जीवन को खेल और खेल को जीवन समझने वालों को धक्का तब लगा जब उन्हें पता चला कि मैदान में जिस खिलाड़ी को प्रतिभावान समझ कर वे जोरजोर से तालियां बजाते हैं, दरअसल, वे खिलाड़ी उस के हकदार हैं ही नहीं क्योंकि वे तो पैसे ले कर जीत रहे होते हैं या यों कहिए कि पैसे ले कर उन्हें जिताया जाता है. चाचा सिंह ने नुक्कड़ की चाय की दुकान पर जमा अपने युवा भतीजों को यह बात बताई थी.
‘‘वह कैसे, चाचाजी?’’ एक भतीजे ने सिगरेट छिपाते हुए पूछा.
चाचा सिंह यही तो चाहते थे, उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘धौनी को मोटरसाइकिल और पैंटशर्ट बेचते हुए विज्ञापन में नहीं देखते हो, यह क्या है, अपने हुनर से हासिल प्रसिद्धि के सहारे ही न आज सामान बेचने के लिए कंपनी उन्हें करोड़ों देती है?’’
‘‘लेकिन चाचा, विज्ञापन तो बड़ेबड़े नेता, अभिनेता, खिलाड़ी सभी करते हैं, इसे बिकना कैसे कहा जा सकता है?’’ विज्ञापन युग की पैदाइश एक भतीजे ने पूछा.
चाचा सिंह तुनक गए और कहा, ‘‘देखो भतीजे, विज्ञापन को अगर बिकना नहीं कहते हो तो यह क्या है कि खिलाडि़यों की जर्सी में तरहतरह के लोगो लगे होते हैं और खिलाडि़यों के बल्ले पर प्रायोजकों का लोगो रहता है, यह बिकना नहीं है क्या?’’
तपाक से एक युवा भतीजे ने चाचा सिंह पर प्रश्न दागा, ‘‘चाचा, मैं भी तो ‘ली’ की जर्सी पहनता हूं. तो क्या मैं बिक गया?’’
चाचा सिंह ने भन्नाते हुए युवा भतीजे को बाजार का समाजशास्त्र समझाया, ‘‘देखो भतीजे, तुम ने ‘ली’ कंपनी की जर्सी खरीदी तो कोई बात नहीं, पैसे दे कर तुम ने जर्सी खरीदी परंतु जब भारतीय टीम ‘ली’ की जर्सी का इस्तेमाल खेल के दौरान करेगी तो क्या खिलाड़ी उस जर्सी को तुम्हारी तरह खरीद कर नहीं न पहनेंगे?’’
‘‘अरे हां चाचा, आप ने तो सटीक उत्तर दिया.’’
‘‘असल में क्या है भतीजे,’’ चाचा सिंह थोड़े गंभीर होते हुए बोेले, ‘‘आजकल बाजारवाद का युग है, समझे, जैसे समाजवाद, साम्यवाद, मार्क्सवाद, लेनिनवाद का युग हुआ करता था न, वैसे ही आज बाजारवाद का युग है.’’
‘‘वह कैसे, चाचा?’’ एक अतिगंभीर युवक, जो अब तक चाय की दुकान की बैंच के कोने में बैठा अखबार के पन्नों में रोजगार कौलम के विज्ञापन का अध्ययन कर रहा था, ने पूछा.
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‘‘वह ऐसे भतीजे,’’ चाचा सिंह बोले, ‘‘देखो, बाजारवाद का सीधा अर्थ यह है कि बाजार तुम्हें मजबूर कर देगा वह चीज खरीदने को जिस की तुम्हें आवश्यकता भी नहीं है. कहते हैं न आवश्यकता आविष्कार की जननी है, अब मैं कहता हूं कि आवश्यकता आविष्कार बाजार की जननी है.’’
‘‘चाचा, कुछ समझा नहीं, जरा और स्पष्ट कीजिए,’’ गंभीर से भतीजे ने पूछा.
चाचा कहने लगे, ‘‘अरे भतीजे, अब देखो, एक सामान में दो सामान फ्री दिया जाएगा. जहां लोग देखते हैं, खरीदने के लिए तैयार, पैसा तो उन्हें 3 सामान का ही चुकाना पड़ता है न.’’
अब तक चुपचाप, सिगरेट का धुआं उगलते हुए एक युवा भतीजे ने पूछा, ‘‘हां, तो चाचा, आप खेल में धंधा और बिकाऊ खिलाड़ी के संबंध में कुछ बोल रहे थे.
‘‘अरे हां, भतीजे, हम तो विषय से भटक रहे थे,’’ चाचा सिंह ने कहा, ‘‘लेकिन भतीजे, वृहद परिप्रेक्ष्य में बिकाऊ खिलाड़ी और खेल में धंधे का संदर्भ भी बाजारवाद से ही जुड़ा है. अब देखो, भतीजे, बाजार है तो पैसे का लेनदेन है और पैसा ही आज का ‘ईश्वर’ बन बैठा है. पैसे के लिए कोई कुछ भी करने को तैयार है, कितने भी नीचे तल्ले तक जा सकता है. अब क्या तुम लोगों को यह जान कर कोई आश्चर्य होता है कि फलां नेता इतना बड़ा घोटालेबाज निकला या फलां अधिकारी अकूत धनसंपत्ति के दो नंबर के तरीके से मालिक बन बैठा?’’
‘‘यह तो आप ठीक कह रहे हैं, चाचा,’’ एक युवा भतीजे ने कहा, ‘‘अब तो घोटाला रोजमर्रा का समाचार है. जिसे देखो वही घोटाला कर रहा है. नमक तक का घोटाला हो चुका है हमारे देश में.’’
चाचा सिंह बोले, ‘‘हम लोग अब तक खिलाडि़यों को घोटालेबाज नहीं समझते थे लेकिन आईपीएल के बाद यह स्पष्ट हो गया कि खेल घोटाला भी यहां हो चुका. अरे, खेल में अभिनेता, अभिनेत्री, व्यवसायी का क्या काम?’’ चाचा सिंह गरजने लगे थे,‘‘शाहरुख खान, प्रीति जिंटा, मुकेश अंबानी इन लोगों ने जो अपनीअपनी टीमें बना ली थीं, उन टीमों में खिलाड़ी खरीद कर ही तो लाए गए और खिलाडि़यों को खरीदने के बाद ठेके पर बुलाए गए ‘चियर लीडर्स.’
‘‘तुम सभी जब मैच देखते थे,’’ चाचा सिंह उदाहरण दे कर भतीजों का भ्रम दूर कर रहे थे, ‘‘तो अब तक खिलाडि़यों को तालियां बजाबजा कर उत्साहित करते थे न.’’
सभी भतीजों ने एक स्वर में कहा, ‘‘हां, करते तो थे.’’ चाचा सिंह ने कहा, ‘‘अब चियर लीडर्स ठुमके मारमार कर खिलाडि़यों को उत्साहित कर रही हैं. चियर लीडर्स के ठुमके लगाने वाली महाकलाकारों को भी तो पैसे चाहिए.
‘‘इसलिए भतीजो,’’ चाचा सिंह ने अपने विचार के जीत का झंडा गाड़ते हुए कहा, ‘‘हम सब अब तक समझते रहे कि खेल स्पोर्ट्समैनशिप के सिद्धांत पर खेला जा रहा है लेकिन ऐसा नहीं है. खेल भी एक धंधा बन चुका है और सिर्फ टिकट ही नहीं बिक रहे बल्कि खिलाड़ी भी बिक रहे हैं.’