Entertainment : गेम चेंजरबौलीवुड से ले कर साउथ सिनेमा में भ्रष्टाचार का फिल्मांकन एक बड़ा विषय रहा है. ढेरों फिल्में इसी विषय के इर्दगिर्द बुनी गईं. अपने जीवन से निराश दर्शकों को यह विषय अपील भी करता है क्योंकि उन्हें लगता है उन के जीवन में व्याप्त तमाम कठिनाइयों की जड़ ही राजनीतिक सामाजिक भ्रष्टाचार है. इसे ले कर कई फिल्में हिट हुईं, कई फ्लौप भी. लेकिन याद करने लायक जो फिल्में थीं उन में से कुछ एस शंकर निर्देशित थीं. कहा जा सकता है एस शंकर का यह जौनर ही है और फिल्मगेम चेंजरभी अब उस का हिस्सा बन चुकी है.


फिल्म के लीड हीरो दक्षिण भारतीय कलाकार रामचरण को फिल्मआरआरआरकी रिलीज के बाद हिंदी बैल्ट के दर्शकों ने उसे सिरमाथे पर बैठा लिया था. ‘आरआरआरमें रामचरण को बैस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया था. ‘गेम चेंजरभी तेलुगू फिल्म से हिंदी में डब की गई है. 500 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह पौलिटिकल थ्रिलर फिल्म गुटखा माफिया को तबाह करने वाले एक आईएएस अफसर को केंद्र में रख कर बनी है. फिल्म में रामचरण ने पिता और पुत्र का डबल रोल किया है.


इस फिल्म में पुरानी कहानी को नए अंदाज में परोसा गया है. इस के निर्देशक एस शंकर अपनी फिल्मों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हुए उस पर चोट करते हैं. उस ने 2 दशक पहलेनायकऔरइंडियनजैसी फिल्में बनाईं जिन्हें दर्शकों ने पसंद किया मगर उस के द्वारा निर्देशित फिल्मइंडियन 2’ को दर्शकों ने नकार दिया. अबगेम चेंजरके जरिए उस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोरचा सा खोल दिया है. उस की इस फिल्म नेनायकके हीरो रहे अनिल कपूर की याद ताजा कर दी है.


फिल्म की कहानी एक आईएएस अफसर राम नंदन (रामचरण) की है. वह बातबात पर गुस्सा करता है. उस की गर्लफ्रैंड दीपिका (कियारा आडवानी) उसे आईएएस अधिकारी बन कर जनता की भलाई करने के लिए प्रेरित करती है. जिला कलैक्टर बन कर राम जनता की भलाई के लिए कई काम करता है. उधर राज्य के मुख्यमंत्री ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. राम की टक्कर सीएम के बेटे मोपिदेवी (एस जे सूर्या) से होती है. मोपिदेवी खुद सीएम बनने की फिराक में है.


राम अपनी पोस्ंिटग के लिए आंध्र प्रदेश के शहर विशाखापट्टनम जाता है. रास्ते में गुटखा माफिया के गुंडे उस को रोक कर मारामारी करते हैं. रामनंदन का विरोध करने वालों में मुख्यमंत्री सत्यमूर्ति (श्रीकांत) का बेटा मोपिदेवी भी है. वह अस्पताल में अपने पिता मुख्यमंत्री को मार कर खुद मख्यमंत्री बन जाता है. हालांकि, मुख्यमंत्री ने पहले से ही रामनंदन को अपना वारिस घोषित कर रखा था.


मध्यांतर के बाद फ्लैशबैक में रामनंदन के पिता अप्पा अन्ना, जोकि हकलाते हैं, खदान मालिकों के खिलाफ आंदोलन करते हैं. राजनीति चमक जाती है तो अभ्युदय नाम की अपनी पार्टी बनाते हैं. पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के रास्ते में सत्यमूर्ति द्वारा, उद्योगपतियों के हाथों बिक कर, पार्टी को हथियाने अपर्णा की हत्या करने तक की कहानी सामने आती है. फिर रामनंदन और मोपिदेवी द्वारा एकदूसरे को मात देने का खेल शुरू होता है. आखिरकार रामनंदन मुख्यमंत्री बन जाता है.


फिल्म में लौजिक की कमी है, जैसे एक ही दिन में भ्रष्ट अधिकारी को उस के पद से हटाने, पूरे शौपिंग मौल को जमींदोज करने से ले कर राशन की दुकानों के आसपास के भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया जाता है. यों भी एस शंकर की हर फिल्म में हीरो कभी भी किसी रौबिनहुड से कमतर नहीं रहा. अब वे राम चरण अभिनीत फिल्मगेम चेंजरमें भी राजनीतिक भ्रष्टाचार और मुख्यमंत्री की कुरसी को ले कर हो रही खींचतान के साथ नायक को रौबिनहुड की तरह पेश करने में पीछे नहीं रहे.


इंटरवल के बाद घटनाक्रम तेजी से बदलने शुरू होते हैं पर ज्यादातर दृश्य कपोलकल्पित हैं, जिन का वास्तविकता या लौजिक से कोई लेनादेना नहीं. कई बार ऐसा लगता है कि निर्देशक ने कुछ मुद्दों पर कुछ दृश्य फिल्मा लिए, फिर उन्हें एडिटिंग टेबल पर जुड़वा कर एक फिल्म की शक्ल दे डाली. बीचबीच में अनावश्यक रूप से गाने ठूंस दिए गए हैं जो कहानी को आगे बढ़ाने के बजाय व्यवधान पैदा करते हैं.


फिल्म की कहानी की शुरुआत कमजोर है. कहानी में कुछ भी नयापन नहीं है. ‘गेम चेंजरकी कहानी में संविधान वर्तमान में चर्चित चुनाव आयोग को भी पिरो दिया गया है. मध्यांतर से पहले कहानी बोर करती है. निर्देशक ने नायक को रौबिनहुड सरीखा दिखाया है. क्लाइमैक्स घटिया है. मतदान करने के महत्त्व पर भी रोशनी डाली गई है. गाने अनावश्यक हैं. रामनंदन और दीपिका की कहानी भी ठीक से डैवलप नहीं की गई. फिल्म देखते वक्त अन्ना हजारे के आंदोलन की याद ताजा हो आती है.


निर्देशक को यह पता होना चाहिए कि आईएएस अफसर की पहली पोस्टिंग सीधे जिला कलैक्टर की नहीं होती. वहीं आईएएस को उस के गृहनगर में कलैक्टर नहीं बनाया जाता. इस पर शोध किया जाना चाहिए था. फिल्म बेवजह लंबी है, आधा घंटा छोटी की जा सकती थी. राम चरण के चेहरे के भाव एकसमान रहते हैं. कियारा आडवानी सिर्फ सुंदर नजर आई है. एस जे सूर्या का काम अच्छा है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.


फतेह


सोनू सूद निर्देशित फिल्मफतेहसाइबर क्राइम पर बनी है. देशभर में अपने पैर पसार चुके कर्ज बांटने वाली ऐप्स के जाल में फंस कर जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो चुकी हैं. सरकार और रिजर्व बैंक औफ इंडिया समयसमय पर लोगों को इस धोखाधड़ी से बचने के लिए चेताते हैं, मगर फिर भी ये ऐप्स नएनए तरीकों से लोगों की मेहनत की कमाई को उड़ा ले जाती हैं.


हालांकि देश के अधिकांश लोग साइबर क्राइम के नएनए तरीकों से परिचित हो चुके हैं मगर एक्टिंग की दुनिया से आए कलाकार सोनू सूद ने इस फिल्म की कहानी खुद लिखी है और खुद ही फिल्म को निर्देशित भी किया है. सोनू सूद ऐक्टिंग काफी अरसे से कर रहा है, मगर अभी तक उसे पूरी तरह सफलता नहीं मिली है.


सोनू सूद ने अपने कैरियर की शुरुआत 1999 में तमिल फिल्म से की थी. 2002 से उस ने हिंदी फिल्में करनी शुरू कीं. 29 हिंदी फिल्मों में अभिनय करने के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली, उस की पहचान नहीं बन पाई. आजकल वह दक्षिण की तमिल, तेलुगू, कन्नड़ फिल्मों में होस्ंिटग कर रहा है. इसलिए अधिकांश दर्शक उसे पहचानते ही नहीं हैं.


सोनू सूद ने कोविड के दौरान लोगों की खूब मदद की, उन्हें खाना खिलाया और अपनी इमेज को चमकाने की कोशिश की. हालांकि कई लोगों की आलोचना भी उसे सहनी पड़ी परंतु वह पीछे नहीं हटा. इस चक्कर में वह फिल्मों से दूर होता चला गया. 2022 मेंसम्राट पृथ्वीराजमें उस ने अभिनय किया, मगर वह असफल ही साबित हुई. अब 3 साल बाद उस ने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा है और इस फिल्म को निर्देशित ही नहीं किया बल्कि इस की कहानी भी लिखी है. ‘फतेहफिल्म हौलीवुड और बौलीवुड फिल्मों से जोड़तोड़ कर बनाई गई है.


इस से पहलेफतेहशीर्षक से 1999 मेंफतेहफिल्म बनी थी, जिस में उस वक्त के जानेमाने कलाकार संजय दत्त, सुरेश ओबराय, परेश रावल और सोनम जैसे कलाकार थे. वह फिल्म हथियार और ड्रग माफिया के खिलाफ एक सैन्य अभियान जैसे विषय पर थी. इस नईफतेहमें सोनू सूद ने लीड रोल किया है.


फिल्म की कहानी कहने को तो ऐक्शन थ्रिलर है मगर इस में कई फिल्मों की नकल की गई है. फिल्म मेंकिलऔरएनिमलफिल्मों जैसा खूनखराबा है. ऐक्शन सीक्वैंस विदेशी फिल्मजौन विकस्टाइल में है. ज्यादा ऐक्शन दर्शकों के लिए सिरदर्द पैदा करता है. इस फिल्म के साथ यही हुआ है.


हिंसात्मक फिल्म होने की वजह से इस फिल्म कोसर्टिफिकेट तो दिया गया है परंतु ऐसा कुछ आदेश जारी नहीं किया गया कि बच्चे इस फिल्म से दूर रहें. आप को ज्ञात होगा, आस्ट्रेलिया की सरकार ने 16 साल से कम उम्र वाले बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पाबंदी लगा रखी है.


कहानी एक शांत और सुकूनभरी जिंदगी जी रहे रिटायर स्पैशल टास्कफोर्स के जांबाज अफसर फतेह सिंह (सोनू सूद) की है. पंजाब के मोगा में रहने वाले फतेह सिंह अपने गांव में एक डेयरी चलाता है. सादा जीवन जीने वाला फतेह सिंह गांव वालों की हर तरह से मदद करता है. मगर एक दिन मासूम निमरत (शिव ज्योति राजपूत) साइबर क्राइम के जाल में फंस जाती है तो वह शातिर मुजरिमों का परदाफाश करने को मजबूर हो जाता है. हाथों में बंदूक थामे वह दुश्मनों को ललकारता है. इस खूनी जंग में उस का साथ हैकिंग एक्सपर्ट खुशी (जैकलीन फर्नांडीज) देती है.
फिल्म का पहला सीन ही ऐक्शन के मिजाज को सैट कर देता है मगर फिल्म का फर्स्टहाफ धीमा है. हां, सैकंडहाफ जरूर कसा हुआ है.


फिल्म में बताया गया है कि कैसे मोबाइल फोन के लूपहोल्स के चलते भोलेभाले लोगों को लालच के जाल में फंसाया जाता है. निर्देशक ने विषय तो अच्छा लिया है, मगर पटकथा को वह सशक्त नहीं बना पाया है. फिल्म के ऐक्शन सीन काफी अच्छे हैं, संवाद चुटीले हैं. बौस्को मार्टिंस और आदिल शेख की कोरियोग्राफी अच्छी है. अरिजीत सिंह और बीप्राक के गाने ठीकठाक हैं. वीएफएक्स खराब है.


फतेह की भूमिका में 51 वर्षीय सोनू सूद का काम बढि़या है. ऐक्शन दृश्यों में वह बाजी मार ले गया है. जैकलीन फर्नांडीज बिना मेकअप के है, उस ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है. निमरत की भूमिका में शिवज्योति राजपूत ने छाप छोड़ी है. नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार की भूमिका बड़ी होनी चाहिए थी. ऐक्शन फिल्मों के शौकीन हैं तो इस फिल्म को देख सकते हैं. हां, अगर आप का दिल कमजोर है, खूनखराबा नहीं देखा जाता तो इस से दूरी बनाए रखें. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.

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