Women : बुलडोजर न्याय जैसे मनमाने फैसलों की मार अकसर महिलाओं पर ही पड़ती है. इन सब के पीछे पुरुषवादी सोच काम करती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है लेकिन बुलडोजर न्याय की मानसिकता खत्म नहीं हुई है.

दिल दहलाने वाली घटनाएं 


14 फरवरी, 2023, यूपी के हापुड़ की एक दिल दहलाने वाली घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर दिखा जिस में एक पति ने अपनी पत्नी को मकान का गेट बंद कर उसे पहले निर्वस्त्र किया, फिर बैल्ट और डंडों से पीटा.


31 जुलाई,  2022 की खबर है. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में पुलिस एक चोर की तलाश में चोर के घर पहुंची. पुलिस को जब वह चोर वहां नहीं मिला तो दरोगा ने उस की पत्नी को मारापीटा. महिला को 3 दिनों तक हिरासत में रख कर थर्ड डिग्री टौर्चर किया. इस दौरान महिला के गुप्तांगों में भी चोटें आईं. महिला की इतनी बेदर्दी से पिटाई की गई कि वह चलनेफिरने की हालत में भी नहीं थी.


4 जुलाई, 2018 को पत्रिका में छपी एक खबर के अनुसार, अंबेडकर नगर पुलिस पर बर्बरतापूर्वक घर में घुस कर महिलाओं के साथसाथ राहगीरों और विकलांगों की निर्ममता से पिटाई
का आरोप लगाया गया.


इस तरह की अनगिनत खबरें पढ़नेसुनने को मिल जाएंगी, जिन में बुलडोजर न्याय को चरितार्थ करती हुई घटनाएं घटित होती हैं. पुलिस या कोई आम नागरिक कानून के शासन को त्याग कर किसी की सुरक्षा, जीवन और स्वतंत्रता को अपनी बर्बरता के पहियों के नीचे रौंदता चला जाता है. इस बर्बरता का शिकार ज्यादातर महिलाएं होती हैं. मणिपुर में चल रही हिंसा इस का जीताजागता उदाहरण है. 4 मई की वह घटना जिस ने मानवता को शर्मसार किया था कोई कैसे भूल सकता है जब भीड़ ने महिलाओं की नग्न परेड कराई. उन महिलाओं का गैंगरेप हुआ था. नग्न अवस्था में महिलाओं को घुमाए जाने का वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में लोग बदसुलूकी करते नजर रहे थे और दोनों महिलाएं उन से रहम के लिए गिड़गिड़ा रही थीं.


करीब 800 से हजार लोगों ने आधुनिक हथियारों एसएलआर, इंसास और 303 राइफल से लैस हो कर गांव में धावा बोल दिया. हथियारबंद लोगों ने गांव में लूटपाट की और घर में आग लगा दी,’ वहां भी महिलाओं को ही निशाना बनाया गया. 7 नवंबर, 2024 को मणिपुर के जिरीबाम जिले में फिर से एक दर्दनाक घटना की खबर आई. 3 बच्चों की मां को पहले बर्बरतापूर्वक टौर्चर किया गया, फिर जिंदा जला कर उस की हत्या कर दी गई. उस महिला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट में 8 घावों का जिक्र किया गया है, जिन में टूटी हुई हड्डियां और जली हुई अलग हुई खोपड़ी शामिल हैं. महिला का शरीर 99 प्रतिशत जल चुका था. रिपोर्ट में कहा गया है कि शरीर के कई हिस्से गायब पाए गए हैं. दाहिनी जांघ के पीछे गहरा घाव देखा गया है.
महिलाओं पर फैसलों की मार बुलडोजर न्यायकानून के शासन को त्याग देना, ऐसा समाज जहां व्यक्तियों की सुरक्षा, जीवन और स्वतंत्रता अधिकारियों या यों कहें किसी व्यक्ति विशेष के मनमाने फैसले पर निर्भर करती है. इस तरह का उदाहरण खाप पंचायत में भी अकसर देखने को मिलता है. पंचायत के फैसले अकसर महिला विरोधी होते हैं. पितृसत्तात्मक सोच वाले पंचायतों के मनमाने फैसलों की मार अकसर महिलाओं पर ही पड़ती है.


साल 2015 में बागपत में एक खाप पंचायत में 2 बहनों के साथ रेप करने और उन्हें निर्वस्त्र कर के गांव में घुमाने का आदेश जारी किया गया, जबकि उस के भाई के ऊपर लगे अपराध की सजा सुनाई जानी थी. उस के भाई पर यह आरोप था कि वह एक ऊंची जाति की महिला के साथ भागा था.
जुलाई 2010 की एक अन्य घटना, हरियाणा की सर्व खाप जाट पंचायत ने फरमान जारी किया कि लड़कियों की शादी के लिए उन के बालिग होने का इंतजार नहीं करना है. उन की शादी 15 साल में ही कर देनी है क्योंकि रेप की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है. कमाल है, खाप पंचायत का यह मनमाना फैसला कितना महिला विरोधी है. जुर्म पुरुष करें और सजा महिला को? खाप पंचायत के ये कुछ मनमाने महिला विरोधी फैसले थे जिन का जिक्र ऊपर किया गया.


एक नजरिए से देखा जाए तो बुलडोजर न्याय के पीछे एक ऐसी मानसिकता, एक ऐसी प्रवृत्ति कार्य करती है जो पुरुषवादी मानसिकता से संचालित होती है, जिस के पीछे पुरुषवादी सोच काम करती है. इस का एक उदाहरण हमें तथाकथित महाभारत और रामायण काल में अन्य कथाओं में भी देखने को मिल सकता है, जहां पुरुषों के अपराध के लिए महिलाओं को दंडित किया गया.
पांडवों और कौरवों के बीच के विवाद की सजा द्रौपदी के चीरहरण से. द्र्रौपदी को भरी सभा में बालों से खींच कर लाया गया. इंद्र के छल की सजा अहल्या को दी गई जबकि उस का कोई कुसूर था. ऊपर दी गई घटनाओं में यदि हम मणिपुर की बात करें तो यहां भी 2 समुदायों के बीच के विवाद में औरतों को ही निशाना बनाया गया. महिलाओं को निर्वस्त्र कर उन्हें घसीटा गया. नग्न अवस्था में उन से परेड कराई गई, उन के साथ बर्बरता की गई, क्या यह घटना हमें महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण प्रसंग की याद नहीं दिलाती? इंद्र के छल की सजा अहल्या को दिए जाने की कहानी, खाप पंचायत के मनमाने फैसले के समतुल्य नहीं लगती? जब भाई की गलती की सजा बहनों को सुनाई गई या फिर खाप पंचायत का यह फैसला कि लड़कियों की शादी 15 वर्ष में इसलिए कर दी जाए क्योंकि रेप की घटनाएं बढ़ रही हैं तो क्या रेप की घटनाओं में होने वाली वृद्धि के लिए लड़कियां जिम्मेदार हैं? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अहल्या के साथ हुए बलात्कार के लिए अहल्या जिम्मेदार थी.


पुलिस की बर्बरता


लखनऊ में पुलिस ने मोबाइल चोरी कुबूलवाने के लिए रोहित तिवारी नाम के शख्स को थर्ड डिग्री टौर्चर दिया, जिस से उस की तबीयत खराब हो गई. उस की तबीयत इतनी बिगड़ी कि वह उठ भी नहीं पा रहा. उस की पत्नी जो कि 8 महीने की गर्भवती है बमुश्किल उस की देखभाल कर रही है. रोज कमाने वाला कारीगर रोहित अब परिवार कैसे चलाएगा, एक महीने तक वह कार्य करने योग्य नहीं. ऐसे में पत्नी की दवा और खाने की दिक्कत उस के सामने गई है. पुलिस वाले की मानसिकता बुलडोजर न्याय की है. तभी वह बिना जुर्म साबित हुए उस ने थर्ड डिग्री का ऐसा टौर्चर किया कि उस की तबीयत इस हद तक खराब हो गई और साथसाथ उस की गर्भवती पत्नी के लिए भी मुसीबत तकलीफ पैदा कर दी. ऊपर जितनी भी घटनाओं की चर्चा हुई है वे सारी बुलडोजर न्याय जैसी ही हैं जिन में कानून के शासन को पूर्णतया त्याग दिया गया है, जहां किसी की सुरक्षा, जीवन और स्वतंत्रता किसी के मनमाने फैसले पर निर्भर है.


बीबीसी संवाददाता रेहान फजल के 28 मई, 2022 के एक लेख में, आंखफोड़वा कांड का उल्लेख है कि कैसे भागलपुर में पुलिस ने आंखों में तेजाब डाल कर 33 लोगों को अंधा किया था. यह पुलिस वालों की तुरंत न्याय करने की दिल दहलाने वाली कहानी है, जो 1980 में पहली बार भागलपुर में अंधे किए गए लोगों की खबर है कि कुछ पुलिस वालों ने तुरंत न्याय करने के नाम पर कैसे कानून अपने हाथ में ले लिए और 33 अंडरट्रायल लोगों की आंख फोड़ कर उन में तेजाब डाल दिया.


बाद में इस पर एक फिल्म भी बनी थीगंगाजलनाम से. यह भी बुलडोजर न्याय का ही उदाहरण है, क्योंकि यहां भी 33 अंडर ट्रायल लोगों की आंखें फोड़ कर जानेअनजाने 33 अंडर ट्रायल लोगों के साथसाथ उन के पूरे परिवार को दंडित किया गया. एक तरह से उन के साथसाथ उन के घर की महिलाएं और बच्चों को भी दंडित किया गया जो उन पर आश्रित थे जबकि न्याय का यह तकाजा है कि कोई व्यक्ति तब तक दोषी करार नहीं दिया जाता जब तक वह निर्दोष है. इन लोगों का भी दोष अभी सिद्ध नहीं हुआ था. ये अंडरट्रायल थे.


सजा बीवीबच्चों को क्यों


ठीक इसी प्रकार भारत की जेलों में कई ऐसे कैदी वर्षों से बंद पड़े हुए हैं जिन का अभी ट्रायल चल रहा है. इन का जुर्म अभी सिद्ध नहीं हुआ है, फिर भी ये जेल में बंद रह कर सजा काट रहे हैं और बाहर इन के बीवी बच्चे बिना जुर्म किए ही जुर्म की सजा काट रहे हैं. इन अंडरट्रायल कैदियों को वर्षों तक जेल में कैद रखा जाना एक तरह से उन के साथसाथ उन के परिवार, उन के बीवीबच्चों, घर की महिलाओं को भी सजा दिए जाने के ही बराबर है. इन के घरवालों को बिना किसी जुर्म के मानसिक, सामाजिक उत्पीड़न झेलने को मजबूर कर दिया जाना सुखद अनुभव नहीं हो सकता.
2021 में जारी डाटा के अनुसार, देश की कुल 1283 जेलों में लगभग 5,54,000 लोग बंद हैं. इन में 4,27,000 बंदी हैं जिन का अभी ट्रायल चल रहा है. बाकी सजायाफ्ता यानी कैदी हैं. वहीं एक अन्य खबर की मानें तो भारत की जेलों में सिर्फ 22 प्रतिशत कैदी ही ऐसे हैं जिन्हें किसी अपराध में दोषी करार दिया गया है. इस के अलावा 77 प्रतिशत ऐसे हैं जिन के केस अलगअलग अदालतों में चल रहे हैं और उन पर फैसला नहीं आया है. यानी, ये विचाराधीन कैदी हैं. भारत की जेलों में आधे से ज्यादा ऐसे कैदी हैं जिन का केस अभी अदालत में वर्षों से चल रहा है. 13 नवंबर, 2024 को बुलडोजर मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और पूरे प्रशासन को फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की कार्यवाही पर रोक लगा दी है. इसे अवैध घोषित कर दिया है. लेकिन बुलडोजर न्याय की मानसिकता खत्म नहीं हुई है. यह किसी किसी तरह समाज में व्याप्त है. आप इसे मणिपुर की घटना के तौर पर देख सकते हैं या खाप पंचायत में दिए जाने वाले महिला विरोधी फैसलों के तौर पर देख सकते हैं. हर जगह इन घटनाओं में एकसमान सी बात आप देखेंगे और वह है इस का महिला विरोधी होना. सो यह जरूरी है कि इस मानसिकता का और अधिक विस्तार नहीं होना चाहिए.

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