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पुलिस या अदालत में जब बयान देने जाएं!

वंदना राजकीय विद्यालय में अध्यापिका थी. जब उस के घर पर पुलिसकर्मी ने दस्तक दी तो वह चौंक गई. सहमते हुए उस ने कमरे की खिड़की से  झांक कर पूछा कि क्या चाहिए, तो जवाब मिला- ‘अदालत का समन है.’ पहले तो वरदीधारी रोबीला पुलिसकर्मी, फिर अदालत का समन उस के नाम? उस की सम झ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है.

बाहर जा कर मूंछों वाले पुलिसकर्मी से डरते हुए समन ले कर पढ़ा तो मालूम हुआ कि अदालत ने उसे अगले महीने की 20 तारीख को बयान देने के लिए तलब किया है. समन 2 प्रतियों में था. पुलिसकर्मी ने मूल समन पर वंदना से समन प्राप्ति के हस्ताक्षर करवा कर समन की कार्बन प्रति उसे सौंप दी.

वंदना ने स्कूल की पिं्रसिपल से पूछा कि उसे अब क्या करना होगा. परंतु पिं्रसिपल कोई मार्गदर्शन नहीं दे पाईं. फिर वह समन की प्रति ले कर परिचित वकील के घर गई तो उसे बताया गया कि 2 साल पहले स्कूल की परीक्षा के दौरान निरीक्षण दल ने एक छात्र को नकल करते हुए पकड़ा और पुलिस केस बना दिया था. उसी केस में उसे अदालत में बयान देने हेतु तलब किया गया है. वकील ने उसे यह भी बता दिया कि उसे अदालत में 10 बजे पहुंच कर सरकारी वकील से संपर्क करना चाहिए.

अगले महीने की 20 तारीख को अदालत पहुंच कर वंदना ने सरकारी वकील को समन दिखाया तो उस ने अपनी फाइल देख कर कहा कि आप को अदालत में बयान देना है कि नकल करने वाले विद्यार्थी की उत्तरपुस्तिका आप के सामने पुलिस ने जब्त की थी.

उस ने वैसा ही किया. जब अदालत के अर्दली ने उस का नाम पुकारा तो वह गवाहों के लिए बनाए गए कठघरे में जा कर खड़ी हो गई. जो बातें सरकारी वकील ने उसे सम झाईर् थीं उस ने वे सब बातें अदालत को बता दीं. जिन दस्तावेजों पर उस के दस्तखत थे, उन दस्तखतों की भी वंदना से पहचान कराई गई. फिर उस नकलची विद्यार्थी के वकील ने उस से जिरह करते हुए 2-3 सवाल पूछे. इस तरह वंदना की गवाही पूरी हुई. उस ने राहत की सांस ली.

जब वह अदालत से निकलने लगी तो उस के परिचित वकील मिल गए. उन के कहने पर उस ने अदालत से ड्यूटी प्रमाणपत्र भी हासिल कर लिया. अब उसे स्कूल से छुट्टी लेने की जरूरत नहीं है. उसे ‘ड्यूटी’ पर माना जाएगा.

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बयान न्याय की बुनियाद

यह जगजाहिर है कि अदालत के फैसले गवाहों के बयानों और सुबूतों के आधार पर होते हैं. गवाहों को अदालत सम्मान की दृष्टि से देखती है. गवाहों के बयान ही न्याय की बुनियाद होते हैं. यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी केस में गवाही देने अदालत जाता है तो अदालत तक आनेजाने तथा खानेपीने का खर्च भी सरकार द्वारा वहन किया जाता है. इस की वजह यह है कि वह न्याय करने में अदालत का सहयोग करता है.

प्रत्येक आपराधिक मामला राज्य के खिलाफ माना जाता है. सो, पीडि़त पक्ष की ओर से सरकारी वकील द्वारा पैरवी की जाती है. सरकारी केस में गवाहों के बयान करवाना सरकारी वकील की जिम्मेदारी है. सो, जब कभी किसी व्यक्ति के पास गवाही के लिए समन आए तो उसे निश्चित तारीख को अदालत जा कर सरकारी वकील से संपर्क करना चाहिए. घटना या दुर्घटना के कई दिनों बाद अदालत में पीडि़त व्यक्ति को बयान देने के लिए बुलाया जाता है.

इतने लंबे अंतराल की वजह से घटना की कई बातें व्यक्ति के दिमाग से निकल जाती हैं. याददाश्त को ताजा करने के लिए सरकारी वकील की केस फाइल देख कर भूली बातें याद आ जाती हैं. अदालत में वारदात को तफसील से बयान करना पीडि़त पक्ष के केस को मजबूत बनाता है.

जिस व्यक्ति को अदालत गवाही के लिए समन भेजे, उस व्यक्ति पर कानूनी बाध्यता है कि वह तारीख पेशी पर अदालत पहुंचे. फरीद समन मिलने के बाद भी तारीख पेशी पर नहीं पहुंच पाया. अदालत ने उस के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर दिया. एक पुलिसवाला, फरीद के औफिस में जमानती वारंट ले कर पहुंचा तो फरीद को एक साथी से यह लिखवा कर देना पड़ा कि यदि फरीद गवाही देने तारीख पेशी पर हाजिर होने से चूक गया तो वह एक हजार रुपए अदालत में जमा करा देगा. इस प्रकार फरीद के साथी की जमानत पर उसे पाबंद किया गया. वह तो अच्छा रहा कि फरीद दूसरी तारीख पेशी पर अदालत पहुंच कर गवाही दे आया, वरना उस की जमानत की रकम जब्त हो जाती और उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया जाता.

जमीनजायदाद के मामले निजी प्रकृति के होते हैं. इसलिए पक्षकारों को अपनी पैरवी करने हेतु वकील की नियुक्ति भी स्वयं करनी पड़ती है. सिविल प्रक्रिया संहिता में हुए संशोधन के बाद गवाहों को अपने बयान शपथपत्र पर लिख कर अदालत में पेश करने होते हैं. विरोधी पक्ष का वकील इसी शपथपत्र में लिखे बयानों के आधार पर ही अपनी जिरह में सवाल पूछता है, जिन का जवाब गवाह को देना होता है. सिविल मामलों में गवाही देने वाले गवाह को गवाही से पहले अपने शपथपत्र को अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए ताकि जिरह के सवालों का वह माकूल जवाब दे सके.

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दस्तावेज की अहमियत

शिवचरन एक बैंक में मैनेजर थे. उन के बैंक ने एक?ऋणी के खिलाफ ऋण वसूली का मुकदमा कर रखा था. वे गवाही देने अदालत पहुंचे. जब उन के बयान शुरू हुए तो मालूम हुआ कि ऋण का मूल एग्रीमैंट तो वह साथ ले कर ही नहीं आए. अदालत में बयानों के समय मूल दस्तावेज पर मार्क लगवाना अनिवार्य है. बिना मूल दस्तावेज के शिवचरन के बयान पूरे नहीं हो पाए. अदालत ने अगली तारीख पेशी पर ऋण के सभी दस्तावेज ले कर आने की हिदायत दी.

अगली तारीख पेशियों पर बैंक का औडिट होने के कारण शिवचरन अदालत नहीं आ सके. इस तरह कई मौके देने के बाद अदालत ने बैंक की गवाही का अवसर समाप्त करते हुए बैंक का दावा खारिज कर दिया. बैंक अब ऋण की रकम वसूल नहीं कर सकेगा. यदि उस दिन शिवचरन?ऋण के मूल दस्तावेज ले कर अदालत चले जाते तो उन के बयान हो जाते और दावे का फैसला बैंक के पक्ष में होता.

जमीनजायदाद के मुकदमों में दावे के साथ ही दस्तावेजों की प्रामाणिक प्रतिलिपियां पेश करनी होती हैं. गवाही के समय उन दस्तावेजों पर अदालत का मार्क डाला जाता है. मार्क डालने के लिए मूल दस्तावेज का पेश किया जाना अनिवार्य है. यदि मूल दस्तावेज न होगा तो अदालत मार्क नहीं डालेगी. जब किसी दस्तावेज पर मार्क नहीं डाला जाता तो उस दस्तावेज को साबित नहीं माना जा सकता. दस्तावेज के साबित न होने पर खिलाफ फैसला हो जाता है. सो, यह जरूरी है कि मुकदमे में कामयाबी के लिए महत्त्वपूर्ण मूल दस्तावेज गवाही के समय अदालत ले जाना चाहिए.

व्यवहार में यह भी देखने में आया है कि मुकदमे को संगीन रूप देने के मकसद से बयानों में ऐसी बातें लिखा दी जाती हैं जो गवाह के पुलिस को दिए बयानों में लिखी हुई नहीं होती हैं. पुलिस बयान तफतीश के दौरान लिखे जाते हैं. लेकिन इस पर बयानकर्ता के हस्ताक्षर नहीं होते हैं. जब कोई गवाह ऐसी बात अदालत के बयानों में बताता है जो उस के पुलिस बयानों में न हो या फिर ऐसी बात कहता है जो उस के पुलिस बयानों को गलत साबित करती है, तब अदालत के सामने यह सवाल उठता है कि वह गवाह के पुलिस बयानों को सही माने या अदालत के बयानों को.

अदालतों के विभिन्न फैसलों में कहा गया है कि पुलिस बयानों और अदालती बयानों में यदि गंभीर विरोधाभास हो तो मामले की सत्यता और विश्वसनीयता दोनों ही संदेह के घेरे में आ जाती है. सो, अदालत में बयान देते समय पुलिस को दिए गए बयानों को ध्यान में रखना अच्छा माना जाता है.   द्य

गवाहों के बयान ही न्याय की बुनियाद होते हैं क्योंकि अदालत के फैसले गवाहों के बयानों और सुबूतों के आधार पर होते हैं. सो, पुलिस थाने या अदालत में जब बयान देने जाएं तो कुछ बातें ध्यान में रखें.

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 कानूनी प्रावधान

पुलिस के बुलाने पर संबंधित अधिकारी को घटना की विस्तृत जानकारी देनी चाहिए.

अदालत के समन पर नियत तिथि और समय पर न पहुंचना दंडनीय अपराध है.

अदालत में  झूठी गवाही देने पर सजा हो सकती है.

सरकारी गवाह को अदालत द्वारा ड्यूटी प्रमाणपत्र और परिवहन का खर्चा दिया जाता है.

घटना की सत्यता का वर्णन करने पर ही न्याय संभव है.

यदि आप के पास मुकदमे से संबंधित दस्तावेज है, तो उसे बयान देते समय अदालत में पेश करना आवश्यक है.

CHRISTMAS 2019 : ऐसे पाएं दमकती त्वचा

इस क्रिसमस अगर आप भी खूबसूरत दिखने के साथ दमकती त्वचा पाना चाहती हैं तो कपड़ो और ज्‍वेलरी के साथ अपनी त्‍वचा पर खास ध्यान दें. अब इसका मतलब ये नहीं कि अपने चेहरे पर खूब सारा मेकअप लगा लें, क्योंकि त्‍वचा पर चमक मेकअप से नहीं बल्कि अंदर से आना चाहिये. अंदर से चमक लाने के लिये आपको कुछ टिप्‍स का प्रयोग करना चाहिये जिससे क्रिसमस की रात हर कोई केवल आपको ही देखता रहे.

आजमाइये यह टिप्‍स

इन दिनों आप अपने चेहरे पर फ्रूट फेस पैक भी लगा सकती हैं. सेब और पपीते को एक साथ पीस लीजिये और उसमें एक दो पिस केला भी मिला लीजिये. इस मिश्रण में नींबू का रस और दही भी मिलाया जा सकता है. इसे अपने चेहरे पर लगाइये और आधे घंटे छोड़ कर पानी से धो लीजिये. इससे स्‍किन पर ग्‍लो आएगा और टैनिंग भी हटेगी.

अगर आपकी स्किन औयली या ड्राई है तो आप फ्रूट फेस पैक के अलावा नीचे दिए गए फेस पैक का इस्तेमाल कर दमकती त्वचा पा सकती हैं.

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औयली स्‍किन के लिए फेस पैक

फेस पैक से आप चमकदार त्‍वचा पा सकती हैं. यदि आपकी स्‍किन औयली है तो उसपर टमाटर का मास्‍क लगाएं. एक पका हुआ टमाटर लें और पीस कर अपने चेहरे पर 15 से 20 मिनट के लिये लगाएं और जब वह सूख जाए तब हल्‍के गरम पानी से धो लें.

ड्राई स्‍किन के लिए फेस पैक

यदि स्‍किन रूखी है तो उस पर केले का मास्‍क लगाइये. केले को मैश कीजिये और उसमें कुछ बूंदे शहद की मिलाइये और चेहरे तथा गदर्न पर 15 मिनट के लिये लगाइये और सूखने के बाद हल्‍के गरम पानी से धो लीजिये.

– त्‍वचा को नम बनाने के लिये मौइस्‍चराइजर लगाइये. कोशिश कीजिये कि मौइस्‍चराइजर तेल वाला हो. इसी के साथ ज्‍यादा तला-भुना खाना और फास्टफूड खाने से परहेज करें नहीं तो पिंपल की समस्‍या आपको झेलनी पड़ सकती है.

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– क्रिसमस पार्टी में जाते समय वाटरप्रूफ मस्‍कारा, आईलाइनर और ट्रांसफर रेजिस्‍टेंट लिपस्‍टिक लगाइये जिससे मेकअप मुंह पर फैले नहीं.

– इन सभी ब्यूटी टिप्स के अलावा आप खूब सारा पानी पीजिये. आपको दिनभर में करीबन 8 से 10 गिलास पानी पीना ही चाहिये. इससे स्‍किन साफ होगी और चमकदार भी बनेगी.

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महाराष्ट्र में शिवसेना राज

शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी दोनों अलग दल थे पर  बयानबाजी के बावजूद उन दोनों को कभी अलग दल नहीं माना गया. पर फिर भी शिवसेना को कहीं कोई चीज लगातार खलती रही कि उस के साथ कुछ भेदभाव हो रहा है, उसे उस की मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पा रहा या नहीं दिया जा रहा.

यह कोई नई बात नहीं है. शिवाजी के मराठा सम्राट बनने के समय से ही सहायता और सलाह देने के नाम पर ब्राह्मणों ने मराठा राजाओं पर वैसा ही कब्जा कर लिया था जैसा कृष्ण ने पांडवों पर कर रखा था. महाभारत चाहे कथा ही हो पर इस की कहानी इतनी बार दोहराई जाती है कि भारतीय जनमानस में यह गहरे बैठ गई है कि राज तो सलाहकार चलाते हैं, राजा नहीं. दशरथ के राज में भी चलती ब्राह्मण सलाहकारों की थी. यह सच है कि जब भी हिंदू राजाओं ने राज किया है, कोईर् न कोई चाणक्य उन के पीछे लग गया.

यह परंपरा आज तक चल रही है. और शिवसेना इसी की शिकार हो रही थी. शिवसेना को चाहे पिछले कई चुनावों में सीटें कम मिलती रही हों पर यह पक्का है कि शिवसेना के बिना भारतीय जनता पार्टी का महाराष्ट्र में टिकना असंभव है.

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महाराष्ट्र में मेहनतकश पिछड़ों को बाल ठाकरे ने कांग्रेस और कम्युनिस्टों से अलग कर ‘जय मराठा’ के नाम पर अपने  झंडे तले ला खड़ा किया था. भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र में ही नहीं, हर जगह उस की जीत का कारण किसानों, कारीगरों, पूर्व व वर्तमान सैनिकों का समूह है जो भगवाई सीढ़ी चढ़ने को इतने उतावले हैं कि वे अपनी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा पूजापाठ के पाखंड में भी उडे़लते हैं और राजनीति में सवर्णों के चरणों में भी डाल लेते हैं. लेकिन इस बार शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे अड़ गए कि वे पालकी ढोएंगे ही नहीं, पालकी में बैठेंगे भी चाहे भाजपा की 105 सीटों के मुकाबले उन की 56 सीटें ही क्यों न हों.

यह जातीय दंश है कि ऊंचे देवेंद्र फडणवीस और उन के आकाओं का ढाई साल के लिए भी उद्धव ठाकरे को गद्दी देने का मन न हुआ. ‘साहूजी महाराज को कोल्हापुर भेज दो, पूना से तो पेशवा ही राज करेंगे’ वाली मनोवृत्ति से भाजपा निकल नहीं पाई. नतीजा यह हुआ कि महाराष्ट्र में अब एक ऐसी सरकार बनी है जिस में मराठों का वर्चस्व है जबकि ऊंचे गिनती में थोड़े से हैं.

शिवसेना को अब अपनी घोषित नीतियों में परिवर्तन करने होंगे. पर यह भी साफ है कि  शिवसेना के आम कार्यकर्ता या समर्थक ऊंचे, नीचे व विधर्मी लोगों के साथ ही घुलमिल कर रहते हैं. उन का जीवन आपस में एकदूसरे के साथ बीतता है, न कि राममंदिर या गणपति पूजन पर. वे कट्टरपंती अपने आकाओं को खुश करने के लिए दिखाते रहे हैं. उन्हें अपना चोला बदलने में कठिनाई नहीं होगी क्योंकि अब उन्हें सलाह लेने के लिए शिक्षित ऊंचों के पास नहीं जाना पड़ेगा. मराठों में आज पूरी तरह शिक्षित, विचारकों और प्रशासनिक अफसरों की कमी नहीं है कि वे लिखनेपढ़ने के लिए जातिविशेष पर निर्भर रहें, जैसे कभी उत्तर प्रदेश में मायावती या हरियाणा में देवीलाल निर्भर रहे थे.

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कोई राज्य मूर्तियों या पूजाओं से नहीं समृद्ध बनता. राज्य को तो मेहनतियों की जरूरत होती है. लेकिन जहां मेहनतकश किसान सब से ज्यादा आत्महत्याएं कर रहे हैं, वहां का प्रबंध कुछ खराब है, यह स्पष्ट है. शिवसेना का मुख्यमंत्री यदि कुछ साल रहा, तो महाराष्ट्र की तसवीर बदल सकती है और इस में योगदान नेताओं का इतना ही होगा कि वे अपना काम करें और आम जनता को अपना काम करने दें, जनता को धार्मिक या क्षेत्रीय विवादों में न उल झाएं.

सोशल मीडिया पर वायरल हुई ‘नागिन’ की अदाएं

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला मशहूर शो ‘नागिन’ 4  में ‘निया शर्मा’  इन दिनों काफी धमाल मचा रही हैं.  जी हां, इस शो में ‘निया शर्मा’  फ्रेंचाइजी नागिन का किरदार निभा रही है. दर्शक उनके इस किरदार को खुब पसंद कर रहे हैं.

इस सीरियल के अलावा  ‘निया शर्मा’ अपने बाकी प्रोजेक्टस को पूरा करने में लगी हुई है. हाल ही में निया ने सोशल मीडिया पर काफी तस्वीरों को शेयर किया है.

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Who be Bad with so much Red! #ZRA2019 @zeetv

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निया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने डांस वीडियो की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए है, जो कि सोशल मीडिया पर खुब वायरल हुए.

इन तस्वीरों और वीडियो में निया लाल रंग की खूबसूरत सी ड्रेस में नजर आ रही है. तस्वीरों और वीडियो में निया का अंदाज तो देखते ही बन रहा है. आपको बता दें, सीरियल नागिन 4 में निया शर्मा  लीड रोल अदा कर रही है और इस शो के लिए उन्हें वाहवाही मिल रही है.

दो साल पहले एशिया की सेक्सिएट वूमेन की लिस्ट में निया का दूसरा दूसरे स्थान पर थी. निया ने इस खिताब को पाने के बाद कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब उनके हाथ में एक से बढ़कर एक प्रोजेक्ट है.

छोटी सरदारनी : हम सबमें बसती है एक ‘मेहर’

छोटी सरदारनी की मेहर इन दिनों काफी चर्चा में है. दरअसल, मेहर का किरदार ही कुछ ऐसा है कि हर आम लड़की खुद को उससे जुड़ा हुआ महसूस कर सकती है. शायद यही वजह है कि ये शो कम समय में काफी मशहूर हो गया है और टीआरपी चार्ट्स की टॉप 5 की लिस्ट में भी पहुंच गया है. तो चलिए आपको बताते हैं मेहर की वो खूबियां जो आपको अपने अंदर भी देखने को मिलेगी.

1. जड़ों से जुड़ी हुई

एक कॉलेज गर्ल से लेकर एक बच्चे की सौतेली मां बनने तक का सफर मेहर ने बहुत जल्दी तय कर लिया. लेकिन फिर भी वो अपनी जड़ों से जुड़ी है. भले ही उसकी मां ने उससे उसका प्यार छीन लिया हो, लेकिन फिर भी वो अपने परिवार के बारे में सोचती है और उनकी हर मुश्किल में उनके साथ होती है. वो अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करती. भले ही सरबजीत और वो पति-पत्नी का रिश्ता कायम न कर पाए हो, लेकिन वो एक आदर्श बहू और मां के सारे फर्ज पूरे करती है.

2. निडर

 

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Beware of the brother-sister duo ?

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हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों न हो मेहर हमेशा अपने दिल की सुनती है और वही फैसला लेती है जो उसे सही लगता है. फिर चाहे इसके लिए उसे कितनी ही तकलीफ क्यों न उठानी पड़े. आज की दौर की महिलाएं भी ऐसी ही तो हैं.

3. बच्चों की फेवरेट

 

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Wishing you all the happiness, always. Happy Children’s Day cutie ❤️?

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कहने को तो परम, मेहर का सौतेला बेटा है, लेकिन मेहर की जान परम में बसती है और परम भी उसे बेहद प्यार करता है. मेहर न सिर्फ परम की फेवरेट है बल्कि अपने भतीजे युवी के भी काफी करीब है. इसका मतलब ये है कि वो बच्चों के बेहद करीब है. असल जिंदगी में भी महिलाओं को बच्चों से काफी लगाव होता है.

4. भगवान पर भरोसा

 

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Wishing everyone a very happy and blessed gurupurab. Satnam Waheguru ?

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मेहर को अपने बाबा जी पर पूरा भरोसा है. वो एक सच्ची सरदारनी है. भले ही उसने जिंदगी में मुश्किल हालत देखे हो, लेकिन अपने भगवान से उसका भरोसा कभी नहीं डगमगाया. अगर आप गौर करें तो रियल लाइफ में आपके साथ भी तो ऐसा होता है कि भले ही आपके मुताबिक चीजें न हो रही हो, लेकिन भगवान से आपका भरोसा टूटता नहीं है.

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5. मॉर्डन

 

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my fam away from fam gave me the best surprise ever. forever grateful. ♥️

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मेहर जितनी संस्कारी है उतनी ही मॉर्डन भी है. वो जीप चलाती है, महिलाओं के हक के लिए बात करती है और अपने परिवार की हर मुश्किल में बराबरी से खड़ी होती है. जैसा कि हम सब करते हैं. नए जमाने में हम मर्दों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, लेकिन अपने परिवार का भी पूरा ख्याल रखते हैं.

मेहर की ये जर्नी देखकर हम कह सकते हैं कि हम सबके अंदर भी एक मेहर है और हमारी कहानी भी बिल्कुल मेहर की तरह है जिसमें प्यार से बिछड़ने का दर्द है तो परिवार के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी है. मतलब आपकी और हमारी जैसी ही तो है मेहर की कहानी.

नाइट फिवर के माया जाल : डूबता युवा संसार

महानगरों में जैसे-जैसे रात ढलती है, शहर के कई ठिकानों पर मिलना मिलवाना के साथ-साथ ड्रग्स और वाइन की आगोस में कई पार्टियों का आयोजन होता है. इन पार्टियों को नाइट फिवर के नाम से भी जाना जाता है. लेट नाइट पार्टी यानी खूब हल्ला-गुल्ला, पीना-पीलाना और मदमस्त हो कर डीजे के रिदम पर थिरकना. छोटे-बड़े नगरों एवं महानगरों में इस तरह के पर्टियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. रात के दस बजे नहीं कि शहर के सभी पबों और क्लबों पर नवयुवक नवयुवतियों की टोली का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. मस्ती के नाम पर रात के अंतिम पहर तक चलने वाली यह पार्टी प्यार जताने, सब कुछ भुलाने और एक नई दुनिया में मस्त होने का पैगाम लिए नवयुवकों का स्वागत करती है. इस पार्टी में अगर बात नये वर्ष के स्वागत पार्टी की बात हो तों माजरा  और कुछ बदला होता है, मस्ती और मनोरंजन का अनोखा यह आयोजन सारे सीमाओ कों तोड़ते हुए नवयुवको कों एक नये युग में ले जाती है.

दो घुट पीला दे साकिया….  जैसे गीतों के साथ जाम से जाम टकराती है और शुरूआत होती है, एक मदमस्त पार्टी की, जहा हर शीला जवान, मुन्नी बदनाम होती है और पप्पू पास होता है. मस्ती के लिए कुछ भी करेगा रे, इस पार्टी का मूल मंत्र होता है. शराब के अनेकों प्रकार- बियर, वोडका और कई प्रकार के नशीले पदार्थ (ड्रग्स, दवा) हर पल इस पार्टी में जान डालने की कोशिश करते है . जैसे-जैसे रात ढलती है पार्टी और जवां होती है. शराब के नशे में धूत नव युवक इस पार्टी में इतने रम जाते है. जैसे-जैसे समय गुजरता है उनका अपने आप से नियत्रण खोने लगता है, शराब के नशे का असर दिल और दिमाग पर पड़ता जाता है. और शराब के साथ शबाब का नशा भी हर किसी के सर चढ कर बोलता है.

तोड़ी सी जो पी ली है चोरी तो नहीं की है… इस पार्टी में ऐसी फिल्मी लाइन हर किसी के जुबान से अनयास ही निकलते रहती है, तो कोई हमका पीनी है पीनी है.. हां हमें और पीनी है की बात करता है, तो कोई बिन जाम को छलकाए गाता है, छलक-छलक जाए रे मेरा ज़ाम, एक तरफ फिल्मी गानों के रंगों में ढलने की पुरी कोशिश जहा नवयुवक करते हैं, वही दुसरे तरफ नवयुवकों की एक टोली पश्चिमी सभ्यता की अगुवाई करते हुए आमोद-प्रमोद एवं आलिंगन का ऐसा दृश्य प्रकट करते हैं, जिसे बयां करने के लिए जहा एक तरफ हिन्दी के शब्द तैयार नहीं है. वहीं दुसरे तरफ भारतीय सभ्यता इसे मंजुरी नही देती.

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भारतीय सभ्यता के विपरीत और पश्चिमी सभ्यता के अनुकुल इस पार्टी में मौज मस्ती के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार दिवाने और दिवानियों की टोली मस्ती में भी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती. इस लिए हर प्रकार के टेंशन से मुक्त हो कर, काम-काज और किताबों से काफी दुर आकर नवयुवकों का एक बड़ा समुह सुरा-सुुंदरी और नशे के रंग में हर पल गोते लगाने को तैयार रहते हैं.

 क्या है लेट नाइट पार्टी – लेट नाइट पार्टी का अर्थ नाम से ही स्पष्ट होता है, रात्री के अंतिम पहर तक चलने वाली पार्टी. यु कहे तो लेट नाइट पार्टी यानी खूब हल्ला-गुल्ला, पीना-पीलाना और मदमस्त हो कर डीजे के रिदम पर थिरकना. इस तरह की पार्टियों में सुरा-सुुंदरी और नशा का माया जाल नित्य कई नये युवाओं को अपने आगोश में ले रहा है.

शुरूआत कब और कहा हुआ- लेट नाइट पार्टियों की शुरूआत कुछ साल (15 – 20   साल) पहले गोवा से हुई. फिर धीरे – धीरे दिल्ली, मुम्बई, बैंगलुरू, पुणे, कोलकाता और चेन्नई सहित हर बड़े शहर में फैलती चली गई. आज के समय में भारत के कई शहर इस नाइट फिवर के आगोश में आ गये हैं. पंजाब के कई शहर पटियाला, चंडीगढ़, लुधियाना एवं अंबाला, राजस्थान का जयपुर, महाराष्ट्र का पुणे, नासिक, मुम्बई और औरंगाबाद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नोएडा, फरीदाबाद, गाजिय़ाबाद, गुडगांव एवं दिल्ली के कई ठिकानों के साथ-साथ उश्रर प्रदेश के लखनऊ के फौर्महाउस और देश के कई गुप्त ठिकानों पर क्लबों और डिस्कों में इस प्रकार की पार्टी रात होते ही जवां हो जाती हैं. नव वर्ष के स्वागत  पर इस तरह के पार्टियों का आयोजन हर बड़े शहर और महानगर के मोल,डिस्को और फार्म हॉउस में होता है .

लेट नाइट पार्टी का खर्च 

समान्यत: हर नाइट फिवर का अपना अलग-अलग हिसाब होता है लेकिन एक बात तो साफ है कि ऐसी पार्टियां बड़ी खर्चिली होती हैं. क्लब और डिस्को के नाइट फिवर मे मस्त होने के लिए आप के पास कम से कम 5 से 10 हजार प्रति व्यक्ति होना चाहिए. जबकी फौर्म हाउस और शहर के बाहर आयोजित होने वाली पार्टियों में 50 हजार से 1 लाख का ब्यय नवयुवकों के समुहों को करना पड़ता है. इस समुह में 5 से 10 युवक-युवतियां हो सकती हैं. स्र्टड (शनिवार) को आयोजित स्र्टर्ड नाइट फिवर, न्यू इयर पर आयोजित पार्टी एवं अन्य विशेष आयोजन पर आयोजित पार्टी का खर्च समान्य दिन से थोड़ा अधिक होता है. नव वर्ष के स्वागत पार्टी का खर्च अन्य सभी नाईट पार्टियों से अधिक होता है .

नवयुवकों मे पार्टी का क्रेज

नवयुवकों का एक बड़ा समुह इस तरह के पार्टी के पक्ष में खड़ा देखा जा सकता है. हर छोटे से बड़े शहर के नवयुवक कम से कम एक बार इस नाइट फिवर का हिस्सा बनना चाहते हैं. महानगरों में जैसे ही रात के 10 बजते हैं, क्लब डिस्कों और फौर्म हाउस पर सजने वाली नाइट फिवर के लिए नवयुवकों का भीड़ इकट्ठा होने लगती है.

किसी के लिए सजा बन जाती है यह पार्टिया

नाइट पर्टियों में ड्रग्स और नशीले दवाओं का काला साया पड़ चुका है, पार्टी के आड़ में इनका व्यापार धड़ल्ले से बढ़ रहा है. वैसे नवयुवक जो पार्टी में पहली बार जाते है, इनके चपेट में आते ही बर्बादी के दुनिया में न चाहते हुए भी प्रवेश कर जाते है. इस तरह के पार्टी में सामुहिक दुष्कर्म की घटना भी कई युवतियों के साथ घटती रहती हैं, लेकिन समाजिक लोक-लज्जा और शर्म के कारण पीड़ीत इन घटनाओं के बारे में खुल कर कुछ बता नही पाती. इस तरह अंदर ही अंदर पीड़ीत युवक और युवती मानसिक तनाव के शिकार हो जाते है.

नवयुवकों की टोली क्यों जाती हैं इन पार्टियों में इसे जानने के लिए हमनेे कुछ ऐसे नवयुवकों से बात की जो कई बार इस तरह के पार्टियों में जाकर मस्त हो चुके हैं और कुछ ऐसे नवयुवक जो इस तरह के पार्टियो में शिरकत करना चाहते हैं.

`अभिजीत का मानना है कि इस तरह की पार्टियां नवयुवकों के मस्ती के लिए जायज़ है, साफ्टवेयर व्यवसायी के रूप में अभिजीत मानते हैं, कि आज के नवयुवक क्या चाहते हैं. उनका कहना है कि यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस तरह के पार्टियों में अपने आप को कितना नियंत्रित रख सकते है. पार्टिया मौज-मस्ती के लिए होती हैं ना की अश्लिलता के लिए, जिन लोगों को लगता है कि अश्लिलता ही इन पार्टियों का मूल उदेश्य है, वो गलत है. यह बात प्रदीप नाइट पार्टियों के अनुभव के आधार पर बताते हैं.

कोलकता  में दस साल से रहने  वाले रंजन कई बार इन पार्टियों में जा चुके हैं, और इनका मानना है कि नाइट फिवर के नाम से आयोजित होने वाली ये रंगीन पार्टी अपने शुरूआती दौर में नवयुवकों के लिए मस्ती से भरी हुई सागर की तरह थी, लेकिन समय के साथ-साथ इन पार्टियों का स्वरूप भी बदला है. रंजन यह खुलकर नहीं बोलते कि ड्रग्स और अश्लिलता ने इन पार्टियों का रूप ही बदल दिया है. लेकिन रंजन0 के इशारे और चंद प्रश्नों पर खामोशी आज के समय में इन पार्टियों की सच्चाई को बयां करने के लिए काफी है.

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जो पेशे से मौडल हैं, लेटनाइट पार्टियों के बारे में सकारात्मक बात करते हुए कहते हैं कि इस आधुनिक युग के भाग दौड़ की जिदंगी के लिए कुछ मौज-मस्ती के वास्ते इस तरह की पार्टियां बिल्कुल सही हैं. अगर पार्टियों में आने वाले नवयुवक अपने आप पर नियत्रण कर पार्टी का मजा ले तो मस्ती दोगुनी हो जाती है.

कोलकता विश्वविद्यलय की छात्रा सरिता बताती  है कि अगर इस प्रकार के पार्टी में कोई सेलिब्रिटी आपका साथ दे तो पार्टी की मस्ती दोगुनी हो जाती है. म्युजिक की मस्ती, खाने-पीने का पुरा व्यवस्था, और अपने साथी के साथ ढेरों मौज-मस्ती के नाम से इस तरह के पार्टियों में आने वाले नवयुवक आखिर क्यों नहीं सोचते कि छडिक़ मस्ती के लिए इतना कुछ क्यो?

पार्टी के नाम पर सब कुछ परोसती नाइट फिवर जहा भारतीय समाज के लिए बेहद दुखद और हानिकारक है. वही समाज का एक बड़ा तबका दबी आवाज़ में इन पार्टियों को किसी को भी मदमस्त करने वाला बताते है. इस तरह की पार्टी में अक्सर कुछ न कुछ घटना घटती है, कभी लड़कियों से छेडख़ानी होती है तो कभी नशे में धूत बालाएं नि:वस्त्र हो कर समाज में उपहास का पात्र बनती हैं, तो कभी किसी की जान ही ले लेती है ये पार्टी.

सज को नजदीक से जानने वाले समाज शास्त्री इस तरह के पार्टियों को समाज के लिए आतंकवाद से भी खतरनाक बताते हैं, क्योकि यह पार्टियां अंदर ही अंदर भारतीय युवाओं को खोखली कर रही हैं. वही विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह की पार्टी भारतीय सभ्यता संस्कृति के लिए बेहद घातक है. सोचने वाली बात तो यह है कि इस तरह की पार्टियों को कोसने वाले भी लुक-छिप कर इन्ही पर्टियों का मजा ले रहे है. इन परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है, कि आखिर कब थमेगी यह समाजिक बर्बादी का कारण बनने वाली पार्टियां ?

‘गुड न्यूज’ से लोगों के बीच ‘आईवीएफ’ को लेकर काफी जागरुकता आएगी : दिलजीत दोशांज

‘जट्ट एंड ज्यूलिएट’’ और ‘‘सरदारजी’’ सीरीज की पंजाबी हास्य फिल्मों के अलावा कई अन्य पंजाबी की हास्य फिल्मों में अभिनय कर गायक के अलावा अभिनेता के रूप में अपनी अलग पहचाने बनाने वाले दिलजीत दोशांज बौलीवुड में भी अपने कदम तेजी से जमाते जा रहे हैं. ‘उड़ता पंजाब’, ‘फिल्लौरी’ और ‘‘सूरमा’ जैसी सफलतम बौलीवुड फिल्मों के बाद वह ‘‘अर्जुन पटियाला’’ जैसी असफल फिल्म में भी नजर आए. मगर इन दिनों वह आईवीएफ तकनीक पर आधारित कौमेडी फिल्म ‘‘गुड न्यूज’’ को लेकर चर्चा में हैं.

प्रस्तुत है दिलजीत दोशांझ से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के मुख्य अंश..

आपकी पिछली हिंदी फिल्म ‘‘अर्जुन पटियाला’’ लोगों को पसंद नहीं आयी. कहां गड़बड़ियां हुई ?

पता नहीं कहां गड़बड़ियां हुई. फिल्म अच्छी नहीं बनी होगी, तभी लोगों को पसंद नहीं आई. अगर अच्छी बनी होती, तो फिल्म सफलता पाती. बतौर कलाकार तो हम अपना काम अच्छा कर सकते हैं, बाकी तो फिल्म निर्देशक ही बनाता है. वह अच्छी नहीं बना सके और लोगों को पसंद नहीं आयी. मैंने इसकी स्क्रिप्ट इंटरवल तक ही सुनी थी, यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी.

फिल्म ‘‘गुड न्यूज’’ करने के लिए आपको किस बात ने इंस्पायर किया ?

मुझे फिल्म की कहानी बहुत पसंद आयी. फिल्म में आईवीएफ का जो मुद्दा है, वह भी मुझे नया लगा. इसके कलाकार, निर्देशक के अलावा प्रोडक्शन हाउस अच्छा और बड़ा है. तो मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि मुझे नहीं करना चाहिए. इसके अलावा इस कौमेडी फिल्म की स्क्रिप्ट ऐसी मुझे मिली, जिस तरह की फिल्में करते हए मुझे पंजाबी सिनेमा में लोकप्रियता मिली. इस फिल्म से लोगों को मेरे अंदर का एक अलग पक्ष देखने को मिलेगा.

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फिल्म ‘‘गुड न्यूज’’ के अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगे ?

इसमें मैंने हनी बत्रा का किरदार निभाया है. पंजाबी है और बहुत लाइवली है. अपनी जिंगदी व अपनी पत्नी के साथ वह बहुत खुश है. उसे जो सही लगता है, वही वह करता है. वह अपने हिसाब से चलता है. उसकी पत्नी भी ऐसी ही है. तो दोनों ही ऐसे हैं. पर दोनों की अपनी कोई संतान नहीं है. इसलिए डाक्टर की मदद से ‘आई वीएफ’ तकनीक से माता पिता बनने का यह निर्णय लेते हैं, फिर क्या होता है, उसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म सिर्फ आईवीएफ तकनीक की बात कर रही है या सरोगेसी का भी मुद्दा है ?

जी नहीं.. सरोगेसी का मुद्दा कहां है? आईवीएफ की ही बात हो रही है. सरोगेसी नहीं है.फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, वैसे किस्से विदेशों में काफी हो चुके है.

फिल्म ‘‘गुड न्यूज’’ देखकर लोगों को क्या समझ में आएगा?

सच कहूं तो इस फिल्म में अभिनय करने से पहले मुझे भी आईवीएफ के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था. मुझे जब यह कहानी मिली और उसे पढ़ा, तब मुझे पता चला कि इस तकनीक की वजह से हजारों निःसंतान दंपति माता पिता बने हैं. तो मेरी समझ से इस पर तो बात होनी चाहिए. दर्शक को भी इस तकनीक के बारे में पता चलेगा. कई बार हम आईवीएफ का विज्ञापन पढ़ते हैं, पर उसे नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन जब आपके ऊपर वैसी सिचुएशन आती है, तब आपको बात जल्दी समझ में आती है. मुझे भी इस फिल्म के जरिए ही पता चला है.

यह फिल्म ‘आई वीएफ’ पर डौक्यूमेंट्री तो है नहीं. इसमें इस तकनीक के बारे में मनोरंजन तरीके से ही बात की गयी है. मुझे लगता है कि इस फिल्म से लोगों के बीच ‘आईवीएफ’ को लेकर काफी जागरुकता आएगी. औरतों को काफी पसंद आएगी. वैसे भी यह पारिवारिक फिल्म है.

आपने इस फिल्म में 15 साल पुराने गीत‘सौदा खरा खरा’’ का रीमिक्स वर्जन गाया है और उस पर नृत्य भी किया है ?

पहली बात तो मैं स्पष्ट कर दूं कि इस गाने का चयन मैंने नही किया है. इस गाने का चयन प्रोडक्शन हाउस ने किया है. उन्होंने ही रिमिक्स किया. मुझसे इस गीत को गाने के लिए कहा गया, तो मैंने गा दिया. मुझसे डांस करने के लिए कहा गया, तो मैंने डांस भी कर दिया. यह गाना प्रोडक्शन हाउस के पास पहले से था. पहले से ही रिमिक्स हो चुका था. सुखबीर पा जी इसकी हुक लाइन गा रहे थे, जिन्होंने इसे 15 साल पहले पहले गाया था. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं भी गा दूं तो मैंने गा दिया. मैं रीमिक्स गाना नहीं बनाता. पर जो बनाते हैं, उनका विरोध भी नहीं करता.

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जब आपने इस गाने को गाया तो आपने किस बात पर ध्यान दिया ?

सुर को ध्यान में रखकर ही गाना गाया है.

आपने पहली बार अक्षय कुमार व करीना कपूर के साथ काम किया है. क्या अनुभव रहे?

बड़ा प्यारा अनुभव रहा. अक्षय सर तो मंझे हुए कलाकार है. बहुत पुराने व दिग्गज कलाकार हैं. उनके साथ काम करके बड़ा अच्छा लगा. अक्षय सर की फिल्म ‘मोहरा’ देखकर हम बड़े हुए हैं. अक्षय सर के साथ काम करना, सीखना बहुत बड़ी बात थी. काम के सिलसिले में अक्षय कुमार तो युवा पीढ़ी के लिए आदर्श हैं. वह अनुशासित, मेहनती और ईमानदार इंसान हैं. अक्षय सर की जीवन शैली से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. करीना कपूर और कियारा के साथ भी काम करके मजा आया.

कुछ नया कर रहे हैं ?

तीन पंजाबी फिल्में कर रहा हूं. इनमें से एक फिल्म ‘‘जोड़ी’’ अगले साल जून माह में आएगी. हर साल जून में पंजाबी में एक फिल्म आती है.

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पंजाबी फिल्म ‘‘जोड़ी’’ को लेकर कुछ बताना चाहेंगे ?

यह 80 और 90 के दशक वाली कहानी है. जब डुएट आर्टिस्ट हुआ करते थे. लड़के और लड़की गाया करते थे. सोलो सिंगिंग बाद में प्रचलित हुई, उसी विषय पर यह फिल्म है.

क्या टर्बन के चलते बौलीवुड में कोई फिल्म छोड़नी पड़ी ?

हां! कुछ फिल्में छोड़नी पड़ीं. इस कारण मुझे बहुत बड़े-बड़े बैनर की बड़ी स्टारकास्ट वाली फिल्में छोड़नी पड़ी हैं. अब मुझे लगता है कि उन फिल्मों में मेरे करने के लिए कुछ नहीं था. अच्छी फिल्म का हिस्सा होना एक बड़ी बात होती है. किसी भी फिल्म में खुद को मनवाने में बहुत मशक्क्त लगती है. पर इसमें समस्या क्या है?बहुत सारी फिल्में हम लोग ऐसे ही छोड़ देते हैं.

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किसी नए सिंगल गाने को लाने वाले हैं ?

जी हां! एक पंजाबी फोक सिंगल लेकर आने वासला हूं.

2020 की योजना ?

कई योजनाएं हैं. मैं खुद एक पंजाबी फिल्म का निर्माण करने वाला हूं. अगले साल ही मैं मुंबई में अपना पहला म्यूजिकल शो करने वाला हूं. एक म्यूजिकल शो दिल्ली मे भी होगा. इसके अलावा एक रोमांटिक अलबम लेकर आने की तैयारी है. जनवरी में एक नई फिल्म की घोषणा भी होगी.

बूढ़ी औरत को शादी करनी चाहिए ?

सवाल

मैं एक मौडर्न फैमिली की बहू हूं. मेरी फैमिली इतनी मौडर्न है कि मेरी विधवा सास की शादी के बारे में सोच रही है. माना, जमाना खुले विचारों का है, मैं खुद भी खुले विचारों की पढ़ीलिखी महिला हूं लेकिन 56 वर्षीया बूढ़ी औरत को विवाह शोभा देता है भला? मेरे पति और ननद को तो पता नहीं कौन सी धुन सवार है. मां की शादी कराने से इन्हें क्या सुख मिलेगा, सम झ नहीं आता. ऊपर से मेरी सास को शादी से इनकार नहीं है. इधर मैं मायके वालों को मुंह नहीं दिखा पा रही. मैं चाहती हूं यह शादी न हो. यह शादी कैसे रुक सकती है, कुछ उपाय बताएं.

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जवाब

सुन कर अटपटा लगा कि एकतरफ तो आप खुद को मौडर्न और खुले विचारों की कह रही हैं और दूसरी तरफ अपनी सास की दूसरी शादी करने को ले कर तिल का ताड़ बना रही हैं. माना कि वे विधवा हैं और हमारा समाज बुजुर्ग विवाह और विधवा विवाह के लिए उतना तैयार नहीं है जितना होना चाहिए, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि समाज की फिक्र के आगे व्यक्ति अपनी खुशियों को त्याग दे. आप को तो खुश होना चाहिए कि पुरुष होने के बावजूद आप के पति व ननद अपनी मां को समझ रहे हैं. लेकिन औरत होने के बावजूद आप एक महिला यानी अपनी सास को नहीं समझ पा रहीं, दुखद है. आप जैसी ही सोच समाज के एक बड़े तबके की है, जिसे समय के साथ बदलाव की जरूरत है. किसी ने सच ही कहा है कि सिर्फ मौडर्न जीवनशैली अपनाने से ही कोई मौडर्न नहीं हो जाता, सोच भी मौडर्न होनी चाहिए.

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राजस्थानी डिश : ऐसे बनाएं दाल बाटी

दाल बाटी राजस्थान की डिश है, इसे चूरमा के साथ खाया जाता है. यह बहुत ही स्वादिष्ट रेसिपी है, आप इसे खास मौकों पर भी बना सकते हैं.

सामग्री

आटा (2 कप)

सूजी (1 टेबल स्पून)

घी (3 टेबल स्पून)

नम​क (1 टी स्पून)

दूध (1/2 कप)

फीलिंग के लिए:

1 अदरक, बारीक कटा हुआ

2 टी स्पून धनिया पाउडर

1/4 टी स्पून गरम मसाला

2 कप मटर (छिले हुए)

1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

1 टी स्पून नमक

1/2 टी स्पून आमचूर

गर्म घी (बाटी को डीप करने के लिए)

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बनाने की वि​धि

आटा, सूजी, घी, नमक और दूध मिलाकर इसे सख्त गूंथ लें, इसे 15 मिनट के लिए ढक दें.

फीलिंग बनाने के लिए: घी को गर्म करें और इसमें जीरा और हींग डालें और इसे हल्का सा चलाकर इसमे अदरक डाले.

जब यह हल्का सा ब्राउन हो जाए तो इसमें मटर, धनिया, गरम मसाला, लाल मिर्च पाउडर, नमक और आमचूर डालें.

इसे नरम होने तक पकाएं और ठंडा होने दें.

डो को गोलाकार का बेल लें, इसमें फीलिंग भरे और इन्हें बंद करके गोलाकार की बौल्स बना लें.

इन्हें प्री​हीट ओवन में 45 से 50 मिनट के लिए 375 डिग्री पर बेक करें, इसके बाद लोअर टेम्पेंचर 350 डिग्री पर, ब्राउन और क्रस्टी होने मे बेक करें.

इसे ओवन से बाहर निकाल लें और इसे घी में ​डीप करें और इसे सर्व करें.

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थाइरौयड लाइलाज नहीं

थाइरौयड दुनियाभर में एक प्रमुख समस्या है. यह या तो व्यक्ति को कमजोर कर देती है या फिर उसे मोटापे का शिकार बना देती है. थाइरौयड कब, किसे, कैसे हो जाए, यह पता लगाना मुश्किल होता है. थाइरौयड विकार का जल्दी पता लगने से इस की रोकथाम में मदद मिलती है, चाहे यह दवाओं के जरिए हो या जीवनशैली में बदलाव के.

40 साल की सुधा का वजन अचानक बढ़ने लगा. किसी काम में उस का मन नहीं लगता था. रहरह कर उसे घबराहट होती थी. उस ने डाइटिंग शुरू कर दी. लेकिन उस का वजन कम नहीं हो रहा था. परेशान हो कर उस ने अपनी जांच करवाई. पता चला कि उसे थाइरौयड है. दवाई लेने के बाद वजन और घबराहट दोनों कम हुए. असल में थाइरौयड की बीमारी महिलाओं में अधिक होती है.

10 में 8 महिलाओं को यह बीमारी होती है, लेकिन उन में इसे ले कर जागरूकता बहुत कम है. इसलिए इसे पकड़ पाने में मुश्किलें आती हैं और रोगी को सही इलाज समय पर नहीं मिल पाता.

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थाइरौयड ऐक्सपर्ट डा. शशांक जोशी कहते हैं, ‘‘यहां हम हाइपोथाइरौयडिज्म के बारे में बता कर रहे हैं, क्योंकि इस में ग्लैंड काम करना बंद कर देता है, जिस का सीधा संबंध स्ट्रैस से होता है. इतना ही नहीं, इस बीमारी का संबंध हमारे औटो इम्यूनिटी अर्थात सैल्फ डिस्ट्रक्शन औफ थाइरौयड ग्लैंड से जुड़ा हुआ होता है, जो तनाव की वजह से बढ़ता है. आज की अधिकतर महिलाएं स्ट्रैस से गुजरती हैं, क्योंकि उन्हें घर के अलावा वर्कप्लेस के साथ भी सामंजस्य बैठाना पड़ता है, जो उन के लिए आसान नहीं होता. ये सभी तनाव थाइरौयड को बढ़ाने का काम करते हैं. और इस के बढ़ने से एंटीबौडी तैयार होना बंद हो जाती है.

थाइरौयड के लक्षण कई बार पता करना मुश्किल होते हैं,

लेकिन कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिन से थाइरौयड का पता लगाया जा सकता है –

  • मोटापे का बढ़ना.
  • थकान महसूस करना
  • बालों का  झड़ना.
  • त्वचा का सूखना.
  • मूड स्ंविग्स होना.
  • किसी बात पर चिड़चिड़ा हो जाना.
  • अधिक मासिकधर्म का होना.
  • किसी बात को भूल जाना.

ऐसा देखा गया है कि सर्दी के मौसम में थाइरौयड अधिक बढ़ जाता है. इस मौसम में रोगी को जांच के बाद नियमित दवा लेनी चाहिए. थाइरौयड हार्मोन हमारे शरीर की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया और एनर्जी को चार्ज करता रहता है. शरीर की कोशिकाएं सही तरह से चार्ज नहीं होतीं, तो व्यक्ति सुस्त और हमेशा सोने की कोशिश करता है और यह समस्या अधिकतर एक्स्ट्रीम क्लाइमेट वाली जगहों में होती है.

यह बीमारी होने के बाद आयोडीन युक्त नमक लेना सब से जरूरी होता है. अधिकतर लोगों, जिन्हें हाइपोथाइरौयडिज्म की शिकायत है, का ग्लैंड काम करना बंद कर देता है और उन की समस्या धीरेधीरे बढ़ती जाती है. लेकिन, दवा के नियमित सेवन से इस बीमारी से बचा जा सकता है.

थाइरौयड हर उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. जन्म से ले कर किसी भी उम्र में यह बीमारी हो सकती है. इस के होने से महिला इनफर्टिलिटी की शिकार भी हो सकती है. मोटापे के अलावा महिला हृदयरोग की भी शिकार हो सकती है. कोईर् भी एंड्रोक्रोनोलौजिस्ट डाक्टर इस बीमारी का इलाज कर सकता है. इस में मुख्यतया खून की जांच करनी पड़ती है, जिस में टी3, टी4 और टीएसएच जांचें की जाती हैं. एक बार इस का पता लगने पर साल में 2 बार खून की जांच करवाएं, ताकि दवा का असर मालूम होता रहे.

डा. शशांक जोशी कहते हैं, ‘‘लाइफस्टाइल को बदलने से थाइरौयड की वजह से होने वाले मोटापे को कुछ हद तक काबू में किया जा सकता है, लेकिन थाइरौयड की दवा लेना जरूरी होता है. यह मिथ है कि मेनोपौज के बाद थाइरौयड होता है. दरअसल, तब यह पता चलता है कि महिला में थाइरौयड है.’’

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डाइबिटोलौजिस्ट डा. प्रदीप घाटगे कहते हैं, ‘‘थाइरौयड के मरीज पिछले 10 सालों में दोगुने हो चुके हैं. इस में कोई खास परिवर्तन शरीर में नहीं आने की वजह से आसानी से इसे सम झना मुश्किल होता है. अगर समय पर जांच न हो पाए, तो रोगी एक्स्ट्रीम कौमा में चला जाता है. यह अधिकतर हाइपोथाइरौयडिज्म में होता है. इसलिए जब भी इस के लक्षण दिखें, तुरंत जांच करवा लेनी चाहिए. जिस में रोगी का वजन कम होता जाता है उसे हाइपोथाइरौयडिज्म कहते हैं. यह बीमारी काफी खतरनाक होती है, क्योंकि रोगी के हार्ट पर इस का असर होता है.’’

थाइरौयड के एक लक्षण में से है मोटापे का बढ़ना, जिसे अकसर ज्यादा गरिष्ठ खानपान की वजह से समझ लिया जाता है.

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