सवाल

मैं एक मौडर्न फैमिली की बहू हूं. मेरी फैमिली इतनी मौडर्न है कि मेरी विधवा सास की शादी के बारे में सोच रही है. माना, जमाना खुले विचारों का है, मैं खुद भी खुले विचारों की पढ़ीलिखी महिला हूं लेकिन 56 वर्षीया बूढ़ी औरत को विवाह शोभा देता है भला? मेरे पति और ननद को तो पता नहीं कौन सी धुन सवार है. मां की शादी कराने से इन्हें क्या सुख मिलेगा, सम झ नहीं आता. ऊपर से मेरी सास को शादी से इनकार नहीं है. इधर मैं मायके वालों को मुंह नहीं दिखा पा रही. मैं चाहती हूं यह शादी न हो. यह शादी कैसे रुक सकती है, कुछ उपाय बताएं.

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जवाब

सुन कर अटपटा लगा कि एकतरफ तो आप खुद को मौडर्न और खुले विचारों की कह रही हैं और दूसरी तरफ अपनी सास की दूसरी शादी करने को ले कर तिल का ताड़ बना रही हैं. माना कि वे विधवा हैं और हमारा समाज बुजुर्ग विवाह और विधवा विवाह के लिए उतना तैयार नहीं है जितना होना चाहिए, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि समाज की फिक्र के आगे व्यक्ति अपनी खुशियों को त्याग दे. आप को तो खुश होना चाहिए कि पुरुष होने के बावजूद आप के पति व ननद अपनी मां को समझ रहे हैं. लेकिन औरत होने के बावजूद आप एक महिला यानी अपनी सास को नहीं समझ पा रहीं, दुखद है. आप जैसी ही सोच समाज के एक बड़े तबके की है, जिसे समय के साथ बदलाव की जरूरत है. किसी ने सच ही कहा है कि सिर्फ मौडर्न जीवनशैली अपनाने से ही कोई मौडर्न नहीं हो जाता, सोच भी मौडर्न होनी चाहिए.

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