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Best Hindi Story : शहर की लड़की

Best Hindi Story : ‘मैं लेट हो गई क्या?’’ विदिशा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ही जल्दी आ गया था,’’ राज बोला.

‘‘तुम से एक बात पुछूं क्या?’’ विदिशा ने कहा.

‘‘जोकुछ पूछना है, अभी पूछ लो. शादी के बाद कोई उलझन नहीं होनी चाहिए,’’ राज ने कहा.

‘‘तुम ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है, फिर भी गांव में क्यों रहते हो? पुणे में कोई नौकरी या कंपीटिशन का एग्जाम क्यों नहीं देते हो?’’

‘‘100 एकड़ खेती है हमारी. इस के अलावा मैं देशमुख खानदान का एकलौता वारिस हूं. मेरे अलावा कोई खेती संभालने वाला नहीं है. नौकरी से जो तनख्वाह मिलेगी, उस से ज्यादा तो मैं अपनी खेती से कमा सकता हूं. फिर क्या जरूरत है नौकरी करने की?’’

राज के जवाब से विदिशा समझ गई कि यह लड़का कभी अपना गांव छोड़ कर शहर नहीं आएगा.

शादी का दिन आने तक राज और विदिशा एकदूसरे की पसंदनापसंद, इच्छा, हनीमून की जगह वगैरह पर बातें करते रहे.

शादी के दिन दूल्हे की बरात घर के सामने मंडप के पास आ कर खड़ी हो गई, लेकिन दूल्हे की पूजाआरती के लिए दुलहन की तरफ से कोई नहीं आया, क्योंकि दुलहन एक चिट्ठी लिख कर घर से भाग गई थी.

‘पिताजी, मैं बहुत बड़ी गलती कर रही हूं, लेकिन शादी के बाद जिंदगीभर एडजस्ट करने के लिए मेरा मन तैयार नहीं है. मां के जैसे सिर्फ चूल्हाचौका संभालना मुझ से नहीं होगा. आप ने जो रिश्ता मेरे लिए ढूंढ़ा है, वहां किसी चीज की कमी नहीं है. ऐसे में मैं आप को कितना भी समझाती, मुझे इस विवाह से छुटकारा नहीं मिलता, इसलिए आप को बिना बताए मैं यह घर हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं…’

‘‘और पढ़ाओ लड़की को…’’ विदिशा के पिता अपनी पत्नी पर गुस्सा करते हुए रोने लगे. वर पक्ष का घर श्मशान की तरह शांत हो गया था. देशमुख परिवार गम में डूब गया था. गांव वालों के सामने उन की नाक कट चुकी थी, लेकिन राज ने परिवार की हालत देखते हुए खुद को संभाल लिया.

विदिशा पुणे का होस्टल छोड़ कर वेदिका नाम की सहेली के साथ एक किराए के फ्लैट में रहने लगी. उस की एक कंपनी में नौकरी भी लग गई.

वेदिका शराब पीती थी, पार्टी वगैरह में जाती थी, लेकिन उस के साथ रहने के अलावा विदिशा के पास कोई चारा नहीं था. 4 साल ऐसे ही बीत गए.

एक रात वेदिका 2 लाख रुपए से भरा एक बैग ले कर आई. विदिशा उस से कुछ पूछे, तभी उस के पीछे चेहरे पर रूमाल बांधे एक जवान लड़का भी फ्लैट में आ गया.

‘‘बैग यहां ला, नहीं तो बेवजह मरेगी,’’ वह लड़का बोला.

‘‘बैग नहीं मिलेगा… तू पहले बाहर निकल,’’ वेदिका ने कहा.

उस लड़के ने अगले ही पल में वेदिका के पेट में चाकू घोंप दिया और बैग ले कर फरार हो गया.

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने तुरंत वेदिका के पेट से चाकू निकाला और रिकशा लेने के लिए नीचे की तरफ भागी. एक रिकशे वाले को ले कर वह फ्लैट में आई, लेकिन रिकशे वाला चिल्लाते हुए भाग गया.

विदिशा जब तक वेदिका के पास गई, तब तक उस की सांसें थम चुकी थीं. तभी चौकीदार फ्लैट में आ गया. पुलिस स्टेशन में फोन किया था.

विदिशा बिलकुल निराश हो चुकी थी. वेदिका का यह मामला उसे बहुत महंगा पड़ने वाला था, इस बात को वह समझ चुकी थी. रोरो कर उस की आंखें लाल हो चुकी थीं.

पुलिस पूरे फ्लैट को छान रही थी. वेदिका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. दूसरे दिन सुबह विदिशा को पुलिस स्टेशन में पूछताछ के लिए बुलाया गया. सवेरे 9 बजे से ही विदिशा पुलिस स्टेशन में जा कर बैठ गई. वह सोच रही थी कि यह सारा मामला कब खत्म होगा.

‘‘सर अभी तक नहीं आए हैं. वे

10 बजे तक आएंगे. तब तक तुम केबिन में जा कर बैठो,’’ हवलदार ने कहा.

केबिन में जाते ही विदिशा ने टेबल पर ‘राज देशमुख’ की नेमप्लेट देखी और उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

तभी राज ने केबिन में प्रवेश किया. उसे देखते ही विदिशा खड़ी हो गई.

‘‘वेदिका मर्डर केस. चाकू पर तुम्हारी ही उंगलियों के निशान हैं. हाल में भी सब जगह तुम्हारे हाथों के निशान हैं. खून तुम ने किया है. लेकिन खून के पीछे की वजह समझ नहीं आ रही है. वह तुम बताओ और इस मामले को यहीं खत्म करो,’’ राज ने कहा.

‘‘मैं ने खून नहीं किया है,’’ विदिशा बोली.

‘‘लेकिन, सुबूत तो यही कह रहे हैं,’’ राज बोला.

‘‘कल जोकुछ हुआ है, मैं ने सब बता दिया है,’’ विदिशा ने कहा.

‘‘लेकिन वह सब झूठ है. तुम जेल जरूर जाओगी. तुम ने आज तक जितने भी गुनाह किए हैं, उन सभी की सजा मैं तुम्हें दूंगा मिस विदिशा.’’

‘‘देखिए…’’

‘‘चुप… एकदम चुप. कदम, गाड़ी निकालो. विधायक ने बुलाया है हमें. मैडम, हर सुबह यहां पूछताछ के लिए तुम्हें आना होगा, समझ गई न.’’

विदिशा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. शाम को वह वापस पुलिस स्टेशन के बाहर राज की राह देखने लगी.

रात के 9 बजे राज आया. वह मोटरसाइकिल को किक मार कर स्टार्ट कर रहा था, तभी विदिशा उस के सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘मुझे तुम से बात करनी है.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘मैं ने 4 साल पहले बहुत सी गलतियां की थीं. मुझे माफ कर दो. लेकिन मैं ने यह खून नहीं किया है. प्लीज, मुझे इस सब से बाहर निकालो.’’

‘‘लौज में चलोगी क्या? हनीमून के लिए महाबलेश्वर नहीं जा पाए तो लौज ही जा कर आते हैं. तुम्हारे सारे गुनाह माफ हो जाएंगे… तो फिर मोटरसाइकिल पर बैठ रही हो?’’

‘‘राज…’’ विदिशा आगे कुछ कह पाती, उस से पहले ही वहां से राज निकल गया.

दूसरे दिन विदिशा फिर से राज के केबिन में आ कर बैठ गई.

‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

‘‘एक प्राइवेट कंपनी में हूं.’’

‘‘शादी हो गई तुम्हारी? ओह सौरी, असलम बौयफ्रैंड है तुम्हारा. बिना शादी किए ही आजकल लड़केलड़कियां सबकुछ कर रहे हैं… हैं न?’’

‘‘असलम मेरा नहीं, वेदिका का दोस्त था.’’

‘‘2 लड़कियों का एक ही दोस्त हो सकता है न?’’

‘‘मैं ने अब तक असलम नाम के किसी शख्स को नहीं देखा है.’’

‘‘कमाल की बात है. तुम ने असलम को नहीं देखा है. वाचमैन ने रूमाल से मुंह बांधे हुए नौजवान को नहीं देखा. पैसों से भरे बैग को भी तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं देखा है. बाकी की बातें कल होंगी. तुम निकलो…’’

रोज सुबह पुलिस स्टेशन आना, शाम 3 से 4 बजे तक केबिन में बैठना, आधे घंटे के लिए राज के सामने जाना. वह विदिशा की बेइज्जती करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था. तकरीबन

2 महीने तक यही चलता रहा.

विदिशा की नौकरी भी छूट गई. गांव में विदिशा की चिंता में उस की मां अस्पताल में भरती हो गई थीं. रोज की तरह आज भी पूछताछ चल रही थी.

‘‘रोजरोज चक्कर लगाने से बेहतर है कि अपना गुनाह कबूल कर लो न?’’

विदिशा ने कुछ जवाब नहीं दिया और सिर नीचे कर के बैठी रही.

‘‘जो लड़की अपने मांपिता की नहीं हुई, वह दोस्त की क्या होगी? असलम कौन है? बौयफ्रैंड है न? कल ही मैं ने उसे पकड़ा है. उस के पास से 2 लाख रुपए से भरा एक बैग भी मिला है,’’ राज विदिशा की कुरसी के पास टेबल पर बैठ कर बोलने लगा.

लेकिन फिर भी विदिशा ने कुछ नहीं कहा. उसे जेल जाना होगा. उस ने जो अपने मांबाप और देशमुख परिवार को तकलीफ पहुंचाई है, उस की सजा उसे भुगतनी होगी. यह बात उसे समझ आ चुकी थी.

तभी लड़की के पिता ने केबिन में प्रवेश किया और दोनों हाथ जोड़ कर राज के पैरों में गिर पड़े, ‘‘साहब, मेरी पत्नी बहुत बीमार है. हमारी बच्ची से गलती हुई. उस की तरफ से मैं माफी मांगता हूं. मेरी पत्नी की जान की खातिर खून के इस केस से इसे बाहर निकालें. मैं आप से विनती करता हूं.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा. आप घर जाइए,’’ राज ने कहा.

विदिशा पीठ पीछे सब सुन रही थी. अपने पिता से नजर मिलाने की हिम्मत नहीं थी उस में. लेकिन उन के बाहर निकलते ही विदिशा टेबल पर सिर रख कर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘तुम अभी बाहर जाओ, शाम को बात करेंगे,’’ राज बोला.

‘‘शाम को क्यों? अभी बोलो. मैं ने खून किया है, ऐसा ही स्टेटमैंट चाहिए न तुम्हें? मैं गुनाह कबूल करने के लिए तैयार हूं. मुझ से अब और सहन नहीं हो रहा है. यह खेल अब बंद करो.

‘‘तुम से शादी करने का मतलब केवल देशमुख परिवार की शोभा बनना था. पति के इशारे में चलना मेरे वश की बात नहीं है. मेरी शिक्षा, मेरी मेहनत सब तुम्हारे घर बरबाद हो जाती और यह बात पिताजी को बता कर भी कोई फायदा नहीं था. तो मैं क्या करती?’’ विदिशा रो भी रही थी और गुस्से में बोल रही थी.

‘‘बोलना चाहिए था तुम्हें, मैं उन्हें समझाता.’’

‘‘तुम्हारी बात मान कर पिताजी मुझे पुणे आने देते क्या? पहले से ही वे लड़कियों की पढ़ाई के विरोध में थे. मां ने लड़ाईझगड़ा कर के मुझे पुणे भेजा था. मेरे पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए मुझे मंडप छोड़ कर भागना पड़ा.’’

‘‘और मेरा क्या? मेरे साथ 4 महीने घूमी, मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया, उस का क्या? मेरे मातापिता का इस में क्या कुसूर था?’’

‘‘मुझे लगा कि तुम्हें फोन करूं, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.’’

‘‘तुम्हें जो करना था, तुम ने किया. अब मुझे जो करना है, वह मैं करूंगा. तुम बाहर निकलो.’’

विदिशा वहां से सीधी अपने गांव चली गई. मां से मिली.

‘‘मेरी बेटी, यह कैसी सजा मिल रही है तुझे? तेरे हाथ से खून नहीं हो सकता है. अब कैसे बाहर निकलेगी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे साथ जो छल किया?है, उस की सजा मुझे भुगतनी होगी मां.’’

‘‘कुछ नहीं होगा आप की बेटी को, केस सुलझ गया है मौसी. असलम नाम के आदमी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. वह वेदिका का प्रेमी था. दोनों के बीच पैसों को ले कर झगड़ा था, जिस के चलते उस का खून हुआ.

‘‘आप की बेटी बेकुसूर है. अब जल्दी से ठीक हो जाइए और अस्पताल से घर आइए,’’ राज यह बात बता कर वहां से निकल गया.

विदिशा को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘सर, मैं आप का यह उपकार कैसे चुकाऊं?’’

‘‘शादी कर लो मुझ से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मजाक कर रहा था. मेरा एक साल का बेटा है मिस विदिशा.’’

Romantic Story : सोशल मीडिया वाला प्यार

Romantic Story : ‘‘अब आ भी जाओ सुनी, इतनी देर से कंप्यूटर पर क्या कर रही है?’’

सुनील अधीर हो रहा था सुनयना को अपनी बांहों में लेने के लिए, पर सुनयना को उसे तड़पाने में मजा आ रहा था. उस ने एक नजर सुनील को देखा, फिर शरारत से मुसकरा कर वापस कंप्यूटर पर अपना काम करने लगी.

‘‘आ रही हूं, बस अपनी प्रोफाइल पिक्चर लगा दूं.’’

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करना. तुम्हारा यह दीवाना क्या कम है जो अब फेसबुक पर भी अपने दीवानों की फौज खड़ी करना चाहती हो,’’ सुनील परेशान होने का नाटक करता हुआ बोला.

सुनयना ने उस की बात पर ध्यान न देते हुए फोटोगैलरी से एक खूबसूरत सी फोटो ढूंढ़ निकाली, जिस में उस ने पीले रंग की सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी और अपने सुंदर, लंबे, कालेघने बालों को आगे की ओर फैला रखा था. अपनी प्रोफाइल पिक्चर लगाते हुए वह गुनगुनाने लगी, ‘‘ऐ काश, किसी दीवाने को हम से भी मोहब्बत हो जाए…’’

‘‘है वक्त अभी तौबा कर लो अल्लाह मुसीबत हो जाए,’’ सुनील ने गाने की आगे की लाइन को जोड़ा और उसे कंप्यूटर टेबल से अपनी गोद में उठा कर बैड पर ले आया. सुनील की बांहों में सिमटी सुनयना के चेहरे पर आज अजब सी मुसकराहट थी.

‘‘अब पता चलेगा बच्चू को, हर वक्त मुझे चिढ़ाता रहता है.’’

सुदर्शन व्यक्तिव और हंसमुख स्वभाव का धनी सुनील कालेज में सभी लड़कियों के आकर्षण का केंद्र था. उस के पास गर्लफ्रैंड्स की लंबी लिस्ट थी जिन्हें ले कर वह अकसर सुनयना को चिढ़ाया करता था और सुनयना चिढ़ कर रह जाती थी. कभीकभी सोचती कि काश, शादी से पहले उस का भी कम से एक अफेयर तो होता, तो वह भी सुनील को करारा जवाब दे पाती.

सुनील के मोबाइल की फोटोगैलरी में न जाने कितनी लड़कियों की फोटोज होतीं जिन्हें दिखादिखा कर वह सुनयना को चिढ़ाता और उस की आंखों में जलन व चेहरे पर कुढ़न देख कर मजे लेता रहता. पर उसे यह कह कर मना भी लेता, ‘‘ये सब तुम्हारे आगे पानी भरती हैं सुनी, कहां ये सब लड़कियां और कहां तुम, तभी तो मैं ने तुम्हें चुना है. लाखों में एक है मेरी सुनी,’’ कहतेकहते सुनील उसे बांहों में भर लेता और सुनयना भी उस की आगोश में आ कर समंदर में गोते लगाती. थोड़ी देर के लिए सारी जलन और कुढ़न भूल जाती. पर एक अफेयर तो उस का भी होना चाहिए था, यह बात अकसर उसे परेशान कर जाती.

‘‘मैं मान ही नहीं सकता कि शादी से पहले तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं रहा होगा. अरे, इतनी सुंदर लड़की के पीछे तो लड़कों की भीड़ चलती होगी.’’

कभीकभी सुनील छेड़ता तो सुनयना को वह लड़का याद आ जाता जिस ने उसे तब देखा था जब वह अपनी सहेली रमा के साथ उन के समाज के एक विवाह सम्मेलन में शामिल होने गई थी. रमा ने बताया था कि उस लड़के की शादी उस की बूआ की बेटी के साथ होने वाली है. बाद में पता चला कि उस लड़के ने वहां रिश्ता करने से मना कर दिया था क्योंकि उसे पहली नजर में ही सुनयना भा गई थी. उस के बाद वह जहां भी जाती, उस लड़के, जिस का नाम मनोज था, को अपने पीछे पाती. पर बड़ी चतुराई से वह उसे नजरअंदाज कर जाती थी. वैसे देखने में मनोज किसी हीरो से कम नहीं लगता था पर बात यहां दिल की थी. सुनयना का दिल तो कभी किसी पर आया ही नहीं. आया तो आया बस सुनील पर ही जब वह उसे देखने अपने मम्मीपापा के साथ आया था. पहली नजर का प्यार बस उसी पल जागा था और आंखें मौन स्वीकृति दे चुकी थीं.

पहले पगफेरे के लिए जब मायके आई और सुनील के साथ साड़ी मार्केट गई थी तब एक दुकान पर टंगी साड़ी सुनील को पसंद आ रही थी. दुकानदार से मुखातिब हुए तो मनोज सामने आ गया. सुनयना ने झेंप कर उसे भैया कह कर संबोधित किया तो मनोज के चेहरे का रंग उड़ गया.

अगले दिन अपनी फेसबुक प्रोफाइल देखी तो 20 फ्रैंड रिक्वैस्ट आ चुकी थीं. सुनयना मुसकरा कर सब की प्रोफाइल का मुआयना करने लगी. मैसेंजर पर भी ढेरों मैसेज आए थे. सारे मैसेज उस की तारीफों के पुल से अटे पड़े थे. एक मैसेज पढ़ कर उस के चेहरे पर मुसकान आ गई जिस में लिखा था-

‘आप बहुत खूबसूरत हैं. काश, आप मुझे पहले मिल जातीं, तो मैं आप से शादी कर लेता.’

‘पर आप मुझ से बहुत छोटे हैं, फिर यह कैसे संभव होता,’ सुनयना ने लिखा तो वहां से भी जवाब आ गया.

‘प्यार उम्र नहीं देखता मैम, प्यार तो हर सीमा से परे अपनी मंजिल ढूंढ़ लेता है.’ वहां से जवाब आया तो सुनयना ने स्माइल करता इमोजी डाल दिया. उस का नाम सौरभ था और वह दिल्ली में रहता था.

अब तो जब भी सुनयना फेसबुक पर आती, सौरभ से चैटिंग होती. उस की बातों से लगता था कि वह सुनयना का दीवाना हो चुका था. इन दिनों सुनील को भी सुनयना कुछ ज्यादा ही खूबसूरत और रोमांटिक लगने लगी थी. अब उस ने सुनील की सहेलियों से चिढ़ना भी बंद कर दिया था. जब भी सुनील उसे किसी लड़की की फोटो दिखा कर चिढ़ाता, तो वह चिढ़ने के बजाय मंदमंद मुसकराने लगती.

‘‘आजकल तुम बहुत बदल गई हो, पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई हो, ज्यादा संवर कर रहने लगी हो. क्या बात है, कहीं सचमुच मेरा कोई रकीब तो पैदा नहीं हो गया.’’ सुनील कभीकभी हैरानी से कहता तो सुनयना भी आंखें मटका कर जवाब देती.

‘‘हो सकता है.’’

‘‘पर जरा, संभल कर, इन मनचलों का कोई भरोसा नहीं, खुद को किसी मुसीबत में न फंसा लेना.’’

‘‘डौंट वरी सुनील, ऐसा कुछ नहीं होगा,’’ सुनयना लापरवाही से कहती.

आजकल वह जल्दी काम से फ्री हो कर औनलाइन आ जाती. रोजाना चैट करते हुए सौरभ उस से काफी खुल चुका था. मैम से सुनयना और तुम संबोधन तक बात पहुंच गई थी.

‘‘सुनयना मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सौरभ, तुम नहीं जानते मैं, शादीशुदा हूं.’’

‘‘इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना मुश्किल होता जा रहा है. तुम अब मेरी जान बन चुकी हो और मुझे तुम से मिलना है, बस.’’

सौरभ और वैसे भी तुम अपनी हद पार कर रहे हो.’’

‘‘हद तो पार हो ही चुकी है सुनयना. बस, तुम जल्दी से अपना पता बता दो. मैं आ जाऊंगा.’’

बहुत समझाने पर भी सौरभ एक ही बात पर अड़ गया तो सुनयना को झुंझलाहट होने लगी. उस ने कुढ़ते हुए सौरभ को ब्लौक किया और बुदबुदाने लगी, ‘ये सारे लड़के एकजैसे होते हैं. सिर्फ चैटिंग काफी नहीं थी, जो मिलना चाहता है. मैं बिना अफेयर के ही भली थी.’

शाम को जब सुनील घर आया तो उस का उखड़ा हुआ मूड देख कर तुरंत माजरा समझ गया.

‘‘क्यों, कर दिया उसे ब्लौक?’’ सुनील ने कहा. सुनयना देखती रह गई. ‘इसे यह कैसे पता चल गया.’ सुनील सुनयना को देख कर हंसे जा रहा था.

‘‘यहां मेरी जान पर बन आई है और तुम्हें हंसी सूझ रही है,’’ सुनयना ने खिसियाते हुए कहा.

‘‘हंसूं नहीं तो और क्या करूं सुनी, यह अफेयरवफेयर तुम्हारे बस की बात नहीं. और उस लड़के से डरने की जरूरत नहीं. मैं इस तरह के लड़कों को अच्छी तरह जानता हूं. इन लोगों की सोच ही घटिया होती है.’’

सुनील की बात सुन कर सुनयना की फिक्र कुछ कम हुई और सुनील ने उस के सामने अपने मोबाइल से सारी लड़कियों की फोटोज डिलीट कर दीं. सौरभ को ब्लौक करने के बाद भी कुछ दिनों तक सुनयना का मूड थोड़ा उखड़ाउखड़ा रहा. इसलिए उस ने फेसबुक पर लौगइन नहीं किया था. पर एक दिन बोरियत से परेशान हो कर उस ने सोचा, आज फेसबुक पर सहेलियों से कुछ चैटिंग करती हूं और उस ने लौगइन किया तो यह देख कर अवाक रह गई कि सौरभ ने अपनी दूसरी आईडी बना कर उसे वापस न सिर्फ फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, बल्कि इनबौक्स में उस के लिए ढेर सारे मैसेज भी छोड़ रखे थे.

‘‘यों मुझे ब्लौक कर के मुझ से पीछा नहीं छूटेगा जानेमन. मेरी फ्रैंड रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर लेना. अब तुम्हारे बिना जिया नहीं जाता.’’

‘‘क्या हुआ फेसबुक छोड़ कर भाग गईं क्या?’’

‘‘अपना पता दे दो, प्लीज.’’

इस तरह के मैसेज पढ़ कर सुनयना का सिर घूम गया.

‘यह क्या मुसीबत पाल ली मैं ने. अब क्या होगा, यह तो पीछे ही पड़ गया.’

सोचसोच कर सुनयना परेशान हो रही थी. उस ने गुस्से में फेसबुक बंद किया और सिर पकड़ कर बैठ गई. पर इस मुसीबत की हद उतनी नहीं थी जितनी उस ने सोची थी. सौरभ उस की सोच से बढ़ कर मक्कार निकला, उस ने सुनयना की फेसबुक आईडी हैक कर ली और उस की सहेलियों को उलटेसीधे मैसेज भेजने शुरू कर दिए. सुनयना को तब पता चला जब उस की सहेलियों के फोन आने शुरू हुए. आखिर उस ने सार्वजनिक मैसेज कर सब से माफी मांगी और सब को बताया कि उस की फेसबुक आईडी हैक हो चुकी है. हार कर उसे अपनी फेसबुक आईडी डिऐक्टिवेट करनी पड़ी. पर सौरभ कहां पीछा छोड़ने वाला था. उस रोज सुबह घर के काम से फ्री हो कर अपने बैड पर बैठी मैगजीन पढ़ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सौरभ को सामने पा कर वापस दरवाजा बंद करने लगी पर सौरभ उसे ढकेल कर अंदर आ गया.

‘‘तुम, तुम यहां कैसे? घर का पता कहां से मिला?’’

सुनयना के शब्द उस के मुंह में ही अटक रहे थे.

‘‘हम प्यार करने वाले हैं जानेमन, फिर आजकल किसी का भी पता ढूंढ़ना मुश्किल थोड़े ही है. वोटर आईडी से किसी का भी पता मालूम चल जाता है. बस, हम ने तुम्हारा पता ढूंढ़ा और पहुंच गए अपनी जान से मिलने.’’

जानेमन, यह शब्द सुन कर सुनयना को खुद से ही घिन आ रही थी और सौरभ सोफे पर धंसा बोलता रहा.

‘‘यार, तुम ने तो एक ही झटके में हम से पीछा छुड़ा लिया और हम हैं कि तुम से प्यार कर बैठे.’’

गुस्से और डर से सुनयना का चेहरा लाल हुआ जा रहा था. पर किसी तरह खुद को संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘अब आ ही गए हो तो बैठो, तुम्हारे लिए पानी लाती हूं.’’

उस ने रसोई में जा कर लंबीलंबी सांसें लीं और कुछ सोचने लगी.

‘‘ये लो पानी.’’

कह कर सुनयना सौरभ के सामने बैठ गई और बोली, ‘‘देखो सौरभ, सुनील के घर आने का वक्त हो रहा है, इसलिए अभी तुम जाओ. मैं तुम से वादा करती हूं, तुम से मिलने जरूर आऊंगी.’’

‘‘कब, कहां मिलोगी, जल्दी बताओ,’’ सौरभ के चेहरे पर कुटिल मुसकान आ गई.

‘‘जल्द ही मिलूंगी. यह तुम से वादा रहा.’’

‘‘पहले बताओ, कहां मिलोगी? तभी मैं यहां से जाऊंगा.’’

‘‘फोन पर बता दूंगी. अब जाओ.’’

सौरभ आश्वस्त हो कर चला गया तो सुनयना निढाल सी सोफे पर धंस गई. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जरा सी दिल्लगी उसे मुसीबत में डाल देगी.

‘‘मैं ने तुम से कहा था मुसीबत में मत पड़ जाना. अब पड़ गया न वह पीछे.’’

सुनील को सारी बात पता चली तो वो झल्लाने लगा और सुनयना बस रोए जा रही थी.

‘‘अब रोओ मत, चलो, आंसू पोंछ लो. इस सौरभ को तो मैं ऐसा सबक सिखाउंगा कि याद रखेगा.’’

‘‘क्या करोगे तुम?’’ सुनयना ने अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘उसे फोन करो और लोधी गार्डन बुलाओ, कहना वहीं मिलोगी.’’

सुनयना लोधी गार्डन में एक बैंच पर बैठी थी. सौरभ सही समय पर आ गया था. वह अपनी जीत पर बड़ी कुटिलता से मुसकरा रहा था पर उस की यह मुसकान ज्यादा देर न रही. सुनील और उस के दोस्त, जो झाडि़यों के पीछे छिपे थे, बाहर आए और सौरभ को घेर लिया.

‘‘क्यों बे, ज्यादा आशिकी सवार हुई है क्या? शादीशुदा औरतों को फंसाता है?’’

ुकह कर सुनील ने उस की पिटाई शुरू कर दी. इतने सारे लोगों को एकसाथ देख कर उस की सारी आशिकी हवा हो गई और वह भागने लगा. पर उन सब ने उसे पकड़ लिया और पुलिस में देने की बात करने लगे तो सौरभ गिड़गिड़ाने लगा. माफी मांगने और आइंदा कभी ऐसी हरकत न करने का वादा ले कर ही उसे छोड़ा गया. इस तरह एक अफेयर का अंत हुआ.

Supreme Court : ‘दंगो में शामिल आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकना चाहिए’, लोकतंत्र पर प्रश्न चिन्ह

Supreme Court : लोकतंत्र के संदर्भ में, यह लंबे समय से चर्चा का सबब है कि अगर कोई जेल में बंद है तो क्या उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए या फिर चुनाव लड़ कर वह जनप्रतिनिधि बन सकता है? एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मामले में कुछ कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों में आरोपी पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की याचिका पर सख्त टिप्पणी कर दी है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए जो दंगों में शामिल होने के आरोपी हैं. यह फैसला न केवल दिल्ली दंगों के आरोपियों के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है.

दंगे और हिंसा किसी भी समाज के लिए घातक हैं. यह न केवल जानमाल की हानि का कारण बनते हैं बल्कि समाज की एकता और सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में दंगों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकना आवश्यक है. यह न केवल न्याय के लिए बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है.

इस के अलावा, दंगों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकने से यह संदेश भी जाता है कि अपराध किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यह समाज में एक सकारात्मक संदेश का संचार करता है और लोगों को अपराध के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित करता है.

हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि दंगों आतंकवाद और अन्य सामान्य अपराधों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाए. इस के लिए अदालतों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करने की आवश्यकता है. साथ ही, यह भी जरूरी है कि समाज में अपराध के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई जाए और लोगों को अपराध के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया जाए.

दरअसल, आतंकवाद और दंगों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकना आवश्यक है. यह न केवल न्याय के लिए बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है. हमें उम्मीद है कि अदालतें और सरकारें इस मामले में सख्त कार्रवाई करेंगी और समाज को अपराध मुक्त बनाने में मदद करेंगी.

जेल में बंद व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति देने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों पर विचार किया जाना चाहिए. यहां कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं:

1. आपराधिक गतिविधियों की जांच: जेल में बंद व्यक्ति की आपराधिक गतिविधियों की जांच की जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति समाज के लिए खतरानाक है या नहीं.
2. न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान: न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना आवश्यक है. यदि कोई व्यक्ति जेल में बंद है, तो उसे चुनाव लड़ने की अनुमति देने से पहले न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए.
3. जनता के हितों का ध्यान: जनता के हितों का ध्यान रखना आवश्यक है. यदि उस के खिलाफ गंभीर आरोप हैं तो उसे चुनाव लड़ने की अनुमति देना जनता के हितों के विरुद्ध हो सकता है.
4. संविधान और कानूनों का पालन: संविधान और कानूनों का पालन करना आवश्यक है. यदि कोई व्यक्ति जेल में बंद है, तो उसे चुनाव लड़ने की अनुमति देने से पहले संविधान और कानूनों का पालन करना चाहिए.
इन बातों पर विचार करने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जेल में बंद व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति देना समाज और जनता के हितों के अनुकूल होगा.
किसी को भी अपराधी बता कर जेल में डालना एक गंभीर मुद्दा है. यह न केवल व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज में विश्वास को भी तोड़ सकता है. आक्रोश भी पैदा कर सकता है.

कुछ मामलों में अक्सर निर्दोष लोगों को अपराधी बता कर जेल में डाला जाता है, जिस से उन की जिंदगी बर्बाद हो जाती है. यह एक गंभीर चिंता का विषय है और इस के लिए हमें एक साथ मिल कर काम करना चाहिए ताकि ऐसे मामलों को रोका जा सके.

इस के लिए न्याय पालिका को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

1. साक्ष्य आधारित जांच: किसी भी व्यक्ति को अपराधी बताने से पहले साक्ष्य आधारित जांच की जानी चाहिए.
2. न्यायिक प्रक्रिया का पालन: न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है ताकि निर्दोष लोगों को अपराधी न बताया जाए.
3. मीडिया और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी: मीडिया और सोशल मीडिया को भी जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और किसी भी व्यक्ति को अपराधी बताने से पहले साक्ष्यों की जांच करनी चाहिए.
4. जन जागरूकता: जन जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है ताकि लोगों को पता चले कि कैसे उन्हें अपराधी बता कर जेल में डाला जा सकता है और वे इस के खिलाफ कैसे लड़ सकते हैं.

लोकतंत्र के साथ एक धोखा

दरअसल सरकार के इशारे पर पुलिस बिना किसी आधार के खास या आम लोगों पर मुकदमे करने और गिरफ्तार कर लिया करती है. यह एक गंभीर मुद्दा है जो न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है. यहां कुछ उदाहरण हैं जहां बरसों से फैसले नहीं हुए हैं, क्या इस का जवाब सरकार या न्यायपालिका के पास है?

– राहुल गांधी का डिफेमेशन केस: राहुल गांधी को एक डिफेमेशन केस में सजा सुनाई गई थी, लेकिन अभी भी 3 अपीलों के अवसर हैं. यह मामला एक उदाहरण है कि किसी नेता या फिर जो टारगेट है उसे किसी भी तरह आरोपी, अपराधी बना कर परेशान किया जाए और हो सके तो जेल भेज दिया जाए ऐसे में यह संविधान की हत्या के बराबर है.

– भीमा कोरेगांव मामला: यह मामला 2018 से लंबित है, जहां कई एक्टिविस्ट और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया गया था. अभी भी इस मामले में फैसला नहीं हुआ है.
– निर्भया केस: यह मामला 2012 से लंबित है, जहां एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या हुई थी. अभी भी इस मामले में कुछ आरोपियों के खिलाफ फैसला नहीं हुआ है.
– गुजरात दंगा मामला: यह मामला 2002 से लंबित है, जहां कई लोगों की मौत हुई थी. अभी भी इस मामले में कुछ आरोपियों के खिलाफ फैसला नहीं हुआ है.
– आसाम में एनआरसी मामला: यह मामला 2019 से लंबित है, जहां कई लोगों को नागरिकता से वंचित किया गया था. अभी भी इस मामले में फैसला नहीं हुआ है.

इन मामलों से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी पुलिस और न्यायपालिका की कार्रवाई में अक्सर देरी होती है, जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहे लोगों के लिए बहुत परेशानी का कारण बनती है.
सरकारी पुलिस बिना किसी आधार के लोगों को गिरफ्तार करने के मामले में यह जानना महत्वपूर्ण है कि पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अधिकार प्राप्त हैं.

कानूनन पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार है, लेकिन यह केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में लागू होता है:

– जब किसी के द्वारा शिकायत दर्ज की जाती है
– जब कोई संदिग्ध घर में घुसने की कोशिश करता है.
– जब कोई संदिग्ध घोषित अपराधी होता है
– जब कोई संदिग्ध चोरी की संपत्ति के कब्जे में होता है.

इन मामलों में देरी के कारणों को समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि न्यायपालिका और पुलिस प्रशासन की कार्रवाई में अक्सर देरी होती है, जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहे लोगों के लिए बहुत परेशानी का कारण बनती है. राहुल गांधी के डिफेमेशन केस में हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी है. इस मामले में राहुल गांधी पर भाजपा और अमित शाह के खिलाफ टिप्पणी करने का आरोप है.

इस के अलावा, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में सुनवाई पर रोक लगा दी है. यह मामला राज्य भाजपा द्वारा दायर किया गया था. मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है, और राहुल गांधी के पास अभी भी अपील करने के अवसर हैं. यह मामला न्यायपालिका और राजनीतिक नेताओं के बीच संबंधों पर बहस को बढ़ावा देता है.

दरअसल निर्दोष लोगों को अपराधी बता कर जेल में डालने से बचा नहीं जा सकता, ऐसे में चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में भाग ले कर के इस व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जा सकता है और कोई समाधान कोई रास्ता निकाला जा सकता है. इस से लोकतंत्र मजबूत होता है कमजोर नहीं, यह समझने की आवश्यकता है.

Marriage Certificate : कैसे बनता है मैरिज सर्टिफिकेट, क्यों है जरूरी?

Marriage Certificate : मैरिज सर्टिफिकेट विवाह का कानूनी सबूत है. पतिपत्नी के रिश्ते को प्रमाणित करने के लिए यह दस्तावेज सबसे जरूरी है. जब तलाक के लिए कोर्ट जाते हैं तो शादी के लिए कोर्ट जाने में कैसा हर्ज?

 

शादी के बाद मैरिज सर्टिफिकेट कानूनी अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए एक अहम दस्तावेज होता है. यह मैरिज सर्टिफिकेट लेना नवविवाहित जोड़े के लिए जरूरी होना चाहिए. विवाह के बाद कई जोड़े मैरिज सर्टिफिकेट नहीं बनवाते हैं. खास कर जो शादियां हिंदू विवाह रीतिरिवाजों से होती है वह इस की जरूरत नहीं समझते हैं.

असल में  मैरिज सर्टिफिकेट एक कानूनी दस्तावेज है. यह विवाह का वैध प्रमाण होता है. मैरिज सर्टिफिकेट विवाह संबंधी अधिकारों की सुरक्षा भी करता है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से मैरिज सर्टिफिकेट को अनिवार्य घोषित किया.

इस के बाद भी अभी शतप्रतिशत शादीशुदा जोड़े मैरिज सर्टिफिकेट नहीं बनवाते हैं. ऐसे में कोर्ट को यह करना चाहिए कि जिन जोड़ों के पास मैरिज सर्टिफिकेट न हो उन की शादी को रद्द कर देना चाहिए. तभी समस्याओं का समाधान हो सकेगा. आज के दौर में जो आधार कार्ड पर नाम है उस को बदलना सरल नही रह गया है. ऐसे में विवाह के बाद जो लड़कियां अपना सरनेम बदलना चाहती हैं उन के सामने परेशानी आती है. मैरिज सर्टिफिकेट इस में प्रमाण दे सकता है. यह दस्तावेज विवाह का कानूनी सबूत प्रदान करता है.

 

मैरिज सर्टिफिकेट से मुश्किलें होंगी हल

 

शादी के बाद विदेश में वीजा और इमिग्रेशन प्रक्रियाओं में पतिपत्नी के रिश्ते को प्रमाणित करने के लिए विवाह प्रमाणपत्र अनिवार्य होता है. बैंक जमा या जीवन बीमा खाते में नामांकन नहीं है तो पैसे निकालने में दिक्कत हो सकती है. पेंशन योजनाओं और अन्य वित्तीय लाभों का दावा करने के लिए भी यह सर्टिफिकेट आवश्यक है. यही नहीं तलाक, संपत्ति विवाद और उत्तराधिकार के मामलों में विवाह की वैधता साबित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है. यदि पतिपत्नी के सरनेम अलग हैं, तो बच्चों की वैधता प्रमाणित करने में यह सहायक होता है.

 

मैरिज सर्टिफिकेट विवाह से संबंधित धोखाधड़ी और अवैध गतिविधियों से महिलाओं की रक्षा करता है और उन के अधिकारों को सुनिश्चित करता है. एक विवाहित व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद लाभ के लिए केवल अपनी पत्नी और बच्चों को नामांकित कर सकता है. बिना मैरिज सर्टिफिकेट के इन लाभों का दावा करना मुश्किल हो जाता है.

 

पति की मृत्यु के बाद उस की संपत्ति और पैतृक संपत्ति पर महिला के अधिकारों और हितों के दावे को सामान्यतः विवाह की वैधता के आधार पर चुनौती दी जाती है. मैरिज सर्टिफिकेट न होने की स्थिति में महिला अपने अधिकारों का दावा नहीं कर सकेगी. वैवाहिक विवादों या तलाक की स्थिति में मैरिज सर्टिफिकेट न होने के कारण विवाह को अमान्य घोषित किया जा सकता है. कई मामलों में, बिना रीतिरिवाजों के विवाह करने या धर्मस्थल में विवाह कर धोखाधड़ी की घटनाएं सामने आती हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षित होने के बावजूद, महिलाएं विवाह प्रमाणपत्र के अभाव में अपने अधिकारों से वंचित रह जाती हैं.

 

शादी के बाद कैसे बनता है मैरिज सर्टिफिकेट?

 

शादी के बाद मैरिज सर्टिफिकेट हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत होता है. विवाह हो जाने के 1 महीने बाद मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए औनलाइन और औफलाइन जैसे चाहे वैसे आवेदन कर सकते हैं. इस को बनवानेके लिए पति की आयु कम से कम 21 वर्ष और पत्नी की उम्र कम से कम 18 वर्ष या फिर इस से अधिक होनी चाहिए. नए मैरिज सर्टिफिकेट को बनवाने के लिए अगर किसी का पहले विवाह हो चुका है और अब तलाक हो जाने के बाद दोबारा विवाह कर रहे हैं तो तलाक प्रमाण पत्र भी इस्तेमाल करना होगा. इस के लिए दोनों विवाहित जोड़ों का अपनाअपना आधार कार्ड होना चाहिए.

 

आधार कार्ड के साथ शादी के निमंत्रण कार्ड और विवाहित जोड़ों का विवाह में खींचा गया फोटोग्राफ, शादी के समय उपस्थित दो गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं. उन दोनों के निवास प्रमाण पत्र की भी आवश्यकता होती है. इन सभी के विवाह रजिस्टर पर हस्ताक्षर होते हैं. औनलाइन मैरिज सर्टिफिकेट बनवाने के लिए राज्य के विवाह पंजीकरण के आधिकारिक पोर्टल का प्रयोग करना होता है. ‘अप्लाई फौर ए न्यू मैरिज सर्टिफिकेट’ पर क्लिक कर के जानकारी देनी होगी.

 

आवेदन में मांगी जा रही जानकारी को ध्यानपूर्वक भरना चाहिए. किसी भी जानकारी को अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए. आवेदन फौर्म भरने के बाद जरूरी दस्तावेजों को भी वेबसाइट पर अपलोड करना होता है. आवेदन फौर्म भरने के बाद इस को ‘सबमिट’ करना होता है. जांच के बाद मैरिज प्रमाण पत्र जारी होता है. कचहरी में मैरिज औफिस होता है. वहां जा कर भी मैरिज सर्टिफिकेट बनवा सकते हैं. वहां एक मैरिज रजिस्ट्रेशन का आवेदन फौर्म भरना होता है. आवेदन फौर्म भरने के बाद डाक्यूमेंट की फोटोकापी लगानी पड़ती है. फार्म भरने के दूसरे दिन प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है.

 

मैरिज सर्टीफिकेट सभी के बनने चाहिए. इस के लिए सरकार को सहूलियतें देनी चाहिए. इस का प्रचारप्रसार भी करना चाहिए. तलाक के समय इस प्रमाणपत्र को मान्य करना चाहिए. जब पंडेपुजारी तलाक कराने की जिम्मेदारी नहीं ले सकते तो उन को शादी कराने की जिम्मेदारी नहीं देनी चाहिए. हर शादी में मैरिज सर्टीफिकेट जरूरी होता है. तभी विवाह संबंधी विवादों को निपटारा आसानी से हो सकेगा.

Relationship Advice : मेरा बौयफ्रैंड मुझे बारबार कमरे में आने के लिए कहता है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं?

Relationship Advice : सवाल – डर है, मेरा बौयफ्रैंड कहीं मुझे इस्तेमाल कर के छोड़ न दे. मैं बौयफ्रैंड के इरादे समझ नहीं पा रही. मेरी दोस्ती अपने बौयफ्रैंड से कालेज में हुई थी जब मैं फर्स्ट ईयर में थी. जब भी मुलाकात हुई कैंपस या कैंटीन में. अब वह कहता है कि मैं कैंपस का होस्टल छोड़ दूं क्योंकि उस ने कैंपस के बाहर एक कमरा किराए पर ले लिया है. वह मुझ से बारबार कमरे में आने के लिए कहता है. मुझे मालूम है कि वह कमरे में क्यों ले जाना चाहता है. मुझे डर लगता है कि कहीं वह मुझे इस्तेमाल कर के छोड़ न दे? वैसे, वह मुझसे से प्यार करने का दम भरता रहता है. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं?

जवाब- पहली बात, अगर आप का बौयफ्रैंड आप को कमरे में ले जाने की बात करता है तो आप को उस की मंशा अच्छे से समझने की जरूरत है, क्या वह आप का सम्मान करता है या केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहता है? अगर वह केवल फिजिकल होने की सोच रहा है और आप की भावनाओं का ध्यान नहीं रखता तो यह स्पष्ट है कि वह आप को सही नजरिए से नहीं देखता.

किसी भी रिश्ते में यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी भावनाओं और इच्छाओं को पहले समझें फिर फैसले लें. अगर आप खुद को इस रिश्ते में असुरक्षित महसूस कर रही हैं, आप को लगता है कि वह आप को सिर्फ इस्तेमाल करना चाहता है तो उस से दूर रहने में ही भलाई है.

हां, आप उस से साफसाफ भी कह सकती हैं कि आप उस के कमरे में नहीं जाना चाहतीं. यदि उस के इरादे नेक हैं तो वह आप की भावनाओं का सम्मान करेगा और किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं करेगा.

आप को अपने आत्मसम्मान का ध्यान रखना चाहिए और कभी भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिस से आप बाद में पछताएं. अगर आप इस रिश्ते में असुरक्षित या असहाय महसूस कर रही हैं तो रिश्ते को खत्म करने में हिचकिचाहट न करें.

आप भी अपनी समस्या भेजे

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समस्या हमें एसएमएस या व्हाट्सऐप के जरिए मैसेज/औडियो भी
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Beauty Tips : सर्दी में मेरे होंठ बहुत ही सूखे और फटे हुए रहते हैं, कैसे छुटकारा पाया जाए?

Beauty Tips : सवाल – सर्दी में मेरे होंठ बहुत ही सूखे और फटे हुए रहते हैं. हालांकि मैं पानी बहुत पीती हूं तब भी यह समस्या रहती है. मुझे कुछ होम रेमिडिज बताएं ताकि इस तकलीफ से छुटकारा मिल सके?

जवाब – घी और नारियल तेल दोनों ही प्राकृतिक मौइश्चराइजर हैं. रात में सोने से पहले होंठों पर लगाएं. शहद में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. इसे होंठों पर लगा कर 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर गीले कपड़े से पोंछ लें. एलोवेरा के ताजे पत्ते से जैल निकाल कर होंठों पर लगाएं. जैतून का तेल भी होंठों को नमी और सौफ्टनैस प्रदान करता है. कुछ बूंदें अपने होंठों पर लगा कर हलके से मसाज करें.

अगर आप के होंठों पर डैड स्किन जम जाती है तो आप एक मुलायम टूथब्रश का इस्तेमाल कर के उसे हटा सकती हैं. इस से मृत कोशिकाएं निकल जाएंगी और होंठों पर नमी का अवशोषण बेहतर होगा. इन उपायों को अपनाने के बाद आप को कुछ समय में फर्क दिख सकता है.

Attention Seeking : मुझे बचपन से ही अटैंशन सीकिंग की बड़ी दिक्कत है, कैसे काबू करना चाहिए?

Attention Seeking : सवाल – मुझे बचपन से ही अटैंशन सीकिंग की बड़ी दिक्कत है. मैं 45 साल की हूं. मेरे 3 बच्चे हैं, जो स्कूल और कालेज में पढ़ते हैं. मुझे बचपन से ही अटैंशन सीकिंग की आदत है जो अभी तक चली आ रही है. जब कोई काम मेरे मनमुताबिक नहीं होता तो मुझे गुस्सा आता है और मैं सब से लड़ाई कर लेती हूं. इस की वजह से मेरे पति और बच्चे मुझे नापसंद करने लगे हैं. लेकिन मैं भी अपने नेचर से मजबूर हूं. मुझे अपने बिहेवियर पर कैसे काबू करना चाहिए?

जवाब – आप ने अपनी भावनाओं और व्यवहार पर काबू न पा सकने की समस्या को स्वीकार किया है और यह बहुत ही अच्छा कदम है. यह समस्या कई बार बचपन में पलीबढ़ी होती है. अकसर अटैंशन सीकिंग बिहेवियर तब बढ़ता है जब किसी को लगता है कि उसे इमोशनल सपोर्ट और ध्यान नहीं मिल रहा है. इस स्थिति में सब से पहले यह जरूरी है कि आप खुद को पहचानें और आत्ममूल्य की समझ बढ़ाएं. अपनी पूरी जिंदगी को सिर्फ दूसरों के ध्यान और प्यार पर निर्भर न रखें. अपनेआप से प्यार करें.

गुस्सा आना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह गुस्सा किसी रिश्ते में जहर बन जाए तो इसे संभालना जरूरी हो जाता है. सब से पहले, आप को यह समझने की जरूरत है कि गुस्से से कोई समस्या हल नहीं होती. गुस्से के बजाय अपने विचारों को शांतिपूर्वक और विचारशील तरीके से व्यक्त करें. जब आप को गुस्सा आए तो एक गहरी सांस लें, कुछ समय के लिए अकेले हो जाएं और अपनेआप को शांत करने की कोशिश करें.

अटैंशन सीकिंग और गुस्से के कारण परिवार के सदस्य आप से दूर हो रहे हैं. इस के लिए सब से पहले आप को अपनी सोच को सकारात्मक दिशा में बदलने की आवश्यकता है. आप अपने परिवार के सदस्यों से प्यार और सम्मान की अपेक्षाएं करती हैं, लेकिन इस को पाने के लिए आप को उन्हें भी उतना ही प्यार और सम्मान देना होगा. जब आप उन के साथ सकारात्मक व्यवहार करेंगी तो उन का भी आप के प्रति नजरिया बेहतर होगा.

अगर आप को लगता है कि आप अपने गुस्से और अटैंशन सीकिंग बिहेवियर को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं तो काउंसलिंग या थेरैपी का सहारा लें. एक विशेषज्ञ आप की समस्या को समझ कर, सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है.

Viral Slogans : ‘बंटोगे तो कटोगे’ राजनीति का असली हथियार बने नारे, कभी नहीं हुए फेल

Viral Slogans : देश नारा प्रधान है. काम भले कुछ न हो रहा हो पर पार्टियां और सरकारों द्वारा उछाले नारों की खुमारी जनता पर खूब छाई रहती है. प्रारंभ से ही हमारा देश नारा प्रधान राष्ट्र रहा है. हालांकि बदलते वक्त के साथ इन नारों का अर्थ और उद्देश्य भी बदलता रहा है. शांति, स्वतंत्रता से स्वार्थ अथवा सत्ता के निहितार्थ अशोक की ‘जीयो और जीने दो,’ सुभाष की ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से ले कर ‘अच्छे दिन’, ‘खेला हौवे’ आदि सभी नारे समयसमय पर धूम मचाते हुए अपने उद्देश्य को हासिल करने में सफल रहे हैं. भारतीय नरनारियों के लिए नारे जारी कर व्यावसायिक प्रतिष्ठान अथवा राजनीतिक पार्टियां नकद नारायण और नवरस का आनंद लेने का मोक्ष प्राप्त करते हैं. ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ का वैश्विक स्लोगन दे कर टैलीकौम कंपनियों द्वारा मानव जीवन को दिनरात मोबाइल और इंटरनैट के मायाजाल और भूलभुलैया में भटकाने का तो ‘जुबां केसरी’ के नाम पर केसरयुक्त कैंसर की बिक्री बढ़ाने तक में भारतीय नारों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.

जिस देश में डियो लगाने से युवतियां बेरोजगार लड़कों के पास खिंची चली आती हैं और कोल्डड्रिंक्स पीने से डरा हुआ मनुष्य जीत के लक्ष्य तक पहुंच पाता है, वैसे पावन भूमि पर यदाकदा राजनीतिक पार्टियां भी मोहक स्लोगन दे कर अपने कस्टमर मेरा मतलब कष्ट से मर रहे जनता को मामू और अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल कर लेती हैं. वैसे भी जनता तो जन्मजात मासूम होती है. कभी जात और बात में पिघल कर किसी की सरकार बना देती है तो कभी पौवा और पैसा पर अपने मत का मूल्यांकन कर लेती है. वैसे भी हमारे स्लोगन शोषित देश की तथाकथित मासूम जनता काफी आशावादी होती है. ऐसे व्यक्ति जिन की आज तक अपने पड़ोसियों से भी नहीं बनी वे ऋषि सुनक के ब्रिटेन का पीएम बनने और डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर भी अच्छे दिन की उम्मीद पाल लेती है.

कभी ‘फील गुड’ के नाम पर बनने वाली सरकार में गुड अनफील होने पर सरकार बदल देती है, तो ‘कभी अच्छे दिन आने वाले हैं’ की आस में बारंबार उसी सरकार का चुनाव कर लेती है. ‘खेला हौवे’ का उद्घोष कर राजनीतिक मदारी मूकदर्शक बनी जनता की भावनाओं के साथसाथ जम कर राजनीति का खेल भी खेलते हैं. इस खेल में चैंपियन ट्रौफी रूपी कुरसी का स्वामित्व हमेशा खेल दिखाने वाले मदारी के पास ही रह जाता है. बंदर अथवा भालू सदृश कार्यकर्ता ‘खेला हौवे’ की डुगडुगी पर मदमस्त झूमते तो जनता तालीथाली और सिर पीट कर मदारी को ताकते रह जाती है.

चुनाव आते ही नयानया स्लोगन बाजार में लौंच कर दिया जाता है. इन दिनों मार्केट में जैसे ही ‘बंटोगे तो कटोगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ लौंच हुआ तो हमारे पड़ोस के सरकारी क्लर्क छब्बूजी भी अपने स्टेटस पर इस स्लोगन को चिपका मारा. यह और बात है कि विवाह के एक महीने बाद ही महंगाई और अपने निजी परिवार की दुहाई दे कर वे अपने मातापिता और भाइयों का साथ छोड़ पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे के पश्चात इकलौती बीवी के साथ बंटा और कटा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

इसी तरह हमेशा से हट कर और कट कर रहने वाले गुप्ताजी ने भी इस स्लोगन को स्थायी स्टेटस बना लिया है, जिन का संपूर्ण जीवनकाल रिश्तेदारों की बुराई करने में निकल गया. ‘एक हैं तो सेफ हैं’ स्लोगन से हमारे विभाग के सुपरवाइजर दत्ता साहब यह उम्मीद पाल बैठे हैं कि अब घरवाली के साथसाथ बाहर वाली सैटिंग को रखने पर कोई खतरा नहीं. इन नारों की वैलिडिटी के बीच महाकुंभ को देखते हुए ‘डरोगे तो कटोगे’ का नया स्लोगन भी लौंच कर दिया गया है. नारा देने वाले का उद्देश्य राजनीति से प्रेरित हो सकता है लेकिन नारों को नागरिक अपने जीवन में किस रूप में लेते हैं यह उन पर निर्भर करता है.

बहरहाल 2 इंच जमीन के नाम पर एकदूसरे को मारनेकाटने वाले भाइयों, जाति और भाषा के नाम पर समाज को बांटने वाले महान बुद्धिजीवियों के बीच बंटने और कटने वाला राजनीतिक स्लोगन ऐसा है मानो अमिताभ बच्चन के क्रैडिट पर सेटमैक्स द्वारा ‘सूर्यवंशम’ को बारबार दिखाने का जोखिम अथवा मंजुलिका के क्रैडिट पर टीसीरीज और अनीस बज्मी द्वारा ‘भूलभुलैया 3’ तथा ‘सिंघम’ के ब्रैंड पर रोहित शेट्टी द्वारा ‘सिंघम अगेन’ को भुनाने का दुस्साहस यानी देखोगे तो झेलोगे.

Fashion : आपके पर्सनैलिटी और आत्मविश्वास को निखारते हैं कपड़े

Fashion : हमारा पहनावा हमारी पहचान बनती है. कौन किस तरह के कपड़े चुनता है, उस से उस की पर्सनैलिटी जाहिर होती है. सही रंग, डिजाइन फिटिंग के कपड़े सिर्फ व्यक्ति की सुंदरता निखारते हैं बल्कि उस के आत्मविश्वास को बढ़ाते भी हैं. हम क्या कैसा दिखें, यह हमारे हाथ में होता है.

हमारा पहनावा हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है. कार्यकुशल व्यक्ति की ड्रैस उस के व्यक्तित्व की तरह व्यवस्थित होती है. साफ शब्दों में कहा जाए तो ड्रैस शरीर का पहला घर है जो मौसम के थपेड़ों से हमारी रक्षा करता है. इस नाते वह रक्षा कवच है तो वही हमारा पहला परिचय भी है
मसलन, कोई व्यक्ति जलसेना, थलसेना, वायुसेना या पुलिस में कार्यरत है तो उस की वरदी उस का परिचय देती है. विद्यार्थियों की स्कूल यूनिफौर्म, कामकाजी लोगों की औपचारिक ड्रैस, कारीगरों की ड्रैस या महिलाओं की साडि़यां, सूटसलवार उन का परिचय देती हैं लेकिन इन पर समय, काल एवं परिस्थिति के अनुसार बदलाव देखे गए हैं. पहले योद्धा भी धोती पहनते थे. बाद में चूड़ीदार और अंगरेजी शासन के दौरान सिपाहियों को लड़ने के लिए चुस्त पैंट दी जाने लगी. इस से साफ दृष्टिगोचर है कि आवश्यकता के अनुसार कपड़ों का भी विकास होता है. कपड़े जो मौसम की मार से बचाएं, व्यक्ति की कार्यकुशलता बढ़ाएं और साथ ही साथ व्यक्तित्व को निखारें वही अपनाने योग्य होते हैं
कपड़ों की बात पर एक पुरानी घटना याद गई. मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था. उस की बेटी पूजा, जोकि मेरी छोटी बहन जैसी थी, कालेज में पढ़ती थी. जब भी वह तैयार हो कर निकलती, उस का भाई अभिषेक उसे टोकता. एक दिन उस ने कहा
तुम ऐसे बाहर जाओगी?’
क्यों, इन कपड़ों में क्या खराबी है?’
इस में अलग दिख रही हो, लोग देखेंगे?’
लौंग स्कर्ट है, कुछ दिख ही नहीं रहा तो लोग क्या देखेंगे?’
सलवारसूट पर दुपट्टा ले लो, परदा रहता है.’
पूजा ड्रैस बदले बगैर ही कालेज चली गई. रात के खाने पर पूरा परिवार इकट्ठा बैठा तो भाई ने फिर बहस छेड़ दी.
आधुनिक कपड़े पहन कर कालेज जाती हो, कोई दिक्कत आई तो मुझसे से मत कहना.’  
भाई, तुम जब शौर्ट्स में बाहर जाते हो या पापा लुंगी में टहलते हैं तो तुम्हें कोई दिक्कत आती है?’
मर्द जात खुले सांड की तरह होते हैं, बेटी. हम औरतों को देखभाल कर जीना चाहिए,’ मां बोलीं.
मां की बात बरदाश्त के बाहर हुई तो पूजा ने कहा, ‘क्यों लड़कियां ही सब सीखें? लड़कों को भी कुछ सिखाना चाहिए. उन्हें भी शराफत सीखनी चाहिए. वे आधेअधूरे कपड़ों में मर्द दिखते हैं और हम सिर से पांव तक ढके रहें तभी उन के अहं की तुष्टि होती है, क्यों भला. आप मां हैं, आप तो समझें. आज के समय में मैं 20वीं सदी के कपड़े क्यों अपनाऊं?’  
जो कुछ पूजा ने कहा वह  मुझे बताया तो मैं ने अभिषेक से बात करना चित समझा.
कल को पत्नी को भी ऐसे ही परदा कराओगे. यहां पढ़ाई में, खानेपीने में, कपड़े में, मर्द और औरत का फर्क करने में इतना नहीं  समझ रहे हो कि जो आज दब रही है वह सिर उठाएगी तो कितना कहर ढाएगी. इसलिए बेहतरी इसी में है कि बदलते परिवेश के साथ सोच बदलो.’ मेरी बात पर पूजा खुश हो गई. पहली बार किसी ने उस की ओर से बोला था. फिर मुझे कुछ याद गया तो आपबीती सुनाई


कपड़े दिखाते कौन्फिडैंस


2007 में मेरे पति कुवैत की एक टैलीकौम कंपनी में काम कर रहे थे. बेटी के स्कूल की छुट्टियां हुईं तो हम ने कुवैत घूमने की योजना बनाई. हैदराबाद से कुवैत की सीधी उड़ान थी और हमारी पहली अंतर्राष्ट्रीय उड़ान थी. रात का सफर था. आराम नींद के लिए मैं ने सलवारसूट पहन लिया था. मेरी 8 वर्षीया बेटी विदेश यात्रा को ले कर बहुत उत्साहित थी. हम दोनों जब अपनी सीट तक पहुंचे, अधेड़ उम्र के एक महाशय साइड सीट पर पहले से विराजमान नजर आए.
बेटी को विंडो सीट दे कर मैं बीच वाली सीट पर बैठ गई. बैठी क्या, उसे अटका हुआ समझ जाना चाहिए क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य वाले यात्री इकोनौमी क्लास में खुद को किसी तरह फिट कर के ही काम चलाते हैं. यात्रा के दौरान मुझे  वीजा संबंधित कौन सी औपचारिकताएं पूरी करनी हैं, यह सब पति ने फोन पर समझा दिया था. सो, तनावमुक्त थी. मगर मेरे सहयात्री मेरे सीधेसादे पहनावे के कारण मुझे अनाड़ी समझ कर अंतर्राष्ट्रीय उड़ान संबंधित ज्ञान दिए जा रहे थे.
पहले सीट बैल्ट लगाने, फिर वीडियो औन कर देखने का हुनर सिखाया. फिर सामने की सीट से लगे टेबल खोलने बंद करने और एयरहोस्टेस को बुलाने के लिए बटन दबाने की युक्ति समझा दी. इतना ही नहीं, बीचबीच में खींसें निपोरे मेरी ओर देखते जैसे इस अद्भुत ज्ञान के बदले वे वाहवाही के हकदार हैं.
मध्यरात्रि में एक अपरिचित का यों बेतकल्लुफ होना मुझे  कतई रास नहीं रहा था. भलमनसाहत जब भारी लगने लगी तो मैं बेटी की ओर घूम गई. असली राहत तो तब मिली जब बिटिया सोने की तैयारी करने लगी. उस वक्त मैं ने अपना कंधा हलके से उस की सीट की ओर झुकाया और हम दोनों चैन की नींद सो गए.
कुवैत पहुंच कर जब सारा वृत्तांत पति को बताया तो उन की तत्काल प्रतिक्रिया यही थी कि तुम्हें पैंट पहन कर आना था. किसी के कपड़े उस के कौन्फिडैंस को दिखाते हैं. तुम्हें सीधीसादी जान कर टाइम पास कर रहा था. फिर वे स्वयं ही कुछ नए चलन के कपड़े खरीद लाए. उन्हें पहन कर कुवैत से जब लौटी तो मांबेटी अपने में ही मस्त रहे. इस बार हम हवाई यात्रा के अनुभवी हो चुके थे.
मेरा संस्मरण सुन कर सब की खासकर अभिषेक की आंखें फैल गईं. पूजा भी मेरी बातों पर सहमत हुई कि हमें ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिन में दिखावा हो बंधन. परंपरागत अवसर पर भले ही पारंपरिक ड्रैस पहने जाएं मगर सार्वजनिक स्थान पर जब भी दुपट्टे या आंचल से खुद को ढकते हैं तो कौन्फिडैंट के बजाय नाजुक और असहाय नजर आते हैं. असरारुल हक उर्फमजाकसाहब ने क्या खूब लिखा है
तेरे माथे पे यह आंचल
बहुत खूब है लेकिन
तू इस आंचल से एक परचम
बना लेती तो अच्छा था.’
वाकई, आंचल या चूनर में स्त्री के शर्माए, सकुचाए रूप का आभास मिलता है. इसलिए हमें वैसे कपड़े पहनने चाहिए जो केवल हमें ढकें बल्कि हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ाएं.
आज के युग में इस अतिरिक्त कपड़े का परचम लहरा कर आंदोलन करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए.
आखिर, पैरहन हमारी हैं, इसलिए हमेशा वैसे ही कपड़े पहनने चाहिए जो केवल शरीर ढकें बल्कि व्यक्तित्व को निखारें भी. कामकाजी महिलाओं के कपड़े आधुनिक होने के साथ गरिमामय भी होते हैं जिन में कोई भी अतिरिक्त तामझाम नहीं होता. वही तन पर जंचने के साथ आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करते हैं. सो, वही पहनने चाहिए.

 

लेखक : आर्य झा

Online Hindi Story : जब भाई बना भाई का दुश्मन

Online Hindi Story : ‘गढ़देशी’ संपत्ति के चक्कर में कितने ही परिवार आपस में लड़ झगड़ कर बिखर गए और दोष समय को देते रहे. ऐसे ही प्रवीण और नवीन थे तो सगे भाई लेकिन रिश्ता ऐसा कि दुश्मन भी शरमा जाए, रार ऐसी कि एकदूसरे को फूटी आंख न सुहाएं. फिर एक दिन… कहते हैं समय राजा को रंक, रंक को राजा बना देता है. कभी यह अधूरा सच लगता है, जब हम गलतियां करते हैं तब करनी को समय से जोड़ देते हैं. इस कहानी के किरदारों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. 2 सगे भाई एकदूसरे के दुश्मन बन गए. जब तक मांबाप थे, रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा का शहर में बड़ा नाम था. रैस्टोरैंट खुलने से देररात तक ग्राहकों का तांता लगा रहता. फुरसत ही न मिलती. पैसों की ऐसी बरसात मानो एक ही जगह बादल फट रहे हों.

समय हमेशा एक सा नहीं रहता. करवटें बदलने लगा. बाप का साया सिर से क्या उठा, भाइयों में प्रौपर्टी को ले कर विवाद शुरू हो गया. किसी तरह जमापूंजी का बंटवारा हो गया लेकिन पेंच रैस्टोरैंट को ले कर फंस गया. आपस में खींचतान चलती रही. घर में स्त्रियां झगड़ती रहीं, बाहर दोनों भाई. एक कहता, मैं लूंगा, दूसरा कहता मैं. खबर को पंख लगे. उधर रिश्ते के मामा नेमीचंद के कान खड़े हो गए. बिना विलंब किए वह अपनी पत्नी और बड़े बेटे को ले कर उन के घर पहुंच गया. बड़ी चतुराई से उस ने ज्ञानी व्यक्ति की तरह दोनों भाइयों, उन की पत्नियों को घंटों आध्यात्म की बातें सुनाईं. सुखदुख पर लंबा प्रवचन दिया. जब देखा कि सभी उस की बातों में रुचि ले रहे हैं, तब वह मतलब की बात पर आया, ‘‘आपस में प्रेमभाव बनाए रखो. जिंदगी की यही सब से बड़ी पूंजी है. रैस्टोरैंट तो बाद की चीज है.’’ नवीन ने चिंता जताई,

‘‘हमारी समस्या यह है कि इसे बेचेंगे, तो लोग थूथू करेंगे.’’ ‘‘थूथू पहले ही क्या कम हो रही है,’’ नेमीचंद सम झाते हुए बोला, ‘‘रैस्टोरैंट ही सारे फसाद की जड़ है. यदि इसे किसी बाहरी को बेचोगे तो बिरादरी के बीच रहीसही नाक भी कट जाएगी.’’ सभी सोच में पड़ गए. ‘‘रैस्टोरैंट एक है. हक दोनों का है. पहले तो मिल कर चलाओ. नहीं चलाना चाहते तो मैं खरीदने की कोशिश कर सकता हूं. समाज यही कहेगा कि रिश्तेदारी में रैस्टोरैंट बिका है…’’ नेमीचंद का शातिर दिमाग चालें चल रहा था. उसे पता था कि सुलह तो होगी नहीं. रैस्टोरैंट दोनों ही रखना चाहते हैं, यही उन की समस्या है. रैस्टोरैंट बेचना इन की मजबूरी है और उसे सोने के अंडे देने वाली मुरगी को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. आखिरकार, उस की कूटनीति सफल हुई. दोनों भाई रैस्टोरैंट उसे बेचने को राजी हो गए. नेमीचंद ने सप्ताहभर में ही जमाजमाया रैस्टोरैंट 2 करोड़ रुपए में खरीद लिया. बड़े भाई प्रवीण और छोटे भाई नवीन के बीच मसला हल हो गया,

किंतु मन में कड़वाहट बढ़ गई. नेमीचंद ने ‘रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा’ के बोर्ड के नीचे पुराना नाम बदल कर प्रो. नेमीचंद एंड संस लिखवा दिया. रैस्टोरैंट के पुराने स्टाफ से ले कर फर्नीचर, काउंटर कुछ नहीं बदला. एकमात्र मालिकाना हक बदल गया था. दोनों भाई जब भी रैस्टोरैंट के पास से गुजरते, खुद को ठगा महसूस करते. अब दोनों पश्चात्ताप की आग में जलने लगे. दोनों के परिवार पुश्तैनी मकानों में अलगअलग रहा करते थे. दोनों के प्रवेशद्वार अगलबगल थे. बरामदे जुड़े हुए थे, लेकिन बीच में ऊंची दीवार खड़ी थी. दोनों भाइयों की पत्नियां एकदूसरे को फूटी आंख न देखतीं. बच्चे सम झदार थे, मगर मजबूर. भाइयों के बीच कटुता इतनी थी कि एक बाहर निकलता तो दूसरा उस के दूर जाने का इंतजार करता. सभी एकदूसरे की शक्ल देखना पसंद न करते.

रैस्टोरैंट खरीदने के बाद नेमीचंद के दर्शन दुर्लभ हो गए. पहले कुशलक्षेम पूछ लिया करता था. धीरेधीरे नेमीचंद उन की कहानी से गायब ही हो गया. लेदे कर एक बुजुर्ग थे गोकुल प्रसाद. उन के पारिवारिक मित्र थे. जब उन्हें इस घटना की जानकारी हुई तो बड़े दुखी हुए. उसी दिन वे दोनों से मिलने उन के घर चले आए. पहुंचते ही उन्होंने दोनों को एकांत में बुला कर अपनी नाराजगी जताई. फिर बैठ कर सम झाया, ‘‘इस झगड़े में कितना नुकसान हुआ, तुम लोग अच्छी तरह जानते हो. नेमीचंद ने चालाकी की है लेकिन इस में सारा दोष तुम लोगों का है.’’ ‘‘गलती हो गई दादा, रैस्टोरैंट हमारे भविष्य में न था, सो चला गया,’’ प्रवीण पीडि़त स्वर में बोला और दोनों हथेलियों से चेहरा ढक लिया. ‘‘मूर्खता करते हो, दोष भविष्य और समय पर डालते हो,’’ गोकुल प्रसाद ने निराश हो कर लंबी सांस ली, ‘‘सारे शहर में कितनी साख थी रैस्टोरैंट की. खूनपसीने से सींचा था उसे तुम्हारे बापदादा ने.’’ नवीन बेचैन हो गया,

‘‘छोडि़ए, अब जी जलता है मेरा.’’ ‘‘रुपया है तुम्हारे पास. अब सम झदारी दिखाओ. दोनों भाई अलगअलग रैस्टोरैंट खोलो. इस की सम झ तुम लोग रखते हो क्योंकि यह धंधा तुम्हारा पुश्तैनी है.’’ प्रवीण को बात जम गई, ‘‘सब ठीक है. पर एक ही इलाके में पहले से ही एक रैस्टोरैंट है?’’ ‘‘खानदान का नाम भी कुछ माने रखता है,’’ गोकुल प्रसाद ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिता का दोस्त हूं, गलत नहीं कहूंगा. खूब चलेगा.’’ ‘‘मैं आप की बात मान लेता हूं,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘इस से भी पूछ लो. इसे रैस्टोरैंट खोलना है या नहीं.’’ नवीन भड़क उठा, ‘‘क्या सम झते हो, तुम खोलो और मैं हाथ पे हाथ धरे बैठा रहूं? ठीक तुम्हारे ही सामने खोलूंगा, देखना.’’ ‘‘क्या हो गया दोनों को? भाई हो कि क्या हो? इतना तो दुश्मन भी नहीं लड़ते,’’ गोकुल प्रसाद झल्लाए और उठने लगे. ‘‘रुकिए दादा. भोजन कर के जाना,’’ प्रवीण ने आग्रह किया. ‘‘आज नहीं. जब दोनों के मन मिलेंगे तब भोजन जरूर करूंगा.’’ गोकुल प्रसाद ने अपनी छड़ी उठाई और अपने घर के लिए चल दिए. दोनों को आइडिया सही लगा.

घर में पत्नियों की राय ली गई और जल्दी ही किराए की जगह पर रैस्टोरैंट खोल दिए. संयोग ऐसा बना कि दोनों को रैस्टोरैंट के लिए जगह आमनेसामने ही मिली. दोनों रैस्टोरैंट चल पड़े. कमाई पहले जैसी तो नहीं थी, तो कम भी न थी. रुपया आने लगा. लेकिन कटुता नहीं गई. दोनों में प्रतिस्पर्धा भी जम कर होने लगी. तू डालडाल, मैं पातपात वाली बात हो गई. दोनों भाइयों में बड़े का रैस्टोरैंट ज्यादा ग्राहक खींच रहा था. इस बात को ले कर नवीन को खासी परेशानी थी. आखिरकार उस ने एक बोर्ड टांग दिया- ‘लंच और डिनर- 100 रुपए मात्र.’ प्रवीण ने भी देखादेखी रेट गिरा दिया, ‘लंच और डिनर- 80 रुपए मात्र.’ ग्राहक को यही सब चाहिए. शहर के लोग लड़ाई का मजा ले रहे थे. मालिकों में तकरार बनी रहे और अपना फायदा होता रहे. नवीन भी चुप नहीं बैठा रहा. कुछ महीनों बाद ही उस ने फिर रेट 75 रुपए कर दिया.

मजबूरन प्रवीण को 60 रुपए पर आना पड़ा. इस तनातनी में 6-7 महीने गुजर गए और आखिर में दोनों रैस्टोरैंट के शटर गिए गए. प्रवीण से सदमा बरदाश्त न हो पाया, उसे एक दिन पक्षाघात हो गया. पासपड़ोसी समय रहते उसे अस्पताल ले गए. आईसीयू में एक सप्ताह बीता, फिर हालत में सुधार दिखा. मोटी रकम इलाज में खर्च हो गई. घर आया, शरीर में जान आने लगी लेकिन आर्थिक तंगी ने उसे मानसिक रूप से बीमार कर दिया. घर की माली हालत अब पहले जैसी न थी. पहले ही झगड़े में काफी नुकसान हो गया था. नवीन की एक बेटी थी मनु. जब भी उसे अकेला पाती, मिलने चली आती. कई दिनों के बाद बरसात आज थम गई थी. आसमान साफ था. प्रवीण स्टिक के सहारे लौन में टहल रहा था. मनु ने उसे देखा तो गेट खोल कर भीतर आ गई. उस ने स्नेह से मनु को देखा और बड़ी उम्मीद से कहा, ‘‘बेटी, पापा से कहना कि ताऊजी एक जरूरी काम से मिलना चाहते हैं.’’ मनु ने हां में सिर हिलाया और पैर छू कर गेट पर खड़ी स्कूटी को फुरती से स्टार्ट किया और कालेज के लिए निकल गई. धूप ढलने लगी, तब मनु कालेज से लौटी. नवीन तब ड्राइंगरूम में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था. मनु ने किताबें रैक पर रखीं और पापा के सामने वाले सोफे पर जा बैठी. ‘‘पापा, आप कल दिनभर कहां थे?’’ उस ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ ‘‘ऐसे ही पूछ रही हूं,’’ मनु ने सोफे पर बैठे हुए आगे की ओर शरीर झुकाते हुए कहा. ‘‘महल्ले में एक बुजुर्ग की डैथ हो गई थी, इसलिए जाना पड़ा,’’ नवीन ने बताया. ‘‘आप को वहां जाने की जरूरत क्या थी? उन के पासपड़ोसी, रिलेटिव्स तो रहे ही होंगे,’’ मनु ने प्रश्न किया. ‘‘कैसी बेवकूफों वाली बातें कर रही हो. समाज में जीना है तो सब के सुखदुख में शामिल होना चाहिए,’’ नवीन ने सम झाया. ‘‘दैट्स करैक्ट. यही सुनना चाहती थी मैं. जब ताऊजी बीमार पड़े तब यह बात आप की सम झ में क्यों नहीं आई?’’ नवीन को काटो तो खून नहीं. भौंचक्का सा मनु को देखता ही रह गया वह. ‘‘आप और मम्मी ताऊजी को देखने नहीं गए. मैं गई थी सीधे कालेज से, लगातार 3 दिन. मनु कहती रही, ‘‘रौकी भैया भी अस्पताल में थे. मैं ने उन्हें घर चलने को कहा तो बोले, ‘यहां से सीधे होस्टल जाऊंगा.

घर अब रहने लायक नहीं रहा.’’’ ‘‘यह सब मु झे क्यों सुना रही हो?’’ नवीन ने प्रश्न किया. ‘‘इसलिए कि ताऊजी कोई पराए नहीं हैं. आज उन्हें आप की जरूरत है. मिलना चाहते हैं आप से.’’ नवीन ठगा सा रह गया. इस उम्र तक वह जो सम झ न सका, वह छोटी सी उम्र में उसे सिखा रही है. मनु उठी और पापा के गले से लग कर बोली, ‘‘समाज के लिए नहीं, रिश्ते निभाने के लिए ताऊजी से मिलिए. आज और अभी.’’ उधर प्रवीण, नवीन से मिलने को बेचैन था. वह बारबार कलाई घड़ी की सुइयों पर नजरें टिका देता. कभी बरामदे से नीचे मेन गेट की ओर देखने लगता. अंधेरा बढ़ने लगा. रोशनी में कीटपतंगे सिर के ऊपर मंडराने लगे. थक कर वह उठने को हुआ, तभी नवीन आते हुए दिखा. उस ने इशारे से सामने की चेयर पर बैठने को कहा. नवीन कुछ देर असहज खड़ा रहा. मस्तिष्क में मनु की बातें रहरह कर दिमाग में आ रही थीं. वह आगे बढ़ा और चेयर को खींच कर अनमना सा बैठ गया. दोनों बहुत देर तक खामोश रहे.

आखिरकार नवीन ने औपचारिकतावश पूछा, ‘‘तबीयत ठीक है अब?’’ उस ने ‘हां’ कहते हुए असल मुद्दे की बात शुरू कर दी, ‘‘मु झे पैसों की सख्त जरूरत है. मैं ने सोचा है कि मेरे हिस्से का मकान कोई और खरीदे, उस से अच्छा, तु झे बेच दूं. जितना भी देगा, मैं ले लूंगा.’’ नवीन खामोश बैठा रहा. ‘‘सुन रहा है मैं क्या कह रहा हूं?’’ उस ने जोर दे कर कहा. ‘‘सुन रहा हूं, सोच भी रहा हूं. किस बात का झगड़ा था जो हम पर ऐसी नौबत आई. हमारा खून तो एक था, फिर क्यों दूसरों के बहकावे में आए.’’ ‘‘अब पछता कर क्या फायदा? खेत तो चिडि़या कब की चुग गई. मैं ऐसी हालत में न जाने कब तक जिऊंगा. तु झ से दुश्मनी ले कर जाना नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने उदास हो कर बरामदे की छत को ताकते हुए कहा. ‘‘तुम तो बड़े थे, बड़े का फर्ज नहीं निभा पाए. मैं तो छोटा था,’’ नवीन ने उखड़े स्वर में कहा, फिर चश्मा उतार कर रूमाल से नम आंखें साफ करने लगा. ‘‘बड़ा हूं, तो क्या हुआ. छोटे का कोई फर्ज नहीं बनता? खैर छोड़, जो हुआ सो हुआ. अब बता, मेरा हिस्सा खरीदेगा?’’ ‘‘नहीं,’’ नवीन ने सपाट सा जवाब दिया.

‘‘क्यों, क्या हुआ? रैस्टोरैंट बेच कर हम से गलती हो चुकी है. अब मेरी मजबूरी सम झ. भले ही रुपए किस्तों में देना. मैं अब किसी और को बचाखुचा जमीर बेचना नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने फिर दुखी हो कर वजह बताई, ‘‘रौकी की इंजीनियरिंग पूरी हो जाए. यह मेरी अंतिम ख्वाहिश है. शरीर ने साथ दिया तो कहीं किराए पर घर ले कर छोटामोटा धंधा शुरू कर लूंगा.’’ ‘‘हम ने आपस में जंग लड़ी. तुम भी हारे, मैं भी हारा. नुकसान दोनों का हुआ, तो भरपाई भी दोनों को ही करनी है.’’ ‘‘तेरी मंशा क्या है, मैं नहीं जानता. मु झे इतना पता है कि मु झ में अब लड़ने की ताकत नहीं है और लड़ना भी नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने टूटे स्वर में कहा. ‘‘मैं लड़ने की नहीं, जोड़ने की बात कह रहा हूं,’’ नवीन ने कुछ देर सोचते हुए जोर दे कर अपनी बात रखी, ‘‘हम लोग मिल कर फिर से रैस्टोरैंट खोलेंगे. अब हम बेचेंगे नहीं, खरीदेंगे.’’ नवीन उठते हुए बोला, ‘‘आज मनु मेरी आंखें न खोलती तो पुरखों की एक और निशानी हाथ से निकल जाती.

’’ प्रवीण आश्चर्य से नवीन को देखता रह गया. उस की आंखें एकाएक बरसने लगीं. गिलेशिकवे खरपतवार की तरह दूर बहते चले गए. ‘‘मकान बेचने की कोई जरूरत नहीं है. सब ठीक हो जाएगा. बिजनैस के लायक पैसा है मेरे पास,’’ जातेजाते नवीन कहता गया. इस बात को लगभग 4 मास हो गए. रैस्टोरैंट के शुभारंभ की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इश्तिहार बांटे जा चुके थे. दशहरा का दिन था. रैस्टोरैंट रंगीन फूलों से बेहद करीने से सजा था. शहर के व्यस्ततम इलाके में इस से व्यवस्थित और आकर्षक रैस्टोरैंट दूसरा न था. परिचित लोग दोनों भाइयों को बधाई दे रहे थे. घर की बहुएं वयोवृद्ध गोकुल प्रसाद से उद्घाटन की रस्म निभाने के लिए निवेदन कर रही थीं. गोकुल प्रसाद कोई सगेसंबंधी न थे. पारिवारिक मित्र थे. एक मित्र के नाते उन के स्नेह और समर्पण पर सभी गौरवान्वित हो रहे थे. मनु सितारों जड़े आसमानी लहंगे में सजीधजी आगंतुकों का स्वागत कर रही थी. रौकी, प्रवीण और नवीन के बीच खड़ा तसवीरें खिंचवा रहा था. सड़क पर गुजरते हुए लोग रैस्टोरैंट के बाहर चमचमाते सुनहरे बोर्ड की ओर मुड़मुड़ कर देख रहे थे, जिस पर लिखा था- ‘रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा ब्रदरहुड.’’

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