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एमडी का अपहरण

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था.

बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था.

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गए.

तेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई.

स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

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मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने व पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है.

वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिले.

श्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में आ गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी.

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थे.

चूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगे.

अपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो. इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया.

श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थे.

श्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती न दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे.

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना.

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

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इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता था.

श्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो.

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके.

बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज आ गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे.

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे.

उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे.

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलाया.

एसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थी.

बस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके.

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थीं.

एसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए.

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वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गया.

पुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ की.

श्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था.

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया.

सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगे.

नैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी.

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया.

मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिले.

उन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे.

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के न सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी.

तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

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पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम व कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थे.

सबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया.

मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए.

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना ली.

इन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगे.

सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

आशीर्वाद

‘बेटा, 100 साल जिओ.’

‘भगवान तुम्हें लंबी उमर दे.’

‘दूधों नहाओ पूतों फलो.’

आप को ये आशीर्वादी वचन कैसे लगे?

आप सोचेंगे कि क्या प्रश्न है. आशीर्वाद तो आशीर्वाद ही है. इस में अच्छा या बुरा लगने जैसा कुछ भी नहीं है, पर आज के जमाने में ये आशीर्वाद अपना अर्थ खो चुके हैं. आज ये आशीर्वाद एक बददुआ से कम नहीं है. आप को भी जब इन का छिपा अर्थ समझ में आएगा तो आप भी मेरे साथ सहमत हो जाएंगे.

‘बेटा, 100 साल जिओ’ अर्थात इतने बूढ़े हो जाओ कि सभी इसी इंतजार में रहें कि बूढ़ा कब पीछा छोड़ेगा. आप कल्पना कर सकते हैं कि 100 साल तक पहुंचतेपहुंचते आदमी की क्या हालत हो जाती है. कमर झुक जाती है. आंखें धुंधला जाती हैं, कान आप का साथ नहीं देते और दांत तो कब के अलविदा कह चुके होते हैं. झुर्रियों से भरा चेहरा कैसा लगता होगा, जरा कल्पना कीजिए.

आज के एकल परिवारों में ऐसा बूढ़ा आदमी किसी श्राप से कम नहीं है. ऐसे में वृद्ध स्वयं भी और परिवार वाले भी बस एक ही दुआ मांगते हैं कि अब तो उठा ले. आज तो एकल परिवार के बूढ़े वृद्धाश्रम में भर्ती कर दिए जाते हैं, जहां वे अपनों का चेहरा देखने तक को तरस जाते हैं. आज के महंगाई के जमाने में वे सब के लिए बोझ बन जाते हैं. यह सब जानने के बाद भी आप अपने बड़ों से यह आशीर्वाद लेना चाहेंगे कि ‘बेटा 100 साल जिओ?’ अब यह आशीर्वाद भी बददुआ से कम नहीं है. इसलिए जरा रुकिए और सोचिए तभी कोई आशीर्वाद मुंह से निकालिए.

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प्रकृति इतनी लंबी उम्र तो किसी को भी न दे कि सब पर बोझ बन जाए. अब तो ऐसे आशीर्वाद की जरूरत है जो कहे, ‘सुख और प्रसन्नता से जिओ.’ और साहिब, दूधों नहाओ और पूतों फलो आशीर्वाद को ‘आउटडेटेड’ कर देना चाहिए. जिस देश में बच्चों को पीने के लिए दूध नसीब न हो वहां ‘दूधों नहाओ’ का कोई अर्थ ही नहीं है.

‘पूतों फलो’ वाले आशीर्वाद को तो ताला लगा कर गहरे कुएं में फेेंक दीजिए. बाप रे बाप, इतनी बड़ी बददुआ तो किसी को भी न दीजिए. क्या आप जानते नहीं हैं कि आज एक पूत को जन्म देना, पालना, पढ़ाना कितना कठिन है? एक मध्यम आय वाला आदमी भी तौबा कर जाता है. तब गरीब आदमी की क्या हालत होगी? इसलिए ‘पूतों फलो’ जैसा आशीर्वाद अपने दुश्मन को भी न दीजिए. आज एक ही पूत को पढ़ालिखा लें तो बड़ी बात है. लाखों रुपयों की डोनेशन दे कर आप एक पूत को किसी प्रोफैशनल कालेज में दाखिला दिला पाते हैं.

ऐसे में अपने बुढ़ापे के लिए तो कुछ बचता ही नहीं है और वह पूत बुढ़ापे में आप की देखभाल करेगा यह भी पक्का नहीं. ऐसे में बदलते समय के साथ अपने आशीर्वाद के शब्दों को भी बदलते जाइए. लकीर के फकीर बनने में कोई समझदारी नहीं है.

आशीर्वाद के साथ एक और कामना भी हर मातापिता के मन में होती है. वे चाहते हैं कि उन की संतान उन की सेवा करेगी. अब इस का भी अर्थ समझ लीजिए और अपनी कामना को भी बदल लीजिए. बुढ़ापे में बच्चे सेवा करेंगे ऐसा सोचना ही बेकार है. कभी आप ने सोचा है कि सेवा की जरूरत आप को कब होती है? सेवा अर्थात आप बीमार पड़ें, चारपाई पकड़ लें, आप के हाथपांव न चलें और आप अपने बच्चों की ओर देखें कि वे आप को डाक्टर के पास ले जाएं या समय पर दवा दे दें. कोई सहारा दे कर बैठा दे या बांह पकड़ कर शौचालय तक ले जाए. अब आप ही बताइए, क्या आप अपने लिए ऐसी कामना करेंगे? नहीं, कभी नहीं. कोई भी समझदार आदमी अपने लिए ऐसी कामना नहीं करेगा. मन में ऐसी ही कामना रहे कि किसी से भी सेवा करवाने से पहले ही संसार को अलविदा कर दें.

बच्चों से सेवा करवाने का विचार कितना दुखदायी हो सकता है अगर आप इस की कल्पना कर लेंगे तो इस विचार को फौरन मन से निकाल देंगे. फिर तो मन में ऐसी ही कामना उपजेगी कि बिना सेवा करवाए ही जाना बेहतर है.

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संसार का नियम है कि जो नहीं है उसे चाहना. चलतेफिरते आप गए तो जमाना कहेगा कि बूढ़े ने सेवा का मौका नहीं दिया और बीमार पड़ कर अस्पताल पहुंचे, आईसीयू में भरती हुए और लाखों का बिल बनवा दिया तो जमाना कहेगा कि बूढ़ा, मरता भी नहीं. दोनों ही स्थितियों में बात तो बनेगी ही. ऐसे में जरा रुक कर अपनी मान्यताओं को जांचिए और उन्हें बदलिए. गलत कामनाएं कर लीं और वे फलीभूत हो गईं तो सिर ही धुनते रह जाओगे. अपने आशीर्वाद स्वयं बनाइए. समय की चाल को देखो और बोलो, ‘सदा सुखी रहो’ या ‘सदा खुश रहो.’

शपथपत्र: भाग-3

वहां बैठे बाबू को उन का सवाल बहुत बचकाना लगा. बोला, ‘‘जब डुप्लीकेट आरसी बन जाएगी तभी तो उस में पता बदल कर लिखा जाएगा.’’

यदुनंदन साहब ने कहा, ‘‘पर नए पते के साथ ही डुप्लीकेट आरसी क्यों नहीं बन सकती?’’

बाबू ने कहा, ‘‘फिर फौर्म आप जमा कहां कराएंगे?’’

वे बोले, ‘‘डुप्लीकेट आरसी देने वाली खिड़की पर, और कहां?’’

बाबू ने प्रतिप्रश्न दागा, ‘‘डुप्लीकेट देने वाला बाबू पता बदलने वाला आवेदन फौर्म आप से लेगा ही क्यों?’’

यदुनंदन साहब चिढ़ कर बोले, ‘‘अरे, यही तो मैं पूछ रहा हूं, क्यों नहीं लेगा?’’

बाबू और जोर से झल्ला कर बोला, ‘‘जब उस का काम डुप्लीकेट आरसी बनाने का है तो वह पता बदलने का काम क्यों करेगा? आप का बस चले

तो आप एकएक आदमी पर दसदस आदमियों का बोझ लदवा दें. आप उस गरीब, निसंतान अंधे की कहानी सुन कर तो नहीं आ रहे हैं जिस ने प्रकृति से यह मांगा था कि अपनी गोद में अपने बेटे को बैठा कर सोने की कटोरी में खीर खाते हुए देख सके?’’

यदुनंदन साहब इस बेजा बात का कोई तगड़ा सा उत्तर अपने मन में टटोल ही रहे थे कि लाइन में उन के पीछे खड़े लोग अधीर हो कर हल्ला मचाने लगे कि उन्हें बहस करने का इतना शौक है तो पहले दूसरे लोगों को फौर्म खरीद लेने दें, फिर फुरसत से बहस करें. लाइन लंबी थी. एक बार चूके तो फिर 20 मिनट लग जाएंगे. इसलिए पीछे शोर मचाने वालों की अनदेखी करते हुए उन्होंने पूछ ही डाला, ‘‘अच्छा, एक ही एफिडेविट में लिखवा दूं कि आरसी और डीएल दोनों खो गए हैं और दोनों में दिया गया पता अब बदल कर यह ही हो गया है तो चलेगा?’’

बाबू अब तक जल्दीजल्दी उत्तर दे रहा था. अब उस ने सामने रखा अखबार बंद किया, अंदर अपने पीछे खड़े 2 दलालों को पीछे हटने का संकेत दिया और बड़ी हिकारत से बोला, ‘‘आप, सिर्फ इस औफिस में काम करने वाले लोगों में से आधे की नौकरी खत्म कराने आए हो या साथ में बेचारे वकीलों और नोटरी वालों के भी पेट पर लात मारने का मन बना कर आए हो?’’

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बात बिगड़ती देख कर और इस बातचीत को लंबी बहस में बदलते देख कर लाइन में पीछे खड़े लोग अब एकसाथ यदुनंदन साहब के ऊपर बरस पड़े. पीछे खड़े एक बुजुर्ग ने मुंह बना कर कहा, ‘‘साहब, आप हाईकोर्ट में जा कर वकालत करिए, यहां क्यों सब को परेशान कर रहे हैं?’’

यदुनंदन साहब ने चुपचाप चारों एफिडेविट बनवाने में ही खैरियत समझी और लाइन से बाहर आ गए.

उन के जातेजाते भी अंदर से बाबू ने आगे सलाह दी, ‘‘और हां, एफिडेविट आप विजयपाल साहब, जो गेट के

बाईं ओर बैठते हैं, से बनवाना, वरना गलतसलत बन जाएगा.’’

यदुनंदन साहब इतनी सी देर में इतने समझदार हो चुके थे कि बाबू का इशारा समझ जाएं. खत्री साहब पब्लिक नोटरी के पास जाने से पहले उन्होंने चारों फौर्म खरीदे और बुझे मन से गेट की तरफ चल दिए.

गेट से बाहर आ कर बाएं मुड़े तो कई सारी गुमटीनुमा दुकानों में बहुत से वकीलों के बोर्ड लगे दिखे, पब्लिक नोटरी भी कई थे पर आर एन खत्री, पब्लिक नोटरी के बोर्ड वाली गुमटी के सामने ज्यादा भीड़ थी.

यदुनंदन साहब वहां पहुंचे तो सामने कंप्यूटर पर बैठे व्यक्ति ने पूछा, ‘‘हां जी, सरजी, बोलो, क्या बनवाना है?’’ यदुनंदन साहब ने बताया कि उन्हें

4 एफिडेविट्स बनवाने हैं, 2 कागजात खोने के और 2 पुराना पता बदल कर नया पता बताने के.

वह बोला, ‘‘देखो सरजी, एस तरा है कि 4 एफिडेविट्स के 1600 रुपए लगेंगे. लेकिन अगर एक ही से काम चलाना हो तो सिर्फ 1 हजार लगेंगे.’’

यदुनंदन साहब एक मिनट तो अवाक् रह गए फिर खांस कर गला साफ कर के बोले, ‘‘भाई, एक एफिडेविट तो 400 रुपए का बताया है न आप ने, फिर

1 हजार किस बात के?’’

उस ने उकता कर जवाब दिया, ‘‘साब जी, आप को आम खाना है तो खाओ, पेड़ क्यों गिनते हो. अब पूछोगे एफिडेविट देने की क्या जरूरत है, सादे कागज पर ही क्यों न लिख कर दे दूं कि मेरे कागज गुम गए हैं और मेरा पता बदल गया है.’’

यदुनंदन साहब तय नहीं कर पा रहे थे कि अपने मन की बात मन में ही रहने दें या उसे बता डालें. फिर कहने भर का साहस जुटा ही लिया उन्होंने. बोले, ‘‘सोच तो रहा था मैं भी यही, पर कह नहीं पा रहा था. अगर मेरी कोई बात लिख कर देने से भी विश्वास के योग्य नहीं है तो स्टांप पेपर पर लिख कर देने से कैसे उस पर विश्वास कर लिया जाएगा? और अगर मैं कोई झूठा बयान सादे कागज पर लिख कर दे दूं तो क्या सरकार उस पर कोई कार्यवाही कर ही नहीं सकती है?’’

वह चकित था. बोला, ‘‘केस कैसे करेगी जी? स्टांप पेपर नहीं होगा तो कैसे कार्यवाही करेगी?’’

यदुनंदन साहब बोले, ‘‘अच्छा, अगर मैं सादे कागज पर आप को चिट्ठी लिखूं कि मुझे शाम तक एक लाख रुपए दो नहीं तो तुम्हारा मर्डर कर दूंगा तो क्या स्टांप पेपर पर न होने के कारण पुलिस उस पर कोई कदम नहीं उठाएगी?’’

वह सकपका गया. बोला, ‘‘लो जी, आप तो हमारी रोजीरोटी ही नहीं, सरकार की रोटी भी छीनने पर लग गए हो. स्टांप पेपर नहीं बिकेंगे तो सरकार कैसे चलेगी?’’ इस के पहले कि यदुनंदन साहब उसे समझाना शुरू करते कि सरकार बिना स्टांप पेपर पर एफिडेविट बनवाए कैसे चलाई जा सकती है, उस ने घुटने टेक दिए. बोला, ‘‘सरजी, आप के इतने सवालों का जवाब मैं क्या दूं. बस, अपने काम की बात सुन लो. सिर्फ एक एफिडेविट से काम चलाना है तो 400 रुपए एफिडेविट के, 400 रुपए चारों बाबुओं के और 200 मेरी चारों बाबुओं से सैटिंग के, कुल मिला कर हजार बने. अब बोलो, हजार वाला काम कराना है या 1600 वाला?’’

यदुनंदन साहब के पास आराम से पेट भरने के लिए तो रुपए थे पर फेंकने के लिए नहीं. इसलिए उन्होंने प्लेन वनीला की 4 आइसक्रीमों पर हजार रुपए की ट्रिपल संडे आसक्रीम को तरजीह दी और एक ही एफीडेविट बनवाया.

ताज्जुब तब हुआ जब कंप्यूटर से एफिडेविट का प्रिंटआउट निकालने के बाद उस आदमी ने कागज पर नोटरी विजयपाल की बड़ी सी गोल रबर स्टैंप लगा कर कहा, ‘‘आप 2 मिनट रुको, मैं वकील साहब से अभी दस्तखत करा कर लाता हूं.’’

यदुनंदन साहब ने कहा, ‘‘पर मेरी दस्तखत तो अभी कराई नहीं.’’

उस ने कहा, ‘‘जी, सब आप की तरह खुद थोड़ी आते हैं, हम तो एफिडेविट नोटराइज करा कर दे देते हैं कि लो जी, अब फुरसत से जिस को घुग्घी मारनी है मारो. यदुनंदन साहब ने हैरानी से पूछा, ‘‘फिर उन की दस्तखत का क्या माने होगा?’’

वह समझाते हुए बोला, ‘‘सरजी, उस का माने होगा कि वे आप को जानते हैं, पुष्टि करते हैं कि आप ही मिस्टर यदुनंदन वल्द रामकुमार हो. और सत्यापित करते हैं कि इस कागज पर आप के ही दस्तखत हैं?’’

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यदुनंदन साहब के अचरज का ठिकाना नहीं था. बोल पड़े, ‘‘पर वे तो मुझ को जानते नहीं हैं. दस्तखत भी मैं उन के सामने नहीं कर रहा हूं. फिर वे सत्यापन और पुष्टि या जोजो आप कह रहे हो, कैसे करेंगे?’’

विजयपाल साहब को अचानक पता नहीं क्या हुआ, साष्टांग दंडवत की मुद्रा में आ गया और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मालिक, मैं गरीब किरानी हूं. ज्यादा नहीं दे सकता. पर सौपचास रुपए ले कर सचसच बता दो, आप कौन से लोक से इस धरती पर पधारे हो?’’

शपथपत्र: भाग-2

यदुनंदन साहब विशेष हंसीमजाक के मूड में नहीं थे. ब्रीफकेस की चोरी के बाद हो भी नहीं सकते थे. झल्लाते हुए बोले, ‘‘अच्छा, चलो, तीनों अलगअलग ही अपनेअपने काम संभालो, पर पैसे कितने लगेंगे?’’ पूछने को तो वे पूछ बैठे पर उत्तर सुन कर घबरा गए. तीनों दलालों ने अपनेअपने काम के हजारहजार रुपए बताए और कहा कि

4 एफिडेविट्स यानी शपथपत्र बनवाने के प्रति एफिडेविट 400 रुपए यानी 1600 रुपए अलग से लगेंगे. इस के अलावा सरकारी फीस, अर्थात वह धनराशि जिस की रसीद मिलेगी, उसे अलग से जमा करवाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी.

यदुनंदन साहब को आशा थी कि मोलभाव कर के वे कुछ रुपए कम करा लेंगे पर दलालों ने उन्हें घास नहीं डाली, बल्कि उन का मजाक उड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘साहब, ऐसा है कि इन में से कोई एक काम आप खुद कर के देख लो, फिर समझ में आ जाएगा कि हम अपनी मेहनत के कितने कम पैसे मांग रहे हैं. हो सकता है कि तब आप शरमा कर हमें बाकी के दोनों काम के ही उतने पैसे दे दें जितने हम तीनों काम के मांग रहे हैं.’’

यदुनंदन साहब को उन की बात कुछ तो समझ में आई क्योंकि चारों तरफ बावली सी भटकती भीड़ और हर खिड़की के आगे लगे जमघट ने ऐसा माहौल बना रखा था कि उन्हें परेशानी लग रही थी. इसलिए इन खुदाई खिदमतगारों की बात पर विश्वास करने का सहज में ही मन कर रहा था.

लेकिन 400-400 रुपयों के 4 एफिडेविट्स वाली बात गले से नीचे नहीं उतरी. पूछा, ‘‘ये 4-4 एफिडेविट्स की क्या जरूरत है? एक में ही क्यों न लिखवा लूं कि मेरा ड्राइविंग लाइसैंस और आरसी गुम हो गए हैं जिन में मेरा पता पुराना लिखा हुआ था. अब नया बना कर दे दिया जाए जिन में मेरा नया पता यह होगा?’’

दलालों में से एक ने उन्हें नीचे से ऊपर तक देखा और बड़ी सहानुभूति से बोला, ‘‘लो जी, समझ में आ गया कि आप किसी सरकारी दफ्तर में पहली बार आए हो.’’

दूसरे ने समझाते हुए कहा, ‘‘सरजी, डुप्लीकेट आरसी एक खिड़की पर बनेगी, पता बदलने का काम दूसरी पर होगा. यही बात डीएल पर भी लागू होती है. अब आप का एक एफिडेविट ले कर एक बाबू दूसरे बाबू के यहां उठउठ कर भागेगा तो उस की खिड़की पर काम कौन करेगा? पब्लिक खाली खिड़की देख कर हल्ला मचाएगी कि नहीं?’’

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तीसरा दलाल कुछ ज्यादा ही मुंहफट निकला. बोला, ‘‘सरजी, आप को ट्रिपल संडे आइसक्रीम या तिरंगी बर्फी खाने का शौक होगा पर वह शौक यहां पूरा न होगा. यहां हर खिड़की पर अलग मिठाई मिलती है. यहां काम कराना हो तो चुपचाप फाइल में इतने पेपर डालो या फिर उस के ऊपर इतना वजन डालो जितना बताया जाए. इतनी बातें पूछोगे तो आप के सवालों के जवाब यहां मिलने से रहे.’’

ट्रिपल संडे आइसक्रीम की तरह ही यदुनंदन साहब के ऊपर प्रतिक्रियाएं भी 3 तरह की हुईं. पहले तो इन बेचारों की नासमझी या अल्पबुद्धि पर तरस आया, फिर इस औफिस की व्यवस्था पर गुस्सा आया और अंत में उन के व्यंग्य से आहत हो कर अपमानित सा महसूस किया उन्होंने. पर कुल मिला कर उन की बातें उन्हें एक तरह की चुनौती सी लगीं जिन्हें उन का आत्मसम्मान चुपचाप झेल जाने के लिए तैयार नहीं था. सोचा, ‘अब कौन सी अपने औफिस पहुंचने की जल्दी है. पत्नी को फोन कर दूंगा कि लौटने में देर होगी और सारा काम निबटा कर ही वापस जाऊंगा.’

बात सिर्फ रुपयों की नहीं थी, कुछ कर के दिखाना है, वाली हो गई थी. यदुनंदन साहब ने चुनौती स्वीकार करते हुए उन तीनों से कहा, ‘‘चलो, आज यही सही.’’ और उस तरफ बढ़ चले जिधर एक बड़े से बोर्ड पर साफसाफ बड़े अक्षरों में बहुत सरल और सहज तरीके से विभिन्न दस्तावेजों के जारी कराने या उन की डुप्लीकेट प्रति के पाने के लिए क्या करना होगा, बताया गया था.

विभिन्न आवेदनों के लिए जमा करने की फीस अलग से दी हुई थी. पढ़ कर उन्हें लगा कि इन कामों के लिए 40, 50 या 60 रुपए की फीस कोई अनुचित या अधिक रकम नहीं थी. फिर किस खिड़की पर कौन सा काम होगा और कौन से आवेदन का फौर्म नंबर क्या था, ये भी बहुत स्पष्ट लिखा हुआ था. इतनी सुव्यवस्थित ढंग से सारी जानकारियां दी हुई थीं कि उन्हें अपनी कमजोरी और मूर्खता पर शर्म आई कि इतने पढ़ेलिखे होने के बावजूद उन्होंने दलालों के चक्कर में पड़ने की सोची. उन्होंने मन ही मन कसम खाई कि आगे से एक जिम्मेदार नागरिक की तरह सब काम करेंगे. एक बोझ सर से हट गया हो ऐसा महसूस करते हुए, हलके मन से वे फौर्म बेचने वाली खिड़की के सामने वाली लाइन में जा कर लग गए.

उन का नंबर आने से पहले उन्हें एक उलझन ने घेर लिया. उन्हें खोई हुई आरसी के बदले में एक डुप्लीकेट आरसी लेनी थी फिर उस में अपना नया पता दर्ज कराना था. यही कहानी ड्राइविंग लाइसैंस के लिए भी दोहरानी थी. पर डुप्लीकेट आरसी के लिए एक फौर्म था, आरसी में पता बदलने के लिए दूसरा फौर्म था. इन 4 टुकड़ों में बंटे हुए हर काम के लिए अलगअलग खिड़कियां थीं. उन्हें लगा कि अगर डुप्लीकेट आरसी के आवेदन में ही नया पता भी लिख कर दे दें तो दोनों काम एकसाथ हो जाएंगे, ज्यादा से ज्यादा यही तो होगा कि दोनों फौर्म भर कर एकसाथ नत्थी करने होंगे. यही तरीका ड्राइविंग लाइसैंस के लिए भी अपनाया जा सकता था. पर सवाल था कि फौर्म जमा कहां करेंगे. डुप्लीकेट जारी करने वाली खिड़की पर या पता बदलने वाली खिड़की पर. अभी वे यह सोच ही रहे थे कि उन्होंने अपनेआप को फौर्म बेचने वाली महिला के सामने पाया. उन के प्रश्नों के उत्तर में उस ने कहा कि उस का काम फौर्म बेचने का था और फौर्म तो उन्हें चारों भरने ही पड़ेंगे. अब वे 4 की जगह किन 2 खिड़कियों पर जाएं, उसे नहीं मालूम. इस के लिए वे पूछताछ वाली खिड़की पर जाएं.

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यदुनंदन साहब ने चारों फौर्म लिए, उन्हें भरा और पूछताछ की खिड़की पर जा कर अपना सवाल दाग दिया.

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शपथपत्र: भाग-1

सेवानिवृत्त होने से पहले क्याक्या रंगीन सपने थे यदुनंदन साहब की आंखों में. सोचते थे जीवनभर जिनजिन शौकों के लिए समय निकालने के लिए तरसते रह गए उन्हें पूरा करने का अवसर अब आ ही गया. अब वे किताबें जिन के फ्लैप पढ़ कर लोलुप होने के बाद भी जिन पर केवल सरसरी दृष्टि डाल कर अलमारी में सहेज कर रख देने के सिवा कोई चारा न था, प्यार से बाहर निकाली जाएंगी, पढ़ी जाएंगी. सर्दी की गुनगुनी धूप को बालकनी में बैठ कर चुमकारने, गले से लगाने के अवसर, जो कभीकभार रविवार या छुट्टी के दिन आते थे, अब नियमित रूप से हर दिन आएंगे.

अपने वातानुकूलित दफ्तर में बारहों महीने एक ही तापक्रम से ऊबे हुए अधेड़ शरीर को वे धीरेधीरे खुली हवा, खिली धूप की मद्धम आंच में पकते हुए वृद्धावस्था की तरफ सहज चाल से चलने देंगे. शास्त्रीय संगीत की जिन बैठकों में अपने बेहद पुराने शौक के चलते किसी तरह दौड़तेभागते तब पहुंच पाते थे जब मुख्य राग को समाप्त कर के गायक भजन या ठुमरी से समाप्ति की गुहार लगा रहे होते थे, अब उन में समय से पहुंच कर मंथर गति से रसवर्षा करते हुए आलाप को कानों में घुलते हुए महसूस कर पाएंगे.

इधर, सेवानिवृत्त हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि रंगीन सपनों का रंग दिन ब दिन जिंदा रहने के उपक्रम की तेज बारिश में घुल कर बहने लगा. यदुनंदन साहब को सरकारी नौकरों के बड़े पद का चस्का तो नहीं लग सका था क्योंकि वे एक प्राइवेट कंपनी में सेवा करते रहे थे पर कंपनी भी बड़ी थी और उन का पद भी. इसीलिए आर्थिक चिंताओं से मुक्त हो कर शेष जीवन बिता पाएं, इस की वे पूरी तैयारी कर चुके थे. एक अच्छी आवासीय सोसायटी में 3 बैडरूम का निजी फ्लैट, सावधानी से की हुई बचत जो शेष जीवनभर के लिए पर्याप्त थी और जैसा कि आम हो गया है, अमेरिका में सैटल हुए एक बेटा और एक बेटी. इन सब के रहते हुए भी वे रोज किसी न किसी समस्या से जूझते हुए सारा का सारा दिन बिताएंगे, इस दुस्वप्न ने उन के रंगीन सपनों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था.

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नौकरी के अंतिम 10 वर्षों में तो किसी भी सरकारी, गैरसरकारी विभाग में अपना निजी काम भी कराने के लिए अपने निजी सहायक पर वे सारी जिम्मेदारी छोड़ देते थे और पूछना तक नहीं पड़ता था कि भागदौड़ कंपनी के किस कर्मचारी से करवाई गई.

अब गैस की बुकिंग से ले कर बिजली आपूर्ति की शिकायतें करतेकरते ही दिन फुर्र हो जाया करेगा, यह किस ने सोचा था. इसीलिए रिटायर हो कर निजी फ्लैट में शिफ्ट करने के बाद जब ड्राइविंग लाइसैंस और कार के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट यानी आरसी में अपने नए पते को दर्ज कराने की जरूरत आ पड़ी तो उन के अनुभवी दिमाग ने यह बात उन के मन को पहले ही समझा दी कि आज का दिन तो बरबाद हुआ. सेवानिवृत्ति के मुंडन के बाद रोज की घरेलू दिक्कतों के ओले जब सिर पर गिरना शुरू हो चुके हैं तो इतनी चोट सहने के लिए स्वयं को तैयार करना ही पड़ेगा, सोच कर उन्होंने कमर कस ही ली.

आरटीओ कार्यालय जाने की तैयारी में उन्होंने अपनी कार की आरसी, ड्राइविंग लाइसैंस और पते के पुष्टीकरण के लिए अपना पासपोर्ट, तीनों की मूलप्रतियां अपने कीमती ब्रीफकेस में संभाल कर रखीं और उसे कार में आगे बाईं सीट पर अपनी बगल में रख दिया. पत्नी को बता दिया कि लंच के समय तक घर आ जाएंगे. फिर बालकनी में खड़े हो कर हाथ हिलाती पत्नी से कार से हाथ निकाल कर मुसकरा कर विदा ली और कार को आरटीओ औफिस जाने वाले रास्ते पर दौड़ा दिया. लगभग 15 मिनट के बाद एक बहुत व्यस्त टै्रफिक सिग्नल पर, जहां 120 सैकंड का इंतजार था, उन्होंने ईंधन बचाने के लिए इंजन बंद किया और सामने के दोनों शीशे नीचे कर लिए. तभी बाईं खिड़की में झांक कर एक भिखारीनुमा छोकरे ने कहा, ‘‘साहब, आप का पिछला चक्का तो घूमता है.’’

यदुनंदन साहब पीछे का टायर जांचने के लिए गाड़ी से नीचे उतरे. पर टायर को सही सलामत पा कर उस छोकरे की शैतानी पर उसे कोसते हुए जब वापस ड्राइवर सीट पर बैठे तो अचानक देखा कि साथ की सीट पर रखा हुआ ब्रीफकेस गायब था. इस के बाद उस छोकरे को मन ही मन गालियां देने के बाद अपनी असावधानी पर खुद को कोसते हुए जब वे आरटीओ औफिस में पहुंचे तो चिंताओं से ग्रस्त थे. ब्रीफकेस में रखे उन तीनों महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों के बिना वे काम कैसे होंगे जिन के लिए वे घर से चले थे. पासपोर्ट का खोना अपनेआप में एक मुसीबत थी. अब तो आरटीओ औफिस में डुप्लीकेट आरसी और ड्राइविंग लाइसैंस बनवाना मुख्य काम हो गया था और इन दोनों में नया पता दर्ज कराना बाद की बात हो गई थी. खैरियत थी कि डीएल और पासपोर्ट की फोटोप्रतियां अलग रखी थीं.

कार से उतरते ही उन्हें दलालों ने घेर लिया. यदुनंदन साहब ने उन से अपनी समस्या बताई तो 3 अलगअलग व्यक्तियों में से एक ने ड्राइविंग लाइसैंस का डुप्लीकेट बनवाने में, दूसरे ने कार की डुप्लीकेट आरसी बनवाने में और तीसरे ने इन दोनों कागजों पर नया पता दर्ज करवाने में अपनी महारत का बखान कर दिया. यदुनंदन साहब ने कहा, ‘‘भाई, तीनों काम एक ही आदमी से क्यों न करवाऊं. आजकल तो ‘टर्न की कौंट्रैक्ट’ का जमाना है.’’

जवाब में एक बोला, ‘‘साहब, आजकल स्पैशलिस्ट होने का जमाना है. आप ने कभी डैंटिस्ट से अपनी आंखें चैक कराई हैं क्या?’’

दूसरे ने समझाया, ‘‘सर, हर काम के लिए अलग खिड़की है, हर खिड़की पर अलग बाबू है, हम सारे के सारे बाबुओं से कहां तक सैटिंग कर सकते हैं?’’

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तीसरा, जो पता नहीं मजाकिया स्वभाव का था या बड़ा कलाकार, बोला, ‘‘और सर, ‘टर्न की कौंट्रैक्ट’ शब्द यहां सोचसमझ कर बोलिएगा. यहां इस का मतलब है कि नकली चाबी या ‘मास्टर की’ के इस्तेमाल से चोरी की हुई कार के पेपर बनवाने हैं. वह काम भी हो जाएगा पर आप के हुलिए को देख कर इस का ठेका कोई आप से नहीं लेगा, करवाना हो तो मुझी को याद करिएगा.’’

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शहर को सिंगापुर बनाना है

देश को 2020 तक महाशक्ति बनाने के लिए सरकार कमर कस कर तैयार थी. इस के लिए देश को सिंगापुर कंट्री बनाना होगा और इस के लिए पहले राज्यों को सिंगापुर स्टेट बनाना जरूरी था. मंत्रियों ने फिल्म पुरस्कार समारोहों के टीवी कवरेज के कारण सिंगापुर के दृश्य देखे थे. बड़े लुभावने लग रहे थे. कई केंद्रीय मंत्री सिंगापुर में महीने दो महीने रह कर वहां के हालात से परिचित होने जा भी चुके थे. इस मामले में राज्य की भी हामी थी. उस के कई मंत्री अपने राज्य को सिंगापुर स्टेट बनाने के लिए असली सिंगापुर स्टेट के वातावरण के साथ सामंजस्य बिठाने की खातिर वहां 3-4 माह बिताने की इच्छा लिए कतार में खड़े थे. सुधार की ऐसी महामारी में शहर को भी खुजली होना स्वाभाविक था. उस ने भी खुद को सिंगापुर सिटी बनने का फैसला किया.

जलमल के लिए रखा गया बजट महापौर, उपमहापौर और कुछ पार्षदों की सिंगापुर यात्रा के लिए बलिदान हो गया. सिंगापुर के पास के द्वीप जेंटिंग की ऐश, फोर डी थिएटर में मजाक का पात्र बन कर और कैसीनो में चंद हजार रुपए हार कर लेकिन ‘दूसरे’ मौजमजे कर नगरनिगम की बरात लौटी. सैलानियों ने लौट कर बताया कि हमारे यहां की सब से बड़ी समस्या यातायात है. और यातायात की सब से बड़ी समस्या सड़कों पर अतिक्रमण है. और अतिक्रमण की सब से बड़ी वजह हम खुद पार्षद हैं.

बुद्धिजीवी कई दिनों से यातायात समस्या पर बयान पर बयान दिए जा रहे थे. प्रदूषण के आंकड़े दे कर नगरनिगम को चेता रहे थे कि संभल जाओ, अतिक्रमण शहर के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. पिछली बार उन्होंने मौन जुलूस निकाला था. महापौर को ज्ञापन भी दिया था. बुद्धिजीवी होने के कारण वे एकदम तो किसी के विरुद्ध नहीं बोल रहे थे लेकिन आने वाले खतरे से सभी को डरा रहे थे. इतने प्रतिशत टीबी के मरीज होंगे. इतने प्रतिशत सांस की बीमारी से पीडि़त रहेंगे. हो सकता है कि इतने प्रतिशत बच्चे अपना पहला जन्मदिन ही न मना सकें. अतिक्रमण के लिए अशिक्षितों को जिम्मेदार ठहराया गया. वे विदेशों में अतिक्रमण की समस्या न होने का उदाहरण भी पेश करते रहे.

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सिंगापुर से लौटे बरातियों की आंखों के सामने अभी भी सिंगापुर बसा हुआ था. क्या तो चकाचक सड़कें, क्या तो सफाई, वहां की बातों की हरेक को याद आती रही. सभी ने स्थानीय समाचारपत्रों में यात्रा संस्मरण लिखे और अपनी लेखन प्रतिभा काप्रदर्शन किया. अपने शहर की आदत से मजबूर होने से वहां कचरा फेंकने के कारण जुर्माना भरने की बात भी स्वीकारी. लेकिन यह भी लिखा कि भारत जैसे बीपीएल देश में जुर्माने से बात नहीं बनेगी. नागरिकों को कचरा सिर्फ कचरापेटी में डालने की नसीहत देने के लिए अभियान चलाया गया. जम कर प्रचार किया गया. सड़कें इस अपील के परचों से भर गईं. प्रचार को और भी ताकतवर बनाने के लिए फिल्मी सितारों को कूल्हे मटकाने और छातियां हिलाने के लिए बुलाया गया. चोलीचड्डीघाघरे के गानों के बीच कचरापेटी को भी याद किया गया. खुमार उतरने के बाद कचरापेटियों के लिए टैंडर जारी किए गए. बात अभी सिर्फ प्रारंभिक अवस्था में थी. हां, अतिक्रमण का मामला नगरनिगम भूला नहीं था. उसी का अध्ययन करने के लिए तो सिंगापुर गए थे.

चलो, कचरे की बात तो हो गई लेकिन अतिक्रमण का क्या? सभी अतिक्रमणकारी तो पार्षदों के अपने ही लोग थे. बड़ी मुश्किल से दूसरी पार्टी के लोगों को लाद कर अपने क्षेत्र में नालियों के किनारे बसाया है. उन के वोटों से ही तो चुनाव जीतते रहे हैं. कहां जाएंगे वे बेचारे? कहां जाएंगे पार्षद बेचारे? लेकिन मानवीय दृष्टिकोण का भार कितने समय तक लादे रहें? राज्य सरकार ने भी तो साफसुथरे शहर को अवार्ड देने की घोषणा की है. सभी पार्षद कह रहे थे कि एक बार ले तो लें. फिर कोई जरूरत नहीं. पहला विजेता होने का सुख तो ले लें. लेकिन पहले यह तय करें कि कितने साल के पहले के अतिक्रमण को अतिक्रमण कहा जाए. इस पर बैठकों पर बैठकें होने लगीं. चायकचौरी पर हाथ साफ किए जाने लगे.

आखिर तय किया गया कि सही तसवीर पाने के लिए सरकारी स्कूल मास्टरों को सर्वे में लगाया जाए. वे स्कूल में करते ही क्या हैं? सरकार ने 9वीं तक सभी को पास करने का फरमान जारी किया है. ऐसे में न तो पढ़ने वालों का पढ़ने का मूड होता है और न ही पढ़ाने वालों को पढ़ाने का. वैसे भी मास्टर लोग पढ़ाने के बजाय वोटर लिस्ट बनाने, इंसान गिनने, जानवर गिनने, गटरें गिनने, शौचालय गिनने का ही तो काम करते हैं. क्यों न जोत दिया जाए उन्हें इस काम में? मास्टर जात होती ही इसलिए है. जिसे कहीं नौकरी नहीं मिलती वही तो मास्टर बनता है.

मास्टरों के सर्वे के मुताबिक बच्चे, जवान और बूढ़े अतिक्रमणों की फेहरिस्त बनी. तोड़े जाने वाले अतिक्रमण को नोटिस देने की बात हुई. राजनीति में अनफिट एक पार्षद ने आपत्ति की कि जब अतिक्रमण करते समय किसी ने नगरनिगम को नोटिस नहीं दिया तो हटाने के लिए नोटिस क्यों? इस पर एकमत से सभी ने उसे मूर्ख करार दिया. नोटिस जारी कर दिए गए. विरोधियों को मौका मिला. झंडे और डंडे निकल आए. जुलूस निकले. धरने हुए. मरनेमारने की बात हुई. हकीकत में हुई भी. हर पार्टी का हर बार का बंद भी सफल रहा. लेकिन जीत सुधार की, शहर को सिंगापुर बनाने के जज्बे की हुई, पहला अवार्ड लेने की इच्छा हुई. नतीजतन, भंगार पड़ी हुई जेसीबी मशीनें कई टैंडरों और फायदों के वादों के बाद मशीनें ब्यूटीपार्लर से निकल कर दहाड़ने लगीं. पहला अतिक्रमण हटा फुटपाथ पर सब्जी बेचने वालों का. खरीदारों के कारण तो नहीं लेकिन मुफ्त की सब्जी खाने वाले आवारा पशुओं के कारण यातायात में बाधा आ रही थी. सब्जियां मौल में मिलती तो हैं. लोगों को वहीं जाना चाहिए. इस से सड़कों पर न तो खरीदारों की भीड़ होगी और न ही आवारा पशुओं की.

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पार्षदों ने वोटों का बलिदान करते हुए सब्जी वालों की तरफ से मुंह मोड़ लिया. सिंगापुर नाने के ठोस इरादे से उन्होंने दूसरों को भी सबक सिखाया. चाय का ठेला लगाने वाला हरिया समझदार था. उस ने अपना ठेला सरकारी दफ्तर के ठीक बाहर लगाया था. दिनभर चहलपहल बनी रहती थी. देखते ही देखते उस ने पौश इलाके में पक्का होटल खोल लिया. लेकिन भावनावश यहां का ठेला नहीं छोड़ा. उस का अतिक्रमण हटाया गया. पास का पान का ठेला भी नहीं बच सका. वहां लोग सिगरेट फूंकते थे और सड़क को सरकारी दफ्तरों की सीढि़यां समझ कर पिचपिचाते थे, जिस से पर्यावरण को हानि पहुंचती थी. पंक्चर पकाने वाला भी गायब हो गया. क्योंकि रबड़ के धुएं से कार्बनडाइआक्साइड बनती थी जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होती है. यह बात और है कि बाद में खराब सड़कों के कारण लोग अपने पंक्चर हुए वाहन धकेलते हुए लाचार नजरों से ताकझांक करते नजर आने लगे.

जूता पौलिश की टैंपरेरी दुकान भी हट गई. ऐसे जूते बनने लगे हैं कि पौलिश की जरूरत ही नहीं होती. ऐसे में पौलिश वाले की उपस्थिति और अस्तित्व बेमानी थे. और जब रेफ्रिजरेटर आसान किस्तों में मिल रहे हों तो सड़क पर अतिक्रमण करने वाले मटकों की दुकानों का क्या औचित्य? सड़कों पर खस की टट्टियां बेचने वाले, सड़क पर अतिक्रमण किए हुए हैं, बस.

नागरिक भी अजीब हैं. कंपनियां ब्याज फ्री किस्तों में एअरकंडीशनर दे रही हैं तो लेते क्यों नहीं? उन के कारण ही ये खस की टट्टी वाले अतिक्रमण करते हैं. उन्हें भी हटाया गया. जेसीबी मशीनें अपना विजय पर्व मनाती हुई फिर से अटाला बनने गैरेज पहुंच गईं. सड़कें चौड़ी हो गईं. निवासियों को पहली बार पता चला कि अतिक्रमण उन के घर तक आ पहुंचा था. गली जैसी नजर आने वाली सड़कें अब सड़क जितनी चौड़ी हो गई हैं, यही सोचसोच कर सभी खुश हो रहे थे. आजाद सड़कें जल्द ही पक्की भी बन गईं. दृश्य सुहावना लगने लगा. बुरा सिर्फ सुबह सड़कें झाड़ने वालों को लगा. चाय, पान, सब्जी की दुकानें उन के झाड़ू लगाने के बाद खुलती थीं. इसलिए वे उतना हिस्सा छोड़ देते थे और सड़क की गंदगी के किसी भी इल्जाम से बच जाते थे. अब उन्हें पूरी सड़क साफ करनी पड़ती थी.

अतिक्रमण हटने से सड़कें चौड़ी होने के कारण अब वहां सब्जी वाले, जूता पौलिश वाले, चायपान के ठेले और मटके वाले नजर नहीं आते थे. अब वहां शेवर्ले, मर्सिडीज, औडी, बीएमडब्लू, होंडा सिटी कारें पार्क की होती हैं. मारुति तो इक्कादुक्का ही नजर आती हैं, क्योंकि शहर तो सिंगापुर कंट्री जैसा प्रतीत हो रहा है.

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#coronavirus: कोरोना की वजह से TV और BOLLYWOOD ने लिया ये बड़ा फैसला, दी मिसाल

देश भर में फैले कोरोना वायरस के कहर से फिल्म टैक्निशियनों को बचाने और आगे की रणनीति तय करने के लिए फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई), इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्युसर एसोसिएशन (इंपा), वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्युसर एसोसिएशन (डब्लूआईएफपीए), आईएफपीटीसी और गिल्ड के पदाधिकारियों  एवं ब्राडकास्टरों की एक अर्जेंट ज्वाइंट मीटिंग इंपा के अंधेरी स्थित कार्यालय में रविवार 15 मार्च को दोपहर साढ़े तीन बजे आयोजित की गयी.

31 मार्च तक बंद रहेगी शूटिंग…

इस महत्वपूर्ण बैठक में तय किया किया गया कि गुरुवार से सभी फिल्मों और टेलिविजन शो की शूटिंग को बंद कर दिया जाए. यह बंदी 31 मार्च तक जारी रहेगी. इस दौरान सभी निर्माताओं को तीन दिन का मौका दिया गया है कि वह अगर देश या विदेश में कहीं भी शूटिंग कर रहे हैं तो अपनी यूनिट को वहां से वापस लायें.

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एडिटिंग से लेकर डबिंग तक सारे काम ठप्प…

उधर फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई) के प्रेसिडेंट बी.एन. तिवारी ने स्पष्ट किया है कि इस दौरान पोस्ट प्रोडक्शन, एडिटिंग और डबिंग के काम भी बंद रहेंगे.

विदेशों में न करें शूटिंग…

फेडरेशन के पदाधिकारियों ने मीटिंग में कहा कि निर्माता उन देशों में अपनी शूटिंग ना करें जिस देश में कोरोना वायरस अपना पैर पसार चुका है. अगर वहां शूटिंग चल रही है तो निर्माता से आग्रह है कि अपनी यूनिट के सद्स्यों को मेडिकल परीक्षण के बाद तीन दिनों के अंदर वहां से वापस बुला लें.

 

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सेट पर करें मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था….

फेडरेशन पदाधिकारियों ने कहा है कि हम अपने मेंबरों की सुरक्षा चाहते हैं. हम निर्माताओं से आग्रह कर रहे हैं कि तब तक निर्माता कोरोना वायरस से बचाव के लिये शूटिंग लोकेशन पर एहतियाती उपाय करें और सभी शूटिंग स्थलों पर सैनिटाइजर और मास्क की व्यवस्था करें और साफ सफाई पर ध्यान दें.

ये सदस्य रहे मौजूद…

इस मीटिंग में ऑल इंडिया फिल्म एम्प्लाइज कॉफिडरेशन के नेशनल प्रेसिडेंट और फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे और फेडरेशन के मुख्य सलाहकार और डायरेक्टर एसोसिएशन के अशोक पंडित के अलावा इंपा के प्रेसिडेंट टी.पी. अग्रवाल, एक्सक्यूटिव मेम्बर अभय सिन्हा,  सुषमा शिरोमनि और वेस्टर्न इंडिया फिल्म प्रोड्यूसर एसोसिएशन (डब्लूआईएफपीए) के प्रेसिडेंट संग्राम शिर्के एवं आईएफपीटीसी के जे. डी. मजीठिया, निर्माता टीनू वर्मा, प्रदीप सिंह तथा गिल्ड के पदाधिकारी आदि मौजूद थे.

बता दें कि फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई) में पांच लाख से ज्यादा सदस्य हैं.

1 महीने के हुई Shilpa Shetty की बेटी Samisha, PHOTO शेयर कर लिखा ये इमोशनल मैसेज

पिछले महीने सरोगेसी के जरिए मां बनीं शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty Kundra) की बेटी समीशा (Samisha) अब एक महीने की हो चुकी हैं. इस खुशी में शिल्पा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक बेहद प्यारी फैमिली फोटो शेयर की है और बेटी के नाम इमोशनल मैसेज लिखकर अपना प्यार भी जाहिर किया है. फैंस को ये तस्वीर बेहद पसंद आ रही हैं, इसी वजह से ये सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.

 तुम मेरी राजकुमारी हो…

 इस तस्वीर में शिल्पा शेट्टी अपनी बेटी का नन्हा हाथ थामे नजर आ रही हैं. इसके साथ ही राज कुंद्रा और उनके बेटे वियान कुंद्रा का भी हाथ साफ देखा जा सकता है. इन चारों के हाथ तस्वीर को पूरा कर रहे हैं.

अपनी खुशी का इजहार करते हुए शिल्पा शेट्टी ने कैप्शन में लिखा- तुमने अपनी जिंदगी का पहला पड़ाव परा कर दिया है. आज तुम एक महीने की हो चुकी हो. मैं तुमको बहुत चाहती हूं. समीशा तुम मेरी राजकुमारी हो….

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वायरल हुई थीं ये फोटोज

कुछ वक्त पहले ही शिल्पा को मुंबई एयरपोर्ट पर अपनी बेटी के साथ पोज देते हुए देखा गया था. इस दौरान शिल्पा के साथ उनके पति राज कुंद्रा और बेटा वियान भी नजर आया था. बेटी के जन्म देने के बाद शिल्पा अपनी बेटी को होली के मौके पर घर भी ले जा चुकी हैं.

 

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||Om Shri Ganeshaya Namah|| Our prayers have been answered with a miracle… With gratitude in our hearts, we are thrilled to announce the arrival of our little Angel, ???????? ?????? ??????? Born: February 15, 2020 Junior SSK in the house? ‘Sa’ in Sanskrit is “to have”, and ‘Misha’ in Russian stands for “someone like God”. You personify this name – our Goddess Laxmi, and complete our family. ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ~ Please bestow our angel with all your love and blessings??❤ ~ Ecstatic parents: Raj and Shilpa Shetty Kundra Overjoyed brother: Viaan-Raj Kundra . . . . . . . . . #SamishaShettyKundra ? #gratitude #blessed #MahaShivratri #daughter #family #love

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बता दें कि शिल्पा की ही तरह बॉलीवुड के कई सेलेब्स सरोगेसी के जरिए माता-पिता बन चुके हैं. इस लिस्ट में एकता कपूर, करण जौहर, तुषार कपूर जैसे कई सेलेब्स के नाम शामिल हैं.

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सीड ट्रे: जड़ साधक में तैयार होते पौधे

डा. नवीन कुमार बोहरा

पर्यावरण के प्रति लोगों में पिछले कुछ सालों से जागरूकता बढ़ी है और बडे़ पैमाने पर वृक्षारोपण यानी पेड़ लगाने के कार्यक्रम किए जा रहे हैं. पर दुख की बात है कि हर साल लगाए जाने वाले पौधों में आधे से ज्यादा पौधे तो किसी न किसी वजह से बेकार हो जाते हैं और बाकी बचे पौधों में भी कुछ अल्पविकसित होते हैं और कुछ सही तरह से पनप पाते हैं.

उलट वातावरण के अलावा बारिश न होने, दीमक या दूसरे कीटों का हमला होने व रोगों का फैलाव वगैरह कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिन्हें टाला नहीं जा सकता है, पर अच्छी किस्म के पौधे नर्सरी यानी रोपणी में तैयार किए जा सकते हैं. अच्छी किस्म के पौधों से पौधों की उत्पादकता बढ़ती है.

इस तरह के पौधे तैयार करने के लिए पिछले कुछ सालों में कृषि वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक ईजाद की है, जिन्हें रूट ट्रेनर तकनीक या जड़ साधक कहते हैं.

भारत में वृक्षारोपण कार्यक्रम

भारत में वानिकी कार्यक्रम 100 सालों से भी कहीं ज्यादा पुराना है और अभी भी भारत का एक बड़ा इलाका वनों से वंचित है. भारत में पहले ही बीजों को सीधा बोने का चलन था. इस के बाद विभिन्न प्रकार के पात्रों यानी बरतनों में पौधे तैयार करने की तकनीक चलाई गई. ये बरतन धातु, मिट्टी, पत्तियों, बांस वगैरह सभी तरह के मुहैया स्रोतों से बनाए जाते थे. इन सभी के बाद प्लास्टिक की थैलियों यानी पौली बैग का चलन शुरू हुआ जो आज भी जारी है. ये पौली बैग आसानी से बाजार में मुहैया हो जाते हैं और काफी सस्ते भी पड़ते हैं, पर इन पौली बैग में कई तरह की कमियां भी हैं. ये हैं :

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* इन में जड़ें कुंडलित यानी उला हुई होती हैं और पार्श्व जडें़ यानी पास की जड़ें पूरी तरह पनप नहीं पाती हैं. इस वजह से परिपक्व व विकसित जड़ तंत्र नहीं बन पाता है.

* पौधों को लाने व ले जाने के दौरान मिट्टी ढीली हो जाती है और जड़ों को बांधे रखने में नाकाम हो जाती है. इस तरह के पौधे रोपने के बाद जल्दी विकसित नहीं हो पाते और इन पर रोगों का हमला भी ज्यादा होता है.

* पौली बैग के इस्तेमाल में हर रोज जांच करनी पड़ती है और ज्यादा मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती है.

* पौली बैग दोबारा उपयोग में नहीं लाए जा सकते और वे फिर से वातावरणीय तंत्र में विघटित भी नहीं होते, इसलिए पर्यावरण संतुलन में भी बाधक होते हैं.

जड़ साधक यानी रूट ट्रेनर तकनीक के प्रयोग द्वारा ये सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. पश्चिमी देशों में इन का कामयाबी से प्रयोग होने के बाद भारत में इस का उपयोग शुरू किया जा चुका है.

क्या है जड़ साधक तकनीक

जड़ साधक ऊंचे लैवल के बने बरतन हैं, जिन में यूवी अवरोधक भी लगा होता है. ये एक टे्र के रूप में होते हैं और पूरी दुनिया में ऊंची क्वालिटी के पादपों को तैयार करने में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. आसान परिवहन और सुविधा के लिए 20 बरतनों के एक सैट को 5×4 की लाइनों में व्यवस्थित किया जाता है.

प्रत्येक बरतन 150 सीसी की कूवत वाले होते हैं. इन बरतनों के तल में एक छेद होता है. इन बरतनों में ऊपर से नीचे तक पूरे भाग में 5 खांचे एकदूसरे के समानांतर लगे रहते हैं. इन खांचों के चलते ही जडें़ कुंडलित नहीं हो पाती हैं और सीधे नीचे चली जाती हैं.

ये जडें पैदे में स्थित छेद से बाहर निकलने पर हवा और रोशनी के संपर्क में आती हैं और विकसित हो जाती हैं. इस तरह पूरी तरह विकसित होने पर ये पौधे को नई जडें भेजने के लिए संदेश भेजती हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है.

इस तरह से पार्श्व जड़ों यानी पास की जड़ों का एक जाल विकसित हो जाता है. ये पादप जब मिट्टी में रोपे जाते हैं, तब यह जड़ तंत्र जमीन से ज्यादा मात्रा में पोषक तत्त्व हासिल करता है और पौधे की बढ़वार तेजी से होती है. जड़ साधकों के प्रयोग से कई प्रकार के फायदे हैं. ये इस तरह हैं :

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* यह एक ट्रे के रूप में होते हैं और कम जगह घेरते हैं, इसलिए छोटी जगह में भी कई हजार पौधे रोपणी यानी नर्सरी में तैयार हो सकते हैं.

* इन में कम मात्रा में पोषक पदार्थ की जरूरत होती है और बारबार इन्हें देखने की जरूरत नहीं होती है. इस से खर्च में भी कमी आती है.

* इस में हवा के आनेजाने की पर्याप्त जगह होती है और हवा द्वारा जडें़ विकसित हो जाने के चलते पूरा विकसित जड़ तंत्र बनता है.

* इस में पार्श्व जड़ों यानी पास की जड़ों से भरापूरा जड़ तंत्र होने से पादप में पोषण के लिए उपयुक्त जडें विकसित हो जाती हैं, जो पौध रोपने के बाद तेजी से बढ़वार में मददगार साबित होती है.

* इस में पादपों के लाने व ले जाने के दौरान नुकसान नहीं होता है और इन में कवक या दूसरे रोग भी नहीं लगते, जिस से उच्च क्वालिटी के पौध नर्सरी में तैयार होते हैं.

* जड़ साधक यानी सीड ट्रे में जड़ों का सर्पिलीकरण या कुंडलन नहीं होता है और इस से जड़ या स्तंभ अनुपात में इजाफा होता है.

* ऐसे जड़ साधक में पादप रोपने के बाद जल्दी विकसित होते हैं और इन में जिंदा रहने की दर भी ज्यादा होती है.

* जड़ साधकों में रोपित पौधों की बढ़वार समान रूप से होती है और उच्च क्षमता के पौधे विकसित होते हैं, जो पौधों की उत्पादकता में बढ़वार करते हैं.

* ये जड़ साधक यानी सीड ट्रे आसानी से कई सालों तक इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं.

* बडे़ लैवल पर ये सीड ट्रे वृक्षारोपण कार्यक्रमों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं.

दुनिया के कई नर्सरी माहिरों ने पौली बैग में पौध तैयार करने को अनुपयुक्त करार दिया है और उन्हें टाइम बम कहा है. जड़ साधकों में तैयार पौधों को वैज्ञानिक फोर्स मल्टीप्लाय यानी तेजी से गुणन करने वाला बताते हैं.

ये न केवल जल्दी विकसित होते हैं, बल्कि अच्छी क्वालिटी के भी होते हैं, जिन से पेड़ों के उत्पाद यानी खाद्य, लकड़ी, ईंधन वगैरह में भी बढ़वार होती है. ये जड़ साधक कई सालों तक उपयोग में लाए जा सकते हैं, इसलिए पर्यावरण संतुलन में भी सहायक होते हैं.

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यों भी कह सकते हैं कि पौलीथिन में तैयार पौधों की लागत कम आती है, पर अगर हम जड़ साधकों का प्रयोग करें तो पहले साल में कीमत ज्यादा पड़ती है, पर ये बारबार प्रयोग किए जा सकते हैं और इन में पादप पोषक की मात्रा कम लगती है व मजूदरों की भी कम जरूरत होती है.

इस तरह से अगर हम कई सालों के खर्च की तुलना करें तो जड़ साधक सस्ते पड़ते हैं और इन से अच्छी क्वालिटी के पौध तैयार होते हैं. जड़ साधकों का प्रयोग नर्सरी में पौध तैयार करने की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव है.

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