुए थे, उन्होंने एक बार भी पापा से ढंग से बात नहीं की. ‘‘शायद लता बहनजी को मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा. पहले तो उन्होंने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया.’’ पापा ने सोनाली से कहा भी. सोनाली बहुत कोशिश करती कि घर का माहौल सामान्य रहे पर कभी बिजली कड़कने लगती तो कभी ओलों के साथ तेज बौछारें. इतनी ठंडक होने के बावजूद भी घर का तापमान हमेशा गरम रहता. हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता. पता नहीं कब तूफान आ जाए.

‘‘बहू, यह गीजर खराब हो गया क्या? गरम पानी नहीं आ रहा…’’

‘‘आज शायद पापा पहले नहाने चले गए इसीलिए पानी खत्म हो गया होगा. आप मेरे बाथरूम में नहा लीजिए.’’

‘‘कोई नहीं, आज थोड़ी देर में नहा लूंगी. इतने टाइम भूखी ही रहूंगी क्योंकि बिना नहाए मैं खाती नहीं. अब तो यह सब चलता ही रहेगा.’’

‘‘सोनाली, कहां हो तुम. मेरा लंच तैयार हुआ कि नहीं?’’

‘‘ला रही हूं, डाइनिंग टेबल पर रखा है. आज तो आप ने बचा लिया, वरना मांजी का गुस्सा. जाने कितनी देर और सुनना पड़ता.’’

‘‘पता है. इसीलिए तो तुम्हें आवाज दे कर बुला लिया, वरना थोड़ी देर में तुम्हारी गंगाजमुना दोनों धाराएं एकसाथ बहनी शुरू हो जातीं और हमारी रात काली.’’

‘‘बहुत बुरे हो आप, हर वक्त एक ही ओर आप का दिमाग घूमता रहता है.’’

‘‘फिर रात की बात पक्की,’’ सलोनी के गालों पर हलकी सी चिकोटी काटते हुए सुधीर ने कहा. आज कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी. शायद आज सोनाली का दिन ही खराब था.

दोपहर को खाने के समय.

‘‘बहू, आज खाने में चनेलौकी की दाल क्यों बनाई है? भूल गईं क्या. मुझे यह दाल बिलकुल पसंद नहीं. क्या अब मेरी यह स्थिति हो गई है कि मुझे घर में अपनी पसंद का खाना भी नसीब नहीं होगा.’’

‘‘नहीं मांजी, ऐसा नहीं है. मैं ने प्याज की भिंडी बनाई थी. आज यह दीपक भैया का खाना भी ले गए हैं, इसलिए सब्जी खत्म हो गई.’’

‘‘मतलब. खत्म हो गई. क्या दूसरी सब्जी नहीं बन सकती थी या बाजार में सब्जी वालों की हड़ताल है…’’

‘‘उबले आलू रखे हैं, अभी भून कर लाती हूं,’’ सोनाली ने उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश की.

‘‘रहने दे, मुझे दिखाने के लिए बातें न बना. अब मेरा खाना खाने का मन नहीं है. उबले आलू की 2-4 पकौडियां तल कर ले आ.’’

‘‘तली हुई चीजें खाने से आप की तबीयत खराब हो जाएगी,’’ सोनाली कहना चाहती थी पर कह नहीं सकी.

वही हुआ, जिस का डर था. शाम होतेहोते मांजी की तबीयत खराब हो गई. ‘‘आज तो उलटी रुकने का नाम ही नहीं ले रही, क्या करूं. अब तक तो सुधीर बेंगलुरु के लिए निकल गए होंगे. इन्हें भी आज ही बाहर जाना था. पिछली बार तो अस्पताल ले जाना पड़ा था,’’ सोनाली घबराहट में बड़बड़ाने लगी.

‘‘पहले तो तू शांत हो, सब ठीक हो जाएगा. अपनी सास को ओआरएस का घोल लगातार पिलाती रह. इस से शरीर में नमक और चीनी की कमी नहीं रहेगी और जान भी बनी रहेगी, और हां. मुझे पिछली बार की दवाई का पर्चा दे दे. मैं विहान के साथ जा कर दवाई ले आता हूं.’’
रात होतेहोते लताजी की तबीयत में काफी सुधार आ चुका था.

‘‘अब आप कैसा महसूस कर रही हैं?’’

‘‘पहले से ठीक हूं.’’

‘‘कुछ खाने का मन है, खिचड़ी बनवा दें,’’ लताजी ने सिर हिला कर हामी भरी.

लताजी ने सोनाली और उस के पापा की बातें सुन ली थी, इसलिए शांतिपूर्वक हां कह दिया.

‘‘मुझे भी अकसर एसिडिटी हो जाती है. डाक्टर ने तलाभुना खाने से बिलकुल मना कर रखा है पर जब मन करता है तो कुछ ध्यान नहीं रहता. आखिर जिंदगी सिर्फ लौकीतोरी खा कर तो नहीं गुजारी जा सकती,’’ लताजी के चेहरे पर फीकी मुसकान आ गई.

‘‘विहान बेटा, ताश ले आ. तेरी दादी का मन भी लगा रहेगा. अकेले लेटेलेटे तो मन और भी घबराता है.’’

‘‘आप को ताश खेलना पसंद है?’’

‘‘जी, पहले तो बहुत पसंद था. सोनाली की मां और मैं रोज ही खेला करते थे पर जब से वह साथ छोड़ कर गई है, तब से केवल समय गुजारने का साधन मात्र बन गया है.

विहान जिद कर रहा था कि मुझे भी ताश खेलना सिखाओ इसीलिए. अगर आप को पसंद न हो तो हम नहीं खेलते.’’

‘‘नानू, आप को पता नहीं. दादी तो ताश में चैंपियन है. आज तक उन्हें कोई नहीं हरा पाया. क्या जबरदस्त रमी खेलती हैं, मैं इसीलिए तो आप से ट्रिक सीख रहा हूं. मुझे एक दिन दादी को जरूर हराना है. है न दादी. जल्दी से ठीक हो जाओ फिर मैं तुम्हें हराऊंगा.’’

‘‘मुझे क्या हुआ. मैं तो ठीक हूं, तू पत्ते बांट.’’

‘‘आप की तबीयत.’’ कहतेकहते जयप्रकाशजी चुप हो गए, शायद खेलने से मन बदल जाए.

‘‘पापा, सुधीर ने कल डाक्टर का अपौइंटमैंट ले लिया है. मुझे तो विहान की पेरैंट्स मीटिंग में जाना है. क्या आप मांजी को दिखा लाएंगे?’’

‘‘हां. हां, क्यों नहीं. मैं चला जाऊंगा.’’

‘‘बहू, सुधीर कब तक आएगा?’’

‘‘वे तो आज औफिस से ही बेंगलुरु चले गए हैं, 2 दिन बाद आएंगे.’’

‘‘कोई बात नहीं, जब वह आ जाएगा, तब दिखा लेंगे,’’ शायद लताजी को सोनाली के पापा के साथ जाने में संकोच हो रहा था.

‘‘कैसी बातें कर रही हैं आप, तबीयत आप की खराब है और आप डाक्टर को दिखाने कुछ दिन बाद जाएंगी. शायद आप को मेरे साथ जाने में संकोच हो रहा है.’’

‘‘आप तो जानते हैं, जैसे ही बाहर निकलेंगे गलीमहल्ले वाले सब की नजर पड़ेगी. पता नहीं क्याक्या बातें बनाएंगे. 2-3 दिन की ही तो बात है, जैसे ही सुधीर वापस आएगा, मैं डाक्टर को दिखा आऊंगी. अब तो मैं सही भी हो गई हूं,’’ लताजी ने बात को संभालने की पूरी कोशिश की.

‘‘आप मेरा मतलब नहीं समझे, आप को इन्फैक्शन है. कभी भी बढ़ सकता है. अब तो संभाल में आ गया, नहीं तो बहुत परेशानी हो सकती थी. आप को मेरे साथ जाने में परेशानी है तो इस का भी हल है.

‘‘आप सुधीरजी की कार में चले जाइएगा. ड्राइवर आप को डाक्टर के यहां छोड़ देगा. मैं थोड़ी देर में औटो से आ जाऊंगा,’’ जयप्रकाशजी ने जब अधिकारपूर्वक कहा तो लताजी को उन की बात माननी ही पड़ी.

सुबह, जैसा निश्चित हुआ था, उसी के अनुसार लताजी ड्राइवर के साथ चली गई और थोड़ी देर बाद जयप्रकाशजी भी औटो के साथ वहां पहुंच गए.

‘‘आप आ गए. बहुत देर हो गई, मुझे तो घबराहट होने लगी थी.’’

‘‘पता नहीं, दोपहर का समय है, फिर भी ट्रैफिक बहुत मिला. अब तो सड़कों पर आदमी से ज्यादा वाहन हो गए हैं. क्या आप का नंबर आ गया?’’

‘‘नहीं, अभी 2 लोगों के बाद है.’’

‘‘आप कुछ लेंगी, पानी या चाय. मैं भी जल्दी में घर से लाना भूल गया,’’ लताजी मन ही मन खुश हो रही थी. अपनी फिक्र होते देख उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था. डाक्टर साहब से भी सारी बातें जयप्रकाशजी ने ही कीं.

आप ने सही समय पर दवाई और ओआरएस का घोल दे दिया, जिस से पेट में इन्फैक्शन नहीं फैला. अब मैं 3 दिन की दवाई लिख रहा हूं और कुछ टैस्ट भी आप करवा लीजिए. और हां. मांजी, आप भी थोड़ा घूमना शुरू कर दीजिए, इस से डाइजेशन दुरुस्त रहता है.’’

क्लीनिक से बाहर निकल कर जयप्रकाशजी औटो ढूंढ़ने लगे.

‘‘आप भी कार में बैठ जाइए. बाहर कितनी चिलचिलाती धूप हो रही है. पता नहीं आप को औटो कब मिलेगा?’’

‘‘पर लोग.’’

‘‘आप उन की चिंता न करें. मैं सब देख लूंगी,’’ अचानक से लताजी का हृदय परिवर्तन देख कर जयप्रकाशजी हैरान हो गए.

फिर क्या था, सारे रास्ते दोनों में बातचीत होती रही. कहीं से भी आभास नहीं हो रहा था कि अभी साथ दिखने मात्र से ही उन को परेशानी हो रही थी.

‘‘अरे, मैं आप को बताना ही भूल गया. आप सुबह 8 बजे तक कुछ नहीं खाएंगीं. पैथोलौजी लैब से आप का ब्लड सैंपल लेने आएगा. जब मैं आप की दवाई लेने गया था, तभी उसे बुक कर दिया था.’’

‘भाई साहब कितने सरल और सहज हैं. सब काम चुपचाप निबटा दिया. मैं ने कितना गलत सम?ा,’ लताजी मन ही मन विचार करने लगी.

‘‘कहां खो गईं आप, घर आ गया है.’’

‘‘भाई साहब, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. कल से आप मेरी इतनी अधिक देखभाल कर रहे हैं और मैं अब तक आप से परायों जैसा व्यवहार कर रही थी. मैं अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘ऐसा न कहिए बहनजी, घरपरिवार में तो यह सब चलता ही रहता है.’’

धीरेधीरे घर का मौसम बदलने लगा, पहले जहां लू के थपेड़ों ने आपसी रिश्तों को झलसा दिया था, वहीं अब रोज पड़ने वाली बूंदों ने मौसम को खुशनुमा बना दिया. पापा भी धीरेधीरे घर का हिस्सा बन गए थे. मैं ने विहान को पढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी. सब को एकसाथ देख कर कितना सुकून मिलता है. किसी प्रकार की कोई टैंशन नहीं. पता नहीं हमारे समाज में इतनी पाबंदियां क्यों हैं? लड़की का मायका और ससुराल एक जगह मिल कर क्यों नहीं रह सकते?

‘‘सोनाली क्या सोच रही हैं?’’ पापा ने आवाज दी.

‘‘एक कोफ्ता और मिल सकता है क्या? आज लौकी के कोफ्ते बहुत स्वादिष्ठ बने हैं. पेट भर गया है पर मन अभी तृप्त नहीं हुआ है,’’ पापा ने खाने की तारीफ की तो सोनाली ने बताया कि आज कोफ्ते मांजी ने बनाए हैं. लताजी ने तो रसोई से संन्यास ले लिया था. आज अचानक मन किया या शायद धन्यवाद कहने का उन्हें यह तरीका सम?ा आया पर इतनी तारीफ सुनने को मिलेगी, ऐसा सोचा न था, अब तो हर दूसरे दिन लताजी रसोई के चक्कर लगाने लगीं. धीरेधीरे उन दोनों के बीच संकोच की दूरी घटने लगी. पहले शाम को तिकड़ी जमा होती थी, फिर विहान के एग्जाम शुरू होने के बाद दोनों ही ताश खेलते रहते. अब सब अच्छा चल रहा था लेकिन खुशियां कभी भी एक जगह ज्यादा देर तक नहीं ठहरतीं. सोनाली को अपनी ही नजर लग गई. अभी बहार आई थी कि पत?ाड़ ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी.

‘‘पापा देखो न, आज मम्मी सुबह से ही बिना बात के गुस्सा हो रही हैं. मैं ने अपना सारा होमवर्क निबटा दिया, फिर भी जबरदस्ती पढ़ने के लिए बैठा दिया,’’ विहान ने सुधीर के आते ही सोनाली की शिकायत करना शुरू कर दिया.

‘‘ठीक है, मैं बात करता हूं. क्या हुआ, आज बिन बादल, बिजली और बरसात दोनों एकसाथ…’’

‘‘अमित भैया का फोन आया था. कह रहे हैं कि अब कोरोना का प्रभाव कम होने लगा है, इसीलिए कंपनी वाले औफिस बुला रहे हैं. उन्हें और रीना दोनों को ही जाना पड़ेगा. बच्चों के स्कूल अभी नहीं खुलेंगे, इसलिए वे दोनों घर पर ही रहेंगे. पापा घर पर आ जाते तो उन्हें बच्चों की कोई चिंता नहीं रहती. कितने खुदगर्ज हो गए हैं भैया. इतने दिन हो गए, पापा को यहां आए हुए. मगर एक भी फोन नहीं. और आज जब उन्हें जरूरत पड़ी तो तुरंत फोन कर दिया. कहीं नहीं जा रहे पापा. अब तो उन का यहां मन भी लग गया है.’’

‘‘वह तो ठीक है पर एक बार पापा को भी बता दो, अगर उन का वहां जाने का मन नहीं होगा तो मैं खुद अमित को मना कर दूंगा.’’

‘‘रात को डिनर के समय अमित का फोन आया था, घर वापस आने के लिए कह रहा है,’’ जयप्रकाशजी ने सब को बताया.

‘‘पता है मुझे पर अब आप वहां नहीं जाएंगे. यह क्या बात हुई, पहले तो उन्हें आप का ध्यान नहीं आया और अब जरूरत पड़ी तो.’’

‘‘बेटी, ऐसा नहीं कहते, समय पर अपने ही अपनों के काम नहीं आएंगे तो.’’ अभी जय प्रकाशजी की बात खत्म नहीं हुई थी कि लताजी ने भी सोनाली का समर्थन किया, ‘‘सही तो कह रही है सोनाली, यह क्या बात हुई, अब उन्हें जरूरत है तो बुला रहे हैं. कल को जब जरूरतें खत्म हो जाएंगी, तब क्या होगा. आप को वहां नहीं जाना चाहिए. बच्चों को भी तो आप की अहमियत का पता चले,’’ सब लताजी की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. कहां तो मां उन के आने का विरोध कर रही थीं और जब वह जाने के लिए कह रहे हैं तो मना कर रही हैं. शायद इतने दिनों से जिस अकेलेपन को वह झेल रही थीं, वह अब भरने लगा था.

‘‘नहीं लताजी, मुझे जाना ही पड़ेगा. बेटा खुदगर्ज हो सकता है पर एक पिता नहीं. अगर मैं भी उस की तरह व्यवहार करूंगा तो उस में और मुझ में क्या अंतर रह जाएगा. मैं अपने बेटे को सही संस्कार देने में नाकामयाब रहा पर कोशिश करूंगा कि आने वाली पीढ़ी को संभाल सकूं.

‘‘पापा अपनी जगह सही थे और हम सब की चिंता भी वाजिब थी. सब के मन दुखी थे, कोई नहीं चाहता था कि पापा वापस जाएं. आप के घर में आने से रौनक आ गई थी. अब आप चले जाएंगे तो फिर से.’’

‘‘जाना तो पड़ेगा, आप भी समझती हैं कि बच्चे गलती कर सकते हैं पर मांबाप नहीं. मैं आप से रोज फोन पर बात करूंगा.’’

सोनाली कभी मां की ओर देखती और कभी अपने पापा की ओर. शायद इस उम्र में व्यक्ति को भौतिक संसाधनों से ज्यादा संगसाथ की आवश्यकता अधिक होती है.

‘‘ठीक है नानू, आप मामा के घर जा सकते हैं पर आप वादा करो कि गरमी की छुट्टी में आप हमारे साथ रहेंगे. सही कहा न दादी?’’

विहान की बात सुन कर सब लताजी की ओर देख कर मुसकरा उठे.

लेखिका – अपर्णा गर्ग

परिंदे की जात

लालटू ने घर को आखिरी बार निहारा. घर जैसे उस के सीने में किसी कील की तरह धंस गया था. उस ने बहुत कोशिश की लेकिन कील टस से मस न हुई. उस ने सामने खुले मैदान में नजर दौड़ाई. सामने बड़ेबड़े पहाड़, खूबसूरत वादियां… भला कौन इस जन्नत को छोड़ कर जाने की बात सोचता है. लेकिन वह अपने बूढ़े बाप और अपने बच्चों का चेहरा याद करता है तो यह घाटी अब उसे मुर्दों का टीला ही जान पड़ती है. इधर घाटी में जब से मजदूरों पर हमले बढ़े हैं उस के पिताजी और उस के बच्चों का हमेशा फोन आता रहता है कि कहीं कुछ…

उस के बूढ़े पिता कोई बुरी घटना घाटी के बारे में सुनते नहीं कि उस का मोबाइल घनघना उठता है. चिंता की लकीरें लालटू के चेहरे पर और घनी हो जाती हैं.

बूढ़ा असगर जाने कब से आ कर लालटू की बगल में खड़ा हो गया था. उस की नजर अचानक बूढ़े असगर पर पड़ी. लालटू झोंपता हुआ बोला, ‘‘अरे चचा, आइए बैठिए.’’

‘‘तुम ने तो जाने का इरादा कर ही लिया है तो मैं क्या कहूं. लो, यह पश्मीना शौल है. रास्ते में ठंड लगे तो ओढ़ लेना,’’ असगर चचा ने तह की हुई शौल को पन्नी से निकाला और लालटू के कंधे पर डाल दिया.

इस अपनत्व की गरमी के रेशे ने एक बार फिर से लालटू की आंखें नम कर दीं.

असगर चचा ने धीरे से उस के कंधे दबाए और हाथ से उस के कंधे को बहुत देर तक सहलाते रहे. असगर चचा को भी कहीं यह एहसास हुआ कि ज्यादा देर तक वे इस तरह रहे तो उन की भी आंखें भीगने लगेंगी.

उन्होंने बात को दूसरी तरफ मोड़ते हुए कहा, ‘‘चाय लोगे?’’

लालटू ने हां में सिर हिलाया. बूढ़े असगर ने नदीम को आवाज लगाई, ‘‘नदीम, जरा 2 कप चाय दे जाना.’’

थोड़ी ही देर में नदीम 2 प्यालों में गरमगरम चाय ले कर आ गया.

चाय पीते हुए बूढ़ा असगर बोला, ‘‘ठीक है, अब तुम भी क्या कर सकते हो. जब यहां लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं, वहां तुम्हारे वालिद और बच्चे परेशान हैं. यहां क्या है, पुचके अब नहीं बिकेंगे तो चाय बेचने लगूंगा. आखिर कहीं भी रह कर कमायाखाया जा सकता है. तुम जहां रहो, खुश रहो. अपने वालिद और अपने बच्चों को देखो. जमाना बहुत खराब आ गया. पहले लोग इंसानियत और मुल्क के लिए जान दे देते थे.

लेकिन अब इन नालायकों को जिहाद और आतंकवाद के अलावा कुछ नहीं सूझता.

‘‘जिहाद बुराई को खत्म करने के लिए किया जाता है, बुरा बनने के लिए नहीं. इसलाम में कहीं नहीं लिखा है कि बेगुनाहों और मजलूमों का कत्ल करो. ये सब वही लड़के हैं जिन्हें धर्म के नाम पर उकसाया जाता है और सीमापार बैठे हुक्मरान इन से खेलते हैं.’’

बहुत देर से चुप बैठा नदीम भी आखिरकार चुप न रह सका, बोला, ‘‘तमिलनाडु में एक कंपनी ने तो एक ऐसा विज्ञापन निकाला है जिस में लिखा है कि वह नौकरियां केवल हिंदुओं को देगा, मुसलमानों को नहीं.

‘‘आखिर जो हो रहा है, एकतरफा तो नहीं हो रहा है न?’’

अचानक से चचा के शब्दों में अफसोस उतर आया. वे नदीम को घूरते हुए बोले, ‘‘आज सालों पहले लालटू यहां आया था और पता नहीं कितने मजदूर यहां काम की तलाश में आए होंगे. यह देश जैसे तुम्हारा है वैसे लालटू का भी है. कोई भी कहीं भी देश के किसी भी हिस्से में जा कर मजदूरी कर सकता है. कमानेखाने का हक सब को है. लालटू आज भी मुझे अपने वालिद की तरह ही मानता है. गोलगप्पे मैं बेलता हूं, छानता वह है. रेहड़ी मैं लगाता हूं, धकेलता वह है. मैं ने कभी तुम में और लालटू में अंतर नहीं किया. बेचारा हर महीने जो कमाता है, अपने घर भेज देता है. सालछह महीने में वह कभी घर जाता है तो अपने बूढ़े बाप और बालबच्चों से मिलने. मैं ने कभी इसे दूसरी किसी नजर से नहीं देखा है.

‘‘इस ढंग की हरकतें सियासतदां करें, उन को शोभा देता होगा. हम तो इंसान हैं. ऐसी गंदी हरकतें हमें शोभा नहीं देतीं. हम तो मिट्टी के लोग हैं और हमारी जरूरतें रोटी पर आ कर सिमट जाती हैं. रोटी के आगे हम सोच ही नहीं पाते.

‘‘हिंदूमुसलमान भरे पेट वाले लोगों के लिए होता है. खाली पेट वाले रोटी के पीछे दौड़ते हुए अपनी उम्र गंवा देते हैं. इसलिए नदीम, दुनिया में आए हो तो हमेशा नेकी करने की सोच रखो. बदी से कुछ नहीं मिलता, बेटा. बेकार की अफवाहों पर ध्यान मत दो. इस तरह की अफवाहों पर कान देने से अपना ही नुकसान है. ऐसी अफवाहें घरों में रोशनी नहीं करतीं और न ही शांति के लिए कंदीलें जलाती हैं बल्कि पूरे घर को आग लगा देती हैं. मैं उन नौजवानों से भी कहना चाहता हूं जो इस तरह की कत्लोगारत में यकीन रखते हैं. बेटा, उन का कुछ नहीं जाएगा लेकिन तब तक हमारा सबकुछ जल जाएगा.’’

बाहर खिली हुई धूप में कुछ कबूतर उतर आए थे. असगर गेहूं के कुछ दाने कोठरी से निकाल लाया और उन की तरफ फेंकने लगा. ढेर सारे कबूतर वहां दाना चुगने लगे.

असगर उन की ओर उंगली दिखाते हुए लालटू और नदीम से बोला, ‘‘देखो, ये हम से बहुत बेहतर हैं. अलगअलग रंगों के होने के बावजूद एकसाथ बैठ कर दाना चुग रहे हैं. ये बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, फिर भी ये आपस में कभी नहीं लड़ते. लेकिन आदमी इतना बुद्धिमान होने के बावजूद जातियों और मजहबों में बंटा हुआ है. इन कबूतरों से आदमी को बहुतकुछ सीखने की जरूरत है.’’

लालटू ने नजरें दौड़ाईं. दोपहर धीरेधीरे सुरमई शाम में तबदील होने लगी थी. उस ने एक बार रेहड़ी को छुआ, फिर उन बरतनों पर सरसरी निगाह दौड़ाई. बिस्तर को निहारा.

यह सब वह आखिरी बार कर रहा था. पिछले 10-12 सालों से वह कश्मीर के इस हिस्से में रेहड़ी लगाता आ रहा था. अब सब छूटा जा रहा था. उस की बस किनारे आ कर लगी. लालटू चलने को हुआ.

असगर दौड़ कर बस तक आया. उस ने लालटू को सीने से लगा लिया. लालटू और असगर दोनों रोने लगे.

असगर बोला, ‘‘अपना खयाल रखना. कभी हमारी याद आए और हालात ठीक हो जाएं तो चले आना.’’

‘‘आप भी अपना खयाल रखना,’’ झोंपता हुए वह बस की सीट पर बैठ गया. उस ने बैग से पश्मीना शौल निकाल कर ओढ़ ली. सुरमई शाम धीरेधीरे रात में बदल गई.

सैक्स फैंटसी से जुड़ी बातें जो आप की मैरिड लाइफ को मजबूत बना देंगी

आज के समय में हर इंसान यह चाहता है कि उस की मैरिड लाइफ बिल्कुल भी बोरिंग ना हो. पहले के समय में हम ने देखा है कि लोगों कि मैरिड लाइफ काफी बोरिंग रहती थी क्योंकि हसबैंडवाइफ एकदूसरे से हर बात को शेयर और डिस्कस नहीं कर पाते थे. और तो और पहले के जमाने में पत्नियां अपने पति से काफी शर्माती भी थीं और अपनी निजी या सैक्स से जुड़ी इच्छाओं को शेयर करने में सकुचाती थी, उन्हें यह लगता था कि अपनी इच्छाओं को सामने लाने पर पति उसके चरित्र पर संदेह करेगा पर अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आज के मौडर्न समय में लड़कियां लड़कों से भी आगे निकल चुकी हैं. मौडर्न कपल्स एकदूसरे से सारी बातें और प्रौब्लम्स शेयर कर लेते हैं और अपनी सैक्स से जुड़ी इच्छाओं को भी .

गुड सैक्स मतलब गुड मैरिड लाइफ

मैरिड लाइफ को इंटरस्टिंग बनाने के लिए सबसे पहले जरूरी है हमें अपनी सैक्स लाइफ को रोचक बनाना होगा. सैक्स हमारे बौडी कि ऐसी जरूरत है जिसे हम चाह कर भी इग्नोर नहीं कर सकते. सैक्स करने से कपल्स के बीच का बौंड और ज्यादा स्ट्रौंग बनता है. हम अकसर अपनी बाकी बातों में उलझ कर सैक्स के बारे में नहीं सोच पाते और अपनी सैक्स लाइफ बोरिंग बना बैठते हैं.

अच्छी सैक्स लाइफ के लिए अपनाएं सैक्स फैंटसीज

हर इंसान के लिए सैक्स फैंटसीज जरूर होती हैं और हम सब को सैक्स में नई नई चीजें ट्राई करना बेहद पसंद होता है लेकिन फिर भी किसी ना किसी वजह से हम नहीं कर पाते हैं और बस सोचते रह जाते हैं. हमें अपनी सैक्स लाइफ में फैंटेसीज का तड़का लगाना चाहिए. कई लोग पौर्न वीडियोज देख नई नई चीजें ट्राई करते हैं और अपने पार्टनर्स को एक अलग सी सुख देने की कोशिश करते हैं. आप को हमेशा अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में बात करनी चाहिए और उन से पूछना चाहिए कि हम अपनी सैक्स लाइफ और बहतर कैसे बना सकते हैं. इससे आप के बीच का कम्युनिकेशन भी ठीक होगा

पार्टनर से बात कर बनाएं फैंटसीज

हमें अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में जरूर बात करनी चाहिए और जानना चाहिए कि हमारे पार्टनर की सैक्स डिजायर्स या सैक्स फैंटसीज कैसी हैं और क्या हम अपने पार्टनर को वो एंजौयमेंट दे पा रहे हैं जो उन्हें चाहिए. अगर आप के या अपने पार्टनर की कोई सैक्स फैंटसीज नही हैं तो आपकी सैक्स लाइफ बोरिंग हो जाएगी. इस बोरियत के आने के पहले दोनों को सैक्स फैंटसीज बनानी चाहिए और अलगअलग पोजीशन्स ट्राई करनी चाहिए. उस के बाद यह भी डिस्कस करें कि आप का अनुभव कैसा रहा.

ट्राई करें ओरल सैक्स

सैक्स लाइफ में तड़का लगाने के लिए सैक्स को सिर्फ एक प्रोसेस ना मानें बल्कि सैक्स को पूरी फीलिंग के साथ करें. ओरल सैक्स से आप अपने पार्टनर को वो सुख दे सकते हैं जो आप दोनों ने कभी एक्सपीरिंस नहीं किया होगा. सैक्स करने से पहले अपने पार्टनर को इस कदर प्यार दें कि दोनों को सैक्स से पहले ही इतना आनंद मिल जाए कि बस दोनों पार्टनर्स सैक्स करने पर मजबूर हो जाएं और सैक्स किए बिना रह न पाएं. सैक्स से पहले अपने पार्टनर की पूरी बौडी अपने हाथों से सहलाएं और अपनी जीभ का इस्तेमान कर अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जम कर किस करें और साथ ही उन्हें इतना जोर से गले लगाएं कि आप दोनों एक दूसरे की दिल की धड़कनें तक महसूस कर पाओ.

सैक्स में कुछ नयापन लाने से दोनों को एक अलग ही सुख की प्राप्ति होगी जो अब से पहले आप दोनों को नहीं हुई होगी. ऐसा करने से आप की सैक्स लाइफ और भी ज्यादा बेहतरीन बन सकती है और साथ ही आप की मैरिड लाइफ आप को कभी भी बोरिंग नहीं लगेगी.

मेरी वाइफ का एक्स बौयफ्रैंड मेरी औफिस में काम करता है और मुझे ऐसा फील होता है कि वे मेरा मजाक उड़ा रहा है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी शादी को 3 महीने हुए हैं और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता हूं. शादी से पहले मैं और मेरी पत्नी अच्छे दोस्त भी रह चुके हैं. हम दोनों एक दूसरे से सारी बातें डिस्कस किया करते थे फिर चाहे पर्सनल रिलेशनशिप्स की बात हो या फिर घरवालों से जुड़ी कोई बात हो. शादी से पहले उसका एक बौयफ्रेंड था जिसके बारे में उसने मुझे बताया था और तो और मैं एक बार उस लड़के से एक बार मिल भी चुका हूं. किसी कारण से उस दोनों का रिलेशन ज्यादा समय तक नहीं चल पाया और उनका ब्रेक-अप हो गया. हाल ही में उस लड़के ने मेरे औफिस में ज्वाइन किया है. मैं उससे हमेशा अच्छे से मिलता हूं पर जब भी मैं उसे देखता हूं तो मुझे ऐसा फील होता है जैसे उसकी नजरें मेरा मजाक उड़ा रही हों. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

मैं आप की प्रौब्लम कोअच्छी तरह समझ सकता हूं. अपनी ही पत्नी के एक्स बौयफ्रेंड से रोज मिलना किसी भी लड़के को अच्छा नहीं लगेगा. मुझे यह जान कर काफी अच्छा लगा कि आप उससे हमेशा अच्छी तरह मुलाकात करते हैं क्योंकि इससे पता चलता है कि आप का दिल काफी साफ है और आप किसी के लिए कोई बुरा विचार नहीं रखते. इतना ही नहीं आप का यह स्वभाव इस बात को भी साबित करता है कि आप की पत्नी की पुरानी जिंदगी आप के लिए कोई खास मायने नहीं रखती है.

अगर आप की पत्नी का एक्स बौयफ्रेंड आप के औफिस में आ भी गया है तो आप को इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. ऐसा नहीं है कि आप की वजह से उन दोनों का ब्रेकअप हुआ है. उन दोनों में अच्छे संबंध नहीं बन पाए जिस वजह से वे दोनों अलग हुए होंगे और आप की किस्मत में इसी लड़की का आना लिखा होगा तभी आप दोनों की शादी हुई है. अगर आप दोनों एकदूजे के लिए अच्छे कैंपैनियन साबित हो रहे हैं तो यह इस बात का प्रुव है कि आप की पत्नी के लिए भी अतीत कोई मायने नहीं रखता है.

कभीकभी हमे जो सामने से नजर आता है वह सच नहीं होता. अगर आप को उसे देख कर लग रहा है कि उस की नजरें आप का मजाक उड़ा रही हैं तो आप को उस से एक बार बात करनी चाहिए. यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उस का इंटेशन क्या है. मुलाकात करने पर उस से पूछना चाहिए कि उस की क्या प्रौब्लम क्या है. हो सकता है मजाक उड़ाने जैसा कुछ ना हो और यह सिर्फ आप के मन का वहम हो.

आप को इस बात का खास खयाल रखना है कि औफिस में आप को अपनी पत्नी के बारे में उससे किसी तरह की कोई बात नहीं करनी है क्योंकि अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है. हो सके तो उस लड़के से आप को ज्यादा दोस्ती नहीं करनी चाहिए बल्कि एक प्रोफेशनल्स की तरह आप दोनों को सिर्फ काम से रिलेटेड ही बात करनी चाहिए जिससे कि आप दोनों सेम औफिस में अच्छे से काम कर पाएं. ऐसा करके आप अपनी दुविधा से बाहर आएंगें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

जाहिल : असलियत में गंवार कौन

फरिश्ता कौंप्लैक्स में ममता नगरनिगम के लाल, हरे, काले रंगों के कचरे के बड़े डब्बे लिए एकएक घर की घंटी बजाती कचरा इकट्ठा करने रोज की तरह आवाज लगाने लगी.

उसी समय बाकी कामवालियां भी अपनेअपने लगे घरों में साफसफाई करने को आजा रही थीं और कुछ रहवासी अपने कामधंधे के लिए घर से निकल रहे थे.

उस व्यस्त फ्लोर पर सभी ने एक बार में अपनेअपने कचरे खुद या अपने घर पर काम करने आई बाई के हाथ बाहर भिजवा दिए और कई सीधा उन डब्बों में अपने वेस्ट डाल अपने घरों के भीतर चले गए.

उस फ्लोर पर एक घर शेष था जिस में अभीअभी कोई नए लोग रहने आए थे. कल भी उन्होंने कचरा उस के जाने के बाद बाहर रखा और पूरा फ्लोर बदबूदार हो गया.

वह कल की तरह आज बिल्ंडिंग मैनेजर से डांट नहीं खाना चाहती थी, इसलिए ममता ने फिर घंटी बजाई. लेकिन कोई न आया. उस ने उस घर के सामने जा कर जोर से आवाज लगाई.

‘‘दीदी, कचरा हो तो अभी दे दीजिए.’’

सुबह के 9 बजे अपनी बदहवास नींद में चूर वे मेमसाहब अपनी नाकमुंह बिचका कर अपने घर के दरवाजे को आधा खोल, कचरे से पिलपिलाती थैली उस के पैर की ओर जोर से फेंक कर झट से अपना दरवाजा बंद कर लेती हैं.

‘ये कचरा बीनने वाले दो कौड़ी के लोग सुबहसुबह हमारी नींद खराब करने को मुंह उठा कर चले आते हैं, गंवार कहीं के,’ वे अपने घर के भीतर बड़बड़ाती रहीं और दरवाजे के इस पार खड़ी ममता उन की बातें सुन हतप्रभ रह गई.

वह सोचती रह गई कि काम तो काम होता है, चाहे वह एयरकंडीशनर कमरे में बैठ कर कंप्यूटर चलाने वाला हो या गटर साफ करने वाला, अपनाअपना पेट पालने के लिए परिश्रम तो सभी करते हैं. उन की मेहनत आंकने को वह किसी से नहीं कह रही पर इस तरह से तिरस्कार करना क्या सही है?

उन्हें उसे ऐसा कहते सुन टीस जरूर हुई और एकाएक ममता के कानों के साथ उस की भीगी आंखें उन के आलीशान कारीगरी किए हुए दरवाजे पर जा अटकीं और एक पल को उन के कहे एकएक शब्द उस के दिमाग में घूमने लगे. इसी बीच उस की खोई हुई नजरों ने अपने पैरों के बीच कुछ बहता हुआ पाया. उस ने नीचे देखा और अपने जूते झट से अलग कर लिए.

उन के द्वारा प्रतिबंधित की जा चुकी नष्ट न होने वाली पन्नी, जो वर्ल्ड लाइफ फैडरेशन के आंकड़े के अनुसार प्रदेश में रोजाना 20 गायों की मौत का कारण बन रही है, को जोर से फेंकने से वह पूरी तरह से फट गई थी और उस से बदबू मारती उन के घर की सड़ीगली जूठन के साथ डिस्पोजेबल चम्मच, घड़ी के सैल, सैनेटरी पैड आदि साफ टाइल्स पर धरधरा कर जहांतहां फैल गए.

वह अपने दस्ताने पहने हाथों से उन्हें उठा वेस्ट अनुसार नगरनिगम के डब्बों में डाल तो देती है पर तब तक उस से निकल चुका गंदे कचरे का पानी फर्श पर फैल गया.

उस ने खुद को समझाया कि सालों से कुछ घरों से ऐसी ओछी प्रतिक्रिया मिलना उस के लिए तो आम बात थी, फिर इतना दिल से क्यों लगाना, जाने दो.

‘एक ही थैली में सब तरह का कचरा नहीं डाला जाता,’ यह बात नगरनिगम के कर्मचारी समयसमय पर खुद आ कर और पंफलेट द्वारा सालों से बतला रहे हैं.

मां तो अनपढ़ थीं फिर भी उन्हें इतनी समझ थी पर इतने बड़े पढ़ेलिखे लोगों को भला यह आसान बात क्यों नहीं सम?ा आती. जिन्हें सूखा, गीला और प्रकृति के लिए जोखिम वाले सामान के डब्बों के बीच का फर्क नहीं पता.

बिना विभाजन किए किचन का वेस्ट, प्लास्टिक सामान, सैलबैटरीज, बिना लाल क्रौस किए पेपर में लपेट कर पैड-डायपर की अलग पन्नी, टूटे कांच बिना सोचे कि उन के फेंकने के बाद उस कचरे को कुत्ते, गाय या कचरा बीनने वाले के खोलने पर वे चोटिल हो सकते हैं और न ही अपने घर से होती पर्यावरण को सुरक्षित रखने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी व दिनभर मोबाइल पर उंगलिया चलाने वाली अतिव्यस्त जनता समय के अभाव का बहाना कर सभी कचरा अलगअलग करने में असमर्थ हो एकसाथ ठूंस कर फेंक देती है, जबकि यही जनता सरकार को वायु, जल, मिट्टी के बढ़ते प्रदूषण के लिए बेझिझक कोसने में देर नहीं लगाती.

कचरा तो बिन गया पर गंदगी का वह लसलसा, लारदार पानी जस का तस था.

सफाई वाली तो आ कर जा चुकी और उस का काम कचरा इकट्ठा करना है, गंदगी साफ करना नही. एक बार को कर भी दे पर उस के पास तो सफाई का सामान ही नहीं है, बाकी घरों से कचरा लेने के लिए देर भी हो रही है. उसे उस फ्लोर को ऐसे ही गंदगी के बीच छोड़ कर जाने के अलावा कोई रास्ता न सूझ और वह एक के बाद एक दूसरे फ्लोर में कचरा इकट्ठे करने यह सोच कर निकल गई कि जब सफाई वाली दिखेगी तो उस से कह कर यहां सफाई करवा देगी.

वहीं, कुछ घंटों बाद जब वे मेमसाहब सजधज कर, परफ्यूम मार, शौपिंग के लिए मौल को निकलने के लिए अपना दरवाजा बंद कर अपनी चिकनी हाई हील्स से लिफ्ट की ओर जाने को मुड़ीं नहीं कि वे धम्म से उन मक्खियों से भिनकते अपने द्वारा फेंके कचरे में जा फिसलीं.

तभी सामने वाले घर से काम कर निकलती बाई ने उन्हें फर्श पर से अपने चिपचिपाते हाथों से उठने का बारबार असफल प्रयास करते पाया और दूसरी ओर से उसी समय ममता सफाई वाली को ले कर आ पहुंची.

वे तीनों उन की मदद करने को उन की ओर फुरती से बढ़ने लगीं.

‘‘यह क्या तरीका है गंवारो? न सफाई करने की अक्ल है न ही कचरा हटाने की. तुम लोगों को नौकरी से नहीं निकलवाया तो मेरा नाम नहीं. रुको वहां, यहां मत आना. वहीं खड़ी रहो. अपने गंदे हाथों से मुझे छूना मत,’’ वे मेमसाहब गिरती-संभलती बड़बड़ाती हैं.

‘‘हां, तो पड़ी रह वैसी. एक तो मदद कर रहे हैं और ये अकड़ दिखा रही हैं. देखा था मैं ने, कैसे कचरा फेंक कर दे रही थी सुबह. देख, अब अपने किए पर कैसी लोट रही है.’’

‘‘चुप रह, अपनी औकात देख कर बात कर, अनपढ़.’’

‘‘हां मानते हैं, आप लोग जैसे बड़े स्कूलकालेज में नहीं गए पर कचरे का विभाजन कर फेंकने की तमीज हमारे पास आप से बेहतर है. अनपढ़गंवार आप को हमें नहीं बल्कि हमें आप को कहना चाहिए.’’

‘‘दीदी माफ करिएगा,’’ ममता ने मामला बढ़ता देख उसे चुप करा दिया. जो वह आज सुबह न कह सकती थी, उस तुनकमिजाज बाई ने उसे सुना दिया.

सफाई वाली बिना कुछ कहे वह गंदगी साफ कर ममता के साथ चली गई और वे मेमसाहब अपना सिर ?ाकाए, अपनी पीठ सरका कर दरवाजे का सहारा लेते अपने महंगे कपड़ों से रिसती हुई बदबूदार लार को अपने साथ घर के भीतर ले जातीं यह सोचती रहीं कि असलियत में गंवार है कौन?

चेहरे

नीति ने अपना पर्स उठाया और औफिस से बाहर निकल गई. ‘‘ठंडे दिमाग से सोचना मैडम, ऐसी नौकरी आप को दूसरी नहीं मिलेगी. लौटने का विचार बने तो फोन कर देना.’’ मधुकर ने चलतेचलते उस से कहा.

नीति ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. पैर पटकती चली गई. बाहर आ कर औटो लिया और सीधे अपने कमरे पर आ गई. पर्स बिस्तर पर फेंक कर वहीं पसर गई और रोती रही. रोतेरोते कब उस की आंख लग गई, पता नहीं चला.

अगले दिन निधि का फोन आया तो उठी. रोज निधि के साथ ही औफिस जाती थी. दोनों एक ही जगह से बस पकड़ती थीं. आज नीति को नहीं देखा तो निधि ने फोन कर के पूछा, ‘‘औफिस में नहीं आई है क्या? सब जगह देखा, सब से पूछा, कहीं मिली नहीं?’’

‘‘तबीयत ठीक नहीं है, घर पर ही हूं,’’ कह कर नीति ने फोन काट दिया. वह जानती थी कि औफिस से निधि को पता चल जाएगा कि क्यों वह वहां नहीं है. पता लगते ही वह उस से मिलने जरूर आएगी. कल निधि छुट्टी पर थी नहीं तो शायद वह नीति को इस तरह नौकरी छोड़ कर न आने देती.

अब तक भी कल की बात दिमाग से उतरी नहीं थी. बाथरूम में जा कर मुंह धोया और चाय बनाने रसोई में चली गई. चाय भी अच्छी नहीं बनी. दिमाग में तो उधेड़बुन चल रही थी.

नई नौकरी ढूंढ़नी पड़ेगी. पता नहीं अनुभव प्रमाणपत्र भी मधुकर देगा या नहीं. जब तक नौकरी नहीं मिल जाती तब तक कैसे काम चलेगा? अकेली ही रहती है इस शहर में. दोस्त भी कोई इस हाल में नहीं है कि मदद कर पाए. सब उस के ही जैसे हैं.

चाय पी कर बिस्तर पर लेट गई. कब नींद आई, पता ही नहीं चला. दरवाजे की घंटी जोरजोर से बज रही थी. नीति ने नींद में ही जा कर दरवाजा खोला.

‘‘दिन में इतनी गहरी नींद में कौन सोता है, कब से घंटी बजा रही हूं? मुझे भी घर वापस जाना होगा,’’ निधि एक ही बार में सबकुछ बोल गई.

‘‘तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए दवाई ले कर नींद आ गई,’’ नीति ने बहाना बनाया.

‘‘दवाई तो तुम कभी इतनी जल्दी लेती नहीं हो. कल तो औफिस गई थी, फिर अचानक इतनी बीमार कैसे हो गई? बीमारी है या कोई और बात है जो बताना नहीं चाहती हो?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘तुम से क्या छिपा है?’’ नीति ने कहा और कल की पूरी घटना निधि को बताई.

‘‘तुझे क्या पड़ी है किसी को सुधारने की? लोग इतने अच्छे होते तो इन निकेतनों की जरूरत ही क्या होती? कुछ लोग पाप करते हैं. कुछ लोग उन के पाप को पनाह देते हैं.’’

नीति चुपचाप सब सुन रही थी. निधि की बातें व्यावहारिक थीं. लेकिन वह उस जगह वापस लौट कर नहीं जाना चाहती थी. निकेतन चलाने वालों का सच उस के सामने आ चुका था. वहां पल रहे अधिकतर बच्चों के अभिभावकों को वे जानते थे. बड़ी पहुंच वाले, पैसे वाले लोग थे और उस पैसे से ही सब का मुंह बंद कर दिया गया था. उसी पैसे के बलबूते पर कई लोगों के घर चल रहे थे. उन बच्चों के सहारे कुछ और बच्चों को भी जीवनदान मिला हुआ था. उन का जीवन भी चल रहा था. निकेतन में काम करने वाले सभी लोग इस बात को जानते हुए भी चुप रहते थे. नीति ने मुंह खोला तो नौकरी छोड़नी पड़ी.

‘‘एक बार वापस सोच लेना. देख, अकेले तेरे काम छोड़ने से कुछ बदलने वाला नहीं है. अभी अपने बारे में सोच. नौकरी के बिना तू इस शहर में नहीं रह पाएगी.’’

निधि जातेजाते भी अपनी सहेली को सम?ाते हुए गई. नीति ने ध्यान से उस की बात सुनी और सोचसमझ कर निर्णय लेने का वादा किया. लेकिन मन ही मन उस ने तय कर लिया था कि वापस लौट कर नहीं जाना है. उस में काबिलीयत है और काम करने का जनून भी. वह कोई दूसरी नौकरी ढूंढ़ ही लेगी. अपनी आंखों से सबकुछ देखते हुए गलत सहन नहीं करेगी.

10 दिन गुजर गए पर कहीं भी बात बनी नहीं. पैसे भी धीरेधीरे खत्म हो रहे थे. घर पर अभी कुछ भी बताया नहीं था पर हालात घर लौटने के ही हो रहे थे. वापस जाने के बाद मम्मी, पापा की वही रट कि शादी की उम्र निकली जा रही है.

एक दिन सो कर उठी तो फोन बज रहा था. किसी अनजान नंबर से कौल आ रहा था. इतनी जगह सीवी दिया है, शायद किसी कंपनी से ही हो.

‘‘मैडम, आप आज ही इंटरव्यू के लिए आ जाइए.’’ फोन पर एक लड़की बोल रही थी. नीति के कुछ पूछने से पहले ही फोन कट गया. जल्दी से उठ कर नहाने गई और तैयार हो कर फोन पर बताए ऐड्रैस पर पहुंची.

उम्मीद के विपरीत नौकरी मिल गई और अगले ही दिन से फिर वही पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई. नए औफिस में जैसे उस का इंतजार ही हो रहा था. समय ही नहीं लगा घुलनेमिलने में. काम कुछ विशेष नहीं था, बस, फ्रंट डैस्क संभालनी थी. बौस से रोज ही मिलना होता. बहुत शांत और सौम्य व्यक्तित्व. जितना जरूरी हो उतना ही बोलते, पूरे औफिस पर उन का राज था.

एक दिन मधुकर को औफिस में देखा तो नीति का दिमाग घूम गया.

‘शायद डोनेशन के लिए आए होंगे,’ उस ने मन ही मन सोचा. औफिस में उस ने सुना था कि अपने प्रौफिट का एक निर्धारित प्रतिशत बौस दान कर देते हैं. कितनी ही स्वयंसेवी संस्थाओं को उन से वार्षिक अनुदान मिलता था. मधुकर नीति को नहीं देख पाया, उस ने शुक्र मनाया. वह नहीं चाहती थी कि वह उस से बात करे या नए औफिस में कोई जान पाए कि वह मधुकर को जानती है.

दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे. नीति मस्त हो गई थी. पुराने औफिस को, मधुकर को, यहां तक कि निधि को भी लगभग भूल चुकी थी. बौस का रंग उस पर भी चढ़ने लगा था. पूरे औफिस में कोई था ही नहीं जो बौस के बारे में कुछ भी उलटासीधा बोले या उन की बुराई करे. सभी जैसे उन के एहसान तले दबे हुए थे. उन के मोहक व्यक्तित्व का प्रभाव था या धन ऐश्वर्य का, जो भी संपर्क में आता था वही गुलाम हो जाता था. बौस की सैक्रेटरी राजी से भी नीति की अच्छी दोस्ती हो गई थी. राजी ने ही बताया था कि बौस अगले हफ्ते विदेश जाने वाले हैं एक मीटिंग के लिए.

औफिस से भी एकदो लोग उन के साथ जाएंगे.

‘अच्छा होता अगर मेरा नंबर लग जाता,’ नीति ने मन ही मन सोचा और अगले ही दिन पता चला कि बौस के साथ राजी और नीति का ही जाना तय हुआ है. पूरे दिन नीति खयालों में ही उड़ रही थी. उस ने कभी सोचा ही नहीं था कि किसी दिन अपने बलबूते पर वह विदेश यात्रा करने के काबिल बन पाएगी. अभी तक सुनती ही आई थी कि औफिस की मीटिंग के लिए लोग विदेश यात्रा करते हैं. जिस में अपना कुछ भी खर्च नहीं होता उलटे दोगुनी तनख्वाह मिलती है. घर पर बताने का मन हुआ लेकिन फिर खयाल आया जाने के दिन ही बता कर चौंकाएगी. पहले से बता दिया तो मम्मीपापा की हिदायतें शुरू हो जाएंगी. शंकाएं उमड़ने लगेंगी. औफिस से अकेली वही क्यों जा रही है? इन सभी खयालों के आते ही उस ने अभी नहीं बताने का पक्का इरादा बना लिया.

शाम को अपने कमरे पर पहुंची ही थी कि मधुकर का फोन आया. अनमने से उस ने फोन उठाया.

‘‘नीति, आप से एक बात कहनी है अगर आप फोन न काटें तो.’’ नीति कुछ समझ नहीं पाई, इसलिए उस ने कह दिया, ‘‘जल्दी बोलो जो बोलना है, अभी औफिस से आई हूं, ज्यादा लंबा भाषण मत देना.’’

‘‘ठीक है, सीधे ही कह देता हूं. आप इस विदेश यात्रा के लिए मना कर दीजिए.’’ मधुकर ने कहा तो नीति लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘पहले तो यह बताओ तुम्हें कैसे पता कि मैं विदेश जा रही हूं?’’

मधुकर ने गुस्सा नहीं किया.

‘‘नीतिजी, यह स्वयंसेवी संस्था भी आप के बौस की ही है. उन के पिताजी ने शुरू की थी लेकिन वे रिटायर हो कर अपने गांव चले गए तो अब आप के बौस ही कर्ताधर्ता हैं.’’

‘‘तुम्हें क्या समस्या है मेरे विदेश जाने से?’’ नीति अब भी गुस्से में ही बोल रही थी.

‘‘समस्या मुझे नहीं, आप को होने वाली है. हर साल एक विदेश यात्रा होती है आप के बौस की. औफिस में पता करना. राजी तय करती है कि बौस किस के साथ जाएंगे?’’

मधुकर की बात बीच में ही काट कर नीति बोली, ‘‘वह सैक्रेटरी है बौस की. उस का काम है यह. तुम्हें क्या परेशानी है? मेरी इतनी चिंता क्यों हो रही है?’’

नीति फोन काटने ही वाली थी कि मधुकर ने बात पूरी सुनने का आग्रह किया.

‘‘नीतिजी, अभी आप को कुछ नहीं बता पाऊंगा, बस, इतना कह सकता हूं कि कोई बहाना बना कर मना कर देंगी तो आप का ही फायदा होगा.’’

फोन कट गया पर नीति के दिमाग में हलचल मचा गया. पलंग पर बैठ गई. जिस दिन से मधुकर से मिली थी उस दिन से ले कर नौकरी छोड़ देने तक उसे उस के विरुद्ध कुछ भी ऐसा नहीं याद आ रहा था कि वह उस की बात पर विश्वास नहीं करे. रातभर दिमाग में द्वंद्व चलता रहा. सो भी नहीं पाई. सुबह उठते ही राजी को मैसेज किया.

‘‘मम्मी की तबीयत अचानक खराब हो गई तो रात में ही घर के लिए निकलना पड़ा. अभी आईसीयू में हैं. जब तक तबीयत संभल नहीं जाती तब तक औफिस नहीं आ पाऊंगी.’’

राजी का लगातार फोन आ रहा था लेकिन नीति ने बात नहीं की. घर तो नहीं गई लेकिन जब तक विदेश जाने की तारीख नहीं निकल गई, औफिस नहीं गई. कोई फोन भी नहीं किया. एक हफ्ते बाद औफिस गई तो माहौल बदलाबदला सा लग रहा था. राजी खुद को कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखाने में लगी हुई थी. बाकी लोग भी जैसे खिंचेखिंचे से लग रहे थे. पहली बार बौस ने किसी बात को ले कर डांट लगाई. कुल मिला कर सबकुछ बदल गया था. कोई भी ठीक से बात करने को तैयार नहीं था. नीति ने राजी को सम?ाना चाहा अपने नहीं जाने की वजह पर उस ने कोई ध्यान ही नहीं दिया.

‘‘नीति आज बौस का मूड उखड़ा हुआ है और काम भी बहुत है. तुम नहीं गईं, कोई बड़ी बात नहीं. वह मीटिंग वैसे भी कैंसिल हो गई थी.’’

नीति ने और कुछ नहीं पूछा. अपने काम में व्यस्त हो गई. बौस के किसी काम को मना करने का क्या मतलब होता है, उसे समझ आ गया था.

मधुकर से मैसेज कर के पूछा कि उस ने मना क्यों किया तो उस ने टाला नहीं, बस, छुट्टी वाले दिन मिल कर बताने को कहा.

‘‘फोन पर कही हुई या लिखी गई बात कभी भी सब के सामने आ सकती है, इसलिए बेहतर है कि आमनेसामने बात हो. कई बातों का मतलब तो मैसेज या कौल में गलत ही मान लिया जाता है क्योंकि कहने वाले के चेहरे के भाव छिप जाते हैं.’’ आने वाले रविवार को मिलना तय हुआ.

इस मुलाकात ने मधुकर के प्रति जो गुस्सा था उसे खत्म कर दिया. मुलाकात एक स्वयंसेवी संस्था में ही हुई. जगह मधुकर ने ही बताई थी. वहां उस ने महिमा से मिलवाया. उस के गांव की ही लड़की थी. इस शहर में अपना कैरियर बनाने आई थी मगर एक दुर्घटना ने उसे अवसादग्रत बना दिया और नारी निकेतन पहुंचा दिया था. मधुकर उस से मिलने जाता रहता था. महिमा से मिल कर अच्छा लगा लेकिन कुछ ऐसा था जो नीति को नहीं बताया गया था. नीति बारबार यही सोच रही थी.

‘यह पूरी जानकारी नहीं है. बहुतकुछ छिपा है महिमा के चेहरे के पीछे,’ अपने मन की इस बात पर विश्वास कर के नीति ने ठान लिया था कि पता लगा कर रहेगी कि क्यों मधुकर ने महिमा से उसे मिलवाया?

अगले रविवार को फिर से नीति उसी निकेतन में जा पहुंची जहां महिमा रहती थी. वह जानती थी कि मधुकर इतनी जल्दी महिमा से मिलने नहीं जाएगा, इसलिए समय मिलते ही निकल गई. महिमा से इस बार और भी बातें हुईं और उसे पता चल गया कि वह यहां कैसे पहुंची. महिमा मधुकर के साथ उस से मिली थी, इसलिए नीति पर उसे विश्वास हो गया था. दूसरे, नीति ने अपने आने की सूचना मधुकर को भी नहीं दी थी, इसलिए बिना किसी रोकटोक या सलाह के वह खुल कर नीति से बात कर पाई. वह सबकुछ बता दिया जो मधुकर जानते हुए भी उस से छिपा
गया था.

‘‘महिमा तुम्हारी बहन है और व्योम उसी का बेटा है. यही कारण था कि उस का बाकी बच्चों से ज्यादा खयाल रखा जाता था. तुम ने अधिराज से इस बारे में बात क्यों नहीं की?’’ शाम को फोन पर नीति ने मधुकर से सीधे पूछा. कई महीनों से वह इन बातों के चंगुल में फंसी हुई थी. बाल निकेतन को छोड़ने पर भी उस की जड़ों ने उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

‘‘अभी समय नहीं आया है सीधे बात करने का. जब आ जाएगा, जरूर करूंगा. मैं तो इस शहर में आया ही उस से बात करने के लिए हूं.’’
मधुकर ने दृढ़ता से उत्तर दिया. नीति ने एक और सवाल पूछा.

‘‘मुझ से क्या चाहते हो?’’

‘‘अधिराज के मुंह से कबूलनामा कि उस ने मेरी बहन की जिंदगी बरबाद की है और व्योम की परवरिश.’’

मधुकर ने तुरंत उत्तर दिया.

‘‘यह कैसे संभव होगा?’’ कुछ सोचते हुए नीति ने पूछा.

‘‘जल्दी ही तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारी जरूरत कहां पड़ेगी. तब तक निश्चय कर लो कि तुम इस लड़ाई में महिमा और व्योम के साथ हो.’’

कह कर मधुकर ने फोन काट दिया. नीति सोच रही थी कि कैसे बौस के असली चेहरे को देखे क्योंकि मधुकर की योजना में शामिल होने से पहले वह तय करना चाहती थी कि क्या मधुकर सही है? उस ने जो कहानी बताई और दिखाई है वह सच है या फिर अधिराज से मधुकर की कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है.

नए साल की शुरुआत के साथ ही औफिस में नए कर्मचारियों की नियुक्तियां शुरू हो गईं. एक लड़की भी आई, सृष्टि. बला की खूबसूरत और बिंदास. उस के आते ही औफिस के पुरुष कर्मचारियों की कार्यक्षमता दोगुनी हो गई. पहले समय पर औफिस पहुंचना और पहले ही निकल जाना एक आम बात थी लेकिन अब सब जल्दी औफिस आते और जब तक सृष्टि नहीं चली जाती, कोई भी नहीं जाता था. पूरे औफिस का माहौल बदल गया था. थोड़े ही दिन बीते कि राजी को कंपनी के दूसरे औफिस में भेज दिया गया और उस की जगह सृष्टि ने ले ली. अब बौस से उस का सीधा संपर्क होने लगा तो औफिस में कानाफूसी भी बढ़ने लगी. वह कुछ देर बौस के केबिन में रुक जाती तो सब घडि़यां देखने लगते. एकएक मिनट का हिसाब रखा जाता. जब बाहर आती तो ऐसी नजरों से उसे देखते जैसे कोई अपराध कर के आई हो.

कई बार नीति का मन होता कि इस माहौल से खुद को निकाल ले पर दूसरी नौकरी मिले बिना, इसे छोड़ नहीं सकती थी. पहली नौकरी छोड़ने के बाद की हालत उसे अभी भी भूली नहीं थी.

मधुकर का फोन आया और सृष्टि पर नजर रखने के लिए बोला. कारण, अभी नहीं बता सकता. अगले दिन बौस ने केबिन में बुलाया. उन्होंने भी सृष्टि पर नजर रखने के लिए ही कहा. एक बार तो नीति को शक हुआ कहीं अधिराज और मधुकर मिले हुए तो नहीं हैं? पर उस का भी कोई सबूत उस के पास नहीं था. दोनों का जितना चरित्र उस के सामने आया था उस में ऐसा कुछ भी नहीं था कि उन दोनों पर शक किया जा सके.

फिर गुत्थी क्या है? बाल निकेतन, नारी निकेतन और यह औफिस जिस में वह काम करती है, कैसे एकदूसरे से जुड़े हुए हैं? महिमा, राजी और सृष्टि की क्या भूमिका है? व्योम क्यों बाल निकेतन में रह रहा है? दूसरे बच्चों से ज्यादा खयाल उस का क्यों रखा जाता है? बहुत सारे प्रश्न थे जिन के जवाब नीति चाहती थी लेकिन जितना इन सब के बारे में सोचती उतना ही उल?ाती जाती थी. नौकरी करनी है तो इस असमंजस की स्थिति में रहना सीखना ही होगा. शायद समय आने पर इन सवालों के जवाब मिल जाएं. इसी उम्मीद में वह काम कर रही थी. साथ ही, दूसरी नौकरी के लिए भी तलाश जारी थी.

नए साल का पहला दिन तो और भी चौंका गया. महिमा भी औफिस में वापस आ गई. वापस इसलिए कि पहले वह इसी औफिस में काम करती थी. फिर उस के साथ कुछ दुखद हुआ और वह 2 साल नारी निकेतन में थी. क्या हुआ था, यह कोई भी खुल कर नहीं बोलता था. उस के आने से औफिस में 2 दल बन गए थे. एक था जो समय मिलते ही उस की आलोचना करता और दूसरा जिस में एकदो लोग ही थे या तो चुप रहते या उस के काम की तारीफ किया करते. नीति ने महिमा को पहचान लिया था लेकिन उस ने ऐसा ही दिखाया जैसे नीति से वह पहली बार ही मिल रही हो. नीति को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उस ने यही सम?ा लिया कि आजकल सबकुछ अजीब ही घट रहा है उस के जीवन में.

मधुकर के फोन आते और वही चुप रह कर सभी पात्रों पर दृष्टि गड़ाए रखने के निर्देश दिए जाते. बौस से भी अब लगभग रोज ही मिलना होता. औफिस के काम के सिवा सृष्टि क्या करती है दिनभर, यह भी रिपोर्ट देनी पड़ती. सृष्टि अभी तक बिंदास फुदकती थी. काम तो दूसरे लोगों से करवा लेती और खुद सजधज, गपशप में व्यस्त रहती. बाकी की कसर बौस की तारीफों के पुल बांध कर पूरी कर लेती. उस का रुतबा बढ़ता ही जाता था.

औफिस में कोई ऐसा नहीं था जो दिन में एक बार सृष्टि से मिल न लेता हो. औफिस की महिलाएं भी उस से जरूर मिलतीं और बात भी करतीं. यह अलग बात है कि पीठपीछे उस की हमेशा बुराई ही करतीं. सृष्टि को चर्चाओं में बने रहना बखूबी आता था. इस के पीछे उस का क्या मकसद था, यह नीति नहीं सम?ा पा रही थी. उसे मधुकर और बौस के कहने पर सृष्टि पर नजर बना कर रखनी पड़ती थी.

नौकरी अब दूसरों पर नजर रखने की ही हो गई थी. कोई विशेष काम उसे नहीं करना पड़ता था. महीने के अंत में तनख्वाह मिल जाती थी. बस, यही एक मकसद बचा था इस नौकरी का. न सीखने को कुछ था और न ही करने को. लगातार दूसरी कंपनियों में आवेदन दे रही थी लेकिन कहीं से भी कोई बुलावा नहीं आता था. उसे कई बार लगता कि इस कंपनी की कोई न कोई नीति ऐसी है कि जब तक कंपनी कर्मचारी को नहीं निकाल देती तब तक दूसरी कंपनी उस के रिज्यूमे पर नजर नहीं डालती है.

दूसरे शहर में आवेदन करने का भी कई बार खयाल आता था पर फिर से नई शुरुआत करने से मन पीछे हट जाता था. मम्मीपापा हर बार बोलते कि सरकारी नौकरी के लिए भी आवेदन करो. थोड़ी तैयारी होगी तो कोई न कोई परीक्षा पास हो ही जाएगी. औफिस के साथ तैयारी का समय ही नहीं बचता था. बड़ी दुविधा में पड़ गई थी नीति.

‘‘नीति, फौरेन इन्वैस्टर्स के साथ एक मीटिंग है. तुम्हें कंपनी में आए हुए एक साल से ज्यादा का समय हो चुका है. कंपनी के बारे में काफीकुछ जान चुकी हो. तुम्हारा नाम भी औफिस से भेजा गया है. तैयार रहना. इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा.’’

बौस ने सुबहसुबह बुला कर साफ शब्दों में आदेश दिया. न कहने की कोई गुंजाइश नहीं थी. एक बार तो बहुत गुस्सा आया, किसी भी आदेश को बिना जांचेपरखे कैसे माना जा सकता है? पहले से कोई बात नहीं. अचानक से तलवार सिर पर रख दी.

‘इस बार चल कर देखते हैं. ऐसा क्या है इन विदेशी दौरों में?’ इस खयाल ने दिमाग को थोड़ा शांत किया.

आखिर वह दिन भी आया जब नीति एयरपोर्ट पर पहुंच गई. आज मन में डर नहीं था बल्कि खुशी थी. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उस के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. प्लेन में बोर्ड करने की घोषणा हो चुकी थी. जैसे ही नीति बैग उठा कर आगे बढ़ी, फोन बजने लगा. मधुकर का फोन था. वापस आना था क्योंकि अंतिम समय पर मीटिंग कैंसिल होने की सूचना मिली थी.

एयरपोर्ट पर ही एक हौल में पूरी टीम इकट्ठा थी. पुलिस भी आई हुई थी. एकएक कर के सब से पूछताछ चल रही थी. सृष्टि और बौस महिमा और मधुकर.

‘‘हुआ क्या है?’’ नीति ने मधुकर के पास जा कर पूछा.

‘‘कल पेपर में पढ़ लेना. अभी पुलिस की कार्यवाही पूरी हो जाए तो घर चले जाना.’’

रात जागतेजागते बीती. बहुत दिनों बाद निधि से भी बात की. बारह बजते ही गूगल पर देखा. कुछ नहीं था. सुबह उठते ही पड़ोस वाली आंटी से पेपर ले कर आई.

‘‘स्वयंसेवी संस्था का अध्यक्ष गिरफ्तार.’’

नीति पूरी खबर तेजी से पढ़ रही थी लेकिन बौस का नाम नहीं था. किसी वीरेन का नाम लिखा था.

‘शायद नाम बदल दिया है,’ उस ने सोचा. औफिस के ग्रुप में कोई मैसेज नहीं था. डरतेडरते औफिस पहुंची लेकिन सब सामान्य था.

‘‘शुक्रिया नीति मेरी मदद करने के लिए,’’ महिमा पास आ कर बोली.

‘‘पर किया क्या है मैं ने?’’ नीति ने थोड़ा दूर हट कर पूछा.

‘‘मधुकर की बात मान कर औफिस में रुकने के लिए,’’ महिमा ने कृतज्ञता के भाव से कहा.

लेकिन नीति के चेहरे पर शिकन बरकरार थी. उस ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘मैं ने तो कुछ किया नहीं. क्या हुआ है, यह भी अभी तक पता नहीं है.’’

‘‘वीरेन को पकड़वाने के लिए यह सब चाल चली गई थी. एक नंबर का ऐयाश है. वह संस्था जिस में तुम काम करती थीं उस की और उस के जैसे कुछ ऐयाशों की औलादों को ही पाल रही थी.’’

बौस कब आए, नीति को पता ही नहीं चला. उन्होंने आगे कहा, ‘‘महिमा उस के चंगुल में फंसी तो हम ने उस की चाल से ही उसे मात दी. कोई भी कांड कर के विदेश भाग जाता था. सृष्टि के जाल में फंस गया और नशे में सबकुछ बोल गया.’’

अब नीति को कुछकुछ समझ आ रहा था. सृष्टि पहले चली गई थी. उसी होटल में थी जिस में वीरेन ठहरा हुआ था. उसी ने उस की असलियत उजागर की.

‘‘मुझे आप सृष्टि पर नजर रखने के लिए क्यों बोलते थे?’’ नीति ने सीधे पूछ ही लिया.

‘‘यह जानने के लिए कि औफिस में किसी को कुछ पता तो नहीं चला है कि सृष्टि कौन है? वह मेरी दोस्त है, मेरी मदद कर रही थी. अब उस के पापा ने इस कंपनी को खरीद लिया है.’’

नीति के दिमाग में एक और प्रश्न था उस स्वयंसेवी संस्था को ले कर.

‘‘पापा रिटायर हो गए हैं तो उस संस्था को संभालेंगे. वीरेन के जाल को हम सब ने मिल कर काट दिया है,’’ सृष्टि चहकती हुई बोली.

‘‘मैं भी वहीं हूं. वापस आना चाहो तो आ जाना,’’ यह मधुकर की आवाज थी.

नीति सारी जानकारी जोड़ कर उसे घटना से मिलाने की कोशिश कर रही थी. जो गुनाहगार था वह चेहरा तो देख ही नहीं पाई थी वह.

न्याय, न्यायालय, न्यायाधीश

एक सवाल के जवाब में संसद में सरकार ने स्पष्ट किया कि 2018 के बाद 661 नए नियुक्त किए गए जजों में से 500 से ज्यादा ऊंची जातियों के पुरुष हैं. ये ही जज उच्च न्यायालयों में आमतौर पर गरीबों की जमानतों के, तलाकों के, जमीनों के, अपराधियों के मामलों को सुनेंगे जबकि वे न तो इन जमातों से आते हैं और न ही उन्हें इन का दर्द समझ आता है.

देश की जेलों में बंद लाखों कैदियों में से 75 फीसदी कैदी बिना अपराध साबित हुए सड़ रहे हैं और बिना किसी तरह की जातीय गणना किए कहा जा सकता है कि इन 75 फीसदी कैदियों में से 90 फीसदी से ज्यादा पिछड़ी, एससी, एसटी जातियों के या अल्पसंख्यक होंगे. संविधान जजों की नियुक्ति में किसी तरह के रिजर्वेशन का प्रावधान नहीं रखता.

जब से देश में ज्यूडीशियल नियुक्तियों को कौमन लौ एंट्रैंस टैस्ट के माध्यम से किया जाना शुरू कर दिया गया है, अमीर घरों के युवा ज्यादा इस क्षेत्र में आने लगे हैं क्योंकि अच्छे वेतन के साथ प्रतिष्ठा भी अच्छी होती है और रुतबा भी बढ़ा होता है. पर यह परीक्षा ऐसी है जिस में वही जा पा रहे हैं जिन्होंने 5 साल का किसी नैशनल लौ स्कूल या बहुत प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की हो. चूंकि इस में आरक्षण नहीं है, इन कोर्सों में केवल ऊंची जातियों के ही युवा जा रहे हैं. नतीजा यह है कि प्राथमिक न्यायालयों में अब ऊंची जातियों के युवा जज भर गए हैं और उन्हीं में से हाईकोर्ट के जज बनेंगे.

वकालत का 3 साल का कोर्स कर के आए ताल्लुका स्तर के वकीलों में कुछ बहुत अच्छे निकलते हैं पर हाईकोर्टों में उन की नियुक्तियों का कोई लंबाचौड़ा मापदंड नहीं है और यह उच्च न्यायालय के कोलैजियम और सरकार पर निर्भर करता है. सरकार चाहे कितना ही कहे, प्रशासन और व्यापारों की तरह न्यायपालिका पर कब्जा भी उन्हीं लोगों का रहने वाला है जिन्हें उन वर्गों की परेशानियों का एहसास नहीं जो महंगे वकील तक नहीं कर सकते.

यही नहीं, दिसंबर 2023 तक हाईकोर्ट के 790 जजों में से केवल 111 जज ही महिलाएं थीं चाहे उन की जाति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो. आजकल अदालतों में औरतें अपने अधिकारों के लिए और ज्यादा आने लगी हैं पर पुरातनवादी पुरुष जज उन की अपेक्षाओं और विडंबनाओं को समझ नहीं पाते.

हमारे जैसे ही गरीब देश ग्वाटेमाला और पनामा में 50 फीसदी से ज्यादा महिला जज हाईकोर्टों में हैं. इंगलैंड में 37-38 फीसदी जज महिलाएं हैं. अमेरिका की फेडरल कोर्टों में भी 37-38 फीसदी जज महिलाएं हैं.

हमारे यहां लौ कालेजों में अब युवतियों की संख्या काफी है पर उन में से अधिकांश ऊंचे घरों की हैं क्योंकि कानून की पढ़ाई काफी महंगी है. जब तक महिलाओं और पिछड़ों को न्यायपालिका में सही जगह नहीं मिलेगी, औरतें अपनी सैंडिलें और गरीब अपनी मैली चप्पलें पहने अदालतों के आगे बैठे नजर आएंगे लेकिन उन्हें न्याय मिलेगा, इस में संदेह है.

शांत नहीं कश्मीर

सैनिक आंकड़ों के अनुसार, संविधान की धारा 370 को समाप्त कर दिए जाने के बाद भी कश्मीर शांत नहीं हुआ है. 6 और 7 जुलाई को आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में 2 सैनिकों की मृत्यु हो जाना इस बात की गवाह है कि कश्मीर पर थोपा गया संविधान संशोधन हिंदू जनता को चाहे पसंद आया हो पर मुसलिम कश्मीरियों ने इसे अभी सहज स्वीकारा नहीं है. ऐसी घटनाएं छिटपुट ही नहीं घट रहीं, बल्कि अकसर ही घट जाती हैं. अब जब सीमा पर पूरी तरह तारबंदी है, तो भी घटनाओं का होना यही बताता है कि इन को अंजाम देने वाले आतंकवादी स्थानीय ही हैं, कश्मीरी ही हैं.

यह असल में दिल्ली में बैठे लोगों की नीतियों की असफलता की निशानी है. हर काम को बंदूक के बल पर कराया जा सकता है, यही पाठ महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को दिया था और चाहे इस का अंत पूरे कुरुवंश का समाप्त हो जाना रहा हो, भारतीय नेता इसे दिल से लगाए बैठे हैं. गलती उन की भी नहीं क्योंकि दुनियाभर में हर राजा ने बल से ही लोगों का मन जीता है, तर्क या सेवा से नहीं.

कश्मीर का मामला अब एक तरह से गंभीर नहीं रह गया क्योंकि आर्थिक तौर पर कश्मीरियों को शह देने वाला पाकिस्तान बुरी तरह पिछड़ गया है, इतनी बुरी तरह कि वहां तो भारत को छोड़ें, बंगलादेश से भी ईर्ष्या की जाती है. पाकिस्तान कश्मीर में कुछ ज्यादा नहीं कर सकता, यह पक्का है.

भारत के लिए यह अवसर है कि वह कश्मीरियों को हर तरह की छूट दे कर उन का ध्यान राजनीति व धर्म से हटा कर उन की अपनी खुद की आर्थिक उन्नति की ओर लगाने को प्रेरित करे. कश्मीरियों को कश्मीर ही नहीं, पूरे देश में नौकरियों के अवसर मिलें. उन्हें अपना राज्य खुद चलाने की इजाजत दी जाए. उन्हें भरोसे में लिया जाए.

मुगलों और अंगरेजों ने देश पर सदियों राज किया तो सिर्फ बंदूक और तलवार पर नहीं बल्कि सुशासन के बल पर किया. उन्होंने जनता को बहुत रियायतें दीं. तभी तो आज भी इस देश में उन दोनों शासकों की भाषा, व्यवहार, खानपान, पहरावा जिंदा हैं. दिल्ली में बैठ कर कानून बदलने या दिल्ली वालों को वहां का शासक बना कर भेजने से बात नहीं बनती.

बच्चों से रोटीवसूली

सिर्फ धार्मिक जिद पूरी करने के लिए देश का न जाने कितना ही अनाज उन गायों को खिलाने के लिए बरबाद किया जा रहा है जिन की न आज जरूरत रह गई है, न भविष्य में होगी. हिंदू धर्म में गौदान का बड़ा महत्त्व है क्योंकि बैठेठाले ऋषिमुनि अपने आश्रमों में गाय पालने का कष्ट नहीं करते थे. उन्होंने मंत्रों को पढ़ कर यह भ्रांति फैला दी कि गौदान से पुण्य मिलता है. ऋषिमुनि उन गायों का सूखने के बाद क्या करते थे, यह जानकारी तो ज्यादा नहीं मिलती लेकिन गौदान में दी गई गायों के रातदिन दोहन किए जाने से कमजोर हो या सूख सी गई गायें देशभर के लिए आफत बनी हुई हैं.

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के लोकसभा चुनाव हारने में एक वजह ये छुट्टा सूखी गायें भी रही हैं जो किसानों के खेतों में घुस कर फसल नष्ट कर दिया करती हैं. अगर उन्हें डंडे मार कर भगाया जाए तो तथाकथित गौप्रेमी आगबबूला हो उठते हैं. प्लास्टिक थैलियों पर बैन केवल इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि उन में रख कर फेंका खाना गायें खा जाती हैं, थैलियों समेत.

अब रायपुर के एक स्कूल ने एक जबरन टैक्स थोपा है बच्चों पर कि वे हर रोज अपने टिफिन में एक रोटी अतिरिक्त लाएं जो स्कूल के बाहर रखे बौक्स में गायों के लिए डाली जाए. उस स्कूल, वीर छत्रपति शिवाजी स्कूल, के बच्चों को रोजाना धर्म की जिद पर ‘गाय टैक्स’ देना पड़ रहा है. ये रोटियां फिर किसी गौशाला में भेजी जाती हैं, जहां उन्हें उन पशुओं को खिलाया जाता है जो असल में कच्ची घास को खाने के आदी हैं, आलू भरे, घी में तर परांठे खाने के नहीं. इन 700-800 बच्चों की मांओं में से कुछ ही खुश होंगी और जो खुश न होंगी वे इस नई मुसीबत पर, धर्म के डर के कारण, कुछ बोलेंगी नहीं. धर्म के ठेकेदार उस घर में मारपीट कर सकते हैं जो इस जबरिया टैक्स को मानने से इनकार कर देगा.

गाय की पूजा का लाभ पहले केवल ब्राह्मणों को मिलता था, अब तो यह भगवा गुंडई का धंधा बन गया है. गौरक्षक सड़कों पर जमा हो कर हर तरह के मवेशी को लाने-ले जाने पर टैक्स वसूलने लगे हैं. इस टैक्स वसूली का पैसा कहां जाता है, वह नरेंद्र मोदी सरकार के पीएम केयर फंड की तरह गुप्त है, प्राइवेट है. यानी, दस लफंगे मिल कर गौरक्षा गैंग बना कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. रायपुर का यह वीर छत्रपति शिवाजी स्कूल अपरोक्ष रूप से इस तरह के गैंगों का हिस्सेदार है क्योंकि उस का बच्चों से किसी तरह की उगाही करना उन गैंगों की करतूतों का महिमामंडन करना ही है.

(अन)सोशल पौलिसियां

अब अपनी गर्लफ्रैंड या पत्नी को हीरों से लादफांद कर दूसरों पर रोब जमाने का जमाना गया क्योंकि चाहे गर्लफ्रैंड हो या पत्नी, वह पुरुष की संपत्ति नहीं रही. बड़ा मकान, सही ऐड्रैस पर होना पैसा दिखाने की एक तरकीब है पर अब कितने लोग हैं जो किसी सहयोगी, साथी या अनजाने से घर का पता पूछते हैं या उस के घर जाते हैं. अब अपनी सक्सैस दिखाने का, मेल ईगो के एक्जीबिट करने का एक बड़ा तरीका बड़ी गाड़ी का दिखाना हो गया है.

भारत जैसे गरीब देश में भी, जहां 80 करोड़ों को खाना मुफ्त दिया जा रहा है, 40 करोड़ लोग ?ाग्गियों या स्लमनुमा ढहते से मकानों में रहते हैं, बड़ी गाडि़यों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है. 50 लाख से 2 करोड़ रुपए तक की गाडि़यां अब सड़कों पर दौड़ती नजर भी आ जाएंगी, सड़कों के किनारे धूल जमी खड़ी भी दिख जाएंगी क्योंकि उन्हें चलाया ही कम जाता है. गाड़ी, बड़ी गाड़ी, और भी बड़ी गाड़ी अब स्टेटस सिंबल हैं.

यही नहीं, एक रिपोर्ट के अनुसार महंगी गाडि़यों को कस्टमाइज कराने के औप्शन भी दिए जा रहे हैं. 70 लाख रुपए की औडी कार को 17 एक्स्ट्रा चीजों से अंदरबाहर से सिर्फ पैसा दिखाने के लिए सजाया जा सकता है जिस पर 30-35 लाख रुपए और लग सकते हैं.

कार्बन फाइबर रूफ, मैट्रिक्स डिजाइन के एलईडी हैडलैंप, स्टीयरिंग कवर, सभी सीटों के लिए सेपरेट स्क्रीनें, हैंडक्राफ्टेड लैदर सीटें, लैदर कुशन, स्पैशल कार नंबर, मिनी फ्रिज, इनसाइड लाइटें आदि कुछ ऐक्सेसरीज हैं जो एक्स जैनरेशन धड़ल्ले से महंगी गाडि़यों में लगवा रही है.

इस बढ़ते भेदभाव का एक कारण तो टैक्नोलौजी है कि इतने सारे औप्शन अब मिल रहे हैं लेकिन दूसरा बड़ा कारण सरकार की, खासतौर पर भगवा सरकार की, नीतियां हैं. पिछले 30-40 वर्षों के दौरान देश के समाजवाद, बराबरी, भेदभावरहित व्यवस्था, सभी को एकसमान अवसर जैसे विचार गंगा-सरयू में बहा दिए गए हैं. रामायण और महाभारत सीरियलों में जिस तरह से नकली, काल्पनिक भव्यता को रामानंद सागर ने दिखाया, वह आम आदमी के मन का हिस्सा बन गया है.

मानव का मकसद अब पूजापाठ कर, बेईमानी कर, जबरदस्ती कर, लूट कर अपना महल दशरथ के महल या कौरव पांडव के महल सा बनाना है. भगवा आंदोलन ने देशभर में सुंदरसुंदर मंदिर बनवा डाले जो आसपास की कच्ची बस्तियों में शान से सिर उठाए खड़े हैं.

अपनी एक्स्ट्रा ऐक्सेसरीज वाली कार ले जा कर कोई भी पुराने बड़े बाजार के ढहते खंडहरों में भी खड़ा कर सकता है. अब दूसरे ईर्ष्या नहीं करते बल्कि ज्यादा जोर से भजन करते हैं क्योंकि सब को यह मालूम है कि यह एक्स्ट्रा पैसा या तो सट्टा बाजार से आ रहा है या रिश्वतखोरी से या ऐसे व्यवसाय से जिस में सरकारी कौन्ट्रैक्ट हैं.

सोशल पौलिसियां ऐसी हो गई हैं कि अब अमीरों के प्रति गुस्सा नहीं है, उन की अमीरी को दैविक देन सम?ा जाता है. तभी तो देश के धनाढ्य उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे की शादी पर गरीबों के नेता ममता बनर्जी और लालू प्रसाद यादव भी मोहर लगा आए कि वाह, क्या सही काम किया है हजारों करोड़ जनता से कमाए पैसे को बरबाद कर के. सो, कारों में अगर छोटा अंबानी कुछ खर्च कर रहा है, तो शिकायत कैसी?

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर उठाए गंभीर सवाल, कहा यह सही तरीका नहीं है

साल 2022 में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर से की गई तोड़फोड़ को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी. इस याचिका में बुलडोजर से की जानी वाली तोड़फोड़ को रोकने की मांग की गई थी. इस के साथ ही जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आएदिन होने वाली बुलडोजर द्वारा की जा रही तोड़फोड़ पर रोक लगाने की मांग की.

सरकार का कहना है कि किसी के अपराधी होने से नहीं उस के गैरकानूनी तरीके से बनने के चलते यह काम किया गया है. इस को रूल औफ लौ कहा गया. क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बुलडोजर से किया जाने वाला तथाकथित ‘जस्टिस’ रुक सकेगा?

सवाल उठता है कि अगर कोई मकान 50-60 साल पहले 4 लोगों के हिसाब से बना था. उस की एक मंजिल का नक्शा पास था और अब अगर मकान मालिक अपने रहने के लिए वहां नया कुछ बना ले, तो वह गैरकानूनी कैसे हो गया? 50-60 साल पहले म्यूनिसिपल कौरपोरेशन ने जो शहर बसाया था, क्या आज वह वैसा ही है? नहीं. शहर बदल चुके हैं. फुटपाथ गायब हो गए हैं. पेड़ कट चुके हैं.

जब जरूरत के हिसाब से शहर में बदलाव गलत नहीं है, तो घर में बदलाव गैरकानूनी कैसे हो गया? गैरकानूनी है तो बुलडोजर नीतियों के हिसाब से चलेगा या जिस ने अपराध किया उस के ऊपर ही चलेगा?

बुलडोजर ऐक्शन को ले कर विपक्षी दलों के नेताओं ने भाजपा को निशाने पर ले लिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, “2027 में जब सपा की सरकार बनेगी तो सारे बुलडोजर गोरखपुर की ओर भेज दिए जाएंगे.”

बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा, “बुलडोजर का इस्तेमाल रूल औफ लौ के मुताबिक होना चाहिए.”

कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, “भाजपा की असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण बुलडोजर नीति पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी स्वागत योग्य है. बुलडोजर के नीचे इनसानियत और इंसाफ को कुचलने वाली भाजपा का संविधान विरोधी चेहरा अब देश के सामने बेनकाब हो चुका है. बेलगाम सत्ता का प्रतीक बन चुके बुलडोजर ने नागरिक अधिकारों को कुचल कर कानून को निरंतर अंहकार भरी चुनौती दी है. ‘त्वरित न्याय’ की आड़ में ‘भय का राज्य’ स्थापित करने की मंशा से चलाए जा रहे बुलडोजर के पहिए के नीचे अकसर बहुजन और गरीबों की ही घरगृहस्थी आती है. सुप्रीम कोर्ट इस अति संवेदनशील विषय पर दिशानिर्देश दे कर भाजपा सरकारों के इस लोकतंत्र विरोधी अभियान से नागरिकों की रक्षा करेगा.”

‘बुलडोजर जस्टिस’ का विरोध

जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ से कहा कि 2022 में जहांगीरपुरी में हिंसा भड़की थी. हिंसा के बाद कई लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाया गया. इन लोगों पर यह आरोप था कि उन्होंने हिंसा भड़काई थी.

याचिका में कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिका में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी.

जहांगीरपुरी मामले में वकील फरूख रशीद द्वारा दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें हाशिए पर मौजूद लोगों खासकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमनचक्र चला कर उन के घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने को बढ़ावा दे रही हैं, जिस से पीड़ितों को कानूनी उपाय करने का मौका नहीं मिलता.

24 अगस्त को मध्य प्रदेश के छतरपुर में पुलिस पर पथराव मामले में आरोपी हाजी शहजाद अली के बंगले को बुलडोजर से तोड़ दिया गया था. एमेनेस्टी इंटरनैशनल की फरवरी, 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल, 2022 से जून, 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को बुलडोजर से ढहा दिया गया. मध्य प्रदेश में एक आरोपी के पिता की संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया गया और मुरादाबाद और बरेली में भी बुलडोजर से संपत्तियां ढहाई गईं. राजस्थान के उदयपुर जिले में राशिद खान का घर भी बुलडोजर से गिरा दिया गया, जिस में उन के 15 साल के बेटे पर स्कूल में अपने सहपाठी को चाकू से गोदने का आरोप था.

क्या ठहर जाएगा बुलडोजर

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर कोई सिर्फ आरोपी है तो प्रौपर्टी गिराने का ऐक्शन कैसे लिया जा सकता है?’

जस्टिस विश्वनाथन और जस्टिस बीआर गवई की बैंच ने कहा, ‘अगर कोई दोषी भी हो, तब भी ऐसा ऐक्शन नहीं लिया जा सकता है. सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है. किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना, ऐक्शन का सही तरीका नहीं है.

‘हम यहां अवैध अतिक्रमण के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें. हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं.’

सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात को स्वीकार किया और कहा कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता. उन्होंने साफ किया कि जिन के खिलाफ ऐक्शन हुआ है, वे अवैध कब्जे या निर्माण के कारण निशाने पर हैं न कि अपराध के आरोप की वजह से ऐक्शन हुआ है. किसी भी आरोपी की प्रौपर्टी इसलिए नहीं गिराई गई, क्योंकि उस ने अपराध किया. आरोपी के अवैध कब्जों पर म्यूनिसिपल ऐक्ट के तहत ऐक्शन लिया है.

म्यूनिसिपल ऐक्ट कब बना

सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अवैध कब्जों पर म्यूनिसिपल ऐक्ट के तहत ऐक्शन की बात कही. अब सवाल उठता है कि म्यूनिसिपल ऐक्ट कब बना आज के समय में वह कितना उपयोगी है? भारत में नगर प्रशासन साल 1687 के बाद कानून बना. सब से पहले साल 1687 में मद्रास नगरनिगम का गठन हुआ. इस के बाद साल 1726 में कलकत्ता (अब कोलकाता) और बौम्बे नगरनिगम का गठन हुआ. साल 1916 में देश के तकरीबन सभी शहरों में नगरनिगम प्रशासन की मौजूदगी हो गई थी. तब भारत के वाइसराय लार्ड रिप्प ने नगरपालिका शासन की नींव रखी थी.

साल 1919 में भारत सरकार ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई नगरपालिका सरकार की शक्तियां तैयार कीं. साल 1935 में भारत सरकार ने राज्य सरकार और प्रांतीय सरकार के अधिकार के तहत नगरपालिका सरकार लाई. उस को अपने कानून बनाने का हक दिया गया.

साल 1991 की जनगणना के मुताबिक, देश में 3,255 शहरी स्थानीय निकाय बने. इन को 4 प्रमुख श्रेणियों में रखा गया. नगरनिगम, नगरपालिका (नगरपालिका परिषद, नगरपालिका बोर्ड, नगरपालिका समिति) (नगर परिषद), टाउन एरिया कमेटी और अधिसूचित क्षेत्र समिति को बनाया. नगरनिगम और नगरपालिका पूरी तरह से प्रतिनिधि निकाय हैं. यहां चुने गए प्रतिनिधि होते हैं. अधिसूचित क्षेत्र समितियां और शहर क्षेत्र समितियां या तो पूरी तरह या आंशिक रूप से निकाय हैं.

भारत के संविधान के मुताबिक, साल 1992 में 74वां संशोधन अधिनियम लागू कर के इन को और हक दिए गए. साल 1994 में यह लागू हुआ. 74वें संशोधन के बाद शहरी स्थानीय निकायों को महानगरनिगम, नगरपालिका और नगरपंचायत में बांट दिया गया. इन को शहरी विकास के हिसाब से कानून बनाने का हक था. कई ऐसे कानून थे, जिन में समय, शहरी जरूरतों और टैक्नोलौजी का ध्यान नहीं रखा गया. जब भी कोई जमीन खरीदता है, तो उस पर मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराना होता है. जब साल 1916 में जब म्यूनिसिपल कानून बना था, तब जिस तरह की पाबंदियां थीं, वही अब भी हैं.

आज शहरी जरूरतें बदल गई हैं. अब छोटेछोटे जमीन के हिस्सों पर रहने के लिए मकान बनने लगे हैं. पहले मकान एक मंजिल के बनते थे, आज की टैक्नोलौजी के हिसाब से 4-5 मंजिल के मकान साधारण रूप में बनते हैं. मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराने के लिए प्राधिकरण के पास जाना पड़ता है. वह पुराने कानून के हिसाब से ही नक्शा पास करता है, जिस का नतीजा यह होता है कि लोग अपनी बढ़ती जरूरत के हिसाब से मकान में फेरबदल कर लेते हैं. यह मकान मालिक की सुविधा के लिए ठीक है. लेकिन नक्शे के हिसाब से गलत है. यह म्यूनिसिपल कानून के तहत गिराया जा सकता है.

नक्शे के अलावा जरूरत के हिसाब से बनाया गया मकान म्यूनिसिपल कानून की नजर में अवैध निर्माण कहा जाता है. आज बहुत सारे घरों में दुकानें बनने लगी हैं. उन का व्यावसायिक उपयोग होने लगा है. म्यूनिसिपल कानून की नजर में यह गलत है. रिहाइशी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां नहीं की जा सकतीं. इस पर म्यूनिसिपल कानून के तहत जुर्माना लगता है. कई बार मकान सील भी कर दिया जाता है. अगर किसी को अपने मकान में इस तरह के काम करने हैं तो इस को गलत क्यों माना जाता है?

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ बुलडोजर रोग

जिन प्रमुख राज्यों में बुलडोजर ऐक्शन हुआ, उन में सब से ज्यादा चर्चा में उत्तर प्रदेश था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में उत्तर प्रदेश गैंगस्टर ऐक्ट और एंटी सोशल ऐक्टिविटीज (प्रीवैंशन) ऐक्ट के तहत 15,000 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए. कई मामलों में आरोपियों के खिलाफ अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला कर इन को गिरा दिया गया था.

गैंगस्टर अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी और विकास दुबे की करोड़ों रुपए की संपत्ति गिरा दी गई. योगी सरकार -1 में बुलडोजर ऐक्शन शुरू हो गया था. इस से बलात्कार और हत्या में शामिल बदमाशों में कानून का खौफ बैठने लगा था. वे खुद थानों में सरैंडर करने लगे थे.

17 जुलाई, 2021 को 87 अवैध निर्माण गिरा दिए गए. 15 एकड़ से अधिक की सरकारी भूमि खाली कराई गई. 5 सितंबर, 2021 को 176 अवैध निर्माण तोड़े गए. ये सड़कों और सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण थे. 22 नवंबर, 2021 को एक सप्ताह चले अभियान में 312 अवैध निर्माण तोड़े गए. 15 जनवरी, 2022 को 59 अवैध बस्तियों को तोड़ कर 25 एकड़ भूमि को खाली कराया गया.

इस के बाद सोशल मीडिया पर योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा’ के नाम से जाना जाने लगा. बुलडोजर का यह सिलसिला उत्तर प्रदेश के बाहर तक भी पहुंचने लगा. मध्य प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अप्रैल, 2022 में खरगोन में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद 16 घरों और 23 ढांचों पर बुलडोजर चलवा दिया. इस के बाद उन का नाम ‘बुलडोजर मामा’ पड़ गया. एक तरह के बुलडोजर को ‘इंसाफ’ का प्रतीक बना कर पेश किया जाने लगा. इस के बाद हरियाणा में कई घर गिराए गए. दिल्ली में मसजिद की दीवार गिराई गई. राजस्थान में चाकू से हमला करने वाले के घर पर ऐक्शन लिया गया. बिहार में बच्ची के हमलावर का घर गिरवा दिया. इस के अलावा असम और उत्तराखंड में भी ऐसे मामले सामने आए हैं.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद क्या बुलडोजर की रफ्तार पर रोक लगेगी? यह सवाल आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा. पूरे देश को ले कर सुप्रीम कोर्ट क्या कहने वाली है, यह भी 17 सितंबर के बाद पता चल सकेगा. फिलहाल बुलडोजर से पीड़ित पक्षों को राहत मिलती दिख रही है. रूल औफ लौ से ही न्याय त्वरित मिले जिस से लोगों को अदालतों में भरोसा हो सके. इस से ही जनता में बुलडोजर न्याय की अपेक्षा खत्म हो सकेगी.

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