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बिग बौस 13 : कंटेस्टेंट्स के लिए एक नया टास्क लेकर आईं एक्स कंटेस्टेंट हिना खान

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला शो रिएलिटी शो ‘बिग बौस13’ में कंटेस्टेंट्स के लिए चैलैजिंग टास्क पेश किया जाएगा. जी हां, ये टास्क अभिनेत्री अभिनेत्री हिना खान ने दी. हिना इस शो की एक्स कंटेंस्टेंट रह चुकी हैं. इस सीजन में फिर से बिग बौस के घर पर नजर आई. हिना की वापसी एक मजेदार टास्क कराने के लिए हुईं. ‘बिग बौस 13’ में हिना तीसरी बार घर में वापसी की.

आपको बता दें, हिना टौप-10 कंटेस्टेंट्स के लिए एक मजेदार ‘एलीट क्लब’ की चुनौती को पेश की. टास्क के हिस्से के रूप में हिना विभिन्न पहलुओं को देखते हुए यह तय  कि कौन सा प्रतियोगी ‘एलीट क्लब’ का हिस्सा बनने के लिए बेहतर था.

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खबरों के अनुसार, लोग हिना को बिग बौस शो की सबसे मजबूत महिला कंटेस्टेंट्स में से एक के रूप में याद करते हैं. उन्होंने अपने ‘शेरखान’ व्यक्तित्व के साथ वास्तव में यह साबित किया कि सीजन-11 में उनके जैसा कोई नहीं था.” सूत्र ने कहा कि कोई भी ऐसा नहीं है जो ‘एलीट क्लब’ प्रणाली को उनसे बेहतर समझ सकता है. इसलिए हिना के आने से सभी  कंटेंस्टेंट रोमांचित हुए.

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सिरकटी लाश का रहस्य

राजिंदर कुमार रोजाना की तरह सुबह 9 बजे काम पर जाने के लिए घर से निकला था. उस की मां बिशनो ने उसे दोपहर के खाने का टिफिन तैयार कर के दिया था. 20 वर्षीय राजिंदर मेनबाजार बटाला में रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करता था.

वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. कुछ साल पहले उस के पिता शिंदरपाल की मृत्यु हो गई थी. पिता की मौत के बाद रिश्तेदारों ने भी परिवार का साथ छोड़ दिया था. किसी से सहायता की उम्मीद नहीं थी. घर के आर्थिक हालात ऐसे नहीं बचे थे कि राजिंदर पढ़ाई आगे जारी रख पाता. इसलिए उस ने पढ़ाई बीच में छोड़ कर काम करना शुरू कर दिया था.

राजिंदर के परिवार में उस की मां बिशनो के अलावा एक बहन नीलम थी. वह जो कमाता था, उस से जैसेतैसे घर खर्च चल पाता था. 19 सिंतबर, 2019 की सुबह राजिंदर काम पर गया. शाम को वह अपने समय पर घर नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. वह ठीक साढ़े 8 बजे काम से घर लौट आता था.

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राजिंदर का इंतजार करतेकरते जब रात के 10 बज गए तो मां बिशनो और बहन नीलम कुछ पड़ोसियों के साथ उसे ढूंढने निकलीं. सब से पहले वे उस दुकान पर गईं, जहां राजिंदर काम करता था. उस समय दुकान बंद हो चुकी थी.

दुकान मालिक के घर जा कर पूछने पर पता चला कि राजिंदर अपने समय से पहले ही 7 बजे छुट्टी ले कर चला गया था. घर वालों ने राजिंदर के खास दोस्तों से पूछताछ की. इस के अलावा हर संभावित ठिकाने पर उस की तलाश की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अंत में हार कर पड़ोसियों की सलाह पर बिशनो ने बेटे राजिंदर के लापता होने की रिपोर्ट थाना सिविल लाइंस बटाला की पुलिस चौकी सिंबल में दर्ज करवा दी.

चौकी इंचार्ज एसआई बलविंदर सिंह ने उन्हें राजिंदर को जल्द तलाशने का आश्वासन दिया. राजिंदर का फोटो ले कर उन्होंने जिले के सभी थानों में भिजवा दिया और अस्पतालों में भी उस की तलाश करवाई गई. पर राजिंदर का कहीं कोई पता नहीं चला.

बिशनो ने बेटे के लापता होने में अपनी ही कालोनी गांधी कैंप निवासी अशोक प्रीतम दास पर शक जताया था. अशोक उसी मोहल्ले में रहता था और उस का बिशनो के घर काफी आनाजाना लगा रहता था.

करीब एक महीना पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी हालात में मृत्यु हो गई थी. अशोक का बेडि़यां बाजार में अपना खुद का हेयरकटिंग सैलून था.

राजिंदर अशोक का अपने घर आने का विरोध करता था. उस की कई बार अशोक से झड़प भी हो चुकी थी. इस बात को ले कर राजिंदर की अपनी मां से भी कई बार कहासुनी हुई थी. उस ने मां से भी कह दिया था कि वह अशोक को अपने घर आने से रोके.

एसआई बलविंदर ने अशोक को थाने बुला कर उस से पूछताछ की. अशोक ने बताया कि उसे राजिंदर से मिले एक महीना हो गया है और कई दिनों से वह उस के घर भी नहीं गया. बातचीत में अशोक बेकसूर लगा तो एसआई बलविंदर सिंह ने उसे घर भेज दिया और राजिंदर की तलाश जारी रखी.

22 सितंबर, 2019 को सेंट फ्रांसिस स्कूल के पीछे मोहल्ला भट्ठा इंदरजीत में रहने वालों ने प्रधान अमरीक सिंह को बताया कि उन के घर के सामने वाले हंसली नाले से बड़ी भयानक दुर्गंध आ रही है.

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अमरीक सिंह कुछ लोगों को साथ ले कर नाले के पास पहुंचे. उन्होंने देखा कि वहां बोरी में बंद किसी आदमी की लाश पड़ी थी. लाश की टांगें बोरे से बाहर थीं. अमरीक सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस चौकी सिंबल के इंचार्ज एसआई बलबीर सिंह को दी.

सूचना मिलते ही बलबीर सिंह मौके के लिए रवाना हो गए और यह जानकारी थाना सिविल लाइंस बटाला के एसएचओ मुख्तियार सिंह को दे दी. थानाप्रभारी भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को नाले से बाहर निकलवाया. बोरी में मृतक का सिर नहीं था. हां, धड़ जरूर था. कंधों से बाजू कटे हुए थे. कपड़ों के नाम पर मृतक के शरीर पर केवल अंडरवियर था.

कई दिनों से लाश नाले के पानी में पड़ी रहने से बुरी तरह से गल चुकी थी, जिस की पहचान मुश्किल थी. वैसे भी बिना सिर के मृतक की शिनाख्त करना असंभव काम था.

पहचान के लिए मृतक के शरीर पर ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस के सहारे पुलिस उस की शिनाख्त कराती. सिर और बाजू कटी लाश मिलने से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी, दहशत का माहौल बन गया था.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुलवा कर पंचनामे की कारवाई की गई. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अपने आला अधिकारियों को दे दी थी. इस के कुछ देर बाद एसएसपी उपिंदरजीत सिंह घुम्मन, एसपी (इनवैस्टीगेशन) सूबा सिंह और डीएसपी (सिटी) बालकिशन सिंगला भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.

पुलिस ने नाले में आसपास मृतक के कटे हुए अंग तलाशने की मुहिम शुरू कर दी. पुलिस को यह पता नहीं था कि हत्यारे ने मृतक के शेष अंग वहीं फेंके थे या उन्हें किसी दूसरी जगह ठिकाने लगाया था.

काफी खोजने के बाद भी कटे हुए अंग नहीं मिले. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने अज्ञात युवक की लाश 72 घंटों के लिए सिविल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अपनी तफ्तीश के पहले चरण में चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने पिछले दिनों शहर से लापता हुए लोगों की लिस्ट चैक की. लिस्ट में राजिंदर का नाम भी था. चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने 23 सितंबर को राजिंदर के परिवार वालों को बुलवा कर जब लाश दिखाई तो उस की मां बिशनो और बहन नीलम ने शरीर की बनावट और अंडरवियर से लाश की शिनाख्त राजिंदर के रूप में की.

राजिंदर 19 सितंबर, 2019 को लापता हुआ था और 22 सितंबर को उस की लाश नाले से मिली. चूंकि मां बिशनो ने मोहल्ले के ही अशोक पर शक जताया था, जिस से एक बार पुलिस पूछताछ भी कर चुकी थी. अब लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद चौकी इंचार्ज उसी दिन अशोक को पूछताछ के लिए दोबारा थाने ले आए. इस बार भी वह अपने पहले बयान पर अड़ा रहा. पर जब उस से सख्ती की गई तो उस ने राजिंदर की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

अगले दिन अशोक को अदालत में पेश कर उस का 4 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान सब से पहले उस से पूछा गया कि राजिंदर के शरीर के बाकी अंग उस ने कहां फेंके थे.

24 सितंबर को अशोक की निशानदेही पर पुलिस और नायब तहसीलदार जसकरण सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने नाले से मृतक राजिंदर का सिर और बाजू ढूंढ निकाले. इन हिस्सों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया गया और पोस्टमार्टम के बाद लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई.

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रिमांड के दौरान अशोक कुमार ने पुलिस को बताया कि बिशनो के पति की मृत्यु के बाद राजिंदर कुमार की मां बिशनो के साथ उस का करीब 7 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह बिशनो से मिलने रोज उस के घर जाया करता था. उस समय राजिंदर और उस की बहन छोटे थे. सो उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. जब बच्चे बड़े हुए तो राजिंदर उसे और मां को संदेह की नजरों से देखने लगा था.

वह उस के वहां आने का विरोध करता था. बिशनो के संबंधों का पता अशोक की पत्नी को भी था. इस बात को ले कर वह भी घर में क्लेश करती थी. तब अशोक गुस्से में उस की पिटाई कर देता था. दूसरी ओर राजिंदर के विरोध से अशोक भी काफी परेशान था. वह उसे अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. इस कांटे को रास्ते से हटाने के लिए अशोक कुमार ने राजिंदर की हत्या करने की एक खौफनाक साजिश रच ली.

अपनी योजना के अनुसार, 19 सितंबर की शाम वह राजिंदर से मिला और कोई जरूरी बात करने के बहाने उसे अपने घर ले गया. घर ले जा कर अशोक ने राजिंदर को चाय पिलाई, जिस में नशे की दवा मिली हुई थी. चाय पीते ही राजिंदर एक ओर लुढ़क गया.

राजिंदर के लुढ़कते ही अशोक ने पहले गला दबा कर उस की हत्या की और उस के बाद दातर (हंसिया) से बड़े आराम से उस का सिर काट कर धड़ से अलग किया. फिर दोनों बाजू काटे. यह सब करने के बाद अशोक ने राजिंदर के शव को बोरी में डाल कर बांधा और अपनी साइकिल पर रख कर रात के अंधेरे में हंसली नाले में फेंक आया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने अशोक की निशानदेही पर दातर, साइकिल, अपने और राजिंदर के जलाए हुए कपड़ों की राख भी बरामद कर ली. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस इस मामले में मृतक की मां बिशनो की भूमिका की भी जांच कर रही है. हालांकि पुलिस ने इस बारे में अभी स्पष्ट खुलासा नहीं किया है.

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राजिंदर की बहन पर भी अशोक बुरी नजर रखता था. अब पुलिस इस बारे में भी जांच कर रही है. अगर कोई बात सामने आती है तो मृतक की मां बिशनो पर भी काररवाई की जाएगी. एक माह पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि बिशनो के चक्कर में कहीं अशोक ने ही तो अपनी पत्नी को कोई जहरीली चीज दे कर मारा था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

40 की उम्र में भी दिखें 20 की

महिलाएं 40 की हों या 20 की, कोशिश करती हैं कि वे हमेशा खूबसूरत दिखें. 20 से 30 की उम्र में तो महिलाएं अपनी खूबसूरती का बखूबी ध्यान रखती हैं. लेकिन 30 के बाद त्वचा और शरीर में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं, जैसे चेहरे पर झुर्रियां, आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स, चेहरे के रंगों में बदलाव आदि. बहुत सी महिलाएं बढ़ती उम्र की निशानियों को छिपाने के लिए बाहरी कौस्मैटिक्स व सर्जरी का इस्तेमाल करती हैं, जिस से उन की त्वचा पर हानिकारक प्रभाव भी पड़ने शुरू हो जाते हैं. ऐसे में महिलाएं करें तो क्या?

बढ़ती उम्र के साथ बदलाव को तो नहीं रोक सकते लेकिन चेहरे और शरीर पर हो रहे बदलाव को कम करने का प्रयास जरूर कर सकते हैं.

आइए, जानते हैं कुछ ऐसे नुस्खे जो आप की खूबसूरती को 40 में भी बरकरार रखेंगे. आज के समय के अनुसार फैशन और ब्यूटी दोनों ही बहुत जरूरी हैं. हर कोई अपनेआप को बैस्ट दिखाना चाहता है. ऐसे में त्वचा पर झुर्रियां, काले घेरे जैसी समस्या का होना आप की पर्सनैलिटी पर दाग लगा सकता है. इस से नजात पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप महंगे ट्रीटमैंट्स या कौस्मैटिक्स का सहारा लें. कुछ घरेलू नुस्खों से इन्हें ठीक किया जा सकता है. मसलन :

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जब हो जाएं झुर्रियां

झुर्रियां बढ़ती उम्र की निशानी होती हैं. यदि आप की उम्र 40 के आसपास है, तो आप को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं आप के चेहरे पर झुर्रियों की शुरुआत तो नहीं हो रही. चेहरे पर झुर्रियां या झांइयां न पड़ें, इस के लिए विशेष ध्यान रखना जरूरी है. घर से निकलने से पहले सनस्क्रीन लोशन या क्रीम जरूर लगा कर निकलें.

कई बार ज्यादा सन एक्स्पोजर भी झुर्रियों का कारण बन जाता है. त्वचा में नमी का न होना भी झुर्रियों जैसी समस्या पैदा कर देता है. इसलिए समयसमय पर चेहरे को मौइस्चराइज करते रहना चाहिए. कई महिलाओं से इतना सबकुछ मैनेज नहीं हो पाता. उन के लिए बेहतर औप्शन है रसोई. रसोई में कई ऐसी चीजें उपलब्ध होती हैं जो हमारी त्वचा के लिए लाभदायक होती है. अगर आप को झुर्रियों से बचना है तो दूध की मलाई में शहद मिला कर पेस्ट बनाएं, फिर उसे चेहरे पर लगाएं.

जब चेहरे को निखारना हो

चेहरे को निखारने के लिए कई महिलाएं तरहतरह के फेशियल व ब्लीच का इस्तेमाल करती हैं. पर इन के इस्तेमाल से चेहरे पर निखार कुछ ही दिनों के लिए रहता है. पहले के समय में उबटन का इस्तेमाल बहुत किया जाता था. उबटन त्वचा को कोमल और चमकदार बनाने में मददगार होता है. आप घर में उबटन बना कर अपनी त्वचा पर इस्तेमाल कर सकती हैं.

बेसन हर घर की रसोई में प्रयोग होने वाला उत्पाद है. दूध की विशेषताओं को कौन नहीं जानता. दूध ऐसा पदार्थ है जो शरीर के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है. बढ़ती उम्र की निशानियों को कम करने और त्वचा पर प्राकृतिक निखार लाने के लिए इन दोनों का प्रयोग अधिक किया जाता है. जहां एक ओर बेसन आप की त्वचा में कसाव लाने का काम करता है, वहीं दूध उसे साफ करने में मदद करता है. यदि आप के चेहरे पर भी बढ़ती उम्र की निशानियां दिखने लगी हैं तो बेसन और दूध के उबटन का प्रयोग करना शुरू कर दें. यह आप की स्किन को जवान दिखाने में भी मदद करेगा.

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डार्क सर्कल्स में टमाटर है मददगार

टमाटर में मौजूद विटामिन सी त्वचा की रंगत निखारने में मदद करता है. इस में मौजूद गुण आप के चहरे से झुर्रियां और डार्क सर्कल्स को खत्म करने में भी मदद करते हैं. 40 के बाद अकसर महिलाओं की आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स आने लगते हैं. जो न केवल आप की पर्सनैलिटी पर प्रभाव डालते हैं, आप की उम्र को बढ़ाने में सहयोग भी करते हैं. यदि आप की आंखों के नीचे भी डार्क सर्कल्स हैं और चेहरे पर दागधब्बे आने लगे हैं तो अपने चेहरे पर टमाटर का प्रयोग करना शुरू कर दें. ये आप की स्किन और आप की हैल्थ दोनों के लिए बहुत लाभकारी रहेगा. बेहतर होगा आप इसे अपने खाने मे भी शामिल करना शुरू कर दें.

ब्लैकहैड्स से पाएं नजात

चेहरे पर दागधब्बे बहुत बेकार लगते हैं, खासकर नाक और लिप्स के आसपास जब ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स जैसी समस्या हो जाए. ब्लैकहैड्स के लिए अंडे का इस्तेमाल सब से बेहतर उपाय है.

ब्लैकहैड्स को हटाने के लिए आप अंडे के सफेद हिस्से को एक मास्क की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं. यह त्वचा को बिना नुकसान पहुंचाए ब्लैकहैड्स निकालने में मदद करता है और त्वचा को मुलायम बनाता है.

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ब्रैंडेड हों ब्यूटी प्रोडक्ट्स

महिलाओं को ब्यूटी प्रोडक्ट्स से अधिक प्यार होता है. महिलाएं चाहे कितने भी घरेलू नुस्खे अपना लें, ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना बंद नहीं करतीं. कोई न कोई ऐसा ब्यूटी प्रोडक्ट होता ही है जिस का इस्तेमाल महिलाएं हमेशा करती हैं. ब्यूटी प्रोडक्ट्स हमेशा ब्रैंडेड ही खरीदें. कई बार महिलाएं पैसा बचाने के चक्कर में सस्ते के फेर में फंस जाती हैं और लोकल ब्यूटी प्रोडक्ट्स खरीद लेती हैं. ऐसे में चेहरे पर तमाम तरह की त्वचा से संबंधित परेशानियां शुरू हो जाती हैं. आप को खूबसूरत दिखना हो या सौंदर्य उपचार करना हो, हमेशा ब्रैंडेड प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें.

खेती के लिए खास जीवाणु खाद

आज के समय में खेती  की पैदावार बढ़ाने के लिए कैमिकल खादों और दवाओं का जम कर इस्तेमाल किया जाता है, जिस से दिनप्रतिदिन खेत की मिट्टी की सेहत खराब हो रही है और पर्यावरण को भी अच्छाखासा नुकसान पहुंच रहा है.

दवाओं और कैमिकल खादों के इस्तेमाल से आबोहवा को जहरीली होने से बचाने के लिए सुरक्षित और स्वस्थ भोजन की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए जैविक खेती एक खास विकल्प के रूप में उभरी है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की केवल 30 फीसदी खेती लायक जमीन में, जहां सिंचाई के साधन मुहैया हैं, कैमिकल खादों का उपयोग होता है और बाकी 70 फीसदी जमीन में जो कि बारिश पर निर्भर है, बहुत कम मात्रा में कैमिकल खाद उपयोग की जाती है.

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इन इलाकों में किसान जैविक खादों का उपयोग करते हैं, जो कि उन के अपने खेत या अपने घरेलू संसाधनों से मिलते हैं या उन के इलाकों में मौजूद होते हैं.

जीवाणु खाद जैविक खेती का एक अहम हिस्सा है. जीवाणु खाद एक विशेष या लाभदायक जीवाणुओं के समूह की बड़ी आबादी है, लाखों की तादाद में इन को एक खास तरीके में मिलाया जाता है, जिन्हें पौधों की जड़ों पर या मिट्टी में डालने से इन की क्रियाओं द्वारा पोषक तत्त्व पौधों को आसानी से मिल जाते हैं और जमीन में जरूरी जीवाणुओं की तादाद बढ़ती है. इस से जमीन की सेहत में सुधार होता है और खेती के लिए अनेक फायदेमंद जरूरी तत्त्वों में सुधार करता है.

खेती में पौधों की पैदावार बढ़ाने में यह सहायक होता है. इस के अलावा माइकोराजा, फास्फेट, जिंक और तांबे की उपलब्धता और शोषित करने में सुधार करती है.

कहने का मतलब यह है कि खेत को यह उपजाऊ बनाता?है और जो खेती को नुकसान पहुंचाने वाले तत्त्व हैं, उन का सफाया करता है.

पोषक तत्त्वों की मौजूदगी के मुताबिक ही जीवाणु खाद को 3 कैटीगरी में बांटा गया?है. जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम.

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अघुलनशील जिंक को घुलनशील जिंक में बदलने वाले जीवाणुओं को भी जीवाणु खाद की कैटीगरी में रखा गया है. जीवाणु जो कि जीवाणु खाद या?टीके के?रूप में इस्तेमाल किए जाते?हैं, एक विशेष माध्यम में मिलाए जाते?हैं और जीवाणु खाद/टीका, पाउडर या तरल अवस्था में होती है. पाउडर जीवाणु खाद के लिए अधिकतर लिग्नाइट, कोयला पाउडर या पीट माध्यम का उपयोग किया जाता है. तरल जीवाणु खाद हमेशा निलंबित माध्यम में होती?है, जो कि जीवाणुरहित प्लास्टिक बोतलों में पैक की जाती?है.

टीके की मात्रा : 10 किलोग्राम बीज के लिए एक टीका (50 मिलीलिटर) काफी है. यदि 1 एकड़ जमीन में बीज की मात्रा 10 किलोग्राम है तो प्रति 10 किलोग्राम बीज के लिए एक टीके का इस्तेमाल करें और यदि बीज की मात्रा 1 एकड़ के लिए 10 किलोग्राम से कम है, तब भी एक टीका लगाना चाहिए.

गेहूं के लिए 4-5, धान के लिए 5 और आलू जैसी फसलों के लिए 10 एजोटीका की जरूरत होती है. फास्फोटीका की जरूरत भी इसी मात्रा में होती है.

इसी प्रकार दलहनी फसलों में बीज की मात्रा के मुताबिक जितने राइजोटीका की जरूरत होती है, उतने ही फास्फोटीका की जरूरत होती है.

यदि गेहूं में मोल्या रोग की शिकायत है, तो इस में फास्फोटीका के साथ बायोटीका (एजोटोबैक्टर एचटी 54) लगाना जरूरी है. इस में अलग से एजोटीका लगाने की जरूरत नहीं है.

यदि कपास में जड़ गांठ रोग है, तो इस में एजोटीका और फास्फोटीका के साथ बायोटीका (ग्लूकोनोअसिटोबैक्टर 35-47) लगाना जरूरी है.

टीका उपचारित करने का तरीका : बीजोपचार के लिए 50 ग्राम गुड़ को 250 मिलीलिटर पानी में घोल कर बीजों पर डालें और बीजों को चिपचिपा कर लें. अब टीके की बोतल खोल कर बीजों पर डालें और बीजों को अच्छे से मिलाएं. इन उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर बीजाई कर दें.

अगर किसी कीटनाशक दवा का इस्तेमाल करना हो तो उस दवा को 12 से ले कर 24 घंटे पहले इस्तेमाल कर के बीजों को टीके से उपचार करें. जिन फसलों की रोपाई की जाती है, उन की रोपाई करने से पहले पौधों की जड़ों को टीके में डुबो कर उपचारित किया जा सकता है.

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जीवाणु खाद/टीके के लाभ

* जीवाणु खाद या टीका लगाने से पौधे स्वस्थ रहते?हैं और 5-15 फीसदी तक पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

* एजोटीका के लगाने से 20-25 फीसदी तक यूरिया की बचत की जा सकती?है.

* एजोटीका के जीवाणु जड़ों द्वारा फैलने वाले फफूंदी जैसे पादपीय रोगों को फैलने से रोकते हैं.

* टीका उपचारित करने से बीजों की अंकुरण क्षमता तेज हो जाती है.

* प्राकृतिक रूप से क्षारीय मिट्टी में फास्फोटीका और फास्फेट के संयुक्त उपचार से फसल पर लाभकारी असर होता है.

सावधानियां

जीवाणु खाद या टीका प्रयोग करते समय इन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए:

* टीके को धूप में नहीं रखना चाहिए.

* टीके को अगर ज्यादा समय तक रखना हो तो?फ्रिज में या?ठंडी जगह पर रखें.

* टीका खरीदते समय यह ध्यान रखें कि यह 2 या 3 महीने से ज्यादा पुराना न हो.

* टीका उसी फसल के लिए प्रयोग करें, जो टीके की बोतल पर लिखी हो.

* उपचारित बीज को छाया में सुखा कर शीघ्र बीजाई कर दें. टीका उसी दिन लगाएं, जिस दिन बीजाई करनी हो.

ज्यादा जानकारी के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों से भी सलाह ले सकते हैं.

(यह जानकारी हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार दी गई है.) 

धर्म की कैद में स्त्रियां

हिंदुओं के आदर्श कृष्ण की अर्धांगिनी सत्यभामा ने एक बार द्रौपदी से सवाल किया, ‘‘हे द्रौपदी, कैसे तुम अति बलशाली पांडुपुत्रों पर शासन करती हो? वे कैसे तुम्हारे आज्ञाकारी हैं तथा तुम से कभी नाराज नहीं होते? तुम्हारी इच्छाओं के पालन हेतु सदैव तत्पर रहते हैं? मु झे इस का कारण बताओ.’’

द्रौपदी ने उत्तर दिया, ‘‘हे सत्यभामा, पांडुपुत्रों के प्रति मेरे व्यवहार को सुनो. मैं अपनी इच्छा, वासना तथा अहंकार को वश में कर अति श्रद्धा व भक्ति से उन की सेवा करती हूं. मैं किसी अहंकार भावना से उन के साथ व्यवहार नहीं करती. मैं बुरा और असत्य भाषण नहीं करती. मेरा हृदय कभी किसी सुंदर युवक, धनवान या आकर्षक पर मोहित नहीं होता. मैं कभी स्नान नहीं करती, खाती अथवा सोती हूं जब तक कि मेरे पति स्नान नहीं कर लेते, खा लेते अथवा सो जाते हैं. जब कभी भी मेरे पति क्षेत्र से, वन से या नगर से लौटते हैं, तो मैं उसी समय उठ जाती हूं, उन का स्वागत करती हूं और जलपान कराती हूं.

‘‘मैं अपने घर के सामान तथा भोजन को हमेशा साफ व क्रम से रखती हूं. सावधानी से भोजन बनाती हूं और ठीक समय पर परोसती हूं. मैं कभी भी कठोर शब्द नहीं बोलती. कभी भी बुरी स्त्रियों का अनुसरण नहीं करती. मैं वही करती हूं जो मेरे पतियों को रुचिकर और सुखकर लगता है. कभी भी आलस्य या सुस्ती नहीं दिखाती. बिना विनोदावसर के नहीं हंसती. मैं दरवाजे पर बैठ कर समय बरबाद नहीं करती. मैं क्रीड़ा उद्यान में व्यर्थ नहीं ठहरती. मु झे अन्य काम करने होते हैं. जोरजोर से हंसना, भावुकता तथा अन्य इसी प्रकार की अप्रिय लगने वाली वस्तुओं से अपनेआप को बचाती हूं और पतिसेवा में रत रहती हूं.

‘‘पतिविछोह मु झे कभी नहीं सुहाता. जब कभी मेरे पति मु झे छोड़ कर बाहर जाते हैं, तो मैं सुगंधित पुष्पों तथा अंगराग का प्रयोग न कर कठोर तपस्या में जीवन बिताती हूं. मेरी रुचिअरुचि, मेरे पति की रुचिअरुचि ही है और उन्हीं की आवश्यकतानुसार अपना समायोग करती हूं. मैं तनमन से अपने पति की भलाई चाहती हूं. मैं उन वक्तव्यों का हूबहू पालन करती हूं जो कि मेरी सास ने संबंधियों, अतिथियों, दान आदि के बारे में बतलाए थे.’’

द्रौपदी के अनुसार, ‘‘नारी का सर्वोतम गुण है पति व सास की सेवा और उन की सभी आज्ञाओं का पालन करना और उस के बदले कुछ पाने की इच्छा न रखना. पति स्त्री का ईश्वर है. वही उस का एकमात्र शरणालय है. पति के अलावा स्त्री के लिए और कहीं शरण नहीं है. ऐसी दशा में एक पत्नी वह कार्य कैसे कर सकती है जो उस के पति को अप्रिय व अरुचिकर लगे. वह अपने गुरु की भी सेवा बहुत ही नम्रता से करती है और इसलिए उस के पति उस से बहुत प्रसन्न रहते हैं. वह सुबह सब से पहले उठती है और सब से बाद में सोती है.’’

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हिंदू धर्म के अनुसार, हरेक नारी को ऐसे ही जीवन बिताना चाहिए. स्त्रियों को भौतिक प्रभाव से दूर रहना चाहिए. एक व्यसनी, विलासी नारी सच्ची स्वाधीनता को नहीं सम झती. यत्रतत्र घूमना, कर्तव्यहीन बनना, मनचाहा सबकुछ करना, सबकुछ खानापीना, मोटर दौड़ाना अथवा पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करना आजादी नहीं है. सतीत्व, स्त्री का सर्वोत्तम अलंकार है. सतीत्व की सीमा पार करने, पुरुषों की तरह व्यवहार करने से नारी अपनी कोमलता, बुद्धिमता, प्रताप तथा सुंदरता का नाश कर देती है. इस का यह मतलब कि एक औरत को हर प्रकार से अपने पति की आज्ञाकारी होना ही चाहिए, धर्म पर चलना चाहिए, तभी उस का प्रताप, तेज तथा पतिव्रतधर्म और ज्यादा उज्ज्वल होगा.

यहां सारे धर्म स्त्री के लिए बतलाए गए हैं. पुरुष के लिए एक भी धर्म का जिक्र नहीं हुआ है. यहां यह नहीं बतलाया गया कि एक ब्याहता पुरुष को किस मर्यादा में रहना चाहिए. क्या सारी मर्यादाएं, संस्कार सिर्फ औरतों के लिए ही हैं?

गीता प्रैस, गोरखपुर ने भी नारी धर्म, स्त्री के लिए कर्तव्य दीक्षा, भक्ति नारी, नारी शिक्षा, दांपत्य जीवन के आदर्श, गृहस्थी में कैसे रहें जैसे विषयों पर अपनी पुस्तिका का एक पूरा अंक छापा था. उस में स्त्रियों की पवित्रता पर जोर दिया गया है. उस में बतलाया गया है कि दांपत्य जीवन में क्या करना चाहिए. शादी के वक्त क्या करना चाहिए, आभूषण पहनना चाहिए या नहीं, पति के साथ कब संभोग करना चाहिए, गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का व्यवहार कैसा होना चाहिए, विधवाओं का व्यवहार कैसा होना चाहिए. महिलाओं का सब से महत्त्वपूर्ण धर्म है अपने पति के प्रति वफादार रहना. महिला की जिंदगी का मकसद होना चाहिए कि पति खुश रहे. यह पुस्तिका लाखों घरों तक पहुंची थी और लोगों की सोच पर व्यापक असर भी हुआ था.

1920 के दशक में सनातन धर्म की मुख्य सोच थी कि हिंदू धर्म खतरे में है और यह खतरा इसलाम और अंगरेजों के आने से शुरू हुआ, नहीं तो हिंदू धर्म हर क्षेत्र में अव्वल था. सोच है कि इसलाम और अंगरेजों के भारत आने के बाद हिंदू सभ्यता भ्रष्ट हो गई और जरूरत है उसी पुराने समय में जाने की जब हिंदू समाज चरम पर था. यानी पुरुष का काम है बाहर जा कर शिक्षा ग्रहण करना, पैसे कमाना और औरतों का काम है घर में रह कर बच्चे पैदा करना, पति व सासससुर की सेवा करना. जब पति घर लौटे तो स्त्री का कर्तव्य है धर्मग्रंथों के माध्यम से उस के चित्त को पवित्र करना. स्त्री को भीतरी दुनिया की रानी बताया गया है जो बेहद कठिन और निराशाजनक व चुनौतियों से भरी हुई थी.

महिला कैद, पुरुष आजाद

गीता प्रैस के प्रकाशन ‘कल्याण’ के विशेषांकों को पढ़ें, तो साफ है कि महिला से जुड़े हर मुद्दे पर पुरुष की सोच हावी दिखती है. वह क्या खाएगी, क्या पहनेगी, कहां जाएगी, कितना हंसेगी, किस से बात करेगी, किस से नहीं, मासिकधर्म के वक्त औरतों को कैसे रहना चाहिए, आदि. चाहे पति अत्याचारी हो या किसी दूसरी महिला का बलात्कार करता हो, पत्नी को वह एक बुरा सपना सम झ कर भूल जाना चाहिए. नारी धर्म को ले कर गीता प्रैस में छपा वह अंक आज भी कहीं न कहीं लोगों की नजरों में दिखता है.

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उस अंक के लेखों को ले कर महिला अधिकारी, कार्यकर्ता, कविता कृष्णन कहती हैं, ‘‘चाहे वह हिंदू स्त्री हो या मुसलिम, पुरुष के बीच का प्रेम या दोस्ती हो, या भारतीय महिलाओं की मां और पत्नी को ले कर सोच हो, घरेलू हिंसा का मामला हो, आज भी उन में यह दिखता है. इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गीता प्रैस ने हिटलर की उस अपील को भी छापा जिस में स्त्री को पत्नी और मां की भूमिका तक ही सीमित रखने की बात कही गईर् थी. हिटलर के युग में औरतों को मां और पत्नी के रूप में ही रखा गया था. उन्हें पार्टी में पद नहीं दिए गए. वे बच्चे पैदा करने के लिए ही थीं. ऐसी नाजी पार्टी की सोच थी.

हम सभी जानते हैं कि द्रौपदी के5 पति थे और एकएक वर्ष के अंतराल से उस ने पांचों पांडवों के एकएक पुत्र को जन्म दिया. उस ने पत्नी होने के हर धर्म को निभाया. लेकिन फिर भी पांडुपुत्रों ने दूसरा ब्याह किया द्रौपदी के होते हुए भी. तो फिर उन का धर्म कहां गया? जब एक पति होते हुए पत्नी परपुरुष की ओर आकर्षित नहीं हो सकती, फिर पुरुष क्यों? क्या उन का कोई धर्म नहीं है अपनी पत्नी के प्रति?

स्त्रियों से उम्मीद की जाती है कि वे पतिपरायण बनी रहें. न चाहते हुए भी पति के परिवार की लंबी उम्र के लिए व्रतउपवास करें. उन के हर अच्छेबुरे व्यवहार को बरदाश्त करें, साथ ही, परपुरुषों के आकर्षण से दूर रहें. लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा कोई उपदेश क्यों नहीं है?

सदियों से स्त्री को कोमलांगी मान कर उसे दोयम दर्जे की सम झा जाता रहा है. यही वजह है कि प्राचीन काल से ले कर आज 21वीं सदी में भी उस पर अत्याचार कम नहीं हुए हैं. उस पर अत्याचार का सब से घिनौना रूप है उस के स्वाभिमान को कुचल कर उसे धर्म के अंधकार में धकेल देना ताकि वह पुरुष की आजादी में हस्तक्षेप न करे. आज स्थिति यह है कि महिला उस धर्म में कैद हो कर रह गई है. वह उस से निकलना चाहती है, पर समाज व परिवार की सोच ने उस की सोच पर मिट्टी डाल रखी है. अशिक्षित ही नहीं, आज पढ़ीलिखी महिलाएं भी धर्म के जंजाल से निकल नहीं पा रही हैं. सच कहें तो सीता, द्रौपदी, अनुसूया, सावित्री आदि पतिपरायण नारियां, आज की स्त्रियों का कोई भला नहीं कर गईं, उलटे, उन्हें कैदभरा रूढि़गत जीवन ही प्रदान किया है, उन की विचारक्षमता को गुलाम बनाया है.

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लड़कियों की बेचारगी

वंशिका पढ़ीलिखी, सुंदर और आत्मनिर्भर लड़की है और एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत है. शादी उस की अपनी पसंद के लड़के से होने जा रही है. लेकिन यह सुन कर मु झे हैरानी हुई कि आज की सोच रखने वाली वंशिका व्रतउपवास में भी विश्वास रखती हैं. उस ने अपने होने वाले पति के लिए पूरे दिन भूखीप्यासी रह कर करवाचौथ का व्रत रखा, शाम को चांद और होने वाले पति का मुखड़ा देखने के बाद ही उस ने अन्नजल ग्रहण किया.

पूछने पर कि वह तो पढ़ीलिखी, आज की सोच रखने वाली लड़की है, तो फिर इन सब पर कैसे विश्वास करती है, वह बोली, ‘‘पति की सलामती और उन की लंबी आयु के लिए सारी औरतें व्रत रखती हैं मेरी ससुराल में, तो मु झे भी रखना पड़ा, और वैसे भी, शादी के बाद तो रखना ही है.’’

‘रखना पड़ा?’ यानी कि उस की अपनी मरजी नहीं है, फिर भी करना पड़ा? सच में लड़कियों को वही करना पड़ता है जिस में लोगों की खुशी हो. पर अपनी खुशी का क्या? आखिर क्यों वह अतार्किक विधिविधानों को चुपचाप सह रही है? एक तरफ तो उस ने औरतों के लिए बनाए बंधनों को तोड़ कर घर की दहलीज लांघ, बाहर रह कर ऊंची पढ़ाई की और आज एक बड़ी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर है. शादी भी वह अपनी पसंद के ही लड़के से करने जा रही है. फिर वह पूजापाठ, व्रतउपवास जैसे बंधनों में क्यों बंध गई? क्या यह सब वह अपनी मरजी से कर रही है या सामाजिक दबाव उस पर इतना ज्यादा है कि अनेक स्तरों पर आजाद और पौजिटिव सोच रखने वाली महिला इस से बाहर नहीं निकल पा रही है?

खुद को जकड़न में डालना

प्रज्ञान की पत्नी को डाक्टर ने सख्ततौर पर व्रतउपवास करने को मना किया है, क्योंकि वह बीपी की समस्या के साथसाथ गैस की समस्या से भी ग्रस्त है. लेकिन वह किसी की नहीं सुनती. उसी तरह व्रतपूजापाठ में लगी रहती है. कभी तीज, कभी एकादशी, कभी पूर्णिमा जैसे व्रत होते ही रहते हैं उस के. उस का मानना है कि अगर वह पूजापाठ, व्रतउपवास करना छोड़ देगी, तो उस के भगवान नाराज हो जाएंगे और उस के परिवार पर दुख के काले बादल मंडराने लगेंगे. सवाल है कि क्या ऐसा भगवान, यदि कहीं हो तो, ने खुद कहा आ कर उस से कि अगर वह पूजाउपवास नहीं करेगी, तो वे उस से नाराज हो कर उस के पतिबच्चे को गायब कर देंगे?

धर्म ऐसी अफीम है जिसे महिलाओं को बचपन से ही चटाया जाता है. कौन नहीं जानता कि आज धर्म के नाम पर महिलाओं का कितना शोषण हो रहा है, लेकिन फिर भी वे उस में फंसती जाती हैं. पुरुषों को नहीं पता होता कि आखिर उन के शास्त्रों में क्या वर्णित है और क्या नहीं. महिलाएं जो अपने गुरुबाबाओं से सुनती हैं, उसे ही धर्म मान कर उस का अनुसरण करने लगती हैं.

समाज औरतों के लिए हमेशा से ही पक्षपाती रहा है. औरतों की आजादी से डराघबराया पितृसत्तात्मक समाज औरतों को अपने नियंत्रण से बाहर जाने नहीं देना चाहता है. इसलिए उस पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए वह धर्म का बखूबी इस्तेमाल करता है. औरतों को डराए रखने के लिए धर्म ही सब से मजबूत व आसान जरिया है. जब सवाल औरतों की नैतिकता, उन की शारीरिक इच्छा का हो, तो नियंत्रण और अधिक बढ़ जाता है. पितृसत्तात्मक समाज में इस की शुरुआत कब हुई, इस के बारे में ठीक तरह से तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन महिलाओं के व्रत रखने का कारण उस के हमेशा आश्रय में रहने की स्थिति को बयां करता है.

वशिष्ठ धर्मसूत्र में लिखा है- ‘पिता रक्षति कौमारे, भ्राता रक्षति यौवने, रक्षति स्थविरे पुत्रा, न स्त्री स्वातंत्रमहर्ति.’ इस का अर्थ है कि कुमारी अवस्था में नारी की रक्षा पिता करेंगे, यौवन में पति और बुढ़ापे में पुत्र. नारी स्वतंत्रता के योग्य नहीं है. पिता, पति, बेटा आश्रय के रूप में बदलते हैं. औरत को शुरू से ही बतलाया गया है कि उसे किसी के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करना है. और उन के सहारे की भी जिम्मेदारी स्त्री की है, इसलिए वह अपने पति, पुत्र की लंबी उम्र की कामना भगवान से करती है. पितृसत्तात्मक सोच ने यहां महिलाओं को यह सम झाया है कि वे भले ही व्रत उन के लिए करती हैं लेकिन असल में स्वार्थ उन का ही है क्योंकि वे खुद बेसहारा नहीं होना चाहती हैं.

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डर के घेरे में

तीज, करवाचौथ, छठ, सप्तमी आदि सारे व्रत महिलाएं पति और बेटे की सलामती व उन की लंबी आयु के लिए रखती हैं. एक व्रत तो ऐसा भी है जिस में औरतें रुई के गद्दे पर नहीं सो सकतीं, वरना महापाप लग जाएगा. नवरात्र में कन्यापूजन का विधान है. माना जाता है कि वह देवी का रूप है. मगर आज उसी देवीरूपी कन्या के साथ क्याक्या हो रहा है, यह सभी जानते हैं. दिल्ली, कठुआ, उन्नाव, अलवर, हैदराबाद, बक्सर और अलीगढ़ जैसी बलात्कार की घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि देवी समान महिलाएं आज किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं हैं. हैवानियतभरा कृत्य कर आज उसी देवीरूपी जिस्म की हत्या कर दी जा रही है.

और तो और, महिलाओं के मनमस्तिष्क में यह भर दिया जाता है कि अगर गलती से भी उस ने तीज या करवाचौथ के दिन पानी पी लिया तो पाप हो जाएगा. उसे अगले जन्म में इस की सजा भुगतनी पड़ेगी. जैसे, दूध पी लिया तो नागिन बन जाएगी, पानी पी लिया तो जोंक, मिठाई खा ली तो चींटी, दही खा लिया तो बिल्ली, फल खाया तो बंदरिया, और अगर कहीं गलती से नींद आ गई, तो अजगर तो बनेगी ही बनेगी. फिल्मों और टीवी सीरियल्स में भी पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रतों को खूब दर्शाया जाता है और इतना कि एक व्रत को पूरा होतेहोते 2-3 एपिसोड्स निकल जाते हैं.

करवाचौथ या तीज जैसे व्रत रखने से क्या वाकई पति की उम्र लंबी हो जाती है? अगर ऐसा है तो फिर पत्नी की लंबी उम्र के लिए पति क्यों नहीं रखते व्रत? क्या उन्हें पूरी जिंदगी अपनी पत्नी का साथ नहीं चाहिए? लेकिन दुख की बात तो यह है कि इन कर्मकांडों में महिलाएं भी बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं. अगर कुछ सम झाओ, तो कहेंगी, ‘‘चुप रहो, ज्यादा नास्तिक मत बनो. अब क्या हम अपने संस्कार भी भूल जाएं?’’ ऐसा कह कर वे सामने वाले को ही चुप करा देती हैं.

औरतों के साथ अगर अन्याय भी होता है तो वे अन्याय करने वाले को नहीं, बल्कि अपने प्रति होने वाले अन्याय को भी वे भगवान की पूजा और श्रद्धा में अपनी कमी या खामी मान कर खुद को जिम्मेदार ठहरा लेती हैं. उन्हें लगता है शायद उन की पूजा में ही कोई त्रुटि रह गई होगी और इसलिए उन्हें इतना दुख भोगना पड़ रहा है. घरपरिवार में शुरू से ही महिलाओं की स्थिति दूसरे दर्जें की और पुरुष की श्रेष्ठ रही है. औरतें खुद पति को अपना मालिक मानती हैं, जबकि पतिपत्नी का रिश्ता बराबरी का होता है. चाहे पति कितना भी मारेपीटे, कष्ट दे, चाहे पति जीवन को नर्क सा ही क्यों न बना दे, पर वह देवता है, उस की मांग का ताज है.

पति का मारना धर्म, पत्नी का सहना धर्म

मनुस्मृति में लिखा है, ‘जहां स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहां देवता रमण करते हैं और जहां इन का अनादर होता है, वहां सब कार्य निष्फल होते हैं.’ यह बात आज नहीं, सदियों पहले वैदिककाल में कही गई थी. तब से आज तक मानव समाज के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर में काफी विकास हुआ है. लेकिन नारी की स्थिति में कुछ खास अंतर नहीं आया. इस का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है. कि आज भी मां सरस्वती, दुर्गा, काली, लक्ष्मी आदि देवी मां की आराधना धूमधाम से की जाती है. लेकिन, महिलाओं के प्रति संकीर्ण मानसिकता रखने वाले लोगों की सोच उन की जबान पर कभीकभी आती ही रहती है.

हिंदू धर्म में औरत को देवी का दर्जा दिया गया है. लेकिन आज कितनी ऐसी देवियां हैं जो रोज अपने पति के हाथों पिटती हैं, जलील होती हैं, पर उफ्फ तक नहीं करतीं, क्योंकि पति का मारनापीटना धर्म है और उनका सहना.

मीनाक्षी का पति आएदिन शराब पी कर उसे मारतापीटता है, जलील करता है. एक बार तो उस ने उसे जलाने की भी कोशिश की थी. पड़ोसी सब जानते हैं, पर कुछ नहीं कहते और न ही मार खाते हुए मीनाक्षी को बचाने जाते हैं, क्योंकि मीनाक्षी का कहना है कि वह उस का पति है, चाहे जो करे. लोगों को बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है. और अगर वह पति के हाथों मर भी गई, तो भी उस का जीवन सफल ही होगा.

गौशाला में सोने को मजबूर

कुल्लूमनाली ऐसी जगह है जहां दुनियाभर के पर्यटक आते हैं और वहां की खूबसूरत वादियों का मजा लेते हैं. लेकिन कुल्लू की एक दूसरी तसवीर भी है. कुल्लू के पहाड़ों में बसे गांव में बहुत सी औरतें मासिकधर्म के दौरान गौशाला में सोती हैं. उसी गांव की रहने वाली बिमला देवी एक बच्चे की मां है. वह कहती है कि मासिकधर्म के वक्त वह अपने घर के भीतर कदम भी नहीं रख सकती. बच्चे और पति से अलग, घर के बाहर गौशाला में सोती है. जबकि परिवार से अलग गोबर की गंध के  बीच उसे सोना पसंद नहीं है, लेकिन उस के पास दूसरा चारा नहीं है. वह बताती है कि मासिकधर्म के समय वह किसी को छू भी नहीं सकती, क्योंकि उन दिनों औरतों को गंदा माना जाता है. अकेले रहना पड़ता है तो अजीब लगता है. वहीं, बीए पास प्रीता को भी इस प्रथा का सामना करना पड़ा था. वह कहती है, ‘‘ये पुराने रीतिरिवाज हैं जिन का पालन करना ही पड़ेगा, वरना देवता गुस्सा हो जाएंगे.’’ कुछ लोगों का विश्वास है कि उन दिनों अगर औरत घर के अंदर चली गई तो देवता रुष्ट हो जाएंगे और वे अपने देवता को नाराज नहीं करना चाहती हैं. यह सब औरतों के साथ अन्याय नहीं, तो और क्या है?

प्रकृति ने जब सभी प्राणियों को एकसमान और स्वतंत्र बनाया है, तो फिर स्त्रियां ही धर्मसंस्कारों में कैद क्यों हैं? न तो वे अपनी मरजी से खुली हवा में सांस ले सकती हैं और न ही सामाजिक बंधनों को तोड़ सकती हैं. ऐसे में फिर शिक्षा का क्या फायदा? महिलाओं की भावनाएं समाज के अंधविश्वासों व मान्यताओं के बो झ तले दब जाती हैं और उन का मस्तिष्क कई तरह के ज्ञानविज्ञान से वंचित रह जाता है.

धर्मरूपी जेल

पुराने समय में पुरुष के साथ चलने वाली नारियां, मध्यकाल में पुरुष की संपत्ति की तरह सम झी जाने लगीं. इसी सोच के चलते नारियों की स्वतंत्रता खत्म हो गई. नए काल में जन्मे तथाकथित धर्मों ने नारी को धार्मिक तौर पर दबाना और उन का शोषण करना शुरू कर दिया. धर्म और समाज के जंगली कानून ने नारी को पुरुष से नीचा और निम्न घोषित कर उसे उपभोग की वस्तु बना कर रख दिया. वैदिक युग की नारी धीरेधीरे अपने दैवीय पद से नीचे खिसक कर मध्यकाल के सामंतवादी युग में दुर्बल हो कर शोषण का शिकार होने लगी.

तथाकथित मध्यकालीन धर्म द्वारा नारी को पुरुषों पर निर्भर बनाने के लिए उसे सामूहिक रूप से पतित अनाधिकारी बताया गया. उस के मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा कर पुरुषों को हर जगह बेहतर बता कर नारी की अवचेतना शक्तिविहीन होने का एहसास जगाया जिस से उसे आसानी से विधाहीन, साहसहीन कर दिया जाए. ताकि, वह अपने जीवनयापन, इज्जत और आत्मरक्षा के लिए पुरुष पर निर्भर हो जाए.

लेकिन, क्या एक औरत को सम्मान से अपने अनुसार जीने का हक नहीं है? क्यों हमेशा उन पर अपनी मरजी थोपी जाती है? कभी धर्म के नाम पर, कभी बेटा पैदा करने के लिए, तो कभी दहेज के लिए उसे शोषित किया जाता है. कहते हैं, औरत घर की लक्ष्मी होती है. लेकिन दूसरी तरफ परंपराओं के नाम पर, धर्म के नाम पर, मानमर्यादाओं के नाम पर औरत के अस्तित्व को घर के अंदर कैद कर लिया गया है.

एक औरत को अपने पति की सेवा, जिसे उस का परमेश्वर कहा जाता है, निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए, तभी उसे तथाकथित स्वर्ग मिलता है. पर जब बात नारी के सम्मान की आती है, तब ‘वह तो नारी का कर्तव्य है’ कह कर बात खत्म कर दी जाती है. डर है समाज को कि कहीं औरतें अधिक आगे बढ़ गईं, तो पुरुषों का क्या होगा? इसलिए वे उसे धर्मरूपी जेल में कैद कर के रखना चाहते हैं.

व्रतउपवास, पूजापाठ, धर्मकर्म करने के लिए साधुबाबा महिलाओं का ब्रेनवाश करते हैं. महिलाओं से भेदभाव किया जाता है. केरल के सब से प्रसिद्ध और विवादित सबरीमाला मंदिर में औरतों को प्रवेश की अनुमति मिल तो गई लेकिन भारत का यह एकलौता मंदिर नहीं था जहां महिलाओं का जाना वर्जित है, बल्कि और भी ऐसे द्वार हैं जहां महिलाओं के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है.

मध्य प्रदेश राज्य के गुना शहर स्थित जैन धर्म के प्रसिद्ध तीर्थस्थल ‘मुक्तागिरी’ तीर्थ में कोई भी महिला पाश्चात्य परिधान पहन कर प्रवेश नहीं कर सकती. राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थस्थल पुष्कर में स्थित कार्तिकेय मंदिर में महिलाओं का जाना मना है.

दक्षिण दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है. इस दरगाह में औरतों का प्रवेश निषेध है. दिल्ली की जामा मसजिद भारत की सब से बड़ी मसजिदों में से एक है. इस मसजिद में सूर्यास्त के बाद महिलाएं नहीं जा सकतीं.

यहां तक कि  हिन्दू महिलाएं बजरंगबली को छू तक नहीं सकतीं. शिवजी पर जल नहीं चढ़ा सकतीं. लेकिन पुरुष चाहे जिस देवी की पूजा कर सकता है. उन से बलताकत मांग सकता है, ताकि वही ताकत वह अपनी घर की देवी पर उतार सके.

भले ही समाज में औरतों को देवी का दर्जा मिला है पर आज कितनी ही ऐसी देवियां हैं जो रोज अपने पति के हाथों पिटती हैं. समाज शुरू से ही अपनी सहूलियत के हिसाब से औरतों को धर्म की जकड़न में रखता है. मगर औरतें यह बात सम झ नहीं पाईं.

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खुद भी जिम्मेदार

कभीकभी तो लगता है औरतें खुद अपनी त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि वे अपने हर अधिकार के लिए लड़ तो सकती हैं पर धर्म जैसे अंधविश्वास से बाहर नहीं निकल सकतीं. वे डरी हुई हैं. आज भी धर्म की आड़ में ही महिलाओं का शोषण हो रहा है. आज भी धर्म के नाम पर ही महिलाओं की आबरू लूटी जा रही है. आसाराम, रामरहीम जैसे कितने ऐसे बाबा हैं जिन्होंने धर्म के नाम पर महिलाओं का शोषण किया. कभी इलाज के नाम पर तो कभी पुत्रप्राप्ति के नाम पर महिलाएं बाबाओं के जाल में फंसती आई हैं. लेकिन हैरानी तो इस बात की होती है कि आएदिन बाबाओं की करतूतें सुनने के बाद भी महिलाएं उन के छलावे में आ जाती हैं.

धर्म के नाम पर मासूम बच्चियों को नर्क में धकेलने की प्रथा आज भी कायम है. देवदासी प्रथा की शुरुआत 6ठी और 7वीं शताब्दी के आसपास हुई थी. इस प्रथा का प्रचलन मुख्यरूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में बढ़ा. दक्षिण भारत में खासतौर पर चोल, चेला और पांडयाओं के शासनकाल में यह प्रथा खूब फलीफूली. लेकिन आज भी कई प्रदेशों में देवदासी की प्रथा का चलन जारी है.

हमारे आधुनिक समाज में छोटीछोटी बच्चियों को धर्म के नाम पर देवदासी बनने पर मजबूर किया जाता है. इस के पीछे अंधविश्वास तो है ही, गरीबी भी एक बड़ी वजह है. कम उम्र में लड़कियों को उन के मातापिता ही देवदासी बनने के लिए मजबूर करते हैं.

बता दें कि आजादी से पहले और बाद भी सरकार ने देवदासी प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए कानून बनाए. पिछले 20 सालों से पूरे देश में इस प्रथा का प्रचालन बंद हो चुका था. कर्नाटक सरकार ने 1982 में और अांध्र प्रदेश सरकार ने 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया था, लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2013 में बताया था कि अभी भी देश में लगभग 4,50,000 देवदासियां हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में लगभग 80,000 देवदासियां हैं.

धर्म और अधर्म, आस्था और अंधविश्वास, श्रद्धा और पाखंड में स्पष्ट अंतर है. इसे हमें सम झना चाहिए. हमें मिल कर अंधविश्वासी, पाखंडी और अधर्मी लोगों का बहिष्कार करना चाहिए जोकि इस देश और स्त्री की गरिमा को दीमक की तरह चाट रहे हैं.

दरार : भाग 4

लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’

रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘बहुत.’’

‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’

‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’

‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’

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‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’

‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’

‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.

तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’

उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’

‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’

विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’

‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’

‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’

‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’

‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’

विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’

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बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’

बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’

विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.

दरार : भाग 3

रमेश ने सोचा क्यों न सब से पहले विभा के आशिक की पत्नी को सच बताया जाए. जब उस की पत्नी को अपने पति की करतूतों के बारे में पता चलेगा तो वह अपने पति के विरुद्ध कठोर कदम उठाएगी. हो सकता है इस से विभा और उस के आशिक के संबंध टूट जाएं. नहीं भी टूटते, तो कम से कम जो तकलीफ मैं ने सही है, यही उस के आशिक को भी भुगतनी पड़ेगी. उस ने मेरा घर तोड़ने की कोशिश की, मैं उस का घर तोड़ कर कुछ तसल्ली तो महसूस करूंगा. और वह जासूस के दिए पते पर विभा के आशिक के घर पहुंचा.

विभा के आशिक का नाम सुमेरचंद था. कालेज में वह विभा के साथ पढ़ता था. उस की पत्नी घरेलू महिला थी. उस की 2 बेटियां थीं. वह कालेज में प्रोफैसर था. विभा से उस का प्रेम कालेज में था. शादी के बहुत बाद फेसबुक के जरिए यह प्रेम, अवैध संबंधों में परिणत हो चुका था. रमेश को टाइगर द्वारा दी गई जानकारी से यह भी पता चला था कि दोपहर में सुमेरचंद कालेज में या उस के घर में होता है. बैंक में एक घंटे काम करने के बाद रमेश सुमेरचंद के घर पहुंचा.

दरवाजा सुमेरचंद की पत्नी ने खोला. रमेश ने अपना परिचय दे कर थोड़ा समय मांगा. इस थोड़े से समय में उस ने सीडी दिखाई और सारी जानकारी दी. सुमेरचंद की पत्नी विभा से अधिक सुंदर और शिक्षित थी. रमेश द्वारा दी गई जानकारी से उस का चेहरा उदास और गुस्से में बदल गया.रमेश और रमन वापस आ गए. दूसरे दिन रमेश टाइगर को अपना मित्र बना कर घर ले गया. उस की पत्नी विभा जब किचन में गई, तब टाइगर ने खुफिया कैमरा लगा दिया. दूसरे दिन की शाम को रमेश ने कैमरा टाइगर को सौंप दिया. तीसरे दिन टाइगर ने सुबूत बना कर रमेश को सीडी सौंप दी. उस के आशिक का नाम, कामधाम सब का ब्योरा बना कर दिया. रमेश ने बकाया 30 हजार रुपए धन्यवाद सहित जासूस टाइगर को सौंपे. सुबूत और जानकारी हाथ लगते ही रमेश को अंदर ही अंदर तसल्ली मिली और साथ में ताकत भी.

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‘‘जैसे आप बैंक में मैनेजरी करते हैं. अरे भाई, मेरा यही तो काम है. यही मेरा पेशा है. आप मु झे अपने घर किसी बहाने से ले जाएंगे. मैं घर में, तुम्हारे बैडरूम में कैमरा लगा दूंगा, गोपनीय तरीके से. फिर दूसरे दिन तुम्हें कैमरा निकाल कर मु झे वापस करना है. मैं तुम्हें, तुम्हारी पत्नी और उस के आशिक की पूरीपूरी जानकारी दूंगा. इस सुबूत के आधार पर तुम्हें जो कदम उठाना हो, उठा सकते हो. तलाक लेना हो, चाहे पत्नी को सुबूत दे कर सुधरने के लिए एक मौका देना हो.’’

‘‘एक बात पूछूं टाइगर भाई,’’ रमेश ने दीनता से कहा, ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में पत्नी को चरित्रहीनता के आधार पर सजा दिलवाई जा सके?’’

टाइगर ने रमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘नहीं, दोस्त. ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में शादीशुदा स्त्री की चरित्रहीनता पर कानून की कोई धारा लग सके.’’

‘‘आप अपने पति को क्या सजा देंगी, मैडम?’’ रमेश ने मासूमियत से पूछा.

कुछ देर शांत रह कर सुमेरचंद की पत्नी रीमा ने कहा, ‘‘घरवालों की मरजी के खिलाफ मैं ने लवमैरिज की थी. अब किस मुंह से अपने पति की करतूत बताऊंगी. शादी के कुछ समय बाद ही मु झे अपने पति के चरित्र के बारे में पता चल गया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी और अभी भी क्या कर सकती हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. मु झे अपना घर भी बचाना है.’’

‘‘आप तलाक दे सकती हैं,’’ रमेश ने कहा.

‘‘मैं अपने पति को तलाक की गोली से मारूं या बंदूक की गोली से, घर तो मेरा ही टूटना है. मेरा विवेक तो यही कहता है कि सुबह का भूला शाम को घर आ ही जाएगा. ज्यादा से ज्यादा मैं कुछ दिन नाराज रह सकती हूं, पति को मार तो नहीं सकती. तलाक के बाद मैं क्या करूंगी? 2 बेटियों को अकेले पालना संभव नहीं है मेरे लिए. किंतु आप तो मर्द हैं. अच्छीखासी नौकरी है आप के पास. आप क्यों नहीं छोड़ देते अपनी पत्नी को.’’

‘‘मेरा भी एक बेटा है,’’ रमेश ने कहा.

‘‘जब आप पुरुष हो कर सह सकते हैं अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं.’’

बातचीत का जो नतीजा रमेश चाहता था, वह नहीं निकला. रमेश इस वादे के साथ विदा हुआ कि उन के मध्य जो बातचीत हुई, उस के जिक्र में रमेश का नाम न आए, क्योंकि उसे कुछ तो करना ही है अपनी पत्नी को सजा देने के लिए. मालूम पड़ने पर कहीं वे सतर्क और बेरहम न बन जाएं उस के प्रति.

रमेश जैसे लोग बंदूक चलाने के लिए दूसरे का कंधा तलाशते हैं. ऐसे लोग प्रत्यक्ष हमला करने से डरते हैं चाहे उस की जान पर क्यों न बन आए. सुमेरचंद की पत्नी रीमा से उस के मिलने की यही वजह थी कि रीमा कुछ ऐसा करे पति की बेवफाई से नाराज हो कर सुमेरचंद का घर टूट जाए. लेकिन रीमा के उत्तर से उस का यह दांव खाली गया. अब उस ने दूसरा तरीका यह अपनाया कि वह अपने ससुर लखनपाल से इस बाबत बात करने पहुंचा. सब से पहले उस ने सीडी की एक कौपी थमा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यह रहा विभा के विरुद्ध ठोस सुबूत. आप की बेटी ने मु झे धोखा दिया है. मेरे साथ विश्वासघात किया है. आप बताइए, मैं क्या करूं?’’

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

दरार : भाग 2

‘‘तुम क्या मेरे घर की चौकीदारी करते हो? तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में कौन आता है, क्यों आता है?’’ रमेश ने चिढ़ कर कहा. दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई और फोन कट गया.

रमेश सोचता रहा, सोचता रहा और एकदम से उस के दिमाग में आइडिया आया. विभा को लगे कि वह घर पर नहीं है, किंतु हो वह घर पर ही.

दूसरे दिन सुबह उस ने अपनी   योजना को अमलीजामा पहनाना  शुरू कर दिया. उस ने कार स्टार्ट की, फिर बंद की. फिर स्टार्ट की, फिर बंद की. इस तरह उस ने कई बार किया. फिर  झल्ला कर कहा, ‘‘कार स्टार्ट नहीं हो रही है. मैं बाहर सड़क से औटो ले लूंगा.’’

विभा उस वक्त बाथरूम में पहुंच चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘दरवाजा अटका कर चले जाना. मैं बाद में बंद कर लूंगी. रमेश ने जोर से दरवाजा खोला, फिर जोर से खींच कर बंद किया और बाहर जाने के बजाय बैडरूम में रखी बड़ी अलमारी के पीछे छिप गया. अपने ही घर में छिपना कितना पीड़ादायक होता है अपनी पत्नी को गैरपुरुष के साथ रंगेहाथ पकड़ना. बेटा तरुण पहले ही स्कूल जा चुका था. अब उसे सांस रोके छिप कर खड़े इंतजार करना था उस भीषण दृश्य का.

रमेश ने मन ही मन सोचा यदि उस की पत्नी ने उसे देख लिया तो क्या सोचेगी उस के बारे में. और यदि यह सच न हुआ, तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाएगा. विचारों के ऊहापोह में उसे पता भी न चला कि उसे दम साधे खड़े हुए कितना वक्त गुजर चुका है. काफी समय तक उसे अपनी पत्नी के इस कमरे में आनेजाने की आहट मिलती रही. फिर पत्नी के मोबाइल की रिंगटोन सुनाई दी. विभा ने मोबाइल उठाया. उस तरफ से कौन बोल रहा था, क्या बोल रहा था, यह उसे विभा की बात से सम झ आ गया.

‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मु झे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

फिर विभा गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. फिर एक  30-32 वर्ष के आकर्षक गौरवर्ण युवक ने बैडरूम में प्रवेश किया. दोनों लिपट गए. फिर दोनों के मध्य रतिक्रिया आरंभ हुई. दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गए.

‘तुम घबराना मत,’’ युवक ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘रास्ते का कांटा बनेगा तो कांटे को निकाल फेंकना मु झे आता है.’’

‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे,’’ विभा ने लिपटते हुए कहा.

रमेश का खून खौलने लगा. उस के दिल में आया कि कहीं से एक रिवौल्वर का इंतजाम करे और दोनों को गोली से उड़ा दे. यही सजा है दोनों की. किंतु खौलता हुआ रक्त उसे जमता हुआ जान पड़ा. उस के हाथपैर कांपने लगे.  झूठ की ताकत का भी जवाब नहीं, कितनी बेवफाई और ताकत से भरा हुआ था. बेचारा सच अपने ही घर में छिपा हुआ दोनों की प्रणयलीला देख रहा था. फिर मिलने का वादा कर के युवक चला गया और विभा ने कमरा ठीकठाक किया व बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही उस के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे.

दरवाजे को आहिस्ता से खोल कर रमेश बाहर निकल गया. जो उस ने देखा, जो उस ने भोगा, उस मृत्युतुल्य कष्ट में उस की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. खत्म कर दे दोनों को और जेल चला जाए जीवनभर के लिए या खुद को खत्म कर ले और पीछा छुटाए अपने इस टूटे, हारे, धोखा खाए जीवन से? किंतु दोनों ही स्थितियों में उस के बेटे का क्या होगा? इन लोगों का क्या है इन्हें तो खुली छूट मिल जाएगी किंतु सजा भुगतेगा उस का बेटा. नष्ट हो जाएगा उस के बेटे का भविष्य.

उसे लगा कि अब चाहे जो भी हो, उसे रमन से बात करनी चाहिए कि वह आगे क्या करे? ऐसा ही चलने दे? आंख पर पट्टी बांध कर जीना शुरू कर दे? सब बातों से अनजान बना रहे? उसे लगा कि रमन को बता देना चाहिए. कोई तो हो इस दुर्दांत घड़ी में अपना. उस ने रमन को सबकुछ बता दिया. उस की आंखों से आंसू बहते रहे. उस का कहना जारी रहा और रमन ने सब सुनने के बाद अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘हर समस्या का हल है. तुम क्या चाहते हो?’’

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‘‘मु झे कुछ सम झ में नहीं आ रहा है,’’ रमेश ने विषादभरे स्वर में कहा.

‘‘तो, चलो मेरे साथ,’’ रमन ने कहा और बिना प्रश्न पूछे रमेश उस के पीछे छोटे बच्चे की तरह चल पड़ा. रमेश को रमन एक कौफीहाउस में ले गया और उस से कहा, ‘‘मैं जो पूछूं, सचसच बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हूं, एक अच्छा समाधान निकालने की कोशिश करूंगा.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘तुम्हारे अंदर कोई कमी है. मेरा मतलब…’’

‘‘कमी होती तो मेरे साथ वह इतना लंबा समय न बिताती. मत भूलो कि मैं एक बच्चे का बाप हूं.’’

‘‘यह सब कब से चल रहा है.’’

‘‘मु झे पता नहीं.’’

‘‘तुम्हें शक कैसे हुआ?’’

‘‘किसी ने फोन पर जानकारी दी.’’

‘‘जो सही निकली.’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं उन दोनों का कत्ल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मूर्खता होगी.’’

‘‘तो तुम बताओ, क्या करूं मैं?’’

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‘‘मेरे खयाल से तुम्हारा इस संबंध में अपनी पत्नी से बात करना उचित नहीं होगा. यदि तुम बिना सुबूत के तलाक देने की बात करोगे, तो हो सकता है तुम्हारी पत्नी तुम्हें दहेज प्रताड़ना के केस में अंदर करवा दे. मेरा एक मित्र है जो जासूसी का काम करता है. उस के पास चलते हैं. एक बार सुबूत हाथ लग गए तो फिर तुम जैसा चाहे, करो.’’

‘‘तो चलते हैं तुम्हारे जासूस मित्र के पास.’’

इस समय रमेश और रमन टाइगर डिटैक्टिव एजेंसी में बैठ कर जासूस टाइगर को सारी बात सुना रहे थे. पूरी बात सुनने के बाद जासूस टाइगर ने अपनी फीस 10 हजार रुपए एडवांस बताई और सुबूत मिलने के बाद 30 हजार रुपए. जो रमेश ने मंजूर कर ले…

‘‘लेकिन आप सुबूत जुटाएंगे कैसे?’’ रमेश ने पूछा.

अगले भाग में पढ़ें-  अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं…

 दरार : भाग 1

ऐसे आदमी पर क्या गुजरती होगी जो अपनी पत्नी को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथ पकड़ ले और रंगेहाथ भी इस तरह कि पत्नी यह बहाना भी न कर सके कि उस के साथ जबरदस्ती हो रही थी. पहलेपहल उस के पास जब फोन आया तो उसे लगा कि कोई उस के साथ भद्दा मजाक कर रहा है. उस ने फोन करने वाले को डांटाफटकारा भी. उसे कौल ट्रैस करवा कर पुलिस में देने की धमकी भी दी. लेकिन खबर देने वाला पूरी तरह गंभीर था. उस ने कहा, ‘‘आप की पत्नी के अवैध संबंध आज नहीं तो कल उजागर होंगे ही. मैं आप को पहले सूचित कर रहा हूं ताकि आप समय से पहले सचेत हो जाएं. फैलतेफैलते खबर आप तक पहुंची तो आप की ही बदनामी होगी.’’

‘‘क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘सुबूत तलाशना मेरा काम नहीं है. आप का घर ऐयाशी का अड्डा बन चुका है. सुबूत तुम खुद तलाश करो.’’ और फोन काट दिया गया.

फोन करने वाले की बात पर उसे यकीन न आना स्वाभाविक था. 14 वर्ष हो चुके थे उस के विवाह को. एक बेटा भी था जो अभी स्कूल में पढ़ रहा था. सुखी दांपत्य था उन का. ऐसे में उस की पत्नी के बहकने का कोई कारण नहीं था. घर में सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. स्वयं का घर था. अच्छा वेतन था. अच्छी नौकरी थी उस के पास. बैंक में मैनेजर था वह. लेकिन कोई उसे इस तरह फोन क्यों करेगा? उस की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. 13 वर्ष का बेटा था उस का. पत्नी की उम्र भी 35 वर्ष के लगभग थी. स्वयं उस की आयु 45 वर्ष थी. सुना था उस ने कि इस उम्र में औरत एक बार फिर से युवा होती है. औरत में वही लक्षण उभरते हैं जो 17-18 की उम्र में. लेकिन वह इस बात का पता कैसे लगाए? दिमाग में बैठे शक को कैसे साबित करे? पत्नी के हावभाव, व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं था. जैसी वह पहले थी वैसी अब भी है.

उस के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर उस के सब से घनिष्ठ मित्र रमन ने पूछा, ‘‘क्या बात है रमेश? कोई परेशानी हो तो कहो?’’

रमन उस का सब से निकटवर्ती मित्र था. दोनों अपनी परेशानियां, अपने दुख एकदूसरे को बता कर मन हलका करते थे. बचपन से साथ में पढ़ेलिखे, साथ में खेले और आज एक ही बैंक में कार्यरत थे. फर्क सिर्फ इतना था कि वह जिस बैंक में मैनेजर था, रमन उसी बैंक में अकाउंटैंट था.

‘‘कुछ नहीं, पारिवारिक कारण है,’’ रमेश ने टालने के अंदाज में कहा. बता कर करता भी क्या? थोड़ी देर के लिए मन हलका हो जाता और यह डर बढ़ जाता कि उसे बात पता चली तो वह किसी न किसी से कहेगा जरूर चाहे वह कितना भी घनिष्ठ मित्र हो. किसी से न कहने की कसम भी उठा ले तो भी ऐसी बातें आदमी अपने तक रख नहीं सकता.

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रमेश दुखी था, उदास था. उस के दिलोदिमाग में भयंकर  झं झावात चल रहे थे. न घर में मन लग रहा था न औफिस में. वह करे तो क्या करे? इस सचाई का पता कैसे लगाए? किसी को तो बताना पड़ेगा. तभी तो कोई रास्ता मिलेगा और मन हलका भी होगा. आखिर कब तक वह अंदर ही अंदर घुटता रहेगा. फिर समाधान निकलेगा कैसे? नहीं… किसी को बताने, पूछने से पहले उसे इस बात को प्रत्यक्ष देखना होगा. कभीकभी आंखें भी धोखा खा जाती हैं, फिर यह तो किसी की फोन पर दी गई खबर मात्र है जो गलत हो सकती है.

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रमेश अब बिना बताए टाइमबेटाइम घर आने लगा और घर भी इस तरह आता जैसे दबेपांव कोई चोर घुसता है. अचानक घर आने से रमेश की पत्नी के चेहरे पर बेचैनी सी दिखाई देने लगी. हालांकि घर में उस समय कोई नहीं था. लेकिन पत्नी विभा के चेहरे पर आई हड़बड़ाहट ने उस के शक को यकीन में बदल दिया. विभा ने पूछा, ‘‘अचानक, कैसे? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या मु झे अपने घर आने के लिए इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

‘‘पहले तो कभी नहीं आए दोपहर में. वह भी बैंक के समय पर.’’

‘‘मेरे आने से तुम्हें कोई तकलीफ है?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. पहले कभी नहीं हुआ ऐसा, इसलिए पूछ लिया.’’

‘‘पहले तो बहुतकुछ नहीं हुआ, जो अब हो रहा है,’’ रमेश ने कड़वाहटभरे स्वर में कहा. विभा ने कोई उत्तर नहीं दिया.

रमेश ने बारीकी से बैडरूम का आंखों से मुआयना किया. लेकिन सबकुछ ठीक था अपनी जगह पर. वह पलंग पर लेट गया. शायद किसी अन्य व्यक्ति का, कुछ देर पहले होने का, उस के जिस्म की गंध का कुछ अनुमान मिले. किंतु वह स्त्री नहीं था. इन बातों को औरत की छठी इंद्रिय भाप लेती है. तभी उसे तकिए के पास एक मोबाइल नजर आया. यह मोबाइल किस का हो सकता है. रमेश ने मोबाइल उठाया ही था कि अचानक चाय ले कर विभा कमरे में आ गई. उस ने तीव्रता से मोबाइल यह कह कर ले लिया कि मेरी सहेली का मोबाइल है. जल्दी में छोड़ गई होगी.

‘‘अगर तुम्हारी सहेली का मोबाइल है तो चील की तरह  झपट्टा मार कर क्यों छीना?’’

‘‘मैं ने  झपट्टा नहीं मारा. सहज ही लिया है. तुम तिल का ताड़ बनाने लगे हो आजकल,’’ विभा ने संभल कर उत्तर दिया.

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‘‘तुम्हारी सहेली आई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम ने बताया नहीं?’’

‘‘वह तो अकसर आती है. इस में बताने वाली क्या बात है?’’ विभा ने सहज हो कर उत्तर दिया. रमेश पूछने ही वाला था कि तुम्हारी सहेली का नाम क्या है? लेकिन वह यह सोच कर चुप हो गया कि पूछताछ से पत्नी को शक हो सकता है. फिर वह सावधान हो जाएगी.

रमेश बैंक में अपनी सीट पर काम कर रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस तरफ से वही स्वर सुनाई दिया.

‘‘बहुत चालाक है तुम्हारी बीवी. उसे पकड़ना है तो ऐसा समय चुनो जब तुम्हारा बेटा स्कूल में हो.’’

‘‘यदि इतने शुभचिंतक हो तो तुम्हीं बता दो कि कौन, कब आता है?’’

‘‘बीवी तुम्हारी बेवफाई करे और जानकारी मैं दूं?’’

‘‘तो फिर फोन कर के खबर क्यों देते हो?’’

‘‘रंगेहाथ पकड़ोगे तो कोई बहाना नहीं बना पाएगी, वरना स्त्री चरित्र है, रोधो कर स्वयं को सच्चा और जमाने को  झूठा साबित कर देगी.’’

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे…

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